28.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 बिनु संतोष न काम नसाहीं। काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं॥

राम भजन बिनु मिटहिं कि कामा। थल बिहीन तरु कबहुँ कि जामा ll


प्रस्तुत है पाठीन आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28/01/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


https://t.me/prav353


यह अतिशयोक्ति नहीं है कि हम सब जीवनियों के संसार में रहते हैं सृष्टि की भी जीवनी (BIOGRAPHY)है

नाना जी देशमुख कहते थे कि हम लोगों को महापुरुषों की जीवनियां खूब पढ़नी भी चाहिये औऱ पढ़वानी भी चाहिये

सृष्टि की जीवनी के साथ हम सब के भी जीवन हैं

हम परमात्मा के अंश,शिवोऽहं,भगवान् के पार्षद, विष्णु के सेवक, ब्रह्मा की सृष्टि,शिव के पुजारी, राम के सैनिक, कृष्ण के ग्वाले,महापुरुषों के अनुयायी,भारत मां की संतान  और विधि का विधान हैं


माया में लिप्त हों तो लगता है मैं ही संसार हूं वैभव हूं धन हूं


हम काम और नाम के प्रति लालायित रहते हैं


उत्तरकांड में तुलसी कहते हैं


बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु।

गावहिं बेद पुरान सुख कि लहिअ हरि भगति बिनु॥89 क॥


क्या गुरु के बिना कहीं ज्ञान हो सकता है या वैराग्य के बिना कहीं ज्ञान हो सकेगा ? उसी प्रकार वेद  पुराण कहते हैं   क्या हरि की भक्ति के बिना सुख मिल सकता है?

अर्थात् नहीं मिल सकता


लेकिन जिज्ञासु खोजेगा कि भक्ति क्या है यह करने से क्या होगा ऐसा क्यों करना चाहिये घण्टी बजाने से क्या होगा आदि आदि


विवेकानन्द ने पूजा की कुछ परिभाषा बताई स्वामी दयानन्द मूर्तिपूजा का विरोध करते थे चार्वाक नास्तिकता के चिन्तक लेकिन सभी महापुरुष हैं यही वैविध्य भारत का अद्भुत है एक जीवनशैली नहीं,केवल भौतिकता नहीं आध्यात्मिकता भी


कोउ बिश्राम कि पाव तात सहज संतोष बिनु।

चलै कि जल बिनु नाव कोटि जतन पचि पचि मरिअ॥89 ख॥

क्या कोई सहज संतोष के बिना  शांति पा सकता है? कोटि उपाय करके  क्या कभी जल के बिना नाव चल सकती है?


दिन भर के विकारों से इतर इस सदाचार वेला में हमें सहज संतोष का महत्त्व समझ में आता है हमारे अन्दर सद्विचार आते हैं यह परमात्मा की कृपा है


इस कथात्मक संसार में हम सभी कथा के पात्र हैं हमारी अलग अलग भूमिकाएं हैं


अपने भीतर का ओछापन दिखाई नहीं देता दूसरे का दिखाई देता है यह अपनापन जब स्वार्थ में लिप्त हो जाता है वहीं पतन प्रारम्भ हो जाता है लेकिन पतनोन्मुख होने पर भी जब हमें भक्ति भाव विचार संयम निष्ठा का सहारा मिल जाता है तो वह संतोष वर्णनातीत है


और इस तरह उठने की हमें चेष्टा करनी चाहिये

अध्ययन स्वाध्याय लेखन करने पर हमारी आत्मशक्ति जाग्रत हो सकती है किसी दूसरे के लिये कुछ करने पर हमें उत्साह मिलता है यह भी राष्ट्र -सेवा है 

आगामी चुनावों के लिये लोग सही निर्णय ले सकें इसके लिये भी उन्हें प्रेरित करना हमारा कर्तव्य है