30.9.21

दिनांक 30/09/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शुभाचार आo श्री ओम शंकर जी द्वारा वाचित आज दिनांक 30/09/2021 का सदाचार संप्रेषण

भारतवर्ष संसार का कल्याण करने में सक्षम है और इसकी मूल जीवन पद्धति सनातन जीवन पद्धति है

सृष्टि क्या है  इसके लिए आचार्य जी ने मुण्डकोपनिषद्  के दूसरे मुण्डक के ये दो छंद बताए


अग्नीर्मूर्धा चक्षुषी चन्द्रसूर्यौ दिशः श्रोत्रे वाग्‌ विवृताश्च वेदाः।

वायुः प्राणो हृदयं विश्वमस्य पद्‌भ्यां पृथिवी ह्येष सर्वभूतान्तरात्मा ॥

तस्मादग्निः समिधो यस्य सूर्यः सोमात्‌ पर्जन्य ओषधयः पृथिव्याम्‌।

पुमान्‌ रेतः सिञ्चति योषितायां बह्वीः प्रजाः पुरुषात्‌ संप्रसूताः ॥


आचार्य जी चाहते हैं कि हम लोग इन सबको जानते हुए विभिन्न समस्याओं के शमन के लिए  तैयार हों l

आयुर्वेद की महत्ता हेतु आपने पञ्चतृण(कुश काश शर दर्भ इक्षु )क्वाथ के प्रयोग वाला प्रसंग बताया l

हम लोग इतिहास और शिक्षा में आए विकारों को परिवर्तित भी करना चाहते हैंl


वेदार्थ ज्ञान में सहायक शास्त्र को ही वेदांग कहा जाता है। शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त - ये छः वेदांग है।

एक  रोचक तथ्य :

राजापुर में रखी हाथ से लिखी राम चरित मानस की वर्णमाला भिन्न है l

परामर्श :उपनिषदों का अध्ययन करें

29.9.21

दिनांक 29/09/2021 का उद्बोधन

 आजकल हम लोग औपनिषदिक क्षेत्र में प्रवेश किये हुए हैं l

मनुष्य उत्पन्न हुआ तो उसके साथ ज्ञान अर्थात् वेद उत्पन्न हुआ वेदों में परा और अपरा विद्याएं हैं

यज्ञ क्यों महत्त्वपूर्ण है यह वेदों में वर्णित है ब्राह्मणग्रंथों में यज्ञ- विधि  बताई गई है l इसके बाद आरण्यक ग्रन्थ हैं जिनमें तपस्या यज्ञ और ध्यान के बारे में बताया गया है और इसके बाद उपनिषद् आते हैं

उपनिषदों में मूल रूप से ब्रह्मतत्त्व के बारे में विचार किया गया है

आचार्य जी चाहते हैं कि ये सब हमारी शिक्षा में सम्मिलित हों ताकि भावी पीढ़ी इनसे परिचित हो सके

Google में कहीं कहीं अर्थ का अनर्थ मिल जाता है युग भारती इस ओर भी ध्यान दे

राज बलि पांडेय जी हिन्दू धर्म कोश का द्वितीय अंक असमय मृत्यु के कारण नहीं निकाल पाये इस ओर ध्यान दें

छोटे छोटे यज्ञ करें सात्विकता संयम सदाचार से हमारे अन्दर शक्ति आयेगी और हम सेवा कर सकेंगे भौतिक ज्ञान के साथ यदि ब्रह्म ज्ञान आ जाए तो सोने पे सुहागा.

इन्हीं सब बातों को लिए प्रस्तुत है आज दिनांक 29/09/2021 का अभिनीत आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा शंसित उद्बोधन 

28.9.21

दिनांक 28-09-2021 का उद्बोधन

 संशितात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा शंसित उद्बोधनों के प्रतिश्रवण हेतु उत्सुक श्रोताओं में यह जिज्ञासा सदैव बनी रहती है कि वे अपने को जानें, अपनी ऋषि -परम्परा, जिसका मूलाधार ज्ञान है, को जानें, अपने इतिहास को जानें

