31.12.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष चतुर्थी/ पञ्चमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 31 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *८८५ वां* सार -संक्षेप

 


भारत पूरे विश्वमंच का नायक धीरोदात्त अनोखा,
इसने कभी किसी खलनायक को भी नहीं दिया है धोखा,
किंतु किसी अत्याचारी को नहीं पनपने दिया कभी भी ,
अतिचारी महलों को उसके बना दिया पल भर में खोखा। ।

प्रस्तुत है स्थिरचित्त ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष चतुर्थी/ पञ्चमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 31 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
  *८८५ वां* सार -संक्षेप

 1 विचार या संकल्प का पक्का

आचार्य जी का नित्य प्रयास रहता है कि हम इन सदाचारमय विचारों को सुनकर चिन्तन मनन की गहराइयों में उतरकर उत्साह उल्लास से भरकर कर्मानुरागी बनें
अस्ताचल देशों की भोगवृत्ति का त्याग करें पतन मार्ग पर न चलें दुनिया की गति मति न देख अपने आदर्शों को देखें विश्वासी भक्त बनें ध्यान धारणा अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों कर्म -प्रमाद दूर करें

युगभारती संगठन के सदस्य के रूप में हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम इस संगठन में प्रेम आत्मीयता का विस्तार करें
हमारा देश भारत भी प्रेम आत्मीयता का विस्तार करता रहा है कर्म यहां की सबसे मुखरित भाषा रही है
इतना कर्मानुरागी चिन्तक विश्वासी विचारक देश भारत भ्रमित हो गया

हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा
अरुणाचल की छवि बनी नयन मे धुँधली कंचन रेखा

अब समय है कि हम भ्रमित न रहें जवानी को बेचैन करने का समय आ गया है
*राही फिर से राह बनानी*

औऱ नई पीढ़ी को भी भ्रम से दूर करें

पौरुष को तकदीर बदलनी आती है
कौशल को हरदम तदबीर सुहाती है
उत्साहों को सभी मंजिलें छोटी हैं
असंतोष को भली बात भी खोटी है
संशय से विश्वास हमेशा जीता है
भ्रम के अंधकार में दीपक गीता है
मन की कमजोरी जीवन में घातक है
विश्वासी से दगा घोरतम पातक है
सत्य विश्व की सबसे बड़ी साधना है
सुख में यश मुट्ठी में रेत बांधना है
समझ बूझ कर भी दुर्गुण का त्याग नहीं
आस्तीन के भीतर बैठा नाग कहीं
उपदेशों से जीवन नहीं संवरता है
पाता वही यहां पर जो कुछ करता है
जीवन कर्म कुशलता की परिभाषा है
कर्म यहां की सबसे मुखरित भाषा है
कर्म -प्रमाद निराशा की परछाई है
पतन मार्ग की सबसे गहरी खाई है
कर्म करें विश्वास करें अपनेपन पर
मन में नव उल्लास रहेगा जीवन भर


 आचार्य जी की सन् २००८ में लिखी एक और कविता

उम्मीदों पर तौल रहा था उगती हुई जवानी को...

 भी अद्भुत है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा की चर्चा क्यों की प्रो माता प्रसाद जी का कथन ' हाथ से निकाल डालो 'का क्या आशय है जानने के लिए सुनें

30.12.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी (को व गुरुर्यो हि हितोपदेष्टा ) का पौष कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 30 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *८८४ वां* सार -संक्षेप

 


कभी संकट पड़े तो स्वयं का धीरज नहीं खोना,
व्यथाएं आ घिरें तो भी विकल आकुल नहीं होना ,
समय है , एक जैसा हर समय बिल्कुल नहीं रहता ,
जो स्थिर ही नहीं उसके लिए क्यों बैठकर रोना ।।
✍️ओम शंकर


प्रस्तुत है स्थिरात्मन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी
(को व गुरुर्यो हि हितोपदेष्टा )
 का आज पौष कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 30 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
  *८८४ वां* सार -संक्षेप

 1 विचार या संकल्प का पक्का

मनुष्य का मन और तन अभ्यास का अभ्यासी है यदि हम सदाचारमय विचारों को सुनने के अभ्यासी हो जाएं तो निश्चित रूप से हमारा कल्याण होगा उन्नत जीवन के नये नये सोपानों का आरोहण होगा ये विचार हमें अपनी जीवनशैली के प्रति सचेत करते हैं आत्मावलोकन की ओर उन्मुख करते हैं हम उदयाचल के उपासकों को एकांगीपन और अस्ताचल देशों की जीवनशैली के दुर्गुणों से दूर रहने के लिए प्रेरित करते हैं समाज -हित और राष्ट्र -हित हेतु कर्मानुरागी बनने का उत्साह जाग्रत करते हैं चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन ध्यान धारणा की ओर उन्मुख करते हैं


अध्यात्म हमें अन्तर्मन में प्रविष्ट कराता है और हमें अनुभव कराता है कि हम केवल शरीर नहीं हैं जब हमें लगता है कि हम शरीर हैं तो अनगिनत विकार हमें घेर लेते हैं इन्हीं बातों को देखकर ऋषि जब चिन्तन की गहराइयों में उतरता है तो कहता है
 
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्‌।
तत् त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥

विकार तो बहुत हैं जैसे भारत गांवों का देश है कृषि प्रधान देश है लेकिन गांव उपेक्षित हैं
इनकी उपेक्षा से जीवन की कल्पना करना असंभव है
युगभारती कम से कम एक गांव गोद ले इस ओर हम सब लोग प्रयास करें अपना समय गांव के लिए निकालें


चलो गांव की ओर साथियों चलो गांव की ओर
जहां अभी कोयल गाती है और नाचते मोर साथियों
चलो गांव की ओर....


ज्ञान जब व्यवहार में आता है तभी फलीभूत होता है
आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि रामजन्मभूमि उत्सव हेतु गांव गांव हम लोग जाएं एक एक व्यक्ति से मिलें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने वह कौन सी कथा बताई जिसमें एक युवा पुत्र जब दूसरी रानी पर आकर्षित हो गया तो क्या हुआ जानने के लिए सुनें

29.12.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष द्वितीया /तृतीया विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 29 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *८८३ वां* सार -संक्षेप

 तन के हवनकुण्ड में सात्विकता की आहुति दें,

तेजस्वी अर्चिक प्रकाश से जीवन को गति दें।
कर दें पर्यावरण कान्तिमय आत्मशक्ति भर लें,
शक्ति भक्ति अनुरक्ति वृत्ति को मंगलमय कर दें।


प्रस्तुत है अप्रतिभट ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष द्वितीया /तृतीया विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 29 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
  *८८३ वां* सार -संक्षेप

 1 बेजोड़ योद्धा


स्थान :उन्नाव

आचार्य जी नित्य हम शिष्यों का इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से मार्गदर्शन करते हैं
हम अपने सत्व को, तत्व को स्मरण करते हुए अपने व्यवहार का चिन्तन मनन करें और दूसरों को भी यही बताएं
आचार्य जी सचेत कर रहे हैं कि हम केवल उपयोग के साधन न बनें हमारी उपयोगिता राष्ट्र के लिए हो इसका चिन्तन करें
 
गुरुशिष्यमय सांसारिक व्यवस्था शास्त्रसिद्ध होने के साथ साथ संसार का यथार्थ स्वरूप भी है

को व गुरुर्यो हि हितोपदेष्टा
शिष्यस्तु को यो गुरुभक्त एव।

यह भगवान् आदिशङ्कराचार्य का उद्घोष है जिनके विचारोपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं जिसके अनुसार परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहता है।

हम अणु आत्मा विभु आत्मा के अंश हैं हम मनुष्य के रूप में जन्मे हैं जब हम मनुष्य मनुष्यत्व की अनुभूति को दूर कर देते हैं तो अनेक विकारों से ग्रस्त हो जाते हैं लेकिन जब मनुष्य को ये विकार वास्तविक विकार लगने लगते हैं तो कहता है
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्‌।
तत् त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥

ईशावास्योपनिषद् श्लोक १५

इसी ईशावास्योपनिषद् का पहला श्लोक हमारे संगठन युग भारती की प्रार्थना का अंश है
हमारे संगठन का उद्देश्य है
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
हमें अपना उद्देश्य सदैव ध्यान में रखना चाहिए इसके लिए नित्य हमें जागरण से लेकर शयन तक शौर्य प्रमंडित अध्यात्म के आधार पर अपनी एक उत्तम व्यवस्था बनानी चाहिए



सारस्वत नगर निवासी, हम आये यात्रा करने;
यह व्यर्थ रिक्त जीवन घट, पीयूष सलिल से भरने।
इस वृषभ धर्म प्रतिनिधि को, उत्सर्ग करेंगे जाकर।
चिर मुक्त रहे यह निर्भय, स्वछंद सदा सुख पाकर।”


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने २२ जनवरी २०२४ के विषय में क्या बताया
युगभारती रजत जयन्ती कार्यक्रम आदि को किस प्रकार और अधिक उन्नत बनाएं आदि जानने के सुनें

28.12.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 28 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *८८२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है अप्रतिद्वन्द्व ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 28 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण

  *८८२ वां* सार -संक्षेप

 1 अनूठा

स्थान :कानपुर

अन्तर्दृष्टि स्वयं की शुद्धि हेतु होती है आत्मावलोकन से हमारा स्वयं का वास्तविक विकास होता है विद्या ज्ञान समझदारी प्राप्त होती है इसी आत्मावलोकन की महत्ता को आचार्य जी इन वेलाओं में बताते हैं और हमें ध्यान दिलाते रहते हैं कि हम अपनी जीवनशैली के प्रति सचेत रहें

बाह्यावलोकन से अविद्यामय संसार को देखकर लाभ लोभ तो मिलता रहेगा लेकिन आत्मानन्द नहीं मिलेगा
मनुष्य जीवन

जीवन चलने का नाम
चलते रहो सुबह ओ शाम
जीवन चलने का नाम
चलते रहो सुबह ओ शाम

 विशिष्ट है दुर्लभ है और इस तरह मनुष्य भाग्यशाली है कि उसे मानव जीवन मिला है जिनका जन्म भारतवर्ष में हुआ है और यदि वे अनुभव करते हैं कि इस पुण्य यज्ञमयी धरा पर जन्मे हैं तो और अधिक भाग्यशाली हैं
भारत अद्भुत देश है विविधताओं से भरा है
राम कृष्ण शिव हमारे आराध्य हैं

मानव का स्वभाव होता है कि वह खोजी प्रवृत्ति का होता है खोज करते करते वह प्रसिद्धि पा जाता है इनमें कुछ ऐसे होते हैं जो प्रसिद्धि पर ध्यान न देकर लक्ष्य पर चलते ही रहते हैं मानव समाज उन्हें विशेष महत्त्व देता है

 मनुष्य जितना कर्मरत रहता है उसका जीवन उतना ही उत्साह में बना रहता है एकांत में होने पर वह यादों में खो जाता है यदि वे यादें हमें आनन्दित करती हैं तो इसका अर्थ है हमारा जीवन सही दिशा में चल रहा है
यदि विषाद में भर देती हैं तो इसका अर्थ है हम कहीं भटक रहे हैं
आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन में हम रत हों
मनुष्यत्व की अनुभूति करें
हम कौन हैं हमारा क्या उद्देश्य है
हम हैं
चिदानन्द रूपस्य शिवोऽहं शिवोऽहम्
हम वही हैं जिसने यह सृष्टि रची है
इस अनुभूति से ही मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति हो जाती है

जेताइ दीसां धरनि गगन मां ते ताईं उठि जासी।
तीरथ बरतां आन कथन्तां कहा लयां करवत कासी l

इसके अतिरिक्त उत्तरवाहिनी गंगा का क्या अभिप्राय है आचार्य जी ने कवि मदन वात्स्यायन की चर्चा क्यों की भैया विनय अजमानी जी भैया मलय जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें