31.12.21

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 31/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  आर्यशील आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 31/12/2021   का सदाचार संप्रेषण 




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राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।

सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥


राम -कथा के  श्रवण, गायन, मनन, चर्चा से  संकटकाल के उद्धार का सहारा मिलता है

तुलसीदास जी ने राम -कथा को कामधेनु कहा है 


सदाचारी जीवन के साथ जीवन व्यतीत करते हुए हम लोगों ने भिन्न भिन्न तौर तरीकों से परमात्माश्रित होकर अपनी संस्कृति की रक्षा की है


यह सनातन संस्कृति मानव संस्कृति है आधार संस्कृति है

हम लोग मध्यममार्ग के  हैं 


घर दीन्हे घर जात है, घर छोड़े घर जाय। 


‘तुलसी’ घर बन बीच रहू, राम प्रेम-पुर छाय॥


हम लोगों की संस्कृति में त्रिकाल संध्या है  तीन संधि वेलाओं में गायत्री सावित्री सरस्वती तीनों स्वरूपों को स्मरण कराने के लिए



इन सब के साथ हम इस समाज और संसार की भी चिन्ता करें

समाज में दुर्जन भी हैं 


कहु ‘रहीम’ कैसे निभै, बेर केर को संग।

वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग॥


अर्थ:

बेर और केले का  साथ-साथ कैसे निभाव हो सकता है? बेर का पेड़ तो अपनी मस्ती में डोल रहा है, लेकिन उसके डोलने से केला  फटा जा रहा है। दुर्जन की संगति में सज्जन की भी ऐसी ही गति होती है।



हम अपने वास्तविक इतिहास को देखें कितने संघर्ष हुए क्यों हुए 

 इस्लाम के आक्रमण से केवल राजनीति ही प्रभावित नहीं हुई

भारतीय अध्यात्म प्रज्ञा के मन में आंदोलन हुए कि यदि  इतना क्रूर भी कोई हो सकता है तो इसके लिए समाज को जगाना होगा तब ही अध्यात्म को शौर्य के साथ संयुत किया गया है 

आचार्य जी ने समर्थ रामदास गुरु का उदाहरण दिया जिसने शिवाजी को प्रेरित कर दिया 

इसी तरह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उदय हुआ

कि समाज में रहते हुए हम  संन्यास धर्म का पालन करेंगे

संन्यास धर्म है खुद जागो दूसरे को जगाओ


भारत मां तेरा वैभव वापस कैसे आये इसका प्रयास हुआ 



हिंदू समाज को   कई मोर्चों पर शक्ति मिली है आशा और विश्वास के साथ वर्तमान के प्रति सचेत रहें अतीत से शिक्षा लें भविष्य का निर्माण करें


संगठन के महत्त्व को समझें



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने एक प्रसंग बताया जब वे संघ के प्रचारक थे तो रिक्शे वाला क्यों भौंचक्का हो गया


रामकृष्ण परमहंस विवेकानन्द से क्यों नाराज हुए आदि जानने के लिए सुनें

30.12.21

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  सावष्टम्भ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30/12/2021   का सदाचार संप्रेषण 




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आचार्य जी का यह प्रयास रहता है नित्य का यह संप्रेषण खण्डित न हो इसी बात का ध्यान आचार्य जी संघ की शाखा जाते समय भी करते थे

हम सब  भी नित्यता का ध्यान रखें

भीड़ किसी समस्या का समाधान नहीं करती है 


आचार्य जी ने भर्तृहरि के वाक्यपदीय से शब्द के विस्तार को बताता एक श्लोक बताया

इस शरीर में अनन्त शक्तियां हैं

रंग और रूप परमात्मा की अद्भुत सांसारिक अभिक्रिया है

इस अभिक्रिया को जो समझ जाते हैं कि संसार क्या है संसार का आधार क्या है हम कौन हैं हम इस संसार और उस आधार का समन्वित स्वरूप हैं जिनको यह समझ में आ जाता है वे स्वयं तो आनन्दित रहते हैं अपने शब्दों से वे दूसरे को भी आनन्दित करते हैं


हमारे यहां वाणी विज्ञान का बहुत गहराई से विचार किया गया। ऋग्वेद में एक ऋचा आती है-


चत्वारि वाक्‌ परिमिता पदानि

तानि विदुर्व्राह्मणा ये मनीषिण:

गुहा त्रीणि निहिता नेङ्गयन्ति

तुरीयं वाचो मनुष्या वदन्ति॥

ऋग्वेद १-१६४-४५


अर्थात्‌ वाणी के चार पाद होते हैं, जिन्हें विद्वान मनीषी जानते हैं। इनमें से तीन शरीर के अंदर होने से गुप्त हैं परन्तु चौथे को अनुभव कर सकते हैं। इसकी विस्तृत व्याख्या करते हुए पाणिनी कहते हैं, वाणी के चार पाद या रूप हैं-


१. परा, २. पश्यन्ती, ३. मध्यमा, ४. वैखरी


(http://vaigyanik-bharat.blogspot.com/2010/06/blog-post_5586.html?m=1 से साभार )


परा वाणी मूलाधार में पश्यन्ती नाभि में और मध्यमा हृदय में है 

जिनकी परा वाणी वैखरी में

प्रकट होती है उसका प्रभाव बहुत दिखता है


ब्रह्मज्ञानियों को सचमुच में यह अनुभूति होती है 

जिज्ञासा के साथ यदि त्वरा शामिल है तो इसका अर्थ है कि हमारी शक्तियां क्षीण हो रही हैं 

धैर्य सुस्थिर करें जब विचार धैर्य के साथ संयोग करते हैं तो क्रिया प्रभावशाली होती है 

आत्मा परमात्मा पर विश्वास करें 

वर्तमान में आनन्द की अनुभूति करें

आचार्य जी ने अध्यात्म के आधार और अध्यात्म के प्राप्तव्य को बताया

विषय निर्धारित करके योजनापूर्वक कार्यक्रम करें उनकी समीक्षा करें 

जो सुनें उसे क्रिया रूप में परिवर्तित करें

29.12.21

विनीतात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  विनीतात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29/12/2021   का सदाचार संप्रेषण 




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शब्द क्या है?

किसी विचारक ने कहा

 सब तरह के दृश्य पदार्थ कल्पना अथवा भावों या विचारों की प्रतिच्छाया या प्रतिबिम्ब ही शब्द है

शब्द एक बहुत बड़ा आधार है  शब्द के अभाव में ज्ञान का स्वयंप्रकाशत्व लुप्त हो जाता है

ऋषियों ने शब्द का बहुत महत्त्व दर्शाया है  प्रणव ॐ आदि स्वर और शब्द दोनों  है


ब्रह्म के मन में इच्छा आई, विस्फोट हुआ और स्वर निकला   ॐ

ऋषि भर्तृहरि ने शब्दाद्वैत का प्रवर्तन कर दिया

नाथ संप्रदाय में भी शब्द की उपासना की गई है राधास्वामी मत में भी शब्द (सबद )की उपासना है

इसी तरह कबीर भी शब्द पर बहुत जोर देते दिखे हैं

हम लोगों को एक दूसरे पर जो विश्वास है उसी कारण हम एक दूसरे के शब्द सुनते हैं यह शब्दमय संसार हमारे आसपास प्रसरित हो रहा है यह भगवान् की कृपा है

इन शब्दों के आधार पर हम आनन्द भी ले सकते हैं और व्यवहार भी कर सकते हैं

सीमा पर ललकार हो या स्वर में बंधा राग हो दोनों में रोमांच है


विवाह के समय भगवान् राम के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार से मानस में है 

राजकुअँर तेहि अवसर आए। मनहुँ मनोहरता तन छाए।।

गुन सागर नागर बर बीरा। सुंदर स्यामल गौर सरीरा।।


राज समाज बिराजत रूरे। उडगन महुँ जनु जुग बिधु पूरे।।

जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी।।

देखहिं रूप महा रनधीरा। मनहुँ बीर रसु धरें सरीरा।।

डरे कुटिल नृप प्रभुहि निहारी। मनहुँ भयानक मूरति भारी।।

रहे असुर छल छोनिप बेषा। तिन्ह प्रभु प्रगट कालसम देखा।।

पुरबासिन्ह देखे दोउ भाई। नरभूषन लोचन सुखदाई।।


दोहा/सोरठा

नारि बिलोकहिं हरषि हियँ निज निज रुचि अनुरूप।

जनु सोहत सिंगार धरि मूरति परम अनूप।।241।।


बिदुषन्ह प्रभु बिराटमय दीसा। बहु मुख कर पग लोचन सीसा॥

जनक जाति अवलोकहिं कैसें। सजन सगे प्रिय लागहिं जैसें॥

सहित बिदेह बिलोकहिं रानी। सिसु सम प्रीति न जाति बखानी॥

जोगिन्ह परम तत्त्वमय भासा। सांत सुद्ध सम सहज प्रकासा॥

हरिभगतन्ह देखे दोउ भ्राता। इष्टदेव इव सब सुख दाता॥

रामहि चितव भायँ जेहि सीया। सो सनेहु सुखु नहिं कथनीया॥



मानस के प्रसंग बहुत प्रभाव डालते हैं आचार्य जी चाहते हैं हमें भी पहले अनुभूति प्राप्त हो फिर अभिव्यक्ति प्राप्त करें


तुलसीदास के जीवन, परिस्थितियां, भाव, भाषा,भक्ति और उस समय के परिवेश पर हम लोग विचार करें कि उस समय कितना भीषण समय था ऐसे कठिन समय में जिस साहित्य का उन्होंने सृजन किया तो यह परमात्मा की ही कृपा है

अपनी बेचारगी इस तरह की सदाचार वेला से दूर करने का हम लोग प्रयास करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रमेशभाई ओझा, मैथिली शरण गुप्त का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें

28.12.21

दिनांक 28/12/2021 (पौष कृष्ण नवमी ) का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  अर्घ्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28/12/2021 (पौष कृष्ण नवमी )   का सदाचार संप्रेषण 




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आज कल राम कथाओं पर बहुत लोग चर्चा करते हैं कुछ तो बहुत प्रभावशाली होती हैं 

राम एक हैं देखने की दृष्टि विविध है जैसी दृष्टि होती है वैसी ही सृष्टि हो जाया करती है हम इतने प्रभावित हो जाते हैं कि उसी प्रभाव से दूसरे को प्रभावित करने की चेष्टा करते हैं लेकिन हमें जितना अच्छा लग रहा है दूसरे को भी उतना ही अच्छा लगे यह आवश्यक नहीं

यही रुचियों का वैविध्य है


बाल कांड से धनुष -यज्ञ का प्रसंग आचार्य जी ने बहुत अच्छे ढंग से बताने का प्रयास यहां किया है

कहि मृदु बचन बिनीत तिन्ह बैठारे नर नारि।

उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल अनुहारि॥ 240॥


राजकुअँर तेहि अवसर आए। मनहुँ मनोहरता तन छाए॥

गुन सागर नागर बर बीरा। सुंदर स्यामल गौर सरीरा॥


राज समाज बिराजत रूरे। उडगन महुँ जनु जुग बिधु पूरे॥

जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी॥


देखहिं रूप महा रनधीरा। मनहुँ बीर रसु धरें सरीरा॥

डरे कुटिल नृप प्रभुहि निहारी। मनहुँ भयानक मूरति भारी॥




रहे असुर छल छोनिप बेषा। तिन्ह प्रभु प्रगट काल सम देखा।

पुरबासिन्ह देखे दोउ भाई। नर भूषन लोचन सुखदायी॥


कवि का कौशल यहां दिखाई दे रहा है कि विद्वानों ने देखा तो उन्हें कैसा लगा इसी तरह भक्तों को योगियों को कैसा लगा 

इसमें मनोविज्ञान भी है

संसार को संसार की दृष्टि से देखना कठिन काम है लोग अपनी दृष्टि से देखते हैं लेकिन यदि अपनी दृष्टि समन्वयात्मक है कि शरीर क्षरणशील है मरणशील है लेकिन कर्म का आधार भी है तो यह सही बात है,शरीर के लिए दुराग्रह भी नहीं बहुत व्याकुलता भी नहीं


यदि हम समझें कि हम अलग हैं हमारा शरीर अलग है तो भी काम नहीं बनेगा और हम समझें कि हम शरीर ही हैं तब भी काम नहीं बनेगा

हमें समझना है कि यह हमारा शरीर है

नित्य शरीर का ध्यान आवश्यक है उचित समय पर जागरण आवश्यक है ध्यान धारणा भी करें

आचार्य जी चाहते हैं कि यह भाव विचार हम सब में पनपे हम एक दूसरे की सहायता करें  स्वाध्याय भी करें और यशस्विता प्राप्त करें

27.12.21

आज दिनांक 27/12/2021 (पौष कृष्ण अष्टमी ) का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  प्रह्लादन आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27/12/2021 (पौष कृष्ण अष्टमी )   

  { स्वामी विवेकानन्द द्वारा त्रिदिवसीय ध्यान का अन्तिम दिन (27 दिसंबर 1892 )


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कल रविवार दिनांक 26 दिसम्बर को युग भारती ने बैच 96 का रजत जयन्ती सम्मान समारोह आयोजित किया था


यद्यपि यह स्वार्थमय संसार है लेकिन यदि हमें यह अनुभूति हो जाए कि

(श्वेताश्वतरोपनिषद् के षष्ठोऽध्याय में

एको देवः सर्वभूतेषु गूढः सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा।

कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च॥)


  मैं वही हूं जो आप हैं तो प्रेम आत्मीयता दिखने लगती है और आनन्द ही आनन्द आता है जैसा कल के कार्यक्रम में हुआ यह हमारी अमरता का प्रतीक है जब हम अपने को शरीर समझ लेते हैं तो परेशान होते हैं लेकिन शरीर समझना भी मजबूरी है

आचार्य जी ने वेदान्त दर्शन ब्रह्म सूत्र (हरि कृष्ण गोयंका जी )की चर्चा की

इसमें सामान्य जनों को समझ में आ सकने वाली व्याख्या है

वर्तमान में जीवित रहने का अभ्यास करना चाहिए वर्तमान यदि सहयोग चाहता है तो हमें सहयोग करना चाहिए संघर्ष चाहता है तो संघर्ष, ध्यान धारणा चाहता है तो ध्यान धारणा की ओर उन्मुख होना चाहिए लेकिन यदि कर्म के लिए स्नान ध्यान धारणा त्यागने के लिए प्रेरित कर रहा है तो उसे त्यागना चाहिए

शरीर हमारा साधन है और इसे सक्षम भी होना चाहिए

कर्म कर्तव्य का ध्यान रखें

कहीं मनुष्य का कर्तव्य सेवा है तो कहीं युद्ध कहीं ध्यान -धारणा,कहीं मनुष्य का कर्तव्य सेवा के विपरीत उस मनुष्य को नष्ट करने का है जो राष्ट्र विरोधी है

ये दर्शन के सिद्धान्त हैं हमारा ग्रन्थागार अत्यधिक तात्त्विक है इस ओर रुझान करें

युग भारती हम लोगों का उत्तम उत्पाद है जिस कारण से विद्यालय अस्तित्व में आया उसी तरह युगभारती भी अस्तित्व में आई क्योंकि बूजी ने कहा था एक दीनदयाल गया है मैं अनेक दीनदयाल बनाऊंगी

दीनदयाल जी की तरह सादगी, संयम, शील,संकल्प, स्वाध्याय, विचार, त्याग आदि का हमारे अन्दर भी प्रवेश हो हमें परमात्मा से यही मांगना है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया दीपक शर्मा जी( बैच 1981), भैया अमित गुप्त जी (बैच 1989), भैया मनीष कृष्णा (बैच 1988) की चर्चा क्यों की, वायु -भक्षण कौन करता है, किसने कहा था मूंछे लगा लगा कर आ जाते हो पहचानेंगे कैसे  आदि जानने के लिए सुनें

26.12.21

आज दिनांक 26/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  श्रितसत्त्व आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26/12/2021 (पौष कृष्ण सप्तमी )   

  { स्वामी विवेकानन्द द्वारा त्रिदिवसीय ध्यान का द्वितीय दिन (26 दिसंबर 1892 )

कन्याकुमारी में समुद्र के  मध्य में स्थित चट्टान पर बैठ कर स्वामी विवेकानन्द ने  25 से 27 दिसंबर तक ध्यान लगाया था । }

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आज युग भारती बैच 96 का रजत जयन्ती सम्मान समारोह आयोजित कर रही है। आचार्य जी कार्यक्रम से पूर्व विद्यालय के सामने स्थित मलय भैया (बैच 1982) के चिकित्सालय में उपस्थित रहेंगे

मिलना -जुलना,उत्साहित होना,बातचीत करना मनुष्य जीवन का बहुत ही आनन्दमय पक्ष है l किसी से मिलना बहुत अच्छा लगता है किसी से खराब ये सब भाव यह बताते हैं कि हम केवल इतने ही शरीर से जुड़े नहीं है

कभी कोई कहता है ऐसा लगता है पूर्वजन्म में हम आपके कोई थे l

यह थे वाला भाव एक दूसरे से जोड़ता हटाता रहता है

भाव और भाषा व्यक्ति के व्यक्तित्व के आभूषण हैं भाव और भाषा के आधार पर आपके संबन्ध बनते बिगड़ते हैं

संस्कार इसी को कहते हैं

हमारे कार्य व्यवहार का प्रभाव अगली पीढ़ी पर परिलक्षित होता है


भावुक पिता को अपने वृद्धबच्चे बच्चे ही दिखाई पड़ते हैं

यह भाव अपने ग्रंथों में कई स्थानों पर वर्णित है जिनका हमें अध्ययन करना चाहिए श्रेष्ठ लेखक विचारक के लेख पढ़ें भाव को भावनामय होकर समझें इन विचारों के साथ हम अपने संगठन को सुदृढ़ करते हैं क्योंकि


 यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।


अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।


परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।


धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।


हम जीव और ब्रह्म के बीच की सीढ़ी हैं हम भोजन कर रहे हैं वो भी ब्रह्म है मैं भी ब्रह्म हूं क्रिया भी ब्रह्ममय है


ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।


ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।


हम मनुष्यत्व को ही प्राप्त करें 


 आहारनिद्राभयमैथुनं च सामान्यमेतत्पषुभिर्निराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ।।


आचार्य जी ने स्वामी विवेकानन्द का एक प्रसंग बताया जिसमें वो भाव में व्यवधान आने पर किस प्रकार खीझे

इन सारे रहस्यों को समझने के लिए स्वाध्याय करना चाहिए लेकिन कर्महीन बनकर नहीं

राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष ही हमारा लक्ष्य है


इन सब भावों के साथ हम आज के कार्यक्रम में भाग लें

25.12.21

 प्रस्तुत है  कृतागम आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25/12/2021 (पौष कृष्ण षष्ठी )   

  { स्वामी विवेकानन्द द्वारा त्रिदिवसीय ध्यान का प्रथम दिन (25 दिसंबर 1892 )

कन्याकुमारी में समुद्र के  मध्य में स्थित चट्टान पर बैठ कर स्वामी विवेकानन्द ने  25 से 27 दिसंबर तक ध्यान लगाया था । }

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स्थान :  उन्नाव


यह सदाचार वेला प्रेरणा,शक्ति, भक्ति,विचार प्राप्त करने का और दिन भर की योजनाओं के लिए अपने अन्दर उत्साह भरने का माध्यम है


कोई भी काम कर पाना किसी अदृश्य शक्ति के हाथ में रहता है  इसी का नाम साक्षी भाव है


गीता में बारहवें अध्याय, जो श्रद्धेय बैरिस्टर साहब का बहुत प्रिय अध्याय था, से


यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च य:। 

हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो य: स च मे प्रिय: ।।15।।


जिससे कोई भी जीव उद्वेग को प्राप्त नहीं होता और जो स्वयं भी किसी जीव से उद्वेग को प्राप्त नहीं होता तथा जो हर्ष, अमर्ष (जलन), भय और उद्वेग आदि से रहित है- वह भक्त भगवान् को प्रिय है।

अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।


सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.16।।

17,18,19 को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने बताया कि 

परमात्मा हमारे अन्दर है और कोई हमें अपमानित कर रहा है पीड़ित कर रहा है तो प्रकारान्तर से वह परमात्मा भी तो पीड़ित होगा

राम चरित मानस से 

जब जब होई धरम की हानि। बाढ़हि असुर अधम अभिमानी।


करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥

की विस्तृत व्याख्या में आचार्य जी ने बताया कि

गायों के कटने से पूरा विश्व चीत्कारों से भर रहा है तो शान्ति व्याप्त कैसे होगी विप्र धेनु और सुर जब पीड़ित हो रहे हैं तो धरती मां पीड़ित हो रही है

और आपने दोहन और शोषण में अन्तर बताया


मनुष्य में विकार आया संतुलन बिगड़ने से हमारा तो नुकसान हुआ ही हमने संपूर्ण परिवेश को भी पीड़ित कर दिया

लेकिन मनुष्य ही प्रशिक्षित हो सकता है

आचार्य जी शिक्षक के रूप में हम लोगों को जो बताते हैं उसे हम लोग विश्वास के कारण सुनते हैं हमें एक दूसरे पर विश्वास है इस परस्पर के सहअस्तित्व के भाव को 

ॐ सह नाववतु।

सह नौ भुनक्तु।

सह वीर्यं करवावहै।

तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

में भी व्यक्त किया गया है जिसे हम लोग मात्र भोजन मन्त्र समझ बैठे हैं देखा जाए तो सारा विश्व शिक्षक और शिक्षार्थी भाव से भरा हुआ है

हम एक दूसरे के सहयोग से संस्कारों को ग्रहण करते हुए समाज की सेवा का संकल्प करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने एडवोकेट रणविजय सिंह जी की चर्चा क्यों की आदि जानने के लिए सुनें

24.12.21

दिनांक 24/12/2021 (पौष कृष्ण पञ्चमी )का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  व्युत्पन्न आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24/12/2021 (पौष कृष्ण पञ्चमी )का सदाचार संप्रेषण 




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रविवार दिनांक 26 दिसम्बर को युग भारती बैच 96 का रजत जयन्ती सम्मान समारोह आयोजित कर रही है।

जो लोग पीड़ित, परेशान,समस्याग्रसित हैं युग भारती उनकी पीड़ाओं को शमित करती है

ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से हम लोग अपनी पुरानी स्मृतियों को ताजा करते हैं

विद्यालय में हम लोगों को अनुशासन के महत्त्व को समझाया जाता था अनुशासन का अर्थ है अपने ऊपर लगाया हुआ नियन्त्रण स्वैराचार से कई उपद्रव होते हैं


श्वेताश्वतर उपनिषद् जो दस प्रधान उपनिषदों के अनंतर एकादश एवं शेष उपनिषदों में अग्रणी है कृष्ण यजुर्वेद का अंग है। छह अध्याय और 113 मंत्रों के इस उपनिषद् को यह नाम इसके प्रवक्ता श्वेताश्वतर ऋषि के कारण प्राप्त है।

इसी उपनिषद् से

ॐ सह नाववतु।

सह नौ भुनक्तु।

सह वीर्यं करवावहै।

तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

की आचार्य जी ने व्याख्या की


हम जो ज्ञान प्राप्त करें तेजपूर्ण हो हमारे आश्रमों में उत्तम से उत्तम आचरण कठोर से कठोर व्यवहार सिखाया गया

कर्ण की एक कथा है


परशुरामजी ने कर्ण की प्रतिभा को जानकर उन्हें अपना शिष्य बना लिया। एक दिन अभ्यास के समय जब परशुराम थक चुके थे तो उन्होंने कर्ण से कहा कि वे थोड़ा आराम करना चाहते हैं। तब कर्ण बैठ गए और उनकी जंघा पर सिर रखकर परशुराम आराम करने लगे। थोड़े समय बाद वहां एक बिच्छू आया, जिसने कर्ण की जंघा को काट लिया। अब कर्ण ने सोचा कि अगर वह हिले और बिच्छू को हटाने की कोशिश की तो गुरुदेव की नींद टूट जाएगी। इसलिए उन्होंने बिच्छू को हटाने की बजाय उसे डंक मारने दिया, जिससे उनका खून बहने लगा। इससे कर्ण को भयंकर कष्ट होने लगा और रक्त की धारा बहने लगी। जब धीरे-धीरे रक्त गुरु परशुराम के शरीर तक पहुंचा तो उनकी नींद खुल गई। परशुराम ने देखा कि कर्ण की जांघ से खून बह रहा है। यह देखकर परशुराम क्रोधित हो गए कि इतनी सहनशीलता केवल क्षत्रिय में ही हो सकती है। तुमने मुझसे झूठ बोलकर ज्ञान प्राप्त किया है इसलिए मैं तुमको शाप देता हूं कि जब भी तुम्हें मेरी दी हुई विद्या की सबसे ज्यादा जरूरत होगी, उस समय वह काम नहीं आएगी । दरअसल परशुरामजी क्षत्रियों को ज्ञान नहीं देते थे। कर्ण को उन्होंने सूत पुत्र जानकर ज्ञान प्रदान किया था।

(navbharattimes.indiatimes.com से साभार )

आचार्य जी ने

किं कारणं ब्रह्म कुतः स्म जाता जीवाम केन क्व च संप्रतिष्ठाः।

अधिष्ठिताः केन सुखेतरेषु वर्तामहे ब्रह्मविदो

 व्यवस्थाम्‌॥


ब्रह्म पर चर्चा करते हुए ऋषिगण प्रश्न करते हैं: क्या ब्रह्म (जगत का) कारण है? हम कहाँ से उत्पन्न हुए, किसके द्वारा जीवित रहते हैं और अन्त में किसमें विलीन हो जाते हैं? हे ब्रह्मविदो! वह कौन अधिष्ठाता है जिसके मार्गदर्शन में हम सुख-दुःख के विधान का पालन करते हैं?

कालः स्वभावो नियतिर्यदृच्छा भूतानि योनिः पुरुष इति चिन्त्या।

संयोग एषां न त्वात्मभावादात्माप्यनीशः सुखदुःखहेतोः॥


काल, प्रकृति, नियति, यदृच्छा, जड़-पदार्थ, प्राणी इनमें से कोई या इनका संयोग भी कारण नहीं हो सकता क्योंकि इनका भी अपना जन्म होता है, अपनी पहचान है और अपना अस्तित्व है। जीवात्मा भी कारण नहीं हो सकता, क्योंकि वह भी सुख-दुःख से मुक्त नहीं है।

(http://upanishads.org.in से साभार )

द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते।

तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति॥

दो सुन्दर पंखों वाले पक्षी, जो साथ-साथ रहने वाले तथा परस्पर सखा हैं, समान वृक्ष पर ही आकर रहते हैं; उनमें से एक उस वृक्ष के स्वादिष्ट फलों को खाता है, दूसरा खाता नहीं है, केवल देखता है।


के माध्यम से बताया कि मायामय संसार में लिप्त होकर हम अपने को भूले हुए हैं  अध्यात्मपरक चिन्तन न होने से सामञ्जस्य बैठाने में भी हमें दिक्कत आती है हम अपना भोक्ताभाव समाप्त कर द्रष्टाभाव ले आएं तो हम वही हो जाते हैं

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग सामान्य ध्यान प्राणायाम सीखें स्वभाव को परिवर्तित करें स्वाध्याय करें तो हमारे अन्दर आत्मशक्ति जाग्रत होगी जिससे हमें आनन्द आयेगा दूसरा प्रभावित होगा

23.12.21

दिनांक 23/12/2021 (पौष कृष्ण चतुर्थी )का सदाचार संप्रेषण

 सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।


प्रस्तुत है  श्रुतपारदृश्वन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23/12/2021 (पौष कृष्ण चतुर्थी )का सदाचार संप्रेषण


< 23 दिसंबर 1921 को रवीन्द्र नाथ टैगोर ने 1913 में प्राप्त नोबेल पुरस्कार राशि से विश्वभारती की स्थापना की थी 

यत्र विश्वं भवत्येकनीडम्

(यजुर्वेद 32/8) >




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आज की सदाचार वेला में संसार के सत्य और संसार के सत्य के साथ सांसारिकता के संबन्ध को समझाने का प्रयास किया गया है

प्रचुर मात्रा में उपलब्ध,अनेक संतों, विद्वानों,ज्ञानियों, कर्मयोगियों द्वारा व्याख्यायित गीता और मानस के संपर्क में हम जितना अधिक रहेंगे उतना ही संसार को समझने और सांसारिक व्यवहारों को करने का सलीका प्राप्त हो जायेगा

स्वाध्याय (यानि अपने रोग की दवा )अत्यधिक अनुपम निधि है

अपने रोग की दवा हम स्वयं नहीं कर पाते समस्या कुछ निदान कुछ

समस्याओं के संधान के तरीके भी अलग अलग हैं जिसको कोई तरीका सलीका मिल जाता है उसके अन्दर सहज या सामयिक आकर्षण पैदा हो जाता है समझदार के मन में थोड़ी देर के लिए ये आकर्षण रहते हैं और फिर विलीन हो जाते हैं

बच्चे उलझे रहते हैं

गीता के 15 वें अध्याय में


ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।


छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।

की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि मन क्या है भाषा क्या है अभिव्यक्ति क्या है इस तरह के अनन्त प्रश्नों का जिसे सहज उत्तर मिल जाता है उसे ज्ञानी कहते हैं

किसी की बात हमें अच्छी लगती है किसी की बात खराब

इन्हीं सारे रहस्यों को गीता मानस में समझाया गया है

गीता का कथात्मक स्वरूप गूढ़ हैऔर मानस का सरल

अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा


गुणप्रवृद्धा विषयप्रवालाः।


अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि


कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके।।15.2।।

की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि संसार की वास्तविकता में पिपीलिका वृत्ति भी होती है

संसार के प्रपंचों  से जो व्यक्ति तत्त्व निकाल लेता है वही ज्ञानी है

उसी को शिक्षा देने का अधिकार है

न रूपमस्येह तथोपलभ्यते


नान्तो न चादिर्न च संप्रतिष्ठा।


अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल


मसङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा।।15.3।।

ततः पदं तत्परिमार्गितव्य


यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः।


तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये


यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी।।15.4।।

निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै


र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।

इन ज्ञान की सीढ़ियों पर चढ़ने के लिए हमारे अन्दर शक्ति बुद्धि विचार आये और संसार में हम आवश्यकता पड़ने पर अपने कर्तव्य का निर्वाह कर सकें गीता यह है l

22.12.21

दिनांक 22/12/2021 (MAN WHO KNEW INFINITYश्रीनिवास रामानुजन का जन्मदिवस /राष्ट्रीय गणित दिवस )का सदाचार संप्रेषण

 प्रवाह -पतित न हों



प्रस्तुत है  विश्रम्भभूमि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22/12/2021 (MAN WHO KNEW INFINITYश्रीनिवास रामानुजन का जन्मदिवस /राष्ट्रीय गणित दिवस )का सदाचार संप्रेषण


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संसार में विचार और विकार दोनों हैं देव हैं तो दैत्य भी हैं

खाद्याखाद्य विवेक जिस पर बहुत सी पुस्तकें लिखी गई हैं अपने शरीर, मन, मस्तिष्क,विचार, भाव, अपनी सब प्रकार की सांसारिक शक्तियों के साथ अपने आध्यात्मिक भावों की जागृति का आधार है

भक्तों को लगा कि उनका काम केवल भक्ति है यह तो एक तरह की सद्गुण विकृति है

आत्मचिन्तन में कौन कौन से विषयवर्ग होते हैं इस पर विचार करें

शरीर मन बुद्धि का संपोषण कैसे हो इनमें शक्तियां कैसे आयें समय पर आवेश कैसे आये केवल लिखा पढ़ी में ही भाव व्यक्त न हों

भारतवर्ष में जब भी संकट आये तो तपस्वी साधक संत विचारक सामने आकर खड़े हो गये और उसके पश्चात् उनके पीछे भीड़ चल पड़ी

आनन्द मठ के समय की स्थितियों का हम लोग विचार करें और आज भी वैचारिक युद्ध चल रहे हैं l केवल उपदेश न दें अपने अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन और  फिर क्रिया पर ध्यान दें

(इदं शस्त्रं इदं शास्त्रं शापादपि शरादपि )परशुराम का अवतार इसी तरह की परिस्थितियों में हुआ है

जब ईसाई मत का बहुत तेजी से प्रसार शुरु हुआ तो 1901 में स्वामी ज्ञानानंद जी की प्रेरणा और निर्देशन में मथुरा में सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा हेतु श्री भारत धर्म महामंडल की स्थापना हुई , जिसका मुख्यालय वाराणसी में स्थापित हुआ। पहले संस्था का मुख्यालय गुरुधाम में था। वर्तमान में श्री भारत धर्म महामंडल अपने विस्तार स्वरूप में लहुराबीर (जगतगंज) में संचालित हो रहा है।

जहां पर आप हैं वहां आपकी ऊर्जा फैलती दिखे दुनिया देखे कि यह कोई विशेष है

इस तरह के बहुत से दीपक जब जलने लगेंगे तो दुनिया को अन्धेरा नहीं दिखाई देगा

खानपान में रस्मरिवाज में बहुत से विकार आ गये हैं जिन पर निगाह रखने की जरूरत है आचार्य जी ने इसके लिए श्री राघवेन्द्र जी जो इटकुटी गांव (पिनकोड 209831)(थाना अजगैन)उन्नाव में एक फार्महाउस बनवा रहे हैं के पिता जी कुशवाहा जी का एक प्रसंग बताया कि किस प्रकार उन्होंने अपनी पुत्री के विवाह में कोई भी विदेशी तौर तरीका इस्तेमाल नहीं किया

हमें किसी उद्देश्य के लिए संघर्ष करना है अध्यात्म और शौर्य का सामञ्जस्य समझें और प्रयोग करें

समय के मूल्य को समझें

21.12.21

दिनांक 21/12/2021 (चिल्ले कलां का प्रथम दिन )का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सुद्रविणस् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21/12/2021 (चिल्ले कलां का प्रथम दिन )का सदाचार संप्रेषण


आचार्य जी 

डा तुलसीराम की पुस्तक 'भारत में अंग्रेजी क्या खोया क्या पाया 'की चर्चा प्रायः करते हैं 

भाषा के संबन्ध में उनके विचार अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं यह सलीके से लिखी पुस्तक है

 जापान, चीन अपनी भाषा को दृढ़ता से पकड़े हैं लेकिन हमारे यहां 

कोई अंग्रेजी बोलता है तो लगता है विद्वान है

सवाल उठता है कि यह भ्रम क्यों उत्पन्न हो गया है अंग्रेजी बोलना ही हम लोगों का जीवन लक्ष्य बन गया है कोई अंग्रेजी बोलता है तो लगता है विद्वान है भाषाई व्यामोह किसी प्रयास से हमारे ऊपर चढ़ा अंग्रेजों ने हमारे  आत्मबोध को विलुप्त करने का सफल प्रयास किया

आचार्य जी ने DISCOVERY OF INDIA पुस्तक के दूसरे संस्करण के 64 वें पृष्ठ को पढ़कर धर्माचरण का महत्त्व बताया

लेकिन बाद में कितना परिवर्तन आ गया

आचार्य जी ने इसी संदर्भ में कभी लिखा था


दुनिया औरों को सदाचार सिखलाती है

पर स्वयं असंयम कदाचार की अभ्यासी .......

और एक अन्य कविता

जागो भारत जागो महान...

के माध्यम से आचार्य जी ने बताया कि जब हम अपना वास्तविक इतिहास पढ़ेंगे तो हमारा स्वाभिमान जागेगा

भारतीय संस्कृति को भाषाई व्यामोह से व्यावहारिक व्यामोह से कुंठित किया गया हमारा खानपान आचरण विचार बदल गया

संस्कृति से दूर होकर ओढ़ी हुई सभ्यता को लेकर हम चल रहे हैं तो स्वाभिमान तो नहीं जागेगा

इसे जगाने का प्रयास दीनदयाल विद्यालय में किया गया इसे अब आगे लाने की आवश्यकता है आत्मबोध को नित्य जाग्रत करने की आवश्यकता है

इन सब बातों का आगे आने वाले कार्यक्रमों में अवश्य ध्यान रखें 

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20.12.21

दिनांक 20/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।


तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।18.78।


जहाँ योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीवधनुषधारी अर्जुन हैं, वहाँ ही श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है -- ऐसा मेरा मत है।



प्रस्तुत है तेजस्वत्  त्रपिष्ठ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

मनुष्य जीवन प्रयासों (कुछ सायास कुछ अनायास )की एक प्रयोगशाला है

यह सदाचार संप्रेषण अपने विकारों को दूर करने की एक उत्तम व्यवस्था है

क्योंकि हम सात्विक पथ पर चलते हुए बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने का मन में एक भाव धारण किये हुए हैं तो हमें ईर्ष्या कुण्ठा कलह जो सब दुःख हैं इनसे बचना चाहिए

बहुत सारे सांसारिक भयों के मध्य निर्भय होकर चलने का भाव हमारे ग्रन्थों में मिलता है

महाभारत के भीष्म पर्व में भी निर्भय होकर चलने का भाव मिलता है

महाभारत के अनुसार द्यौ नामक वसु, जो ज्ञान का आधार और शक्ति के पुञ्ज हैं, ने गंगापुत्र भीष्म के रूप में जन्म लिया था।

हमारे यहां की चिन्तन व्यवस्था बहुत गहन है

हमें तो गर्व करना चाहिए कि हमारे यहां बहुत सारे ग्रन्थ, शब्दों के बहुत सारे अर्थ, भाषा में बहुत  सारे अक्षर व्यञ्जन शब्द उच्च कोटि का व्याकरण है वैविध्य को व्यवस्थित रूप से रखना कम आश्चर्य की बात नहीं

आचार्य जी ने कहा हम लोग गीता मानस का नियमित अध्ययन करें

सहयज्ञा: प्रजा: सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापति: |

अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् || 10||


या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।


यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।2.69।।


विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।


निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।2.71।।


ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।


तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव।।3.1।।


को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने कहा युद्ध भी एक कर्म है यज्ञ हवन भी कर्म है शान्ति और संघर्ष मनुष्य के विवेक पर आधारित हैं

हमारा कर्म क्या है धर्म क्या है इस पर विचार करें समय पर कठोर हों समय पर मृदु हों

इसके अतिरिक्त बिजली से इलाज का क्या आशय है

भैंस की भाषा को क्या हम श्रेष्ठ भाषा कहेंगे किसने कहा 

कौन दो सहपाठी  आमने सामने आ गये? आदि जानने के लिए सुनें

19.12.21

दिनांक 19/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 सह नाववतु।

सह नौ भुनक्तु।

सह वीर्यं करवावहै।

तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः 

 

(ईश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करे। हम दोनों को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एक साथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें। इस तरह की भावना रखने वाले का मन निर्मल रहता है। निर्मल मन से निर्मल भविष्य का उदय होता है।)



प्रस्तुत है सुचिन्तितचिन्तिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

आचार्य जी हम लोगों के सम्मुख ऐसे विषय रखने का प्रयास करते हैं जो प्रायः हमारी दृष्टि में नहीं आते

हम लोग सुनते रहते हैं कि वह वामपन्थी है वह दक्षिणपन्थी है इसी तरह  हमारे यहां पूजा पद्धति में भी वाम मार्ग है

हमारे यहां सारा सृष्टि संचालन यज्ञीय विधि विधान से है यज्ञीय विधि विधान में पूजा भी शामिल है

यज्ञ हवन पूजन हमारे विधिविधान का अङ्ग हैं

शाक्तों की पद्धति वाम मार्ग है (शाक्त =शक्ति के उपासक )(जैसे राम कृष्ण परमहंस शक्ति अर्थात्  दुर्गा के उपासक थे )

शाक्त, शैव, वैष्णव आदि के अलग अलग विधि विधान हैं और विकार सब में आते हैं क्योंकि संसार से इतर तत्त्व है और संसार में जो कुछ है वो मायामय तथ्य है

शाक्त मतों में एक सरल मार्ग (दक्षिण )है दूसरा मधुर (वाम )मार्ग है

पहला वैदिकतान्त्रिक दूसरा अवैदिकतान्त्रिक

इसी वाम मार्ग में कई विकार आ गये तो यह लांछित हो गया

आगम अर्थात् तन्त्र शास्त्र के ग्रंथों में इसका विस्तार से वर्णन है

विष्णु पुराण के दूसरे खंड के चौथे अध्याय के अनुसार शाकद्वीपी ब्राह्मणों का उपनाम मग था।

पूर्वकाल में सीथिया या ईरान के पुरोहित 'मगी' कहलाते थे।

भविष्य पुराण के ब्राह्मपर्व में कहा गया है कि कृष्ण के पुत्र कुष्ठरोगी साम्ब, सूर्य की उपासना से ठीक हुए थे।

फिर कृतज्ञता प्रकट करने हेतु उन्होंने मुल्तान में एक सूर्य मन्दिर बनवाया।

नारद जी की सलाह से उन्होंने शकद्वीप की यात्रा की और वहाँ से सूर्यमन्दिर में पूजा करने हेतु वे मग पुरोहित ले आये। तब से यह नियम बनाया गया कि सूर्यप्रतिमा की स्थापना एवं पूजा मग पुरोहितों द्वारा ही होनी चाहिए।

ऐसा लगता है मगध में आर्यों की शाखा मग रहती थी

भारत संपूर्ण विश्व का आधार केन्द्र है तो यह अतिशयोक्ति नहीं है किस विचार को किस तरह काटना है इसके लिए बहुत अध्ययन की आवश्यकता है

अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन भविष्य में करने के लिए न सोचें कि दायित्वों से मुक्त हो जाएं तो करेंगे साथ साथ करें

विद्यालय प्रबन्धकारिणी समिति के किस उपाध्यक्ष ने उचित गुरु के अभाव में तन्त्र मार्ग को सीखने के कारण अपनी स्मृति खो दी थी आदि जानने के लिए सुनें

18.12.21

दिनांक 18/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है विपश्चित् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

ब्रह्मवेला, ब्राह्मी स्थिति,ब्रह्मानुभूति आदि शब्द सात्विक मन को बहुत बल देते हैं राजसिक लोगों को प्रेरणा देते हैंऔर तामसिक के लिए बोझ होते हैं

यह हमारी संस्कृति के वाहकों का चिन्तन और अनुभव है कि हम लोग पूर्वकृत कर्मों के फलों का आस्वादन कर रहे हैं

हम लोग सात्विक जीवन व्यतीत करते हुए आवश्यकता होने पर आवेश को भी प्रदर्शित करते रहते हैं

प्रायः कुण्ठित मन से वर्तमान को कोसना परमात्मा के विधान का अपमान है

हमें यह अनुभव करना चाहिए कि जो भी परिस्थितियां हैं वो हमारे कर्मानुसार हमारे सामने आती जायेंगी

और उनसे संघर्ष करने की हमारी मनोभूमिका बनाई गई है

टी वी पर हम लोग देख सकते हैं कि तार्किकता के साथ भ्रमात्मक स्थितियों को कैसे सच साबित किया जाता है चाहे वो तंबू गाड़कर प्रदर्शन का हो या अन्य कुछ

हम तत्त्वबोध और आत्मबोध को साथ साथ लेते हुए जीवन की यात्रा को पूरा करते हैं

मनुष्य जाति में प्रकृति का घालमेल है मनुष्य भिन्न प्रकार के आवरण ओढ़ कर चलता है लेकिन यदि वह मनुष्यत्व को जान ले तो देवता से उठकर परमात्मस्थिति तक पहुंच सकता है

मनुष्य जीवन साधना का आधार है

शानदार था भूत, भविष्यत् भी महान है |

अगर संभाले उसे आप जो वर्तमान है |

यह गणेश शंकर विद्यार्थी जी के अखबार वर्तमान में प्रतिदिन निकलता था

इसी तरह स्वतन्त्र भारत में पाञ्चजन्य बजाते हुए भगवान कृष्ण दिखाये जाते थे

वर्तमान को न कोसें बल्कि मार्ग निकालें

अर्जुन मोहग्रस्त हो गए कि पितामह पर बाण कैसे चलाएं तो भगवान् श्रीकृष्ण ने डांटा 


 श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।


स्वधर्म क्या है इस पर विचार करें यदि हम शिक्षक हैं तो शिक्षकत्व स्वधर्म है

41 तक छन्द पढ़ने की आचार्य जी ने सलाह दी

ममत्व लिए, विश्वासयुक्त हुए और विचारों की उदात्तता लिए हुए अध्यापकत्व को आप लोग भी प्राप्त करें ऐसी आचार्य जी प्रार्थना कर रहे हैं

इस समाज में जहां विकार ही विकार हैं विचारों को खोजें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अश्विनी उपाध्याय और जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी के video, माधवीलता शुक्ला जी, पत्रकार अमिताभ अग्निहोत्री जी की चर्चा क्यों की कल्याण पत्रिका का वो कौन सा प्रेरणादायी लेख था जानने के लिए सुनें

17.12.21

दिनांक 17/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 करसि पान सोवसि दिनु राती। सुधि नहिं तव सिर पर आराती॥

राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा। हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा॥4॥

बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ। श्रम फल पढ़ें किएँ अरु पाएँ॥

संग तें जती कुमंत्र ते राजा। मान ते ग्यान पान तें लाजा॥5॥


प्रस्तुत है श्रील सुनामन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

मां सरस्वती वाणी -विधान को शक्ति,गति,मति आदि न दें तो मनुष्य कुछ कर ही नहीं सकता केवल बोल सकता है

अभिभावक का,शिक्षक का, पितृवत् व्यवहार करने वाले व्यक्ति का यह भाव होना चाहिए कि हर व्यक्ति के साथ उसका सामञ्जस्य बैठ जाए यही भाव जब विकसित हो जाता है तो इसको नीति, व्यवस्था, नियम, विधि कहते हैं

यही नीति जब राज्य व्यवस्था में रहती है तो इसे  राजनीति कहते हैं

राज्य बिना नीति के नहीं चलता है परिवार में भी राज्य व्यवस्था रहती है हमारी संस्कृति ने परिवारभाव को राज्य व्यवस्था में परिणत किया और वसुधैव कुटुम्बकम् कहा

बृहस्पतिदेव गुरु हैं गुरु अर्थात् अन्धकार को हरण करने वाला (गु =अन्धकार, रु =हरण करने वाला )

शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु हैं

सुर असुर संसार की विधि व्यवस्था है बृहस्पतिदेव के रथ का नाम नीतिघोष है यानि उसके चलने से जो स्वर निकलते हैं उसमें भी एक व्यवस्था है

इन्हें देवताओं ने अपना गुरु बनाया और शुक्राचार्य में अपार शक्तियां हैं लेकिन एक न्यूनता रह गई कि उनमें ईर्ष्या का भाव समाप्त नहीं हुआ

और असुरों को इसी भाव से समझाने की चेष्टा की जैसे समुद्रमन्थन में एक दृष्टान्त है

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग शास्त्रीय अध्ययन थोड़े थोड़े अंशों में करते चलें

चार्वाक दर्शन , विश्वामित्र द्वारा सृष्टि रचना आदि पौराणिक ज्ञान में बहुत सारे तत्त्व हैं इसी तरह गीता मानस में भी बहुत से कथानक हैं

ये सब हमारे मार्गदर्शक बन गए हैं लेकिन शिक्षा का आधार इन्हें  नहीं बनाया गया

इसके अतिरिक्त देहाध्यासी क्या है, देहाभ्यासी क्या है, भैया आशीष जोग, भैया मनीष कृष्णा, भैया पुनीत श्रीवास्तव और भैया अरविन्द तिवारी जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें

16.12.21

दिनांक 16/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ध्यानयोगिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16/12/2021 का सदाचार संप्रेषण


सहजता को शक्ति, तत्त्व,भाव, विचार, क्रिया, व्यापार कहीं भी जोड़ सकते हैं अभ्यास होने पर क्रिया, व्यापार सब सहज लगने लगते हैं

सहजता भी एक प्रकार का योग है

आकस्मिक संकट के समय भी सहजता बनी रहे उसी का सिद्धान्त गीता में है


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।

अपने वैदिक ज्ञान में आध्यात्मिक आधिदैविक आधिभौतिक तीनों का सन्निवेश है संसार क्या है सत्य क्या है और यह क्रिया चलती कैसी है

क्योंकि हमारी शिक्षा इस प्रकार की नहीं हुई है इसलिए हम इसे समझ नहीं पाते हैं और इसी कारण परेशान भी होते हैं

आत्मस्थ होकर सोचें तो इन सारी शक्तियों का स्रोत हमारे अन्दर ही विद्यमान है लेकिन हम उनको पहचानते नहीं

क्योंकि हम भ्रम और भय से संयुत होकर  शिक्षा के साथ अन्याय कर रहे हैं तो अपने साथ भी अन्याय कर रहे हैं पद और प्रतिष्ठा की अन्धी दौड़ ने मनुष्य को एकांगी बना दिया

आधिभौतिक में मनुष्य लिप्त हो गया लेकिन आध्यात्मिक और आधिदैविक का भाव उसे विस्मृत हो गया

तत्त्वज्ञ स्वर्ण और मृदा को एक जैसा देखता है

गीता में

सुखं त्विदानीं त्रिविधं श्रृणु मे भरतर्षभ।


अभ्यासाद्रमते यत्र दुःखान्तं च निगच्छति।।18.36।।

हे अर्जुन! अब तुम मुझसे तीन प्रकार के सुखों के संबंध में सुनो जिनसे देहधारी आत्मा आनन्द प्राप्त करती है और सभी दुःखों के अंत तक भी पहुँच सकती है।

हमारे अन्दर से आवाज आये तो बड़ी से बड़ी चीज को हम त्याग सकते हैं

जितने क्षण आधिभौतिकता  नश्वर लगने लगती है तो हमारे अन्दर का भाव परिवर्तित होने लगता है

श्रुतिः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियं आत्मनः । एतच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाद्धर्मस्य लक्षणम् ।

वेद स्मृति सदाचार आत्मतुष्टि गम्भीर विषय हैं लेकिन व्यावहारिक जीवन में इन तात्त्विक गम्भीर विषयों की समीक्षा स्वयं करने लग जाएं तो हमारा शिक्षकत्व सफल हो जाता है

भैया दिनेश प्रताप जी (बैच 1991) से संबन्धित क्या बात थी, शहीद पथ पर जाम में कौन फंस गया था आदि जानने के लिए सुनें

15.12.21

 प्रस्तुत है मैधावकशस्त्र आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15/12/2021 का सदाचार संप्रेषण जिसे आचार्य जी ने

 भैया अरविन्द तिवारी जी( बैच 1978 हाई स्कूल )के आवास (लखनऊ ) से प्रेषित किया


कल आचार्य जी न्यायमूर्ति श्री सुरेश गुप्त (1975 बैच) जी के सुपुत्र के मांगलिक कार्यक्रम में  सम्मिलित हुए थे

भैया मनीष कृष्ण जी के प्रश्न

एकात्म मानव दर्शन क्या है? का आचार्य जी ने बहुत सरल ढंग से उत्तर दिया

इसके लिए आचार्य जी ने पं सूर्यदत्त उपाध्याय (DIOS ) और बैरिस्टर साहब की त्रिभुज से संबन्धित प्रसंग की भी चर्चा की जिसके माध्यम से किसी प्रश्न का उत्तर सरल कैसे दिया जाए यह बताया

मानव इस संपूर्ण सृष्टि के रहस्य का आधार है आधेय से आधार तक की यात्रा करने का एक सूत्र है

एकात्म मानव दर्शन की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया 

मनुष्य यदि परमात्मा का प्रतिनिधि है तो संपूर्ण जीवात्माओं के सामञ्जस्य समन्वय का उसका कार्य है और यदि उसका अंश है तो जो वह विराट् रूप में करता है यह छोटे में करता है

परमात्मा का संदेश है कि यह सृष्टि एक है इसके वैविध्य के सामञ्जस्य का उत्तरदायित्व मनुष्य का है पं दीनदयाल जी के अनुसार व्यष्टि से समष्टि और समष्टि से परमेष्टि तक संपूर्ण मानव-जाति अन्योन्याश्रित भाव से एक-दूसरे से जुड़ी है।

मनुष्य को मनुष्यत्व प्राप्त करने के लिए उसको संस्कार अर्जित करने होते हैं या उसे कहीं से प्राप्त हो जाएं छोटे से लेकर बड़े तक सबके द्वारा एक दूसरे का आदर सम्मान हो  ये सब  मनुष्य करता है इसीलिए मनुष्य एकात्मकता का प्रतीक है और यह  दीनदयाल जी ने उस समय प्रस्तुत किया जब मार्क्सवाद का बोलबाला था

समता और ममता का सामञ्जस्य ही एकात्म मानववाद की आधारभूमि है

दत्तोपन्त ठेंगड़ी जी (10 नवम्बर 1920 – 14 अक्टूबर 2004) ने एकात्म मानववाद का कई खंडों में प्रस्तुतिकरण किया है

मनुष्य के अन्दर मनुष्यत्व है तो यही एकात्म मानव दर्शन है

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14.12.21

दिनांक 14/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ससम्पद् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14/12/2021 का सदाचार संप्रेषण


आचार्य जी  हम लोगों से भावनात्मक रूप से संपर्क करते रहें और हम लोगों का अधिक से अधिक मार्गदर्शन करें स्थूल से सूक्ष्म की ओर स्वयं चलते हुए हमें भी उस ओर उन्मुख करें यह उनका प्रयास रहता है

स्थूल और सूक्ष्म के संयोजन से हम आगे तो बढ़ रहे हैं लेकिन बहुत अधिक तात्त्विक चिन्तन और मनन का अभ्यास नहीं है तो हम परेशान होते हैं

हमारी प्राचीन परम्परा बहुत आश्वस्तिपूर्ण थी लेकिन अब ऐसा नहीं है

आचार्य जी से बहुत लोग अपनी समस्याएं सुलझाने का प्रयास करते हैं

संसार-सागर बहुत विचित्र है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को  पुरुषार्थ साधना संयम करना पड़ेगा

इसमें आकर्षण भी हैं और भय भी है सागर को रत्नाकर भी कहा जाता है इसके रत्नों में चमक और आकर्षण है इन रत्नों का आदान -प्रदान मूल्य से होता है फिर इन रत्नों से आकर्षण धीरे धीरे कम होने लगता है यह संसार का सत्य है

पञ्चप्राणों ( प्राण अपान उदान समान व्यान )की उपनिषदों अरण्यकों आदि में बहुत चर्चा है ये सब सामञ्जस्यपूर्ण ढंग से चलते रहें तो जीवन उत्साहपूर्वक चलता रहता है


कभी हमारी सांसारिक समस्याओं को सुलझाने के लिए आचार्य जी को व्यावहारिक होना पड़ता है और कभी आचार्य जी को तात्त्विक होना पड़ता है जब उन्हें लगता है कि हम बड़े हो गए हैं और अब हमें तत्त्व को जानने की आवश्यकता है

आचार्य जी को यह सब अब अच्छा लगने लगा है क्योंकि इसका उन्हें अभ्यास हो गया है

संसार में जीवन जीने की हमारी शैली क्या हो इस पर इस सदाचार वेला में विचार होता है हमें तत्त्व की भी जानकारी हो और सत्य की भी

इस तत्त्व और सत्य का संयोजन हम तब ही कर सकते हैं जब हम अभ्यास करेंगे

हमें इस क्षरणशील संसार में रहते हुए संसार के साथ सामञ्जस्य स्थापित करना और अपने शौर्य पराक्रम  का उपयोग भी करना चाहिए

13.12.21

दिनांक 13/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है आर्च आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

शिक्षक को सतत सतर्क रहने की आदत पड़  जाती है कि कोई व्याकरणिक दोष न हो और यदि हम अपने को शिक्षक मानते हैं तो वाणी और व्यवहार का नियमन अत्यन्त आवश्यक है

आचार्य जी सदैव हम लोगों को सुयोग्य शिक्षक बनाने के लिए उद्यत रहते हैं ताकि समाज हम लोगों से शिक्षार्थी के रूप में बहुत कुछ प्राप्त कर सके

शिक्षक के रूप में हमें अपना खानपान,,वाणी, उचित व्यवहार का भी ध्यान रखना होगा ताकि गरिमा बनी रहे

शिक्षक के प्रति जब भावात्मक संबन्ध जुड़ जाता है तो वह माता और पिता दोनों हो जाता है

आचार्य जी ने इसके लिए एक प्रसंग सुनाया जिसमें रामधारी सिंह दिनकर ( रामधारी सिंह का जन्म 23 सितम्बर 1908 ई. में बिहार प्रान्त के बेगुसराय जिले के सिमरिया घाट गाँव में  हुआ था और मृत्यु 24 अप्रैल 1974 को चेन्नई में हुई ) ने अपने शिक्षक को भूखा देखकर अश्रुपात किया था

शिक्षकत्व अत्यन्त गम्भीर गुरुतर भार है और हमारे समाज से जब शिक्षकत्व लांछित हो गया तो स्थितियां विषम हो गईं

शिक्षा के कारण ही बहुत सी समस्याएं पैदा हुईं और शिक्षा में ही इनका निदान भी है

पञ्चम वेद महाभारत में विदुर का धृतराष्ट्र से संवाद भी पढ़ने लायक है

युद्ध छिड़ने जा रहा है एक दृश्य है

पाञ्चजन्यस्य निर्घोषं देवदत्तस्य चोभयोः |

श्रुत्वा सवाहना योधाः शकृन्मूत्रं प्रसुस्रुवुः || (MBH.6-1-18)

इसी समय यह प्रवचन चल रहा है

संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः।


ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः।।12.4।।

धर्म के दस लक्षण और पतञ्जलि के अष्टांगयोग की ओर संकेत करते हुए आचार्य जी ने बताया धारणा ध्यान समाधि को मिलाकर संयम कहते हैं आपने धारणा, ध्यान और समाधि शब्द की व्याख्या की

आचार्य जी ने शर्मा जी और गुरु जी के प्रसंग बताए


पहले स्वयं आन्तरिक शुचिता, व्यवस्था की ओर ध्यान दें और फिर सिखाएं  हमारे संगठन से लोग भयभीत हों प्रभाव प्रदर्शित हो

स्वाध्याय पर भी आचार्य जी ने जोर दिया

12.12.21

दिनांक 12/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है निवृत्तकारण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12/12/2021 का सदाचार संप्रेषण


कार्यक्रम एक आधार है एकत्र होने का, विचार को आगे बढ़ाने का, योजनाओं को व्यवहार में परिवर्तित करने का

इसी तरह का एक कार्यक्रम कल सरौंहां में सम्पन्न हुआ जिसमें सुन्दरकांड का पाठ,यज्ञ,प्रसाद वितरण, परस्पर का संवाद, विचार, प्रश्नोत्तर, प्रार्थना, पूजा का समावेश रहा

कल भी आचार्य जी ने उसी बात को दोहराया कि निस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अपनी सारी शक्ति बुद्धि बल विवेक को समर्पित करना ही हमारा परम साध्य है

यह देश हम लोगों के रोम रोम में राम के रूप में विद्यमान है

लेकिन अनेक बार लोगों को भ्रम और भय होते रहते हैं तो बाल कांड के एक प्रसंग को इङ्गित करते हुए आचार्य जी ने बताया कि संसार में जिसके  भ्रम और भय छूट जाते हैं वह परम आनन्द को प्राप्त करता है

यह अद्भुत संसार है गीता में 

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।


मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।4.11।।


 हे पार्थ ! जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं,  उनको मैं उसी प्रकार आश्रय देता हूँ क्योंकि सभी लोग सब प्रकार से मेरे पथ का अनुकरण करते हैं।

श्रीमद्भागवत् में 

अकामः सर्वकामो व मोक्षकाम उदारधीः |


तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् ||


“मनुष्य चाहे निष्काम हो या फल का इच्छुक या मुक्ति का इच्छुक ही क्यों न हो, उसे पूरे सामर्थ्य से भगवान् की सेवा करनी चाहिए जिससे उसे पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो सके, जिसका पर्यवसान कृष्णभावनामृत में होता है |”

तीव्र भक्तियोग का भाव अकस्मात् नहीं आ जाता है आचार्य जी ने भक्तमाल पढ़ने की सलाह दी

हमें मनुष्य का शरीर मिला है यही कम कमाल की बात नहीं है  भाव और भक्ति में रहने वाले मनुष्य कुछ देर ही सही लेकिन आनन्द में रहते हैं

शरीर के अभ्यास से प्रारम्भ करके भक्ति में रमने पर हमें आनन्द मिलेगा रास्ते में  आनन्द लेते हुए लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयत्न करें

11.12.21

दिनांक 11/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कृतविद्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 11/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

मनुष्य स्थूल और सूक्ष्म दोनों के सामञ्जस्य का सेतु है सूक्ष्म जितना अदृश्य है उतना ही शक्तिमान है स्थूल जितना दृश्य है उतना ही शक्तिशून्य लेकिन अपने स्वरूप से भारी है इसलिये हमारी भारतीय संस्कृति स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा का एक सोपान गढ़ती चलती है

इसी सूक्ष्म अभ्यास के लिए गीता का छठा अध्याय ध्यानयोग है इसमें आप लोग 26 वें से 30 वें श्लोक पढ़ें


यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्।


ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।।6.26।।


यह  चञ्चल अस्थिर  मन जहाँ-जहाँ विचरण करता है, वहाँ-वहाँ से हटाकर इसे एक परमात्मा में ही  लगाएं ।


प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम्।


उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम्।।6.27।।


जिसके सब पाप नष्ट हो गये हैं, जिसका रजोगुण और मन निर्मल हो गया है, ऐसे  ब्रह्मस्वरूप योगी को निश्चित ही सात्त्विक सुख प्राप्त होता है।


युञ्जन्नेवं सदाऽऽत्मानं योगी विगतकल्मषः।


सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते।।6.28।।


इस प्रकार स्वयं को सदा परमात्मा में लगाता हुआ पापरहित योगी अत्यन्त सुख को प्राप्त हो जाता है।


सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।


ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः।।6.29।।


सर्वत्र अपने स्वरूप को देखने वाला और ध्यानयोग से युक्त  योगी अपने स्वरूप को सम्पूर्ण प्राणियों में स्थित देखता है और सम्पूर्ण प्राणियों को अपने स्वरूप में देखता है।


तो इससे होगा यह कि


यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।


तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति।।6.30।।


जो सब में मुझे देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता।


यह भारतीय भाव है

इस दूरस्थ कार्यक्रम का हमें लाभ उठाना चाहिए


WhatsApp पर आए एक संदेश को इङ्गित करते हुए आचार्य जी ने बताया कि पत्रकारिता यदि केवल अपनी कुण्ठाओं की अभिव्यक्ति है तो पत्रकारिता न होकर अपने विकारों का वमन है दोगले भाव के लोगों की यही दशा होती है मूल भारतीय है लेकिन चिन्तन ओढ़ा हुआ है  और वो इसके दुराग्रही हैं


शक्ति बुद्धि वाणी धन से हम भारत मां की सेवा में तत्पर रहें

हमें कौन सी बात कहां कहनी  जो प्रभावशाली हो इसका भी हम लोग ध्यान रखें


आज अपने गांव सरौंहां में सुन्दरकांड का पाठ है आप सब लोग सादर आमन्त्रित हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने एक सज्जन नबी बक्श जी की चर्चा की जिन्होंने आचार्य जी को गोद में खिलाया, दैनिक जागरण के श्री नरेन्द्र मोहन जी की भी चर्चा की, सदाफल क्या होता है? आदि जानने के लिए सुनें

10.12.21

दिनांक 10/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रवण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

परमात्मा की अद्भुत लीला है कि मनुष्य के सामने अनेक बार विभिन्न प्रकार की उलझाव वाली परिस्थितियां सामने आ जाती हैं और कभी-कभी  सब कुछ आनन्द में चलता है

सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥

तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन॥

यह भक्ति का भाव है और ज्ञान का भाव सोऽहं     अहं ब्रह्मास्मि है

तमिलनाडु में सैन्य हेलिकॉप्टर दुर्घटना में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन लक्ष्मण सिंह रावत उनकी पत्नी मधुलिका रावत समेत कुछ अन्य लोगों की मृत्यु से पूरा राष्ट्र हिल गया


तुलसी जसि भवितव्यता तैसी मिलई सहाइ

आपुनु आवइ ताहि पहिं ताहि तहां ले जाइ।

-जैसी भवितव्यता  होती है वैसी ही सहायता मिलती है। या तो वह सहायता अपने आप स्वयं आ जाती है या वह व्यक्ति  को वहां ले जाती है।

यह भाग्यवाद नहीं है यह संसार का सत्य है

इस सदाचार के समय यह चिन्तन बहुत आवश्यक है

दीप तारों के जलाकर कौन नित करता दिवाली अध्यात्म में हम इसी कौन के प्रश्न को सुलझाते रहते हैं

चिरजीविता का अर्थ विस्तार से आचार्य जी ने इस प्रकार बताया

अणोरणीयान् महतो महीयान्

आत्मा गुहायां निहितोऽस्य जन्तोः ।

तमक्रतुं पश्यति वीतशोको

धातुः प्रसादान्महिमानमात्मनः ॥ - श्वेताश्वतरोपनिषद् ३-२०

जो छोटी से छोटी इकाई है और बड़े से बड़े स्वरूप में वही विद्यमान है यह  अनुभूति जहां हो जाती है चिरजीविता वहीं आ जाती है

कई ऋषियों को चिरजीविता प्राप्त है जो स्रष्टा से सृष्टि तक का संयोग मिला लेता है वही चिरजीवी है मार्कण्डेय अमर हैं

जितना प्राप्त हो रहा है यह परमात्मा की कृपा है

अंशी होकर हम परमात्मा में विलीन हो जाते हैं

इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे श्री विष्णुकान्त शास्त्री विद्यालय से क्यों जल्दी चले गये?देवरहा बाबा का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें

9.12.21

दिनांक 09/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है क्षान्त आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 09/12/2021 का सदाचार संप्रेषण


संसार है संसार में समस्याएं आती हैं और उनके समाधान के लिए प्रयत्नशील हुआ जाता है  और अपने साथी सहयोगियों का सहयोग लेकर आगे फिर जीवनयात्रा प्रारम्भ हो जाती है और जो अध्यात्म का संस्पर्श करते हैं वो कहते हैं

जो करता है  परमात्मा करता है

और परमात्मा सब अच्छा ही करता है


और इसके अन्तिम भाग परमात्मा सब अच्छा ही करता है को आत्मसात् करने में अत्यधिक अभ्यास की आवश्यकता होती है सभी को यश की कामना होती है व्यवसाय को करते हुए यशस्विता को प्राप्त करने की व्यवसायी को प्रच्छन्न कामना रहती है और यह कामना जब भावों में बदल जाती है और भाव  उदात्त हो जाते हैं तो उनके अन्दर कुछ वैशिष्ट्य आ जाता है

जो विद्यार्थी विद्यालय के छात्रावास में रहे हैं  वो प्रातःस्मरण करते थे


अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः॥

सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।’

(आचार्य जी चिरजीविता के बारे में कल विस्तार से बताएंगे )


अर्जुन के प्रश्न ब्रह्म क्या है अध्यात्म क्या है तो भगवान् श्रीकृष्ण का उत्तर है

अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते।

भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः।।8.3।।

परम अक्षर (अविनाशी) तत्त्व ब्रह्म है, स्वभाव (अपना स्वरूप) अध्यात्म कहा जाता है,भूतों के भावों को उत्पन्न करने वाला विसर्ग (यज्ञ प्रेरक बल) कर्म नाम से जाना जाता है।।

गीता मानस देखकर आनन्दित हो जाना यह भाव बना रहे तो हमें संसार में जीने का सलीका और साहस दोनों मिल जाते हैं 

ज्ञान वह जो समय पर काम दे जाए भाव वह जो समय पर उठ जाए विचार वह जो समय पर कारगर हो जाए कर्म वह जो समय पर क्रियाशील हो जाए तो हमें पश्चात्ताप नहीं होगा

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा उमेश्वर जी भैया राजेश मल्होत्रा जी भैया मुकेश गुप्त जी की चर्चा क्यों की स्वामी रामतीर्थ क्या कहते थे आदि जानने के लिए सुनें

8.12.21

दिनांक 08/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 संकल्पित जीवन सदा, मानव का शृंगार ।

मानव-जीवन ईश का, है अनुपम उपहार ।।


प्रस्तुत है श्वोवसीय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 08/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

यदि नियमित रूप से किये जाने वाले अच्छे कार्य से बहुत लोगों को लाभ पहुंच रहा हो तो प्रयासपूर्वक उसका क्रमभंग नहीं होने देना चाहिए इसी तरह का अच्छा कार्य यह सदाचार संप्रेषण भी है जिसके लिए आचार्य जी नित्य परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि यह क्रम प्रतिदिन बना रहे

बहुत पहले जिस समय मन्दिरों की तोड़ फोड़ शुरू हुई राजा मात्र शौर्य के प्रदर्शन में संलग्न रहते थे आम जनमानस दुविधाग्रस्त था कि हमारा काम पूजापाठ तो सिर्फ पूजापाठ और लड़ाई झगड़े का काम सेना का उस समय से ही राक्षसी शक्तियां यही चाहती रही हैं कि वो जो चाहेंगी वही होगा आज भी राक्षसी शक्तियां यही चाह रही हैं

आचार्य जी ने बताया कि इस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में कुछ ज्यादा ही उथल पुथल की चर्चाएं हो रही हैं लेकिन ऐसी चर्चाओं से अपने विचार डांवाडोल न हो यह देखना चाहिए

1 अप्रैल 1889 को जन्मे हेडगेवार जी ने मात्र 51 वर्ष का जीवन पाया लेकिन गरीबी से उठकर उसमें बहुत सारे काम किये

आचार्य जी ने 

मार्च 1940 में संघ शिक्षा वर्ग (OTC =Officer Training Camp )शिविर की चर्चा की जब हेडगेवार जी अपना इलाज करा रहे थे l प्रतिज्ञित गणवेशधारी तरुण का वर्णन करते हुए आचार्य जी ने कहा कि 

गणवेश संगठन का आधार है संगठन ऐसा हो कि दुष्ट उसे देखकर भयभीत हो जाए l

अपने कर्तव्य के प्रति सजग  व्यक्ति चरित्रवान् व्यक्ति राष्ट्र के प्रति समर्पित व्यक्ति राष्ट्र की सच्ची संपत्ति है l

युगभारती भी बड़े सिंधु का एक छोटा बिन्दु है l अपने कार्यक्रम करते समय हमें अपना मूल उद्देश्य नहीं भूलना चाहिए संगठन त्यागसम्पन्न हो समर्पणसम्पन्न हो शक्तिसम्पन्न हो यह देखें

7.12.21

दिनांक 07/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।

सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान।

प्रस्तुत है इष आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 07/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 कल आचार्य जी के बड़े भाई साहब का स्वास्थ्य एकदम से खराब हो गया तो भैया अमित गुप्त जी आदि की सहायता से स्थिति नियन्त्रित हुई

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।


शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः।।3.8।।

को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने बताया कि कर्म शरीर के लिए बहुत आवश्यक है

और 

अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।


सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.16।।

को उद्धृत करते हुए आपने कहा सारे प्रयत्न करें लेकिन फल की इच्छा न करें हम जिसकी सेवा करते हैं तो सोचते हैं कि वो स्वस्थ हो जाए प्रसन्न हो जाए

हम अपने शरीर रूपी वाहन को स्वच्छ भी रखते हैं और इससे हमारा लगाव भी हो जाता है लेकिन इसे बहुत पीड़ित नहीं करना चाहिए इसे कभी कभी आराम भी देना चाहिए

 तर्कातीत होकर जब हम विचार करते हैं तो  हम देखते हैं कि संसार में संघर्ष  है तो शान्ति भी है विचार है तो विकार भी है सुख है तो दुःख भी है और हमें इस प्रकार के चिन्तन के साथ रहने का अभ्यास हो जाए तो हमें अपने को धन्य समझना चाहिए

इसी प्रकार आचार्य जी ने प्रेम, स्वाभिमान का महत्त्व बताया और Jaipur Dialogue, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, प्रो सिद्धनाथ मिश्र, विद्याभारती,तोतापुरी महाराज, सुन्दरकांड के पाठ की चर्चा की और लोक -संग्रह, लोक -संस्कार और लोक -व्यवस्था की जानकारी दी

किसी भी संगठन को एक विचार के साथ बांधना कठिन तो है लेकिन आवश्यक भी है

युग- भारती  परस्पर विमर्श के कार्यक्रम अवश्य करे

6.12.21

दिनांक 06/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 राम राज बैठे त्रैलोका।

हरषित भए गए सब सोका।।

बयस न कर काहू सन कोई।

राम प्रताप विषमता खोई।।

 प्रस्तुत है अद्वयायुधीय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 06/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

हम मनुष्य संयमी, पराक्रमी, पुरुषार्थी हैं यह हमारी प्रकृति है लेकिन सामान्य मनुष्य प्रायः किसी समस्या पर आपदा पर व्याकुल परेशान हो जाते हैं मानव-जीवन के रूप में जो हमें उपहार मिला है उसे व्यर्थ न करें नित्य ध्यान चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय अपने आत्म को उत्थित करने के लिए अवश्य करें

जीवन में संयम की बहुत आवश्यकता है सिद्धान्तों को जब व्यवहार में ढालने का प्रयास किया जाता है तो परमात्मा भी सहायता करता है  बैरिस्टर साहब ने जीवनपर्यन्त सिद्धान्तों का पालन किया

दीनदयाल विद्यालय स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर कल विद्यालय में एक कार्यक्रम हुआ जिसमें प्रमुख रूप से  मनीष कृष्णा जी, आलोक सांवल जी,  चन्द्रमणि जी, मोहन जी,रोहित दुबे जी, विवेक सचान जी उपस्थित रहे

आचार्य जी ने कहा कि मां सरस्वती की ही कृपा है कि हम लोग लिख पढ़ लेते हैं  अपने अन्दर से निकले भावों की पूजा करें 

हमें बहुत विचारपूर्वक संभल कर चलना है आकर्षण हो भ्रम हो भय हो सभी के साथ सामञ्जस्य बैठाकर

उत्तरकांड में तुलसीदास जी ने उच्च कोटि के दर्शन जीवन व्यवस्था आदि का समावेश किया

भगवान् राम ने दशरथ को आश्वस्त किया कि उन्हें उनकी सेना नहीं चाहिए विश्वामित्र के आश्रम में ऐसे ही जाऊंगा फिर समाज को संयुत किया भगवान् राम भीलों और ऋषियों के सेतु बने युद्ध में संघर्षरत होने पर भगवान् राम ने शंकाशील भाई और शंकाशील भक्त को संतुष्ट किया

रामत्व को अपने अन्दर प्रवेश कराएं

 आत्मबोध की भी आवश्यकता है भय भ्रम न रहे

संसार के संकटों का सामना करें

(आप सभी श्रोताओं के सुझावों का स्वागत है 

5.12.21

दिनांक 05/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है धूतगुण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 05/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

आप किसी एक विषय पर अपने मानस को केन्द्रित कर लें  चाहे वह वस्तु पर हो तत्त्व पर हो व्यक्ति पर हो  या सिद्धान्त आदि पर हो तो ध्यान केन्द्रित करने पर अपने अन्दर के विचारों का विकास प्रारम्भ हो जाता है और इसके अभ्यास की आवश्यकता हैl ध्यान योग के लिए गीता का छठा अध्याय है

बहुत सारे ग्रंथ तो हीन मानसिकता के चलते नष्ट कर दिये गये उसके बाद भी काफी ग्रन्थ सुरक्षित हैं क्योंकि हम श्रुति के अनुयायी हैं हम सदैव संघर्षशील रहे हैं

हमें हिन्दू क्यों कहा जाता है इसके लिए आचार्य जी ने बताया कि सबसे पहले हिन्दू शब्द का प्रयोग तन्त्र शास्त्र (जो शिव प्रणीत है )के एक ग्रन्थ मेरुतन्त्रम्  (इसमें 35 प्रकाश हैं )में हुआ है


हिन्दू दो शब्दों को मिलाकर बना है हीन और दूष अर्थात् हीन वृत्तियों को नष्ट करने वाले को हिन्दू कहा जाता है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आग्रहपूर्वक हिन्दू शब्द को ग्रहण किया

रज्जू भैया ने कहा था आज हमें आग्रही हिन्दू बनना है

हम लोग संस्कार पर विश्वास करते हैं संस्कार के लिए भी शक्ति की आवश्यकता होती है लेकिन स्नेह की सलिला के साथ

हमारा युगधर्म शक्ति उपासना है शक्ति भारत -भक्ति के साथ विचार उदात्त व्यवहार के साथ भाव राष्ट्र के साथ

गीता और मानस का अध्ययन तो करें लेकिन स्वाध्याय भी साथ में हो

जब हमें स्वयं उत्तर मिलने लगेंगे तो हमारा अध्ययन सार्थक होगा

हमारा भाव सदा भारत मां के चरणों में समर्पित करने का बना रहना चाहिए

आचार्य जी ने कश्मीर पर हमले के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के त्याग की चर्चा की

आचार्य जी ने Emergency  की भी चर्चा की

4.12.21

दिनांक 04/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सानुक्रोश आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 04/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

आचार्य जी का कहना है कि हम प्रबुद्ध श्रोता दुर्गुणों को पचाएं और सद्गुणों को प्रचारित करें

पापान्निवारयति योजयते  हिताय

गुह्यं निगूहति गुणान् प्रकटीकरोति  |

आपद्गतं च न जहाति ददाति काले

सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति  सन्ताः || -भर्तृहरि (नीतिशतक)

संतों का कहना है कि सच्चे मित्र के लक्षण

हैं कि वह हमें पाप के कार्यों को करने से रोकता है, हमारे हित के कार्यों को करने हेतु 

 हमें  प्रेरित करता है, हमारी गोपनीय बातों को नहीं बताता ,विपत्ति के समय में  हमारा साथ नहीं त्यागता व आवश्यकता  पर  सहायता हेतु तत्पर रहता है |

आसुरी स्वभाव में कई विकार हैं और दैवीय स्वभाव में विचारों की तुलना में विकार बहुत कम हैं हमें दैवीय गुणों को अपनाना चाहिए 

अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्,

                         ज्ञानयोगव्यवस्थितिः   ।

       दानं  दमश्च   यज्ञश्च,

                        स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।।

                                        (गीता 16/1)

श्रीभगवान् बोले -- भय का सर्वथा अभाव; अन्तःकरण की शुद्धि; ज्ञान के लिये योग में दृढ़ स्थिति; सात्त्विक दान; इन्द्रियों का दमन; यज्ञ; स्वाध्याय; कर्तव्य-पालन के लिये कष्ट सहना; शरीर-मन-वाणी की सरलता।


अहिंसा सत्यमक्रोधस्,

                         त्यागः शान्तिरपैशुनम्।

       दया    भूतेष्वलोलुप्त्वं,

                         मार्दवं     ह्रीरचापलम्।।

                                      (गीता 16/2)

अहिंसा, सत्यभाषण; क्रोध न करना; संसार की कामना का त्याग; अन्तःकरण में राग-द्वेषजनित हलचल का न होना; चुगली न करना; प्राणियों पर दया करना सांसारिक विषयों में न ललचाना; अन्तःकरण की कोमलता; अकर्तव्य करने में लज्जा; चपलताका अभाव।

तेजः क्षमा धृतिः शौचं,

                          अद्रोहो नातिमानिता।

       भवन्ति  सम्पदं  दैवीं,

                          अभिजातस्य भारत।।

                                     (गीता 16/3)

तेज (प्रभाव), क्षमा, धैर्य, शरीर की शुद्धि, वैर भाव का न रहना और मान को न चाहना, हे भरतवंशी अर्जुन ! ये सभी दैवी सम्पदा को प्राप्त हुए मनुष्य के लक्षण हैं।

किसी से सहायता प्राप्त हो रही है तो प्रसाद मानकर उसे ग्रहण करें l संसार में संघर्ष करने के लिए पात्रता लाएं l कोरोना के नये Variant Omicron के लक्षण घातक हैं विज्ञान की उपेक्षा न करें अध्यात्म को अपने साथ रखें

काल से संघर्ष करना मानव का पौरुष का गुण है नियम संयम का ध्यान रखें Mask का उपयोग करें काढ़े का सेवन करें l मसालों का सेवन न करें अमुक नमक न खाएं आदि व्यापार का विकृत तौर तरीका भी घातक है  यहां आत्मसमीक्षा अवश्य करें l

अध्यात्म और विज्ञान का सामञ्जस्य करें l गीता मानस 

का अध्ययन अवश्य करें l

3.12.21

दिनांक 03/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है निर्णिक्तमना आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 03/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

आचार्य जी ने भैया श्री राजेश मल्होत्रा (बैच 1975) आदि के सहपाठी रहे भैया श्री राघवेन्द्र सिंह जी (बैच 1975) का परिचय दिया और उनके पिता जी का एक प्रसंग बताया

आचार्य जी ने बताया कि श्री राघवेन्द्र जी इटकुटी गांव (पिनकोड 209831)(थाना अजगैन)उन्नाव में एक फार्महाउस बनवा रहे हैं l

शौर्यप्रमण्डित अध्यात्म पर आचार्य जी बहुत अधिक जोर देते हैं ज्ञान एक ऐसा आधार है जिसके ही आधार पर वैदिक संहिताओं (संहिता =सम्यक् रूप से जिसका संग्रहण किया गया )की संरचना हुई और इसमें विद्याएं संयुत होती गईं इन सबको को प्रसारित करने वाला व्यक्त करने वाला अध्यापक कहलाया

ऋषियों ने भाषा का संस्कार करते समय उपसर्ग और प्रत्यय लगाए परमात्मा ने ऋषियों को सीधे ज्ञान प्रेषित किया

मैकाले यदि हम लोगों को प्रेत लगा तो हम अपनी प्रेत -विद्या से उसे भगा सकते थे जिस प्रकार श्री त्रिदंडी स्वामी (22 अप्रैल 1905 - 2 दिसंबर 1999) ने एक स्थान पर  प्रेत बाधा को दूर किया था l

आचार्य जी ने अध्यापक शब्द,अध्यात्म शब्द और आश्रम शब्द की व्याख्या की

भानु जी दीक्षित ने ‘आश्रम’ शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है: आश्रम अर्थात्‌ जिसमें ठीक प्रकार से श्रम किया जाए अथवा आश्रम जीवन की वह स्थिति है जिसमें कर्तव्यपालन के लिए पूर्ण परिश्रम किया जाए। आश्रम का अर्थ ‘अवस्थाविशेष’ ‘विश्राम का स्थान’, ‘ऋषिमुनियों के रहने का पवित्र स्थान’ आदि भी किया गया है। सांस लेना भी एक श्रम है l

किसी न किसी रूप में हम सब अध्यापक हैं हमें जीवन की समस्याओं को खोजने का प्रयास करना चाहिए

प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री मुनि सुन्दर ने अध्यात्मकल्पद्रुम में दार्शनिक प्रश्नों के उत्तर बहुत व्यवस्थित रूप से दिए हैं l

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संतोष मिश्र जी का नाम क्यों लिया, अनाश्रमी, पञ्चमहासंहिताएं, चातुराश्रमिक आदि क्या हैं जानने के लिए सुनें

2.12.21

दिनांक 02/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 हमको नकली भूगोल बदलना होगा 


प्रस्तुत है धौतात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 02/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

आचार्य जी ने आई आई टी कानपुर में भूतपूर्व प्रोफेसर और विद्यालय की प्रबन्धकारिणी समिति के सदस्य रहे धूपड़ जी का एक प्रसंग छेड़ते हुए बताया कि आयु के सोपानों में जो संभल कर नहीं चलता उसका क्रोध उसके लिए बहुत हानिकारक होता है

धीरे धीरे हमें भी अपने क्रोध को शमित करना चाहिए

धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ll

में धर्म का अन्तिम लक्षण अक्रोध है

हमें कब क्रोध करना और कब क्रोध नहीं करना इसका विवेचन हमारे बीच होना चाहिए 


आचार्य जी ने गीत मैं लिखता नहीं हूं में पृष्ठ 17/18 पर लिखी  अपनी कविता मैं विद्रोही सुनाई

मैं धारा के विपरीत चला विद्रोही हूं.....और पृष्ठ 23/24 पर लिखी कविता उद्बोधन सुनाई

रिसते घावों का दर्द यही दुहराता....

हम लोगों ने समाज जगाने का काम लिया है अतः प्रातःकाल प्रतिदिन आचार्य जी का संबोधन सुनने का हमारा उद्देश्य यही होना चाहिए कि यह हमारे अन्दर ऊर्जा बनकर प्रविष्ट हो जिससे हमारी फसल लहलहाए और ये विचार केवल शोभा बनें तो काम नहीं चलेगा ये विचार हमारे अन्दर ऊर्जा शक्ति भारतभक्ति संकल्प संयम को प्रविष्ट कराएं तब काम चलेगा स्थान स्थान पर संगठितशक्ति का प्रयास करें l

1.12.21

दिनांक 01/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है दृष्टसार आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 01/12/2021 का सदाचार संप्रेषण

आचार्य जी ने कल एक अद्भुत स्वप्न देखा -

कई उच्च कोटि के विद्वान विचारक ज्ञानी तपस्वी चिन्तक अपने अपने ढंग से इस सृष्टि की संरचना पर विचार कर रहें हैं आचार्य जी भी उसमें सम्मिलित हो गए हैं और सब लोग एक तट पर पहुंच गए श्रद्धा भक्ति के साथ लहरें देख रहे हैं आचार्य जी के मन में भाव उठता है कि क्या परमात्मा इसमें विद्यमान नहीं है इसके बाद अन्य लोगों ने परमात्मा के रूप व्याख्यायित किये फिर विचार हो रहा है कि अध्यात्म का एक विद्यालय चलाया जाए क्योंकि अध्यात्म गम्भीर विषय है और लोग समझ नहीं रहे हैं l

इसी तरह विद्यालय में आचार्य जी को हनुमान जी ने दर्शन दिए थे

यह स्वप्न का संसार भी अत्यधिक अद्भुत है

स्वप्न जगत पर भी बहुत से शोध हुए हैं

द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं     हि,

             व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः।

             दृष्ट्वाद्भुतं    रूपमुग्रं    तवेदं,

             लोकत्रयं प्रव्यथितं  महात्मन्।।

                                  (गीता 11/20)

         हे महात्मन् ! अन्तरिक्ष और पृथ्वी के बीच का सम्पूर्ण आकाश तथा सब दिशाएं एक मात्र आप से ही परिपूर्ण हैं आपके इस अलौकिक, भयंकर रूप को देख कर तीनों लोक अत्यन्त व्यथित हो रहे हैं ।

अमी  हि  त्वां  सुरसङ्घा विशन्ति,

         केचिद्भीताः  प्राञ्जलयो   गृणन्ति।

         स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्घाः,

         स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिःपुष्कलाभिः।।

                                     (गीता 11/21)

          वे देवताओं के समूह आप में ही प्रवेश कर रहे हैं और कई  भयभीत होकर  आप के गुणों का गान कर रहे हैं महर्षि आदि स्वस्ति वाचन अर्थात 'कल्याण हो', ऐसा कहते हुए  आपकी स्तुति कर रहे हैं

ऋषित्व भी अद्भुत है पहले के गुरुकुल दिव्य होते थे उन गुरुकुलों में शक्ति सामर्थ्य श्रद्धा भक्ति सेवा समर्पण संयम आदि बहुत कुछ था जिसके कारण ही भारत विश्वगुरु बन गया  और बाद में ऐसी स्थितियां हुईं कि लोग इन्हीं पर अविश्वास करने लगे


कादंबिनी पत्रिका में कभी निकला था कि बिठूर में एक आश्रम में काष्ठ डूब जाता है और पत्थर तैरता है

भाव को कभी शमित तो कभी उद्दीप्त करने की आवश्यकता होती है अन्यथा यह अत्यधिक वैचित्र्य स्थापित करता है इस भाव की साधना शिक्षा में की गई है

आचार्य जी चाहते हैं कि अध्यात्म पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  आर्यसमाज की बहुत सी पद्धतियों को सीखकर आगे चला है

आचार्य जी ने महर्षि दयानन्द की लिखी ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका की चर्चा की जिसमें 34 विषय हैं और दुःख की बात है कि इसको पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया इसी तरह वैदिक गणित की भी उपेक्षा है 

गांवों में संस्कृति अभी भी कुछ हद तक सुरक्षित है शहरों से तो विलुप्त होती गई

अविश्वास का बहुत अधिक अन्धकार व्याप्त हो गया है

 अतः हमें आत्मदीप होने की आवश्यकता है l