28.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 28 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३१० वां* सार -संक्षेप

 प्रेम से हम गुरु जनों की, नित्य ही सेवा करें,

प्रेम से हम संस्कृति की, नित्य ही सेवा करें।

योग विद्या ब्रह्म विद्या, हो अधिक प्यारी हमें,

ब्रह्म निष्ठा प्राप्त कर के, सर्व हितकारी बनें।

॥ हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिए...॥


हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिए,

शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए॥

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 28 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३१० वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी प्रयास करते हैं कि हम वह जीवनशैली न अपनाएं जो  हमारी बुद्धियों को स्थूल कर दे हमें मात्र उदरपूर्ति  का जीवन व्यतीत करने की ओर उन्मुख कर दे हमें भोगवादी बना दे 

हमें संस्कारहीन बना दे हमें सद्विचारों से दूर कर दे हमें प्रवाहपतित कर दे 

हमें तो उस जीवनशैली को अपनाना है जिससे हम अपने दुर्गुण दूर कर सकें हम सदाचारी बन सकें

हम ज्ञानसम्पन्न बन सके हमें आत्मबोध हो सके क्योंकि जब हमें आत्मबोध होगा तो हम आत्मशोध करने की रुचि भी जाग्रत कर सकते हैं

  आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन करें समय का पालन भी करें क्योंकि समय का पालन भी आचरण का एक स्तम्भ है आचार्य जी नित्य हमें इस कारण उद्बोधित करते हैं ताकि हम अपने वास्तविक इतिहास से परिचित हों हम अपने धर्म अपने ग्रंथों अपनी संस्कृति अपने ऋषियों तपस्वियों को जानें

महापुरुषों की जीवनियों का अध्ययन करें शौर्य शक्ति की उपासना करें शौर्यप्रमंडित अध्यात्म को समझें और ये सब स्वयं जानकर भावी पीढ़ी को भी बता सकें उनमें व्याप्त भ्रमों को दूर कर सकें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने जद्यपि भगिनी कीन्हि कुरूपा। बध लायक नहिं पुरुष अनूपा॥

देहु तुरत निज नारि दुराई। जीअत भवन जाहु द्वौ भाई॥3॥ का उल्लेख क्यों किया निर्णयसिन्धु क्या है तुलसीराम की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

27.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी / अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 27 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३०९ वां* सार -संक्षेप

 पढ़ते रहो बढ़ते रहो, उत्साह को त्यागो नहीं। 

चढ़ते रहो गढ़ते रहो, संसार से माँगो नहीं। 

चिढ़ते रहें वे लोग, जो निस्सार से आक्रांत हैं 

कुढ़ते वही प्रायः कि जो संभ्रांत या दिग्भ्रांत हैं।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी / अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 27 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३०९ वां* सार -संक्षेप

आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हम संसार की चमक दमक में दिग्भ्रान्त न हों,  अपने भ्रमों का निवारण कर अपने विकारों को दूर कर उत्साहित आनन्दित रहें, चिन्तन मनन सकारात्मक विचार में रत हों, प्रातःकाल सूर्योदय के पहले उठें,हम इस सूत्र सिद्धान्त को याद रखें कि मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥ 


श्रीरामचरित मानस एक अद्वितीय अद्भुत ग्रंथ है जिसके प्रसंग हमें भारतीयता का सम्यक् प्रकार से बोध कराते हैं हमें भारत से परिचित कराते हैं और मात्र परिचित ही नहीं कराते इसके भावों में हमें निमग्न करते हैं तभी हम भारत को अपनी मां कहते हैं यहां बहती गंगा यमुना गोदावरी कावेरी आदि नदियों को हम मां के रूप में पूजते हैं 

गङ्गे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती, नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु

धरती को भी हम मां कहते हैं 

यमुना के प्रति भगवान् कृष्ण का प्रेम गंगा के प्रति भगवान् राम का प्रेम देखते ही बनता है

गंगा भक्ति भारत भक्ति एक दैवीय वरदान है जो सबको नहीं मिलता हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें प्राप्त है

मानस में एक प्रसंग है 

बहुत कीन्ह प्रभु लखन सियँ नहिं कछु केवटु लेइ।

बिदा कीन्ह करुनायतन भगति बिमल बरु देइ॥10

हम उस प्रसंग में जा रहे हैं जब भगवान् श्री रामजी, लक्ष्मणजी और सीताजी के बहुत आग्रह पर  भी केवट ने कुछ नहीं लिया तब करुणा के धाम भगवान श्री रामचन्द्रजी ने निर्मल भक्ति का वरदान देकर उसे विदा कर दिया


तब मज्जनु करि रघुकुलनाथा। पूजि पारथिव नायउ माथा॥

सियँ सुरसरिहि कहेउ कर जोरी। मातु मनोरथ पुरउबि मोरी॥1 इसके पश्चात् रघुकुल के स्वामी  प्रभु श्री रामजी ने  गंगा जी में स्नान करके पार्थिव पूजा की और शिवजी को सिर नवाया। सीताजी ने हाथ जोड़कर गंगाजी से कहा- हे मां ! मेरा मनोरथ पूरा कीजिएगा

तो मां गंगा कहती हैं 

सुनु रघुबीर प्रिया बैदेही। तब प्रभाउ जग बिदित न केही॥

लोकप होहिं बिलोकत तोरें। तोहि सेवहिं सब सिधि कर जोरें॥3॥


हे रघुवीर की प्रियतमा जानकी! सुनो, तुम्हारा प्रभाव जगत में किसे नहीं ज्ञात है? तुम्हारे देखते ही लोग लोकपाल हो जाते हैं। सब सिद्धियाँ हाथ जोड़े तुम्हारी सेवा करती हैं



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अजीत जी २००६, भैया पंकज जी भैया संदीप शुक्ल जी भैया पुनीत जी भैया आशीष जोग जी भैया संतोष मिश्र जी का नाम क्यों लिया डा जी एन वाजपेयी जी का उल्लेख क्यों हुआ पार्थिव पूजन क्या है

सरयू की चर्चा किस प्रसंग में आई जानने के लिए सुनें

26.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी/चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 26 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३०८ वां* सार -संक्षेप

 नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं॥

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं॥1॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी/चतुर्दशी ( महाशिवरात्रि )विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 26 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३०८ वां* सार -संक्षेप


इन अद्भुत कल्याणकारी प्रेरक सदाचार संप्रेषणों का ये जो क्रम चल रहा है यह भगवान् की कृपा है विषम परिस्थितियों में घिरे होने पर भी अखंड भारत के उपासक आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं ताकि हम भाव, विचार और क्रिया का सामञ्जस्य कर सकें अध्यात्म को समझ सकें विकारों को दूर कर सकें शक्ति सामर्थ्य पराक्रम की अनुभूति कर सकें अस्ताचल वाले देशों के कारण भीतर भरी हीनभावना को दूर कर सकें

भारतीय संस्कृति भारतीय दर्शन भारतीय विचार के वैशिष्ट्य को जान सकें भक्ति के साथ शक्ति के सामञ्जस्य की अनिवार्यता को जान सकें 

यह मान सकें कि हमारे लिए संसार के साथ सार भी महत्त्वपूर्ण है


एक ही तत्त्व की तीन मूर्तियां हैं ब्रह्मा विष्णु और महेश अर्थात् शिव 

शिव कल्याणकारी है और रुद्र भयानक


कुछ लोग भगवान् विष्णु का आधार लेकर पूजा करते हैं वे वैष्णव हैं इसी प्रकार भगवान् शिव को पूजने वाले शैव हैं 

तुलसीदास जी ने दोनों का सामञ्जस्य बैठा दिया क्योंकि तुलसीदास जी को उस समय समाज को संगठित करने के लिए शैवों और वैष्णवों के बीच के मतभेदों को समाप्त भी करना आवश्यक लगा


परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी॥

करिहउँ इहाँ संभु थापना। मोरे हृदयँ परम कलपना॥

इसके अतिरिक्त 

एक बार हर मंदिर जपत रहेउँ सिव नाम।

गुर आयउ अभिमान तें उठि नहिं कीन्ह प्रनाम॥106 क॥

का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने क्या बताया  गंगाजल में अचार डालने की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

25.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 25 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३०७ वां* सार -संक्षेप

 भारत के शौर्य जगो निष्ठा जागो तप त्याग जगो

संपूर्ण समर्पण वाले दृढ़  अनुराग जगो



ओ जगो वेन कुलनाशी ऋषि के आक्रोश

वनवासी रघुकुल राम भरत के त्याग जगो 

ओ कुरुक्षेत्र वाले गीता उपदेश जगो 

गांडीव गर्जना शौर्य शक्ति संदेश जगो


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 25 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३०७ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं हम इनके नित्य श्रोता बनें, हमारा स्वभाव इन्हें नित्य सुनने का बन जाए तो लाभ पहुंचेगा प्रतिफल अवश्य मिलेगा

जीवनदर्शन की शिक्षा देने में अनवरत रत आचार्य जी प्रयास करते हैं कि इन्हें सुनकर भारतराष्ट्रभक्तों की पीर जानते हुए दुष्ट शक्तियों जिनके कारण ही 


सुर मुनि गंधर्बा मिलि करि सर्बा गे बिरंचि के लोका।

सँग गोतनुधारी भूमि बिचारी परम बिकल भय सोका॥


भय और शोक से अत्यंत व्याकुल बेचारी पृथ्वी भी गो का शरीर धारण किए हुए उनके साथ थीं,के शमनार्थ हम आत्मशक्ति के साथ सांसारिक शक्ति की भी वृद्धि करें  संसार के साथ साथ सार को भी जानें, जीवन को व्यवस्थित करें 

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत् सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः वाला भाव रखें ताकि हम बोझिल न रहें अपितु आनन्द के अर्णव में तिरें


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार। संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥ को ध्यान में रखते हुए 

ईश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन अमल सहज सुख रासी' की अनुभूति करें

 अध्ययन लेखन में रुचि जाग्रत करें एकांत में स्वाध्याय करें भय भ्रम त्यागें 



पृथ्वी को हम अपनी मां मानते हैं 

समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमंडले, विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे

 'हे माता पृथ्वी, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। कृपया मुझे क्षमा करें, क्योंकि मेरे चरण आपको स्पर्श करने वाले हैं

हमारे यहां पृथ्वी देवताओं की जननी भी मानी गई हैं और समुद्र की मेखला धारण करने वाली कही गई हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विशाल पोरवाल जी का नाम क्यों लिया, दूसरे वाले संतोष मिश्र जी कौन हैं,प्रज्ञा प्रवाह क्या है, कामधेनु तन्त्र की चर्चा क्यों हुई क्या मायामय भक्ति भी होती है जानने के लिए सुनें

24.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 24 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३०६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 24 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३०६ वां* सार -संक्षेप


बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥

साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥4॥


बड़े भाग्य से गुरु रूप में उपस्थित परमात्मा द्वारा यह कर्म योनि वाला मनुष्य शरीर मिला है। सब ग्रंथों का यही सार है कि यह शरीर भोग योनि वाले देवताओं को भी दुर्लभ है यह साधन का धाम और मोक्ष का द्वार है। इसे पाकर भी जिसने परलोक न बना लिया वह परलोक में भी दुःख पाता है, सिर पीट-पीटकर पछताता है तथा अपने को दोषी न समझकर काल,कर्म  और ईश्वर पर मिथ्या दोष लगाता है

यह मनुष्य का शरीर कर्म का शरीर है और कर्म के आधार पर धर्म का शरीर है और संपूर्ण सृष्टि के मर्म का भी

 परलोक जाने पर भय न लगे  इसके अनुसार कर्मों को करने की आवश्यकता है  नचिकेता निर्भीक भाव से यम के द्वार तक पहुंच गया था 


मैंने यम के दरवाजे पर दस्तक देकर ललकारा है

मैंने सर्जन को प्रलय-पाठ पढ़ने के लिये पुकारा है

हमें मनुष्य के इस अमूल्य तन की अनुभूति होनी चाहिए यह कितना महत्त्वपूर्ण है कि 

अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं दशनविहीनं जातं तुण्डम्।

वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम्॥


जिस का शरीर क्षीण हो चुका है, माथे के बाल सफेद हो चुके हैं, मुख दंतहीन है और हाथ में दंड लेकर चल रहा है वह वृद्ध मनुष्य भी खुद की आशा का पिंड नहीं त्यागता

ऐसा मनुष्य का शरीर पाकर हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए और इस अनुभूति से परमात्मा भी आनन्दित होता है हम भारत में जन्मे हैं और उस भारत का अर्थ ही है जो भा अर्थात् प्रकाश /ज्ञान में रत है अंधकार और प्रकाश में अन्तर है हमें प्रकाश अच्छा लगता है अंधकार भौतिक जगत् का अज्ञान है और प्रकाश ज्ञान है

भगवान् राम ने भी मनुष्य के रूप में जन्म लेकर संपूर्ण सृष्टि के मर्म को जानकर अपने धर्म का पालन किया 

निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

हमें इसी रामत्व का अनुभव होना चाहिए 

हमें भीतर का प्रकाश दिखना चाहिए हम भ्रान्तियां मिटाएंगे तो शान्ति मिलेगी 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया यज्ञदत्त जी भैया संतोष मिश्र जी आचार्य श्री राज करण जी का नाम क्यों लिया उत्तरकांड के किस भाग का अवगाहन करने का हमें परामर्श मिला भाव स्नान क्या है जानने के लिए सुनें

23.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 23 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३०५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 23 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३०५ वां* सार -संक्षेप


ज्ञान भक्ति के बिना पङ्गु है  ज्ञानसंपन्ना भक्ति महाशक्तिशाली होती है ज्ञान में तर्क होता है भक्ति में विश्वास है किन्तु ज्ञान के बिना भक्ति नेत्रहीन है ज्ञान से आंखे खुलती हैं हृदय विशाल बनता है किन्तु भक्ति से हृदय कोमल बनता है ज्ञान का विषय त्याग की भावना लाता है किन्तु भक्ति  में समर्पण प्रकट होता है  जिनमें आनन्द का अर्णव प्रवाहित होता है वे भक्त होते हैं ज्ञान और भक्ति का मिलन अद्भुत है 

प्रयाग एक ऐसा स्थान है जहां ज्ञान और भक्ति का मिलन होता है 

सितासिते सरिते यत्र सङ्गते  तत्राप्लुतासो दिवम् उत्पतन्ति ।

 ये वै तन्वान् विसृजन्ति धीरास् ते जनासो अमृतत्वम् भजन्ते ॥


तीर्थराज प्रयाग में जहां श्वेत वर्ण की गंगा और कृष्ण वर्ण की यमुना का संगम होता है स्नान करने वाले व्यक्तियों को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है और जो धीर पुरुष वहां शरीर त्यागते हैं उन्हें मोक्ष की


कथाओं के माध्यम से हमें गंगा का अवतरण ज्ञात है गंगा में लोगों द्वारा पाप धोने से उसमें जो सांसारिक या तात्विक मलिनता आती है वह तपस्वी लोगों के संस्पर्श से हट जाती है 

स्वार्थ में रत भावहीन वर्तमान पीढ़ी को इस पर विश्वास हो हमें इसका प्रयास करना चाहिए  और इसके लिए हमें स्वयं विश्वास करना होगा इसके लिए हम सद्ग्रंथों का अध्ययन करें जैसे कल्याण का एक अंक है गंगा अंक जो जनवरी २०१६ में प्रकाशित हुआ 

वर्तमान परिस्थितियों में 

प्रयागराज जैसे तीर्थों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा लिखित एक लेख की चर्चा की 

किन नबी जी का उल्लेख हुआ नरेन्द्र जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

22.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 22 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३०४ वां* सार -संक्षेप

 रामकथा के तेइ अधिकारी। जिन्ह कें सत संगति अति प्यारी॥3॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 22 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३०४ वां* सार -संक्षेप


अद्भुत हैं हमें प्रेरित और गहराई से प्रभावित करने वाले गहन अनुभूतियां कराने वाले हित का उपदेश देने वाले विद्वत्तापूर्ण ये  दूरस्थ संवाद रूपी सदाचार संप्रेषण जिनका हम नित्य बेसब्री से इंतजार करते हैं ताकि हमें संसार के साथ सार का भी परिचय हो सके हम मात्र धनार्जन में व्यस्त न रहें यशार्जन भी करें 


सम्मिलित कुटुम्बों के पर्याय भारतवर्ष ने अपने जीवनदर्शन के माध्यम से संपूर्ण विश्व को यह बताने का प्रयास किया है कि यह संसार संबन्धों का संसार है परमात्मा  जिसकी अनुभूति गुरु ने यह कहकर भी कराई कि 

त्वमेव माता च पिता त्वमेव । त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव । त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥



द्वारा निर्मित ये संबन्ध इस देश में बहुत फले फूले और विकसित हुए


अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्  तो परम अवस्था है और इतना होने के बाद भी माया से हम एक दूसरे से संबन्धित होते हैं


आचार्य जी ने बताया कि एक मां को अपनी संतान कितनी प्रिय लगती है मां के मातृत्व में भावनात्मकता अवर्णनीय है यही प्रेम का स्वरूप है जो जब चरम पर पहुंच जाता है तो कहा जाता है प्रेम ही ईश्वर है

यह सदाचार वेला अत्यन्त प्रभावकारिणी है 

सदाचार वेला तो उस समय भी होती थी जब हम विद्यालय में पढ़ रहे थे और जहां हनुमान जी हमें प्रेरणा देते थे

 हमने वहां ज्ञानार्जन किया किन्तु हमें उस ज्ञान का दंभ नहीं करना चाहिए तुलसीदास जी ने भी कभी ज्ञान का दंभ नहीं किया उन्होंने शास्त्रार्थ भी किया तो यह बताने के लिए कि शिव और राम अलग अलग नहीं हैं  भारतवर्ष में यह विशेषता है कि तुलसीदास जैसा भक्तिपथ पर चलने वाला कोई न कोई भावुक व्यक्ति नेतृत्व करने लगता है भक्तिकाल ( सन् १३१८ से १६४३ तक )  में जिस समय शासन दुष्टों के हाथ में था भक्ति से जो शक्ति इन साहित्य मनीषियों ने उत्पन्न कर दी वह अद्भुत है

आचार्य जी इसी भक्ति के भाव को हमारे भीतर प्रविष्ट कराना चाहते हैं  शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति कराने वाली भक्ति अद्भुत है भक्ति में संशय नहीं होता है भक्ति में परम विश्वास होता है

दुविधामुक्त होकर हम जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करें और इसके लिए भक्ति को अपनाएं 

इसके अतिरिक्त कौन सी pdf नहीं खुली खीर डे का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

21.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 21 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३०३ वां* सार -संक्षेप

 साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि,

सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं 

‘भूषण’ भनत नाद विहद नगारन के,

नदी नद मद गैबरन के रलत है ।।


तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,

त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं॥

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 21 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३०३ वां* सार -संक्षेप


आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में जिससे हमें प्रपंचों की उलझन दूर करने की शक्ति मिल जाए हमारे भ्रमों का निराकरण जो जाए  आत्मशक्ति की अनुभूति हो जाए जीवन में साधना का आनन्दप्रद तत्त्व मिल जाए हम तपस्वी यशस्वी जयस्वी गम्भीर कर्मानुरागी त्यागी विरागी भावधन विश्वास के विग्रह बनने की दिशा में अग्रसर हो सकें 

हमारे सांसारिक प्रपंचों में फंसे होने के बाद भी इस रहस्यात्मक संसार में  भगवान् हनुमान जी की कृपा से हम राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का आधार लेकर चल रहे हैं और इस कारण हमें विचार तो करना ही है किन्तु व्यवहार में भी चूकना नहीं है हमें जो दिशा दृष्टि मिली है उसके आधार पर हम सद्विचारों को ग्रहण कर अपने जीवन को पावनी भागीरथी जैसा बनाने का प्रयास करने में विकारों को दूर करते हैं दोषयुक्त होने पर भी सहज कर्म करने में विश्वास करते हैं


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि युगभारती के जो भी कार्यक्रम हम करें वे रूढ़िगत ढंग से न करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने छावा का उल्लेख क्यों किया भैया पङ्कज का साकल्य से क्या सम्बन्ध है प्रो निशानाथ जी जिन्होंने आचार्य जी को कभी पढ़ाया था किससे प्रभावित हुए जानने के लिए सुनें

20.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी /अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 20 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३०२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी /अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 20 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३०२ वां* सार -संक्षेप


कल्किपुराण के प्रथम अध्याय में ,गरुडपुराण के ११७ वें अध्याय में ,श्रीमद्भागवतमहापुराण के १२ वें स्कंध के तीसरे अध्याय में  और मानस के उत्तरकांड में कलियुग,जिसमें हम निवास कर रहे हैं,का यथार्थ किन्तु ऐसा भयानक  वर्णन है जो हमें असहज कर देता है


कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ।

दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥९७ क॥

कलियुग के पापों ने सारे धर्मों को ग्रस लिया, अच्छे ग्रंथ लुप्त हो गए,दुष्ट दम्भियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना के द्वारा अनेक पंथ प्रकट कर दिए

एक उपनिषद है जिसमें कलियुग को पार करने का उपाय बताया गया है और वह है कलिसन्तरणोपनिषद  जो वैष्णव शाखा के अन्तर्गत  है। यह संस्कृत भाषा में लिखित है। इसके रचियता मध्यकालीन वैष्णव कवि है इस उपनिषद् में एक ही जप है 

 हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ll

हम लोगों को हनुमान जी महाराज ने दिशा दी हम उनसे प्रेरित प्रभावित होकर संस्कारित हुए

हमारे अन्दर उतने विकार नहीं हैं जैसे अन्य में परिलक्षित होते हैं 

 हम अपना प्रकाश फैलाने में सक्षम है जिससे समाज जिसमें विश्वास घट गया है का अंधकार दूर हो सके 

हम चार आयामों पर कार्य कर रहे हैं शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा

शिक्षा, जो मानव धर्म है,से मानव का उद्धार संभव है इससे उसके अंदर आत्मविश्वास जागता है 

शिक्षा जो अब केवल कमाई का  आधार बन गई है तो मुसीबतें खड़ी कर रही है इसी कारण अच्छी शिक्षा की नितान्त आवश्यकता है 

अच्छी शिक्षा से मनुष्य में मनुष्यत्व आता है 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम अध्ययन स्वाध्याय लेखन की ओर उन्मुख हों एक दूसरे के संपर्क में रहें एक दूसरे का सुख दुःख पूछें इससे हमारे अन्दर एकोऽहं  बहुस्याम का भाव आयेगा 

इसके अतिरिक्त उन्मुक्त मुक्तक क्या है जानने के लिए सुनें

19.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 19 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३०१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 19 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३०१ वां* सार -संक्षेप


श्रवणायापि बहुभिर्यो न लभ्यः शृण्वन्तोऽपि बहवो यं न विद्युः।

आश्चर्यो वक्ता कुशलोऽस्य लब्धाश्चर्यो ज्ञाता कुशलानुशिष्टः ॥



वह (परमतत्त्व) जिसका श्रवण भी बहुतों के लिए दुर्लभ है सुनने वाले व्यक्तियों में से भी अनेक 'जिसे' जान नहीं पाते। 'उसका' ज्ञानपूर्वक कथन करने वाला व्यक्ति अथवा कुशलता से 'उसे' उपलब्ध करने वाला व्यक्ति होना एक आश्चर्यचकित करने वाला चमत्कार है

 तो जब ऐसा कोई मिल जाये ( जैसे आचार्य जी हमें उपलब्ध हैं) तो ऐसा श्रोता होना भी आश्चर्यपूर्ण है जो ज्ञानीजन से 'उसके' विषय में उपदेश ग्रहण करके भी 'ईश्वर' को जान सके। अनुभवकर्ता यदि पारगामी हो तो इसका बहुत प्रभाव होता है 


आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि किसी भी प्रकार की शुष्कता से इतर इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हमें शक्ति, भक्ति, उत्साह, उमंग, चैतन्य, विचार और जीवन जीने का एक मंगलकारी आनन्द का स्वरूप जो हमारी कलाओं में व्यक्त होता है प्रदान हो जाए, आचार्य जी का सदाचार रूपी कवित्व अद्भुत है जो हमें यह भी बताता है कि नाम के रूप में विद्यमान विद्या के साथ रूपात्मक अविद्या भी महत्त्वपूर्ण है और इस अविद्या को मनोयोगपूर्वक पहचानने की नितान्त आवश्यकता है ताकि हमारा मन लगा रहे 

मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः

अर्थात् मन ही तो मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है

यदि पूजा भाव से हम इन सदाचार संप्रेषणों को सुनेंगे तो हमें अवर्णनीय लाभ पहुंचेगा


सबसे मुख्य है कि हमारा मन कहां लगता है और हमारी स्थूल या सूक्ष्म रुचियां क्या हैं जिसमें हमारी रुचि हो उसे पूजा भाव से करें जो काम करें उसमें आनन्द मिले

जैसा आनन्द तुलसीदास जी को भगवान् राम में मिला वो भगवान् राम में रम गए 

 शांतं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं, ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌, रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं, वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌ l 

आचार्य जी हमें सचेत करते हुए कहते हैं कि हम मार्गान्तरित न हों 

हम सार के साथ निष्ठुर संसार को भी समझें समाज में हम अपना व्यवहार सही रखें कटु वचन न बोलें हम संयमित भी बनें अपनी अपनी ज्योति जलाएं ताकि हमारे राष्ट्रभक्त समाज का अंधकार दूर हो उसे अपने वास्तविक इतिहास से परिचित कराएं सनातन धर्म के वैशिष्ट्य की जानकारी दें स्वयं के साथ समाज को भी शौर्य से प्रमंडित आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी के व्यवसाय की चर्चा क्यों की भैया प्रमेन्द्र जी का उल्लेख क्यों हुआ  प्रेमानन्द जी का प्रसंग क्यों आया जानने के लिए सुनें

18.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 18 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३०० वां* सार -संक्षेप

 नित्यो नित्यानां चेतनश्चेतनानामेको बहूनां यो विदधाति कामान्‌।

तत्कारणं सांख्ययोगाधिगम्यं ज्ञात्वा देवं मुच्यते सर्वपाशैः॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 18 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३०० वां* सार -संक्षेप

प्रतिदिन ही हम दीनदयाल विद्यालय जो हमारे लिए एक पवित्र तीर्थस्थान है के छात्रों में से बहुत लोगों को ये सदाचार संप्रेषण बहुत अच्छे लगते हैं अत्यन्त दिव्य आनन्द की अनुभूति कराते हैं प्रभावित करते हैं मङ्गलकारी आत्मबोध की ओर उन्मुख कराते हैं

क्षणांश में ही हमें यदि यह अनुभूति हो जाए कि परमात्मा हमारे अन्दर ही बैठा है 


नित्योऽनित्यानां चेतनश्चेतनानामेको बहूनां यो विदधाति कामान्‌।

तमात्मस्थं येऽनुपश्यन्ति धीरास्तेषां शान्तिः शाश्वती नेतरेषाम्‌ ॥



अनेक अनित्यों में एकमात्र नित्य, बहुत सी चेतन सत्ताओं में एक तत्त्व होते हुए भी जो बहुतों की कामनाओं का विधान करने में रत रहता है उसका जो धीर पुरुष  आत्मा में दर्पणवत् दर्शन करते हैं, उन्हें शाश्वत शान्ति की प्राप्ति होती है, इससे इतर अन्य को नहीं।

आचार्य जी हमें इसी आत्मबोध की ओर ले जाते हैं इसी कारण हम इनको सुनने के लिए लालायित रहते हैं


जिस दिन सबसे पहले जागे, नव-सृजन के स्वप्न घने

जिस दिन देश-काल के दो-दो, विस्तृत विमल वितान तने

जिस दिन नभ में तारे छिटके जिस दिन सूरज-चांद बने

तब से है यह देश हमारा, यह अभिमान हमारा है l 


सृष्टिकाल से आरम्भ हुए ऐसे भारत देश में जिनको सर्वत्र अमिट अभाव दिखे

जिनमें इस अभाव का भाव व्याप्त हो जाता है वो  देव योनि से इतर बुभुक्षित प्रेत योनि में विचरण करते हैं प्रेत भाव में रहते हैं

वे धन दौलत के लिए भागते फिरते हैं

 हमें उनका विश्वास नहीं करना है हमें अपना देश और समाज बहुत अच्छा लगता है हम तो मानते हैं कि 


*हमारे देश की धरती गगन जल सभी पावन हैं* 

*सभी  सुन्दर सलोने शान्त सुरभित मञ्जुभावन हैं*

*यहां पर जो रमा मन बुद्धि आत्मिक अतल की गहराई से* 

*उसको लगा करती धरा माता  सुजन सब भाई से*


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गीताप्रेस के बारे में क्या बताया उस प्रेस में छपे अवतार अंक की चर्चा में क्या उल्लेख किया भैया विकास गोयनका जी भैया समीर राय जी भैया राजकुमार बथवाल जी भैया मनीष कृष्णा जी भैया मोहन जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी की चर्चा क्यों की भरतकूप का जल गोमुख का जल संगम का जल क्यों चर्चा में आया ३० मार्च का कार्यक्रम हमें कहां करना चाहिए जानने के लिए सुनें

17.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 17 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२९९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 17 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२९९ वां* सार -संक्षेप

हारे मानस की आशा के रूप में परिलक्षित हो रहे, आनन्द की अनुभूति कराने में सक्षम कविता रूपी इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी का नित्य प्रयास रहता है कि उनके भावों को ग्रहण कर हम भारत की धरती में जन्मे  और ऋषियों चिन्तकों विचारकों विद्वानों विदुषियों वीराङ्गनाओं वीरों की बहुतायत वाली इस भूमि के रस से आप्लावित  राष्ट्र -भक्त यशस्वी,तपस्वी, सेवाधर्मी बनें  शक्ति पराक्रम की अनुभूति करें वसुधैव कुटुम्बकम् के भावों को ग्रहण करें, राम -कथा, कृष्ण -कथा को सुनकर शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को जीवन में उतारें भूले भटके पंथी न बने रहें अपने गौरवशाली वास्तविक इतिहास को जानें पिछवाड़े से आए चोरों से सचेत रहें

सनातन धर्म की विशेषताओं को जानें  और ध्यान दें कि ऐसा न हो जाए कि 

घर घूर हो जाए भरपूर नूर की चाहत में

हम मात्र यह न समझें कि केवल अस्थि चर्म का गेह लिए एक निरीह मनुष्य हैं 

कविता रूपी नामरूपात्मक, क्षरणशील मरणधर्मा संसार को रचने वाले परमात्मा के मन में जब यह अनुभूति हुई कि वह  अकेला है और उसे आनन्द नहीं आ रहा है तो उसे इस एकाकीपन से निकलने की छटपटाहत हुई

एकोऽहं बहु स्याम 

और  फिर जो स्वर निकला वह उस परमात्मा की कविता का प्रथम छंद बना

 *ॐ* 

जिसका उच्चारण हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी है इसके उच्चारण से शरीर के सारे अंग परिपुष्ट हो जाते हैं इससे अवर्णनीय शक्ति विश्वास ऊर्जा की अनुभूति होती है 


परमात्म तत्व लेकर अवतरित हुए महर्षि वाल्मीकि द्वारा उच्चारित 

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥' प्रथम श्लोक के रूप में हमारे सामने है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया समीर राय जी भैया सौरभ राय जी की चर्चा क्यों की सियाराम शरण का उल्लेख किस प्रसंग में हुआ  योगेश जी का नाम क्यों आया संसार पर संकट क्यों है क्या हम ही कल्कि हैं जानने के लिए सुनें

16.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 16 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२९८ वां* सार -संक्षेप

 तुम्हारी उदासी उनको हँसाती है 

 और दुनिया के

सभी शिल्पियों को

 दुविधा में फँसाती है | 

उनका यही काम है

.......


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 16 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२९८ वां* सार -संक्षेप

बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥

सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥4॥


सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥

बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥5॥

सत्संग के रूप में प्राप्त ये सदाचार संप्रेषण जिनमें प्रचुर मात्रा में तत्त्व मिलते हैं जिनसे सांसारिक और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है

 एक  ऐसा माध्यम  जिससे हमें समझ में आए कि हम अपनी इच्छाओं और अहंकार को छोड़कर स्वार्थ का परित्याग कर भगवान् के प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम व्यक्त करें 

 हमें उत्थित उत्साहित करने के लिए हमें सरलता से उपलब्ध हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए 

हम यदि मनुष्यत्व की अनुभूति करें तो  समझ में आयेगा कि  हमारे अंदर सबसे अधिक प्रबल तात्विक शक्ति का बोध 'भाव ' है 

इसी कारण हमें भाव को पूजना चाहिए

हम अनुभूति करें कि हम शिल्पकार हैं हम अपने प्रयास जारी रखें हमें आजीवन बनाने की धुन है हम उसे भूलें नहीं हम राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में अपने कर्तव्य को करते रहें  जो दूसरों का सुख हर रहे हैं  विध्वंसकारी कृत्य कर रहे हैं उनसे सचेत रहें संगठित रहकर शक्ति पराक्रम की अनुभूति करें 

हम अपनी आत्मशक्ति को पहचानें जब हम अनुभूति करेंगे कि हम उसी अंशी के अंश हैं तो हम बड़े से बड़े काम कर सकते हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि जीवन की पद्धति को अद्भुत कौशल से प्रस्तुत करने वाले अनेक ग्रंथों से समृद्ध संस्कृत साहित्य में नाम के आगे श्री  क्यों लगाया जाता है जैसे श्रीमद्भगवद्गीता श्रीरामचरित मानस इसके लिए निम्नांकित श्लोक द्रष्टव्य है— देवं गुरुं गुरुस्थानं, क्षेत्रं क्षेत्राधिदेवताम्। सिद्धं सिद्धाधिकारांश्च, श्रीपूर्वं समुदीरयेत्॥

आचार्य जी ने यह भी बताया कि हम मनुष्य अकेले नहीं रह सकते हमें किसी न किसी का साथ चाहिए 

आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी, भैया विजय गर्ग जी का नाम क्यों लिया कल कौन सा सत्रान्त कार्यक्रम हुआ छत को न भूलने से क्या तात्पर्य है जानने के लिए सुनें

15.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 15 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२९७ वां* सार -संक्षेप

 सिंधु की उपराम लहरों को सरोवर मत समझना ,

देख मनहर रंग ज्वालामुखी के हरगिज न छूना ,

विश्व का जंजाल सबकी समझ में आना कठिन है ,

इसलिए परमात्म चिंतन से कभी विचलित न होना ।।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 15 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२९७ वां* सार -संक्षेप


संपूर्ण संसार इसी प्रपंच में फंसा हुआ है कि यह मेरा है यह तेरा है

मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥  

हम भी इसी संसार में हैं किन्तु संपूर्ण वसुधा को अपना कुटुम्ब कहने वाली हमारी संस्कृति इससे इतर संदेश देती है हमारी संस्कृति यज्ञमयी संस्कृति  है जिसका सार यह है कि हम जीवन के हर पहलू में स्वार्थ से ऊपर उठकर समर्पण,त्याग सेवा को महत्त्व दें समाज और देश के प्रति अपना उत्तरदायित्व समझें

और यह ध्यान रखें कि दोषयुक्त होने पर भी सहज कर्म का हमें त्याग नहीं करना चाहिए  और तब 


असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः।


नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां संन्यासेनाधिगच्छति।।18.49।।


सर्वत्र आसक्ति रहित बुद्धि वाला वह व्यक्ति जो स्पृहारहित और जितात्मा है, संन्यास के माध्यम से परम नैष्कर्म्य सिद्धि को प्राप्त होता है।

सिद्धि को प्राप्त पुरुष परमात्मा को प्राप्त होता है जिसके हम अंश हैं और उसी अंशी परमात्मा में लीन होकर अपना अस्तित्व मिटा देते हैं 

यदि कोई आत्मा के पृथक् अस्तित्व को खोजना चाहे तो उसके लिए यह असाध्य कार्य होगा।


हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराई।

बूँद समानी समुंद मैं, सो कत हेरी जाइ॥


आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि अपने मन को अपने तन को अपने जीवन को उल्लासमय बनाने के लिए पूजाभाव से यज्ञभाव से स्वाध्याय करें

इसके अतिरिक्त आत्मशोध और आत्मबोध में क्या अन्तर है आचार्य जी ने भैया आकाश मिश्र जी का नाम क्यों लिया राहुल गांधी अटल वाजपेयी का उल्लेख क्यों हुआ

भगवा ध्वज गुरु क्यों हुआ


इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।


मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।3.42।। के भाव से इतर इन्द्रियों से युक्त होकर हमारे दंभयुक्त होने पर हमारा क्या होता है 

 जानने के लिए सुनें

14.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 14 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२९६ वां* सार -संक्षेप

 ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय 

 औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 14 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२९६ वां* सार -संक्षेप


हमारे ऋषियों ने संसार की सांसारिकता वाले भाव को कम करने के लिए विचार चिन्तन मनन ध्यान अध्ययन स्वाध्याय योग  सदाचार आदि उपाय बताए हैं 

आज मानव जीवन इतना अस्त-व्यस्त हो गया है कि सदाचार की ओर उसका ध्यान ही नहीं जाता जब कि सदाचार मनुष्य के मन,कर्म और वचन की  पावन धारा का वह सुन्दर समन्वय है, जहाँ पर मनुष्य मनुष्य के सम्बन्ध को ऋत रीति से जानता है और उस सम्बन्ध का नियमों के अनुकूल अनुपालन भी करता है आइये  अस्त व्यस्त जीवन से बचाने वाले सदाचार को प्राप्त करने के लिए प्रवेश करें आज की वेला में


यह विविधताओं से भरा संसार सफलता के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है सफलता हमें आनन्द देती है

संसार बहुत अद्भुत है और इस संसार के तत्त्वों से बना हमारा शरीर भी कम अद्भुत नहीं है उसकी अद्भुतता अवर्णनीय है 

क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा । पंच रचित अधि अधम शरीरा ॥ 


 प्रतिदिन हम मरते हैं प्रतिदिन हम जीते हैं 

ऐसे शरीरधारी मनुष्य हैं हम किन्तु हमें अपने मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए तभी हमें मनुष्य होने का लाभ है


आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त बताया कि हनुमान जी हमारे भीतर यदि उपस्थित हो जाएं तो हमारा हर तरह से कल्याण होगा  उनका प्रभाव अद्भुत है इसके लिए आचार्य जी ने एक प्रसंग बताया जिसमें विद्यालय में अनेक कुत्ते मर गए थे और हम लोगों की रक्षा हो गई थी 

अपनों की मृत्यु कितना कष्ट पहुंचाती है इसके लिए आचार्य जी ने धन्ना भगत का प्रसंग बताया 

धन्ना भगत अपने पुत्र की मृत्यु पर बहुत व्यथित हो गए थे उनकी ढपली की ताल नहीं बन पा रही थी

अपने लिए अपनों के लिए समाज के लिए युगभारती परिवार का विस्तार आवश्यक है 

आचार्य जी ने भैया प्रवीण द्विवेदी जी का नाम क्यों लिया 

जानने के लिए सुनें

13.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 13 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२९५ वां* सार -संक्षेप

 ज्ञान इतना विस्तृत है कि जीवात्मा और परमात्मा का नित्य सम्बन्ध होने पर भी हम परमात्मा को पहचान नहीं पाते...


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 13 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२९५ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी  जो नित्य हमें सात्विक जीवन जीने की ओर उन्मुख करने का प्रयास करते हैं हम जिज्ञासुओं को अध्ययन स्वाध्याय और लेखन की ओर प्रेरित करते हैं हमें सुविस्तृत अथाह सनातन धर्म के वैशिष्ट्य से अवगत कराते हैं  विद्या और अविद्या दोनों को जानने के लिए बढ़ावा देते हैं उसका उद्देश्य है कि हमें यह आत्मबोध हो कि हम केवल शरीर नहीं हैं हम इच्छाओं का पुञ्जीभूत रूप नहीं हैं हमें पता चले कि प्रकाश स्रोत, अन्तर्दृष्टि, अन्तर्ज्योति, ज्ञानचक्षु और तृतीय नेत्र आदि उपमाओं से विभूषित प्राचीन शिक्षा से वञ्चित कराकर हमें किस प्रकार की दूषित शिक्षा, जो न आत्मदर्शन कराने में सक्षम है न संसार का दर्शन कराने में उपयोगी, वह उपलब्ध करा दी गई कि हमने पाठ्यक्रम पढ़ा परीक्षा उत्तीर्ण की degree हासिल की नौकरी पा ली धन एकत्र कर सुखोपभोग विलासिता की वस्तुएं एकत्र लीं और इसी चक्र को भावी पीढ़ी  को चलाने के लिए दे दिया और इससे हम  आत्महीनता से ही ग्रसित हुए कल्याण नहीं हुआ क्या जीवन की यही परिभाषा है 

*केवल प्राणों का परिरक्षण जीवन नहीं हुआ करता है*

*जीवन जीने को दुनिया में अनगिन सुख सुर साज चाहिए*.....

जीव की इच्छाओं का विस्तार अनन्त है इस प्रदर्शन से इतर आत्म का दर्शन है 

ऋतं पिबन्तौ सुकृतस्य लोके गुहां प्रविष्टौ परमे परार्धे ।

छायातपौ ब्रह्मविदो वदन्ति पञ्चाग्नयो ये च त्रिणाचिकेताः ॥ १ ॥

जो व्यक्ति अपने पुण्य कर्मों का फल भोगते हैं, वे परब्रह्म के आसन की गुहा में स्थित रहते हैं, उन्हें ब्रह्मवेत्ता छाया व प्रकाश कहते हैं, तथा जो पांच अग्नियों को धारण करते हैं और जिन्होंने नचिकेता अग्नि को तीन बार प्रसन्न किया है।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने छाया प्रकाश अंधकार का सम्बन्ध बताया दीनदयाल जी के तीन दिन होने वाले बौद्धिक की चर्चा की चाणक्य के बारे में आचार्य जी ने क्या बताया नचिकेता का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें

12.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 12 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२९४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 12 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२९४ वां* सार -संक्षेप


परमात्मा की लीला के कारण ही संभव इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से आचार्य जी नित्य हमें उद्बोधित करते हैं  वह प्रयास करते हैं कि हमें उत्साह ,विश्वास,आत्मशक्ति,संसार की समस्याओं से जूझने के लिए दिशा दृष्टि मिले हमारी अनुभूतियां अभिव्यक्तियों में परिवर्तित हों हम अविश्वास का तिमिर दूर करें वह मध्यम वर्ग के हम लोगों को परामर्श देते हैं कि शान्ति प्राप्त करने के लिए  परमात्मा की शरण में जाएं क्योंकि सारी सृष्टि ही परमात्मा द्वारा रची गई है इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि परमात्मा  भीतर और बाहर सर्वत्र विद्यमान है

कठोपनिषद् में एक छंद है 

एको वशी सर्वभूतान्तरात्मा एकं रूपं बहुधा यः करोति।

तमात्मस्थं येऽनुपश्यन्ति धीरास्तेषां सुखं शाश्वतं नेतरेषाम्‌ ॥


समस्त प्राणियों के भीतर स्थित, शान्त एवं सबको वश में रखने वाला एकमेव 'आत्मा' एक ही रूप को भिन्न भिन्न प्रकार से रचता है जो धैर्यवान् पुरुष 'उस' का आत्मा में दर्पणवत् अनुदर्शन करते हैं उन्हें शाश्वत सुख प्राप्त होता है, इससे इतर अन्य व्यक्तियों को नहीं ।

गीता का एक अत्यंत प्रसिद्ध छंद है 


त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।


निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।


वेद तीनों गुणों के कार्य का ही वर्णन करने वाले हैं

हे अर्जुन! तुम तीनों गुणों से रहित , द्वैत भाव से मुक्त , निरन्तर नित्य वस्तु परमात्मा में स्थित हो जाओ और योगक्षेम की इच्छा भी मत रखो साथ ही परमात्मपरायण हो जाओ

इसकी अनुभूति वाला ही ऋषि होता है किन्तु कभी कभी उसका ऋषित्व सांसारिकता में कुंठित हो जाता है जैसा ऋषि उद्दालक का हुआ 



कठोपनिषद में एक कथा है कि उद्दालक ऋषि विश्वजित नामक यज्ञ कर रहे थे 

विश्वजित का उल्लेख पौराणिक महाकाव्य महाभारत में भी हुआ है। महाभारत के अनुसार यह एक प्रकार के यज्ञ को कहा जाता है, जिसकी दक्षिणा में सर्वस्व दान कर देने का विधान है।

उद्दालक ऋषि को मोहग्रस्त देखकर उनके पुत्र नचिकेता ने कुछ ऐसा कहा जिससे उनके पिता क्रुद्ध हो गए 

क्रुद्ध होकर उन्होंने सबसे प्रिय वस्तु के रूप में नचिकेता को यम को दान में दे दिया ( नचिकेता ने यमराज अर्थात् धर्मराज से ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया )


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया 

दीपांकर वाजपेयी जी का नाम क्यों लिया वाजश्रवा का अर्थ क्या है  पत्रकार प्रदीप सिंह का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

11.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 11 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२९३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष  चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 11 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२९३ वां* सार -संक्षेप


जहां जिस ठौर जैसे दौर में भी हों वहीं जागें 

कि अपने इष्ट से वरदान बस केवल यही मांगें 

हमारा तन सदा साथी रहे मन शांत संयत हो 

चुनौती कोइ भी हो हम न उससे भीत हो भागें

यहां जागने का अर्थ अत्यन्त गहन गम्भीर है मात्र नेत्र खोलना ही जागना नहीं है किस प्रकार की समझदारी किस स्थान पर कैसे व्यक्त की जाए यह जागरण है

यदि हम स्वस्थ और  प्रसन्न रहेंगे तो चुनौतियों से जूझ भी लेंगे 


आचार्य जी कहते हैं कि हममें से किसी को भी हीनभावना से ग्रस्त नहीं होना चाहिए हम सबमें शक्ति है तत्त्व है हमें विवेचनपूर्वक इसे स्वीकारते हुए निराशा हताशा से दूर रहना चाहिए  अपनों के परिवेश का भी हमें ध्यान रखना चाहिए 


बिना भ्रमित हुए अपनी पूर्ण क्षमता के साथ जिस किसी को भी सहायता की आवश्यकता हो अवश्य करें

अपनी क्षमताओं को पहचानकर अधिक से अधिक कामों को करें आत्म की अनुभूति भी करें  हम देशद्रोही तत्त्वों से सावधान रहें  अपने देश अपनी संस्कृति अपने विचारों के उत्थान में जुटे पुरोहित के रूप में अपनी भूमिका का स्मरण रखें और संगठित रहें 

हम उस विद्यालय के छात्र रहे हैं जो महापुरुषों की एक लम्बी सूची में जगमगाते आदर्श पुरुष पं दीनदयाल जी की स्मृति में बना ऐसे में उनके सद्गुण हमारे भीतर आने ही चाहिए उनमें अनेक सद्गुण थे और इतने सदगुणी व्यक्ति की ११ फरवरी १९६८ को दुष्टों द्वारा हुई हत्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संयुत या परिचित व्यक्तियों को महाशोक में ले डूबी

यह घटना आज भी हम राष्ट्र भक्तों को विचलित कर देती है 

आज राष्ट्र -भावना से संपृक्त होते हुए पूरा दिन शान्त गम्भीर रहते हुए बिताएं उनकी मूर्ति /चित्र पर पुष्पार्पण करें 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि पुुरुष सूक्त का प्रयोग विशेष पूजन के क्रम में किया जाता है। षोडशोपचार पूजन के एक- एक उपचार के साथ क्रमशः एक- एक मन्त्र बोला जाता है। जहाँ कहीं भी किसी देवशक्ति का पूजन विस्तार से करना हो, तो पुरुष सूक्त के मन्त्रों के साथ षोडशोपचार द्वारा पूजन करा दिया जाता है।जैसे 

 ॐ चन्द्रमा मनसो जातः   चक्षोः सूर्यो अजायत। श्रोताद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत॥


अर्थात्- विराट् पुरुष के मन से चन्द्रमा, नेत्रों से सूर्य, कानों से वायु एवं प्राण तथा मुख से अग्नि का प्राकट्य हुआ है।


मन चन्द्रमा की स्थितियों से उत्थित और हतोत्साहित होता है


 आचार्य जी ने भैया कुमार आनन्द अग्रवाल जी,भैया दीपाङ्कर वाजपेयी जी,भैया पवन जी, भैया अशोक जी का नाम क्यों लिया शाल वाला क्या प्रसंग था जानने के लिए सुनें

10.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी/ चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 10 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२९२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी/ चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 10 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२९२ वां* सार -संक्षेप


कोपित कलि, लोपित मंगल मगु, बिलसत बढ़त मोह - माया - मलु ॥१॥


कलियुग ने क्रोध कर धर्म और ईश्वरभक्ति रुपी कल्याण के मार्गों का लोप कर दिया है मोह, माया और पापों की नित्य वृद्धि हो रही है ऐसे में शान्ति की भावना रखते हुए सनातनी सोच रखने वाले आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हम जो भारत का भविष्य हैं 


क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत्। क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम्।

को ध्यान में रखते हुए इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर

आनन्द का अनुभव करें कर्मानुरागी बनें,योगाभ्यासी भाव से कार्य और व्यवहार करें,मंजिल पाने के लिए लगातार पतवार चलाने का संकल्प लें षड्विकारों का परित्याग करें  मनुष्यत्व की सीढ़ियां चढ़ते हुए ईश्वरत्व को प्राप्त करने की भावना रखें हम अपने आत्म को पहचानें क्योंकि हमारे भीतर जो आत्म बैठा है अर्थात् ईश्वर जो अंशरूप में बैठा है उसे पहचानना नितान्त आवश्यक है  जब उसका बोध हमें नहीं हो पाता है तो हम अपने को असमर्थ पाते हैं  दूसरे  व्यक्ति के बड़े बड़े कार्यों पर  आश्चर्य होता है जो आत्म को पहचान लेता है


आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु ।

बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ।।

(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र ३)


इस जीवात्मा को तुम  रथ का स्वामी समझो, शरीर को उसका रथ, बुद्धि को सारथी और मन को लगाम समझो


असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं।


अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।6.35।।


नि:सन्देह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है परन्तु उसे अभ्यास और वैराग्य के द्वारा वश में किया जा सकता है l


इसके अतिरिक्त दीनदयाल शोध संस्थान के प्रतिनिधि अभय जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया पूरे परिवार के साथ चित्रकूट कौन पहुंचा था जानने के लिए सुनें

9.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 9 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२९१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 9 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२९१ वां* सार -संक्षेप

स्थान : प्रेरणा भूमि  चित्रकूट


विद्या और अविद्या दोनों में ही पारङ्गत, विचारशील, साधना में रत, व्यावहारिक ज्ञान में अद्वितीय आचार्य जी नित्य हमें जाग्रत उत्थित उद्बोधित करते हैं हमें भय दंभ और भ्रम से मुक्त करते हैं हमें हीनभावना से ग्रसित होने से बचाते हैं यह हमारे साथ हमारी आने वाली पीढ़ी का भी सौभाग्य है

आइये अज्ञानता, जिसमें यह भी सम्मिलित है कि इतने अधिक ज्ञान से परिपूर्ण हमने अपने साहित्य की उपेक्षा की अपनी भाषा अपने विज्ञान की उपेक्षा की, का आवरण  हटाने के लिए प्रवेश करें आज की वेला में 


भगवान् श्रीकृष्ण की भक्ति के साथ भगवान् राम के द्वारा प्राप्त शक्ति हम भक्तों को अपार शक्ति प्रदान करती है और उस शक्ति का आश्रय लेकर संसार की बड़ी से बड़ी समस्याओं से हम मुक्ति पा लेते हैं

हमें सदैव ध्यान रखना चाहिए कि 

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥

यह सारा संसार ही ईश्वर से व्याप्त है  इसके पदार्थों का आवश्यकतानुसार त्यागपूर्वक भोग करें

 केवल धनदौलत सुखसुविधाओं का ही त्यागपूर्वक उपभोग नहीं अपितु संबन्धों के विषय में भी त्यागपूर्वक उपभोग की बात सत्य है इस कारण परिवार की उपेक्षा न करना जितना अनिवार्य है उतना ही अनिवार्य है कि परिवार के कारण हम आक्रांत भी न हों परिवार को सहयोगी के रूप में संस्कारित करें और यदि उसमें असफल हों तो उसे स्वतन्त्र रहने दें 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने नाना जी देशमुख के पूर्त कार्यों का उल्लेख किया अपने देश की प्राचीन परम्पर का संकेत किया 

भैया राघवेन्द्र जी का उल्लेख क्यों हुआ मोक्ष का मार्ग क्या है प्रयाग जाने का कार्यक्रम अभी क्यों टाला गया

Harakiri (also known as seppuku ) और संथारा का उल्लेख क्यों हुआ 

 जानने के लिए सुनें

8.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 8 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२९० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 8 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२९० वां* सार -संक्षेप


स्थान : प्रभु राम की साधना - स्थली और भरत की समर्पण भूमि  चित्रकूट ( यहां ज्ञान भक्ति वैराग्य की अजस्र धारा बहती है )


आइये आत्मदर्शन का भाव ओढ़कर समर्पित भाव से प्रवेश करें आज की वेला में 

संसार  एक बड़ा अद्भुत  नाट्यमंच है यहां भिन्न भिन्न शैलियों का प्रस्तुतीकरण होता है  पश्चिमी जगत् जिसकी अलग प्रकार की जीवन शैली है से इतर हमारी शैली भारतीय मनीषा ने गम्भीर चिन्तन मनन के पश्चात् प्रस्तुत की है उस शैली में परिवार के भावबोध का वैशिष्ट्य अवर्णनीय है इस भावबोध में भावनात्मक अपनत्व प्रचुरता में है

इसी भावनात्मक अपनत्व को गोस्वामी तुलसीदास ने मानस में कई स्थानों पर प्रकट किया है जैसे एक प्रसंग है 

लोगों की सारी शंकाओं कुशंकाओं 

को एक किनारे करते हुए  परिवार भाव की भावना से भावित


*सिर भर जाउँ उचित अस मोरा। सब तें सेवक धरमु कठोरा॥* कहने वाले 

 तपस्वी भरत  पैदल


गवने भरत पयादेहिं पाए। कोतल संग जाहिं डोरिआए॥2॥


 भगवान् राम से मिलने चित्रकूट आए हैं 



लसत मंजु मुनि मंडली मध्य सीय रघुचंदु।

ग्यान सभाँ जनु तनु धरें भगति सच्चिदानंदु॥239॥


मुनियों, जो मनन करने में रत हैं और जो ऋषियों की तरह अपने लक्ष्य पर पहुंचे नहीं हैं अपितु ज्ञान भक्ति युक्त सिद्धि के मार्ग पर हैं, की सुन्दर मंडली के बीच में  मां सीता और रघुकुलचंद्र प्रभु राम ऐसे सुशोभित हो रहे हैं मानो ज्ञान की सभा में साक्षात्‌ भक्ति (मां सीता )और सच्चिदानन्द ( भगवान् राम )शरीर धारण करके विराजमान हैं ॥239॥

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम चित्रकूट जाने का सिलसिला बनाएं 

भारत देश की अनुभूति करें और उसे अपने भीतर प्रवेश कराएं सिद्ध करें कि हम भारत माता के सच्चे पुत्र हैं 

इसके अतिरिक्त भैया विकास जी भैया आलोक जी (सतना ) भैया राघवेन्द्र जी भैया अतुल मिश्र जी भैया अरविन्द जी भैया पुनीत जी भैया दिनेश प्रताप जी भैया धर्मेन्द्र सिंह जी

की चर्चा  आचार्य जी ने क्यों की  आचार्य जी किस मार्ग से चित्रकूट पहुंचे बस से चित्रकूट कौन पहुंचा

भूमि जाग्रत कैसे होती है नाना जी देशमुख और रामभद्राचार्य जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

7.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 7 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२८९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 7 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२८९ वां* सार -संक्षेप

प्रासंगिक महत्त्वपूर्ण विषयों को उठाने वाले ये सदाचार संप्रेषण हमें उत्साहित आनन्दित उत्थित करने के लिए आचार्य जी के एक पवित्र कार्य के रूप में उपस्थित हो रहे हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए हमें यह सुअवसर नहीं खोना है यह प्रयास करें 


मन पछितैहै अवसर बीते।

दुर्लभ देह पाइ हरिपद भजु, करम, बचन अरु हीते॥१॥

सहसबाहु, दसबदन आदि नप बचे न काल बलीते।

हम हम करि धन-धाम सँवारे, अंत चले उठि रीते॥२॥

सुत-बनितादि जानि स्वारथरत न करु नेह सबहीते।

अंतहु तोहिं तजेंगे पामर! तू न तजै अबहीते॥३॥

अब नाथहिं अनुरागु जागु जड़, त्यागु दुरासा जीते।

बुझै न काम-अगिनि तुलसी कहुँ, बिषयभोग बहु घी ते॥४॥


आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं  कि

हमारी कामना उत्थित होकर भावना बने वह अधोगति प्राप्त कर वासना न बने हम अनुशासित संयमी देशभक्त साधक बनें हमारे भीतर समाजोन्मुखता इतनी भर जाए कि राष्ट्र हमारे कार्यों की प्रशंसा करे चर्चा करे 

हम राष्ट्रीय चिन्तन को पंगु करने वाले दुष्टों का निरसन करने के लिए शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की गहराई में उतरकर संगठित हो जाएं जाग्रत हों अपने परिवेश के प्रति संवेदनशील हों

अपने कर्तव्य से विमुख न हों छोटे अवरोधों के आने पर अपने बड़े लक्ष्य का त्याग नहीं करना चाहिए चुनौतियों से भयभीत होकर नहीं भागें 


पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं श्रुणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् ॥


जब हम विद्यालय में अध्ययन के लिए पहुंचे थे तब आचार्य जी ने यही उम्मीद की थी 


मैंने तुमको ही विषय मानकर गीत लिखे 

तुम ही मेरे उद्देश्य विधेय क्रियाविधि थे 

तुम ही मेरे साथी सहयोगी पुत्र मित्र 

भावना विचार कर्मकौशल युत सन्निधि थे


तुम थे अतीत के शौर्य पराक्रम विजयमन्त्र 

तुम वर्तमान के कर्मयज्ञ के होता थे 

तुम ही भविष्य के उषागान उत्सव उमंग 

आदर्श सनातन धर्म तन्त्र प्रस्तोता थे


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चित्रकूट कार्यक्रम की चर्चा में आज क्या कहा रत्नाकर का बक्सा कहां खो गया था भैया अतुल मिश्र जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

6.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 6 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२८८ वां* सार -संक्षेप

 जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल। चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 6 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२८८ वां* सार -संक्षेप

आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर हमारे अन्दर कर्म का इतना अधिक भाव भर जाए कि हम अपने परिवारों में भी कर्मचैतन्य का भाव भरते हुए आजीवन राष्ट्र और समाज के लिए कार्य करते रहें 

राष्ट्र विरोधी दुष्टों के शमन दमन के लिए उन्हें निर्मूल करने के लिए स्थान स्थान पर संगठनों का निर्माण करते रहें 


विविधता भरे साज सज्जा युक्त इस संसार में हम लोग प्रायः सार का त्याग कर असार की ओर आकर्षित होते हैं  किन्तु जब हम असार के आधिक्य से व्याकुल होते हैं तो परमात्मभक्ति हमें संतुष्ट करती है 

हम लोग उस समय भावना से भरे आशा से परिपूर्ण भाषा की अभिव्यक्ति करने वाले भक्ति शक्ति पराक्रम विश्वास संयम साधना तप त्याग से युक्त एक ऐसे भक्त बन जाते हैं जब  भा की अनुभूति कराने वाले भारत का चिन्तन भगवान् के रूप में करते हैं  पूर्ण प्रलय तक अक्षर रहने वाले उस भारत


(गायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे, स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ll

विष्णुपुराण २/३/२४)


 में अनेक तीर्थस्थान हैं इसका कण कण परम पवित्र है कवि श्यामनारायण पांडेय ने चित्तौड़ को ही तीर्थराज कह दिया है 


मुझे न जाना गंगासागर, मुझे न रामेश्वर, काशी। तीर्थराज चित्तौड़ देखने को मेरी आँखें प्यासी॥


आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि बहुत समय पहले के भारत के भौगोलिक विस्तार के बारे में चिन्तन करते हुए वर्तमान समय के भारत से तुलना करके हम निराश हताश न हों अन्यथा इससे हमें ही हानि पहुंचेगी यह हमारा आत्मबोध क्षीण करेगा  वर्तमान समय की तरह ही संयमी साधक आदि शंकराचार्य के समय भी ऐसी ही भीषण परिस्थितियां थीं उन्हें अनेक अवरोध झेलने पड़े तब  उन्होंने एकांत में बैठकर कहा 


.....न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥1॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चित्रकूट के बारे में आज क्या बताया नानाजी देशमुख की माता जी की मृत्यु कैसे हुई क्या कल्कि हमारे भीतर ही विद्यमान हैं जानने के लिए सुनें

5.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 5 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२८७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 5 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२८७ वां* सार -संक्षेप

ये सदाचार वेलाएं जिनकी नियमितता की रक्षा परमात्मा कर रहा है हमें अत्यन्त प्रेरित प्रभावित करती हैं इसी कारण नित्य हमें इनकी प्रतीक्षा रहती है प्रतीक्षा की घड़ियां समाप्त हुईं आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


पं दीनदयाल जी की हत्या के कारण जब संकल्प लिया गया कि दीनदयाल जी के विचारों  विश्वासों योजनाओं का प्रकटीकरण होना चाहिए तो विद्यालय की योजना बनी उसकी रचना हुई वह विद्यालय अर्थात् 

पं दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय  एक ऐसी भावभूमि के रूप में हमारी स्मृतियों में है और रहेगा भी जहां से हमारा आत्मबोध जागा है इस विद्यालय ने सिद्ध किया कि शिक्षा संस्कार है विचार है व्यवहार है और मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति कराने का आधार है


हम जब यह अनुभूति करेंगे कि हम उस परम शक्तिशाली विभु आत्मा का अंश हैं तो हमें शक्ति सामर्थ्य की अनुभूति होगी हम अपने अंदर की क्षमता को पहचान सकेंगे जैसे हनुमान जी तो समुद्र लांघ गए थे नाली तो हम भी लांघ ही लेते हैं ऐसी प्रेरणा जहां से मिले जिस कार्यक्रम से मिले उसे नहीं छोड़ना चाहिए जिस स्थान से मिले वहां अवश्य पहुंचना चाहिए एक ऐसा ही अवसर ७ फरवरी को चित्रकूट पहुंचने का मिल रहा है चित्रकूट भगवान् राम का निवासस्थान रहा है उन्होंने ऋषियों  मुनियों के साथ जीवन को समरस करके एक आदर्श प्रस्तुत किया है नाना जी ने भी अपने विचारों का वहां सेतु स्थापित किया है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हाल में सम्पन्न हुए कवि सम्मेलन में भाग लेने वाले भैया अतुल भैया उत्कर्ष भैया प्रख्यात मिश्र जी की चर्चा क्यों की महाराणा प्रताप गुरु गोविन्द सिंह का उल्लेख क्यों हुआ सामञ्जस्य बैठाने पर बार बार आचार्य जी ने जोर क्यों दिया जानने के लिए सुनें

4.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 4 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२८६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 4 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२८६ वां* सार -संक्षेप


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥

विधाता ने जड़-चेतन संसार को गुणमय दोषमय रचा है, किन्तु संत रूपी हंस दोष रूपी जल को त्याग गुण रूपी दूध को ही ग्रहण करते हैं

उसी तरह हम भी विकारों को त्याग सद्विचारों को ग्रहण करने का कोई भी अवसर न खोएं ऐसा ही एक अवसर नित्य हमें इस सदाचार वेला के रूप में प्राप्त होता है  हमें इसका लाभ उठाना चाहिए



हमने अपना लक्ष्य बनाया है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष आचार्य जी कहते हैं कि  सामाजिक दायित्व को हम केवल वाणी में ही न रखकर क्रिया में भी प्रदर्शित करें आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हमारा स्व का कर्तव्यबोध मार्गान्तरित न हो कुछ समय आत्मचिन्तन हेतु निकालें आत्मीय जनों से व्यवहार मृदु रखें


स्वभाव से नियत किये हुए स्वधर्मरूप कर्म को करते हुए व्यक्ति को पापों की प्राप्ति नहीं होती है 

प्रयास करने पर हमें अपना स्वाभाविक गुण भी पता चल जाएगा जो कार्य करें मनोयोग पूर्वक करें सहज कर्म दोषयुक्त होते हैं फिर भी हमें उनका त्याग नहीं करना चाहिए


अपनी बुद्धि आसक्तिरहित रखें  शरीर को वश में रखें हम स्पृहारहित हों

चरैवेति का सिद्धान्त अपनाएं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम २ फरवरी को सम्पन्न हुई कवि गोष्ठी की समीक्षा करें 

आगामी कार्यक्रमों के विषय में आचार्य जी ने आज क्या सुझाव दिए भैया मोहन जी भैया मनीष जी भैया राघवेन्द्र जी भैया डा दीपक जी भैया पंकज श्रीवास्तव जी भैया विकास जी भैया वीरेन्द्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

3.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 3 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२८५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 3 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२८५ वां* सार -संक्षेप

सनातन धर्म को मानने वाले भारतीय जीवनदर्शन में संपृक्त हम लोग परम संसारी व्यक्तियों से इतर सोच रखते हैं इस कारण  आनन्द की उपलब्धता चाहने वाले हम मात्र शरीर के इर्द गिर्द ही अपना चिन्तन न रख आत्मा 


( न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।


अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो

न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।2.20।।

 

 यह शरीरी न कभी जन्म लेता है और न मरता है तथा यह उत्पन्न होकर पुनः होने वाला नहीं है। यह जन्मरहित, नित्य निरन्तर रहने वाला, शाश्वत एवं अनादि है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता )

को भी पहचानने की क्षमता रखते हैं और विश्वासपूर्वक कहते हैं कि जो कुछ भी इस संसार में है, वह सब ईश्वर का है 

आनन्द के लिए बाधाओं को काटना अपना उद्देश्य होना चाहिए यूं तो संपूर्ण संसार ही कुरुक्षेत्र है युद्ध चल रहा है संघर्ष हो रहे हैं 

संकट विकट प्रच्छन्न रूपों में चतुर्दिक छा रहा, 

सुविधापसंदों को सिवा सुख के न कुछ भी भा रहा।


ऐसे में 

नीराजना संतत चले शिव शक्तिमय शुभ मंच से ,

आशा लगाए भारती माँ कह रही शिव संच से। 

उल्लास किंचित कम न हो, अवरोध चाहे कोइ हो, 

जाग्रत सभी की आँख हो उल्लसित हो या रोइ हो।

क्योंकि हम लोगों में पौरुष है किन्तु उसकी अनुभूति नहीं है ऐसे में तब-तब धरि प्रभु मनुज शरीरा हमें संकटों से उबार लेता है 

हमारे विस्तार की इच्छा रखते हुए उसी पौरुष को जाग्रत करने का कार्य इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी नित्य करते हैं

आचार्य जी हमें अनुभूति कराते हैं कि हम तत्त्व शक्ति विश्वास  संयम श्रद्धा पौरुष पराक्रम हैं हम आत्म का बोध करें  समाज के स्वरूप का दर्शन करें यह प्रयास करते हैं 


इसके अतिरिक्त कल सम्पन्न हुए कवि सम्मेलन जिसने हमें आनन्दित उत्साहित रोमाञ्चित कर दिया रसानुभूति करा दी कर्तव्य का अनुभव करा दिया की चर्चा आचार्य जी ने की 

भैया पवन मिश्र जी की बेटी,श्री योगेन्द्र भार्गव जी, श्री बालेश्वर जी चर्चा में क्यों आए जानने के लिए सुनें

2.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष चतुर्थी /पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 2 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२८४ वां* सार -संक्षेप

 मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्॥'


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष चतुर्थी /पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 2 फरवरी 2025 का भाव -यज्ञ रूपी सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२८४ वां* सार -संक्षेप


कर्म से परिपूर्ण जीवन जीने वाले भावनासम्पन्न संत स्वभाव वाले आचार्य जी जिनके परिचय के लिए ये पंक्तियां उपयुक्त हैं 


पथ के आवर्तों से थक कर, जो बैठ गया आधे पथ पर।

उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढ़ निश्चय।

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

नित्य प्रयास करते हैं कि यज्ञभाव से रहने का प्रयास करने वाले हम लोगों के भीतर संयम स्वाध्याय श्रद्धा भक्ति विश्वास शक्ति शौर्य का एक पुंजीभूत स्वरूप जाग्रत हो


हमारी भारतीय संस्कृति भावमयी तत्त्वमयी सत्त्वमयी यज्ञमयी संस्कृति है

ध्यातव्य है शास्त्रोक्त वचनों से संपूर्ण वायुमंडल यज्ञमय हो जाता है

और 

सर्वव्यापी परमात्मा भी यज्ञ (कर्तव्य-कर्म) में नित्य प्रतिष्ठित है।

हमें  इसी यज्ञमयी संस्कृति का अनुसरण करना चाहिए 

हमें आसक्ति को त्यागकर यज्ञ के निमित्त ही कर्म का सम्यक् आचरण करना चाहिए 


यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।


भुञ्जते ते त्वघं ( भुञ्जते ते तु अघं ) पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।3.13।।


यज्ञ के अवशिष्ट अन्न को ग्रहण करने वाले श्रेष्ठ पुरुष सारे पापों से मुक्त हो जाते हैं किन्तु जो उदरंभरि व्यक्ति केवल स्वयं के लिये ही पकाते हैं वे  पापों का ही भक्षण करते हैं।।

हमारी आर्ष परम्परा अत्यन्त अद्भुत है इस परम्परा में ज्ञान का उद्भव काव्यमय है

भावों से उद्भूत भावक जनों को समर्पित की जाने वाली 

कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है

हारे मानस की आस प्राण परिभाषा है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रोम के एक राजा की चर्चा क्यों की अटल जी ने कौन सी कविता दसवीं कक्षा में लिखी थी आज आचार्य जी सुबह जल्दी क्यों आ रहे हैं जानने के लिए सुनें

1.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 1 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२८३ वां* सार -संक्षेप

 ओ भारत के सपूत जागो तन्द्रा त्यागो, आचरण-शुद्धता पर पूरा विश्वास करो। 

 शुचिता, कर्मठता, आत्मतोष अपना धन है, इस धन से मानव-जीवन का दारिद्र्य हरो।।

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष तृतीया

( माघ गुप्त नवरात्रि का तीसरा दिन )

 विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 1 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२८३ वां* सार -संक्षेप


कर्म -कौशल के साथ संयुत रहकर हमें कर्मानुरागी बनाने का भारतीय संस्कृति के सामगान के चारण  भावों से परिपूर्ण क्रान्ति -मन्त्र के उच्चारण आचार्य जी का नित्य का यह प्रयास अद्भुत है इन वेलाओं को यदि हम मनोयोग से सुनेंगे तो हमें अत्यन्त लाभ पहुंचेगा

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम तप और संयम का विग्रह बनें राष्ट्र -यज्ञ के पुरोहित बनें बलिदानी सुधियों के नियमित तर्पण वाले कर्मयोगी बनें निर्बलों का बल बनें 

पङ्किल सरोवर में खिले हुए कमल बनें 

स्रष्टा द्वारा रची सत् और तम से युक्त यह सृष्टि अद्भुत है जिसमें सदैव भा में रत भारत भौतिक आंधी से कांपती संपूर्ण धरती का विश्वास है उसका सहारा है उसका रक्षक है 

हमारी परम्परा अद्भुत रही है हमारा साहित्य अद्वितीय है 

अपने साहित्य में गहराई से प्रवेश करने पर हम अपनी व्याकुलता शमित कर सकते हैं

यदि हम तुलना करें तो पाएंगे कि पश्चिम केवल भोगभूमि है संयम उनके लिए एक विवशता है उन्होंने जग के विनाश का निश्चय कर रखा है और हम कर्मभूमि पर उपजी तप की माटी हैं हम चिदाकाश में निर्भय होकर विचरण करते हैं हमें अन्तर्दृष्टि मिली है हम जानते हैं कि अन्तर्दर्शन से ही अंधकार का नाश होता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि कविता ईश्वर की सारस्वत विभूति है आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लेखन -योग का आश्रय लें क्योंकि शब्द सरस्वती मैया की मूर्तियां हैं हम उनका सृजन करें दर्शन करें और फिर आनन्द लें हमें यह तीर्थ स्थान जैसा लगेगा 

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का कविता से क्या संबन्ध है 

क्या  भैया डा पङ्कज जी कल कवि -गोष्ठी में नहीं आ पा रहे जानने के लिए सुनें