17.7.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 17 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण १४४९ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  17 जुलाई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४४९ वां सार -संक्षेप


विधि का विधान अर्थात् वह व्यवस्था, जो हम माया से लिपटे व्यक्तियों के प्रयासों से परे होती है। यह नियति के रूप में कार्य करती है। जीवन में जो कुछ घटता है, उसका एक कारण और पूर्व विधान होता है। विधि का विधान पूर्वकर्मों, समय और भाग्य की सम्मिलित संकल्पना को दर्शाता है। मनुष्य केवल प्रयास कर सकता है, परिणाम विधि के विधान के अधीन होता है। इसे दैव या प्रारब्ध भी कहा जाता है। जो  कुछ विधि का विधान हमारे साथ है  उसे स्वीकारें वह विधि का विधान ऐश्वर्यवान् अर्थात् जिसमें कोई कमी नहीं है ऐसे भगवान् की कृपा से परिशोधित संशोधित अनुकूल किया जा सकता है अतः भगवान् पर विश्वास बनाए रखें



भगवान् राम की अनन्त करुणा, कृपाशीलता और भक्तवत्सलता का अत्यन्त भावपूर्ण चित्रण करती ये पंक्तियां देखिए

मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥

राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो। निज दिसि देखि दयानिधि पोसो॥


मेरी सभी प्रकार से सुध लेने वाला वही है, जिसकी कृपा की कोई सीमा नहीं है।  

राम जैसे श्रेष्ठ स्वामी हैं और मैं ऐसा कुसेवक हूँ, परन्तु वह करुणा के सागर हैं, इसलिए अपनी दृष्टि से मुझे भी पालते हैं।


राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल।

जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल॥ 27॥


राम नाम नृसिंह भगवान् है, कलियुग हिरण्यकशिपु है और जप करनेवाले जन प्रह्लाद के समान हैं, यह राम नाम देवताओं के शत्रु को मारकर जप करने वालों की रक्षा करेगा॥ 27॥

हम प्रह्लाद के समान जापक जन हैं 

तुलसीदास जी के साथ जो विधि का विधान था वह भगवान् राम की कृपा से अनुकूल हो गया 

हम लोगों ने भी भगवान् राम की कृपा से एक संगठन के माध्यम से समाज सेवा और राष्ट्र सेवा का बीड़ा उठाया है उस पर ध्यान बनाए रखें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी, भैया मोहन जी की पुत्री का नाम क्यों लिया  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक विजय कौशल जी, प्रेम भूषण जी, रज्जू भैया, ईश्वर चन्द्र जी का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें