आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं काञ्चनम्।
वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसम्भाषणम्।।
बालीनिग्रहणं समुद्रतरणं, लङ्कापुरीदाहनम्।
पश्चाद् रावण कुम्भकर्णादि हननम् एतद्धि रामायणम्।।
प्रस्तुत है निधि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 30सितम्बर 2022
का सदाचार संप्रेषण
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सार -संक्षेप 2/63
निधिः =सद्गुणसंपन्न व्यक्ति
मनुष्य को कल्पनालोक का आनन्द मिला है
बहुत सी कल्पनाओं का चित्र स्मृतियों के साथ उसकी संबद्धता भावनाओं के साथ उसका विस्तार अभिव्यक्ति का आनन्द मनुष्य को मिला ईश्वरीय वरदान है
जिसे इसका आनन्द नहीं मिल पाता वह भाग्यहीन है
हम लोग भाग्यशाली हैं सत्कर्मों का प्रदेय है पूर्वजन्म के संस्कार हैं कि ये सदाचार संप्रेषण हमें सात्विक विचारों वाले समाजोन्मुखी जीवन जीते हुए सन्मार्ग की ओर चलने के लिये प्रेरित करते हैं
और याद दिलाते हैं कि अध्यात्म भी शौर्य प्रमण्डित हो
सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुंदरं
*पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्*।
राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं
सीतालक्ष्मणसंयुतं *पथिगतं* रामाभिरामं भजे ॥2॥
*निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह*।
सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥
रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी॥
रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी॥
राम -कथा के बालकांड में तुलसी ने बहुत से चिन्तनपरक तात्विक विचार प्रस्तुत किये हैं तुलसी की रामकथा अद्वितीय है लिखी तो बहुत से लोगों ने
संवेदनशील व्यक्ति रामकथा के बिना रह ही नहीं सकते क्योंकि राम तो रोम रोम में बसे हैं
राम -कथा शक्ति शौर्य उत्साह पराक्रम करुणा दया भक्ति प्रेम सद्चरित्र संयम की एक सुंदर ताली है, जो संदेह रूपी पक्षियों को उड़ा देती है। राम-कथा कलियुगरूपी तरु को काटने के लिए कुल्हाड़ी है
हे गिरिराजकुमारी! तुम इसे आदरपूर्वक सुनो
लछिमन अति लाघवँ सो नाक कान बिनु कीन्हि।
ताके कर रावन कहँ मनौ चुनौती दीन्हि॥17॥
अरण्य कांड में इसके आगे चलते हैं
नाक कान बिनु भइ बिकरारा। जनु स्रव सैल गेरु कै धारा॥
खर दूषन पहिं गइ बिलपाता। धिग धिग तव पौरुष बल भ्राता॥1॥
तेहिं पूछा सब कहेसि बुझाई। जातुधान सुनि सेन बनाई॥
धाए निसिचर निकर बरूथा। जनु सपच्छ कज्जल गिरि जूथा॥2॥
नाना बाहन नानाकारा। नानायुध धर घोर अपारा॥
सूपनखा आगें करि लीनी। असुभ रूप श्रुति नासा हीनी॥3॥
लै जानकिहि जाहु गिरि कंदर। आवा निसिचर कटकु भयंकर॥
रहेहु सजग सुनि प्रभु कै बानी। चले सहित श्री सर धनु पानी॥6॥
कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर जट जूट बाँधत सोह क्यों।
मरकत सयल पर लरत दामिनि कोटि सों जुग भुजग ज्यों॥
कटि कसि निषंग बिसाल भुज गहि चाप बिसिख सुधारि कै।
चितवत मनहुँ मृगराज प्रभु गजराज घटा निहारि कै॥
आइ गए बगमेल धरहु धरहु धावत सुभट।
जथा बिलोकि अकेल बाल रबिहि घेरत दनुज॥18॥
प्रभु बिलोकि सर सकहिं न डारी। थकित भई रजनीचर धारी॥
सचिव बोलि बोले खर दूषन। यह कोउ नृपबालक नर भूषन॥1॥
नाग असुर सुर नर मुनि जेते। देखे जिते हते हम केते॥
हम भरि जन्म सुनहु सब भाई। देखी नहिं असि सुंदरताई॥2॥
जद्यपि भगिनी कीन्हि कुरूपा। बध लायक नहिं पुरुष अनूपा॥
देहु तुरत निज नारि दुराई। जीअत भवन जाहु द्वौ भाई॥3॥
इसके उत्तर में भगवान् राम कहते हैं (यही रामत्व हमें धारण करना चाहिये )
हम छत्री मृगया बन करहीं। तुम्ह से खल मृग खोजत फिरहीं॥
रिपु बलवंत देखि नहिं डरहीं। एक बार कालहु सन लरहीं॥5॥
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गायत्री मन्त्र के विषय में क्या बताया भैया पङ्कज जी की चर्चा क्यों की जानने के लिये सुनें