29.2.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 29 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९४५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है भ्रान्तिहर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 29 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण

  *९४५ वां* सार -संक्षेप
1 संदेह/ भूल को दूर करने वाला

इन वायवीय महत्त्वपूर्ण प्रेरक तात्विक सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य है हमारी भ्रान्तियां हरना, इनसे प्राप्त तत्वों को हमारे व्यवहार में उतरवाना , हिन्दुत्व /सनातनत्व को जाग्रत करना, सनातन धर्म को आत्मसात् करवाना,पान्थिक दृष्टि से विविधता भरे इस देश में धार्मिक दृष्टि से एक बने हम अमर संस्कृति के उपासक राष्ट्र -भक्तों को मार्गान्तरित होने से बचाना, नई पीढ़ी को भी भटकने से बचाना, हमें ऐसी शक्ति प्राप्त करवाना जो समय पर काम दे
आइये प्रवेश करें आज की वेला में

ब्राह्मणः क्षत्रियो वैश्यस्त्रयो वर्ण द्विजातयः।
चतुर्थ एकजातिस्तु शूद्रो नास्ति तु पञ्चमः ॥ 4 ॥

हमारे यहां ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र का विभाजन कर्माधारित हुआ था
कर्म जन्म जन्मान्तर चलते हैं ब्राह्मण का धर्माधरित कर्म है अध्ययन मनन चिन्तन, क्षत्रिय का कर्म है कर्माधारित विधि व्यवस्था यजन

यजन पुरुषार्थ पराक्रम त्याग आधारित है वैश्य का धर्माधरित कर्म है पूजन और शूद्र का कर्म है भजन

भजन में भाव होते हैं इसके अतिरिक्त कुछ आवश्यक नहीं होता पूजन में सामग्री लगती है जिसके लिए धन की आवश्यकता होती है यजन में भी सामग्री लगती है लेकिन पूजन से भिन्न
अध्ययन चिन्तन मनन के लिए शुद्ध बुद्धि, शुद्ध विचार,लगन,साधना, संतोष आवश्यक है
अपनी जीवनशैली बदलकर किसी भी वर्ण का व्यक्ति अध्ययन चिन्तन मनन यजन पूजन भजन कर सकता है
वेद से लेकर श्रीराम चरित मानस तक में हमारे यहां ज्ञान का अथाह भण्डार है
धर्मनिष्ठ कर्मनिष्ठ भावनिष्ठ तुलसीदास विनय पत्रिका में कहते हैं
 
हे हरि! कस न हरहु भ्रम भारी।
जद्यपि मृषा सत्य भासै जबलगि नहिं कृपा तुम्हारी।1।

अर्थ अबिद्यमान जानिय संसृति नहिं जाइ गोसाईं।
बिन बाँधे निज हठ सठ परबस पर्यो कीर की नाईं।।

सपने ब्याधि बिबिध बाधा जनु मृत्यु उपस्थित आई।
बैद अनेक उपाय करै जागे बिनु पीर न जाई।।



हे हरे ! मेरे इस भारी भ्रम को क्यों दूर नहीं करते कि संसार सत्य है और यहां सुख है ? यद्यपि यह संसार मिथ्या है फिर भी जब तक आपकी कृपा नहीं होती, तब तक तो यह सत्य ही लगता है।

मैं यह जानता हूँ कि शरीर, धन आदि विषय यथार्थ में नहीं हैं, किन्तु हे स्वामी ! फिर भी इस संसार से छुटकारा नहीं मिलता । मैं किसी दूसरे द्वारा बाँधे बिना ही अपने ही हठ से अज्ञानता के कारण तोते की तरह बँधा पड़ा हूँ।

जैसे किसी को सपने में अनेक रोग हो जाएं जिनसे मानो उसकी मृत्यु ही निकट आ जाय, बाहर से वैद्य अनेक उपाय करते रहें, परन्तु जब तक वह जागता नहीं तब तक उसकी पीड़ा नहीं मिटती।इसी प्रकार माया से भ्रमित लोग बिना ही हुए संसार की अनेक पीड़ाएं भोग रहे हैं और उन्हें दूर करने के लिए झूठे उपाय कर रहे हैं, पर तत्त्वज्ञान के बिना कभी भी इन पीड़ाओं से छुटकारा नहीं मिल सकता।
तुलसीदास शुद्ध ब्राह्मण थे लेकिन उनका क्षत्रियत्व देखिए
तभी वो भगवान् राम से कहलवाते हैं
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह। सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥

खांचे हमें अलग करते हैं यद्यपि हम एक हैं हमारे यहां की जीवन पद्धति अद्भुत है यह हमें सौभाग्य से मिली है हमें इसका महत्त्व समझना चाहिए


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने पत्रकार वक्ता पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ की चर्चा क्यों की सन् १९६२ के चीन युद्ध की चर्चा क्यों की हमारी सक्रियता कहां हो जानने के लिए सुनें

28.2.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 28 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अन्तर्वाणि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 28 फरवरी 2024 का दाचार संप्रेषण

  *९४४ वां* सार -संक्षेप
1 बड़ा विद्वान्


साधना
साधना न व्यर्थ कभी जाती, चलकर ही मंजिल मिल पाती,
फिर क्या बदली क्या घाम है, बढ़ना ही अपना काम है।।
साधनों की अपेक्षा अधिक उत्कृष्ट है साधक आचार्य जी की ये सदाचार वेलाएं हमारे मन बुद्धि विचार कर्म जीवन के लिए आनन्द प्रदान करने वाली साधना की भूमिका हैं
संसार का कोई भी कार्य व्यवहार जब आनन्द के साथ किया जाता है तो समस्याओं से भरा यह संसार रूपी आगार सुहावना लगने लगता है
साधना के तत्त्व को जो लोग संस्पर्श कर लेते हैं उनके जीवन सफल हो जाते हैं जैसे नानाजी देशमुख
(चंडिकादास अमृतराव देशमुख )
 (जन्म : 11अक्टूबर 1916, मृत्यु : 27 फ़रवरी 2010)
जो जीवन पर्यन्त दीनदयाल शोध संस्थान के अन्तर्गत चलने वाले विविध प्रकल्पों के विस्तार हेतु कार्य करते रहे।

और चन्द्रशेखर आजाद (23 जुलाई 1906 — 27 फ़रवरी 1931)
(कल इन दोनों महान् विभूतियों की पुण्य तिथि थी )
जो साधन हमें मिलें वो हमारी साधना का आधार हों हम साधनों में मग्न न हों अन्यथा साधना विस्मृत हो जाएगी
आइये साधनारत होने के लिए, प्रेरणा प्राप्त करने हेतु, महानता की अनुभूति करने के लिए, बड़े से बड़े काम को करने के लिए हम सक्षम है इस अनुभूति के लिए, रामात्मक भाव का और गुरुत्व का अनुभव करने हेतु, साथ ही तपस्विता से संयुत स्थिर यशस्विता पाने के लिए प्रवेश करें आज की वेला में

प्रश्नकर्ता अपनी जिज्ञासा यह पूछकर
केनेषितं पतति प्रेषितं मनः। केन प्राणः प्रथमः प्रैति युक्तः।
केनेषितां वाचमिमां वदन्ति। चक्षुः श्रोत्रं क उ देवो युनक्ति ॥

किसके द्वारा प्रेषित यह शर के समान मन अपना लक्ष्य भेदता है? किसके द्वारा नियुक्त प्रथम प्राण अपने मार्ग पर आगे बढ़ता है? किसकी प्रेरणा से प्रेरित वाणी मनुष्य बोलते हैं ? वह कौन सा देव है जिसने आंख और कान को उनकी क्रियाओं में नियुक्त कर दिया है ?



शमित करना चाहता है तो गुरु से उसे रहस्यात्मक उत्तर मिलता है

श्रोत्रस्य श्रोत्रं मनसो मनो यत्। वाचो ह वाचं स उ प्राणस्य प्राणः।
चक्षुषश्चक्षुरतिमुच्य धीराः। प्रेत्यास्माल्लोकादमृता भवन्ति ॥

वह जो हमारे श्रोत्र का श्रोत्र (अर्थात् श्रवण) है, हमारे मन का जो मन है, हमारी वाणी के पीछे जो वाक् है, वही हमारे प्राण का प्राण है और हमारी आंख की आंख है। ज्ञानी इससे परे पहुँचकर मुक्ति प्राप्त कर लेते हैं और इस लोक से प्रयाण करके वे अमर हो जाते हैं।
इस शक्ति इस तत्त्व इस रामत्व का चिन्तन हमारे देश में महान् जनों द्वारा बहुत हुआ है

धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायाम्। महाजनो येन गतः स पन्थाः।
महान् जन वे हैं जिन्हें अध्यात्म को जानने की इच्छा है जिनके अन्दर ईश्वरत्व की अनुभूति की निरन्तर चल रही जिज्ञासा है और कार्य व्यवहार करते समय जिनके भाव और भक्ति उनके साथ संयुत रहती है
कहा कहो छबि आजुकी, भले बने हो नाथ। तुलसी मस्तक तब नवै, धरौ धनुष शर हाथ॥ कहने वाले तुलसीदास जी के मन में
  मानस को रचने की एक अद्भुत भावना उत्पन्न हुई और उन्होंने राम नाम के मर्म को लिख दिया


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि महान् जनों की जीवनियां हम लोग अवश्य पढ़ें अध्ययन स्वाध्याय में रत हों

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया नीरज जी भैया अमित जी भैया अंशुल जी का नाम क्यों लिया लोमश ऋषि और इन्द्र का क्या प्रसंग था जानने के लिए सुनें

27.2.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 27 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९४३ वां* सार -संक्षेप

 


प्रस्तुत है निरुपधि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 27 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
  *९४३ वां* सार -संक्षेप
1 निष्कपट

भय और भ्रम मनुष्य के विकास में बाधक हैं जो वह अपने लक्ष्य बनाता है उसकी प्राप्ति में भी ये बाधक हैं हितोपदेशक रक्षक आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं कि हम संसार के वात्याचक्रों में उलझकर भयभीत और भ्रमित न रहें संसार की गति मति यति को समझने में सक्षम लेकिन अनेक कारणों से सुप्त हमारा व्यक्तित्व जाग जाए हम संसार से संघर्ष रूपी युद्ध जिसमें विजय प्राप्ति की कामना हो में रत हों आत्मबोधोत्सव की साधना करें भालू नाच बन्दर नाच देखने वाले अबोध न रहें सच और झूठ को समझने वाले प्रबुद्ध बनें दिन भर की क्षरित ऊर्जा को हम प्राप्त कर सकें हमें सशक्त और समृद्ध बनाने का उनका यह प्रयास बेमिसाल है
परमात्मा की बनाई यह अद्भुत सृष्टि ऐसे प्रबन्ध करती है कि शक्ति उन अवरोधों को काटती हटाती चलती है
शौर्य संसार में व्यक्त होने की एक ऊर्जा है और अध्यात्म संसार के मूल में पहुंचने का एक संकल्प है शौर्य के बिना अध्यात्म अधूरा है
आचार्य जी ने प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की द्वारका यात्रा की चर्चा की

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, 'पानी में डूबी द्वारिका नगरी में प्रार्थना करना अत्यन्त दिव्य अनुभव था
 मुझे आध्यात्मिक वैभव और शाश्वत भक्ति के एक प्राचीन युग से जुड़ाव महसूस हुआ भगवान श्री कृष्ण हम सभी को आशीर्वाद दें'
ऐसी श्रद्धा अद्भुत है

भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ। याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥
श्रद्धा और विश्वास के बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते

तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः।

कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन।।6.46।।
भगवान् कृष्ण कहते हैं
तपस्वियों से ज्ञानियों से और कर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है -- ऐसा मेरा मत है। अतः हे अर्जुन ! तू योगी हो जा।
अपने प्रधानमन्त्री ऐसे ही योगी हैं जब योग अनुभव होने लगता है तो आत्मा और परमात्मा का योग होने लगता है शक्ति बुद्धि विचार संयम अध्ययन स्वाध्याय एकाकार हो जाते हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने क्या कहा जानने के लिए सुनें

26.2.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष द्वितीया /तृतीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 26 फरवरी 2024

 


परम प्रिय चिन्तक मनस्वी 'आत्म' को विस्तार दो
मनस् के भावों विचारों को जगत् -व्यवहार दो
गुप्त ऊर्जा से नरतन मिला अति दिव्य जो
उस जयस्वी श्रेष्ठ साधन को विजय की धार दो
कर्म का चैतन्य जागे धर्म पर विश्वास हो
मर्म नरतन का समझ में रहे जब तक श्वास हो
हो सदा अनुभव कि हम मां भारती के लाल हैं
देशभक्ति के सहोदर और द्रोहियों के काल हैं

प्रस्तुत है आगारदाहिन् -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष द्वितीया /तृतीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 26 फरवरी 2024

(विद्यालय के पूर्व छात्रों को इस प्रकार संगठित किया जाए कि वे न केवल मातृ- विद्यालय से प्राप्त संस्कारों को अक्षुण्ण बनाएं रहें, वरन् कुछ ऐसे रचनात्मक कार्य भी करें जिनसे समाज को लाभ भी पहुंचे.... फलतः फाल्गुन कृष्ण ३ सं २०३४ तदनुसार २६ फरवरी १९७८ को इस विचार को तरुण -भारती "अब युग -भारती "की स्थापना के द्वारा मूर्त रूप दे दिया गया)



 का सदाचार संप्रेषण
  *९४२ वां* सार -संक्षेप
1 घर फूंक व्यक्तियों का शत्रु
(अर्थात् देशद्रोहियों का काल )

असीम ऊर्जा से सम्पन्न जयस्वी श्रेष्ठ साधन के रूप में हमें जो मनुष्य का शरीर मिला है उसकी हमें अनुभूति होती रहनी चाहिए
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है, वह नर नहीं नर पशु निरा और मृतक समान है

हम मां भारती के लालों अर्थात् राष्ट्र -भक्तों का अपने सनातन धर्म से विश्वास कभी डिगे नहीं इसका प्रयास करते हुए बिना फल की इच्छा किए हमें कर्मरत होना चाहिए एकात्म मानववाद के प्रणेता पं दीनदयाल जी की साधना जो राष्ट्र -द्रोहियों के कारण अधूरी रह गई को पूर्ण करने का प्रण करना चाहिए क्योंकि दीनदयाल जी की हत्या एक बहुत बड़ा भावनात्मक अपघात था

हमारा बोध -वाक्य है

" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "

आत्मशक्ति आत्मविश्वास और आत्मविस्तार के लिए आइये हम भी नीराजना करें जाग्रत उत्साहित संगठित होने का निश्चय करें समाज पर अमिट छाप छोड़ें स्वार्थ से दूर रहें आशा की किरणें बिखेरें
हमारे यहां की शिक्षा वह संस्कार है जिससे हम संसार के रहस्य को जानकर संसार में रहने का सलीका सीखते हैं
हमें यह ज्ञान प्राप्त होता है कि हम कौन हैं
एकात्मता का अनुभव हम मनुष्यों को ही होता है परमात्मा की अन्य रचनाओं को नहीं
हमें यह भी चिन्ता करनी चाहिए कि यज्ञमण्डप से उठकर हम श्मसान कैसे पहुंच गए

हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी

भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी भैया अजीत पांडेय जी भैया शशि शर्मा (१९७५ बैच ) जी भैया अनित जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

25.2.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 25 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९४१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है निरहंकृति ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 25 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण

  *९४१ वां* सार -संक्षेप
1 विनीत
महादेवी वर्मा की एक कविता का अंश है
पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला

लेकिन प्रायः अपरिचित पंथ के कारण हम भ्रमित भयभीत रहते हैं
 यदि हमें आत्मबोध हो जाए तो हम बहुत कुछ करने में सक्षम हो सकते हैं हम बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान कर सकते हैं हमें प्रलय के पश्चात् प्रभात की अपेक्षा रहेगी ही
परमात्म -तत्त्व की क्षणांश भर भी अनुभूति हमें बहुत कुछ करने में सक्षम बना देती है हम केवल उदर भरने के प्राणी नहीं हैं
इसी तत्व सत्व शक्ति भाव को जाग्रत करने के लिए ही आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय हमें देते हैं हमें इसका लाभ उठाना चाहिए आइये संसार की समस्याओं से अपने को अलग करते हुए इस सदाचार संप्रेषण के श्रवण रूपी दर्शन से भाव भाषा विश्वास भक्ति शक्ति द्वारा मनुष्यत्व की अनुभूति करते हुए आगे बढ़ने का अणु से विभु तक की सुन्दर सलोनी यात्रा के आध्वन् हम संकल्प ले लें
अपनी जिज्ञासाओं को शमित करने का इससे अच्छा उपाय और क्या हो सकता है

संसार समस्या है तो हम हैं समाधान
स्रष्टाकर्ता के जगपालन के विधिविधान
हम अणु से विभु तक की यात्रा के राही हैं
हम सृजन -प्रलय के द्रष्टा और गवाही हैं
पर आत्मबोध से वंचित हम बेचारे हैं
लहरें गिनते रहते हम नदी किनारे हैं

अपनापन संसार का आनन्द है अपनेपन के विस्तार के कारण ही पूरी वसुधा को अपना कुटुम्ब मानते हैं अपनेपन का संकोच हमें राक्षस रूपी बोझ बना देता है
हमारा सनातनत्व अद्भुत है
विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह । अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते ll

जो व्यक्ति तत् को इस रूप में जानता है कि वह विद्या और अविद्या दोनों ही है, वो अविद्या से मृत्यु को पार कर विद्या से अमरत्व का आस्वादन करता है।

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम उपनिषदों से अपना अध्ययन प्रारम्भ करें आचार्य जी ने तैत्तिरीय उपनिषद् की चर्चा की
आगामी लखनऊ अधिवेशन, जिसके अब २०९ दिन शेष हैं,की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने कुछ सुझाव दिए
शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा नमक चतुष्टय के पारगामी विद्वानों जानकारों को हम लोग आमन्त्रित करें और हम लोग भी इन विषयों का अध्ययन करें और नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करें
 इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया नीरज कुमार जी भैया अरविन्द तिवारी जी भैया हरिकान्त जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें