खुद पे हौसला रहे, बदी से ना टले ।
दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करे ||
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 10 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५९५ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ७७
अपनी त्रुटियों दोषों की समीक्षा करें जब समय मिले आत्मस्थ होने का प्रयास करें
प्रार्थनाओं
जैसे
हे प्रभु आनंददाता, ज्ञान हमको दीजिए ।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को, दूर हमसे कीजिए ।
लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बने ।
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीरव्रतधारी बने ।....
में एक अद्वितीय शक्ति निहित होती है। जब जीवन में विषम, जटिल या कठिन परिस्थितियाँ आती हैं, तब यही प्रार्थनाएँ हमारे भीतर धैर्य, संतुलन और सम्बल का संचार करती हैं। वे मानसिक दृढ़ता प्रदान करती हैं l
सारा संसार आशा और विश्वास पर ही आधारित है। यही दो तत्व व्यक्ति को निराशा में भी आश्वस्त रखते हैं और जीवन की गति को बनाए रखते हैं। प्रार्थनाएं इन दोनों की पोषक होती हैं। प्रार्थनाएं मनुष्य को विषमताओं में भी जीवित और जाग्रत बनाए रखती हैं। परमात्मा की कृपा एक मूल तत्त्व है उसकी शरण अद्भुत है उसके स्मरण के उपाय के लिए हम श्रीमद्भग्वद्गीता,श्रीरामचरित मानस आदि ग्रंथों की शरण में जा सकते हैं क्योंकि ये हमें अत्यधिक शक्ति सामर्थ्य बल प्रदान करते हैं जिसके आधार पर हम तात्त्विक आत्मबल आत्मभक्ति भी प्राप्त कर सकते हैं
एहिं कलिकाल न साधन दूजा। जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा॥
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि। संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि॥3॥
तुलसीदास जी कहते हैं इस कलिकाल में योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत और पूजन आदि कोई दूसरा साधन नहीं है। बस, श्री राम जी का ही स्मरण करना, श्री रामजी का ही गुण गाना और निरंतर श्री रामजी के ही गुणसमूहों को सुनना चाहिए l
इसके अतिरिक्त भैया डा प्रवीण सारस्वत जी भैया डा अमित जी भैया आलोक सांवल जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें