30.11.21

दिनांक 30/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है जैवातृक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30/11/2021 का सदाचार संप्रेषण


मनोयोग पूर्वक काम करते करते हम लोग उस काम में रम जाते हैं और तब हमें अपने शरीर की व्यथाओं का भी अनुमान नहीं लगता

मन पर लिखी आचार्य जी ने अपनी रची एक कविता सुनाई

मानव हूं मन के साथ सदा रहता हूं,

अनायास ही रुक टुक कर बहता रहता हूं।

मन मानव का शत्रु मित्र परिवार पड़ोसी

बेचारा मित्रता निभाकर बनता दोषी,

आजीवन मानव का उसने साथ न छोड़ा

नहीं किसी भी दिशा काल में बंधन तोड़ा,

फिर भी संत विरक्त और ज्ञानी विज्ञानी

आत्मा के हिमायती त्रिकुटी वाले ध्यानी ,

अरे मन को सदा कोसते चिढ़ते नहीं अघाते,

और 'मन को बांधो'  सबको हरदम यही बताते ,

और मन बेचारा है कि सभी कुछ सहता रहता,

कभी किसी से नहीं न किंचित कहता ,

अपमानित होकर भी पूरा साथ निभाता,

इसीलिए यह मेरा साथी मुझको भाता ,

मैं सलाह दूंगा 'अपने मन को पहचानो'

और उससे बात करो उसका अभ्यन्तर जानो।।

आप अपने मनस् में उतरकर यह अनुभूति करें कि मैं कौन हूं

गीता में 

न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।


न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति।।3.4।

अर्जुन ! मानव न तो कर्मो को न आरम्भ करने से निष्कर्मता की अन्तिम स्थिति को पाता है और न आरम्भ की हुई क्रिया को त्यागने भर से भगवत् प्राप्ति रूपी परम सिद्धि को  प्राप्त होता है। अब तुम्हें ज्ञान मार्ग अच्छा लगे या निष्काम कर्म मार्ग, दोनों मे कर्म तो करना ही पङेगा। 

           प्रायः इस स्थान पर लोग भगवत्पथ में संक्षिप्त मार्ग और बचाव ढूँढने लगते हैं। "कर्म आरम्भ ही न करें , हो गये निष्कर्मी"- कहीं ऐसी भ्रान्ति न रह जाय, इसलिये श्रीकृष्ण बल देते हैं कि कर्मों को न आरम्भ करने से कोई निष्कर्म भाव को नहीं प्राप्त होता। शुभाशुभ कर्मो का जहाँ अन्त है, परम निष्कर्मता की उस स्थिति को कर्म करके ही पाया जा सकता है। इसी प्रकार बहुत से लोग कहते हैं, "हम तो ज्ञान मार्गी है, ज्ञान मार्ग में कर्म है ही नहीं।"- ऐसा मानकर कर्मो को त्यागने वाले ज्ञानी नहीं होते। आरम्भ की हुई क्रिया को त्यागने मात्र से कोई भगवत् साक्षात्कार रूपी परम सिद्धि को प्राप्त नहीं होता है l

तदाकार होना अत्यन्त आवश्यक है 

आचार्य जी ने यह बताया कि जब वे BA में थे तो उनको अध्यापक खेर जी और अध्यापक वाजपेयी जी ने किस तरह पढ़ाया

आप जो काम कर रहे हैं उसको भली प्रकार से समझते हुए करते चलेंगे तो आपको अच्छा भी लगेगा और आप उसके रहस्यों को भी जानते जाएंगे

आचार्य जी ने 

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।


यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।2.69।।

आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं


समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।


तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे


स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।2.70।।

को उद्धृत करते हुए बताया कि जब हमने संपूर्ण संसार के आनन्द को भोग लिया और इस आनन्द की अनुभूति करने के पश्चात् हम यह भी जानें कि आनन्द का स्रोत क्या है  तो यह जिज्ञासा ही अध्यात्म का द्वार है l तब लगता है कि यह संसार अच्छा नहीं है कुछ और अच्छा है यही मोक्ष है


दिल्ली में अकबर का क्या हाल है? यह किसने कहा आदि जानने के लिए सुनें

29.11.21

दिनांक 29/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है समाख्यात आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

यश की कामना मनुष्य के साथ पूरे जीवन संयुत रहती है संन्यास लेने के बाद भी वह यशस्विता प्राप्त करने की चेष्टा करता है कि मुझे मोक्ष का यश प्राप्त हो गया यश केवल धन से, शक्ति से, विभिन्न उपलब्धियों से नहीं आता अपितु अपने विचारों के साथ आता है और ये विचार विशेष प्रकार की मानवीय व्यवस्था से संयुत है और हमारी संस्कृति में मानवीय व्यवस्थाओं पर सबसे अधिक विचार हुआ है

हमारे चक्रवर्ती सम्राट बिना रक्तपात किये विस्तार करते थे और उन्होंने विश्वगुरुत्व की एक कल्पना की

हमें राक्षसी संस्कृतियों से संघर्ष करने की भी आवश्यकता है l धर्म पूजापाठ नहीं है धर्म किसी वस्तु की विधायक आन्तरिक वृत्ति है प्रत्येक पदार्थ का एक व्यक्तित्व होता है वही उस पदार्थ का धर्म है

यतो अभ्युदय नि: श्रेयस सिद्धि: स: धर्म:

अर्थात् जिससे इस जीवन में अभ्युदय (उन्नति) और भावी जीवन में मोक्ष की सिद्धि हो , वह धर्म है |

वेदः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियं आत्मनः । एतच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाद्धर्मस्य लक्षणम् ।

मनुस्मृति 6 /92 में धर्म के दस लक्षण बताये गए हैं ।


धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥


1 – धृति ( धैर्य रखना, संतोष )


2 – क्षमा ( दया , उदारता )


3 – दम ( अपनी इच्छाओं को काबू करना , निग्रह )


4 -अस्तेय ( चोरी न करना , छल से किसी चीज को हासिल न करना )


5 -शौच ( सफाई रखना , पवित्रता रखना )


6 -इन्द्रिय निग्रह ( इन्द्रियों पर काबू रखना)


7 -धी ( बुद्धि )


8 – विद्या (ज्ञान)


9 – सत्य ( सत्य का पालन करना , सत्य बोलना )


10- अक्रोध ( क्रोध न करना )

धर्म सन्मार्ग का पहला उपदेश है उन्नति का एक नियम है संयम उस नियम के पालन को कहते हैं संस्कार उन संयमों का सामूहिक फल है और किसी विशेष देश काल के निमित्त विशेष प्रकार की उन्नत अवस्था में प्रवेश करने का द्वार है और सारे संस्कारों को व्यक्तित्व के विकास का आधार कहते हैं

सांस्कृतिक विकार ज्यादा खतरनाक है इस तरह के वैचारिक तूफान को समाप्त करने की आवश्यकता है पहले स्वयं में परिवार में से इसे शमित करें हमारे अन्दर हनुमानत्व को प्रवेश कराने की आवश्यकता है हनुमान अर्थात् संयम साधना सेवा शक्ति भक्ति का प्रतीक  हनुमान के गुणों को अपने अन्दर प्रवेश कराएं यही धर्म है और इससे ही धर्म का विस्तार हो जायेगा प्रतिदिन शरीर को मानस को शुद्ध करें

पठन पाठन, यजन याजन, दान देना दान लेना ये सब ब्राह्मणोचित कर्म हैं

हमारा एक धर्म है हिन्दु धर्म l

इसके अतिरिक्त डा शान्तनु जी के बारे में आचार्य जी ने क्या बताया  जानने के लिए सुनें

28.11.21

दिनांक 28/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है वद आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

जबरदस्ती संन्यास को धारण करना भी अपराध है परिस्थितिवश बहुत से लोग अन्त तक गृहस्थ आश्रम को त्याग नहीं पाते l भक्तिकाल में गृहस्थ धर्म को बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा गया लेकिन ये साहित्य के ऐसे अंश हैं जिनसे चिढ़ना नहीं चाहिए l

कल की बात को विस्तार देते हुए आचार्य जी ने बताया कि दान का अर्थ हमें समझना चाहिए l हम लोग कन्या का दान सुयोग्य वर को देखकर करते हैं क्यों कि हम भविष्य की सृष्टि का संचालन करने जा रहे हैंl परिवारों के संस्कारों को बढ़ाएं l

धन आदि का दान करें तो दम्भ न करें l

अब आज के मुख्य विषय की ओर उन्मुख होते हैं -

वेद ज्ञान है उपनिषद् दर्शन है पुराण महाभारत रामायण हमारा इतिहास है गीता श्री रामचरित मानस साहित्य है इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ है इनका आधार बनाकर चलने पर हम भ्रमित नहीं होते l इनके प्रति हमारी श्रद्धा हो जिज्ञासा हो इसकी आवश्यकता है स्वाध्याय चिन्तन मनन करें और इसके लिए समय भी निकालें l आचार्य जी ने पूजा के महत्त्व को बताया घर को पाठशाला बनाकर बच्चों को सिखाएं l अपने भीतर की शक्ति का सदुपयोग करना हम लोग सीखें और  परिवार को आधार मानकर हम लोग विकासोन्मुख होएं l इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आचार्य श्री शेंडे जी की कौन सी एक बहुत अच्छी बात बताई  जानने के लिए सुनें

27.11.21

दिनांक 27/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है आचक्षुस् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27/11/2021 का सदाचार संप्रेषण


प्रापञ्चिक जगत् में रहते हुए सदाचार की ओर उन्मुखता तत्परता जिज्ञासा मनुष्य का पुरुषार्थ है

आचार्य जी का कहना है भगवान् की कृपा से ही यह सदाचार वेला चल रही है इसमें किसी को दम्भ नहीं करना चाहिए

लिखन बैठि जाकी छबी, गहि-गहि गरब गरूर। भए न केते जगत के, चतुर चितेरे कूर॥ - बिहारी


इस अपूर्व सुंदरी   का चित्र बनाने के लिए, न जाने कितने  अहंकारी चित्रकार आए, परन्तु सब  असफल सिद्ध हो गए। भाव यह है कि इस रमणी की सुन्दरता की छवि, पल-पल बदलती रहती है। वह चित्र बनाकर जैसे ही चित्र और  सुंदरी का मिलान करता है, उसे भिन्नता दिखाई देती है।  उसका महान चित्रकार होने का  अहंकार चूर हो जाता है।


क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः

प्रतिक्षण जो नवीनता को प्राप्त करे वह ही रमणीयता का स्वरूप है ।

जो स्वस्थ है वह न तन का और न मन का दास होता है स्वस्थ अर्थात् अपने में स्थित है जो l

भैया संदीप शुक्ल जी (बैच 1983) की बिटिया का संदीप जी से प्रश्न था कि कन्यादान क्या है

आचार्य जी ने इसका बहुत अच्छा अर्थ बताते हुए कहा कि परमात्मा भी जब आत्मदान करता है तो सृष्टि की रचना होती है यज्ञ दान तप कभी न त्यागें

गीता के सोलहवें अध्याय में

अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः ।

दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्‌ ॥ (१) का 

और 17 वें का 25 वां,18 वें से 43 वां का अध्ययन करें l

दान सुपात्र को ही करें l

प्रकृति के स्थानान्तरण के मूल में भी दान है l जो व्यक्ति जितने स्थान बदलता है उतना ही विकसित होता है l

गीता मानस का अध्ययन करें

देश को इस समय जागरूक व्यक्ति की आवश्यकता है इसलिए हमें जाग्रत होना है 

 इसके अतिरिक्त विश्वामित्रीय सृष्टि क्या है,बीजू आम क्या है ऋषि कन्या क्या है आदि जानने के लिए सुनें 👇

26.11.21

दिनांक 26/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कीर्तिभाज् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

कल मलय भैया (बैच 1982) के पुत्र अभिजात जी के विवाहोपरान्त आयोजित आशीर्वाद समारोह में आचार्य जी दीपक आचार्य जी और युगभारती के कई सदस्य बड़ीआत्मीयता के साथ मिले और मलय भैया ने अत्यन्त प्रेम और आनन्द के साथ उन सभी का स्वागत किया

आचार्य जी ने संस्कृति और विकृति में अन्तर स्पष्ट करते हुए कहा कि हम युगभारती के सदस्यों को संयम आत्मविश्वास और सुस्पष्ट चिन्तन वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः के साथ हर जगह जुड़ा रहना चाहिए

 आपने Emergency का उल्लेख किया विद्यालय पर कुठाराघात हो गया हमें आपातकालीन संघर्ष गाथा आदि पुस्तकों को पढ़ना चाहिए

आज भी देश पर संकट के बादल छाएं हैं देश की स्थिति गम्भीर है ऐसे समय भावुक चिन्तक क्षमतासम्पन्न लोग भ्रमित हो जाते हैं तो स्थिति और गम्भीर हो जाती है

अर्जुन को मोह हो गया तो 


गुरूनहत्वा हि महानुभावान्


श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके।


हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव


भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान्।।2.5।।


लेकिन अर्जुन में विवेक है


कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः


पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः।


यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे


शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।2.7।।

हमें भी अपने विचारों पर विश्वास रखना होगा


राम और कृष्ण हमारी भारत भूमि के दो बहुत बड़े मार्गदर्शक हैं   किन परिस्थितियों में क्या करना चाहिए के लिए और आत्मशक्ति संवर्धन के लिए मानस और गीता का हमें अध्ययन करना चाहिए

कर्म के लिए हम अकेले कुछ नहीं कर सकते बल्कि प्रेमपूर्वक विश्वासपूर्वक आत्मीयतापूर्वक संगठन करने की आवश्यकता होती है

बहुत से ऐसे संगठन हैं जो सुख सुविधाएं तो देते हैं लेकिन राष्ट्रनिर्माण में इनका योगदान नगण्य रहता है

धन ही साधन नहीं है मनुष्य के अन्दर की भावना विचार विश्वास राष्ट्र का निर्माण करते हैं बिरसा मुण्डन एक उदाहरण है धनिकों से भी राष्ट्र बनते हैं लेकिन तब जब

उनकी भामाशाह जैसी वृत्ति हो  जिसने देश के लिए  सुधर्म के लिए पूरे जीवन की कमाई महाराणा प्रताप को सौंप दी

इसलिए भामाशाह त्याग के प्रतीक बन गए हम थोड़ा सा त्याग करके यदि त्यागी बन जाते हैं तो यह विकृति है देने की भावना रहे और उत्साह रहे तो यह संस्कृति है

हमारे अन्दर ये भाव विचार कैसे आएं इसके लिए सही जीवनचर्या संगति स्वाध्याय धीरज सही खानपान होना चाहिए

25.11.21

दिनांक 25/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है चोक्ष आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

स्थान : उन्नाव

जिस प्रकार कथावाचक को अपने अन्दर के भाव व्यक्त करने के लिए किसी को यजमान बनाना पड़ता है इसी तरह आचार्य जी का ध्यान इस वायवीय कथा को कहते समय किसी श्रोता पर केन्द्रित हो जाता है 

आचार्य जी ने बताया कि उन्होंने अध्यापन से बहुत कुछ सीखा विवेक जाग्रत हुआ भाव जाग्रत हुए बहुत से सद्गुण विकसित हुए


हमें मृत्यु से भयभीत नहीं होना चाहिए अपितु जिज्ञासा होनी चाहिए जिज्ञासा उन्हीं की बढ़ती है जो स्वस्थ होते हैं

व्यायाम से शरीर पुष्ट होता है प्राणायाम से प्राण, प्राण प्राणिक शक्ति है आन्तरिक शक्ति है ऊर्जा है जो शरीर को चलाती है जब हम बोझ उठाते हैं तो हमारा हाथ नहीं उठाता अपितु हाथ के अन्दर की ऊर्जा उठाती है


गीताध्ययनशीलस्य प्राणायामपरस्य च ।

नैव सन्ति हि पापानि पूर्वजन्मकृतानि च ।।


जो मनुष्य सदैव गीता का पाठ करता है और प्राणायाम में तत्पर रहता है, उसके इस जन्म में और पूर्वजन्म में किये हुए सारे पाप  नष्ट हो जाते हैं ।

पाप बोझ हैं पुण्य हल्कापन है मन के अन्दर बोझिल करने वाली कामनाएं अधोगतिज हो जाती हैं

जिस प्रकार आचार्य जी शिक्षक रूप में कक्षा में जाकर हम लोगों पर दृष्टिपात् करते थे उसी प्रकार हम लोगों के सामने भी गृहस्थ-आश्रम रूपी उच्च कोटि का विश्वविद्यालय है जहां माता पिता अभिभावक आदि के अनुभवों का लाभ लेना चाहिए उन्हें प्रसन्न रखना चाहिए अपितु संपूर्ण विश्वविद्यालय पर दृष्टि रखनी चाहिए अन्यथा जीवन की कथा व्यथा बन जाएगी हमें कहीं वीरत्व धारण करना होगा कहीं शान्त रहना होगा दैन्यभाव हानिकारक है

मानस गीता बहुत अच्छे ग्रन्थ हैं

मलनिर्मोचनं पुंसां जलस्नानं दिने दिने।


सकृद्गीताम्भसि स्नानं संसारमलनाशनम्॥



मनुष्य स्नान करके प्रतिदिन अपने को स्वच्छ कर सकता है, लेकिन यदि कोई भगवद्गीता रूपी पवित्र जल में एक बार भी स्नान कर ले तो वह भौतिक जीवन (भवसागर) की मलिनता से सदैव के लिए मुक्त हो जाता है ।


सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥

बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥

कहीं राम कहीं कृष्ण कहीं अर्जुन बनने की स्थिति हमारे सामने आती रहती है इन सब का समन्वय सामञ्जस्य बैठाकर आनन्दित होकर जीवन को चलाना चाहिए

और हमें इस सदाचार वेला का भी आनन्द लेना चाहिए


इसी प्रकार युगभारती संगठन राष्ट्र के लिए है राष्ट्र से ही हमारी पहचान है यहां हमारा जन्म हुआ है यह दिव्य स्थान है

जब विद्यालय में पानी नहीं रहता था तो आचार्य जी अपने छात्रों को कहां ले जाते थे आदि जानने के लिए सुनें

24.11.21

दिनांक 24/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है मिश्रित आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

शरीर का बुद्धिमत्तापूर्वक विचारपूर्वक संयम के साथ उपयोग करना चाहिए

शरीर साधन है साध्य नहीं शरीर को साधन मानते हुए साध्य की दिशा में चलना चाहिए 

,एक साध्य तो मोक्ष है मोक्ष अर्थात् सब प्रकार की निश्चिन्तता

हमारा परिवेश पर्यावरण निश्चिंत होने पर हमें भी निश्चिन्तता होगी

निराशा हताशा कुण्ठा भय भ्रम भूख कलह बीमारी के बीच हम निश्चिन्त नहीं रह सकते इसलिए संपूर्ण प्रकृति को परिवेश को शुद्ध करने के लिए हमारे यहां यज्ञ -भाव से रहने के लिए कहा जाता था

यज्ञ -भाव  का अर्थ जैसे यह राष्ट्र का है यह देव का है और यह मैं अर्पण कर रहा हूं 


अन्नात् भवन्ति भूतानि पर्जन्यात् अन्न-सम्भवः ।

यज्ञात् भवति पर्जन्यः यज्ञः कर्म-समुद्भवः ॥

यह एक क्रम चलता है और हम मनुष्य इस सृष्टि के स्थूल से सूक्ष्म तक के माध्यम हैं इन सब उदात्त विचारों के होते हुए और जब हम ही ने संपूर्ण विश्व अपना परिवार है ऐसा अनुभव भी किया  तो भी हमें आत्मबोध नहीं आया

तत्त्वबोध के साथ आत्मबोध जिनके जीवन में चलता है वो निर्द्वन्द्व रहते हैं

आचार्य जी ने यह भी बताया कि बैरिस्टर साहब आचार्य जी के ज्ञान और संयम का किस प्रकार वर्धन करते थे

त्यागपूर्ण भोग करने का अभ्यास होना चाहिए जो प्राप्त है उससे संतोष होना चाहिए

आचार्य जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से  संस्काररूप में मिले भावों के कई प्रयोग विद्यालय में किये

सुसंगति बहुत श्रेष्ठ कार्य है संगठन में सुसंगति का एक उदाहरण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है

युग भारती के सूत्र सिद्धान्त राष्ट्रनिष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष को हमें ध्यान में रखना चाहिए


अपनों से अपनी बात आज ये कहना है

संयमित शक्ति के साथ संगठित रहना है

लालच से भय से भ्रम से मुक्त होकर हमें समाज को योगदान देना है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा मलय भैया डा नरेन्द्र भैया पुनीत भैया अरविन्द तिवारी  का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

23.11.21

दिनांक 23/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है वृन्दारक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

कल भैया डा प्रदीप त्रिपाठी 1984 के बड़े भाई का एक मार्ग दुर्घटना में आकस्मिक निधन हो गया जिसके कारण पूरे युगभारती परिवार को अत्यन्त दुःख पहुंचा

जितना अधिक परिचय होता है उतना ही अधिक दुःख होता है इसलिए कुछ लोग संन्यास ले लेते हैं जिससे परिचय छूट जाए

जीवन अत्यन्त अद्भुत है इसमें एक ओर तो प्रसन्नता, उत्साह है तो दूसरी ओर इस प्रकार की सूचनाएं मिलती हैं और ऐसे में धीरज का भी परीक्षण हो जाता है

(अरण्यकांड में)

धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥

बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना। अंध बधिर क्रोधी अति दीना॥


और ये सब सृष्टि में लगातार चलता रहता है  ऐसे संकट आएं तो मानस का स्मरण करना चाहिए

प्रेमचन्द की मृत्यु के समय के दृश्य सरीखी स्मृतियां भावनाओं को झकझोर देती हैं

तुलसी’ जस भवितव्यता, तैसी मिलै सहाय। 


आपु न आवै ताहि पै, ताहि तहाँ लै जाय॥


 भाव यह है कि  भाग्य के आगे किसी का  वश नहीं चलता।

भाग्य के लेख पढ़ना अत्यंत कठिन है इसलिए धैर्य का अभ्यास करना चाहिए और परमात्मा पर विश्वास नहीं डिगना चाहिए

हमारा लक्ष्य है मोक्ष, मोक्ष और मृत्यु में अन्तर है


 सुख हरषहिं जड़ दु:ख बिलखाहीं। दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं॥

धीरज धरहु बिबेकु बिचारी। छाड़िअ सोच सकल हितकारी॥

गीता मानस सहज ग्रंथ हैं अध्ययन करते करते धीरे धीरे कंठस्थ होने लगते हैं

हमारे पास बहुत सी वैचारिक निधियां हैं और जो प्राप्त है उससे क्या नवनीत निकाल सकते हैं और परिस्थितियों को किस प्रकार संभाल सकते हैं यह देखना चाहिए


 शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन सुरक्षा इन चार सूत्रों पर विचार करते हुए आत्मशक्ति वैचारिक शक्ति संगठित शक्ति से युक्त होकर आगे के संघर्षों के लिए तैयार रहें

22.11.21

दिनांक 22/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 कि आई ब्रह्मवेला फिर उठो जागो जगाओ ना!

नये इस नित्य नूतन जन्म का उत्सव मनाओ ना!

रहे यह ध्यान आलस के प्रमादी घन न छा जाएं ,

निशा को दो बिदाई अब उषोत्सव-गीत गाओ ना !


प्रस्तुत है श्रेयोभिकांक्षिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

मानस,गीता, उपनिषद्, विवेक चूडामणि और अन्य धार्मिक ग्रंथों का संस्पर्श करके इस सदाचार वेला को आचार्य जी पल्लवित करते रहे हैं l

मनीषी चिन्तक विचारक एकाग्रचित्त होकर अपने को किसी उद्देश्य में लगा लेते हैं l

आचार्य जी को अपने शिक्षकत्व पर गर्व है और आगे भी रहेगा l


एहि महँ रघुपति नाम उदारा।

 अति पावन पुरान श्रुति सारा ll 

मंगल भवन अमंगल हारी।

 उमा सहित जेहि जपत

पुरारी॥

तुलसीदास जी ने राम की कथा के गायन के लिए बहुत सारे ग्रंथों का अध्ययन किया था

आचार्य जी हम लोगों को अभी भी शिक्षार्थी मान रहे हैं और इसी कारण वो चाहते हैं कि हम संतुष्ट हो जाएं


जौं बालक कह तोतरि बाता। सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता॥

हँसिहहिं कूर कुटिल कुबिचारी। जे पर दूषन भूषनधारी॥

 देश की नाव लहरों में झूल रही है तो इस समय हमारा कर्तव्य जाग्रत होने का है पहले हमें देश बचाना है

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राजनीति अर्थनीति आचरणशास्त्र इतिहास आदि बहुत कुछ है उसे पढ़ना चाहिए

देश की मनीषा  राष्ट्र के भाव के साथ यदि जुड़ती नहीं है तो हमेशा खतरा बना रहता है

हमने संघर्ष किये हैं और विजय भी प्राप्त की है



भारत के कण कण में अंकित , गौरव गान हमारा हैं! हम हिंदू ऋषियों के वंशज , हिंदुस्तान हमारा हैं!!                                    अंकित हैं इतिहास हमारा,त्यागपूर्ण बलिदानों से ।                        कौन नहीं हैं परिचित जग में,हिंदूवीर संतानो से ।                              रिपु से बातें हमने की हैं,बाणो और कृपाणों से ।                        मातृभूमि मानी हैं हमने,बढ़कर अपने प्राणों से ।                            हिंदुस्तान हमारा हैं बस,यही हमारा नारा हैं ।                             हम हिंदू ऋषियों के वंशज, हिंदुस्तान हमारा हैं!!                                          हम हैं वही जिन्होने रिपु दल को बहु नाच नचाये थे ।                          पथ से भटके अखिल विश्व को , हम ही राह पर लायें थे ।                  रहे विश्वगुरू हमसे ही सब, शिक्षा पाने आये थे!                                         अब भी शक्ति भुजाओं में, वीरों का हमें सहारा हैं!!


हरिसिंह नलवा, गुरु गोविन्द सिंह,रणजीत सिंह,महाराणा प्रताप, शिवाजी आदि वीरों की,ऋषियों की बहुत लम्बी सूची है जिसे पढ़ाने की आवश्यकता है स्वयं तो पढ़ने की है ही 

हम कभी पराभूत नहीं हुए हैं

प्रातःकाल की इस सदाचार वेला का सदुपयोग करना चाहिए धरातल पर उतरकर काम करना चाहिए

प्रयास केन्द्र में एक बैठक होनी चाहिए

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शशि शर्मा  का भैया आशीष जोग का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें

21.11.21

दिनांक 21/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है वरद आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21/11/2021 का सदाचार संप्रेषण


एक ओर शरीर माध्यम है तो दूसरी ओर धर्म का साधन भी है शरीर साधन है साधना का आधार है और सिद्धि का वांछितगामी है

शरीर के माध्यम से हम सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं अपने लक्ष्य की प्राप्ति ही सिद्धि है

आचार्य जी बीस आने की एक कलम के लिए कभी बहुत प्रयासरत रहे थे 

ऐसा लगता है कि यह मिल गया वह मिल गया तो सब कुछ हो गया ये सब शरीर की यात्रा के बीच बीच के छोटे छोटे आकर्षक पड़ाव हैं

लेकिन लक्ष्य पाने के बीच में हमारी परीक्षाएं भी होती रहती हैं 

पुरुष के द्वारा प्रकृति का उद्भव हुआ और 

पुरुष प्रकृति मिलकर सृष्टि का निर्माण करते हैं और तालमेल खराब होने पर प्रलय होता है संसार का यह अद्भुत स्वरूप है


आप लक्ष्य को ध्यान में रखें लेकिन राह का आनन्द लेते रहें नहीं तो चलने में उत्साह कैसे मिलेगा

राह का आनन्द अत्यावश्यक है

गीता में

अर्जुन व्याकुल होते हैं तो  कृष्ण समझाते हैं


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


कर्तव्य-कर्म करनेमें ही तेरा अधिकार है, फलोंमें कभी नहीं। अतः तू कर्मफलका हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यतामें भी आसक्ति न हो।

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।


सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।2.48।।


हे धनञ्जय ! तू आसक्तिका त्याग करके सिद्धि-असिद्धिमें सम होकर योगमें स्थित हुआ कर्मोंको कर; क्योंकि समत्व ही योग कहा जाता है।


दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय।


बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः।।2.49।

बुद्धियोग-(समता) की अपेक्षा सकामकर्म दूरसे (अत्यन्त) ही निकृष्ट है। अतः हे धनञ्जय ! तू बुद्धि (समता) का आश्रय ले; क्योंकि फलके हेतु बननेवाले अत्यन्त दीन हैं।

 

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।


तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।।2.50।।


बुद्धि-(समता) से युक्त मनुष्य यहाँ जीवित अवस्थामें ही पुण्य और पाप दोनोंका त्याग कर देता है। अतः तू योग-(समता-) में लग जा, क्योंकि योग ही कर्मोंमें कुशलता है।

कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः।


जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्।।2.51।।

समतायुक्त मनीषी साधक कर्मजन्य फलका त्याग करके जन्मरूप बन्धनसे मुक्त होकर निर्विकार पदको प्राप्त हो जाते हैं।

यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।


तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च।।2.52।।

जिस समय तेरी बुद्धि मोहरूपी दलदलको तर जायगी, उसी समय तू सुने हुए और सुननेमें आनेवाले भोगोंसे वैराग्यको प्राप्त हो जायगा।

जिनके मन में देश और धर्म के लिए त्याग तपस्या का भाव अभ्यास में आ जाता है वो ये नहीं सोचते कि सफल होने के लिए कर रहे हैं

 हम आत्मस्थ होकर अपनी भोगभूमि पर न रहें अपितु 

अपनी वाणी से किसी को शिक्षित कर दें 

समाज की सेवा में रत रहें आदि आदि 

योगस्थ जीवन की तरफ बढें

20.11.21

दिनांक 20/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अगाधसत्त्व आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

आचार्य जी ने जो तीनों कृषि कानून वापस हुए हैं उसकी चर्चा की

देश काल परिस्थिति के अनुसार यदि विचारशील लोग कदम उठाते हैं तो उन पर विश्वास करना चाहिए और तब तक विश्वास करना चाहिए जब तक अविश्वास का कोई बहुत बड़ा कारण न हो

आचार्य जी ने हिटलर और रूस की जारशाही की चर्चा करते हुए बताया कि जहां जनमत जागरूक नहीं होता है वहां की परिस्थितियां अत्यधिक विषम होती हैं

हमारी शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो धीरज से आत्मविश्वास से चिन्तन से मन्थन से वैचारिक गोष्ठियों के साथ अपना भाव व्यक्त करने वाली हो

आचार्य जी ने महाभारत की चर्चा की

एकस्थाः सर्ववर्णास्ते मण्डलं बहुयोजनम् ।

पर्याक्रामन्त देशांश्च नदीः शैलान्वनानि च


यावत्तपति सुर्यो हि जम्बुद्वीपस्य मण्डलं|

तावदेव समावृत्तं बलं पार्थिवसत्तम||


वेदाध्ययनसंपन्नाः सर्वे युद्दाभिनन्दिनः|

आशंसन्तो जयं युद्धे बलेनाभिमुखा l


राजन्परिकालास्ते पुत्राश्चान्ये च पार्थिवाः।

ते हिंसन्तीव सङ्ग्रामे समासाद्येतरेतरम् ॥


तेषु कालपरीतेषु विनश्यत्स्वेव भारत ।

कालपर्यायमाहाय मा स्म शोके मनः कृथा ॥

यदि हम राम और कृष्ण से संबन्धित साहित्य को पढ़ने का अभ्यास करें तो जल्दी व्याकुल नहीं होंगे

जहां पढ़े लिखे समझदार विचारशील लोग कुछ भी ऊलजलूल बोलने लगते हैं तो वहां स्थिति गम्भीर हो जाती है

सूझबूझ के साथ अपने विचार व्यक्त करें

चिन्तन प्रक्रिया फलवती होनी चाहिए

19.11.21

दिनांक 19/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है आर्यशील आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

कल भैया यज्ञदत्त 1998, भैया अभिनय मिश्र 1998 और भैया आकाश मिश्र 2001 अपने सरौंहां गांव में भविष्य के साधना केन्द्र विचार केन्द्र कर्म केन्द्र युग भारती के केन्द्र आमलक -कुञ्ज में आचार्य जी से मिले

आप लोगों ने गीताप्रेस की कुछ पुस्तकें हनुमान जी के मन्दिर में रख दीं l

ग्रन्थागार भी बढ़ना चाहिए ये पुस्तकें मात्र पूजा के लिए नहीं अपितु अध्ययन स्वाध्याय  चिन्तन मनन निदिध्यासन के लिए होती हैं और वैचारिक शक्ति का आधार होती हैं,वैचारिक शक्ति जो हमारे यहां है वह भक्तिमूलक है 


 

 भैया संतोष मिश्र जी के प्रयास से अपने गांव सरौंहां में कल से विद्युतीकरण का कार्य प्रारम्भ हो गया है

ये सब सांसारिक उपलब्धियां

हमारे किसी भी उद्देश्य के प्रति हमें उत्साहित करती हैं और यह उत्साह कर्म को और अधिक क्रियाशील करता है

आचार्य जी ने भज् धातु की व्याख्या कीऔर बताया कि प्रेम की अभिव्यक्ति का नाम शृङ्गार है आचार्य महावीर प्रसाद के अनुसार इससे विकृति आती है जब कि जय शंकर प्रसाद ने उसको उन्नत बना दिया

ये सब देखें तो मानव मन की भावनाएं ही हैं इसी तरह हम लोग राष्ट्रभक्ति का आधार लेकर चलते हैं भारत माता में सारी देवशक्तियां हैं ज्ञान शक्तियां हैं शक्ति के बिना संसार नहीं है और भक्ति के लिए भी शक्ति की आवश्यकता है

हमारे यहां इतिहास में 1192 में भयानक स्थिति आ गई जब कुछ युद्धों ने उत्तर भारत को मुस्लिम नियन्त्रण के लिए खोल दिया और आज भी किसी न किसी रूप में चल रही है

हम फिर भी संघर्षरत रहेंगे हम स्वतन्त्र थे स्वतन्त्र हैं और स्वतन्त्र रहेंगे

हमारे यहां का भक्ति साहित्य अत्यधिक विस्तृत है लेकिन भक्ति के आधार में शक्ति थी

अब रामजन्मभूमि निर्माण हो रहा है कृष्णजन्मभूमि के लिए संघर्ष चल ही रहा है यह संघर्ष आत्मशक्ति विकसित करने के लिए है

हमारा काम इस सदाचार वेला को सुनना भर नहीं अपितु गुनना भी है,अपने परिवारों को अपने पड़ोस को इन विचारों से आप्लावित कर दें भ्रम और भय त्यागकर धैर्य भी रखें  कुटुम्ब को संस्कारी विचारशील संयमी और राष्ट्रप्रेमी बनाने की आवश्यकता है

चिन्तन विचार के लिए कुछ छोटे छोटे कार्यक्रम करें

18.11.21

दिनांक 18/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।

स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ॥

(ऋग्वेद मंडल 1, सूक्त 89, मंत्र 8)


प्रस्तुत है उत्तानहृदय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

आचार्य जी ने कल गांव की एक घटना का  उल्लेख किया जिसमें तीन बेटों की एक मां की विषम परिस्थितियों में मृत्यु हो गई इसी तरह हम लोगों की उपेक्षा के कारण अपनी भारत मां की यह दशा हो गई है दुर्भावना में भारत मां के कुछ शत्रु बोलते हैं कि हम भी यहां के वासी हैं हम इसके टुकड़े कर देंगे l इन लोगों को शिक्षित करने की आवश्यकता है l युग भारती ने शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा का बीड़ा उठाया है तो हमें  इस ओर ध्यान देना चाहिए भय और भ्रम को त्यागते हुए क्योंकि भय और भ्रम दोनों जीवन के लिए अत्यधिक घातक हैं गीता मानस उपनिषद् हमें यही सिखाते हैं कि हम भ्रमित न हों भयभीत न हों तत्त्व को समझें लेकिन यथार्थ में क्या करना है यह भी जानने की चेष्टा करें और तब हमें बहुत संतोष होगा जैसे राम पर विश्वास होने के कारण तुलसीदास जी को हुआ


जानकीसकी कृपा जगावती सुजान जीव,

जागि त्यागि मूढ़ताऽनुरागु श्रीहरे ।

करि बिचार, तजि बिकार, भजु उदार रामचंद्र,

भद्रसिंधु, दीनबंधु, बेद बदत रे ॥ १


मोहमय कुहु-निसा बिसाल काल बिपुल सोयो,

खोयो सो अनूप रुप सुपन जू परे ।

अब प्रभात प्रगट ग्यान-भानुके प्रकाश,

बासना, सराग मोह-द्वेष निबिड़ तम टरे ॥ २


भागे मद-मान चोर भोर जानि जातुधान

काम-कोह-लोभ-छोभ-निकर अपडरे ।

देखत रघुबर-प्रताप, बीते संताप-पाप,

ताप त्रिबध प्रेम-आप दूर ही करे ॥ ३


श्रवण सुनि गिरा गँभीर, जागे अति धीर बीर,

बर बिराग-तोष सकल संत आदरे ।

तुलसिदास प्रभु कृपालु, निरखि जीव जन बिहालु,

भंज्यो भव-जाल परम मंगलाचरे ॥ ४  (विनय पत्रिका)


 ऐसे भाव तब आते हैं जब विश्वास टिक जाता है चाहे राम के प्रति हो चाहे राष्ट्र के प्रति हो

आचार्य जी चाहते हैं कि युगभारती की बैठकों और कार्यक्रमों के अन्त में राष्ट्रगीत अवश्य हो

17.11.21

दिनांक 17/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शङ्कर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 17/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

इस समय चारों तरफ का वायुमण्डल व्यापारमय हो गया है व्यापार तो उत्तम चीज है लेकिन उसमें विकृति भरने से सारा काला व्यापार हो गया है विचारों को विकृत करके परोसा जा रहा है और वह भी व्यापारिक ढंग से

हमारा काम अपने अपने काम करते हुए विचारों को परिष्कृत करने का है   और परिष्कृत विचारों को बहुत स्थानों में प्रवेश कराने की आवश्यकता है

वैचारिक क्षेत्र में इस समय जो उथल पुथल मची है कि ठीक  क्या है समझदार लोग भी उससे घिरे  हैं क्योंकि वे भी राजनीति का शिकार हो गए हैं 


राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा। हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा॥

बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ। श्रम फल पढ़ें किएँ अरु पाएँ॥


राजनीति चारों ओर व्याप्त है और वह भी अनीतिमय l 

राजनीति में एक तूफान चला हुआ है कि  भारत में लोकतन्त्र पश्चिम की देन है जब कि ऐसा नहीं है

लोकतन्त्र भारतवर्ष की पद्धति है जब भी राजा लोकव्यवहार से विरत हुआ है  उसे अपदस्थ किया गया है l

आचार्य जी जब BA में अध्ययनरत थे तो 

रामास्वामी पेरियार के आन्दोलन से जुड़े एक व्यक्ति ने एक पुस्तक आचार्य जी को दी जिसमें माता सीता के बारे में जो लिखा था उससे आचार्य जी बहुत आहत हुए

इस तरह का बहुत सारा गलत साहित्य अभी भी बांटा जा रहा है

मनु लिखते हैं

यस्मिन् देशे निषीदन्ति विप्रा वेदविदस्त्रयः । राज्ञश्चाधिकृतो विद्वान् ब्रह्मणस्तां सभां विदुः ॥११॥

आचार्य जी ने इसमें आये शब्द सभा की व्याख्या की देखने वाली बात है कि 

यह कितने पहले लिखा गया है तो फिर लोकतन्त्र पश्चिम की देन कैसे हो गया

16.11.21

दिनांक 16/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कृतात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

शास्त्रोक्त वचन है कि संसार में रहकर संसारी प्रकृति से विरत रहने वाले लोग निन्दनीय होते हैं  हमें संसारी भाव से सक्रिय रहना चाहिए कहां विकार है कहां विचार है और कैसा व्यवहार है इसे देखते हुए

त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।

ग्रामं जनपदस्यार्थे ह्यात्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥

- हितोपदेश, मित्रलाभ

की व्याख्या में आचार्य जी ने बताया कि आत्म के लिए पृथ्वी का साम्राज्य त्यागना चाहिए और आत्म की रक्षा करनी चाहिए

इस आत्म के परिशोधन में, अनुसंधान में हमारा देश अनन्त काल से लगा हुआ है और इसी के परिणामस्वरूप हमारे वेद उत्पन्न हुए


भूखंड या ब्रह्मांड का मिट जाना नष्ट हो जाना प्रलय है

हिन्दू शास्त्रों में मूल रूप से प्रलय के चार प्रकार बताए गए हैं- 1.नित्य, 2.नैमित्तिक, 3.द्विपार्थ और 4.प्राकृत। एक अन्य पौराणिक गणना के अनुसार यह क्रम है नित्य, नैमित्तिक,आत्यन्तिक और प्राकृतिक प्रलय।

नित्य प्रलय से हमारा नाता सदैव जुड़ा रहता है

लेकिन हमें अनुभव नहीं होता है हम बढ़ते रहते हैं प्रसन्न रहते हैं लेकिन जब यह वृद्धि ऐसी स्थिति में जाती है कि हमारा मोह इस शरीर से ज्यादा हो जाता है आत्म से नहीं तो उस समय हम इसको बलात् सुरक्षित रखना चाहते हैं बस यहीं प्रकृति से संघर्ष प्रारम्भ हो जाता है

जहां प्रकृति से संघर्ष है वहां दुःख है

इस समय प्रकृति से भीषण संघर्ष चल रहा है समुद्र से शोषण पृथ्वी से शोषण

मनुष्य सारा संतुलन बिगाड़ने में लगा हुआ है

प्रकृति परमात्मा द्वारा निर्मित मां है

ऐसे विचारों को चिन्तन को केन्द्र में रखते हुए आचार्य जी चाहते हैं कि  अपने गांव सरौंहां में इस तरह के प्रयोग हों कि शौर्यप्रमंडित अध्यात्म चारों ओर विकसित हो

सामान्य शरीर से बहुत बड़े बड़े काम हो जाते हैं

जब विचार व्यवहार में परिवर्तित होने लगते हैं और प्रकृति का सहयोग मिलता है और परमात्मा कुछ हमसे करवाना चाहता है तो हम माध्यम बन जाते हैं और हमें माध्यम बनने का सुकून मिलता है लेकिन दम्भ नहीं होता

और नैमित्तिक प्रलय आने तक हम बहुत कुछ कर सकते हैं

इसके अतिरिक्त आत्यन्तिक प्रलय क्या होती है अरविन्द भैया का नाम नाना जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिए सुनें

15.11.21

दिनांक 15/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

प्रस्तुत है उदारसत्त्वाभिजन आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15/11/2021 का सदाचार संप्रेषण ध्यान प्रारम्भिक स्थिति से लेकर अन्तिम स्थिति तक मनुष्य के अन्दर की अद्भुत शक्ति है हमारे ऋषियों द्वारा ध्यान के अधिकाधिक अभ्यास के कारण ही उनको वेदों की अनुभूति हुई दर्शन हुए और आचार्य जी ने परामर्श दिया कि भविष्य में इस पर चर्चा अवश्य हो जैसे तैत्तिरीय उपनिषद् की भृगुवल्ली में ऋषि भृगु के पिता महर्षि वरुण द्वारा ऋषि भृगु की ब्रह्म से संबंधित जिज्ञासा का समाधान किया गया है उसी प्रकार हम लोगों के बीच में प्रश्नोत्तर काल हो और उनसे तत्त्व निकाला जाए कि आज की परिस्थिति के अनुसार ध्यान चिन्तन लेखन व्यवहार आचरण का प्रयोग कैसे हो आचार्य जी ने कल भरत सिंह भैया के आवास पर सम्पन्न हुई अत्यन्त सफल लखनऊ युगभारती बैठक की चर्चा की जिसमें 37 सदस्य उपस्थित हुए और जो तीन अनुपस्थित थे उन्होंने सूचित किया वहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक बड़े पदाधिकारी भी आमन्त्रित थे जिन्होंने कहा युगभारती में तो सभी राष्ट्रीय स्तर के लोग हैं और युगभारती कितना महत्त्वपूर्ण संगठन है आज उन्हें ज्ञात हुआ प्रातःकाल अपने विकारों का शमन और दूसरे के विचारों के आगमन का प्रयास करना चाहिए पुराने दम्भकारक प्रसंगों को हमें भुला देना चाहिए और गर्व करना चाहिए कि इस समय भी हम बड़े बड़े काम कर रहे हैं यह आत्मबोध है हम सभी ब्रह्मांश हैं कुछ भी कर सकते हैं रामकथा राष्ट्रकथा बनकर सामने आ रही है हम उस राम की पूजा करते हैं जो राष्ट्र का स्वाभिमान संयम मर्यादा विचार चिन्तन और समर्पण है जिसकी अनुभूति स्वामी विवेकानन्द आदि ने की हमें भी यह अनुभूति होनी चाहिए अपने कार्य व्यवहार को परिशुद्ध करते हुए अपने बड़े उद्देश्य को ध्यान में रखें भ्रष्टाचार आदि का चिन्तन न करें l

14.11.21

दिनांक 14/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है उपस्थितवक्ता आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

बहुत दिन बाद लखनऊ युगभारती की आज बैठक है

हम सब लोगों के मन में बहुत सी कल्पनाएं रहती हैं क्योंकि हम सब आन्तरिक रूप से एक हैं बाह्य स्वरूप अलग अलग हैं 

भाव और रूपमय संसार भाव से एक,रूप से अनेक है

भावरूप, नामरूप,तत्त्वरूप, सत्त्वरूप अलग अलग रूप हैं और जो अरूप है वह


बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥

आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥

आचार्य जी ने नीरज अत्रि और नीलेश नीलकंठ ओक की चर्चा की

ये कुछ लोग अपने वैचारिक क्षेत्र में संघर्ष कर रहे हैं यह इस समय की अनिवार्य आवश्यकता है क्यों कि इस समय भीषण वैचारिक संघर्ष चल रहा है और हमारी आर्ष परम्परा,जिसमें वैदिक ज्ञान औपनिषदिक ज्ञान पौराणिक ज्ञान है, शान्ति प्रदान करेगी ही जिससे आनन्ददायक वातावरण निर्मित होगा

ये उथल-पुथल उत्ताल लहर पथ से न डिगाने पायेगी।

पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी-आयेगी॥


इस उथल पुथल वाले संघर्ष को पार करके निश्चित रूप से ही प्रकाश का प्रसार करेंगे ऐसा विश्वास मन में रखके हममें से प्रत्येक को अपने अपने स्तर से प्रयास करना चाहिए

अपनापन हमारे गांव की हमारे देश की थाती रहा है इस थाती को हमारे शौर्यविहीन अध्यात्म ने दूर किया है

आचार्य जी ने

तैत्तिरीय उपनिषद् में शिक्षावल्ली के 12 वें अनुवाक से

ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम । अवतु वक्तारम् ।


ॐ शान्तिः । शान्तिः । शान्तिः ।

के नित्य पाठ का परामर्श दिया

जिसको हम शिक्षित बनाने चले हैं वह इस लोक और परलोक को भलीभांति समझ कर जब शिक्षा प्राप्त करेगा तो जो भी कार्य करेगा तो उस कार्य को करने में न उसको दम्भ होगा न भय न भ्रम न उथल पुथल न ईर्ष्या न द्वेष होगा

आचार्य जी ने माननीय गोखले जी(जिन्होंने बैरिस्टर साहब को स्वयंसेवक बनाया था )से संबन्धित एक प्रसंग सुनाया

13.11.21

दिनाङ्क 13/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है पूतात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनाङ्क 13/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

युगभारती लखनऊ की कल एक बैठक लखनऊ में है बैठक किसी योजना को विस्तार देने के लिए एक व्यवस्थित व्यवस्था का प्रारम्भ है

हर कार्यों में हर व्यवस्थाओं में विचार होता है पहले भाव उठता है फिर विचार होता है और उसके बाद क्रिया होती है  

दीनदयाल विद्यालय के निर्माण के पीछे उद्देश्य था कि वहां राष्ट्रोन्मुखी विचारोन्मुखी शिक्षा होगी   और ऐसे विद्यार्थी तैयार होंगे जो अपनी घर गृहस्थी चलाने के साथ साथ समाज को संचेतना प्रदान करेंगे

गीता में दूसरे अध्याय में 59 वें से 72 वें छन्द तक पढ़ने की आचार्य जी ने सलाह दी


विषया   विनिवर्तन्ते,

                             निराहारस्य देहिनः।

        रसवर्जं रसोऽप्यस्य,

                             परं दृष्ट्वा निवर्तते।।

                               (गीता 2/59)

           इन्द्रियों द्वारा विषयों को न ग्रहण करने वाले पुरुषों के विषय तो निवृत्त हो जाते हैं क्यों कि वे ग्रहण ही नहीं करते; किन्तु उन का राग नहीं निवृत्त होता, आसक्ति लगी रहती है। सम्पूर्ण इन्द्रियों को विषयों से समेटने वाले निष्काम कर्मी का राग भी 'परं दृष्ट्वा'- परमतत्त्व परमात्मा का साक्षात्कार करके निवृत्त हो जाता है।

हम इस प्रकार की शिक्षा को प्रेरित करते हैं कि हमें एक अच्छी नौकरी मिल जाए

लेकिन हमारे अन्दर यह जिज्ञासा नहीं है कि हमारा दिमाग जो सबसे विशाल कम्प्यूटर है वो किसने बनाया

तैत्तिरीय उपनिषद् की शिक्षा वास्तविक शिक्षा है जिसे हम लोगों ने समझने का प्रयास नहीं किया

आचार्य जी ने यह भी बताया जो कल की बैठक में वो बताने वाले हैं

12.11.21

दिनांक 12/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शक्ल आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

आचार्य जी ने अपना एक अनुभव बताया कि नींद न आने पर वे हनुमान चालीसा की शरण में चले जाते हैं तो नींद आ जाती है

आचार्य जी ने आज हमारा परिचय श्वेताश्वतर उपनिषद् से कराया

ऋषियों के सामने ब्रह्म का एक हरि रूप उभरा होगा


किं कारणं ब्रह्म कुतः स्म जाता जीवाम केन क्व च संप्रतिष्ठाः।

अधिष्ठिताः केन सुखेतरेषु

 वर्तामहे ब्रह्मविदो व्यवस्थाम्‌॥


ब्रह्म पर चर्चा करते हुए ऋषिगण प्रश्न करते हैं: क्या ब्रह्म (जगत का) कारण है? हम कहाँ से उत्पन्न हुए, किसके द्वारा जीवित रहते हैं और अन्त में किसमें विलीन हो जाते हैं? हे ब्रह्मविदो! वह कौन अधिष्ठाता है जिसके मार्गदर्शन में हम सुख-दुःख के विधान का पालन करते हैं?

कालः स्वभावो नियतिर्यदृच्छा भूतानि योनिः पुरुष इति चिन्त्या।

संयोग एषां न त्वात्मभावादात्माप्यनीशः सुखदुःखहेतोः॥


काल, प्रकृति, नियति, यदृच्छा, जड़-पदार्थ, प्राणी इनमें से कोई या इनका संयोग भी कारण नहीं हो सकता क्योंकि इनका भी अपना जन्म होता है, अपनी पहचान है और अपना अस्तित्व है। जीवात्मा भी कारण नहीं हो सकता, क्योंकि वह भी सुख-दुःख से मुक्त नहीं है।

मानस में 

जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥

विधाता ने इस जड़-चेतन विश्व को गुण-दोषमय रचा है, किन्तु संत रूपी हंस दोष रूपी जल को छोड़कर गुण रूपी दूध को ही ग्रहण करते हैं

:

* अस बिबेक जब देइ बिधाता। तब तजि दोष गुनहिं मनु राता॥

काल सुभाउ करम बरिआईं। भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाईं॥

विधाता जब इस प्रकार का (हंस का सा) विवेक देते हैं, तब दोषों को छोड़कर मन गुणों में अनुरक्त होता है। काल स्वभाव और कर्म की प्रबलता से भले लोग (साधु) भी माया के वश में होकर कभी-कभी भलाई से चूक जाते हैं l

सो सुधारि हरिजन जिमि लेहीं। दलि दुख दोष बिमल जसु देहीं॥

खलउ करहिं भल पाइ सुसंगू। मिटइ न मलिन सुभाउ अभंगू॥

भगवान के भक्त जैसे उस चूक को सुधार लेते हैं और दुःख-दोषों को मिटाकर निर्मल यश देते हैं, वैसे ही दुष्ट भी कभी-कभी उत्तम संग पाकर भलाई करते हैं, परन्तु उनका कभी भंग न होने वाला मलिन स्वभाव नहीं मिटता

मन पर ही आचार्य जी ने अपनी रची एक बहुत अच्छी कविता सुनाई


मन कभी अतल गहराई या गगन समान ऊंचाई में.....


 कविता का भाव लेखन का भाव,निर्माण का भाव,संगठन का भाव, सामाजिक विचारणा का भाव,कर्म का भाव आदि स्वभाव है

भाव अपना क्रियाशीलता का है वैचारिक हो या मानसिक हो मन तो प्रेरक है इसलिए मन की साधना होती है


तुलसी आदि कवियों ने मन के साथ सामंजस्य बैठाने का प्रयास किया है

मन मनुष्य का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है


आचार्य जी ने

सुनि रन घायल लखन परे हैं....का अत्यन्त मार्मिक प्रसंग सुनाया इन प्रसंगों को जो अंदर तक हमें भिगो देते हैं अपने परिवारों को सुनाएंगे तो संस्कार अवश्य विकसित होंगे विचार पल्लवित होंगे  और सामर्थ्य भी आयेगा

11.11.21

दिनांक 11/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है हमारे औन्नत्य के लिए प्रयासरत अमत्सर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 11/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

प्रातःकाल हमें आत्मसमीक्षा और आत्मभाव का प्रक्षालन भी करना चाहिए l

सरस्वती पत्रिका के संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को उनकी पत्नी  सुहागरात पुस्तक लिखने पर भावावेग में आकर कई बातें कह गईं लेकिन इस बात ने आचार्य महावीर का मार्गदर्शन कर दिया और फिर उन्होंने सरस्वती पत्रिका का संपादन किया 

 वे संपादक धर्म का पालन करने के कारण काट छांट करने के लिए मना करने वाले विद्वान लेखकों के लेख सादर वापस कर देते थे l

आचार्य जी ने कहा हम लोग मानस और गीता का पाठ अवश्य करें

बालकांड और उत्तरकांड अत्यधिक दार्शनिक और तत्त्वपूर्ण हैं और बाकी में कथा के साथ दर्शन चला है

मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।

गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥

प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी

भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी॥

भाव अच्छा हो भाषा अच्छी नहीं होती तो भी अच्छी लगती है

आचार्य जी ने एक अत्यन्त रोचक प्रसंग बताया कि एक बंशी वाले बाबा टीन की गाड़ियों से डरते थे  ( हमें इस बात में गहराई देखनी चाहिए ) उनके एक शिष्य अपने सरौंहा गांव के पास कहीं रहते हैं l

टीन आश्रम का छाजन बन जाए तो पूज्य और किसी कबाड़ी के यहां रहे तो बेकार

प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग।

दारु बिचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग॥

स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान।

गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान ॥

को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने बताया  कि आपका प्रयास रहता है कि हमारे अन्दर राष्ट्रभाव जाग्रत हो त्याग तपस्या के साथ शौर्य जागे

हम लोग भाषा वाणी पर न जाकर भाव पर जाएं


हम स्वाध्याय करें चिन्तन मनन करें निदिध्यासन करें

परमात्मा हमारे अन्दर है यह भाव सदैव रहना चाहिए

मानस का मूल भाव  बोध यही है कि हम भी संगठित होएं जैसे मानस में तुलसी जी ने भगवान राम का सांगठनिक स्वरूप दिखाया है

10.11.21

दिनांक 10/11/2021का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है वाग्यम आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10/11/2021का सदाचार संप्रेषण


देखा जाए तो हम सभी शिक्षक हैं शिक्षक वही जो शिक्षा दे,शिक्षा का अर्थ है  संस्कार, मानव जीवन का सुधार, मानव जीवन के चैतन्य को जाग्रत करने की प्रक्रिया

 शिक्षा के माध्यम से भौतिक, आध्यात्मिक, परालौकिक ज्ञान की उपलब्धि होती है

 मन्त्रों में,सिद्धसाधकों के शब्दों में, संतों की वाणियों में उनके अनुभव झलकते हैं

 उद्भव पालन प्रलय की कहानी तुलसी जी की भाषा में

सुनहु तात यह अकथ कहानी।

 समुझत बनइ न जाइ बखानी॥

ईस्वर अंस जीव अबिनासी।

 चेतन अमल सहज सुख रासी॥1॥

सो मायाबस भयउ गोसाईं।

 बँध्यो कीर मरकट की नाईं॥

 जड़ चेतनहि ग्रंथि परि गई।

 जदपि मृषा छूटत कठिनई

॥2॥


चारों ओर का परिवेश आनन्दमय रहे तब मनुष्य प्रफ़ुल्लित होता है मनुष्य वानस्पतिक प्रकृति स्वाभाविक प्रकृति को संवारता है पशु पक्षियों को जीवन्त रखता है अर्थात् मनुष्य केन्द्रविन्दु हुआ

सनातन भाव के अनुसार हमारे वैदिक ज्ञान ब्राह्मणिक ज्ञान आरण्यिक ज्ञान ब्रह्मसूत्र का ज्ञान पौराणिक ज्ञान औपनिषदिक ज्ञान में सभी का आधार एक ही है हम कौन हैं हमको कहां जाना है हमको क्या करना है

डा ज्योति जी का प्रश्न है पूजा की मूर्तियों चित्रों आदि का उचित विसर्जन क्या है

आचार्य जी का कहना है हम लोगों को व्यावहारिक ज्ञान में आना चाहिए 

आस्था और अनुसंधान साथ साथ चलने चाहिए

हम लोग आत्मचिन्तन करते हुए परिवार को समाज को दिशा दें व्यापार उद्धार के लिए भी होता है और विकार के लिए भी 

विकारी व्यापार समाज का नुकसान करते हैं

इसको समीक्षित करके चर्चा में लाने का काम युगभारती जैसे संगठनों का है

व्यापार में TAX देना चाहिए

हमें यह भी देखना चाहिए विकार कहां अधिक है और विचार कहां अधिक है

आत्मसंतुष्ट होने का प्रयास करें

9.11.21

दिनांक 09/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ग्रन्थिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 09/11/2021 का सदाचार संप्रेषण


भैया यज्ञदत्त जी का प्रश्न था

यदि मानस और गीता जैसे ग्रंथ पूजा -स्थल पर रखे रहते हैं तो क्या नहाने से पूर्व उन्हें उठा सकते हैं?

इसी के उत्तर में आचार्य जी ने दो प्रसंग बताए

आचार्य जी बी एन एस डी में नवीं कक्षा में अध्ययनरत थे तो जे के मन्दिर (राधा कृष्ण मन्दिर कानपुर ) का निर्माण हो रहा था वहां लाल वस्त्र में बंधे कुछ ग्रन्थ रखे थे उन्हें स्पर्श नहीं कर सकते थे दूर से दर्शन कर सकते थे 

जगजीवन स्वामी पर शोध करते समय कुटवा (बाराबंकी ) में  हस्तलिखित पुस्तक से संबन्धित चर्चा की


आचार्य जी ने इन दो घटनाओं की इसलिए चर्चा की कि धीरे धीरे हमारे ग्रन्थ दर्शन के लिए हो गये हैं पढ़ने के लिए नहीं

आचार्य जी का कहना है कि वरिष्ठ जनों की भावनाओं को आहत न करें और इन ग्रंथों को अपने पुस्तकालय में भी रखें उनका अध्ययन करें और उन पर लिखें भी


यदि हम उनका अध्ययन विचार चिन्तन आदि नहीं करेंगे तो यह दृश्य हमारे सामने कैसे उपस्थित होगा कि अपनों के बीच में युद्धक्षेत्र सजा है

द्रुपद सुता के केश खींचता दुःशासन..


हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।


तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः।।2.37।।


यदि युद्ध में तुम मारे जाओगे तो तुम्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी और यदि युद्ध में तुम जीतते हो तो पृथ्वी का राज्य भोगोगे । अतः हे कुन्तीनन्दन! तुम युद्ध के लिये निश्चय करके खड़े हो जाओ


यही भाव लेकर हमारा सैनिक सीमा पर डटा रहता है

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।


ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।।


आचार्य जी ने आज ही लिखी एक कविता सुनाई

जब तक तन में प्राण प्राण में गति गति में उत्साह भरा है 

और राष्ट्रहित जीवन जीने की भावना  भक्ति की अनुपम अबुझ त्वरा है....


सूर्योदय, प्रकृति आदि का आनन्द लें भारत की संवेदनशीलता के साथ हमारे विचार जुड़ जाएं तो हमें एक ऐसा रास्ता दिखाई देता है जो सबका सामञ्जस्य कर देता है और इस सामञ्जस्य को भलीभांति जो निभा लेता है सचमुच में जीवन जीने का आनन्द उसी को मिलता है

जीवन के संघर्षों के बीच में इस सदाचार वेला का पूर्ण लाभ लेना चाहिए  और संयम स्वाध्याय साधना से संयुत होना चाहिए और कुछ

8.11.21

दिनांक 08/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है त्रपिष्ठ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 08/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

अध्यात्मवादी सारे संसार को प्रभुमय देखते हैं निर्भरा भक्ति की व्याख्या इसी प्रकार हो सकती है निर्भरा भक्ति में सबसे पहली आवश्यक चीज है विश्वास l

आत्मबोध, आत्मभक्ति, आत्मशक्ति यह अनुभव कराती है कि हमारे अन्दर ब्रह्मत्व विद्यमान है जिस प्रकार ब्रह्म में सृष्टि को स्रष्टा रूप में रचने की इच्छा होती है उसी प्रकार हम मनुष्य में भी छोटी सी सृष्टि को रचने की इच्छा होती है 

हम अपने मनुष्यत्व को पहचानते हुए संसार सागर में तैरते हैं तो तैरते समय तैरने का आनन्द और तट पर आकर तैर कर सफलतापूर्वक वापस आने का आनन्द मिलता है

परमात्मा है कि नहीं है यह दुविधा रहती है

असन्नेव स भवति । असद्ब्रह्मेति वेद चेत् । अस्ति ब्रह्मेति चेद् वेद ।

सन्तमेनं ततो विदुरिति ॥

तैत्तिरीय उपनिषद् 6वां अनुवाक

दर्शन शास्त्र में दो मत हैं आस्तिक नास्तिक


आचार्य जी ने स्वामी विवेकानन्द और अलवर के महाराजा मंगल सिंह से संबन्धित एक अत्यन्त रोचक प्रसंग बताया l

जब एक चित्र में श्रद्धा हो जाती है तो हमारे जन्मदाता परमात्मा में भी श्रद्धा होगी ही

आचार्य जी ने 7 नवम्बर 1966 की दिल दहलाने वाली घटना बताई

(आचार्य जी 1 जुलाई 1966 को अध्यापक हो गये थे )

आम जनमानस  राष्ट्र के लिए कैसे चिन्तन करे हमें अध्यात्म और संसार के लिए  परिश्रम करना है और इसके लिए हमें अपना शरीर और मन ठीक रखना है 

रामलला के प्रधानाचार्य पं काली शंकर जी से संबन्धित क्या बात थी आदि जानने के लिए सुनें 👇

7.11.21

दिनांक 07/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है बोधान आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 07/11/2021 का सदाचार संप्रेषण


आचार्य जी के शिक्षकत्व का हमें लाभ लेना चाहिए

स्थान, परिस्थिति,मानसिकता ये सब बहुत प्रभावित नहीं करते हैं तो अपने निर्धारित कर्तव्य कर्म को अभ्यास में ले आना चाहिए और अभ्यास में कोई चीज है तो सहज आप उससे संयुक्त हो जाते हैं

यद्यपि गीता का चिन्तन हमें संदेश देता है 

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।

हे कुन्तीपुत्र ! दोषयुक्त होने पर भी सहज कर्म का त्याग नहीं करना चाहिये; क्योंकि सारे कर्म धुएँ से अग्नि की तरह किसी न किसी दोष से युक्त हैं।


लेकिन कभी कभी मनुष्य करना तो कुछ चाहता है फिर भी करना कुछ पड़ जाता है और उसे बहुत क्षोभ होता है

फिर भी हमें परेशान नहीं होना चाहिए 

यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्।


स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः।।18.46।।


जिस परमात्मा से सम्पूर्ण प्राणियोंकी उत्पत्ति होती है और जिससे यह सम्पूर्ण संसार व्याप्त है, उस परमात्मा का अपने कर्म के द्वारा पूजन करके मनुष्य सिद्धि को प्राप्त हो जाता है।


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।18.47।।

अच्छी तरह से अनुष्ठान किये हुए परधर्म से गुणरहित अपना धर्म श्रेष्ठ है। कारण कि स्वभाव से नियत किये हुए स्वधर्मरूप कर्म को करता हुआ मनुष्य पाप को प्राप्त नहीं होता।


कई बार लोग कहते हैं जब सहजता स्वभाव में आ जाती है तो  आदमी को कमजोर कर देती है आचार्य जी का मत है सहजता आदमी को कमजोर नहीं करती उसे आत्मविश्वासी बनाती है और उसके पश्चात् उसको संसार से लड़ने की शक्ति भी देती है

लेकिन आत्मस्थ होने का अभ्यास करते रहना चाहिए


कौन रंग देता तितलियों के परों को...

कौन का प्रश्न जितना सुलझ जाता है और जिसको यह अनुभूति हो जाती है कि जो हमारे अन्दर विद्यमान है वही यह सब करवाता है तो इससे अच्छा कुछ नहीं l

6.11.21

दिनांक 06/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शक्तिमय व्यवहार करने का प्रेरण प्रदान करने हेतु सूक्ष्मबुद्धि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 06/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

शक्ति के बिना भक्ति नहीं हो सकती और वह शक्ति व्यर्थ है जो केवल भाषा में बंधी रहे भाव भाषा के माध्यम से जब तक शौर्य का संस्पर्श नहीं करता तब तक भक्ति पूर्ण नहीं होती

सब काम करते हुए राष्ट्रार्पित रहना समाजार्पित रहना और प्रभुमय जगत् देखते हुए भी दुष्ट का दलन शिष्ट का पल्लवन हमारे जीवन में सतत् विद्यमान रहना चाहिए जो भी काम करें उस काम के पीछे ध्यान यह रखें कि उससे समाज -हित कितना हो रहा है और वही समाज अपना हित कर सकता है जिसमें शक्ति, भक्ति, भाव,विचार,संयम, साधना, समर्पण है ये सारा सामञ्जस्य मानव जीवन है

सुख दुःख में समाज के साथ रहें और समाज की शक्ति समाज के संयम की वृद्धि हेतु ऐसे प्रयास करें कि लोग देख सकें कि अपनी गृहस्थी चलाते हुए ये काम भी किये जा सकते हैं

आचार्य जी ने संत और संतत्व की विस्तृत व्याख्या की


संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु।

बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु l l

जगत हित के लिए कर्म आवश्यक है

आदि शंकराचार्य,रामानुजाचार्य, तेग बहादुर, राम कृष्ण परमहंस,बन्दा बैरागी, गुरु गोविन्द सिंह, रामदास आदि श्रेष्ठ संत रहे हैं

संतत्व के कारण ही आज गंगा जी काफी साफ हैं l

आचार्य जी ने बताया युगपुरुष महामण्डलेश्वर स्वामी परमानन्द गिरि जी महाराज जी विद्यालय आ चुके हैं

संतत्व का वरण हम कैसे करें इस पर विचार करें

व्यायाम पूजन ध्यान सात्विक भोजन नियमित करें

भारतीय इतिहास के छह स्वर्णिम पृष्ठ  (सावरकर ) को पढ़ने का आचार्य जी ने परामर्श दिया

5.11.21

 प्रस्तुत है युगभारतीवंशकेतु आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 05/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

संसार वक्र गति से चलता है भावमय संसार है विचार उसका प्रसार है कर्म उस संसार को व्यस्त रखने का प्रभु द्वारा बनाया गया अद्भुत आधार है बिना कर्म के हम जीवित नहीं रह सकते सांस लेना भी एक कर्म है

शरीर में प्राण हैं तो शरीर चलता है  लेकिन जब शरीर से प्राण मुक्त हो जाते हैं तो प्राण चलते हैं और प्राण से उसका सूक्ष्म आधार मुक्त होने लगता है तो भाव चलते हैं और भाव भी शान्त हो जाते हैं तो परमात्मा सारी चञ्चलता को अपने भीतर समेट कर निर्विकल्प समाधि में रहता है यह भारतीय जीवन पद्धति की परिकल्पना है जिस पर बहुत लोग विश्वास करते हैं

कल भैया मोहन कृष्ण जी की माता जी नहीं रहीं और मुकेश जी के साथ भी इसी तरह की दुर्घटना हुई उनके भी कुछ आत्मीय जन अकाल मृत्यु का शिकार हो गये 

भारतवर्ष का कथात्मक साहित्य  बहुत महत्त्वपूर्ण है

धन्ना भगत ज्ञानी और परम भक्त थे किसी की शव यात्रा में वे चलते थे तो ढपली बजाते थे गाते थे वे कहते थे यह भी तो बारात है दूल्हा प्रभु से मिलने जा रहा है लेकिन जब युवा पुत्र नहीं रहा तो ढपली बजाई किन्तु ताल नहीं बन पा रही थी किसी ने कहा आज तो आप सही नहीं बजा पा रहे तो फफक कर रो पड़े

पुरजन परिजन सकल निहोरी। तात सुनाएहु बिनती मोरी॥

सोइ सब भाँति मोर हितकारी। जातें रह नरनाहु सुखारी॥1॥

आदि की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने मोह का वर्णन किया l मोह से मुक्ति हो इसका प्रयास किया जाता है

आपने 

धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥

बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना। अंध बधिर क्रोधी अति दीना॥

की भी व्याख्या की


आचार्य जी जब भी अपने पिता जी को याद करते हैं तो भावों से भर जाते हैं

मोह की जड़ें कितनी गहरी होती हैं और उसकी शाखाएं भी बहुत फैली होती हैं

यह धैर्य की परीक्षा है मानस पाठ गीता पाठ ऐसे समय अवश्य करने चाहिए

4.11.21

 प्रस्तुत है वाग्य आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा प्रोक्त आज दिनांक 04/11/2021 (दीपावली )का सदाचार संप्रेषण

आज दीपावली है आज के दिन हम 

आत्मविश्वास जगाएं आत्मशक्ति जगाएं हमारे अन्दर संयम के साथ ऊर्जा भी हो अन्यथा संयम निराशा का उद्यम बन जाता है 

भारतवर्ष की ऊर्जा को अपने अन्दर प्रवेश कराएं दीपज्योति हमारे भीतर प्रवेश कर जाए अन्धकार को पचाएं प्रकाश को फैलाएं l 

आर्ष  (अर्थात् ऋषियों के द्वारा) व्यवस्था के अन्तर्गत हमारे यहां जितने भी पर्व निर्धारित हैं वे सब सकारण हैं

भगवान् राम आज ही के दिन रामराज्य का भार उठाने के लिए अयोध्या में प्रवेश करते हैं

कल मुकेश जी ने आचार्य जी के साथ मिलकर वञ्चित बच्चों को वस्त्र दिये l यह सुसंगति का प्रभाव है l

हम भारतीयों के बहुत से सद्गुणों को दोषपूर्ण बनाने के लिए बाहर से बहुत लोग आते रहे विलायती लोग व्यापार करने आये और देखा कि भारतवर्ष के लोगों को तो आसानी से घुमाया जा सकता है अर्थात् अपनी आस्था से संस्कृति से विश्वासों से डिगाया जा सकता है 

 आचार्य जी ने JEAN -ANTOINE DUBOIS नामक फ्रेंच मिशनरी की चर्चा की इसकी विस्तृत जानकारी हमारी सांस्कृतिक विचारधारा के मूल स्रोत लेखक सुरेश सोनी लोकहित प्रकाशन लखनऊ  में मिल जायेगी

पश्चिम के लोग धीरे धीरे हमारी संस्कृति का अध्ययन करके इसे विकृत करने लगे मैक्स मूलर ने भी इसे  बहुत विकृत किया 

वेद हम विदेशी नजर से पढ़ने लगे

आचार्य जी ने अपनी लिखी एक कविता सुनाई


हुआ अजब मतफेर लग रहा सगा पराया

और ये कैसा अन्धेर जीत को गया हराया...

इसके अतिरिक्त  विद्यालय में हनुमान जी की प्राण प्रतिष्ठा के समय मुख्य पुरोहित कौन थे? बैरिस्टर साहब का आज आचार्य जी ने नाम क्यों लिया? आदि जानने के लिए सुनें 👇

3.11.21

दिनांक 03/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है यतात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 03/11/2021 का सदाचार संप्रेषण


आचार्य जी ने बताया पश्चिम यथार्थ तो देखता है लेकिन हम जीवन में उत्साह और जीवन में सातत्य देखते हैं


गगन के उस पार क्या,

पाताल के इस पार क्या है?

क्या क्षितिज के पार? जग

जिस पर थमा आधार क्या है?

दीप तारों के जलाकर

कौन नित करता दिवाली?....

-श्याम नारायण पांडेय


हर जिज्ञासु दीवार के उस पार देखना चाहता है संसार का जिज्ञासु भाव एक धन है l


तुलसीदास जी ने सबसे पहले 

हनुमान चालीसा जानकी मंगल पार्वती मंगल लिखे

और मानस में सबसे पहले अयोध्या कांड लिखा राम के कार्य को मांगलिक रूप से प्रारम्भ किया 

बाल कांड अत्यन्त व्यवस्थित ज्ञान का आधार है और भिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान है

आचार्य जी ने बी एन एस डी इंटर कालेज के पूर्व प्रधानाचार्य श्री सद्गुरु शरण अवस्थी और बारानिकोह से संबन्धित एक रोचक जानकारी दी और बताया कि सद्गुरु जी के अनुसार राम चरित मानस में  उन्नीस हजार शब्दों का प्रयोग हुआ है

क्या तुलसी जी की तुलना मिल्टन शेक्सपीयर आदि से की जा सकती है जिन्होंने छह से आठ हजार शब्दों का ही प्रयोग किया था

हमारे सचमुच के तत्त्व को बहुत नीचे गिराया गया हमारे भाव को कुण्ठित किया गया

हमारे ज्ञान के अथाह भण्डार को कम आंका गया

लेकिन अब इस आत्मबोध को जगाने की आवश्यकता है कि हमारा ज्ञान अत्यन्त अथाह है और इसकी तुलना कहीं से नहीं की जा सकती


वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।

मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥


भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।

याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥2॥

 

वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्।

यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3॥

आदि की अत्यन्त लम्बी व्याख्या की जा सकती है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी जब एक शादी में गये थे तो क्या घटना घटी और आचार्य जी ने जे पी आचार्य जी का उल्लेख क्यों किया आदि जानने के लिए सुनें 👇

2.11.21

दिनांक 02/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है माहात्मिक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 02/11/2021 का सदाचार संप्रेषण


प्रायः सभी के दिन उतार चढ़ाव वाले होते हैं समय की गति टेढ़ी मेढ़ी होती है यह सीधी रेखा में कभी नहीं चलती और इसीलिए यह संसार संसार - सागर कहलाता है संसृति इति संसारः जो प्रतिक्षण बदल रहा है लेकिन चल रहा है संसार स्थूल है तो सूक्ष्म भी है

संसार कभी वापस होकर नहीं आता जन्म मरण भी सिलसिलेवार चलता रहता है

जहां संवेदनशीलता का अभाव है वहीं दुराव है जहां दुराव है वहीं विघटन है कुण्ठएं है कलह है कष्ट है

संसार का आचरण उतार चढ़ाव वाला है चिन्तनशील लोग पीड़ा पी लेते हैं भले ही वो किसी आत्मीय से मिली हो  जिस व्यक्ति में कष्टदायक बात को पचाने की क्षमता जितनी अधिक होगी वो उतना ही सफल है और यह क्षमता ध्यान धारणा स्वाध्याय अध्ययन चिन्तन संगति से विकसित की जा सकती है

लेकिन परमात्मा की लीला है कि जिसके हिस्से में जो आया है वह उसे भोगना ही पड़ेगा

आचार्य जी ने अपनी एक रचना सुनाई


दुनिया औरों को सदाचार सिखलाती है

पर स्वयं असंयम कदाचार की अभ्यासी


आपने एक प्रसंग सुनाया जब वे संघ के प्रचारक के रूप में हमीरपुर के पास सुमेरपुर गये थे

शिक्षक का भाव रहता है कि वह सदाचार के माध्यम से प्रेरणा दे सके

जो आत्मस्थ होने का प्रयास नहीं करता वह खीझते खीझते ही जीवन व्यतीत कर देता है आत्मस्थ होकर अपनी धुन की पूजा करो 

आचार्य जी ने बताया कि लोमश ऋषि जिनकी कल उन्होंने चर्चा की थी अमर माने जाते हैं और  एक लोमश -रामायण भी है l

आचार्य जी ने एक और कविता सुनाई


कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है....

आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त इक प्यार का नगमा है  (फिल्म :शोर )  जैसे भावपूर्ण गीत लिखने वाले गीतकार संतोष आनन्द की चर्चा की l

आज का TAKE HOME MESSAGE

आत्मस्थ होने का प्रयास करें

1.11.21

दिनांक 01/11/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है संस्कृत संयतात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 01/11/2021 का सदाचार संप्रेषण


आचार्य जी को बहुत कम आयु से एक सूत्र सिद्धान्त का वाक्य प्रभावित किये हुए है

जो करता है सब परमात्मा करता है

और वह अच्छा ही करता है

लेकिन यह प्रायः संकटों में याद आता है 

कष्ट संकट समस्याएं भोग हैं

धन की तीन अवस्थाएं भोग दान नाश हैं


आचार्य जी ने ठण्डी पुलिया कानपुर से संबन्धित एक प्रसंग सुनाया जब संघ के प्रचारक रहे ठाकुर साहब स्व राम गोविन्द सिंह जी (हिन्दू जागरण मंच ) ने आचार्य जी को प्रदेश का बौद्धिक प्रमुख बना दिया था


आचार्य जी ने एक और अत्यधिक रोचक कथा सुनाई जब देव इन्द्र ने ऋषि लोमस को अपने महल बुलाया


तैत्तिरीय उपनिषद् में परमात्मा के बारे में ज्ञान मिल जायेगा


आपने तुलसी के बारे में ये पंक्तियां लिखीं 


प्रचंड तेज शक्ति शील रूप के विधान हो

अनिन्द कर्म धर्म मर्म शर्म  संविधान हो

उदार हो विदार हो प्रफ़ुल्ल कोविदार हो

प्रसार भक्ति भाव राम नाम के प्रचार हो

(शर्म का अर्थ रक्षा,विदार का अर्थ युद्ध, कोविदार का अर्थ कचनार)

तुलसी हमारे मार्गदर्शक बने हुए हैं

आपने 

दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।

देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।।17.20।।गीता

का अर्थ बताया


ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः।


ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा।।17.23।

आदि में आये ॐ तत् सत्  का अर्थ बताया

संसार में हम कोई भी काम कर रहे हैं वह भगवान् करा रहा है यह भाव सदैव रहना चाहिए