*८४२ वां* सार -संक्षेप
1 अनुपम
इन सदाचार संप्रेषणों के सदाचारमय विचारों को नित्य भावपूर्वक सुनने से हम लाभ प्राप्त कर रहे हैं इसमें अतिशयोक्ति नहीं
आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि वर्तमान समय की विषम परिस्थितियों में हम भगवान् राम से प्रेरणा लेकर समाज -हित और राष्ट्र -हित के कार्यों में संलग्न हों अपने वास्तविक इतिहास से परिचित हों अपने सद्ग्रन्थों का अध्ययन करें चिन्तन मनन लेखन स्वाध्याय भक्ति सद्संगति प्रार्थना आदि में रत हों संगठन का विस्तार करें आत्मानुभूति का प्रयास करें कि मैं कौन हूं और मुझे संसार में किस प्रकार रहना चाहिए सांसारिक सुख दुःखों से मुक्त होकर उन्हें द्रष्टा भाव से देखें सफलता असफलता में समस्थिति में रहें संसार के व्यवहार को न भूलते हुए क्यों कि इसे भूलने पर दुष्टों ने हमारा बहुत मान मर्दन किया अध्यात्म में प्रवेश करें षड्विकारों से दूर रहें
अपने ज्ञान -चक्षु खोलें
संसार में जितना भी ज्ञान है वह हमारे शास्त्रों के अनुसार अज्ञान है संसार में जितनी समस्याएं हैं वे हमारी ही समस्याएं हैं हमें समस्या नहीं समाधान बनना है किसी भी समस्या का दोष दूसरे पर मढ़ना अज्ञान है
आचार्य जी ने यह स्पष्ट किया कि संसार में प्रेम की झलक किस प्रकार मिलती है आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम ईशावास्योपनिषद् का अध्ययन करें और चर्चा करें इसमें कुल अठारह छंद हैं
जैसे
विद्यां चाविद्यां च यस् तद् वेदोभयं सह।
अविद्या मृत्युं तीर्त्वा विद्यामृतम् अश्नुते ॥ ॥
इसी के चौदहवें छंद में कहा गया है
संभूतिं च विनाशं च यस् तद् वेदोभयं सह।
विनाशेन मृत्युं तीरत्वा संभूत्यामृतम् अश्नुते ॥ 14॥
जो व्यक्ति व्यक्त और अव्यक्त को एक साथ चलने वाला समझता है वह व्यक्त के माध्यम से मृत्यु पर विजयश्री प्राप्त करके अव्यक्त के द्वारा अमरत्व प्राप्त करता है
पहले हम देवोपासना करें उदाहरण के लिए हनुमान जी की उपासना इसलिए करें कि वे हमें बल बुद्धि विवेक दें हमारा चैतन्य जाग्रत करें हम अपना प्राप्तव्य जानें
तू है दिवाकर तो कमल मैं, जलद तू, मैं मोर हूँ,
सब भावनाएँ छोड़कर अब कर रहा यह शोर हूँ ।
मुझमें समा जा इस तरह तन-प्राण का जो तौर है,
जिसमें न फिर कोई कहे, मैं और हूँ तू और है ।।
हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराई।
बूँद समानी समुंद मैं, सो कत हेरी जाइ॥
इसके अतिरिक्त आचार्य जी को आज कहां जाना पड़ रहा है भैया मनीष कृष्णा का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें