31.3.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 31 मार्च 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *९७६ वां* सार -संक्षेप

 शिक्षित व्यक्ति अगर व्याकुल है, तो वह अशिक्षित है.....


प्रस्तुत है अप्रमाद ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 31 मार्च 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
  *९७६ वां* सार -संक्षेप
1 जागरूक

सदा प्रमाद से दूर रहने वाले , जागरूक, प्रसन्न, स्वावलम्बी आचार्य जी नित्य इन सदाचार संप्रेषणों द्वारा हमारा मार्गदर्शन करते हैं और हमें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन निदिध्यासन के लिए प्रेरित करते हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए दिन भर हमें ऊर्जस्वित करने वाले इनके विचार अद्भुत हैं ये आत्मतत्त्व के रूप में प्रतिष्ठित संप्रेषण आनन्द का विस्तार हैं आनन्द ही जीवन है सुख शरीरी है आनन्द प्राणिक है आनन्द आत्मा तक पहुंचता है कठिनाइयां विस्मृत हो जाती हैं

आनन्दो ब्रह्मेति व्यजानात्। आनन्दाध्येव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। आनन्देन जातानि जीवन्ति। आनन्दं प्रयन्त्यभिसंविशन्तीति।सैषा भार्गवी वारुणी विद्या। परमे व्योमन्प्रतिष्ठिता।स य एवं वेद प्रतितिष्ठति। अन्नवानन्नादो भवति। महान्भवति प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेन महान्‌ कीर्त्या॥

उन्हें ज्ञात हुआ कि आनन्द ही ब्रह्म है। क्योंकि ऐसा लगता है कि मात्र आनन्द से ही ये सारे प्राणी उत्पन्न हुए हैं और आनन्द के द्वारा ही ये जीवित रहते हैं तथा प्रयाण करके आनन्द में ही समाविष्ट हो जाते है। यही है भार्गवी विद्या वारुणी विद्या जिसकी परम व्योम द्युलोक में सुदृढ़ प्रतिष्ठा है। जो यह जानता है उसे भी सुदृढ़ प्रतिष्ठा मिलती है। वह अन्न का स्वामी औऱ अन्नभोक्ता बन जाता है। वह प्रजा सन्तति से, पशुधन से, ब्रह्मतेज से महान् हो जाता है, वह कीर्ति से महान् बन जाता है।
यह आनन्द सतत बना रहे
इसके लिए


अन्नं न निन्द्यात्‌। तद् व्रतम्‌। प्राणो वा अन्नम्‌।शरीरमन्नादम्‌। प्राणे शरीरं प्रतिष्ठितम्‌। शरीरे प्राणः प्रतिष्ठितः। तदेतदन्नमन्ने प्रतिष्ठितम्‌।स य एतदन्नमन्ने प्रतिष्ठितं वेद प्रतितिष्ठति। अन्नवानन्नादो भवति। महान् भवति प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेन। महान्‌ कीर्त्या॥

हमें अन्न की निन्दा नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह हमारे श्रम का व्रत है। वस्तुतः प्राण भी अन्न है एवं शरीर भोक्ता है। शरीर प्राण पर प्रतिष्ठित है तथा प्राण शरीर पर प्रतिष्ठित है। अतएव यहाँ अन्न पर अन्न प्रतिष्ठित है।

प्रकृति इस धरती में धातुएं तो उत्पन्न करती ही है वह प्राणवान् वस्तुएं भी उत्पन्न करती है
ऐसी अद्भुत रही है हमारी प्राचीन काल की शिक्षा जबकि हमारी वर्तमान शिक्षा का विकृत स्वरूप रहा है और हमारा दुर्भाग्य रहा है कि हमारे अंदर जड़ के प्रति आकर्षण पैदा किया गया और चेतन के प्रति विकर्षण
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम तैत्तिरीय उपनिषद् का अध्ययन अवश्य करें इसकी शिक्षावल्ली अद्भुत है अध्ययन के पश्चात् परस्पर चिन्तन विचार करें प्रश्न पूछें उत्तर मिलेंगे ज्ञान का कोष खुल जाएगा ज्ञान प्राप्त कर लेने पर हमें और कुछ प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रह जाती ज्ञान ही हमें शक्तिसम्पन्न भी बनाएगा
हमारी युगभारती का मूल लक्ष्य यही होना चाहिए
हमारा कर्तव्य है कि हम अपने लोगों की निराशा दूर करते रहें नई पीढ़ी का भी मार्गदर्शन करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत श्रीवास्तव जी भैया प्रदीप वाजपेयी जी भैया शरद तिवारी जी भैया प्रशान्त मिश्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

30.3.24

 हम उदय के गीत, गति के स्वर, प्रलय के शोर भी हैं

 हम गगन के मीत हैं, पाताल के प्रहरी, कभी घनघोर भी हैं
 हम हलाहल पी हँसे हैं हर तिमिर काँपा यही इतिहास मेरा
 मानवी जय की पताका हम, प्रभा के तूर्य धिक् यह लोभ घेरा ।
 बज उठें फिर शंख मंगल आरती के झाँझ और मृदंग,

भागे मुँह छिपा तम जो घनेरा है।
उठो साथी उठो अभी सबेरा है।
उठो अब भी सबेरा है


प्रस्तुत है स्थूललक्ष्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 30 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण
  *९७५ वां* सार -संक्षेप
1 दानशील

प्रतिदिन इन सदाचार संप्रेषणों के विचार श्रवणसुभग आनन्ददायक तो होते ही हैं विचारोपरान्त करणीय भी होते हैं और यदि हमें इस सिलसिले का अभ्यास हो जाए
तो दोषयुक्त होने पर भी हम सहज कर्मों का त्याग नहीं करेंगे
 आइये अद्भुत विचारों से लाभ प्राप्त करने के लिए प्रवेश करें आज की वेला में

हम सभी को प्रतिष्ठा/प्रशंसा प्रिय लगती है लेकिन जगत के मूलस्वर के मधुर गान और दैव के वरदान मनोनिग्रह से ही मनुष्य जीवन की उपयोगिता सिद्ध होती है
मन को वश में रखने का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है कि उसे सदैव सद्विचार निमग्न रखा जाए सद्गुणों से भक्ति का हम प्रयास करते रहें तो हम शक्तिमय हो जाएंगे हमारा तेजस प्रकट होने लगेगा हम अपयश नहीं चाहते सुख संपत्ति चाहते हैं अपने शरीर की शुद्धि के लिए मन के निग्रह के लिए बुद्धि के प्राखर्य हेतु एक सहज क्रम बनाना होगा समय सारिणी बनानी होगी हम शस्त्र शास्त्र शक्ति सामर्थ्य पौरुष पराक्रम से अभिमन्त्रित होने का प्रयास करते रहें
राष्ट्रहित के कार्य करते चलें आत्मनियन्त्रण का प्रयास करें

प्रतिष्ठा या प्रशंसा के लिए हम आग्रही हैं
मगर यह ध्यान हो क्या सच मनस् के निग्रही हैं
मनोनिग्रह सदा ही दैव का वरदान होता
जगत के मूलस्वर का मधुर मोहक गान होता

संसार का आनन्द हमें तभी प्राप्त होगा जब हमारे अन्दर स्थित संसार में सामञ्जस्य समन्वय रहेगा
भगवान् कृष्ण से अर्जुन पूछते हैं

किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम।

अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते।।8.1।।

वह ब्रह्म क्या है,अध्यात्म क्या है, कर्म क्या है? अधिभूत, अधिदैव क्या हैं?
और पूछते हैं

यहाँ अधियज्ञ कौन है? इस शरीर में कैसे स्थित है ? संयत चित्त वाले मनुष्यों द्वारा अन्तकाल में आप किस प्रकार जाने जाते हैं?
तो भगवान् उसे समझाते हैं
वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव

दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्।

अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा

योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्।।8.28।।


योगी शुक्लमार्ग,कृष्णमार्ग के रहस्य को जानकर वेदों,यज्ञों, तपों में तथा दान में जो भी पुण्यफल बताए गए हैं, उन सभी का अतिक्रमण कर जाता है, आदिस्थान परमात्मा को प्राप्त हो जाता है।

हमारी संस्कृति संश्लेषणात्मक है संयुक्त रहने में हम प्रसन्न रहते हैं
हम कहते हैं
 अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पङ्कज जी का नाम किस प्रसंग में लिया लेखपाल क्या ढूंढ रहा था कल आचार्य जी कहां जा रहे हैं जानने के लिए सुनें

29.3.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 29 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण *९७४ वां* सार -संक्षेप

प्रस्तुत है स्थूललक्ष ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 29 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण
  *९७४ वां* सार -संक्षेप
1 दानशील

स्थान :उन्नाव
यह सदाचार संप्रेषण रूपी आनन्दार्णव हमारा भय भ्रम हमारी व्याकुलता समाप्त करने में सक्षम है हमें इसका लाभ उठाना चाहिए
संगठन में शक्ति है मिलकर चलने में हम सफल सशक्त उद्यमी उत्साहित रहेंगे आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अच्छे विचारों की चर्चा अवश्य करें नई पीढ़ी का भी मार्गदर्शन करें
यदि संसार के कार्यव्यवहार के साथ चिन्तन मनन विचार भी बना रहेगा तो हमारा उत्कर्ष अवश्य होगा


हम अणुआत्मा हैं और विभुआत्मा से हमारा संबन्ध है

ब्रह्मसत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापर: अर्थात् ब्रह्म सत्य है और जगत् मिथ्या
लेकिन मिथ्या और सत्य का सम्बन्ध बड़ा अद्भुत है
 जीव ही ब्रह्म है इसके अतिरिक्त कुछ नहीं । भगवान् शङ्कराचार्य के अद्वैत दर्शन का यही मूल आधार है ।
रामानुजाचार्य कहते हैं जगत् ब्रह्म का शरीर है

 शरीर मिथ्या है शरीरी मिथ्या नहीं
किसी की मृत्यु पर हम कहते हैं वो चले गए जब कि शरीर तो पड़ा हुआ दिख रहा है

मध्वाचार्य कहते हैं ब्रह्म सत्य है किन्तु जड़त्व के कारण वह परतन्त्र है वल्लभाचार्य के अनुसार जगत् कार्य है और ब्रह्म कारण
यह भिन्नता भी अद्भुत है

तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्ना, नैको ऋषिर्यस्य मतं प्रमाणम् ।
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां, महाजनो येन गतः स पन्थाः ।। { महाभारत-वनपर्व ~ ३१३-११७ }

परशुराम अवतार अद्भुत है

अग्रत: चतुरो वेदा: पृष्‍ठत: सशरं धनु:।
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि।।

चार वेद मौखिक हैं अर्थात् पूर्ण ज्ञान , पीठ पर धनुष बाण हैं अर्थात् शौर्य कहने का तात्पर्य है कि यहां ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज दोनों ही हैं। जो भी इनका विरोध करेगा, उसे शाप देकर अथवा शर (बाण) से परशुराम पराजित करेंगे, ऐसी है उनकी विशेषता

गीता में
विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।

शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।5.18।।

ज्ञानी महापुरुष विद्या और विनय से युक्त ब्राह्मण (जिसमें भान है लेकिन अभिमान नहीं )में, चाण्डाल में, गाय, हाथी, कुत्ते में भी समरूप परमात्मा को देखने वाले होते हैं।

कठोपनिषद् के अनुसार
ब्रह्म और जीव का संबन्ध धूप और छाया की तरह है (छाया और अंधकार में अन्तर है)

धर्म के दस लक्षणों का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने भावना कामना वासना में अन्तर बताया इसी प्रकार शौर्य निराशा का अन्तर स्पष्ट किया मोह त्याग का मूल भी है यह बताया स्पर्धात्मक चिन्तन को भी सुस्पष्ट किया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अमित गुप्त जी का नाम क्यों लिया

आचार्य जी आज उन्नाव क्यों आये हैं जानने के लिए सुनें 

28.3.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 28 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण ९७३ वां सार -संक्षेप

 समय के साथ युग को भांपकर दृढ़  पग बढ़ाओ 

चुनौती आ पड़े तो चिंतना में गुनगुनाओ 

न भ्रम भय और हिम्मत की नहीं कोई कमी हो 

विजय पथ पर कदम के साथ  विजयी गीत गाओ


प्रस्तुत है अप्रतिपक्ष ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार  28 मार्च 2024 का  सदाचार संप्रेषण 

  ९७३ वां सार -संक्षेप

1 अनुपम


इन सदाचार संप्रेषणों के विचार अद्भुत हैं हमारे लिए ये लाभकारी तभी हैं जब हम इन्हें क्रिया में परिवर्तित करें 


आनन्द और उत्साह के साथ हमें अपने लक्ष्य (सामान्य या परम )की प्राप्ति हेतु आगे बढ़ते रहना चाहिए बड़े से बड़े संकट आने पर भी 


लक्ष्य न ओझल होने पाए, कदम मिलाकर चल ।

मंजिल तेरे पग चूमेगी, आज नहीं तो कल ॥

यही रामत्व है

किसी भी प्रकार से मन में दंभ न रखते हुए दंभी का अवसान -संकल्प रामत्व है यह है भारतीय मनीषा का चिन्तन- पथ 


और इससे विपरीत रावणत्व देखिए 

छुधा छीन बलहीन सुर सहजेहिं मिलिहहिं आइ।

तब मारिहउँ कि छाड़िहउँ भली भाँति अपनाइ॥ 181॥

भूख से दुर्बल और बलहीन होकर सुर आसानी से आ मिलेंगे। तब या तो उनको मैं मार डालूँगा अन्यथा भली-भाँति अपने अधीन करके छोड़ दूँगा


निराशा में आशा की किरण दिखाती आचार्य जी द्वारा रचित निम्नांकित पंक्तियां देखिए 


मैं कौन हूं क्या हूं कहां हूं और क्या करना मुझे 

सच बताऊं कुछ नहीं जाना बताऊं क्या तुझे 

जन्म जीवन जागरण से शयन तक का सिलसिला

सतत चलता चल रहा है एक एकल काफिला 

काफिले से छूटना भयभीत कर देता मुझे 

हे प्रभु आनन्ददाता ज्ञान फिर कुछ दीजिए


मानसिक और भावनात्मक शांति देने वाला अध्यात्म सदैव शौर्य से प्रमंडित होना चाहिए 


आंख हर दर पर  मनस् हो एक दर पर 

आत्म का विस्तार जग भर के बशर पर 

पर भरत -भू की प्रथा यह भी रही है 

वज्र का आघात हरदम ही कहर पर



हम यह भ्रम न पालें कि हर पुस्तक ज्ञान की गंगा है आचार्य जी ने यह सुस्पष्ट किया कि कला जीवन के लिए होनी चाहिए और अवतारवाद के पीछे का उद्देश्य बताया हम दशावतार ही देख लें 

एक परिस्थिति के अनुसार परमात्मा का स्वरूप इस सृष्टि के संरक्षण परिरक्षण संवर्धन और दिशा -दृष्टि देने हेतु अवतार के रूप में प्रकट होता है 

अवतारवाद भ्रम नहीं है हमें परशुराम के लिए भ्रमित किया गया 

शौर्यप्रमंडित अध्यात्म में क्षात्र -धर्म और ब्राह्मण- धर्म साथ साथ चलते हैं 


आचार्य जी ने अपने दीनदयाल विद्यालय में रसायन विज्ञान के आचार्य श्री कोहली जी के प्रसंग का उल्लेख करते हुए क्षात्र -धर्म और छात्र -धर्म में सामञ्जस्य को अनिवार्य  बताया इसी सामञ्जस्य का एक उदाहरण निम्नांकित है 

धर्मरक्षक प्रतापी संत परशुराम देव ने अपने तपोबल से राजस्थान में फकीरों के हिन्दू विरोधी उन्माद का पर्याप्त मात्रा में शमन किया था 


इसके अतिरिक्त जयपुर से आमेर मार्ग पर क्या बना है जिसे हमें देखना चाहिए आदि जानने के लिए सुनें

27.3.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 27 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण ९७२ वां सार -संक्षेप

 देशभक्ति दायित्व-बोध सत्कर्म यही है,

मानव-जीवन का सचमुच में मर्म यही है,

कि, जो जिस जगह और जिस पद हद रूप नाम में,

आंख खोल संयम निष्ठा से लगे काम में ।।

✍️ओम शंकर


प्रस्तुत है अपभी ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार  27 मार्च 2024 का  सदाचार संप्रेषण 

  ९७२ वां सार -संक्षेप

1 निडर



इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर इनसे लाभान्वित होकर हम अपने जीवन में क्या करते हैं यह महत्त्वपूर्ण है हम व्यस्त रहें लेकिन उसमें अस्तव्यस्तता न हो  व्यस्तता ऐसी हो कि जो कार्यव्यवहार करें उसमें आनन्द की प्राप्ति हो रही हो और अच्छा परिणाम भी प्राप्त हो रहा हो परमात्मा सर्वाधिक व्यस्त रहता है और इसी कारण वह आनन्दपूर्वक सृष्टि का संचालन करता रहता है उसे कोई उलझन नहीं रहती 


अनगिनत रूप इस जीवन के क्रमवार बताना मुश्किल है

दीपक जैसी यह ज्योत टिमकती जलती रहती तिल तिल है

तिल तिल जलकर प्रकाश देते रहना ही इसका लक्षण है

मानव जीवन सचमुच में अद्भुत अनुपम और विलक्षण है

मानव जीवन विलक्षण और अद्भुत है लेकिन इसकी जब हमें अनुभूति हो तब 

परमात्मा से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि इस जीवन का आनन्द हमें प्राप्त हो 

हमें अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए लेकिन असंतुष्ट रहते हुए

असंतुष्टता ही हमें और अधिक ज्ञान बटोरने के लिए प्रेरित करेगी 

हमें अपनी प्राचीन गौरव गाथा को जानने का हर प्रकार का प्रयास करना चाहिए  

इसके लिए आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम सुरुचि प्रकाशन के पञ्चाङ्ग को क्रय कर लें उसे भलीभांति पढ़ें भी  और अन्य लोगों को भी प्रेरित करें 


हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी

आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी

भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां

फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां

संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है

उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है


नाम रूप व्यवहार सामञ्जस्य भाषा वाणी में चिन्तन अवश्य करें अन्यथा जीवन सारहीन हो जाएगा ऐसा बोलिए जिसका असर हो और जिससे लोग आहत न हों

हमारे अन्दर जो हीनभाव आ गया है उसे दूर करें हमें अपनी भाषा भूषा आदि पर गर्व करना चाहिए और संसार हमारी प्रशंसा करे 

हमारे देश में सादगी संयम स्वाध्याय तप त्याग सेवा शौर्य का प्रचार होता है राष्ट्रहित में साधना करने का प्रचार होता है ऐसी है हमारी संस्कृति 

अंग्रेज संकल्पबद्ध थे तभी अंग्रेजी भाषा पूरे संसार में व्याप्त हो गई 

क्या हम अपनी भाषा के लिए संकल्पबद्ध नहीं हो सकते? अवश्य हो सकते हैं भाषाई संयम भी आवश्यक है 

इसके अतिरिक्त Happy Lushera क्या है कल वर्षफल कहां हुआ आचार्य जी ने भैया अभय गुप्त जी भैया शीलेन्द्र जी भैया विजय गुप्त जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

26.3.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 26 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण *९७१ वां* सार -संक्षेप

प्रस्तुत है अपभय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 26 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९७१ वां* सार -संक्षेप
1 निडर
आचार्य जी जैसे निडर संत हमें जाग्रत करने के लिए उत्थित करने के लिए पुरुषार्थी बनाने के लिए निरन्तर प्रयास करते रहते हैं
यदि हम संस्कारमयी शिक्षा वाले इन सदाचार संप्रेषणों के विचारों को व्यवहार में उतार लें तो हमें ये अत्यन्त लाभ पहुंचाएंगे
हमारे लिए अध्यात्म तो आवश्यक है ही शौर्यमय कर्ममय सिद्धान्तमय जीवन भी आवश्यक है
शौर्यप्रमंडित अध्यात्म है तो हमें संसार को देखना ही है ऐसा अध्यात्म समस्याओं का समाधान सुझा देता है हम रामत्व की अनुभूति करें हम केवल तत्त्व नहीं शक्ति, विश्वास भी हैं जो परमात्मा है वही हम हैं
सोऽहं सोऽहम्
यह अनुभूति अद्भुत है
इसका वर्णन नहीं किया जा सकता यह अध्यात्म के आनन्द की अवस्था है हमें इसका प्रयास करना चाहिए
अबिगत गति कछु कहति न आवै।
ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥
परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।
मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥
भगवान् का भजन अद्भुत है लेकिन चंचल मन के कारण हम विषय वासनाओं में पड़े रहते हैं जो क्षणिक हैं

न तो और सबै विष-बीज बये हर-हाटक काम-दुहा नहि कै
इसलिए
उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।

आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।6.5।।

अपना अधःपतन नहीं करना चाहिए अर्थात् अपने आत्मा को नीचे नहीं गिरने देना चाहिए क्योंकि यह आप ही अपना बन्धु है। दूसरा कोई बन्धु नहीं है जो संसार से मुक्त करने वाला हो।
हम ऐसी भूमि में जन्मे हैं सौभाग्यशाली हैं कि हमें अनगिनत संत मिले हैं हमें इनका सम्मान करना चाहिए
आचार्य जी ने दो पुस्तकों *उत्तर भारत की संत परम्परा* और *मराठी संतों की देन* की चर्चा की
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने नागपुर का कौन सा प्रसंग बताया

शौर्यप्रमंडित अध्यात्म के विग्रह कौन कौन से हैं जानने के लिए सुनें 

25.3.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 25 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण *९७० वां* सार -संक्षेप

 विकार विश्व-सृष्टि का घुलामिला स्वभाव है ,

विकार का सभी जगह जरूर कुछ प्रभाव है ,
विचार जब विकार को रचा पचा खड़ा हुआ ,
लगा कि सर्वदूर ही विकार का अभाव है ।
-ओम शंकर


प्रस्तुत है सावधान ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 25 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण
  *९७० वां* सार -संक्षेप
1 परिश्रमी

आज होलिकोत्सव है अपने विकारों को जला दें और संस्कारों को पल्लवित करें
आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः॥

यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः।

हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः।।12.15।।

हमारा देश पर्वों उत्सवों मंगलविधानों मंगलकार्यों का देश है भारतवर्ष में उत्सवप्रियता अत्यधिक रमी हुई है ये पर्व उत्सव भारतवर्ष की शक्ति हैं चिन्तन और विभूति हैं अद्भुत दृष्टि रखने वाले ऋषियों ने इस संसार की पीड़ाओं को विस्मृत करने के लिए और संसार -स्रष्टा के क्रियाकलापों को कथा कहानी के माध्यम से जानने के लिए उत्सवों की विधि व्यवस्था बना दी
 हमारा कर्तव्य है कि हम अध्ययन चिन्तन विचार करते हुए नई पीढ़ी, जो अत्यन्त बुद्धिवादी है, को मार्गदर्शन दें
समस्याओं के समाधान में उलझने से भगवान् हमें बचाता है यह विश्वास हमें रखना चाहिए यही भक्ति है
भगवान् राम का लक्ष्य अनगिनत घटनाओं के घटने के बाद भी ओझल नहीं हुआ भगवान् कृष्ण भी अर्जुन का लगातार मार्गदर्शन करते रहे कि अर्जुन अपने लक्ष्य से विमुख न हो ये कथाएं चिन्तन मनन की कथाएं हैं आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि हम कृष्ण जन्माष्टमी तो मनाते हैं लेकिन कृष्ण का विजयोत्सव नहीं
इन कथाओं के माध्यम से अपने भीतर के तत्त्वों की जागृति होती है
 महान् जन जिस मार्ग पर चलते हैं हमें उसी का अनुसरण करना चाहिए
प्रथाओं को जीवन्त करने की आवश्यकता है
सतत चिन्तन में रत रहें
आचार्य जी ने फाग के बारे में क्या बताया और सुख दुःख के बारे में किससे पूछने की आवश्यकता है जानने के लिए सुनें

24.3.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी/पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 24 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण

 

प्रस्तुत है रक्तप -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी/पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार  24 मार्च 2024 का  सदाचार संप्रेषण 

  ९६९ वां सार -संक्षेप

1 पिशाच -शत्रु

ये सदाचारसंप्रेषण हमारी कमजोरियों को दूर करने के उपाय हैं आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम शैथिल्य आदि दूर कर राष्ट्र के कल्याण हेतु तेजस्वी जयस्वी मनस्वी यशस्वी बनें  परमात्मा की कृपा हो और अपने विकार दूर हो जाएं तो क्या कहना 

प्रतिदिन हमको सत् का अभ्यास करना है और असत् का त्याग करना है

आत्मविस्तार का प्रयास करना है हमको बल देने वाले रामत्व को जानने की आवश्यकता है यह अनुभूति करें कि हम भी अवतार हैं गुणों का प्राचुर्य लाने का प्रयास करें अपने अंदर आत्मबल शक्ति पराक्रम आस्था भक्ति संजोएं 

तुलसीदास जी की कृति विनय पत्रिका, जिसके पद वेदमन्त्रों की तरह के हैं और गेय हैं, से ली गई ये पंक्तियां देखिए

जिसमें बताया गया है कि ईश्वर की कृपा के बिना हमारे मन के माया मोह अहंकार आदि  भ्रम संदेह संशय दूर नहीं होते हैं अपना स्वभाव विषय वासनाओं से युक्त है

भक्ति ज्ञान वैराग्य की सहायता से संसारसागर को पार किया जा सकता है सभी लोग सुख प्रशंसा प्रतिष्ठा चाहते हैं  प्रभु चाहेंगे तो ही इन्द्रियजन्य सुख दुःख लाभ हानि मिटेंगे 

भाषा -ब्रज

अलंकार -अनुप्रास

रस -शांत (स्थायी भाव निर्वेद )

इसमें विष्णु सहस्रनाम के ४७वें नाम हृषीकेश, जिसका अर्थ है इन्द्रियों के स्वामी, का उल्लेख हुआ है 


हे हरि! कवन जतन भ्रम भागै।

देखत, सुनत, बिचारत यह मन, निज सुभाउ नहिं त्यागै॥१॥

भक्ति, ज्ञान वैराग्य सकल साधन यहि लागि उपाई।

कोउ भल कहौ देउ कछु कोउ असि बासना ह्रदयते न जाई॥२॥

जेहि निसि सकल जीव सूतहिं तव कृपापात्र जन जागै।

निज करनी बिपरीत देखि मोहि, समुझि महाभय लागै॥३॥

जद्यपि भग्न मनोरथ बिधिबस सुख इच्छित दुख पावै।

चित्रकार कर हीन जथा स्वारथ बिनु चित्र बनावै॥४॥

ह्रषीकेस सुनि नाम जाउँ बलि अति भरोस जिय मोरे।

तुलसीदास इन्द्रिय सम्भव दुख, हरे बनहि प्रभु तोरे॥५॥


भगवान् कृष्ण गीता में समझा रहे हैं


इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।


मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।3.42।।


शरीर से परे इन्द्रियाँ  हैं;  इन्द्रियों से परे मन, मन से परे बुद्धि  और  बुद्धि से भी परे है आत्मा


एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।


जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।3.43।।


इस प्रकार जब यह जान लिया है कि बुद्धि से परे  आत्मा है  तो बुद्धि के द्वारा मन को वश में  करके तुम कामरूप शत्रु को मारो



इसके अतिरिक्त कौन फोन करने के बाद पांच मिनट के अंदर आचार्य जी के पास पहुंच गया कौन बबूल का पेड़ उखाड़ नहीं पाया आदि जानने के लिए सुनें