31.10.21

दिनांक 31/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है यमवत् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 31/10/2021 का सदाचार संप्रेषण


सदाचार संप्रेषण का उद्देश्य रहता है कि हम लोगों को उससे ऐसा फल प्राप्त हो जो हमारे मन को संतुष्टि दे फल स्थूल और सूक्ष्म दोनों होता है

सूक्ष्म फल अपने कार्यों और अपने व्यवहारों के परिणामस्वरूप प्राप्त होता है

संसार अत्यधिक अद्भुत है जहां सुख दुःख दोनों हैं 

समस्याएं भी हैं तो समाधान भी हैं 

इस संसार को संचालित करने वाला किसी न किसी रूप में हम सब लोगों के अंदर विद्यमान है विशेषकर मनुष्य के भीतर

किसी का काम लेखन है किसी का काम प्रवचन है

जब हम लेखन करते हैं तो उसके दर्शन भी करते हैं और हाथ की त्रुटियां मस्तिष्क सुधार देता है

शिक्षा देना शिक्षा प्राप्त करना मनुष्योचित कर्म है और धर्म भी है.

आचार्य जी ने जो आज एक स्वप्न देखा उसके बारे में बताया

हमारे आदर्शों की डोर कभी टूटनी नहीं चाहिए भले ही कितने उतार चढ़ाव देखें मन कमजोर न करें 


आचार्य जी ने सन् 2011 में 

लिखी अपनी एक कविता सुनाई


चिन्ता है भारत में क्यों भ्रष्टाचार बढ़ा.....


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सुरेश गुप्त जी और भैया डा उमेश्वर पांडेय जी का नाम क्यों लिया आचार्य जी के स्वप्न में राव नामक छात्र ने क्या किया आदि जानने के लिए सुनें 

30.10.21

दिनांक 30/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है यज्वन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

वर्तमान धरातल के साथ संपूर्ण परिवेश, पर्यावरण, प्रकृति,परिस्थितियां  हैं और उनके प्रभाव हमें प्रभावित कर रहे हैं लेकिन ये परमात्मा के द्वारा ही उत्पन्न परिस्थितियां हैं कि हम लोग एक विचित्र स्थिति से जोड़ दिये गये हैं और इसीलिए तो नित्य प्रवचन, नित्य श्रवण, नित्य चिन्तन, नित्य मनन और नित्य सांसारिक संघर्षों से संघर्ष होता है और इन सबके पश्चात् पुनः पुनः नये जीवन के उत्साह के लिए उद्धित हुआ जाता है l

परमात्मा अपने अंशावतारों में प्रकट होता है l

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।


अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।

संपूर्ण सृष्टि ही ईश्वरमय है जिनमें एक कला है वह भी ईश्वर का अंश हैं यानि ईश्वर हैं l

तैत्तिरीय उपनिषद् में सातवां अनुवाक इस प्रकार है

पृथिव्यन्तरिक्षं द्यौर्दिशोऽवान्तरदिशाः ।

अग्निर्वायुरादित्यश्चन्द्रमा नक्षत्राणि ।

आप ओषधयो वनस्पतय आकाश आत्मा । इत्यधिभूतम् ।

अथाध्यात्मम् । प्राणो व्यानोऽपान उदानः समानः ।

चक्षुः श्रोत्रं मनो वाक् त्वक् ।

चर्ममांस स्नावास्थि मज्जा ।

एतदधिविधाय ऋषिरवोचत् ।

पाङ्क्तं वा इदंसर्वम् ।

पाङ्क्तेनैव पाङ्क्तग् स्पृणोतीति ॥ १॥ इति सप्तमोऽनुवाकः ॥

सातवां अनुवाक

इस अनुवाक में 'पांच तत्त्वों' का विविध पंक्तियों में उल्लेख किया है और उन्हें एक-दूसरे का पूरक माना है।


लोक पंक्ति— पृथ्वी, अन्तरिक्ष, द्युलोक, दिशाएं और अवान्तर दिशाएं।

नक्षत्र पंक्ति— अग्नि, वायु, आदित्य, चन्द्रमा और समस्त नक्षत्र।

आधिभौतिक पंक्ति— जल, औषधियां, वनस्पतियां, आकाश और आत्मा।

अध्यात्मिक पंक्ति— प्राण, व्यान, अपान, उदान और समान।

इन्द्रियों की पंक्ति— चक्षु, श्रोत्र, मन, वाणी और त्वचा।

शारीरिक पंक्ति— चर्म, मांस, नाड़ी, हड्डी और मज्जा।

गीता के दूसरे अध्याय में भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बहुत कुछ समझाया है आचार्यजी का परामर्श है कि दूसरे अध्याय में 45 वें से 53 वें छन्द तक का अध्ययन करें


श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला।

समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि।।2.53।।


त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।

निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।

वैदिक ज्ञान काव्यमयी भाषा में है और इसे decode करने की आवश्यकता है तभी समझ में आयेगा द्यौ अन्तरिक्ष आकाश अलग अलग है और इन सबको समझने में बहुत समय की आवश्यकता है l

हत्या क्या है संस्कार क्या है

खीरभवानी के मन्दिर में कौन गया था आदि जानने के लिए सुनें

29.10.21

दिनांक 29/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ब्रह्मिष्ठ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

मनुष्य ही एक ऐसा विशिष्ट प्राणी है जिसमें अनेक कल्पनाएं आती हैं और उन कल्पनाओं को फलीभूत करने के लिए उसके प्रयत्न चलते हैं और उन प्रयत्नों के स्वरूप अत्यधिक अद्भुत होते हैं जैसे विशाल अट्टालिकाओं का निर्माण, सुरंगों का निर्माण,कृषिकर्म में अनेक प्रयोग, औषधियों का निर्माण आदि

आचार्य जी ने अपनी रची एक कविता सुनाई

शिल्पी उदास क्यों हो......

गीता द्वारा जीवन जीने की शैली बताई गई है संसार में संघर्ष है युद्ध हैं समस्याएं हैं अपना पराया है अतः संसार में किस प्रकार जीना यह हमें गीता से पता चलता है 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि गीता के 18 वें अध्याय में 18 वें से 26 वें छन्द का अध्ययन करें

ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मप्रेरणा ।


करणं कर्म कर्तेति त्रिविधः कर्मसंग्रहः।।18.18।।

ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदतः।


प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि।।18.19।।

सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते।


अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम्।।18.20।।

पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विधान्।


वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम्।।18.21।।


यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये सक्तमहैतुकम्।

अतत्त्वार्थवदल्पं च तत्तामसमुदाहृतम्।।18.22।।

नियतं सङ्गरहितमरागद्वेषतः कृतम्।


अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत्सात्त्विकमुच्यते।।18.23।।

यत्तु कामेप्सुना कर्म साहङ्कारेण वा पुनः।


क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम्।।18.24।।

अनुबन्धं क्षयं हिंसामनपेक्ष्य च पौरुषम्।


मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते।।18.25।।

मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः।


सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते।।18.26।।

26 वें छन्द का अर्थ इस प्रकार है 

जो कर्ता मुक्तसङ्ग अर्थात् जिसने आसक्ति का त्याग कर दिया है जो अनहंवादी  अर्थात् मैं कर्ता हूँ ऐसा बोलने का जिसका स्वभाव नहीं रह गया है जो धृति  (धारणाशक्ति) व उत्साह से  संयुत है तथा जो किये गये कर्म के फल की सिद्धि होने या न होने में निर्विकार है। वह सात्त्विक कहा जाता है।


परमात्मा जीवात्मा की प्रेरणा है हम परमात्मा के प्रतिनिधि हैं, सेवा भाव से किया गया प्रत्येक कार्य परमात्मा को समर्पित होता है

28.10.21

दिनांक 28/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ब्रह्मवत् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

आचार्य जी युगभारती लखनऊ के आमन्त्रण पर 14 नवम्बर को  लखनऊ जाएंगे, दीपमिलन पर कानपुर आ सकते हैं,आचार्य जी से कल श्री योगेन्द्र भार्गव जी ने कल वाली परशुराम कथा से संबन्धित कुछ प्रश्न पूछे और उन उत्तरों से वे संतुष्ट हुए

शैक्षिक पाठ्यक्रम में संशोधन की अत्यन्त आवश्यकता है

मूल विषय :

अवतार क्या है उद्धार क्या है संसार की निर्मिति कैसी होती है 

प्रजापतिश्चरति गर्भे अंतरजायमानो बहुधा वि जायते।

तस्य योनिं परि पश्यन्ति धीरास्तस्मिन् ह तस्थुर्भवनानि विश्वा ।।               (यजुर्वेद ३१ / १९) का आचार्य जी ने अर्थ बताया

परमात्मा की षोडश कला शक्ति जड़ चेतनात्मक समस्त संसार में व्याप्त है 

 प्राणियों की उत्पत्ति के आधार पर ८४ लाख योनियों को चार प्रकार में वर्गीकृत किया गया।


जरायुज - माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु जरायुज कहलाते हैं।

अण्डज - अण्डों से उत्पन्न होने वाले प्राणी अण्डज कहलाये।

स्वेदज - मल, मूत्र, पसीना आदि से उत्पन्न क्षुद्र जन्तु स्वेदज कहलाते हैं।

उद्भिज - पृथ्वी से उत्पन्न प्राणियों को उद्भिज वर्ग में शामिल किया गया। (एक कला का विकास )

पशु में चार कलाएं साधारण मनुष्य में पांच कलाएं होती हैं 

जिन मनुष्यों में पांच से ऊपर आठ तक कलाएं होती हैं वे विभूति कोटि में आते हैं  और आठ से ऊपर वाले अवतार कोटि के अन्तर्गत आते हैं

सब कुछ जानते हुए हमें अपने कर्म का निर्धारण करना चाहिए और उस कर्म में हमारी प्रमाणिकता रहनी चाहिए और उस प्रमाणिकता की हमें पूजा करनी चाहिए l 

इसके अतिरिक्त नकली जहर किसे दिया गया आचार्य जी जब सातवीं कक्षा में थे तो उन्होंने क्या सीखा आदि जानने के लिए सुनें

27.10.21

दिनांक 27/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कृष्टि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

भाव कभी बूढ़ा नहीं होता भाव पर आरोहित होकर विचार चलते हैं और विचारों का संस्पर्श पाकर क्रियाएं सक्रिय होती हैं जिनके भाव विचार और क्रिया एक रूप हो जाते हैं वो मृत्यु पर्यन्त क्रियाशील रहने के उपाय करते रहते हैं स्वयं के माध्यम से नहीं तो अपनी कृति के माध्यम से l आचार्य जी चाहते हैं जिन विचारों को हम लोगों में उन्होंने आरोपित करने का प्रयास किया है उनका पल्लवन हो और उन विचारों के आधार पर हम लोग भारत मां की सेवा करने के लिए प्रवृत्त हों l

आचार्य जी ने सुदर्शन जी द्वारा लिखी पुस्तक के बारे में एक विशेष बात बताई l

नई राष्ट्रीय शिक्षानीति में मौलिक सुधार नहीं है कलेवर तो बदला है अपरा विद्या अर्थात् अविद्या का विषय विज्ञान है और विज्ञान पर हम बहुत ज्यादा आश्रित हैं जब कि ज्ञान (परा विद्या )पर नहीं l

ज्ञान पर आधारित हमारे ग्रंथों का प्रणयन काव्य रूप में हुआ जब कि गद्य कवियों की कसौटी है यानि जो गद्य लिख लेता है वो कवि से ज्यादा श्रेष्ठ है लेकिन हमारे यहां अतिशयता बहुत हो गई l

संगठन के अभाव में हम पराजित हुए हम खंड खंड हो गए बौद्ध काल में भी खण्डन मण्डन बहुत हुआ तब शंकराचार्य जी ने बहुत अच्छा काम किया

 आचार्य जी ने जामदग्न्य (परशुराम ) की अद्भुत कथा बताई l

पहले गाय पूजी जाती थी और अब मारी मारी घूमती है हमें इन पतनों की ओर भी ध्यान देना चाहिए l

गीता का अध्ययन हम लोग इसलिए करें कि वो हमारे जीवन में उतरे जिस तरह से बैरिस्टर साहब के जीवन में उतरी थी

26.10.21

दिनांक 26/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है क्रान्तदर्शिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

उपनिषदों में व्यावहारिक ज्ञान बहुत व्यवस्थित रूप से कहा गया है यदि हम शिक्षा व्यवस्था को औपनिषदिक आधार पर ले चलें तो बहुत अच्छा होगा

एक औपनिषदिक ज्ञान है एक औपनिषदिक कर्म है कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार औपनिषदिक कर्म का अर्थ है 'जो शत्रु का नाश करे' और 

जो अपने चैतन्य को प्रेरित करे वह है औपनिषदिक ज्ञान

ज्ञान कर्म उपासना ये तीन तत्त्व मनुष्य के जीवन के साथ संयुक्त हो जाते हैं तो मनुष्य मनुष्य हो जाता है

आहार निद्रा भय मैथुनं च

सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् ।

धर्मो हि तेषामधिको विशेष:

धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥

धर्म का अर्थ है कर्तव्य अर्थात् जो करने योग्य है 

जब कि धर्म शब्द का अर्थ -संकोच हो गया है

आचार्य जी ने चर्चा और कीर्ति में अन्तर बताया और संक्षेप में यह भी बताया कि ईशावास्योपनिषद् केनोपनिषद् और कठोपनिषद् में क्या है

मनुष्य त्याग, दान, तपस्या, पराक्रम, परिश्रम आदि सब कुछ कर सकता है 

मनुष्यत्व जाग्रत करना हमारी शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए

मातृभाषा देवभाषा के महत्त्व को भी हम लोगों को समझना चाहिए

आचार्य जी ने कल गद्दार दशक लिखा

https://t.me/prav353

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भानुप्रताप जी का नाम क्यों लिया, मां मदालसा ने क्या कहा, दोष -दर्शन का क्या अर्थ है आदि जानने के लिए सुनें

25.10.21

दिनाङ्क 25/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है धर्मचारिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनाङ्क 25/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

हमारे यहां ज्यादतर साहित्य रूपकों में विशेष रूप से अलङ्कारिक भाषाओं में लिखे गये हैं वेद ज्ञान है लेकिन उसे पुरुष कह दिया गया शिक्षा कल्प निरुक्त छन्द व्याकरण ज्योतिष उसके अंग हैं ज्योतिष आंखें हैं शिक्षा नासिका है व्याकरण (या शब्दानुशासन )मुख है छन्द पैर हैं

संहिता में वैदिक स्तुतियां संग्रहीत हैं ब्राह्मणों में उन मन्त्रों की व्याख्याएं हैं और उनके समर्थन में प्रवचन हैं आरण्यक वानप्रस्थी लोगों के लिए हैं उपनिषदों में दार्शनिक व्याख्याएं प्रस्तुत की गई हैं l

सदाचार में सत् के साथ आचार जुड़ा है प्रकृति के साथ जुड़कर चलेंगे तो आचार व्यवहार मेंआनंद आएगा और उसके विरुद्ध चलेंगे तो परिस्थिति बड़ी गंभीर हो जाएगी l

धर्म एक है मत अलग अलग हैं उसी धर्म के अनुसार जो मानव धर्म विकसित हुआ उसने ही संपूर्ण सृष्टि की पूजा भी की और उसका सदुपयोग भी किया

इस प्रकार का चिन्तन,विचार, परस्पर वार्ता हमारे ज्ञान की वृद्धि करता है आपके मानवत्व की वृद्धि करता है आपके संस्कार को पल्लवित करता है तब हम उसमें जब संसार का व्यवहार करेंगे तो हम एक आकर्षक व्यक्तित्व वाले  होंगे

अध्ययन स्वाध्याय ध्यान धारणा नियमित दिनचर्या से अपने ज्ञान विचार भावना चिन्तन मनन जीवन शैली को परिमार्जित करने की आवश्यकता है l

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उन आचार्यों ( आचार्य पं सिद्धनाथ मिश्र जी और  प्रो निशा नाथ जी ) की चर्चा की जिन्होंने आचार्य जी को BA, MA में पढ़ाया था l

पढ़ते कम घोखते ज्यादा हैं किसने कहा था जानने के लिए सुनें

24.10.21

दिनांक 24/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है विद्वज्जन आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24/10/2021 का सदाचार संप्रेषण


वर्तमान में सत्पुरुषों का संगठन अत्यन्त आवश्यक है प्रायः सत्पुरुष संगठित नहीं होते, होते हैं तो एक आदेश पर चलने के लिए तैयार नहीं होते और चलते हैं तो लम्बे समय तक नहीं l

मनीष कृष्ण जी संगठन के विस्तार के लिए तरह तरह के प्रयास करते रहते हैं उसी तरह के प्रयास के रूप में उन्होंने आज दिनांक 24/10/2021 को विद्यालय में एक कार्यक्रम आयोजित किया है l 

आचार्य जी चाहते हैं कि हम लोगों में शास्त्रीय विषयों के प्रति अभ्यस्त होने का चाव हो जाए l

विद्यालय में आचार्य जी चाहते थे कि शिक्षा के जो दोष हैं उनका परिमार्जन करते हुए अपने विद्यार्थियों को शिक्षित करना ताकि एक ऐसा समाज खड़ा करना जो शिक्षित, संस्कारित, संयमी, सदाचारी, स्वाध्यायी हो और सामर्थ्यसंपन्न भी हो

आपने 

तैत्तिरीय उपनिषद् में शिक्षावल्ली के 12 वें अनुवाक से

ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं बह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम । अवतु वक्तारम् ।


ॐ शान्तिः । शान्तिः । शान्तिः ।

का सांकेतिक रूप से अर्थ बताया ( आचार्य जी की हम लोगों से आशा है कि इसके विस्तार को हम लोग पूछें )


भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।


अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।7.4।। गीता

का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए आचार्य जी ने बताया कि इतना सब मिला फिर भी हम लोगों ने जब प्रकृति को बहुत प्रदूषित किया तो परमपिता परमेश्वर ने दंड दिया ll

जीवन जीने की शैली औपनिषदिक ज्ञान है उपनिषदों को सरल करके नई पीढ़ी को पढ़ाने की आवश्यकता है

इसके अतिरिक्त गुजरात के किस युग भारती सदस्य के बारे में आचार्य जी ने बताया कि वो बहुत अच्छी तरह से PROOF READING करते थे सन् 1956 में BNSD INTER COLLEGE में आचार्य जी ने अध्ययन करते समय की किस घटना की चर्चा की आदि जानने के लिए सुनें

23.10.21

दिनांक 23/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

प्रस्तुत है नाय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23/10/2021 का सदाचार संप्रेषण


जैसे आचार्य जी पहले विद्यालय -रत्न के लिए आवश्यक दस गुण बताते थे उसी तरह  प्रयासपूर्वक निम्नांकित दस सद्गुण यदि हम अपने अन्दर ले आयें तो स्वयं तो आनन्दित  रहेंगे ही अपने परिवार को अपने प्रतिवेश्य (पड़ोसी) को भी आनन्दमय कर सकते हैं और लोग  आपके प्रति आकर्षित होंगे प्रमुख है लोगों का आपके प्रति विश्वास बढ़ेगा

1-प्रातः जागरण

2-इष्ट स्मरण

3-शारीरिक व्यायाम

4-प्रकृति उपासना

5-परिवार प्रेम

6-प्रतिवेश्य से परिचय

7-स्वव्यवसाय के प्रति आस्था 

8-स्वावलंबी स्वभाव

9-स्वदेशी भाव

10-स्वधर्मानुभूति

स्वाध्याय की तरह किसी की वाणी का अनुभव कर लेना आपके विचार और कौशल पर आधारित है

गीता से 

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।

स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।

की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि शम्बूक का धर्म तो स्वास्थ्य विभाग की चिन्ता करना था लेकिन वो हठ योग में जुट गया l

इसके अतिरिक्त नाना जी द्वारा नागपुर में बाल -जगत नामक संस्थान को स्थापित करने के पीछे क्या उद्देश्य था

अपनी युग भारती के किस सदस्य को आचार्य जी ने कहा था कि उन्हें शिक्षक होना चाहिए था लेकिन वो इस समय डाक्टर हैं आदि जानने के लिए सुनें

22.10.21

दिनांक 22/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सूक्ष्मदृष्टि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

हमारे यहां प्रत्येक मास का माहात्म्य है पद्म पुराण के अन्तिम खंड में इन महीनों का विस्तृत वर्णन है l

तैत्तिरीय उपनिषद् की शिक्षाओं में योग,ध्यान,यज्ञ, तप, दान, कर्म और ज्ञान है l

संपूर्ण पर्यावरण में सद्विचार और कुविचार चलते रहते हैं 

विकृत तत्त्व को विकृति ही अच्छी लगती है मनुष्य जिस परिवेश में रहता है उसी से तादात्म्य स्थापित कर लेता है

परमात्मा ने हमारे ऊपर कृपा करी कि हमें परिवेश दिया सत असत की पहचान करने की क्षमता दी संगति दी कार्य दिये रुझान दिया कि शक्ति अर्जन करेंगे, देश सेवा करेंगे, संगठित रहेंगे, देशभक्त समाज को सशक्त बनायेंगे l

अपनी युग- भारती प्रार्थना में सर्वे भद्राणि पश्यन्तु है 

भद्र का अर्थ शरीर से सुन्दर  मन से सुन्दर विचार से सुन्दर और व्यवहार से भी सुन्दर होता है

किसी को दुःख न मिले यह भारतीय कल्पना है l

जो विषय जिसके जीवन में जितना ढला है उतना ही प्रभावकारी होता है l

विधि व्यवस्था का ज्ञान हमें भी हो हमारे बच्चों को भी हो

हम एक साथ भोजन आरती भजन आदि करें ll

तैत्तिरीय उपनिषद् को किस भाषा में बच्चों के सामने प्रस्तुत किया जाए यह चुनौती है l

इसके अतिरिक्त मछली विक्रेता कैसे सोया

किन भैया को संस्कृत भाषा में लिखी हस्तलिखित कामधेनु तन्त्र पुस्तक मिल गई आदि जानने के लिए सुनें 👇

21.10.21

दिनांक 21/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है यायजूक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21/10/2021 का सदाचार संप्रेषण जिसमें आचार्य जी ने हविष्यान्न, स्वाहा, स्वधा की परिभाषा बताते हुए यज्ञीय पद्धति की जानकारी दी l यदि यही यज्ञ के विधि विधान शिक्षा में सम्मिलित हो जाएं अर्थात् संस्कारित होकर हम ज्ञान प्राप्त करने की चेष्टा करेंगे तो हमें ज्ञान मिलेगा l

गीता का 18 वां अध्याय  राम चरित मानस के उत्तर कांड की तरह जीवन को दिशा निर्देश देने वाला अंश है l

18 वें अध्याय से ही


संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्।


त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन।।18.1।।

 

काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदुः।


सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः।।18.2।।


त्याज्यं दोषवदित्येके कर्म प्राहुर्मनीषिणः।


यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यमिति चापरे।।18.3।।

की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया जो कार्य कर रहे हैं उसमें बहुत अधिक लिप्त और प्रलुब्ध न होएं l

भारतवर्ष का व्यक्ति बहुत अधिक चिन्तन करता है l कुछ भी करें अपने स्व को न खोयें l शिक्षकत्व व्यास का अंश है l दम्भ आने पर हम भटक जाते हैं l त्याग का बहुत महत्त्व है l काम करते हुए त्याग का आनन्द लेना कठिन है l परमात्माश्रित भाव आवश्यक है ll

ऐसे लोग जिनमें भौतिक स्पृहा अब नहीं रह गई है वो संगठित होकर एक साथ रहने लगें चर्चा करें हवन करें यज्ञ करें तो एक नई ज्योति प्रकाशित हो सकती है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने नीरज भैया का नाम क्यों लिया क्या साहित्यकार दिशा निर्देशक हैं आदि जानने के लिए सुनें 👇

20.10.21

आज 20/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है गुणसागर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज 20/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

समय पर जिसका वीरत्व जाग जाए वो वीर है l

ज्ञान बांटते बांटते बीते पांचक वर्ष

अब तो कर्म प्रवृत्त हों सब मिल सहित अमर्ष ।

सब मिल सहित अमर्ष ज्ञान हो शक्ति प्रदाता 

और देशहित जिए मरे तज रिश्ता नाता ।

कर्मशक्ति के बिना यदि करते रहे विमर्श 

कभी नहीं मिल पाएगा हमको वांछित हर्ष ।।

(ओम शंकर )

कर्मशक्ति के साथ हो संघबद्ध व्यवहार ,

और आचरण में रहें संयम सहित उदार ।

संयम सहित उदार रहें कमजोर न पलभर ,

दुष्ट देखकर लगें खोजने कोई तलघर ।

संयम शक्ति समुद्र वत् गगन सदृश विस्तार ,

"हम भारत के पूत हैं" यह ही ब्रह्म विचार ।।

(ओम शंकर)


यस्यास्ति भक्तिर्भगवत्यकिञ्चना

सर्वैर्गुणैस्तत्र समासते सुरा: ।

हरावभक्तस्य कुतो महद्गुणा

मनोरथेनासति धावतो बहि: ॥ भागवत् 5/18/12

का उदाहरण देते हुए आचार्य जी ने सहज मानव मनोवृत्ति 'किसी का किसी के प्रति आकर्षण ' के बारे में बताया l


पाञ्चजन्यं ऋषिकेशाे देवदत्तं धनञ्जयः।                                                                           पाैण्ड्रं दध्माै महाशङ्खं भीमकर्मा वृकाेदरः।।                 अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्राे युधिष्ठिरः।                        नकुलः सहदेवश्च सुघाेषमणिपुष्पकाै।।


दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण,

                            युयुत्सुं समुपस्थितम्।।

                                    (गीता 1/28-।।)

       सीदन्ति मम गात्राणि,

                             मुखं च परिशुष्यति।

       वेपथुश्च    शरीरे    मे,

                            रोमहर्षश्च     जायते।।

                                       (गीता 1/29)

के द्वारा आपने सात्विक लोगों के लक्षण बताये l भगवान् कृष्ण में शक्ति बुद्धि स्थैर्य न होता तो पासा पलट जाता l

लेकिन सात्विकता भी अतिशयता को प्राप्त होती है तो हमारा पराभव होता है जिसे वीर सावरकर ने सद्गुण विकृति कहा है (उदाहरण :पृथ्वीराज चौहान )

अत्यन्त सरल बुद्धिमान् सहज प्रधानाचार्य ठाकुर साहब के पौत्र ने लटकते लड्डू कहां देखे थे?

लगाई डुढाई कौन बोलता था?

आदि जानने के लिए सुनें

19.10.21

दिनाङ्क 19/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है पारिकाङ्क्षिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा प्रोक्त समिर-मार्ग से प्राप्त आज दिनाङ्क 19/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

आचार्य जी ने सबसे पहले कृषकों के लिए अहितकर असमय पर्जन्य का उल्लेख किया l

इसके पश्चात् आचार्य जी ने लोक संग्रह, लोक संस्कार,लोक व्यवस्था और लोक संस्कार के लोक चिन्तन का अर्थ बताया

भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन को संस्कार ही दे रहे हैं और जब वे नहीं सुन रहे तो 

द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं     हि,

             व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः।

             दृष्ट्वाद्भुतं    रूपमुग्रं    तवेदं,

             लोकत्रयं प्रव्यथितं  महात्मन्।।

                                  (गीता 11/20)

         हे महात्मन ! अन्तरिक्ष एवं पृथ्वी के मध्य का पूरा आकाश तथा सब दिशाएं  मात्र आप से ही परिपूर्ण हैं । आपके इस अलौकिक, भयंकर रूप को देख कर तीनों लोक अत्यन्त व्यथित हो रहे हैं


नभःस्पृशं       दीप्तमनेकवर्णम्,

           व्यात्ताननं     दीप्तविशालनेत्रम्।

           दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा,

           धृतिं न विन्दामि शमं च  विष्णो।।

                                   (गीता 11/24)

          विश्व में सर्वत्र अणु रूप से व्याप्त  आकाश को छूते हुए , प्रकाशमान, अनेक रूपों से युक्त, फैलाये हुए मुंह और  विशाल आंखों से युक्त आपको देख कर भयभीत अन्तःकरण वाला मैं धैर्य और  शान्ति को नही पा रहा हूं l 

      


            दंष्ट्राकरालानि  च  ते  मुखानि,

            दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि  ।

            दिशो न जाने  न  लभे च शर्म,

            प्रसीद    देवेश    जगन्निवास।।

                                 (गीता 11/25)

         आपके विकराल दाढ़ वाले और कालाग्नि  के समान प्रज्वलित मुखों को देख कर मैं दिशाओं को नहीं जान पा रहा हूं । चारों ओर प्रकाश देख कर दिशा -भ्रम हो रहा है। आपका यह रूप देखते हुए मुझे सुख भी  नहीं मिल रहा है। हे देवेश ! आप खुश हों ।

इस तरह से संस्कार देने का प्रयास किया भगवान् श्रीकृष्ण ने ll

इसी तरह 

तैत्तिरीय उपनिषद् में उदाहरण है 

यथाssपः प्रवताssयन्ति। यथा मासा अहर्जरम्‌। एवं मां ब्रह्मचारिणः। धातरायन्तु सर्वतः स्वाहा। प्रतिवेशोऽसि। प्रमाभाहि। प्रमापद्यस्व।

जिस प्रकार सरिता का जल नीचे की ओर बहता है, जैसे वर्ष के माह दिवस के अवसान की ओर तीव्रगति से जाते हैं, हे पालनकर्ता प्रभो, उसी प्रकार सभी दिशाओं से ब्रह्मचारीगण मेरी ओर आयें। स्वाहा!

हे प्रभो, आप मेरे प्रतिवेशी हैं, आप मेरे बहुत समीप निवास करते हैं। मेरे अन्दर पधारिये, मेरी ज्योति, मेरा सूर्य बनकर मुझे प्रकाशित करिये!

अर्थात् वैचारिक संस्कार की आवश्यकता है l

हम लोग कभी गुलाम नहीं रहे l अन्य देश गुलाम हो गये

l स्वदेश का प्यार होना चाहिए l संपूर्ण सृष्टि को ब्रह्म की ओर उन्मुख किया गया है l हमें अनुभव हो जाए कि हम सब परमात्मा के अंश हैं l

18.10.21

दिनांक 18/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सान्न्यासिक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

कल सम्पन्न हुए स्वास्थ्य शिविर में कानपुर लखनऊ दिल्ली से युगभारती के 36 सदस्य थे और 325/350 मरीजों को देखा गया

तैत्तिरीय उपनिषद् में

प्रथम शिक्षावल्ली चतुर्थ अनुवाक में

यशो जनेऽसानि स्वाहा। श्रेयान्‌ वस्यसोऽसानि स्वाहा। तं त्वा भग प्रविशानि स्वाहा। स मा भग प्रविश स्वाहा। तस्मिन् सहस्रशाखे निभगाsहं त्वयि मृजे स्वाहा।

की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि प्रतिस्पर्धा का भाव विकास की कुञ्जी है l

गीता के 18 वें अध्याय में 

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् |


स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम् || ४७ ||

आदि छन्दों का अध्ययन करें

हम कभी गुलाम नहीं रहे हमारी उदारता ने हमें पराजित किया हमारे इतिहास में हमारे शूरवीरों को नहीं पढ़ाया गया

हमने सदैव संघर्ष किया


गीता,वेद,ब्रह्मसूत्र,उपनिषद्,आरण्यक, ब्राह्मणग्रन्थ आदि पढ़ाये जाने चाहिए l हमें यथार्थ की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है l ब्रह्मवेला के महत्त्व को पहचानने की आवश्यकता है l

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया भरत सिंह जी,भैया डा दिनेश, भैया डा सुरेन्द्र( बैच 1988), मानद सदस्य भैया मुकेश जी का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें

17.10.21

दिनांक 17/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है विज्ञात आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

आज अपने गांव सरौंहां में स्वास्थ्य शिविर है और यह अत्यन्त आनन्द का अवसर है l

इस सेवा के कार्य को करने के लिए बहुत लोगों में अत्यन्त उत्साह है और श्री मुकेश गुप्त जी इस शिविर के प्रतिनिधि हैं

आचार्य विचारमाला के अन्तर्गत श्री राजेश आचार्य जी के साक्षात्कार के बारे में आचार्य जी ने बताया l

इसके पश्चात् आचार्य जी ने तैत्तिरीय उपनिषद् में प्रवेश करते हुए बताया

आत्मवत् सर्वभूतेषु यो पश्यति स पण्डितः ।

जो सब प्राणियों को स्वयं की भाँति  देखता है वही पंडित है ।

कहां पर कौन सा व्यवहार करना चाहिए इसके लिए गीता अत्यन्त सरल ग्रन्थ है

गीता में तत्त्व है दर्शन है सिद्धान्त हैं विचार है

अपने ग्रन्थों का हमें विचारशील होकर अनुशीलन करना चाहिए l

यश्छन्दसामृषभो विश्वरूपः। छन्दोभ्योऽध्यमृतात् संबभूव। स मेन्द्रो मेधया स्पृणोतु। अमृतस्य देव धारणो भूयासम्‌।शरीरं मे विचर्षणम्‌। जिह्वा मे मधुमत्तमा।कर्णाभ्यां भूरि विश्रुवम्‌।ब्रह्मणः कोशोऽसि मेधया पिहितः।श्रुतं मे गोपाय।

का उदाहरण देते हुए आपने बताया परमात्मा के बगैर मनुष्य कुछ नहीं है वेदान्त कहता है यह प्रकृति और पुरुष का ही सारा पैसारा है

हमें दम्भरहित रहने का प्रयास करना चाहिए

प्रश्नोत्तर से हमारी जिज्ञासा का शमन होता है इसलिए प्रश्नोत्तर अवश्य करें

16.10.21

दिनाङ्क 16/10/2021 का सङ्गाद

 प्रस्तुत है सहोर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनाङ्क 16/10/2021 का सङ्गाद

तैत्तरीय उपनिषद् मेंआचार्य जी ने

आमायन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा ।विमाऽऽयन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा ।प्रमाऽऽयन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा ।दमायन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा ।शमायन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा ॥

की व्याख्या की


झीनी झीनी बीनी चदरिया।।


काहे का ताना काहे की भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया।

इंगला पिंगला ताना भरनी, सुखमन तार से बीनी चदरिया।।


आठ कमल दल चरखा डोले, पांच तत्व गुण तीनी चदरिया।।

साईं को बिनत मास दस लागे , ठोक-ठोक के बीनी चदरिया।।


सो चादर सुर नर मुनि ने ओढ़ी, ओढ़ी के मैली कीन्ही चदरिया।।

ध्रुव ओढ़ी प्रहृाद ने ओढ़ी, सुख देव निर्मल कीन्ही चदरिया।।

दास कबीर, जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया।।

योगमार्ग का ज्ञाता कबीर अक्षर से शून्य है इसी तरह 

मीराबाई  भी उदाहरण है 

परमात्मा की कृपा से योगमार्ग का ज्ञान इनमें प्रविष्ट हुआ l

एकात्मता का भाव कर्मशून्य नहीं बनाता कर्मचैतन्य जाग्रत करता है शरीर कर्म करने के लिए बना है जैसे आचार्य जी ने अन्य लोगों के साथ स्वयं भी कल मन्दिर आदि में साफ सफाई की l

गुरु गोविन्द सिंह शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म का अप्रतिम उदाहरण हैं l

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग कल के कार्यक्रम में सही प्रकार से व्यवस्था करने की योजना बना लें l 

इसके अतिरिक्त तवे पर कौन बैठ गया सुरबग्घी क्या है डा मधुकर वशिष्ठ का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें 👇

15.10.21

दिनांक 15/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सङ्ख्यावत् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

सत्संग का अर्थ केवल गाना बजाना नहीं , अध्यात्म की चर्चा ही नहीं अपितु भिन्न भिन्न रुचियों वाले भिन्न भिन्न प्रकृति वाले सतोगुण की प्रधानता वाले लोग जहां संगठित होकर रहते हैं उसे सत्संग कहते हैं

आज कल हम लोग औपनिषदिक ज्ञान की चर्चा कर रहे हैं

तैत्तरीय उपनिषद् में


वर्ण स्वर बल मात्रा साम संतान की संधि से भाषा, इस संधि का आधार लेकर भाव भाषा में परिवर्तित होता है भाषा व्यवहार में आती है

स्वर तो स्वाभाविक रूप से निकलते हैं स्वर तो आदिसृष्टि का आधार है परमात्मा जब विकारी होता है तो उसके मुख से भी स्वर निकलता है

ऋषियों ने व्यञ्जन बनाए कवर्ग चवर्ग आदि का विस्तृत विज्ञान है

ॐ नाम है नामी अर्थात् परमात्मा का


अथाधिविद्यम्। आचार्यः पूर्वरूपम्। अन्तेवास्युत्तररूपम्‌। विद्या सन्धिः। प्रवचनं सन्धानम्‌।इत्यधिविद्यम्‌।

अथाधिप्रजम्‌। माता पूर्वरूपम्। पितोत्तररूपम्‌। प्रजा सन्धिः। प्रजननं सन्धानम्। इत्यधिप्रजम्‌।

अथाध्यात्मम्‌। अधरा हनुः पूर्वरूपम्‌।उत्तरा हनुरुत्तररूपम्‌। वाक् सन्धिः। जिह्वा सन्धानम्‌।

से हम लोग देख सकते हैं कि शिक्षा के स्वरूप का कैसा अच्छा वर्णन किया गया है 


आचार्य जी ने कामधेनु तन्त्र नामक ग्रन्थ की चर्चा की जिसमें प्रत्येक अक्षर के स्वरूप का वर्णन है इसी में एक छन्द है

वामरेखाभवेद्ब्रह्मा विष्णुर्दक्षिणरेखिका ।

अधोरेखा भवेद्रुद्रो मात्रा साक्षात् सरस्वती साक्षात्

आपने शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म की आवश्यकता पर बल दिया

विद्यालय में छोटे मन्त्र से कौन खुश हो जाता था, दुर्वासा ऋषि क्या खाते थे आदि जानने के लिए सुनें

14.10.21

दिनांक 14/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है तपोधन आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14/10/2021 का सदाचार संप्रेषण


आचार्य जी ने अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया l 

संसार का निर्माण कैसे हुआ इसका निर्माता कौन है इस तरह के प्रश्न उठने पर उत्तर देने वाले शिक्षक यदि गम्भीर हैं तो इससे शिक्षार्थी और शिक्षक दोनों का कल्याण होता है l

विद्या अकेले प्राप्त नहीं होती है

कोई पास न रहने पर भी, जन-मन मौन नहीं रहता;

आप आपकी सुनता है वह, आप आपसे है कहता।

मैथिलीशरण गुप्त

कभी कभी अकेले होने पर हमारे भीतर प्रश्नोत्तर होते हैं आशा के निराशा के  उत्साह के

यह हमारे भीतर बैठा ब्रह्म तत्त्व है जो हमें सक्रिय सचेत करता है और इसी चिन्तन में व्यक्ति का ध्यान विकसित होता है और वह ध्यान जब इस शरीर के अंगों उपांगों का सदुपयोग कर लेता है तो हमें अन्तर्दृष्टि मिलती है इस अन्तर्दृष्टि में इन्द्रियां शान्त हो जाती हैं l

तैत्तरीय उपनिषद् में

यश्छन्दसामृषभो विश्वरूपः। छन्दोभ्योऽध्यमृतात् संबभूव। स मेन्द्रो मेधया स्पृणोतु। अमृतस्य देव धारणो भूयासम्‌।शरीरं मे विचर्षणम्‌। जिह्वा मे मधुमत्तमा।कर्णाभ्यां भूरि विश्रुवम्‌।ब्रह्मणः कोशोऽसि मेधया पिहितः।श्रुतं मे गोपाय।

की आचार्य जी ने व्याख्या की

17/10/2021 को अपने गांव सरौंहां में होने वाले स्वास्थ्य शिविर में हम लोग

सेवा के साथ विचार चिन्तन भी करें l बुद्धि प्रतिभा प्रमा मेधा विवेक के सत्व तत्त्व को समझने के लिए परस्पर बैठना आवश्यक है l

शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म अत्यन्त आवशयक है

निर्भय परमात्मा का सबसे प्रिय होता है

इसके अतिरिक्त प्रो ज्ञान मोहन (IIT) से संबन्धित क्या बात थी जानने के लिए सुनें

13.10.21

दिनांक 13/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है वन्द्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13/10/2021 का सदाचार संप्रेषण


आचार्य जी ने बताया कि अपने गांव सरौंहां में कमल सरोवर के पास बने देवी मन्दिर में आज  अष्टमी का हवन है l

किसी भी प्रकार का भोग हो (जिसका संबन्ध इन्द्रियों से है)  उसकी एक सीमा है, इन्द्रियां जिनका संबन्ध मन से है सीमित क्षमताओं की हैं

मन का संयोजन बुद्धि से है बुद्धि के कई प्रकार हैं 

मेधा प्रतिभा प्रमा विवेक में सबसे महत्त्वपूर्ण विवेक हैl

आचार्य जी ने 

श्रुतिः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियमात्मनः_। 

एतच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाद्धर्मस्य लक्षणम्॥ 


  (मनुस्मृति)(2/12)

की व्याख्या करते हुए बताया कि 

ये धर्म के चार लक्षण हैं

जैसे धर्म के दस लक्षण 👇

धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:।

धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌।। हैं 

तैत्तरीय उपनिषद् में तृतीय अनुवाक में 

अथाधिजौतिषम्। अग्निः पूर्वरूपम्‌। आदित्य उत्तररूपम्‌। आपः सन्धिः। वैद्युतः सन्धानम्‌। इत्यधिज्यौतिषम्‌।

अथाधिविद्यम्। आचार्यः पूर्वरूपम्। अन्तेवास्युत्तररूपम्‌। विद्या सन्धिः। प्रवचनं सन्धानम्‌।इत्यधिविद्यम्‌।

। इत्यधिप्रजम्‌।

अथाध्यात्मम्‌। अधरा हनुः पूर्वरूपम्‌।उत्तरा हनुरुत्तररूपम्‌। वाक् सन्धिः। जिह्वा सन्धानम्‌।

इत्यध्यात्मम्। इतीमा महासंहिताः।य एवमेता महासंहिता व्याख्याता वेद।सन्धीयते प्रजया पशुभिः।ब्रह्मवर्चसेनान्नाद्येन सुवर्ग्येण लोकेन॥

की भी आपने व्याख्या की

चौथे अनुवाक में

यश्छन्दसामृषभो विश्वरूपः। छन्दोभ्योऽध्यमृतात् संबभूव। स मेन्द्रो मेधया स्पृणोतु। अमृतस्य देव धारणो भूयासम्‌।शरीरं मे विचर्षणम्‌। जिह्वा मे मधुमत्तमा।कर्णाभ्यां भूरि विश्रुवम्‌।ब्रह्मणः कोशोऽसि मेधया पिहितः।श्रुतं मे गोपाय।

आवहन्ती वितन्वाना। कुर्वाणा चीरमात्मनः। वासांसि मम गावश्च। अन्नपाने च सर्वदा। ततो मे श्रियमावह।लोमशां पशुभिः सह स्वाहा।

आ मा यन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा। वि मायन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा। प्रमायन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा। दमायन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा। शमायन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा। यशो जनेऽसानि स्वाहा। श्रेयान्‌ वस्यसोऽसानि स्वाहा। तं त्वा भग प्रविशानि स्वाहा। स मा भग प्रविश स्वाहा। तस्मिन् त्सहस्रशाख। नि भगाहं त्वयि मृजे स्वाहा। यथापः प्रवता यन्ति। यथा मासा अहर्जरम्‌। एवं मां ब्रह्मचारिणः। धातरायन्तु सर्वतः स्वाहा। प्रतिवेशोऽसि। प्र मा भाहि। प्र मा पद्यस्व।

है

जितना हम जान सकते हैं उतना भली प्रकार जानकर व्यवहार में प्रकट करें l

संगठन महत्त्वपूर्ण है l

17 अक्टूबर के कार्यक्रम में हम लोग पहुंचें l

आचार्य जी ने

कोविड संग्राम, यूपी मॉडल: नीति, युक्ति, परिणाम

Covid War, UP Model: Strategies, Tactics, Impact

प्रो मणीन्द्र अग्रवाल (IIT)

की पुस्तक की भी चर्चा की जिसके अनुवाद में नीरज भैया बैच 1981 ने सहयोग किया है

की चर्चा की

12.10.21

दिनांक 12/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है पाठक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

आचार्य जी ने तैत्तरीय उपनिषद् की चर्चा की जिसमें 

शिक्षा वल्ली में १२ अनुवाक और २५ मंत्र, ब्रह्मानंदवल्ली में ९ अनुवाक और १३ मंत्र तथा भृगुवल्ली में १९ अनुवाक और १५ मंत्र हैं।


सह नौ यशः। सह नौ ब्रह्मवर्चसम्‌। अथातः संहिताया उपनिषदं व्याख्यास्यामः। पञ्चस्वधिकरणेषु। अधिलोकमधिज्यौतिषमधिविद्यमधिप्रजमध्यात्मम्‌। ता महासंहिता इत्याचक्षते।

अथाधिलोकम्‌। पृथिवी पूर्वरूपम्‌। द्यौरुत्तररूपम्। आकाशः सन्धिः। वायुः सन्धानम्‌। इत्यधिलोकम्।


की व्याख्या करते हुए आपने बताया कि पूर्व रूप उत्तर रूप संपूर्ण सृष्टि का संयोजन है (महासंहिता)

यह विषय अत्यधिक आनन्दमय और विस्तार से समझने योग्य है कि शिक्षा का विधान कैसा हो ताकि इन छोटे छोटे उदाहरणों के माध्यम से हम जान लें कि सृष्टि में सब कुछ बनता कैसे है

यदि तैत्तरीय उपनिषद् को व्यवस्थित करके पाठ्यक्रम का अंग बना दिया जाए तो सभी का अत्यधिक कल्याण होगा l

शिक्षा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करती है

भाव विचार क्रिया का संयोजन न हो तो शिक्षा अधूरी है अधूरी शिक्षा से हम पूर्णता नहीं प्राप्त कर सकते l

विद्यालय के सुखई माली जी,जिनमें अध्यात्म का प्रवेश था,की वो क्या रोचक बात थी जो उन्होंने आचार्य जी से तब  कही जब आचार्य जी ने उनसे पीली चमेली के बारे में बात की जानने के लिए सुनें 

11.10.21

दिनाङ्क 11/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार। 


रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥


प्रस्तुत है कुलतन्तु लब्धश्रुत आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनाङ्क 11/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

स्थान :उन्नाव 

प्रेम और आत्मीयता अपने युगभारती परिवार (मुक्ताहार ) का एक सद्गुण है जिसे हर परिस्थिति में बनाए रखना चाहिए l

भावात्मक संबन्धों की गर्माहट से संगठन को सुकून मिलेगा l चिन्तन में परिवर्तन से विचार परिष्कृत होंगे और उससे व्यवहार आनन्दमय होगा l पुरुष के लिए पुरुषार्थ अति आवश्यक है भावनाओं से संगठन को शक्ति प्रदान करें l राष्ट्र- हित  में तत्पर रहेंl


आचार्य जी ने भैया डा प्रवीण सारस्वत जी के नये बने अत्यन्त आकर्षक और सुन्दर चिकित्सा भवन SARASWAT PATHOLOGY की भी चर्चा की 


परामर्श :गीता के 18 वें अध्याय में 18 वें से 28 वें छन्द तक का अध्ययन करें

इसके अतिरिक्त पण्डित जी को कुत्ते का पात्र मिला था या कोई दूसरा पात्र, रुद्राक्ष माला किसकी टूट गई थी आदि जानने के लिए सुनें 👇

10.10.21

दिनाङ्क 10/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है स्थिरात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनाङ्क 10/10/2021 का सदाचार संप्रेषण


भाव विचार और क्रिया का सामंजस्य संसार में सफलतापूर्वक सहजतापूर्वक और सरलतापूर्वक कार्य व्यवहार करने के लिए सहायता करता है l

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि यह सदाचार संप्रेषण उपादेय बने l

तैत्तरीय उपनिषद् में शिक्षावल्ली का तीसरा अनुवाक है 👇

सह नौ यशः। सह नौ ब्रह्मवर्चसम्‌। अथातः संहिताया उपनिषदं व्याख्यास्यामः। पञ्चस्वधिकरणेषु। अधिलोकमधिज्यौतिषमधिविद्यमधिप्रजमध्यात्मम्‌। ता महासंहिता इत्याचक्षते।

अथाधिलोकम्‌। पृथिवी पूर्वरूपम्‌। द्यौरुत्तररूपम्। आकाशः सन्धिः। वायुः सन्धानम्‌। इत्यधिलोकम्।

इसका अर्थ इस प्रकार है

हम आचार्य एवं शिष्य एक साथ यश प्राप्त करें, एक साथ ब्रह्मवर्चस पाएं । हम इसके बाद संहिता के गहन अर्थ की व्याख्या करेंगे जिसके पाँच प्रमुख  अधिकरणअर्थात् विषय हैं


 'लोकों' से सम्बन्धित (अधिलोकम्) 'ज्योतिर्मय अग्नियों' से सम्बन्धित (अधिज्यौतिषम्) 'विद्या' से सम्बन्धित (अधिविद्यम्) 'सन्तति' (प्रजा) से सम्बन्धित (अधिप्रज्ञम्) 'आत्मा' से सम्बन्धित (अध्यात्मम्)। ये 'महासंहिता' कहलाती हैं ।

प्रथम लोक-विषयक। पृथ्वी प्रथम  रूप है; द्युलोक द्वितीय  रूप हैं; आकाश सन्धि है; वायु संयोजक (सन्धान) है। इतना ही है अधिलोकम्।


शिक्षा के छह अङ्गों वर्ण स्वर बल मात्रा साम और संतान के आधार पर हम शिक्षित होते आएं हैं


आचार्य जी ने कुछ सामाजिक झंझावातों की चर्चा की


शान्त  हों एकान्त हो तो लेखन महत्त्वपूर्ण है हम  श्रम सेवा के आधार पर या स्वाध्याय के आधार पर करते हैं और संयम सेवा और स्वाध्याय की शर्त है

संयम का मूल आधार धैर्य है

आचार्य जी ने अपनी एक कविता सुनाई इसकी व्याख्या भी की 


भावों का ज्वालामुखी मचलता जब उर में

हर शब्द दहकता अंगारा बन जाता है

9.10.21

दिनांक 09/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 हम रामांशों के सम्मुख प्रस्तुत है वागृषभ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 09/10/2021 का सदाचार संप्रेषण


परिस्थिति गम्भीर (जैसे कोरोना संकट )होने पर चिन्तक विचारक सबसे पहले भय का त्याग करते हैं

कोरोना संकट में अन्य देशों की तुलना में भारत का सबसे कम नुकसान हुआ क्योंकि भारतवर्ष की प्रकृति प्राणदायिनी है पर्यावरण भी अच्छा है

शिक्षा की विकृति के लिए हम सब उत्तरदायी हैं

तैत्तरीय उपनिषद् में प्रथम अध्याय शिक्षावल्ली है जिसकी प्रार्थना इस प्रकार है

ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं बह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम । अवतु वक्तारम् ।


ॐ शान्तिः । शान्तिः । शान्तिः ।

आचार्य जी ने इसकी व्याख्या करते हुए बताया कि यहां वायु की प्रशंसा की गई है और इसका गहन आशय है

हमारी शिक्षा में शुद्ध प्राणवायु का भी ध्यान रखा गया था विद्यालय इसी प्रकार के होते थे ताकि हमें शुद्ध प्राणवायु मिले

हम अपनी शिक्षा को जीविकोपार्जन की शिक्षा का आधार बना दें नित्य प्रार्थना, पूजा,ध्यान, हवन,व्यायाम, प्राणायाम शिक्षा का आधार हैं हम शिक्षक हैं यह अनुभव करें कार्य व्यवहार में भी शिक्षकत्व लाएं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अरिन्दम जी की चर्चा क्यों की बिलदलिया कहां था सन् 64 में आचार्य जी कहां रुके थे आपने बूजी का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें 

8.10.21

दिनांक 08/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है आज दिनांक 08/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥


आचार्य श्री ओम शंकर जी,जिनके आचरण में हमें ज्ञान वैराग्य ध्यान उपासना सत्कर्म परिलक्षित होते हैं, का कहना है कि हमारे मन में विचार में संकल्प में विश्वास में जागरण में निद्रा में अखंड भारत का चित्र होना चाहिए और हमें सदैव अखंड भारत की उपासना करनी चाहिए l

आचार्य जी ने मानस का एक प्रसंग लिया जहां भ्रमित गरुड़   जी महाराज कागभुसुण्डी के पास भेजे गए हैं


नीति निपुन सोइ परम सयाना। श्रुति सिद्धांत नीक तेहिं जाना॥

सोइ कबि कोबिद सोइ रनधीरा। जो छल छाड़ि भजइ रघुबीरा॥


सोइ सर्बग्य गुनी सोइ ग्याता। सोइ महि मंडित पंडित दाता॥

धर्म परायन सोइ कुल त्राता। राम चरन जा कर मन राता l l


सो धन धन्य प्रथम गति जाकी। धन्य पुन्य रत मति सोइ पाकी॥

धन्य घरी सोइ जब सतसंगा। धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा॥


धन की तीन गतियों दान भोग और नाश में सर्वोत्तम है दान

7.10.21

दिनांक 07/10/2021 (नवरात्र का प्रथम दिवस ) की सदाचार वेला

 यह सदाचार वेला पूरे दिन हमें ऊर्जा देने की वैचारिक ओषधि है स्थितप्रज्ञ आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदैव प्रयास रहता है कि यह वेला सार्थक बने आज दिनांक 07/10/2021 (नवरात्र का प्रथम दिवस ) की सदाचार वेला अपनी सार्थकता कैसे सिद्ध कर रही है आइये देखते हैं

कुछ लोग नवरात्र के व्रत अत्यन्त श्रद्धा संयम सेवा समर्पण नियम के साथ करते हैं व्रत अर्थात् संकल्प

सत्य की अपने यहां बहुत महिमा है जैसे एक शब्द है सत्यव्रत

भ्रमित होने पर सत्य का पक्ष लेने के लिए ही कहा जाता है

सत्य का अर्थ है त्रिकाल से अबाधित

वेद अर्थात् ज्ञान, शास्त्र अर्थात् शिक्षा

तैत्तरीय उपनिषद् में शिक्षावल्ली नामक छोटा सा अध्याय है जिसमें स्वरों व्यंजनों का सही उच्चारण आदि बताया गया है

वैदिक मन्त्रों में उच्चारण की क्रिया अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है

यह भी देखा जाता है कहां उतार है कहां चढ़ाव है इस प्रकार की भाषा मन्त्र बन जाती है इसी कारण शाप भी अत्यधिक महत्त्व का होता था और लोग इससे बचते थे

भारत को संपूर्ण विश्व विश्वगुरु मानने के लिए विवश था क्योंकि भारत की भक्ति शक्ति विचार आचरण अनुपमेय था

आचार्य जी इसमें भी प्रयासरत हैं कि हम भारत के सशक्त प्रहरी रक्षक बन जाएं

भारत वह धरती है जो व्यक्ति के पीछे नहीं तत्त्व के पीछे चलती है

आपने मानस से एक प्रसंग लिया 

प्रभु प्रसन्न मन सकुच तजि जो जेहि आयसु देब।

सो सिर धरि धरि करिहि सबु मिटिहि अनट अवरेब॥269॥

इसके अतिरिक्त सुभद्रा माता जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी श्री कृष्णदेव जी पू o गुरु जी आदि के प्रसंग क्या थे जानने के लिए सुनें 

6.10.21

दिनाङ्क 06/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 स्थिरारम्भ आचार्य श्री ओम शंकर जी का कहना है हम कुसंगति से बचें चाहे वह आदतों की हो या व्यक्तियों की हो और यज्ञ हवन पूजन में रत हों संगठन को महत्त्व दें सेवारत हों शक्ति की उपासना करें l प्रस्तुत है इन्हीं सब बातों को लिए आज दिनाङ्क 06/10/2021 का सदाचार संप्रेषण


जिनके जीवन में अस्तव्यस्तता समाप्त हो जाती है वे प्राज्ञ कहलाते हैं l

आज पितृविसर्जनी अमावस्या है और कल से नवरात्र प्रारम्भ हो रहे हैं,

जहां शक्ति की उपासना शौर्य की आराधना भक्ति के साथ परिलक्षित होती है l

आचार्य जी ने 

जन्तूनां नरजन्म दुर्लभमतः पुंस्त्वं ततो विप्रता

तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता विद्वत्त्वमस्मात्परम्।

आत्मानात्मविवेचनं स्वनुभवो ब्रह्मात्मना संस्थितिः

मुक्तिर्नो शतजन्मकोटिसुकृतैः पुण्यैर्विना लभ्यते॥ २॥ विवेक चूडामणि

की व्याख्या की

इसी माह अपने सरौहां गांव में होने वाले चिकित्सा शिविर को अत्यन्त उत्साह के साथ करने के लिए आपने आह्वान किया

आचार्य जी ने अपनी रचित एक कविता सुनाई

हम चलेंगे साथ तो संत्रास हारेगा

पूर्व फिर से अरुणिमा आभास धारेगा.....

(पूर्व अर्थात् भारत )

5.10.21

दिनांक 05/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है भगवत् आचार्य श्री ओम शङ्कर जी द्वारा प्रोक्त आज दिनांक 05/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

लेखन एक योग है और वह हमारा मित्र भी है

धर्म और दर्शन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं धर्म जीवन का व्यवहार है जीने की शैली है और दर्शन आन्तरिक अनुभवों का तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने का उपाय है

दो प्रकार के दर्शन हैं

आस्तिक और नास्तिक

छ्ह नास्तिक दर्शन चार्वाक माध्यमिक योगाचार्य सौत्रांतिक वैभासिक और आरहद और 

छ्ह आस्तिक दर्शन सांख्य योग न्याय वैशेषिक मीमांसा वेदान्त हैं

आचार्य जी ने गीता के निम्नलिखित श्लोक बताये


देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।

ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते।।17.14।।

देवता, ब्राह्मण, गुरुजन और जीवात्मा का पूजन , शुद्धि , आर्जवम्( सरलता), ब्रह्मचर्य का पालन  और अहिंसा  --  शरीरसम्बन्धी तप कहलाता है

अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्।

स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते।।17.15।।

उद्वेग न करने वाला, सत्य, प्रिय, हित करने वाला भाषण  स्वाध्याय व अभ्यास -- यह वाणी सम्बन्धी तप कहलाता है


मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।

भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते।।17.16।।


मन की प्रसन्नता, सौम्य भाव, मननशीलता, मन का निग्रह  भावों की शुद्धि --  यह मन सम्बन्धी तप कहलाता है l

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कुछ काव्य पंक्तियां सुनाईं

आचार्य जी से जीवनी लिखने के लिए किसने कहा आदि जानने के लिए सुनें

4.10.21

दिनांक 04/10/2021 का सदाचार आभाषण

 आनन्दित रहने हेतु आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए हम लोग प्रातःकाल दीक्षक आचार्य श्री ओम शंकर जी की सदाचार वेला की प्रतीक्षा करते हैं

 प्रस्तुत है आज दिनांक 04/10/2021 का सदाचार आभाषण

ब्रह्म क्या है? इस विषय को विस्तार देते हुए आचार्य जी ने

यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते । येन जातानि जीवन्ति ।

यत् प्रयन्त्यभिसंविशन्ति । तद्विजिज्ञासस्व । तद् ब्रह्मेति ॥ - तैत्तिरीयोपनिषत् ३-१-३

की व्याख्या की और बताया कि आरण्यक इसी ब्रह्म को जानने की ऋषियों की अनुभूतियां हैं

यज्ञ का स्थूल रूप भी लाभदायक है

यज्ञ दान तप  त्रिविध पुरुषार्थ हैं

यह भाव सदैव रहना चाहिए कि मेरा कुछ नहीं है

इसी भाव को लिए आजीवन समर्पण के उदाहरण हैं

नानक, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द, सुभाष चन्द्र बोस दीनदयाल आदि

आचार्य जी ने भारत की महत्ता दर्शातीं ये कविताएं सुनाईं

तपस्या, त्याग,संयम, शील का शुभनाम भारत है ,

समर्पण, सत्य, सेवा साधना का नाम भारत है ,

ये भारतवर्ष केवल भूमि का टुकड़ा नहीं प्यारे ,

समूचे विश्व भर की चेतना का नाम भारत है ।

✍️ओम शंकर



कि, गंगा और गीता गाय का पर्याय भारत है ,

कि, श्रीमद्भागवत का प्रिय दशम अध्याय भारत है,

कि, भारत भूमि का सुर स्वर्ग है ध्रुव सत्य यह ही है ,

कि, जीवन-मुक्ति-पथ का एकमेव उपाय भारत है ।।

✍️ओम शंकर

 परामर्श :

प्रकृति का दर्शन करें

संस्कृति का सृजन करें

विकृति का वर्जन करें


 दीनदयाल विद्यालय प्रबन्धकारिणी समिति के अध्यक्ष श्री योगेन्द्र भार्गव जी ने आचार्य जी को कल फोन क्यों किया? सच्चिदानन्द क्या है?

जानने के लिए सुनें

3.10.21

दिनांक 03/10/2021 उद्बोधन

 दीनवत्सल आचार्य श्री ओम शंकर जी से हमें विचार, ज्ञान, आत्मीयता, प्रेम और आशीर्वाद प्राप्त होता रहता है l आज दिनांक 03/10/2021 के उद्बोधन में आचार्य जी ने बताया कि अपनापन व्यक्ति को भाव से जोड़ता है कर्मक्षेत्र के साथ़ भाव को अवश्य जोड़ें l

आपने 

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥  ईशोपनिषद् 


बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।

तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।।2.50।।गीता 


कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः।

जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्।।2.51।।गीता 


यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्।

स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः।।18.46।।गीता 


समाश्रिता ये पदपल्लवप्लवं

महत्पदं पुण्ययशो मुरारे: ।

भवाम्बुधिर्वत्सपदं परं पदं

पदं पदं यद् विपदां न तेषाम्   10.14.58 भागवत् 


वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः।

बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः।।4.10।।गीता


की व्याख्या करते हुए कहा कि संसार में संकटों के होते हुए भी अपने कार्यों को उत्साह से करें तो आनन्द आयेगा l

और अपना कौन आत्मीय आचार्य जी से मिलने कल अपने गांव सरौंहां गया था जानने के लिए सुनें 

2.10.21

दिनांक 02/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है बुद्धिशस्त्र आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 02/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

उपनिषदों के छन्द प्रेरणा देते हैं l दो प्रकार के सदाचार संप्रेषण होते हैं एक भावात्मक दूसरा विचारात्मक

यदि विचारात्मक में भावात्मकता का आधार हो तो वह सरस हो जाता है.

भावना अन्तःकरण का प्रतिनिधित्व करती है और विचार बुद्धितत्त्व का.

ब्रह्म शब्द की उत्पत्ति बृह धातु से हुई है,जिसका अर्थ है,प्रस्फ़ुटित होना,प्रसरण बढ़ना, आदि इसका सम्बन्ध बृहस्पति और वाचस्पति से भी है,वास्तव में उच्चारित शब्द की अन्तर्निहित शक्ति के विस्फ़ोट और उपवृंहण अर्थात वृद्धि से ही इन तीन शब्दों का तारतम्य है,इन अर्थों में बृहत होने की भावना की प्रधानता है,जिसका आशय है ब्रह्म सबसे बड़ा है,उससे कोई बड़ा नही है

तैत्तरीय उपनिषद् में एक संवाद के अन्तर्गत भृगु ने पिता वरुण से प्रश्न किया कि ब्रह्म क्या है,तो वरुण ने उत्तर दिया-

यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते । येन जातानि जीवन्ति ।

यत् प्रयन्त्यभिसंविशन्ति । तद्विजिज्ञासस्व । तद् ब्रह्मेति ॥ - तैत्तिरीयोपनिषद् ३-१-३

जिससे यह समस्त भूत ब्रहमाण्ड के जड़ चेतन पदार्थ जन्म लेते है,उत्पन्न होकर आश्रय से जीते है,और पुन: उसी में लौट कर विलीन हो जाते है,उसी का नाम ब्रह्म है.

ब्रह्म का इसी प्रकार से दूसरे शब्दों में अर्थ छान्दोग्य उपनिषद में पाया जाता है,इसमे ब्रह्म को "तज्जलान" (तत+ज+ल+अन) कहा गया है,इसका अर्थ है कि ब्रह्म तज्ज तल्ल और तदन है,वह तज्ज है क्योकि सभी भूत उसी मे पैदा होते है,वह तल्ल है क्योकि सभी भूत उसी में तल्लीन रहते है,वह तद्न क्योकि सभी भूत उसी में वापस चले जाते है,ब्रह्म में इन तीनो का समावेश है,इसलिये ही ब्रह्म का स्वरूप तज्जलान सूत्र से किया जाता हैl

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मोहन कृष्ण जी और शरद कश्यप जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

1.10.21

दिनांक 01/10/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है वागीश आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 01/10/2021 का सदाचार संप्रेषण


युग भारती अपनी भूमिका इस तरह निभाए कि घर घर में हमारे उपास्य अखण्ड भारत का चित्र हो, भारतीय भाव से परिपूर्ण जो भी समाज है जाति है पन्थ है वह हमारा मित्र हो

 आचरण पवित्र हो

स्वभाव परिस्थिति के अनुसार ढल जाता हो


हमारा आर्ष साहित्य ब्रह्म पर आधारित है और उसी का विस्तार  आरण्यक ब्राह्मण उपनिषद् गीता मानस में है

ब्रह्म की सत्ता हिन्दू धर्म दर्शन सामाजिक व्यवस्था साहित्य और कला की आधारशिला है

दर्शन की दृष्टि से ब्रह्म का अर्थ अत्यधिक व्यापक और गहन है

इसके अतिरिक्त विचित्र व्यवहार का क्या आशय है भोजन का साहित्य क्या है मन्त्रों की क्या विशेषता है

आचार्य जी ने बिठूर की चर्चा क्यों की

आदि जानने के लिए सुनें