28.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल नवमी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 28 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रवीर ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल नवमी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 28 -02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  579वां सार -संक्षेप

1 =शौर्य- सम्पन्न


भ्रम विचलन मनुष्य की समस्याओं को और बढ़ा  देता है लेकिन यदि हम अदृश्य शक्ति परमात्मा पर विश्वास करें तो असंभव दिखने वाले कार्य भी पूर्ण हो जाते हैं

जब हम अपनों के लिये कुछ अच्छे कृत्य करेंगे तो हमें यशस्विता मिलेगी जिससे हमें

 आनन्द मिलेगा

हमारा लक्ष्य भी यही है

राष्ट्र निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष


नाना जी कहते थे मैं अपने लिये नहीं हूं अपनों के लिये हूं


अपने वे सब हैं जो राष्ट्र भक्त हैं

समस्याएं आती हैं  फिर भी परमार्थ की अनुभूति  के लिये हम कृतसंकल्प हों तो वास्तव में यह यशस्विता ही देगा


स्व का पर में विलीन होना परा अवस्था है




आइये प्रवेश करते हैं उत्तर कांड में



लछिमन सब मातन्ह मिलि हरषे आसिष पाइ।

कैकइ कहँ पुनि पुनि मिले मन कर छोभु न जाइ॥6 ख॥



सासुन्ह सबनि मिली बैदेही । चरनन्हि लाग हरषु अति तेही॥

देहिं असीस बूझि कुसलाता। होइ अचल तुम्हार अहिवाता॥1॥



तुलसीदास जी ने भगवान् राम का आदर्श परिवार प्रस्तुत किया है क्योंकि उस समय अकबर के काल में विग्रह दिख रहा था और हम लोग भी विग्रह की चपेट में आ गये थे जिससे हम लोग इस हाल में आ गये

हमें अंधकार की परवाह नहीं करनी है 

हम लोग प्रकाश की किरण हैं तो हम अंधकार से  लड़ने के तैयार रहें


परिवार और बाजार में अन्तर है परिवार के फूलदान को सजाए रहिये मानस में यही बताया गया है

आचार्य जी ने मानस के बहुत मार्मिक प्रसंग बताये

इसके अतिरिक्त आचार्य जी

ने

भैया शान्तनु अग्रहरि जी, भैया भुवनेश प्रताप सिंह जी द्वारा लिखित

Win Over Everyday Battles The Gita Way की चर्चा की

भैया संजय सिंह आजाद जी का नाम कैसे आया जानने के लिये सुनें

27.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल अष्टमी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 27 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 ये जीवन भावना सुविचार कर्मों का समन्वय है, 

चरित्रों का चतुर चित्रण रहस्यों का अनन्वय है, 

ये जीवन सत्य का संधान मिथ्या की कहानी है, 

सृजन के आदि अध्वर की अनोखी सी निशानी है।



प्रस्तुत है  निष्णात आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 27 -02- 2023

(श्रद्धेय नाना जी देशमुख का निर्वाण दिवस )

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  578 वां सार -संक्षेप



स्थान :चित्रकूट


रामकथा के माध्यम से आचार्य जी यह बताना चाहते हैं कि हम अपना चिन्तन पक्ष विचार पक्ष विकसित कर जो व्यवहार करेंगे वो हमें संतुष्ट तो करेगा ही आस पास का वातावरण भी आनन्दमय बनायेगा


कहीं कुछ भी अनिष्ट घटित होता रहा और हम चुपचाप घर पर बैठे रहें  तो ऐसी कठोरता हमारे अन्दर नहीं है हम लोग तो सद्विचार ग्रहण कर समाजोन्मुखी जीवन जीने के लिये उत्साहित उद्यत रहते हैं

समाज के अन्दर साधना करने की रुचि जाग्रत हो यह आत्मानुभूति करके हम इसी आत्मानुभूति को बांटने के लिये उद्यत रहते हैं यही शिक्षा है यही संस्कार है

रामराज्य की भी यही शिक्षा है


तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही। समुझि परइ जस कारन मोही॥

जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥


करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥


आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि

विप्र चिन्तक विचारक तपस्वी है गाय सामान्य पशु नहीं है गाय तो संसार की संपन्नता का आधार है  धरती और देवता भी हमेशा देने के लिये तैयार रहते हैं


और जब विप्र गाय देवता और धरती को कष्ट मिलता है तो विविध शरीर धारण कर प्रभु अवतरित होते हैं और सज्जनों के कष्टों का निवारण करते हैं


विविध शरीरों में हम सब है यही रामत्व है


असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु।

जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु॥ 121॥


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥


अपने रामत्व की समीक्षा भी करते रहें

रामकथा का तत्वबोध  यही है कि हम अंश अंशी जैसा व्यवहार करें

असुर सर्वत्र दिखाई देते हैं

जो स्वार्थी होते हैं वे परेशान रहते हैं

त्याग तप परमार्थ ही रामत्व है

आचार्य जी ने धनुष यज्ञ के प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताया कि गुरु की आज्ञा मानना भी रामत्व है

26.2.23

¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल सप्तमी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 26 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।

किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥ 30(ख)॥


प्रस्तुत है  निष्ण ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल सप्तमी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 26 -02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  577 वां सार -संक्षेप

1 = चतुर, विशेषज्ञ


स्थान :चित्रकूट

(यहां प्रभु राम लम्बे समय तक ऋषियों के बीच में रहे हैं और यहां के सारे संकटों को दूर किया है )

श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।

वह  गूढ़ तत्व राम तत्व है जिसे तुलसीदास जी ने व्यक्त किया है 

जो प्राणी परमात्म अंश की अनुभूति करते हैं वे सारे के सारे एक आदर्श जीवन की व्याख्या 'रामकथा' से अनुप्राणित हैं जो प्राणी अपने को मात्र जीव मानते हैं उनकी बात अलग है

ये भारतवर्ष को मात्र एक भूमि का   टुकड़ा मानते हैं वे कहते हैं यह तो 

भोगभूमि है

जो भावभूमि वाले हैं उनके लिये भारत मातृभूमि धर्मभूमि है 


तुलसी द्वारा कराया गया परिवार बोध अद्वितीय है स्थान स्थान पर ऐसे प्रसंग हैं जहां इस परिवार के व्यवहारिक स्वरूप को उन्होंने चित्रित किया है

जब कि स्वयं तुलसी का परिवार कभी रहा नहीं

आइये चलते हैं  शक्ति जाग्रत करने के लिये आत्मकल्याण के लिये राम तत्व की अनुभूति करते हुए उत्तर कांड में

महासंकट रावण को समाप्त कर पुष्पक विमान से प्रभु राम अयोध्या आ गये हैं

प्रभु राम मर्यादा पुरुषोत्तम आदर्श पुत्र आदर्श भाई आदर्श राजा भी हैं और हवि से जन्मे परमात्मा भी हैं 


धाइ धरे गुर चरन सरोरुह। अनुज सहित अति पुलक तनोरुह॥

भेंटि कुसल बूझी मुनिराया। हमरें कुसल तुम्हारिहिं दाया

॥2॥


गुरु वशिष्ठजी ने  उन्हें गले लगाकर कुशलक्षेम पूछा 

प्रभु राम ने कहा- आपकी दया में ही हमारी कुशलता है


(आचार्य जी ने उर्मिला का 

पातिव्रत्य विश्वास संबन्धी प्रसंग भी बताया)

अब भगवान् राम का राजतिलक होने जा रहा है


आचार्य जी ने यह भी बताया कि कैकेयी ने सामान्य जीवन किस प्रकार प्रारम्भ किया है

रामराज्य को तैयार करने में प्रभु राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न कैकेयी कौशल्या सुमित्रा सीता मांडवी उर्मिला श्रुतिकीर्ति  हनुमान जी आदि का सहयोग रहा है


एक एक व्यक्ति स्वार्थ से दूर तपोनिष्ठ रहा है

25.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल षष्ठी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 25 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  सकरुण ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल षष्ठी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 25 -02- 2023

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  576 वां सार -संक्षेप

1 = दयालु


आजकल हम लोग रामचरित मानस के उत्तरकांड में प्रविष्ट हैं यह उत्तरकांड अध्यात्म रामायण और वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड से भिन्न है

गोस्वामी तुलसीदास ने उत्तरकांड में तत्कालीन परिस्थितियों को सुलझाते हुए भारतवर्ष के स्वरूप का चित्रण किया है अनगिनत झंझाओं का समय था विधर्मियों के अत्याचारों अन्यायों रीतिरिवाजों का बोलबाला था

ऐसे समय में तुलसी ने रामकथा का यह स्वरूप प्रस्तुत किया


दशरथ तक स्थिति दूसरी थी राम जी के आते ही स्थिति बदल गई

भारतवर्ष के लोग राममय जीवन जीने के लिये उत्साहित हों प्रबोधित हों 

अपने सनातन स्वरूप को पहचानें

ऐसे झंझावातों का जब राम जी डटकर सामना कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं विधर्मियों का सामना कर सकते हैं

अमित रूप प्रगटे तेहि काला। जथाजोग मिले सबहि कृपाला॥

कृपादृष्टि रघुबीर बिलोकी। किए सकल नर नारि बिसोकी॥3॥


आइये प्रवेश करते हैं उत्तरकांड में


भेंटेउ तनय सुमित्राँ राम चरन रति जानि।

रामहि मिलत कैकई हृदयँ बहुत सकुचानि॥6 क॥




सुमित्रा जी अपने तनय लक्ष्मण जी की श्री राम जी के चरणों में प्रीति जानकर उनसे मिलीं। श्री रामजी से मिलते समय  युद्ध विशारद त्यागी नीतिज्ञ ज्ञानी मां कैकेयी जी हृदय में बहुत सकुचाईं कैकेयी ने तो दशरथ की विजय के लिये अपना हाथ नष्ट कर दिया था 

उन्होंने अपने प्रिय राम जी को प्रेरित किया कि वो वन जाएं ताकि रावण मारा जाए


रावण का अन्याय अत्याचार चरम पर था दशरथ भी कम पराक्रमी नहीं थे लेकिन वो रावण को ललकार नहीं सकते थे जनक जी के शासन में विश्वामित्र यज्ञ नहीं कर सकते रावण बालि से मित्रता कर लेता है अगस्त्य जैसे शक्तिसम्पन्न ऋषियों से झंझट मोल नहीं लेता साधना में रत बाकी ऋषियों से दुर्व्यवहार करता है

स्वार्थी राजा ऐसे ही होते हैं


भारतवर्ष की ऐसी व्यवस्था नहीं है वह तो कहता है

सर्वे भवन्तु सुखिनः


कैकेयी विभीषण आदि पात्रों में दोष देखना हम लोग बन्द करें और यह अध्ययन मनन चिन्तन निदिध्यासन से संभव है

24.2.23

प्रस्तुत है संहृष्ट ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पञ्चमी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 24 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना। जासु नेम ब्रत जाइ न बरना॥

राम चरन पंकज मन जासू। लुबुध मधुप इव तजइ न पासू॥2॥


प्रस्तुत है  संहृष्ट ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल पञ्चमी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 24 -02- 2023

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  575 वां सार -संक्षेप

1 = प्रसन्न




यह अविश्वास का अंधकार है आत्मदीप हो जाओ

युगचारण जागो कसो कमर फिर से भैरवी सुनाओ


 ( 44 वीं कविता अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं से )

इस समय अविश्वास से भरा वातावरण है हर व्यक्ति समीक्षक बना हुआ है बुद्धि अन्धी है जो बोलें उस पर पहले विचार अवश्य करें कि इसका प्रभाव क्या होगा कभी कभी हम कुछ का कुछ बोल जाते हैं

अतिरिक्त बोलने के कारण कुमार विश्वास को बेइज्जत होना पड़ा


विश्वास से लबालब एक बुद्धिमान कुमार ने, 

भरी सभा में मुझे अनपढ़ कहा..


सांसारिक प्रपंचों से हटकर

उस संसार से हटकर जहां सगे सौतेले का हिसाब किताब है,आइये प्रवेश करते हैं अद्भुत लोकग्राह्य कृति रामचरित मानस में जहां हम ऐसे राम को पाते हैं जिनकी दृष्टि में सारा ही उनका परिवार है 


रामचरितमानस की रचना भले ही तुलसी  ने स्वान्तः सुखाय  हेतु की हो लेकिन तुलसी का वह स्वान्तः सुखाय विश्व साहित्य तथा विश्व जन का ही स्वान्तः सुखाय है


ऐसा लगता है तुलसी का अन्तःकरण पूरे समाज में विकसित और विलसित हो रहा है

राम की भक्ति लोक की ही भक्ति है



उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु।

प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु॥4 ख॥

चौदह वर्ष बाद भी राम जी की स्मृति को अपने मन में संजोए 

लोग भागे भागे चले आ रहे हैं यह देखकर 

विमान से उतरकर प्रभु राम ने पुष्पक विमान से कहा कि तुम अब  कुबेर के पास चले जाओ अब मुझे आवश्यकता नहीं

श्री रामचंद्र जी की प्रेरणा से वह चला, उसे कुबेर के पास जाने का हर्ष है और प्रभु  से अलग होने का  दुःख भी


बामदेव बसिष्ट मुनिनायक। देखे प्रभु महि धरि धनु सायक॥1॥

अब प्रभु राम योद्धा राम नहीं है शिष्य राम हैं धनुष बाण रख दिया

राम जी के प्रारम्भिक गुरु वशिष्ठ भी बहुत दुःखी थे जब राम जी वन जा रहे थे लेकिन वो जानते थे कि प्रबल भावी को कोई मेट नहीं सकता


गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज। नमत जिन्हहि सुर मुनि संकर अज॥3॥


भरत जी पृथ्वी पर पड़े हैं, उठाए उठते नहीं

 तब श्री रामजी ने उन्हें  उठाकर हृदय से लगा लिया


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिये सुनें

23.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 23 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि। 


अब घर जालौं तासका, जे चले हमारे साथि॥



प्रस्तुत है  संशयछेदिन् ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 23 -02- 2023

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  574 वां सार -संक्षेप

1 = सभी संदेहों को मिटाने वाला


उत्थान और पतन इस संसार का स्वभाव है

भगवान् की कृपा से हमें मनुष्य शरीर मिला है हमें इसका लाभ उठाना चाहिये

हमें सात्विकता की ओर उन्मुख होना चाहिये 

विषय- वासनाओं को भोगते हुए खावै अरु सोवै ही हमारा काम नहीं है


बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार।


बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।

हनुमान जी से यह याचना कर शारीरिक बल आंतरिक बल प्राप्त कर नित्य हम अपने साथी सहयोगियों को सात्विक बल से संयुत कर समाजोन्मुखी जीवन जीने का संकल्प लेते हैं



वैशिष्ट्य की एक मिसाल हमारी सनातन संस्कृति को सुरक्षित करने के लिये राम चरित मानस के माध्यम से तुलसीदास जी ने मनुष्य को उसका उचित कर्तव्य बताने का प्रयास किया है क्योंकि उस समय की परिस्थितियां अत्यन्त विषम थीं राजा अन्यायी अत्याचारी हो रहे थे परिवार टूट रहे थे स्वार्थ का बोलबाला था विद्रूपता का नंगा नाच चल रहा था




भारत

..सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ॥2॥


का तो हर प्राणी विशेष है लेकिन 

हमें देशभक्त और शोषक में अन्तर देखना चाहिये शोषकों को निर्मूल करने की आवश्यकता है 

 यहां की नदियां पर्वत जल थल सब अद्भुत है हमें इसकी अद्भुतता का अनुभव करना चाहिये विश्व का शारीरिक भ्रमण या मानसिक भ्रमण कर हम स्वयं इसका आकलन कर सकते हैं


आचार्य जी ने बताया कि वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान जी को प्रलयकाल तक रुकने का आदेश है


तुलसीदास जी ने हनुमान जी को भगवान राम का परम भक्त बताया है राम उनके सर्वस्व हैं हनुमान जी की भावपूर्ण भक्ति पराकाष्ठा पर पहुंची है 


आइये चलते हैं मानस के उत्तर कांड में


भगवान् राम को देखने के लिये सभी, जो दुर्बल हो गये हैं,लालायित हैं


हरषित गुर परिजन अनुज भूसुर बृंद समेत।

चले भरत मन प्रेम अति सन्मुख कृपानिकेत॥3 क॥

भरत जी भी भगवान् राम की अगवानी के लिये आतुर हैं

मंगल गीतों से वातावरण गुंजायमान है



जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि॥


कृपालु भगवान्‌ श्री रामजी ने सब लोगों को आते देखा, तो प्रभु ने विमान को नगर के समीप उतरने की प्रेरणा की।और आगे नहीं चले

तब वह पुष्पक पृथ्वी पर उतरा

इसके बाद आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिये सुनें

22.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल तृतीया विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 22 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई॥


पानी से छोटी नदियाँ भरकर किनारों को तुड़ाती हुई चलीं, जिस प्रकार थोड़े धन से  भ्रमित होकर दुष्ट इतराने लगते हैं


प्रस्तुत है  सरभस ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल तृतीया विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 22 -02- 2023

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  573 वां सार -संक्षेप

1 = प्रसन्न


स्थान :सरौंहां

अत्र कुशलं तत्रास्तु




समस्याओं से भरे इस संसार में हमें क्षुद्र नदियों जैसा न होकर एकाग्र होकर किसी भी प्रकार के भ्रम, भय और शैथिल्य को त्यागकर अपनी देवभूमि स्वर्णभूमि रत्नभूमि भारत मां की सेवा के लिये तत्पर रहना चाहिये हमारा उद्देश्य भी यही है

राष्ट्र निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष

हमें  असामान्य अद्वितीय आचार्य जी द्वारा प्रोक्त सदाचार संप्रेषणों के रूप में प्राप्त आनन्द के इन क्षणों का लाभ उठाना चाहिये हमें आत्मस्थ होने का प्रयास करना चाहिये 

आत्मस्थता से शरीर के, परिवेश के विकार प्रभावित नहीं करते

अपनी अन्तः और बाह्य प्रकृति दोनों को आनन्दमय बनाकर उत्साहित होने का प्रयास करें हम प्रसन्न हैं तो सर्वत्र प्रसन्नता का हम अनुभव करेंगे


आइये प्रवेश करते हैं रामकथा में

उत्तर कांड में आगे


भरत चरन सिरु नाइ तुरित गयउ कपि राम पहिं।

कही कुसल सब जाइ हरषि चलेउ प्रभु जान चढ़ि॥2 ख॥


फिर भरत जी के चरणों में सिर झुकाकर हनुमान जी तुरंत प्रभु राम जी के पास आ गए और  उन्होंने सब कुशलता का वर्णन कर दिया तब प्रभु राम हर्षित होकर विमान पर चढ़कर चल दिये



इधर भरत जी भी खुश होकर अयोध्या  आए और उन्होंने गुरु वशिष्ठ जी को सारा समाचार सुनाया! फिर राजमहल में समाचार दिया कि श्री राम  नगर को आ रहे हैं


श्री रामजी के स्वागत के लिए दही, दूब, रोचना , फल, फूल एवं तुलसीदल आदि वस्तुएँ सोने की थाली में भर-भरकर  सौभाग्यवती स्त्रियाँ गाती हुई चलीं


आचार्य जी ने अनिरुद्धाचार्य, भैया अजय शंकर, भैया पंकज की चर्चा क्यों की आचार्य जी चित्रकूट कब जा रहे हैं  डंड़वाड़ा क्या है जानने के लिये सुनें

21.2.23

 प्रेम ही ईश्वर है


प्रस्तुत है  वमि -अरि ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 21 -02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  572 वां सार -संक्षेप

1 वमि =बदमाश


स्थान :उन्नाव



यदि परमात्मा  द्वारा रचित यह सारा संसार  श्वेतवर्णमयी होता तो आनन्द नहीं आता

विकार भी आवश्यक हैं 

संसार रंगीन है और बहुत वैविध्य लिये हुए है

संसार में भाव विचार चिन्तन कर्म यथार्थ बहुत कुछ है 

 ऐसा लगता है सारी रंगीनी भारत भूमि पर ही एकत्र हो गई है

हम इसी भूमि पर रह रहे हैं तो हमें इसका महत्त्व समझ में नहीं आता 


अच्छे भाव ग्रहण करने के लिये हम इन संप्रेषणों का सहारा लेते हैं

ये सुनकर हम अपने अंदर के विकारों को दूर करते हैं हमें समस्याओं का हल मिलता है


 आजकल रामचरित मानस, बागेश्वर धाम आदि को लेकर बहुत चांव चांव मची है लेकिन चिन्तक विचारक इन परिस्थितियों में सामञ्जस्य बैठाकर समस्या की खोज करते हैं

हम अपने महत्त्व को समझते हुए कार्य और व्यवहार में प्रवृत्त हों 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि गीता के चौथे अध्याय में 13 से 24 तक छंदों को समझने का प्रयास करें


चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।


तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।4.13।।


गुण और कर्मों के विभाग से चातुर्वण्य मेरे द्वारा रचित है।  मैं उसका कर्ता तो हूँ लेकिन तुम मुझे अकर्ता और अविनाशी  ही जान लो


कर्म मुझ कृष्ण को लिप्त नहीं करते हैं और न मुझे कर्मफल में चाहत है।

पहले के मोक्ष की चाहत रखने वाले पुरुषों द्वारा भी इस प्रकार की जानकारी द्वारा ही कर्म किया गया है;  इसलिये तुम भी पूर्वजों द्वारा  किये हुए कर्मों को ही करो


कर्म अकर्म जानकर तुम संसार बन्धन से मुक्त हो जाओगे

समस्त कार्य कामना और संकल्प से रहित हों


कर्मफलासक्ति त्यागने पर वह कर्म में प्रवृत्त होते हुए भी  कुछ भी नहीं करता है


अपने आप जो कुछ प्राप्त हो उसमें ही सन्तुष्ट रहें


यज्ञ भाव से कर्म करने वाले मनुष्य के सम्पूर्ण कर्म विलीन हो जाते हैं


इस प्रकार ब्रह्मरूप कर्म में स्थित पुरुषों का गन्तव्य भी ब्रह्म ही है


आइये चलते हैं राम कथा में


भरत जी

बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई॥




 राम जी


जो आनंद सिंधु सुखरासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी॥

सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक बिश्रामा॥




से मिलने वाले हैं


रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥

सुनत बचन बिसरे सब दूखा। तृषावंत जिमि पाइ पियूषा॥3॥

हनुमान जी ने जैसे ही अपना परिचय दिया


सुनत भरत भेंटेउ उठि सादर॥

मिलत प्रेम नहिं हृदयँ समाता। नयन स्रवतजल पुलकित गाता॥5॥

हनुमान जी भगवान् राम को अयोध्या का संपूर्ण समाचार सुनाते हैं 

इसके बाद आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिये सुनें

20.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 20 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 समिटि समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा॥

सरिता जल जलनिधि महुँ जोई। होइ अचल जिमि जिव हरि पाई॥4॥



प्रस्तुत है  जातुधान -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 20 -02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  *571 वां* सार -संक्षेप

1जातुधान =राक्षस



स्थान :उन्नाव



प्रायः प्रत्येक मनुष्य का, व्यक्तिगत विकास  विस्तार उन्नति सुख सुविधाओं के लिये प्रयत्नशील रहना, स्वभाव है

मूल रूप से मनुष्य की प्रकृति  दिव्य है लेकिन वह प्रकृति को विस्मृत कर प्रवृत्तियों में लिप्त हो जाता है


सहज स्वाभाविक मनुष्य अविकृत है लेकिन संसार में आकर उसी प्रकार विकृत हो जाता है  *जनु जीवहि माया लपटानी*


 जैसे

भूमि परत भा ढाबर पानी।

वह विकृत मनुष्य मक्खी की भांति घावों की तलाश में रहता है हम अविकृत मनुष्यों के लिये,जिन्हें मधुमक्खी की तरह सुमन की तलाश है, विकृत मनुष्यों की  बढ़ोत्तरी  चिन्ता और चिन्तन का विषय है

राम की कथा सुनने के पीछे हमारा एक उद्देश्य होना चाहिये

अपनों के प्रति किसी प्रकार की कुशंका नहीं हो यह रामत्व है यह मनुष्यत्व ही भारत का चिन्तन है

लोभी कब्जा करने वाला रावण है कव्जा   छुड़ाकर शांति स्थापित करने वाले राम होते हैं हमें इसी रावणत्व की समीक्षा कर अपने अंदर से दूर कर रामत्व को प्रवेश कराने का प्रयास करना चाहिये


आइये प्रवेश करते हैं उत्तर कांड में


राम बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत।

बिप्र रूप धरि पवनसुत आइ गयउ जनु पोत॥1क॥


बैठे देखि कुसासन जटा मुकुट कृस गात॥

राम राम रघुपति जपत स्रवत नयन जलजात॥1ख॥



रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि हनुमान जी ने देखा कि दुर्बल शरीर वाले भरत जी  जटाओं का मुकुट बनाए हुए राम  राम जपते और  नेत्रों से  जल बहाते कुश के आसन पर बैठे हैं


हनुमान जी इस बात को विशेष रूप से बता रहे हैं कि प्रभु राम लक्ष्मण जी और सीता जी के साथ आ रहे हैं क्योंकि जब भरत जी से पहले उनकी मुलाकात हुई थी तब सीता जी लंका में रावण के कब्जे में थीं और लक्ष्मण जी के जीवन पर संकट के बादल थे


सुनत बचन बिसरे सब दूखा। तृषावंत जिमि पाइ पियूषा॥3॥


हनुमान जी ने जैसे ही अपना परिचय दिया भरत जी उठकर आदरपूर्वक हनुमान जी से गले लगकर मिले।


हनुमान जी की भक्ति की मिसाल नहीं है भगवान् भी ऐसे भक्त का ऋणी हो जाता है

हनुमान जी त्याग तप प्रेम समर्पण के प्रतीक हैं


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया भैया पवन मिश्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

19.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 19 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  ज्ञान -जलधर ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 19 -02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  570 वां सार -संक्षेप

1 जलधर =समुद्र



संगठन वही टिकता है जिसके सदस्यों में आपसी सामञ्जस्य समन्वय सद्व्यवहार की भावना हो

युगभारती ऐसा ही एक संगठन है समय समय पर हम लोग समाज के लिये सार्थक योजनाएं भी बनाते रहते हैं


आचार्य जी ने सूचित किया कि एक ऐसी ही योजना, अपने सरौंहां गांव में स्थित हनुमान जी के मंदिर में कुछ संशोधन हों,कल बनी

नववर्ष के उपलक्ष्य में 26 मार्च 2023 को एक कार्यक्रम सरौंहां में करने की योजना पर भी कल विचार हुआ

भारतीय जीवन दर्शन,

 जिसमें जीवन जीने का एक ऐसा सलीका है कि हम अभाव में भी उतने व्याकुल नहीं रहते जितने भोगवादी रहते हैं,

 में नववर्ष अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है

ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी

भारतीय जीवन दर्शन बहुत गहन है इसमें बहुत से  ग्रंथ पंथ मत हैं लेकिन यह विकार नहीं है यह तो एक विशेषता है इसी को आचार्य जी ने  ट्रेन में बिजली वाले प्रसंग से जोड़ा 


अब जैसे वाल्मीकि जी  के उत्तरकांड और तुलसी जी के उत्तरकांड में ही अन्तर है

वाल्मीकि जी के उत्तरकांड में

भगवान् राम के राज्याभिषेक के अनन्तर कौशिक आदि महर्षियों का आगमन, रावण सम्बन्धित अनेक कथाएँ, सीता के पूर्वजन्म रूप  वेदवती का रावण को शाप, सहस्त्रबाहु अर्जुन के द्वारा नर्मदा अवरोध, रावण का बन्धन, रावण का बालि से युद्ध, शत्रुघ्न द्वारा लवणासुर वध, किंपुरुषोत्पत्ति कथा, सीता का रसातल में प्रवेश,  राम का सशरीर स्वर्गगमन आदि प्रसंग हैं

उधर तुलसीदास जी ने बहुत सारा अध्ययन किया और भगवान् राम के विविध स्वरूपों को दर्शाती रामकथा का अद्भुत स्वरूप प्रस्तुत किया


भोगवादी लोग उचित प्रशासन को मानने को तैयार नहीं होते

 भगवान् राम का भी उचित प्रशासन था जिसमें सभी को अपनी अपनी सीमाओं में रहने की बाध्यता थी


और यदि सीमाओं में कोई विकार आ रहा है तो बहुत मर्यादित ढंग से उन्होंने उसे दूर किया

     बड़ी मां कौशल्या कह रही हैं 

जौं केवल पितु आयसु ताता। तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता॥

जौं पितु मातु कहेउ बन जाना। तौ कानन सत अवध समाना॥1॥


पितु बनदेव मातु बनदेवी। खग मृग चरन सरोरुह सेवी॥

अंतहुँ उचित नृपहि बनबासू। बय बिलोकि हियँ होइ हराँसू॥2॥

और भगवान् राम वन के लिये चल देते हैं 

भगवान् राम को कोई हर्ष नहीं है न विषाद है

ऐसे हैं राम

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने और क्या बताया जानने के लिये सुनें

18.2.23

¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 18 -02- 2023 (शिवरात्रि ) का सदाचार संप्रेषण

 कुन्दइन्दुदरगौरसुन्दरं अम्बिकापतिमभीष्टसिद्धिदम्‌।

कारुणीककलकन्जलोचनं नौमि शंकरमनंगमोचनम्‌॥3॥


 कुन्द के फूल, चंद्रमा और शंख के समान  गौर वर्ण, पार्वती जी के पति, मनचाहा फल देने वाले, दयालु ,  कमल के समान नेत्र वाले, अनंग अर्थात् कामदेव से छुड़ाने वाले  श्री शंकर जी को मैं नमस्कार करता हूँ






प्रस्तुत है  शिवगति ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 18 -02- 2023 (शिवरात्रि )

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  569 वां सार -संक्षेप

1 शिवगति =समृद्ध



हमारे सनातन धर्म में परिस्थितिवश व्यवस्थाएं बना ली जाती हैं विकल्प से बहुत सारी व्यवस्थाओं की उपलब्धता के कारण इसे मानव धर्म कहा जाता है

सनातन धर्म सर्वश्रेष्ठ धर्म है इसमें हमें संशय नहीं होना चाहिये

पश्चिमी सभ्यता के कारण हमें जो भ्रम हो गया है उसके निराकरण के लिए, उथल पुथल का ये जो समय चल रहा है उसमें अपनी मंजिल पाने के लिये,अपनी उलझनों को शांत करने के लिये  ये सदाचार वेलाएं हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिये


संकल्प जाग्रत होने पर हमें अपने शरीर की भी सुध नहीं रहती लेकिन हमें अपने शरीर की उतनी सेवा तो करनी ही चाहिये कि वह असहयोग न करे


सर्वदा सुप्रसन्न रहने वाला रामत्व धारण करने के लिये, अपनी शक्ति (शक्ति की उपासना युग धर्म है )को जाग्रत करने के लिये आइये प्रवेश करते हैं उस कवि, जिसे धनुष बाण हाथ में लिये राम भाते हैं(शौर्य प्रमंडित अध्यात्म ),की कृति राम चरित मानस


रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।

तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥ 31॥


रामचरित चिंतामनि चारू। संत सुमति तिय सुभग सिंगारू॥

जग मंगल गुनग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥





 में

उत्तर कांड का प्रारम्भ इस प्रकार है

केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं

शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्‌।

पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं।

नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम्‌॥1।




मयूर कण्ठ की आभा के समान  नीले वर्ण वाले , देवताओं में श्रेष्ठ, भृगु जी के चरणकमल के चिह्न से शोभित, शोभा से पूर्ण, पीताम्बरधारी, कमल के समान नेत्र वाले , सदा  प्रसन्न रहने वाले , हाथों में बाण और धनुष लिये हुए, वनवासी समूह से युक्त भाई लक्ष्मण  से सेवित, स्तुति किए जाने योग्य, मां सीता  के पति, रघुवंश में श्रेष्ठ, पुष्पक विमान पर सवार श्री राम जी को मैं नमस्कार करता हूं


रहा एक दिन अवधि कर अति आरत पुर लोग।

जहँ तहँ सोचहिं नारि नर कृस तन राम बियोग॥



इसकी व्याख्या आचार्य जी ने किस प्रकार की और आगे क्या बताया जानने के लिये सुनें

17.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 17 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान।

बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान॥121 क॥

जो समझदार व्यक्ति प्रभु राम की समर में मिली विजय संबंधी लीला को सुनते हैं और फिर गुनते हैं आत्मसात् करते हैं और जिनके मन में विजय के लिये संकल्पित समर्पण है , उन सबको भगवान नित्य विजय, विवेक और ऐश्वर्य देते हैं

विवेक शून्य ऐश्वर्य की कामना का कोई औचित्य नहीं है




प्रस्तुत है  ज्ञान -अकूपार ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 17 -02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  568 वां सार -संक्षेप

1 अकूपारः =समुद्र



पद और प्रतिष्ठा सुख सुविधा के पीछे दीवानी दुनिया

कुदरत से लोहा लेने को आतुर है शैतानी दुनिया


केवल भाषा तक सीमित है  संयम विवेक सच सदाचार 

आचरण भ्रष्ट दुनियादारी के नाम लिख रहे कदाचार 

ईश्वर या अखिलनियन्ता को केवल विपत्ति में करें याद

आपदा टली अलमस्त हुए फिर शुरु हुआ लोकापवाद......


हम केवल भाषा तक संयम विवेक सत्य तप सदाचार को सीमित न रखें अपितु इन सदाचार संप्रेषणों के रूप में हमें जो अवसर मिला है उसका लाभ उठाकर वास्तव में संयमी विवेकी तपस्वी सदाचारी बनने का प्रयास करें


आचार्य जी ने सनातन दर्शन को परिभाषित करते हुए बताया कि मानस के सात कांडों के माध्यम से चिन्तक विचारक मनीषी तुलसीदास जी ने भारतीय धर्म और दर्शन को प्रतिपादित किया है

इसमें उच्च दार्शनिक विचार धार्मिक जीवन और सिद्धान्त वर्णाश्रम अवतार ब्रह्मनिरूपण ब्रह्मसाधना सगुण निर्गुण मूर्तिपूजा देवपूजा गो रक्षा ब्राह्मण रक्षा वेदमार्ग का मण्डन अवैदिक और स्वच्छन्द पन्थों की आलोचना कलियुग की निन्दा कुशासन की निन्दा रामराज्य की प्रशंसा पारिवारिक सम्बन्ध प्रेम सामाजिक कर्तव्य पातिव्रत्य धर्म नैतिक आदर्श  आदि का समावेश है


अकबर के कुशासन में उस समय हिंदू धर्म पर विपत्ति के बादल मंडरा रहे थे अच्छे अच्छे लोग सुख सुविधा भोग विलास के लालच में आकर भ्रमित हो गये थे वेद और शास्त्रों का अध्ययन लगभग बन्द हो गया था लोकभाषा में रचित चरित ने उत्तर भारत में हिन्दू धर्म को सजीव और अनुप्राणित किया


लंका कांड का समापन हो चुका है उत्तरकांड को सुनने से पहले हम एक मनोभूमिका बनायें


उत्तर कांड में जीवन के सभी प्रश्नों के उत्तर हैं  यदि जीवन जीने में चिन्तन मनन साथ साथ चलता रहे तो प्रश्न आने पर उत्तर भी मिलते जायेंगे


हम अच्छा अच्छा प्राप्त करें और उसे फिर बांटें

बिना लोभ लालच  के सेवा करें

शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को अपनाएं


परमात्मा ने अपनी ज्योति को हमारे अंदर प्रविष्ट कराया है उसकी अनुभूति करें 


ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो 

राह में आये जो दिन दुखी सब को गले से लगाते चलो 


जिसका ना कोई संगी साथी ईश्वर है रखवाला 

जो निर्धन है जो निर्बल  है वो है सबका प्यारा 

प्यार के मोती लुटाते  चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो


सांसारिक प्रपंचों में ही लिप्त रहने पर हम लुप्त हो जायेंगे

संगठन के सूत्र अपनाएं

स्वार्थ से अपने को दूर कर परमार्थ का रास्ता अपनाएं

16.2.23

¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 16 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 राजत रामु सहित भामिनी। मेरु सृंग जनु घन दामिनी॥

रुचिर बिमानु चलेउ अति आतुर। कीन्ही सुमन बृष्टि हरषे सुर॥3॥


प्रस्तुत है  धर्मापेत -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 16 -02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  567 वां सार -संक्षेप

1 धर्मापेत =दुराचारी




कुटुम्बवृद्धिं धनधान्यवृद्धिं

स्त्रियश्च मुख्याः सुखमुत्तमं च।

श्रुत्वा शुभं काव्यमिदं महार्थं

प्राप्नोति सर्वां भुवि चार्थसिद्धिम्॥ १२४॥


आयुष्यमारोग्यकरं यशस्यं

सौभ्रातृकं बुद्धिकरं शुभं च।

श्रोतव्यमेतन्नियमेन सद्भि-

राख्यानमोजस्करमृद्धिकामैः॥ १२५॥


इस तरह के उत्कृष्ट छंदों वाली रामायण में वर्णित ,अनेक पुराण, वेद और शास्त्रों से सम्मत  और कुछ अन्यत्र से भी उपलब्ध श्री रघुनाथजी की कथा का मैं तुलसीदास अपने अन्तःकरण के सुख के लिए अत्यन्त मनोहर भाषा में रचना का विस्तार करता हूँ।

कलियुग का वेद

यह कलिकाल मलायतन मन करि देखु बिचार।

श्री रघुनाथ नाम तजि नाहिन आन अधार॥121 ख॥


, अत्यन्त लाभकारी और ज्ञान का अथाह भण्डार राम चरित मानस हमें शक्तिसम्पन्न, स्वाध्यायी, संयमी, बुद्धिमान, विचारवान बनाता है

इसमें सामजिक दायित्व आदर्शस्वरूप में प्रस्तुत हुए हैं

शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता को दर्शाने वाले, बेचारगी को दूर करने वाले इस ग्रंथ का हमें भ्रमरहित होकर अवश्य पारायण करना चाहिये जिससे स्वयं का विस्तार इतना अधिक हो जाता है कि हम स्वयं राममय हो जाते हैं

राममयता परमात्म के अंश आत्म पर आधारित है

आत्मार्थे पृथ्वीं त्यजेत 


सज्जन सत का ग्रहण करते हैं असत का त्याग करते हैं

आइये सत को ग्रहण करने के लिये चलते हैं मानस के लंका कांड में जिसका आज समापन हो रहा है


सुरसरि नाघि जान तब आयो। उतरेउ तट प्रभु आयसु पायो॥

तब सीताँ पूजी सुरसरी। बहु प्रकार पुनि चरनन्हि परी॥4॥


 सीताजी ने बहुत प्रकार से मां गंगा की पूजा की और उनके चरणों पर गिरीं


यदि हम सुविज्ञ जनों के सुपथ पर चल रहे हैं तो प्रकृति हमें अपनी मां दिखती है इस तरह गंगा हमारी मां हुईं


मां गंगा ने मन में हर्षित होकर आशीर्वाद दिया-  तुम्हारा सुहाग अखंड हो


सुनत गुहा धायउ प्रेमाकुल। आयउ निकट परम सुख संकुल॥5॥

निषादराज प्रेम का आदर्श है


भगवान् राम को देखते ही उसका आनंद सहस्रगुणित हो जाता है


सब भाँति अधम निषाद सो हरि भरत ज्यों उर लाइयो।

15.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 15 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  द्रुण -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 15 -02- 2023

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  566 वां सार -संक्षेप

1 द्रुण =बदमाश


याचना की भक्ति मनुष्य को अन्दर से कमजोर करती है एक ऐसा समय भी आया था जब याचक भक्ति की अधिकता हो गई थी जिसने हमें कमजोर किया 

आचार्य जी हमें इन कमियों की ओर संकेत कर इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से उत्साहित शक्तिसम्पन्न धैर्यशाली बनाने का प्रतिदिन प्रयास कर रहे हैं


भ्रम और निराशा दूर करने के लिये भक्ति और विश्वास को प्रविष्ट करा कर हम अतिचार वाली जगहों पर अपनी छाती अड़ाने के लिए अपने अंदर शक्ति का पुंज स्थापित कर सकते हैं यही शौर्य प्रमंडित अध्यात्म है

भारतवर्ष तो इन्हीं भावों से भरा धर्मक्षेत्र है


भारत महान भारत महान

जग गाता था गा  रहा नहीं गायेगा फिर पूरा जहान

भारत महान भारत महान...


धीरेन्द्र शास्त्री भी यही बात कहते हैं


भारतवर्ष संपूर्ण विश्व में अद्भुतताओं से भरा एक देश है

इन विचित्रताओं को हमारे तपस्वियों विचारकों चिन्तकों मनीषियों ने समय समय पर हमें बताया है

हमें भाव में जाकर इन पर विश्वास करना चाहिये

इसीलिये उपासना का महत्त्व है हम अंशी के ही अंश हैं

आत्मस्थ होने का हमें प्रयास करना चाहिये

यह जीवन केवल करुण कथा नहीं है

हमने तो रहस्यात्मक तत्त्व शक्ति प्राप्त की है इस पर विश्वास करें

भगवान् राम आत्मविश्वास का एक ज्वलन्त उदाहरण हैं

रामचरित मानस इसी आत्मविश्वास को जाग्रत करता है आइये इसी के लंका कांड में प्रवेश करते हैं

मातृभूमि के प्रति प्रेम दिखाती ये पंक्तियां


सीता सहित अवध कहुँ कीन्ह कृपाल प्रनाम।

सजल नयन तन पुलकित पुनि पुनि हरषित राम॥120 क॥

चौदह वर्ष बाद भगवान् राम अवधपुरी को देख रहे हैं


फिर त्रिवेणी में आकर भगवान् राम ने हर्षित होकर स्नान किया और  वनवासियों सहित ब्राह्मणों को अनेक प्रकार के दान दिए


भरत जी का तो उन्हें ध्यान लगातार है ही


आचार्य जी ने निषाद का एक प्रसंग सुनाया

 विरह में उसने आंखों पर पट्टी बांध ली थी


इहाँ निषाद सुना प्रभु आए। नाव नाव कहँ लोग बोलाए॥3॥


सुनत गुहा धायउ प्रेमाकुल। आयउ निकट परम सुख संकुल॥5॥


और  प्रभु को देखकर वह आनंद में मग्न होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा प्रभु ने उसका परम प्रेम देखकर हृदय से लगा लिया

मूर्ख लोग जातियों के आधार पर भेदभाव करते हैं जबकि राम कथा में तो ऐसा बिल्कुल नहीं है

हमें इन्हीं बातों को जानना है और अन्य लोगों को भी इसी तरह की जानकारियों से अवगत कराना है

होगा तब जब हम स्वयं भी इन्हें जानने का प्रयास करेंगे


इसके अतिरिक्त ब्राह्मणत्व को आचार्य जी ने कैसे परिभाषित किया

फिल्म दुश्मन के किस गीत की आचार्य जी ने चर्चा की जानने के लिये सुनें

14.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 14 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है

हारे मानस की आस प्राण परिभाषा है 



प्रस्तुत है  अनुशर -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 14 -02- 2023

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  565 वां सार -संक्षेप

1 अनुशर =राक्षस



अतुलित बल के धाम हनुमान जी की कृपा से प्रसाद के रूप में प्राप्त इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर  हम सांसारिक प्रपंचों में उलझे रहने के बाद भी जीवन में आनन्द की अनुभूति  प्राप्त कर सकते हैं हमें समस्याओं का निवारण मिल सकता है


प्राकृतिक आपदाओं पर दृष्टिपात करें तो ऐसा लगता है हमारे ऋषियों द्वारा दिए गये संकेत प्रतिफलित हो रहे हैं सदैव पाकिस्तान के पक्ष में बोलने वाले भारत के विरोधी देश तुर्किये को प्रकृति ने दंड दिया है लेकिन भटके राही को राह दिखाने वाले भारत ने सहायता के लिये अपने हाथ बढ़ा दिये क्योंकि मनुष्य मात्र को एक पिता की संतान मानने वाले 

भारत ने तो सदा पूरी वसुधा को ही अपना कुटुम्ब माना है

यही मनुष्यत्व है


राक्षसी प्रवृत्ति के लोगों के कुविचारों की काट के रूप में अपने सद्विचारों को दृढ़ता के साथ थामे रहना और उचित समय पर उनका प्राकट्य आज के समय की मांग है




हमारे अंदर असीम शक्ति भरी हुई है इसलिये हमें निराश व्याकुल नहीं होना चाहिये रामश्रित रहें 

उचित कार्यों में लगे रहने का हम लोग प्रण करें जिस तरह से तुलसीदास जी

जिनके बारे में ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं 


प्रचंड तेज शक्ति शील रूप के विधान हो

अनिन्द कर्म धर्म मर्म शर्म  संविधान हो

उदार हो विदार हो प्रफ़ुल्ल कोविदार हो

प्रसार भक्ति भाव राम नाम के प्रचार हो

(शर्म का अर्थ रक्षा,विदार का अर्थ युद्ध, कोविदार का अर्थ कचनार)

ने  हारे मानस की आस रामकथा को प्रस्तुत कर एक उचित कार्य किया


समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान।

बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान॥121 क॥



आइये इसी कथा के लंका कांड  में प्रवेश करते हैं


पुष्पक विमान में लक्ष्मण जी महाराज हनुमान जी महाराज श्री राम औऱ मां सीता के आसन के पीछे खड़े हैं


तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दंडक बन जहँ परम सुहावा॥

कुंभजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना॥1॥

कार्य पूरा होने पर जिन लोगों ने भी भगवान् राम का मार्गदर्शन किया सहायता की उन सबके पास पुनः राम जी गये उन्हें भूले नहीं


चित्रकूट आया यमुना गंगा मिलीं

पुनि देखु अवधपुरि अति पावनि। त्रिबिध ताप भव रोग नसावनि॥5॥


जन्मभूमि देखकर भगवान् राम के नेत्र अश्रुपूरित हो गये


सजल नयन तन पुलकित पुनि पुनि हरषित राम॥120 क॥


और हनुमान जी से कहा


भरतहि कुसल हमारि सुनाएहु। समाचार लै तुम्ह चलि आएहु॥1॥

13.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 13 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रयास हो कि आत्मबोध शौर्य से समृद्ध हो, 

जवानियाँ स्वदेश की सदैव नित्य सिद्ध हों, 

कि विश्व में सभी जगह सुभारती प्रसिद्ध हो 

न हम कभी किसी समय प्रलुब्ध आत्ममुग्ध हों। ।



प्रस्तुत है  संशप्तक ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 13 -02- 2023

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  564 वां सार -संक्षेप

1 =ऐसा योद्धा जिसने युद्ध में डटे रहने की कसम खाई हो



जीवन में प्राणतत्त्व और आत्मबोध अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है यद्यपि वह शरीर की शक्ति से संयुत रहता है लेकिन वह शरीर नहीं है

यह अनुभव और इस अनुभव के आधार पर मिलने वाला आनन्द यदि कुछ समय के लिये ही हमें प्राप्त हो जाता है तो हम ऐसे काम कर जाते हैं जिन पर हमें स्वयं भी आश्चर्य होता है



जय रघुबीर कहइ सबु कोई॥


ऐसे कार्यों में देवता वर्ग सहायक होता है उन देवों में भी एक महादेव हैं और उन महादेव के अंश सेवा, शक्ति, पराक्रम, बुद्धि, तप, समर्पण के पर्याय हनुमान जी हमारे सदैव सहायक हैं

भारत राष्ट्र भूमण्डल की संस्कृति है इसी 

राष्ट्र के प्रति निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष भी हमारा कार्य है 



आइये चलते हैं सायुज्य भक्त बनने का प्रयास करते हुए लंका कांड में

उस लंका से विदाई का समय है जो अब भक्त विभीषण के सुरक्षित हाथों में है लंका के निवासी अब  कर्तव्य की मूर्ति व्यवहार का आदर्श संपूर्ण जीवन का मर्म धर्म कर्म विश्वास विचार विप्रत्व के पर्याय भगवान् राम के कार्य के साधक अनुवर्ती सहायक हो गये हैं


प्रभु प्रेरित कपि भालु सब राम रूप उर राखि।

हरष बिषाद सहित चले बिनय बिबिध बिधि भाषि॥118 क॥


कपिपति नील रीछपति अंगद नल हनुमान।

सहित बिभीषन अपर जे जूथप कपि बलवान॥118 ख॥


कहि न सकहिं कछु प्रेम बस भरि भरि लोचन बारि॥

सन्मुख चितवहिं राम तन नयन निमेष निवारि॥118 ग॥



वे कुछ कह नहीं सकते, प्रेमवश नेत्रों में जल भर-भरकर, टकटकी लगाए

उपसंहार की भूमिका में आ गये प्रभु राम की ओर देख रहे हैं

आचार्य जी ने इसी से संयुत करते हुए धनुष यज्ञ के अद्भुत रोचक प्रसंग का उल्लेख किया जब राम जी का जीवन प्रारम्भ होने जा रहा है

जीवन के यही उतार चढ़ाव हैं


 शेषावतार लक्ष्मण को आवेश आ जाता है


कहि न सकत रघुबीर डर लगे बचन जनु बान।




निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह कहने वाले तपस्वी 

भगवान् राम पैदल चलकर दक्षिण दिशा की ओर आये थे अब  विमान द्वारा उत्तर दिशा की ओर जा रहे हैं लेकिन दम्भ बिल्कुल नहीं है  सीता जी को सारे स्थान दिखाते जा रहे हैं


जहँ जहँ कृपासिंधु बन कीन्ह बास बिश्राम।

सकल देखाए जानकिहि कहे सबन्हि के नाम॥119 ख॥



और


सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥

ऋषियों की कृपा से ही यह संभव हो पाया ऐसे हैं भगवान् राम अहंकार बिल्कुल नहीं

12.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 12-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 कहि न सकहिं कछु प्रेम बस भरि भरि लोचन बारि॥

सन्मुख चितवहिं राम तन नयन निमेष निवारि॥118 ग॥



प्रस्तुत है संविदात ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 12-02- 2023

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  563 वां सार -संक्षेप

1 =प्रतिभाशाली


शिक्षा के विकृत होने से शिक्षार्थी और शिक्षक के स्वरूप समाज में समस्याएं खड़ी हो जाती हैं लेकिन उनका समाधान भी शिक्षा में ही छिपा है

शिक्षा शक्ति भक्ति विचार संस्कार और मनुष्य जीवन का सर्वश्रेष्ठ वरदान है

शिक्षा को तैत्तिरीय उपनिषद् में बहुत सुन्दर ढंग से व्याख्यायित किया गया है 


सह नौ यशः। सह नौ ब्रह्मवर्चसम्‌। अथातः संहिताया उपनिषदं व्याख्यास्यामः। पञ्चस्वधिकरणेषु। अधिलोकमधिज्यौतिषमधिविद्यमधिप्रजमध्यात्मम्‌ ll

हम दोनों  आचार्य और शिष्य एक साथ यशस्वी बनें , एक साथ ब्रह्मवर्चस प्राप्त करें । इसके बाद हम संहिता के गूढ़  अर्थ की व्याख्या करेंगे जिसके पाँच प्रमुख विषय (अधिकरण) हैं

लोकों से सम्बन्धित, ज्योतिर्मय अग्नियों से सम्बन्धित,  विद्या से सम्बन्धित ,प्रजा से सम्बन्धित और आत्मा से सम्बन्धित  ll

शिक्षा में बहुत कुछ है कैसा व्यवहार हो कैसा जीवन जिया जाये आदि आदि लेकिन यह काम कठिन है फिर भी इसके लिये प्रयासरत रहना चाहिये


मानस में

सेवत सुलभ सकल सुखदायक, प्रणतपाल सचराचर नायक

 भगवान् राम के विविध रूप देखने को मिलते हैं

जौं मैं राम त कुल सहित कहिहि दसानन आइ॥ 31॥



निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।


या


पूछत चले लता तरु पाँती॥4॥


या


अनुज देखि प्रभु अति दु:ख माना॥3॥


और ऐसा स्वरूप भी जिसका तुलसी जी ने जिक्र नहीं किया


राम जी का आविर्भाव और तिरोभाव जीवन के नाट्य मञ्च जैसा है


भगवान् राम


इच्छामय नरबेष सँवारें। होइहउँ प्रगट निकेत तुम्हारें॥

अंसन्ह सहित देह धरि ताता। करिहउँ चरित भगत सुखदाता॥


का जीवन देखिये तुलसीदास जी का जीवन देखिये हम लोग अपना जीवन भी देखें तो 

 हम सब का जीवन एक ही सूत्र में पिरोया हुआ है सूत्रधार एक है नट अलग अलग हैं


घोर संघर्षों के बाद भी राम विचलित नहीं हुए व्याकुल नहीं हुए विराग राग साथ साथ चलता रहा



जीवन का संघर्ष लंका कांड में चरम पर है


राम धर्मरथ का उपयोग बतलाते हैं जब विभीषण को संदेह है 

नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥


हमारा इतिहास कितने अरब वर्षों का है सनातन धर्म कब से है ये रहस्य हैं और जब तक हमारा प्रवेश वास्तविक शिक्षा के गलियारे में नहीं होगा तब तक हम ऐसे रहस्यों को सुलझा नहीं पायेंगे


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी रचित एक कविता सुनाई



केवल प्राणों का परिरक्षण जीवन नहीं हुआ करता है.....

और आचार्य जी ने किस विश्वनाथ वाराणसी के कार्यक्रम की  चर्चा की जानने के लिये सुनें

11.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 11-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कृच्छ्रकृत् ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 11-02- 2023

(पं दीनदयाल उपाध्याय  जी की पुण्य तिथि )

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  562वां सार -संक्षेप

1 =तपस्वी



अनगिनत रूप इस जीवन के क्रमवार बताना मुश्किल है

दीपक जैसी यह ज्योत टिमकती जलती रहती तिल तिल है

तिल तिल जलकर प्रकाश देते रहना ही इसका लक्षण है

मानव जीवन सचमुच में अद्भुत अनुपम और विलक्षण है


भारत मां के सत्पुत्र दीनदयाल जी इसी विलक्षण जीवन की एक  विग्रह मूर्ति थे

 दुष्टों ने उनकी हत्या कर दी

केवल प्राणों का परिरक्षण जीवन नहीं हुआ करता है

 

संसार से बहुत से लोग चले जाते हैं लेकिन कथा उन्हीं की  सुनाई जाती है जो आदर्श बनते हैं

भारत मां के सत्पुत्रों को बहकाना आसान नहीं या यूं कहें नामुमकिन है

बहकना जितना बन्द हो जाता है दिशा सुस्पष्ट हो जाती है दृष्टि भेदक हो जाती है


मुनि जेहि ध्यान न पावहिं नेति नेति कह बेद।

ऐसे शब्दों के परे कृपासिंधु भगवान् राम की कथा में आइये प्रवेश करते हैं


उमा जोग जप दान तप नाना मख ब्रत नेम।

राम कृपा नहिं करहिं तसि जसि निष्केवल प्रेम॥117 ख॥


शिवजी पार्वती जी से कहते हैं बहुत प्रकार के योग, जप, दान, तप, यज्ञ, व्रत और नियम करने पर भी प्रभु राम वैसी कृपा नहीं करते जैसी अनन्य प्रेम होने पर करते हैं

ये वनवासी आदि प्रेम से ही बंधे थे और जिनके लिये भगवान् राम कहते हैं


तुम्हरें बल मैं रावनु मार्‌यो

(यही रामत्व है )

उनकी निस्पृहता वर्णनातीत है

निस्पृहता संसार में विजय प्रदान करती है

परमात्मा निस्पृह भक्तों के साथ आनन्द मनाता है


निज निज गृह अब तुम्ह सब जाहू। सुमिरेहु मोहि डरपहु जनि काहू॥

भगवान् राम ने कहा

आप लोगों ने आत्मबल आत्मशक्ति आत्मविश्वास संगठन के महत्त्व को दर्शाने वाले भाव 

राष्ट्र के प्रति प्रेमभाव की जागृति प्राप्त कर ली है अब आप वनवासी अपने अपने घर जा सकते हैं

इन तत्त्वों का सदैव स्मरण करते रहना

भय भ्रम से दूर रहना

यही रामत्व हमें धारण करना है

प्रेम सीमाबद्ध नहीं है स्थान व्यक्ति वस्तु से हो ही जाता है लेकिन यदि तत्त्व से हो जाये तो फिर कहना ही क्या


प्रभु प्रेरित कपि भालु सब राम रूप उर राखि।

हरष बिषाद सहित चले बिनय बिबिध बिधि भाषि॥118 क॥


राम जी ने अतिशय प्रेम देखकर सबको विमान पर चढ़ा लिया। और मन ही मन विप्रचरणों में सिर नवाकर उत्तर दिशा की ओर विमान चला दिया

10.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 10-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें॥

निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी॥


प्रस्तुत है ज्ञान -पुरङ्गव ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 10-02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  561वां सार -संक्षेप

1 पुरङ्गवः =समुद्र


सदाचारी स्वभाव को धारण करने का संकल्प लेने के कारण ही हम श्रोताओं को ज्ञान के पुरङ्गव आचार्य जी द्वारा उद्बोधित इन सदाचार संप्रेषणों की प्रतिदिन प्रतीक्षा रहती है यह सद्भावनापूर्ण संपर्क संबन्ध बहुत अद्भुत है इसी तरह के संपर्क सम्बन्ध संसार सागर को तैरने में सहारा देते हैं

ये संप्रेषण मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति कराते हैं और इनसे  शिक्षा ग्रहण कर हम अपने मन के विकारों को दूर करके दुष्ट विकारियों से संघर्ष करने के लिये तैयार हो सकते हैं 


शरीर यदि मनुष्य का पशुत्व से विमुक्त है, 

अतीव क्षुद्र लोभ लाभ से परम वियुक्त है, 

कभी दया की भीख के सपन नहीं जतन नहीं, 

मनुष्य का कभी कहीं किसी तरह पतन नहीं।


आज कल इन संप्रेषणों में

शक्ति बुद्धि भक्ति पुरुषार्थ करने का उत्साह देने वाली राम कथा


रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी॥



(यह कथा कलियुगरूपी सर्प के लिए मोरनी है साथ ही विवेक रूपी अग्नि के प्राकट्य हेतु अरणि (मंथन की जाने वाली लकड़ी ) 



  चल रही है


संदेह मोह और भ्रम को समाप्त करने में सक्षम मानस की कथा संसार रूपी नदी को पार करने वाली नौका है


हम राष्ट्र- भक्तों के जिनका ध्येय -वाक्य 

" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "


है

के बहुत से संकल्प   भगवान् राजा तपस्वी विचारक चिन्तक दीनदयालु हमारे साथी राम  के उद्घोष जय श्रीराम ने पूर्ण किये हैं

आइये चलते हैं लंका कांड में



तीखे कांटों में खिले गुलाब की तरह भक्त मोक्षकामी  विभीषण कहते हैं

,

सब बिधि नाथ मोहि अपनाइअ। पुनि मोहि सहित अवधपुर जाइअ॥

लेकिन भगवान् राम अब भरत से मिलना चाहते हैं जो

तपस्वी के वेष में दुबले शरीर से निरंतर उनका नाम जप  रहे हैं 

पद्मपुराण के पाताल खंड में भरत जी का विस्तृत दिव्य वर्णन है

मणियों के समूहों (रत्नों) से और वस्त्रों से भरे पुष्पक विमान को विभीषण प्रभु के सामने ले आये

लेकिन भगवान् राम कहते हैं


चढ़ि बिमान सुनु सखा बिभीषन। गगन जाइ बरषहु पट भूषन॥

जोइ जोइ मन भावइ सोइ लेहीं।


स्वयं भगवान् राम तो निर्लिप्त हैं ही उनकी सेना भी निर्लिप्त है तभी भोगी रावण पराजित हुआ इसी निर्लिप्तता में बहुत बल होता है 


आज का Take home message

हम भगवान् राम में रमकर सांसारिक समस्याओं को हल करने के लिये तैयार हों

9.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 09-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सह नौ यशः। सह नौ ब्रह्मवर्चसम्‌। अथातः संहिताया उपनिषदं व्याख्यास्यामः। पञ्चस्वधिकरणेषु। अधिलोकमधिज्यौतिषमधिविद्यमधिप्रजमध्यात्मम्‌ ll


(तैत्तिरीय उपनिषद् )

हम दोनों भावनाओं के आधार पर एक दूसरे से संबन्ध बनाये हुए आचार्य और जिज्ञासु शिष्य एक साथ यशस्वी बनें , एक साथ ब्रह्मवर्चस प्राप्त करें। इसके बाद हम संहिता के गूढ़  अर्थ की व्याख्या करेंगे जिसके पाँच प्रमुख विषय (अधिकरण) हैं

लोकों से सम्बन्धित, ज्योतिर्मय अग्नियों से सम्बन्धित,  विद्या से सम्बन्धित ,प्रजा से सम्बन्धित और आत्मा से सम्बन्धित  इन्हें 'महासंहिता' कहा जाता है।




प्रस्तुत है आयः शूलिक ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 09-02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  560 वां सार -संक्षेप

1 परिश्रमी


विदेशों की भौतिक उपलब्धियों की परम्परा से इतर हमारी आर्ष परम्परा एक श्रेष्ठ परम्परा है और यह अनुभूति का विषय है और जब इसकी अभिव्यक्ति होती है तभी ब्रह्मवर्चस की प्राप्ति होती है


भावनाओं का अत्यन्त गम्भीर महत्त्वपूर्ण संसार केवल मनुष्य को प्राप्त है यही मनुष्यत्व है हमें इसका तिरस्कार नहीं करना चाहिये


भारतभूमि


उस पर है नहीं पसीजा जो, क्या है वह भू का भार नहीं। वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥


 अत्यन्त विलक्षण भावुक चरित्रों की भूमि है


जिसने कि खजाने खोले हैं,नवरत्न दिए हैं लासानी। जिस पर ज्ञानी भी मरते हैं, जिस पर है दुनिया दीवानी॥



 राम कृष्ण की भूमि है

लक्ष्मण भरत सीता कौशल्या कैकेयी दशरथ आदि की धरती है कुछ मूर्खों को मानस के ये भावुक पात्र नहीं दिखाई देते और वे उस ग्रंथ में दोष खोजते हैं 


आइये चलते हैं 

समाज सेवक गोस्वामी तुलसीदास द्वारा हमारे मार्गदर्शन के लिये रचित उसी सर्वसुलभ रामचरित मानस 

के लंका कांड में


सब बिधि नाथ मोहि अपनाइअ। पुनि मोहि सहित अवधपुर जाइअ॥

सुनत बचन मृदु दीनदयाला। सजल भए द्वौ नयन बिसाला॥4॥


विभीषण को अब भोगमय लंका से लगाव नहीं रहा इसलिये वह अयोध्या जाना चाहता है भगवान् राम उन्हें उनके कर्तव्य की याद दिलाते हैं

और यह भी कहते हैं

भरत दसा सुमिरत मोहि निमिष कल्प सम जात॥116 क॥

भगवान् अत्यन्त भावुक हो जाते हैं

इसे आत्मीयता लगाव प्रेम कहते हैं जिसकी कमी के कारण अब हमारे परिवार बिखर गये हैं 


तापस बेष गात कृस जपत निरंतर मोहि।

देखौं बेगि सो जतनु करु सखा निहोरउँ तोहि॥116 ख

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डी ए- वी  कालेज का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

8.2.23

¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 08-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सक्तवैर -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 08-02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  559 वां सार -संक्षेप

1 सक्तवैर =शत्रुता में प्रवृत्त


एक अद्वितीय शिक्षक आचार्य श्री ओम शंकर त्रिपाठी द्वारा उद्बोधित इन संप्रेषणों का जो सुअवसर हमें मिला है हमें उसका लाभ प्राप्त करना चाहिये 

 बहुत से उदाहरण ऐसे भी हैं कि शिक्षक कुण्ठित व्यथित व्यामोहित पराश्रित हो जाता है और तब शिक्षा न होकर ढोंग का प्रदर्शन होता है इसलिये शिक्षक की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है हम भी शिक्षक की भूमिका में आकर नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति से शौर्य प्रमंडित अध्यात्म से सनातन धर्म से संपूर्ण संसार का कल्याण करने वाले अद्भुत भारतीय साहित्य से परिचित करायें


अपनी भारतीय संस्कृति की ओर  उन्मुखता संभव है समाजोन्मुखता संभव है



यद्यपि रामत्व और शिवत्व को प्राप्त करना बहुत कठिन है लेकिन रामोन्मुखी और शिवोन्मुखी होना हमारे हाथ में है


और इसी को प्राप्त करने के लिये और अपने जीवन की दिशा और दृष्टि प्राप्त करने के लिये आइये चलते हैं लंका कांड में


सुमन बरषि सब सुर चले चढ़ि चढ़ि रुचिर बिमान।

देखि सुअवसर प्रभु पहिं आयउ संभु सुजान॥ 114(क)॥


पुष्प -वर्षा करके सारे देवता सुंदर विमानों पर चढ़-चढ़कर चले गये तब सुअवसर जानकर संसार के कल्याण हेतु विष धारण करने वाले त्रिपुरारि शिव  जी त्रिशिरारि भगवान् राम के पास आए और प्रेम से दोनों हाथ जोड़कर, आंखों में जल भरकर,   विनती करने लगे


उन्होंने अद्भुत स्तुति की


अनुज जानकी सहित निरंतर। बसहु राम नृप मम उर अंतर॥


नाथ जबहिं कोसलपुरीं हो‍इहि तिलक तुम्हार।

कृपासिंधु मैं आउब देखन चरित उदार॥ 115


हे नाथ! जब अयोध्या में आपका राजतिलक होगा, तब  मैं आपकी उदार लीला देखने आऊँगा


करि बिनती जब संभु सिधाए। तब प्रभु निकट बिभीषनु आए॥

नाइ चरन सिरु कह मृदु बानी। बिनय सुनहु प्रभु सारँगपानी॥


सकुल सदल प्रभु रावन मार्‌यो कहने वाले रावण के कुल के तारक विभीषण प्रभु के पास पहुंचे

और कहते हैं 

इस दास के घर को पवित्र कीजिए  स्नान कीजिए ताकि युद्ध की थकावट दूर हो जाए। खजाने , महल और सम्पत्ति का निरीक्षण कर प्रसन्नतापूर्वक वनवासियों को दीजिए॥


लेकिन भगवान् राम कहते हैं 



तोर कोस गृह मोर सब सत्य बचन सुनु भ्रात।

भरत दसा सुमिरत मोहि निमिष कल्प सम जात॥116 क॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने 1997 बैच के भैया यतीन्द्र और  1982 बैच के भैया पुरुषोत्तम वाजपेयी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

7.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 07-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही। समुझि परइ जस कारन मोही॥

जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥


करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥



प्रस्तुत है लब्धविद्य ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 07-02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  558 वां सार -संक्षेप

1 विद्वान्


स्थान :सरौंहां


सामाजिक दायित्वों की चर्चा के साथ विलक्षण भारतीय साहित्य से परिचय कराकर उसके  ग्रंथों के प्रति श्रद्धा विश्वास उत्पन्न कर हमें लाभान्वित करने का प्रयास कराते ये संप्रेषण हमें लम्बे समय से प्राप्त हो रहे हैं यह ईश्वर की कृपा है


हम रामभावना -भावित


बै‍देहि अनुज समेत। मम हृदयँ करहु निकेत॥

मोहि जानिऐ निज दास। दे भक्ति रमानिवास॥


और कृष्णभावना -भावित होकर

धर्म के नाम पर समाज को बांटने वाले भारत को खंडित करने का प्रयास करने वाले मानस की प्रतियां जलाने वाले आधुनिक रजनीचरों से मुकाबला कर सकते हैं

हमारे अन्दर जब भाव 

आयेंगे तो शक्ति भी आयेगी यही  व्याकुलता दूर करने वाला शौर्य प्रमंडित अध्यात्म है हमें शक्ति सम्पन्न बनकर अपने चरित्र व्यवहार आचरण बुद्धि व्यवस्थित करके समाजोन्मुखी जीवन जीना है तत्त्वबोध को प्राप्त कर चुके  महापुरुष दीनदयाल जी के वारिस होने के नाते हमारा यह दायित्व भी है

आइये चलते हैं लंका कांड में

इन्द्र कहते हैं


मोहि रहा अति अभिमान। नहिं कोउ मोहि समान॥

अब देखि प्रभु पद कंज। गत मान प्रद दुःख पुंज॥


सुनि ‍प्रिय बचन बोले दीनदयाल॥ 113॥


प्रभु सक त्रिभुअन मारि जिआई। केवल सक्रहि दीन्हि बड़ाई॥ ऐसे राम कहते हैं


हे देवराज! सुनिये , हमारे वनवासियों , जिन्हें राक्षसों ने मार डाला है, पृथ्वी पर पड़े हैं। इन लोगों ने मेरे हित के लिए अपने प्राण त्याग दिए अतः इन सबको ज़िला दें


यह है मनुष्यत्व


सुर अंसिक सब कपि अरु रीछा। जिए सकल रघुपति कीं ईछा॥

ये रामाकार हो गये राक्षस मृत रहे

6.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 06-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 रोम राजि अष्टादस भारा। अस्थि सैल सरिता नस जारा॥

उदर उदधि अधगो जातना। जगमय प्रभु का बहु कलपना॥



जिनकी अठारह प्रकार की अनगिनत वनस्पतियाँ  रोमावली हैं, पर्वत हड्डियां हैं , अमृत देने वाली सरिताएं नसों का जाल हैं, समुद्र पेट है और नरक  नीचे की इंद्रियाँ हैं। कुल मिलाकर प्रभु विश्व भर में व्याप्त हैं, अधिक कल्पना  क्या की जाए




प्रस्तुत है गिरि ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 06-02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  557 वां सार -संक्षेप

1 आदरणीय


स्थान :प्रयागराज


इन निरन्तर चल रहे वाणी संबन्धी यज्ञों से आचार्य जी हमें लाभान्वित करने का प्रयास करते हैं इनसे हम आनन्द का अनुभव करें


चिन्तन में जाएं तो हमें लगेगा हम सभी एक देश हैं

संपूर्ण भारतवर्ष में जितनी शक्तिमत्ता है उतनी ही हमारे अन्दर है यह अनुभव करना चाहिये देश की तरह हमारे शरीर में भी विचार हैं

देश की तरह ही हमारी भी एक शैली  एक सिद्धान्त एक विचार एक पद्धति एक परम्परा है

हम किसी परंपरा को लेकर जन्मे है उसका परिपालन करते हुए उसको विश्वास के साथ अक्षुण्ण रखते हुए आगे चलते हैं हम बहुत सौभाग्यशाली हैं 

भारतभूमि मात्र एक टुकड़ा  नहीं है यहां अनेक अवतार हुए हैं 

हम भी अवतार हैं स्वार्थों के कारण हम अवतारत्व भूल जाते हैं

लेकिन जब भी हमें अवतारत्व का अनुभव हो  स्वयं उससे लाभान्वित होकर उसका वितरण भी करें


जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, आंधर को सब कछु दरसाई॥

बहिरो सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई।


हम समस्याओं पर नजर रखें लेकिन उनसे व्याकुल निराश न हों तथाकथित बुद्धिजीवियों को सारे विश्व का प्रतिनिधित्व करने वाले भारत में दोष ही दोष दिखते हैं

एक सद्भावी की टांग खींचने के लिये बहुत सारे दुर्भावी प्रकट हो जाते हैं

धर्मक्षेत्र शिक्षाक्षेत्र राजनीतिक्षेत्र कोई इससे अछूता नहीं


ऐसे में हमें  परस्थ होने के विपरीत आत्मस्थ होने की आवश्यकता है

चारणीय वृत्ति मनुष्य को पतित करती है

हम आत्मज्ञ बनें


विश्वगुरु भारत के विचारों सिद्धियों निधियों को विश्वासपूर्वक आत्मसात् करें

New generation को इससे अवगत कराएं

अंग्रेजी बोलने में गर्व का अनुभव करना आत्महीनता है इससे दूर रहें

ध्यान प्राणायाम चिन्तन मनन स्वाध्याय निदिध्यासन उचित खानपान पर ध्यान दें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने धीरेन्द्र शास्त्री, गुलाबराय का नाम क्यों लिया प्रयागराज में आचार्य जी कहां ठहरे हैं जानने के लिये सुनें

5.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 05-02- 2023 (माघ पूर्णिमा )का सदाचार संप्रेषण

 सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो


मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।


वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो


वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।15.15।।


मैं सम्पूर्ण प्राणियों के हृदय में हूँ। मेरे द्वारा ही स्मृति, ज्ञान और अपोह ( तर्कशक्ति के द्वारा संशय आदि का निवारण ) होता है। सारे वेदों के द्वारा मैं ही जानने योग्य हूँ। वेदों के तत्त्व का निर्णय करने वाला एवं वेदों को जानने वाला भी मैं ही हूँ।




प्रस्तुत है पटुकरण ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 05-02- 2023

(माघ पूर्णिमा )का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  556 वां सार -संक्षेप

1 जिसके अंग स्वस्थ हैं


हमारे सनातन धर्म का चिन्तन है कि परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है वह ही प्रत्येक जीव का प्राण तत्त्व है

इस चिन्तन के आधार पर श्रद्धा विश्वास करते हुए भारतवर्ष  

(मित्राणि धन धान्यानि प्रजानां सम्मतानिव ।

जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥)


 के अनेक कवियों मनीषियों चिन्तकों विचारकों  वीर योद्धाओं ने अपने अद्भुत भाव क्रिया व्यापार व्यक्त किये हैं


इस चिन्तन पर श्रद्धा विश्वास भक्ति रखते हुए अपने शरीर को मात्र एक साधन मानते हुए सुख दुःख में समान भाव रखते हुए


सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।...


 हम यदि राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण (यह भी रामत्व है क्यों कि भगवान् राम को स्वर्णमयी लंका नहीं भाई थी


अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते ।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥)


समाजोन्मुखी जीवन जीने का प्रयास करेंगे तो हमारी आनन्द -सरिता क्षीण नहीं होगी


आइये प्रवेश करते हैं उन्हीं राम की कथा में

लंका कांड में आगे


बिनय कीन्ह चतुरानन प्रेम पुलक अति गात।

सोभासिंधु बिलोकत लोचन नहीं अघात।।111।।

रणक्षेत्र में सिंहासन पर युगलमूर्ति विराजमान है यहीं पुष्पक विमान आयेगा यहीं से  अपनी मातृभूमि के लिये प्रस्थान भी होगा



तभी दिव्य शरीर धारण कर दशरथ जी वहाँ आए।

तात सकल तव पुन्य प्रभाऊ जीत्यों अजय निसाचर राऊ कहने वाले 

 राम जी को देखकर उनके नेत्र भीग गये अनुज सहित राम जी ने उनकी वंदना की तब पिता से उनको आशीर्वाद  मिला


श्रीराम ने पहले के जीवितकाल के प्रेम को ध्यान कर , पिता की ओर देखकर  उन्हें अपने स्वरूप का दृढ़ ज्ञान करा दिया।

ज्ञान आते ही मोह समाप्त हो जाता है

अब जाकर दशरथ जी को मोक्ष मिला

4.2.23

¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 04-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।


समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।।


गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः।


यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते।।4.23।।



प्रस्तुत है पृथुदर्शिन् ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 04-02- 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  *555 वां* सार -संक्षेप

1 दूरदर्शी



हमें इन सतत चल रहे सदाचार संप्रेषणों को सुनकर गुनकर उनके संकेतों के आधार पर अपने विकास के लिये, आनन्द प्राप्ति के लिये और जीवन के रहस्य को भली भांति समझकर मनुष्योचित जीवन जीने के लिये सतत प्रयत्नशील रहना चाहिये

हमारी गतिविधियां देखकर कार्य शैली देखकर यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि सदाचार वेलाओं से हम कुछ ग्रहण कर रहे हैं या नहीं

 

अपने आप जो मिल जाये उसमें  सन्तुष्ट रहने वाला,  द्वन्द्वों से अतीत तथा ईर्ष्या से रहित,  सिद्धि व असिद्धि में समान भाव वाला  कर्म करके भी नहीं बन्धता है


जो आसक्ति से रहित है जिसका चित्त ज्ञान में स्थित है,  यज्ञ हेतु आचरण करने वाले ऐसे लोगों के सारे कर्म विलीन हो जाते हैं


जिसकी ब्रह्म में ही कर्म-समाधि हो गयी है, उसके द्वारा पाने योग्य फल भी ब्रह्म ही है यह जानकर 

  हमें आनन्द की अनुभूति होती है यह सब बुद्धि की सम अवस्था से प्राप्त होता है



शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणं तथा । ऊहापोहोऽर्थविज्ञानं तत्वज्ञानं च धीगुणा: ॥

 (महाभारत, कुम्भकोणं सं., 3.2.19) 

 बुद्धि के  आठ अंग हैं-

 (1) शुश्रूषा 

(2) श्रवण 

( 3 ) ग्रहण

(4) धारण 

(5) ऊहा 

(6)अपोह 

 (7) अर्थविज्ञान

(8) तत्वज्ञान

आचार्य जी ने इन अंगों की व्याख्या की


बुद्धि के इन तत्वों को हम ग्रहण करें निर्मल मन कर इनके लिये प्रयास करें

उत्साह शौर्य शक्ति भक्ति के साथ जीवन में आगे चलें 


हम देवता परम अधिकारी। स्वारथ रत प्रभु भगति बिसारी।।

भव प्रबाहँ संतत हम परे। अब प्रभु पाहि सरन अनुसरे॥6॥

हम प्रवेश कर चुके हैं लंका कांड में

जन्म मृत्यु के चक्कर में पड़े देवता भी प्रभु की शरण मांग रहे हैं यही तत्वज्ञान हमें समझना है संसार केवल धरती नहीं है अनंत ब्रह्माण्डों का समूह संसार है

3.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 03-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 शुद्धोसि बुद्धोसि निरञ्जनोऽसि संसारमाया परिवर्जितोऽसि


संसारस्वप्नं त्यज मोहनिद्रां मदालसोल्लपमुवाच पुत्रम्।



प्रस्तुत है पृथुकीर्ति ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 03-02- 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  *554 वां* सार -संक्षेप

1 दूर दूर तक विख्यात


स्थान :कानपुर



प्रातःकाल की यह वेला संसारेतर चिन्तन के लिये है

वैसे तो दिनभर हमारे साथ संसार लगा ही रहता है हमें इस वेला का सदुपयोग करना चाहिये हमें मनुष्य का जीवन मिला है इसकी अद्भुतता को पहचानें 

रुचि श्रद्धा विश्वास समर्पण संयम के साथ हम आचार्य जी से अधिक से अधिक ग्रहण करें और स्वयं भी अगली पीढ़ी को देने के लिये माध्यम बनें

मन को संयत करना मन को अनुकूल बनाना मनुष्य की साधना का एक महत्त्वपूर्ण अंग है 

क्योंकि 

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।


तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।6.34।।


यह मन बड़ा  चंचल, प्रमथन स्वभाव के साथ बलवान् और दृढ़ है

 उसका निग्रह करना  वायु के समान अति दुष्कर है ।।

भारत विश्व का हृदयस्थल है साधना के लिये यह सबसे उपयुक्त स्थान है हमारी सांस्कृतिक परम्परा बहुत गहरी मजबूत और विचारपूर्ण है हमारा लक्ष्य है भारत वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाये भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित कर सकता है 

आत्मस्थ होकर अपने अस्तित्व को पहचानकर व्यक्तित्व को विकसित करने के लिये समाज के साथ सामञ्जस्य बैठाना कौशल का काम है

ध्यान आत्मस्थता का प्रारम्भिक प्रयोग है 


साधना के वैशिष्ट्य को हम समझते हुए उचित खानपान की ओर ध्यान दें  वाणी व्यवहार में नियन्त्रण रखें प्रातः जल्दी जागें विकारों को दूर करने का प्रयास करें सद्विचारों को ग्रहण करते चलें व्याकुलता से दूर रहें सतर्क सचेत रहें

क्षुद्र स्वार्थ लोभ को दरकिनार करते हुए संगठन का महत्त्व समझते हुए हम संगठित होकर बहुत कुछ कर सकते हैं एक दूसरे से संपर्क में रहें 

अपने विचार प्रकट कर समाज को जाग्रत करें

2.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 02-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 अपनी संस्कृति-परिपाटी पर विश्वास करो 

है व्यर्थ पश्चिमी दुनिया वाला चाकचिक्य, 

संयम सिद्धांत साधना वाला जीवन ही 

अनुभव करता रहता अपने में सब अधिक्य।


प्रस्तुत है ज्ञान -कुस्तुभ ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 02-02- 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  *553 वां* सार -संक्षेप

1 ज्ञान -कुस्तुभ =ज्ञान का समुद्र


स्थान : कानपुर



शौर्य प्रमंडित अध्यात्म  यही सिखाता है कि हमें भय और भ्रम से दूर रहना चाहिये हमें अपनी भारतीय संस्कृति पर, सनातन धर्म पर पूर्ण विश्वास करना चाहिये कोई भी व्यक्ति अपनी संतान में भय भ्रम नहीं देखना चाहता हम सभी आचार्य जी की बौद्धिक संतान हैं इसलिये हमें भय भ्रम दम्भ से दूर होकर विवेकी बनने का प्रयास करना चाहिये आचार्य जी प्रतिदिन हमारे धुंधले मार्ग को प्रकाशित करते हैं 

हमें तो यही कहना है 

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः


करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान । रसरी आवत-जात के, सिल पर परत निशान ।।

हमें बार बार इसी बात का ध्यान रखना है कि

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

 मार्गदर्शक संरक्षक अभिभावक राष्ट्र भक्त तुलसीदास जी हमारे राष्ट्र को जगाने की वाणी थे वो देख रहे थे कि दुष्ट हिन्दू धर्म को समाप्त करने का कुचक्र रच रहे हैं

जो  हिन्दू समाज को एक जुट  करने का प्रयास कर रहा हो वो भ्रमित कैसे हो सकता है

किष्किंधा कांड में आता है


अब नाथ करि करुना बिलोकहु देहु जो बर मागऊँ।

जेहि जोनि जन्मौं कर्म बस तहँ राम पद अनुरागऊँ॥


तुलसी जी ने हिन्दुत्व की धारा को ऐसे समय में दिशा दी जब चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था उस समय भी रावण खर दूषण शूर्पणखा कुम्भकर्ण मौजूद थे आज भी हैं इन सबके अपने अपने लक्ष्य हैं

विद्वान को तो भ्रमित होना ही नहीं चाहिये युवा भ्रमित हो तो और चिन्ता की बात है

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि 

हमें नित्य उच्च स्वर में मानस का पाठ करना चाहिये

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रशान्त बोडस भैया संदीप बोडस भैया मनीष कृष्णा भैया विभास का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

1.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 01-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है गुहेर ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 01-02- 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  *552 वां* सार -संक्षेप

1 गुहेर =अभिभावक


हम लोग आज पुनः असीमित पवित्र भावनाओं के महायज्ञ दीनदयाल विद्यालय में आहुति डालने का सौभाग्य प्राप्त करने वाले आचार्य जी की सदाचार वेला में उपस्थित होकर हनुमान जी से दिशा दृष्टि प्राप्त करने के लिये भाव ग्रहण करेंगे


हम लोगों की इन वेलाओं में लगातार उत्सुकता बनी रहना ईश्वर की अद्भुत लीला है

श्रद्धा विश्वास रखकर हम ईश्वर के दर्शन कर सकते हैं



हम ज्ञान



(ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः।


यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते।।7.2।।)


 प्राप्त करने की दिशा में चलें सहज भाव से अपनी शक्ति बुद्धि का प्रयोग कर श्रेय प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होने का हमें प्रयास करना चाहिये ज्ञान प्राप्त करने के बाद समृद्धि प्रभावित नहीं करती 

ऐसा कर्म व्यवहार करें कि हमारी कीर्ति छाए

जैसा कर्म व्यवहार भगवान् राम ने किया हनुमान जी ने किया मां सीता जी ने किया 

आइये चलते हैं उन्हीं की झलक पाने के लिये उनके सद्गुण ग्रहण करने के लिये 

लंका कांड में

अग्नि में प्रवेश करते समय सीता जी कहती हैं



जौं मन बच क्रम मम उर माहीं। तजि रघुबीर आन गति नाहीं॥

तौ कृसानु सब कै गति जाना। मो कहुँ होउ श्रीखंड समाना॥4॥

देवता अब खुश हैं कि रावण का अन्त हो गया

जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥

करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने दारा सिंह,गुरु जी,लोमश ऋषि का नाम क्यों लिया

देवताओं और आज के नेताओं में क्या समानता है जानने के लिये सुनें