6.12.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 6 दिसंबर 2025 का उपदेश *१५९१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 6 दिसंबर 2025 का उपदेश

  *१५९१ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ७३

अपने शरीर अपने परिवार का ध्यान रखते हुए समाज और राष्ट्र के हित हेतु कार्य करें


प्रभातकालीन यह अद्भुत वेला केवल एक नियमित दिनचर्या का भाग नहीं, अपितु गम्भीर चिन्तन का अमूल्य अवसर है ये क्षण हमारे जीवन की जटिलताओं व समस्याओं को सुलझाने हेतु अन्तःप्रेरणा देने के लिए हैं हमारा अन्धकार दूर करने के लिए हैं संसार के रहस्य को जानने का प्रयास हैं। यह वेला हमारे भीतर सदाचारमय, सात्त्विक एवं राष्ट्र-निष्ठ विचारों का सिंचन करती है ताकि हमारा व्यक्तित्व आत्मोन्मुख न रहकर समाजोन्मुख बने। ऐसे विचार जब हमारे आचरण में उतरते हैं, तब हमारा जीवन राष्ट्र और समाज के लिए उपयोगी, प्रेरणादायी एवं संस्कारमय बनता है।


सनातन जीवन-दृष्टि हमें यह सिखाती है कि मनुष्य को अपने भीतर की दिव्यता को पहचानते हुए सक्रिय और जागरूक जीवन जीना चाहिए।सनातन धर्म यह नहीं कहता कि मनुष्य एकांगी जीवन जिए, केवल तप-जप करता रहे और संसार की समस्याओं से मुँह मोड़ ले। यदि हम केवल ध्यान-साधना में लगे रहें और दुष्ट आक्रमण करते रहें, तो यह धर्म के विरुद्ध है।

यह धर्म संतुलित जीवन का आह्वान करता है जिसमें आध्यात्मिक साधना भी हो और सामाजिक सक्रियता भी। यही इसकी युगानुकूल विशेषता और सार्वकालिक प्रासंगिकता है।भगवान् राम इसी शौर्य -प्रमंडित अध्यात्म की प्रासंगिकता को सिद्ध करते हैं वे पुरुषत्व को धारण कर नर -लीला करते हुए पुरुषोत्तम हो गये वे परिश्रम, विक्रम और शील  से संयुत शौर्य का स्वर हैं वे तो असंख्य सद्गुणों का निकर हैं


इसके अतिरिक्त प्रभाकर जी और शास्त्री जी का उल्लेख क्यों हुआ, मानव धर्म और सनातन धर्म एक कैसे हैं, सावित्री मन्त्र क्या है जानने के लिए सुनें