सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्।
असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च।।13.15।।
प्रस्तुत है उदासिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 16 नवम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*८४० वां* सार -संक्षेप
1 तत्त्ववेत्ता
जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥
जिस तरह सन्त रूपी हंस दोष रूपी जल का त्याग कर गुण रूपी दूध को ही ग्रहण करते हैं उसी तरह हम लोग भी सद्गुण ग्रहण करने की चेष्टा करें संयोग से हमें सद्गुणी बनाने के लिए ये सदाचार संप्रेषण उपलब्ध हुए हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए
संसार लगातार चल रहा है वह स्थिर नहीं रहता है हम भी विचरण करते रहें
चरैवेति चरैवेति
जो व्यक्ति विचरण में लगता है उसका सौभाग्य भी चलने लगता है
संसार का निर्माण परमात्मा द्वारा है
मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।7.7।।
उसी परमात्मा का अंश जीवात्मा संसार के साधनों को अपने अनुकूल बनाने की प्रक्रिया करता है
जो व्यक्ति परमात्मा और जीवात्मा के संपर्क का अनुभव कर लेता है उसे अपनी समस्याओं के समाधान मिल जाते हैं
तदेजति तन्नैजति तद् दूरे तद्वन्तिके।
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ॥
परमात्मा चलता भी है और नहीं भी चलता है ; वह दूर है और पास भी है; सबके भीतर है और सबके बाहर भी है।
वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।
तमेव विदित्वातिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय॥
मैं उस परम पुरुष को जान गया हूँ जो सूरज की तरह देदीप्यमान है और सारे अन्धकार से परे है। जो अनुभूति द्वारा उसे जान जाता है वह मृत्यु से मुक्त हो जाता है।
जन्म-मरण से छुटकारे का अन्य कोई मार्ग नहीं है।
आत्मबोध कठिन काम नहीं है इसके लिए पहले शरीर भी शुद्ध रखना आवश्यक है आत्मस्थता के लिए एकान्त देखें
हम इसकी भी अनुभूति करें कि हमारा जन्म भारत में हुआ है मनुष्य रूप में जन्म हुआ है परोपकार की भावना रखने वाले सकारात्मक सोच वाले लोगों का हमें साथ मिला है
ये वरदान हमारे हौसले को बढ़ाने वाले हैं
अपनों पर विश्वास करें परायों का विश्लेषण भी करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा अमित भैया डा मलय भैया डा अजय भैया मनीष का नाम क्यों लिया
आचार्य जी ने अपनी किस कविता की चर्चा की जानने के लिए सुनें