18.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 संगठन मन्त्र इस युग का तारक -मन्त्र है


प्रस्तुत है प्रेक्षावत् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18/02/2022

  का  सदाचार संप्रेषण


आचार्य जी ने बताया हम लोग अर्थात् जो सिद्धान्त और विचार को लेकर चलते हैं, देश और समाज के बारे में चिन्तन करते हैं जो चुनाव चल रहे हैं उसमें एक एक मत    पहुंचे इसके लिये प्रयासरत हैं तो कुछ ऐसे हैं जो ढोंग ढपाल कर रहे हैं l 


कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ।

दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥97 क॥

भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म।

सुनु हरिजान ग्यान निधि कहउँ कछुक कलिधर्म॥97 ख॥

बरन धर्म नहिं आश्रम चारी। श्रुति बिरोध रत सब नर नारी।

द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन। कोउ नहिं मान निगम अनुसासन॥1॥


मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोइ जो गाल बजावा॥

मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहइ सब कोई॥2॥


हमारे अन्दर यह भाव भर गया है कि कोई अङ्ग्रेजी बोल दे तो लगता है बहुत ज्ञानी है

कल आचार्य जी के मन में कुछ भाव उठे ये भाव सदाचार वेला का सार है



गांव गांव घर घर में संयम  शौर्य शक्ति पहुंचाना है ,

प्रेम युक्ति से संगठना कर विजयमंत्र दुहराना है ।।


जो भी जहां कहीं रहता हो,

जो कुछ भी निज-हित करता हो ,

थोड़ा समय देश-हित देकर

जीवन को सरसाना है ।।

       गांव गांव घर घर में ------


भारत मां हम सबकी मां है यह अनुभूति महत्वमयी ,

सेकुलर वाली तान निराली शुरू हुई है नयी नयी ।

भ्रम भय तर्क वितर्क वितंडा छोड़ लक्ष्य पर दृष्टि रहे ,

हिन्दुराष्ट्र के विजय घोष से नभ को आज गुंजाना है ।।

          गांव गांव घर घर में-----


हिंदुदेश में हम-सब हिंदू जाति पांति आडंबर है ,

शक्ति संगठन के अभाव में दर दर उठा बवंडर है ,

प्रेम मंत्र संगठन तंत्र पर बद्धमूल विश्वास करें ,

जनजीवन से भ्रामकता को जड़ से दूर भगाना है ।।

      गांव गांव घर घर में ----


जहां किसी को भय भासित हो उसके दाएं खड़े रहें ,

लोभ लाभ के प्रति आजीवन सभी तरह से कड़े रहें ,

भारत सेव्य और हम सेवक यही भाव आजन्म रहे ,

यही भाव जन जन के मन में हमको अब पहुंचाना है ।।

         गांव गांव घर घर में ------


भारत की संस्कृति में गौरव गरिमा समता ममता है ,

समय आ पड़े तो अपने बल दुष्ट-दलन की क्षमता है ,

हम अपनी संस्कृति की रक्षा हेतु सदैव सतर्क रहें ,

यही विचार भाव जन जन को हमको आज सिखाना है ।।

         गांव गांव घर घर में--------


✍️ ओमशंकर त्रिपाठी


लेखन एक योग है भाव उठें तो उन्हें उकेरें विचार आयें तो 

उन पर चर्चा करें क्रिया के लिये उद्यत हों तो संगठित भी हों 

इस सदाचार वेला के प्रति गम्भीर होकर  अपने भाव विचार और क्रियाओं से एक दूसरे को अवगत कराते रहें

यह समय मनोरंजन का नहीं है गम्भीर होने का है