30.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 30 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 दश लक्षणानि धर्मस्य ये विप्राः समधीयते । अधीत्य चानुवर्तन्ते ते यान्ति परमां गतिम् ।


प्रस्तुत है युक्तिज्ञ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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मनुष्य स्वभाव के अनुसार सुविधा और सुलभता की चाह करता है और इसी कारण मनुष्य जीवनभर सुख की खोज करता है


सुख समुद्र वृत्ति वाली इन्द्रियों से संयुत है सब प्रकार की आपूर्ति के पश्चात् भी इन्द्रियां अतृप्त रहती हैं


इसी कारण सदाचार का एक विषय रहता है कि हम इन्द्रिय -संयम रखें



हम लोग समाजोन्मुखी जीवन जीने की इच्छा रखते हैं  अपने कार्यव्यवहार पर हमें दृष्टि रखनी चाहिये और कुछ न कुछ करने के लिये चिन्तन भी करना चाहिये


आचार्य जी ने  पूज्य गुरु  जी के विभिन्न आयामों को उकेरती छह खंडों वाली पुस्तक श्री गुरु जी समग्र की चर्चा की


पूज्य गुरु जी माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर किसी भी पत्र को अनुत्तरित नहीं छोड़ते थे


दो पत्रों का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने कहा कि संगठन की  छोटी छोटी घटनायें महापुरुषों के जीवन के उदाहरण अपने जीवन को निर्मल बनाते हैं कार्य शैली को परिमार्जित करते हैं


इसी कारण अध्ययन और स्वाध्याय को व्यक्तिगत जीवन का अंग बनाते हुए हम मनुष्यत्व की अनुभूति कर सकते हैं


मनुष्यत्व की अनुभूति करते हुए संसार की समस्याओं को सुलझाने वाला  प्रयत्न संगठन करने वाले हर व्यक्ति में बना रहना चाहिये


जैसे उदयपुर की घटना पर हम राष्ट्र-भक्तों को चुप नहीं बैठना चाहिये


यही समाज का सहयोग है

सभी राष्ट्र -भक्त हमारे अपने हैं

पौरुष पराक्रम के साथ हम सदैव संयुत रहें इसी का प्रयास आचार्य जी प्रतिदिन करते हैं


आपस में ही झगड़ते रहने पर संगठन   सुदृढ़ नहीं रहता



आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि समस्याओं पर दृष्टि रखते हुए,समाधान के उपाय खोजते हुए ,समाजोन्मुखी जीवन  को हम अपनाएं

29.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 29 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 श्री गुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥



प्रस्तुत है अभिनिवेशिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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सदाचार संप्रेषण का मूल उद्देश्य है अपनी संस्कृति अपने साहित्य, इतिहास , धर्म , दर्शन,ज्ञान, अपनी भक्ति, अपनी राष्ट्र-भक्ति की ओर हमें उन्मुख करना



रामकथा सुनना और रामकथा को अपने अन्तर में प्रवेश करा देना सदाचार का विशाल विस्तृत तात्त्विक पक्ष है क्योंकि राम स्वयं में तत्त्व, शक्ति, भक्ति और विचार हैं संसार भी हैं संसारेतर भी हैं


राम का रामत्व एक एक कण और एक एक क्षण में यदि वक्ता  प्रदर्शित नहीं कर पाता तो समझना चाहिये कि वह रामचरित्र नहीं गा रहा बल्कि इधर उधर की बातें कर रहा है


अयोध्या कांड इस प्रकार प्रारम्भ होता है 


जब ते रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥

भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहिं सुख बारी॥1॥


भगवान राम का विवाह हो गया है एक ओर राजतिलक की तैयारियां तो दूसरी ओर वनवास

तुलसी का कौशल तो अद्भुत है 

दशरथ  लौटकर आये अपने प्रधान सचिव सुमन्त से पूछते हैं 


राम कुसल कहु सखा सनेही। कहँ रघुनाथु लखनु बैदेही॥

आने फेरि कि बनहि सिधाए। सुनत सचिव लोचन जल छाए॥2॥


लेकिन राम तो राम हैं पिता का वचन खाली न जाये यह उनका धर्म है


आगे रामु लखनु बने पाछें। तापस बेष बिराजत काछें।।

उभय बीच सिय सोहति कैसे। ब्रह्म जीव बिच माया जैसे।।


रथु हाँकेउ हय राम तन हेरि हेरि हिहिनाहिं।

देखि निषाद बिषाद बस धुनहिं सीस पछिताहिं॥99॥


जासु बियोग बिकल पसु ऐसें। प्रजा मातु पितु जिइहहिं कैसें॥

बरबस राम सुमंत्रु पठाए। सुरसरि तीर आपु तब आए॥1॥


मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥

चरन कमल रज कहुँ सबु कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई॥2॥


छुअत सिला भइ नारि सुहाई। पाहन तें न काठ कठिनाई॥

तरनिउ मुनि घरिनी होइ जाई। बाट परइ मोरि नाव उड़ाई॥3॥



एहिं प्रतिपालउँ सबु परिवारू। नहिं जानउँ कछु अउर कबारू॥

जौं प्रभु पार अवसि गा चहहू। मोहि पद पदुम पखारन कहहू॥4॥


पद कमल धोइ चढ़ाइ नाव न नाथ उतराई चहौं।

मोहि राम राउरि आन दसरथसपथ सब साची कहौं॥

बरु तीर मारहुँ लखनु पै जब लगि न पाय पखारिहौं।

तब लगि न तुलसीदास नाथ कृपाल पारु उतारिहौं॥


सुनि केवट के बैन प्रेम लपेटे अटपटे।

बिहसे करुनाऐन चितइ जानकी लखन तन॥100॥


आचार्य जी ने इनका बहुत कौशल से वर्णन किया


राम कथा अद्भुत है विशेष रूप से उत्तर भारत की क्योंकि उत्तर भारत में ही अधिकांश संघर्ष हुए हैं 


इसके अतिरिक्त 

The World Is Too Much with Us का उल्लेख आचार्य जी ने क्यों किया भैया मोहन कृष्ण और भैया शौर्यजीत का नाम क्यों लिया  यूपियन क्या है जानने के लिये सुनें

28.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 28 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥


प्रस्तुत है अध्यात्म -भुविस् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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ऋषियों वीरों त्यागियों कर्मशीलों की स्मृतियों में जाते हुए हमें लगता है कि वास्तव में हम ज्ञान, कर्म, त्याग आदि सद्गुणों के भंडार भारत वर्ष में निवास कर रहे हैं


ऐसे देश में रहने के बाद भी हम यदि व्याकुल दुःखी होते हैं तो इसका अर्थ है कि संसार हमसे बुरी तरह लिपट गया है

इसको छुड़ाने के लिये ही आचार्य जी के ये प्रातःकालीन सदाचार संप्रेषण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं


जो हमें अध्ययन स्वाध्याय ध्यान प्राणायाम उचित खानपान अपनेपन की प्रेरणा भी देते हैं

 अल्प समय में यदि हमें आत्मस्थ होने का अभ्यास है तो बहुत से अच्छे काम हम कर लेते हैं


हम मनुष्यों का प्रायः स्वभाव होता है कि अच्छे समय की प्रतीक्षा में उस काम को टाल देते हैं


मनु कहते हैं



श्रुतिः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियमात्मनः।


एतच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाद्धर्मस्य लक्षणम्।।


धर्म शब्द के उलझाव वाले स्वरूप में जाकर भ्रमित न हों

वेद, अनुभूत विषय, सदाचार और आत्मतुष्टि धर्म के ये चार लक्षण हैं


धर्मशास्त्र के वक्ताओं में मनु महाराज, यम, अंगिरा, पराशर आदि अनेक नाम हैं


युगभारती के चार सिद्धान्त हैं शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन और सुरक्षा

सरौंहां को हमने स्वास्थ्य और स्वावलम्बन का केन्द्र बनाया है उसे हम अपना समझकर तरह तरह के प्रयोग करते हुए  आनन्दित उत्साहित होते हैं


शिक्षा के प्रयोग के लिये उन्नाव में सिविल लाइंस में एक विद्यालय है


हमें सदैव सकारात्मक सोच रखनी चाहिये स्वयं हमारा, युगभारती का देश का भविष्य उज्ज्वल है


हर जगह अपनेपन का भाव आना चाहिये चाहे संस्था हो चाहे देश हो चाहे विद्यालय हो

इससे लगाव पैदा होगा हम चिन्तित भी  होंगे

इसी लगाव के विस्तार के लिये समय समय पर कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं


समय व्यतीत होता जा रहा है लेकिन हमारे अनुभवों में भी वृद्धि हो रही है उन अनुभवों को राष्ट्रार्पित करते रहें

27.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 27 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है धैर्य -पुरण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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कल हम लोगों के गांव सरौंहां में आम्र रसास्वादन समारोह अत्यन्त उत्साह के साथ संपन्न हुआ


आचार्य जी, भाईसाहब,सर्वश्री सुरेश गुप्त जी 75, ओम प्रकाश मोटवानी जी 76, प्रकाश शर्मा जी 76, अभय गुप्त जी 77, अरविन्द तिवारी जी 78, संजय श्रीवास्तव जी 78, वीरेन्द्र त्रिपाठी जी 82, डा मलय जी 82, प्रवीण अग्रवाल 83,  कृष्ण कुमार तिवारी जी 86, चन्द्रमणि जी 86, संजीव द्विवेदी जी 87, मनीष कृष्णा जी 88, तरुण सक्सेना जी 88, प्रदीप वाजपेयी जी 89,पवन मिश्र जी 96, निर्भय जी 98, शिशिर मिश्र जी 2006, शरद कश्यप जी 2006, अक्षय जी 2008, मेधा त्रिपाठी जी 2019, मुकेश गुप्त जी, सुनील जी आदि ने अत्यन्त उत्साह के साथ कार्यक्रम में भाग लिया


गायत्री तिवारी जी शोभना सक्सेना जी, सीमा कृष्णा जी, चि अभिषेक सिंह (कक्षा 11 दीनदयाल विद्यालय ) और कुछ बच्चे भी उपस्थित रहे


अपनों का साथ मिलने पर आनन्द सहस्रगुणित हो जाता है पीड़ाएं दूर हो जाती हैं शैथिल्य पराक्रम में परिवर्तित हो जाता है


अपनेपन  का विस्तार परमात्मा की कृपा है पूर्वजन्म की उपलब्धियों के कारण है और इस संसार में आने के हेतु की फलश्रुति है

जीवन भी एक निबन्ध है


इस निबन्ध की रचना परमात्मा करता है और जीवात्मा को यह निबंध सौंप देता है


कौरवों और पांडवों के जीवन के निबन्ध भी लिखे जा रहे थे दोनों अपनी अपनी त्वरा में थे विषम परिस्थितियों के आगमन के कारण तत्त्व के रूप में गीता प्रकट हो गई


जहां भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि सहज कर्म करते जायें



सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।


....


ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति।


समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्।।18.54।।


हमें सहज कर्म करते रहने चाहिये अकेले व्यक्ति को अपनेपन का एहसास दिलायें

यही सहजता सम विषम परिस्थितियों में भी बने रहे तो क्या कहना



हम लोग अपने संगठन को विकसित करने के इच्छुक हैं ताकि अपने पद प्रतिष्ठा को पचाते हुए अपने कर्तव्य का बोध करते हुए अपनेपन का जीवन -निबंध लिखा जाये

सबके व्यक्तिगत रूप से निबंध चलते हुए महानिबन्ध लिखा जाये



आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं


समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।


तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे


स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।2.70।।



जैसे सारी नदियों का जल  समुद्रमें आकर मिलता है किन्तु समुद्र अचल  रहता है ऐसे ही सम्पूर्ण भोग-पदार्थ जिस संयमी मनुष्य को विकार उत्पन्न किये बिना ही प्राप्त होते हैं, वही मनुष्य परमशान्ति को प्राप्त होता है


भगवान् राम भी समुद्र की तरह गम्भीर हैं और ऐसे राम के हम उपासक हैं

ऐसे राष्ट्र के उपासक है.            हमारा ध्येय -वाक्य है 

" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "

इसके अतिरिक्त आचार्य आनन्द जी वाला चित्रकूट प्रसंग क्या है जानने के लिये सुनें

26.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 26 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अनुनायक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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मानव समाज परमात्मा का वह स्वरूप है जो संपूर्ण सृष्टि को नियमित नियन्त्रित व्यवस्थित उपयोगी और प्रकृति के अनुकूल बनाता है l



इसके विकारों को संशोधित करने के लिये मनुष्यों के द्वारा ही किसी न किसी रूप में समय समय पर सुधार संस्कार प्रारम्भ हो जाते हैं


आचार्य जी ने 25 जून 1975 को लगे आपातकाल की चर्चा की


भारतीय जनसंघ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे बहुत से राष्ट्रवादी संगठन प्रतिबंधित कर दिये गये बहुत ही संकटों से भरा वह समय था



लेकिन


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।


अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।


परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।


धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।


पुरुषावतार मत्स्यावतार लीलावतार युगावतार जैसे अनेक अवतार हैं और इसी तरह 

जो संगठित होकर काम करते हैं ऐसा संगठनावतार है

जो अपने को इस संगठन का अंग मानते हैं वो अवतार स्वरूप में काम करते हैं


जो संगठन में केवल भीड़ का हिस्सा हो जाते हैं वो उसका हिस्सा न होकर उसका दर्शन करने आते हैं


युगभारती भी ऐसा ही संगठनावतार है जो समाज को संकट से उबार रहा है


जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी।।

करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा।।


असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु।

जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु।।121।।


जो वास्तव में सद्गुणी हैं समाज का चिन्तन करते हैं ऐसे लोग संगठन के अंग होते हैं


बाकी उसके द्रष्टा होते हैं


हमें स्मृतियां संजो कर रखनी चाहिये ताकि खराब घटनाएं फिर न हों अच्छी घटनाएं बार बार हों


सन्मार्ग पर स्वयं चलते हुए औरों को भी चलाने का प्रयास करें


आज सरौंहां में कहने को तो आम्र रसास्वादन समारोह है और आप सब लोग उसमें सादर आमन्त्रित भी हैं लेकिन इसका मूल उद्देश्य है मानव समाज के कल्याण के लिये संगठन को मजबूत बनाना


इसके अतिरिक्त किस अखबार में लिखा था चुप रहें जनता समाचार अखबार से आचार्य जी का क्या ताल्लुक था जानने के लिये सुनें

25.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 25 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अवधारक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25 जून 2022

  का   हमें शक्तिसंपन्न राष्ट्रभक्त बनाने  हेतु सदाचार संप्रेषण 



 

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शक्ति की कल्पना के साथ उसकी आराधना भारतीय दर्शन की बहुत प्राचीन परम्परा है हमारे पौराणिक वैदिक ग्रंथों में यह मुख्यतः मातृ रूप (देवी महान )में है


हरिवंश पुराण  मार्कण्डेय पुराण आदि में इसका पल्लवन बहुत हुआ है

देवी को उपनिषदों का ब्रह्म कहा गया है उपनिषदों में यह एकमात्र सत्ता वर्णित है

दूसरे देव इस देवी की अभिव्यक्तियां हैं


शक्ति की उपासना बहुत प्राचीन है 

पूजा भाव की होती है भाषा की नहीं इसके लिये आचार्य जी ने   संपूर्ण भारत वर्ष में कथावाचक के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके डोंगरेजी महाराज का एक प्रसंग बताया


भक्ति ही शक्ति है  शाक्त साहित्य में इसका बहुत महत्त्व है मूल रूप से रामकृष्ण परमहंस भी शाक्त अर्थात् शक्ति के उपासक थे


सृष्टि का सृजन और प्रलय शक्ति ही करती है


शरीर में शक्ति अत्यावश्यक है अन्यथा अभिव्यक्ति अनुष्ठान संधान और भक्ति संभव नहीं


शक्ति के संचय और शक्ति की साधना के लिये हमें बहुत से उपाय बताये गये हैं


हम देखते हैं कि विष्णु के साथ लक्ष्मी शिव के साथ पार्वती  राम के साथ सीता हैं


शक्ति और भक्ति की परम्परा फलीभूत होती आई है

हिन्दू नहीं बचेंगे ऐसी निराशावादी सोच नहीं रखनी चाहिये अन्यथा शक्ति का क्षय ही होगा


शक्तिहीन विचारकों का संगठन किस काम का


जब लगता है कि ज्योति बुझ रही है तो ऐसे स्वर प्रकट होते हैं


उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।।

(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र १४)


आत्मस्थ होने का प्रयास करें



सहानुभूति का मरहम भी बहुत विशेष महत्त्व का है



भारतीय संस्कृति की तात्त्विक विशेषता की अनुभूति अध्ययन उपासना हमें करनी ही चाहिये ताकि विषम परिस्थितियों में भी हमें मार्ग दिखाई देने लगे


पूज्य गुरु जी जो रामकृष्ण परमहंस की परम्परा के सिद्ध योगी थे का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने कहा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसी कारण अध्यात्म के साथ व्यवहारिक सिद्धान्तों के प्रयोगों से क्षमतासंपन्न बन सका


हम  किसी की विशेषता को ग्रहण करें दूसरे के दोषों का दर्शन हमें कुण्ठित करेगा


कल के सरौंहां के कार्यक्रम में आप सभी सादर आमन्त्रित हैं

24.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 24 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है आध्यापक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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इन सदाचार संप्रेषणों में जीवन के उच्च विचार, तात्त्विक विषय, महत्त्वपूर्ण कथानक,भारतीय संस्कृति /सभ्यता/परम्परा /परिवेश का वर्णन करते हुए आचार्य जी प्रतिदिन हम लोगों का मार्गदर्शन करते हैं


हम लोगों को इनका लाभ भी मिलता है इसीलिये प्रतिदिन हम इनके लिये प्रतीक्षारत रहते हैं


आचार्य जी ने शरीरान्तरण को परिभाषित करते हुए बताया कि अनेक योगी महात्मा इस समय भी कायान्तरण की क्रिया संपादित कर लेते हैं


ऋषियों द्वारा खोजा गया यह मार्ग भारत की एक दिव्य उपलब्धि है


इस देश की अद्भुतता का अनुभव करने वाले भाव जगत में जाकर भारत की भक्ति करने लगते हैं


संपूर्ण भारत को महामूर्ति के समान देखने वाले देशभक्त उसकी सुरक्षा में अपने प्राणों को भी न्योछावर कर देते हैं


यही भाव उत्पन्न करने के लिये हमारे यहां संस्कार केन्द्र के रूप में विद्यालय पाठशालाएं बनाई जाती हैं


उनसे शिक्षित प्रशिक्षित नागरिक समाज में पहुंचकर कार्यों के चुनाव में भ्रमित नहीं होता था

उसे न भय रहता था न दुविधा


सारा समाज एक स्वरूप होकर उठता था जब इतने सारे लोग यशस्विता के दीपक को जलाते थे तो महाप्रकाश उत्पन्न होता था


इसी कारण सारे विश्व में भारत का डंका बजता था



बार बार के आघातों को झेलकर भारत फिर से उठकर  खड़ा हो जाता है


2014 के बाद पुनः स्थिति बदली है हमें अपने वास्तविक इतिहास और भूगोल की जानकारी हुई है


हर समय अज्ञानी स्वार्थी दुष्ट रहते रहे हैं आज भी हैं लेकिन उनसे टक्कर लेने के लिये नित्य हम लोग भी तैयार होते हैं


हमें अपनी परम्परा को जानना भी चाहिये और उस पर विश्वास भी करना चाहिये


कल आचार्य जी ने दुर्योधन का उल्लेख किया था हमें तो विकारों में भी विचार मिलते हैं


हमारा कर्तव्य है कि हम नई पीढ़ी को अपनी परम्परा अपनी संस्कृति के प्रति आश्वस्त करें


पूर्व और पश्चिम में अन्तर बताते हुए आचार्य जी ने कहा कि सांसारिकता में हम जितना उलझेंगे उतना परेशान होंगे इसलिये आत्मस्थ होने का प्रयास करें


सदाचार का मूलमन्त्र यही है कि हम आत्मचेतना की ओर उन्मुख हों आत्मचेतनयुक्त व्यक्ति संसार में किसी भी क्षेत्र में असफल नहीं होता

भक्ति किसे कहते हैं इसके लिये आचार्य जी ने


सघन चोर मग मुदित मन धनी गही ज्यों फेंट।

त्यों सुग्रीव बिभीषनहिं भई भरतकी भेंट।207।


राम सराहे भरत उठि मिले राम सम जानि।

तदपि बिभीषन कीसपति तुलसी गरत गलानि।।208।

का संकेत किया



भक्ति की शक्ति अद्वितीय है इससे संबद्ध कथानक बहुत बल देते हैं


इसका विस्तार आचार्य जी कल करेंगे

23.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 23जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 आज ही के दिन सन् 1953 में डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी डा साहब ने ही सबसे पहले अनुच्छेद 370  के विरोध में आवाज उठाई थी उनका कहना था कि ‘एक देश में दो निशान दो विधान और दो प्रधान नहीं चल सकते’



.......


एक महीने से ज़्यादा कैद रखे गए मुखर्जी की सेहत लगातार बिगड़ रही थी उन्हें बुखार और पीठ में दर्द की शिकायतें बनी हुई थीं 19 व 20 जून की दरम्यानी रात उन्हें प्लूराइटिस होना पाया गया जो उन्हें 1937 और 1944 में भी हो चुका था डॉक्टर अली मोहम्मद ने उन्हें स्ट्रेप्टोमाइसिन का इंजेक्शन दिया था मुखर्जी ने डॉ. अली को बताया था कि उनके फैमिली डॉक्टर का कहना  था कि ये दवा उन्हें सूट नहीं करती थी  फिर भी अली ने उन्हें भरोसा दिलाकर ये इंजेक्शन दिया था


22 जून को मुखर्जी को सांस लेने में तकलीफ महूसस हुई अस्पताल में शिफ्ट करने पर हार्ट अटैक होना पाया गया राज्य सरकार ने घोषणा की कि 23 जून की अलसुबह 3:40 बजे दिल के दौरे से मुखर्जी का निधन हो गया अस्पताल में इलाज के दौरान एक ही नर्स मुखर्जी की देखभाल के लिए थीं राजदुलारी टिकू

 टिकू ने बाद में अपने बयान में कहा कि जब मुखर्जी पीड़ा में थे तब उसने डॉ. जगन्नाथ ज़ुत्शी को बुलाया था ज़ुत्शी ने नाज़ुक हालत देखते हुए डॉ. अली को बुलाया और कुछ देर बाद 2:25 बजे मुखर्जी चल बसे

(hindi.news18.com से साभार)



प्रस्तुत है विद आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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महाभारत को यूं ही पंचम वेद नहीं कहा जाता

गणेश जी महाराज का लेखन और वेदव्यास जी का चिन्तन दर्शन अभिव्यक्ति अद्भुत है


हमारे यहां की त्रिकालदर्शी अद्भुत क्षमतासंपन्न ऋषि परम्परा का तप, त्याग, राष्ट्र -चिन्तन,भावी पीढ़ी को दिशा देने की दृष्टि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है अवर्णनीय है

महाभारत में भारतवर्ष का इतिहास, दर्शन,जीवनशैली, कथा आदि बहुत कुछ है



महाभारत युद्ध का कारण बने दुर्योधन ने कह दिया


जानामि धर्मं न च मे 

प्रवृत्तिर्जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः।

केनापि देवेन हृदि स्थितेन यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि।। (गर्गसंहिता अश्वमेध0 50। 36)

जब कर्ण के पराभव से कौरव  खेमे में व्याकुलता छा गई और कृपाचार्य दुर्योधन के पास पहुंचे और बताया कि हम लोगों ने बहुत से लोगों को खो दिया है सत्रह दिन हो गये हैं अब संधि कर लो


दुर्योधन कहता है पांडव मुझे माफ नहीं करेंगे श्रीकृष्ण और अर्जुन दो शरीर और एक प्राण हैं


लेकिन संसार में कोई भी सुख लगातार रहने वाला नहीं है न राष्ट्र रहते हैं न यश

यहां कीर्ति का ही उपार्जन करना चाहिये और कीर्ति के लिये युद्ध अनिवार्य है



 (सेना को नौकरी के हिसाब से देखने वालों के लिये यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात है)


मित्रों भाइयों दादाओं को मरवाकर यदि मैं प्राणों की रक्षा करूंगा तो सारा संसार निन्दा करेगा


आचार्य जी ने इस प्रसंग का उल्लेख अग्निपथ पर चल रही बहस के कारण किया है


देश का सैन्यीकरण अब बहुत जरूरी है

आचार्य जी ने संस्कृति और सभ्यता में क्या अन्तर बताया

अवभृत स्नान क्या होता है

भैया मनीष कृष्णा जी से आचार्य जी ने कल क्या कहा आदि जानने के लिये सुनें

22.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 22 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है हृष्टवदन आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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एक लम्बे अर्से से इन सदाचार संप्रेषणों से हम लाभ प्राप्त करने का प्रयास रहे हैं इनके लिये आचार्य जी अपना बहुमूल्य समय देते हैं हमें इनका महत्त्व समझना चाहिये


वाणी विधान,प्राणिक ऊर्जा आदि आध्यात्मिक तात्त्विक बातें भारत वर्ष के ऋषियों की रहस्यात्मक खोजें हैं जिन्हें हमने परम्परागत ढंग से प्राप्त किया है


प्रातःकाल हमें आत्मस्थ होने का प्रयास करना ही चाहिये


यम ,  नियम ,  आसन ,  प्राणायाम ,  प्रत्याहार ,  धारणा ,  ध्यान   तथा   समाधि   अष्टांग   योग   के   आठ   योगांग   हैं।




आठो   अंगों  में   प्रथम   दो  यम - नियम   को   नैतिक   अनुशासन ,  आसन ,  प्राणायाम ,  प्रत्याहार   को   शारीरिक   अनुशासन   और   अंतिम   तीनों   अंगों धारणा ,  ध्यान ,  समाधि   को   मानसिक   अनुशासन   बताया   गया   है।


यम ,  नियम ,  आसन ,  प्राणायाम ,  प्रत्याहार ,  धारणा ,  ध्यान   तथा   समाधि   इन शब्दों को याद करना तो आसान है लेकिन एक एक शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण है इन्हें अपने अन्दर प्रवेश कराना बहुत कठिन है  सत्यं वद वाला युधिष्ठिर का प्रसंग हम जानते हैं


याद करके कुछ बोल देना और अपने अंदर प्रविष्ट भावों की अभिव्यक्ति दोनों में अंतर है अपने अन्दर के भाव कितने गहन और गम्भीर हैं आत्मस्थ होने पर हमें पता चलता है


अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पाँच यम हैं।

एक गाल पर कोई चांटा मारे तो दूसरा गाल भी सामने कर दें यह अहिंसा का विकृत रूप है

अहिंसा का अर्थ है किसी को सताना नहीं और न ही किसी के द्वारा सताया जाना


अपनी रक्षा करना हमारा धर्म है


शौच संतोष तप स्वाध्याय और ईश्वर- प्राणिधान


ये पांच नियम हैं


व्यक्ति के विकारों का पूजन भी मनुष्य का पतन है इसके लिये आचार्य जी ने मेहेर बाबा (मेरवान एस ईरानी )(जन्म 25-02-1894) जिनका हमीरपुर में मेहेर मंदिर है का उल्लेख किया


विलायती लोगों ने हमारे मन मानस को कितना बदल दिया कि अंग्रेजी हमें आकर्षित करने लगी अनिवार्य लगने लगी और हिन्दी से हम दूर होने लगे जब कि हिन्दी एक उच्च कोटि की समृद्ध भाषा है आचार्य जी ने इसके लिये नि उपसर्ग लगे बहुत से शब्द बताये

हमें अपनी भाषा के लिये जो अधोभाव पैदा कर दिया गया उसे उठाने की आवश्यकता है


क्या टीवी की जगह हम दूरदर्शन नहीं बोल सकते?



ऐसे अपघातों के बाद भी हमारी अक्षय संस्कृति समाप्त नहीं हो सकती

आचार्य जी की हमसे अपेक्षा है कि हम अपने संस्कारों को जाग्रत अवस्था में रखें जन्मदिन पर मोमबत्तियां तो न बुझाएं नकल करने से बचें

अपने तत्त्व विचार भक्ति शक्ति संयम स्वाध्याय राष्ट्र के प्रति निष्ठावान लोगों की नकल करें

21.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 21 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।



प्रस्तुत है तपोनिधि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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आज योग दिवस है

पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2015 को पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया गया। योग शब्द की उत्पत्त‍ि  युज् से हुई है, जिसका अर्थ है आत्मा का सार्वभौमिक चेतना से मिलन।


योग मन, शरीर और आत्मा की एकता को सक्षम बनाता है। योग के विभिन्न रूपों से हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को अलग-अलग तरीकों से लाभ मिलता है।


हमारे यहां कहते हैं

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।

 अर्थात् चित्तवृत्तियों का निरोध योग है।  मन सदैव दौड़ता है, कभी सांसारिक पदार्थों में, कभी चित्त में पड़ी  वासनाओं, इच्छाओं और विकारों में। मन की इसी हलचल को वृत्ति कहते हैं


योग साधना प्रारम्भ से ही ब्रह्मचर्य अवस्था से सिखाई जाती है 

भारतवर्ष के संस्कार अद्भुत रहे हैं


प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥

आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा ll


भगवान् प्रातःकाल उठकर माता,पिता एवं गुरु को मस्तक नवाते हैं और आज्ञा लेकर नगर का काम करते हैं। उनका चरित्र देख देखकर राजा मन में  खुश होते हैं।


और इन्हीं संस्कारों के कारण हम भी बड़ों से आशीर्वाद लेकर नया जीवन प्रारम्भ कर रहे हैं प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर ऐसा भाव रखते हैं 


फिर शरीर की क्रियाएं प्रारम्भ होती हैं अपने विकार दूर करते हैं और फिर उपासना


उपासना से कुछ समय बाद यह लगेगा कि हम अपने पास ही बैठ रहे हैं भोजन भक्तिभाव से करना चाहिये क्योंकि अन्न ब्रह्म है


मैं भी ब्रह्म हूं

मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे


न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥


ऋषियों ने एक व्यवस्था कर दी अर्थात् अष्टांग योग का जीवन में समावेश 



और हमारा जीवन कैसा हो


धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।

धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥


ये धर्म के दस लक्षण हैं

जीवन जीने की ऐसी व्यवस्था विश्व में अन्यत्र नहीं है


समस्याओं में व्याकुल न होना आदि योगी के लक्षण हैं आसनों का प्रदर्शन योगी का लक्षण नहीं है


योग हमारे अन्दर समाहित हो जाता है तो संसार में रहते हुए संसार की समस्याओं को हम अपने आप सुलझा लेते हैं


अन्यथा मनुष्य जीवन व्यर्थ हो जाता है मनुष्य जीवन बहुत रहस्यों से भरा है

सामान्य जीवन जीते हुए अपनी जीवनशैली सात्विकता संयम सदाचरण के साथ कर लें शक्तिसंपन्न हो जायें अध्यात्म को जानते हुए कर्मप्रवृत्त हो जायें तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सरौंहां के मदरसे के बारे में क्या बताया जानने के लिये सुनें

20.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 20 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है जागरूक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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इस समय उथल पुथल का दौर चल रहा है और इतनी संतुष्टि ही पर्याप्त नहीं है कि इस समय भारत का नेतृत्व माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के हाथों में है हमें भी सक्रिय होना है 

गम्भीर विषयों की ओर हमें और अधिक सक्रिय होना है हम लोग समस्याओं का हल  ढूँढ लेते हैं


इन सदाचार संप्रेषणों के विचार हम लोगों को राष्ट्र के प्रति निष्ठावान बनाते हैं हमें अपनी संस्कृति की महानता दिखती है


हमारा कर्तव्य है कि हम देशभक्त बनें कर्मयोद्धा बनें


जिन लोगों से हम लोगों का संघर्ष है वो अधिक सक्रियता दिखा रहे हैं और स्थान स्थान पर सक्रिय हैं हम लोगों के सरौंहां गांव में एक घर में मदरसा खुल गया है जो गम्भीर चिन्ता का विषय है


TO NIP EVIL IN THE BUD  का महत्त्व समझते हुए हम इस ओर ध्यान दें



यह अविश्वास का अंधकार है आत्मदीप हो जाओ

युगचारण जागो कसो कमर फिर से भैरवी सुनाओ


अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं  की यह पंक्तियां हमें जगाने के लिये पर्याप्त हैं हमारे दिमागों में जो अंधेरा छाया है उसे दूर करना जरूरी है


आ गई मसानी नींद जगाऊं कैसे

मदहोश झूमते सभी एक ही जैसे

स्वार्थी बिसातों पर छल के पासे हैं

अपनों के व्यवहारों में ही झांसे हैं



हम सब लोगों को जागना होगा  एक विचारशील व्यक्ति जब देखता है कि उसके अनुकूल कार्य नहीं हो रहे तो वह आत्मस्थ होने का प्रयास करता है ऐसी ही आत्मस्थता तपस्वियों के मन में भी हो गई जो भ्रमित विकृत मार्ग से भटके राजाओं बाहर से हो रहे हमलों को देखकर आत्मस्थ हो गये


साहित्य में भक्तियोग का प्रवेश हो गया और अध्यात्म एकांतवासी हो गया

लेकिन भारतवर्ष को बचाने के लिये हिमालय की गहन कन्दराओं में एक तपोमंडल है लेकिन उस तपोमंडल की तपस्या हम लोगों को जगाने के लिये पर्याप्त नहीं हो पा रही इसीलिये हम सब को स्वयं जागना होगा

19.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 19 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 अग्निपथ पर कदम रक्खो अग्निवीरो, 

स्वयं पर विश्वास रक्खो धर्मधीरो। 

देश संकट के मुहाने पर खड़ा है 

और सीना तान कर नेता अड़ा है,

देशद्रोही बिलबिलाकर आ जुटे हैं

स्वार्थी जयचंद भी उनसे सटे हैं;

त्याग भ्रम भय पग बढ़ाओ कर्मवीरो। ।


प्रस्तुत है उदन्त आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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उद्योगिनं पुरूषसिंहमुपैति लक्ष्मी ,

दैवं हि दैवम् इति कापुरूषा वदन्ति ।

दैवं निहत्य कुरू पौरूषम् आत्मशक्त्या,

यत्ने कृते यदि न सिद्धयति कोअत्र दोष: ।।

( पंचतंत्र, मित्रसम्प्राप्ति )



सदैव उद्यमी पुरूष के पास ही  लक्ष्मी जाती है । सब कुछ भाग्य पर निर्भरता की सोच कायर पुरूष की होती है अतः भाग्य को त्यागकर हमें उद्यम करना चाहिए । यथाशक्ति प्रयास करने पर भी  सफलता नहीं मिली तो इसमें कोई दोष नहीं है ।





पुरि देहे शेते यह कोश के अनुसार पुरुष की सामान्य परिभाषा है  शरीर में जो सोता है वह पुरुष है


लेकिन पुरुष वही है जो पुरुषार्थ करे



पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो।


न पुरुषार्थ बिना कुछ स्वार्थ है,


न पुरुषार्थ बिना परमार्थ है।


समझ लो यह बात यथार्थ है 


कि पुरुषार्थ ही पुरुषार्थ है।


वेद कहता है एक विराट् पुरुष है 

परमात्मा जब अपनी योगनिद्रा से स्वशक्ति को प्रकट करने की इच्छा करता है तो स्वर के साथ प्रकट होता है स्वर उसके शरीर से उत्पन्न हुआ यानि पहले शरीर बना


सृष्टि के मूल में स्थित मूल तत्त्व के अन्तर्यामी और अतिरेकी स्वरूप का प्रतीक है पुरुष

सृष्टि की रचना प्रकृति और पुरुष के संपर्क से होती है पुरुष सृष्टि के मूल में स्थित है और प्रकृति उसकी लीला है


प्रकृति और पुरुष के संपर्क से विश्व का विकास होता है

ज्ञान लीला भाव लीला विचार लीला का प्रसार करने वाली प्रकृति की क्रियाशीलता के आगे पुरुष मात्र द्रष्टा हो जाता है


हम अध्यात्म में प्रवेश करें इन संप्रेषणों को सुनने का यह मूल उद्देश्य होना चाहिये इसके लिये अध्ययन और स्वाध्याय  अनिवार्य है


योग प्रणाली में ईश्वर को पुरुष विशेष कहा गया है वह पुरुष मानसिक दुर्बलताओं से  परे है और हम इन दुर्बलताओं के साथ हैं इसीलिये सामान्य पुरुष हैं


उस विशेष पुरुष की अनुभूति   ॐ  से होती है  ॐ एक रहस्यात्मक मन्त्र, शब्द, स्वर, भाव और शक्ति है



ॐ के उतार चढ़ाव का अभ्यास अत्यन्त लाभकारी है


संक्षेप में हम पुरुष हैं और पुरुषार्थ करना हमारा कर्तव्य है


हम संसार में रह रहे हैं आत्मावरण पर्यावरण आदि बहुत से आवरणों के बीच में हैं


कुछ लोग समस्याओं से घबराते हैं और कुछ उनसे जूझने के लिये उद्यत हो जाते हैं



यह समय उथलपुथल भरा है परिस्थितियां विषम हैं बहुत से घोटाले नेपथ्य में चले जाते हैं लेकिन घोटाले तो घोटाले हैं ही

बोफोर्स,भोपाल गैस कांड आदि हुए ही हैं

एक संवेदनशील व्यक्ति को ये सारी घटनाएं बहुत कष्ट पहुंचाती हैं


हम भी इन सदाचार संप्रेषणों से लाभ लेते हुए बाह्य जगत् में अपनी स्वच्छ दृष्टि से उसके यथार्थ को पहचानें और आत्मिक दृष्टि से निराशा हताशा का त्याग करें भ्रम और भय का त्याग करें


हमारा सिद्धान्त है वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

इसे सदैव ध्यान रखें



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने 1936 की फिल्म अमर ज्योति के एक गीत


कारज की ज्योत सदा ही जरे

कारज की ज्योत सदा ही जरे

एक जन जाये दूजा आये फिर भी ज्योत बरे फिर भी ज्योत बरे

की चर्चा किस संदर्भ में की भैया मनीष कृष्णा का नाम क्यों आया जानने के लिये सुनें

18.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 18 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 [8:16 am, 18/06/2022] Praveen: कल आचार्य जी ने बताया था


हमारा बिल्कुल आंतरिक पक्ष  आत्म का आवरण है यह आत्मावरण हम सब ओढ़ें हैं

लेकिन परमात्मा जब हमारे ऊपर कृपा कर देता है तो आत्मावरण को दूर कर हम निरावृत्त हो जाते हैं


इसीलिये हमें भक्ति का सहारा लेना चाहिये भक्ति वह स्थान है जहां सांसारिक शक्ति आत्मशक्ति में विलीन हो जाती है


इस संसार में अपने संसार का सृजन कर लेना भक्तिभाव की पराकाष्ठा है 

आत्म का अवलोकन करते समय उसमें स्थायित्व भी लाना आवश्यक है


इसके बाद संघर्षों में हमें अर्जुन की तरह विजय अवश्य मिलेगी

अब आगे


प्रस्तुत है प्रियङ्करण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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आचार्य जी अतिशय संवेदनशील हैं और हम भावुक लोग यह बात अच्छी तरह से समझते हैं आचार्य जी प्रतिदिन हम लोगों को राष्ट्र -न…

[8:19 am, 18/06/2022] Praveen: कल आचार्य जी ने बताया था


हमारा बिल्कुल आंतरिक पक्ष  आत्म का आवरण है यह आत्मावरण हम सब ओढ़ें हैं

लेकिन परमात्मा जब हमारे ऊपर कृपा कर देता है तो आत्मावरण को दूर कर हम निरावृत्त हो जाते हैं


इसीलिये हमें भक्ति का सहारा लेना चाहिये भक्ति वह स्थान है जहां सांसारिक शक्ति आत्मशक्ति में विलीन हो जाती है


इस संसार में अपने संसार का सृजन कर लेना भक्तिभाव की पराकाष्ठा है 

आत्म का अवलोकन करते समय उसमें स्थायित्व भी लाना आवश्यक है


इसके बाद संघर्षों में हमें अर्जुन की तरह विजय अवश्य मिलेगी

अब आगे


प्रस्तुत है प्रियङ्करण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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https://youtu.be/YzZRHAHbK1ww


आचार्य जी अतिशय संवेदनशील हैं और हम भावुक लोग यह बात अच्छी तरह से समझते हैं आचार्य जी प्रतिदिन हम लोगों को राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी जीवन जीने के लिये प्रेरित करते हैं साथ ही ध्यान धारणा स्वाध्याय लेखन   के लिये भी परामर्श देते हैं


आचार्य जी के माध्यम से हम अपनी समस्याओं को प्रायः सुलझाते रहते हैं लेकिन आपको इसकी प्रतीक्षा रहती है कि हम उन्हें अपने कुशल क्षेम की सूचनायें भी दें शुभ समाचार दें

आचार्य जी ने अपनी पुस्तक गीत मैं लिखता नहीं हूं में एक कविता मैं शीर्षक से लिखी थी जो उनके भावों को व्यक्त करती है


मैं अन्तरतम की आशा हूँ मन की उद्दाम पिपासा हूँ

जो सदा जागती रहती है ऐसी उर की अभिलाषा हूँ ।

मैंने करवट ली तो मानो

 हिल उठे क्षितिज के ओर छोर

मैं सोया तो जड़ हुआ विश्व

निर्मिति फिर-फिर विस्मित विभोर

मैंने यम के दरवाजे पर

दस्तक देकर ललकारा है

मैंने सर्जन को प्रलय-पाठ

पढ़ने के लिये पुकारा है

 मैं हँसा और पी गया गरल

मैं शुद्ध प्रेम-परिभाषा हूँ,

मैं अन्तरतम की आशा हूँ।।१।।

मैं शान्ति-पाठ युग के इति का

मैं प्रणव-घोष अथ का असीम

मैं सृजन-प्रलय के मध्य सेतु

हूँ पौरुष का विग्रह ससीम

बैखरी भावनाओं की मैं


सात्वती सदा विश्वासों की 

मैं सदियों का आकलन बिन्दु 

ऊर्जा हूँ मैं निश्वासों की 

पर परिवेशों में मैं जब-तब 

लगता है घोर निराशा हूँ,

मैं अन्तरतम की आशा हूँ।।२।। ।

 मैं हूँ अनादि मैं हूँ अनन्त 

मैं मध्यंदिन का प्रखर सूर्य 

मैं हिम-नग का उत्तुंग शिखर

उत्ताल उदधि का प्रबल तूर्य  

दिग्व्याप्त पवन उन्‍चास और 

मैं अन्तरिक्ष का हूँ कृशानु 

मैं माटी की सद्गन्‍ध और 

रस में बसता बन तरल प्राण

पर आत्म बोध से रहित स्वयं

मैं ही मजबूर हताशा हूँ, |

मैं अन्तरतम की आशा हूँ।।३॥।

मैं स्रष्टा का उत्कृष्ट सृजन

पालन कर्ता का सहयोगी

मैं हूँ विध्वंस कपाली का

हूँ सृजन प्रलय का अनुयोगी


मैं ही इतिहास रचा करता 

भूमिति के बिन्दु हमारे हैं 

अटके भटके पथ भेदों के

मैंने संबन्ध सुधारे हैं

पर चला और पथ भूल गया

मैं क्षिप्त चित्त की भाषा हूँ,

मैं अन्तरतम की आशा हूँ।।४।।

जब सोया तो सपने देखे

जब जगा, सोचकर रोता हूँ

अपने इन गँदले हाथों से  प्रज्ञा मल-मल कर धोता हूँ

छिप गया क्षितिज में सिन्धु-सूर्य

मैं ठगा-ठगा रह गया खड़ा

अपनी ही आँखों से देखा

मैं अपने से हो गया बड़ा

हारे समस्त उपमान अभी तक

मैं प्यासा का प्यासा हूँ, 

 मैं अन्तरतम की आशा हूँ।।५।।

मन की उद्दाम पिपासा हूँ ।



इस कविता में  विचार आत्मबोध आत्मानन्द सांसारिक प्रपंच उलझनें  हैं


इस कविता में आचार्य जी ने भारत के गौरवशाली इतिहास की ओर भी संकेत किया है और शौर्यविहीन अध्यात्म की अति से हुए नुकसान की ओर भी ध्यान दिलाया है

हमें रामत्व अपनाने की आवश्यकता है पथ से भटके वापस आ जायेंगे ऐसी आशा आचार्य जी को है भारत फिर से अखण्ड बनेगा यह भी


शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म को हम लोग अपनाएं हम लोगों को जागने की आवश्यकता है

भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करेगा इसके लिये आचार्य जी आशान्वित हैं


अग्निपथ के विरोध में हुए उपद्रव से आचार्य जी की तरह हम बहुत से राष्ट्रभक्त आहत हैं इसीलिये आचार्य जी चाहते हैं कि स्थान स्थान पर शक्ति -केन्द्र स्थापित हों जगह  जगह देश के पहरुए खड़े हो जायें तो दुष्टों की क्या मजाल


हम लोग आचार्य जी के सद्गुणों को अपनाएं

17.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 17जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रसादक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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व्यक्ति सामने उपस्थित समाज, संस्था,समूह,परिवार,परिस्थितियां अर्थात्  उसके चारों ओर व्याप्त बातें जिसके फलस्वरूप वह कार्य करने को विवश होता है 

, परिवेश अर्थात् उस व्यक्ति के भौतिक या भौगोलिक बिंदु  के आसपास का क्षेत्र  

और चिन्तन को आधार मानकर अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है


भावों की अभिव्यक्ति में पर्यावरण अर्थात् ऐसी चीजों का समुच्चय जो किसी व्यक्ति  को चारों ओर से आवृत्त किये हुए है, भी अहम है


तरह तरह के समाचार ईशनिन्दा, ED, कतर, अग्निपथ का विरोध आदि में उलझकर व्यक्ति को आत्मचिन्तन का अवसर नहीं मिलता


व्यक्तिगत, पारिवारिक आदि समस्याओं के कारण भी आत्मचिन्तन का अवसर नहीं मिलता


जिनसे हमारी आत्मीयता है अगर उनसे विवाद हो जाये तो हमारी उलझनें और बढ़ जाती हैं


हमारा बिल्कुल आंतरिक पक्ष  आत्म का आवरण है यह आत्मावरण हम सब ओढ़ें हैं


लेकिन परमात्मा जब हमारे ऊपर कृपा कर देता है हम आत्मावरण को दूर कर निरावृत्त हो जाते हैं


इसीलिये हमें भक्ति का सहारा लेना चाहिये भक्ति वह स्थान है जहां सांसारिक शक्ति आत्मशक्ति में विलीन हो जाती है


गीता का बारहवां अध्याय भक्तियोग पर आधारित है


अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।


सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.16।।


यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।


शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।।12.17।।


अपेक्षारहित, शुद्ध, दक्ष, उदासीन, व्यथा से रहित एवं सारे कर्मों का संन्यास करने वाला  भक्त  मुझे प्रिय है


जो न हर्षित होता है  न द्वेष करता है न ही शोक करता है  न आकांक्षा तथा शुभ अशुभ का त्याग करने वाला  भक्त मुझे प्रिय है


समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः।


शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः।।12.18।।


आत्मदर्शन की अनुभूति जितने क्षण हो जाये उतना अच्छा

इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि हम संसार से भाग रहे हैं


इस संसार में अपने संसार का सृजन कर लेना भक्तिभाव की पराकाष्ठा है


मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे


न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥


हमें एकान्त देखना चाहिये आत्मावलोकन करना चाहिये

आत्म का अवलोकन करते समय उसमें स्थायित्व भी लाना आवश्यक है


इसके बाद संघर्षों में हमें अर्जुन की तरह विजय अवश्य मिलेगी



हमारे मांननीय प्रधानमन्त्री ध्यान धारणा आत्मावलोकन स्वाध्याय करते हैं

 जितने आत्मावलोकी तैयार होंगे उतना ही संगठन प्रभावी होगा

16.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 16 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रौढप्रताप आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16 जून 2022

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प्रकृति में परिवर्तन भारतवर्ष का वरदान हैं हमारे यहां छह ऋतुएं हैं और सभी महत्त्वपूर्ण हैं भारत में प्रकृति की अद्भुत लीला मनोबल का संवर्धन करती है


यहां प्रकृति का साहचर्य वैराग्य के साथ शौर्य का प्रशिक्षण देता है


इसी कारण ब्रह्मचर्य और संन्यास आश्रम में हम लोग प्रकृति के अधिक से अधिक निकट रहते हैं


हम लोग प्राकृतिक रूप से सरल विचारशील चिन्तनशील सहिष्णु सहयोगी होते हैं अन्य देशों के लोगों में ऐसा नहीं है


हमारे देश का पाश्चात्यीकरण (westernization )बहुत नुकसान कर गया बिना अकल के नकल ने बहुत नुकसान पहुंचाया


हमारी जीवनशैली परिवर्तित हो गई गांव गांव में यह प्रवेश कर गया बहुत सी विकृतियां आ गईं इन्हीं विकृतियों को संवारने के लिये हमारे देश में समय समय पर संस्थाएं महापुरुष साधक आते रहते हैं हमारा काम है कि हम उन्हें ऊर्जा का स्रोत बना लें


आत्मदीप्ति अपने प्रयासों से आती है

मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे


न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥


ये सदाचार संप्रेषण भी इसी आत्मदीप्ति हेतु हैं


महापुरुषत्व के अद्भुत लक्षण होते हैं कि समता समानता प्रेम का महापुरुष अद्भुत प्रसार कर देता है उसके साथ वाले उसको सामान्य मान लेते हैं


उत्तरकांड में


निज निज मति मुनि हरि गुन गावहिं। निगम सेष सिव पार न पावहिं।।

तुम्हहि आदि खग मसक प्रजंता। नभ उड़ाहिं नहिं पावहिं अंता।।

तिमि रघुपति महिमा अवगाहा। तात कबहुँ कोउ पाव कि थाहा।।

रामु काम सत कोटि सुभग तन। दुर्गा कोटि अमित अरि मर्दन।।

सक्र कोटि सत सरिस बिलासा। नभ सत कोटि अमित अवकासा।।


की व्याख्या करते हुए आचार्य जी कहते हैं


 मैं कौन हूं यह अनुभूति और इस अनुभूति का अभ्यास हमें यदि होता है तो हम अपने को अध्यात्म के द्वार पर पाते हैं



हमारी सेवा पराक्रम विचार संगठन अध्यात्म पर आधारित होकर आगे बढ़ते हैं तो हमें अनुभव होता है कि हम सफल होते जा रहे हैं


इसीलिये आचार्य जी प्रतिदिन  अच्छी संगति प्राणायाम ध्यान धारणा सात्विक भोजन  स्वाध्याय पर जोर देते हैं


खानपान में तो बहुत सतर्क रहने की आवश्यकता है


अपने उचित क्रियाकलापों से संसार को आनन्दित करें



दुष्ट कभी संसार को प्रसन्न नहीं कर सकते  और उन्हें समझ में भी नहीं आता



नलिकागतमपि कुटिलं न भवति सरलं शुनः पृच्छम् ।

तद्वत् खलजनहृदयं बोधितमपि नैव याति माधुर्यम्


अच्छे लोगों के विचार सुनें लेकिन उनकी जीवनशैली को देखकर उन्हें आदर्श बनाएं


इसके अतिरिक्त नापकर लिख दो से क्या आशय है डा रघुवीर क्या कहते थे आदि जानने के लिय सुनें

15.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 15 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।


क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।


प्रस्तुत है क्रोधोज्झित आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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उत्तरकांड में


बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु।

गावहिं बेद पुरान सुख कि लहिअ हरि भगति बिनु॥89 क॥


कोउ बिश्राम कि पाव तात सहज संतोष बिनु।

चलै कि जल बिनु नाव कोटि जतन पचि पचि मरिअ॥89 ख॥



गुरु और वैराग्य के बिना क्या ज्ञान का अस्तित्व है? अर्थात् नहीं है इसी तरह वेदों और पुराणों के अनुसार  हरि की भक्ति के बिना  सुख नहीं मिल सकता है यह विश्वास करना होगा

हमें यह भी विश्वास करना होगा कि स्वाभाविक संतोष के बिना कोई शांति नहीं पा सकता है  जैसे बहुत सारे उपाय करके  भी जल के बिना नाव  नहीं चल सकती है


विश्वास की कमी एक बहुत बड़ी समस्या है परस्पर का अविश्वास करते करते आत्मविश्वास टूट जाता है


हम समस्याओं का विचार करते हैं तो हमें समस्याएं ही समस्याएं दिखती हैं और यदि हम आनन्द का अनुभव करते रहें तो आनन्द हमारे अभ्यास में आ जाता है


हमें आत्मविश्वास नहीं तोड़ना चाहिये


आचार्य जी ने नूपुर शर्मा के निलंबन का उल्लेख करके बताया कि जब हम ऊंची छलांग लगाते हैं तो पीछे हटते हैं


विदित हो कि केन्द्र सरकार ने तीनों सेनाओं में भर्ती के लिये अग्निपथ योजना की घोषणा की है देखा जाये तो पूरा देश ही अग्निपथ है


जिसके मन में शक्ति, शौर्य, समर्पण का भाव, सेवा, देशप्रेम और आत्मविश्वास नहीं वो अग्निपथ पर नहीं चल सकता अग्निपथ पर अग्निवीर ही चल सकते हैं


हम लोगों का कर्तव्य है कि नौजवानों को अग्निवीर बनने के लिये प्रेरित करें

गौरीनाथ रस्तोगी जी की इजरायल पर लिखी पुस्तक की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया कि वहां का हर नागरिक देशभक्ति और आत्मविश्वास से ओतप्रोत है


भारतीय संस्कृति में बहुत सारी अच्छाइयां हैं अध्यात्म में डूबी इस संस्कृति ने जब शौर्य को एक किनारे कर दिया तो हमें दुष्परिणाम झेलने  पड़े इसलिये हमें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को अपनाना है 



हमें आनन्द तब आयेगा जब हमारे लोग स्वस्थ प्रसन्न आनन्दित होंगे

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अमित गुप्त जी का नाम क्यों लिया जब आचार्य जी प्रचारक थे तो उस समय के किस प्रसंग का उल्लेख आज हुआ परिपूर्णता की परिकल्पना करते समय किन्हें अपूर्णता की परिस्थिति से सामना करना पड़ा आदि जानने के लिये सुनें

14.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 14 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 अस्थि चर्म मय देह यह ,ता सौ ऐसी प्रीत 


नेकु जो होती राम में ,तो काहे भव भीत


प्रस्तुत है आरभट आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14 जून 2022

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संसार में समस्याओं के अम्बार हैं आधा अधूरा जीवन लेते हुए भी जो राम में कृष्ण में परमात्मा के दर्शन करते हैं उन्हें सांसारिक व्याधियां या तो सताती ही नहीं हैं और यदि सताती  हैं तो उनका निवारण भी हो जाता है


यह हमारा सनातन आध्यात्मिक चिन्तन है और इसी चिन्तन के आधार पर हमने संपूर्ण विश्व में आध्यात्मिक विजय (भौतिक विजय नहीं )किसी समय प्राप्त की है


संवत् सोलह सौ इकतीसा। करौं कथा हरिपद धरि सीसा।।


नौमी भौम वार मधुमासा। अवधपुरी यह चरित प्रकासा।।”


तुलसीदास जी ने सन् 1574 ई. में रामचरितमानस की रचना प्रारंभ की और इसे दो वर्ष सात माह में पूरा किया था।  इसके द्वारा तुलसीदास जी ने हमारी आध्यात्मिक और भौतिक समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया है।


उस समय धूर्त अविनयी ठग धोखेबाज अकबर का शासन था अकबर का जनता पर शासन था तो तुलसीदास ने लोगों के हृदयों पर शासन किया


चिन्तक विचारक लोग ऐसे समय में कोई न कोई सृष्टि रच देते हैं और इसी कारण हमारे देश को सदैव ऊर्जा मिलती रही है


बारे तेँ ललात बिललात द्वार द्वार दीन,

⁠जानत हौं चारि फल चारि ही चनक को॥

तुलसी सो साहिब समर्थ को सुसेवक है,

⁠सुनत सिहात सोच बिधि हू गलक को।

नाम, राम! रावरो सयानो किधौं बाबरो,

⁠जो करत गिरी तेँ गरु तृन तेँ तनक को॥


तुलसी को जन्म देने के बाद ही उनकी मां चल बसीं  मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण अपशकुन मानकर पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया

 उन्हें दासी ले गई कुछ दिन बाद सांप के काटने से दासी भी मर गई और तुलसी पूरी तरह अनाथ होकर सड़क पर आ गए

उनका बचपन भीख मांगते हुए बीता


तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥

भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥



रामचरित मानस का गुटका हमें घर घर में मिल जायेगा

वेद पुराण उपनिषद् बहुत महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन हर जगह ये प्रविष्ट न हो सके


नाना पुराण निगमागम सम्मतं यद्

रामायणे निगदितं क्वचि दन्यतोअपि

स्वान्त: सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा

भाषा निबंध मति मंजुल मातनोति।।


स्वान्तः सुख को पहचानना बहुत मुश्किल है

आत्मबोध की कमी ईर्ष्या बहुत नुकसान करती रही है


मैं स्वयं इकाई के रूप में क्या कर सकता हूं इस पर चिन्तन करें


इसके अतिरिक्त भैया अरविन्द जी को क्या अच्छा लगता है शवासन और साधु का क्या प्रसंग है सम्राट पृथ्वीराज फिल्म से हमने क्या सीखा भैया प्रकाश शर्मा जी का नाम किस संदर्भ में आया श्री अशोक सिंघल जी का उल्लेख क्यों हुआ आदि जानने के लिये सुनें

13.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 13 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 समर सदैव जय विजय 

विजय विजय विजय विजय 

कभी न मृत्यु-कामना

न दीनहीन भावना 

न शत्रु को महत्व दो 

सुबंधु पर ममत्व हो 

करो कभी न याचना

सुताल ताण्ड्य बाँचना

विजय विजय विजय विजय। ।


प्रस्तुत है कृतनिश्चय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13 जून 2022

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हमारे अंदर यह कौशल होना चाहिये कि सामान्य बातों में भी हम असामान्यता खोज लें



मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥


लेकिन व्यक्तिगत पारिवारिक सामाजिक आदि परिस्थितियों में उलझकर मन अशान्त हो जाता है


हमें अपने मन को मननशील बनाना चाहिये  मनन आत्म, परमात्म,परमात्म की लीला रचना,सांसारिक समस्याओं के समाधान हेतु उपाय खोजने और यशस्विता के साथ मनुष्यत्व के निर्वाह हेतु होना चाहिये


स जीवति यशो यस्य कीर्तिर्यस्य स जीवति।

अयशोऽकीर्तिसंयुक्तः जीवन्नपि मृतोपमः॥


हमारे ऋषियों मुनियों द्वारा दिये गये इन सूत्र सिद्धान्तों पर हमें दृढ़ रहने की आवश्यकता है


घोर संकट के इस काल में अभिभावकवृत्ति का निर्वाह करते हुए आचार्य जी हम लोगों के क्रियाकलाप आदि की जानकारी प्राप्त करते रहते हैं

वैसे भी आचार्य जी ग्रीफ काउंसलर की भूमिका में  आते रहते हैं

आचार्य जी इस बात का भी प्रयास करते हैं कि हमारे विचार कमजोर न पड़ें

और हमारा आत्मबोध जाग्रत हो

इस भाव के कारण हमें संघर्ष में भी विजय प्राप्त होती है


व्याकुलता से सहज शक्ति शिथिल  पड़ जाती है 

शरीर को साधन मानते हुए अपने शरीर की सुरक्षा भी हम करें यद्यपि हमें यह तत्त्वबोध तो हो कि इस शरीर की एक आयु है


शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्


हमारा शरीर चला भी जाये तो दूसरा शरीर मिलने का उपाय करें


संसार में हैं तो समस्याएं होंगी   संघर्ष होंगे अपने परायों का जंजाल दिखेगा इनका एक मात्र उपाय है मनुष्यत्व की उपासना


इसके लिये हमारा पुरुषत्व जाग्रत होना चाहिये



अध्यात्म का मूल तत्त्व यही है कि किसी भी परिस्थिति में हम आनन्दित रहें


ध्यान, प्राणायाम, सात्विक भोजन, स्वाध्याय, अध्ययन, चिन्तन, मनन आवश्यक है

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।


असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः।


नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां संन्यासेनाधिगच्छति।।18.49।।


आचार्य जी कामना करते हैं कि हम सफलता पूर्वक जीवन जियें और  एक आदर्श प्रस्तुत करें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सम्राट पृथ्वीराज फिल्म की चर्चा क्यों की भैया पवन जी और भैया प्रकाश जी का नाम किस संदर्भ में आया जानने के लिये सुनें

12.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 12 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।


जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।3.43।।



प्रस्तुत है सुदेशिक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12 जून 2022

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हम इस संसार में आयें हैं तो कर्म से विहीन नहीं रह सकते

गुणों के आधार पर कर्म तीन प्रकार के हैं  सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी

कर्म के स्थूल और सूक्ष्म दोनों रूप होते हैं

कल्पनाओं में भी हम कर्म करते रहते हैं

अपने आत्म से संसारत्व को संयुत करने वाला मनुष्य इस कर्म की प्रवृत्ति को साथ लेकर आता है

कर्म जब विकृत स्वरूप धारण करता है तो उससे कुंठित हुआ मन संवेदनशीलता त्याग देता है


पतित मनुष्य पशु से भी नीचे गिर जाता है और उत्थित मनुष्य देवताओं से ऊपर होकर परमात्मा के निकट पहुंच जाता है


 

गीता के तीसरे अध्याय में 36 से 41 छन्द 


अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः।


अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः।।3.36।।



तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।


पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्।।3.41।।


में अर्जुन की जिज्ञासाओं का भगवान् शमन करते हैं


आत्म सर्वश्रेष्ठ है लेकिन आत्म तक पहुंचना ही दुष्कर है और यही अध्यात्म है आत्म परमात्म का अंश है यह अनुभूति जितने समय तक रहती है हम आनन्दार्णव में तैरते रहते हैं


मनुष्य मत्स्य,गौ,अश्व, मनुष्य, देवता आदि तो बनता ही है वह परमात्मा भी बन जाता है ऐसे मनुष्य के अन्दर ही गुण हैं मनुष्य द्वारा किसी भी भौतिक वस्तु का निर्माण यदि अध्यात्म समर्पित हो जाता है

तो वह स्वयं तो आनन्दित होता है दूसरों को भी आनन्दित करता है


संजय द्वारा युद्ध का वर्णन, पुष्पक विमान का उल्लेख आदि उदाहरण इतना बताने के लिये पर्याप्त हैं कि हम विज्ञान में कितने उन्नत थे और उसका कारण अध्यात्म का उत्कृष्ट स्वरूप हमसे संयुत था 


हमें शक्ति चैतन्य उत्साह उमंग अपराजेय शक्ति मिले इसके लिये हमको अध्यात्म की ओर उन्मुख होना ही चाहिये

रामत्व हनुमान जी का सेवा भाव कृष्ण का कौशल आदि यदि हम अपने अन्दर प्रवेश करायेंगे तो आज की विकट समस्याओं को पाकर निराश नहीं होंगे

अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करते हुए आंखें खोलकर दिमाग को सक्रिय करके संतुलित लोगों के साथ नित्य संपर्क करके वर्तमान परिस्थितियों पर हमें काबू पाना है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया समीर राय का नाम क्यों लिया दीनदयाल विद्यालय के किस विशेष रूप के कारण आज भी हम उस विद्यालय से आचार्यों से छोटे बड़े भाइयों से जुड़े हैं आदि जानने के लिये सुनें

11.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 11 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 अग्रत: चतुरो वेदा: पृष्ठत: सशरं धनु: ।

इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ।।


प्रस्तुत है पुंनाग आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 11 जून 2022

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इन सदाचार संप्रेषणों से हमें तात्त्विक,ज्ञान से ओत प्रोत, प्रखर महत्त्वपूर्ण विषय मिलते रहते हैं और इसका कारण है आचार्य जी का भाषा में आबद्ध बहुत लम्बे समय का अनुभव


कल प्रयागराज, रांची, देवबन्द, हाथरस आदि में हुए उपद्रवों का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि इस समय टी वी चैनल वास्तविकता न दिखाकर टी आर पी रेटिंग्स की ओर ध्यान दे रहे हैं मीडिया खतरनाक नियन्त्रित  अभिव्यक्तियों का बहुत बड़ा मार्केट बनता जा रहा है


देशद्रोही उपद्रवियों को केवल उपद्रव करने में ही मजा आता है संपूर्ण विश्व में देवासुर संग्राम चल रहा है सुरों और असुरों का संघर्ष तो चलेगा ही


हम सुर स्वरूप व्यक्ति अपने दैवीय गुणों के विकास में संलग्न होवें भगवान् विष्णु सुरों के आदर्श हैं उनमें सारी शक्तियां निहित हैं वे पालन भी करते हैं नाश भी करते हैं हमारे यहां का चिन्तन सृष्टि का वास्तविक स्वरूप है


चिन्तन मनन के साथ संगठन महत्त्वपूर्ण है स्थान स्थान पर शक्ति-केन्द्र स्थापित करने की आवश्यकता है


और यह आत्मविश्वास हमारे अन्दर होना चाहिये कि उस शक्ति -केन्द्र से समस्याओं का समाधान हम आसानी से कर लेंगे


केवल अपना विचार डालकर संतुष्ट होकर हाथ पर हाथ रखकर न बैठें

तूफान के रुख को भांपना चाहिये

शास्त्र और शस्त्र दोनों के हम अनुयायी हैं

हम निश्चित रूप से विजयी होंगे इस विजय यज्ञ में अपनी आहुति भी डालें यह कैसे करें इस पर भी चिन्तन करें


हमारे अन्दर इतनी क्षमता होनी ही चाहिये कि हम किसी भी परिस्थिति का सामना कर सकें

10.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 10 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।


अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।


परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।


धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।



प्रस्तुत है सूरचक्षुस् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10 जून 2022

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समय जब गम्भीर हो तो हमें बहुत सचेत सतर्क रहने की आवश्यकता है

वर्तमान समय भी बहुत उथलपुथल वाला  विपरीत  और गम्भीर है इस समय हम सचेत सतर्क तो रहें हम शक्तिसंपन्न भी हैं यह अनुभूति भी करते रहें


कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥


राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥




 निराशा को पास फटकने न दें

हम अकेले नहीं हैं चिरविजय की कामना लिये आगे चलते रहते हैं अधर्म का भारत में ही पराभव होगा ऐसा विश्वास प्रत्येक राष्ट्रभक्त में होना चाहिये


गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे

स्वापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ॥

का,अपनी संस्कृति का चिन्तन करते हुए अपने व्यवहार को करने की आवश्यकता है


विद्या विवादाय धनं मदाय,

शक्ति: परेषां परपीडनाय ।

खलस्य साधो: विपरीतमेतद्,

ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ।।

की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि दुष्ट लोगों की विद्या विवाद के लिये धन मद के लिये और शक्ति दूसरों के परेशान करने के लिये होती है और इसके विपरीत हम लोगों का उद्देश्य दूसरा होता है 




शारीरिक पारिवारिक सामाजिक कार्यों में संतुलन स्थापित कर हमें अपने कदम आगे  बढ़ाने चाहिये

9.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 9 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है आसनबन्धधीर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 9 जून 2022

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हर साधक साधनाओं की भिन्न भिन्न पद्धतियां अपनाता है

जहां व्यक्ति समूह बन जाता है वहां वह ईश्वर का स्वरूप लेने लगता है समूह का संस्कारित और पारिवारिक रूप होना आवश्यक है तभी वह ईश्वरत्व की ओर उन्मुख होता है अन्यथा वही समूह विध्वंसक हो जाता है


हम सौभाग्यशाली हैं कि हम उस समूह के हिस्से हैं जो ईश्वरत्व का बोध कराता है


हम और भी सौभाग्यशाली हैं कि आचार्य जी प्रतिदिन इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हमें यह स्मरण कराते हैं कि राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष हमारा लक्ष्य है वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए हमें सजग जागरूक रहने की आवश्यकता है ध्यान धारणा स्वाध्याय चिन्तन मनन की ओर उन्मुखता बनाये रखें सकारात्मक सोच रखें


व्यक्तिगत पारिवारिक सामाजिक आदि परिस्थितियां यदि मनोनुकूल नहीं हैं तो भी साधक द्वारा मन को प्रयासपूर्वक शिथिलीकरण में ले जाना  चाहिये


राष्ट्र के प्रति सुस्पष्ट दृष्टि रखने वाले चिन्तक विद्वान प्रो. कपिल कुमार के एक इंटरव्यू की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया कि इस इंटरव्यू का मूल विषय था कि किस प्रकार नौकरशाही संगठित होकर देश को खोखला करने के प्रयास में लगी रहती है राजतन्त्र के हिसाब से लोकतन्त्र को चलाने वाले परिवारों को संपोषित करना स्वार्थों की पूर्ति करना जनमानस को भ्रमित करना आदि इसके लक्ष्य हैं


हमारी शिक्षा बहुत प्रदूषित हो गई और हम धंसते चले गये

प्रायः यह चिन्तन घर घर प्रवेश कर गया है कि हम स्वयं तो सुविधाभोगी बनें और दूसरे त्यागी तपस्वी चिन्तक बनें


ऐसी स्थिति में उपदेश खोखले सिद्ध होते हैं


एक समाचार था

लखनऊ में एक नाबालिग बच्चे ने अपनी मां की हत्या कर दी

शुरुआती जांच में बच्चे का PUBG खेलना इसका कारण माना गया

शिक्षा का ऐसा विकृत रूप ऐसी आधुनिकता चिन्ताजनक है


नई पीढ़ी सही दिशा में नहीं जा रही है हम लोगों को आत्मचिन्तन  विचारों का मन्थन करने की आवश्यकता है


पैनी दृष्टि रखें मीडिया देशद्रोहियों से दूरी बनाये

आमदनी के लिये जहर का व्यापार करना कैसे उचित हो सकता है


आमदनी रह जायेगी आदमी चला जायेगा


हम लोग ध्यान धारणा स्वाध्याय प्राकृतिक वातावरण का आनन्द लेने वाले कार्यक्रम भी बनायें

8.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 8 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 उधर तूफान की दस्तक 

इधर दीपक टिमकता है ,

कि जैसे प्रेत-गर्जन पर

कुशल मान्त्रिक बिहँसता है। ।


हमें अनुभूति की अभिव्यक्ति में संयम समझना है ,

विवादों को समझकर ही सदा उनसे उलझना है ,

पुरुष पुरुषार्थ का पर्याय या विश्वास होता है ,

कहाँ कब किसलिए कैसे किसे रखना   समझना है। ।



सूझबूझ, संयम,धीरज, अपनों पर विश्वास, अपने देश की आन्तरिक स्थिति का यथार्थ आकलन करते हुए परस्पर विचार-विमर्श करने के बाद ही अपना अभिमत प्रसारित करने में ही स्वदेश का हित होगा ।

वर्तमान राष्ट्रीय और राजनैतिक नेतृत्व का कोई  विकल्प नहीं है वर्तमान समय में ।अतः त्वरा से बचें ।


प्रस्तुत है पृथुयशस् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 8 जून 2022

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स्थान :उन्नाव


योजना बनाना उसका परिपालन करना उसके परिणामों का परीक्षण करना और पुनः समस्याओं को सुलझाने के लिये उद्यत होना  व्यवहार में परिवर्तित होने वाले मनुष्य जीवन के कुछ सैद्धान्तिक पक्ष हैं


इस समय  परिस्थिति  आसन्न संकट की दिखाई दे रही है विपक्ष एक विषय में एकजुट है कि वर्तमान नेतृत्व( देश का, उत्तर प्रदेश का भी )को अपदस्थ किया जाये इस नेतृत्व को चाहने वाले हम उनसे भ्रमित न हों इसके लिये चिन्तन के साथ सकारात्मक चर्चा की भी आवश्यकता है


वर्तमान प्रधानमन्त्री और उ प्र के वर्तमान मुख्यमन्त्री में सदाचार साधना संयम के साथ सिद्धि प्राप्त करने की भावना भी है


कानपुर शहर काजी हाफिज अब्दुल कुद्दूस हादी के धमकी भरे बयान कि उत्पीड़न पर कफन बांधकर निकलेंगे पर आचार्य जी कहते हैं कि प्रशासन शासन सूझ बूझ से काम करें


सूझबूझ से कदम  बढ़ाने पर हमारा सम्मान होता है कहीं भी बुलडोजर चलाना उचित नहीं है


कानपुर के प्रशासन ने प्रशंसनीय कार्य किया कानपुर के जनप्रतिनिधियों से भी संपर्क करें

 SOCIAL MEDIA पर उपस्थिति दर्ज करने के लिये समर्पित पढ़े लिखे लोगों की आवश्यकता है


ऐसे लोगों को जाग्रत करने की आवश्यकता है युगभारती में भी ऐसे मोहग्रस्त लोग हैं


स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि।


धर्म्याद्धि युद्धाछ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते।।2.31।।


भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः।


येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम्।।2.35।।


सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।


ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।।


IT के क्षेत्र में जिन्हें महारथ हासिल है उन्हें अभी इसी समय जाग्रत करने की आवश्यकता है


it's no use crying over spilt milk.


समाज को और अधिक जाग्रत करने के लिये संचारतन्त्र को जाग्रत करें


गम्भीरता के साथ छोटी छोटी बैठकें करें अपना काम करते रहें लेकिन आंखें भी खोले रहें सजग रहें


अधिक से अधिक लोगों तक अपनी बात पहुंचायें


नगरों के उत्पातों का व्यापक प्रभाव होता है ये गांव तक न पहुंचें इस ओर भी ध्यान देना है जनमानस में अविश्वास  हो ऐसे कदम उठाने से बचें

7.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 7 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 निर्बल बकरों से बाघ लड़े¸

भिड़ गये सिंह मृग–छौनों से।

घोड़े गिर पड़े गिरे हाथी¸

पैदल बिछ गये बिछौनों से॥1॥.......

होती थी भीषण मार–काट¸

अतिशय रण से छाया था भय।

था हार–जीत का पता नहीं¸

क्षण इधर विजय क्षण उधर विजय॥8॥....



प्रस्तुत है आढ्यम्भभावुक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 7 जून 2022

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हल्दीघाटी द्वादश सर्ग की उपर्युक्त पंक्तियों में रणभूमि के युद्ध का वर्णन है लेकिन एक वैचारिक युद्ध भी होता है उस युद्ध में चिन्तन महत्त्वपूर्ण है यहां प्रतिक्रिया देने के पूर्व हमें अच्छी तरह से विचार भी करना चाहिये हमारे अन्दर इतनी शक्ति भी होनी चाहिये कि दूसरे की बात भी समझें


हमें अपने चिन्तन का रुख व्यावहारिक पक्ष की ओर भी करना चाहिये चिन्तन को मात्र चिन्तन तक सीमित नहीं करना चाहिये


नूपुर शर्मा प्रकरण पर आई प्रतिक्रियाओं पर आचार्य जी कहते हैं


धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥


आपद काल इस समय भी हमारे देश पर है हम लोग विविध क्षेत्रों में संघर्षरत हैं


लेकिन कोई न कोई प्रकाश -विन्दु हमें सहारा देने के लिये प्रकट हो जाता है


उस ने बीडा था

उठाया रे भलाई का

हुआ नहीं वह निराश

चली जब तक सांस

उसे आस थी

प्रभु के वरदान की

यह कहानी है

दिए की और तूफ़ान की


ध्यान धारणा चिन्तन मनन स्वाध्याय आदि करने पर हमें उत्तर मिलने लगते हैं हमें भरोसा रहता है कि ये तूफान शान्त हो जायेंगे


तूफान के रुख को भांपना भी हमारा कर्तव्य है


हम विश्वास करना भी सीखें


संसार समस्याओं का अनमिल जंगल है, 

कर्तृत्ववान  के मन में सतत सुमंगल है  ,

जंगल में मंगल करता भारत का कृतित्व

हर दर का हरता रहता सभी अमंगल है।


संघर्षशील लोग व्याकुल नहीं होते

हम अपने social media को वैश्विक मंच प्रदान नहीं कर सके इसका सदुपयोग करें

हम युगभारती के सदस्यों को आपस में एक दूसरे पर आरोप लगाने से बचना चाहिये किसी के स्व को आहत न करें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने एक सज्जन बजरंग लाल वर्मा जी का उल्लेख क्यों किया अजीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी से निकाले जाने पर कौन संघर्षरत है आदि जानने के लिये सुनें


आचार्य जी को संप्रेषण अचानक बन्द करना  पड़ा क्योंकि कूड़ा  उठाने वाली गाड़ी के शोर से व्यवधान हो गया

6.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 6 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 न तोयपूत देहस्य स्नानमित्यमिधीयते। स स्नातो यस्य वै पुँसः सुविष्शुद्धं मनामतम्।


पानी से शरीर धोना ही स्नान नहीं है यदि हम अन्तःशुद्धि भी कर लें तो वह स्नान है



प्रस्तुत है जारूथ्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 6 जून 2022

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जीवन की यात्रा में सुख और दुःख आते रहते हैं इसी अवस्थाद्वय के कारण कभी हम उल्लसित रहते हैं और कभी ऊबते हैं प्रसन्न जीवन का सीधा और सरल सूत्र है कि हम वर्तमान में जीना सीखें

वर्तमान में न रहने पर अनुभूति दूर हो जाती है भूतकाल में जाने पर बहुत से ऐसे विचार आते हैं जो परेशान करते हैं भविष्यकाल में जाने पर उसमें संभावित बाधाओं के विचार से भी परेशान होते हैं


इन परेशानियों से दूर होने के लिये जिस मार्ग का अनुसरण महापुरुषों ने किया है उसे हम अपनायें

वेदा विभिन्नाः स्मृतयो विभिन्ना नासौ मुनिर्यस्य मतं न भिन्नम् । धर्म्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥


हमारे मन का चांचल्य एक विचित्र रूप धारण कर लेता है चंचलता के उत्तर स्वयं देने लगता है इन भावों और विचारों में गहराई से प्रवेश करने पर


इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।


मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।3.42।।


एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।


जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।3.43।।



 बुद्धि से परे आत्मा को जानकर बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके, हे महाबाहो ! तुम इस  कामरूप शत्रु को मारो।।



आत्म और अनात्म भाव अध्यात्म का मूल विषय है इसके अन्दर हमारा यदि चंचु प्रवेश ही है तो भी जितनी देर हम इन भावों को समझते हैं उतनी देर आनन्दार्णव में तैरते रहते हैं

ज्ञान का वर्धन तो नाममात्र का हो सकता है लेकिन इन सदाचार संप्रेषणों का मूल उद्देश्य है हमें आत्मबोध की अनुभूति होवे


आनन्दमय स्थिति तब आती है जब हम शरीर से निकलकर आत्म तक पहुंचते हैं और आत्म में पहुंचकर उसकी अनुभूति भी करना आवश्यक है


कल के कार्यक्रम में हम सब लोगों को आनन्द की अनुभूति हुई

अध्यात्म से संबन्धित प्रश्न और उत्तर  के कार्यक्रम भी हमें करने चाहिये


सम्राट पृथ्वीराज फिल्म में हिन्दुत्व का बोध कराया गया हिन्दुत्व शौर्य शक्ति से संयुत रहे इसमें रामत्व प्रवेश करे

रामत्व धोखा नहीं खाता खाता भी है तो आंशिक रूप से और उसका निवारण भी कर लेता है


आचार्य जी  अपने स्वाध्याय से हमें उत्साहित करते हैं हम भी नवोदित पीढ़ी को उत्साहित करें

आचार्य जी ने मास्क के लिये क्या बताया खुलापन कहां आये आदि जानने के लिये

सुनें

5.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 5 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 करो गिनती कि  अपनी कोठरी में बिल अभी कितने

तभी ही द्वार पर पहरा समझदारी का आयेगा


प्रस्तुत है तपोवृद्ध आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 5 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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दुष्ट लोगों के उपद्रव,समाज का शैथिल्य , शौर्य के बिना अध्यात्म की अति से उत्पन्न भारत मां पर आये संकट आदि की ओर संकेत करते हुए हम राष्ट्रभक्तों की उचित भूमिका की ओर आचार्य जी प्रतिदिन स्मरण कराते हैं


भारत त्याग बलिदान शौर्य शक्ति का पुंज है l  आचार्य जी बार बार शौर्य प्रमंडित अध्यात्म पर बल देते हैं क्यों कि शौर्य रहित अध्यात्म की अति के कारण हम अपना कर्तव्य भूल गये

हम कोई भी कर्म करें उसे यज्ञ भाव से करें 

गीता में


यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।


भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।3.13।।


उत्पादन किये बगैर समाज के धन पर आश्रित अपराधी व्यक्तियों से  भिन्न व्यक्तियों के विषय में इस श्लोक में वर्णन है। श्रेष्ठ पुरुष यज्ञ भावना से कर्म करने के बाद मिले फल में अपने भाग को  ग्रहण करते हैं और इस प्रकार सब पापों से मुक्त हो जाते हैं।पूर्व समय में किये गये पाप वर्तमान में पीड़ा के कारण हैं तो वर्तमान के पाप भविष्य में दुःखों के कारण बनेंगे। अत समाज में दुखों का अन्त हो इसका एक मात्र उपाय है समाज के जागरूक व्यक्ति यज्ञभावना से  कर्म करें और अवशिष्ट फल को ग्रहण कर सन्तुष्ट रहें ।इसके विपरीत जो केवल अपने लिये ही भोजन पकाते हैं वे पाप को ही खाते हैं।

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अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।


यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।3.14।।


कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।


तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्।।3.15।।



समस्त प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं अन्न की उत्पत्ति वर्षा से। वर्षा की उत्पत्ति यज्ञ से और यज्ञ कर्मों से उत्पन्न होता है।।


कर्म की उत्पत्ति ब्रह्माजी से होती है और ब्रह्माजी अक्षर तत्त्व से व्यक्त होते हैं। अतः  ब्रह्म सदैव यज्ञ में प्रतिष्ठित है।।

कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः।


लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि।।3.20।।


यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।


स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।3.21।।


राजा जनक-जैसे अनेक महापुरुष भी कर्म के द्वारा ही परमसिद्धि को प्राप्त हुए हैं। इसलिये लोकसंग्रह को देखते हुए भी तू  कर्म करने के योग्य है।

श्रेष्ठ मनुष्य जैसा आचरण करता है, दूसरे मनुष्य वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाण  देता है,  दूसरे मनुष्य उसी के अनुसार आचरण करते हैं।


नवोदित पीढ़ी को सुयोग्य शिक्षा और शिक्षा के साथ संस्कार देने के लिए शिशु मन्दिरों की स्थापना हुई

शिक्षा क्षेत्र को जीवन-साधना समझकर कुछ निष्ठावान लोग इस पुनीत कार्य में जुट गए ताकि सजग जागरूक राष्ट्र-सेवी तैयार हों


यज्ञ और गीता के छन्दों का प्रभाव दिखना ही चाहिये

हमारा कार्यव्यवहार नित्य संयमित शौर्यमय उत्साहमय और यज्ञमय होना चाहिये

4.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 4 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लँगूर।

बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥




अगणित–उर–शोणित से सिंचित

इस सिंहासन का स्वामी है।

भूपालों का भूपाल अभय

राणा–पथ का तू गामी है।।


प्रस्तुत है मार्गशोधक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 4 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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मोहन भागवत जी के बयान कि हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश करना उचित नहीं

पर आचार्य जी कहते हैं



असम्भवं हेममृगस्य जन्मः तथापि रामो लुलुभे मृगाय |

प्रायः समापन्न विपत्तिकाले धियोSपि पुंसां मलिना भवन्ति ||


प्रायः ऐसा देखा गया है कि संकट के समय लोगों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है | इसी कारण भगवान् राम यह जानते हुए भी कि स्वर्ण मृग का अस्तित्व असम्भव है, वे शिकार करने का लोभ  कर  बैठे |

प्राचीन मनीषियों के नये संस्करण साहित्यकारों के इस तरह के सूत्रवाक्य बहुत तात्त्विक और महत्त्वपूर्ण होते हैं


ऋषि मनीषी साधक सिद्धपुरुष हो जाता है ऐसी परम्परा पर  हमारे देश के जनमानस को विश्वास है


जीवनमरण का सवाल आने पर जो समर्पण के लिये उद्यत हो जाते हैं देश उनका होता है

 उन लोगों को भारत माता से प्रेम नहीं है जो कहते तो हैं कि उन्हें इस देश से प्यार है इसलिये वहां नहीं गये लेकिन मन में और ही कुछ चलता रहता है


लगाव क्या होता है इस पर आचार्य जी ने एक बहुत मर्मस्पर्शी कहानी सुनाई


ऐसा ही सच्चे सपूतों को भारत मां से लगाव होता है



मनभर लोहे का कवच पहन¸

कर एकलिंग को नमस्कार।

चल पड़ा वीर¸ चल पड़ी साथ

जो कुछ सेना थी लघु–अपार॥5॥


घन–घन–घन–घन–घन गरज उठे

रण–वाद्य सूरमा के आगे।

जागे पुश्तैनी साहस–बल

वीरत्व वीर–उर के जागे॥6॥


सैनिक राणा के रण जागे

राणा प्रताप के प्रण जागे।

जौहर के पावन क्षण जागे

मेवाड़–देश के व्रण जागे॥7॥


जागे शिशोदिया के सपूत

बापा के वीर–बबर जागे।

बरछे जागे¸ भाले जागे¸

खन–खन तलवार तबर जागे॥8॥


हमारा देश केन्द्रीकृत व्यवस्था में विश्वास नहीं करता था राजा के अतिरिक्त ऋषि मार्गदर्शक भी होते थे राजा नियन्त्रक नहीं होता था यद्यपि व्यवस्था तो करता था

हमारी शिक्षा प्रणाली ने हमें नौकरी के प्रति लालायित कर दिया दूसरों की अधीनता स्वीकारना l


कल कानपुर में पुलिस ने अपने काम को निडर होकर अंजाम दिया क्योंकि उसे अपनी नौकरी जाने का भय नहीं था


धर्माधारित शिक्षा और धर्माधारित राजनीति समाज को छिन्नभिन्न होने से बचाती है


कानपुर की घटना हमें झकझोरने के लिये पर्याप्त है दुष्ट लोग भय से नियन्त्रण में आते हैं  हमें सजग रहने की भी आवश्यकता है शक्ति शौर्य की उपासना लगातार होनी चाहिये


संगठित समाज को कोई पराभूत नहीं कर सकता


राजनॆताओं की कमियों के कारण भौगोलिक क्षरण तो हुआ लेकिन समूल नाश नहीं हुआ क्योंकि कोई न कोई  संस्था  खड़ी होती रही है


जीवनशैली बदलें परस्पर विश्वास में वृद्धि करें

सिद्धान्तों का व्यवहार में परिवर्तन आवश्यक है


हम लोग समाज की सेवा में इन्हीं सिद्धान्तों के आधार पर रत हो जायें


चढ़ चेतक पर तलवार उठा,

रखता था भूतल पानी को।

राणा प्रताप सिर काट काट,

करता था सफल जवानी को॥


कलकल बहती थी रणगंगा,

अरिदल को डूब नहाने को।

तलवार वीर की नाव बनी,

चटपट उस पार लगाने को॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रकाश शर्मा जी भैया गणेश भैया मनीष कृष्णा का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

3.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 3 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सेश्वर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 3 जून 2022

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अनादिकाल से भारतीय संस्कृति और हिन्दू समाज की एक अद्वितीय विशेषता है कि प्रेमाप्लवित होने में किंचित् भी विलम्ब नहीं करता


संवेदनशीलता के साथ संबन्धों का निर्वहन उसे बखूबी आता है


विन्दु सिन्धुमय होने का भाव बहुत व्यापक है


किसी कारण उसे आवेश भी आता है तो आवेश के पश्चात् सम्बन्ध पुनः महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं

महाभारत में युद्ध के पश्चात् तर्पण अन्त्येष्टिकर्म आदि के समय यह नहीं देखा गया कि यह शत्रुपक्ष का है या अपना है

महाभारत में बहुत मार्मिक दृश्य हैं हमारे चरित्रों को उजागर करने वाला हमारे साहित्य का कथात्मक संसार बहुत प्रेरणादायक है


भारतीय कर्मसिद्धान्त संयम श्रद्धा साधना और संकल्प को साथ लेकर चलता है जिसमें संयमित होकर श्रद्धास्पद वस्तुओं पर साधनामय पूर्ण विश्वास करना और आजीवन संकल्पबद्ध होना सुस्पष्ट लक्ष्य है


राम कृष्ण और शिव हमारे आदर्श हैं श्री राम मर्यादामय शौर्य हैं श्रीकृष्ण सामञ्जस्यपूर्ण शौर्य हैं शिव साधना से सिद्धि तक एक व्यवस्था हैं जिनके लिये 

तांडव भी आवश्यक है


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, आर्यसमाज, रामकृष्ण मिशन के सिद्धान्तों की तरह युगभारती  के भी सिद्धान्त हैं


स्वयं भी हम किसी से भयभीत न हों और न ही किसी को भयभीत करें


लेकिन अन्याय अनीति राक्षसत्व को भस्मीभूत करना भारतवर्ष का संयमयुक्त संकल्प भी है विलायती लोगों ने शिक्षा पद्धति बदलकर शौर्य शक्ति संयम साधना वाले हमारे मूल भाव को समाप्त कर दिया


नौकरी के प्रति पहले हमारा कभी आकर्षण नहीं था


नौकरी में हमारे ऊपर किसी का अनुशासन लद जाता है मनोविकार बढ़ जाते  हैं सद् विचार कम होते जाते हैं


कर्मशीलता से विमुखता इस शिक्षापद्धति का दोष है


क्या नौकरी के प्रति ललक होनी चाहिये   

यह विचारणीय है


कर्म का भोग भोग का कर्म जड़ का चेतन आनंद है हमारा जड़त्व जब चैतन्य में प्रवेश करता है तो कर्माधारित हो जाता है कर्म है तो उसके परिणाम हैं


संगठित होना संकल्पित होना श्रद्धावान होना साधनामय जीवन जीना दुष्टों को पराजित करना आवश्यक है यदि हम चाहते हैं कि संपूर्ण विश्व आर्यमय होवे


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रिंकू राही रजत शर्मा ज्ञानव्यापी आदि का नाम क्यों लिया परसों आचार्य जी कहां जा रहे हैं आदि जानने के लिये सुनें

2.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 2 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सितासिते सरिते यत्र सङ्गते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति ।


ये वै तन्वं विसृजन्ति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।


– ऋग्वेद


(जहां गंगा - यमुना दोनों नदियां एक होती हैं अर्थात् संगम वहां स्नान करने वालों को स्वर्ग मिलता है एवं जो धीर पुरुष इस संगम में तनुत्याग करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।)


प्रस्तुत है स्तोतव्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 2 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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निम्नांकित छंदों से आचार्य जी ज्ञान का महत्त्व बता रहे हैं 


न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।


तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति।।4.38।।


श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।


ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।4.39।।


इस संसार में ज्ञान के बराबर परिशुद्ध और उदात्त निःसन्देह कुछ भी नहीं है। जिसका योग भली-भाँति सिद्ध हो गया है, वह  उस तत्त्व को अवश्य ही स्वयं अपने आप में पा लेता है।


श्रद्धावान्, ज्ञान में तत्पर और जितेन्द्रिय पुरुष श्रद्धासमन्वित ज्ञान प्राप्त कर शान्ति को प्राप्त होता है



हमारे कथामय साहित्य में बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक के मनुष्य में आकर्षण पैदा करने की क्षमता  है लेकिन वर्तमान समय की आपाधापी में ये कथामय साहित्य लुप्तप्राय है मंचों से होने वाली कथाओं में श्रद्धा कम और लोभ ज्यादा है यद्यपि एक से  बढ़कर एक  कुशल और ज्ञानी कथावाचक  होते हैं



आचार्य जी ने एक कथा सुनाई जिसमें शिव जी पार्वती जी से कहते हैं कि गंगा में स्नान  श्रद्धासमन्वित न होने के कारण इन मनुष्यों को पुनः दुःख और व्याधियां सताती हैं मात्र डुबकी लगाना ही स्नान नहीं है


कथा बहुत रोचक है  गड्ढे में गिरे  अत्यन्त वृद्ध व्यक्ति के रूप में शिव जी को उत्साहित नौजवान बाहर निकाल देता है उसे यह डर नहीं था कि भस्म हो जायेगा गंगा में स्नान करने के कारण उसे विश्वास था कि उसके सारे पाप धुल गये थे


यह अलमस्ती श्रद्धा विश्वास से आती है


हमारे देश की पवित्रता का वर्णन कैसे किया जा सकता है जहां गङ्गा जैसी पवित्र नदी हो

गंगाजल वर्षों तक रखने के बाद भी खराब नहीं होता है

भक्ति का भाव केवल दुःख में नहीं सुख में भी होना चाहिये

ऐसे पवित्र देश के व्यक्ति में बेचारगी नहीं होनी चाहिये

ज्ञान भक्ति और वैराग्य का गीता में  बहुत सुन्दर वर्णन है


भागवत सम्राट श्री रामचन्द्र केशव डोंगरे जी महाराज कहते थे 

ज्ञानी होना कठिन नहीं है प्रभु का प्रेमी होना कठिन है भक्ति के बिना ज्ञान  लंगड़ा है ज्ञान वैराग्य के बिना भक्ति अन्धी है ज्ञान का अनुभव वैराग्य और भक्ति के बिना होता नहीं है

स्थान परिस्थिति व्यक्ति के संयोजन से आनन्द की प्राप्ति होती है


पवित्र विद्यालय के पठन पाठन और कोचिंग केंद्र में आचार्य जी ने क्या अंतर बताया जानने के लिये सुनें

1.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 1 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः


पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः।


यच्छ्रेयः स्यान्निश्िचतं ब्रूहि तन्मे


शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।2.7।।



प्रस्तुत है कर्मात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 1 जून 2022

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यदि हम अपने क्षेत्र के सिद्धहस्त कुशल सफल व्यक्ति हैं तो भी जीवन पर्यन्त हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि हमारी सफलता, कौशल, ज्ञान,साधना आदि भारत मां को समर्पित है हम अपने गृहस्थ जीवन का पालन करते हुए सिद्धान्त और व्यवहार को न छोड़ते हुए अपने सुप्त भावों को सुप्त शक्ति को और सुप्त तत्त्व को जाग्रत करते रहें 

क्योंकि हम समाज सेवा के लिये उद्यत हुए हैं ('राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष ' यह हमारा लक्ष्य है ) तो जो भी इससे संबन्धित सूचना हमें मिले उसमें हमें प्रयास करना चाहिये समाज के प्रति उपेक्षा का भाव हानिकारक है


जब मनुष्य एक  उदाहरण बन जाता है महापुरुषत्व को प्राप्त कर लेता है तो बहुत सी बातें उसके साथ संयुत हो जाती हैं


ऐसा ही हिन्दुत्व पुरोधा अजातशत्रु जन्मतः महापुरुष आदरणीय अशोक सिंघल जी(15 सितम्बर 1926-17 नवम्बर 2015)के साथ भी था

उनका जीवन अत्यधिक पवित्र था शौर्यमय था वाणी ऐसी कि लगता था सिंह गर्जना है



उनका स्वर कार्यव्यवहार उत्साह देखते ही बनता था



अपने  90 वें जन्मदिन के  कार्यक्रम में अशोक सिंघल जी 


जिसका स्वर संगीत सदा ही शौर्य शक्ति से झंकृत था ,

जिस स्वर का आलाप दिव्य भावों से सहज अलंकृत था,



 ने अपनी बुलन्द आवाज  में एक गीत ‘यह मातृभूमि मेरी, यह पितृभूमि मेरी..’ गाया था


अर्जुन की जिज्ञासा


संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्।


त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन।।18.1।।


का उत्तर देते हुए भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं


यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।


यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्।।18.5।।


यज्ञ दान और तप का त्याग नहीं करना चाहिये

यज्ञ केवल हवनकुंड बनाकर स्वाहा स्वाहा करना ही नहीं है यज्ञ एक भाव है

राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम”


त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये ।

गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ।।


रामकृष्ण परमहंस ने प्रस्तर की मूर्ति में दर्शन किये थे

लेकिन सब तो नहीं कर सकते प्रयास किया जा सकता है हर काम में हाथ नहीं डालना चाहिये कोई किसी काम में कुशल है कोई किसी में


हमें महापुरुषों ज्ञानियों आदि से यही शिक्षा लेनी चाहिये कि जो हमारी शक्ति शौर्य वैभव है सब भारत माता के लिये है



व्यक्ति के पीछे न चलें सिद्धान्त के पीछे चलें व्यक्ति में विकार हो सकते हैं समीक्षात्मक बुद्धि को जाग्रत करें आत्म समीक्षा अवश्य करें 

इसके अतिरिक्त भैया अमित गुप्त भैया विनय वर्मा भैया अनुभव भैया विजय मित्तल जी भैया मनीष कृष्णा का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया आदि जानने के लिये सुनें