30.9.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 30सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं काञ्चनम्।

वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसम्भाषणम्।।

बालीनिग्रहणं समुद्रतरणं, लङ्कापुरीदाहनम्।

पश्चाद् रावण कुम्भकर्णादि हननम् एतद्धि रामायणम्।।



प्रस्तुत है निधि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 30सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/63

निधिः =सद्गुणसंपन्न व्यक्ति


मनुष्य को  कल्पनालोक का आनन्द मिला है 

बहुत सी कल्पनाओं का चित्र स्मृतियों के साथ उसकी संबद्धता भावनाओं के साथ उसका विस्तार अभिव्यक्ति का आनन्द मनुष्य को मिला ईश्वरीय वरदान है


जिसे इसका आनन्द नहीं मिल पाता वह भाग्यहीन है

हम लोग भाग्यशाली हैं सत्कर्मों का प्रदेय है पूर्वजन्म के संस्कार हैं कि ये सदाचार संप्रेषण हमें सात्विक विचारों वाले समाजोन्मुखी जीवन जीते हुए सन्मार्ग की ओर चलने के लिये प्रेरित करते हैं 

और याद दिलाते हैं कि अध्यात्म भी शौर्य प्रमण्डित हो


सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुंदरं

*पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्‌*।

राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं

सीतालक्ष्मणसंयुतं *पथिगतं* रामाभिरामं भजे ॥2॥


*निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह*।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥



रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी॥

रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी॥



राम -कथा के बालकांड में तुलसी ने बहुत से चिन्तनपरक तात्विक विचार प्रस्तुत किये हैं तुलसी की रामकथा अद्वितीय है लिखी तो बहुत से लोगों ने

संवेदनशील व्यक्ति रामकथा के बिना रह ही नहीं सकते क्योंकि राम तो रोम रोम में बसे हैं 

राम -कथा शक्ति शौर्य उत्साह पराक्रम करुणा दया भक्ति प्रेम  सद्चरित्र संयम की एक सुंदर ताली है, जो संदेह रूपी पक्षियों को उड़ा देती है।  राम-कथा कलियुगरूपी तरु को काटने के लिए कुल्हाड़ी है

हे गिरिराजकुमारी! तुम इसे आदरपूर्वक सुनो




लछिमन अति लाघवँ सो नाक कान बिनु कीन्हि।

ताके कर रावन कहँ मनौ चुनौती दीन्हि॥17॥

अरण्य कांड में इसके आगे चलते हैं 


नाक कान बिनु भइ बिकरारा। जनु स्रव सैल गेरु कै धारा॥

खर दूषन पहिं गइ बिलपाता। धिग धिग तव पौरुष बल भ्राता॥1॥


तेहिं पूछा सब कहेसि बुझाई। जातुधान सुनि सेन बनाई॥

धाए निसिचर निकर बरूथा। जनु सपच्छ कज्जल गिरि जूथा॥2॥


नाना बाहन नानाकारा। नानायुध धर घोर अपारा॥

सूपनखा आगें करि लीनी। असुभ रूप श्रुति नासा हीनी॥3॥



लै जानकिहि जाहु गिरि कंदर। आवा निसिचर कटकु भयंकर॥

रहेहु सजग सुनि प्रभु कै बानी। चले सहित श्री सर धनु पानी॥6॥




कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर जट जूट बाँधत सोह क्यों।

मरकत सयल पर लरत दामिनि कोटि सों जुग भुजग ज्यों॥

कटि कसि निषंग बिसाल भुज गहि चाप बिसिख सुधारि कै।

चितवत मनहुँ मृगराज प्रभु गजराज घटा निहारि कै॥


आइ गए बगमेल धरहु धरहु धावत सुभट।

जथा बिलोकि अकेल बाल रबिहि घेरत दनुज॥18॥



प्रभु बिलोकि सर सकहिं न डारी। थकित भई रजनीचर धारी॥

सचिव बोलि बोले खर दूषन। यह कोउ नृपबालक नर भूषन॥1॥


नाग असुर सुर नर मुनि जेते। देखे जिते हते हम केते॥

हम भरि जन्म सुनहु सब भाई। देखी नहिं असि सुंदरताई॥2॥


जद्यपि भगिनी कीन्हि कुरूपा। बध लायक नहिं पुरुष अनूपा॥

देहु तुरत निज नारि दुराई। जीअत भवन जाहु द्वौ भाई॥3॥

इसके उत्तर में भगवान् राम कहते हैं (यही रामत्व हमें धारण करना चाहिये )

हम छत्री मृगया बन करहीं। तुम्ह से खल मृग खोजत फिरहीं॥

रिपु बलवंत देखि नहिं डरहीं। एक बार कालहु सन लरहीं॥5॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गायत्री मन्त्र के विषय में क्या बताया भैया पङ्कज जी की चर्चा क्यों की जानने के लिये सुनें

29.9.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 29 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शौर्य -लिबिङ्कर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 29 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/62


लिबिङ्कर=लेखक



संवादहीनता के कारण संसार हमें बहुत बड़े व्यामोह में डुबो देता है और तब हम शंकालु होकर अपनों पर और अपने पर शंका करने लगते हैं संसार का संवादात्मक स्वरूप रचनात्मक और विवेक की ओर उन्मुख संसारत्व है


हम लोगों का सौभाग्य है कि पूज्य गुरु जी,दीनदयाल जी, अशोक सिंघल जी, बैरिस्टर जी आदि के सान्निध्य से मिले बहुत सारे सद्गुणों के भण्डार आचार्य जी नित्य हमें सद्चिन्तन सद्विचारों सद्प्रयासों की ओर उन्मुख करते हैं



इसलिये निश्शंक भाव के साथ आशान्वित रहते हुए संघर्षों से बिना भयभीत हुए दम्भरहित होकर आत्मविश्वासयुक्त होकर राष्ट्र के प्रति निष्ठावान होते हुए हमें अपने लक्ष्य की ओर चलते रहना चाहिये ये ही रामत्व के लक्षण हैं



आइये इसी रामत्व की चिन्तना के साथ अरण्य कांड में प्रवेश करते हैं


भगति कि साधन कहउँ बखानी। सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी॥

प्रथमहिं बिप्र चरन अति प्रीती। निज निज कर्म निरत श्रुति रीती॥3॥



भगवान् राम सतत साधनारत लक्ष्मण को समझा रहे हैं कि तुम किसी गलत रास्ते पर नहीं चल रहे हो 

भगति जोग सुनि अति सुख पावा। लछिमन प्रभु चरनन्हि सिरु नावा॥

एहि बिधि कछुक दिन बीती। कहत बिराग ग्यान गुन नीती॥1॥


संघर्ष निकट है लेकिन  आत्मशक्ति के कारण परमात्मा के प्रति भक्ति का भाव बहुत प्रबल हो जाता है


जिनके मन में यह भाव अवतरित हो जाता है वो संघर्ष भी आनन्द के साथ करते हैं


मानस में केवल भक्ति नहीं है इसमें शक्ति शौर्य विश्वास संयम साधना आदि बहुत कुछ है

सूपनखा रावन कै बहिनी। दुष्ट हृदय दारुन जस अहिनी॥

पंचबटी सो गइ एक बारा। देखि बिकल भइ जुगल कुमारा॥2॥

रावण साधना भी भोग की सिद्धि के लिये करता है


वह दंभी विद्वान है


रावण ने पाताल लोक को जीतने के लिए अपनी बहन शूर्पणखा के पति विद्युत्जिह्व का वध कर डाला 

और फिर शूर्पणखा को भारत भेज दिया,रक्षा के लिये खर दूषण त्रिशरा को साथ भेज दिया

वह  स्वैराचारी बनी भारत में घूमने लगी


भ्राता पिता पुत्र उरगारी। पुरुष मनोहर निरखत नारी॥

होइ बिकल सक मनहि न रोकी। जिमि रबिमनि द्रव रबिहि बिलोकी॥3॥


रुचिर रूप धरि प्रभु पहिं जाई। बोली बचन बहुत मुसुकाई॥

तुम्ह सम पुरुष न मो सम नारी। यह सँजोग बिधि रचा बिचारी॥4॥


मम अनुरूप पुरुष जग माहीं। देखेउँ खोजि लोक तिहु नाहीं॥

तातें अब लगि रहिउँ कुमारी। मनु माना कछु तुम्हहि निहारी॥5॥


सीतहि चितइ कही प्रभु बाता। अहइ कुआर मोर लघु भ्राता॥

गइ लछिमन रिपु भगिनी जानी। प्रभु बिलोकि बोले मृदु बानी॥6॥



..


लछिमन अति लाघवँ सो नाक कान बिनु कीन्हि।

ताके कर रावन कहँ मनौ चुनौती दीन्हि॥17॥


आज के समय की बात करें तो राम रावण युद्ध कैसे सन्निकट है जानने के लिये सुनें

28.9.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 28 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है विद्योतन आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 28 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/61


विद्योतन =प्रकाश करने वाला


स्थान :उन्नाव



ढोंग का इस समय बोलबाला है भ्रमित होकर संसार की सारी समस्याओं का हल खोजना लगातार जारी है


पढ़ने सीखने समझने मनन करने निदिध्यासन करने के बाद अभ्यस्त होकर सहज ढंग से जीवन के क्षेत्र में बिना दम्भ के विघ्नों को अपनी शक्ति सामर्थ्य के साथ हल करते चलने से जीवन के आनन्द की अनुभूति सहज प्राप्त होने लगती है

लोग रामचरित मानस में बाल कांड उत्तर कांड में तत्त्व ज्ञान चिन्तन के लिये, कथा के आनन्द के लिये अयोध्या कांड में ,शौर्य पराक्रम सफलता से उत्साहित होने के लिये सुन्दर कांड में ,लोक व्यवहार और समस्याओं के हल के लिये किष्किन्धा कांड में जाते हैं अरण्य कांड में

 बहुत उतार चढ़ाव हैं इस में भक्ति, संघर्ष, राम -गीता, नारद संवाद है

आइये इसी कांड में राम गीता भाग में प्रवेश करते हैं


पञ्चवटी अत्यन्त दिव्य और सुरम्य स्थान है भगवान् राम सुन्दर सी पर्णशाला में शान्ति से बैठे हुए हैं कवि का कौशल  देखिये कि ऐसे समय में ध्यान धारणा चिन्तन मनन की बात कर समय का सदुपयोग करने का प्रयास हो रहा है समय के क्षणांश का उपयोग शक्ति बुद्धि विवेक के सामञ्जस्य वाले सात्विक पुरुषों का लक्षण है


ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं। देख ब्रह्म समान सब माहीं॥

कहिअ तात सो परम बिरागी। तृन सम सिद्धि तीनि गुन त्यागी॥4॥


ज्ञान वह है जिसमें  मान आदि दोष न हो एवं जो सबसे समान रूप से ब्रह्म को देखता है। परम वैराग्यवान वही है जो  समस्त सिद्धियों को,तीनों गुणों को तृण के समान त्याग चुका हो



(वनेऽपि दोषाः प्रभवन्ति रागिणां गृहेऽपि पञ्चेन्द्रिय-निग्रहस् तपः ।

अकुत्सिते कर्मणि यः प्रवर्तते त्रिवृत्त-रागस्य गृहं तपोवनम् ॥ ९० ॥)


माया ईस न आपु कहुँ जान कहिअ सो जीव।

बंध मोच्छ प्रद सर्बपर माया प्रेरक सीव॥15॥


धर्म तें बिरति जोग तें ग्याना। ग्यान मोच्छप्रद बेद बखाना॥

जातें बेगि द्रवउँ मैं भाई। सो मम भगति भगत सुखदाई॥1॥


सो सुतंत्र अवलंब न आना। तेहि आधीन ग्यान बिग्याना॥

भगति तात अनुपम सुखमूला। मिलइ जो संत होइँ अनुकूला॥2॥


हमारे ग्रन्थ हमारा साहित्य हमारा धर्म, दर्शन अद्भुत हैं हमें विद्या अविद्या दोनों को जानने की आवश्यकता है

इसी कारण आचार्य जी राम चरित मानस को पढ़ने के लिये परामर्श देते हैं


हमारे अन्दर से यदि तात्विक प्रश्नों के उत्तर निकलने लगें तो स्वाध्याय सफल हो जाता है


समाज इसी कारण संकट में है क्योंकि पूरा जीवन पैसे पर टिका है


इसी समाज में हम अपने अंदर के तत्व को शक्ति को सद्विचार को जान जायें इसी का आचार्य जी प्रतिदिन प्रयास करते हैं

आचार्य जी मोमबत्ती जलाये हुए हैं हम उस प्रकाश में सन्मार्ग की ओर उन्मुख हों तो हमारा कल्याण होगा

27.9.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 27 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सुवेल आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 27 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/60


सुवेल =विनम्र



सुविज्ञ होने के बाद भी अत्यन्त सुवेल आचार्य जी के विशुद्ध पावन भाव हमें मार्गदर्शन दे रहे हैं यह हम लोगों का सौभाग्य है


अपनी सांसारिक यात्रा में हम लोग दृश्यों का आनन्द लेते हुए  सांसारिक प्रपंचों से मुक्ति पाने के उपाय खोजते हुए  अपने पर परमात्मा पर विश्वास करते हुए सन्त्रास को पराजित करते हुए अपने सनातन धर्म पर पूर्ण विश्वास करते हुए शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म को स्वीकारते हुए  सहयोग सामञ्जस्य स्वारस्य का अनुभव करते हुए इस धरा को निशाचरहीन करने का संकल्प लेते हुए आगे चलते रहें इसी का प्रयास आचार्य जी प्रतिदिन करते हैं


आचार्य जी अयोध्या कांड में लक्ष्मण गीता का उल्लेख कर रहे हैं


निषाद के प्रश्न और लक्ष्मण के उत्तर


कैकयनंदिनि मंदमति कठिन कुटिलपन कीन्ह।

जेहिं रघुनंदन जानकिहि सुख अवसर दुखु दीन्ह॥91॥

जब निषाद इष्टदेव को कष्ट में देख रहे हैं



भइ दिनकर कुल बिटप कुठारी। कुमति कीन्ह सब बिस्व दुखारी॥

भयउ बिषादु निषादहि भारी। राम सीय महि सयन निहारी॥1॥

ऐसा भाव है राम के प्रति



तब

बोले लखन मधुर मृदु बानी।




काहु न कोउ सुख दु:ख कर दाता। निज कृत करम भोग सबु भ्राता॥2॥

जोग बियोग भोग भल मंदा। हित अनहित मध्यम भ्रम फंदा॥

जनमु मरनु जहँ लगि जग जालू। संपति बिपति करमु अरु कालू॥3॥


दरनि धामु धनु पुर परिवारू। सरगु नरकु जहँ लगि ब्यवहारू॥

देखिअ सुनिअ गुनिअ मन माहीं। मोह मूल परमारथु नाहीं॥4॥



विवेक उत्पन्न हो और मोह भाग जाये यह है लक्ष्मण गीता



आइये अब राम गीता में प्रवेश करते हैं जहां लक्ष्मण के प्रश्न



(एक बार प्रभु सुख आसीना। लछिमन बचन कहे छलहीना॥)




सुर नर मुनि सचराचर साईं। मैं पूछउँ निज प्रभु की नाईं॥3॥

मोहि समुझाइ कहहु सोइ देवा। सब तजि करौं चरन रज सेवा॥

कहहु ग्यान बिराग अरु माया। कहहु सो भगति करहु जेहिं दाया॥4॥


ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ।

जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ॥14॥


(ज्ञानी जब जिज्ञासु हो जाता है तो अत्यन्त अद्भुत स्थिति होती है)

 के उत्तर में राम जी कहते हैं 


थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई। सुनहु तात मति मन चित लाई॥

मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥1॥


जो नहीं है वह ही माया है 


गो गोचर जहँ लगि मन जाई। सो सब माया जानेहु भाई॥

तेहि कर भेद सुनहु तुम्ह सोऊ। बिद्या अपर अबिद्या दोऊ॥2॥


विद्या और अविद्या में अन्तर है आत्मज्ञान सहज प्राप्त नहीं होता है 


एक दुष्ट अतिसय दुखरूपा। जा बस जीव परा भवकूपा॥

एक रचइ जग गुन बस जाकें। प्रभु प्रेरित नहिं निज बल ताकें॥3॥


ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं। देख ब्रह्म समान सब माहीं॥

कहिअ तात सो परम बिरागी। तृन सम सिद्धि तीनि गुन त्यागी॥4॥

सारा संसार त्रिगुणात्मक है


माया ईस न आपु कहुँ जान कहिअ सो जीव।

बंध मोच्छ प्रद सर्बपर माया प्रेरक सीव॥15॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने देवेन्द्र सिकरवार द्वारा लिखित अनसंग हीरोज इन्दु से सिन्धु तक पुस्तक की चर्चा की, 100 ग्राम के लिये क्या कटाजुज्झ हुआ जानने के लिये सुनें

26.9.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 26 सितम्बर 2022(नवरात्र प्रारम्भ ) का सदाचार संप्रेषण

 सो मायाबस भयउ गोसाईं। बँध्यो कीर मरकट की नाईं॥

जड़ चेतनहि ग्रंथि परि गई। जदपि मृषा छूटत कठिनई॥2॥


प्रस्तुत है प्रत्ययकारक आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 26 सितम्बर 2022(नवरात्र प्रारम्भ )

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सार -संक्षेप 2/59


प्रत्ययकारकः =विश्वास पैदा करने वाला



आत्म का विस्तार जब व्यवहार में प्रकट होता है तब समाज की व्यवस्थाएं हमारे मनोनुकूल बनती हैं इसी मनोनुकूल वातावरण से हम उत्साहित होते हैं ऐसा वातावरण न हो तो हम कुंठित होते हैं 




सांकेतिक व्यवहार /कार्य भी अत्यन्त उपयोगी होते हैं इनसे सिलसिला संयुत रहता है जैसे

कल संपन्न हुआ वार्षिक अधिवेशन जिसे वार्षिक सम्मेलन कहा जाये तो ज्यादा उचित होगा क्योंकि यह अल्पकाल का था चिन्तन अभिव्यक्ति उत्साह का मिलाजुला स्वरूप अधिवेशन है इस सम्मेलन की समीक्षा बैठक अवश्य करें जो सदस्य नहीं आ पाये उनका कुशल क्षेम पूछें


हमारे यहां शिक्षार्थियों को कभी समाज  संपोषित किया करता था ज्ञान और व्यवहार का सामञ्जस्य हमारे देश की शिक्षा की थाती है



आइये अरण्य कांड में प्रवेश करते हैं


चले राम मुनि आयुस पाई, तुरतहि पंचवटी नियराई।



पंचवटी गोदावरी के उद्गम स्थान त्र्यंम्बकेश्वर से लगभग  32 कि.मी.दूर है 


पंचानां वटानां समाहार इति पंचवटी'। ये पांच वट हैं अशोक अश्वत्थ आमलक वट और विल्ब


गङ्गे ! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति! नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।

स्नान करते समय यह मन्त्र हम लोग बोलते हैं सन्ध्योपासन में संपूर्ण आर्यावर्त का चिन्तन करते हैं

ऐसी विलक्षण संस्कृति है हमारी , हम लोग अपने को पहचानने की कोशिश करें


गीधराज सै भेंट भइ बहु बिधि प्रीति बढ़ाइ।

गोदावरी निकट प्रभु रहे परन गृह छाइ॥13॥


जटायुं जी भगवान् राम को आश्वस्त करते हैं कि आप लोग मेरी छत्रछाया में सुरक्षित हैं अपने लोगों की छाया में परिवार भी सुरक्षित रहते हैं


जब ते राम कीन्ह तहँ बासा। सुखी भए मुनि बीती त्रासा॥

गिरि बन नदीं ताल छबि छाए। दिन दिन प्रति अति होहिं सुहाए॥1॥


खग मृग बृंद अनंदित रहहीं। मधुप मधुर गुंजत छबि लहहीं॥

सो बन बरनि न सक अहिराजा। जहाँ प्रगट रघुबीर बिराजा॥2॥


एक बार प्रभु सुख आसीना। लछिमन बचन कहे छलहीना॥

सुर नर मुनि सचराचर साईं। मैं पूछउँ निज प्रभु की नाईं॥3॥



मोहि समुझाइ कहहु सोइ देवा। सब तजि करौं चरन रज सेवा॥

कहहु ग्यान बिराग अरु माया। कहहु सो भगति करहु जेहिं दाया॥4॥



ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ।

जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ॥14॥



थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई। सुनहु तात मति मन चित लाई॥

मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥1॥


इसके बाद राम गीता प्रारम्भ होगी


भैया दृश्यमुनि, श्री योगेन्द्र भार्गव, भैया डा अमित गुप्त

भैया डा पङ्कज

 भैया मनीष कृष्णा, भैया विधुकांत का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया आदि भी जानने के लिये सुनें

25.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 25 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 इक्ष्वाकु वंश प्रभवो रामो नाम जनैः श्रुत:......


दंडक बन प्रभु कीन्ह सुहावन। जन मन अमित नाम किए पावन॥

निसिचर निकर दले रघुनंदन। नामु सकल कलि कलुष निकंदन॥



प्रस्तुत है ज्ञान -महिर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25 सितम्बर 2022

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सार -संक्षेप 2/58


महिरः =सूर्य


आचार्य जी सदैव कामना करते हैं कि हमारे पास धन से भरा भण्डार हो लेकिन मां सरस्वती की कृपा भी बनी रहे इसके लिये हमें अध्ययन और स्वाध्याय की ओर उन्मुख होना चाहिये  वैचारिक राक्षसों के चंगुल में हम इतना फंसे हुए हैं कि हमें  अपने धर्म अपनी संस्कृति पर ही अविश्वास रहता है इसी अविश्वास को दूर करने के लिये आचार्य जी का नित्य यह उद्बोधन अद्वितीय प्रयास है


नई पीढ़ी को   बिना  पराजय वाले संकट में डाले शक्ति विश्वास से उत्साहित और परिपुष्ट करने की आवश्यकता है

उसमें मनुष्यत्व का लोप न हो इसका भी हमें ध्यान देना होगा


शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन सुरक्षा संगठन राष्ट्र समाज परिवार के सम्बन्ध में जो भी सात्विक विचार हमारे अन्दर आयें उनका हम लोग प्रसार करें ताकि अन्य लोगों को उनका लाभ मिले



विचारों का प्रसार समाज सेवा का एक आधारभूत तत्त्व है हमें अपने सात्विक विचार किसी भी माध्यम से प्रकट अवश्य करने चाहिये उन्हें अपने अन्दर रखने से कोई लाभ नहीं


इस लेखन के वरदान का दुरुपयोग नहीं करना चाहिये


भक्ति को पंगु नहीं होना चाहिये भक्ति में शक्ति शौर्य पराक्रम संयम स्वाध्याय समाजोन्मुखी साधना का समावेश होना चाहिये


आचार्य जी विद्यालय में भी रामकथा सुनाते थे और उन्होंने  श्री हरिशंकर शर्मा का उल्लेख करते हुए वह प्रसंग भी बताया कि रामकथा का वहां उन्होंने प्रारम्भ किस कारण किया




आइये अरण्य कांड में प्रवेश करते हैं

अगस्त्य मुनि,जिनसे दैत्य वर्ग बहुत आतंकित रहता है इसी कारण अधिकतर उपद्रव हमें उत्तर भारत में मिलते हैं , के आश्रम में 


( सगर की इक्कीसवीं पीढ़ी के भगवान् राम भरद्वाज से मार्ग पूछते हैं बाल्मीकि से अस्थायी निवास पूछते हैं और यहां अगस्त्य मुनि से पूछ रहे हैं ) 


अब सो मंत्र देहु प्रभु मोही। जेहि प्रकार मारौं मुनिद्रोही॥

मुनि मुसुकाने सुनि प्रभु बानी। पूछेहु नाथ मोहि का जानी॥2॥

....

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।

येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

.....



यह आदित्य हृदय मन्त्र अत्यन्त अद्भुत परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला  है । इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है ।  इससे समस्त पापों का नाश हो जाता है । यह चिंता, शोक, नकारात्मक सोच को मिटाने और आयु बढ़ाने वाला उत्तम मन्त्र है


बताते चलें 

हनुमन्नाटक संवत् १६२३ में संस्कृत में  कवि हृदयराम द्वारा रचित प्रभु राम के जीवन पर आधारित धार्मिक ग्रन्थ है। इसे गुरु गोविन्द सिंह हमेशा अपने पास रखते थे।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज श्रीवास्तव, श्री भानु प्रताप का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

24.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 24 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है नक्तारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/57


नक्तम् = रात /अंधकार



भारतीय संस्कृति गुरु शिष्य परम्परा की संस्कृति है

हम लोग कहते हैं


ॐ सह नाववतु ।

सह नौ भुनक्तु ।

सह वीर्यं करवावहै ।

तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥


दैहिक दैविक भौतिक समस्याओं के शमन की कामना करते हैं


बालक जन्म लेता है तो मां उसकी प्रथम गुरु होती है उसका प्रथम कर्तव्य है उसकी रक्षा करना


मां के माध्यम से वह फिर संसार पहचानता है


ईश्वर की प्रेरणा से प्राप्त इन संप्रेषणों का उद्देश्य होता है कि हम लोग प्रेमाधारित संगठन युगभारती के माध्यम से समाजोन्मुखी जीवन जीने का संकल्प लें उसे कायम रखें


वेद ब्राह्मण ग्रंथ के बाद आरण्यक हैं जो दार्शनिक स्तर पर लिखे गये हैं यज्ञ दान तप का जीवन हमारे यहां बहुत महत्त्व का है यज्ञ का अर्थ है राष्ट्र समाज सृष्टि परमात्मा के लिये देना


रावण

उत्तम कुल पुलस्ति कर नाती। सिव बिंरचि पूजेहु बहु भाँती॥

बर पायहु कीन्हेहु सब काजा। जीतेहु लोकपाल सब राजा॥

  ऋषियों का पुत्र होने के बाद भी साधुत्व को नष्ट करने में लगा हुआ था


इन जैसों के विनाश के लिये ही परमात्मा किसी न किसी रूप में आता है


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।


अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।


हम सबमें परमात्मा का स्वरूप विद्यमान है केवल उसके जाग्रत होने की आवश्यकता है




सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुंदरं

*पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्‌*।

राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं

सीतालक्ष्मणसंयुतं *पथिगतं* रामाभिरामं भजे ॥2॥


*निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह*।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥


हमें अपने अन्दर राम के रामत्व को प्रवेश कराने की आवश्यकता है भगवान् राम राजा के घर उत्पन्न हुए लेकिन उनके अन्दर एक चिन्तना व्याप्त है


रावण को समाप्त करना है लेकिन उसके पहले रावण रूपी स्थाणु की शाखाएं काटने में लगे हुए हैं


नाथ कोसलाधीस कुमारा। आए मिलन जगत् आधारा॥

राम अनुज समेत बैदेही। निसि दिनु देव जपत हहु जेही॥4॥


ऋषि अगस्त्य तपोनिष्ठ यशस्वी सिद्ध हैं दक्षिण में इनका बहुत सम्मान है

अगस्त्य ऋषि की शिक्षा के आधार पर ही प्रभु राम ने रावण का वध किया है



सुनत अगस्ति तुरत उठि धाए। हरि बिलोकि लोचन जल छाए॥

मुनि पद कमल परे द्वौ भाई। रिषि अति प्रीति लिए उर लाई॥5॥


तब रघुबीर कहा मुनि पाहीं। तुम्ह सन प्रभु दुराव कछु नाहीं॥

तुम्ह जानहु जेहि कारन आयउँ। ताते तात न कहि समुझायउँ॥1॥


अब सो मंत्र देहु प्रभु मोही। जेहि प्रकार मारौं मुनिद्रोही॥

मुनि मुसुकाने सुनि प्रभु बानी। पूछेहु नाथ मोहि का जानी॥2॥


है प्रभु परम मनोहर ठाऊँ। पावन पंचबटी तेहि नाऊँ॥

दंडक बन पुनीत प्रभु करहू। उग्र साप मुनिबर कर हरहू॥8॥


गीधराज सै भेंट भइ बहु बिधि प्रीति बढ़ाइ।

गोदावरी निकट प्रभु रहे परन गृह छाइ॥13॥


वहाँ जटायु से भेंट हुई। उसके साथ  प्रेम बढ़ाकर प्रभु  राम गोदावरी के पास पर्णकुटी में रहने लगे

23.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 23 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।

तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥ 31॥




प्रस्तुत है ज्ञान -क्षौणिप्राचीर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/56


क्षौणिप्राचीरः =समुद्र


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥



वन -पथ पर गमन करते हुए भगवान् श्री राम  ने भुजा उठाकर प्रण किया कि मैं मही (पृथ्वी) को राक्षसों से रहित कर दूँगा....


इस संसार में वन, धन, जन के साथ मन भी है और सब के साथ संतुलन करता हुआ संघर्ष करता हुआ मनुष्य अपनी यात्रा करता है


अरण्य कांड में कथाओं में वैविध्य है ऐसे ऋषियों, जिनके श्राप से रावण भी भयभीत है, के संपर्क, प्रेम, आत्मीयता, तपस्या का समावेश है


कबन्ध के कारण शरभंग के आश्रम बहुत लोग जाते नहीं हैं फिर कबन्ध नष्ट होता है



जानतहूँ पूछिअ कस स्वामी। सबदरसी तुम्ह अंतरजामी॥

निसिचर निकर सकल मुनि खाए। सुनि रघुबीर नयन जल छाए॥4॥


रामकथा के माध्यम से तुलसी ने सामाजिक जागरण का भी संकेत किया

ऋषि मुनि तपस्या में लगे हैं संगठन में नहीं लगे हैं जब कि संगठन की आवश्यकता है 


मुनि अगस्ति कर सिष्य सुजाना। नाम सुतीछन रति भगवाना॥

मन क्रम बचन राम पद सेवक। सपनेहुँ आन भरोस न देवक॥1॥


प्रभु आगवनु श्रवन सुनि पावा। करत मनोरथ आतुर धावा॥

हे बिधि दीनबंधु रघुराया। मो से सठ पर करिहहिं दाया॥2॥

सुतीक्ष्ण जिज्ञासा व्यक्त कर रहे हैं कि क्या दीनबंधु राम मुझ शठ पर भी दया करेंगे


नहिं सतसंग जोग जप जागा। नहिं दृढ़ चरन कमल अनुरागा॥

एक बानि करुनानिधान की। सो प्रिय जाकें गति न आन की॥4॥


होइहैं सुफल आजु मम लोचन। देखि बदन पंकज भव मोचन॥

*निर्भर प्रेम* मगन मुनि ग्यानी। कहि न जाइ सो दसा भवानी॥5॥


मुनिहि राम बहु भाँति जगावा। जाग न ध्यान जनित सुख पावा॥

भूप रूप तब राम दुरावा। हृदयँ चतुर्भुज रूप देखावा॥9॥


आचार्य जी ने ध्यान जनित सुख के लिये स्वामी विवेकानन्द का उदाहरण दिया कि ध्यानमग्न होने पर उनके ऊपर सांप चढ़ गया और उन्हें पता नहीं चला


परेउ लकुट इव चरनन्हि लागी। प्रेम मगन मुनिबर बड़भागी॥

भुज बिसाल गहि लिए उठाई। परम प्रीति राखे उर लाई॥11॥


तब मुनि हृदयँ धीर धरि गहि पद बारहिं बार।

निज आश्रम प्रभु आनि करि पूजा बिबिध प्रकार॥10॥


एवमस्तु करि रमानिवासा। हरषि चले कुंभज रिषि पासा॥

बहुत दिवस गुर दरसनु पाएँ। भए मोहि एहिं आश्रम आएँ॥1॥



शक्ति के पुञ्ज कुंभज (कुम्भ से जन्म लेने के कारण )ऋषि अर्थात् अगस्त्य मुनि का तथ्यपूर्ण मिलन है l

ऐसे विलक्षण शक्ति के पुञ्ज ऋषियों के होते हुए रावण क्यों विकसित हो रहा था इस  रहस्य का उद्घाटन आचार्य जी आगे करेंगे

22.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 22 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥


श्री रामजी ने भुजा उठाकर प्रण किया कि मैं पृथ्वी को राक्षसों से रहित कर दूँगा। फिर समस्त मुनियों के आश्रमों में जाकर उनको दर्शन एवं भाषण का सुख दिया

*इसी को नेतृत्व का आत्मविश्वास कहते हैं यह राम के चरित्र में हर जगह मिलेगा और इसी को आत्मसात् करने की हमें आवश्यकता है*


प्रस्तुत है आयुतनेत्रिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22 सितम्बर 2022

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सार -संक्षेप 2/55



आयुतनेत्रिन् =हजार आंखों वाला



इस स्मरणात्मक संसार में हम सांसारिक प्रपंचों में उलझे लोगों को मङ्गलमति प्रदान करने वाली और आत्मानन्द की अनुभूति कराने वाली आचार्य जी की वाणी ध्यान से सुनने का अब अभ्यास होने लगा है


इस समय पितृपक्ष चल रहा है 25 सितम्बर को पितृविसर्जनी अमावस्या है 26 से नवरात्र प्रारम्भ  जिसके नौवें दिन सरस्वती पूजन (आश्विन शुक्ल नवमी )होता है, हो रहे हैं


हिमाद्रि से हिन्द महासागर, अटक से कटक तक फैली यह देवभूमि हमारी जन्मस्थली है  त्यागियों तपस्वियों ऋषियों मनीषियों के प्रति हम कृतज्ञ रहें सदाचार का मूल उद्देश्य यह भी है


हमारे विद्यालय का ध्येय वाक्य


" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "


भी यही याद दिलाता है


श्रुतिः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियमात्मनः ।

 एतच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाद्धर्मस्य लक्षणम् ।


हमें आत्मा को जो प्रिय है उसे पहचानने का प्रयास करना चाहिये


इसी आत्म को तुलसीदास ने पहचाना



भगवान् राम को अपना आत्मस्वरूप देखकर उनके कल्याणकारी शौर्यप्रमंडित जीवन को सामने रखकर एक रचना कर दी


तुलसी से यह किसने कराया यह संसार कौन चला रहा है इस कौन की समझ ही हो जाए तो आनन्द ही आनन्द है


सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥

तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन॥2॥


(अयोध्या कांड)



आइये अब अरण्य कांड में प्रवेश करते हैं


तन पुलक निर्भर प्रेम पूरन नयन मुख पंकज दिए।

मन ग्यान गुन गोतीत प्रभु मैं दीख जप तप का किए॥

जप जोग धर्म समूह तें नर भगति अनुपम पावई।

रघुबीर चरित पुनीत निसि दिन दास तुलसी गावई॥


मुनि पद कमल नाइ करि सीसा। चले बनहि सुर नर मुनि ईसा॥

आगें राम अनुज पुनि पाछें। मुनि बर बेष बने अति काछें॥1॥


अत्रि मुनि के चरणों में सिर नवाकर देवताओं , मनुष्यों और मुनियों के स्वामी श्री रामजी आगे चले उनके पीछे छोटे भाई लक्ष्मणजी हैं। दोनों ही मुनियों का सुंदर वेष बनाए अत्यन्त सुशोभित दिख रहे हैं


.राम दिलीप दशरथ जनक जैसे ही रहते यदि वो वन वन न जाते

वो भगवान् इसी कारण कहलाये जब उन्होंने वन वन राख छानी भारतवर्ष की उपासना की

उपासना बहुत कठोर होती है


उभय बीच श्री सोहइ कैसी। ब्रह्म जीव बिच माया जैसी॥

सरिता बन गिरि अवघट घाटा। पति पहिचानि देहिं बर बाटा॥2॥


सीता यहां श्री हो गई हैं क्योंकि अनुसूया के दिये दिव्यवस्त्र धारण करे हुए हैं


जहँ जहँ जाहिं देव रघुराया। करहिं मेघ तहँ तहँ नभ छाया॥

मिला असुर बिराध मग जाता। आवतहीं रघुबीर निपाता॥3॥


पुरुषार्थी के लिये प्रकृति सदैव अनुकूल रहती है

सकारात्मक सोच वाले कभी अभाव की बात नहीं करते



राम ने विराध राक्षस को अपने रास्ते से ऐसे हटा दिया जैसे दूध से मक्खी


आचार्य जी ने सरभंग आश्रम की चर्चा की

सरभंग आश्रम मध्य प्रदेश में स्थित एक धार्मिक स्थल है। यह चित्रकूट के बहुत करीब  है। सरभंगा आश्रम सतना जिले में  स्थित है



ऋषि सरभंग ने अपने अंतिम समय के दौरान श्री राम के दर्शन के लिए अपने प्राणों को अपने शरीर में रोक  रखा था और ऋषि सरभंग  ने श्री राम जी के दर्शन के बाद ही अपने प्राण त्यागे थे।



तुरतहिं रुचिर रूप तेहिं पावा। देखि दुखी निज धाम पठावा॥

पुनि आए जहँ मुनि सरभंगा। सुंदर अनुज जानकी संगा॥4॥


कह मुनि सुनु रघुबीर कृपाला। संकर मानस राजमराला॥

जात रहेउँ बिरंचि के धामा। सुनेउँ श्रवन बन ऐहहिं रामा॥1॥



जोग जग्य जप तप ब्रत कीन्हा। प्रभु कहँ देइ भगति बर लीन्हा॥

एहि बिधि सर रचि मुनि सरभंगा। बैठे हृदयँ छाड़ि सब संगा॥4॥


शरीर के प्रति लगाव तो होना चाहिये आसक्ति नहीं



जर्जर शरीर को भाव से त्याग देना चाहिये


संन्यास बौद्धिक विकास और आत्मिक शान्ति के लिये होता है



सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम।

मम हियँ बसहु निरंतर सगुनरूप श्री राम॥8॥



अस कहि जोग अगिनि तनु जारा। राम कृपाँ बैकुंठ सिधारा॥

ताते मुनि हरि लीन न भयऊ। प्रथमहिं भेद भगति बर लयऊ॥1॥

21.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 21 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है तकिलारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21 सितम्बर 2022

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सार -संक्षेप 2/54


तकिल =जालसाज, धूर्त 

अरि =  शत्रु



नित्य ही आचार्य जी सांसारिक कार्यों में रत हम मानस पुत्रों के लिये कल्याणकारी, हमें उत्साहित करने वाले,विचारों को प्रखर करने वाले और मन को सुस्थिर करने वाले वचन कहते हैं अभिभाव्यों के प्रति उनकी सचेत रहने वाली दृष्टि अभिभाव्यों को मार्गान्तरण से रोकती है



दीनदयाल विद्यालय की एक समय रही   विशिष्ट पवित्रता का चित्र आचार्य जी ने आचार्य श्री जे पी (जागेश्वर प्रसाद जी )जी के प्रसंग (सन् 1982/83 का समय )के माध्यम से खींच दिया


विद्यालय में पैर रखते समय श्री जे पी जी को एक विशेष अनुभूति होती थी एक रिक्शा चालक ने उनसे धन नहीं लिया और उसका कारण बताया कि वो जब भी इस विद्यालय में किसी को छोड़ता है तो उससे धन नहीं लेता है


ऐसी पवित्रता गुरु जी बैरिस्टर साहब बूजी अशोक सिंघल जी आचार्यों की तपस्या का प्रतिफल थी

हमें इसकी अनुभूति होनी चाहिये


आइये अरण्य कांड में प्रवेश करते हैं अरण्य कांड उस सांसारिक लक्ष्य की पूर्ति की भूमिका है जिसके लिये प्रभु राम इस धरती पर  अवतरित हुए हैं


सुनु सीता तव नाम सुमिरि नारि पतिब्रत करहिं।

तोहि प्रानप्रिय राम कहिउँ कथा संसार हित॥5 ख॥



कवियों का कल्पनालोक भावजगत की अभिव्यक्ति है सतीत्व के प्रति कवि की अद्भुत कल्पना के उदाहरण स्वरूप आचार्य जी ने निम्नांकित श्लोक उद्धृत किया


सुतं पतन्तं प्रसमीक्ष्य पावके

न बोधयामास पतिं पतिव्रता ॥

पतिव्रताशापभयेन पीडितो

हुताशनश्चन्दनपङ्कशीतलः ॥

(अपने पुत्र को अग्नि में गिरते हुए देखकर भी पतिव्रता स्त्री ने अपने पति को नहीं जगाया और उसकी सेवा में रत रही। ऐसी पतिव्रता से डरकर अग्नि भी  चन्दन की तरह  शीतल हो गयी।)


सुनि जानकीं परम सुखु पावा। सादर तासु चरन सिरु नावा॥

तब मुनि सन कह कृपानिधाना। आयसु होइ जाउँ बन आना॥1॥


धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥

बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना। अंध बधिर क्रोधी अति दीना॥4॥


यह एक पक्षीय दिख रहा है लेकिन पद्मपुराण के सृष्टिखंड में पापी पुरुष का भी वर्णन है


सुनि जानकीं परम सुखु पावा। सादर तासु चरन सिरु नावा॥

तब मुनि सन कह कृपानिधाना। आयसु होइ जाउँ बन आना॥1॥


सीता  ने यह सब सुनकर परम सुख पाया और आदरपूर्वक अनुसूया के चरणों में सिर झुकाया  तब यशस्वी चर्चित विनम्र  राम ने मुनि अत्रि से कहा- आज्ञा हो तो अब दूसरे वन में जाऊँ


जासु कृपा अज सिव सनकादी। चहत सकल परमारथ बादी॥

ते तुम्ह राम अकाम पिआरे। दीन बंधु मृदु बचन उचारे॥3॥


केहि बिधि कहौं जाहु अब स्वामी। कहहु नाथ तुम्ह अंतरजामी॥

अस कहि प्रभु बिलोकि मुनि धीरा। लोचन जल बह पुलक सरीरा॥5॥


ऋषि भावुक होते हैं तो अद्भुत स्थिति होती है


आचार्य जी ने भावुक वशिष्ठ का भी उल्लेख किया

हमें समय निकालकर मानस में अवश्य ही प्रवेश करना चाहिये इस मानस को अपने मानस में हमें उतार लेना चाहिये


रामकथा मानस में जो पिरोई गई है वह इस संसार के साथ सात्विक चिन्तन मनन निदिध्यासन अध्यात्म को संयुत कर देती है

20.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 20 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सहस्वत् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20 सितम्बर 2022

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सार -संक्षेप 2/53


सहस्वत् =समर्थ

भावनाएं जब अभिव्यक्ति पा जाती हैं तो उस बात का संतोष निराला होता है और जिनकी भावनाएं अभिव्यक्ति नहीं पाती वो कुण्ठित होते हैं इसलिये अपनी भावनाएं अभिव्यक्ति पा जाएं इसके हमें मार्ग खोजने चाहिये 


अरण्य कांड में  ऋषि अत्रि (अर्थात् त्रिगुणातीत =सत रज तम से विमुक्त ) की पत्नी अनुसूया (जिसमें असूया अर्थात् ईर्ष्या डाह न हो ) (  प्रजापति कर्दम और देवहूति की नौ कन्याओं में से एक ) और   सीता का मिलन अति महत्त्वपूर्ण और शिक्षाप्रद है


अनुसुइया के पद गहि सीता। मिली बहोरि सुसील बिनीता॥

रिषिपतिनी मन सुख अधिकाई। आसिष देइ निकट बैठाई॥1॥


दिब्य बसन भूषन पहिराए। जे नित नूतन अमल सुहाए॥

कह रिषिबधू सरस मृदु बानी। नारिधर्म कछु ब्याज बखानी॥2॥

दिव्य शब्द बहुत अद्भुत है दिव्य में आध्यात्मिकता है दिव्य में दैवीस्वरूप आता है और इससे इतर भव्य शब्द है जिसमें भौतिकता है भौतिकता का हमारे यहां कभी उपासन नहीं हुआ 

दिव्यता उसमें होती है जिसमें मालिन्य, क्षरण, दोष, दूषण नहीं होता है जहां दिव्यता होती है वहां सब कुछ संभव है 

ऐसे दिव्य वस्त्र मां सीता को अनुसूया ने दिये


मन्दाकिनी नदी किसका प्रतिफल है इसको आचार्य जी ने विस्तारपूर्वक बताया हमारी परम्परा के जो भी स्वरूप हैं हमें उनपर विश्वास करना चाहिये उन पर हम राष्ट्रभक्तों का अविश्वास दुर्भाग्यपूर्ण है


हमें तो इस परम्परा की विश्वासपूर्वक पूजा करनी चाहिये ताकि इस सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा हो सके


आज कल स्त्री पुरुष का प्रतिस्पर्धात्मक जीवन हो गया है ज्यादा प्रतिस्पर्धा से विनाश होता है

सांख्य दर्शन में प्रकृति पुरुष का विस्तार से चिन्तन है

निर्विकल्प समाधि से उत्थित हुआ पुरुष स्वर के बाद प्रकृति की रचना करता है और फिर उस पर ही आश्रित हो जाता है

प्रकृति उसकी प्रेमिका है 


आचार्य जी ने पातिव्रत्य धर्म और CONTRACT में अन्तर बताया मां अनुसूया नारी धर्म को विस्तार से सीता को समझाती हैं


मातु पिता भ्राता हितकारी। मितप्रद सब सुनु राजकुमारी॥

अमित दानि भर्ता बयदेही। अधम सो नारि जो सेव न तेही॥3॥

पति आजीवन पत्नी का सहयोग करता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा पंकज श्रीवास्तव जी की आज क्या बात बताई  श्रद्धा का निवेदन और शक्ति की उपासना क्या है जानने के लिये सुनें


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19.9.22

श्री ओम शंकर जी का दिनांक 19 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 .प्रस्तुत है संवित्ति -सागर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19 सितम्बर 2022

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सार -संक्षेप 2/52


संवित्ति =ज्ञान

आइये सदाचार वेला में प्रवेश करते हैं  शरीर संसार भूलकर आनन्द प्राप्त करने के लिये


तापस बेष बिसेषि उदासी। चौदह बरिस रामु बनबासी॥

सुनि मृदु बचन भूप हियँ सोकू। ससि कर छुअत बिकल जिमि कोकू॥2॥


यदि राम राज्य करने लगेंगे तो रावण को कौन मारेगा

इसलिये अद्भुत लीला रची गई राम के वन जाने के लिये दोषी कोई नहीं मां कैकयी सर्वथा निर्दोष हैं

भगवान् ने निषाद के सामने भी चौदह वर्ष वन में काटने की बात कही


अरण्य कांड में प्रवेश करते हैं


अरण्य कांड में बहुत उतार चढ़ाव हैं इस में भक्ति, संघर्ष, राम -गीता, नारद संवाद है


इसी कांड में भगवान् राम दिखाते हैं कि वो अकेले ही बहुत कुछ कर सकते हैं



अनुसुइया के पद गहि सीता। मिली बहोरि सुसील बिनीता।।

रिषिपतिनी मन सुख अधिकाई। आसिष देइ निकट बैठाई।।

दिब्य बसन भूषन पहिराए। जे नित नूतन अमल सुहाए।।

कह रिषिबधू सरस मृदु बानी। नारिधर्म कछु ब्याज बखानी।।

मातु पिता भ्राता हितकारी। मितप्रद सब सुनु राजकुमारी।।

अनुसूया सीता माता को उपदेश देती हैं तपस्या से प्राप्त दिव्य वस्त्र देती हैं जिनमें मल नहीं लगेगा शील की रक्षा होगी 

नारी धर्म क्या है इसे बताया

यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है

हमें इसे समझना चाहिये 

पश्चिम की बयार कितनी घातक रही है जिसके व्यामोह में हम फंसते चले गये और हम इनके महत्त्व से अनजान रहे 


सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुन्दरं

पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्

राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं

सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभिरामं भजे।।2।।


भगवान् राम के दोनों हाथों में धनुष बाण हैं जो अत्यन्त आवश्यक हैं एक ओर तो पीतांबर पहने हैं लेकिन इसके बाद भी धनुष बाण धारण किये हुए हैं

ऐसे राम का भक्तिपूर्वक हम लोग ध्यान करें


विलासिनी दुष्टा शूर्पणखा जब राम को पथ से डिगाने की कोशिश करती है वहां संयम सात्विकता कौशल की परीक्षा हो जाती है


ताड़का का तो वध हुआ लेकिन शूर्पणखा के नाक कान कटते हैं



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अत्यन्त मृदु स्वभाव के स्व आचार्य हेमन्त जी को श्रद्धाञ्जलि दी

भैया विजय मित्तल भैया सौरभ राय का उल्लेख क्यों हुआ 

राजीव दीक्षित का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिये सुनें

18.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 18 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अध्यात्म -सत्त्र आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18 सितम्बर 2022

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सार -संक्षेप 2/51


सत्त्रम् =घर


परमात्मा की कृपा से हम लोगों को यह सुखद संयोग मिला है कि सदाचार संप्रेषण रूपी प्रचण्ड साधना लगातार चल रही है


हम लोगों में सदाचार वेलाओं के माध्यम से शक्ति ऊर्जा उत्साह बुद्धि विवेक चैतन्य सद्विचार आदि भरने का काम अबाधित चल रहा है और इसी कारण हम लोग  इनकी प्रतीक्षा करते हैं और इनसे उत्साहित आनन्दित होते हैं और यही कारण है कि हम लोगों का इनमें मन लगता है


हम यह भी अनुभव करें कि ईश्वर ने हमें कर्म का मङ्गल वरदान दिया है


यह साधना खंडित न हो इसलिये साधना से हमें प्राप्त परिष्करणों पर न आनंदित हों न भ्रमित हों

भैया शौर्यजीत ने बताया कि आचार्य जी द्वारा लिखे दोहों की पुस्तक तैयार हो गई है


आचार्य जी को एक डायरी मिली जिसमें सन् 2017 में भैया गोपाल जी के आग्रह पर आचार्य जी ने अपने लिखे  लगभग 850 दोहों में 159 दोहे और जोड़ दिये थे ताकि वो लगभग एक हजार हो जायें

इसी डायरी में एक मुक्तक है



तुम्हारा प्यार गंगाजल

 सजल श्रद्धा हिमालय सी

अडिग विश्वास की भाषा

 मुझे लगती शिवालय सी

अभी तक थे कहां पर तुम

नहीं मैं जान पाया सच

नहीं इस देश की सरिता

 बनी होती महालय सी



धर्म के तत्त्व को समझते हुए हम लोग पूर्ण विश्वास करते हैं कि यह धरती परम पवित्र शौर्य शक्ति संपन्न है और यहां से एक बार फिर दुष्टों का सफाया होगा



अब हम लोग मानस में प्रवेश करें

कर्ममय जीवन का प्रारम्भ अरण्य कांड में है


पुर नर भरत प्रीति मैं गाई। मति अनुरूप अनूप सुहाई॥

अब प्रभु चरित सुनहु अति पावन। करत जे बन सुर नर मुनि भावन॥1॥


एक बार चुनि कुसुम सुहाए। निज कर भूषन राम बनाए॥

सीतहि पहिराए प्रभु सादर। बैठे फटिक सिला पर सुंदर॥2॥


सुरपति सुत धरि बायस बेषा। सठ चाहत रघुपति बल देखा॥

जिमि पिपीलिका सागर थाहा। महा मंदमति पावन चाहा॥3॥


भगवान् राम आगे बढ़ जाते हैं  क्योंकि उन्हें तो जनमानस को शिक्षा देनी है कि मनुष्य  पुरुषार्थ करने वाला एक यात्री है मनुष्य संकटों का समाधान देखता है


विश्वास प्रेम भक्ति शक्ति संयम विवेक उत्साह साधना अनुरक्ति विरक्ति की यात्रा करने वाले राम भगवान् इसीलिये हमारे आदर्श हैं और इसीलिये मानस से हमें लाभ प्राप्त करना चाहिये


पुलकित गात अत्रि उठि धाए। देखि रामु आतुर चलि आए॥

करत दंडवत मुनि उर लाए। प्रेम बारि द्वौ जन अन्हवाए॥3॥


अत्रि मुनि समझ गये कि भगवान् राम वन में चौदह वर्ष काटने नहीं आये हैं वे जीवन की समस्याओं को छांटने आये हैं


निकाम श्याम सुंदरं। भवांबुनाथ मंदरं॥

प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि दोष मोचनं॥2॥


दिनेश वंश मंडनं। महेश चाप खंडनं॥

मुनींद्र संत रंजनं। सुरारि वृंद भंजनं॥4॥


ये स्तुतियां अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं



धर्म मार्ग से हम लोगों को कर्म मार्ग की ओर चलना चाहिये

17.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 17 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अमृतवाक् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17 सितम्बर 2022

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सार -संक्षेप 2/50


अमृतवाक् =अमृत जैसे मधुर वचन बोलने वाला



यह सदाचार संप्रेषण लगातार चल रहा है यह परमात्मा की एक व्यवस्था है और यह नैत्य हम लोगों का सौभाग्य है


हम लोगों को एक दूसरे से जुड़ने का अवसर तो यह प्रदान करता ही है भारतीय जीवन दर्शन में रचने बसने का रास्ता दिखाता है भारत मां की सेवा करने का मौका भी देता है


हमें आचार्य जी पर पूर्ण विश्वास रहता है हम लोगों का विकास ही आचार्य जी का उद्देश्य है हम लोगों को इसमें लेशमात्र भी भ्रम नहीं होना चाहिये कि अध्यात्म सारी समास्याओं को सुलझा देता है


आचार्य जी से हमारे मन मस्तिष्क भाव विचार क्रियाएं संयुत रही हैं और आगे भी रहेंगी

हमारे विकारों को आचार्य जी अपने विचारों से शमित करते हैं


करसि पान सोवसि दिनु राती। सुधि नहिं तव सिर पर आराती॥

राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा। हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा॥4॥

बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ। श्रम फल पढ़े किएँ अरु पाएँ॥

संग तें जती कुमंत्र ते राजा। मान ते ग्यान पान तें लाजा॥5॥


यह सब नाक कटने के बाद रावण के पास जाकर  शूर्पणखा कह रही है लेकिन ये चौपाइयां सबके लिये बहुत अद्भुत हैं


दुष्ट अकबर का आतंक उस समय व्याप्त था भारतीयता में रचे बसे तुलसी का अद्भुत कथा संयोजन है


रामचरित मानस की रचना शिव जी की कृपा से तुलसीदास ने की है


मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्‌। मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शंकरं वंदे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्री रामभूपप्रियम्‌॥1॥

शिव पार्वती को रामकथा सुना रहे हैं 


जीवन में समस्याएं आयें तो उनके समाधान हमें मानस में मिलेंगे भरत का त्याग रामराज्य लाने के लिये भगवान् राम ने कितने कष्ट सहे इन सबका तुलसी ने अद्भुत वर्णन किया है 


श्रीराम की कथा उन्होंने हम लोगों के परिवारों से संयुत कर दी सबके घरों में राम लक्ष्मण भरत हैं लेकिन कलियुग के प्रभाव से उनके आचरण विपरीत हो जाते हैं लेकिन इन सबको रामात्मक दृष्टि प्रदान करने का तुलसी ने अद्भुत कौशल दिखाया


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज श्रीवास्तव जी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

16.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 16 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अध्यात्म -धुनिनाथ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/49


धुनिनाथः /धुनीनाथः = समुद्र



सिद्धान्त कहता है कि मनुष्य का जीवन अतीत की समीक्षा वर्तमान की योजकता और भविष्य पर विश्वास के त्रिडण्ड पर स्थापित और संतुलित रहता है


अतीत में जाते हुए आचार्य जी ने विद्यालय में होने वाली सदाचार वेला कुछ विद्यालयों के अनुसार शून्य वेला की चर्चा की


वही सातत्य अतीत का समीक्षित स्वरूप आज भी वायवीय माध्यम से चल रहा है आज भी सदाचार वेलाओं में सदाचारी भाव से सदाचारमय विचारों का संप्रेषण होता है


आचार्य जी यह अनुभव करते हैं कि हनुमान जी की कृपाछाया उनके ऊपर है  और हम लोगों से अव्याहत (अर्थात् जो झूठा बनावटी न हो )लगाव है इसलिये उनकी अभिव्यक्ति में विशिष्टता रहती है


जल में कुम्भ कुम्भ  में जल है बाहर भीतर पानी ।

फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तथ कह्यौ गयानी ॥

का उदाहरण देते हुए आचार्य जी कहते हैं



आत्मा परमात्मा में और परमात्मा आत्मा में विराजमान है l अंतत: परमात्मा की ही सत्ता है 


यह भारतीय दर्शन बहुत गहराई से अपने को आवेष्टित करता हुआ चलता है इस दर्शन को हमारे सामने व्यावहारिक भाषा में इन संप्रेषणों में प्रस्तुत किया जाता है

ज्ञान और विज्ञान में अन्तर है विज्ञान जो सांसारिक दृष्टि व्यावहारिक दृष्टि से दिखाई दे और ज्ञान मूल तत्त्व है


विद्यालय में पढ़ते समय हम लोगों को आचार्यगण ज्ञान विज्ञान के साथ संस्कार देते थे क्योंकि विद्यालय उस महापुरुष पं दीनदयाल उपाध्याय की स्मृति में बना था जिसके अन्दर ज्ञान विज्ञान भारत का चिन्तन भारत ही समस्त विश्व के लिये कल्याणकारी है ऐसा विचार कूट कूट कर भरा था


राजनीति में उनका प्रवेश दुष्टों को नहीं भाया  और उनका शरीर नष्ट कर दिया


उनकी स्मृति में विद्यालय बना


भारत के संकल्प भारत के भविष्य विद्यार्थियों में सदाचार वेलाओं के माध्यम से शक्ति ऊर्जा उत्साह बुद्धि विवेक चैतन्य सद्विचार आदि भरने का काम अबाधित चलता रहा


और उन्हें इसके साथ लौकिक विद्या अर्थात् अविद्या भी उत्कृष्ट कोटि की प्रदान की गई 


आज भी आचार्य जी चाहते हैं कि हम मानस पुत्र उनके विचारों और विश्वासों का प्रसार करें


और हमारा भी कर्तव्य है


हमारे जीवन में तपस्विता होनी चाहिये हम पशु नहीं हैं

आचार्य जी शौर्यप्रमण्डित अध्यात्म पर जोर देते ही हैं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया दिनेश भदौरिया का नाम क्यों लिया यशस्वी होने और चर्चित होने में क्या अन्तर है आदि जानने के लिये सुनें

15.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 15 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अध्यात्म -चङ्कुण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/48


चङ्कुणः   =  वाहन




भगवान् की कृपा है कि इन सदाचार संप्रेषणों से हमें अत्यन्त प्रेरक उपादेय उपयोगी जानकारी प्राप्त होती रहती है और प्रतिदिन हम इसकी प्रतीक्षा भी करते हैं


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥

संसार में सुख दुःख प्रकाश अन्धकार सुविधा संकट साथ साथ चलते हैं

हमें संसार में संसारी भाव से रहना होता है लेकिन इससे अलग होकर क्षणांश के लिये भी तात्विक स्वरूप में यदि अध्यात्म का सहारा लेकर हम प्रवेश कर जाते हैं तो हमारी जीवन शैली बदल जाती है हमें आनन्द की अनुभूति होने लगती है



हिन्दी भाषा भावना, हिन्दी मय व्यवहार। 

हिन्दी मय चिन्तन रहे, हिन्दी मय आचार। ।


यद्यपि हम लोग तत्त्वदर्शी हैं लेकिन व्यवहार स्पर्शी भी हैं

व्यावहारिकता स्वीकारते हुए बहुत से बाहरी देशों के शब्दों का हिन्दी में समावेश हो गया है जैसे चाय कुर्ता आदि


कल हिन्दी दिवस था हम लोग इसे एक दिन मनाते हैं यह अत्यन्त अटपटी बात है न्यायालय में निर्णय अंग्रेजी में लिखे जाते हैं अंग्रेजी बोलने वाला काबिल माना जाता है

दुःखद यह कि भाषा के माध्यम से हमारे रोम रोम में गुलामी भर दी गई

अपने संस्कार भूल गये


हिन्दी हिन्दुस्थान की, है अपनी पहचान। 

जो इससे मुँह फेरता , सचमुच निपट अजान। ।


हिन्दी हमारी भाषा है जिस समय देश में स्वातन्त्र्य समर चल रहा था संपूर्ण देश में हिन्दी में ही व्यवहार चल रहा था

लेकिन

हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा..


Father's day mother 's day से इतर हमारा जीवन बहुत संस्कारित था



प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥

आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा॥


अनुज सखा सँग भोजन करहीं। मातु पिता अग्या अनुसरहीं॥

भगवान राम का जीवन देखकर हम समझ सकते हैं कि ऐसा संस्कारों से युक्त हमारा जीवन था


रामकथा कृष्णकथा ब्रह्मानन्द की अनुभूति आदि हमारी प्राणिक ऊर्जा है शक्ति भक्ति विश्वास है हमारी श्वास है


हिन्दी दिवस के स्थान पर हिन्दी में व्यवहार करना बहुत  आवश्यक है


यदि स्वदेशी स्वरूप होगा तो स्वदेशी चिन्तन व्यवहार होगा

और फिर पुरुषार्थ करते हुए हम आगे बढ़ते चलेंगे और सफल भी होंगे


आत्मस्थ न होकर परस्थ होंगे तो असफल होंगे


क्या हम संस्कृत नहीं सीख सकते? जब कि अंग्रेजी सीख गये लेकिन तोते की तरह इस तरह सीखने से क्या फायदा


जब हम खुद ही श्रेष्ठ नहीं बन पायेंगे तो विश्व को श्रेष्ठ कैसे मनायेंगे


अंग्रेजी यदि विश्व भाषा बन सकती है और हिन्दी को हम राष्ट्र भाषा बनाने के लिये भी तरसते हैं तो यह गम्भीर चिन्तन का विषय है

इन संप्रेषणों के परिणाम भी आने चाहिये आगामी वार्षिकोत्सव के संदेशों में भी स्वदेशी भाव जाग्रत हो


हम अपनी संस्कृति की रक्षा करें इसकी साधना करें सांस्कृतिक जीवन को अपने अन्दर प्रवेश कराने की चेष्टा करें

14.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 14 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है दित्यारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/47


(दित्य अर्थात् राक्षस

दित्यारि  राक्षसों के शत्रु)



हम लोगों के सामने कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो जाती हैं जिनका कोई पूर्व निर्धारण नहीं होता है

जिस तरह परिवेश में सहज प्रकृति घूमती रहती है उसी तरह मनुष्यों में भी सूक्ष्म रूप में सहज प्रकृति प्रवृत्ति घूमती रहती है



आज जलवर्षा हो रही है पितृ पक्ष में इसे शुभ माना गया है लेकिन जिसका घर कमजोर झोपड़ी के रूप में है और पानी अन्दर गिर रहा है तो वह शुभ अशुभ भूल जायेगा और वो व्यक्ति यही चाहेगा कि पानी न बरसे


संसार की अनुकूलन प्रतिकूलन की विधियों के साथ संसारी भाव में रहने वाले मनुष्यों के सुख दुःख संयुत रहते हैं


आचार्य जी ने दर्शन के सिद्धान्त यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे को समझाया जैसा हमारे भीतर हो रहा है वही ब्रह्माण्ड में दिखाई दे रहा है


आचार्य जी ने कल रात्रि 10:45 का एक प्रसंग बताया जब किसी ने आचार्य जी को फोन कर दिया जिसके कारण आचार्य जी को असुविधा हुई क्योंकि आचार्य जी दस बजे तक सो जाते हैं


अपने शरीर और मन के अनुकूल हो तो अच्छा और प्रतिकूल हो तो बुरा लगता है


यही संसार का वास्तविक स्वभाव है


आत्मबोध अर्थात् अपनी आत्मा तक पहुंचना और तत्त्वबोध संसारी बोध है जिनका शंकराचार्य आदि ने बहुत विस्तार से वर्णन किया है


आत्मबोध तत्त्वबोध के साथ जब सामंजस्य स्थापित करता है तो संसार में एक व्यवस्थित व्यवस्था रहती है और ऐसा हमारे देश की संस्कृति ने विकसित किया है


शिवगीता जिसमें शिव जी राघव जी संवाद है में शिव ही ब्रह्म है जब कि श्रीमद्भगवद्गीता में कृष्ण ही सब कुछ हैं


किसी में कोई विवाद नहीं जब कि अन्य देशों में ऐसा नहीं है 

वो संसार में ही दर्शन की खोज करते हैं


हमारा देश ऐसा है जहां संघर्ष और सहयोग दोनों साथ साथ चलते हैं


आत्मस्थ होने पर आचार्य जी बहुत अच्छी कविताएं लिख देते हैं ऐसी ही एक कविता है


भावना हूं सृजन का विश्वास हूं

मत समझना यह कि केवल श्वास हूं....


यह अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं में प्रकाशित है

इसी में एक और कविता है

बोलो स्वदेश के स्वाभिमान

जागो स्वदेश के स्वाभिमान....


जब हमारा यह भावमय संसार आन्दोलित होता है और सृजन में अपना लिखा हम पढ़ते हैं तो आत्मानन्द बार बार प्रेरित प्रभावित और प्रबोधित करता रहता है


इसीलिये आचार्य जी लेखन योग पर जोर देते हैं शैली कोई भी हो इन्हें सुरक्षित भी रखें


अपने विचारों को स्वयं चिन्तन में लाइये तो हमारा अध्यात्म जाग्रत होगा और बहिर्मुख होकर देश संगठन आदि देखें समय का सदुपयोग करें

आने वाले वार्षिकोत्सव को एक दूसरे से परामर्श लेकर सफल बनाएं

राष्ट्रोन्मुखी होवें जिससे राष्ट्र समुन्नत होगा और विश्व का कल्याण होगा

13.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 13 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 पंकिल सर में खिला खिला सा नीरज हूं


प्रस्तुत है विद्या -पुरण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/46


यदि हमारे मन में आ रहे भाव अभिव्यक्ति पा जाते हैं तो हमें तो अच्छा लगता है दूसरे भावुक व्यक्ति को भी अच्छा लगता है


हम सचेत रहें यही आचार्य जी द्वारा सन् 2014 में रचित निम्नांकित पंक्तियां  कह रही हैं



पौरुष को तकदीर बदलनी आती है

कौशल को हरदम तदबीर सुहाती है

उत्साहों को सभी मंजिलें छोटी हैं

असंतोष को भली बात भी खोटी है 

संशय से विश्वास हमेशा जीता है 

भ्रम के अंधकार में दीपक गीता है 

मन की कमजोरी जीवन में घातक है 

विश्वासी से दगा घोरतम पातक है 

सत्य विश्व की सबसे बड़ी साधना है 

सुख में यश मुट्ठी में रेत बांधना है 

समझ बूझकर भी दुर्गुण का त्याग नहीं 

आस्तीन के भीतर बैठा नाग कहीं

उप्देशों से जीवन नहीं संवरता है 

पाता वही यहां पर जो कुछ करता है

जीवन कर्म कुशलता की परिभाषा है 

कर्म यहां की सबसे मुखरित भाषा है 

कर्म प्रमाद निराशा की परछाई है 

पतन मार्ग की सबसे गहरी खाई है 

कर्म करें विश्वास करें अपनेपन पर 

मन में न उल्लास रहेगा जीवन भर


ऊहापोह की स्थिति से बचना चाहिये इसी ऊहापोह के कारण हमारा बहुत नुकसान हुआ अध्यात्म में स्वार्थ का प्रवेश घातक रहा

आत्मकल्याण और समाजकल्याण कर्म से होता है इसे बताने के लिये बहुत से महापुरुष समय समय पर अवतरित हुए


आजकल पितृपक्ष चल रहा है

तर्पण भावनाओं का अर्पण है

यह ऐसा समय है जिसमें हम अपने को एक सीमा में बांधते हैं

हम अपने पूर्वजों का ध्यान करते हैं उनके सत्कर्मों का ध्यान करते हैं पिंडदान करते हैं 

कुल मिलाकर मूल भाव यह है कि हम अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा निवेदित करें


आचार्य जी ने तर्पण की आसान विधि बताई

आचार्य जी ने एक और कविता सुनाई

मैं संस्कृति के सामगान का चारण हूं.......


हमारा पुरुषत्व जाग्रत रहेगा तो समस्याओं का निराकरण भी हो जायेगा

हमारे इसी पुरुषत्व को जाग्रत करने के लिये आचार्य जी प्रतिदिन अपना बहुमूल्य समय निकालकर हमें इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से प्रेरित कर रहे हैं



अब हमारा कर्तव्य है कि हम इनका लाभ उठायें फिर हम व्यवस्थित जीवन जी पायेंगे समस्याएं सुलझा लेंगे उत्साह द्विगुणित शतगुणित हो जायेगा

12.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 12 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 शास्त्रप्रतिष्ठा गुरुवाक्यनिष्ठा

          सदात्मदृष्टिः परितोषपुष्टिः ।

     चतस्र एता निवसन्ति यत्र

          स वर्तमानोऽपि न लिप्यतेऽघैः ॥ १॥


प्रस्तुत है चञ्चुर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/45


यह सदाचार संप्रेषण आचार्य जी  प्रयास केन्द्र के उसी स्थान से कर रहे हैं जिस स्थान से कई वर्ष पूर्व पहला संप्रेषण किया था यहां 

पक्षियों के स्वर सुनाई पड़ रहे हैं प्रातःकाल का अत्यन्त सुरम्य वातावरण है हरीतिमा छाई है

आगामी वार्षिक अधिवेशन को अत्यन्त सफल बनाने के लिये आचार्य जी अपने सुझाव दे रहे हैं


युगभारती स्वदेशानुराग से परिपूर्ण सक्रिय रहे इसके लिये आचार्य जी के विचार अत्यन्त प्रासंगिक हैं

जो थोड़ा है उसे बहुत समझना चाहिये संतोष बहुत बड़ा धन है

लेकिन प्रयास अवश्य करना चाहिये हम लोग क्लब संस्कृति से अलग हैं हमारी एक दिशा है  हम देखें कि राष्ट्र की सेवा में राष्ट्र के शक्ति संवर्धन में हम कितना प्रयास कर रहे हैं इसका चिन्तन भी होना चाहिये

हमें भूलना नहीं चाहिये कि हमारा ध्येय वाक्य है


" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "


चौबीस घंटों में हमारे पास कुछ ऐसा समय भी रहता है जो खाली रहता है यदि हम इसे समाज की व्यवस्था में लगा दें लोगों से मिलें टेलीफोनिक संपर्क करें तो यह बहुत अच्छी बात रहेगी 

यही समाजोन्मुखता है

हमारे देश में समय समय पर महापुरुषों का उदय होता रहता है  इन्हीं महापुरुषों के जीवन के प्रकाश में हम अपना मार्ग देखते हैं हम उनके अनुयायी हैं

तर्कोऽप्रतिष्ठो श्रुतयो विभिन्ना

          नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् ।

     धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां

          *महाजनो येन गतः स पन्थाः* ॥ ४॥


मार्ग पर हमें चलना है खड़े नहीं होना है कुंठाओं को व्यक्त न कर यह विचार करें कि हम क्या क्या योगदान दे सकते हैं

इसी से व्यक्तिशःसमाजोन्मुखता प्रारम्भ हो जाती है जब संपर्क करते चलते हैं और पता चलता है कि आप भी वही कर रहे हैं जो दूसरा कर रहा है तो यह हमें आनन्द देता है


आजीवन सदस्यता के लिये फोन से संपर्क अवश्य करें कम से कम एक हजार सदस्यों का लक्ष्य बनाएं


लोगों के सद्गुणों को ग्रहण करें दुर्गुणों की ओर ध्यान न दें


इससे संगठन विस्तार लेगा हम भी आनन्दित होंगे समाज भी आनन्दित होगा


समाज के ऐसे चिन्तनशील विचारशील कर्मशील लोगों से भी हम संपर्क करें जो आयु में तो अधिक हैं लेकिन उनके विचार अत्यन्त उपयोगी हैं

11.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 11सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सुर नर मुनि सब कै यह रीती। स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती।।


प्रस्तुत है तीक्ष्णकर्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 11सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/44


सदाचारमय विचार, सदाचारमय आचार और सदाचारमय व्यवहार करते हुए अपने पुरुषार्थ को हमें जाग्रत करते रहना चाहिये हमें अपने उपास्य भारत मां के अखंड विग्रह के लिये प्रयत्नशील रहना चाहिये

आज से पितृपक्ष प्रारम्भ हो रहा है,गया जाने के बाद भी श्रद्धा के प्रतीक श्राद्ध करने चाहिये 


बृहदारण्यक उपनिषद् में दूसरे अध्याय में




......न वा अरे सर्वस्य कामाय सर्वं प्रियं भवत्यात्मनस्तु कामाय सर्वं प्रियं भवति। आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो मैत्रेय्यात्मनो वा अरे दर्शनेन श्रवणेन मत्या विज्ञानेनेदं सर्वं विदितम्॥


आत्मा किसी भी रूप में दर्शन देने लगती है किसी को गौ किसी को नदी किसी को देश किसी को जीवमात्र के रूप में दर्शन देती है

जीवन में सभी सुख आत्मा द्वारा अनुभूत किये जाते हैं

इसलिये आप अपना ध्यान आत्मा की ओर केन्द्रित करें

उसे देखें सुनें समझें क्योंकि वह आपके मन की गांठ खोल देता है


आचार्य जी के आत्म को अच्छा लगता है कि वो हमारा मार्गदर्शन करें और इसी कारण हम लोगों को सौभाग्यवश ये सदाचार संप्रेषण प्राप्त हो रहे हैं



सकारात्मक बात ये है कि इनसे आचार्य जी के आत्म स्वरूप हम मानस पुत्रों को ऊर्जा मिलती है हमें   समस्याओं के हल मिलते हैं


आत्म से मानस तक की ये यात्रा, मानस से संसार तक की यात्रा परमात्मा का लीला स्वरूप है हम सब पात्र हैं

हम अपना जितना अच्छा अभिनय करेंगे उसी हिसाब से हमें पुरस्कार मिलेगा

10.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 10 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है परार्थ -घटक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/43



अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का अद्वितीय ग्रन्थ है जिसमें ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के बीच संवाद  है। भगवद्गीता, उपनिषद और ब्रह्मसूत्र की ही तरह यह अमूल्य ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में ज्ञान, वैराग्य, मुक्ति एवं समाधिस्थ योगी की दशा का बहुत विस्तार से वर्णन है।


ऐसा सुनने में आता है कि  रामकृष्ण परमहंस ने भी इसी ग्रंथ को नरेंद्र को पढ़ने को कहा था जिसके पश्चात वे उनके शिष्य बने


 ग्रंथ का प्रारम्भ राजा जनक द्वारा पूछे गये तीन शाश्वत प्रश्नों से होता है।  ज्ञान कैसे प्राप्त होता है,मुक्ति कैसे होगी और  वैराग्य कैसे प्राप्त होगा?


इस ग्रंथ के अनुसार अध्यात्म जगत की तीन निष्ठाएं महत्त्वपूर्ण हैं ज्ञान कर्म और भक्ति


मनुष्यों में दो प्रकार के व्यक्तित्व होते हैं अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी


अन्तर्मुखी के लिये ध्यान का मार्ग अनुकूल है जब कि बहिर्मुखी के लिये कर्म और भक्ति का मार्ग


ध्यान के साथ धारणा अवश्य होगी और ध्यान धारणा से समाधि की ओर उन्मुखता होगी


बहिर्मुखी के लिये ज्ञान का बोध और यह मार्ग प्रायः उसे कठिन लगता है


अष्टावक्र कहते हैं अक्रिया ही विधि है बोध और स्मरण मात्र ही पर्याप्त है


यदि यह भ्रान्तियां दूर हो जायें कि न मैं शरीर हूं न मन न बुद्धि न विचार तो यही मोक्ष है


मोक्ष मनुष्य के चित्त की एक अवस्था है और इसी से वह परमानन्द की अनुभूति करता है


भगवद्गीता में फल की कामना से रहित कर्म पर जोर दिया गया है


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


भगवान् कृष्ण का गीता उपदेश सांसारिक व्यक्तियों के लिये है और अष्टावक्र गीता मुमुक्षुओं के लिये



आचार्य जी एक लम्बे समय से इसी का प्रयास कर रहे हैं कि हम लोग संपूर्ण संसार का सत्य जानें और हम लोगों का समाजोन्मुखी और जीवन को एक दृष्टि देने वाला पुरुषार्थ जागे


आचार्य जी नित्य भावाभिव्यक्ति करते हैं और  इस संसार के सत्य को अवशोषित करते हुए अधिक से अधिक समय तक आनन्द की अवस्था में रहते हैं



अष्टावक्र गीता कहती है कि परमपिता परमेश्वर इस सृष्टि का रचयिता नहीं है उसकी अभिव्यक्ति है


हम लोग भी वाणी से कलाकृतियों से कर्मों से अभिव्यक्ति करते हैं लेकिन उतनी प्रभावशाली नहीं जितनी परमेश्वर की हैं क्योंकि हम उनके अंश हैं


  *आज अनन्त चतुर्दशी का प्रभात है भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा*


*प्रातः स्मरणीय, पथ प्रदर्शक,युग भारती के संस्थापक, प्रकाश स्तंभ, सतत राष्ट्र उत्थान के लिए समर्पित  भारतीय संस्कृति,दर्शन, सद्विचारों द्वारा हमें पोषित करने वाले  आचार्य जी का आज जन्मदिन है*

*आचार्य जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं* 



*युग भारती के सभी आत्मीय बंधुओं से निवेदन है  कि अपने जीवन के पुण्य का एक-एक अंश पूज्य आचार्य जी के स्वास्थ्य, उज्ज्वल भविष्य, मंगल जीवन के लिए समर्पित करें।*



आचार्य जी कहते हैं आत्मविस्तार संसार का आनन्द है लेकिन शंकाओं को मन में न आने दें पुरुषार्थ पर से विश्वास न उठने दें हम परमात्मा की अद्भुत कृति हैं इसलिये दैन्य भाव मन में न लायें

9.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 9 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है टुण्टुकारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 9 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/42


युगभारती के सक्षम सुयोग्य समर्थ सदस्यों के प्रमाणिक प्रयासों से शिक्षा, चिकित्सा, प्रशासनिक आदि क्षेत्रों में आचार्य जी बहुत से लोगों की सहायता करते रहते हैं और प्रायः वे लोग लाभान्वित भी होते हैं



सांसारिक प्रपंचों के साथ पारिवारिक व्यक्तिगत समस्याओं के आने पर आचार्य जी व्याकुल नहीं होते हैं क्योंकि उन्हें परमात्मा पर पूर्ण विश्वास रहता है और परमात्मा उनकी सहायता भी करते हैं


ये सदाचार संप्रेषण गार्हस्थ्य को ऊर्जा प्रदान करते हैं संसार की समस्याओं को सुलझाने के लिये आत्मशक्ति प्रदान करते हैं


पावन गंगा अनन्त वर्षों से सतत बह रही हैं सूर्य देव अनन्त वर्षों से प्रकाश दे रहे हैं

जो इस सातत्य का अनुभव करता है वह रहस्यों से भरे इस संसार को थोड़ा बहुत समझ लेता है

इस सातत्य को हमारी संस्कृति ने बहुत संजोकर रखा है


एकात्म मानववाद के पुरोधा दीनदयाल जी मानव के सृष्टि और परमात्मा से संबन्ध पर व्यापक दृष्टिकोण रखते थे वे कहते थे व्यक्ति प्रकृति परमात्मा सब एक हैं


आचार्य जी ने दीनदयाल जी का उस्तरे से संबन्धित एक प्रसंग सुनाया


कभी उसका handle बदला कभी blade लेकिन वो पुराना का पुराना ही रहा


हम लोगों का जीवन भी इसी प्रकार का है यह संसार भी इसी तरह का है हमारे ऋषियों ने इसी की परिकल्पनाओं में अनेक अनुसंधान किये

समाज को जीने योग्य व्यवस्थाएं दी गईं

वर्ण आश्रम व्यवस्था अन्यत्र नहीं है


हम लोग समस्याओं के समाधान खोजते हैं और जब समाधान नहीं मिलता तो कहते हैं परमात्मा की ही ये लीला है


इतिहास में वीरगाथा काल में जब हम विजयी हुए तो साहित्यकारों ने उत्साहपूर्वक गान किया और जब विजय नहीं मिल रही थी तो परमात्मा की भक्ति और चिन्तन में चले गये यह भक्तिकाल था


विकारों और विचारों का अद्भुत संगम है


सारी दुनिया हमें महत्त्व दे रही है हमें भी अपने को महत्त्व देना है

हम पुरुष हैं पुरुषार्थ करने के लिये उठने की आवश्यकता है


रामचरित मानस का उच्च स्वर में पाठ करें किसी व्यक्ति को गुरु किसी को समाज किसी को देश साक्षात् श्रद्धा का स्वरूप दिखते हैं


आत्मस्थ होने की चेष्टा करने पर सब कुछ निर्वाह कर सकते हैं परिस्थितियों को देखकर अपने को ठीक करें और तब हम अपनों को भी ठीक कर सकते हैं


अपने इतिहास और परम्परा से हम बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं 

आत्मानुभूति प्रसरित भी करें

आप लोगों से निवेदन है कि आचार्य जी से समस्यात्मक प्रश्न अवश्य करें


इसके अतिरिक्त किस प्रसंग में षष्ठ कक्षा का नाम आया जानने के लिये सुनें

8.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 8 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है जाल्मारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 8 सितम्बर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/41



समय का अनुशासन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है एक निश्चित समय पर किसी को कार्य करना अधिक महत्त्व का है

इस सदाचार संप्रेषण का भी निर्धारित समय है


प्रकृति से परमात्मा जीव से ब्रह्म सृष्टि से स्रष्टा तक जहां इस प्रकार के प्रतिबन्धन का परिपालन होता है वहां व्यवस्थित व्यवस्था चलती है और जहां इसमें अस्तव्यस्तता आती है वहां व्यवस्था अव्यवस्थित हो जाती है


यही अव्यवस्थित व्यवस्था ही अराजकता है जिससे समस्याएं पैदा होती हैं


किसी चिन्तक ने कहा था कि कलियुग में एक ही वर्ण वैश्य और एक ही आश्रम गृहस्थ है


लेकिन हम लोग  प्रयास करते हैं कि अन्य आश्रमों में भी झांक लें


यथा वायो समाश्रित्य वर्तन्ते सर्वजन्तवः । तथा गार्हस्थ्यमाश्रित्य वर्तन्ते सर्व आश्रमाः  l


जैसे वायु प्राणिमात्र के जीवन का आश्रय है  वैसे ही गार्हस्थ्य सभी आश्रमों का आश्रम है।


जिस समय हमारे यहां सात्विक तात्विक शक्तिसंपन्न और संपूर्ण विश्व को अपने में समाहित करने की शिक्षा थी उस समय राजा का पुत्र भी गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने जाता था तो वह जीवन की शिक्षा  लेता था पांच घर जाकर उसे भिक्षाटन करना होता था

यदि कोई ब्रह्मचारी भिक्षाटन के लिये नहीं पहुंचता था तो उस घर की गृहिणी अपना दुर्भाग्य समझती थी

यह परस्पर का अनुकूलन इस राष्ट्र की संपदा है


और इस समय अविश्वास का बोलबाला है

स्वयं पर भी विश्वास नहीं यह प्रेत रूपी जीवन भारत का दुर्भाग्य है



ऐसे संकटों के बीच रहकर तुलसी ने उत्तरकांड में रामराज्य का अद्भुत वर्णन किया है.


अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥

नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना॥3॥


सब निर्दंभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुनी॥

सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी॥4॥


राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।

काल कर्म सुभाव गुन कृत दु:ख काहुहि नाहिं॥21॥


ऋषियों चिन्तकों विचारकों कवियों की वाणी परमात्मा की कृपा से उद्भूत होती है


उससे लगाव हो जाये उसका अभ्यास हो जाये उसके प्रति भक्ति जाग जाये तो आनन्द ही आनन्द है



10 से 14 नवम्बर को होने वाले राजसूय यज्ञ को भी हम अपना ही कार्यक्रम मानें और उसमें यथासंभव अपना सहयोग करें

हमें आत्मविस्तार करने की आवश्यकता है


सदाचार का यह एक बड़ा संदेश है कि हम परेशान न हों खीजें नहीं समय निकालें


समय का महत्त्व समझें



तुलसी के समय की तरह आज भी विषबेल फैल रही हैं  अमृत के अंकुरों की आज भी आवश्यकता है


अपने ज्ञान -चक्षु खोलकर अमृत और विष का अन्तर समझें



खानपान सही करें व्यवहार सही करें धर्म को बाहर व्यवहार में लायें शक्ति बुद्धि का अर्जन करें


राष्ट्र के प्रति अनुरक्ति रखें परमात्मा के प्रति भक्ति रखें और अपने कर्तव्यों के प्रति रति रखें

7.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 7 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कृतकृत्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 7 सितम्बर 2022

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सार -संक्षेप 2/40


अद्वितीय व्यवस्थित व्यवस्था से चलता हुआ यह नित्य का संप्रेषण हम सबको सदाचरण के लिये प्रेरित करता है हमें समस्याओं से छुटकारा दिलाने का मार्ग दिखाता है राष्ट्र और समाज के प्रति  कर्तव्य की याद दिलाता है

उत्साहपूर्ण उल्लासपूर्ण आनन्दित जीवन जीने के मार्ग की ओर ले जाता है


भारतवर्ष की भावधारा में बहने वाले लोगों के लिये यह कोई आश्चर्य का विषय इसलिये नहीं है क्योंकि वे जानते हैं कि यह सब सर्वशक्तिमान परमात्मा ही कर रहा है


हम सभी को बाह्यदर्शन के साथ आत्मोत्थान के लिये आत्मदर्शन भी करना चाहिये

आत्मज्योति के दर्शन प्राप्त करने के बाद आनन्द का एकान्तिक अनुभव मिल सके

आचार्य जी इसी के लिये नित्य हमें जाग्रत करते हैं



समाने वृक्षे पुरुषो निमग्नोऽनिशया शोचति मुह्यमानः।

जुष्टं यदा पश्यत्यन्यमीशमस्य महिमानमिति वीतशोकः ॥



पुरुष  ही वह पंछी है जो समान वृक्ष पर बैठकर निमग्न है क्योंकि वह अनीश है वह मोह के वशीभूत होकर शोक करता है। किन्तु जब वह उस दूसरे को देखता है जो ईश है तब वह जान जाता है कि जो कुछ भी है, वह उसकी ही महिमा है और वह शोकमुक्त हो जाता है


भारतवर्ष जहां हम जन्मे हैं धर्मप्राण देश है अध्यात्म में रत होते हुए भी यह आध्यात्मिक प्रयोगशाला है


तरह तरह के प्रयोग होते रहे इसी कारण वेदों के बाद भी हमें आध्यात्मिक साहित्य की प्रचुर मात्रा मिली


असभ्य बाहरी राक्षसों ने बहुत से ग्रंथ नष्ट करे तो उनमें अधिकांश ग्रंथ आत्मस्थ कर लिये गये


ऐसी संघर्षरत मनुष्यों की शृंखला की हम एक कड़ी हैं


विरोधी विचारों का भी हमने स्वागत किया है

शास्त्रार्थ हुए लेकिन कटुता नहीं आई

 मण्डनमिश्र शंकराचार्य शास्त्रार्थ में मण्डनमिश्र की पत्नी न्यायपीठ पर बैठीं हैं और पति के विरोध में फैसला आता है


त्रयी साङ्ख्यं योगः पशुपतिमतं वैष्णवमिति

प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमदः पथ्यमिति च।

रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिल नानापथजुषां

नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥ ७॥


शिवमहिम्नस्तोत्रम्‌ से लिये गये इस श्लोक की कुछ पंक्तियां स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो सम्मेलन में कहीं थीं


भारतवर्ष ने बिना व्याकुल हुए परमसत्य तक पहुंचने के इतने सारे मार्ग स्वीकारे


इतने समृद्ध देश के हम नागरिक अगर भ्रमित हों तो यह दुःख की बात है


सिख बौद्ध जैन आदि में बंट गये शिक्षा की दुर्दशा हो गई

गुरु अर्जुनदेव को शरणागत की रक्षा के कारण बलिदान होना पड़ा 

हिन्दू धर्म की रक्षा के लिये ही गुरुगोविन्द सिंह एक अद्वितीय उदाहरण हैं

भाव की पूजा करते करते हमने इतनी लम्बी यात्रा की है हमारी सबसे प्राचीन संस्कृति है

हमें जागने की जरूरत है अपने संगठन को मजबूत बनाएं हम किसी उद्देश्य को लेकर चल रहे हैं

बहुत से विकारों के बाद भी हमारी हिन्दू संस्कृति पूज्य उपास्य है स्वीकारने योग्य है हम देखें कि कितने लोगों को हम राष्ट्रोन्मुखी बना रहे हैं

हम योग के मार्ग पर चलने का प्रयास करें भोग तो बहुत कर लिया


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया नीरज जी का नाम क्यों लिया अक्षयवट की चर्चा क्यों की जानने के लिये सुनें

6.9.22

श्री ओम शंकर जी का दिनांक 6 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कृतकाम आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 6 सितम्बर 2022

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सार -संक्षेप 2/39


कल हमें जानकारी प्राप्त हुई कि युग निर्माण योजना द्वारा एक 'राजसूय यज्ञ 'मियांगंज उन्नाव में 10से 14 नवम्बर 2022 को होने जा रहा है


यज्ञ जप दान ध्यान पूजन सात्विक आचरण स्वाध्याय संयम पर ध्यान केन्द्रित करने वाली संस्था  युग निर्माण योजना की संकल्पना पं॰ श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा मथुरा में आयोजित सन् 1958 के सहस्रकुण्डीय गायत्री महायज्ञ के समय की थी। व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण, समाज निर्माण का बड़ा  लक्ष्य लेकर यह अभियान पंडित जी ने   1962 में गायत्री तपोभूमि, मथुरा से प्रारम्भ  किया।


स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन एवं सभ्य समाज की अभिनव रचना का लक्ष्य पूरा करने हेतु  यह आंदोलन पूरे विश्व  में चलाया जा रहा है।

यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।


यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्।।18.5।।



यज्ञ तप दान पर हमारी संस्था युग भारती भी कुछ न कुछ करती रहती है लेकिन हमें इस दिशा में और अधिक विस्तार करने की आवश्यकता है

यज्ञ तप ज्ञान के सम्बन्ध में पहले हमें ज्ञान होना चाहिये


यजुर्वेद आदि में यज्ञ विधि का बहुत विस्तार है वैदिक विधानों में धार्मिक कार्यों में यज्ञ प्रमुख कर्म है

यज्ञ क्या है?

विधानपूर्वक किया गया यज्ञ इस संसार और स्वर्ग दोनों में दृश्य और अदृश्य पर चेतन अचेतन पर अधिकार पाने का 

साधन है

यज्ञ आदिकाल से चला आ रहा है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि कामधेनु तन्त्र में सभी वर्णों का वर्णन नहीं है जैसे चवर्ग का नहीं है तन्त्र शास्त्र में अनेक वर्णों का विस्तार है


बिना व्यञ्जनों के भाषा बन नहीं सकती इन्हीं से भाषा इन्द्रियगम्य होती है कवर्ग चवर्ग टवर्ग तवर्ग पवर्ग के अतिरिक्त य र ल व अन्तःस्थ वर्ण हैं

हमें इनकी जानकारी होनी चाहिये


धीरज और धर्म को बहुत संजोकर रखना चाहिये इसके लिये आचार्य जी ने एक कथा सुनाई कि किस प्रकार लोहे का टुकड़ा मिट्टी हो गया

हमें जन्मदिन मनाने की आधुनिक परम्परा को बदलना होगा 

आचार्य जी ने वर्षकृत्य कौमुदी की चर्चा की जिसमें पृष्ठ 553-564 तक जन्मदिन मनाने के विधि विधान हैं


समय मयूख और तिथि तत्व में भी


भोग रोग का आधार है इसलिये त्याग की महत्ता है

5.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 5 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 बनो संसृति के मूल रहस्य, तुम्हीं से फैलेगी वह बेल,

विश्व-भर सौरभ से भर जाय सुमन के खेलो सुंदर खेल।"



प्रस्तुत है कृतोद्वाह आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 5 सितम्बर 2022

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सार -संक्षेप 2/38



संपूर्ण सृष्टि यज्ञमय है नित्य ही यज्ञ होता रहता है


जब हम यज्ञमय भाव से संसार में रहते हैं तब आनन्दित रहते हैं


ऐसा ही एक यज्ञ 'राजसूय यज्ञ 'मियांगंज उन्नाव में 10से 14 नवम्बर 2022 को होने जा रहा है इसकी सूचना भैया मुकेश जी ने दी


गीता मानस का आश्रय लेकर हम शक्ति बुद्धि विचार विवेक चैतन्य आदि सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं

संसारी कर्मों में हम अपना समय तो व्यतीत करते ही हैं लेकिन यदि कुछ समय हम इस सदाचार संप्रेषण रूपी नित्य यज्ञ के लिये निकाल लें तो यह हमें यशस्वी जयस्वी तेजस्वी आदि बहुत कुछ बना सकता है

हम इस शरीर को साधना में रत रखने के लिये उत्साहित हों



गीता में 

यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।


भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।3.13।।


यज्ञ के बचे अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ जन सब पापों से मुक्त हो जाते हैं और जो  मात्र स्वयं के लिये ही पकाते हैं वे तो पापों को ही खाते हैं।


अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।


यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।3.14।।


सभी प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं अन्न की उत्पत्ति वर्षा से। वर्षा की उत्पत्ति यज्ञ से और यज्ञ कर्मों से


कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।


तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्।।3.15।।


सर्वव्यापी ब्रह्म सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित हैं


ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।


ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।


महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्।


यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः।।10.25।।


मैं महर्षियों में भृगु और वाणी  में एकाक्षर ॐ हूँ। मैं यज्ञों में जपयज्ञ और अचलों में हिमालय हूँ।



समुद्र नित्य यज्ञ कर रहा है संपूर्ण प्रकृति नित्य यज्ञ करती है आकाश धरती का सम्बन्ध है जो ये सब नहीं समझते वे जड़ हैं

प्रेत रूप में चलते फिरते पुतले हैं


उनका जीवन किसी तरह चल रहा है ऐसे लोगों का उपयोग दूसरे लोग (HANDLERS) करते हैं


ये मनुष्य नहीं हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

4.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 4 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कृतकर्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 4 सितम्बर 2022

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सार -संक्षेप 2/37


शरीर यदि स्वस्थ नहीं है तो शरीर से ही गुम्फित होने के कारण विचार अव्यवस्थित हो जाते हैं

प्रातःकाल की इस सदाचार वेला से संयुत होने का प्रयास हम इसलिये करते हैं ताकि हम अपना शरीर स्वस्थ रख सकें विचार व्यवस्थित हो जाएं 

 सदाचरण की ओर बिना किसी के आग्रह के हम उन्मुख हो सकें



तप क्या है?


उपभोग्य विषयों का परित्याग करके शरीर और मन को दृढ़तापूर्वक संतुलित और समाधि की अवस्था में स्थिर रखना ही तप है


तप की विशुद्ध शक्ति द्वारा मनुष्य असाधारण काम कर जाता है


शास्त्र की दृष्टि से सामर्थ्य दो प्रकार का होता है

ब्राह्म्य तेज और शास्त्र तेज


देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।


ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते।।17.14।।


इस संसार में संवेदनशील लोगों की जीवन यात्रा सुख दुःख उल्लास निराशा शान्ति अशान्ति के साथ चलती रहती है


जो संवेदनाशून्य हैं वो पशु के समान हैं 


साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ।


तृणं न खादन्नपि जीवमानस्तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥12॥


येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।

ते मृत्युलोके भुवि भारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥13॥


विचित्र संसार है ये



जिस देश में हम जन्मे हैं वह संसार समझने के लिये लालायित रहने वाली एक ऐसी मानव जाति है जो अद्वितीय अप्रतिम अद्भुत अनोखी है


हिन्दुत्व का उभार हो रहा है हमें अपनी मंजिल मिलेगी यही मनुष्यत्व है तपोन्मुखता है


युगभारती प्रेम आत्मीयता पारिवारिकता राष्ट्रनिष्ठा समाज -सेवा दर्शाता एक अद्भुत संगठन है यदि हम इस संगठन से संयुत हैं तो इसका लाभ भी प्राप्त कर रहे हैं



यह भी अद्भुत उपलब्धि है कि हम ऐसे कई संगठनों से संयुत हैं जिनके विचार हमसे मेल खाते हैं


वसुधैव कुटुम्बकम् प्रेम का विस्तार  ही है



युगभारती प्रेम का विस्तार है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी प्रेम का विस्तार है


ऐसी ही और भी संस्थाएं हैं यही इस संस्कृति की जीवनी शक्ति है



त्याग तपस्या विचारशुद्धि शौर्य शक्ति भक्ति  का प्रयास चलता रहता है


इसी कारण इतने संघर्षों में उलझे होने के बाद भी हम जीवित हैं हमारी संस्कृति कभी न नष्ट होने वाली है


हमें ऐसा वातावरण निर्मित करना है जिससे किन्हीं कारणों से धर्मपरिवर्तित कर गये लोगों को पता चल सके कि वे कभी हिंदू ही थे


हम सजग सचेत रहें शौर्य शक्ति का उचित स्थान पर प्रयोग आवश्यक है शास्त्र तेज बहुत आवश्यक है


समान विचारधारा के लोगों को अपने संगठन से संयुत करने का अधिक से अधिक प्रयास करें


 आचार्य जी ने बताया कि

स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत का जलावतरण देश के लिए ऐतिहासिक है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रदीप भैया अरविन्द भैया राहुल मिठास भैया मुकेश का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

3.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 3 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कृतोत्साह आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 3 सितम्बर 2022

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सार -संक्षेप 2/36


विचारों के महायज्ञ में यह संप्रेषण रूपी  नित्य की आहुति   वर्णनातीत है हम लोगों को इसका लाभ मिलता है इसमें दो राय नहीं


परिस्थितियों की अनुभूति करने और उनका समाधान खोजने पौरुष और पराक्रम को प्रयोग में लाने सद्विचारों को ग्रहण करने विकारों को दूर करने हेतु प्रयास करने समाजोन्मुखी जीवन जीने राष्ट्रार्पित जीवन जीने ध्यान धारणा चिन्तन मनन निदिध्यासन अध्ययन स्वाध्याय आदि करने के लिये 

नित्य आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं



प्रपंचों से भरे इस संसार में संबन्धों के कारण भी आनन्द की अनुभूति होती है संबन्धों की व्याख्या नहीं की जा सकती कभी ये बनते हैं कभी बिगड़ते हैं अचानक बन जाते हैं


परस्पर संबन्धों के आनन्द का कुछ न कुछ माध्यम होता है

माता पिता भाई बहन चाचा मामा मौसी बुआ आदि से आत्मीयता प्रेम उत्साह संयम का संदेश आदि मिलता है लेन देन का यह संसार आनन्दमय होकर चलता रहता है हम लोगों की यह आनन्दमय अवस्था सतत बनी रहे व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के लिये इसका प्रयास करता रहता है


जब हम विचार करते हैं कि भारत कभी विश्वगुरु रहा था आज इसकी क्या दशा हो गई है तो दुःख होता है इतना चिन्तन -प्रवण विचार -प्रवण यज्ञमय भावमय देश की  अब यह दशा है हम लोग तनावमय जीवन जीने लगे अपनी ही भाषा की उपेक्षा करने लगे धर्म अर्थ के हवाले करने लगे 


इसी पर आचार्य जी ने एक बहुत अच्छी कविता लिखी थी


कविता  पूरा देश मसान हो गया


धन साधन सुविधा के वन में हर घर का इन्सान खो गया

ऐसा जादू किया किसी ने पूरा देश मसान हो गया ।।


सम्बन्धों की रस्म अदाई

हूल रही भीतर तनहाई

धर्म अर्थ के हुआ हवाले 

सच पर जड़े हुए हैं ताले 

 सुख के लिए स्वत्व का तर्पण,

 दैनिक कर्म विधान हो गया | |1| |


 ऐसा जादू.....


भाषा, भूषा वेश पराया

 प्रेम और आवेश पराया 

 घर के चूल्हे हुए विरागी

माँ का दूध हो गया दागी 

त्याग” कोष का शब्द, 

देश का चिन्तन अर्थ प्रधान हो गया | |2।।

 ऐसा जादू......


 ध्यान योग आयात हो रहा 

स्वत्व लुप्त चैतन्य सो रहा  

स्वारथ पगी प्रवचनी भाषा

बदल गयी तप की परिभाषा 

सत्य सनातन सदाचरण का,

आज नया अभिधान हो गया | |3। |


ऐसा जादू.....


प्रेम वासना का प्रहरी है

 मानवता अंधी-बहरी है

बचा नहीं कुछ अपना जैसा

काबिज हुआ सभी पर पैसा

आकर घिरी अमावस,

लेकिन कहते लोग विहान हो गया | ।4 | |


ऐसा जादू....


बेवश लोक, तन्त्र है हावी

भय से काँप रही है भावी 

पेट हो गया पूरा जीवन

दूषित हुआ प्रगति का चिन्तन

कैसे  कहूँ देश का अपना,  

अलग स्वतंत्र विधान हो गया ll 5ll

ऐसा जादू.....


मसान की ओर जाते इस देश को हम लोगों को यज्ञशाला की ओर उन्मुख करना है विध्वंस से लौटकर हमें सृजन करना है इसके लिये ही आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं हम इस बात को समझें

2.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 2 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

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सार -संक्षेप 2/35



शरीर को साधन मानकर साध्य के लिये सदुपयोग करने की आवश्यकता है  यदि हमारी साधना साधन और साध्य हेतु चलती रहती है तो समस्याओं को सुलझाने के उपाय हम आसानी से पा लेते हैं


हमें विकारों से दूर होने का प्रयास करते हुए सद्विचारों के साथ जीवन किन्तु सहज जीना चाहिये


लेकिन विकारों से मुक्त होकर ही कोई काम करने का हम प्रयास करेंगे तो कर ही नहीं पायेंगे


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।


विचारों के मल को विकार कहते हैं  हम इसी जड़ चेतन गुण दोष वाले  संसार का अंश हैं


चिन्ता और चिन्तन में इसी प्रकार  मनु बैठे थे



दु:ख की पिछली रजनी बीच 


विकसता सुख का नवल प्रभात; 


एक परदा यह झीना नील 


छिपाए है जिसमें सुख गात। 


जिसे तुम समझे हो अभिशाप, 


जगत की ज्वालाओं का मूल; 


ईश का वह रहस्य वरदान, 


कभी मत इसको जाओ भूल। 


विषमता की पीड़ा से व्यस्त 


हो रहा स्पंदित विश्व महान; 


यही दु:ख सुख विकास का सत्य 


यही भूमा का मधुमय दान।


जो ब्रह्माण्ड में है वही पिण्ड में है


जुटाओ हौसला संसार सागर पार करने का

कि कर लो फैसला अपने रगों पर धार धरने का...


शिथिल होकर अपने कर्तव्य से विमुखता बहुत बड़ा नुकसान कर देती है इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को अपना कर्तव्य समझना है और उसी के अनुसार उसे उस कर्तव्य को पूरा करना है

जैसे राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष हमारा लक्ष्य है तो उसे हासिल करना ही है


बेचारगी से दूर रहें


विधाता का सृजन मन का भजन तन का यजन हूं मैं

भले हो पांव धरती पर मगर मन से गगन हूं मैं

हमारी जिंदगी में झांकने की कोशिशें मत कर

अनोखे कर्म की चिर साधना में ही मगन हूं मैं



आचार्य जी का यह संप्रेषण अनोखा कर्म है जिसके माध्यम से अपना बहुमूल्य समय निकालकर आचार्य जी हमें बिना स्वार्थ के नित्य प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है हमें इसका महत्त्व समझना चाहिये

दूरस्थ शिक्षा का यह अद्वितीय उदाहरण है


राजनीति की व्याकुलता, अर्थ   प्राप्ति की आपाधापी आदि का भी आचार्य जी ने संकेत दिया

परिस्थितियां कैसी भी हों हमें निराश नहीं होना चाहिये

इसके अतिरिक्त 

नैनू, मैहर का क्या अर्थ होता है जानने के लिये सुनें

1.9.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 1 सितम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कृच्छ्र्प्राण-रक्षक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 1 सितम्बर 2022

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सार -संक्षेप 2/34


यह भावमय संसार है जो व्यक्ति इस संसार की भावात्मकता को नजरअंदाज करके केवल इसके उपभोग पर ही ध्यान केन्द्रित करता है उनमें मनुष्यत्व का अभाव रहता है यद्यपि रूप से वह मनुष्य है

ऐसे मनुष्यों की बुभुक्षा इतनी अधिक होती है कि वो सर्वत्र अपना विस्तार करना चाहते हैं, वे चाहते हैं कि लोग उनके दबाव में रहें

लोगों को वे पराधीन बनाना चाहते हैं

हमारी संस्कृति अधीनता को नहीं स्वीकारती


आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी।।

सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।


स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज, जरायुज आदि से भरे हुए इस सारे जगत को श्री सीताराममय जानकर मैं  प्रणाम करता हूं


कल दुःखद सूचना मिली कि भइया राहुल मिठास बैच 89 (ADCP कानून कानपुर) की पूजनीय माताजी  गोलोक प्रस्थान कर गईं


इससे पूर्व 29/08/2022  को 93 बैच के भैया अमित गुप्त जी की माता जी भी नहीं रहीं थीं


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि भैया राहुल भैया अमित गीता का दूसरा अध्याय पढ़ें


हरिद्वार या प्रयागराज में स्नान करें


इससे अपनी भावनाएं जो कामनाओं के कारण लगी हुई होती हैं उनका प्रक्षालन होता है


फिर हम छोटी भावना को बड़ी भावना से जोड़ते हैं

भारत को हम अपनी मां मानते हैं पृथ्वी को अपनी मां मानते हैं व्याप को बढ़ाते हुए संपूर्ण सृष्टि के रचनाकार पालनकर्ता प्रलयकर्ता को पिता कहते हैं प्रकृति को मां कहते हैं


इस प्रकार संपूर्ण सृष्टि में जब हमारा चिन्तन व्याप्त हो जाता है तो हमारे छोटे परिवार का दुःख सुविस्तृत होकर विचारमय होकर धीरे धीरे दुःख से किसी कर्तव्य की ओर हमें उन्मुख कर देता है


मां तो जीवन भर याद रहती है मां के कथन जीवन भर याद रहते हैं


कुछ ऐसे भी तथाकथित स्वार्थी  पुत्र होते हैं जो मांओं को वृद्धाश्रम   छोड़ आते हैं


मां  (भारत मां भी )के प्रति कुण्ठित भाव रखने वाले प्रेत हैं

प्रेत योनि से हमें बचना चाहिये इसके लिये बलपूर्वक विलुप्त कर दिये गये सांस्कृतिक अधिष्ठान वाले ग्रंथों को ध्यानपूर्वक हम पढ़ें पढ़ाएं


अंग्रेजी भाषा की गुलामी सभ्यता की गुलामी से हमें बचना चाहिये


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कवि सुरेश जी की एक कविता की चर्चा की