[8:16 am, 18/06/2022] Praveen: कल आचार्य जी ने बताया था
हमारा बिल्कुल आंतरिक पक्ष आत्म का आवरण है यह आत्मावरण हम सब ओढ़ें हैं
लेकिन परमात्मा जब हमारे ऊपर कृपा कर देता है तो आत्मावरण को दूर कर हम निरावृत्त हो जाते हैं
इसीलिये हमें भक्ति का सहारा लेना चाहिये भक्ति वह स्थान है जहां सांसारिक शक्ति आत्मशक्ति में विलीन हो जाती है
इस संसार में अपने संसार का सृजन कर लेना भक्तिभाव की पराकाष्ठा है
आत्म का अवलोकन करते समय उसमें स्थायित्व भी लाना आवश्यक है
इसके बाद संघर्षों में हमें अर्जुन की तरह विजय अवश्य मिलेगी
अब आगे
प्रस्तुत है प्रियङ्करण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18 जून 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1ww
आचार्य जी अतिशय संवेदनशील हैं और हम भावुक लोग यह बात अच्छी तरह से समझते हैं आचार्य जी प्रतिदिन हम लोगों को राष्ट्र -न…
[8:19 am, 18/06/2022] Praveen: कल आचार्य जी ने बताया था
हमारा बिल्कुल आंतरिक पक्ष आत्म का आवरण है यह आत्मावरण हम सब ओढ़ें हैं
लेकिन परमात्मा जब हमारे ऊपर कृपा कर देता है तो आत्मावरण को दूर कर हम निरावृत्त हो जाते हैं
इसीलिये हमें भक्ति का सहारा लेना चाहिये भक्ति वह स्थान है जहां सांसारिक शक्ति आत्मशक्ति में विलीन हो जाती है
इस संसार में अपने संसार का सृजन कर लेना भक्तिभाव की पराकाष्ठा है
आत्म का अवलोकन करते समय उसमें स्थायित्व भी लाना आवश्यक है
इसके बाद संघर्षों में हमें अर्जुन की तरह विजय अवश्य मिलेगी
अब आगे
प्रस्तुत है प्रियङ्करण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18 जून 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1ww
आचार्य जी अतिशय संवेदनशील हैं और हम भावुक लोग यह बात अच्छी तरह से समझते हैं आचार्य जी प्रतिदिन हम लोगों को राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी जीवन जीने के लिये प्रेरित करते हैं साथ ही ध्यान धारणा स्वाध्याय लेखन के लिये भी परामर्श देते हैं
आचार्य जी के माध्यम से हम अपनी समस्याओं को प्रायः सुलझाते रहते हैं लेकिन आपको इसकी प्रतीक्षा रहती है कि हम उन्हें अपने कुशल क्षेम की सूचनायें भी दें शुभ समाचार दें
आचार्य जी ने अपनी पुस्तक गीत मैं लिखता नहीं हूं में एक कविता मैं शीर्षक से लिखी थी जो उनके भावों को व्यक्त करती है
मैं अन्तरतम की आशा हूँ मन की उद्दाम पिपासा हूँ
जो सदा जागती रहती है ऐसी उर की अभिलाषा हूँ ।
मैंने करवट ली तो मानो
हिल उठे क्षितिज के ओर छोर
मैं सोया तो जड़ हुआ विश्व
निर्मिति फिर-फिर विस्मित विभोर
मैंने यम के दरवाजे पर
दस्तक देकर ललकारा है
मैंने सर्जन को प्रलय-पाठ
पढ़ने के लिये पुकारा है
मैं हँसा और पी गया गरल
मैं शुद्ध प्रेम-परिभाषा हूँ,
मैं अन्तरतम की आशा हूँ।।१।।
मैं शान्ति-पाठ युग के इति का
मैं प्रणव-घोष अथ का असीम
मैं सृजन-प्रलय के मध्य सेतु
हूँ पौरुष का विग्रह ससीम
बैखरी भावनाओं की मैं
सात्वती सदा विश्वासों की
मैं सदियों का आकलन बिन्दु
ऊर्जा हूँ मैं निश्वासों की
पर परिवेशों में मैं जब-तब
लगता है घोर निराशा हूँ,
मैं अन्तरतम की आशा हूँ।।२।। ।
मैं हूँ अनादि मैं हूँ अनन्त
मैं मध्यंदिन का प्रखर सूर्य
मैं हिम-नग का उत्तुंग शिखर
उत्ताल उदधि का प्रबल तूर्य
दिग्व्याप्त पवन उन्चास और
मैं अन्तरिक्ष का हूँ कृशानु
मैं माटी की सद्गन्ध और
रस में बसता बन तरल प्राण
पर आत्म बोध से रहित स्वयं
मैं ही मजबूर हताशा हूँ, |
मैं अन्तरतम की आशा हूँ।।३॥।
मैं स्रष्टा का उत्कृष्ट सृजन
पालन कर्ता का सहयोगी
मैं हूँ विध्वंस कपाली का
हूँ सृजन प्रलय का अनुयोगी
मैं ही इतिहास रचा करता
भूमिति के बिन्दु हमारे हैं
अटके भटके पथ भेदों के
मैंने संबन्ध सुधारे हैं
पर चला और पथ भूल गया
मैं क्षिप्त चित्त की भाषा हूँ,
मैं अन्तरतम की आशा हूँ।।४।।
जब सोया तो सपने देखे
जब जगा, सोचकर रोता हूँ
अपने इन गँदले हाथों से प्रज्ञा मल-मल कर धोता हूँ
छिप गया क्षितिज में सिन्धु-सूर्य
मैं ठगा-ठगा रह गया खड़ा
अपनी ही आँखों से देखा
मैं अपने से हो गया बड़ा
हारे समस्त उपमान अभी तक
मैं प्यासा का प्यासा हूँ,
मैं अन्तरतम की आशा हूँ।।५।।
मन की उद्दाम पिपासा हूँ ।
इस कविता में विचार आत्मबोध आत्मानन्द सांसारिक प्रपंच उलझनें हैं
इस कविता में आचार्य जी ने भारत के गौरवशाली इतिहास की ओर भी संकेत किया है और शौर्यविहीन अध्यात्म की अति से हुए नुकसान की ओर भी ध्यान दिलाया है
हमें रामत्व अपनाने की आवश्यकता है पथ से भटके वापस आ जायेंगे ऐसी आशा आचार्य जी को है भारत फिर से अखण्ड बनेगा यह भी
शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म को हम लोग अपनाएं हम लोगों को जागने की आवश्यकता है
भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करेगा इसके लिये आचार्य जी आशान्वित हैं
अग्निपथ के विरोध में हुए उपद्रव से आचार्य जी की तरह हम बहुत से राष्ट्रभक्त आहत हैं इसीलिये आचार्य जी चाहते हैं कि स्थान स्थान पर शक्ति -केन्द्र स्थापित हों जगह जगह देश के पहरुए खड़े हो जायें तो दुष्टों की क्या मजाल
हम लोग आचार्य जी के सद्गुणों को अपनाएं