प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११५९ वां* सार -संक्षेप
मनुष्य का स्वभाव है कि कभी कभी वह अपने को अशक्त अनुभव करता है यह शक्तिहीनता शारीरिक मानसिक भौतिक कुछ भी हो सकती है आचार्य जी इन आदर्श सात्विक समाजोन्मुख आध्यात्मिक सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से नित्य यही प्रयास करते हैं कि हमें शक्तिहीनता की अनुभूति न हो हम शौर्य प्रमंडित अध्यात्म के पथ पर बिना भौतिक लाभ की आशा के चलने का संकल्प लें
आइये प्रवेश करें अध्यात्म का आनन्द प्राप्त करने के लिए आज की वेला में
विनय पत्रिका विनय पर आधारित तुलसीदास जी की एक महत्त्वपूर्ण रचना है इसका ४१ वां छंद अद्भुत है
कबहुँक अंब, अवसर पाइ।
मेरिऔ सुधि द्याइबी, कछु करुन-कथा चलाइ॥
दीन, सब अँगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ।
नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ॥
बूझिहैं ‘सो है कौन’, कहिबी नाम दसा जनाइ।
सुनत राम कृपालु के मेरी बिगरिऔ बनि जाइ॥
जानकी जगजनिन जनकी किये बचन सहाइ।
तरै तुलसीदास भव भव नाथ-गुन-गन गाइ॥
तुलसीदास सीता से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे मां ! कभी अवसर हो तो कुछ करुणा का प्रसंग छेड़कर प्रभु राम जी को मेरी भी याद दिला देना उनसे कहना कि एक अत्यंत दीन, सारे साधनों से हीन, दुर्बल और पापी मनुष्य आप की दासी का दास कहलाकर और आपका नाम जपकर उदर पूर्ति करता है। तब प्रभु पूछें कि वह व्यक्ति कौन है, तो मेरा नाम और मेरी दशा उन्हें बता देना। करुणाकर रामचंद्र जी के इतना सुन लेने से ही मेरी सारी बिगड़ी बात बन जाएगी। यदि इस दास की आपने इस प्रकार वचनों से ही सहायता कर दी तो यह तुलसीदास आपके स्वामी के गुणों को बखान कर भवसागर से तर जाएगा।
इसी पत्रिका के अंत में भगवान राम ने पत्रिका को उत्तम बता दिया यहां कवि की अद्भुत कल्पना परिलक्षित हुई
कवि भक्त भी होता है कवित्व अद्भुत है जिसका प्रारम्भ लेखन से होता है
अद्भुत और अवर्णनीय है भक्ति
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने संत रविदास जी की चर्चा क्यों की हमारे लक्ष्य क्या हैं गीतावली की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें