30.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११५९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष  त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  30 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११५९ वां* सार -संक्षेप


मनुष्य का स्वभाव है कि   कभी कभी वह अपने को अशक्त अनुभव करता है यह शक्तिहीनता शारीरिक मानसिक भौतिक कुछ भी हो सकती है आचार्य जी इन आदर्श सात्विक समाजोन्मुख आध्यात्मिक सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से नित्य यही प्रयास करते हैं कि हमें शक्तिहीनता की अनुभूति न हो हम शौर्य प्रमंडित अध्यात्म के पथ पर बिना भौतिक लाभ की आशा के चलने का संकल्प लें 

आइये प्रवेश करें अध्यात्म का आनन्द प्राप्त करने के लिए आज की वेला में 


विनय पत्रिका विनय पर आधारित तुलसीदास जी की एक महत्त्वपूर्ण रचना है इसका ४१ वां छंद अद्भुत है 


कबहुँक अंब, अवसर पाइ। 


मेरिऔ सुधि द्याइबी, कछु करुन-कथा चलाइ॥ 


दीन, सब अँगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ। 


नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ॥ 


बूझिहैं ‘सो है कौन’, कहिबी नाम दसा जनाइ। 


सुनत राम कृपालु के मेरी बिगरिऔ बनि जाइ॥ 


जानकी जगजनिन जनकी किये बचन सहाइ। 


तरै तुलसीदास भव भव नाथ-गुन-गन गाइ॥ 


तुलसीदास सीता से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे मां ! कभी अवसर हो तो कुछ करुणा का प्रसंग छेड़कर प्रभु राम जी को मेरी भी याद दिला देना  उनसे कहना कि एक अत्यंत दीन, सारे साधनों से हीन, दुर्बल और  पापी मनुष्य आप की दासी का दास कहलाकर और आपका नाम जपकर उदर पूर्ति करता है। तब प्रभु पूछें कि वह व्यक्ति कौन है, तो मेरा नाम और मेरी दशा उन्हें बता देना। करुणाकर रामचंद्र जी के इतना सुन लेने से ही मेरी सारी बिगड़ी बात बन जाएगी। यदि इस दास की आपने इस प्रकार वचनों से ही सहायता कर दी तो यह तुलसीदास आपके स्वामी के गुणों को बखान कर भवसागर से तर जाएगा।


इसी पत्रिका के अंत में भगवान राम ने पत्रिका को उत्तम बता दिया यहां कवि की अद्भुत कल्पना परिलक्षित हुई 

कवि भक्त भी होता है कवित्व अद्भुत  है जिसका प्रारम्भ लेखन से होता है

 अद्भुत  और अवर्णनीय है भक्ति 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने संत रविदास जी की चर्चा क्यों की हमारे लक्ष्य क्या हैं गीतावली की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

29.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 29 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११५८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष  द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  29 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११५८ वां* सार -संक्षेप


भगवान् सर्वत्र व्याप्त है  यहां है वहां है वह दूर है वह पास भी है हमें देखने की दृष्टि चाहिए  देखा जाए तो पूरे ब्रह्मांड में सब कुछ ईश्वर द्वारा ही आच्छादित है। परमात्मा की लीला अद्भुत है 


ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌ ॥


कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥


मनुष्य को इस संसार में कर्मरत रहते हुए ही सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिए । इससे भिन्न किसी और प्रकार का विधान है ही नहीं ,इस प्रकार कर्म करते हुए ही जीवित रहने के इच्छुक व्यक्ति में कर्म का लेप नहीं होता।


असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः।तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ॥

वे लोक सूर्य से रहित हैं और घोर अन्धकार से आच्छादित हैं।

 जो कोई भी अपनी आत्मा का हनन करता है  वह इन्हीं लोकों में पहुंच जाता है

हमें आत्म को जानना चाहिए यही अध्यात्म है 

हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म भारत में हुआ है  


उठें प्रात: सभी उत्साह का उत्सव मनाने को

निशा में नींद के पहले कि कुछ यह गुनगुनाने को 

बड़ा सौभाग्य है अपना कि भारतभूमि में जन्मे 

स्वयं की कर्मनिष्ठा शौर्य नवयुग को सुनाने को


दिन भर हम सांसारिकता में लिप्त रहते हैं प्रातःकाल हम सदाचारमय विचार ग्रहण कर सकें इसके लिए आचार्य जी नित्य प्रेरित करते हैं  आचार्य जी  यह अद्भुत प्रयास करते हैं ताकि हम अविद्या के साथ विद्या को भी जान सकें आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त कर सकें हम यह जान सकें कि ईश्वर की अनुभूति अत्यन्त आनन्ददायक होती है 

निराश योद्धा की निराशा दूर करने के लिए भगवान कृष्ण ज्ञान देते हैं कभी राम योद्धा बनकर आगे आते हैं यही सनातनत्व है 

संसार का सार ही यही है कि जिसकी जो भूमिका हो उसे वह पता होनी चाहिए 

हम राष्ट्रभक्तों को भी अपनी भूमिका की पहचान होनी चाहिए

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः 

हम अपनी भूमिका से अपदस्थ न हों और हंसी का पात्र न बनें आत्मबोध आत्मशोध आत्मशक्ति अनिवार्य है

राक्षसी वृत्तियों को समाप्त करने का उत्साह हमारे अन्दर होना चाहिए हम बिल्कुल निराश हताश न हों 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने विद्यालय का कौन सा प्रसंग बताया जिसमें अलादीन के चिराग का उल्लेख हुआ भारती जी कालिका जी का नाम क्यों आया भैया विकास जी की आज कौन सी अच्छाई आचार्य जी ने बताई जानने के लिए सुनें

28.9.24

[9/28, 06:27] Praveen: प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 28 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११५७ वां* सार -संक्षेप [9/28, 07:22] Praveen: आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 28 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११५७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष  एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  28 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११५७ वां* सार -संक्षेप

आचार्य जी का नित्य प्रयास रहता है कि हमारी यह पात्रता बनी रही कि हनुमान जी हमको शक्ति बुद्धि विचार आनन्द प्रदान करें

 और हमारा कर्तव्य है कि हम यह पात्रता अगली पीढ़ी को देने का प्रयास करें

 कभी निराशा को अपने पास हम फटकने न दें 

गीता मानस उपनिषद् आदि का अध्ययन करें 

लेखन भी करें संयम साधना में मन लगाएं 

और शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति करें क्योंकि 


हमारे देश की तासीर संयम-साधना की है 

मनस्वी चिंतना की और मधुमय भावना की है 

मगर खल दुष्ट दानव के जभी अतिचार बढ़ते हैं

तभी यमपाश का बंधन जकड़ कर बाँधना की है।


और इसी कारण हम राष्ट्रभक्तों को संगठित रहना अनिवार्य है 


संगठन परिवार-भावों का सहज विस्तार है 

और अपने हृदय के मधुरिम स्वरों का तार है 

संगठन शिवशक्ति-तत्वों का अनोखा हार है 

और दैवी शक्ति का दानव-दलन का सार है। 

अतः भ्रम भय त्याग कर शुभ संगठन-हित जागिए 

स्वार्थ सुख सुविधा प्रमादी भावना को त्यागिए।


हमारा सनातन धर्म वैभव ऐश्वर्य पद प्रतिष्ठा वाली बाह्यदृष्टि से इतर प्रेम आत्मीयता ममत्व  परिवार -भाव परमार्थ संयम साधना समर्पण तप त्याग मधुमय भावना चिन्तन मनन वाली अन्तर्दृष्टि का धनी है वह संपूर्ण वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानता है 


यह अन्तर्दृष्टि ही अध्यात्म का प्रकटीकरण कही जा सकती है


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हाल में सम्पन्न हुए अधिवेशन के संस्मरणों को हम लोग लिखें और उन्हें एकत्र करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी के किस कार्य की सराहना की भांग गांजे का उल्लेख क्यों हुआ ब्राह्मी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

27.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११५६ वां* सार -संक्षेप

 मिले जितने कदम उनको संजोकर एक रखना है 

जहाँ जो रुक गए उनको समझना है परखना है

अभी मंजिल हमारी दूर है पर आयेगी निश्चित

यही संकल्प हम सबको अहर्निश नित्य रखना है।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  27 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११५६ वां* सार -संक्षेप



जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार। संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥ 6॥


यह नाम रूपात्मक जगत है  जहां चेतन अचेतन दोनों पदार्थ हैं पद का अर्थ है नाम और पदार्थ का अर्थ है रूप 

नाम सुना तो रूप की चिन्ता है और रूप देखा तो नाम की चिन्ता है 

हमारे यहां चेतन और अचेतन दोनों का चिन्तन हुआ है अभ्यान्तरिक चिन्तन को दर्शन कहते हैं और बाह्य चिन्तन को विज्ञान 

और ये दोनों एक हैं

भारत में बारह दर्शन प्रचलित हुए छह आस्तिक छह ही नास्तिक 

आस्तिक दर्शन  हैं  न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त 

नास्तिक दर्शन हैं 

वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार, माध्यमिक, चार्वाक और आर्हत 


वेद को प्रामाणिक मानने वाले दर्शन को ’आस्तिक’ तथा वेद को अप्रमाणिक मानने वाले दर्शन को ’नास्तिक’ कहा जाता है।

संपूर्ण विश्व में इन्हीं का विस्तार है 

आस्तिक दर्शनों में अन्त में है वेदान्त 

अर्थात् ज्ञान का अन्तिम भाग 

सारा विश्व प्रपंच इस वेदान्त का तत्व है यह ब्रह्म का अंश है वेदान्त में ही शुद्धाद्वैत द्वैत अद्वैत विशिष्टाद्वैत केवलाद्वैत आदि हैं 

दुर्भाग्य से हमें अत्यधिक भ्रमित कर दिया गया 

और इनका अध्ययन करने में हमारी अरुचि हो गई 

विश्व में अन्यत्र ऐसा  ज्ञान का भण्डार नहीं है 

आचार्य जी हमें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन विचार प्राणायाम लेखन आदि के लिए  तो नित्य प्रेरित करते ही हैं इसके साथ ही आत्मशक्ति और बाहुबल की अनिवार्यता पर भी जोर देते हैं 

शत्रु को भयभीत करने के लिए शौर्य प्रमंडित अध्यात्म आज के समय की मांग है शौर्य की उपेक्षा करने पर अध्यात्म अधूरा है 

शौर्य संसार का धर्म है और संपूर्ण जीवन का मर्म है अपने अन्दर रामत्व का प्रवेश कराएं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संतोष मिश्र जी भैया मनीष जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

26.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११५५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  26 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११५५ वां* सार -संक्षेप


हम परमात्मा से अलग नहीं हैं हम उसी के द्वारा निर्मित  और संचालित हैं हम आविर्भाव और तिरोभाव का एक भाग हैं इसके अतिरिक्त हम कुछ नहीं हैं कुछ नहीं में चिन्तन करते करते यदि हम जाएं तो यह एक अनुभूति का विषय है कि हम क्या हैं अनेक बार प्रतीत होता है कि हम बहुत कुछ हैं और अनेक बार ऐसा लगता है कि हम कुछ भी नहीं हैं


हम एक ऐसा रहस्यात्मक तत्व है जिसे सुस्पष्ट बुद्धि से ही समझा जा सकता है यह सुस्पष्टता ही संस्कार है

 हमें अपनी प्रतिष्ठा सम्मान की अनुभूति रहती ही है यही आत्मबोध का एक लघु स्वरूप है आत्मबोधोत्सव मनाना ही अध्यात्म है


एक आनन्द का तत्त्व है कि हमें कोई अपना प्रिय लगता है मां को जीवन भर यही अनुभव होता है भले ही उसका पुत्र उस पर ध्यान न दे किन्तु जिनके मन में भी मां पिता गुरु आदि के प्रति अपार श्रद्धा होती है वे उन्हें उपेक्षा की दृष्टि से नहीं देखते इसी कारण इन्हें सत्पुत्र कहा जाता है भारत की सर्वसमावेशी संस्कृति अद्भुत है कि हम संपूर्ण देश को अपनी मां मानते हैं इसके प्रति हमारा वात्सल्य प्रेम आत्मीयता श्रद्धा विश्वास अखंडित रूप से विद्यमान है


आचार्य जी ने आत्मदर्शन को भी स्पष्ट किया 

रीझत राम सनेह निसोतें। को जग मंद मलिनमति मोतें॥

अर्थात् 

भगवान् राम तो विशुद्ध प्रेम के द्वारा ही रीझते हैं, परन्तु इस जगत में मुझसे अधिक मूर्ख और मलिन बुद्धि वाला अन्य कौन होगा ?

हमारी संस्कृति में प्रेम आत्मीयता पर बल दिया गया है हम आस्तिक दर्शनों को भी मानते हैं और नास्तिक दर्शनों को भी 

हम बलपूर्वक किसी पर कुछ थोपना नहीं चाहते 

इस्लाम इससे भिन्न है 

हर दिशा में संघर्ष ही संघर्ष चल रहा है  कई युद्ध चल रहे हैं हम शान्ति चाहते हैं हमारे यहां प्रवचन चल रहे हैं 

अद्भुत है भारत की भूमि यहां की संस्कृति यहां का दर्शन यहां के भाव और विचार 

हमें इनकी अनुभूति करनी चाहिए 

जीवन इसी तरह जीना चाहिए प्रेम आत्मीयता आदि के आधार पर द्वेष घृणा से इतर 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्री अभय  (दीनदयाल शोध संस्थान ), भैया पंकज जी भैया संतोष मिश्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

25.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११५४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  25 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११५४ वां* सार -संक्षेप

इस समय परिस्थितियां विषम हैं आदर्शों ने दम तोड़ रखा  है मर्यादाएं हताश हैं राम के शर तूणीर में शयन कर रहे हैं धर्मदंडी भोग लिप्सा में रमे हैं निष्ठाएं समय का साथ दे रही हैं घुप अंधेरे में अजीब सी भगदड़ मची है मुखों पर छल के मुखौटे चढ़े हैं  ऐसे में हमें अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिए 

यह हमारा सौभाग्य है कि अविश्वासों और भ्रमों के भंवर में फंसे हम लोगों को उचित मार्ग दिखाने में युगभारती के विशाल परिवार के प्रत्येक सदस्य को बांधे रखने की अद्भुत क्षमता से सम्पन्न आचार्य जी नित्य रत रहते हैं 

आचार्य जी परामर्श देते हैं कि हमें अध्ययन स्वाध्याय के साथ अपने विचारों का लेखन भी करना चाहिए और आत्मस्थ होने की चेष्टा करनी चाहिए 

हमारी शिक्षा जिसका आधार हमारे ग्रंथ जैसे वेद पुराण उपनिषद् मनुस्मृति याज्ञवल्क्य स्मृति आदि होने चाहिए थे को बहुत दूषित किया गया 

आचार्य जी  जिन्होंने आज भी अत्यन्त विषम परिस्थितियों में फंसे रहने के बाद भी अपने शिक्षकत्व को जगाए रखा है निम्नांकित दोहों में शिक्षा की दुर्दशा व्यक्त कर रहे हैं 


शिक्षक दरबारी हुआ शिक्षा रोटी दाल 

खोज खोज कर खो गया भारत मां का लाल


बाजारू शिक्षा हुई शिक्षक हुआ दलाल 

इस अद्भुत व्यापार में तिकड़म मालामाल



जब कि शिक्षा वास्तव में है क्या 

इन दोहों में देखिए 


शिक्षा मानवधर्म है जग निस्तारण मर्म 

शिक्षा की भागीरथी सुलभ कराती सर्म



शिक्षा ही संतोष है शिक्षा विभव अपार 

शिक्षित जन ही जानते उचित जगत व्यवहार


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संतोष मिश्र जी भैया विभास जी का नाम क्यों लिया 

श्री कृष्ण बिहारी जी पांडेय जी का उल्लेख क्यों हुआ  किसने आचार्य जी को आचार्य जी की एक पुरानी फाइल खोज कर दे दी जानने के लिए सुनें

24.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११५३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  24 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११५३ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं ताकि हम विविध क्षेत्रों में कार्य करते हुए अपने परिवार को चलाते हुए देश की सेवा में  समर्पित रहें हम यह भाव रखें कि अपने परिवार की तरह युगभारती भी हमारा परिवार है यह राष्ट्र  हमारा बड़ा परिवार है जिसके लिए हमारे भाव विचार क्रिया सारे समर्पित रहें जिस तरह विदेश में रहने वाले व्यक्ति अपने इस देश में रहने वाले पारिवारिक सदस्यों की खोज खबर लेते हैं उनकी चिन्ता करते हैं उसी प्रकार


पखेरू! भले छत छुओ व्योम की, 

पर धरा पर तुम्हे लौट आना पड़ेगा

निराधार आधेय को अंत में तो,

सहारा यहीं का दिलाना पड़ेगा


शिशु पाल सिंह


यह हमारी धरा है जो विश्राम के लिए है वह गगन है जो उड़ने के लिए है यह हमारी मातृभूमि है इस भाव का कभी परित्याग नहीं करना चाहिए संसार में कहीं रहें किन्तु इस धरती से संयुत रहें इसका कण कण वन्दनीय अर्चनीय पूजनीय है 

विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमस्वमेव' 

आदि मन्त्र हमें जाग्रत करते हैं इनसे हमें अपने देश के प्रति अपनी परंपरा के प्रति विश्वास पैदा होता है


इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश के चर्चित जिलाधिकारी भैया विकास जी, भैया संतोष मिश्र जी ने आचार्य जी को कौन सी पुस्तकें दीं आचार्य जी ने प्रसिद्ध लेखक कृष्णानन्द सागर जी की पुस्तक "भारत की तेजस्वी नारियां " की चर्चा क्यों की भैया शरद जी का नाम क्यों लिया चिन्तना किसका संगठन है अधिवेशन के विषय में आज आचार्य जी ने क्या कहा जानने के लिए सुनें

23.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११५२ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  23 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११५२ वां सार -संक्षेप


   कोई  भी संगठन हो उनमें सभी सदस्यों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है चैतन्य से युक्त सदस्य सक्रिय रहते हैं जब किसी सदस्य की सक्रियता कम होती है दूसरा वह दायित्व ले लेता है जिसके सभी सदस्य निष्क्रिय हो जाते हैं वह संगठन इतिहास बन जाता है

समाजोन्नयन के सिद्धान्त पर चलने वाला अपना संगठन युगभारती इतिहास नहीं बन रहा है वह तो अपने स्वरूप के विस्तार में रत है उसी स्वरूप के विस्तार का प्रत्यक्ष प्रमाण  आश्चर्य ढंग से सफल  हुआ कल का राष्ट्रीय अधिवेशन था जिसमें सभी सदस्यों, जिनके अन्दर पं दीनदयाल जी की साधना समाहित है और जिन्होंने राष्ट्र के अंधकार को छांटने का संकल्प लिया है, ने उत्साह से भाग लिया

परमात्मा की जिन पर विशेष कृपा रहती है वे महापुरुष हो जाते हैं और महापुरुष जिस पथ  पर चलते हैं वही पथ हमारे लिए प्रेरणा होता है वही उचित पथ होता है

हम अपने अंदर की संचेतना को जाग्रत रखें ताकि कार्य और व्यवहार की समीक्षा कर सकें संगठित रहें अच्छा अच्छा देखें अच्छा अच्छा ही सुनें अच्छे के साथ हमारा मानस भी निर्मल होता जाएगा

खानपान जागरण शयन व्यवस्थित रखें अध्ययन और लेखन में रुचि जाग्रत करें 

अगले वर्ष दिल्ली में अधिवेशन है उसकी तैयारी हम अभी से प्रारम्भ कर दें जो योजना बनाएं जो विचार आएं उन्हें लिख लें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आज किन महापुरुषों का नाम लिया भैया संतोष मिश्र जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

22.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 22 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११५१ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  22 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११५१ वां सार -संक्षेप


स्थान : लक्ष्मणपुरी (लखनऊ )


उत्साह, उमंग,उल्लास, विश्वास और भावना से संयुत  हमारी समाजोन्मुखता के साथ हमारे अन्दर की सुरक्षित ऊर्जा को प्रदर्शित करने वाला और उसे प्रवाहित करने की शक्ति प्रदान करने वाला  अपने विचारों को विश्वास में परिवर्तित करने का हौसला देने वाला अत्यन्त आनन्ददायक सम्मर्द कल से यहां लखनऊ में प्रारम्भ हो गया जिसमें हम राष्ट्र -भक्त (जिनमें पं दीनदयाल जी शतगुणित शक्तियों के साथ प्रविष्ट हो गए हैं) बिना भेदभाव के आत्मविस्तार की इच्छा लिए एकत्र हुए हैं इस सम्मेलन ने अनेक कीर्तिमान स्थापित कर दिए हैं इस सम्मेलन से निश्चित रूप से हमें ऊर्जा मिलेगी दृष्टि मिलेगी और हमारी दिशा सुस्पष्ट होगी 



इसके अतिरिक्त  जिलाधिकारी भैया विकास जी, भैया संतोष मिश्र जी, भैया विनय जी,भैया अभय जी, भैया बलराज पासी जी , भैया प्रतीक दुबे जी, भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी, भैया पुनीत जी भैया अरविन्द जी की चर्चा क्यों हुई आदिवासियों द्वारा बनाई गई मूर्ति किसने प्रदान की राजनीति में सात्विक शक्ति की क्यों आवश्यकता है आदि जानने के लिए सुनें

21.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११५० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  21 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११५० वां सार -संक्षेप


राम के आदर्श और गीता के ज्ञान को आत्मसात् करने के लिए संकल्पित अपनी आत्ममूर्तियों के दर्शन के सदैव इच्छुक अत्यन्त भावुक आचार्य जी सदाचारमय संस्कारमय विचारों द्वारा नित्य हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि किसी विषय की भौतिक प्राप्ति न होने पर भी उस विषय के प्रति हम उत्साहित रहें हम सांसारिक उलझावों में फंसे न रहें 

आज से राष्ट्रीय अधिवेशन प्रारम्भ हो रहा है जिसका उद्देश्य भौतिक प्राप्ति नहीं है मानसिक संतोष और आत्मिक आनन्द की प्राप्ति इसका उद्देश्य है 

अधिवेशन में हमें संगठन का आनन्द मिलने वाला है वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए वचनबद्ध होने जा रहे हैं राष्ट्र संकट में है संपूर्ण जगत् का गुरुत्व धारण करने वाले जिस राष्ट्र ने संपूर्ण विश्व को आर्य बनाने का संकल्प लिया उसमें अनार्य लोग खूब तांडव मचाते रहे उस राष्ट्र के आर्य अपने आर्यत्व को बचाने के लिए छिपते घूमते रहे आज भी यही स्थिति है

हम स्वयं भी संकल्पित हैं कि संपूर्ण विश्व को आर्य बनाने में गायत्री और सावित्री के उपासक हम सफल होंगे गहरे अंधेरे को मिटाने में सफल होंगे दीनदयाल जी के विचारों को साधना को सिद्धि तक पहुंचाने जा रहे हैं 

हमारे चार आयाम हैं शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा जिन पर हम चर्चा करने जा रहे हैं जिसमें शिक्षा मूल है और शेष इसकी शाखाएं 

हमारी शिक्षा को ही मलिन किया जिसके कारण आज यह दशा है इस कारण शिक्षा पर चिन्तन अत्यन्त आवश्यक है 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अधिवेशन में और क्या सावधानियां बरतने के लिए कहा आदि जानने के लिए सुनें

20.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 20 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११४९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  20 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११४९ वां* सार -संक्षेप

स्थान :भैया अरविन्द तिवारी जी का आवास लक्ष्मणपुरी (लखनऊ )


इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य स्पष्ट है आचार्य जी इन्हीं के माध्यम से नित्य प्रयास करते हैं कि हम ध्यान धारणा निदिध्यासन चिन्तन मनन लेखन में रत हों  ध्यान और धारणा से शरीर के भीतर का सूक्ष्म तत्त्व, शरीर के अन्दर की ऊर्जा जाग्रत होती है और यह अपने प्रयास से ही जाग्रत होती है हम अपना परिवार (युगभारती परिवार )भाव विस्तृत करें हमारा आत्मबोध जाग्रत हो  हम आत्मबोधोत्सव मनाने के लिए सन्नद्ध हों

मैं कौन हूं मैं कहां से आया हूं मुझे कहां जाना है और जब आत्मबोध होता है तो भय नहीं रहता जिस प्रकार भगवान् बुद्ध को आत्मबोध हुआ था और उन्हें डाकू अंगुलिमाल से डर नहीं लगा उन्होंने अंगुलिमाल से कहा 

एक व्यक्ति का सिर जोड़ नहीं सकते तो काटने में क्या वीरता है? अंगुलिमाल अवाक रह गया। वह उनकी बातों को सुनता रहा। एक अनजानी शक्ति ने उसके हृदय को परिवर्तित कर दिया। उसे लगा कि वास्तव में उससे भी ताकतवर कोई है और उसे आत्मग्लानि होने लगी।

वह उनके चरणों में गिर पड़ा और बोला- 'हे महात्मन् ! मुझे क्षमा कर दीजिए। मैं भटक गया था। आप मुझे अपनी शरण में ले लीजिए

और इस प्रकार वह डाकू उनका शिष्य बन गया

इन कथाओं में अत्यधिक तत्त्व होता है जब हम समझदार हो जाते हैं तो उसका विश्लेषण करते हैं जब हमारे भीतर उसके तत्त्व की अनुभूति होती है तो हमें एक विशेष शक्ति प्राप्त होती है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चम्पूकाव्य की जीवन से तुलना की और कहा कि अधिवेशन इस तरह से करें कि संसार इसे अपनी स्मृतियों में  संजोए रहे

 आचार्य जी ने अधिवेशन के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें

19.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 19 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११४८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  19 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११४८ वां* सार -संक्षेप


हमारी शिक्षा में मलिनता का जो प्रवेश हो गया है अर्थात् पढ़ना इस कारण आवश्यक है कि नौकरी मिल जाए और सही प्रकार से जीवनयापन हो जाए उससे हम व्याकुल हुए कमजोर हुए और भ्रमित हुए 

इसका परिणाम यह हुआ कि पशुबल हमारे ऊपर हावी हो गया


हमारी शिक्षा में सनातन धर्म, जो संपूर्ण वसुधा को ही अपना कुटुम्ब कहता है, वर्णाश्रम धर्म जिसकी प्राणिक व्यवस्था है,के वास्तविक स्वरूप को प्रविष्ट कराने की अत्यन्त आवश्यकता है जिस तरह हम अपने शरीर के विकार दूर करते हैं उसी प्रकार आनन्दमयी वातावरण के निर्माण के लिए समाज के विकार दूर करने की आवश्यकता है

शिक्षा में आवश्यकता इस बात की है कि जो अच्छा है उसे ग्रहण किया जाए जो व्यर्थ है उसका निरसन किया जाए शिक्षा के आधार पर ही स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा है शिक्षा के विकृत होने पर हम भटकने लगते हैं

इस कारण हमें आत्मबोध की अत्यन्त आवश्यकता है हमें गीता रामायण मानस महाभारत स्मृति -ग्रंथ उपनिषद् के अध्ययन की आवश्यकता है 

अपनी दृष्टि समाजोन्मुखी रखें विकृत खानपान से विचार कभी परिष्कृत नहीं होंगे प्रभावकारी नहीं होंगे इस कारण विकृत खानपान से स्वयं बचें और अपने आत्मीय जनों को बचाएं 


समाज को आश्वस्त करने वाला कि चारों ओर अंधेरा ही नहीं है यह राष्ट्रीय अधिवेशन युग -द्रष्टा पं दीनदयाल उपाध्याय की अधूरी भावना को पूरी करने के लिए हम करने जा रहे हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पङ्कज सिंह जी का नाम क्यों लिया आज आचार्य जी कहां जा रहे हैं जानने के लिए सुनें

18.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 18 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११४७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  18 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११४७ वां* सार -संक्षेप


मन, बुद्धि,विचार आदि निधियां मनुष्य को ही प्राप्त हैं हम सौभाग्यशाली हैं कि हम मनुष्य हैं इस मनुष्य को जब शिक्षा प्राप्त होती है तो उसे मनुष्यत्व का बोध होता है किन्तु ऐसी शिक्षा उसे प्राप्त हो जो उसे जाग्रत करे,उत्थित करे, प्रबोधित करे उसमें विश्वास श्रद्धा आत्मीयता सेवा समर्पण आदि गुण विकसित करे 

शिक्षा मात्र पाठ्यक्रम का पारायण नहीं है जो बेचारगी पैदा करे ऐसी शिक्षा किस काम की शिक्षा अच्छे अंक दिलाना ही नहीं है शिक्षा मनुष्य के अन्दर के मनुष्यत्व को जाग्रत करने का एक उपाय है 

शिक्षा वह संस्कार है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को विकसित करके अणु से विभु तक की यात्रा की उसे दृष्टि देता है इसी कारण इस तरह की शिक्षा से शिक्षित लोगों में कुछ वैशिष्ट्य दिखाई देता है जिन्हें ऐसी शिक्षा प्राप्त नहीं होती वे व्याकुल रहते हैं शिक्षा में शिक्षक की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका है शिक्षक और प्रशिक्षक में अन्तर होता है कुछ जन्मजात शिक्षक होते हैं ऐसे बच्चे जिनमें शिक्षकत्व के गुण हों उन्हें खोजना चाहिए मनोविज्ञानशालाओं के 

मनोवैज्ञानिक अच्छे विद्यालयों में जाकर छोटे बच्चों की जांचपरख करें उनमें खोजें जिनमें शिक्षकत्व हो अभिभावकों को प्रेरित करें शिक्षा की छह से आठ साल की एक प्रणाली विकसित की जाए अंग्रेजी माध्यम का भ्रम फैल गया यह भोग हम भोग रहे हैं जब तक इस भोग से हम दूर नहीं होंगे तब तक यह भोग रोग बना रहेगा शिक्षा पर चिन्तन अत्यावश्यक है 


शिक्षा के कारण ही भारत विश्वगुरु कहलाया बहुदेववाद के पोषक भारत देश में हम जन्मे हैं यह हमारा सौभाग्य है 

हमारे यहां ३३ कोटि देव हैं जो हमें बिना शर्त के देता है वह देवता है दाता और देवता में अन्तर है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने विद्यालय में हनुमान जी की प्राणप्रतिष्ठित मूर्ति स्थापित करने के पीछे क्या उद्देश्य था यह बताया वह उद्देश्य क्या था हनुमान जी के कारण हमें क्या लाभ मिला आचार्य जी ने भैया पंकज सिंह जी  का नाम क्यों लिया भुट्टो से संबन्धित भैया संजय टंडन जी का क्या प्रसंग था जानने के लिए सुनें

17.9.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११४६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी (अनन्त चतुर्दशी )विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  17 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११४६ वां* सार -संक्षेप


हनुमान जी की कृपा से सदाचारमय विचार ग्रहण करने के लिए, दिन भर की ऊर्जा प्राप्त करने के लिए, संसार से संघर्ष करते हुए तत्त्व की खोज हेतु, एकात्मता को समझने के लिए और शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति के लिए हमें ये सदाचार संप्रेषण उपलब्ध हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए जिनमें परमात्मा, परमात्मा की सत्ता, सामाजिक विचार, कुछ ऐतिहासिक घटनाएं, प्रसंग आदि विषयों का समावेश रहता है


परमात्म सत्ता की लीला अद्भुत है हम आत्मा हैं वह परमात्मा है काव्यानन्द में झूमते विभिन्न कवियों के अनुसार परमात्मा के प्रति आत्मा के भाव देखिए ..


तू है गगन विस्तीर्ण तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ,

तू है महासागर अगम मैं एक धारा क्षुद्र हूँ ।



तू दयाल, दीन हौं,

तू दानी, हौं भिखारी ।

हौं प्रसिद्ध पातकी,

तू पाप पुंज हारी ॥


नाथ तू अनाथ को,

अनाथ कौन मोसो ।

मो सामान आरत नाही,

आरती हर तोसो ॥


त्वमेव माता च पिता त्वमेव,..

हमारे सनातन धर्म में 

पर्व अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं आज अनन्त चतुर्दशी है अनन्त अर्थात् जिसका अन्त नहीं होता 

बलराम को भी अनन्त कहा गया है विष्णु भगवान् जिस पर शयन करते हैं वह भी अनन्त है इसी कारण उन्हें अनन्तशायी कहा गया है ऋषियों की तपस्थली कश्मीर में अनन्तनाग स्थान है शेषनाग झील है समय का परिवर्तन देखिए कश्मीर को किसी का हिस्सा बताया जाता है लेकिन हम सनातन धर्मी समय के परिवर्तनों से व्याकुल नहीं होते 

आचार्य जी ने यह भी बताया कि एक अनन्त मिश्र नामक विद्वान् भी हैं जिन्होंने उड़िया भाषा में महाभारत का अनुवाद किया है


हमारा दुर्भाग्य रहा कि हमारे सनातन धर्म को नष्ट करने के अनेक प्रयास हुए वेद वैदिक संस्कृत में हैं एक लौकिक संस्कृत है जिसका व्याकरण वैदिक से भिन्न है हमारे यहां मूल संस्कृत से बनी अनेक भाषाएं हैं लेकिन उनके महत्त्व को कम कर उनकी उपेक्षा कर अंग्रेजी पर बल दिया गया यह दुर्भाग्य है 

यह छल किया गया जिसे पहचानना हमारा कार्य और व्यवहार है 

इस छल को पहचानते हुए हम राष्ट्रीय अधिवेशन में आत्मबोधोत्सव मनाने जा रहे हैं अपने चिन्तन से  गम्भीर परम्परा के वाहक हम समाज को प्रभावित करने जा रहे हैं 


हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी

इसके अतिरिक्त भैया पुनीत जी भैया राघवेन्द्र जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिए सुनें

16.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 16 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११४५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  16 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११४५ वां* सार -संक्षेप


श्रीरामचरितमानस एक अद्भुत ग्रंथ है जिसके नायक श्रीराम हैं पुरुषों में उत्तम श्री राम पुरुष के रूप में समाज को ये सिखाते हैं कि जीवन को किस प्रकार जिया जाय भले ही उसमें कितने भी विघ्न बाधाएं आती रहती हों। प्रभु श्री श्रीराम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।

अवध की वर्तमान स्थिति

(माँग के खाइबो मसीत में सोइबो।)

 से आहत हुए तुलसीदास जी ने हनुमान जी महाराज से इस कथा को एक सहज भाषा में लिखने की प्रेरणा पाई महाकाव्य के लक्षणों के अनुसार महाकाव्य में आठ कांड होने चाहिए लेकिन तुलसी जी ने केवल सात कांड रखे 

उनका उद्देश्य समाज को जाग्रत करना था यह महाकाव्य के रूप में हो या न हो इससे कोई अन्तर नहीं  पड़ता 

रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।

तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥ 31॥

अपने गुरु नरहरि दास जो प्रकांड विद्वान् थे साक्षात् मां सरस्वती की जिन पर कृपा छाया थी से पुनः यह कथा सुनी 

यह कथा अत्यंत गूढ़ है  

जितनी तरह से सोचें उसके तो अनेक  अर्थ लग जाते हैं 

मैं पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत।

समुझी नहिं तसि  बालपन तब अति रहेउँ अचेत॥ 30(क)॥


तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥

भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥

इसी राम कथा को हम अपनी संस्कार कथा से संयुत कर सकते हैं 

देश राष्ट्र के प्रति हमारा कर्तव्य सर्वोपरि होना परिस्थितियां आज भी वैसी हैं तो हमें अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिए 

दशरथ जैसे चक्रवर्ती सम्राट और जनक जैसे तत्वज्ञ बाली जैसे महाबली के रहते भी यज्ञ न हो पा रहे हों कर्मकांडों में बाधाएं डाली जा रही हों सनातन धर्म व्याकुल स्थिति में हो तो इनके निवारण के लिए किसी को आगे आना ही होगा 

इस कारण राम की कथा का महत्त्व बढ़ जाता है  

ऐसा ही अकबर के काल में हुआ उस समय तुलसीदास जी को लगा राम की कथा जन जन तक पहुंचनी चाहिए भारत मां की व्यथा जन जन तक पहुंचनी चाहिए 

जनमानस आंदोलित हो उद्वेलित हो 

हमें भ्रम और भय से मुक्त कराने वाली राम की कथा उसी  भाव में आकर सुननी चाहिए जो तुलसीदास जी चाहते थे हमें आवश्यकता है ऐसे अध्यात्म की जो शौर्य शक्ति पराक्रम विश्वास भक्ति से प्रमंडित हो 

राम की कथा ही राष्ट्र की कथा है 

आचार्य जी ने अधिवेशन का उद्देश्य स्पष्ट किया 

शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा हमारे विषय हैं हम इनके तत्त्व को ग्रहण करेंगे और फिर विस्तार करेंगे और हमें समाज के सामने ये विषय सुस्पष्ट करने हैं 

शिष्टों को सुविधा मिले और दुष्टों पर नियन्त्रण आवश्यक है 

समाज को हम आश्वस्त करेंगे कि जवानी अभी जीवित है जाग्रत है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी भैया शुभेन्द्र जी भैया सौरभ राय जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

15.9.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 15 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११४४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है तप्तकाञ्चन चरैवेति पथ -व्रती आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  15 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११४४ वां* सार -संक्षेप

एकात्म मानववाद के प्रणेता पं दीनदयाल उपाध्याय के उत्सर्ग से निकली हुई लपटों के कारण निर्मित 

पं दीनदयाल विद्यालय नामक उत्स के  हम पूर्व छात्रों द्वारा संचालित युगभारती संगठन का राष्ट्रीय अधिवेशन, जो अत्यन्त भव्य और दिव्य होने जा रहा है, निराश, हताश,उद्विग्न,कुंठाग्रस्त, भ्रमित,भयभीत जनमानस के समक्ष हमारी शक्ति, बुद्धि, कौशल,विचार, संगठन, प्रेम, आत्मीयता, सेवा, साधना,राष्ट्रीय भाव का अभिव्यक्तिकरण है उस जनमानस के लिए आशा की किरण है उसके मनोबल में वृद्धि करने का एक प्रयास है

हम इसे सफल बनाने के लिए अधिक से अधिक परिश्रम करते रहें 

 हमारा लक्ष्य है भी "राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष"


" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "

और यह अधिवेशन इसी कारण होने जा रहा है 


हमारे अन्दर शक्ति बुद्धि विवेक चैतन्य उत्साह आये इसकी प्रेरणा देती आचार्य जी की एक कविता है "मंजिल तेरी दूर नहीं "

इसकी दो पंक्तियां हैं 


राही राह चला चल अविचल, मंजिल तेरी दूर नहीं 

चरैवती पथ -व्रती कभी भी हुआ कहीं मजबूर नहीं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी भैया शुभेन्द्र जी भैया विजय मित्तल जी का नाम क्यों लिया अधिवेशन को सफल बनाने के लिए हम क्या करें और किस बात के लिए सतर्क रहें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव के पत्थर श्री हरमेश जी श्री प्रमोद जी श्री वीरेन्द्र जी क्या करना चाहते हैं जानने के लिए सुनें

14.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 14 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११४३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  14 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११४३ वां* सार -संक्षेप


मनुष्य परमात्मा की एक अद्भुत रचना है और उसका स्वभाव भी अद्भुत रहता है हमें जो सनातनधर्मी हैं जो कहते हैं 

विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव 

ध्यानपूर्वक अपने में परिवर्तन लाना होगा 

क्योंकि हम जितने भी सनातन धर्मी हैं अत्यधिक संवेदनशील होते हैं जितनी अधिक हमारे अन्दर संवेदनशीलता है उतना ही हम अहंमन्यता (egoism ) से भी प्रभावित हैं इसे अच्छा शब्द भी कह सकते हैं और दुश्शब्द भी अहंकार तत्त्व भी है और संसार का यह एक रूप भी समझा जा सकता है जिनमें जितनी सूक्ष्मता है उनमें उतनी ही अधिक शक्ति है और शक्ति है तो संवेदनशीलता है इस संवेदनशीलता का विपरीत प्रयोग कष्ट देता है

हम युगभारती के सदस्य हैं और कुछ विशेष उद्देश्यों को लेकर चल रहे हैं

हमारे उद्देश्य हैं समाज हित के कार्य करने देश हित के कार्य करने अपनी सनातनधर्मिता को बचाए रखना जिसे नष्ट करने के अनेक प्रयास हुए और संसार के तिमिर को दूर करना 

 इस कारण हमें संगठित रहने की आवश्यकता है जिसके लिए हमें अपनी सहन करने की शक्ति में वृद्धि करनी होगी हमें संगठन को हानि पहुंचाने वाला कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए 

संगठन पर दुष्प्रभाव न पड़े इसके लिए हमें अपनी कमियों को भी देखना चाहिए 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपने गांव के किस व्यक्ति की चर्चा की जिसे भैया डा अमित गुप्त जी को दिखाना है भैया हरीन्द्र जी  भैया अरविन्द जी भैया डा उमेश्वर जी का नाम क्यों लिया परमाणु बम का उल्लेख क्यों हुआ  आखिरी चक्कर क्या है जानने के लिए सुनें

13.9.24

श्री ओम शङ्कर जी का जभाद्रपद शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 13 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११४२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  13 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११४२ वां* सार -संक्षेप



सदाचार -पीठ पर बैठकर नित्य आचार्य जी जो प्रयास कर रहे हैं वह अद्भुत है यह हमारा सौभाग्य है कि अपने व्यक्तित्व के उत्कर्ष के लिए  भक्ति शक्ति बुद्धि विश्वास त्याग समर्पण आत्मीयता संयम प्राप्त करने के लिए हम नित्य सदाचारमय विचार ग्रहण कर रहे हैं हमें इस लाभ से वञ्चित नहीं रहना चाहिए  कभी कभी हमें इनमें राम की कथा के दर्शन भी होते हैं इस कथा को आत्मसात् कर अपनी कथा बांचने के लिए हमें कठोर प्रयास करने चाहिए हमें यह जानने का प्रयत्न करना चाहिए कि हम कौन हैं कहां से आये हैं हमारा क्या कर्तव्य है 

हमें अपने खानपान में भी संयम रखना चाहिए 

उचित और संयमी भाषा का प्रयोग करना चाहिए 

अपनी आत्मशक्ति को पहचानना चाहिए 


परिस्थितियां विषम हैं और हम लोग एक पवित्र उद्देश्य लेकर चल रहे हैं ऐसी विषम परिस्थितियों में, विपत्ति काल में पवित्र उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिए और धैर्य न त्यागते हुए हमें कर्मरत रहना चाहिए क्योंकि हमारे यहां कर्म का एक विशिष्ट सिद्धान्त विधान चिन्तन है उसकी एक बहुत लम्बी परम्परा है बीते कल का कर्म आज का भाग्य बनता है 

 सुस्पष्ट सिद्धान्त को प्रकट करती तुलसीदास जी की एक अद्भुत अर्धाली है जिसमें विपत्ति काल में परीक्षण हेतु धैर्य पर जोर दिया गया है 

धीरज धर्म मित्र अरु नारी। 

आपद काल परिखिअहिं चारी॥

हम आत्मशक्ति की अनुभूति करें तो बहुत कुछ कर सकते हैं हमारे हौसले को  बढ़ाती आचार्य जी की यह कविता देखिए 


क्या कर लोगे !

जब चिन्तन वैरागी बन वन-वन भटकेगा

कर्मठता कुण्ठित होकर दम तोड़ चलेगी

धर्म-ध्वजाएँ भीग उठेंगी लिप्साओं से

पछुआ की लपटों से पुरवाई झुलसेगी

तब विश्वास छला जाएगा विद्वेषी सा, क्या कर लोगे ।।१।।

जब पौरुष विज्ञापन बनकर रह जाएगा

माटी मोल न पूछी जाएँगी निष्ठाएँ

मन को बहलाने वाले कवि छंद रचेंगे

शरमाएँगी अपने ही ऊपर उपमाएँ

तब उल्लास चला जाएगा संदेशी सा, क्या कर लोगे ।।२ ।।

जब संयम से स्वाभिमान अपमानित होगा

सत्य शील में दबकर पथ पर दम तोड़ेगा

बिलखेंगी बेज़ार समय की मर्यादाएँ

अपनापन अपनों से अपना मुँह मोड़ेगा

तब प्रयास कुचला जाएगा संतोषी सा, क्या कर लोगे ।।३।।


सदाचरण परिभाषित होगा छल-छन्दों से

त्याग दैन्य का जब चर्चित पर्याय बनेगा

आत्महीनता पाँव तोड़कर बस जाएगी

जब कुटुम्ब बस केवल एक निकाय रहेगा

निश्छल हास चला जाएगा परदेशी सा, क्या कर लोगे ।।४।।

गीत गुलामी की भाषा के जब भायेंगे

सिमट समाएगा जब स्वत्व पेट के भीतर

संबंधों को अनुबंधों में बँधना होगा

होगा जीवन अद्भुत छिन बटेर छिन तीतर

तब मधुमास रुला जायेगा प्रतिवेशी सा, क्या कर लोगे ll ५ ll



हम कर लेंगे आत्मशक्ति की आहुति बनकर 

समय परिस्थिति भांप परखकर 

दिशा दृष्टि रख भावी की

भविष्य रचना इतिहास बांचकर 

और संगठन को युग का अवतार मानकर,भाग्य रचेंगे

ये कर देंगे 

ll ६ ll


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राजकुमार जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी भैया मनीष कृष्णा जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

12.9.24

श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 12 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११४१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  12 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११४१ वां* सार -संक्षेप


यह हमारा सौभाग्य है कि अत्यन्त क्षमताशील विद्वान् ज्ञानी शौर्य प्रमंडित अध्यात्म के उपासक आचार्य जी से हम आज भी संयुत हैं 

 एक अद्भुत यज्ञ करने में रत आचार्य जी इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से नित्य हमें प्रेरित करते हैं आचार्य जी हमसे अपेक्षा करते हैं कि अन्य लक्ष्यों के साथ प्रेम आत्मीयता का विस्तार भी हमारा एक लक्ष्य होना चाहिए किस समय कौन सा काम आवश्यक है यह हमें पता होना चाहिए कलुषता को मिटाने का प्रयास हमें करते रहना चाहिए हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए गहरी दृष्टि रखते हुए सुजनों और स्वजनों को पहचानने की क्षमता हमारे अन्दर होनी चाहिए हनुमान जी के भाव -प्रसाद से सबको आच्छादित करने का प्रयास करना चाहिए 

हमारे जीवन में, परिवेश में अनेक उलझाव आते रहते हैं और ये उलझाव हमारे प्राणिक जीवन को प्रभावित करते हैं इसका प्रभाव कम से कम हो तब हम अपने कर्ममय जीवन जीने का  उद्देश्य पूर्ण कर पाते हैं


वह विभु आत्मा है हम अणु आत्मा है अंशांश में ही हमारे अन्दर विभुता की उपस्थिति की अनुभूति यदि हमें है तो हम अपने जीवन के सद् अभ्यास को  निरन्तर करते रहेंगे हमें इसकी अनुभूति होनी चाहिए कि हमें मनुष्य का जीवन प्राप्त है जिसमें लेखन अध्ययन अध्यापन स्वाध्याय आदि सब संभव है भारत भूमि की यह विशेषता है कि सामान्य सा दिखने वाला व्यक्ति भी विशेष हो जाता है हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म संपूर्ण विश्व के मार्गदर्शक भारत में हुआ है 


अधरों पर वंशी उंगली पर चक्र सुदर्शन 

यही भरत -भू का है अनुपम जीवन -दर्शन 

हम सब हिन्दु -बन्धुओं को इसका प्रबोध हो

यही प्रयास और अभ्यास रहे हर कण क्षण

भ्रमित और भयभीत अर्जुन को भगवान कृष्ण समझाते हैं कि युद्ध क्यों आवश्यक है

युद्ध एक कर्म है 

गीता -ज्ञान से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें अपने कर्तव्य का बोध होना ही चाहिए 

समाज हित के लिए कार्य करते समय हमें भ्रमित भयभीत नहीं होना चाहिए अधिवेशन के माध्यम से हम समाज को जाग्रत करने जा रहे हैं 

आचार्य जी ने संगठन के अर्थ को भी स्पष्ट किया 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मोहन जी का नाम क्यों लिया भाषण देते समय किसे अपनी पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला जानने के लिए सुनें

11.9.24

श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 11 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११४० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  11 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११४० वां* सार -संक्षेप


हमारी संस्था युगभारती के चार आयाम हैं शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा 

हमारी मां  हमारे पिता हमारे शिक्षकों द्वारा हमें किस प्रकार की शिक्षा दी गई है यह हमारे व्यवहार और आचरण से व्यक्त होता है इसी कारण हम लोगों ने पहला सोपान शिक्षा को चुना


यदि समाज को सबल बनाना है तो शिक्षा पर ध्यान देना होगा 

यदि शिक्षा बलवती फलवती आप्तधर्म से संयुत होगी तो स्वाभाविक रूप से अपने स्वास्थ्य अपने समाज के स्वास्थ्य संपूर्ण पृथ्वी के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहेंगे

आचार्य जी यही प्रयास कर रहे हैं वे अपने भावों को हमारे भीतर आरोपित कर रहे हैं 

पहले हमारी शिक्षा उत्तम कोटि की होती थी वह शरीर और मन के अनेक विकारों का निरसन करती थी हमारे ग्रंथ कितने अद्भुत हैं जैसे मनुस्मृति 

जिसे लेकर बहुत भ्रम फैलाया गया 

पैसे के लालच में मीडिया  कुछ भी प्रचारित प्रसरित करने में संकोच नहीं करती और इसका दुष्प्रभाव दिखता है हम उसकी समीक्षा कर लेते हैं जो समीक्षा करने में असमर्थ हैं वे किस प्रकार प्रभावित हो रहे हैं यह चिन्ता का विषय है

परिस्थितियां हमें जगाती भी हैं और सुलाती भी हैं जो परिस्थितियों से अप्रभावित होकर आगे बढ़ता रहता है तो समझना चाहिए उसमें कुछ वैशिष्ट्य है यही वैशिष्ट्य हमें अपने अन्दर लाना है और शिक्षा पर ध्यान देना है 

हमारी भाषा भी विशिष्ट है जिस भूमि पर हम पले बढ़ें हैं वह भी अद्भुत है हमें यह समझना होगा


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मिथिलेश नन्दिनी शरण जी के यूट्यूब वीडियो की क्यों चर्चा की अधिवेशन का उद्देश्य क्या है भैया प्रदीप वाजपेयी जी का नाम क्यों लिया चित्रकूट वाले संतोष जी का उल्लेख क्यों हुआ श्री प्रेम जी से संबन्धित क्या प्रसंग है गीतावली का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

10.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 10 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  10 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३९ वां* सार -संक्षेप


हमारे ऋषियों की परम्परा अद्भुत है यह परम्परा जिसमें जिस मात्रा में प्रवेश कर जाती है उसका ज्ञान उतना ही सहज, सरल और गहन हो जाता है अर्थात् यह परम्परा ज्ञान को सहजता सरलता के साथ गहनता की ओर प्रेरित कर देती है 

क्योंकि जो विद्या और अविद्या - इन दोनों को ही एक साथ जानता है, वह अविद्या से मृत्यु को पार करके विद्या से अमरता प्राप्त कर लेता है।हम इस संसार की विविध जानकारियों को प्राप्त करते हुए उस ज्ञान के आरोहण की ओर उन्मुख होवें जहां से हमें ज्ञात होगा कि हम कौन हैं कहां से आए हैं और हमारा उद्देश्य क्या है इसी का नाम मनुष्यत्व है इस मनुष्यत्व देवत्व ईश्वरत्व की अनुभूति कराने वाली परम्परा को वेद, ब्राह्मणों आरण्यकों उपनिषदों गीता मानस से हमारे देश ने ग्रहण किया इस ज्ञान को सुरक्षित करने के लिए भक्ति की आवश्यकता होती है ज्ञान से हमारा अंधकार दूर होता है भक्ति से उस ज्ञान को सुरक्षित करने का भाव उत्पन्न होता है परमात्मा के बने इस संसार में सज्जनों के साथ दुष्ट भी हैं इस कारण दुष्टों से हमें अपनी रक्षा भी करनी है और उस रक्षा के लिए शक्ति शौर्य पराक्रम आवश्यक है समय पर इनका उपयोग भी आवश्यक है यह है शौर्य प्रमंडित अध्यात्म अत्यन्त ही तात्विक विषय है  यह और इसको जब हम व्यावहारिक धरातल पर उतारेंगे तो सदैव हमें लगेगा कि भाव विचार और क्रिया का जितना अधिक संतुलित रूप हमारे अंदर होगा उतना ही हम आनन्द में रहेंगे 

संतुलन न होना हमें कष्ट देगा 

मनुष्य के शरीर को आनन्दमय बनाने के लिए कुछ नियम बनाए गए सूत्र ग्रंथ लिखे गए स्मृतियां बनाई गईं 

शिक्षा में इन सबको कैसे सम्मिलित किया जाए यह हम लोगों के लिए चिन्ता का विषय है 

हम लोग मिलजुलकर ऐसा उपाय खोजें कि भावी पीढ़ी  को उत्साह उमंग उल्लास के प्रभात का दर्शन हो वह केवल धनार्जन में ही न लगी रहे उच्छृङ्खलता की हदें न पार करती रहे

भावों विचारों क्रियाओं को सामञ्जस्यपूर्ण बनाना और आनन्दपूर्ण बनाना शिक्षा का धर्म और मर्म है शिक्षा श्रुतिमय होती है जब हम वह शिक्षा नहीं ग्रहण करेंगे तो अपनी संतानों को भी नहीं शिक्षित कर पाएंगे पाठ्यक्रम, विधान, दिनचर्या, खानपान सारे विचारणीय विषय हैं स्वास्थ्य भी आवश्यक है क्योंकि शरीर साधन है इस कारण नियम आवश्यक हैं हम स्वस्थ हैं अर्थात् अपने में स्थित हैं तो यह अच्छा है इसी तरह स्वावलम्बी जीवन भी आवश्यक है सुरक्षा तो महत्त्वपूर्ण है ही 

आचार्य जी ने अधिवेशन के लिए भी कुछ बातें बताईं 

 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अनसंग हीरोज 'इंदु से सिंधु तक' (देवेन्द्र सिकरवार कृत ) की चर्चा क्यों की मानस के चार श्रोता चार वक्ता का विषय क्यों उठाया जानने के लिए सुनें

9.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  9 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३८ वां* सार -संक्षेप


.इन सदाचार संप्रेषणों में सार रहता है ये कदापि सारहीन नहीं होते

भारतवर्ष में सृष्टि के रहस्यों को जानने का सर्वाधिक गहन अध्ययन हुआ है इसी कारण व्याकुल तत्व भारत भागता है लोभी तो भारत भागता ही है 

हमारे ऋषियों ने सृष्टिकर्ता और सृष्टि का साक्षात्कार किया 

 ऋषियों के लिए कहा जाता है 

ऋषयो मन्त्रद्रष्टारः

मन्त्र अर्थात् सूत्र 

हमारे यहां सूत्र ग्रंथ हैं ये अत्यन्त सूक्ष्म शैली में लिखे गए शास्त्रीय ग्रंथ हैं और इनका विस्तार अपेक्षित रहता है 

 मनुष्य वाणी से ही अभिव्यक्ति करता है किसी की वाणी अत्यन्त प्रभावशाली होती है और किसी की वाणी निष्प्रभावी 

वाणी का व्यवहार विधिवत् और सात्विकता के साथ किया जाता है तो यह प्रभावी होता है और आश्रय देने वाला होता है इसी वाणी में श्राप और वरदान भी हैं जैसे मां सती का श्राप 

हमारी संस्कृति यज्ञमयी संस्कृति है अर्थात् देने की संस्कृति है यज्ञ का अर्थ है वस्तुओं का वितरण और विचारों भावों का वितरण 

अध्यापन एक यज्ञ ही है 

यज्ञ संसार स्वर्ग दृश्य अदृश्य को पाने का साधन बन गया वैदिक ग्रंथों में यज्ञीय विधान हैं 

 जैसा कि हम जानते हैं कि आदिशक्ति ने अपनी शक्तियों को तीन भागों में विभक्त किया 

ब्रह्मा विष्णु महेश 

ब्रह्मा ने सृष्टि के संचालन के लिए सबसे पहले यज्ञ किया

एक विद्वान् का नाम है यज्ञमूर्ति


वे एक अद्वैतवादी प्रौढ़ विद्वान् थे और रामानुज के समकालीन हुए 

 रामानुज स्वामी की बढ़ती हुई ख्याति को सुनकर यज्ञमूर्ति श्रीरंगम में आये और वहां रामानुज के साथ यज्ञमूर्ति का सोलह दिन तक शास्त्रार्थ होता रहा जिसमें कोई एक दूसरे को पराजित करता हुआ नहीं दिखाई दे रहा था। अंत में रामानुज ने ‘मायावादखण्डन’ का अध्ययन किया और उसकी सहायता से यज्ञमूर्ति को हरा दिया 

फिर यज्ञमूर्ति ने वैष्णव मत स्वीकार लिया।

यज्ञमूर्ति के द्वारा रचित ‘ज्ञानसागर’ तथा ‘प्रमेयसागर’ नामक दो ग्रंथ तमिल भाषा में हैं।

शंकराचार्य भक्त और अद्वैतवादी दोनों थे 


आचार्य जी ने अधिवेशन की चर्चा की हमारे अधिवेशन का उद्देश्य स्पष्ट है भारत के बारे में सोचना क्योंकि यह प्रकाश की खोज में लगा है अर्थात् ज्ञान की खोज में रत है 


इसके अतिरिक्त आचार्य  जी ने भैया पंकज श्रीवास्तव जी की चर्चा क्यों की सामगान क्या है जानने के लिए सुनें

8.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  8 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३७ वां* सार -संक्षेप


हमें आत्मदर्शन की चेष्टा करनी चाहिए और इसमें भगवान् कृष्ण और भगवान् राम के कार्य और व्यवहार देखने चाहिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान् राम के कार्य और व्यवहार को आनन्दपूर्वक मानस में प्रस्तुत कर दिया जिसे बार बार देखने का मन करता है इसी प्रकार गीता भी प्रसिद्ध हुई यह ऋषियों का ज्ञान --प्रसाद है इस प्रसाद की अनुभूति से जब हम आनन्दित होते हैं तो हमें शब्द और विचार तो मिलते ही हैं व्यावहारिक बात भी सामने आ जाती है


तपस्वी जयस्वी गुडाकेश  और भगवान् कृष्ण का परम मित्र अर्जुन ऐसे समय में शिथिल हो जाता है जब युद्ध की पूरी तैयारी हो चुकी है वह भ्रमित हो जाता है 

उसमें कायरता दिखी वह मोहांध हो गया तब भगवान् कृष्ण उसे कर्तव्य -बोध कराते हैं इसी कारण गीता का ज्ञान अद्भुत है 

हमें इससे शक्ति मिलती है कवि महत्त्वपूर्ण हैं हम अपने कवित्व को धार देने का प्रयास करें 

चन्द बरदाई का उदाहरण हमारे सामने है वह अन्त तक पृथ्वीराज के साथ रहा

 कवयः क्रान्तदर्शिनः 

सारी अभिव्यक्तियां काव्यमय है परमात्मा की रची सृष्टि भी काव्यमय है सभी रस काव्यमय हैं उन रसों की उचित समय पर पहचान अनुभूति और अभिव्यक्ति नहीं है तो हम कायर हैं कायरता और वीरता जीवन में हमारे साथ साथ चलती है 

भगवान् कृष्ण अर्जुन से कहते हैं 


कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।


अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।2.2।।


 तुम्हारे स्वभाव में कालुष्य और कायरता का आना नितान्त विरुद्ध विषय है। तब यह तुम्हारे में कैसे आ गयी?


आचार्य जी ने अनार्यजुष्टम् को स्पष्ट किया जो जीवन मूल्य को नहीं समझते हैं वे अनार्य हैं जीवन केवल खाना पीना नहीं हैं आर्य वे जिन्हें मनुष्यत्व की अनुभूति होती है आर्य प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों में अपने कल्याण का ही उद्देश्य रखते हैं।

यह हमारे भारतीय जीवन दर्शन की विशेषता है हमें इसे आत्मसात् करना चाहिए और बच्चों को उनके स्तर का आकलन कर उसी ढंग से बताना चाहिए अन्य को भी उनके स्तर को देखकर समझाएं संगठन तभी महत्त्वपूर्ण होता है जो अनुकूल न लगें उन पर ध्यान न दें जो अनुकूल हों उन्हें संगठित करें 

प्रतिकूल लोगों में शक्ति क्षय न करें वे हमारी शक्ति देखकर भय से साथ आ जाएंगे 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बांग्लादेश और छात्रावास का क्या प्रसंग बताया जंगल जंजाल में युगभारती को क्या करना है आदि जानने के लिए सुनें

7.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 7 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  7 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३६ वां* सार -संक्षेप

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर हमारे अन्दर भारतवर्ष के महत्त्व, जीवन शैली, तात्त्विक दर्शन, भौगोलिक स्थिति और वास्तविक इतिहास का भावमय चित्र उपस्थित हो जाए आचार्य जी हमें उत्साहित करते हैं और अपेक्षा करते हैं कि उस उत्साह का हम व्यवहार में प्रयोग करें 


भारत के कण कण में अंकित, गौरव गान हमारा है !

हम हिंदू ऋषियों के वंशज, हिंदुस्तान हमारा है !

अंकित है इतिहास हमारा, त्यागपूर्ण बलिदानों से ।

कौन नहीं हैं परिचित जग में, हिंदूवीर संतानों से l 

रिपु से बातें हमने की हैं,बाणों और कृपाणों से।

 मातृभूमि मानी है हमने,बढ़कर अपने प्राणों से ।

 हिंदुस्तान हमारा है बस, यही हमारा नारा है।

 हम हिंदू ऋषियों के वंशज, हिंदुस्तान हमारा है!

 हम हैं वही जिन्होंने रिपु दल को बहु नाच नचाये थे।

 पथ से भटके अखिल विश्व को हम ही राह पर लाये थे ।

 रहे विश्वगुरू हमसे ही सब, शिक्षा पाने आये थे! 

*अब भी शक्ति भुजाओं में*, *वीरों का हमें सहारा है* !!


अब भी शक्ति भुजाओं में... यह पंक्ति हमें प्रेरित करने के लिए पर्याप्त है

यह अनुभूति हमें विश्वास प्रदान करती है


राम की कथा में भी भारत का स्वरूप दिखाई देता है 

मैथिलीशरण गुप्त ने साकेत में कहा

राम, तुम मानव हो? ईश्वर नहीं हो क्या?

 भक्त मनुष्य में भी ईश्वरत्व देख लेता है तभी उसे गुरु भी मान लेता है 

आचार्य जी ने चिराग जैन की एक वर्णनात्मक कविता लक्ष्मण -मूर्च्छा की  भी चर्चा की 

ये प्रसंग हमें अपनी शक्ति की अनुभूति कराते हैं तभी हम कहते हैं 

अब भी शक्ति भुजाओं में..


आचार्य जी ने राम कथा का एक प्रसंग बताकर क्षत्रियत्व को परिभाषित किया 

राम की कथा से हमें संतुष्टि मिलती है रामत्व हमारे भीतर भी है किन्तु निष्क्रिय है सुप्त है उस सुप्त रामत्व को जाग्रत करना आज के समय में आवश्यक है हमें अपनी कायरता त्यागनी है पौरुष पराक्रम की अनुभूति करनी है हमें भ्रमों और भयों में मार्ग भ्रष्ट नहीं होना है 

मनुष्यत्व और राक्षसत्व वाले इस संसार में ये अवतार समय समय पर होते हैं और मनुष्यत्व के संसार का उद्धार करते हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी का नाम क्यों लिया आत्मीय जनों के अपने समाज को उम्मीद बंधाने वाले आगामी अधिवेशन के विषय में क्या बताया आम के बगीचे का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

6.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 6 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३५ वां* सार -संक्षेप

 निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका॥

जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥6॥



आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  6 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३५ वां* सार -संक्षेप


यह सत्य है भारत विकास के मार्ग की ओर उन्मुख है और विश्व में उसकी प्रतिष्ठा वृद्धिंगत हो रही है किन्तु भारत के अन्दर सामान्य व्यक्ति की स्थिति चिन्ता का विषय है

यह चिन्ता उस समय प्रदर्शित होती है जब समझदार व्यक्ति सोचता है कि ये सामान्य व्यक्ति क्यों नहीं सोच पाते सत्य यही है कि वे सोच नहीं पाते क्योंकि वे शिक्षित अर्थात् संस्कारित नहीं हैं

गुरु नानक कबीर रविदास आदि ने विद्यालयी शिक्षा प्राप्त नहीं की थी किन्तु जो भी उन लोगों ने शिक्षा ग्रहण की उस शिक्षा का लाभ लेने का हम लोग प्रयास कर रहे हैं

यह मनुष्यत्व की अनुभूति है यह किसी के भी संपर्क से हो सकती है

हम लोग ५ सितम्बर शिक्षक दिवस उत्साह से नहीं मनाते  डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बहुत सफल शिक्षक नहीं कहा जा सकता वे उत्कृष्ट कोटि के अध्येता अवश्य थे उन्होंने भी मैकालेयी शिक्षा ग्रहण की ऐसी शिक्षा जो व्यक्ति को आत्मंभरि ही बनाती है 


किस-किस को याद कीजिए, किस-किस को रोइए,

 आराम बड़ी चीज़ हैं, मुँह ढक के सोइए ।



परमार्थ -चिन्तन न करना ही मनुष्य का सबसे बड़ा अभिशाप है

आचार्य जी ने एक प्रसंग का उल्लेख कर आचार्यत्व को परिभाषित किया


अस्ताचल वाले देशों के कारण और अन्य कारणों से हम अभी भी भ्रमित हैं  जन्मदिवस पर केक काटना  मदर्स डे वैलैंटाइन डे आदि तरह तरह के दिवस मनाना हर क्षेत्र में परिस्थितियां विषम हैं भीषण धाराएं चल रही हैं हमें उन्हें पार करना है 

ऐसे कठिन समय में अपने शिक्षकत्व को अपनी शिक्षा को अपने समाज को अर्थात् अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखना एक बहुत बड़ी चुनौती है


आचार्य जी ने यह भी बताया कि लालच के कारण शिक्षकत्व का नाश होता है 

तुलसीदास जी के गुरु नरहरि दास साफ सुथरे मन्दिर को देखकर बालक तुलसीदास से अत्यन्त प्रभावित हुए उस बालक से उनको बहुत लगाव हो गया 

तभी तुलसीदास कहते हैं


बंदऊं गुरु पद पदुम परागा, सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।

 अमिअ मूरिमय चूरन चारू, समन सकल भव रुज परिवारू


गुरु यदि ईमानदारी से शिक्षा दे दे तो आज के कलियुग में इतना ही पर्याप्त है


मधुमक्खी तक अच्छे और बुरे को पहचान लेती है सत्त्व ग्रहण कर लेती है व्यर्थ त्याग देती है ऐसी ही पहचानने की शक्ति जिनमें आ जाती है वे गुरुत्व खोज लेते हैं 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया आलोक जी के NDTV साक्षात्कार की चर्चा क्यों की माली काका के गहन ज्ञान की झलक दिखाने वाले किस प्रसंग की चर्चा की जानने के लिए सुनें

5.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  5 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३४ वां* सार -संक्षेप


कभी मन शांत रहता है कभी उद्भ्रान्त रहता है 

कभी उत्साह के अतिरेक में दिग्भ्रान्त  रहता है 

कि चन्दा का मनस् के साथ है कोई गहन नाता 

तभी तो वह सतत उत्क्रान्त या आक्रान्त रहता है। 

(चन्द्रमा मनसो जातः  ---------- )


हम प्रायः सांसारिक समस्याओं से जूझते रहते हैं हमें सांसारिक परिस्थितियों से सामना करना पड़ता है और ऐसे में सबसे पहले हमारा मन प्रभावित होता है जिससे शरीर पर भी इसका प्रभाव पड़ता है और यह मनुष्य के साथ संयुत  है 


सुख-भोग जगत की इच्छा है इच्छा की ही उत्पत्ति जगत

फिर क्यों निरिच्छ का भाव सभी ज्ञानी ध्यानी बतलाते हैं

यह प्रश्न जटिल अद्भुत अबूझ तर्कों से सब झुठलाते हैं 

चिन्तना जगत में जब रहता कुछ‌ उलझपुलझ रह जाता हूं 

फिर बिना ठीक से समझे ही औरों को कुछ बतलाता हूं 

यह सुनना गुनना बतलाना बहलाना या दहलाना भी 

संसारी जीवन में मनुष्य के साथ सदा संयुत रहता 

प्राय: जीवन भर इसी तरह कहता सुनता रहता रहता 

यह कहते-सुनते रहते ही जीवन-यात्रा चलती रहती

यह रहती कभी  हवाओं पर  तो कभी जलधि पर भी बहती 

जीवन तरंग जीवन उमंग जीवन अनंग जीवन विराग 

अद्भुत अबूझ अनुपम अनन्त मानव का यह जीवनी राग



जब  हमारे मन में भी कोई भाव आएं हमें उन्हें लिख डालना चाहिए 

लेखन हमारा आत्मिक मित्र है हम अपने भीतर से उत्पन्न भावों को जब लिख लेते हैं और बाद में पढ़ते हैं तो आश्चर्य भी होता है और सुखानुभूति भी होती है 

इसका नाम आत्म -दर्शन भी है

आचार्य जी ने दर्शन और विज्ञान में अन्तर बताया 

दर्शन विचारों की एक प्रणाली है  आभ्यान्तरिक दृष्टि वाले विचारों को दर्शन कहते हैं बाह्य दृष्टि वाले विचारों को विज्ञान कहते हैं 

चेतन अचेतन से मिलकर यह सारा जगत बना है हमारे सनातन धर्म में आस्तिक और नास्तिक दो प्रकार के दर्शन हैं छह आस्तिक और छह ही नास्तिक 

भारत की इस पुण्य भूमि से निकले जितने भी धर्म मत संप्रदाय इस संसार में हैं उन सभी का आधार ये आस्तिक नास्तिक दर्शन हैं 

और उनमें विरोध उत्पन्न होता है फिर  विरोधियों को हम समाप्त करने में लग जाते हैं राम -कथा  महाभारत उदाहरण हैं 

हमारे पास अनुभूतियां और उद्भूतियां दोनों हैं लेकिन अनुभूतियों में कभी कभी इतना उलझ जाते हैं कि उसी में टूट जाते हैं 

उलझावों में लेखन कला महत्त्वपूर्ण है लेखन भी एक योग है 

जो क्षरित नहीं होता वह अक्षर है 

हमारे भारत की शिक्षा बेजोड़ है शिक्षा पर बहुत चिन्तन की आवश्यकता है नौकरी वाली शिक्षा के अतिरिक्त भी शिक्षा है और इसे नई पीढ़ी को बहुत समझाने की आवश्यकता है इन बच्चों को विद्या अविद्या का भेद समझाने की आवश्यकता है तब वे भ्रमित नहीं होंगे 

युगभारती के चारों आयाम तात्विक शब्द हैं 

आगामी अधिवेशन प्रदर्शन के साथ दर्शन भी बने इसका हमें प्रयास करना है इसके सार को इसके तत्त्व को संग्रहित करने के लिए कुछ लोग अवश्य आगे आएं और उसे प्रसाद रूप में बांटें यह प्रसाद जब व्यवहार में परिवर्तित होगा तो अत्यन्त आनन्ददायक होगा हमें जो संस्कार मिले हैं वो हमें याद रहते हैं विद्यालय की सदाचार वेला हमें याद है 

हमें माता पिता गुरुओं से संस्कार मिले मैं से हम हम से अनन्त तक के विस्तार में हम लोग विश्वास करते हैं ऐसा अद्भुत है हमारा भारतीय जीवन दर्शन 

दीनदयाल विद्यालय से हमें इन्हीं सब की शिक्षा मिली है 

इसके अतिरिक्त भैया पवन का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया गुरु नानक का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

4.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  4 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३३ वां* सार -संक्षेप


यह संसार मनुष्य के लिए एक परीक्षा-स्थल है।

दु:ख है,प्रश्न कठोर देखकर होती बुद्धि विकल है।

किंतु स्वात्म बल-विज्ञ सत्पुरुष ठीक पहुंच अटकल से।

हल करते हैं प्रश्न सहज में अविरल मेधा-बल से।।

-रामनरेश त्रिपाठी


वास्तव में यह संसार एक परीक्षा स्थल है इसमें अनेक शाश्वत और परिस्थितिजन्य समस्याओं का हमें सामना करना पड़ता है इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि सारी समस्याओं को हल करने की क्षमता मनुष्य के पास ही है अपनत्व के गहन बोध के साथ आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं ताकि समस्याओं को देखकर हम अटक न जाएं भटक न जाएं, समस्याओं से जूझने हेतु मनुष्यत्व की अनुभूति कर सकें, हमें अपने कर्तव्यों का बोध हो सके, अनेक विकल्पों से समृद्ध अपने सनातन धर्म के प्रति हम निष्ठावान् रह सकें और  कठोर प्रश्नों की तैयारी कर सकें 


आचार्य जी ने सनातन धर्म की विशेषाताएं बताईं यह व्यापक और गहन है पशुओं द्वारा इसे समाप्त करने के अनेक प्रयास होते रहे हैं लेकिन यह शाश्वत है 

देवार्चन का अपना महत्त्व है हमारे यहां अनेक देवता हैं जल, सूर्य, वायु, अग्नि, पृथ्वी आदि भी देवता हैं 

हम देवता भाव से इस संसार में रहते हैं 

सनातन धर्म में दो विधियां हैं याग और पूजा 

नई पीढ़ी में भी हम पूजा भाव विकसित करें 

उसे इसके लाभों के बारे में बताएं  उसे बताएं कि हम केवल स्थूल शरीर का पिंड नहीं हैं घर में सब एक साथ भोजन करें 

आचार्य जी ने अधिवेशन, जिसमें पिंड से लेकर ब्रह्मांड तक का चिन्तन होने जा रहा है, का उद्देश्य बताया 

अधिवेशन में सम्मिलित हो रहे अपने भावसम्पन्न आत्मीय जनों की हमें पहचान करनी है अधिवेशन से जाने के बाद भी उनकी स्मृतियों में हमारा प्रेम आत्मीयता हमारा उद्देश्य बना रहे यह प्रयास करना है उन्हें आश्वस्त करना है कि शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन सुरक्षा हम सभी के लिए महत्त्वपूर्ण है


जो जहां है वहीं की समीक्षा करे


आत्मबल की स्वयं ही परीक्षा वरे 


संगठन -भाव क्षण भर न ओझल रहे 


देश के प्रेम की शीश शिक्षा धरे

जो भी कार्य करें पूरी प्रामाणिकता से करें 

हम सभी को यशस्विता प्रिय है अपने कर्तव्य -बोध और कर्तव्य- निर्वहन से यह संभव है 

आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि युग भारती का स्वभाव और स्वरूप क्या है 

इसके अतिरिक्त शक्ति देखकर कौन साथ आते हैं जानने के लिए सुनें

3.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 3 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष  प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  3 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३२ वां* सार -संक्षेप


हमारे ऋषियों ने मनुष्य के जीवन के विभिन्न विश्लेषणात्मक तथ्य प्रस्तुत किए हैं मनुष्य ही एक ऐसी योनि है जिसमें देवताओं को भी पार करके सीधे सीधे उस परमतत्त्व को जानने की शक्ति और बुद्धि होती है मनुष्य शरीर से मन से इच्छाओं से ही नहीं होता मनुष्य वह जो मनुष्यत्व की अनुभूति करे परमतत्त्व को जानने की शक्ति और मनुष्यत्व की अनुभूति  हमारे भारतवर्ष की निधि हैं

संकटों के आने पर हम सनातनधर्मियों को मार्ग भी सूझ जाते हैं समस्याएं अनेक हैं लेकिन सुलझाव मनुष्य के पास ही है

हमारी संस्कृति विचार व्यवहार अद्भुत हैं हमारे यहां छह तीर्थ कहे गए हैं भक्त तीर्थ गुरु तीर्थ 

माता तीर्थ पिता तीर्थ पति तीर्थ और पत्नी तीर्थ



आचार्य जी ने भक्त तीर्थ को स्पष्ट करने के लिए युधिष्ठिर और विदुर का उल्लेख किया युधिष्ठिर अनन्य भक्त विदुर से कह रहे हैं आप जैसे भागवत स्वयं ही तीर्थरूप होते हैं आप लोग अपने हृदय में विराजमान भगवान् के द्वारा तीर्थों को महातीर्थ बना देते हैं 

गुरु शिष्य के हृदय में अहर्निश प्रकाश करता है शिष्य के संपूर्ण अज्ञान को दूर करने का प्रयास करता है जो स्वयं नहीं कर पाता वह शिष्य से करवाना चाहता है 

आचार्य जी ने माता तीर्थ को स्पष्ट करने के लिए एक कथा सुनाई जिसमें जब पुत्र को आधा काटने की बात आई तो असली मां चिल्ला दी इसी को दे दो यह मेरा नहीं है और इसी से असलियत जानकर राजा असली मां को पुत्र सौंप देता है



पिता तीर्थ के लिए आचार्य जी ने भैया पवन की एक कविता का उल्लेख किया 

पति तीर्थ में पत्नी पूर्णरूपेण पति के प्रति अनुरक्त रहती है 

जो पत्नी पति के दाहिने चरण को प्रयाग और वाम चरण को पुष्कर मानकर उसके जल से स्नान करती है उसको सारे तीर्थों का फल मिलता है 

इसी तरह कहा गया है भार्या के समान कोई तीर्थ नहीं 

आचार्य जी ने शून्य के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए चाणक्य का उल्लेख किया 


अविद्यं जीवनं शून्यं दिक् शून्या चेद बान्धवा:। पुत्रहीनं गृहं शून्यं सर्वशून्या दरिद्रता।। 


इसके अतिरिक्त वैनाशिक क्या है गरीबी और दरिद्रता में क्या कोई अन्तर है जानने के लिए सुनें

2.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 2 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  2 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३१ वां* सार -संक्षेप


परिस्थितियां विषम है भय भ्रम का वातावरण छाया हुआ है हम भ्रमित भयभीत होकर पीड़ित न रहें अपितु आशान्वित रहें और इतने आशान्वित रहें कि इस जन्म में यदि ऐसा नहीं हो पा रहा है तो अगले जन्म में हो जाएगा ये सदाचार संप्रेषण हमारे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि हमें आत्मविश्वास, आत्मशक्ति के साथ आत्मगौरव की अनुभूति की आवश्यकता है जो इन संप्रेषणों के विचारों को आत्मसात् करने से हमें प्राप्त हो सकती है 

भगवान् राम के जीवन से हम आत्मविश्वास आत्मशक्ति की प्रेरणा ले सकते हैं कुबेर को पराजित करने वाली भावना में दग्ध विकृत संस्कारों वाला उत्तम कुल में जन्मा शिवोपासक रावण उत्पात मचाए हुए है उसका विकास हो रहा है इसका अर्थ है जितना उसका विकास होता जाएगा उतना सत्पुरुषों का विनाश होता जाएगा

सीता जी का हरण हो जाता है मनुष्य की लीला कर रहे भगवान् राम व्याकुल हो जाते हैं 

 इसका तुलसीदास जी ने बहुत भावमय चित्र खींचा है 


हा गुन खानि जानकी सीता। रूप सील ब्रत नेम पुनीता॥

लछिमन समुझाए बहु भाँति। पूछत चले लता तरु पाँती॥4॥

क्षत विक्षत जटायु मिलता है वह भगवान् राम को पूरी बात बताता है इस व्यथित कर देने वाली घटना में भगवान् राम संकल्प लेते हैं 

जटायु से कहते हैं मेरे पिता से सीता हरण की घटना न कहियेगा 

जौं मैं राम त कुल सहित कहिहि दसानन आइ॥ 31॥


यदि मैं राम हूँ तो दशानन रावण कुटुम्ब सहित वहाँ आकर स्वयं ही कहेगा 

यह है रामत्व ऐसा है पौरुष और पराक्रम 

जब यह समय पर व्यक्त होता है तो इसका प्रभाव होता है 

अद्भुत है राम कथा इसमें हम आनन्दित होते हैं लेकिन उस आनन्द को प्राप्त करने के साथ हमारे ऊपर और क्या प्रभाव पड़ता है यह एक गम्भीर प्रश्न है

राम कथा से हमें संगठन का महत्त्व समझना चाहिए शक्तियां बिखरी हुई थीं उन्हें समेटा 

आज भी यही सत्य है कि बटेंगे तो कटेंगे

इसलिए बहुत ध्यान देने की बात है 


हम ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र की भाषा छोड़ उठें

व्यक्तिगत हानियां लाभ लोभ की आशा  छोड़ उठें

हम केवल यह समझें कि हम भारतवर्ष के हैं 

समाज और देश के लिए जीवित रहने का भाव रखें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शरद कश्यप का उल्लेख करते हुए किस मन्दिर की चर्चा की अगले जन्म में विवाह करा दूंगा किसने कहा चिराग पासवान का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

1.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  1 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३० वां* सार -संक्षेप


जब हम चिन्तन की गहराइयों में उतरेंगे तो ऐसा प्रतीत होगा कि परमकवि परमात्मा द्वारा बनाई गई संपूर्ण सृष्टि ही परमात्मा की सभी रसों वाली एक अप्रतिम कविता है हमें इसका आनन्द लेना चाहिए यह कविता अनन्त चल रही है भाव -जगत स्थूल जगत का सार है जिसको इस सार को प्राप्त करने की विधि आ जाती है तो सृष्टि से अवशोषित कर वह कवि,अभियन्ता,वैज्ञानिक,चिकित्सक आदि हो जाता है सूक्ष्म रूप में भाव हमारे भीतर विद्यमान रहते हैं और यदि उन्हें व्यक्त करने की शक्ति प्राप्त हो जाए तो इसे बहुत बड़ा वरदान समझना चाहिए

अनेक कवियों ऋषियों मुनियों दार्शनिकों वीर योद्धाओं आदि की एक लम्बी सूची है सूक्ष्म रूप में उनके अंश हमारे भीतर अवस्थित हैं हमें इसे अनुभव करने की आवश्यकता है हमें निराश हताश नहीं रहना चाहिए स्थूल पदार्थों को एकत्र करने में एक बच्चा प्रसन्न रह सकता है लेकिन जैसे जैसे समझदारी वृद्धिंगत होती जाएगी स्थूलता के प्रति आकर्षण कम होता जाएगा और यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो इसका अर्थ हम बच्चे हैं आत्मनिरीक्षण करें आत्मस्थ होने की चेष्टा अत्यावश्यक है


कबीर ऐसा यहु संसार है, जैसा सैंबल फूल। 


दिन दस के व्यौहार में, झूठै रंगि न भूलि॥


क्षणमात्र का ध्यान भी अवर्णनीय है इसी ध्यान की बात भगवान् कृष्ण कहते हैं


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।


संसार में समस्याएं हैं इसमें कोई भ्रम नहीं उन समस्याओं से अनुरक्त होकर उन्हें समझना अपने कर्तव्यों को पूर्ण करने के लिए संकल्पित होना और उन कर्तव्यों को प्रामाणिकता से करना अपने लक्ष्य पर सदैव ध्यान देना जैसे राष्ट्र -निष्ठा राष्ट्र -सेवा और उन समस्याओं से विरक्त होकर अपने को समझना हमारा कर्तव्य है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल सम्पन्न हुई कवि गोष्ठी के विषय में क्या बताया आज आचार्य जी की क्या योजना है जानने के लिए सुनें