9.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 9 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ज्ञान -विशिप आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 9 जुलाई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

समीक्षा क्रम सं 345



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क से मिले संस्कारों से आचार्य जी को समाजोन्मुखी जीवन जीने की प्रेरणा मिली आचार्य जी अपने पिता जी औऱ बड़े भाई की तरह संघ के निष्ठावान कार्यकर्ता रहे हैं


उस समय के श्वेतवेशधारी युवा संन्यासी प्रचारक भावनाओं से भरे रहते थे उनमें त्याग की कामना सिर चढ़कर  बोलती थी

गुरुजी समग्र की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया

उसमें पूज्य गुरु जी के बहुत से भाषण विचार आदि हैं

गुरु जी के मन में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना का विचार कैसे आया आचार्य जी यह बता रहे हैं 

महाराष्ट्र में एक संत हुए थे तुकोडीजी महाराज


आडकोजी महाराज के शिष्य तुकडोजी महाराज (  माणिकदेव बंदुजी इंगले (30 अप्रैल 1909 - 11 अक्टूबर 1968 )    महाराष्ट्र , भारत के एक आध्यात्मिक संत थे । तुकडोजी महाराज महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण सहित सामाजिक सुधारों में शामिल थे।  उन्होंने ग्रामगीता लिखी जो ग्राम विकास के साधनों का वर्णन करती है।


संत तुकडोजी महाराज से गुरु जी को प्रेरणा मिली कि हमारे देश का संत समाज जो बहुत ज्ञानी तपस्वी अध्येता है लेकिन मठों मन्दिरों तक सीमित है वो यदि समाज के व्यक्ति व्यक्ति में अच्छे विचार डाल सके तो बात बने इसलिये इन संतों का संगठन होना चाहिये


आचार्य जी ने रामरक्षास्तोत्र के कुछ छंद  पढ़े



रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥


श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम । श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।


श्रीराम राम रणकर्कश राम राम । श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥


श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।


श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥


माता रामो मत्पिता रामचन्द्र: । स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र: ।


सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् । नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥


दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥


लोकाभिरामं रणरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् । कारुण्यरूपं करुणाकरन्तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥


मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥


कूजन्तं राम-रामेति मधुरं मधुराक्षरम् । आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥


आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥


भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् । तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥


रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे । रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।


रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम् । रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥


राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥



आचार्य जी ने चिन्मयानन्द जी से संबन्धित एक प्रसंग बताया आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त भैया मनोज अवस्थी भैया प्रवीण भागवत  श्री जैन जी बैरिस्टर साहब का नाम क्यों लिया  आज किस स्थान से आचार्य जी उद्बोधन कर रहे हैं जानने के लिये सुनें