28.9.21

दिनांक 28-09-2021 का उद्बोधन

 संशितात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा शंसित उद्बोधनों के प्रतिश्रवण हेतु उत्सुक श्रोताओं में यह जिज्ञासा सदैव बनी रहती है कि वे अपने को जानें, अपनी ऋषि -परम्परा, जिसका मूलाधार ज्ञान है, को जानें, अपने इतिहास को जानें

और उनके द्वारा सांसारिक प्रपंचों से हटकर ये उद्बोधन सुन लेना कोई साधारण बात नहीं

प्रस्तुत है आज दिनांक 28-09-2021 का उद्बोधन


कल श्री रामजन्मभूमि आन्दोलन के शिल्पी श्रद्धेय श्री अशोक सिंघल जी के अवतरण दिवस के अवसर पर आचार्य जी ने अपने भाव निम्नांकित पंक्तियों से व्यक्त किए




"जय श्रीराम" शौर्य-स्वर देकर जिसने देश जगाया था ,

जिस स्वर ने हिंदुत्व धार को खरतर कर चमकाया था ,

जिसने भाव भक्ति को विक्रम का उद्बोध कराया था,

जिसने दंभी राजतंत्र को घुटनों बल बैठाया था ,

उस अमरत्व भाव को मेरा अगणित बार प्रणाम नमन ,

उसकी स्मृति अब भी हमको कर देती है दृप्त प्रमन ।।


जिसका स्वर संगीत सदा ही शौर्य शक्ति से झंकृत था ,

जिस स्वर का आलाप दिव्य भावों से सहज अलंकृत था,

जिसकी वाणी में तपव्रत की आग वीरता भरी रही ,

जिससे देशद्रोह वाली संताने हरदम डरी रही ,

उस विजय व्रत वाली वाणी को मेरा सर्वदा नमन ,

उसकी स्मृति से ही अब भी खिल उठता मुरझता चमन ।।


थे अशोक पर शोक एक था "जन्मभूमि थल" बोझिल है ,

राजनीति के चक्रव्यूह में दिशा दृष्टि से ओझल है ,

तुम भरकर हुंकार बढ़े ढह गया तमाशा सदियों का ,

भ्रम मिट गया गुलामी लादे मिथ्या "सेकुलर वदियों" का ,

हे हिंदू की शान मान सम्मान तुम्हें शत बार नमन ,

प्रलय काल तक हिंदुदेश उल्लसित रहेगा मुदित मगन ।।

जय जय श्री राम


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मुण्डकोपनिषद् की भूमिका बांधते हुए


कस्मिन् नु भगवो विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवतीति ॥

का अर्थ बताया

आचार्य जी मोटरसाइकिल में किसके पीछे बैठते थे आदि जानने के लिए सुनें