और उनके द्वारा सांसारिक प्रपंचों से हटकर ये उद्बोधन सुन लेना कोई साधारण बात नहीं

प्रस्तुत है आज दिनांक 28-09-2021 का उद्बोधन


कल श्री रामजन्मभूमि आन्दोलन के शिल्पी श्रद्धेय श्री अशोक सिंघल जी के अवतरण दिवस के अवसर पर आचार्य जी ने अपने भाव निम्नांकित पंक्तियों से व्यक्त किए




"जय श्रीराम" शौर्य-स्वर देकर जिसने देश जगाया था ,

जिस स्वर ने हिंदुत्व धार को खरतर कर चमकाया था ,

जिसने भाव भक्ति को विक्रम का उद्बोध कराया था,

जिसने दंभी राजतंत्र को घुटनों बल बैठाया था ,

उस अमरत्व भाव को मेरा अगणित बार प्रणाम नमन ,

उसकी स्मृति अब भी हमको कर देती है दृप्त प्रमन ।।


जिसका स्वर संगीत सदा ही शौर्य शक्ति से झंकृत था ,

जिस स्वर का आलाप दिव्य भावों से सहज अलंकृत था,

जिसकी वाणी में तपव्रत की आग वीरता भरी रही ,

जिससे देशद्रोह वाली संताने हरदम डरी रही ,

उस विजय व्रत वाली वाणी को मेरा सर्वदा नमन ,

उसकी स्मृति से ही अब भी खिल उठता मुरझता चमन ।।


थे अशोक पर शोक एक था "जन्मभूमि थल" बोझिल है ,

राजनीति के चक्रव्यूह में दिशा दृष्टि से ओझल है ,

तुम भरकर हुंकार बढ़े ढह गया तमाशा सदियों का ,

भ्रम मिट गया गुलामी लादे मिथ्या "सेकुलर वदियों" का ,

हे हिंदू की शान मान सम्मान तुम्हें शत बार नमन ,

प्रलय काल तक हिंदुदेश उल्लसित रहेगा मुदित मगन ।।

जय जय श्री राम


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मुण्डकोपनिषद् की भूमिका बांधते हुए


कस्मिन् नु भगवो विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवतीति ॥

का अर्थ बताया

आचार्य जी मोटरसाइकिल में किसके पीछे बैठते थे आदि जानने के लिए सुनें 

27.9.21

27/09/2021 सदाचार संप्रेषण

 विन्दु आचार्य ओम शंकर जी ने आज दिनांक 27/09/2021 के सदाचार संप्रेषण में कल सम्पन्न हुए युग -भारती वार्षिक अधिवेशन की समीक्षा की l

कल आचार्य जी का भाषण शक्ति -उपासना पर केन्द्रित रहा आज आपने युग भारती के चार विन्दु शिक्षा,स्वास्थ्य, स्वावलंबन और सुरक्षा का संस्पर्श किया l

शिक्षा का विद्रूपण हो रहा है उसमें सुधार की आवश्यकता है स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद का महत्त्व समझते हुए जीवनचर्या सही रखें

चिन्तन भी स्वावलम्बी होना चाहिए

सुरक्षित रहने के लिए संगठित रहने की आवश्यकता हैl

आचार्य जी ने

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः । भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ॥


स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः । व्यशेम देवहितं यदायुः ॥


ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ॥


स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥


ॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः॥।

की व्याख्या की

और अन्त में पितृपक्ष का महत्त्व बताया

26.9.21

दिनांक 26/09/2021 का सदाचार संप्रेषण

 मित्रयु आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा प्रोक्त आज दिनाङ्क 26/09/2021 का सदाचार संप्रेषण


परमात्मा की योजना अप्रतिम,अवर्णनीय और अनुभवातीत है l परमात्माश्रित विचार शक्तिसंपन्न होता है और कार्यरूप में उसकी परिणिति प्रभावकारी होती है


आचार्य जी ने प्रश्नोपनिषद् के अन्तिम भाग में प्रवेश कराया


अथ हैनं सुकेशा भारद्वाजः पप्रच्छ - - - भगवन्‌ हिरण्यनाभः कौसल्यो राजपुत्रो मामुपेत्यैतं प्रश्नमपृच्छत - - षोडशकलं भारद्वाज पुरुषं वेत्थ। तमहं कुमारम्ब्रुवं नाहमिमं वेद यध्यहमिममवेदिषं कथं ते नावक्ष्यमिति।

समूलो वा एष परिशुष्यति योऽनृतमभिवदति। तस्मान्नार्हम्यनृतं वक्तुम्‌। स तूष्णीं रथमारुह्य प्रवव्राज। तं त्वा पृच्छामि क्वासौ पुरुष इति ॥


भारद्वाज सुकेशा ने ऋषि पिप्पलाद से कहा , ''हे भगवन्, कोशल का राजकुमार हिरण्यनाभ मेरे पास आया और उसने मुझसे  पूछा-'हे भारद्वाज, क्या आप 'पुरुष' एवं 'उसकी' षोडश कलाओं के विषय में जानते हैं? और मैनें उसे  उत्तर दिया-'मैं'  नहीं जानता, यदि मैं 'उसे' जानता होता तो निश्चित रूप से  बताता, किन्तु मैं तुमसे असत्य नहीं बोल सकता  जो असत्य बोलता है वह समूल नष्ट हो जाता है और 'वह' चुपचाप रथ पर चढ़कर मेरे पास से चला गया। मैं आपसे 'उसके' विषय में पूछ रहा हूँ, कौन है यह 'पुरुष'?''...

उत्तर :


तस्मै सः ह उवाच सौम्य सः पुरुषः इह अन्तःशरीरे वर्त्तते यस्मिन् एताः षोडशकलाः प्रभवन्ति ॥


ऋषि पिप्पलाद ने  उत्तर दिया,  वत्स! यहीं प्रत्येक प्राणी के अन्दर  वह 'पुरुष' है और इसी कारण 'उसके' अन्दर ही षोडश कलाओं का जन्म होता है।

आचार्य जी ने निम्नांकित श्लोकों की व्याख्या की 


स ईक्षांचक्रे। कस्मिन्नहमुत्क्रान्त उत्क्रान्तो भविष्यामि कस्मिन् वा प्रतिष्ठिते प्रतिष्टस्यामीति l


स प्राणमसृजत। प्राणाच्छ्रद्धां खं वायुर्ज्योतिरापः पृथिवीन्द्रियं मनोऽन्नमन्नाद्वीर्यं तपो मन्त्राः कर्मलोका लोकेषु च नाम च ॥

आज युग भारती का वार्षिक अधिवेशन है आचार्य जी ने कहा इस सम्मेलन के माध्यम से हम लोग शक्तिसम्पन्न होकर समाज- हित में, राष्ट्र -हित में रत हो जाएं

इसके अतिरिक्त हिरण्यगर्भ के बारे में आचार्य जी से विद्यालय में किसने प्रश्न किया था? जानने के लिए सुनें 

25.9.21

दिनांक 25/09/2021 सदाचार संप्रेषण में प्रश्नोपनिषद् और गीता

अनूचान आचार्य श्री ओम शंकर जी ने आज दिनांक 25/09/2021 को सदाचार संप्रेषण में प्रश्नोपनिषद् और गीता के 11 वें अध्याय का संस्पर्श किया है
प्रश्नोपनिषद् में आध्यात्मिक नियमावली है
परिणाम की चिन्ता न करते हुए परिणामकारक कार्य करना अद्भुत रहस्यात्मक जीवन है

स यथेमा नद्यः स्यन्दमानाः समुद्रायणाः समुद्रं प्राप्यास्तं गच्छन्ति भिद्येते तासां नामरूपे समुद्र इत्येवं प्रोच्यते । एवमेवास्य परिद्रष्टुरिमाः षोडशकलाः पुरुषायणाः पुरुषं प्राप्यास्तं गच्छन्ति भिद्येते चासां नामरूपे पुरुष इत्येवं प्रोच्यते स एषोऽकलोऽमृतो भवति तदेष श्लोकः ॥ ५ ॥ प्रश्नोपनिषद्

''अतः जिस प्रकार बहती नदियाँ समुद्र की ओर अग्रसर होती हैं, किन्तु वहां पहुँचकर उसी में विलीन हो जाती हैं और उनके नाम  रूप समाप्त हो जाते हैं और सब कुछ केवल समुद्र ही कहलाता है, इसी प्रकार इस द्रष्टारूप 'चैतन्य' की षोडश कलाएँ 'पुरुष' की ओर अग्रसर होती हैं और जब वे उस 'पुरुष' को प्राप्त कर लेती हैं तो  'उसी' में विलीन हो जाती हैं तथा उनके अपने नाम-रूप समाप्त हो जाते हैं और इस समस्त को एकमात्र 'पुरुष' कहा जाता है;  'वह' कला  रहित एवं अमृत-रूप हो जाता है। जिसके बारे में यह श्लोक है।
अरा इव रथनाभौ कला यस्मिन्प्रतिष्ठिताः । तं वेद्यं पुरुषं वेद यथ मा वो मृत्युः परिव्यथा इति ॥ ६ ॥
इसके बाद आचार्य जी गीता के  उस भाग में, जहां द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह के कारण  मोहग्रस्त हुए अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण अपना विराट् रूप दिखा रहे हैं, चले गए
दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि

दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि।

दिशो न जाने न लभे च शर्म

प्रसीद देवेश जगन्निवास।।11.25।।
अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः

सर्वे सहैवावनिपालसङ्घैः।

भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथाऽसौ

सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः।।11.26।।
वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति

दंष्ट्राकरालानि भयानकानि।

केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु

संदृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गैः।।11.27।।
यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः

समुद्रमेवाभिमुखाः द्रवन्ति।

तथा तवामी नरलोकवीरा

विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति।।11.28।

इसके अतिरिक्त 
आचार्य जी  ने जब वे BA में अध्ययनरत थे तो उस समय उनके शिक्षक रहे श्री माता प्रसाद जी से संबन्धित एक प्रसंग बताया

24.9.21

दिनांक 24/09/2021 का भाषित

 संसार का आकर्षण ही कुछ ऐसा है कि हम भी इससे अछूते नहीं रहे हैं और हमारे विचारों में अंधेरा प्रवेश कर गया है l यदि हम आत्मस्थ हों तो प्रातःकाल का यह स्वर्णिमकाल जो हमें आनन्दानुभूति देता है व्यर्थ नहीं जाएगा l इन्हीं भावों के साथ ज्ञान -पट खोलने के लिए उत्सुक द्वार्ग श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत है भगवत् आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा भाषित आज दिनांक 24/09/2021 का भाषित


उपनिषदों का ज्ञान गीता में अवतरित हुआ है

आचार्य जी ने गीता के 15वें अध्याय के निम्नांकित श्लोकों का अर्थ समझने के लिए परामर्श दिया

अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः।


प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्।।15.14।।


सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो


मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।


वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो


वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।15.15।।


द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च।


क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते।।15.16।।


 कोरोना की तीसरी लहर और अफगानिस्तान समस्या आदि भय व्याप्त हैं तो आचार्य जी ने परसों और कल के बीच  कविता लिख दी कि

भयद तूफान की आवाज बढ़ती जा रही है ,

बची कुछ रोशनी अंधियार बीच समा रही है ,

क‌ई कमजोर दिल धड़कन समेटे रो रहे हैं ,

विवश मजबूर होकर जिंदगी को ढो रहे हैं ,

मगर हम हैं कि हिम्मत हौसले से आ डटे हैं ,

न किंचित भी डिगे हैं या कि तिल भर भी हटे हैं ,

हमारे पूर्वजों ने यही हमको है सिखाया ,

कि साधन शक्ति का आगार है यह मनुज-काया ,

सदा उत्साहपूर्वक विजय के पथ पर बढ़ेंगे ,

कठिन हो राह पर हम हौसले से ही चढ़ेंगे ।।

किसी भय से नहीं भयभीत होते हम कभी भी ,

कभी दबकर रहे हैं औ न रहते हैं अभी भी ,

हमारे पूर्वजों ने युद्ध भी हंसकर लड़ा है ,

हमारा शौर्य सीना तान कर हरदम अड़ा है ,

समय पर काल से आंखें मिलाकर हम अड़े हैं ,

कि सीना तान कर समरांगणों में हम लड़े हैं ,

हमारे हौसले को देवता भी जानते हैं ,

इसी से वे हमारे देश को पहचानते हैं ।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने दशरथ मांझी का उल्लेख क्यों किया, अतिचिन्तनीय कुछ कम हुए यह विद्यालय में किसने कहा था  आदि जानने के लिए सुनें

23.9.21

दिनांक 23/09/2021 का उद्बोधन

 अभिरूप आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा प्रोक्त प्रातिदैवसिक सदाचार संप्रेषण परमात्मा की रची हुई अवगमनातीत विहिति है

इन वदन्तियों में प्रवाहित ज्ञान -धुनि में निमज्जन करते एक दो नहीं अपितु स्फिर स्पृहयालु श्रोता मिल जाएंगे l l

इन श्रद्धालुओं को ये कभी नीरस नहीं लगते

तो प्रस्तुत है  आज दिनांक 23/09/2021 का उद्बोधन


भाव यदि शक्तिसंपन्न होता है तो विचारों में ऊष्मा होती है l

हमारा हिन्दू जीवन दर्शन अत्यन्त दिव्य है l

आज आचार्य जी ने श्रीमद्भगवद्गीता में 17 वें अध्याय के निम्नलिखित श्लोकों की व्याख्या की

देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।


ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते।।17.14।।


अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्।


स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते।।17.15।।


मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।


भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते।।17.16।।


श्रद्धया परया तप्तं तपस्तत्त्रिविधं नरै: ।

अफलाकाङ्क्षिभिर्युक्तै: सात्विकं परिचक्षते ।।17।।


सत्कारमानपूजार्थं तपो दम्भेन चैव यत्।


क्रियते तदिह प्रोक्तं राजसं चलमध्रुवम्।।17.18।।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मानस का एक प्रसंग बताया

सैनिक भाव श्रीराम के जीवन से सीखें l

शरीर साधन है तो अच्छा है और यदि समस्या बन जाता है तो हम शिथिल हो जाते हैं

22.9.21

दिनाङ्क 22/09/2021 का व्याहार

 वागीश आचार्य श्री ओम शंकर जी प्रतिदिन सदाचार- वेला का प्रारम्भ अवतरणिका से करते समय मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम भगवान् संकटमोचन और देवी सनातनी का नाम लेते हैं और इसके पश्चात् तो सान्सारिक प्रपञ्चों से दूर हमें अनुक्षण अध्यात्म-वित्ति, औपनिषदिक ज्ञान और प्रेरणास्पद संस्मरणों से परिपूर्ण ऐसा मनीषितानुरूप अत्यन्त पावन सुरम्य वातावरण मिलता है जिसका वर्णन करना संभव नहीं है

आचार्य जी का कहना है यह सब सुनकर हम चिन्तन अवश्य करें कि हमारे अन्दर क्या परिवर्तन आ रहा है इसी भूमिका के साथ प्रस्तुत है आज दिनाङ्क 22/09/2021 का व्याहार


आचार्य जी ने कल से प्रारम्भ हुए पितृपक्ष में जल -दान का महत्त्व बताते हुए कहा कि भौतिक विज्ञान की पहुंच संसारेतर नहीं है l

प्रश्नोपनिषद् में

पञ्चपादं पितरं द्वादशाकृतिं दिव आहुः परे अर्धे पुरीषिणम्‌।

अथेमे अन्य उ परे विचक्षणं सप्तचक्रे षडर आहुरर्पितमिति ll

की व्याख्या की

आचार्य जी ने संत नरेन्द्रगिरि की चर्चा भी की


घर दीन्हे घर जात है, घर छोड़े घर जाय। 

‘तुलसी’ घर बन बीच रहू, राम प्रेम-पुर छाय॥

गृहस्थ आश्रम में  हम युग भारती के सदस्य तपोवृत्ति के साथ अवश्य ही रह सकते हैं

इसके अतिरिक्त 

31/07/2021 को आचार्य जी ने भगवान् शङ्कराचार्य जी से संबन्धित जो प्रसंग बताया था उसे आज दोहराया

21.9.21

दिनांक 21/09/2021 को अन्य विषयों के साथ प्रश्नोपनिषद्

 अकृत्वा परसन्तापम् अगत्वा खलनम्रताम् |

अनुत्सृज्य सतां मार्गं यत्स्वल्पमपि तद्बहु ||

एक बात तो है कि निसर्गसिद्ध प्रतिभा के धनी आचार्य श्री ओम शङ्कर जी द्वारा प्रोक्त अम्भ -पत्सल से समापन्न नैत्यकाभाषण में कुछ तो है अन्यथा इसकी इतनी चर्चा ही क्यों हो

आचार्य जी की वाणी से अमृतावृष्टि हम लोगों का सौभाग्य है l

सूरज प्राणिक ऊर्जा, चंदा जग-व्यवहार ।

परमेश्वर की सृष्टि का, यह ही रूपाकार ।। 

कल आचार्य जी ने बताया था कि सूर्य प्राणदाता है और चन्द्रमा स्थूल का निर्माण करता है आज दिनांक 21/09/2021 को अन्य विषयों के साथ पुनः हम प्रश्नोपनिषद् में प्रवेश करने जा रहे हैं

आचार्य जी ने 

संवत्सरो वै प्रजापतिः स्तस्यायने दक्षिणञ्चोत्तरं च।

तद्ये ह वै तदिष्टापूर्ते कृतमित्युपासते ते चान्द्रमसमेव लोकमभिजयन्ते त एव पुनरावर्तन्ते।

तस्मादेत ऋषयः प्रजाकामा दक्षिणं प्रतिपद्यन्ते। एष ह वै रयिर्यः पितृयाणः ॥

की व्याख्या की

और बताया कि अन्य श्लोकों के साथ मनोयोगपूर्वक


निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै

र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।गीता


आनन्द आचार्य जी ने अपने विद्यालय में लिखा था l

कल आचार्य जी का जन्मदिन था इस अवसर पर समय निकालकर भावों को लिए हुए योजनापूर्वक कुछ लोग उनसे मिले l

प्रतिष्ठित संत नरेन्द्र गिरि की कल रहस्यमय मृत्यु हो गई l

पवित्र जीवन जीने वाले सैनिक के बारे में आचार्य जी ने क्या बताया? जानने के लिए सुनें

20.9.21

दिनाङ्क 20/09/2021 की सङ्गणिका

 अब तो भूयोविद्य आचार्य श्री ओमशङ्कर जी द्वारा आम्नात सदाचार संप्रेषणों को सुनने के लिए श्रोताओं में अहंप्रथमिका का भाव जाग्रत हो गया है l राष्ट्र -हित के लिए, समाज -हित के लिए और व्यक्तित्व के उत्कर्ष के लिए हम लोगों का दायित्व है कि इन संप्रेषणों को सुनने के लिए अन्य लोगों को भी प्रेरित करें l निःसंदेह संप्रेषणावतति अत्यावश्यक है l तो और न देर करते हुए प्रस्तुत है आज दिनाङ्क 20/09/2021 की सङ्गणिका

प्रश्नोपनिषद् में आचार्य जी ने


अथ कबन्धी कात्यायन उपेत्य पप्रच्छ भगवन्‌ कुतो ह वा इमाः प्रजाः प्रजायन्त इति ॥


आदित्यो ह वै प्राणो रयिरेव चन्द्रमाः रयिर्वा एतत्‌ सर्वं यन्मूर्तं चामूर्तं च तस्मान्मूर्तिरेव रयिः ॥


स एष वैश्वानरो विश्वरुपः प्राणोऽग्निरुदयते।

तदेतद् ऋचाऽभ्युक्तम्‌ ॥


विश्वरूपं हरिणं जातवेदसं परायणं ज्योतिरेकं तपन्तम्‌।

सहस्ररश्मिः शतधा वर्तमानः प्राणः प्रजानामुदयत्येष सूर्यः ॥

की व्याख्या की

परमात्मा का प्रतिनिधि प्रत्यक्ष देवता सूर्य प्राणदाता है और परमात्मा का प्रतिनिधि दूसरा प्रत्यक्ष देवता चन्द्रमा (रयि ) स्थूल का निर्माण करता है l

व्यक्ति अपनी क्षमतानुसार ही प्रकटीकरण करता है l

परमात्मा की विद्यमानता की अनुभूति होती रहे यह प्रार्थना करते रहें l विद्वान लोग संगठित हों l अपने जीवन को कल्याणमय बनायें l

आचार्य जी का आज जन्मदिन भी है l 

इसके अतिरिक्त बैरिस्टर साहब क्या बांधते थे? भैया श्री अरविन्द तिवारी जी ने कक्षा तीन में कौन सा प्रश्न पूछा था? अबरी क्या है?

आदि जानने के लिए सुनें