3.12.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 3 दिसंबर 2025 का उपदेश *१५८८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष  शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 3 दिसंबर 2025 का उपदेश

  *१५८८ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ७०

प्रातः काल शीघ्रोत्थान अत्यन्त आवश्यक है ताकि हमारा मानस उपदेशों के लिए सज्ज रहे


अरण्यकाण्ड में उपदेशों की  एक लम्बी श्रृंखला है जो अत्यन्त सारगर्भित और जीवनोपयोगी है। इसमें विविध पात्रों के माध्यम से जो संवाद हुए हैं, वे केवल कथानक को आगे ही नहीं बढ़ाते, बल्कि गहन शिक्षाएँ भी प्रदान करते हैं।  उदाहरणार्थ नारद द्वारा जयंत को, अनसूया माता द्वारा मां सीता को,अगस्त्य ऋषि द्वारा भगवान् राम को,शूर्पणखा द्वारा रावण को,भगवान् राम द्वारा लक्ष्मण जी और मां सीता को, रावण द्वारा मारीच को उपदेश दिए गये हैं ये केवल संवाद नहीं, बल्कि नीति, धर्म, मर्यादा, विवेक, नारीधर्म, पराक्रम और जीवनदृष्टि के व्याख्यान हैं इन उपदेशों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि यह सम्पूर्ण संसार जहां जीव वियोग झेलता है और जिसे इस प्रकार भी परिभाषित किया जा सकता है कि

*संसार समंदर एक अबुझ आकर्षण है*

*उसको, जो दूर सुरक्षित छाया तट पर हो* 

*पर जो लहरों को झेल रहा हो किसीलिए*

*उसको वह भीषण भयद जटिल संघर्षण है*


 एक गुरु-शिष्य रूप व्यवस्था है जहाँ प्रत्येक पात्र, परिस्थिति और घटना किसी न किसी रूप में ज्ञान, जागरण का कारण बनती है 

अरण्यकाण्ड केवल वनगमन का कथानक नहीं, अपितु यह मानव जीवन की विविध जटिलताओं में मार्गदर्शन करने वाले उपदेशों का अमूल्य भण्डार है, जो हर युग में प्रासंगिक और प्रेरणादायक है। वर्तमान परिस्थितियों में तो इन उपदेशों की और अधिक महत्ता है l


इसके अतिरिक्त आचार्य जी को यात्रा करते समय किस प्रकार की बाधा का सामना करना पड़ा, केरल, कन्याकुमारी और पुरी का उल्लेख क्यों हुआ, अरण्य कांड और माया का क्या सम्बन्ध है बाजा बजाता कौन घूम रहा है जानने के लिए सुनें