प्रस्तुत है निष्प्रपञ्च ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 17 नवम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*८४१ वां* सार -संक्षेप1 ईमानदार
एकात्मता मनुष्य के साथ बहुत गहराई से संयुत है हम जीव से ब्रह्म तक की यात्रा करते हैं जीव से ब्रह्म तक की यात्रा में प्रकृति व्यवहार संबन्ध तत्त्व निर्माण विनाश आदि बहुत कुछ है और मनुष्य इसके सेतु के रूप में हर स्थान पर उपलब्ध है मनुष्य जीवन इसी कारण कर्मयोनि है
यह सब हमारे साहित्य में बहुत विस्तार से वर्णित है इसकी जानकारी के लिए नित्य हमें अध्ययन, स्वाध्याय, लेखन की ओर उन्मुख होना चाहिए
सारे सम्बन्धों का निर्वाह करते हुए सांसारिक प्रपंचों का सामना करते हुए अत्यन्त व्यस्त रहने के बाद भी कुछ समय के लिए आनन्द की अनुभूति शान्ति की प्राप्ति भी आवश्यक है यह ऊर्जा बहुत अद्भुत है
कुछ क्षण सुख सुविधा सांसारिक प्रपंचों से दूर रहने के लिए आवश्यक हैं
नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी। बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी॥
ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा। अकथ अनामय नाम न रूपा॥
बिरंचि के बनाए हुए इस प्रपंच से भली-भाँति छूटे हुए योगी पुरुष राम नाम को ही जीभ के द्वारा जपते हुए जागते हैं और नाम से रहित , रूप से रहित, अनुपम, अनिर्वचनीय ब्रह्मसुख की अनुभूति करते हैं
तुलसीदास जी ही कहते हैं
राम-नाम-मनि-दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
‘तुलसी’ भीतर बाहिरौ, जौ चाहसि उजियार॥
तत्त्ववेत्ता तुलसीदास जी कहते हैं कि यदि तुम अपने हृदय के अंदर और बाहर दोनों में प्रकाश की कामना करते हो तो राम-नाम रूपी मणि के दीपक को जीभ रूपी देहली के द्वार पर रख लो। जिस तरह देहली पर रखे दीपक से घर के बाहर और अंदर दोनों ओर प्रकाश रहता है उसी प्रकार जीभ, जो शरीर के अंदर और बाहर दोनों ओर की देहली है,पर यदि राम-नाम रूपी मणि का दीपक रख दिया जाय तो हृदय के बाहर और अंदर दोनों ओर प्रकाश हो ही जाएगा
राम जपु, राम जपु, राम जपु बावरे।
घोर भव नीर-निधि, नाम निज नाव रे।।
जप मौन और मुखर दोनों तरह का होता है हर समय किया जा सकता है ये जापक बुद्धिमान् भी होते हैं
जिस तरह भगवान् राम के जापक विभीषण ने बुद्धि का प्रयोग करते हुए रावण को राम का अर्थ इस तरह बता दिया कि रा का अर्थ रावण और म का अर्थ मन्दोदरी
यह राम और रामत्व अत्यन्त महत्त्चपूर्ण है शक्ति सामर्थ्य बुद्धि विचार विवेक चैतन्य चिन्तन मनन करुणा ही रामत्व है हम इस रामत्व की अनुभूति करें अध्ययन स्वाध्याय सद्संगति खाद्याखाद्य विवेक पर ध्यान दें परमात्माश्रित रहें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गुरु जी का शवासन से संबन्धित कौन सा प्रसंग बताया पं दीनदयाल जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें