प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 8 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५६३ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ४५
ग्रामों में अनेक प्रतिभाएँ विविध रूपों में बिखरी हुई हैं, उन्हें पहचानना और उभारना हमारा उत्तरदायित्व है।
भारत एक अद्वितीय राष्ट्र है, जिसकी सोच और दृष्टिकोण सम्पूर्ण विश्व को समाविष्ट करने वाली रही है। हमने सम्पूर्ण वसुधा को एक कुटुम्ब के रूप में स्वीकार किया। ऐसी व्यापक, उदात्त और समन्वयकारी दृष्टि विश्व के अन्य किसी भी देश में दुर्लभ है।
हमें यह आत्मबोध होना चाहिए कि हमारी सांस्कृतिक विरासत कितनी विलक्षण, समृद्ध और सार्वभौमिक रही है। भारत ने न केवल आध्यात्मिक ज्ञान, वरन् विज्ञान, गणित, कला, भाषा, संगीत और दर्शन के क्षेत्रों में भी *विश्व को मार्गदर्शन प्रदान किया है*। हमारी सभ्यता केवल एक भू-भाग तक सीमित नहीं रही, अपितु उसकी अमिट छाप विश्व के कोने-कोने में देखी जा सकती है।
भारत की संस्कृति के चिह्न आज भी विभिन्न देशों के स्थापत्य, मूर्तिकला, साहित्य और जीवन मूल्यों में परिलक्षित होते हैं। यह हमारी उस महान् परम्परा का प्रमाण है, जो सहिष्णुता, समन्वय और वैश्विक मैत्री के सिद्धान्तों पर आधारित रही है।हमारा अमरत्व का चिन्तन भी अद्भुत है l
आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं कि हम अवतारत्व की अनुभूति करें (शौर्य प्रमंडित अध्यात्म )हम नित्य अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन निदिध्यासन व्यायाम आदि करें अध्ययन और स्वाध्याय के उपरांत जब यह गहन चिन्तन उत्पन्न होता है कि हम न तो केवल शरीर हैं, न केवल मन और न ही केवल बुद्धि, अपितु इन सभी तत्त्वों का समन्वय हैं, तब एक गम्भीर अनुभूति जन्म लेती है। इसी आध्यात्मिक एवं बौद्धिक अनुभव के आधार पर पं. दीनदयाल उपाध्याय जैसे विचारक "एकात्म मानववाद" की अवधारणा प्रस्तुत करते हैं, जो जीव से ब्रह्म तक की यात्रा को समाजोन्मुख दृष्टिकोण के साथ जोड़ती है।
इस दर्शन को आधार बनाकर यदि संगठन की रचना की जाती है, तो उसके परिणाम केवल सामाजिक संरचना तक सीमित नहीं रहते, अपितु अत्यन्त अद्भुत और व्यापक होते हैं। ऐसा संगठन मात्र जनसमूह का एकत्रीकरण या कोई सामाजिक क्लब नहीं होता, बल्कि उसमें निहित शक्ति असीम होती है, जो समाज के गहन रूपान्तरण में सक्षम होती है हमारा संगठन युगभारती एक ऐसा ही संगठन है
हम अपना उद्देश्य जानें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किसी आकाश सिंह की चर्चा क्यों की
और डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर (उपाख्य : हरिभाऊ वाकणकर ; 4 मई 1919 – 3 अप्रैल 1988) जो भारत के एक प्रमुख पुरातत्वविद् थे का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें