28.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है भ्राजिष्णु आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28/02/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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कल प्रखर देशभक्त चन्द्रशेखर 'आजाद (२३ जुलाई १९०६ — २७ फ़रवरी १९३१) का बलिदान दिवस था आचार्य जी ने उनके ऊपर एक नाटक लिखा था जिसका मंचन सन् 1970 के आसपास ग्राम बदरका में हुआ था आचार्य जी वहां भैया राजेश मल्होत्रा भैया राजेश पांडेय (बैच 1975) आदि को लेकर गये थे


आचार्य जी ने उनके ऊपर लिखी कवि धर्मपाल अवस्थी की क्रान्ति -महारथी की चर्चा करते हुए  उनका जीवन पढ़ने  की सलाह दी


कल साप्ताहिक विमर्श में गांधी जी की प्रासंगिकता आदि की चर्चा में आचार्य जी ने हम लोगों को परामर्श दिया कि अतीत से संदेश तो लें कि कहां कहां गलतियां हुईं लेकिन भविष्य के लिये हमें वर्तमान का तानाबाना बुनना चाहिये


आचार्य जी ने  परामर्श दिया कि हम लोग बच्चों पर ध्यान दें उनमें संस्कार विकसित करें

तब पीढ़ी का निर्माण होता है


गीता में

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।


अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।


धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।


का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने कहा धर्म का संस्थापन चिन्तन और चर्चा का विषय है

मानव -धर्म, सृष्टि -धर्म क्या है? आदि जानें

परमात्मा भी धर्म से बंधा हुआ है


किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम।


अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते।।8.1।।

अर्जुन ने पूछा -वह ब्रह्म क्या है,अध्यात्म क्या है? और कर्म क्या है? अधिभूत नाम से और  अधिदैव नाम से क्या कहा गया है?

इन सबका उत्तर देते हुए

भगवान् कृष्ण अर्जुन को विश्वास दिलाते हैं कि



यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।


तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्।।10.41।।



महाप्रभु वल्लभाचार्य, महाप्रभु चैतन्य की ओर संकेत करते हुए आचार्य जी ने कहा कि ये सब हमारा इतिहास है इतिहास केवल गांधी जी तक सीमित नहीं है

इस इतिहास को धर्म पुराण मानकर त्याग देंगे तो हमारा विकास अवरुद्ध हो जायेगा


हमें इनका अध्ययन करना चाहिये और अपने विचार का प्रसार भी करना चाहिये


यशस्वी होने पर भी हम लोग तपस्विता न त्यागें इसका सदैव ध्यान रखें

27.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 महाप्रभु वल्लभाचार्य के सम्मान में भारत सरकार ने सन 1977 में एक रुपये मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया था।


प्रस्तुत है सुतुस् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27/02/2022

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आचार्य जी ने रशिया यूक्रेन युद्ध की चर्चा करते हुए बताया कि मनुष्य का स्वभाव है कि उसे भ्रम बना रहता है कि वह अनन्तकाल तक सुख का उपभोग कर सकता है और भय यह सताता है कि ऐसा होगा या नहीं


इसी भ्रम में वो ऐसे दुर्धर्ष काम कर जाता है कि यदि उन पर वह चिन्तन करे तो पश्चात्ताप के आंसू ही बहायेगा


हम अमरत्व की कल्पना और चिन्तन करते हुए बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं


हमारा वैदिक पौराणिक आर्ष साहित्य उच्च कोटि का है


आचार्य जी ने एम ए कक्षा में विशेष कवि के रूप में सूरदास को चुना


चित्रकूट के स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज की तरह विचक्षुस् होने के बाद भी सूरदास अद्भुत प्रतिभाशाली थे


वो निर्गुण ब्रह्म की उपासना करते थे बहुत अच्छे गायक थे   उनके समकालीन (अकबर का काल )रायपुर के निकट चम्पारण्य में जन्मे भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधारस्तंभ एवं पुष्टिमार्ग  के प्रणेता वल्लभाचार्य कालान्तर में उनके गुरु हो गये  वल्लभाचार्य के कहने पर सूरदास नित्य एक नया पद आरती के समय गाते थे 


वल्लभाचार्य का प्रादुर्भाव विक्रम संवत् 1535, वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण श्रीलक्ष्मणभट्टजी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से हुआ

उन्हें वैश्वानरावतार (अग्नि का अवतार) कहा गया है।


विक्रम संवत् 1587, आषाढ शुक्ल तृतीया (सन 1531) को उन्होंने अलौकिक रीति से इहलीला संवरण कर सदेह प्रयाण किया, जिसे 'आसुरव्यामोह लीला' कहा जाता है। वैष्णव समुदाय उनका चिरऋणी है।


निम्नांकित उनके ग्रंथों को षोडश ग्रंथ के नाम से जाना जाता है

१. यमुनाष्टक

२. बालबोध

३. सिद्धान्त मुक्तावली

४. पुष्टिप्रवाहमर्यादाभेद

५. सिद्धान्तरहस्य

६. नवरत्नस्तोत्र

७. अन्तःकरणप्रबोध

८. विवेकधैर्याश्रय

९. श्रीकृष्णाश्रय

१०. चतुःश्लोकी

११. भक्तिवर्धिनी

१२. जलभेद

१३. पंचपद्यानि

१४. संन्यासनिर्णय

१५. निरोधलक्षण

१६. सेवाफल


आपका शुद्धाद्वैत का प्रतिपादक प्रधान दार्शनिक ग्रन्थ है - अणुभाष्य [ब्रह्मसूत्र भाष्य अथवा उत्तरमीमांसा]


(https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF से साभार )


हमें स्थूल पढ़ाया गया जिसके कारण हम इस अद्भुत साहित्य से दूर होते गये

अब समय है कि इस दिशा में भी हम प्रयासरत हों

26.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है चित्तज्ञ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26/02/2022

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इस लोक में माता पिता का संरक्षण वास्तव में बहुत  बड़ा संरक्षण है l कल भैया अभय गुप्त जी बैच 1977 की माता जी के निधन का समाचार पाकर हम लोगों को अत्यन्त दुःख हुआ

मां की मृत्यु पर उस व्यक्ति के दुःख का वर्णन नहीं किया जा सकता जिसने उसकी कोख से जन्म लिया हो उसकी गोद के संपर्क में रहा हो

ममता,दुलार, प्यार से आप्लावित रहा हो और जिन्हें पीड़ा नहीं हो तो वो पाषाण हैं वो मनुष्य नहीं हैं

मात्र प्राणी हो तो वो संबंध भूल जाता है मनुष्य संबंध नहीं भूलता और जो मनुष्य जितने अधिक संबंधो का निर्वाह कर ले जाता है उसका मनुष्यत्व उतना ही सनाथ हो जाता है

इस तरह के दुःखों के निवारण के लिये हमारे यहां आचार व्यवहार की विधि व्यवस्था बताई गई है


हमारे हिन्दू धर्म की जीवनशैली की अमरता है कि हम जराजीर्ण होकर इस शरीर का त्याग कर देते हैं


वासांसि जीर्णानि यथा विहाय


नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।


तथा शरीराणि विहाय जीर्णा


न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।


हमारी देह में देही अवस्थित है और उस देही की अनुभूति होने पर हम देह से उसी तरह प्रेम करते हैं जिस तरह हम अपने घर, वस्तु आदि से प्रेम करते हैं


अपने सनातन धर्म के नियमों का पालन करते हुए अन्तिम संस्कार आदि करें

अभी जो चुनाव चल रहे हैं उसमें हम लोग चाहते हैं कि वह विचार चुनकर आये जो भारतीय विचार दर्शन है


दीनदयाल जी व्यक्ति के चुनाव के पक्षधर नहीं थे

आचार्य जी ने देशाचार, लोकाचार और सदाचारी जीवन को परिभाषित किया

हमें सब प्रकार के सत् का आभास है तो आचरण उसके अनुकूल करेंगे

हमारा आत्म एक सत्य है अनन्त ज्ञान सत्य है


आचार्य जी ने पद्मपुराण गरुण पुराण के छन्दों का उल्लेख करते हुए सत्य को परिभाषित किया

आचार्य जी अपने अभिभावकत्व का निर्वाह आज भी इसलिये कर रहे हैं ताकि हम लोग भटक न जायें

25.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 .प्रस्तुत है क्षेमिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25/02/2022

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आचार्य जी ने रशिया यूक्रेन विवाद की चर्चा में बताया कि  भारत का अमरत्व झलकता है

आचार्य जी के उन्नाव वाले घर में कभी मृतप्राय हो गया कटहल का पेड़ आज बहुत फलफूल रहा है

अमरत्व सर्वत्र दिखाई दे सकता है

कई प्रकार की वनस्पतियां हैं जिनमें अमरत्व दिखाई देता है

महाभारत अठारह पर्वों में लिखा एक महाकाव्य है इसे पंचम वेद, पुराण भी कहा जाता है


इसमें ईश्वरवाद धर्म दर्शन राजनीति विधि व्यवस्था न्याय है इस ज्ञानमय कोश में पृथ्वी की उत्पत्ति का भी वर्णन है

महाभारत में विदुर नीति भी है अद्भुत ग्रंथ है महाभारत

इन्हीं सब को देखते हुए इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं लगती कि भारत एक अद्भुत देश है जो 

भविष्य की चिन्ता करता हुआ आदिकालीन व्यवस्थाओं का मन्थन करता हुआ वर्तमान में जीवित रहने की शिक्षा देता है


आत्म का ज्ञान होने पर ही हम आत्मविश्वासी हो सकते हैं मन और आत्मा के भेद को शरीर और मन के संबंधों को मन बुद्धि चित्त अहंकार को जानने पर हम व्याकुल नहीं रह सकते

हम लोग आत्मवादी हैं मत्स्यावतार  कूर्मावतार की चर्चा में आचार्य जी ने बताया कि मनुष्य ही तो पहले से  हैं

मानवीय चिन्तन विध्वंस भी करता है इस जगह पर मानव अबोध और दुष्ट दिखता है इससे इतर हम शिष्ट विचारशील संयमी चिन्तनशील स्वाध्यायी हैं


राष्ट्र के माध्यम से परमात्मा का चिन्तन करते हैं

24.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 हितं सन्निहितं तत् साहित्यम् अर्थात् साहित्य वही है, जिसमें मानव का हित सन्निहित हो। पाश्चात्य विद्वान विलियम हेनरी हडसन के अनुसार - ‘साहित्य मूलतः भाषा के माध्यम से जीवन की अभिव्यक्ति है'


प्रस्तुत है गुपिल आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24/02/2022

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चुनाव की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने कहा पार्टी कोई भी हो इन तथाकथित जनप्रतिनिधियों की भावनाएं पवित्र नहीं हैं और वे केवल धन और यश की ही कामना करते हैं

यशस्विता से दूर होना बहुत कठिन तप है अच्छे अच्छे ऋषि ढह जाते हैं

यश सभी को अच्छा लगता है ऐसे महापुरुष भी हुए हैं जिनको यश सुनने की चाह नहीं रही जैसे दीनदयाल जी, गुरु जी, अशोक सिंघल जी


आचार्य जी चाहते हैं कि हम ढपोरशंखी नागरिक न बनें जिनका चिन्तनपक्ष बहुत कमजोर होता है

इसके लिये आचार्य जी ने भागवत से एक छंद सुनाया


त्वन्माययाद्धा जन ईश खण्डितो यदन्यदाशास्त ऋतात्मनोऽबुधः ।

यथा चरेद्बालहितं पिता स्वयं तथा त्वमेवार्हसि नः समीहितुम् ॥

4/20/31

.और इसकी विस्तृत व्याख्या की कि हमारे हित का क्या है 

आपने बिस्कुट से संबन्धित एक रोचक प्रसंग भी सुनाया

और बालकांड से 


जेहि बिधि होइहि परम हित नारद सुनहु तुम्हार।

सोइ हम करब न आन कछु बचन न मृषा हमार॥ 132॥

की व्याख्या की 

(नारद जी जब अपने लिये सुन्दर रूप मांगने गये)


संसार के हर क्षेत्र में फैले विकारों को अपने विचारों से कैसे दूर कर सकते हैं अपने को भी शुद्ध करते हुए इसका प्रयास करें


हर क्षेत्र में सदाचार की आवश्यकता है


स्वयं से लेकर अपने परिवेश तक प्रयासपूर्वक सत् आचरण की चेष्टा करें तो हमारे विचार उदात्त और सुस्पष्ट होंगे

अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन डायरी लेखन आदि करें

23.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है मितशायिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23/02/2022

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के चौथे चरण में आज उन्नाव की छह विधानसभा सीटों के लिये मतदान होगा  इस चुनाव की चर्चा करते हुए बीच में आचार्य जी ने बताया कि पहले गांव प्रातःकाल जल्दी जाग जाता था आज कल ऐसा नहीं है


हमें अन्धकार को दूर करने का प्रयास करना चाहिये हम पढ़े लिखे लोगों की मानसिकता इस प्रकार की बन गई है कि हम लोग विचार तो बहुत करते हैं लेकिन जब कार्य में उतरने की बात आती है तो बहुत सारे अवरोध दिखने लगते हैं


और हम कदम उठाने की हिम्मत तक नहीं करते


ऐसे बहुत से प्रकरण हैं जो हमें कुंठित करते हैं जैसे हम चाहते हैं कि जिन्हें हम वोट डालने के लिये कहें वो वोट डालें लेकिन वो वोट डालने ही न जायें

लेकिन आप प्रयास करते रहें परमात्मा का सदैव ध्यान रहे निराशा आये तो अपने को ही समझायें


सोने से पहले चिन्तन विचार कर डायरी लेखन करिये इससे आत्मशक्ति विकसित होगी इससे आप जवाब देना सीख जायेंगे समय पर कैसे व्यवस्थाएं करें इसे भी सीख जाते हैं


दूसरे के भावों को भांप लेने पर हम यह पता कर लेते हैं कि यह समूह किधर जायेगा यह व्यक्ति किधर जायेगा हम अपनी तैयारी कर लेते हैं दूसरे के भरोसे नहीं रहते उसके द्वारा धोखा देने पर अपनी ऊर्जा का क्षरण न करें


अपनी उम्र की गणना न करें किसी भी उम्र में कुछ भी किया जा सकता है


हमें ध्यान धारणा चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन और व्यावहारिक रूप से भी कुछ करना चाहिये


अभी भारत को बहुत अधिक विकसित होने की आवश्यकता है


गौमाताओं की दुर्दशा की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया कि वो थकान की परवाह न करते हुए अभी भी इस बात के लिये दृढ़ हैं कि भारत माता के लिये वो कुछ कर सकें


भारत का स्वरूप किस प्रकार आनन्दमय होगा इस ओर ध्यान दें वैश्विक संकटों में इस समय भारतवर्ष को पूछा जा रहा है यह अच्छी बात है

22.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है परिकाङ्क्षित आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22/02/2022

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आचार्य जी ने बताया कि भैया जीतेन्द्र सिंह त्यागी (बैच 1988) आचार्य जी से मिलने के लिये सरौंहां पहुंच रहे हैं


परमात्मा की लीला अपार है सृष्टि संचालन अनवरत चलता रहता है l मनुष्य का स्वभाव है जो उसके भावों के साथ संयुत हो जाता है वह उसका प्रिय है और जो संयुत नहीं हो पाता वह उसका अप्रिय हो जाता है


दार्शनिक सिद्धान्त है कि यह संसार नाम रूपात्मक है और व्यावहारिक बात है कि मनुष्य का नाम से  भी लगाव हो जाता है और रूप से भी


बाल कांड में


समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी॥

नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी

समझने में नाम व नामी  एक जैसे हैं लेकिन दोनों में स्वामी और सेवक के समान प्रेम है  प्रभु श्रीराम अपने 'राम' नाम का ही अनुगमन करते हैं नाम और रूप दोनों ईश्वर की उपाधि हैं, ये  अनिर्वचनीय और अनादि हैं  शुद्ध  बुद्धि से ही इनका दिव्य अविनाशी रूप जानने में आता है


को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू॥

देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना॥

नाम और रूप में कौन बड़ा है, कौन छोटा, यह कहना तो अपराध है। इनके गुणों का तारतम्य सुनकर साधु पुरुष खुद ही समझ लेंगे। रूप नाम के अधीन दिखाई देते हैं, नाम के बिना रूप का ज्ञान नहीं हो सकता


इस नाम रूपात्मक जगत् में हमारे देश का नाम भारत है


उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् | वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ||


सागर के उत्तर में एवं हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसका नाम भारत  है और उसकी सन्तति  को भारती कहते हैं।


विष्णु पुराण २.३.१


भारत की संस्कृति अति प्राचीन है


हिमालय के आँगन में उसे, किरणों का दे उपहार उषा ने हँस अभिनंदन किया, और पहनाया हीरक हार।


जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक व्योमतम पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक।


हम और कहीं से नहीं आये थे यह भ्रामक बात है कि हम बाहर से आये थे हमें सूझबूझ के साथ अध्ययन करने की आवश्यकता है


हमारे साहित्य की परंपरा सुदर्शन चक्र जी की पुस्तक में देखी जा सकती है

महाभारत में चीन से भी युद्ध करने योद्धा आये थे 

  पांडवों के यज्ञों में बहुत दूर दूर से लोग उपहार देने आये थे


भारत के तो टीले भी पवित्र माने जाते हैं भारतवर्ष के चिन्तन में जड़ता नहीं है पूरे भारत में देवस्थान हैं हम कौवे को भी पूजते हैं


हम अपनी मातृभूमि की पूजा  करते हैं स्वामी रामतीर्थ अपने को बादशाह राम कहते थे भारत की भावना के साथ हमारी भावनाएं संयुत हो जाती हैं तो हम भारत ही हो जाते हैं

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम भारत से प्रेम करना सीखें

देश के प्रति प्रेम की पराकाष्ठा हिलोरे लेने लगती है तो हमारा भाव हो जाता है कि देश के प्रति जिसका भाव दूषित हो उसको सबक सिखाएं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बैलगाड़ी से संबन्धित एक प्रसंग बताया

21.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

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कल ZOOM पर आयोजित युगभारती साप्ताहिक विमर्श बैठक के अन्तर्गत विषय था अखंड भारत


जिसमें आचार्य जी के अतिरिक्त भैया विवेक भागवत भैया आशीष जोग भैया आशुतोष कर्ण भैया मनीष कृष्णा ने अपने विचार रखे

अखंड भारत की परिकल्पना करते समय एक विराट् चित्र हमारे सामने प्रस्तुत होता है हिन्दू धर्म कोश में भारत का विस्तार से विवरण है और पौराणिक ग्रंथों में भी भारत वर्ष की महिमा, स्वरूप,स्थिति और उसमें निवास करने वाले लोगों का जीवन बहुत सुकून देने वाला है उस भारत वर्ष का भाव जिनके मन में है वे इसे भोग भूमि और एक टुकड़ा  नहीं समझते भाव भूमि समझते हैं

जहां से  भावभूमि की समझदारी प्रारम्भ होती है अध्यात्म का उद्भव वही है


सारा संसार शान्ति और सुख के साथ जीवन जीने का प्रयत्न करता है


भारत भूमि ने यहां के ऋषियों में यह भाव उत्पन्न किया कि मनुष्य के लिये चार पुरुषार्थ हैं धर्म अर्थ काम मोक्ष

धर्म का अर्थ बताते हुए आचार्य जी ने कहा किराये के मकान से अपने मकान तक जाने की प्रक्रिया ही मोक्ष है


वासांसि जीर्णानि यथा विहाय


नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।


तथा शरीराणि विहाय जीर्णा


न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।


परा अपरा का ज्ञान मनुष्य को सुकून देने का आधार बन जाता है


और यह सब भारत भूमि में उद्भूत हुआ है विकसित हुआ है l यहां के लोग अमरत्व की उपासना इस परिवर्तनशील शरीर में ही करते रहें हैं


इसलिये भारतवर्ष हमारा उपास्य है हम इसके उपासक हैं हम खंडित मूर्ति की पूजा नहीं करते है पूर्ण मूर्ति हमारे मन मस्तिष्क में विराजमान रहती है


भारतवर्ष की अखंडता का यही भाव हमारे मन में रहता है रहना चाहिये इसीलिये हमें एक अखंड भारत का चित्र लगाना चाहिये


शरणागत की रक्षा की है मैंने अपना जीवन देकर

ये भाव भाषा में परिवर्तित होकर व्यवहार में आते हैं तब अखंड भारत की परिकल्पना अपने जीवन को आनन्द देती है  और अपने कार्य को उत्साह देती है


राजनीति में अशुद्धता की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया कि दीनदयाल जी   विचार को मत (VOTE ) देने के पक्षधर थे


लेकिन इस उथल पुथल के दौर में हम अपनी ज्योति जलाये रखें ऊर्जा का क्षरण न करें

20.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 यह संसार बहुत अद्भुत है इसकी अद्भुतता का अनुभव करते हुए जिसने इस अद्भुत संसार की रचना की है हमारे अन्दर उसके प्रति यदि जिज्ञासा है तो हम मोक्ष की अद्भुत अवस्था पाने की ओर चल देते हैं



प्रस्तुत है परिरक्षक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20/02/2022

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आचार्य जी ने आज सबसे पहले लोकतन्त्र के प्रपंच की चर्चा की


हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष


तो हमें राजनीति धर्मनीति समाजनीति और व्यक्तिनीति में यही लक्ष्य दिखाई देता है

दूसरी ओर समाज में विकार वाले विचार भी घूम रहे हैं

इन विकारों में धर्म इतना उलझ गया कि भले लोग भी धर्म से बैर भाव रखते हैं धर्म अर्थात् कर्तव्य का बोध तो हमें होना ही चाहिये


हमें आत्म चिन्तन करते हुए यह अनुभव होना चाहिये कि हम विशेष हैं प्रवाह -पतित नहीं हैं


दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥

सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥1॥

चारिउ चरन धर्म जग माहीं। पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं॥

राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी॥2॥


अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥

नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना॥


सब निर्दंभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुनी॥

सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी॥4॥


का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि बीज कभी मरता नहीं है यह श्रुति सिद्धान्त है

या तो अच्छाई विकसित होने लगती है या बुराई विकसित होने लगती है


यदि हमारा उठना जागना और लक्ष्य सुस्पष्ट हैं तो हमें आनन्दमय भावों में रहते हुए संसार सागर को तैरने में पार करने में आनन्द का अनुभव होगा ही

19.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 समय नहीं विचार का

यही समय प्रहार का,

सभी उठें कमर कसें

कि, एक भाव में बसें ,

दिखेगा यह कि शौर्य शक्ति का उजास हो रहा ।


प्रस्तुत है यतिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19/02/2022

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हमें अपने नाम से लगाव हो जाता है यह संसार का नाम रूपात्मक संबन्ध है , दीनदयाल जी ने एक संघ शिक्षा वर्ग OTC में नाम पर ही बौद्धिक दिया था


जागते सोते नाम का रूप से संबन्ध हो जाता है यह मनुष्य जीवन के लिये परमात्मा की विचित्र लीला है  परमात्मा तो इस तरह की बहुत सी लीलाएं करता है


यह नित्य का सदाचार संप्रेषण अपने भाव जगत, प्राणिक ऊर्जा,चैतन्य, विचारों को परिमार्जित करता चलता है

अथर्ववेद का उपवेद है आयुर्वेद


हिताहितं सुखं दुःखं आयुस्तस्य हिताहितम्।


मानं च तच्च यत्रोक्तां आयुर्वेदः स उच्यते।।


जिसके द्वारा आयु प्राप्त हो और जिसके द्वारा आयु जानी जाये वह आयुर्वेद है

ब्रह्मा ने एक लाख छंदों का (एक हजार अध्याय )आयुर्वेद शास्त्र बनाया  उसे प्रजापति फिर अश्विनी कुमारों फिर इन्द्र फिर धनवन्तरि  और इसके बाद सुश्रुत ने पढ़ा

सुश्रुत द्वारा रचित आयुर्वेद आठ भागों में बंटा है

कायचिकित्सा, शल्यतन्त्र, शालक्यतन्त्र, कौमारभृत्य, अगदतन्त्र, भूतविद्या, रसायनतन्त्र और वाजीकरण।


इस अष्टाङ्ग (=आठ अंग वाले) आयुर्वेद के अन्तर्गत देहतत्त्व, शरीर विज्ञान, शस्त्रविद्या, भेषज और द्रव्य गुण तत्त्व, चिकित्सा तत्त्व और धातृविद्या भी हैं। इसके अतिरिक्त उसमें सदृश चिकित्सा (होम्योपैथी), विरोधी चिकित्सा (एलोपैथी), जलचिकित्सा (हाइड्रोपैथी), प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी), योग, सर्जरी, नाड़ी विज्ञान (पल्स डायग्नोसिस) आदि आजकल के अभिनव चिकित्सा प्रणालियों के मूल सिद्धान्तों के विधान भी 2500 वर्ष पूर्व ही सूत्र रूप में लिखे हैं


और इतना उच्च कोटि का आयुर्वेद एक किनारे कर दिया गया अपनी शिक्षा पद्धति के विकारों के कारण हम अविश्वासी हो गये 

आचार्य जी नेआयुर्वेद की महत्ता हेतु  पञ्चतृण(कुश काश शर दर्भ इक्षु )क्वाथ के प्रयोग वाला प्रसंग बताया (30/9/21 को भी बताया था )

यह समय चिन्तन मनन ध्यान धारणा का है हमें अपने कर्तव्य को जानना आवश्यक है हम दीपक हैं अपने दीपक धर्म का पालन करें जलना ही हमारा धर्म है

18.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 संगठन मन्त्र इस युग का तारक -मन्त्र है


प्रस्तुत है प्रेक्षावत् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18/02/2022

  का  सदाचार संप्रेषण


आचार्य जी ने बताया हम लोग अर्थात् जो सिद्धान्त और विचार को लेकर चलते हैं, देश और समाज के बारे में चिन्तन करते हैं जो चुनाव चल रहे हैं उसमें एक एक मत    पहुंचे इसके लिये प्रयासरत हैं तो कुछ ऐसे हैं जो ढोंग ढपाल कर रहे हैं l 


कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ।

दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥97 क॥

भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म।

सुनु हरिजान ग्यान निधि कहउँ कछुक कलिधर्म॥97 ख॥

बरन धर्म नहिं आश्रम चारी। श्रुति बिरोध रत सब नर नारी।

द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन। कोउ नहिं मान निगम अनुसासन॥1॥


मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोइ जो गाल बजावा॥

मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहइ सब कोई॥2॥


हमारे अन्दर यह भाव भर गया है कि कोई अङ्ग्रेजी बोल दे तो लगता है बहुत ज्ञानी है

कल आचार्य जी के मन में कुछ भाव उठे ये भाव सदाचार वेला का सार है



गांव गांव घर घर में संयम  शौर्य शक्ति पहुंचाना है ,

प्रेम युक्ति से संगठना कर विजयमंत्र दुहराना है ।।


जो भी जहां कहीं रहता हो,

जो कुछ भी निज-हित करता हो ,

थोड़ा समय देश-हित देकर

जीवन को सरसाना है ।।

       गांव गांव घर घर में ------


भारत मां हम सबकी मां है यह अनुभूति महत्वमयी ,

सेकुलर वाली तान निराली शुरू हुई है नयी नयी ।

भ्रम भय तर्क वितर्क वितंडा छोड़ लक्ष्य पर दृष्टि रहे ,

हिन्दुराष्ट्र के विजय घोष से नभ को आज गुंजाना है ।।

          गांव गांव घर घर में-----


हिंदुदेश में हम-सब हिंदू जाति पांति आडंबर है ,

शक्ति संगठन के अभाव में दर दर उठा बवंडर है ,

प्रेम मंत्र संगठन तंत्र पर बद्धमूल विश्वास करें ,

जनजीवन से भ्रामकता को जड़ से दूर भगाना है ।।

      गांव गांव घर घर में ----


जहां किसी को भय भासित हो उसके दाएं खड़े रहें ,

लोभ लाभ के प्रति आजीवन सभी तरह से कड़े रहें ,

भारत सेव्य और हम सेवक यही भाव आजन्म रहे ,

यही भाव जन जन के मन में हमको अब पहुंचाना है ।।

         गांव गांव घर घर में ------


भारत की संस्कृति में गौरव गरिमा समता ममता है ,

समय आ पड़े तो अपने बल दुष्ट-दलन की क्षमता है ,

हम अपनी संस्कृति की रक्षा हेतु सदैव सतर्क रहें ,

यही विचार भाव जन जन को हमको आज सिखाना है ।।

         गांव गांव घर घर में--------


✍️ ओमशंकर त्रिपाठी


लेखन एक योग है भाव उठें तो उन्हें उकेरें विचार आयें तो 

उन पर चर्चा करें क्रिया के लिये उद्यत हों तो संगठित भी हों 

इस सदाचार वेला के प्रति गम्भीर होकर  अपने भाव विचार और क्रियाओं से एक दूसरे को अवगत कराते रहें

यह समय मनोरंजन का नहीं है गम्भीर होने का है

17.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रौण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17/02/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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प्रतिदिन की यह सदाचार वेला आचार्य जी के अनुभवों पर आधारित है इसलिये हमें इसका श्रवण कर अधिक से अधिक लाभ लेने का प्रयास करना चाहिये


सामान्य रूप से सभी के अन्तःसूत्र संयुत रहते हैं बाहर के आकार प्रकार भिन्न दिखाई देते हैं रूप नाम अलग हो सकते हैं लेकिन तत्त्वतः सब एक हैं

भगवान् शंकराचार्य ने विवेक चूडामणि में तात्त्विक विषयों को रोचक छन्दों में प्रस्तुत किया है


प्रारब्धसूत्रग्रथितं शरीरं

प्रयातु वा तिष्ठतु गोरिव स्रक् ।

न तत्पुनः पश्यति तत्त्ववेत्ता

(आ)नन्दात्मनि ब्रह्मणि लीनवृत्तिः ॥ ४१६ ॥


आचार्य जी ने इसकी व्याख्या करते हुए बताया कि जिनकी चित्तवृत्ति ब्रह्मस्वरूप में लीन हो गई है वो शरीर के विकारों का ध्यान नहीं रखते


यह भाव कठिन है लेकिन मनुष्य ही इसका अनुभव कर सकता है और जब इस भाव का अनुभव अनुभाव में प्रकट होने लगता है तो हम कहते हैं  कि वह तो बहुत तेजस्वी है तपस्वी है

लेकिन तेजस्विता को पहचानने के लिये पहचान करने वाले को अपने स्तर को ऊपर उठाना होता है



आत्मानुभूति परमात्मानुभूति है लेकिन यह सबके वश की नहीं है कर सब सकते हैं लेकिन इसके लिये शरीर को सबसे पहले साधने की आवश्यकता है


आचार्य जी ने डा सुनील गुप्त जी से संबन्धित एक प्रसंग का उल्लेख किया जिसमें किसी के शरीर की सारी क्रियाएं चलने के बाद भी वह व्यक्ति जीवित है या नहीं यह पता करना मुश्किल हो रहा था


यही रहस्य जिसको समझ में आ जाता है वह संसार में अनुरक्ति के साथ विरक्ति का अभ्यासी हो जाता है


पूज्य गुरु जी ने शरीर को शरीर की भांति चलाया और cancer के operation के बाद  विद्यालय में हनुमान जी की प्राण प्रतिष्ठा की थी


उनका एक लम्बा भाषण परिपूर्ण मानव  नामक छपा था


उस योगी ने राष्ट्र के लिये अपना जीवन समर्पित किया


आचार्य जी ने उन पर एक गीत लिखा था


ओ तपस्वी ओ तपस्वी


इसे भैया स्व अर्पण ने गाया था


आचार्य जी ने शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म पर पुनः आज जोर दिया


आत्मीयता दिखाते हुए अपने साथियों को गलत कार्यों पर टोंके

भ्रम भय निराशा त्याग कर राष्ट्र के लिये समर्पण दिखायें

16.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रतिशिष्ट आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16/02/2022

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प्रतिदिन की यह सदाचार वेला आचार्य जी के अनुभवों पर आधारित है इसलिये हमें इसका श्रवण कर अधिक से अधिक लाभ लेने का प्रयास करना चाहिये



स्वाध्याय का विषय कुछ भी हो सकता है  देश,समाज,शरीर का उल्लास, भविष्य की योजनाएं आदि



कोई पास न रहने पर भी, जन-मन मौन नहीं रहता;

आप आपकी सुनता है वह, आप आपसे है कहता।

पञ्चवटी मैथिली शरण गुप्त


अपने आप मन में संवाद, विवाद चलते रहते हैं


अपने ही शरीर में सृष्टि संचालित होती रहती है

परमात्मा किसी किसी में इन्हीं अनुभूतियों को लेखन भाषण, गायन में अभिव्यक्ति देने की क्षमता दे देता है


येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।


किसी कवि ने यह लिख तो दिया लेकिन पशु भी पृथ्वी पर भार नहीं है अपितु पृथ्वी का शृंगार है


जिसको यह अनुभव होने लगता है उसे पूर्ण आनन्द की अनुभूति होने लगती है यही मोक्ष की अवस्था है


तुलसीदास की विनयपत्रिका में रहस्य, सिद्धान्त, विचार और विनय की पराकाष्ठा है


कबहुँक अंब, अवसर पाइ। 


मेरिऔ सुधि द्याइबी, कछु करुन-कथा चलाइ॥ 


दीन, सब अँगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ। 


नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ॥ 


बूझिहैं ‘सो है कौन’, कहिबी नाम दसा जनाइ। 


सुनत राम कृपालु के मेरी बिगरिऔ बनि जाइ॥ 


जानकी जगजनिन जनकी किये बचन सहाइ। 


तरै तुलसीदास भव भव नाथ-गुन-गन गाइ॥


यहां मां सीता को आधार बनाया है

इसकी व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया रूपकमय संसार के रहस्य को जानने की चेष्टा करते हैं तो लगता है सर्वत्र विभु आत्मा ही संसार में समाया हुआ है


वह कभी राम के रूप में कभी कृष्ण के रूप में कभी अपने ही माता पिता के रूप में कभी आचार्य के रूप में प्रस्तुत हो जाता है

यही श्रद्धा जब राष्ट्र में समाहित हो जाती है तो यह भूमि का खंड मात्र न दिखकर साक्षात् देवभूमि दिखाई देती है


मीराबाई का जीवन अद्भुत है तुलसी ने एक विलक्षण रूपकमय छंद लिखा जिसको राम अर्थात् राष्ट्र प्रिय नहीं है उसे त्याग दें...


जाके प्रिय न राम-बदैही। 


तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही॥ 


तज्यो पिता प्रहलाद, बिभीषन बंधु, भरत महतारी। 


बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज-बनितन्हि, भये मुद-मंगलकारी॥ 


नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेब्य कहौं कहाँ लौं। 


अंजन कहा आँखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहाँ लौं॥ 


तुलसी सो सब भाँति परम हित पूज्य प्रानते प्यारो। 


जासों होय सनेह राम-पद, एतो मतो हमारो॥


जिसको राष्ट्र के प्रति लगाव हो उसका पल्ला पकड़िये


हमें इनके अर्थों की गहराइयों में जाना चाहिये जिससे हमारा चिन्तन बढ़ेगा


इस संप्रेषण को आत्मसात् करके यदि हम व्यावहारिक जगत में उतार दें तो यह अत्यन्त लाभप्रद होगा


राम कहत चलु , राम कहत चलु , राम कहत चलु भाई रे ।


नाहिं तौ भव - बेगारि महँ परिहै , छुटत अति कठिनाई रे ॥१॥


बाँस पुरान साज सब अठकठ , सरल तिकोन खटोला रे ।


हमहिं दिहल करि कुटिल करमचँद मंद मोल बिनु डोला रे ॥२॥


बिषम कहार मार - मद - माते चलहिं न पाउँ बटोरा रे ।


मंद बिलंद अभेरा दलकन पाइय दुख झकझोरा रे ॥३॥


काँट कुराय लपेटन लोटन ठावहिं ठाउँ बझाऊ रे ।


जस जस चलिये दूरि तस तस निज बास न भेंट लगाऊ रे ॥४॥


मारग अगम , संग नहिं संबल , नाउँ गाउँकर भूला रे ।


तुलसिदास भव त्रास हरहु अब , होहु राम अनुकूला रे ॥५॥


इस संसार की समस्याओं का समाधान करते हुए हम मार्ग खोजते हैं


संसार की असारता को समझने की आवश्यकता है, मृत्यु एक विश्राम स्थल है


हमारे अन्दर का भाव जाग्रत हो जिससे हम राष्ट्र के संरक्षण संवर्धन विकास के लिये तैयार हों ताकि सारे विश्व का  विनाश शान्त हो

15.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है क्षेत्रविद् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15/02/2022

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प्रतिदिन की यह सदाचार वेला आचार्य जी के अनुभवों पर आधारित है इसलिये हमें इसका श्रवण कर अधिक से अधिक लाभ लेने का प्रयास करना चाहिये


वाणी विधान परमात्मा द्वारा मनुष्य को मिला अद्भुत वरदान है l सृष्टि की उत्पत्ति में ॐ की बड़ी  महिमा है l 

स्वर की व्याप्ति सृष्टि की रचना करती है 


आधार का संस्पर्श करने पर कल्पनालोक का जब उत्थान  होता है तो उसको अनुभूतियां होने लगती हैं


साप्ताहिक विमर्श की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने स्वाध्याय और लेखन पर जोर दिया


लेखन अपनी कल्पनामूर्तियों का संस्थापन है 


आपस में चर्चा करने का अपना अलग महत्त्व है जैसे हाल में प्रारम्भ हुआ साप्ताहिक विमर्श अत्यन्त उपयोगी और उपादेय है


चार लोग सद्भाव से बैठें तो विषय अपने आप निकल आयेंगे विषय पहले से तय करने की आवश्यकता नहीं है


सफल होने पर दम्भ न आये इसका हमें ध्यान रखना है


जानकीसकी कृपा जगावती सुजान जीव,

जागि त्यागि मूढ़ताऽनुरागु श्रीहरे ।

करि बिचार, तजि बिकार, भजु उदार रामचंद्र,

भद्रसिंधु, दीनबंधु, बेद बदत रे ॥ १


मोहमय कुहु-निसा बिसाल काल बिपुल सोयो,

खोयो सो अनूप रुप सुपन जू परे ।

अब प्रभात प्रगट ग्यान-भानुके प्रकाश,

बासना, सराग मोह-द्वेष निबिड़ तम टरे ॥ २


भागे मद-मान चोर भोर जानि जातुधान

काम-कोह-लोभ-छोभ-निकर अपडरे ।

देखत रघुबर-प्रताप, बीते संताप-पाप,

ताप त्रिबध प्रेम-आप दूर ही करे ॥ ३


श्रवण सुनि गिरा गँभीर, जागे अति धीर बीर,

बर बिराग-तोष सकल संत आदरे ।

तुलसिदास प्रभु कृपालु, निरखि जीव जन बिहालु,

भंज्यो भव-जाल परम मंगलाचरे ॥ ४


का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि हमें भारतवर्ष की भूमि पर आये विविध रूप भगवान् राम भगवान् कृष्ण बुद्ध महावीर दीनदयाल हेडगेवार जाग्रत करते रहते हैं

यही हमारे अन्दर की सतत जीवन्तता है इसकी अनुभूति गहन स्वाध्याय, योगमार्ग या सुसंगति से आती है

शब्दानुशासन से हमारी भाषा बनती है भाव बनते हैं जैसे तुलसी का शब्दानुशासन हमें प्रभावित करता है


सारे अनुशासनों (समय, शब्द, शरीर, परिवार, समाज, सृष्टि )  का संग्रहभूत स्वरूप भारतवर्ष में देखा जा सकता है


विचार को पचाना और विकार को दूर करना समाज, चिन्तन, व्यवहार, आचरण की दृष्टि से हम विचारशील लोगों के लिये अत्यन्त आवश्यक है

समाजसेवा में ही पूरी सृष्टि बंधी हुई है


आचार्य जी विज्ञान और अध्यात्म का संयोजन करते हुए बोलते हैं

हम किसी से प्रेरित होते हैं फिर हम किसी को प्रेरित करें यही सिलसिला चलता रहना चाहिये

14.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ध्यानतत्पर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14/02/2022

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प्रतिदिन की यह सदाचार वेला आचार्य जी के अनुभवों पर आधारित है इसलिये हमें इसका श्रवण कर अधिक से अधिक लाभ लेने का प्रयास करना चाहिये


आचार्य जी ने बताया कि भैया आशुतोष कर्ण जी बैच 2002 बहुत से प्रश्नों के उत्तर पाने के लिये भविष्य में आचार्य जी से भेंट करेंगे

समाज और व्यक्ति दोनों का संयोजन और समन्वय अपने जीवन को किस प्रकार प्रेरित प्रभावित प्रतिष्ठित कर सकता है यह जानने का हम प्रयास करेंगे


इस समय चुनाव चल रहे हैं समाजोन्मुखी जीवन जीने वाले बहुत से लोग मनोयोगपूर्वक लोगों को प्रेरित प्रोत्साहित कर रहे हैं ताकि अधिक से अधिक उनको मत जायें जो भारतीय जीवन पद्धति का विकास करना चाहते हैं


भारतीय जीवन शैली, भारतीय चिन्तन, भारतीय विचार, भारतीय जीवनदर्शन इन शब्दों के साथ बहुत अन्याय हुआ है


प्राणिक चेतना भौतिक प्राणवायु को संचालित करती है  अपानवायु के विकृत होने पर प्राणवायु का शीर्ष पक्ष हिलने लगता है यानि अपान के क्षेत्रों को बाहर जाना ही चाहिये


जीवन प्रारम्भ होते ही विकार दूर होने चाहिये ताकि हमारे अन्दर की ऊर्जा में वृद्धि हो


विकार भरते रहेंगे तो ऊर्जा रुक जायेगी विकारों से निवृत्ति आवश्यक है विकारों को पचाने से शरीर शिथिल हो जाता है


हम अब इसको समाज से संयुत कर लें समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने के लिये हम भजन कीर्तन चिन्तन मेले करते रहे हैं लेकिन जैसे ही हमें आलस्य ने घेरा समाज में विकारों की बहुतायत हो गई


विकृत वर्ग के विकृत विचार को हम जितना भी पचाने का प्रयास करेंगे हम रुग्ण होते जायेंगे


आचार्य जी ने बताया भैया अमित गुप्त जी ने उन्हें कभी तीन पुस्तकें भारत विभाजन के गुनहगार, विषैला वामपंथ, गीता रहस्य दीं थी

एक ओर ये पुस्तकें हैं तो दूसरी ओर ऐसी पुस्तकें छप रही हैं जो हम पढ़ेंगे तो मन को विकृत कर देंगी


आचार्य जी ने  जगन्नाथ पण्डितराज  के बारे में बताया कि उन्होंने कैसे विकृति फैलाई

13.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 तीर्थे तीर्थे निर्मलं ब्रह्मवृन्दं।

वृन्दे वृन्दे तत्त्वचिन्तानुवादः॥

वादे वादे जायते तत्त्वबोधः।

बोधे बोधे भासते चन्द्रचूडः॥ 

(रम्भा शुक संवाद)


प्रस्तुत है प्रेरक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13/02/2022

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विद्यालय में भैया प्रवीण भागवत और भैया चावली रमेश (दोनों बैच 1986)आचार्य जी से आग्रहपूर्वक तर्क वितर्क करते थे l

आचार्य जी को यह बहुत अच्छा लगता था


इसी प्रकार भैया आशीष जोग आजकल सृष्टि के विकासवाद पर आचार्य जी से चर्चा कर रहे हैं


विषय गम्भीर और चिन्तनयुक्त है


लेकिन भारतवर्ष प्राचीन काल से आत्मा,परमात्मा, रचना,रचनाकार आदि की व्याख्या चर्चा आनन्दमग्न होकर करता रहा है


प्रातःकाल हम लोग धरती मां के पैर छूते हैं तर्कवादी कहेगा धरती मां के पैर कहां हैं  किन्तु हम लोगों ने धरती मां का, पर्वतों का,जल का, वायु का, वृक्षों  आदि का अर्थात् सृष्टि के सूक्ष्म और स्थूल स्वरूपों का मानवीकरण कर उन्हें पूजा  है


विश्लेषणात्मक चिन्तन करने वाले जिज्ञासुओं में भाव कम विचार अधिक होते हैं


भाव और विचार के संतुलन के उदाहरणस्वरूप एक प्रसंग आचार्य जी ने बताया कि अपने विद्यालय में BORING (THE ACT OF DRILLING ) से पहले पूजा करने से सफलता कैसे मिली


मानव जीवन भाव विचार और क्रिया के संतुलन से संतुलित होता है

पौरुष पराक्रम का भाव मन में रखें निराशावादी न बनें

.....पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी आयेगी


अद्भुत प्रतिभा प्रकांड विद्वत्ता वाले स्वामी दयानन्द सरस्वती   ने बहुत कम आयु में ही इतना बड़ा काम कर दिया कि दिशा ही बदल गई l

और उन्हें विष दे दिया गया

इसी तरह दीनदयाल जी की हत्या कर दी गई


यह इस देश का स्वभाव बन गया है

विप्र धेनु धरती सभी देवरूप हैं हम लोग अंशी के अंश हैं


प्रातःकाल यह भाव हमारे अन्दर आना ही चाहिये कि हम मनुष्य हैं और विजय प्राप्त करने के लिये आये हैं


संघर्षों में समाधान हमारे पास है


हर प्रयास का कुछ न कुछ परिणाम होता है इसके लिये आचार्य जी ने दीनदयाल जी का एक प्रसंग बताया


विकार पर प्रहार करें विचार का संपोषण करें  निराश न हों

यह सदाचार संप्रेषण शौर्य कर्म चिन्तन उत्साह की वृद्धि के लिये है

12.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शुचिस्मित आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12/02/2022

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हमें जब तक किसी बात का स्मरण न हो हम सांसारिक प्रपंचों में उलझे रहें  विचारों का आवागमन होता रहे विविध क्रियाएं संपादित होती रहें तो हम लोग पुरानी स्मृतियां भूल जाते हैं लेकिन इतिहास का स्मरण करना संसार का स्वधर्म है

इतिहास को भूलना या उसके प्रति अज्ञान पशुवत् जीवन यापन है

कल युगपुरुष पं दीनदयाल जी का निर्वाण दिवस था ऐसे अवसर हमें स्मरण दिलाने के लिये होते हैं ये इतिहास की बहुत सी घटनाओं को जोड़ देते हैं वैचारिक संघर्ष प्रारम्भ हो जाता है


दीनदयाल जी की कूटरचित हत्या को याद कर आचार्य जी बहुत भावापन्न हो जाते हैं


दीनदयाल जी हमारे अन्तर्मन में आज भी विद्यमान हैं संसार तो बहुत अद्भुत है वह किसी के भगवत् स्वरूप के अंश को जान नहीं पाता जैसे भगवान् कृष्ण को शिशुपाल, दुर्योधन ने नहीं पहचाना


गीता में

नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः।


मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्।।7.25।।


अपनी योगमाया से आवृत्त मैं सबके सामने प्रकट नहीं होता हूँ। यह  लोक  मुझ अज , अविनाशी को नहीं जानता है।।

प्रतिभासंपन्न ज्ञानसंपन्न दीनदयाल जी का बहुत लोग सम्मान करते थे तो कुछ ऐसे भी थे जिन्हें उनमें कोई विशेषता नहीं दिखती थी


भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः।


ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्।।18.55।।


मुझे जानने के लिये भक्ति की आवश्यकता है और भक्ति के मूल में विश्वास होता है



मूर्ति मात्र मूर्ति नहीं है मैं इसकी पूजा करता हूं मुझे तो यह विश्वास है कि मेरे अन्दर का जो परमात्म भाव है वही उसमें प्रविष्ट है


लेकिन यह सबके वश का नहीं है चाहे मूर्ति हो राष्ट्र हो शिक्षक हो या अन्य कोई हो हमारा उनसे भाव तभी जुड़ेगा जब हम भावात्मक बुद्धि का प्रयोग करेंगे विश्लेषणात्मक बुद्धि का नहीं


आचार्य जी ने बताया कि हमारे भाव से प्रकृति की दोहन क्रिया समाप्त हो गई और उसका स्थान शोषण क्रिया ने ले लिया


इसी ने हमारी व्याकुलता बढ़ा दी

इसी व्याकुलता को शान्त करने के लिये प्रकृति के संस्पर्श की आवश्यकता है प्रकृति यदि विकृति के रूप में हमारे मन में आ जाती है तो हम व्याकुल रहते हैं


ये ही दीनदयाल जी के सिद्धान्त थे


आचार्य जी ने राजनीति में दीनदयाल जी के श्रेष्ठ सिद्धान्त बताये

 वे राजनीति के क्षितिज पर जगमगाते सूर्य थे



समाज को सही दिशा देने के लिये हमें आगे आना होगा

11.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 11/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 दुष्टदस्युचोरादिभ्यः साधुसंरक्षणं धर्म्मतः।

प्रजापालनं धनुर्वेदस्य प्रयोजनम्॥

(अर्थ : दुष्ट, दस्यु (लुटेरे), चोर आदि से धर्मपूर्वक साधुओं (सज्जनों) की रक्षा करना और प्रजा का पालन करना धनुर्वेद का उद्देश्य है।)


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नई पीढ़ी  में एक भ्रम उत्पन्न हो गया है कि धर्म पूजा पाठ की विधि है और एक दूसरा भ्रम यह कि हम अहिंसा प्रेम और आत्मीयता के माध्यम से  इस संसार में सुखी रह सकते हैं युद्ध संघर्ष असभ्य अविकसित लोगों का काम है


और इस प्रकार वे लोग कुण्ठित विचार व्यक्त करते रहते हैं

इसी कारण उनका व्यवहार भी कुण्ठित हो जाता है


हमें इतिहास के गर्भ में जाकर   देखना चाहिये EMERGENCY  के बारे में जानना चाहिये हमारी जिज्ञासा इतिहास के अन्य पन्नों में भी होनी चाहिये


आचार्य जी हमेशा शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म पर जोर देते हैं l भारतवर्ष की विद्वत्ता खंडित विद्वत्ता नहीं है पूजा पाठ की विद्वत्ता नहीं है

मधुसूदन  सरस्वती एक बहुत चर्चित नाम है l ये शाहजहां के समय के थे l ये 

अद्वैत सम्प्रदाय' के प्रधान आचार्य, कई ग्रंथों के लेखक और अत्यधिक विद्वान तपस्वी ज्ञानी सिद्ध दण्डी संत थे l आपने यजुर्वेद के उपवेद धनुर्वेद पर आधारित प्रस्थानभेद नामक उच्चस्तरीय ग्रन्थ लिखा है

इस ग्रन्थ के अनुसार 

आयुध चार प्रकार के कहे गए हैं—मुक्त, अमुक्त, मुक्तामुक्त, और यंत्रमुक्त । मुक्त आयुध, (जैसे चक्र) अमुक्त आयुध (जैसे, खड्ग), मुक्तामुक्त (मुक्त भी, अमुक्त भी , जैसे, भाला, बरछा)। मुक्त को 'अस्त्र' तथा अमुक्त को 'शस्त्र' कहते हैं।

हम जब अपने को अर्थप्रधानता से संयुत कर लेते हैं तो लगता है इन सबके अध्ययन की हमें क्या आवश्यकता है


हमें अपना व्यक्तित्व चिन्तनपरक बनाना चाहिये


चुनाव में अपनी विचारधारा के लोगों को जिताना भी पौरुष पराक्रम का कार्य है


निष्पक्ष लोग कभी कभी कायर भी होते हैं


परिमार्जित चिन्तन का कुछ वजन होता है सात्विक चिन्तन की हर समय आवश्यकता है


अपनी संस्कृति की रक्षा के लिये गीता प्रेस बहुत अच्छा काम कर रही है

हमें शौर्य युक्त अध्यात्म के चिन्तन और अभ्यास की आवश्यकता है

संगठन का महत्त्व समझें

10.2.22

क्षन्तृ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

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हमारे विद्यालय में सदाचार वेला होती थी आम तौर पर विद्यालयों में प्रार्थना होती है l

1964 में  केन्द्र सरकार ने डॉ दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता में स्कूली शिक्षा प्रणाली को नया आकार व नई दिशा देने के उद्देश्य से कोठारी आयोग का गठन किया था जिसने प्रार्थना को अनिवार्य बताया था

हमें सदाचार वेला का महत्त्व बाद में समझ में आया

मनुष्य की लालसा रहती है कि हमारी उन्नति हो हमारी चर्चा हो हमारे संबन्ध में लोग जानें यानि मनोविज्ञान के अनुसार आत्मप्रकाशन की वृत्ति


मनुष्य जीवन में एक छिपी भावना रहती है जो ईश्वरत्व का स्पर्श करते हुए चलती रहती है


आचार्य जी पूछते थे सबसे महत्त्वपूर्ण क्या है तो उत्तर में लोग बताते थे पैसा,पद,प्रतिष्ठा

ये सब मिले लेकिन इज्जत न मिले तो इसके संबन्ध में आचार्य जी ने एक बहुत रोचक प्रसंग बताया जब वो हमीरपुर में प्रचारक थे


कहने का तात्पर्य है आत्मसम्मान सबको चाहिये


गीता में

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः।


नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्।।6.11।।

शुद्ध भूमि पर, जिस पर  कुश, मृगछाला और वस्त्र बिछे हों , जो न बहुत ऊँचा  और न बहुत नीचा, ऐसे अपने आसन को स्थिरस्थापन करके....


तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः।


उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये।।6.12।।


उस आसन को ग्रहण कर चित्त व इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए मन को एकाग्र करके  आत्मशुद्धि हेतु योग का अभ्यास करें


मेरुदण्ड सीधा रखने का भी बहुत महत्त्व है


हमारा जितना ध्यान केन्द्रित होगा ईश्वर उसी अनुसार हमारे पास दिखाई देगा l


आगामी चुनाव के संबन्ध में आचार्य जी ने कहा 

प्रेमाबद्ध होकर अपने मत के अनुसार लोगों को मतान्तरित करें दलीलें न दें अपने विषय के प्रति सुदृढ़ रहें


विश्व में जो वैचारिक युद्ध चल रहा है उसमें हमें विजय प्राप्त करनी है योगवादी विचार आवश्यक है न कि भोगवादी विचार

9.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 09/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है दत्तहस्त आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 09/02/2022

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जब आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ तो उस समय अत्यन्त विषम परिस्थितियां थीं l शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, निम्बार्काचार्य, मध्वाचार्य सभी दक्षिण भारत के हैं और अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं l इन्होंने जन्म दक्षिण में लिया लेकिन उत्तर तक अपनी भक्ति से प्रभावित किया


उत्तर दक्षिण का कोई भेदभाव नहीं l संपूर्ण देश हमारी भारतमाता है और इस देश से प्रेम करने वाले हमारे भाई बन्धु हैं l इस देश की समुन्नति, वैभव,विकास, सामर्थ्य,शक्ति, क्षमता, योग्यता,पात्रता संपूर्ण संसार के लिये अमृतमयी है


देश मात्र भूमि का टुकड़ा नहीं है l मूल रूप से राष्ट्र भावना का प्रादुर्भाव आत्मीयता से होता है l

ईश्वरत्व का प्रादुर्भाव भी आत्मीयता से होता है l परमात्मा विभु है हमारा रक्षक है प्रेरक है सब कुछ है


आत्म और परमात्म के संबन्ध का माध्यम भक्ति के रूप में देश भी बन जाता है


इस भाव और भक्ति के साथ जब हम अपना जीवन यापन करते हैं तो हम प्रशंसित हो ही जाते हैं


हमें युग भारती परिवार को इस संपूज्य भाव से विकसित पल्लवित करना चाहिये कि हम भी भारत मां की संतान हैं

हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराई। 


बूँद समानी समद में , सो कत हेरी जाइ॥

(आत्मा और परमात्मा का भेद समाप्त,यह भक्ति की एक ऐसी अवस्था है जब सभी भ्रम मिट जाते हैं )

की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि बूंद और समुद्र का अद्भुत संबन्ध है इस भाव को भाषा में व्यक्त करने के लिये अनेक कवियों विचारकों दर्शनिकों ने भारतभूमि में अवतरण लेकर हमारा कल्याण किया है l वास्तव में हम सौभाग्यशाली हैं



संकटों का निवारण आज तक चल रहा है निराशा की भाषा न बोलें व्यथा का भाव न लायें आजीवन संघर्षरत रहें इतनी उथल पुथल के बाद भी भारत वर्ष उसी स्वरूप में है


हम जहां हैं जैसे हैं जिस स्थिति में हैं राष्ट्र भाव से ओत प्रोत होकर अपने  विचार व्यवहार से राष्ट्र भावित शक्ति को जाग्रत करें, संगठित होने के महत्त्व को समझें


शौर्य का विस्मरण न हो

8.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 08/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शक्न आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 08/02/2022

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यह सदाचार संप्रेषण  आत्मविश्वास, आत्मचिन्तन, आत्मशक्ति, आत्माभिव्यक्ति और आत्मबोध की निर्धारित दिशा की ओर उन्मुख है परमात्मा ने तो हमारे अन्दर अपार शक्ति दी है लेकिन हम उसे भूले रहते हैं


अर्थ से ही संयुत रहकर हम अपना जीवन व्यर्थ में गंवा देते हैं

यह अत्यन्त आश्चर्य का विषय है कि संसार तभी सृजित होता है जब परमात्मा विकारी होता है l हम यूं ही विकसित नहीं हो गये


हम बड़े से बड़े काम आसानी से कर लेते हैं और पता भी नहीं चलता इसके उदाहरणस्वरूप आचार्य जी ने सन् 1995 में रजत जयन्ती के कार्यक्रम की तैयारियों की चर्चा की


आचार्यजी ने STATUE OF EQUALITY की चर्चा की l

विशिष्टाद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक रामानुजाचार्य का जन्म सन् 1017 में हुआ था l 

लगभग तीन सौ वर्ष बाद प्रयाग में सन् 1400 में रामानन्दाचार्य का जन्म हुआ


स्वामी रामानंद को मध्यकालीन भक्ति आंदोलन का महान संत माना जाता है। उन्होंने रामभक्ति की धारा को समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाया। वे पहले ऐसे आचार्य हुए जिन्होंने उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार किया। उनके बारे में प्रचलित कहावत है कि - द्रविड़ भक्ति उपजौ-लायो रामानंद। यानि उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार करने का श्रेय स्वामी रामानंद को जाता है। स्वामी जी ने बैरागी सम्प्रदाय की स्थापना की, जिसेे रामानन्दी सम्प्रदाय के नाम से भी जाना जाता है।

भक्ति संसार को चलाने का एक प्रबल दृढ़ विश्वास है


भारतवर्ष परमात्मा की लीला स्थली है

आचार्य जी ने नाभादास की भक्तमाल  पढ़ने की सलाह दी

भक्तों की एक बहुत लम्बी सूची है  अपने कार्यों से इन्होंने बहुत जागरण किया

विकार हर जगह आते हैं संसार अछूता नहीं रह सकता है प्राणिक मोह ईश्वर के प्रति प्रेम है l मनुष्यत्व का भाव अन्दर आ जाये तो कहना ही क्या


आत्मानुभूति का प्रयास करें अपनी संस्कृति के प्रति अगाध प्रेम रखिये

7.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 07/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 जो कल गया वह सदा सुवासित लतान्त है तभी तो

रहें न रहें हम महका करेंगे.....


प्रस्तुत है कार्पटिक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 07/02/2022

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प्रतिदिन आचार्य जी अपने सात्विक और उपादेय भाव संप्रेषित करते रहते हैं

संसार का स्वभाव परस्परावलम्बन का है

 पुत्र माता पिता  भाई पास पड़ोस समाज देश विश्व सृष्टि स्रष्टा एक दूसरे से संयुत होते चलते हैं


सृष्टि की उत्पत्ति कैसे होती है? भैया आशीष जोग के इस प्रश्न पर आचार्य जी ने हम लोगों को विष्णु पुराण को देखने की सलाह दी l इसी तरह गीता के चौथे अध्याय में भी इसका उत्तर है

अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।


प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया।।4.6।।


यद्यपि मैं अजन्मा और अविनाशी हूं और सभी प्राणियों का ईश्वर हूं इसके बाद भी अपनी प्रकृति को अपने अधीन रखकर मैं अपनी माया से जन्म लेता हूं

आचार्य जी ने कल विद्यालय में संपन्न हुए युग भारती के प्रशिक्षण शिविर की चर्चा की


ये अच्छा विचार था यह विचार सृष्टि के संरक्षण के लिये है और हम भारतीयों का भाव है कि इस सृष्टि का मूल केन्द्र विन्दु हम हैं और हम ही क्षरित हो जायेंगे पतित हो जायेंगे तो सारा सृष्टि चक्र अस्त व्यस्त हो जायेगा


हमारा सौभाग्य है कि हम भारत में जन्मे हैं हमारी उन्मुखता अध्यात्म की ओर है


जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।


त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।4.9।।


हे अर्जुन ! मेरे जन्म एवं कर्म दिव्य हैं। इस प्रकार (मेरे जन्म और कर्म को) जो मनुष्य तत्त्व से जान लेता अर्थात् दृढ़तापूर्वक मान लेता है, वह शरीर - त्याग कर पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होता, मुझे प्राप्त होता है।


हम इसीलिये ईशावास्यमिदं सर्वं..कहते हैं

हमें परिवार और परिवेश से संस्कार मिले उसी परिवेश का संरक्षण और संवर्धन हमारा लक्ष्य है


इसीलिये हमने शिक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वावलंबन पर चिन्तन किया

आचार्य जी ने लता मंगेशकर की भी चर्चा की

आचार्य जी ने कवि प्रदीप के बारे में एक बहुत रोचक बात बताई

आत्मशक्ति द्वारा विचारशील कर्म करते चलें मृदु भाषा का प्रयोग करें

6.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 06/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 श्लोकेन वा तदर्धेन तदर्धार्धाक्षरेण वा ।

अबन्ध्यं दिवसं कुर्याद्दानाध्ययनकर्मभिः ॥


(ऐसा एक भी दिन नहीं बीतना चाहिये जब आपने एक श्लोक, आधा श्लोक, चौथाई श्लोक, या श्लोक का मात्र एक अक्षर नहीं सीखा  या आपने दान, अध्ययन या कोई भी पवित्र काम नहीं किया।)


प्रस्तुत है प्राधीत आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 06/02/2022

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(शंकुलधारा पोखरा स्थित द्वारिकाधीश मंदिर में महामंडलेश्वर स्वामी प्रखर महाराज के सानिध्य में चल रहे 51 दिवसीय  श्री लक्षचण्डी महायज्ञ में कल एक वक्ता श्री सुरेश चन्द्र तिवारी जी बोले कि हम लोग जिसे विद्या समझते हैं वह वास्तव में अविद्या है और वास्तविक विद्या को हम जानना ही नहीं चाहते हैं जब कि अविद्या और विद्या दोनों की ही हमें आवश्यकता है,... और इस तरह के यज्ञ कर हम पाखंड को भस्म करने का संकल्प लें....)


आती हैं शून्य क्षितिज से

क्यों लौट प्रतिध्वनि मेरी

टकराती बिलखाती-सी

पगली-सी देती फेरी?

 आंसू ( जय शंकर )

इस तरह के छन्द किसी को भी भाव विह्वलित कर सकते हैं

कल की कुछ घटनाओं की आचार्य जी ने चर्चा की


कल आचार्य जी औरास(उन्नाव में एक स्थान )गये थे जहां भैया मुकेश गुप्त जी द्वारा स्थापित शक्तिपीठ में एक कार्यक्रम में वो आमन्त्रित थे

इसके अतिरिक्त आचार्य जी की 

भैया आशीष जोग से फोन पर कुछ सार्थक चर्चा हुई


सत् का विचार आये और उससे आनन्द की अनुभूति हो यही सदाचार है जैसे भैया नीरज कुमार जी का युगभारती के WhatsApp Groups में पुनः शामिल होना अत्यन्त सुखद रहा


दैहिक भौतिक दैविक कहीं भी हम मन का विस्तार पटल पा लेते हैं तो जो आनन्द की अनुभूति होती है वह अवर्णनीय है


हम अमीबा से विकसित हुए हैं? नहीं

हम अवतार हैं और यदि हम अवतार हैं तो उद्धार से ज्यादा कर्म की तरफ चैतन्य जगायेंगे


दीनदयाल जी ने कई बार कच्ची लौकी खाई जली रोटियों को खाने के पीछे कारण बताया कि ये फायदा करेंगी दीनदयाल जी को न वेश की न रूप की न पेट की चिन्ता थी चिन्ता थी समाज से अपना पराया कैसे समाप्त हो

ब्रह्म की अनुभूति कहीं भी हो सकती है अन्न भी ब्रह्म है



आदौ श्रद्धा ततः साधुसंगोऽथ भजनक्रिया।

ततोऽनर्थनिवृत्तिः स्यात्तत्तो निष्ठा रुचिस्ततः।।

अथासक्तिस्ततो भावस्ततः प्रेमाऽभ्युदञ्चति।

साधकानामयं प्रेम्णः प्रादुर्भावे भवेत् क्रमः।।

की आचार्य जी ने व्याख्या की

आत्मगुरुत्व को पुनः इंगित किया


आज का उद्बोधन कैसा लगा इस पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें

5.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 05/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सुपथ -समीरण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 05/02/2022

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हम संसार से संयुक्त रहकर संसार से मुक्त होने का प्रयास करते हैं l सहज विषयों को लेकर उसमें से तात्त्विक अंशों को छांटना सदाचार का रूप धारण कर लेता है इसी से हमारे संपर्क संयुत होते हैं संबन्ध बनते हैं समाज सेवा का संतोष मिलता है


समाज सेवा हमारे सदाचार का मूल आधार है हम समाज, वाणी, प्रकृति, विचार आदि को देवता समझते हैं l यह देवत्व भाव परमात्मा की कृपा है


मन में सात्विकता होने पर व्यवधान आने पर हमें उपाय सूझते हैं न कि हम खीझते हैं


आज हम लोग सरस्वती पूजन भी करते हैं सरस्वती एक नदी भी है सरस्वती की खोज  डा बाकणकर के प्रयासों से संभव हो सकी

हमारा वैदिक ज्ञान सरस्वती नदी के तट पर उत्पन्न हुआ है



मां सरस्वती को हम लोगों ने देवी माना हम लोगों को निम्नांकित प्रार्थना अवश्य करनी चाहिये


या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा ll


आज 1719 में  जन्मे हकीकतराय का बलिदान दिवस भी है जिन्हें बसंत पञ्चमी के दिन 1734 में इस्लाम न स्वीकारने पर फांसी दे दी गई


हमारा तो प्रयास रहता है कि जो सभ्यताएं क्रूरता का आधार लिये विकसित हुई हैं उनको रास्ते पर ले आयें


आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि हम विश्वगुरु कैसे बने


आचार्य जी से हमें तात्त्विकता प्राप्त करनी चाहिये


मनुष्यत्व को प्राप्त करने के लिये कोई गुरु न मिले तो अपने भीतर ही गुरु को खोजें

4.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 04/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शुद्धभाव आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 04/02/2022

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(कल टेलीविजन पर  काशी में  हो रहे एक कार्यक्रम के सजीव प्रसारण में एक वक्ता श्री गिरीश चन्द्र त्रिपाठी जी बोले अब समय की मांग है कि संत समाधि -कक्ष से बाहर आयें )


आचार्य जी का कहना है हम लोगों को तात्त्विक चर्चा भी करनी चाहिये,तात्त्विक चर्चा में प्रश्नोत्तर अत्यन्त आवश्यक हैं और इसका कोई कार्यक्रम होना चाहिये

आचार्य जी ने कल की एक घटना की चर्चा की जिसमें ओवैसी पर हमला हुआ इस तरह का हमला निन्दनीय है



किसी पर गोली चलाना उसके विचारों का समापन नहीं है विचार को विचार से काटना व्यवहार को व्यवहार से जीतना और जहां संघर्ष है वहां संघर्ष करके विजय प्राप्त करनी चाहिये


कहां तनबल की आवश्यकता है कहां संयम -बल की कहां विचार -बल की इसके लिये हमारे यहां सदाचार में कहा गया है

श्रुतिः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियमात्मनः | सम्यक् संकल्पजः कामो धर्ममूलमिदं स्मृतम् |

भारत वर्ष का चिन्तन कहता है यह परमात्मा की शक्ति है जो सृष्टि की रचना करती है



सृष्टि कैसे बनी आदि रहस्य भौतिक विज्ञान द्वारा  सुलझ नहीं  सकते उसके लिये अध्यात्म ज्ञान की आवश्यकता होती है

छह वेदांगों में एक है कल्प, कल्प में यज्ञ विधानों के वर्णन के साथ सूत्र ग्रन्थ भी हैं


हमारा बचा हुआ साहित्य ग्रंथागार किसी भी तरह से कम नहीं है हमें इस ओर अपनी दृष्टि रखनी चाहिये 


आचार्य जी चाहते हैं हम यशस्वी नागरिक बनें l

3.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 03/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है विश्रब्ध आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 03/02/2022

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सर्वप्रिय भैया अशोक त्रिपाठी (बैच 1988) को केन्द्र में रखकर आज आचार्य जी ने हम लोगों को प्रेरित किया



 आचार्य जी  हम लोगों को आप कहकर क्यों संबोधित करते हैं यह उन्होंने स्पष्ट किया  l सामाजिक मर्यादाओं में बंधकर तुम /तू शब्द आप हो जाता है l


भैया अशोक त्रिपाठी को हाल ही में बहुत कठिन कष्टकारी क्षणों से गुजरना पड़ा था जब उनकी धर्मपत्नी और पिता जी एक दिन के अन्तराल में संसार त्यागकर चले गये थे l आचार्य जी ने उन्हें ढाढस बंधाया l कोरोना काल ने हमारे बहुत से आत्मीय जनों को विकराल रूप धारण कर लील लिया था l जब जीवात्माओं में मन भटकता है तो मन अत्यधिक भावुक हो जाता है l 

किसी स्थान के मोह की अभिव्यक्ति के बारे में आचार्य जी ने बताया l

इसके बाद आपने ऋग्वेद (5/82/5)की एक प्रार्थना

ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव ।

यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥

की व्याख्या की


समस्त संसार को उत्पन्न करने वाले (सृष्टि-पालन-संहार करने वाले) विश्व में सर्वाधिक देदीप्यमान एवं जगत को शुभकर्मों में प्रवृत्त करने वाले हे परब्रह्मस्वरूप सवितादेव! आप हमारे सभी आध्यात्मिक, आधिदैविक व आधिभौतिक बुराइयों व पापों को हमसे दूर, बहुत दूर ले जाएं; और जो कल्याणकारी हों उन्हें हमारे पास रख दें


हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा

को याद दिलाकर आचार्य जी ने कहा कि उस भ्रम और भय को त्याग कर हमें आत्मचिन्तन करना चाहिये l

जागरण शयन ध्यान धारणा अध्ययन स्वाध्याय संगति खानपान सभी सही हों इसका ध्यान दें

2.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 2/2/22 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है विकिरण -प्रहि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 2/2/22

  का  सदाचार संप्रेषण जिसे समीक्षातीत अत्यन्त दिव्य प्रसाद समझकर हमें ग्रहण करना चाहिये यह हमें प्रेरित करने के लिये है 




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धर्मज्ञ होना तो बहुत कठिन है लेकिन धर्माचारी होना आसान है


विद्यालय में जन्माष्टमी के बाद छठी उत्सव होता था, पारंपरिक रूप से बैरिस्टर साहब के घर पर भी यह उत्सव होता था जहां किसी विद्वान की कथा और दिव्य प्रसाद का वितरण उल्लेखनीय बात थी


आचार्य जी ने स्कन्द पुराण में  परमात्मा की एक दिव्य प्रार्थना का उल्लेख किया पुराणों के क्रम में स्कंद पुराण का 13 वां स्थान है। आकार की दृष्टि से यह सबसे बड़ा पुराण है। इसमें स्कंद (कार्तिकेय ) द्वारा शिवतत्व का वर्णन है।इसमें तीर्थों के उपाख्यानों और उनकी पूजा-पद्धति का भी वर्णन है। 'वैष्णव खंड' में जगन्नाथपुरी की और 'काशीखंड' में काशी के समस्त देवताओं, शिवलिंगों का आविर्भाव आदि बताया गया है। 'आवन्यखंड' में उज्जैन के महाकलेश्वर का वर्णन है।'सत्यनारायण व्रत' की कथा इसके 'रेवाखंड' में मिलती है।

आचार्य जी ने कहा हत्या हत्या ही है चाहे दीनदयाल जी को हो या गांधी जी की

हत्या और युद्ध में अन्तर है धोखे से ही गांधी जी को भी मारा गया


भारत वर्ष में त्याग की पूजा होती है भोग की नहीं



राधेश्याम खेमका जी, हनुमान प्रसाद पोद्दार जी आदि अवतार ही हैं इन अवतारों की अनुभूति करने का कुछ देर भी प्रयास करेंगे तो भारत देश के प्रति श्रद्धा भक्ति समर्पण सब कुछ आ जायेगा


भारत की शक्ति और भक्ति की वृद्धि के लिये जो भी प्रयास करेगा वो हमारा ही आदमी मान लिया जायेगा

उत्साह से ही समस्याओं का सामना करें

1.2.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 01/02/2022 का सदाचार संप्रेषण

 श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् ।

अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥(नवधा भक्ति )


प्रस्तुत है चित्रकथालापसुख आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 01/02/2022

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यह भावमय संसार अद्भुत है भाव हम सब के अंदर होते हैं

किसी के सुप्त किसी के अव्यवस्थित तो किसी के मार्गान्तरित भी हो सकते हैं, इस भावभूमि का संस्पर्श हम सबको करना चाहिये


मानस में अरण्यकांड में शबरी के आश्रम के बारे में, शबरी द्वारा बेर खिलाना आदि को अनेक ग्रन्थों में विस्तार से बताया गया है


कथावाचकों ने ऐसे भाव व्यक्त किये हैं ताकि हमारे अन्दर वो भावानुभूति हो जाये

कथाएं मन के भाव से संयुत होती हैं, कथाएं इतिहास नहीं होती हैं


कथाओं और साहित्य में इतिहास ढूंढने  का हमें प्रयास नहीं करना चाहिये इतिहास और साहित्य एक दूसरे से गुंथे होते हैं अपने विवेक से हमें उनका विश्लेषण करना चाहिये

इन कथाओं में कुछ ऐसे अंश संयुत हैं जो अपने भाव जाग्रत करने के लिये हैं और तर्कातीत हैं


साहित्यकार को आसपास का पर्यावरण प्रभावित करता है  वह अकबर का ही  समय था जब तुलसी का जन्म हुआ उस समय महिलाओं के बाजार लगते थे स्त्री - स्वातन्त्र्य विचार असंभव था


अधम ते अधम अधम अति नारी। तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी॥

कह रघुपति सुनु भामिनि बाता। मानउँ एक भगति कर नाता॥2॥


जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई। धन बल परिजन गुन चतुराई॥

भगति हीन नर सोहइ कैसा। बिनु जल बारिद देखिअ जैसा॥3॥

की व्याख्या में आचार्य जी ने बताया कि भक्तिहीन मनुष्य उसी तरह होता है जैसा जलविहीन बादल

भक्ति ऐसी शक्ति है कि मनुष्य उसे यदि पहचान ले तो सर्वस्व प्रदान कर सकती है


कुछ राष्ट्र -भक्ति के दास हैं कुछ ईश्वर -भक्ति के दास हैं इसी तरह वैराग्य -भक्ति के भी दास होते हैं


नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥

प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥4॥



गुर पद पकंज सेवा तीसरि भगति अमान।

चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान।। 


मन्त्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा।

पंचम भजन सो बेद प्रकासा।।


छठ दम सील बिरति बहु करमा।

निरत निरंतर सज्जन धरमा।।


सातवँ सम मोहि मय जग देखा।

मोतें संत अधिक करि लेखा।।


आठवँ जथालाभ संतोषा।

सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा।।


नवम सरल सब सन छलहीना।

मम भरोस हियँ हरष न दीना।।

इस तरह  भक्ति के नौ प्रकार हैं

आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त राजेश्वरनन्द जी महाराज की भी चर्चा की