8.12.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 8 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५९३ वां* सार

 संकट कठिन कराल हो,अथवा सुखमय सेज।

दोनो में सम सहजता, यही स्वत्वमय तेज    ॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 8 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५९३ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ७५

 समय समय पर स्वयं की समीक्षा अवश्य करते रहें


कार्यक्रम किसी एक निश्चित लक्ष्य को लेकर आयोजित किए जाते हैं, और वह लक्ष्य होता है—मूल कार्य का विस्तार करना। यह मूल कार्य कुछ भी हो सकता है जैसे स्वधर्म का पालन करना, स्वदेशभाव को जाग्रत करना, समाज में जागरूकता फैलाना, समाज की विद्रूपताएं समाप्त करने का प्रयास करना आदि।


ये कार्यक्रम केवल औपचारिक आयोजन या बाह्य प्रदर्शन नहीं होते, अपितु आत्मदर्शन के भी सशक्त माध्यम होते हैं। इनका उद्देश्य आत्ममूल्यांकन, आत्मपरिष्कार और जीवन के उच्च आदर्शों को समाज में व्यक्त करना होता है।


इस प्रकार के आयोजन हमारे आंतरिक विश्वास, विचारधारा और राष्ट्रीय-धर्म के प्रति आस्था को जाग्रत करते हैं। अतः ऐसे प्रत्येक कार्यक्रम को गम्भीरता और समर्पण से देखने की आवश्यकता है, क्योंकि यही हमारे आत्मिक उत्थान और सामाजिक कर्तव्यबोध का माध्यम बनते हैं।

इसी प्रकार का एक कार्यक्रम २८ दिसंबर को होने जा रहा है तो इससे अनुस्यूत किसी अन्य कार्यक्रम में स्वैराचार अर्थात्

ऐसा मनमाना आचरण जो नैतिक, धार्मिक, सामाजिक आदि नियमों या बंधनों की उपेक्षा करके किया जाय (= उच्छृंखलता)

  का स्थान कैसे हो सकता है

स्वतन्त्रता और स्वैराचार में अन्तर है हमें सुसंस्कृत और सुसभ्य ही रहना चाहिए ताकि समाज में भी सम्मान मिले  हनुमान जी ने भारत मां की सेवा के लिए हमें  युगभारती के रूप में एकत्र किया है

भारत मां हमारे सत्कार्यों को देखकर प्रसन्न होती हैं और हमारी हीनता को देखकर दुःखी होती हैं

दूसरों का उत्कर्ष देखकर प्रसन्न होने  वाले कम होते हैं किन्तु होते हैं

जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हि जल पाई॥

सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई॥7॥


संसार में तालाबों और नदियों के समान ही मनुष्य भी अधिक हैं, जो जल पाकर अपनी ही बाढ़ से बढ़ते हैं अर्थात्‌ अपनी उन्नति से प्रसन्न होते हैं। समुद्र जैसा तो कोई एक बिरला ही सज्जन होता है, जो चन्द्रमा को पूर्ण देखकर अर्थात् दूसरों का उत्कर्ष देखकर) उमड़ पड़ता है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने राजनीति प्रधान चिन्तन का उल्लेख क्यों किया भैया रत्नेश जी भैया मनीष जी क्यों चर्चा में आये दिल्ली अधिवेशन के लिए क्या परामर्श है किसने स्व पर ध्यान दिया और पर का ध्यान नहीं किया जानने के लिए सुनें