30.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १००६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  30 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००६ वां सार -संक्षेप


मनुष्य का जीवन अद्भुत है उस जीवन की गतिविधि का आधार उसका शरीर है शरीर में ही मन है मन के विस्तार असीमित हैं इसी असीमितता का उपयोग कर हम अपनी क्षमताएं  बढ़ा सकते हैं कर्म का पर्याय बने आचार्य जी प्रतिदिन हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपनी क्षमताओं की पहचान करें    दम्भ न करें रामत्व की अनुभूति करें  समस्याओं का समाधान स्वयं खोजने की शक्ति बुद्धि विश्वास प्राप्त करने के लिए ,   पौराणिक वैदिक शास्त्रीय ज्ञान को सरल भाषा में समझने के लिए भक्तिभाव की अद्भुत क्षमता को जानने के लिए आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में


ज्ञान के पूर्ण भंडार उत्तरकांड में 

(भगवान् राम अयोध्या लौट आएं हैं )

रामभक्त काकभुशुण्डि जी जिन्हें लोमश ऋषि से शाप मिला था और वह शाप ही जिनके लिए वरदान हो गया और जो एक कौवे के रूप में हैं 

(काकः पक्षिषु चाण्डालः स्मृतः पशुषु गर्दभः । नराणां कोऽपि चाण्डालः स्मृतः सर्वेषु निन्दकः ।।)


परब्रह्म के एक भाग विष्णु भगवान् (त्रिशक्तियों में एक )के वाहन गरुड़ जी के संदेह भ्रम 


कारन कवन देह यह पाई। तात सकल मोहि कहहु बुझाई॥

राम चरित सुर सुंदर स्वामी। पायहु कहाँ कहहु नभगामी॥2॥


आपने यह कौवे का शरीर किस कारण से पाया? हे तात! सब समझाइये । हे स्वामी! हे आकाशगामी! यह सुंदर कल्याणकारी श्रीरामचरित मानस आपने कहाँ पाया,बताइये ॥2॥


नाथ सुना मैं अस सिव पाहीं। महा प्रलयहुँ नास तव नाहीं॥

मुधा बचन नहिं ईस्वर कहई। सोउ मोरें मन संसय अहई॥3॥


हे नाथ! मैंने भगवान् शिव जी से  सुना है कि महाप्रलय में भी आपका नाश नहीं होता और वे कभी मिथ्या वचन  नहीं कहते नहीं।

को दूर करते हैं 


जप तप मख सम दम ब्रत दाना। बिरति बिबेक जोग बिग्याना॥

सब कर फल रघुपति पद प्रेमा। तेहि बिनु कोउ न पावइ छेमा॥3॥


अनेक जप, तप, यज्ञ, शम (मन को रोकना), दम (इंद्रियों को रोकना), व्रत, दान, वैराग्य, विवेक, योग, विज्ञान आदि का फल  प्रभुराम जी के चरणों में प्रेम होना है। इसके बिना कोई कल्याण नहीं प्राप्त कर सकता

यह है भक्तिभाव की अद्भुत क्षमता भक्ति में अद्भुत शक्ति होती है 

संसार जब संस्पर्श करता है भक्ति विलीन हो जाती है तो व्यक्ति परेशान होता है 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि उत्तरकांड में हम ९६वें से १०३ वें  दोहे तक का भाग अवश्य पढ़ें 

सरल ग्रंथों का पारायण करें ध्यान धारणा आदि में रत हों किसी भी स्थान से अच्छा ग्रहण करें सहज रहने की चेष्टा करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने  भैया डा अमित जी भैया अरिन्दम जी का नाम क्यों लिया आरती के लिए कौन खीझा AI की चर्चा क्यों हुई बाबा रामदेव का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

29.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 29 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १००५ वां सार -संक्षेप

 बड़े संकट समस्याएँ जटिल अवरोध अनगिन हैं, 

यही सब सोच कर लगता कि यह संसार घिनघिन है, 

मगर हिमनग महासागर सघन वन जब नजर आते, 

कि लगता है यहीं पर स्वर्ग का आनन्द कानन है।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  29 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००५ वां सार -संक्षेप


संसार हम सभी को प्रभावित करता है जिनके प्रपंचों में हम फंसे रहते हैं इसके बाद भी कुछ क्षणों के लिए संसार से मुक्त रहते हुए आनन्द की प्राप्ति के प्रति आशान्वित रहते हुए शुद्ध अध्यात्म की अनुभूति हेतु  अपनों के प्रति अपनत्व की भावना जाग्रत करने के लिए शौर्याग्नि शक्ति से युक्त जाग्रत सद्विवेक के अनुभव हेतु भारत में पुनः भास्वरता लाने का संकल्प करने हेतु हम इन सदाचार वेलाओं को सुनने के प्रति लालायित रहते हैं यह  भारतवर्ष के रक्षाकवच हनुमान जी, जिन्हें रामकृपा प्राप्त है और जो विविध भावों चेष्टाओं  रूपों में असीम शक्तियों के साथ भगवान् राम के आदेश का पालन करते हुए कलियुग में  भी विद्यमान हैं ,की ही महती कृपा है

हमें ऐसे भावों में प्रविष्ट रहना चाहिए कि 


यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।


समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।।

यदृच्छया अर्थात् अपने आप ही जो कुछ प्राप्त हो उसमें ही सन्तृप्त रहने वाला,  द्वन्द्वों से दूर, मत्सर से रहित,  सिद्धि व असिद्धि में समान भाव वाला व्यक्ति कर्म करके भी नहीं बंधता है।।


गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः।


यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते।।4.23।।


जो आसक्ति से रहित और मुक्त है,  जिसका चित्त ज्ञान में सम्यक् प्रकार से स्थित है,  यज्ञ हेतु आचरण करने वाले ऐसे व्यक्ति के सारे कर्म विलीन हो जाते हैं।।


हमें बचपन से ही अद्भुत संस्कार मिलते रहे हैं 

  स्वादिष्ट भोजन को देखकर मन ललचा रहा है लेकिन भोजन से पहले भोजन मन्त्र बोलेंगे

तब भोजन करेंगे 

ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।


ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।

ॐ सहनाववतु सहनौ भुनक्तु। सहवीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥..

ऐसे संस्कारों का अंकुरण पल्लवन हुआ जिनके फलन का यह उचित समय है 

ऐसे संस्कारों का विस्तार आवश्यक है ताकि समाज को समझ में आए कि सभी स्थानों में अंधकार नहीं है कुछ प्रकाश के पुंज अभी भी दिखाई दे रहे हैं यही संदेश हमें सितम्बर में होने जा रहे राष्ट्रीय अधिवेशन से भी देना है 

अपने देश की समस्याओं पर विचार करें तो हम देखते हैं 

जब हमारा ब्रह्मत्व खंड खंड हो गया हम एकांगी हो गए तो इधर उधर के लोग आ गए 

शौर्य विहीन अध्यात्म ने हमें अत्यधिक हानि पहुंचाई

इसी तरह की समस्याओं  का खाका खींचते हुए हमें दिशा देने के लिए सनातन धर्म के प्रति विश्वास जाग्रत करने के लिए आचार्य जी ने अपनी रचित एक कविता सुनाई जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं


..

इन सभी समस्याओं का मूल गुलामी है। 

मन पर छा चुकी एक अद्भुत नाकामी है ।।

कुछ कहते इसका कारण बस प्रारब्ध एक। 

पर मैं कहता शौर्याग्निशक्ति से वंचित जाग्रत सद्विवेक। ।

आओ मिल सद्विवेक में ज्वाला धधकाएँ। 

फिर से अपने भारत में भास्वरता लाएँ  ।।


यह पूरी कविता क्या है चित्त की पांच अवस्थाएं कौन सी हैं आदि जानने के लिए सुनें

28.4.24

 केवल संदेश नहीं छानें हर गाँव-गली,

दुश्मन घर भीतर घुसा हुआ धर रूप छली, 

पहचान करें अपने हर सगे सहोदर की, 

संकल्पित अक्षत सहित भ्रमण हो गली-गली। ।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  28 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००४ वां सार -संक्षेप


इस समय चुनाव का माहौल है  वैदिक काल का लोकतन्त्र अद्भुत था लेकिन यह लोकतन्त्र विकृत है  ऐसे में हमें जाग्रत रहने की अत्यन्त आवश्यकता है प्रायः ऐसा होता है कि हम अपने में ही मग्न रहते हैं हम enjoy करते रहते हैं

इसी से संबन्धित 

श्रीमद्भागवत् में १०/८४/१३  वां छंद है जो इस प्रकार है 


यस्यात्मबुद्धि: कुणपे त्रिधातुके

स्वधी: कलत्रादिषु भौम इज्यधी: ।

यत्तीर्थबुद्धि: सलिले न कर्हिचि-

ज्जनेष्वभिज्ञेषु स एव गोखर: ॥ १३ ॥



जो स्वयं को  त्रिधातु अर्थात् कफ , पित्त, वायु से बने जड़ शरीर के रूप में पहचानता है, जो अपनी पत्नी और परिवार को स्थायी रूप से अपना मानता है, जो मिट्टी की छवि या अपनी जन्मभूमि को पूजनीय मानता है या जो तीर्थ स्थान को जल के कारण पूजनीय मानता है जिसमें तीर्थ में तीर्थत्व का भाव नहीं रहता है जो उसे picnic के रूप में देखता  है , लेकिन जो कभी भी आध्यात्मिक सत्य में बुद्धिमान लोगों के साथ अपनी पहचान नहीं बनाता है, उनकी पूजा नहीं करता है या यहां तक ​​​​कि उनके पास भी नहीं जाता है - ऐसा व्यक्ति बैल या गधे से बेहतर नहीं है।

ऐसे लोगों के लिए सत्य ही कहा गया है 


येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मर्त्यलोके भुविभारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ 

इस कारण हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए अपने पराये की पहचान आनी चाहिए जिनसे हमें भाईचारा करना चाहिए उन्हें हम त्रैवर्णिक न होने पर त्यागने लगते हैं आरक्षण पर तूफान खड़ा कर देते हैं  और हम यह नहीं देखते कि उनपर कितने दिन तक अत्याचार हुए हैं 

अपने आत्मतत्त्व को विकसित कर चिन्तन मनन में यदि हम जाते हैं और चिन्तन मनन के बाद कर्म की योजना बनाते हैं तो ये सदाचार संप्रेषण हमारे लिए लाभकारी हैं लोभ मोह से विरक्त होकर कर्म करें 

जागरण शयन में संतुलन बनाएं सात्विक भोजन करें 

भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं



किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।


तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।4.16।।


कर्म अकर्म के विषय में बुद्धिमान पुरुष भी भ्रमित हो जाते हैं। इसलिये मैं तुम्हें कर्म  और अकर्म का स्वरूप समझाऊँगा जिसे जानकर तुम अशुभ संसार बन्धन से मुक्त हो जाओगे।।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कर्नाटक की चर्चा क्यों की प्रदीप सिंह, ओंकार चौधरी, अत्रि आदि का नाम क्यों लिया क्या सिद्धान्तों से इतर भी हमें देखना है  जानने के लिए सुनें

27.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  27 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००३ वां सार -संक्षेप


हमारे यहां का साहित्य अत्यन्त विलक्षण है जो भी साहित्य हमें प्राप्त है उसका हमें लाभ उठाना चाहिए और अधिक से अधिक लोगों को प्रेरित करना चाहिए कि वे भी इससे लाभान्वित हों तात्विक विषयों को समझने के लिए प्रश्नोत्तर करें आपस में चर्चा करें इसी से ज्ञान का द्वार खुलेगा जिससे हमें शक्ति प्राप्त होगी जो विचार हमारे मन में आएंगे वो समाज और देश को शक्तिशाली बनाएंगे  सद्विचारों को व्यवहार में उतारें 

शक्ति भक्ति कौशल आत्मविश्वास की अनुभूति कराने वाले हमारे यहां के ग्रंथ अद्भुत हैं 


ऐसा ही हमारा हित करने वाला एक ग्रंथ है विवेकचूड़ामणि जो आठवीं शताब्दी के आसपास भगवान् शंकराचार्य द्वारा रचित काव्यात्मक दोहों का एक संग्रह है। यह संकलन जिस दार्शनिक विचारधारा को उजागर करता है उसे 'अद्वैत वेदांत' या गैर-द्वैतवाद कहा जाता है इसी पुस्तक से 


जन्तूनां नरजन्म दुर्लभमतः पुंस्त्वं ततो विप्रता


तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता विद्वत्त्वमस्मात्परम्।


आत्मानात्मविवेचनं स्वनुभवो ब्रह्मात्मना संस्थिति

र्मुक्तिर्नो शतकोटिजन्मसु कृतैः पुण्यैर्विना लभ्यते।।2।।


सभी प्राणियों के लिए मानव के रूप में जन्म लेना ही कठिन है, पुरुषत्व तो और भी कठिन, उससे भी दुर्लभ है ब्राह्मणत्व,वैदिक धर्म के मार्ग के प्रति लगाव और भी दुर्लभ, फिर इससे भी ऊँचा शास्त्रों का पाण्डित्य, आत्म अनात्म के बीच भेदभाव, बोध, और ब्रह्म के साथ पहचान की स्थिति में बने रहना - ये क्रम में अगले आते हैं। ऐसी मुक्ति सौ करोड़ जन्मों के पुण्यों के बिना प्राप्त नहीं की जा सकती। हमें सत्कर्मों में रत होना चाहिए  सारा संसार सूक्ष्म रूप में मनुष्य के शरीर में विद्यमान है 

तत्त्वबोध आत्मबोध के भाव बहुत गहन हैं क्या करूं क्या न करूं इसमें ज्ञानी भी विमोहित हो जाते हैं 

गीता में भगवान् कृष्ण अर्जुन को कर्म अकर्म का भेद बताते हैं कर्मविहीन होने पर कुछ नहीं मिलेगा 

हमें अपने मनुष्यत्व की अनुभूति करनी चाहिए मनुष्य जब विस्तार करता है तो ऐसा लगता है सारा ब्रह्माण्ड उसके अन्दर अवस्थित है 

इस मनुष्यत्व का विस्तार कर दूसरों  को प्रभावित करें अंधकार दूर हो जाएगा आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि मन में जो भाव आएं उन्हें अवश्य लिखें आचार्य जी के मन में भी भाव उठे और उन्होंने अंकित कर दिए 

यह संसार असार सारमय अद्भुत गजब खिलौना है 

कुश कांटों के परिधान पहनकर भी सुन्दर है लोना है...


विद्याञ्चाविद्याञ्च यस्तद्वेदोभयं सह।

अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥

विद्या अविद्या दोनों को हमें जानना चाहिए मरणधर्मा संसार में हम अमरत्व की उपासना भी करते हैं साथ ही अमरत्व की खोज भी करते हैं 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रशान्त जी भैया विवेक जी का नाम क्यों लिया किसके पत्र की बहुत चर्चा हुई आदि जानने के लिए सुनें

26.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १००२ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  26 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००२ वां सार -संक्षेप


भाव बहुत गहन होते हैं भाषा के माध्यम से भावुक के भाव जब भावक के पास पहुंचते हैं तो दोनों के बीच अत्यन्त आनन्द की उत्पत्ति होती है

आर्ष परम्परा का अनुसरण करते हुए आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि देवता की इस कृपा का हम आनन्द लें, आनन्द के साथ शक्ति भी अर्जित करें,संसार के सार और असार को समझते हुए अध्यात्म पर आधारित संसारोचित व्यवहार करें


हमारा सौभाग्य है कि हम आनन्दमय देश में, जिसमें शिक्षा के अनेक संस्कार -सेतु रहे हैं,आनन्दित करने वाली संस्कृति के साथ रह रहे हैं दुर्भाग्य है कि सांसारिक कलुषता को स्वीकारने पर हम व्याकुल होने लगते हैं 

लेकिन ज्ञान और बुद्धि के साधनों से इस कालुष्य को हम समाप्त करने में भी सक्षम हैं और ऐसा करने पर प्रसन्नतापूर्वक इस संसार की यात्रा को पूरी करते हैं

हम  भावों के बहुत अधिक सम्मिश्रण वाले दीनदयाल विद्यालय के छात्र रहे हैं जो हमारे लिए संस्कार का सेतु रहा है व्यापार केन्द्र न होकर शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को आत्मसात् करने वाला  विद्या और शिक्षा के समन्वित स्वरूप वाला यह विद्यालय चैतन्य जाग्रत करता रहा है विचारों का पल्लवन करता रहा है सत्कर्मों के लिए प्रेरित करता रहा है


अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, अस वर दीन जानकी माता"

का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों के बारे में बताया 

आठ माया का अंक है और नौ ब्रह्म का अंक है 

माया भी पूज्य है क्योंकि हम मायामय संसार में रह रहे हैं 

 हनुमान जी आठ सिद्धियों से संपन्न हैं।


अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा ।


प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः ।।


अर्थ - अणिमा , महिमा, लघिमा, गरिमा तथा प्राप्ति प्राकाम्य इशित्व और वशित्व  नामक  सिद्धियां "अष्टसिद्धि" कहलाती हैं।


'सिद्धि' का तात्पर्य सामान्यतः ऐसी पारलौकिक और आत्मिक शक्तियों से है जिन्हें तप और साधना के द्वारा प्राप्त किया जाता है । हिन्दु धर्म शास्त्रों में अनेक प्रकार की सिद्धियां वर्णित हैं जिनमें ये आठ सिद्धियां अधिक प्रसिद्ध हैं सिद्धियां अपने प्रयास और भक्ति से मिलती हैं निधियां कृपा से मिलती हैं 



कुबेर के कोष का नाम निधि है जिसमें नौ प्रकार की निधियाँ हैं। 1. पद्म निधि, 2. महापद्म निधि, 3. नील निधि, 4. मुकुन्द निधि, 5. नन्द निधि, 6. मकर निधि, 7. कच्छप निधि, 8. शंख निधि और 9. खर्व या मिश्र निधि।


माना जाता है कि नौ निधियों में केवल खर्व निधि को छोड़कर शेष आठ निधियां पद्मिनी नामक विद्या के सिद्ध होने पर प्राप्त हो जाती हैं

इसके अतिरिक्त प्रावृत्ति -संहारक आचार्य जी ने अष्टका, अष्टांग योग,अष्टमूर्ति, अष्टाध्यायी, अष्टगंध, नवग्रह, नवखंड, नवधातु, नवदुर्गा के विषय में क्या बताया

भैया न्यायमूर्ति श्री सुरेश जी गुप्त और भैया पंकज श्रीवास्तव जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

25.4.24

¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १००१ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  विधानग ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  25 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००१ वां सार -संक्षेप

¹ बुद्धिमान् पुरुष


हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें हनुमान जी की कृपा से  अत्यन्त अनुभवी आचार्य जी के भावों और विचारों के प्रस्फुरण के रूप में  आनन्दमय पक्ष का चिन्तन कराने का उत्साह प्रदान करने वाले ये सदाचार संप्रेषण प्राप्त हैं इन सदाचार संप्रेषणों के आज आठ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं वायवीय माध्यम से हम लोगों को उत्साहित ऊर्जस्वित करने की आचार्य जी की आठ वर्षों की यह साधना बेजोड़ है हमारे लिए एक प्रेरणा है यह नैरन्तर्य अप्रतिम है हम कामना करते हैं कि भविष्य में भी उनसे हमें ऐसा संरक्षण प्राप्त होता रहे 

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम  सदाचारमय विचारों को प्राप्त कर चिन्तन, मनन, अध्ययन, स्वाध्याय, सेवा, साधना, ध्यान, धारणा में रत हों अपने समझदारी के नेत्र खोलें 

हमारे यहां का शास्त्रीय चिन्तन अद्भुत है

परमात्मा ने ॐ के रूप में हमें भाषा प्रदान की उसका विस्तार हुआ हमें बहुत सी चीजें प्राप्त हुईं 


तैत्तिरीय उपनिषद् में


ॐ शीक्षां व्याख्यास्यामः। वर्णः स्वरः। मात्रा बलम्‌। साम सन्तानः। इत्युक्तः शीक्षाध्यायः॥


हम शिक्षा  अर्थात् मौलिक तत्त्वों की व्याख्या करेंगे।

 वर्ण,स्वर,मात्रा, बल अर्थात् प्रयास, साम तथा सातत्य  के द्वारा हमने शिक्षा के अध्याय का कथन किया है।


शिक्षा का यह स्वरूप अद्भुत था  सशक्त था उससे हमें संस्कार प्राप्त होते थे लेकिन शिक्षा का स्वरूप विकृत कर दिया गया और वह साधन के रूप में प्रयोग की जाने लगी और अभी भी उसी रूप में प्रयोग की जा रही है


यह संसार क्या है इसका चिन्तन भी हमारे यहां बहुत विस्तार से हुआ 

और समझ में आ गया कि सब कुछ परमेश्वर का पैसारा है 

ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌ ॥


इसका अन्वय इस प्रकार है 

जगत्यां यत् किं च जगत् अस्ति इदं सर्वम् ईशा वास्यम्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः। कस्यस्वित् धनं मा गृधः ॥


इस अत्यधिक गतिशील समष्टि-जगत् (umiversal motion )में जो भी यह दृश्यमान गतिशील, वैयक्तिक जगत् है-यह सबका सब ईश्वर के आवास हेतु ही है। इन सबका त्यागपूर्वक उपभोग करना चाहिए भोग करने से मनाही नहीं है किसी भी दूसरे की धन-सम्पत्ति पर ललचाई दृष्टि नहीं डालें

इस जगत्याम् पर बार बार मन अटक जाता है 



जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार। संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार।

हमारे अभिभावक चिन्तक विचारक ऋषि का यह मनुष्य के लिए संदेश है 



व्यावहारिक जगत को अनिवार्य बताते हुए आचार्य जी कहते हैं कि वे अभिभावक धन्य हैं जो अपनी संतानों की प्रशंसा करते हैं फिर ऐसी संतानें अपने अभिभावकों से लगाव रखती हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि माया का अंक आठ है और ब्रह्म का नौ 

आठ नौ के बिल्कुल निकट होता है इसका अर्थ हुआ माया ब्रह्म के निकट है  सीता राम की निकटता दर्शाती ये पंक्तियां देखिए 


सीता राम गुणग्राम पुण्यारण्य विहारिणौ। वन्दे विशुद्ध विज्ञानौ कवीश्वर कपीश्वरौ।


उभय बीच श्री सोहइ कैसी। ब्रह्म जीव बिच माया जैसी॥

राम नवें हैं सीता माया हैं लेकिन माया हमारी रक्षा 

करती है वह त्याज्य नहीं है वह पूज्य है लेकिन इसके लिए माया के प्रति हमारा भाव पूजा का हो 

भोग का नहीं 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इन पर हम प्रश्न करें राग को पहचान लेने पर विराग भी आनन्द देता है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चारणी वृत्ति के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें

24.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १००० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  रससिद्ध ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  24 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००० वां सार -संक्षेप

¹ काव्यसम्पन्न


जीवन गतिमान है जब इसकी गति बन्द हो जाती है तो यह जीवन नहीं रहता जब हम किसी मृत शरीर को देखते हैं तो उसको नहीं चाहते 

चाहते तब थे जब उसमें जीवन था 

यह ज्ञान मृत्यु,पीड़ा के समय खुलता है जब समस्याएं विकराल रूप ले लेती हैं तब खुलता है

इसका अर्थ है कि पीड़ा में ही परमेश्वर हमें दर्शन देता है हमारा आधॆय बनता है यह भौतिकवादियों की समझ के बाहर है 

आध्यात्मिकता अद्भुत है जिसके माध्यम से हम भौतिकता की व्याकुलता को स्वयं समाप्त कर सकते हैं और समाप्त भी करते हैं भौतिकता के संकटों को सुलझाने में जब हम सक्षम होते हैं तो अन्य को भी आकर्षित करते हैं 

आध्यात्मिकता हमें बोध कराती है कि कष्ट दुःख क्लेश आदि के लिए हम स्वयं ही उत्तरदायी हैं आध्यात्मिकता के चक्षुओं से सभी प्राणियों में हमें परमात्मा का अंश दिखता है


लोकवत्तु लीला कैवल्यम्।

परमात्मा अपनी लीला करने के लिए इस संसार को तो रचता ही है स्वयं 

संसारी रूप में हम लोगों के बीच भी अवस्थित रहता है हम सभी मनुष्य उस परमात्मशक्ति की विभूति की अनुभूति करते हैं

अवतार अनन्त हैं 

राम कहत चलु, राम कहत चलु, राम कहत चलु भाई रे। 


गोविन्दम् आदिपुरुषं तम अहं भजामि


हम भी अंशांशावतार हैं 

अहं ब्रह्मास्मि 

हमारा चिन्तन  व्यवहार अद्भुत है भारतवर्ष का यह स्वरूप स्वभाव अद्वितीय है 

आचार्य जी ने पंचम वेद महाभारत के द्रोणपर्व के अन्तर्गत आने वाली एक कथा का उल्लेख किया

 जिसमें अर्जुन को लक्ष्य करके एक योद्धा भगदत्‍त का छोड़ा हुआ वैष्णवास्‍त्र (ब्रह्मास्त्र से भी भयानक )सबका विनाश करने वाला था तब भगवान् श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन को ओट में करके स्‍वयं ही अपनी छाती पर उसकी चोट सह ली थी


संपूर्ण लोकों की रक्षा करने के लिए प्रभु बार बार अवतरित होते हैं 

हम भी जब उस परमात्मा के अंश हैं यह अनुभूति कर लेते हैं तो हम निराश हताश नहीं होते  बड़े बड़े कामों का संधान कर लेते हैं 

प्राणिक ऊर्जा की अनुभूति के विस्मृत रहने पर हम व्याकुल होते हैं 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति करें 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया त्रिलोचन जी भैया मनीष जी भैया मोहन जी का नाम क्यों लिया  २६ अप्रैल को किसके आठ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं २८ अप्रैल के लिए आचार्य जी ने क्या परामर्श दिया जानने के लिए सुनें

23.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९९९ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  वशंवद ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  23 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९९९ वां सार -संक्षेप

¹ विनीत

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।



प्रस्तुत है  वशंवद ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  23 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९९९ वां सार -संक्षेप

¹ विनीत


भगवान् के प्रसाद के रूप में उपलब्ध इन प्रेरक सदाचार संप्रेषणों में आनन्द, उत्साह, सेवा, स्वाध्याय, समर्पण, त्याग,संयम, शौर्य प्रमंडित अध्यात्म, भक्ति और भक्ति से उत्पन्न शक्ति, स्वधर्म 


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।


की चर्चा होती है इस चर्चा से लाभान्वित होकर हमें आत्मबोध हो यही इनका उद्देश्य है हम शरीर नहीं हैं हम मन नहीं हैं हम बुद्धि नहीं हैं हम क्या हैं?

उत्तर है 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

इस प्रकार का भाव कुछ क्षणों के लिए  भी आता है तो यह निश्चित रूप से कल्याणकारी है

आत्म को विस्तार देते  इन सदाचार संप्रेषणों से प्राप्त विचारों में हमें संसार की समस्याओं के समाधान प्राप्त होते हैं

भारतीय जीवनशैली में अपनों के कष्टों के निराकरण का प्रयास  सम्मिलित है 

हम अपनी समस्या दूसरे को बता सकते हैं क्योंकि हम आशा करते हैं कि वह इसका हल अवश्य बताएगा कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता पूर्ण तो परमात्मा होता है 


ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥


हम अपूर्ण हैं इसलिए पूर्ण होने के लिए हमें सहयोग सामञ्जस्य चाहिए 


स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।

स्वकर्मनिरतः सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु ॥45॥


मनुष्य वही जो मनुष्य के लिए जिए और मरे

हम मनुष्यत्व की अनुभूति करें अपना विवेक जाग्रत करें 

अपने को पहचानें 

शिथिलता की समीक्षा करें परिस्थितियों को भांपें संगठन के विस्तार के प्रयास करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया त्रिलोचन जी भैया मोहन जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

22.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 22 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९९८ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  रसज्ञ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  22 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९९८ वां सार -संक्षेप

¹ काव्यमर्मज्ञ


ज्ञान से परिपूर्ण ये सदाचार संप्रेषण हम अंशांशावतारियों को प्रेरित , उल्लसित और उत्साहित करते हैं हमारे अपने प्रति आनन्द में वृद्धि करते हैं अर्थात् हमारे अपने कर्मों व्यवहार आचरण के प्रति आनन्द में वृद्धि में सहायक हैं जब हम आनन्दित रहते हैं तो स्वस्थ भी रहते हैं स्वस्थता आध्यात्मिक और भौतिक जगत् दोनों से संबन्धित है 

हम इस अद्भुत संसार में एक कर्तव्य को अनुभव करके रह रहे हैं यदि हम पर -कर्तव्यों की चर्चा कर रहे हैं और अपने कर्तव्य की अनुभूति नहीं कर रहे हैं तो इसका अर्थ है हम अपना समय गंवा रहे हैं हम एक दूसरे को उठाने का प्रयास करें अपनी ज्योति से प्रकाश फैलाएं और जोत से जोत जगाते चलें जागृति का संदेश दें वोट देने के लिए लोगों को प्रेरित करें

राष्ट्रीय अधिवेशन की तैयारी भी करते चलें 

दम्भ से दूर रहें 

हम जितना  चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय करेंगे उतना ही इस संसार के रहस्यों पर से पर्दा उठता जाएगा 


अध्यात्म और व्यवहार में सामञ्जस्य बैठाना हम लोगों का कर्तव्य कर्म है 


अर्जुन भगवान् कृष्ण को अपना सामान्य मित्र मान रहे हैं इसलिए अर्जुन को लाभ नहीं मिल पा रहा अत्यधिक परिचय से हम उसके महत्त्व को जान नहीं पाते अर्जुन व्याकुल रहते हैं युद्ध के लिए मना कर देते हैं तब भगवान् अपना विश्वरूप उन्हें दिखाते हैं और फिर अर्जुन को समझ में आता है कि संसार की आवश्यकता क्या है 



अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।


अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च।।10.20।।


हे गुडाकेश ! सम्पूर्ण प्राणियों का आदि, मध्य तथा अन्त  मैं ही हूँ और प्राणियों के अन्तःकरण में आत्मरूप में भी मैं ही स्थित हूँ।


यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।


तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्।।10.41।।



जो कोई भी विभूतियुक्त, कान्तियुक्त अथवा शक्तियुक्त वस्तु या प्राणी है, उसको तुम मेरे तेज के अंश से ही उत्पन्न जानो।।

जहां जहां भी हम विशेषता देखते हैं तो समझना चाहिए कि वह परमात्मा का ही अंश है स्वरूप है 

इसके अतिरिक्त उन्नाव विद्यालय में कल किसने विश्राम किया भैया अरविन्द जी भैया मनीष जी भैया विभास जी भैया डा मलय जी भैया डा अमित जी भैया विनय अजमानी जी भैया प्रदीप जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया गोपाल विलास क्या है जानने के लिए सुनें

21.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९९७ वां सार -संक्षेप

 सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।

हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ॥171॥


प्रस्तुत है  उद्योगिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  21 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९९७ वां सार -संक्षेप

¹ उद्यमी



कल आचार्य जी ने भगवान् राम के विश्वरूप की चर्चा की थी वह विश्वरूप जिसे मन्दोदरी ने रावण को समझाने की चेष्टा की थी


बिस्वरूप रघुबंस मनि करहु बचन बिस्वासु।

लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु॥ 14॥


इसी प्रकार गीता में भी 


अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं


पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्।


नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं


पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप।।11.16।।


मैं आपकी अनेक भुजाओं,पेट,मुंह और आंखों से युक्त तथा सब ओर से अनन्त रूपों वाला देखता हूँ। हे विश्वरूप! मैं आपके न अन्त को देखता हूँ, न मध्य को और न ही आदि को

भगवान् कृष्ण ने अर्जुन को अपना विश्वरूप दिखाया था


संसार में रूप धारण करने के अनेक कारण होते हैं उन कारणों का प्रभाव अनेक रूपों में व्यक्त होता है संसार में लोभ काम मोह क्रोध मद मत्सर का अद्भुत संयोग है  इनका सामञ्जस्य आश्चर्यजनक होता है हमें इनका सामञ्जस्य करके अपने जीवन को बिताना चाहिए इन विकारों का अच्छा लगना और अधिक अद्भुतता है  बिना हमारे जाने कि अमुक वस्तु विकृत पदार्थों से बनी है वह वस्तु भी हमें अच्छी लगती है और जब जान लेते हैं तो उस पर विपरीत प्रतिक्रिया ही होती है 

मनुष्य जल्दी जान ही तो नहीं पाता 


सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥

तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन॥2॥


वही आपको जान पाता है, जिसे आप जना देते हैं और जानते ही वह आपका ही रूप बन जाता है

 हे प्रभु राम ! 

हे भक्तों के हृदय को शीतलता पहुंचाने वाले चंदन! आपकी ही कृपा से भक्तजन आपको जान पाते हैं


परमज्ञानी संसार में शरीर धारण करके आते हैं अद्भुत कार्यव्यवहार में अपने को लगाए रहते हैं

हमें इस संसार के संसारत्व को तो समझना ही चाहिए अपनी प्राणिक ऊर्जा को भी ठीक प्रकार से विश्लेषित करना चाहिए


शृण्वतां स्वकथा: कृष्ण: पुण्यश्रवण कीर्तन:।

हृदयन्त:स्थो ह्यभद्राणि विधुनोति सुहृत्सताम् ॥


भगवान् श्री कृष्ण, जो हर किसी के हृदय में परमात्मा हैं और सच्चे भक्त के दाता हैं, उस भक्त के हृदय से भौतिक आनंद की इच्छा को साफ करते हैं जिसने उनके संदेशों को सुनने की इच्छा विकसित की है

ऐसे संदेशों को ठीक से सुनने अधिक से अधिक सुनने और जपने पर भावों में रमने पर वे भक्त पुण्यात्मा बन जाते हैं।उनके कल्मष दूर होने लगते हैं भौतिकता से दूर होने पर हम अपने को पहचानने लगते हैं 


तदा रजस-तमो-भावः

काम-लोभदायश च ये

चेता एतैर अनाविद्धं 

स्थितं सत्त्वे प्रसीदति


 आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अध्ययन स्वाध्याय लेखन चिन्तन की ओर हम उन्मुख हों इसके साथ सांसारिकता से भी संतुलन बनाएं

इसके अतिरिक्त किसका स्वर्ण ठग ने ठग लिया था श्रीमद्भागवत हृदय ग्रंथ की चर्चा आचार्य जी ने क्यों की जानने के लिए सुनें

20.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 20 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९९६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  वचनपटु  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार  20 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९९६ वां सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हमारी मेधा परिष्कृत हो जाए  वे हम मानस पुत्रों को विकसित करने के लिए विद्वत्ता की ओर ले जाने का अद्भुत प्रयास करते हैं 

नित्य का यह सदाचार संप्रेषण अध्यात्म, जो मनुष्य के मनुष्यत्व का आधार है,से आवेष्टित रहता है अध्यात्म, जिसकी हमारे ऋषियों ने तपस्यापूर्वक गवेषणा की है,भारतवर्ष के रोम रोम में रमा है किन्तु अनुभव नहीं होता


खोजता वन - वन तिमिर का ब्रह्म पर पर्दा लगाकर।

 ढूँढ़ता है अन्ध मानव ज्योति अपने में छिपाकर l

अध्यात्म में प्रविष्ट होने पर बाधाएं व्यथाएं समस्याएं तिरोहित होने लगती हैं  हम भौतिकता से दूर होने लगते हैं जो इसके अखंड अभ्यासी  हैं वे संसार में रहते हुए भी संसारी भाव से मुक्त रहते हैं और जीवन्मुक्त कहलाते हैं

जीवन्मुक्त अर्थात् जो जीवित दशा में ही आत्मज्ञान प्राप्त कर सांसारिक मायाबंधन से छूट गया हो ।

सांख्य और योग के मत से पुरुष व प्रकृति के बीच विवेक ज्ञान होने से जीवन्मुक्तता प्राप्त होती है अद्भुत पौराणिक चिन्तन और दर्शन से परिपूर्ण इन सदाचार संप्रेषणों से हमें जीवन्मुक्तता का अनुभव होता है

श्रीरामचरित मानस अद्भुत है जो झोपड़ी से लेकर महल तक सबमें प्रवेश कर गई क्योंकि उसमें कथा के साथ साथ तत्त्व भी है और अध्यात्म तो स्थान स्थान पर अनुस्यूत है 

राक्षसों और दैत्यों के क्षमतावान् विश्वकर्मा मय की पुत्री मन्दोदरी 


(अहल्या द्रौपदी तारा सीता मन्दोदरी तथा। पञ्चकन्या: स्मरेतन्नित्यं महापातकनाशम्॥)

रावण को समझा रही है

मन्दोदरी ने भगवान् राम का विश्वरूप वर्णित किया 

बिस्वरूप रघुबंस मनि करहु बचन बिस्वासु।

लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु॥ 14॥


भगवान् राम का विश्वरूप हमें  भी भा जाता है राम राम हैं राम निर्गुण निर्विकार हैं ऐसा भाव तुलसीदास में भी प्रविष्ट हुआ  उनके बचपन में राम जिज्ञासा थे बाद में उन्होंने वैदिक ज्ञान और राम में सामञ्जस्य स्थापित किया




रोम राजि अष्टादस भारा। अस्थि सैल सरिता नस जारा॥

उदर उदधि अधगो जातना। जगमय प्रभु का बहु कलपना॥


अस बिचारि सुनु प्रानपति प्रभु सन बयरु बिहाइ।

प्रीति करहु रघुबीर पद मम अहिवात न जाइ॥ 15(ख)॥


 लेकिन रावण कुछ समझना ही नहीं चाहता


बिहँसा नारि बचन सुनि काना। अहो मोह महिमा बलवाना॥

नारि सुभाउ सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं॥

यह रावण का दुर्भाग्य था कि उसे विदुषी अर्धाङ्गिनी मन्दोदरी की बात समझ में नहीं आई 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने तुलसीदास जी के जीवन से संयुत कुछ बातें बताईं 


आचार्य जी ने अरुण गोविल की चर्चा क्यों की 

The Higgs boson which is popularly known as the "the God Particle" का प्रसंग किस कारण उठा जानने के लिए सुनें

19.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 19 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९९५ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  व्यायत ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार  19 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९९५ वां सार -संक्षेप

1शक्तिशाली


अपनी असीमित शक्तियों की अनुभूति रामत्व है  जो यह अनुभूति  करते हैं वे राम के विग्रह के दर्शन कर अश्रु बहाने लगते हैं यह भाव ही भक्ति का एक स्रोत है प्रतिदिन विभु आत्मा के अंश हम अणु आत्मा  नित्य मिले नए जीवन को उत्साह उमंग से भरने वाली मंगल अनुभूति में प्रवेश को अपना लक्ष्य बनाएं विगत व्यथाओं को ढोने का कोई लाभ नहीं 


हमारी कामनाएं चैन से कब बैठने देतीं 


अतीती संस्मरणों की सरणियों में घुमाती हैं


कथाएं रह गईं जो भी अधूरी श्रावकों के बिन 

वही अब मौन के स्वर में स्वयं ही गुनगुनाती हैं


कभी कांटे कभी उत्फुल्ल फूलों की नुमाइश है 

कभी स्वर्गीय संपोषण कभी दुःखप्रद रिहाइश है


अजब संसार का सरगम न जिसमें ताल द्रुत गति यति 

यहां हर बेसुरे को ही सिखाने की सिफारिश है


अपनी परंपराओं से अपनी भाषा से अपने देश से प्रेम आवश्यक है

हमारे यहां का साहित्य अद्भुत है साहित्य का अर्थ ही है जो मनुष्य का हित करे 

विगत दिवस की सांसारिक समस्याओं को विस्मृत कर आज के प्रभात को आनन्ददायी बनाने के लिए आइये प्रवेश करें आज की वेला में


पुल बन गया है रावण को पता चला 


बाँध्यो बननिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस।

सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीस॥ ५॥


वननिधि, नीरनिधि, जलधि, सिंधु, वारीश, तोयनिधि, कंपति, उदधि, पयोधि, नदीश को क्या वास्तव में  बाँध लिया?



 विदुषी मन्दोदरी समझ गई वह मूर्ख रावण को समझा रही है



नाथ बयरु कीजे ताही सों। बुधि बल सकिअ जीति जाही सों॥

तुम्हहि रघुपतिहि अंतर कैसा। खलु खद्योत दिनकरहि जैसा॥


हे नाथ! वैर उसी के साथ करना चाहिए, जिससे बुद्धि और बल के द्वारा जीता जा सके। आप में और रघुनाथ में वैसा ही अंतर है जैसा जुगनू और सूर्य में




बिस्वरूप रघुबंस मनि करहु बचन बिस्वासु।

लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु॥ १४॥


मेरे इन वचनों पर निश्चित रूप से विश्वास कीजिए कि ये रघुवंश के शिरोमणि राम विश्व रूप हैं अर्थात् यह संपूर्ण विश्व उन्हीं का रूप है

 वेद  जिनके अंग प्रत्यंग में लोकों की कल्पना करते हैं



पद पाताल सीस अज धामा। अपर लोक अँग अँग बिश्रामा॥

भृकुटि बिलास भयंकर काला। नयन दिवाकर कच घन माला॥


पाताल उन भगवान का चरण है, ब्रह्म लोक सिर  अन्य  लोक  जिनके अन्य भिन्न-भिन्न अंगों पर हैं । भयंकर काल जिनका भृकुटि संचालन है,सूर्य नेत्र और बादलों का समूह बाल हैं


ऐसा है रामत्व 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रामेश्वरम की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

18.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 18 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९९४ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  अरुज ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार  18 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९९४ वां सार -संक्षेप

1स्वस्थ


स्वस्थ मन रखते हुए  और संतुष्ट रहने के लिए अधिक से अधिक प्रयासों का संकल्प करते हुए परमात्मा के भाव में विलीन होते हुए  और यह अनुभव करते हुए कि परमात्मा हमारे भीतर विद्यमान है साहित्य के रूप में प्रतिष्ठित इस सदाचार संप्रेषण के तत्त्व को खोजने का हमें प्रयास करना चाहिए हम इसके विचारों को आत्मसात् करने का प्रयास करें हम लोगों के विकास से आनन्दित होने वाले शास्त्रज्ञ आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय देते हैं आनन्द के प्रवाह में बहने हेतु हमें इस प्रकाश का लाभ उठाना चाहिए साहित्य को समझने से हम कभी भटक नहीं सकते 

मानव जीवन वास्तव में विलक्षण और अनुपम है 

समस्याएं सामने आती हैं तो हमें समाधान भी मिलते हैं 

अनगिनत रूप इस जीवन के क्रमवार बताना मुश्किल है

दीपक जैसी यह ज्योत टिमकती जलती रहती तिल तिल है

तिल तिल जलकर प्रकाश देते रहना ही इसका लक्षण है

मानव जीवन सचमुच में अद्भुत अनुपम और विलक्षण है


हम पुरुषों को ऐसा लगता है कि संसार में सार भी है

सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।


 और संसार असार भी है


जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृपु अवसि नरक अधिकारी।


यदक्षरं वेदविदो वदन्ति


विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः।


यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति


तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये।।8.11।।



वेद को जानने वाले विद्वान् जिसे अक्षर कहते हैं  रागों से रहित यत्नशील पुरुषों का जिसमें प्रवेश रहता है जिसकी इच्छा से साधक  जन ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं  उस लक्ष्य को मैं तुम्हें संक्षेप में बताऊंगा


सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च।


मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम्।।8.12।



 मनस् संसारी पुरुष के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तत्त्व है 


मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥


मन ही सभी मनुष्यों के बन्धन और मोक्ष का मुख्य कारण है। विषयों में आसक्त मन बन्धन का कारण है और कामना,संकल्प से रहित मन  मोक्ष  का



आचार्य जी ने परामर्श दिया कि प्रातःकाल हम जल्दी जागें सही खानपान का ध्यान दें


और यह भी परामर्श दिया कि ईशावस्योपनिषद्  ( ईशोपनिषद् )के अठारहों छंद हम अवश्य पढ़ें

जैसे 


अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवा आप्नुवन् पूर्वमर्षत्‌।

तद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत् तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति ll 


और 


पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरं शुद्धमपापविद्धम्‌।

कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान्‌ व्यदधात् शाश्वतीभ्यः समाभ्यः ॥




इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विनय अजमानी जी का नाम क्यों लिया 

स को फ कौन कहता था

भैया मनीष कृष्णा जी का उल्लेख क्यों हुआ 

विद्यालय में पंजीरी बंटने का क्या प्रसंग है जानने के लिए सुनें

17.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी (राम नवमी )विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 17 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९९३ वां सार -संक्षेप

 भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।

भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥



प्रस्तुत है  अरुज् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी (राम नवमी )विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार  17 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९९३ वां सार -संक्षेप

1स्वस्थ



आज रामनवमी है हम रामत्व की अनुभूति करें 


विशेष रूप से अयोध्या में आज राम जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है  २२ जनवरी को भी हम एक बहुत बड़ा आयोजन कर चुके थे और वो इसलिए कि हमें विजय मिली थी उन कालनेमियों पर जो भारत पर शासन करना चाहते हैं लेकिन उनके इरादे नेक नहीं रहते


 आज संसार से हम जितना मुक्त रह सकें उतना ही अच्छा है हम अपना हनुमानत्व विलीन न करें यह हमें आनन्दित करेगा आज के दिन हम अपना मंडूक स्वभाव त्यागें 



जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।

चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥ १९०॥

इस दोहे का एक एक शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है इस दोहे का अर्थ है :


चूंकि राम का जन्म सुख का कारण है अतः 

योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि सभी अनुकूल हो गए,जड़ और चेतन सब हर्ष से परिपूर्ण हो गए।

अद्भुत साधना थी संत तुलसीदास जी की 

बहुत ही विषम परिस्थितियों में तुलसीदास जी का लेखन चल रहा है अकबर के शासन में हाहाकार मचा है और तब वे भगवान् राम के नाम का ध्यान करते हैं और उसका परिणाम श्रीरामचरित मानस के रूप में हमारे सामने है जिसके अखंड पाठ चलते रहते हैं




नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥

मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥


 चैत्र का पवित्र माह और नवमी तिथि । शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित मुहूर्त । दोपहर का समय,न बहुत सर्दी  न बहुत गरमी । वह अत्यन्त पवित्र समय सारे लोकों को शांति देने वाला था।



सीतल मंद सुरभि बह बाऊ। हरषित सुर संतन मन चाऊ॥

बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा। स्रवहिं सकल सरिताऽमृतधारा॥



शीतल, मंद और सुगंधित सुरभि बह रही थी । देवता हर्षित थे,संतों के मन में  चाव था। वन कुसुमित थे, पर्वतों के समूह मणियों से जगमगा रहे थे और सारी नदियों से अमृत की धारा बह रही थी।



जब ब्रह्मा ने भगवान राम के जन्म का अवसर जाना तब वे और अन्य सारे देवता विमान सजाकर चले। पावन आकाश देवताओं से भर गया। गंधर्वों के दल भी गुणगान करने लगे।



हम लोग सौभाग्यशाली हैं कि जहां हमारा जन्म हुआ है वह अद्भुत स्थान है आवश्यकता है उसकी अनुभूति की 

राम का नाम अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है राम के नाम के अद्भुत चमत्कार हैं व्रतराज पुस्तक में इसका वर्णन है राम नाम का लेखन बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है 

इस व्रत को प्रायः लोग रामनवमी से प्रारम्भ करते हैं कोई एक लाख बार लिखेगा कोई एक कोटि बार  फिर उसका षोडशोपचार पूजन कर पुस्तिका सुरक्षित कर लेते हैं 

श्री देवादास जी ने रामनाम बैंक खोल रखा था 



चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्।

एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥


(ब्रह्म के अवतार) श्री राम जी का चरित्र सौ कोटि विस्तार वाला है । राम नाम एक एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मंदोदरी का नाम क्यों लिया भैया पंकज जी भैया अरविन्द जी आचार्य श्री जागेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव जी शिक्षक श्री सिद्धनाथ मिश्र जी का उल्लेख क्यों हुआ किसे चोट लगी आचार्य जी ने किस उपनिषद् की आज चर्चा की जानने के लिए सु

16.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 16 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *९९२ वां* सार -संक्षेप

 कर्ममय जीवन जगत का मूल है


द्वीप को तट समझ लेना भूल है

गीत गाना है सदा विश्वास के

स्वप्न बुनने हैं प्रगति के, आस के ,

देहली दीपक धरा का न्याय है

कर्म-कुण्ठा पतन का पर्याय है

स्वर्ण शोभा हो भले पर

अंकुरण के लिये व्याकुल बस धरा की धूल है।


प्रस्तुत है अरिन्दम ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 16 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
  *९९२ वां* सार -संक्षेप
1 शत्रुओं का नाश करने वाला

हनुमान जी के प्रसाद के रूप में प्राप्त इन सदाचार संप्रेषणों का नैरन्तर्य अध्यात्म की दृष्टि से भगवान् का लीला विलास है और व्यावहारिक दृष्टि से संसार को चैतन्य बनाने का,सनातन धर्मियों, जो जानते हैं कि वे स्वयं जीवित नहीं भी रहते तो भी उनकी परम्परा जीवित रहती है, को जाग्रत करने का ,हम एककरों में समाजोन्मुखता प्रवेश कराने का, हमें एकांगी चिन्तन से क्षुद्र कुत्सित विचारों से, स्वार्थ से बचाने का, हम अपने बन्द झरोखे खोल लें यह जताने का, हमें सत्पथ का अनुगामी बनाने का एक प्रयास है

ज्योतियों को विशाल ज्वाला जिसका प्रकाश सूर्य का प्रतिरूप है बनाने में सक्षम इन संप्रेषणों के विचारों को हम यदि क्रिया में परिवर्तित कर देते हैं तो वास्तव में ये संप्रेषण फलप्रद हो जाएंगे
विशाल ज्वाला प्रकाश तो देती ही है गंदगी भी साफ कर देती है साथ ही ताप से सचेत करती है ताप की ऊर्जा से जाग्रत भी करती है
आचार्य जी की हम मानसपुत्रों, जिनपर आचार्य जी का बहुत ध्यान रहता है,से अपेक्षा है कि हमारे भाव आचार्य जी के मनोकूल हो जाएं और इसमें कोई बुराई नहीं है क्योंकि ये भाव दुर्भाव नहीं हैं
आचार्य जी आकलन करते रहते हैं कि हम कितने समाजोन्मुखी प्रयास कर रहे हैं राष्ट्र हित हेतु कितने प्रयास कर रहे हैं इसका भी आकलन करते हैं कि इन प्रयासों को एक साथ एकत्रित करने हेतु कितने प्रवास हो रहे हैं
हमें सवर्ण अवर्ण के चक्कर में नहीं पड़ना है
हम कहते हैं हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जब कि सिख हिन्दू ही हैं जैन बौद्ध अल्पसंख्यक बताए जा रहे हैं जब कि ऐसा नहीं होना चाहिए
इस पर विचार चिन्तन लेखन आवश्यक है
हमें उपेक्षित पड़े गांवों को संवारना है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हम लोगों के सरौंहां गांव का नाम क्यों लिया भैया सौरभ द्विवेदी जी का नाम क्यों लिया श्री हरीश वर्मा जी का साक्षात्कार किसने लिया जानने के लिए सुनें

15.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 15 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९९१ वां सार -संक्षेप

 अभी फिर से हमारा त्याग संसृति का शिखर होगा

 हमारी साधना आँचल प्रकृति का फिर सँवारेगी

 करेगी आरती धरती हमारे भाल की फिर से

 अभी ये ऋद्धियाँ फिर आर्त हो हमको पुकारेंगी।


प्रस्तुत है अरिदमन ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार  15 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९९१ वां सार -संक्षेप

1 शत्रुओं का नाश करने वाला


हमें हनुमान जी के प्रसाद के रूप में मिले इन सदाचार संप्रेषणों की उपेक्षा नहीं करनी है क्योंकि इनके विचार हमें उत्थित और उत्साहित करते हैं हमें भौतिक स्तर से ऊपर उठाते हैं हमें यह बताते हैं कि हमारा जन्म अनेक असंतुलनों को ठीक करने के लिए हुआ है आचार्य जी के आसपास सांसारिक असंबद्धताएं असुविधाएं भरपूर होने के बाद भी आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय हमें दे रहे हैं हमें इसका महत्त्व समझना चाहिए

भावना जब कामना में डूबने लगती है तो वासना बहुत कष्ट पहुंचाती है जिस प्रकार इस वासना ने शान्तनु को घेर लिया था लेकिन जो संयमी होता है वह अपनी सांसारिक इच्छाओं को दमित कर देता है जिस प्रकार देवव्रत ने अपनी इच्छाओं को दमित किया 

शान्तनु ने दूसरा विवाह निषाद कन्या सत्यवती से किया था। इस विवाह को कराने के लिए ही देवव्रत ने राजगद्दी पर न बैठने और आजीवन कुँवारा रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की जिसके कारण उनका नाम भीष्म पड़ा

इसका परिणाम हमने देखा  फिर द्वापर समाप्त हुआ कलियुग प्रारम्भ हुआ जन्मेजय का नाग -यज्ञ शमित किया गया

और घटनाएं हुईं 

हमने अपने कर्म को अध्यात्म में बहुत अधिक विलीन कर दिया संसार में मतलब नहीं रखा जबकि हमें सांसारिकता और आध्यात्मिकता में संतुलन करना था दुष्परिणाम सामने आए लेकिन हमारी सांस्कृतिक ज्योति बुझी नहीं मन्द जरूर पड़ गई

उस समय से लेकर आज तक भय भ्रम उनके मन में उत्पन्न होते रहे हैं जो 

जो सम्पन्न रहे हैं प्रजातान्त्रिक शासन प्रजा को प्रसन्न रखना चाहता है चाहे मां धरती की विभूति भी त्यागनी पड़े  प्रजा जब बोझ बन जाती है तो ढोनी तो  पड़ती ही है  लेकिन  उनके दिलों पर क्या बीतती है जो अध्यात्म की भूमि पर रहते हैं और संसार को ढोने का काम करते हैं हमें इस पर विचार करना चाहिए इस सरकार को भी हम कोस रहे हैं कि यह सवर्णों पर ध्यान नहीं दे रही जबकि हमें कोसना नहीं चाहिए हम सवर्ण अवर्ण नहीं हैं हम भारत माता के पुत्र हैं 

यह सरकार ईमानदारी से काम कर रही है सन् २००४ के आसपास एक घटना हुई जब मंडल कमीशन लाद दिया गया था और अनेक जवान जवान लोग जल गए थे उस घटना पर लिखी आचार्य जी की' विश्वास ' कविता प्रस्तुत है 



विश्वास 


जवानी सत्य का संधान करने को उठी थी पर

 समय के बदचलन व्यवहार ने बर्बाद कर डाला

 सलीबें ढो रहा बेबस कसकती पीठ पर 'संयम' 

जड़ा है “भावना” के होंठ पर “गुजरात का ताला | 


जवानी जल रही जिन्दा सड़क पर राजधानी के

 जरा की भोग लिप्सा कर रही अभिचार का उपक्रम

 कलम भी हो गयी आदी बहारों को रिझाने की

 सदा की आँधियाँ लहरा रहीं बस भोग का परचम | 


हमारी बेबसी का बोझ ढोता यह हमारा तन 

कि जो अब खो गया बाजीगरों के सब्जबागों में 

हमारे पर नशा इतना चढ़ाया जा चुका शायद

 कि हम मदहोश होकर झूमते हैं बैठ नागों में। 


हमारे गीत अब परछाइयाँ 'उनकी' बने फिरते 

'गगन के मीत' अब 'पाताल' का 'दस्तर' सजाते हैं 

हवायें हो गयीं रोगी पचाकर भोग की साँसें

 हमारे 'वज्र ' “उनके” द्वार पर नौबत बजाते हैं।


मनीषा राजरोगी हो गयी उन्मुक्त प्राची की

 धरा का शौर्य पौरुष बेचकर निश्चित सोया है 

कंटीली नागफनियों के उगे हर पोर पर कोपल

 जहर वाली कुदालों ने चमन में बीज बोया है। 


पृथा का पुत्र कब तक और ढोयेगा युधिष्ठिर को

 अँगूठे और कब तक स्वार्थी अभियान माँगेंगे

 छिपायेगी पृथा कब तक घिनौना प्यार सूरज का

 व्यथा के साथ जब जब कर्ण के अभिमान जागेंगे। 


सलोनी नींद में कब तक रहेगा इन्द्र का वैभव

 पलीते जल उठे हैं हाथ में बेबस हवाओं के

 सुलगते जा रहे अरमान निश्चय कर चुके हैं अब

 कि, कुछ भी हो शवों को फूँक देंगे हम दबावों के । 


हमें अभिमान हैं हम सर्प को गोपय पिलाते हैं 

हमें यह ज्ञान है कमजोर दुश्मन क्रूर होता है।

 जम्हाई ले रहा भी सिंह गीदड़ हो नहीं सकता

 हमें अनुमान है भोगी, छली भरपूर होता है।


हमें तुमसे न किंचित भय तुम्हें हम जानते हैं पर 

सँंपोले जन चुकी नागिन फुफकती दूर बैठी है

 भले हम आस्तीनें झाड़ कर निश्चित हो जायें

 हमारी हर 'कली' उसके लिये मजबूर बैठी है। 


हमारा त्याग वैभव की कमी है यह न समझो तुम 

अहिंसा और कायर रूप का अन्तर समझते हैं

 हमें विश्वास है संसार भंगुर है घड़े जैसा

 इसी से हम मरण के देव से हठकर उलझते हैं। 


अभी फिर से हमारा त्याग संसृति का शिखर होगा

 हमारी साधना आँचल प्रकृति का फिर सँवारेगी

 करेगी आरती धरती हमारे भाल की फिर से

 अभी ये ऋद्धियाँ फिर आर्त हो हमको पुकारेंगी।

🙏

🙏

Domestic

14.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 14 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९९० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है अरिघ्न ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार  14 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९९० वां सार -संक्षेप

1 शत्रुओं का नाश करने वाला


प्रकृति के विकास का चरण महातत्त्व है इस महातत्त्व में बुद्धि

 (जो निश्चय निर्धारण करती है) भी है( बुद्धि के मौलिक गुण हैं धर्म ज्ञान वैराग्य ऐश्वर्य) और अहम् भी है अहम् के दो भेद हैं और दोनों में भाव है  दोनों का प्रभाव है रूप कोई नहीं सांसारिक अहम्  जो त्याज्य है और तात्त्विक अहम् जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है 


महाभूतान्यहङ्कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च।


इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचराः।।13.6।।

इस महातत्त्व में मन भी है जो अद्भुत है चंचल भी है और इसी मन का निग्रह भी किया जाता है अर्थात् मनोनिग्रह 


 और प्रकृति परमात्मा की अभिव्यक्ति है परमात्मा सब कुछ है


सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्।


असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च।।13.15।।



वह सारी इन्द्रियों के कार्यों  से प्रकाशित होने वाला, परन्तु  समस्त इन्द्रियों से रहित है आसक्ति रहित है गुण रहित है फिर भी सारे भावमय संसार का भरण पोषण करता है सारे गुणों का भोक्ता है


बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥

आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥


वह  बिना पैर के चलता है, बिना कान के सुनता है, बिना हाथ के बहुत से काम करता है, बिना आनन सारे  रसों का आनंद लेता है और बिना वाणी के अतियोग्य वक्ता है।

ऐसा है परमात्मा और हम उसके प्रतिनिधि हैं

हम मनुष्य हैं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए यह मनुष्यत्व की अनुभूति ही इन सदाचार वेलाओं का मूलतत्त्व है 

भाव, विचार और क्रिया का भारतीय जीवन दर्शन में अत्यन्त गहन चिन्तन किया गया है इस त्रिवेणी का स्थूल और सूक्ष्म स्वरूप दोनों है

भारतीय जीवन दर्शन की परिकल्पना है कि हम आते हैं जाते हैं और फिर आते हैं इस परिकल्पना के आनन्द को जब हम प्राप्त करने लगते हैं तो हम कह सकते हैं कि हम सदाचारी जीवन के मूल्यों को समझने लगे हैं

 आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि पाण्डित्य को क्या विकसित करती है 

हमारा सनातनत्व अद्भुत है हमारे यहां योग और आयुर्वेद प्राणिक ऊर्जा का एक सांसारिक अनुसंधान है यह अत्यन्त लाभकारी है 

सर्वत्र फैले हम युगभारती के सदस्यों को अपनी शक्ति और बुद्धि को जाग्रत करने की आवश्यकता है मोर्चे बहुत से है हमें किसी न किसी मोर्चे पर डटकर खड़े होना है  जैसे हम बाबा रामदेव और सुप्रीम कोर्ट वाले विषय में अपना पक्ष रखें 

इसके अतिरिक्त वस्तु के अन्वेषण की कौन सी दो परम्पराएं थीं कल अपने गांव सरौंहां में क्या कार्यक्रम था भैया वीरेन्द्र जी भैया विवेक जी भैया दीपक शर्मा जी भैया मोहन जी भैया अनुराग सिंह जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया श्री दिलीप मृदुल जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

13.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 13 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९८९ वां सार -संक्षेप

 अष्टवर्षे चतुर्वेदी द्वादशे सर्वशास्त्रवित्। षोडशे कृतवान् भाष्यं द्वात्रिंशे मुनिरभ्यगात्॥


प्रस्तुत है अरिकर्षण ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार  13 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९८९ वां सार -संक्षेप

1 शत्रुओं को पराभूत करने वाला


शत्रुओं को पराभूत करने के लिए हमें सदैव जाग्रत रहना चाहिए 

संसार हृत्क:श्रुतिजात्म बोधः

हम पर्यावरण और परिवेश पर भी नजर रखें 

हम अंशांशावतारियों में आत्मचिन्तन के साथ आत्मविश्वास अत्यन्त आवश्यक है

हम जवान शिष्य शरीरी में अवस्थित होने का प्रयास करें मन के विजेता बनें हमें मनोज न जीतें तब हम निराश हताश नहीं होंगे हमारे अन्दर का उत्साह बढ़ेगा  हम ऐसे तपस्वी बनें जो अपने लिए न जी कर अपनों के लिए जिएं 


अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ए दिल ज़माने के लिए...फिल्म ' बादल '


हम ऐसे कार्य करें जिससे हमारे देश का गौरव क्षितिज में छा जाए विश्वविजयी पताका फिर से व्योम में लहरा जाए 

इन सदाचार संप्रेषणों की अभिव्यक्तियां अद्भुत हैं संप्रेषण रूपी जागरण का उद्घोष हमारे रोम रोम में प्रविष्ट हो जाए इसका आचार्य जी प्रयास करते हैं 

आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय हमारे हित के लिए दे रहे हैं हमें इसका महत्त्व समझना चाहिए 


को वा गुरुर्यो हि हितोपदेष्टा

शिष्यस्तु को यो गुरु भक्त एव ।

को दीर्घ रोगो भव एव साधो

किमौषधिं तस्य विचार एव ॥ ७॥

भारत का वातावरण अत्यन्त शुद्ध मंगलमय है 


आचार्य जी ने वातावरण का अर्थ स्पष्ट किया वातावरण अर्थात् वात का आवरण 

वात पृथ्वी और आकाश 

के बीच का संयोजक है 


इसी तरह पर्यावरण अर्थात् परि +आवरण 

और परिवेश शब्द हैं इन सबसे प्रकृति बनती है जो हमारे भीतर बैठी है

जवानी की अनुभूति बहुत बड़ी शक्ति है 

अरे ओ नौजवानों उठ पड़ो परखो जवानी को 

शिवा का शौर्य गुरु की तेग बन्दा की रवानी को 

महाराणा बनो युग के करो हुंकार जी भर के...


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा अशोक तिवारी जी, मुंशी प्रेमचन्द्र का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

12.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 12 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ९८८ वां सार -संक्षेप

 हमारे देश का गौरव क्षितिज में छा उठे फिर से

पताका विश्वविजयी व्योम में लहरा उठे फिर से | |१३ | ।


प्रस्तुत है विशेषित ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार  12 अप्रैल 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ९८८ वां सार -संक्षेप

1 विलक्षण


हम विलक्षण बनें , षड्रिपु हमसे दूर रहें, कर्म करते चलें, इन सदाचारमय विचारों को सुनकर गुनकर हम इन्हें व्यवहार -जगत में उतारते चलें, हम पं दीनदयाल जी के अधूरे सपनों को पूरा करें , पं दीनदयाल जी के आदर्शों का अनुभव करते हुए उनका समाज में हम प्रयोग करें इसके लिए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं हमें इसकी महत्ता समझनी चाहिए  समय के सदुपयोग का यह एक अच्छा उपाय है हमें उत्साहित करने वाले,परमात्मतत्व की अनुभूति कराने वाले,पीड़ाओं में समाधान सुझाने वाले,गौमाता,गीता,गंगा, गायत्री का मान बढ़ाने वाले,हमारे शौर्य पराक्रम को उत्थित कराने वाले, सांसारिक प्रपंचों से हमें परिमार्जित करने वाले ये  सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं

इनके माध्यम से आचार्य जी बताते हैं कि हम जड़त्व का कितना उपयोग करें चैतन्य के प्रति कितने आग्रही बनें,सद्गुण -विकृति से बचते हुए सद्गुणों को ग्रहण करें और अन्य को, भावी पीढ़ी को  भी प्रेरित करें जाग्रत करें 

यही भारतीय संस्कृति है

यह सिलसिला चलता रहना चाहिए जो वेदों से लेकर आज तक के साहित्य में संयुत है हमारा साहित्य प्रचुर मात्रा में है लेकिन अस्ताचल देशों के कारण हम भ्रमित हो गए 

अब समय बदला है भ्रम के कुछ बादल छंटने लगे हैं 

 शरीरों में शरीरी की जहां अनुभूति है रहती 

वहां शुभगान गाती प्राण की भागीरथी बहती

मनस् में शौर्यमय शृङ्गार का उत्सव उमगता है 

मरणधर्मा जगत में अमर स्वर सौरभ दमकता है

(उमगना :उमंग से भरना)

हमारे बीच में ही ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनसे हमें प्रेरणा मिल सकती है जैसे भैया संतोष मिश्र जी


हम सब जवान हैं हम अपनी जवानी की अनुभूति करें उसका प्रयोग करें राजनैतिक कर्तव्य पूर्ण करें धार्मिक कर्तव्यों को पूर्ण करें 

धार्मिक जीवन का प्रकटीकरण करें हम भीड़ नहीं हैं  हमारा व्यक्तित्व अच्छा बने व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर की ऊर्जा की अनुभूति है 

सनातन धर्म के प्रति आग्रही बनें Society की मांग जवानी के लक्षण नहीं हैं जवानी साधना तप त्याग है हमारी जवानी सोनी नहीं चाहिए वह जगे भी औरों को जगाए भी 


जवानी जुल्म का ज्वालामुखी बढ़कर बुझाती है

फड़कते क्रान्ति के नव छन्‍द युग-कवि को सुझाती है

जवानी दीप्तिमय सन्देश की अद्भुत किरण सी है

सनातन पावनी गंगा बसन्‍ती आभरण सी है

जवानी के अनोखे स्वप्न जब संकल्प बन जाते

फड़कते हैं सबल भुजदण्ड उन्‍नत भाल तन जाते

जवानी को न सुख की नींद जीवन भर सुहाती है

जकड़ कर मुट्टियों में वज़ युग-जड़ता ढहाती है | ।९। |


जवानी केसरी बाना लपकती ज्वाल जौहर की

भवानी की भयद भयकार वह हुंकार हर हर की

जवानी का उमड़ता जोश जय का घोष होता है

चमकती चंचला सी खड़्ग वाला रोष होता है


जवानी विन्ध्य के तल में कभी सह्याद्रि पर होती

विजय-पथ की शिलायें बन कभी वह हो सिन्धु पर सोती है|

 जवानी के सभी साधन भुजाओं में बसे रहते 

शरासन पर चढ़े या फिर सजग तूणीर में रहते | ।१० |


 ज़वानी शील के सम्मान की सीमा समझती है

 प्रपंचों की शबल चालें समझ तत्क्षण गरजती हैं

 जवानी ने जवानी दे बुढ़ापे को बचाया है 

 लुटा कर स्वयं का मधु गरल अन्तर में पचाया है 

 जवानी की धरोहर को जवानी ही सँजोती है

 धरा में क्रान्ति की तकदीर अपने हाथ बोती है

जवानी को जवानी ने न जब-जब जान पाया है | 

तभी गहरा अँधेरा व्योम में भरपूर छाया है| ।११। | |


जवानी जब जवानी को समय पर जान लेती है

 स्वयं के शत्रु को जब भी तुरत पहचान लेती है

धरा का तब न घुट-घुट कर सहज सौभाग्य रोता है

 

 किलकता दूध” “अनुभव” शान्ति की सुख नींद सोता है


 तभी इतिहास गौरव से भरा अध्याय लिखता है 

विहँसती है तभी धरती गगन में तोष दिखता है

विधाता | कुछ करो ऐसा जगे जीवन जवानी का

 प्रणव के मंत्र गूँजें और हो अर्चन भवानी का । ।१२। |



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्रद्धेय बैरिस्टर साहब का नाम क्यों लिया युगभारती का संकल्प क्या है जानने के लिए सुनें

11.4.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 11 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *९८७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है परिपन्थिन् -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर )तदनुसार 11 अप्रैल 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

  *९८७ वां* सार -संक्षेप
1 विघ्न डालने वाले के शत्रु

 विघ्न डालने वाले दुष्ट आज भी हैं और उस समय भी थे जब तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस रची थी बहुत भयानक समय था
ऐसा ही भयानक वातावरण रावण के कारण था
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥
लेकिन हमें विभीषण की तरह दुविधा में नहीं रहना है हमें विभीषण नहीं हनुमान बनना है
यह हनुमान जी की कृपा है कि यह सदाचार वेला सतत चल रही है सातत्य हमारे सनातन धर्म की एक बहुत बड़ी निधि है हम कहते हैं कि हम मरते नहीं हैं केवल शरीर बदलते हैं यह सतत यात्रा संसार का धर्म और जीवन का मर्म है
कबीरदास कहते हैं
चलती को गाड़ी कहै नगद माल को खोया
रंगी को नारंगी कहै देख कबीरा रोया
(इसी को फिल्म जागते रहो के गाने जिंदगी खाब है में इस तरह कहा गया है
रंगी को नारंगी कहें बने दूध को खोया
चलती को गाड़ी कहें देख कबीरा रोया)

गाड़ी कहकर कबीरदास जी जमीन में गड़ी हुई वस्तु की ओर संकेत कर रहे हैं जो कभी हिल नही सकती और उसमें बैठकर हम चलते हैं,
रंगी हुई चीज को दुनिया नारंगी कहती है और जब दूध कुछ बन जाता है तो उसे खोया (spoiled या बिगड़ा हुआ )
कितना विरोधाभास है इनमें
कबीर का यह अद्भुत चिन्तन है
साहित्य में कबीर, दादू, तुलसी, सूरदास आदि अनेक कवि हैं
इसी तरह अनेक तपस्वी हुए हैं जैसे भगीरथ ने गंगा के प्रवाह को सदा के लिए भारतवर्ष में प्रवाहित कर दिया इससे संयुत एक अर्थवती कथा है अपना पूरा साहित्य ही कथामय है कथा जीवन का तत्त्व है हमारे यहां की अधिकतर कथाएं व्यथाओं पर विजय प्राप्त कर सुख शान्ति आनन्द का संदेश देती हैं
अमरत्व की अनुभूति कराने वाला भारतीय जीवनदर्शनमय साहित्य आशामय विश्वासमय है
शरीरों में शरीरी की जहां अनुभूति है रहती
वहां शुभगान गाती प्राण की भागीरथी बहती

प्राणिक ऊर्जा लिए शरीरी हमारे भीतर बैठा है जहां मन प्रफ़ुल्लित रहते हैं वहां संकट में समाधान दिख जाते हैं निराश मन के कारण समाधान भी संकट की आहट सुनाते हैं
संकट में समाधान खोजने का हम व्रत धारण करें
मन में किसी भी प्रकार का भय भ्रम न रखें

सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए। बिपुल बिसद निगमागम गाए॥
हरि अवतार हेतु जेहि होई। इदमित्थं कहि जाइ न सोई l

तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही। समुझि परइ जस कारन मोही॥
जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥

तब तब प्रभु विविध शरीर धारण करते हैं और हमें दुष्टों से मुक्ति दिलाते हैं
हमें भी रामत्व का अनुभव करना है और उसे प्रकट भी करना है
हम अपने कर्मों की मोमबत्तियां जलाएं जलना मोमबत्ती का काम है देशहित के हर कार्य में हमें भाग लेना है
जन जन को जाग्रत करने की आवश्यकता है
हम आगामी चुनाव हेतु भी सक्रिय हों

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किस मेले की चर्चा की भैया संतोष मिश्र जी का AI से संबन्धित क्या प्रसंग है पत्रकार प्रदीप सिंह की चर्चा क्यों हुई भैया आलोक सांवल जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें