31.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 31/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये

सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।

भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे

कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥ 

(भावार्थ:- हे रघुनाथजी! आप सभी के दिल में आत्मा रूप में स्थित  हैं, फिर भी मैं सच कहता हूँ कि मेरे दिल  में अन्य कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुल श्रेष्ठ! आप मुझे केवल आप पर ही जो आश्रित हो ऐसी भक्ति प्रदान करिये व मेरे मन को काम आदि दोषों से मुक्त करिये l)



प्रस्तुत है विशोक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 31/01/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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आज आचार्य जी निर्भरा भक्ति को विस्तार से बताने का प्रयास कर रहे हैं सभी के अपने अपने इष्ट होते हैं जैसे महात्मा तुलसी के इष्ट भगवान् राम हैं

राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।

सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥

(श्री राम तारक मंत्र या  श्री राम रक्षा स्तोत्रं मन्त्र)


राम को ब्रह्म का स्वरूप मानकर मानस में उसी ब्रह्म का विस्तार कर दिया

मनुष्य जब ब्रह्म के विस्तार से अपने को संयुत कर लेता है तो वह सरलता से इस संसार की समस्याओं के हल खोजते हुए संसार के रहस्यात्मक स्वरूप को जानते हुए इस संसार में अपने शरीर को होम देता है

हमारी भारतीय संस्कृति यज्ञमयी संस्कृति है और इस संसार में हम यज्ञ करने के लिये आये हैं जहां हम सब कुछ समर्पित कर रहे हैं


वैदिक ज्ञान में यज्ञों के विभिन्न स्वरूपों को विस्तार से बताया गया है


किन्हीं कारणों से मार्गान्तरित  होने पर हम स्व को भूल गये और हमारी शक्ति अस्त व्यस्त हो गई


हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा


 साध्य को भूलकर धन और साधन के पीछे चलने लगे और आज तक इसी कारण हर क्षेत्र में संघर्षरत हैं


यद्यपि स्थूल सूक्ष्म में परिवर्तित होता चला जाता है लेकिन तब भी भारतवर्ष समाप्त नहीं होगा


देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः।


परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ।।3.11।।

आप लोग इस यज्ञ द्वारा देवताओं की उन्नति करें और  देवतागण आपकी उन्नति करें। इस प्रकार परस्पर उन्नति करते परम श्रेय को आप प्राप्त होंगे


भारत की भाव शैली अद्भुत है वरुण,  पृथ्वी, वायु,अग्नि, सूर्य, अन्न सभी कुछ देवकोटि में हैं और उनको प्रसन्न करने के लिये हम यज्ञ करते हैं


निर्भरा भक्ति वह है जिसे प्राप्त करने के बाद कुछ न चाहने की भावना प्राप्त हो जाये

कितनी factories लगाईं कितनी नौकरियां मिलीं से इतर हमें इस पर विचार करना चाहिये कि गंगा शुद्ध करने के लिये,प्रदूषण समाप्त करने के लिये, हरियाली की वृद्धि के लिये क्या किया


घर में छोटा सा यज्ञ अवश्य करें स्नान ध्यान पूजा भजन सभी यज्ञ हैं


यज्ञ से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई है


यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।


भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।3.13।।


यज्ञशिष्ट अन्न का भोजन श्रेष्ठता का प्रतीक है जो केवल अपने लिये ही भोजन पकाते हैं वे पापी हैं


अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।


यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।3.14।।


अक्षरब्रह्म >वेद >कर्म >यज्ञ >वर्षा >अन्न >संपूर्ण प्राणी

यह क्रम है अतः यह परमात्मा यज्ञ में प्रतिष्ठित है



हम सब इनसे प्रेरणा लें और नई पीढ़ी को इससे अवगत करायें


प्रश्नोत्तर का कार्यक्रम रखें

30.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है विकुर्वाण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30/01/2022

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अनुभूति की बात है कि इस रहस्यात्मक संसार में हम कुछ क्षण के लिये भी यदि आत्मस्थ हो जायें तो इसी मन बुद्धि चित्त अहंकार वाले प्राणवान शरीर में पूरा संसार दिखाई पड़ सकता है

किसी को संपूर्ण संसार सीताराममय किसी को कृष्णमय किसी को ज्ञानमय किसी को भक्तिमय दिखाई देता है

विलक्षण भक्त तुलसीदास की सारी भक्ति प्रभु राम में समर्पित है क्योंकि बहुत छोटी आयु से ही उन्होंने राम की चर्चा सुनी है


बारे तेँ ललात बिललात द्वार द्वार दीन,

⁠जानत हौं चारि फल चारि ही चनक को॥

तुलसी सो साहिब समर्थ को सुसेवक है,

⁠सुनत सिहात सोच बिधि हू गलक को।

नाम, राम! रावरो सयानो किधौं बाबरो,

⁠जो करत गिरी तेँ गरु तृन तेँ तनक को॥

कवितावली


के द्वारा संकेत करते हुए आचार्य जी ने तुलसी का अत्यधिक कष्टमय बचपन रेखांकित किया भीख मांगना मजबूरी है और उस पर अपमान भी मिलता है लेकिन आत्म जाग्रत हो तो मानअपमान की अनुभूति तो होती है

राम के प्रति भक्ति है संसार के प्रति अपमान है


शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं

ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌।

रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं

वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌॥ (१)

भावार्थ:- शान्त, शाश्वत , अप्रमेय, निष्पाप, मोक्ष व शान्ति प्रदान करने वाले, ब्रह्मा , शंकर एवं शेषनाग  से निरंतर सेवित, वेदों द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया के कारण मनुष्य के रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की मूर्ति , रघुकुल में श्रेष्ठ और राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले  जगदीश की मैं वंदना करता हूँ l     सुन्दर कांड


यह अद्भुत छंद है

आचार्य जी ने निर्भरा भक्ति की व्याख्या की इस भक्ति में बुद्धि का नहीं भाव का स्थान है भक्तों और उनके भगवान रूपी गुरुओं के अनेक उदाहरण हैं


नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये

सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।

भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे

कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥ 

भावार्थ:- हे रघुनाथजी! आप सभी के दिल में आत्मा रूप में स्थित  हैं, फिर भी मैं सच कहता हूँ कि मेरे दिल  में अन्य कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुल श्रेष्ठ! आप मुझे केवल आप पर ही जो आश्रित हो ऐसी भक्ति प्रदान करिये व मेरे मन को काम आदि दोषों से मुक्त करिये l


इसी तरह विवेकानन्द की राष्ट्रभक्ति भी अद्भुत है


हम सेवा कर रहे हैं तो जो कुछ मिल जाये वही ठीक है

पहले शिक्षकों को भी उनके शिष्य जो कुछ दे देते थे वही उनका शुल्क होता था वकीलों के चोंगों में इसी तरह मुवक्किल शुल्क डालते थे


लेकिन इस समय हमारी कमजोरी के कारण शिक्षा की दुर्गति हो गई

आज पुनः आचार्य जी ने अध्ययन स्वाध्याय ध्यान चिन्तन मनन निदिध्यासन पर जोर दिया

29.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


प्रस्तुत है शिश्विदान आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29/01/2022

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प्रतिदिन की यह सदाचार वेला आचार्य जी के अनुभवों पर आधारित है इसलिये हमें इसका श्रवण कर अधिक से अधिक लाभ लेने का प्रयास करना चाहिये

इस पञ्चभूत शरीर को तामसिक शक्ति कहते हैं शुद्ध आत्मतत्त्व सात्विक शक्ति का आधार लेकर हमें जीवन्त रखता है,प्रसन्न रखता है और उच्च   विचारों का भी स्रोत है तभी हम कहते हैं वसुधैव कुटुम्बकम्


जिस समय हम राजसिक भाव में आते हैं तब कहते हैं

कृण्वन्तो विश्वमार्यम्

मैं संपूर्ण विश्व को आर्य बनाऊंगा विकृति दूर करूंगा

तामसिक भाव अपने अन्दर विकार उत्पन्न करता है विदेशी लोगों के आने के कारण उत्पन्न हुए प्रभाव से तामसिक भाव हमारे देश में बढ़ता गया

और हम भौतिकता में लिप्त होते चले गये

सत रज तम के सामञ्जस्य को उचित रूप से स्थापित नहीं कर पाये शरीर को तत्त्व समझ लिया

शरीर कितना आवश्यक है यह सात्विक समझ है

हमारे यहां आयुर्वेद हुआ आरोग्य का सिद्धान्त है जब तक हम जीवित हैं शरीर कर्मशील रहे लेकिन जब यह रहने लायक नहीं रहे तो इससे मोह भी न रहे

धुएं के भय से अग्नि को त्यागना सांसारिक सत्य से मुंह मोड़ना  है

आचार्य जी ने आज पुनः शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म पर बल दिया

28.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 बिनु संतोष न काम नसाहीं। काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं॥

राम भजन बिनु मिटहिं कि कामा। थल बिहीन तरु कबहुँ कि जामा ll


प्रस्तुत है पाठीन आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28/01/2022

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यह अतिशयोक्ति नहीं है कि हम सब जीवनियों के संसार में रहते हैं सृष्टि की भी जीवनी (BIOGRAPHY)है

नाना जी देशमुख कहते थे कि हम लोगों को महापुरुषों की जीवनियां खूब पढ़नी भी चाहिये औऱ पढ़वानी भी चाहिये

सृष्टि की जीवनी के साथ हम सब के भी जीवन हैं

हम परमात्मा के अंश,शिवोऽहं,भगवान् के पार्षद, विष्णु के सेवक, ब्रह्मा की सृष्टि,शिव के पुजारी, राम के सैनिक, कृष्ण के ग्वाले,महापुरुषों के अनुयायी,भारत मां की संतान  और विधि का विधान हैं


माया में लिप्त हों तो लगता है मैं ही संसार हूं वैभव हूं धन हूं


हम काम और नाम के प्रति लालायित रहते हैं


उत्तरकांड में तुलसी कहते हैं


बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु।

गावहिं बेद पुरान सुख कि लहिअ हरि भगति बिनु॥89 क॥


क्या गुरु के बिना कहीं ज्ञान हो सकता है या वैराग्य के बिना कहीं ज्ञान हो सकेगा ? उसी प्रकार वेद  पुराण कहते हैं   क्या हरि की भक्ति के बिना सुख मिल सकता है?

अर्थात् नहीं मिल सकता


लेकिन जिज्ञासु खोजेगा कि भक्ति क्या है यह करने से क्या होगा ऐसा क्यों करना चाहिये घण्टी बजाने से क्या होगा आदि आदि


विवेकानन्द ने पूजा की कुछ परिभाषा बताई स्वामी दयानन्द मूर्तिपूजा का विरोध करते थे चार्वाक नास्तिकता के चिन्तक लेकिन सभी महापुरुष हैं यही वैविध्य भारत का अद्भुत है एक जीवनशैली नहीं,केवल भौतिकता नहीं आध्यात्मिकता भी


कोउ बिश्राम कि पाव तात सहज संतोष बिनु।

चलै कि जल बिनु नाव कोटि जतन पचि पचि मरिअ॥89 ख॥

क्या कोई सहज संतोष के बिना  शांति पा सकता है? कोटि उपाय करके  क्या कभी जल के बिना नाव चल सकती है?


दिन भर के विकारों से इतर इस सदाचार वेला में हमें सहज संतोष का महत्त्व समझ में आता है हमारे अन्दर सद्विचार आते हैं यह परमात्मा की कृपा है


इस कथात्मक संसार में हम सभी कथा के पात्र हैं हमारी अलग अलग भूमिकाएं हैं


अपने भीतर का ओछापन दिखाई नहीं देता दूसरे का दिखाई देता है यह अपनापन जब स्वार्थ में लिप्त हो जाता है वहीं पतन प्रारम्भ हो जाता है लेकिन पतनोन्मुख होने पर भी जब हमें भक्ति भाव विचार संयम निष्ठा का सहारा मिल जाता है तो वह संतोष वर्णनातीत है


और इस तरह उठने की हमें चेष्टा करनी चाहिये

अध्ययन स्वाध्याय लेखन करने पर हमारी आत्मशक्ति जाग्रत हो सकती है किसी दूसरे के लिये कुछ करने पर हमें उत्साह मिलता है यह भी राष्ट्र -सेवा है 

आगामी चुनावों के लिये लोग सही निर्णय ले सकें इसके लिये भी उन्हें प्रेरित करना हमारा कर्तव्य है

27.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सिंहदर्प आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27/01/2022

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हम चाहे विद्यालय में रहें किसी संस्था में रहें अपने घर में रहें अपने कार्यक्षेत्र में रहें किसी अन्य जगह जायें

विधि व्यवस्था का पालन करना हम मनुष्यों की अनिवार्य आवश्यकता है

सामान्य जीवन से लेकर विशेष जीवन तक व्यक्ति परेशानियों में ही उलझा रहता है इसीलिये आध्यात्मिकता की आवश्यकता होती है

अत्यन्त उल्लासमय भावमय वातावरण में कल 73 वां गणतन्त्र दिवस संपन्न हुआ l भाव उत्साह उल्लास आनन्द मन से संबन्धित हैं मन भावनाओं का स्रोत है बुद्धि विचार करती है तो फिर प्रश्न आते हैं यह क्यों मनाया जाता है इसकी क्या आवश्यकता है संघर्ष क्यों होते हैं इन प्रश्नों के कारण संसार उलझा हुआ दिखता है


और इस उलझाव से व्याकुलता आती है इस व्याकुलता को व्यक्ति व्यक्ति से संपर्क कर दूर करता है


भक्ति के आधार पर उलझाव दूर किया जा सकता है

आचार्य जी ने एक बहुत रोचक बात बताई कि श्री माधव सदाशिव गोलवलकर जी फोटो क्यों नहीं खिंचाते थे

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि गीता के 18 वें अध्याय में 55 वें से 62 तक,चौथे अध्याय में 16 वें से 24 वें तक छन्द पढ़ें


भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः।


ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्।।18.55।।


उस पराभक्ति से मुझे , मैं जितना हूँ और जो हूँ -- इसको तत्त्व से जान लेता है तथा मुझको तत्त्व से जानकर फिर तत्काल मुझमें प्रविष्ट हो जाता है।


आचार्य जी ने कवि का वास्तविक अर्थ बताया


गीता के अनुसार कवि की परिभाषा है 

कविं पुराणमनुशासितार


मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः।


सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप


मादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।।8.9।। गीता


जो सर्वज्ञ, पुराण, शासन करने वाला, सूक्ष्म-से-सूक्ष्म, सबका धारण-पोषण करने वाला, अज्ञान से अत्यन्त परे, सूर्य की तरह प्रकाशस्वरूप -- ऐसे अचिन्त्य स्वरूप का चिन्तन करता है।

मनुस्मृति में 4/24 में भी कवि का अर्थ है सर्वज्ञ


कवि का अर्थ बुद्धिमान्, चतुर, प्रतिभाशाली भी होता है

गीता हो या मानस हो एक कथा के माध्यम से संसार की सारी व्यथाओं का सुलझाव एक मनुष्य के द्वारा ही कर दिया जाता है और मनुष्य अपनी उलझनें सुलझाते रहते हैं

यदि किसी वस्तु व्यक्ति स्थान से हम आनन्दित हो जाते हैं (कभी दुःखी भी )तो देखा जाये हम अपना ही दर्शन करते हैं यह परमात्मा के रहस्य हैं


रहस्यात्मक संसार को जानने के लिये स्वाध्याय संयम साधना का भाव जाग्रत होना चाहिये


आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त भैया डा अमित गुप्त भैया अजय वाजपेयी भैया अजय द्विवेदी भैया समीर राय की माता जी की चर्चा की

26.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है हयङ्कष आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26/01/2022

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यह सदाचार वेला हमें उत्साह से भरने के लिये होती है और हमें इस काबिल बनाती है कि हम अपनी समस्यायें स्वयं हल कर सकें


मनुष्य परमात्मा की अपरा प्रकृति का अंशमात्र है कुछ में पराज्ञान की बहुत अधिक ललक रहती है आचार्य जी उन्हीं में से एक हैं और इन सदाचार वेलाओं में हम इसे आसानी से बिना संदेह किये देख सकते हैं


सांसारिक प्राप्तियों के लिये हम सभी छोटे स्तर से लेकर बृहद् भावनाओं तक कल्पनाओं में बहते रहते हैं


दिन पर दिन इसी में बीत जाते हैं कि प्रायः हम छोटी छोटी उपलब्धियों में ही संतोष प्राप्त कर लेते हैं

शरीर, परिवार, समाज, देश आदि के संकट निपटाकर मन बुद्धि के माध्यम से सूक्ष्म से महान् तक हमारा जीवन चलता रहता है


भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।


अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।7.4।। गीता


पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार - इन आठ प्रकार में मेरी प्रकृति है।।


प्राणिक ऊर्जा के अंगों मन बुद्धि अहंकार आदि के रहने के कारण हम मनुष्य बनते हैं

अन्यथा पशु आदि

प्राण का स्वभाव ही गति है जो चैतन्ययुक्त है वही प्राणी है वृक्ष भी प्राणी है

चिन्तन की शक्ति पराज्ञान की ओर ले जाती है

कि हम कौन हैं कहां से आये हैं

गीता में तो बहुत विस्तार है

आचार्य जी ने यह भी बताया कि पराप्रकृति में कौन प्रवेश कर सकते हैं

संसार का स्वरूप यही है कि इसमें बहुत से प्रपंच हैं और संसार का स्वभाव है जिज्ञासा    कि मैं कौन हूं

संसार का मूल भाव यही है संसारीजन संसार में रहते रहते ऐसे जिज्ञासु हो जाते हैं कि जहां रहते हैं उसी को जानने की चेष्टा करते रहते हैं

बचपन के खिलौनों के बाद घर परिवार विवाह आदि खिलौनों से जब मन ऊब जाता है वैराग्य वहीं से प्रारंभ हो जाता है


वैराग्य भी अपार निधि है

किसी चीज की अपेक्षा करने पर यदि उसकी पूर्ति न हो तो उसकी उपेक्षा करिये

25.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 ओ हिन्दू वीर तेरे नाम एक संदेश लाया हूं

तू किन वीरों का वंशज है बताने तुझको आया हूं


प्रस्तुत है यशस्काम आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25/01/2022

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सदाचार संप्रेषण का मूल हेतु यह है कि आचार्य जी चाहते हैं कि जो अधूरा काम रह गया है उसे पूरा करने के लिये हम लोगों में उत्साह भर जाए और इस प्रेरणा से वह काम भी पूरा हो जाए


राजनैतिक सामाजिक सांस्कृतिक शैक्षिक पारिवारिक पक्ष जीवित जाग्रत होकर भारत मां के लिये संकल्पित हों


लेखक विचारक समाजसेवी श्री कृष्णानन्द सागर जी की पुस्तक विभाजनकालीन भारत के साक्षी (जागृति प्रकाशन ) से संबन्धित एक साक्षात्कार की आचार्य जी ने चर्चा की


https://youtu.be/f7mdJfjNwV8

स्वदेश, स्वधर्म,स्वकर्म और स्वमर्म का अर्थ बताते हुए आचार्य जी ने आज के उद्बोधन में महाभारत का एक प्रसंग बताया


इसके उद्योग पर्व के 35वें उपपर्व (प्रजागर ) में विदुर धृतराष्ट्र को केशिनी विरोचन से संबन्धित एक प्रसंग बता रहे हैं


प्रह्लाद पुत्र विरोचन , केशिनी नाम की एक अनुपम सुन्दरी कन्या के स्वयंवर में विवाह की इच्छा से पहुँचा।केशिनी सुधन्वा नाम के ब्राह्मण से विवाह करना चाहती थी।केशिनी ने विरोचन से पूछा — विरोचन ! ब्राह्मण श्रेष्ठ होते हैं या दैत्य ? यदि ब्राह्मण श्रेष्ठ होते हैं , तो मैं ब्राह्मण पुत्र सुधन्वा से ही विवाह करना पसंद करूँगी ।विरोचन ने कहा , हम प्रजापति की श्रेष्ठ संतानें हैं, अत: हम सबसे उत्तम हैं । हमारे सामने देवता भी कुछ नहीं हैं तो , ब्राह्मण श्रेष्ठ कैसे हो सकते हैं।


           केशिनी ने कहा इसका निर्णय कौन करेगा? सुधन्वा ब्राह्मण जानता था कि ,दैत्य राज प्रह्लाद यहाँ के राजा हैं तथा धर्मनिष्ठ भी।अत: प्रह्लाद जी के पास जाने का प्रस्ताव सुधन्वा ने रखा।विरोचन को विश्वास था कि पिताजी तो निर्णय अपने पुत्र के पक्ष में ही देंगे।अत: विरोचन तथा सुधन्वा ने प्राणों की बाजी लगा ली ।अब केशिनी सुधन्वा तथा विरोचन तीनों प्रह्लाद जी  की सभा में पहुँचे।

        प्रह्लाद ने अपने सेवकों से सुधन्वा ब्राह्मण के सत्कार के लिये जल तथा मधुपर्क मँगाया तथा बड़े ही भाव  से ब्राह्मण के चरण धुलवाकर आसन बैठने को दिया तथा पूछा कि आपने यहाँ आने का कष्ट कैसे किया? सुधन्वा ने कहा ! मैं तथा आपका पुत्र विरोचन प्राणों की बाजी लगाकर यहाँ आये हैं , क्या ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं अथवा विरोचन ?

                प्रह्लादजी यह सुनकर गंभीर हो गये।उन्होंने कहा , ब्रह्मण ! मेरा एक ही पुत्र है और इधर धर्म , मैं भला कैसे निर्णय दे सकता हूँ ? विरोचन ने कहा – राजन ! नीति जो कहती है , उसके आधार पर ही निर्णय कीजिये ।प्रह्लादजी ने अपने पुत्र से कहा– विरोचन ! सुधन्वा के पिता  ऋृषि अंगिरा , मुझसे श्रेष्ठ हैं , इनकी माता , तुम्हारी माता से श्रेष्ठ हैं तथा सुधन्वा तुमसे श्रेष्ठ है । अत: तुम सुधन्वा से हार गये हो।सुधन्वा आज से तुम्हारे प्राणों का मालिक है।

              सुधन्वा बोला– प्रह्लाद !आपने स्वार्थवश असत्य नहीं कहा है। आपने धर्म को स्वीकार करते हुये न्याय किया है , इसलिये  आपका पुत्र मैं आपको लौटा रहा हूँ लेकिन केशिनी के समक्ष इसे मेंरा पैर धोना पड़ेगा।विरोचन समझ गया , और स्वेच्छा से सुधन्वा ब्राह्मण के पैर धोकर आशीर्वाद लिया।

(http://anandakandakripa.com से साभार )

24.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है स्नेहिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24/01/2022

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परमात्मतत्त्व बिना विचार के सहज ही कभी कभी उद्भूत हो जाता है 

परमात्मा काल, स्वभाव,कर्म आदि का नियन्त्रक है और सृष्टि रचते समय एक व्यवस्था देता है


रुद्र के अवतार हनुमान जी जिनमें परमात्मा की विशेष शक्ति समाई हुई है हमारे कष्टों का निवारण करने वाले इष्ट देवता हैं

देव तत्त्व परमात्मा और जीवात्मा के मध्य का एक ऐसा सेतु है जिसके सहारे हम संसार सागर को पार कर सकते हैं

आचार्य जी ने शङ्कराचार्य के केवलाद्वैत, रामानुज के विशिष्टाद्वैत, मधवाचार्य के द्वैत और वल्लभाचार्य  के शुद्धाद्वैत के बारे में विस्तार से बताया इसी तरह निम्बार्क का द्वैताद्वैत है

देखा जाए हमें इन सबकी बात ठीक लगती है


क्योंकि हम कच्ची मिट्टी हैं कोई हमें कुछ भी बना सकता है

जिनके भीतर आत्मतत्त्व जाग्रत रहता है वह बनाने वाले के प्रति जागरूक भी रहता है


इस संसार को समझने के लिये हमें आत्मचिन्तन आत्ममन्थन अध्ययन ध्यान धारणा का अभ्यास करना चाहिये

इसी से स्वाध्याय की ओर उन्मुखता होगी

हमने लक्ष्य बनाया राष्ट्र- निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष


समाज के प्रति अपने कर्तव्य को समझें


जिस प्रकार के कार्य व्यवहार की आवश्यकता हो उसी प्रकार का कार्य व्यवहार करना चाहिये


यही समाजोन्मुखता है आनन्द प्रदान करने वाला है

23.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है वृत्तिस्थ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23/01/2022

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परमात्मा की कृपा है कि सामान्य जीवन निर्वाह की सुविधाओं में बिना डूबे हुए हम लोग सदाचार के प्रति आग्रही रहते हैं

हमारे वास्तविक इतिहास को विकृत करके नई पीढ़ी को जो आवेशित किया गया है उसमें दुर्जनों को सफलता भी मिली है


हमारा खानपान, विचार व्यवहार, तौर तरीके, सामाजिक विधि व्यवस्था आदि में मूल रूप विलुप्त होता गया और उस पर मुलम्मा चढ़ता गया

इसके बाद भी कभी कभी आत्मबोध के लिये हम आग्रही हो जाते हैं यह परमात्मा की कृपा है

निर्लिप्त होने का  भाव परम आनन्द देता है

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमारा यह भाव और अधिक बढ़े


हमारा सम्मान, प्रतिष्ठा, यश,गौरव, विचार, सिद्धान्त अवश्य ही अनुकरणीय होंगे यदि हम सदाचार के साथ जीवन का संपर्क  स्थापित रखते हैं


जन -जन को कल्याण मार्ग पर अग्रसर करने हेतु प्रतिबद्ध गीता प्रेस ने भीष्म पर्व और उद्योग पर्व एक पुस्तक में छापा है भीष्म पर्व के अन्तर्गत भूमि पर्व के ग्यारहवें और बारहवें अध्याय में इस भूमि के द्वीपों समुद्रों का वर्णन है

पाठ्यक्रम निर्माण करने वालों की अज्ञानता की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने कहा कि ज्ञान अनन्त है जो अनन्त ज्ञानी हैं वो अक्रिय हैं और एकान्त की तलाश करते हैं


और इसी अक्रियता के चलते सामान्य जनों का बहुत नुकसान होता है


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः  (  यजुर्वेद के नौवें अध्याय की 23वीं कंडिका से ) आदि सूत्र हमें समाज सेवा के लिये प्रेरित करते हैं


परिवार और विद्यालय से मिले संस्कारों के कारण हमारी जिज्ञासा राष्ट्रोन्मुखी हुई है


आसपास रुदन क्रन्दन अत्याचार अन्याय हो तो हम आनन्द में रह नहीं सकते तो पहले हम चाहेंगे परिवेश शान्त हो


परस्थ होकर क्या क्या कर सकते हैं इसका आत्मस्थ होकर चिन्तन करें



सदाचार का मूल आशय यही है कि हम विकृति की ओर न जायें सात्विक खानपान की ओर ध्यान दें


सात्विकता जितनी जाग्रत होगी पराक्रम भी उतना ही उद्भूत होगा


सात्विकता से पौरुष पराक्रम समाप्त नहीं होता

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22.1.22

 प्रस्तुत है वृत्तशस्त्र आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22/01/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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मनुष्यत्व की अनुभूति करते हुए हम लोग संसार की समस्याओं को सुलझाते हुए चलते हैं

सफल न होने पर खीजें नहीं अपितु इस पर विचार करें कि सफलता क्यों नहीं मिलीऔर यह कैसे मिल सकती है


शरीर को साधन मानें तो प्रसन्नता की अनुभूति होती है


मन तत्त्व अत्यधिक तात्विक और महत्त्वपूर्ण है और मन को महत्त्व देना ही पड़ता है मन को सहज करना आवश्यक है

कल अपने गांव सरौंहां में खराब मौसम के कारण बैठक नहीं हो रही है तो हमें व्याकुल नहीं होना चाहिये यही व्यवहार जगत है


आचार्य जी ने मां सती के मन में संशय आने वाले प्रसंग को बताया

आपने बताया कि बहुत लोग विधि विपरीत काम करते हैं

यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।


समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।।


जो फल की इच्छा के बिना, स्वयमेव जो कुछ मिल जाय, उसमें सन्तुष्टि प्राप्त करता है और जो ईर्ष्या से रहित, द्वन्द्वों से दूर व सिद्धि असिद्धि में बराबर है, वह कर्म करते हुए भी उससे नहीं बँधता।


आचार्य जी ने बताया कि अन्तिम दिनों में श्रद्धेय नाना देशमुख कहते थे मेरा मन बुद्धि पेट दुरुस्त हैं बाकी अंग सेवा करते करते थक गये तो क्या हुआ


वे कहते थे परमात्मा की कृपा है इसी तरह बैरिस्टर साहब और शर्मा जी भी महापुरुष हैं


विडम्बना है कि जो हमारे साथ रहते हैं हम उनको महत्त्व नहीं देते हम लोग तो अपने को भी महत्त्व नहीं देते


अपने को समझने का प्रयास करें


यदि मैं संसार के मालिन्य को हटाने वाला कर्मशील योद्धा नहीं बन पाया तो भक्त तो बनूंगा ही यह प्रण करें


सफलता पर दम्भ नहीं असफलता पर निराशा न हों 


सफलता असफलता दोनों में स्थिर रहें

आचार्य जी ने कुछ कवियों के नाम लिये जिन्होंने बहुत प्रेरणा दी

कवि यदि श्रोताओं को अपने काव्यपाठ पर ताली बजाने के     लिये बाध्य करता है तो यह उचित नहीं है

21.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है जाजिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21/01/2022

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मनुष्य के जीवन जीने का मर्म यही है कि वह मनुष्योचित व्यवहार करता है अतीत से शिक्षा ग्रहण कर, वर्तमान में सात्विक कर्मों द्वारा अपने को जाग्रत रख, भविष्य की योजनाएं बनाता है

तीनों कालों में जाग्रत रहना मनुष्य का ही स्वभाव होता है और यदि स्वभाव के साथ स्वकर्म संयुत हो जाएं तो भाव -विचार- क्रिया की त्रिवेणी सफलीभूत होती है

और इससे हम अपने मनुष्यत्व का अनुभव करने लगते हैं और अनेक समस्याओं से ग्रस्त संसार को आनन्द मिलता है


क्योंकि कथा में मनुष्य का मन रमता है इसीलिये हमारे यहां कथात्मक साहित्य की भरमार है

प्रारम्भ में अपना विद्यालय महाराजा देवी सरस्वती शिशु मन्दिर तिलक नगर में लगता था

वहां आचार्य जी को तीसरी कक्षा में जाने का निवेदन किया गया जहां बच्चों को आचार्य जी ने कथा सुनाई (वहीं 1978 बैच के भैया अरविन्द तिवारी जी ने भी एक प्रश्न किया था)


बालकों की जिज्ञासा शमित करना आसान नहीं है हम सभी बालबुद्धि सदैव धारण किये रहते हैं और हमारी जिज्ञासा शमित करने के लिये ज्ञानीजन होते हैं


समय पर किसका ज्ञान खुल जाए यह तो परमात्मा की कृपा है

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः॥'

ये चिरजीवी सारे ब्राह्मण हैं

इनके व्यवहार परिस्थिति के अनुकूल होते हैं

सहस्रार्जुन के द्वारा भीषण अत्याचार की वृद्धि पर परशुराम अवतार उत्पन्न हुआ

परशुराम भगवान् विष्णु के आवेशावतार हैं

परशुराम हमेशा क्रोध करते थे ऐसा भी नहीं है

आचार्य जी ने राजा अम्बरीष और ऋषि दुर्वासा की कथा सुनाई


http://kathapuran.blogspot.com/2012/10/blog-post.html


अपनी संस्कृति की गहराई और विशेषता को बताने वाली इन कथाओं को हमें बच्चों को सुनाना चाहिये


यही करणीय है इस शरीर को पुष्प के समान प्रफ़ुल्लित रखने के लिये परमात्मा के प्रति आत्मार्पित हों


23 जनवरी को होने वाले कार्यक्रम में इसी तरह का चिन्तन मनन होना चाहिये

20.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 शौर्य कभी गर सो जाए तो हल्दीघाटी को पढ़ लेना ।।

✍️  (? )



प्रस्तुत है यजि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20/01/2022

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शरीर के अन्दर का भाव / प्राणिक  ऊर्जा /चिन्तन तत्त्व अद्भुत और अद्वितीय है   और यह प्राणिक विस्तार केवल मनुष्य को मिला है अन्य जीव जन्तुओं को नहीं

मनुष्य को मिली इस अनमोल थाती को जो जितना पहचान गया ज्ञान उसका उतना ही खुल गया

वेद, पुराण,ब्राह्मण ग्रन्थ, उपनिषद्, दर्शन, गीता, मानस आदि इस राष्ट्र की निधि हैं और इनके आधार पर जो शिल्प निर्माण हुआ है अद्भुत है

काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर ये षड्रिपु हैं लेकिन भारत भूमि का चिन्तन कितना उच्चकोटि का है कि काम भक्ति का मूल आधार है

क्रोध से उत्पन्न तत्त्व शौर्य पराक्रम है  लोभ से दान उत्पन्न है


लोभ से दान कैसे उत्पन्न होता है इसके लिये रघुवंश में एक कथा है जब ऋषि कौत्स द्वारा 14 विद्याएं सिखाने पर ऋषि कौत्स को 14 कोटि सोने के सिक्के गुरुदक्षिणा के रूप में देने के लिये रघु ने कुबेर पर आक्रमण करना चाहा

मोह परम त्याग है बुद्ध इसका उदाहरण है मद आत्मबोध है मत्सर स्पर्धात्मक चिन्तन कराता है

हमें परमात्मा का बार बार स्मरण करना चाहिये कि हमें मानव शरीर दिया भारतवर्ष में उत्पन्न किया


वैसे तो सब अपने लगते हैं लेकिन विवेक का संस्पर्श करने पर जब लगता है कि ये अपने क्यों नहीं हैं इनमें ये दोष हैं तो उन दोषों का परिष्करण आवश्यक है


भाव विचार क्रिया से सशक्त होकर हम किसी को भी किसी दिशा में मोड़ सकते हैं


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्म भी इसी भाव से हुआ लगता है

लेकिन किसी भी संसारी काम में विकार तो आते ही हैं


लेकिन हम  नित्य प्रातःकाल के जागरण के बाद संकल्प करें कि  विकारों को दूर करेंगे

और सद्गुणों को ग्रहण करेंगे

भाव विचार क्रिया को सम पर लाने के लिये हमें खानपान की ओर ध्यान देना होगा मनुष्यत्व की अनुभूति करें


आत्म की अनुभूति आवश्यक है इसका विस्तार संसार का कल्याण है

19.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रवेक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19/01/2022

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हमने अपना उद्देश्य बनाया कि भारत मां के चरणों में सारी बुद्धि क्षमता योग्यता शक्ति समर्पित करेंगे और इस उद्देश्य के लिये शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन और सुरक्षा को आधार बनाया


संस्कार के केन्द्र के रूप में विद्यालय को विकसित करना, संस्कार देकर बालकों को आगे बढ़ाना  आदि इस तरह के विचार विद्यालय प्रारम्भ करते समय आचार्य जी आदि के मन में आये और फिर इन पर कार्य प्रारम्भ हो गये आचार्य जी ने इन विचारों के विस्तार के लिये करे गये प्रयोगों का उल्लेख किया


इन प्रयोगों के प्रति अनेक लोगों को उत्साह रहता था अनेक को मजबूरी


किसी की मजबूरी किसी का उत्साह , जीवन का यह क्रम सर्वत्र व्याप्त है


प्रायः लोग एक दूसरे को उपदेश देते रहते हैं (देशना का अर्थ है शिक्षा और इसमें उप उपसर्ग लग गया )


ट्रेन में हुए उपदेश से संबन्धित एक रोचक प्रसंग आचार्य जी ने बताया जब बीड़ी पीने वाले आदमी ने अपना तर्क दिया


व्यामोहग्रस्त अर्जुन का आत्मबोध भगवान् कृष्ण ने जाग्रत किया

अठारह अध्यायों में भगवान् ने समझाया

एक स्थान पर है


यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।


समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।।


बिना फल की इच्छा , अपने आप जो कुछ मिल जाय, उसमें संतुष्टि रहे  और जो ईर्ष्या से रहित, द्वन्द्वों से अतीत व सिद्धि और असिद्धि में सम है, वह कर्म करते हुए भी उससे नहीं बँधता।


गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः।

यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते।।4.23।।


जिसकी आसक्ति  मिट गयी है, जो मुक्त हो गया है, जिसकी बुद्धि स्वरूप के ज्ञान में स्थित है, ऐसे मात्र यज्ञ के लिये कर्म करने वाले मनुष्य के सम्पूर्ण कर्म विलीन हो जाते हैं।

स्वतः होने वाला लाभ अत्यधिक विस्तार ले लेता है तो हम कर्म का आनन्द लेने लगते हैं

रैदास को सर्वत्र ईश्वर दिखाई देते थे और वो पूज्य बन गये 

उपदेश जब अनुदेश बन जाये यानि दूसरे को सिखाने की जगह अपने को सीखने की आदत बन जाये तो यह बहुत अच्छी बात है

कामना में लिप्त रहना और उससे मुक्त हो जाना संसार में रहस्यात्मक है

परमात्माश्रित भाव संसार में रहते हुए सदा बना रहे यह आसान नहीं है लेकिन प्रातःकाल हम कुछ समय इसके लिये अवश्य निकालें

18.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 आत्मानुसंधान तथा अन्तरावलोकन द्वारा अपने दोषों को दूर करने की चेष्टा करें -अखंड ज्योति अप्रैल 1951 पृष्ठ 8


प्रस्तुत है मार्गोपदिश् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18/01/2022

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इस समय शिशिर ऋतु चल रही है कोरोना से भारतवर्ष उबरने के लिए प्रयत्नशील है और हम लोगों का सौभाग्य है कि प्रातःकाल सदाचार पाठ के लिये हम लोग  जुड़े हुए हैं


आचार्य जी को  लगभग 41 वर्ष का अध्यापन का अभ्यास है


मैं कौन हूं मैं किसलिये आया हूं यदि हम आत्मस्थ होकर सोचें तो अन्दर से बहुत से भाव निकलते हैं दूसरे के प्रति श्रद्धा प्रेम विश्वास आस्था अनास्था द्वेष ईर्ष्या

भारतवर्ष एक अत्यन्त सुरम्य वाटिका है और उत्तर प्रदेश में तो संपूर्ण भारतवर्ष का प्रतिनिधित्व किया गया है और गङ्गातटवासी तो और भी सौभाग्यशाली हैं


बहुत से अभागे ऐसे भी हैं जिन्हें भारत की प्रकृति प्रभावित ही नहीं करती गङ्गा की अनुभूति ही नहीं होती अपनी भाषा के प्रति गर्व ही नहीं है


आचार्य जी ने धर्माचार्य धर्मभीरु धर्मान्ध शब्दों के बारे में बताया


धर्मान्धों के कारण ही अपने धर्म के प्रति हम लोगों की आस्था विकृत हो गईऔर धर्म को हम छोटे स्वरूप में ले आये धार्मिक लोग राजनीति से नौकरी से दूर रहें ऐसा भ्रम पैदा कर दिया गयाऔर अनास्थावादी होकर हम अपने बच्चों को उसी अनास्थावादी क्षेत्र में भौतिक भाव से विकसित करने लगे हम कमजोर हो गये खंड खंड हो गये पन्थ संप्रदाय आ गये


हमें इसीलिये चिन्तनपूर्वक अध्ययन विचारपूर्वक व्यवहार और विश्वासपूर्वक आगे चलना चाहिये

मनुष्यत्व की अनुभूति करके समस्याओं का समाधान मिल जायेगा और यह स्वयं से ही होगा


प्रातःकाल का सूर्योदय के पूर्व जागरण अभ्यास में आना चाहिये जिसके लिये आचार्य जी ने कभी सिन्ध से आये नारायण दास जी बजाज की चर्चा की


संसार से आवृत्त होकर आत्मबोध नहीं हो सकता गंगा भी तो जाजमऊ में संसारी हो जाती है


अन्धत्व सबसे विशाल समस्या है अन्धत्व दूर करने के लिये गायत्री मन्त्र है

यह मन्त्र विश्वामित्र ऋषि से उद्भूत हुआ

विश्वामित्रत्व की अनुभूति कर  हम लोग भी राम तैयार करें


कर्तव्यबोध जाग्रत करें


हमारा लक्ष्य है कि हमारे देश से यह दुर्भाग्य दूर हो कि हम ठीक बात सुन ही नहीं पाते किस समय कौन सा काम करना चाहिये जान नहीं पाते


समय पर काम करना सीखें जाग्रत हों उत्साहित हों

17.1.22

 जैसी बहे बयार, पीठ तब तैसी दीजै"


प्रस्तुत है आर्थिक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17/01/2022

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कल उन्नाव स्थित विद्यालय के पूर्व छात्र सम्मेलन में कानपुर से भैया दीपक शर्मा जी,  भैया अभिनय मिश्र, भैया गणेश जी ओमर, भैया महेंद्र सिंह सेंगर (सभी सिंगापुर ), भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी, भैया मोहन कृष्ण और लखनऊ से भैया अरविन्द तिवारी जी पहुंचे

कार्यक्रम अच्छा रहा इसी तरह राष्ट्रोन्मुखी सिद्धान्त,आचरण , कर्म,व्यवहार का विस्तार होना चाहिये l देशभक्ति सांसारिक कर्मों का एक उदात्त कर्म है त्यागमय जीवन  अपने विचार और व्यवहार का उदात्त उदाहरण है

दुनिया अपने लिये जीती है हम अपनों के लिये जीते हैं

काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदुः।


सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः।।18.2।।


कुछ विद्वानों के अनुसार काम्य कर्मों का त्याग संन्यास है जब कि कुछ के अनुसार सभी कर्मों के फलों के त्याग को त्याग कहते हैं

हम में से अधिकांश परिवार के मुखिया हैं हम इस भूमिका में शोभायमान रहें इस ओर ध्यान रखें

परस्पर का भाव राष्ट्र की निधि है


क्योंकि भारत माता संपूर्ण विश्व का सदैव कल्याण करना चाहती रही है इसलिये हमारे अन्दर उसकी सेवा करने का भाव होना चाहिये

यहां तो भगवान अवतार लेते हैं


राम और कृष्ण की छवियों का वर्णन करते समय कवियों का विचारकों का भाव उनसे संयुत हो गया है


अध्यात्म में अवतार उद्धार का सिद्धान्त यही है कि हम अनन्त शक्तियों को लेकर अवतरित होते हैं और फिर विस्मृत हो जाते हैं


हम उन शक्तियों को भूल जाते हैं हम समझ नहीं पाते कि हम कौन हैं

आचार्य जी ने प्रेत भाव से घूमने वालों की चर्चा की

प्रातःकाल का जागरण, ध्यान धारणा भजन पूजन आत्मस्थता के आधार हैं


परिवार से लगाव करें

आचार्य जी ने सहजसमाधि का अर्थ बताया


शिक्षार्थी को शिक्षक का समझाया हुआ समझने में कठिन इसलिये लगता है क्योंकि शिक्षार्थी उस भावभूमि पर नहीं उतरा होता है

23 जनवरी के कार्यक्रम की तैयारी हम लोग करना प्रारम्भ कर दें


हनुमान जी हमारे इष्ट हैं वो हमारा अनिष्ट नहीं कर सकते हैं यह भाव हमेशा रखें

भारत माता की सेवा में रत हों

16.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 सर्वभूतहिते रताः


प्रस्तुत है प्रभविष्णु आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16/01/2022

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सिविल लाइन्स उन्नाव स्थित सरस्वती विद्या मन्दिर इंटर कालेज में आज पूर्व छात्र सम्मेलन है

यहां वंचित वर्ग के अनेक छात्र हैं युग भारती इस विद्यालय को प्रयोगशाला मानकर अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार कर सकती है


युग भारती का स्वरूप आचार्य जी के संस्कारों की उपज है

केशव बलिराम हेडगेवार जी (01-04-1889  *21-06-1940 )के मन में बार बार यह भाव आता था कि आन्दोलनात्मक पद्धति देश में बहुत दिन तक प्रभावकारी नहीं रहती इसलिये कुछ सृजनात्मक कार्य किया जाये

भारत देश अपनी परम्पराओं प्रथाओं विचारों विश्वासों को केवल इस कारण जीवित रख सका कि इसकी पाठशालाएं  जागरूक सक्रिय और हर तरह की परिस्थितियों को झेलती हुई नये विचारों का उद्भव करती रहीं


संसार जब आत्मोन्नति के उपाय नहीं सोचता तो पराश्रित हो जाता है जबकि ईश्वर ने मनुष्य को स्वाश्रित बनाया है

विद्यालयों में इस भाव विचार के साथ शिक्षा दी गई कि तुम मनुष्य स्वाश्रित तो हो लेकिन मैं (ईश्वर ) तुम्हारा अभिभावक हूं और इसी के बल पर संपूर्ण विश्व का भारत गुरुपद प्राप्त देश हो गया


हेडगेवार जी ने देखा कि अब तो संस्कारविहीन होकर विद्यालय नौकरी देने के उपादान साधन बन गये हैं 

और उन्होंने निश्चय किया कि अब नये विद्यालय चलायेंगे ताकि छात्र यशस्वी के साथ तपस्वी भी बनें और देश का समाज का कल्याण हो

आचार्य जी ने यह भी बताया कि भारतीय जनसंघ की नींव कैसे पड़ीऔर जिस तरह की हत्या दीनदयाल जी की हुई उस तरह की हत्याएं कौन करते हैं


यदि हमें यशस्विता मिली है तो हमें यह समझना चाहिए कि हम समाज के ऋणी हैं

आचार्य जी ने तपस्या और एकात्म का अर्थ बताया

कुछ समस्याओं का उल्लेख करते हुए आचार्य जी हम लोगों को यह परामर्श दे रहे हैं कि हम इनके समाधान की दिशा में आगे बढ़ें


आज उन्नाव के कार्यक्रम में आप सादर आमन्त्रित हैं

15.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15/01/2022 का भारतीय संस्कृति की रक्षा और विस्तार हेतु सदाचार संप्रेषण

 लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः।


छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः।।5.25।।


प्रस्तुत है प्रबर्ह आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15/01/2022

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आज मकर संक्रान्ति है आज के दिन ही सूर्यदेव का बारह राशियों में दसवीं राशि मकर राशि में प्रवेश होता है l

धर्म और कर्म पर विवेकपूर्वक हमें विश्वास करना चाहिये l कर्मकांडों का ज्ञानार्जन आवश्यक है यद्यपि जब कर्मकाण्ड भयानक रूप ले लेते हैं तो उनकी शुद्धि के लिये अवतार आ जाते हैं जैसे बुद्धत्व के विकारी होने पर शंकराचार्य आये

कुम्भ के आयोजनों में कभी न निकलने वाले ऋषि ज्ञानी तपस्वी भी आते थे दर्शन देते थे विचार प्रकट करते थे

आचार्य जी ने स्वामी ईश्वरानन्द तीर्थ जी की चर्चा की जिनके दर्शन रामलला विद्यालय के प्रधानाचार्य पं काली शंकर अवस्थी जी ने  किये हैं


निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै


र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।

को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने बताया कि मान अपमान सम्मान सुख दुःख आदि भाव विचार अद्भुत हैं

एक उदाहरण :कल्याण सिंह का पुनः पुनः भाजपा में शामिल होना


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  ने त्याग सेवा समर्पण शौर्य संघर्ष विजय के भाव को आत्मसात् करते हुए नर्मदा नदी की तरह विस्तार लिया


उद्गम के बाद विस्तार होगा तो विकार भी आयेंगे लेकिन विकारों के बाद भी संघ में कुछ ऐसे कार्यकर्ता हैं जिन्होंने सिद्धान्त नहीं त्यागे हैं वो भारत मां की सेवा में लगे है


देखा जाये तो जिस दिन से हमारा जन्म होता है उसी दिन से आयु क्षीण होने लगती है लेकिन हम आनन्दमार्गी हैं हम यथार्थमार्गियों के विपरीत संघर्ष से उत्साहित होते हैं


इसीलिये हमारे साहित्य में सिनेमा में अन्त में अधिकतर आनन्दपक्ष दिखया जाता है


विवेकानन्द द्वारा शरीर त्यागने की घटना बताते हुए आचार्य जी ने कहा भारत में आशामयी संस्कृति का विस्तार हुआ यह हमारी संपदा है


आनन्द के पक्ष का अनुभव करने के लिये हम प्रयासरत हों

कल उन्नाव में एक कार्यक्रम है आप सब उसमें आमन्त्रित हैं इसी तरह 23 जनवरी के लिये भी योजना बनायें

14.1.22

प्रस्तुत है ध्वज आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 सर्वगुह्यतमं भूयः श्रृणु मे परमं वचः।


इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम्।।18.64।।


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हर विचारशील व्यक्ति के मन में चिन्तन चलता रहता है भावनाएं घुमड़ती रहती हैं विचार आते रहते हैं योजनाएं बनती रहती हैं कभी फलीभूत होती हैं कभी नहीं


भारतवर्ष में लोकतान्त्रिक पद्धति पहले भी थी बाद में विलायती लोगों द्वारा बनाई गई पद्धति आज चल रही है


अशिक्षाअज्ञान भ्रम भय लोभ लालच हो तो प्रजातन्त्र सफल नहीं होता और क्रूर अविवेकी होने पर राजतन्त्र भी सफल नहीं होता


हम विचारशील लोगों को राष्ट्रप्रेमी लोगों को विश्वबन्धुत्व को सही रूप में प्रस्थापित करने वाले लोगों को सही रास्ता खोजना चाहिये

कम विकार वाला रास्ता अभी सही लग रहा है तो उसे ही पकड़ लें


व्यक्ति को गुरु न मानकर विचार को गुरु मानें


हम संपूर्ण विश्व की चिन्ता करने वाले भारत राष्ट्र के लिये जाग्रत रहते हैं


हम मोरध्वज दधीचि की परम्परा के लोग हैं हमने आत्म और परमात्म के संबन्ध को पहचाना है


हम भूखे रहकर भी दूसरे को खिला सकते हैं यही भारतीय संस्कृति है


हाल में ही दूसरे दल में जाने वालों पर कटाक्ष करते हुए आचार्य जी ने कहा कि यदि यह शासन औरों से बेहतर है तो इसे आगे चलने देना चाहिये और बाद में इसके दोषों पर विचार करना चाहिये

 युग भारती संगठन एक महत्त्वपूर्ण समाजोन्मुख संगठन है


हम अधिक से अधिक मार्गदर्शन दें सन् 2014 की तरह


विदेशी कुचक्रों से बचते हुए उत्तर प्रदेश में जाग्रत रहने की आवश्यकता है


परसों उन्नाव के कार्यक्रम में हम नौजवानों को प्रेरित कर सकते हैं


पहले उत्तरप्रदेश में क्या स्थिति थी आदि ये चिन्तन के विषय हैं सामान्य जनमानस जल्दी ही बातें भूल जाता है

सदाचार वेला से हम केवल प्रेरित होकर बैठे ही न रहें


हम रावण को मारते हैं विभीषण को बैठाते हैं


क्षुद्र स्वार्थ में न रहकर बृहद् स्वार्थ को देखते हुए देश को सशक्त बनायें


यदि समझ में आ जाये तो हिन्दुत्व त्याग तप विवेक वैराग्य शौर्य है और हम  हुंकारते हुए सारे विश्व को दिशा दृष्टि दे सकते हैं

13.1.22

प्रस्तुत है अध्यात्मोद्रेचक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य न प्राप्त हो जाए   स्वामी विवेकानंद


प्रस्तुत है अध्यात्मोद्रेचक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13/01/2022

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यदि श्रोता को अंतर्मन में बोलने का अभ्यास हो जाए और वक्ता को सुनने का अभ्यास हो जाए तो वक्ता और श्रोता की ये आध्यात्मिक अवस्थाएं होती हैं

मनुष्य के जीवन में यह अद्भुत लीला है कि हमारे द्वारा भीतर भीतर बोलते हुए संगुंफन मन्थन होते हुए हमारे अन्दर से निकलता वही है जो हमारी प्रज्ञा विवेक बुद्धि से सुलझकर उपयुक्त होता है


जीवन में ऐसी अनेक कलाएं हैं जिनकी अनुभूति अत्यधिक आनन्द देती है


गीता के अध्याय १३ - क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग में इसका वर्णन है


तिलक जी द्वारा जेल में लिखी मूल गीता रहस्य पुस्तक हमें  पढ़नी चाहिये


गीता  कर्म का बहुत बड़ा उदाहरण है

निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै


र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।


क्यों क्यों के उत्तर सहज रूप से अपने भीतर मिलते जाते हैं


या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।


यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।2.69।।


जब तक नींद है यह स्वप्न - सा संसार सच लगता है


अयोध्या कांड (लक्ष्मणगीता ) से

मोह निसा सब सोवनिहारा। देखहिं स्वप्न अनेक प्रकारा।।...

देश में गद्दार पनप रहे हैं प्रधानमन्त्री की सुरक्षा खतरे में है देश की क्या दशा है तो इन लीलाओं में अपना भाव बदल जाता है यदि हम शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म को ध्यान में रखते हैं तो हमें  लीला में यशस्विता प्रदर्शित करते हुए लक्ष्मण की तरह भाषा और भाव के साथ उस भूमि पर उतरना चाहिये

स्वधर्म का पालन हमारा कर्तव्य है हमारी जो भूमिका है उसे ठीक से करनी चाहिये

लीला के पुरस्कृत पात्र तब ही बनेंगे जब देश काल परिस्थिति के अनुसार अपने धर्म को निभाएंगे


कायर की तरह नहीं बैठना है पुरुषार्थ दिखाना है


धन्य विवेकानंद तुम , धन्य तुम्हारा त्याग ।

धन्य मातु भुवनेश्वरी , धन्य दत्तकुल -भाग ।।(भाग्य)


(✍️ओम शंकर 12/01/2022)

हमें अपना कर्म पहचानना है


आचार्य जी ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द के कार्य और व्यवहार से हमें प्रेरणा लेनी चाहिये


आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हूए अपनी भूमिका देखें


सदाचार को सुनें ही नहीं सदाचार में लगें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सतीश जी भैया अमित गुप्त जी की चर्चा क्यों की जानने के लिये सुनें

12.1.22

प्रस्तुत है उद्यतायुध आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ॥

(कठोपनिषद् 1/3/14)

(स्वामी विवेकानन्द जन्म 12 जनवरी 1863 )

प्रस्तुत है उद्यतायुध आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12/01/2022

  का सदाचार संप्रेषण 




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श्रोता और वक्ता दोनों यदि अपने विकारी शरीर को भुलाकर अविकारी चिन्तन वाले भाव में डूब जायें तो श्रोता और वक्ता का सदाचार संपर्क अत्यन्त प्रभावकारी हो जाता है


यदि शरीर का ध्यान रखते हैं तो मन शरीर की तरफ भागता है

देहाभास की विस्मृति करके ही मन को आत्मस्थ कर सकते हैं मैं कौन हूं मेरा स्वरूप क्या है मेरा स्वभाव क्या है

ध्यान योग में मन की साधना बताई गई है

भगवान् शङ्कराचार्य के भाव को हम यदि संस्पर्श कर पायें तो

लब्ध्वा कथश्चिन्नरजन्म...( विवेक चूडामणि से )

आदि का संकेत करते हुए आचार्य जी ने  स्वार्थ का अर्थ बताया

सैकड़ों ब्रह्मवर्ष बीत जाने पर भी मुक्ति नहीं हो सकती

युगभारती की प्रार्थना लेते हुए आचार्य जी ने सूक्ष्म सेवा का अर्थ बताया

गीता से

उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।


आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।6.5।।

को उद्धृत करते हुए आपने बताया कि हम ही अपने मित्र हैं हम ही अपने शत्रु हैं

भैया शैलेन्द्र दीक्षित कोरोना के कारण निराश न हों हम सब लोग उनके साथ हैं आचार्य जी ने TELEPATHY का महत्त्व बताया

फ़ादर कामिल बुर्के, बरान्निकोह, भगिनी निवेदिता, मिरा अल्फासा को समझ में आ गया कि भारत ही उनकी भाव -भूमि है


यद्यपि उनकी संख्या कम है क्योंकि उनको परिवेश ऐसा नहीं मिला हम लोग तो सौभाग्यशाली हैं

हमारा प्राकृतिक परिवेश अत्यधिक तत्त्वमय भावमय शक्तिमय भक्तिमय विश्वासमय है

हमें स्वयं यह देखना होगा कि स्वर्ण कहां है यद्यपि बहुत सारे रेत में यह होगा कम

संसार को संसार की दृष्टि से देखें लेकिन अपने को अपनी दृष्टि से देखें

साकेत में मैथिली शरण गुप्त ने लिखा है कि मैं इस धरती को ही स्वर्ग बनाने आया हूं

इसमें कोई शक नहीं कि यह सदाचार वेला हमें लाभ पहुंचा रही है

11.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 11/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ॥

(कठोपनिषद् 1/3/14)

 (  उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य, वरान्, निबोधत, क्षुरस्य, धारा, निशिता,दुरत्यया,दुर्गम्,पथः, तत्, कवयः, वदन्ति


उठो, जागो, पाओ,बड़ों से, बोध, उस्तरे की, धार,तेज,पार करना, चलने में कठिन, रास्ता, वह, ऋषिगण, बोलते हैं  )


उठो, जागो,बड़ों से बोध प्राप्त करो

ऋषिगण ऐसा बोलते हैं कि वह रास्ता उस्तरे की तेज धार पर चलकर उसे पार करने के समान कठिन है


प्रस्तुत है भूरिदक्षिण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 11/01/2022

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हमारा नित्य विकास होता है यात्रा सतत् होती रहती है लेकिन उसका हमें अनुभव नहीं होता है लेकिन बाह्य विक्षेप (जैसे पैदल चलना, वायु मार्ग से चलना आदि )हमें आवश्यकता से अधिक चञ्चल कर देता है कुछ लोग सतत् यात्रा में रहते हैं बहुत अधिक किसी को रहना है तो वह कहीं तीन रात्रि रह सकता है यह मनुष्य को क्रियाशील बनाने का हमारे यहां प्रावधान है

 जो भारतवर्ष को अपना मानते हैं जिनकी इस धरती के प्रति इस संस्कृति के प्रति आस्था है जो इस भाव में डूबने का अभ्यास कर लेते हैं ऐसे लोग जीवन के प्रत्येक क्रम और व्यवस्था को जिज्ञासा और आदर के भाव के साथ देखते हैं


ज्ञानं परम गुह्यं मे यद्विज्ञानसमन्वितम्।

सरहस्यं तदगं च गृहाण गदितं मया।।

आत्मा परमात्मा अत्यन्त रहस्यमय हैं लेकिन हम सदाचारी लोग बाह्य जीवन में और परेशानी में इसका निष्कर्ष निकालते हैं रामकथा एक उदाहरण है जब लग रहा था कि हिन्दुत्व की सनातनता डूब जायेगी

हमारी कथा भी इसी तरह प्रारम्भ होती है सब नष्ट हो रहा है नाव में एक पुरुष बैठा है प्रलयकालीन वर्षा हो रही है फिर वह बचता है सृष्टि का विकास होता है


ये आशा देने वाला साहित्य है इसके महत्त्व को समझते हुए प्रतिदिन इसका अध्ययन करने का मन बनायें अभ्यास करें विश्वास करें कि हम परमात्मा के अंश हैं तो इस तरह के चिन्तन से बहुत सारी सांसारिक समस्याओं का हम हल भी पा लेते हैं


औरों का सहारा भी बनते हैं


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।


अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।


सदाचार संप्रेषण का आशय यही है कि हमारे तन और मन की थकान मन की निराशा बुद्धि का भ्रम आदि शमित हों


और प्रातःकाल इस शरीर रूपी हवनकुंड में यज्ञ की आहुतियां डालते रहें

संसार में रहते हुए मार्गान्तरित न हों इसके लिए भी इस तरह की सदाचारवेला की आवश्यकता है


राम और सीता का भाव भी हमारे अन्दर प्रविष्ट रहे

भारत के भविष्य को संभालने के लिये और विश्व के कल्याण के लिये हमें उद्यत होना होगा

10.1.22

 प्रस्तुत है धैर्यकलित आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10/01/2022

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स्थान -परिवर्तन और व्यवस्था -परिवर्तन में भी तपस्वी लोगों की दिनचर्या में परिवर्तन नहीं आता है दीनदयाल जी अशोक सिंघल जी गुरु जी इसके उदाहरण हैं

गहरे व्यक्तियों को जानना उतना ही मुश्किल है जितना अपने को जानना

सदाचार वेला का सार यही है कि हम अपने व्यक्तित्व को विकसित करने की दिशा में प्रयासरत रहें

मनुष्य चिन्तनशील मननशील कर्मशील ध्यानशील विचारशील अभिव्यक्तिमय कैसे हो इसके लिये वो प्रयास करता रहता है


सामान्य मनुष्यों की गणना तो होती है लेकिन हम लोग अपने व्यक्तित्व के विकास में उनका ध्यान नहीं रखते हैं लेकिन मतदान में इनका भी मत होता है और इसलिये हम विचारशील लोगों का कर्तव्य है कि आगामी लोकतन्त्र के पर्व को ध्यान में रखते हुए उनको हम प्रभावित प्रेरित करें


यह भी राष्ट्र- सेवा है समाज- सेवा है


व्यक्ति यदि अपने शरीर की चिन्ता में ही लगा रहता है तो उसका चिन्तन पंगु हो जाता है

हम परमात्मा का अंश हैं इसकी अनुभूति का प्रयास चिन्तन मनन करते रहें


हम ऐसे देश के निवासी हैं जहां रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, महाराणा प्रताप आदि हुए हैं


ऐसे देश की सेवा में हम लगे रहना चाहते हैं यह अच्छी बात है सेवा के अलग अलग रूप हैं

इसके अतिरिक्त श्री ज्ञानेन्द्र मिश्र जी भैया मलय जी भैया मनीष कृष्ण जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिये सुनें

9.1.22

श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 09/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है स्मितदृश् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 09/01/2022

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आचार्य जी आज कानपुर पहुंचेंगे


भाषा का व्यवहार मनुष्य को ही प्राप्त है मनुष्य मनुष्यत्व आदि की चर्चा होती रही है नरोत्तम जैसे विशेषण की युति हमारे साथ हो जाये तो अच्छा लगता है दूसरी ओर नराधम विशेषण सुनने में खराब लगता है


मनुष्य अपने पतनशील भाव को लगातार ऊपर उठाने की चेष्टा करता है


आचार्य जी ने इसके बाद भीष्म पर्व की चर्चा की

भीष्म पर्व के अन्तर्गत ४ उपपर्व हैं और इसमें कुल १२२ अध्याय हैं।

इसी में बताया गया है 

पृथ्वी को सात द्वीपों (जम्बूद्वीप, प्लक्षद्वीप, शाल्मलद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप तथा पुष्करद्वीप) में बाँटा गया है, जिनके अलग अलग वर्ष, वर्ण, उपद्वीप, समुद्र तथा पूज्यदेव आदि होते हैं। पृथ्वी के केन्द्र में स्थित द्वीप को जम्बूद्वीप कहते हैं।

122 अध्यायों में 25 वां अध्याय गीता का है

भारतवर्ष की नदियों पर्वतों जलाशयों वनस्पतियों आदि का बहुत विस्तार से वर्णन है इसीलिये महाभारत को पञ्चम वेद कहा जाता है

लेकिन दुर्भाग्यवश यह प्रचलित हो गया कि महाभारत के सारे अध्याय एक साथ बैठकर पढ़ने सुनने नहीं चाहिये अन्यथा विनाश हो जाता है इस तरह की बातों से परिवारों में जब भ्रम और भय आ जाता है तो यह हमें ज्ञान की परम्परा से काट देता है

ये सब शिक्षा के दोष हैं  परतन्त्र में भी हम सदैव संघर्षरत रहे इसलिये हम ज्ञान की इन धरोहरों को बचा पाये

इसी आधार को लेकर दीनदयाल विद्यालय प्रारम्भ हुआ पूजा पाठ करने के लिये प्रोत्साहित किया गया हम मानस गीता का पाठ करें आदि

उस जीवनशैली के आधार पर हम  दीनदयाल विद्यालय के विद्यार्थियों का विकास हुआ

शरीर का मध्यम भाग (कटि से कण्ठ तक ) महत्त्वपूर्ण है उसी तरह किशोर वर्ग की शिक्षा अर्थात् माध्यमिक शिक्षा भी अति महत्त्वपूर्ण है

अब अभिभावक रूप में हमें इस शिक्षा के प्रति बहुत सचेत रहने की आवश्यकता है

दीनदयाल विद्यालय के हम विद्यार्थियों का विकास इस कारण हो पाया कि हमें नरोत्तम माता -पिता नरोत्तम आचार्यगण नरोत्तम बैरिस्टर साहब आदि का सहयोग मिला


इन नरोत्तम व्यक्तियों ने जो कुछ दे सकते थे उसे देकर समाज को पीढ़ी को परिपुष्ट किया

साधु संतों ने भी कई पाठशालाएं खोली


हमारे साहित्य में बहुत कुछ है यद्यपि काफी नष्ट कर दिया गया है जिसे जानने की आवश्यकता है आचार्य जी इसी जिज्ञासा को जगाने के लिये लगातार प्रयासरत हैं


हम अपने बच्चों को ये सब बतायें


ज्ञान में वृद्धि करके हम संसार के मोहमंडल से मुक्ति के भाव को उभार सकते हैं


ब्रह्मज्ञान अविनाशी है ब्रह्म सृष्टि और स्रष्टा दोनों है

परमात्मा के पास बैठने का प्रयास करें यानि उपासना करें


आचार्य जी ने शौर्यप्रमण्डित अध्यात्म की महत्ता पर जोर दिया ज्ञान की ओर हमारी उन्मुखता की कामना की कर्म के प्रति लगाव हो मनुष्यत्व का आनन्द प्राप्त करें

तत्व का संग्रह करें

8.1.22

श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 08/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है साशंस आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 08/01/2022

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इस सदाचार वेला का अनवरत संप्रेषण परमात्मा देवी देवताओं ऋषियों मनीषियों बुजुर्गों का कृपा प्रसाद है


संसार में सब कुछ मिला जुला बना है कर्म विचार भाव का ऋषियों ने बहुत विस्तार किया है और हमें अपने पर विश्वास हमेशा रखना चाहिये

निढाल होकर नहीं बैठना चाहिये

संसार घटनाओं से भरा है  अतः उनके प्रभाव से हम अछूते नहीं रह सकते उन प्रभावों की अभिव्यक्ति भी होती है उसमें कुछ लोग हमको अनुकूल मिलते हैं कुछ प्रतिकूल मिलते हैं उन्हीं के बीच हमें रहना है


बीच में रहते हुए कुछ लोग हौसले से जीते हैं कुछ निराशा में रोज मरते रहते हैं

हम लोग अपनेपन के भाव की पूजा करें पुत्र पुत्री भार्या मां पिता परिवार परिवेश पृथ्वी के प्रति अपनेपन का भाव होना ही चाहिये

पृथ्वी शब्द अद्भुत है इसे हम निम्नांकित श्लोक में देख सकते हैं 

समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते ।

विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव ll

गीता में, ऋग्वेद में भी पृथ्वी का उल्लेख है 

यह सब ऋषियों की खोज है


भीष्मपर्व के नवें अध्याय में पृथु से लेकर दिलीप तक का वर्णन तीन चार छन्दों में है

इतना पुराना इतिहास क्या मात्र पांच हजार वर्ष पुराना है

हमें इस तरह के भ्रमों से बचना चाहिये


पृथु राजा वेन के पुत्र थे। भूमण्डल पर सर्वप्रथम सर्वांगीण रूप से राजशासन स्थापित करने के कारण उन्हें पृथ्वी का प्रथम राजा माना गया है। साधुशीलवान् अंग के दुष्ट पुत्र वेन को तंग आकर ऋषियों ने हुंकार-ध्वनि से मार डाला था। तब अराजकता के निवारण हेतु निःसन्तान मरे वेन की भुजाओं का मन्थन किया गया जिससे स्त्री-पुरुष का एक जोड़ा प्रकट हुआ। पुरुष का नाम 'पृथु' रखा गया तथा स्त्री का नाम 'अर्चि'। वे दोनों पति-पत्नी हुए। उन्हें भगवान् विष्णु तथा लक्ष्मी का अंशावतार माना गया है।महाराज पृथु ने ही पृथ्वी को समतल किया जिससे वह उपज के योग्य हो पायी। महाराज पृथु से पहले इस पृथ्वी पर पुर-ग्रामादि का विभाजन नहीं था l


चतुर्युगी के पश्चात् भी कालगणना है अध्ययन स्वाध्याय विचार चिन्तन मनन सत्संगति करने से हम अपनी धारा निकालने में सक्षम होंगे उसी लीक पर नहीं चलेंगे कि हमारी संस्कृति मात्र पांच हजार वर्ष पुरानी है


पथान्तरित व्यक्ति को आप अपने प्रभाव से अपनी शक्ति से सहायता के द्वारा विश्वास में लेकर विश्वास दिला सकते हैं कि सही मार्ग क्या है

मुस्लिमों को लगना चाहिये कि हिन्दू हमारे हितैषी हैं

हिन्दू मुस्लिम समस्या द्वेष संघर्ष ईर्ष्या से हल नहीं होगी


शक्ति बुद्धि विवेक से भाव का विस्तार करें

अपने भ्रमित लोगों के सहयोगी बनें

भारत मां की सेवा में उद्यत होने के लिये आत्मसमीक्षा करें

7.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 07/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 हर कर को गांडीव सुलभ है,हर मन को उत्साह ।

किंतु शर्त यह आह न किंचित, हर पल निकले वाह ।।

✍️ओम शंकर



प्रस्तुत है अध्यात्म -प्रशत्त्वन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 07/01/2022

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कथन और श्रवण संस्कार का एक रूप है और इस पद्धति से हमारे देश में मानव जीवन के लिए संस्कार का एक मार्ग खोला गया

मनुष्य मनुष्य बने इसके लिए ज्ञान का उद्भव सबसे पहले अपने देश में हुआ


कोटि-कोटि कंठों से निकली आज यही स्वर धारा है

भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है।

जिस दिन सबसे पहले जागे, नवल सृजन के स्वप्न घने,

जिस दिन देश-काल के दो-दो, विस्तृत विमल वितान तने,

जिस क्षण नभ में तारे छिटके, जिस दिन सूरज-चाँद बने,

तब से है यह देश हमारा, यह अभिमान हमारा है!

भारतवर्ष हमारा है, यह हिन्दुस्तान हमारा है ! I


(बाल कृष्ण नवीन)



विकार संसार में  आते हैं  अपना देश भी इससे अछूता नहीं रह सकता इसलिये बहुत व्याकुल नहीं होना चाहिये



शङ्कराचार्य केवलाद्वैत, रामानुज विशिष्टाद्वैत, निम्बार्क द्वैताद्वैत, मधवाचार्य द्वैत, वल्लभाचार्य शुद्धाद्वैत

आदि भिन्न भिन्न मत हैं इनके समय में भी परिस्थितियां विषम थीं


प्रतिकूल परिस्थिति में मनुष्य के पुरुषार्थ -जागरण के असंख्य उदाहरण भारतवर्ष में हर समय मिल जायेंगे


आचार्य जी ने चार युगों से संबन्धित अपनी रची एक कविता सुनाई

हमने पूरी वसुधा को अपना परिवार......

हमारे विचार भी इसी तरह जब लिपिबद्ध हो जाते हैं और हम स्वयं पढ़ते हैं तो लगता है किसने प्रेरित किया था


कौन अन्दर विद्यमान है अहं ब्रह्मास्मि

उपासना भाव में रहने का प्रयास नित्य करें किसी भी समय करें

आज की परिस्थितियों को देखकर  अध्यात्म के साथ पुरुषार्थ शौर्यपूर्ण पराक्रम की आवश्यकता है ही

समय पर पौरुष का प्रकटीकरण होना चाहिये

रुई भारत में बनती थी लेकिन कपड़ा  इंगलैंड में बनता था और कंट्रोल से मिलता था इस तरह के संकटों से भारत गुजरा है

लेकिन अब हम उस संकट काल से निकल आये हैं

इसलिये निराशा की अभिव्यक्ति अब भी न करें


यह सदाचार वेला हमें सिखाती है कि हम जाग्रत हों, परिस्थितियों से जूझें,आत्मशक्ति की अनुभूति भी करें प्रयोग भी करें

इसके लिये खानपान संयम नियम देखें

परमात्मा ने हमारा शरीर अनुकूलन स्थापित करने वाला बनाया है मनुष्यत्व की अनुभूति करें दुर्भाग्यशाली न बनें

6.1.22

श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 06/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है वीरन्धरोन्मुख आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 06/01/2022

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क्योंकि हम लोग ऋषित्व को प्राप्त नहीं किये हुए हैं इसलिए ऐसा तो नहीं हो सकता कि संसार का संस्पर्श ही न हो लेकिन इसका प्रयास तो करते हैं और चूंकि संसार वक्रीय गति से चलता है इसलिए कोई काम नियत समय पर नहीं हुआ आदि के लिए व्यथित नहीं होना चाहिए


किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।


तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।4.16।।


कर्म क्या है व अकर्म क्या है? इस विषय में बुद्धिमान  भी भ्रमित होते हैं। अतः मैं तुम्हें  कर्म और अकर्म  समझाऊँगा जिसे जानने के बाद तुम  संसार बन्धन से मुक्त हो जाओगे


कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः।


अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः।।4.17।।


कर्म ,अकर्म,विकर्म का तत्त्व जानना चाहिये  क्योंकि कर्म की गति गहन है।


हमें इन छोटी व्याख्याओं से ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिये अपितु अधिक से अधिक विस्तार में जाना चाहिये क्योंकि ज्ञान असीम है अनन्त है इसलिये इसके विस्तार का प्रयास सदैव करना चाहिये


इसी ज्ञान की अनन्तता को प्राप्त करने का प्रयास ही अध्यात्म में मोक्ष है


आचार्य जी ने कल की एक घटना का उल्लेख किया जिसमें कल प्रधानमन्त्री के दौरे में व्यवधान उत्पन्न करने का प्रयास किया गया 

इसका अर्थ है देश में गद्दारों की फौज है गद्दारी हमेशा स्वार्थ आधारित होती है स्वार्थ कि हमें यह मिल जाये 



अपनी नासमझी के कारण इस देश में प्रधानमन्त्रियों की हत्याएं हो चुकी हैं हत्या हत्या ही है शौर्य शौर्य ही है पक्ष विपक्ष नहीं देखना चाहिये


प्रातःकाल का यह संबोधन अध्यात्म आधारित है इसलिये अध्यात्म के पक्ष को समझना चाहिये


महाभारत  भीष्म पर्व के नवें अध्याय में भारत के स्वरूप का बहुत अच्छा वर्णन है जो विस्तार से भी है हमें इसे पढ़ना चाहिये


हीन भावना से मुक्त रहना चाहिये कि हम इतना सिमट गये हैं आदि आदि



निन्दनीय की निन्दा करने का उत्साह भी हो लेकिन भाषा कटु न हो


हीनबोधत्व विनष्ट हो इसका व्यक्ति व्यक्ति में प्रकाश जलना चाहिये


पहले स्वयं फिर परिवार फिर समाज तक विस्तार करें

गरिमा का भाव सदैव रखें


यस्य सर्वे समारम्भाः कामसङ्कल्पवर्जिताः।


ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः।।4.19।।

का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि शिक्षा पद्धति, व्यापार पद्धति, चिकित्सा पद्धति सभी इसी पर आधारित हैं कि हमारी भूख तृप्त होती रहे


लोमश ऋषि को देखें तब?

और यह देश अब ऐसा तैयार हो गया कि हमारी तृप्ति होती ही नहीं


त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः।


कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किञ्चित्करोति सः।।4.20।।


निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः।


शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।4.21।।


यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।


समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।।


का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया यह भाव जब पच जायेगा तो जो हम कहेंगे वह प्रभावशाली होगा आदर्श बनेगा


व्यक्ति की साधना से लेकर समाज की सेवा तक के सोपानों पर हम चढ़ें आचार्य जी यह चाहते हैं



समय की गम्भीरता को पहचानें हम देश के रक्षक हैं

वाणी व्यवहार से ही नहीं कर्म से भी जाग्रत हों

लोक में सद्भाव भरने की आवश्यकता है दिनचर्या व्यवस्थित करें

सामाजिक कामों का, स्वाध्याय चिन्तन मनन का रोज हिसाब लगायें



समाजोन्मुखी होने पर हमें आनन्द की अनुभूति होगी

5.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 05/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 वत्तासुर दैत्य के आतंक का सामना करने हेतु देशहित में दधीचि ऋषि द्वारा दान की गई हड्डियों से तीन धनुष गाण्डीव पिनाक सारङ्ग  बने




प्रस्तुत है स्यन्दनारोह आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 05/01/2022

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यह संसार संयोग -वियोग, रुचि -अरुचि, राग- विराग, सुख -दुःख आदि विपरीत भावों का एक सामञ्जस्य है

उसी से उद्भूत विचारों का संघर्ष है और उसी का सहारा पाकर क्रियाओं का एक रणक्षेत्र बना हुआ है

हम लोग कभी प्रसन्न कभी उदास कभी चिन्तित आदि भावों के साथ चलते रहते हैं

सारा संसार क्रिया व्यापार का एक स्वरूप है और यह क्रिया व्यापार अध्यात्म की दृष्टि से परमात्मा की लीला है

भारतवर्ष का अध्यात्म घर घर में रचा बसा है


बाह्य रूप से घण्टी बजाना ही पूजा नहीं है  वहां कुछ देर भाव भी लगना चाहिए 

हम लोग देखते हैं कि जब हमारा मन पूजा में रमता है तो मूर्ति में भाव बदलते दिखते हैं अपने भाव उसमें प्रविष्ट हुए दिखते हैं

यह भावमय जगत् मनुष्य जीवन का एक ओर तो वरदान  है दूसरी ओर समस्याओं का उद्वेलन भी है


सामान्य भक्तों के लिए मूर्तियां दिखाई जाती हैं उनमें प्राण प्रतिष्ठा होती है  फिर भक्त उसमें रमते हैं जब मूर्ति के रूप का भाव वास्तव में हमारे भीतर प्रवेश कर जाता है और हम अध्यात्म में मस्त रहने लगते हैं तो यह परावस्था कहलाती है

लेकिन परावस्था के लिए व्याकुल न हों अपितु समर्पित हों


यही अध्यात्म जब भावों में सक्रिय होकर कर्तव्योन्मुख हो जाता है तो गीता -ज्ञान खुल जाता है


द्वैत से अद्वैत तक की यात्रा अपने भारतवर्ष के ऋषियों की उपलब्धि है उन्होंने हमें यह सौंप दिया है हमें अपने को सौभाग्यशाली समझना चाहिए


मानस और गीता में रमने का प्रयास करें

धनुष भंग के प्रसंग को आचार्य जी ने बहुत भावमय होकर बताया

सहजहिं चले सकल जग स्वामी। मत्त मंजु बर कुंजर गामी॥ चलत राम सब पुर नर नारी। पुलक पूरि तन भए सुखारी॥

.......

अन्त में आचार्य जी ने कहा

संयम की जहां आवश्यकता है वहां संयम जहां संघर्ष वहां संघर्ष के लिए उत्साह

इस तरह दिशा दृष्टि को हम लोग सुव्यवस्थित करें


इसके अतिरिक्त आज हमारी पूजा है आज इनकी झाड़ू है ये प्रसंग कहां आये आदि जानने के लिए सुनें

4.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 04/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण l

ता ऊपर सुल्तान है,मत चूके चौहान।।


प्रस्तुत है  सानु आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 04/01/2022

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शिक्षक पढ़ाता तो अनेक विद्यार्थियों को है लेकिन किसी किसी को उसका भाव लग जाता है

समान वृत्ति यदि जिज्ञासु है और ज्ञानोन्मुख है तो मेल मिल जाता है

आचार्य जी ने यह बात भैया पवन रामपुरिया को लेकर की   जिन्होंने आचार्य जी से प्रेरित होकर गीता कंठस्थ कर ली थी  और उन्हें यह कभी नहीं लगता कि परमात्मा भी गलती कर सकता है

जब कि यदि हमारा मोह किसी से बहुत अधिक हो जाता है, हमारी कामनाएं किसी से बहुत अधिक संयुक्त हो जाती हैं और उसका नुकसान हो जाए तो हम शंका करने लगते हैं कि परमात्मा ने गलती कर दी है


इसके लिए आचार्य जी ने एक और प्रसंग बताया जिसमें किसी का प्रश्नपत्र खराब हो गया तो वह देवी जी को बुरा भला कहने लगा 


संसार मिले जुले भावों का है


हमें यह समझना चाहिए कि हमें करना क्या है और यही धर्म है


गीता में


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।


भली प्रकार आचरण में लाये हुए दूसरे  धर्म से गुणरहित स्वधर्म श्रेष्ठ है। अपने धर्म में तो मरना भी कल्याण करने वाला है और दूसरा  धर्म भय देने वाला है।


धर्म और कर्म एक दूसरे से संयुत हैं


हमें अपने स्वरूप को किस प्रकार बदलना है इसके लिए एक सूक्ति है


लालयेत् पञ्च वर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत् ।

प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत् ॥



आचार्य जी ने गीता के कुछ और छन्द लिए



अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः।


अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः।।3.36।।


अर्जुन बोले -  तो यह मानव न चाहता हुआ भी बलात् लगाये हुए की तरह किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है ?


काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।


महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्।।3.37।।


रजोगुण से उत्पन्न महापापी और बहुत अधिक खाने वाले काम से ही तुम्हें वैर रखना है


धूमेनाव्रियते वह्निर्यथाऽऽदर्शो मलेन च।


यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्।।3.38।।


धुएँ से आग और मैल से मङ्कुर ढक जाता है जेर से गर्भ ढका रहता है,   उसी तरह  काम के द्वारा यह  विवेक ढका हुआ है।



आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।


कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च।।3.39।।


इस अग्नि के समान कभी तृप्त न होने वाले विवेकियों के वैरी इस काम के द्वारा मनुष्य का विवेक ढका हुआ है।

हम सब कर्म मार्ग के पथिक हैं और धर्म के स्वरूप को समझने का प्रयास भी करते हैं आचार्य जी ने परामर्श दिया कि ध्यान का अभ्यास करें

इसके अतिरिक्त 

परमात्मा विकारी होता है तो क्या करता है?

क्या शुद्ध स्वर्ण से आभूषण बनाया जा सकता है?

आदि जानने के लिए सुनें

3.1.22

आज दिनांक 03/01/2022 का सव्येष्ठ आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण

 समय समय पर होत है

समय समय की बात

किसी समय का दिन बड़ा 

किसी समय की रात 

कभी किसी का दिन बड़ा 

कभी किसी की रात

राम जन्म का दिन बड़ा 

कृष्ण जन्म की रात 

स्वयं दिखाई नही है देता 

पर सब कुछ दिखलाता

अपना और पराया सबको 

यही समय बतलाता

जिसके पास अधिक है उससे 

नही है काटा जाता 

जिसे चाहिए उसे यह कभी नही 

मिल पाता

किन्तु सत्य है जो भी इसका

करता है सम्मान 

समय बना देता है उसके सारे बिगड़े काम


इससे प्रेरित होकर हम लोग अपने समय का सदुपयोग करने के लिए आइये सुनते हैं आज दिनांक 03/01/2022

का सव्येष्ठ आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण


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आज के सदाचार संप्रेषण में आचार्य जी के मन में सांसारिकता के साथ सदाचार के संयोजन का भाव आया है


इस समय पढ़े लिखे लोगों के मन में उथल पुथल है कि सरकार किसकी बनेगी


गांव आदि में भी इसकी चर्चा चलती है अर्धशिक्षित लोग भीड़ का अंग बन जाते हैं


जाग्रत सक्रिय क्रियाशील देश संघर्ष के साथ सदैव संयुक्त रहते हैं


संघर्ष वैचारिक, व्यावहारिक, शारीरिक, सामाजिक या अध्यात्म की प्राप्ति का भी हो सकता है

संघर्ष मनुष्य का स्वभाव है


संघर्षण आग जलाने के लिए भी हो सकता है और आग बुझाने के लिए भी हो सकता है


हम लोगों का संघर्ष जिनके साथ है वो हमारे धर्म के विरोधी हैं


हमारा धर्म सन्मार्ग का प्रथम उपदेश और उन्नति का नियम है जिसमें कोई विकार नहीं है हमारा मार्ग सुस्पष्ट है और गन्तव्य है संसार की समस्याओं को सुलझाते हुए मोक्ष


आचार्य जी ने संयम और संस्कार को स्पष्ट किया


यतो अभ्युदय निःश्रेयससिद्धिः स धर्मः। (कणाद, वैशेषिकसूत्र, १.१.२)


की व्याख्या करते हुए बताया कि ऐसा धर्म तमाम विघ्न बाधाओं से उलझते हुए

अन्य से टक्कर लेने लगा



अनलहक  

(एक अरबी पद जो अहं ब्रह्मास्मि का वाचक है और जिसका अर्थ है मैं ही ब्रह्म या ईश्वर हूँ।)

के लिए " ईरान के मशहूर सूफ़ी संत मंसूर बिन अलहल्लाज को सूली पर चढ़ा दिया गया। आचार्य जी ने वह कथा बताई कि पत्थरों के विपरीत फूल मारने पर वह क्यों रोने लगा


संसार का जानना और मानना दुरूह विषय है अध्यात्म यही है

अपने अन्दर यही प्रवेश कर जाए तो आनन्द की सीमा नहीं


विचार और विकार मिल नहीं सकते


जो हमारे धर्म के विरोधी हैं उनसे सचेत रहें


हमारा संगठन विनाश के लिए नहीं विकास के लिए है

इसका ध्यान रखें और भारत मां की सेवा में रत रहें

2.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 02/01/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  प्रवर्तिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 02/01/2022

  का सदाचार संप्रेषण 




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संसार में रहते हुए सभी के साथ कारण और कार्य संयुक्त हैं लेकिन बुद्धिमत्तापूर्वक,विचारपूर्वक किसी काम को सुलझा लेना पुरुषार्थी और विवेकसंपन्न व्यक्ति के लक्षण हैं


विवेक समाधि के पास की अवस्था है


संपूर्ण संसार को समझकर आत्मस्थ होने का भाव जहां विकसित हो जाए वह समाधि  की अवस्था है

समाधि का अनुभव यद्यपि आनन्द का विषय है लेकिन समझाने में अत्यन्त दुरूह है


अबिगत गति कछु कहति न आवै।

ज्यों गूंगो मीठे फल को रस अन्तर्गत ही भावै॥

परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।

मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥

रूप रैख गुन जाति जुगति बिनु निरालंब मन चकृत धावै।

सब बिधि अगम बिचारहिं, तातों सूर सगुन लीला पद गावै॥


यह सूरदास जी ने वल्लभाचार्य को गाकर बताया है


(देह पर अभिमान करने वालों को अव्यक्त- उपासना  कठिन लगेगी अव्यक्त ब्रह्मा का रूप जाति कुछ नहीं है मन वहां ठहर ही नहीं सकता इसलिए  सूरदास   सगुण ब्रह्म श्रीकृष्ण की लीलाओं को गाना सही समझते हैं)


इसे सुनकर वल्लभाचार्य को लगा कि सूर ज्ञान के द्वार तक पहुंचा हुआ भक्त है इसकी तो सहायता अवश्य ही करनी चाहिए


विवेकपूर्वक जीवन जीने पर हमें यह अकल आ जाती है कहां किससे किस तरह का व्यवहार करना


लेकिन सारे व्यवहारों में प्रेम और सद्भाव का सूत्र जिनका टूट जाता है वे समाज के लिए समस्या हो जाते हैं


आत्मीयता का सूत्र कभी खण्डित न करें


यह हम लोगों की संस्कृति है


हमारे ऋषितुल्य कवियों ने कई स्थानों पर इसकी अभिव्यंजना की है


किष्किन्धा कांड में ऋतु का वर्णन देखते ही बनता है जिसे

ज्ञान की दिशा और दृष्टि से भी जोड़ा है 


बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध बिद्या पाएँ।

बूँद अघात सहहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसें॥2॥

छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई॥

भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहि माया लपटानी॥3॥


समिटि समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा॥

सरिता जल जलनिधि महुँ जोई। होइ अचल जिमि जिव हरि पाई॥4॥


सांसारिक व्याकुलता से ग्रसित लोगों को आत्मचिन्तन की आवश्यकता है

पद प्रतिष्ठा धन सम्मान नहीं मिलने पर वे व्याकुल हो जाते हैं


सहज संतों के पास तो पद भी नहीं होते लेकिन उनके पास जाकर बहुत लोगों को शान्ति मिलती है


कभी किसी स्थान पर शान्ति मिलती है कभी किसी समय पर शान्ति मिलती है

यह सब चक्र चलता रहता है इन सबका आधार परमात्मा है जो क्रियाशील भी है और क्रियामुक्त भी है क्रियाहीन नहीं

हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारी भाषा बहुत उर्वर है भाव बहुत गहरे हैं


गूगल गुरु' के नाम से प्रसिद्ध वृंदावन के दो साल दस माह के गुरु उपाध्याय की चर्चा आचार्य जी ने की


पिण्ड हमारा शरीर भी है और ब्रह्माण्ड भी पिण्ड है

संसार को संसार की दृष्टि से

 और विचार को विचार की दृष्टि से भाव में लिप्त होकर हम सब कुछ प्राप्त करें

1.1.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 01/01/2022

 प्रस्तुत है  तीव्रसंवेग आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 01/01/2022 


[सूरत जो उस समय मुगलों का एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण किला था उस पर सन् 1664 में आज ही के दिन शिवाजी राजे भोंसले (जन्म 19 फ़रवरी 1630) ने धावा बोल दिया था]

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मनुष्य जब साधक के रूप में रहता है और सिद्ध अवस्था को प्राप्त नहीं होता है तो कोई काम कभी विलम्ब और कभी  शीघ्रता से होता है इन  व्यतिक्रमों  के लिए व्याकुल नहीं होना चाहिए

सम अवस्था में रहते हुए हम संसार को संसार की दृष्टि से देखकर आगे चलने का प्रयत्न करेंगे

करम प्रधान विश्व रचि राखा।

जो जस करइ सो तस फल चाखा।।"

हम लोग अपने  अध्ययन, स्वल्प ही सही, को समीक्षित परीक्षित करते हुए अपने व्यवहार में लाने का प्रयास करें आनन्द रहेगा


विश्व कर्म प्रधान है और कर्म का संस्कार ही मानव की मूल शक्ति है इसी के अनुसार मनुष्य के भाग्य का निर्णय होता है    मनुष्य    कर्म भेद से किसी भी योनि में जा सकता है


इसी के अनुसार लोक लोकान्तर में जाता है

 सत रज तम का विभाजन भी हमारे यहां हुआ है


पिपीलिका वृत्ति, मार्जारी वृत्ति,मर्कटी वृत्ति आदि वृत्ति के लोग  उस भाव को तो ग्रहण कर लेते हैं लेकिन उसे कर्म में पिरो देना बहुत बड़ी साधना का काम है


प्रदर्शन से शक्तियां क्षीण होती हैं

पैर न छुआना भी रहस्यात्मक है आत्मदर्शन के बाद कुछ प्रदर्शन कर सकते हैं


अच्छी संगति पाकर अपने अन्दर का शठभाव सुधर सकता है


इस सदाचार वेला से उत्साह प्राप्त करें

भीष्म पितामह के पश्चात्ताप को देखिये

परमात्मा ने पिपीलिका वृत्ति यदि हमें दे दी तो अच्छे गुणों को हम ग्रहण कर सकते हैं


कुछ कवियों ने ऋषित्व प्राप्त किया है

भारत मां की सेवा ही क्यों इसके लिए आचार्य जी ने बहुत अच्छी बताई

जिनमें भारत मां के प्रति ललक नहीं है वो अभागे हैं

स्वार्थ में भारत मां का बहुत अहित हुआ है

भारतीय भाव से आवेशित होकर अपने काम आगे बढ़ाएं