31.1.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष पंचमी /षष्ठी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 31 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९१६वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है शुक्रशिष्य -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष पंचमी /षष्ठी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 31 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण

  *९१६वां* सार -संक्षेप
 1 राक्षसों का शत्रु

सदाचार वेलाओं के माध्यम से प्राप्त सदाचारमय विचारों को यदि हम व्यवहार में लाते हैं तो निश्चित रूप से हमारी सफलता निश्चित है
हमें लक्ष्य करके उत्साहित प्रेरित करने का यह कार्य अप्रतिम है
तत्त्वज्ञ आचार्य जी का प्रयास है कि हम बाधाओं से बिना भयभीत हुए अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित रखें
हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
राष्ट्र -हित समाज -हित हेतु निःस्वार्थ भाव से हमारा समर्पण हो
हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत न करें इन वेलाओं के तात्विक विषयों में अपनी रुचि जाग्रत करें
बहुत ज्ञान अर्जित करने पर भी दम्भ अहंकार से दूर रहें मानसिक और शारीरिक शुद्धि के साथ साधनाओं जैसे अध्ययन स्वाध्याय आदि में रत हों

भाव विचार और क्रिया की त्रिवेणी अद्भुत है भाव बनने के बाद विचार आते हैं और उसके उपरान्त जब क्रियाएं प्रारम्भ होती है तो उन क्रियाओं के साथ संसार संयुत हो जाता है
भाव से ही संसार उत्पन्न होता है विचार में भी संसार संयुत है
कभी विचार कुछ होता है और व्यवहार कुछ अलग होने लगता है यह संसार का स्वरूप और स्वभाव है संसार में सब कुछ है और कुछ भी नहीं है लेकिन संसार का संसारी पुरुष यदि अपने पुरुषत्व की कुछ क्षणों के लिए ही अनुभूति कर लेता है तो वह संसार के रहस्य को जानने के लिए बहुत जिज्ञासु हो जाता है

इस जिज्ञासा में अनेक बार उसके मन में उद्विग्नता भी आ जाती है ऐसी उद्विग्नता भक्ति के क्षेत्र में बहुत भक्तों में देखने को मिलती है
आज कल इन वेलाओं में उपनिषदों पर चर्चा हो रही है इनमें बहुत कुछ है ये अपरिमित ज्ञान का स्रोत हैं इनमें अध्ययन की कई विधियां हैं ईशावास्य उपनिषद् का पहला छंद अपनी प्रार्थना में भी है

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।
 तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ।।
भगवान् शंकराचार्य ने ग्यारह उपनिषदों का भाष्य किया है जिनमें

तत्त्व जिज्ञासुओं के कल्याणार्थ एक ही पुस्तक में गीता प्रेस ने नौ उपनिषदों (ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, श्वेताश्वतर) को एक साथ संगृहीत किया है।

ईशादि नौ उपनिषद् – सजिल्द (सानुवाद, शांकरभाष्य)

और इसके अतिरिक्त
छान्दोग्य उपनिषद् और
बृहदारण्यक उपनिषद् हैं
उपमान विधि वाले छान्दोग्य उपनिषद् की आचार्य जी ने चर्चा की

आयोदधौम्य के आश्रम में ओपवेशिक गौतम के पुत्र आरुणि, वसिष्ठ कुलोत्पन्न व्याघ्रपाद के पुत्र उपमन्यु तथा वैद शिक्षा प्राप्त करते थे। धौम्य बड़े परिश्रमी थे और शिष्यों से भी बहुत काम लेते थे। पर उनके शिष्य गुरु के प्रति इतना आदर एवं श्रद्धा रखते थे कि वे कभी उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते थे l
आरुणि अत्यन्त सिद्ध योगी थे पानी न रुकने पर वे लेट गए ऋषि ने उनका नाम उद्दालक रख दिया
आचार्य जी ने उपमान विधि बताई आरुणि के पुत्र श्वेतकेतु की चर्चा करते हुए कि एक छोटे बीज से बहुत बड़ा वृक्ष बन जाना ही ईश्वरत्व है

इसके अतिरिक्त भारत की महत्ता कैसे समझ में आयेगी आदि जानने के लिए सुनें

30.1.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 30 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९१५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है हित ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 30 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण

  *९१५ वां* सार -संक्षेप
 1 परोपकारी

स्वयं सदाचारी रहते हुए हमारे आदर्श के रूप में आचार्य जी नित्य हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है
हमें लक्ष्य करके उत्साहित प्रेरित करने का यह कार्य अप्रतिम है
सदाचार वेलाओं के माध्यम से प्राप्त विचारों को यदि हम व्यवहार में लाते हैं तो निश्चित रूप से हमारी सफलता निश्चित है
आचार्य जी का प्रयास है कि हमें परमात्मतत्त्व की अनुभूति हो बाधाओं से बिना भयभीत हुए हम अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित रखें
हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
राष्ट्र -हित समाज -हित हेतु निःस्वार्थ भाव से हमारा समर्पण हो
हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत न करें आदर्श चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय विचार व्यवहार में रत हों कर्तव्य पालन में दोषों को परस्पर संवाद करते हुए दूर करें
शक्ति का अर्जन कर चलते रहें चलते रहें हमारे अन्दर मूल विषयों के तत्त्व को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न करना ही सदाचार है
आज की वेला में आचार्य जी उपनिषदों की महत्ता बता रहे हैं
औपनिषदिक शिक्षा यही बताती है कि हम प्रपंचों से दूर रहकर संसार में रहें
कमल के पत्ते की तरह संसार में रहना

स जीवति यशो यस्य कीर्तिर्यस्य स जीवति।
अयशोऽकीर्तिसंयुक्तः जीवन्नपि मृतोपमः॥

केवल वही व्यक्ति जीवित कहलाता है जिसने यश प्रतिष्ठा कीर्ति प्राप्त की हो। अप्रतिष्ठित और बदनाम व्यक्ति जीवित रहते हुए भी मृतक के समान है
संसार में जिस व्यक्ति का अधिक से अधिक लोग सम्मान करें यशस्विता उसी को प्राप्त है

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ॥
क्षुरस्य धारा की तरह संसार में चलना है
और
सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्। सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृता:॥ 18-48॥ (गीता )
धुएं को सहते हुए उस अग्नि का हम सेवन करें

उपनिषदों में इसी प्रकार की शिक्षा दी गई है इनमें उपमान विधि सूत्र विधि प्रश्नोत्तर विधि आदि है
क्या सही है क्या गलत है इसका विवेचन है
आचार्य जी ने नचिकेता की ओर संकेत करते हुए आत्म संलाप विधि समझाई
स्वामी विवेकानन्द ने बहुत अध्ययन किया उसे पचाया और फिर उसे अपने ढंग से प्रस्तुत किया वे विदेश में जाकर कहते हैं
(उपनिषदों पर दिए गए भाषण के कुछ अंश आचार्य जी ने सुनाए)
उपनिषदों की भाषा और भाव की गति सरल है उनमें जटिलता नहीं है अवनति के चिह्न नहीं हैं
उपनिषद् कहते हैं हे मानव तेजस्वी बनो वीर्यवान् बनो दुर्बलता को त्यागो
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी की वकालत की चर्चा क्यों की भैया पंकज श्रीवास्तव जी भैया पुनीत जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

29.1.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 29 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९१४ वां* सार -संक्षेप 1 राक्षसों का शत्रु

 निराशा हो न क्षणभर और आशा की न आशा हो

परम पुरुषार्थमय विश्वास की आजन्म भाषा हो
रहे हे देव! मेरा सत् समर्पण राष्ट्र -हित में ही
न अपने स्वार्थ हित आजन्म कोई भी पिपासा हो l


प्रस्तुत है हुण्ड -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 29 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९१४ वां* सार -संक्षेप
1 राक्षसों का शत्रु



आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में

स्वयं सदाचार का पालन करते हुए नित्य आचार्य जी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है
हमें लक्ष्य करके उत्साहित प्रेरित करने का यह कार्य अप्रतिम है
सदाचार वेलाओं के माध्यम से प्राप्त विचारों को यदि हम व्यवहार में लाते हैं तो निश्चित रूप से हम सफल होंगे
आचार्य जी का प्रयास है कि हमें अपने अन्दर स्थित विग्रह का ज्ञान हो
मन और बुद्धि का सामञ्जस्य बैठाकर हमारे अन्दर भाव उत्पन्न हों हम यज्ञमयी संस्कृति वाले

अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।

यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।3.14।।

भारत देश में जन्मे हैं तो सौभाग्यशाली होने की अनुभूति करें
बाधाओं की उपेक्षा करते हुए हम अपने लक्ष्य को साधें
हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
राष्ट्र -हित समाज -हित में निःस्वार्थ भाव से हम अपना सत् समर्पण करें
हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत न करें और भय भ्रम से दूर रहते हुए पुरुषार्थ करें

हमें सुख सुविधा सम्मान की चाह न हो ऐसा उद्घोष जब हमारे अन्दर से किसी समय होवे वे क्षण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं यह परमात्मा की अद्भुत लीला है


निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका॥
जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥6॥

रसपूर्ण हो या अत्यन्त फीकी, अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती?

जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हि जल पाई॥
सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई॥7

किन्तु जो दूसरे की रचना को सुनकर (दूसरे की भाषा भाव कार्य व्यवहार आचरण से प्रभावित होकर) हर्षित होते हैं, ऐसे अच्छे व्यक्ति संसार में बहुत नहीं हैं और जो अल्प मात्रा में हैं वे पुरुष -रत्न हैं
अपनी चीज सभी को अच्छी लगती है यही अपनापन जब तात्विक रूप में पहुंच जाता है तो हम आत्म्बोधोत्सव मनाने लगते हैं
भाग छोट अभिलाषु बड़ करउँ एक बिस्वास।
पैहहिं सुख सुनि सुजन सब खल करिहहिं उपहास॥8॥

मेरा भाग्य बहुत क्षुद्र है और इच्छा बहुत बड़ी , फिर भी मुझे पूर्ण विश्वास है कि इसे सुनकर सभी सज्जन सुख प्राप्त करेंगे और दुष्ट हँसी उड़ावेंगे॥


बड़ा कमज़ोर है आदमी,
अभी लाखों हैं इस में कमी

फिर भी परमात्ना में वह क्षमता है कि कमजोर लोगों से बड़ा से बड़ा काम करा लेता है

पर तू जो खड़ा, है दयालु बड़ा,
तेरी कृपा से धरती थमी

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि अद्वैत जगत का अमूल्य रत्न है परिव्राजकाचार्य स्वामी शंकरानन्द द्वारा रचित आत्मपुराण
और
उपनिषदों का लैटिन में अनुवाद किया महान फ्रांसीसी भाषाशास्त्री और प्राच्यविद् अब्राहम हयासिंथे एंक्वेटिल-डुपेरॉन (1731-1805 ई.) ने
जर्मन दार्शनिक आर्थर शोपेनहावर (1788-1860 ) ने कहा था कि उपनिषद् मानवबुद्धि की सर्वोच्च अभिव्यक्ति हैं
भैया पङ्कज श्रीवास्तव जी को आचार्य जी ने क्या परामर्श दिया दाराशिकोह का उल्लेख क्यों हुआ Oupnekhat क्या है जानने के लिए सुनें

28.1.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 28 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९१३ वां* सार -संक्षेप 1 राक्षसों का शत्रु

 प्रस्तुत है नीलाम्बर -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 28 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण

  *९१३ वां* सार -संक्षेप
 1 राक्षसों का शत्रु


आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में

सदाचार का अर्थ है सत् का आचरण
स्वयं सदाचार का पालन करते हुए विष पीते हुए हमें अमृत प्रदान करने की भावना के साथ नित्य आचार्य जी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है
हमें लक्ष्य करके उत्साहित प्रेरित करने का यह कार्य अप्रतिम है
 विविध विषयों पर आधारित इन वेलाओं का श्रवण हमारे समय का सदुपयोग है
सदाचार वेलाओं के माध्यम से प्राप्त विचारों को यदि हम व्यवहार में लाते हैं तो निश्चित रूप से हम सफल होंगे
 हमें अपने अन्दर बैठे विग्रह का बोध होना चाहिए बाधाओं की उपेक्षा करते हुए अपने लक्ष्य के प्रति जागरूक रहना होगा
हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
चरैवेति चरैवेति
हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत न करें भय भ्रम से दूर रहें रामत्व की अनुभूति करें अपने ग्रंथों को जानें
कुछ समय आनन्दमयी स्थिति में जाने के लिए महापुरुषों की जीवनियां देखें रामचरित मानस का पाठ करें उसमें तत्त्व और कथा दोनों है भागवत् का दशम स्कन्ध देखें स्वाध्याय भी करें
मन में आए भावों पर विचार कर क्रिया करें
मनुष्यत्व की अनुभूति कर मनुष्य के जीवन के लिए हमारे ऋषियों ने बहुत चिन्तन किया
जैसे
बृहदारण्यक उपनिषद: 2/4/5) से

आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्योमैत्रेयात्मनी व अरे दर्शनेन श्रवणेन मत्या विज्ञानेन सर्वमिदं विदितम्।

आत्मा आत्मा है आत्मा परमात्मा का अंश है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया
गृहस्थ आश्रम पर अन्य सारे आश्रम आधारित हैं
गृहस्थ आश्रमी सबके लिए करता है
मां इसका सटीक उदाहरण है
विधि व्यवस्था के अनुसार यदि हम चलते हैं तो सम्मानित होते हैं

मोरेहु कहे न संसय जाही। विधि विपरीत भलाई नाहीं।
 होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढावै साखा


विधि विधान को भारतीय जीवन दर्शन से ही प्राप्त किया जा सकता है अन्यत्र से नहीं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने दक्षिणेश्वर की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

27.1.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 27 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९१२ वां* सार -संक्षेप

 


प्रस्तुत है विष्वद्र्यच् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 27 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
  *९१२ वां* सार -संक्षेप
 1 सर्वग (going everywhere )

आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में

सदाचार का अर्थ है सत् का आचरण
स्वयं सदाचार का पालन करते हुए नित्य आचार्य जी हमारा मार्गदर्शन करते हैं यह हमारा सौभाग्य है
सदाचार वेलाओं के माध्यम से प्राप्त विचारों को यदि हम व्यवहार में लाते हैं तो निश्चित रूप से हम उन्नति करेंगे
हमें आत्मबोध आत्मशोध के लिए कुछ क्षण निकालने होंगे अपने अन्दर बैठे विग्रह को जानना होगा बाधाओं की उपेक्षा करते हुए बदली और घाम का ध्यान न रखते हुए अपने लक्ष्य के प्रति सजग रहना होगा
हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष

साधना कभी न व्यर्थ जाती,चलकर ही मंजिल मिल पाती
चरैवेति चरैवेति
साधना वही है जो किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सततता से परिपालित की जाती है
हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत न करें भय भ्रम से दूर रहें हम अपने शिल्पी हैं इसे जान लें रामत्व की अनुभूति करें
रामो विग्रहवान् धर्मः

हम अपने कर्तव्य का सदैव ध्यान रखें कर्तव्य किसी भी प्रकार का हो सकता है जिस कर्तव्य से हम संयुत हैं उसे पूर्ण करने से यश की भी प्राप्ति होती है
उस कर्तव्य के साथ अनुशासन और व्यवस्था भी संयुत रहती है
किसी भी तरह से करने और व्यवस्थित ढंग से करने में अन्तर है
अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करें

चरन चोंच लोचन रंग्‍यो, चले मराली चाल ।
क्षीर नीर विवरन समय बक उघरत तेहि काल ।।

पैरों, चोंच और ऑंखों को रंगने मात्र से हंस जैसी चाल चलने से बगुला कभी हंस नहीं हो सकता । दूध का दूध और पानी का पानी करने की बात पर बगुले की पोल खुल जाती है । (हंस में यह क्षमता है कि वह दूध और पानी मिला होने पर उसमें से दूध को अलग कर देता है )
देश और समाज हमारे लिए सोचे इसके लिए आवश्यक है हम भी देश और समाज के लिए सोचें
जब शिक्षा केवल परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए और अंक नौकरी प्राप्त करने के लिए होते हैं तो समझ लेना चाहिए समाज में लकवा मार रहा है
आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम एक दूसरे पर खीजें नहीं अपने कर्तव्य को ध्यान में रखें

26.1.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 26 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९११ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है पलंकष -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 26 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण

  *९११ वां* सार -संक्षेप
 1 राक्षसों का शत्रु


सदाचार वेला के माध्यम से प्राप्त विचारों, जैसे अपने भीतर बैठी मूर्ति के प्रति हम अनजान न रहें आत्मबोधोत्सव मनाते रहें गीत सजाने को अन्तर्मन की मधुरिम आवाज चाहिए अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए पूरी तरह उत्साहित रहें मनोयोग से कोई भी काम करें अनुभूति करें कि मैं राम हूं , को समाज में प्रचारित और प्रसारित करने के अनेक उदाहरण सामने आ रहे हैं,जैसे बैच 1988 के भैया रवीन्द्र गुप्त जी ( समाजसेवी और पेट्रोल पंप स्वामी, राठ, हमीरपुर ) ने एक वैचारिक गोष्ठी में कहा
*हम कभी गुलाम नहीं रहे*

यह एक अत्यन्त उत्साहपूर्ण कार्य का उदाहरण है जो सदाचारवेलाओं की सफलता को प्रमाणित कर रहा है विचार व्यवहार में आ रहे हैं


गुलाम वे होते हैं जो मन से बुझ जाते हैं
लेकिन बहुत से अत्याचार सहने के बाद भी जिनमें किसी भी शैली में किसी भी विश्वास का आश्रय लेकर हिन्दुत्व का भाव विचार बना हुआ था वे कभी गुलाम नहीं रहे

भारत के कण कण में अंकित , गौरव गान हमारा है !
हम हिंदू ऋषियों के वंशज , हिंदुस्तान हमारा है !!
हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत कर जाएं इसके लिए हमारी आस्था पर प्रहार किया गया हमारे पूजास्थलों को नष्ट किया गया हमारे साहित्य को नष्ट किया गया
हम अपने तत्त्व सत्त्व को कैसे भूल सकते हैं तभी तो राममन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा के समाचार से पूरा देश रामात्मक हो गया इसके पीछे की साधना भी अद्भुत है अवर्णनीय है

आत्मबोध जाग्रत करती ये पंक्तियां देखिये


केवल प्राणों का परिरक्षण जीवन नहीं हुआ करता है
जीवन जीने को दुनिया में अनगिन सुख सुर साज चाहिए......

यह जीवन रचनाकर्ता की एक अनोखी अमर कहानी
इसमें रोज बिगड़ते बनते हैं दुनिया के राजा रानी
जीवन सुख जीवन ही दुःख है जीवन ही है सोना चांदी
जीवन ही आबाद बस्तियां जीवन ही जग की बरबादी
जीवन तीन अक्षरों का अद्भुत अनुबन्ध हुआ करता है
केवल प्राणों का..


हकीकत राय (१७१९–१७३४) जिसने हिन्दू धर्म के अपमान का प्रतिकार किया और जबरन इस्लाम स्वीकारने के स्थान पर मौत को गले लगा लिया

उनकी पत्नी भी उसकी मृत्यु के साथ सती हो गई ,माता पिता ने पुत्र के वियोग में प्राण त्याग दिए । धर्म की रक्षा हेतु इस बालक का बलिदान सदैव स्मरणीय रहेगा

वीर हकीकत राय का जन्म १७१९ में पंजाब के सियालकोट नगर में हुआ था। वे अपने व्यापारी पिता भागमल के इकलौते पुत्र थे

हिन्दू जीवन रामात्मक जीवन है

रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥

नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥

लेकिन जब यह भाव मन में रहता है


सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥
तब दुविधा नहीं रहती है
भाव से भरा व्यक्ति जब आगे आगे चलता है तो उत्साह उसके पीछे पीछे चलता है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उन्नाव विद्यालय के किस कार्यक्रम की चर्चा की भैया नीरज जी ने कैसा गुरुकुल प्रारम्भ किया है लखनऊ की बैठक का वार्षिक अधिवेशन से क्या सम्बन्ध है महाराष्ट्र में सर का क्या अर्थ है जानने के लिए सुनें