30.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वादशी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 30-06- 2023

 प्रस्तुत है अनन्यमनस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

द्वादशी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 30-06- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  701 वां सार -संक्षेप

1 :एकाग्रचित्त



आत्मजागरण के इस नित्य सत्कर्म में  आचार्य जी   के सदाचारमय विचार हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराने की,अपने भविष्य को संवारने की, समाज और राष्ट्र के प्रति हमारे द्वारा अपने कर्तव्य का अनुभव करने की, रात्रि में हम सबके द्वारा मंगलमय निद्रा प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं l  भगवान् राम की अहैतुकी कृपा  हमारा अज्ञान रूपी अंधकार दूर करने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराती है

 यह वेला ऐसा ही एक अवसर है 

आइये  विश्वासपूर्वक इससे लाभ  उठाकर  शक्ति  बुद्धि सामर्थ्य का संचय कर सांसारिकता से भी पूर्ण सरोकार रखते हुए  दुराचरण से दूर रहते हुए  शुभ्र आचरण अपनाते हुए ब्रह्मज्ञान को जीवन में उतारते हुए  भौतिक जीवन की आंधी से अपने को बचाते हुए आनन्द के पथ पर अग्रसर हो जाएं


प्रायः आचार्य जी गांव की चर्चा करते हैं

प्रस्तुत है गांव पर ही लिखी आचार्य जी की सहज भावों को दर्शाती एक कविता की कुछ पंक्तियां 

पहले गांव हमारा कैसा था


दुनियादारी को देख समझ जब घर लौटा

एकान्तवास की कुछ दैवीय प्रेरणा हुई

पाया कि गांव में ही पूरा एकान्तवास 

है यहां शान्त सब कुछ ऐसी धारणा हुई

पर थोड़े दिन में देखा गांव नहीं वैसा

बचपन में जैसा  देखा और सुना समझा

गांव का जनजीवन अभाव के साथ साथ 

छल छद्मों और प्रपंचों में डूबा उलझा


गुनता हूं पहले गांव हमारा कैसा था

कितनी उदारता जनजीवन में रहती थी 

हर मन में जड़  चेतन से अद्भुत ममता थी 

हर हृदय प्रेम की पावन सरिता बहती थी

भावना आंख मूंदे कुछ पल सोचती रही

फिर उतर गई खोजने खोया दिव्य अतीत


.....

भारत विश्व गुरु का पद प्राप्त कर ले हम फिर से ऐसे भारत की साधना करें

 कल कौन भैया  गांव पहुंचे थे आचार्य जी आज कहां जा रहे हैं जानने के लिए सुनें

29.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 29-06- 2023

 प्रस्तुत है अनन्यचेतस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

एकादशी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 29-06- 2023


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  700 वां सार -संक्षेप

1 :एकाग्रचित्त


आत्मज्ञान के इस नित्य तप में  आचार्य  जी   के सदाचारमय विचार हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराने की प्रेरणा देते हैं l  हनुमान जी की अहैतुकी कृपा से हमें अज्ञान रूपी अंधकार दूर करने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध  हैं  तत्त्वों का प्राचुर्य दर्शाती यह वेला ऐसा ही एक अवसर है 

आइये  बिना भ्रमित हुए  इसका लाभ  उठाकर  शक्ति  बुद्धि सामर्थ्य के साथ  वैश्विक लीला से भी पूर्ण सरोकार रखते हुए  हम इस लीला के  संवेदनशील अभिनेता अपने पात्र के साथ पूर्ण न्याय करते हुए  भावुकता को जीवित रखते हुए संकटों का सामना करने की योग्यता प्राप्त कर लें, कायरता का परित्याग कर लें

और दीपक के रूप में तेल की अन्तिम बूंद जलने तक हर ओर प्रकाश फैलाने का प्रण कर लें

हम अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन में रत हों 


हम अनन्त से चलकर अनन्त में विलीन होने वाली परंपरा के परिपोषक हैं 


वेदान्त के एक  विशिष्टाद्वैतवादी व्याख्याता हैं आश्मरथ्य आचार्य

ये भेदाभेद के गम्भीर व्याख्याता हैं 

भेदाभेद वेदांत (द्वैताद्वैत) भारत में वेदांत दर्शन की कई परंपराओं में से एक है। "भेदाभेदौ " एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है " असहमति और सहमति, भिन्नता और एकरूपता

इस मत के अनुसार 

आत्मा न तो ब्रह्म से भिन्न है न अभिन्न


इसी तरह एक हैं आचार्य जैमिनी महर्षि  जो वेदव्यास के शिष्य कहे जाते हैं कुछ के अनुसार वे वेदव्यास से भी पहले के हैं

यदि उनके शिष्य हैं तो यह सत्य हो जाता है कि सामवेद और महाभारत की शिक्षा जैमिनी ने वेदव्यास से ही पायी थीं। ये ही प्रसिद्ध पूर्व मीमांसा दर्शन के रचयिता हैं। इसके अतिरिक्त इन्होंने 'भारतसंहिता' की भी रचना की है , जो 'जैमिनि भारत' के नाम से प्रसिद्ध है।




हम यह देखें कि अपने कर्तव्य कर्म में हमारा मन लग रहा है या नहीं


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


शैथिल्य हमें आनन्द से दूर कर देगा


हम पूर्ण के उपासक खंडित चिन्तन में  व्यग्र होकर तथ्यात्मक जगत में उलझकर  आत्म से दूर हो जाते हैं इसलिए आत्मस्थ होने की चेष्टा करें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा सुनील जी भैया अमित अग्रवाल जी (बैच 1986) का नाम क्यों लिया


प्राणिक ऊर्जा का संवर्धन कैसे होता है आदि जानने के लिए सुनें

28.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष दशमी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 28-06- 2023

 प्रस्तुत है अनन्यचिन्त ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

दशमी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 28-06- 2023


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  699 वां सार -संक्षेप

1 :एकाग्रचित्त



आत्मजागरण के इस प्रकल्प में  आचार्य श्री ओम शंकर जी   (    को वा गुरुर्यो हि हितोपदेष्टा )  के सदाचारमय विचार हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराने की प्रेरणा देते हैं l  हनुमान जी की कृपा से हमें अज्ञान रूपी अंधकार दूर करने के पर्याप्त सुअवसर मिलते  हैं  तत्त्वों की प्रचुरता लिए यह वेला ऐसा ही एक अवसर है 

आइये  बिना संदेह के इसका लाभ  उठाकर  शक्ति  बुद्धि सामर्थ्य के साथ संसार में  अच्छी तरह रहने की संकटों का सामना करने की शान्ति और सुख के साथ रहने की हम योग्यता प्राप्त कर लें



कल भैया मनोज अवस्थी जी, गाजियाबाद में रह रहे भैया अशोक गुप्त जी अपने पिता  श्री नेम कुमार गुप्त जी (पूर्व शिक्षक बीएनएसडी इंटर कॉलेज) एवं सुपुत्र हर्षित जी (आईआईटी मुंबई) के साथ  सरौंहां में आचार्य जी से मिले


इसके बाद लखनऊ से भैया सुरेश गुप्त जी  जिनके लिए सत्य है कि

यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।


समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।।,


भैया आशु शुक्ल जी भैया आशु दुबे जी भैया भरत जी भैया अरविन्द जी भैया प्रदीप जी भी आचार्य जी से मिले


रहिमन यों सुख होत है, बढ़त देखि निज गोत।

ज्यों बड़री अंखियां निरखि, आंखिन को सुख होत।।

कुल की वृद्धि अच्छा संकेत है

 संगठन अत्यावश्यक है लाभप्रद है उसमें सात्विकता और  बिना मालिन्य का परिवारभाव भी अनिवार्य है

समाज के प्रति  राष्ट्र के प्रति हमारा एक कर्तव्य है लेकिन इन सबके लिए अपने शरीर को साधना होता है 

अपना शरीर एक हवनकुंड की तरह है  पवित्र मंदिर की तरह है खानपान में सतर्क रहें मंदिर में कचरा न डालें खानपान पवित्र रहना चाहिए

विजातीय द्रव्य का त्याग करें


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥


प्रातः जल्दी जागना भी अनिवार्य है  शक्ति संचित करने के लिए भी यह अनिवार्य है 

ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।


ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।


जिस यज्ञ में अर्पण भी ब्रह्म है, हवी भी ब्रह्म ही है  ब्रह्मरूप कर्ता के द्वारा ब्रह्मरूप अग्नि में आहुति की क्रिया भी ब्रह्म है, ऐसे यज्ञ को करने वाले जिस व्यक्ति की ब्रह्म में ही कर्म-समाधि हो गयी हो , उसके द्वारा प्राप्त करने योग्य फल भी ब्रह्म ही है।


अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति।


सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः।।4.30।।



आचार्य जी ने बताया कि 

तुलसीदास जी ने मानस में प्रारम्भ में ही गुरु की भी वन्दना की है


गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥

तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउँ राम चरित भव मोचन॥1॥


श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥

दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥3॥

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया आज आचार्य जी कहां जा रहे हैं जानने के लिए सुनें

27.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष नवमी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 27-06- 2023

 कोलकाता स्थित गोविन्द भवन  ट्रस्ट के माध्यम से भगवद्गीता का प्रकाशन 1921 में प्रारम्भ हो गया था लेकिन प्रकाशन में त्रुटियों की ओर संकेत करने पर प्रेस मालिक ने कह  दिया कि यदि आपको त्रुटिरहित प्रकाशन चाहिए तो अपनी प्रेस स्थापित कर लें और  इस तरह गीता प्रेस की स्थापना गोरखपुर  में 29 अप्रैल 1923 को हो गई


प्रस्तुत है अनन्यचित्त ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

नवमी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 27-06- 2023


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  698 वां सार -संक्षेप

1 :एकाग्रचित्त



आज की सदाचार वेला में आत्मसाक्षात्कार के लिए सतत प्रयत्नशील हम शिष्य अत्यन्त उत्साह के साथ उपस्थित हैं। सदाचार हमारे धर्मसूत्रों में विस्तार से वर्णित है मनुस्मृति याज्ञवल्क्य स्मृति वशिष्ठ स्मृति आदि में इसका विशद विस्तृत वर्णन है 

इस वेला में आचार्य श्री ओम शंकर जी  की आनन्दमयी अभिव्यक्तियां हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराने की प्रेरणा देती हैं l   परमपिता की कृपा से हमें अज्ञान रूपी अंधकार दूर करने के पर्याप्त सुअवसर प्राप्त हैं  तत्त्वों से भरपूर यह वेला ऐसा ही एक अवसर है संसार में रहते हुए संसारेतर चिन्तन का

आइये इसका लाभ  उठाकर  शक्ति सामर्थ्य बुद्धि के साथ संसार में  अच्छी तरह रहने की हम योग्यता प्राप्त कर लें अपनी जिज्ञासाएं शांत कर लें 


संसार बहुत अद्भुत है। यहां अंधेरा भी है उजाला भी है सुख है तो दुःख भी है इसका निर्माण होता है फिर यह नष्ट हो जाता है


ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।


छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।


भगवान् कह रहे हैं

 ऊपर की ओर मूल वाले एवं नीचे की ओर शाखाओं वाले जिस संसार रूपी अश्वत्थ वृक्ष को अव्यय कहते हैं और वेद जिसके पर्ण हैं, उस वृक्ष को जो जानता है, वह ही सम्पूर्ण वेदों को जानने वाला है


इस अति दृढ़ मूल वाले  वृक्ष को दृढ़ असङ्ग शस्त्र से काटकर उस पद को खोजना चाहिए जिसको पाकर पुरुष पुन: संसार में नहीं लौटते हैं।


उस परम धाम को न सूर्य प्रकाशित कर सकता है और न चन्द्रमा और न ही अग्नि

और इसे प्राप्त कौन व्यक्ति करते हैं ?

इसके पात्र हैं  वे जो

मान और मोह से रहित हो गये हैं, जिन्होंने आसक्ति से होने वाले दोषों को जीत लिया है, जो नित्य परमात्मा में ही लगे हुए हैं, जो सारी कामनाओं से रहित हो गये हैं, जो सुख-दुःख वाले द्वन्द्वों से मुक्त  हैं



(निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै


र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।)

जिनकी संसारेतर समझ  विकसित हो जाती है वे शरीर को अपनी मनोभूमिका के साथ संचालित करते हैं जबकि मन बहुत चंचल होता है


नि:सन्देह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है परन्तु उसे अभ्यास और वैराग्य के द्वारा वश में किया जा सकता है। यह जीवन की अद्भुत स्थिति है अभ्यास लेकिन विरक्ति के साथ 

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।


अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।6.35।।



आचार्य जी ने परामर्श दिया

कि नकारात्मक सोच हटाएं संघर्षशील लोगों की जीवनियां देखें और 

नित्य प्रातः जल्दी जागें तो हमारे पास असीमित शक्तियां आ जाएंगी 

आचार्य जी ने एक सज्जन श्री नारायण दास जी की चर्चा की, जिनके पुत्र (देहरादून में निवास )अभी भी आचार्य जी के संपर्क में हैं, जो कहते थे केवल एक सद्गुण अपना लें कि सूर्योदय से पहले जागें तो बहुत कुछ प्राप्त कर लेंगे

और अधिक जानने के लिए सुनें यह उद्बोधन

26.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष अष्टमी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 26-06- 2023

 प्रस्तुत है  आर्तसाधु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

अष्टमी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 26-06- 2023


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  697  वां सार -संक्षेप

1 :दुःखियों का मित्र



आज की सदाचार वेला में  हम   रहस्यपूर्ण दुर्लभ तपोसिद्ध अनन्त ज्ञान के प्रबोध के लिए उत्सुक शिक्षार्थी अत्यन्त उत्साह के साथ उपस्थित हैं। यह वेला अपनी तपस्या का प्रतिफल न चाहने वाले आचार्य श्री ओम शंकर जी  की नित्य हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराने की  अनुप्रेरणा है l यह कलियुग है तो अज्ञान का अंधकार हम सब पर छाया ही  है लेकिन  परमपिता की कृपा से हमें यह अंधकार दूर करने के, अनित्य में नित्य का भान करने के, पर्याप्त सुअवसर भी प्राप्त हैं     यह वेला ऐसा ही एक अवसर है आइये इसका लाभ  उठाएं



नाम रूपात्मक संसार क्या है? सृष्टि कैसे बनी? इसका निर्माता कौन है? मृत्यु क्या है? ये सारे प्रश्न मनुष्य के द्वारा उत्पन्न हैं और मनुष्य के द्वारा ही सुलझाए गये हैं

मनुष्य  ही नाम रूप तत्त्व शक्ति ब्रह्म है इसलिए हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए




अमित शिवशक्ति संयम साधना संसार का सुख है, 

धरावत् भाव जिस दर हो वही सत्प्यार का मुख है। 

कि जो संसार में रहकर समझते प्यार-परिभाषा, 

कभी उनको किसी भी भाँति का कोई नहीं दुख है। ।


आचार्य जी ने बताया कि अविद्या पञ्चपर्वा क्यों कही जाती है  राग सुख के साधन की तृष्णा है  लेकिन विद्या एक रूप है आत्मबोध हनुमान जी की कृपा है



आचार्य जी ने गीता-संग्रह, द्वितीय गुच्छक (Gita-Sangrah, Dvitiya Guchchhak) जिसमें पंद्रह विभिन्न गीता ग्रंथों का अनुवाद सहित संकलन किया गया है, की चर्चा करते हुए  श्रीमद्भगवद्गीता को सार्थक करने वाली गीता प्रेस जो 1923 से पूरे विश्व में अपने साहित्य के माध्यम से नैतिकता और आध्यात्मिकता का प्रचार  प्रसार कर रही है,का एक अद्भुत प्रसंग  विद्यालय में अध्ययन कर चुके भैया राजकुमार बथवाल जी से संयुत करते हुए बताया

ऐसी प्रेस पर भी कुछ दंभी कीचड़ उछालते हैं


ऐसी बहुत सी संस्थाएं थीं और हैं जो संसार को पार कराने की नौकाएं सिद्ध हुईं


अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।


सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.16।।


हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारा यह भाव जाग्रत रहता है साधना को सिद्धि तक पहुंचाने के लिए  अपने शरीर को सही रखें अनन्त स्वरूप वाले परमात्मा की उपासना करें जल्दी जागें खानपान सही रखें अविद्या और विद्या दोनों को जानें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अस्मिता को कैसे परिभाषित किया अपनी रिसर्च के दौरान आचार्य जी कहां गये थे जानने के लिए सुनें

25.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष सप्तमी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 25-06- 2023

 थाल सजाकर किसे पूजने

चले प्रात ही मतवाले?

कहाँ चले तुम राम नाम का

पीताम्बर तन पर डाले?


कहाँ चले ले चन्दन अक्षत

बगल दबाए मृगछाला?

कहाँ चली यह सजी आरती?

कहाँ चली जूही माला?


प्रस्तुत है  आर्तबन्धु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

सप्तमी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 25-06- 2023


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  696  वां सार -संक्षेप

1 :दुःखियों का मित्र



आज की सदाचार वेला में  हम शिष्य अत्यन्त उत्साह के साथ उपस्थित हैं। यह वेला अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कराने वाले आचार्य श्री ओम शंकर जी  की नित्य हमें धर्मपथ पर चलने की , मनुष्यत्व की अनुभूति कराने की  भौतिकवादी से अध्यात्मवादी बनने की अभिप्रेरणा है l यह कलियुग है अज्ञान का अंधकार हम सब पर छाया ही रहता है लेकिन इन्द्रियातीत  परमात्मा की कृपा से हमें यह अंधकार दूर करने के पर्याप्त सुअवसर भी मिलते हैं    समय के लिहाज से अत्यन्त उपयोगी यह वेला ऐसा ही एक अवसर है आइये इसका लाभ  उठाकर  शिक्षार्थित्व की अनुभूति करते हुए


(गगन के उस पार क्या

पाताल के इस पार क्या है?

क्या क्षितिज के पार, जग

जिस पर थमा आधार क्या है?


यदि मिला साकार तो वह

अवध का अभिराम होगा।

हृदय उसका धाम होगा

नाम उसका राम होगा।)



 सात्विक चिन्तन में रत हो जाएँ और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में कदम बढ़ा लें

परमात्मा समस्त इन्द्रियों का मूल स्रोत है   परमात्मा अद्भुत है परमात्मा समझ में नहीं आता 



सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्।


असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च।।13.15।।

वह समस्त इन्द्रियों के कार्यों के द्वारा प्रकाशित होने वाला, किन्तु समस्त इन्द्रियों से रहित है

आसक्ति रहित  गुण रहित होने के बाद भी सबका धारण पोषण करने वाला और गुणों का भोक्ता है


भौतिकवादी बालक के समान है लेकिन सभी के भीतर गुरु बैठा है इसलिए अपने पास बैठना अद्भुत है

आत्मानुभूति अवर्णनीय है

अप्पदीपो भव

आत्म की अनुभूति से  अद्भुत अवस्था आती है परमात्मा की तरह मनुष्य भी एक तरह से सृष्टि की रचना करता है

हम सभी को परमात्मा से वरदान मिला है बात सिर्फ अनुभव करने की है 

 तुलसीदास जैसा व्यक्ति संसार से उत्पन्न होकर अपने अंदर संसार को समा लेता है


तुलसी मानस की  अद्भुत रचना करते हैं

वर्णानां अर्थसंघानां रसानां छंद सामपि,

           मंगलानां च कर्त्तारौ वंदे वाणीविनायकौ


संसार बहुत रहस्यात्मक है परमात्मा जादू करता रहता है

 इस रहस्यात्मक संसार को जितना समझने की चेष्टा की जाए उतना कम है


प्रायः हम सभी सांसारिकता में लिप्त होकर घर का पता भूल चुके हैं इसलिए हमारे लिए आत्मानुभूति आवश्यक है


पहुँच गयी गाड़ी मुकाम पर अभी उतरना है

घर का पता भूल आया हूँ भटक विचरना है 


लंबी दूरी राह अजानी

 लगती भर जानी-पहचानी

 अपने जैसों का मेला है

 आपाधापी का रेला है

कहाँ गयी वह कौन आ गया

 धूम छटी फिर मौन छा गया 

 कोइ खोजता घूम रहा है

कोई बैठा झूम रहा है 

झटका लगा हार कर सोचा यहीं पसरना है ।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज भैया मुकेश का नाम क्यों लिया मोदी जी की अमेरिकी यात्रा के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें

24.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष षष्ठी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 24-06- 2023

 प्रस्तुत है  विखुर -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

षष्ठी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 24-06- 2023


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  695  वां सार -संक्षेप

1 :विखुरः =राक्षस



 आज की सदाचार वेला में सोत्साह हम शिष्य उपस्थित हैं। अज्ञानांधकार को दूर करने वाले आचार्य श्री ओम शंकर जी नित्य हमें धर्मपथ पर चलने के लिए, मनुष्यत्व की अनुभूति कराने के लिए प्रेरित करते हैं l यह कलियुग है अज्ञान का अंधकार हम सब पर छाया रहता है लेकिन परमात्मा की कृपा से हमें यह अंधकार दूर करने का अवसर भी मिलता है  यह वेला ऐसा ही एक अवसर है आइये इसका लाभ  उठाकर सात्विक चिन्तन में रत हो जाएँ और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में कदम बढ़ा लें


1998 बैच के भैया निर्भय और 1998 बैच के ही भैया प्रशांत वाजपेयी  जो लगभग 5 वर्ष बाद अमेरिका से भारत आए हैं,आचार्य जी से कल युग भारती प्रयास केंद्र में अत्यन्त आत्मीयता से मिले

यह अपनापन अत्यन्त अद्भुत है कष्ट में भी सुख की अनुभूति होती है सत्य है कि प्रेम ही ईश्वर है 

इसके बाद

भैया प्रदीप वाजपेयी, भैया अरविंद तिवारी,  भैया पुनीत श्रीवास्तव भी आये

अत्यन्त आनन्द का वातावरण रहा

भैया मुकेश जी भी उपस्थित रहे

आचार्य जी ने मंडनमिश्र की पुस्तक जीवन मुक्ति विवेक की चर्चा की

इसमें लेखक ने ज्ञानियों की जीवित अवस्था में  रहने पर भी मोक्ष की अवस्था का स्वरूप बतलाया है श्री रामकृष्ण परमहंस जीवन मुक्त ज्ञानी थे


केवल प्राणों का परिरक्षण जीवन नहीं हुआ करता है

जीवन जीने को दुनिया में अनगिन सुख सुर साज चाहिए......


आचार्य जी ने लेखन योग का महत्त्व बताया अपना लेखन अपना मित्र हो जाता है स्वलेखन का अभ्यास अद्भुत है स्वलेखन एक साधना है

इससे मनुष्य के जीवन का आनन्द पक्ष सुस्पष्ट होता है 

अपनी समस्याएं फिर हमें आपने को गम्भीर नहीं लगती हैं अपनी रचनाधर्मिता को अपने से दूर न करें अर्थार्जन में इतने व्यस्त न हों कि स्वानुभूति का समय ही न मिले



आचार्य जी ने परामर्श दिया कि 24  घंटे का एक कार्यक्रम करें जिसमें जिज्ञासु और प्रयोगधर्मी सदस्य आएं किसी एक विषय पर चिन्तन मनन का प्रयोग करें और इस प्रयोग से कई सिद्धान्त विकसित होंगे


इसके अतिरिक्त धीरेन्द्र शास्त्री जी और भैया आशु शुक्ल जी की चर्चा आचार्य जी ने क्यों की जानने के लिए सुनें आज का यह उद्बोधन

23.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष पञ्चमी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 23 -06- 2023

 हे, जगजीवन के कर्णधार 

ज्योतित जीवन शाश्वत विचार 

संकल्प सिद्धि साधक उदार

जागो शुभ पावन कुलाचार।


प्रस्तुत है  सामयिक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

पञ्चमी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 23 -06- 2023


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  694  वां सार -संक्षेप

1 : = वक्त का पाबंद


मन बुद्धि भाव विचार संकल्प   शक्ति भक्ति  तप साधना स्वाध्याय करुणा संवेदनशीलता को एकीकृत कर अपने लक्ष्य पर भेदी दृष्टि रखते हुए  समय समय पर हम लोगों की हिम्मत बंधाने वाले हम लोगों में सैनिक भाव जाग्रत करने वाले आचार्य जी हम लोगों के समक्ष इस तत्त्वों से भरपूर सदाचार वेला में आज पुनः उपस्थित हैं



आइये प्रवेश करें इस वेला में अपना आत्मबोध अपनी आत्मशक्ति जाग्रत करने के लिए सदाचारमय विचार ग्रहण करने के लिए स्वाश्रयी समाज तैयार करने के लिए राष्ट्रनिष्ठा से परिपूर्ण व्यक्तित्व के उत्कर्ष के लिए  संगठित रहने का भाव मन में रखते हुए  छिपे हुए आस्तीन के सांपों से सचेत रहते हुए


साधना -सन्दीप आचार्य जी ने योग की विस्तृत व्याख्या की

उन्होंने बताया कि प्राणों का परिपोषण भी आवश्यक है उसी से हिम्मत आती है

श्रीरामचरित मानस श्रीमद्भगवद्गीता को जीवन में उतारने का हम लोग प्रयास करें



अपना आत्मबोध जाग्रत करने के लिए आइये आचार्य जी की इस अद्भुत कविता का आश्रय लें



मैं अमा का दीप हूँ जलता रहूँगा

चाँदनी मुझको न छेड़े आज, कह दो |

जानता हूं अब अन्धेरे बढ़ रहे हैं 

क्षितिज पर बादल घनेरे चढ़ रहे हैं

आँधियाँ कालिख धरा की ढो रही है

 व्याधियाँ हर खेत में दुःख बो रही है

 फूँक दो अरमान की अरथी हमारी

मैं व्यथा का गीत हूँ चलता रहूँगा।

मैं अमा का दीप..... ।।१।। 



मानता हूँ डगर  यह दुर्गम बहुत है

प्राण का पाथेय चुकता जा रहा है 

प्यास अधरों की जलाशय खोजती है

भाव का अभियान रुकता जा रहा है

काल से कह दो कि अपनी आस छोड़े

 हिमशिखर का मीत हूँ गलता रहूँगा

मैं अमा का दीप......।।२।।


साधना की सीप मोती क्या करेगी

कामना की क्यारियाँ मुरझा रही हैं

पवन की साँसें अटक भटकें भले ही

याचना मुँह खोलते शरमा रही है

 नलिन अब दिनमान की क्यों राह देखे

 साधना -सन्दीप हूँ जलता रहूंगा

मैं अमा का दीप.... || ३ ||


आचार्य जी ने एक प्रसंग बताया कि एक व्यक्ति बाद में बहुत व्यथित हुए कि उन्होंने business के लिए बच्चों को बहुत खराब खराब चीजें खिलाईं



आचार्य जी ने जगदीशपुर गांव जिला भोजपुर बिहार के वीर कुंवर सिंह,जिनका जन्म एक राजपूत परिवार मे हुआ था (13 नवंबर 1777 - 26 अप्रैल 1858) (वे 1857  प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक थे।  इनको 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने के लिए जाना जाता है), की चर्चा की


अगर ऐसे उदाहरण हम नहीं जानते हैं तो उसका कारण यही है कि इन उदाहरणों को छिपाया गया

इसके अतिरिक्त 

भैया पुनीत भैया अरविन्द भैया प्रदीप आज कहां जा रहे हैं

भैया पंकज  भैया निर्भय का नाम आज किस संदर्भ में आया आदि जानने के लिए सुनें यह संप्रेषण

22.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष चतुर्थी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 22 -06- 2023

 मैं स्रष्टा का उत्कृष्ट सृजन

 पालन कर्ता का सहयोगी

 मैं हूँ विध्वंस कपाली का

 हूँ सृजन प्रलय का अनुयोगी



प्रस्तुत है  ज्ञान -भातु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

चतुर्थी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 22 -06- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  693 वां सार -संक्षेप

1 : भातुः =सूर्य


हमारा प्रेरक -तत्त्व जाग्रत रहे जिससे हम सांसारिक प्रपंचों में उलझे उलझे ही अपना जीवन व्यर्थ न कर लें हम इन सदाचार संप्रेषणों का आश्रय लेते हैं

आइये अपने कर्तव्यों को करते हुए हनुमान जी की भक्ति में भावित होते हुए  अपनी गति को शक्तियुक्त रखने के लिए  प्रवेश करें आज की वेला में


यदि हम अलग अलग स्थानों पर बिखरे हुए ज्ञान -गरिमा के बिन्दुओं को वाणी या लेखनी के माध्यम से व्यक्त करना सीख लें तो हमारी ही अभिव्यक्तियां हमें आनन्द प्रदान करने लगेंगी

ये शब्द -मूर्तियां हमको दर्शन देकर हमारा ही ज्ञान वर्धन कर देंगी यह अनुभूति ही बता देगी कि हमारे अन्दर ही सब कुछ है

अहं ब्रह्मास्मि

और यह भाव हमारी निराशा समाप्त कर देगा

मैं भारत में जन्मा हूं और उसमें भी उत्तर प्रदेश में इस पर गर्व करें 


अन्तःप्रेरणा से मिले शब्दों को उकेर कर आचार्य जी, जिनका प्रेरक -तत्त्व सदैव जाग्रत रहता है,ने अपने भाव इस  निम्नांकित कविता में व्यक्त किये हैं

प्रस्तुत हैं इसके कुछ अंश


मैं अन्तरतम की आशा हूँ मन की उद्दाम पिपासा हूँ

 जो सदा जागती रहती है ऐसी उर की अभिलाषा हूँ ।


मैंने करवट ली तो मानो 

हिल उठे क्षितिज के ओर छोर

 मैं सोया तो जड़ हुआ विश्व

  निर्मिति फिर-फिर विस्मित विभोर 

मैंने यम के दरवाजे पर दस्तक देकर ललकारा है

मैंने सर्जन को प्रलय-पाठ पढ़ने के लिये पुकारा है

मैं हँसा और पी गया गरल

मैं शुद्ध प्रेम-परिभाषा हूँ, 



मैं अन्तरतम की आशा हूँ ।


मैं शान्ति-पाठ युग के इति का   

 मैं प्रणव-घोष अथ का असीम

मैं सृजन-प्रलय के मध्य सेतु

 हूँ पौरुष का विग्रह ससीम

 बैखरी भावनाओं की मैं

सात्वती सदा विश्वासों की

 मैं सदियों का आकलन बिन्दु

 ऊर्जा हूँ मैं निश्वासों की

 पर परिवेशों में मैं जब तब

 लगता है घोर निराशा हूँ,

 मैं अन्तरतम की आशा हूँ | | २ || 


मैं हूँ अनादि मैं हूँ अनन्त

 मैं मध्यंदिन का प्रखर सूर्य

 मैं हिम-नग का उत्तुंग शिखर

 उत्ताल उदधि का प्रबल तूर्य

 दिग्व्याप्त पवन उन्चास और

 मैं अन्तरिक्ष का हूँ कृशानु

 मैं माटी की सद्गन्ध और

 रस में बसता बन तरल प्राण

 पर आत्म बोध से रहित स्वयं

 मैं ही मजबूर हताशा हूँ,


मैं अन्तरतम की आशा हूँ | | ३ ||


हमें अपना आत्मबोध कभी समाप्त नहीं करना चाहिए

आत्मानन्द की अनुभूति न त्यागें 

पथ भूलना संसारी भाव है


एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी। परमारथी प्रपंच बियोगी॥

जानिअ तबहिं जीव जग जागा। जब सब बिषय बिलास बिरागा॥2॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उपनिषदों की चर्चा की आचार्य जी ने बताया कि क्यों सनातन धर्म सर्वश्रेष्ठ है

हमारा अध्यात्म शौर्य के आवरण में चलता रहा है 

संगठन संयमी व्यक्ति ही कर सकता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने और क्या बताया जानने के लिए सुनें आज का यह उद्बोधन

21.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष तृतीया ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 21 -06- 2023 (योग -दिवस ) का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  तापस ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

तृतीया ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 21 -06- 2023

(योग -दिवस )

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  692वां सार -संक्षेप

1 :  भक्त



पुन: आज की सदाचार वेला में सोत्साह हम शिष्य उपस्थित हैं। अज्ञानांधकार को दूर करने वाले आचार्य श्री ओम शंकर जी नित्य हमें धर्मपथ पर चलने के लिए, मनुष्यत्व की अनुभूति कराने के लिए प्रेरित करते हैं l यह कलियुग है अज्ञान का अंधकार हम सब पर छाया रहता है लेकिन परमात्मा की कृपा से हमें यह अंधकार दूर करने का अवसर भी मिलता है  यह वेला ऐसा ही एक अवसर है आइये इसका लाभ  उठाकर सात्विक चिन्तन में रत हो जाएँ और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में कदम बढ़ा लें 

आज योग दिवस है।  योग मार्ग पर चर्चा हेतु दूसरे अध्याय में आइये प्रवेश करते हैं



योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय ।

सिद्ध्यसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥48॥


हे धनञ्जय ! सफलता और असफलता की आसक्ति को त्याग  तुम दृढ़ता से अपने कर्तव्य का पालन करो।

क्योंकि प्रयास करना हमारे हाथ में है और परिणाम निश्चित करना हमारे नियंत्रण से बाहर है


 इसे ही समभाव योग कहते हैं


छठे अध्याय में



अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः । स सन्न्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ॥

जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेते हुए करणीय कर्म करता है, वही संन्यासी तथा योगी है

 केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है

 केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योगी नहीं है


योग चित्तवृत्ति का निरोध है


चित्त मन बुद्धि अहंकार से बना है  आचार्य जी ने एक प्रसंग बताया कि कभी अपने विद्यालय की प्रबन्धकारिणी समिति के उपाध्यक्ष रहे श्री शर्मा जी कितने एकाग्रचित्त हो गए थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि आचार्य श्री ओमशंकर जी वहां आ चुके हैं


हरिनाम  का जप कैसे योग है

हम लोगों के आनन्द की चिन्ता करने वाले

आचार्य जी ने चित्त की पांच अवस्थाएं पांच वृत्तियां क्या बताईं आदि जानने के लिए सुनें आज का यह संप्रेषण

20.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 20 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।


निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी।।12.13।।


सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।


मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.14।।




प्रस्तुत है  ज्ञान -प्रवाह ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

द्वितीया ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 20 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  691वां सार -संक्षेप

1 :  ज्ञान की नदी



ये सदाचार वेलाएं व्यर्थ नहीं हैं  इसके परिणाम दिखने लगे हैं हम लोग इनमें निहित सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने के लिए प्रयत्नशील हैं और इसीलिए प्रतिदिन इनकी  प्रतीक्षा करते हैं

अपने जीवन को सही दिशा और दृष्टि दे पाएं इसका यह उत्तम उपाय है


आचार्य जी की दिशा और दृष्टि सुस्पष्ट है



मनुष्य का स्वभाव है शिक्षा देना और भारतवर्ष में तो अधिकांश लोग शिक्षा देते रहते हैं  इसे ज्ञान का विस्तार कह सकते हैं लेकिन

अधजल गगरी छलकत जाए 

(पूरी गगरिया चुपके जाए)

की तरह 

 पश्चिमी सभ्यता में इससे भिन्नता है


इहां संभु असमन अनुमाना, दच्छ सुता कहुं नहिं कल्याना

मोरेहु कहें न संसय जाहीं, विधि विपरीत भलाई नाहीं



हमें संदेह करना चाहिए परन्तु संदेह होने पर विवेक से काम लेना चाहिए।  संदेह होने पर तुरंत निर्णय लेकर किया गया कार्य हमारे जीवन को नष्ट कर देता है।  अतः विवेक पूर्ण  निर्णय लेकर संदेह को दूर किया जा सकता है।


‘हे हरि ! कस न हरहु भ्रम भारी ।


जद्यपि मृषा सत्य भासे जबलहिं कृपा तुम्हारी।’




हम देखते हैं कि कवि दार्शनिक गोस्वामी तुलसीदास जी के काव्य में रामानुज के विशिष्टाद्वैत की प्रधानता  है


उनकी आत्मनिवेदनात्मक भक्ति वाली 'विनयपत्रिका’ भगवान् राम की सर्वोपरिता का प्रतिपादन है जो विशिष्टाद्वैत का प्रमुख तत्व है


इस प्रन्थ में भगवान राम के ‘ब्रह्मत्व’ का  जगह जगह उल्लेख  है। भगवान् राम ब्रह्म अंशी का ही अंश है।

इसी ग्रंथ में तुलसीदास जी कहते हैं 


‘हे हरि ! कस न हरहु भ्रम भारी ।


जद्यपि मृषा सत्य भासे जबलहिं कृपा तुम्हारी।’



हे हरि ! मेरे इस भ्रम को कि संसार  सत्य है सुख देने वाला  है,क्यों दूर नहीं करते ? यद्यपि यह संसार मिथ्या है, फिर भी  आपकी कृपा के बिना यह सत्य  जैसा ही प्रतीत होता है


अर्थ अबिद्यमान जानिय, संसृति नहिं जाइ गोसाईं।

बिन बाँधे निज हठ सठ परबस परयो कीरकी नाईं।2।



मैं यह जानता हूँ कि शरीर संपत्ति पुत्र पुत्री आदि विषय यथार्थ नहीं हैं, फिर भी इस संसार से छुटकारा नहीं पाता। मैं किसी दूसरे द्वारा बाँधे बिना ही अपने ही अज्ञान से कीर अर्थात् तोते की तरह  बँधा पड़ा हूँ



सपने ब्याधि बिबिध बाधा जनु मृत्यु उपस्थित आई।

बैद अनेक उपाय करै जागे बिनु पीर न जाई।3।


श्रुति-गुरू-साधु-समृति-संमत यह दृष्य असत दुखकारी।

 तेहिं बिनु तजे , भजे बिनु रधुपति, बिपति सकै को टारी।4।


बहु उपाय संसार-तरन कहँ, बिमल गिरा श्रुति गावैं।

तुलसिदास मैं-मोर गये बिनु जिउ सुख कबहुँ न पावै।5।



जैसे किसी को सपने में अनेक  रोग हो जायँ जिनसे उसकी मृत्यु तक आ जाए और बाहर से वैद्य अनेक उपाय करते रहें, किन्तु जब तक वह जागता नहीं तब तक उसका दर्द नहीं मिटता

 इसी प्रकार माया के भ्रम में लोग बिना ही हुए संसार के अनेक कष्ट भोग रहे हैं और उन्हें दूर करने के लिये असत्य उपाय कर रहे हैं, लेकिन तत्त्वज्ञान के बिना कभी इनसे छुटकारा नहीं मिल सकता


....

मैं और  मेरा दूर नहीं हो जाता तब तक जीव कभी सुख नहीं पा सकता 


इसके अतिरिक्त 

आचार्य जी ने आपातकाल का कौन सा प्रसंग बताया

गांव का कल का कौन सा प्रसंग बताया फिल्म आदिपुरुष का नाम क्यों आया 

जानने के लिए सुनें

19.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 19 -06- 2023

 कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥



प्रस्तुत है  अभिजात  ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

प्रतिपदा ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 19 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  690 वां सार -संक्षेप

1 :  विद्वान्




हम संगठन मन्त्र के जापक यदि आपस में  संपर्क करके प्रश्नोत्तर करते हैं तो यह सदाचार वेला और अधिक फलवती हो जाएगी


प्रश्न उत्तर और सहयोग से उसकी समीक्षा द्वारा हमारा ज्ञान समृद्ध होता है और यह यज्ञीय कर्म व्यवहार जगत में अत्यन्त उपादेय है

तत्त्वदर्शी आचार्य जी से भी हम यदि प्रश्न करते हैं तो हमारे लिए यह अत्यन्त लाभकारी है

जैसा गीता में कहा भी गया है



तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।


उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।4.34।।


उस तत्त्वज्ञान  को तत्त्वदर्शी ज्ञानी महापुरुषों के समीप जाकर  समझें । उनको साष्टाङ्ग दण्डवत् प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और परिप्रश्न करने से वे  उस तत्त्वज्ञान का उपदेश देंगे।


संगठन को जीवन्त बनाए रखने के लिए भी सतत संपर्क आवश्यक है


व्यक्ति से व्यक्तित्व बनने की यात्रा व्यक्ति के संसर्ग संपर्क से ही आती है मशीन से यह संभव नहीं


गीता में 

स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।


स्वकर्मनिरतः सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु।।18.45।।


अपने अपने स्वाभाविक कर्म में लगा हुआ मनुष्य सम्यक् सिद्धि को प्राप्त कर ही लेता है। स्वकर्म में रत व्यक्ति किस प्रकार सिद्धि प्राप्त करता है, उसे तुम सुनो


जिस परमात्मा से सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति होती है और जिससे यह सम्पूर्ण संसार व्याप्त है, उस परमात्मा का अपने कर्म के द्वारा पूजन करके मनुष्य सिद्धि को प्राप्त हो जाता है।

और हमारा उद्देश्य भी सिद्धि प्राप्त करने का है


पालक परमात्मा आनन्दित होने के लिए मनुष्य से कहता है कि मेरे लिए यज्ञ तप और दान करो परमात्मा ने कठिन काम हमें सौंपा है लेकिन हम मनुष्य है इसलिए हमें मनुष्यत्व की अनुभूति भी करनी चाहिए 

यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।


यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्।।18.5।।

हम आत्मनिष्ठ होंगे तो सर्वज्ञ हो जाएंगे स्वाध्याय से दूरी बनाना हमें भटका देता है 

हम मां भारती के भक्त त्याग के लिए उत्पन्न हुए हैं सभ्यता का मूल स्रोत भारतवर्ष ही है और यहां के अनुसंधान चरम सीमा तक पहुंच चुके हैं हमें इस पर पूर्ण विश्वास करना चाहिए 

 अस्ताचल वाले देशों से हमें भ्रमित नहीं होना चाहिए क्योंकि वहां के निवासी भोग के लिए उत्पन्न हुए हैं

आगामी 2024 के चुनाव गम्भीरता से लें यह सामजिक कर्तव्य है इसके लिए सक्रिय हों लक्ष्य प्राप्त करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पवन भैया मनीष भैया पंकज जी का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें आज का संप्रेषण

18.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 18 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रथा वर्षों पुरानी है कि हम परिवार जीते हैं, 

सभी दुख-दर्द विस्मृत कर मधुर मधु प्यार पीते हैं, 

नहीं अपने लिए जीना गवारा हो सका पल भर, 

कभी मन में नहीं आया कि हम 'इस बार रीते हैं'  ।



प्रस्तुत है व्यपदेष्टृ -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

चतुर्दशी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 18 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  689 वां सार -संक्षेप

1 :  व्यपदेष्टृ =धोखेबाज

गुरु कैसा होना चाहिए 

गुरु की परिभाषा है कि वह 

शान्तो दान्तः कुलीनश्च विनीतः शुद्धवेषवान् ।

शुद्धाचारः सुप्रतिष्ठः शुचिर्दक्षः सुबुद्धिमान् ॥ २-५१॥


आश्रमी ध्याननिष्ठश्च मन्त्रतन्त्रविशारदः ।

निग्रहानुग्रहे शक्तो वशी मन्त्रार्थजापकः ॥ २-५२॥

होना चाहिए 

उसी के अनुरूप गुरु हैं अपने आचार्य श्री ओम शंकर जी


 उन्हीं आचार्य जी की तात्विक बातों से भरपूर सदाचार वेला , जो निः संदेह परमात्मा की एक व्यवस्था है,हम आस्थावादियों का एक आश्रय है,में, उत्साह में डूबने के लिए  कल्याण मार्ग पर चलने के लिए  आत्मस्थ होने के लिए संसार की समस्याओं को सुलझाने का हौसला पाने हेतु आइये प्रवेश करते हैं इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि इन वेलाओं की हमें प्रतिदिन प्रतीक्षा रहती है 


तुलसीदास जी कहते हैं


जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।

बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥7(ग)॥


संसार में जितने जड़ और चेतन जीव हैं, उन सभी को राममय जानकर सदैव मैं उन सबके चरणकमलों की ( दोनों हाथ जोड़कर )वन्दना करता हूँ


यह साम्य अवस्था है लेकिन है बहुत मुश्किल


छांग्योपनिषद् में नारद जी सनत कुमार से कहते हैं , "भगवन! मैंने दार्शनिकता के छह भागों, चार वेद, उपवेद, गणित और अन्य सभी विज्ञानों का अध्ययन किया है. परन्तु मैं आत्मिक शांति प्राप्त करने में असमर्थ हूँ


यह शान्ति की अनुभूति बहुत कठिन है अर्थात् 

कुछ समय आत्मस्थ होने का भाव

तुलसी जी  जिनकी स्वयं की कथा अद्भुत है कहते हैं


करन चहउँ रघुपति गुन गाहा। लघु मति मोरि चरित अवगाहा॥

सूझ न एकउ अंग उपाऊ। मन मति रंक मनोरथ राउ॥3॥



मैं प्रभु राम के गुणों का वर्णन करना चाहता हूँ, परन्तु मेरी बुद्धि छोटी है और श्री रामजी के चरित्र की थाह ही नहीं है। इसके लिए मुझे कोई उपाय नहीं सूझता। मेरा मन और मेरी बुद्धि कंगाल हैं, किन्तु मनोरथ राजा है

आत्मस्थता हमारे लिए भी कठिन है लेकिन 

इन्हीं वेलाओं के क्षण हमें आत्मस्थ होने के लिए प्राप्त हो जाते हैं

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम 

महापुरुषों की जीवनियों की ओर रुख करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने और क्या कहा जानने के लिए सुनें यह संप्रेषण

17.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 17 -06- 2023

 हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराई।


बूँद समानी समुंद मैं, सो कत हेरी जाइ॥


साधना की चरम अवस्था में जीव  का अहंभाव नष्ट हो जाता है। यही आनन्द प्राप्ति की अवस्था है अद्वैत को अनुभव करने पर आत्मा  परमात्मा का अंश लगता है। अंश अंशी  में लीन होकर अपना अस्तित्व ही मिटा देता है।


यदि कोई  व्यक्ति आत्मा के पृथक् अस्तित्व को खोजना चाहे तो उसके लिए यह दुरूह कार्य होगा।



प्रस्तुत है अभिसंध-रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

त्रयोदशी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 17 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  688 वां सार -संक्षेप

1 :  अभिसन्धः = लांछन लगाने वाला


हम भारतीय दैवीय संस्कृति के उपासक हैं और हमें विश्वास रहता है कि हम सदैव दैवीय शक्तियों द्वारा रक्षित हैं और इसीलिए विजय के लिए संकल्पित रहते हैं

हमारी ऋषि परम्परा यही सिखाती रही है कि हम आसुरी संपदा से दूर रहें सदाचारमय विचार ग्रहण करते रहें वह हमें सचेत करती है कि भाषा की मर्यादा हम कभी न लांघें


इसी ऋषि परम्परा के पक्षधर और समाज, राष्ट्र को उत्कर्ष की दिशा देने के लिए लालायित आचार्य जी द्वारा हम इन सदाचार वेलाओं से सदाचारमय विचार ग्रहण कर  अपने जीवन को सही दिशा और दृष्टि देने का प्रयास कर रहे हैं ताकि संकटों के आने पर हम बिल्कुल घबराएं नहीं समस्याओं का आसानी से सामना कर सकें

आसुरी संस्कृति के प्रति लगाव होने पर आसुरी विचार आने लगते हैं जो आसुरी व्यवहार में व्यक्त होने लगते हैं इसीलिए हमें अपना विवेक जाग्रत करने की विचारों को परिमार्जित करने की आवश्यकता है सद्भाव और सद्विचारों से व्यवहार भी उत्कृष्ट हो जाता है 

हम प्रकृति को संस्कृति की ओर ले जाते हैं विकृति की ओर नहीं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चित्रकूट में अपनी भूमिका स्पष्ट की

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि समान नागरिक संहिता के जनमत में   युगभारती  बढ़ चढ़कर हिस्सा ले

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आदिपुरुष, The Kerala Story की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें आज का यह उद्बोधन

16.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वादशी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 16 -06- 2023

 अंधेरा है तनिक दीपक जलाओ

सुबह जब तक न हो यह जगमगाओ ,

उठो अपने दियों में स्नेह भर लो

कि, सूखी बातियां सस्नेह कर लो,

अंधेरे में दिया ही साथ देगा

शिथिल साथी उठेगा हाथ देगा,

अभी सबको सहारे की जरूरत

सभी की फिर खिलेगी सुबह सूरत,

सुबह होगी तनिक सी देर बाकी

घड़ी अब आ गई अंतिम अमा की।।

✍️ओम शंकर



प्रस्तुत है सूरत ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

द्वादशी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 16 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  687 वां सार -संक्षेप

1 : दयालु


मनुष्य लगातार योजनाएं बनाता है लेकिन जो मनुष्य अध्यात्म आधारित भावों में डूबकर योजनाओं की सफलता को परमात्मा का प्रसाद मान लेते हैं वे असफलता में निराश नहीं होते और सफलता में दम्भ नहीं करते

दम्भ आसुरी संपदा है


दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।


अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्।।16.4।।


हे अर्जुन ! दम्भ, दर्प, अभिमान, क्रोध, कठोर वाणी  और अज्ञान आसुरी सम्पदएं हैं

हमें परमात्मा के आश्रित रहकर कर्तव्यबोध होना चाहिए

इस कथात्मक संसार में सहज परिस्थितियों के साथ साथ विषम परिस्थितियां भी हैं नायकत्व है तो खलनायकत्व का भी अस्तित्व है  परमात्मा ने हमें रचना करने के लिए भेजा है मानस में यह सब स्पष्ट है मां सती के भ्रम को शिव जी ने दूर किया कि ये प्रभु ही  मनुष्य रूप में लीला कर रहे हैं 

हर व्यक्ति के साथ कथा लगी है परमात्मा द्वारा ज्योंही सृष्टि रचने का क्रम प्रारम्भ होता है कथा वहीं से प्रारम्भ हो जाती है पूरा जीवनचक्र एक कथा है

शिव जी कहते हैं


राम कृपा तें पारबति सपनेहुँ तव मन माहिं।

सोक मोह संदेह भ्रम मम बिचार कछु नाहिं॥ 112॥


तदपि असंका कीन्हिहु सोई। कहत सुनत सब कर हित होई॥

जिन्ह हरिकथा सुनी नहिं काना। श्रवन रंध्र अहिभवन समाना॥

जिन्होंने भी अपने कानों से भगवान की कथा नहीं सुनी, उनके कानों के छेद साँप के बिल जैसे ही हैं।


नयनन्हि संत दरस नहिं देखा। लोचन मोरपंख कर लेखा॥

ते सिर कटु तुंबरि समतूला। जे न नमत हरि गुर पद मूला॥



जिन्होंने अपनी आंखों से संतों के दर्शन नहीं करे हैं , उनकी आंखें मोरपंखी  वाली नकली आँखों की तरह हैं। वे सिर कड़वी तूँबी जैसे हैं, जो हरि और गुरु के पैरों पर नहीं झुकते।

कुछ दंभी पैर नहीं छूते  वे गलत हैं हमें सहजता अपनानी चाहिए


जिन्होंने भगवान की भक्ति को अपने हृदय में जगह नहीं दी वे प्राणी जीते हुए ही मृतक  हैं


भगवान् राम की पूरी जीवनयात्रा संकटों में घिरी है

विश्वामित्र राम को संघर्ष के लिए तैयार करते हैं वशिष्ठ  राम को शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति कराते हैं

दुष्ट को दंड देने की अनुभूति धर्म है रचनाकार प्रभु के प्रतिनिधि होने के नाते रचना में आई बाधा को हम हटाते हैं 

न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है

(साकेत )

आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि हम हंसी के पात्र क्यों बने इसलिए हमें शौर्यप्रमंडित अध्यात्म नहीं त्यागना चाहिए शक्ति भक्ति साथ साथ चलनी चाहिए

हम सबके सामने चुनौती है अपनी नौका कुशलता से चलाएं हम अमरत्व के उपासक हैं शौर्य के लिए हम सदैव तैयार हैं उम्र से मतलब नहीं संगठन भी अनिवार्य है

रामकथा कृष्णकथा दोनों ही अद्भुत हैं 

 यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।


अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।

आचार्य जी ने नाना जी का नाम क्यों लिया पंकज भैया की चर्चा क्यों की


 आदि जानने के लिए सुनें आज का यह संप्रेषण

15.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष एकादशी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 15 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः।


बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः।।4.10।।



प्रस्तुत है स्वनामधन्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

एकादशी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 15 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  686 वां सार -संक्षेप

1 : अपने नाम को जिसने धन्य किया है 


स्थान :चित्रकूट



आचार्य जी का दूरस्थ संबोधन हमें प्रेरित और उत्साहित करने के लिए है ताकि हम संकटों के आने पर उनका आसानी से सामना कर सकें समस्याओं को आसानी से सुलझा सकें लोककल्याण के लिए उद्यत हो सकें

आचार्य जी इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि यात्रा और प्रवास में सदाचारवेला का क्रम न टूटे इस संबोधन का स्वभाव वही रहता है

हमें भाव और रूप का संयोजन स्पष्ट है

भाव विचार और क्रिया के त्रिकोण के आधार पर हम चिन्तनपूर्वक महान से महान काम कर जाते हैं

डा हेडगेवार के सामने स्पष्ट चित्र खिंचा हुआ था कि अपना देश संगठित  और  चरित्रसम्पन्न हो जाए जिसके लिए इसी देश में जन्मे  इसके लिए जी रहे  इसी के लिए मरने के लिए भी सदैव उद्यत हिन्दुओं का संगठन आवश्यक है

ऐसे हिन्दू जिनके भाव विचार संकल्प इस राष्ट्र के लिए समर्पित हैं


जब तक हमारा संगठन मजबूत नहीं होगा विचार शुद्ध नहीं होंगे तब तक हमारा व्यवहार  भी निष्कलुष नहीं होगा स्वार्थ के साथ कभी परमार्थ नहीं होता

याज्ञवल्क्य मैत्रेयी संवाद वाला स्वार्थ भिन्न है वह स्व आत्म है जिसे पहचानना बहुत मुश्किल है

लेकिन उस स्व को हमारे देश के ऋषियों ने पहचाना है इस 

नामरूपात्मक जगत में नाम प्रभावकारी है रूप प्रभावकारी नहीं है

आचार्य जी ने रामसेतु का वह प्रसंग बताया जिसमें भगवान् राम का पत्थर डूब गया था

राम से अधिक राम का नाम  बड़ा है

इस नामरूपात्मक जगत में हम नाम के प्रति बहुत जाग्रत सचेत सतर्क रहते हैं

नाम के विस्तार के लिए यह बहुत आवश्यक है

हम लोगों की संवेदनशीलता जागरूकता सक्रियता सेवा साधना देश के नाम के लिए सदैव है

हम अपने अन्दर नेतृत्व की क्षमता विकसित करें

राष्ट्र -भक्ति राष्ट्र -सेवा  के महत्त्व को समझें संकल्प रूपी तप करें संकल्प से सिद्धि तक की यात्रा में अपने कदम    बढ़ा दें 

परमात्मा ने भी संकल्प रूपी तप किया था


तेजस जाग्रत कर अंधकार मिटाएं

अन्य को भी उत्साहित करने के लिए कटिबद्ध हों

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी का नाम क्यों लिया छत्रपति शिवा जी की तरह और कौन था जानने के लिए सुनें आज का यह उद्बोधन

14.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष दशमी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 14 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सर्वगुह्यतमं भूयः श्रृणु मे परमं वचः।


इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम्।।18.64।।



प्रस्तुत है अभ्यमित्र्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

दशमी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 14 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  685 वां सार -संक्षेप

1 वह योद्धा जो वीरतापूर्वक दुश्मन का सामना करता है



हम मनुष्य रूप में जन्मे हैं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए  प्रेम सद्भाव आत्मीयता मनुष्य का चरित्र प्रकट करते हैं पौरुष पराक्रम विश्वास मनुष्यत्व का विस्तार है गीता मानस आदि ग्रंथ यही सिखाते हैं कि मनुष्य रूप में जन्म लेने के कारण मनुष्यत्व आवश्यक है


जिन्हें भी मनुष्यत्व की अनुभूति होती है वे सत्कर्म करते हुए संसार की समस्याओं से आसानी से छुटकारा पा लेते हैं


नई पीढ़ी को संस्कारित प्रशिक्षित करने के लिए घर का वातावरण सही करने की आवश्यकता है  कुछ क्षण ऐसे निकालें कि परिवार के सारे लोग एक स्थान पर एकत्र हो सकें आनन्द के क्षण व्यतीत करें विवादरहित चर्चा करें

हमें यदि आत्मबोध रहता है तो हम अपने को छोटा महसूस नहीं करेंगे और तत्त्वबोध रहता है तो दम्भ नहीं करेंगे


ॐ सह नाववतु ।

सह नौ भुनक्तु ।

सह वीर्यं करवावहै ।

तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

यह जीवन मन्त्र है 

हम इन सिद्धान्तों का पालन करते हुए समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी जीवन जीने के लिए संकल्पित हैं


देशसेवा किस प्रकार हम कर सकते हैं आचार्य जी ने विस्तार से इसके लिए परामर्श दिया

कर्मों को संस्कारवान बनाना चाहिए

मनुष्य के संस्कार के लिए हमारे यहां बहुत से मार्ग हैं

निर्गुंणोपासना भी है सगुणोपास्ना के साथ, शुद्धाद्वैत  द्वैत  केवलाद्वैत  द्वैताद्वैत हैं


धर्म का अर्थ कर्तव्य है  आचार्य जी ने आत्मविस्तार को समझाया



एक तुम, यह विस्तृत भू-खंड प्रकृति वैभव से भरा अमंद,

कर्म का भोग, भोग का कर्म, यही जड़ का चेतन--आनंद।

अकेले तुम कैसे असहाय यजन कर सकते? तुच्छ विचार।

तपस्वी! आकर्षण से हीन कर सके नहीं आत्म-विस्तार।

दब रहे हो अपने ही बोझ खोजते भी न कहीं अवलंब,

तुम्हारा सहचर बन कर क्या न उऋण होऊँ में बिना विलंब?

समर्पण लो--सेवा का सार, सजल-संसृति का यह पतवार,

आज से यह जीवन उत्सर्ग इसी पद-तल में विगत-विकार,

दया, माया, ममता लो आज, मधुरिमा लो, अगाध विश्वास,

हमारा हृदय-रत्न-निधि स्वच्छ तुम्हारे लिए खुला है पास।

बनो संसृति के मूल रहस्य, तुम्हीं से फैलेगी वह बेल,

विश्व-भर सौरभ से भर जाय सुमन के खेलो सुंदर खेल।"



आचार्य जी ने परामर्श दिया कि तैत्तिरीय उपनिषद् की शिक्षावल्ली को हम ठीक तरह से समझें इसी प्रकार प्रश्नोपनिषद भी महत्त्वपूर्ण है

तप अत्यन्त महत्त्व का है

घर का अनुशासन विद्यालय के अनुशासन से कम नहीं होना चाहिए

हम लोग आचार्य जी से प्रश्न करें 

ग्रामविकास का कार्य किसे मिला आदि जानने के लिए सुनें

13.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष नवमी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 13 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 बाल रवि की स्वर्ण किरणें निमिष मे भू पर पहुँचतीं 

कालिमा का नाश करतीं ज्योति जग मग जगत करती



प्रस्तुत है अभ्यमित्रीण¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

नवमी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 13 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  684 वां सार -संक्षेप

1 वह योद्धा जो वीरत्व के साथ शत्रु का सामना करने में सक्षम रहता है


हमारे यहां की शिक्षा व्यवस्था यही बताती थी कि हम सदाचारमय विचार ग्रहण कर सदाचारी जीवन जीने का प्रयास करें 

हम अखंड भारत के उपासकों ने अपने संगठन युगभारती में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन और सुरक्षा नामक चार आयामों को लिया है और उद्देश्य है समाजोन्मुखी जीवन को जीना अर्थात् अपने व्यक्तिगत जीवन को सुरक्षित संरक्षित रखते हुए समाज की ओर अपना चिन्तन रखना




यदि हमें भान रहे कि जो हम कर्म कर रहे हैं वह उचित है या अनुचित तो समझ लेना चाहिए हमारा चिन्तन सार्थक है क्योंकि


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥



परमेश्वर ने इस जड़-चेतन संसार को  आनन्द प्रदान करने के लिए गुणमय और दोषमय दोनों तरह का रचा है


 किन्तु गुणों का भंडार  विचारक चिन्तक शोधकर्ता भक्त मनीषी अभ्यमित्रीण संत रूपी हंस दोष रूपी जल को छोड़कर गुण रूपी दूध को ही ग्रहण करता है

और यह तब होगा जब नित्य हम अपनी श्रुति और स्मृति में सामंजस्य बैठाएंगे

जो हमने ज्ञान सुना है उसे स्मृतियों में संरक्षित करते हुए समस्याओं को सुलझाते रहना और यह मनुष्य के लिए ही संभव है और मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए

श्रुति अर्थात् वेद या ज्ञान और,अर्थात् शास्त्र या नियम

 जो ज्ञान हमें प्राप्त हुआ है उसके परिपालन के नियम शास्त्र हैं

परमात्मा की वाणी को ऋषियों ने सुना फिर उनके शिष्यों ने सुना यह परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी  चलती रही

हमारा अध्यात्म कहता है यह सारी ईश्वरीय व्यवस्था तप है

परमात्मा ने तप प्रारम्भ किया और वह तप विविध प्रकार से हमारे पास आया


दीनदयाल जी  ने किसे मौलिक नहीं बताया था


संगठन का मूल आधार क्या है

गुरु रामभद्राचार्य जी ने क्या कहा

सूक्ष्म अवस्था से क्या तात्पर्य है आदि जानने के लिए सुनें

12.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष अष्टमी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 12 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 स्वतंत्र रीति नीति प्रेम प्रीति का प्रसार हो, 

अखंड हिंदुराष्ट्र के विचार का प्रचार हो, 

सुसंस्कार हों सुदृढ़ सतत् गहन विचार  हो, 

जवानियों में रंचमात्र भी न दुर्विचार हो।



प्रस्तुत है नर्मठ -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

अष्टमी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 12 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  683 वां सार -संक्षेप

1नर्मठ =दुश्चरित्र



हम लोगों के लिए अत्यन्त लाभकारी,अनुभवजन्य संस्कार प्राप्त करने के लिए,समाजोन्मुखी जीवन जीने में सहायक,राष्ट्र के लिए सतत जाग्रत रहने की प्रेरणा देने वाली, तथ्यों के साथ राष्ट्रद्रोहियों से आगाह करने वाली सदाचार वेलाओं के क्रम में आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में


अत्यन्त अनुभवी आचार्य जी द्वारा दिये गए बहुमूल्य समय का आइये लाभ उठाएं



व्यक्तिगत काम करते हुए हम अपनी दृष्टि समाज और राष्ट्र के हित में बनाएं रखते हैं यह बात हम सभी को आनन्दित करती है क्यों कि हमारा लक्ष्य ही है

राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष

अखंड भारत का चित्र हमारे मन मस्तिष्क में छाया रहना चाहिए



मां पार्वती दूसरा जन्म लेकर शिव जी से प्रश्न करती हैं



तो शिव जी कहते हैं



हरि गुन नाम अपार कथा रूप अगनित अमित।

मैं निज मति अनुसार कहउँ उमा सादर सुनहु॥ 120(घ)॥



सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए। बिपुल बिसद निगमागम गाए॥

हरि अवतार हेतु जेहि होई। इदमित्थं कहि जाइ न सोई॥


हे पार्वती! सुनिए , वेद-शास्त्रों ने हरि के सुंदर, विस्तृत और निर्मल चरित्रों का गुणगान किया है। हरि का अवतार जिस कारण से होता है, वह कारण 'बस यही है' ऐसा कदापि नहीं कहा जा सकता (अनेक कारण हो सकते हैं और ऐसे कारण भी हो सकते हैं, जिन्हें कोई जान ही नहीं सकता)


जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥


करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥


असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु।

जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु॥ 121॥



सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं। कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं॥

राम जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका॥


रामजन्म विविध रूप में होते रहते हैं हम सभी अणुआत्माएं अवतार लेकर आएं हैं इसे समझने का प्रयास करें षड्रिपु में फंसकर अमूल्य जीवन को व्यर्थ करने पर सिर्फ पछतावा ही होता है


अच्छे कामों की स्मृतियों का हम स्वयं भी आनन्द उठाते हैं आचार्य जी ने डायरी लेखन के लिए प्रेरित किया

कल की बैठक की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने कहा कि डा ज्योति जी के कार्यक्रम में हम लोग सहयोग करें कौस्तुभ जी को अपने साथ संयुत करें

इन सदाचार वेलाओं का फीडबैक भी लें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने क्या बताया भावावेश क्यों आवश्यक है जानने के लिए सुनें

11.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष सप्तमी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 11 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है औजसिक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

सप्तमी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 11 -06- 2023

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  682 वां सार -संक्षेप

1= बलवान्



हम लोग भावमय दृष्टि से परस्पर एक दूसरे से संयुत रहते हुए  लोककल्याण के लिए कमर कसकर तैयार रहेंगे तो विषम परिस्थितियों में भी आनन्द की अनुभूति करते हुए अपनी जीवनयात्रा को मङ्गलमय ढंग से पूरी कर पाएंगे

इन अद्भुत भावों में प्रवेश करने के लिए आइये एक बार पुनः सदाचार वेला का आश्रय ले लें



हाल में ही श्रीरामचरित मानस का पारायण पूर्ण हो चुका है अब हम औपनिषद चिन्तन में प्रवेश कर चुके हैं

कल आचार्य जी ने उपनिषद् और शास्त्रों की ओर संकेत किया था ताकि हम प्रेरित होकर उस ओर भी अपना रुख करें इन्हें कठिन समझना हमारी भूल है और इनकी उपेक्षा भी गलत है ये शास्त्र मानसिक बौद्धिक आत्मिक उत्थान के अस्त्र हैं

तथाकथित शिक्षा से भ्रमित होने के कारण हमने इनकी उपेक्षा की है हमारी शिक्षा कभी बहुत अद्भुत रही है स्व राजीव दीक्षित ने विस्तार से इसके बारे में बताया है 



उपनिषद् क्या है?


वामन शिवराम आप्टे के संस्कृत -हिन्दी कोश के अनुसार

उपनिषद् (स्त्री० ) [ उप + नि + सद् + क्विप् ] 1. ब्राह्मण ग्रन्थों के साथ संलग्न कुछ रहस्यवादी रचना जिसका मुख्य उद्देश्य वेद के गूढ अर्थ का निश्चय करना है - भामि० २।४०, मा० ११७ (निम्नांकित व्युत्पत्तियाँ उसके नाम की व्याख्या करने के लिए दी गई हैं -(क) उपनीय तमात्मानं ब्रह्मापास्तद्वयं यतः, निहन्त्यविद्यां तज्जं च तस्मादुपनिषद्भवेत् । या (ख) निहत्यानर्थमूलं स्वाविद्यां प्रत्यक्तथा परम्, नयत्यपास्तसंभेदमतो वोपनिषद्भवेत् । या (ग) प्रवृत्तिहेतुन्नि:शेषांस्तन्मूलोच्छेदकत्वतः, यतोवसादयेद्विद्यां तस्मादुपनिषद्भवेत् । का उल्लेख है


प्रश्नोपनिषद अर्थात् 

अथर्ववेद की पिप्पलाद शाखा के ब्राह्मण भाग से सम्बन्धित इस उपनिषद में जिज्ञासुओं द्वारा महर्षि पिप्पलाद से छह प्रश्न किये गये हैं।

पहला प्रश्न साल भर तपस्या करने के पश्चात् 

कात्यायन कबन्धी का है भगवन! यह प्रजा किससे उत्पन्न होती है?

महर्षि पिप्पलाद कहते हैं 'प्रजा-वृद्धि की इच्छा का विकार पैदा करने वाले प्रजापति ब्रह्मा ने  संकल्प रूप तप कर 'रयि' और 'प्राण' नामक एक युगल से प्रजा की उत्पत्ति कराई

आचार्य जी ने तप की परिभाषा बताई तपस्वी होने के लिए उचित भोजन भी आवश्यक है


गीता में


देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।


ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते।।17.14।।


देवता , ब्राह्मण, गुरु तथा ज्ञानी जनों का पूजन, शौच,सरलता, ब्रह्मचर्य व अहिंसा  शरीर संबंधी तप कहलाता है



इसी तरह वाणी का तप है


जो भाषण उद्वेग उत्पन्न करने वाला नहीं है प्रिय, हित करने वाला और सत्य है

और वेदों का स्वाध्याय, अभ्यास वाणी का तप है


दम्भ में आकर कुछ भी कहीं भी बोल देना अनुचित है हम युगभारती के सदस्यों को भी इस ओर ध्यान रखना है 


मानस तप क्या है


मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।


भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते।।17.16।।


अर्थात्


मन की प्रसन्नता व्याकुलता नहीं , सौम्यभाव, मौन अर्थात् गम्भीर रहना ,आत्मसंयम और अन्त:करण की शुद्धि  है


तन मन बुद्धि महत्त्वपूर्ण है

हमारे रचनाकार ने भी तपस्या की वह हमें भी तपस्या करने की प्रेरणा देता है क्योंकि हम उसी के अंश हैं

हम लघु हैं वह गुरु है

यह परस्परावलंबन का भाव अद्भुत है तभी आदि शंकराचार्य कहते हैं


न पुण्यं न पापं न...... चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥4॥


मनुष्य के लिए क्या करणीय है इस पर विचार करना आवश्यक है भारतवर्ष की धरती पर ही ऐसे भाव आते हैं इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

10.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष षष्ठी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 10 -06- 2023

 कभी मैं छंद में बंधकर कभी स्वच्छन्द रुख रखकर 

कभी कुछ शब्द टकसाली सुना विद्वान बनता हूं

कभी अखबार टीवी या मुफ़त का फोन सुन   पढ़कर 

नजर में गांव वालों की बड़ा गुणवान बनता हूं 

मगर जब झांकता सचमुच सरल बन आत्म अभ्यंतर 

सहज ही मौन मन में राम को अभिराम सुनता हूं



प्रस्तुत है ज्ञान -अर्चिस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

षष्ठी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 10 -06- 2023

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  681 वां सार -संक्षेप

1=ज्ञान का प्रकाश




पखेरू! भले छत छुओ व्योम की, पर

धरा पर तुम्हे लौट आना पड़ेगा

निराधार आधेय को अंत में तो,

सहारा यहीं का दिलाना पड़ेगा


(पखेरू / शिशु पाल सिंह 'शिशु')



आचार्य जी हमें सदैव चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय निदिध्यासन  लेखनयोग सतत रामार्चन के लिए प्रेरित करते हैं आइये पुनः प्रवेश करते हैं आचार्य जी की सदाचार वेला में सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने के लिए आनन्द की वर्षा में भीगने के लिए

आचार्य जी ने भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक आदि शङ्कराचार्य,

जिन्होंने भारतवर्ष में चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी जो  बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी 'शंकराचार्य' कहे जाते हैं,    जिन्होंने समस्त भारतवर्ष में भ्रमण करके बौद्ध धर्म को मिथ्या प्रमाणित किया तथा वैदिक धर्म को सत्य प्रमाणित किया और हमारी संस्कृति को सुरक्षित रखने वाली सनातनत्व को जीवित रखने वाली परम्परा प्रारम्भ कर दी , के जन्मस्थान कालड़ी, चेर साम्राज्य

वर्तमान में केरल, भारत की चर्चा करते हुए बताया कि वह  अत्यन्त दिव्य स्थान है


शंकराचार्य जी के गुरु गोविन्दपादाचार्य जी ने उन्हें तप करने के लिए कहा

तप अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है सारी प्रकृति तप करती है ब्रह्मा विष्णु महेश सभी तपस्वी हैं

कर्मानुराग समर्पण शील साधना सभी तप हैं

तप और हठ में अन्तर है


दीनदयाल जी ने भी शंकराचार्य पुस्तक लिखी


अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।..

शंकराचार्य ने उपनिषदों का 

भाष्य ब्रह्मसूत्र लिखा

उपनिषद् जिसका 'गुरु के निकट 'अर्थ हुआ को वेदान्त भी कहते हैं 

उपनिषद वह साहित्य है जिसमें जीवन और जगत के रहस्यों का उद्घाटन हुआ है निरूपण और विवेचन भी हुआ है

ज्ञान का दम्भ न हो जाए इसलिए उपासना बहुत आवश्यक है

आचार्य जी ने अवतार और उद्धार का अर्थ भी बताया

आत्मस्वरूप में बैठना अद्भुत है

आचार्य जी ने स्व सुदर्शन चक्र जी और  स्व प्रो अमरेन्द्र जी की चर्चा  क्यों की


भैया दीपक शर्मा भैया पंकज भैया मनीष कृष्णा की चर्चा क्यों की आदि जानने के लिए सुनें

9.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष पंचमी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 09 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 कविता कहानी में अगर संस्कार भरते जाएँगे, 

यदि मंत्र सस्वर रीति से सब साथ मिलकर गाएँगे ,

प्रत्येक घर मंदिर सदृश पर्यावरण शिव तीर्थ सा 

होंगे सुमंगल गीत गैरिक ध्वज गगन लहराएँगे।



प्रस्तुत है सूचक -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

पंचमी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 09 -06- 2023

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  680 वां सार -संक्षेप

1=दुष्ट व्यक्तियों का शत्रु

आइये पुनः प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में जहां आचार्य जी हमारा आत्मबोध जाग्रत करने का नित्य प्रयास करते हैं हनुमान जी की यह अद्भुत कृपा है 


हमारी आर्ष परम्परा में  जिज्ञासाएं हैं कि हम कौन हैं हम कहां से आए हैं संसार क्या है संसार का स्रष्टा कौन है और उनका शमन भी है

यही हमारी शिक्षा है हमारा ज्ञान है हमारी सफलता का कारण भी यही है


जो इसे आत्मसात् करने में असमर्थ हैं सुखोपभोग को अपने जीवन का तत्त्वदर्शन मानते हैं वे हमेशा संकटों में घिरे रहते हैं ये हमारे मार्गदर्शक कभी नहीं हो सकते और इन्हें मार्गदर्शक मानना भी नहीं चाहिए


प्रायः राक्षसी जीवन का बोलबाला है फिर भी हम आशान्वित हैं और इसीलिए सदाचारमय विचार ग्रहण करने के लिए उद्यत रहते हैं

एकनिष्ठता अद्भुत है लेकिन आत्मनिष्ठा कम नहीं होनी चाहिए



त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।

ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥ – महाभारत, पर्व १, अध्याय १०७, श्लोक ३२


आत्मनिष्ठता के कारण ही हमें कर्तव्यबोध होता है

जैसे गिलहरी और रामसेतु प्रसंग


भगवान श्रीकृष्ण भी अपने को कर्तव्यरत कहते हैं 


न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन |

नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि || 22||



इसी आत्मज्ञान आत्मनिष्ठा की आवश्यकता है मानस के पाठ का यह हेतु भी है भगवान राम की सेना अद्भुत है और इसी कारण रावण पराजित हुआ

सर्वशक्तिमान होते हुए भी भगवान ने जो लीलाएं कीं वे हमारा मार्गदर्शन करती हैं कि

संकटों में भी हम अपना मार्ग कैसे खोज सकते हैं


रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं

योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्‌।


श्रीरामचरित मानस से हम बहुत सारे अपने संकल्प सिद्ध कर सकते हैं संसार के सारे रोग इसी से जाएंगे 

दैहिक दैविक भौतिक सारे क्लेश दूर करने में यह सक्षम है रामोपासक के लिए कुछ असंभव नहीं

रामभजन से बहुत लोगों ने गति पाई 

राम चरन रति जो चह अथवा पद निर्बान।

भाव सहित सो यह कथा करउ श्रवन पुट पान॥128॥


मो सम दीन न दीन हित, तुम्ह समान रघुबीर। 


अस बिचारि रघुबंस मनि, हरहु बिषम भव भीर॥


तुलसीदास जी कहते हैं शिवजी ने  मानस की रचना की

शिव शंकर हैं तो तांडव भी करते हैं

प्रश्नोपनिषद में


कात्यायन कबन्धी-हे भगवन् ! यह प्रजा किससे उत्पन्न होती है?'

महर्षि पिप्पलाद-'प्रजा-वृद्धि की इच्छा करने वाले प्रजापति ब्रह्मा ने 'रयि' और 'प्राण' नामक एक युगल से प्रजा  उत्पन्न कराई।

 प्राण गति प्रदान करने वाला चेतन तत्त्व है। रयि उसे धारण करके विविध रूप देने में समर्थ प्रकृति है।



मानसपाठ का आज आचार्य जी ने समापन किया

आचार्य जी ने आज और क्या बताया जानने के लिए सुनें

8.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष चतुर्थी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 08 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सदा दिन में परिश्रम रात में विश्राम होता है  

उजाला कर्मयोगी है अँधेरा काम होता  है 

अँधेरे से उजाले की तरफ की दौड़ जारी है 

कि देखो किस समय कोई सुखद परिणाम होता है।



प्रस्तुत है हस्ताहस्ति ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

चतुर्थी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 08 -06- 2023

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  679 वां सार -संक्षेप

1=कुशल



अध्येता चिन्तक विचारक ज्ञानी  आचार्य जी द्वारा प्रतिदिन हम सदाचारमय विचार ग्रहण कर रहे हैं  सुदृढ़ भावों वाली आकर्षक अभिव्यक्तियां हमें इस वेला में प्रवेश करा देती हैं


उपनिषद विशद ज्ञान के भंडार हैं अत्यन्त रोचक हैं

ब्रह्मविद्या के सम्बन्ध में जिज्ञासा व्यक्त करने वाले मुंडकोपनिषद में


नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो न च प्रमादात्‌ तपसो वाप्यलिङ्गात्‌।

एतैरुपायैर्यतते यस्तु विद्वांस्तस्यैष आत्मा विशते ब्रह्मधाम ॥




अन्वय


अयम् आत्मा बलहीनेन न लभ्यः प्रमादात् च न वा अलिङ्गात् तपसः अपि न लभ्यः यः विद्वान् एतैः उपायैः यतते तस्य एषः आत्मा ब्रह्मधाम विशते ॥




परमात्मा  बलहीन मनुष्य के द्वारा  नहीं पाया जा सकता , न ही प्रमादी द्वारा और न ही लक्षणहीन तपस्या के द्वारा , लेकिन जब कोई विद्वान् इन उपायों के द्वारा प्रयत्न कर लेता है तो उसका आत्मा ब्रह्म-धाम में प्रवेश कर ही जाता है 

समस्त भोगों की आशा त्याग कर एक मात्र परमात्मा की उत्कट अभिलाषा रखते हुए निरन्तर  विशुद्ध भाव से  अपने इष्ट देव का चिन्तन करने पर 

भोग, जो रोग के कारण हैं, की लालसा न रख सात्विक होते हुए कर्म की लालसा रखने पर ब्रह्मधाम में प्रवेश मिल जाता है 

मानस और गीता में भी यही बताया गया है




भ्रामक स्थितियां पैदा कर शिक्षा दूषित कर हमें बल अनावश्यक बताया गया जब कि शरीर पुष्ट करना अनिवार्य होता है  प्रातः जल्दी जागना अनिवार्य है शिक्षा को नौकरी से संयुत कर दिया गया


सात्विक जीवन जीने का प्रयास करें कर्तव्य का बोध रखें 


शरीर हेतु बल शक्ति संयम समर्पण अनिवार्य है शरीर हमारा साधन है


बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥

साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥4॥


न शरीर की उपेक्षा करें न उससे बहुत अपेक्षा करें

भगवान् राम हमारे आदर्श हैं

 क्योंकि


प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा॥


भगवान् राम का जीवन प्रारम्भ से ही हमें प्रेरणा देता है 


अनुज सखा सँग भोजन करहीं। मातु पिता अग्या अनुसरहीं॥



बेद पुरान सुनहिं मन लाई। आपु कहहिं अनुजन्ह समुझाई॥


गुरु गृह गए पढ़न रघुराई , अल्पकाल विद्या सब पाई।


उनका संपूर्ण जीवन कर्ममय रहा उनका पारायण करने से बुद्धि को प्राखर्य मिलेगा मन को तुष्टि मिलेगी

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि प्रतिदिन मानस का पाठ करें 


शिव जी कहते हैं


मति अनुरूप कथा मैं भाषी। जद्यपि प्रथम गुप्त करि राखी॥

तव मन प्रीति देखि अधिकाई। तब मैं रघुपति कथा सुनाई॥1॥



मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार यह कथा कह दी , जबकि पहले इसको छिपाकर रखा था। जब तुम्हारे मन में प्रेम का आधिक्य देखा तब मैंने श्री रघुनाथ जी की यह कथा तुमको सुनाई

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

7.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष तृतीया ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 07 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 नीति निपुन सोइ परम सयाना। श्रुति सिद्धांत नीक तेहिं जाना॥

सोइ कबि कोबिद सोइ रनधीरा। जो छल छाड़ि भजइ रघुबीरा॥2॥

लेकिन आचार्य जी प्रायः बताते रहते हैं कि 

भक्त का अर्थ माला जपना नहीं है भक्त वही है जिसे आत्मबोध है जो शौर्य शक्ति संपन्न है आशावान् है राष्ट्र के प्रति निष्ठावान है समर्पित है


प्रस्तुत है हर्षण ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

तृतीया ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 07 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  678 वां सार -संक्षेप

1=प्रसन्न करने वाला


हमें बचपन से ही इस प्रकार के संस्कार मिले हैं कि हम स्वयं तो सदाचारमय विचार ग्रहण कर अपने जीवन को समृद्ध बनाने का प्रयास करते ही हैं साथ ही संपर्क में रहने वाले लोगों को भी प्रेरित करते हैं ये सदाचार वेलाएं सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने का अच्छा माध्यम हैं

ये भावनात्मक सत्संग की वेलाएं हैं



जैसा युग है उस युग की परिस्थितियों को समझते भांपते हुए हमको अपने जीवन को उसके अनुकूल बनाकर संसार के सत्य को जानते रहना और बताते रहना हमारा उद्देश्य होना चाहिए  हमें अपनी योजनाएं युगानुकूल बनाने का प्रयास करना चाहिए युगपुरुष पं दीनदयाल जी अपनी योजनाएं इसी प्रकार की बनाते थे


भयानक प्रवाह को धीरे धीरे काटकर अपनी मंजिल प्राप्त करने का प्रयास हमें करना ही चाहिए

हम युगभारती के सदस्यों का परस्पर का व्यवहार ये वेलाएं

हमारे सद्ग्रंथ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं हमें अपने अनुकूल तत्त्व को खोज लेना चाहिए


आज कल हम लोग ज्ञान से भरपूर उत्तरकांड के अंतिम पड़ाव पर हैं

गोस्वामी तुलसीदास जी ने अप्रतिम स्वरूप वाले अतुलनीय शक्तिसम्पन्न मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी को परमपिता परमेश्वर का अवतार


कविं पुराणमनुशासितार


मणोरणीयांसम् .......

 

सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप



मादित्यवर्णं तमसः परस्तात्



सर्वज्ञ, पुराण, शासन करने वाला, सूक्ष्म से सूक्ष्म, सबका धारण-पोषण करने में सक्षम , अज्ञान से अत्यन्त परे , सूरज के समान प्रकाशस्वरूप है






 माना है उन्हें विष्णु का अवतार नहीं माना है


भगवान राम का स्मरण आत्मस्मरण है रामत्व का हमारे अन्दर जितना प्रवेश होगा हम उतने ही आनन्द में रहेंगे

संसार की समस्याएं हम आसानी से सुलझा लेंगे


आइये प्रवेश करते हैं उत्तरकांड में



तासु चरन सिरु नाइ करि प्रेम सहित मतिधीर।

गयउ गरुड़ बैकुंठ तब हृदयँ राखि रघुबीर॥125 क॥





कागभुशुण्डिजी के चरणों में प्रेम सहित सिर नवाकर और हृदय में श्रीराम को धारण करके धीरबुद्धि गरु़ड़ जी तब वैकुंठ को चले गए

भगवान् की कृपा से ही अपनी मति शुद्ध होती है

परमात्मा सदा अच्छा ही करता है


पक्षीराज जी को त्रेता में शंका हुई द्वापर भर परेशान रहे कलयुग में उन्हें कागभुशुंडी जी के दर्शन हुए

हमारी संस्कृति को पांच हजार वर्ष पुरानी कहने वालों को कालगणना का ज्ञान नहीं है


जिस दिन नभ में तारे छिटके,

जिस दिन सूरज-चांद बने,

तब से है यह देश हमारा,

यह अभिमान हमारा है।




मन क्रम बचन जनित अघ जाई। सुनहिं जे कथा श्रवन मन लाई॥



जो कान  लगाकर, मन लगाकर इस कथा को सुनते हैं, उनके मन, वचन और कर्म  से उत्पन्न सब पाप नष्ट हो जाते हैं



इसके अतिरिक्त


आचार्य जी ने बताया कि विद्यालय जब प्रारम्भ हुआ था तब अनेक कष्ट आये थे


आचार्य जी आज कानपुर आ रहे हैं

और

12/13 से 19 जून तक वे चित्रकूट प्रवास पर रहेंगे


उत्तरकांड में आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

6.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वितीया ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 06 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः l


जो श्रद्धावान् तत्पर और संयतेन्द्रिय  होता है वह अवश्य ही ज्ञान  प्राप्त कर लेता है

श्रद्धा,तत्परता और संयम द्वारा जीवत्व के बन्धनों से मुक्त होकर हम सुरत्व को प्राप्त करने की आशा कर सकते हैं।


प्रस्तुत है सुर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

द्वितीया ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 06 -06- 2023

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  677 वां सार -संक्षेप

1=विद्वान पुरुष


हम लोगों के लिए अत्यन्त लाभकारी इन वेलाओं से हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय कर्मानुराग पुरुषार्थ के लिए प्रेरित होते हैं

हमें  सशंकित नहीं सचेत रहना है अंधे होकर चलने की आवश्यकता नहीं है

आज की परिस्थितियां भिन्न हैं आत्मदीप होकर राष्ट्रभक्त समाज को भी प्रेरित करें सचेत करें सावधान करें

देशभक्ति की राह पर देशसेवा का संकल्प लेकर हमें चलते रहना है देश सेवा समाजसेवा के लिए हमें सदैव तत्पर रहना है 



आचार्य जी ने सरौंहां में संघ कार्यालय जिसे पहले संघ लाज संघ निवास भी कहा गया,की चर्चा की जिसमें उन्होंने बताया कि महापुरुषों के लगे चित्रों ने किस प्रकार प्रेरित किया

कारज की ज्योत सदा ही जरे

(अमर ज्योति फिल्म के गीत की पंक्तियां )


आचार्य जी ने इन स्थानों को मुक्त विद्यालय कहा

जहां से अद्भुत संस्कार मिले


श्रीरामचरित मानस ग्रंथ हमें प्रेरित करता है कि अध्यात्म के साथ शौर्य भी आवश्यक है

हम अतुलित बल प्राप्त कर सकें इसकी प्रेरणा मिलती है

यह कृति हमें 

मोहान्धता के सागर में डूबने से बचाती है 


शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं

ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।

रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं

वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्॥1॥



प्रभु राम राजाओं के भी राजा हैं क्योंकि वे सबकी सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं

उनसे हमें प्रेरणा मिलती है कि हम अपने दोषों को दूर करें दोष विकार पैदा करते हैं


आइये प्रवेश करें उत्तरकांड में


सुमिरि राम के गुन गन नाना। पुनि पुनि हरष भुसुंडि सुजाना॥

महिमा निगम नेत करि गाई। अतुलित बल प्रताप प्रभुताई॥1॥



श्रीराम जी के बहुत से गुण समूहों का स्मरण करते हुए सुजान कागभुशुण्डिजी बार-बार हर्षित हो रहे हैं। जिनकी महिमा वेदों ने 'नेति-नेति' कहकर कही है, जिनका बल, प्रताप और सामर्थ्य अतुलनीय है


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

5.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 05 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।


मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।4.11।।


प्रस्तुत है सुरभि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष

प्रतिपदा,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 05 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  676 वां सार -संक्षेप

1=विद्वान्



इस सदाचार वेला से प्रेरणा लेकर अपने प्रयास से हम लोग अधिक से अधिक मानसिक शक्ति प्राप्त करने की चेष्टा करें इसका लाभ हमें  मिल रहा है यह परिलक्षित भी होना चाहिए 

परस्पर का हम लोगों का विश्वास अद्भुत है और इसी के बल पर हम लोग राष्ट्रभक्ति और राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित होने की  भी चेष्टा करें

हमारा लक्ष्य भी यही कहता है

राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष



हमारा कर्म संपूर्ण प्रामाणिकता (authenticity ) के साथ फलप्रद और समाज के हित में होने वाला हो


हम जहां हैं वहीं समाज है अकर्मण्यता का त्याग करें और कर्म करें 

व्यक्तिवादिता कम हो



राजनैतिक विषय,सामाजिक कार्य,धार्मिक कार्यक्रम या अन्यत्र कुछ हो हर जगह राष्ट्रोन्मुखता समाजोन्मुखता झलकनी चाहिए

वैवाहिक कार्यक्रमों में भी आदर्श प्रस्तुत करें



मोहान्धता से बचें

भक्ति और भाव अपने व्यक्तित्व को समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी बनाने का मार्ग है 


अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः । 

तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् ||


 कोई कामना हो या ना हो और सारी कामनाओं की इच्छा हो अथवा मोक्ष की इच्छा हो तो तीव्र भक्ति योग से भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करें


आचार्य जी ने श्री हरिकृष्ण सेठ जी का एक प्रसंग बताया जिसमें उन्होंने Clients को भगवान कहा था और अस्वस्थ होने के बाद भी उनकी सेवा हेतु तत्पर थे 

ऐसे लोग संसार में यश पाते हैं षड् विकारों से दूर रहते हैं

उन्हें मानस रोग नहीं सताते हैं


धर्म के दस लक्षणों में एक भी  हम अपना लें तो हमारे दोष जाने लगेंगे और एक दोष को भी अपनाने की चेष्टा करेंगे तो बाकी दोष भी आने लगेंगे


श्रीरामचरित मानस के पाठ से अधिक से अधिक हमें लाभ प्राप्त करना चाहिए

इस मानस की समीक्षा करते हुए  पुस्तक मानस भूषण तिलक में  गुरु के लक्षण बताते हुए श्री बैजनाथ दास जी कहते हैं


गुरु बाह्य इन्द्रियों का दमन करने वाला शुद्ध वेश वाला विनीत शुद्ध आचरण वाला सुबुद्धिमान कुलीन सुप्रसिद्ध आदि होता है

इसी प्रकार शिष्य के भी गुण हैं


हम आत्मनिरीक्षण करते रहें



एहि बिधि सकल जीव जग रोगी। सोक हरष भय प्रीति बियोगी॥

मानस रोग कछुक मैं गाए। हहिं सब कें लखि बिरलेन्ह पाए॥1॥



इस तरह जगत् में सारे जीव रोगी हैं, जो शोक, हर्ष, भय, प्रीति,वियोग के दुःख द्वारा और भी अधिक दुःखी हो रहे हैं। मैंने ये कुछ ही मानस रोग कहे हैं। ये हैं तो सबको, परंतु इन्हें  विरले ही जान पाए हैं


विषयवासनाओं की अति नहीं होनी चाहिए


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

4.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 04 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 बारि मथें घृत होइ बरु, सिकता ते बरु तेल। 


बिनु हरि भजन न भव तरिअ, यह सिद्धांत अपेल॥



प्रस्तुत है प्रतिसृष्ट ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 04 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  675 वां सार -संक्षेप

1=प्रसिद्ध



हमारे लिए  अत्यधिक अनुकूल और उपादेय सदाचारमय विचारों के साथ लेकर आचार्य जी एक बार पुनः उपस्थित हैं

हमारे अन्दर शक्ति बुद्धि विचार कर्मकौशल संगठन का भाव कितना विकसित हुआ इसकी समीक्षा भी करते रहें

मानस का प्रारम्भ और अन्त दोनों का पाठ अवश्य करें

तो इस मानस की रचना  तत्त्व दर्शन और विचार का बोध हो जाएगा बीच की कथा सांसारिक संबन्धों कर्मों को किस प्रकार किया जाए बताती है दिशा दृष्टि देती है लेकिन भक्ति के भाव के साथ  इसका पाठ करें 


सांसारिक प्रपंचों से मुक्ति और उनमें लिप्तता चलती रहती है

संसार सागर तुल्य है कभी हमें ऊपर ले जाता है कभी नीचे ढकेल देता है

कोई भी दुर्घटना संवेदनशील व्यक्ति को बहुत व्यथित करती है

ऐसी ही एक दुर्घटना परसों 

घटी जिसने हम सबको झकझोर दिया

ओडिशा के बालासोर में तीन Trains के आपस में टकराने से भीषण हादसा हुआ है यह एक साजिश भी हो सकती है जिसमें अभी तक लगभग 300 लोगों की मौत हो गई है जबकि 900 से अधिक लोग घायल हैं


 परमात्मा से यही प्रार्थना है कि हम सबको इस असहनीय आघात को सहन करने की शक्ति दे 

ॐ  शान्तिः  शान्तिः  शान्तिः

संसार के कर्म सकाम और सकारण होते हैं सकाम सकारण होते हुए भी इनके प्रति यदि हमारी दृष्टि और दिशा सुस्पष्ट रहती है तो संसार में सारे कर्मों को करते हुए भी संसार को समझते रहते हैं और इसीलिए हम सम्मानित चर्चित होते हैं कष्ट में भी आनन्द की खोज कर लेते हैं

हमें साजिशों से सावधान भी रहना है और अन्य को करना भी है

भावुकता और ज्ञान हमारा संबल बने

विनय पत्रिका में



मनोरथ मनको एकै भाँति । 

चाहत मुनि-मन- अगम सुकृत फल, मनसा अघ न अघाति ॥ १ ॥


करमभूमि कलि जनम,कुसंगति, मति बिमोह-मद-माति । करत कुजोग कोटि, कयों पैयत परमारथ-पद सांति ॥ २ ॥


 सेइ साधु-गुरु, सुनि पुरान श्रुति बूझ्यो राग बाजी ताँति । तुलसी प्रभु सुभाउ सुरतरु-सो, ज्यों दरपन मुख-कांति ॥ ३ ॥



मन का मनोरथ भी विलक्षण है। वह इच्छा तो करता है कि पुण्यों का फल मिले जो मुनियों के मन को भी दुर्लभ है, किंतु पाप करने से उसकी इच्छा कभी पूर्ण नहीं होती 


कर्म-भूमि धर्मक्षेत्र पवित्र भूमि भारतवर्ष में होने पर भी कलियुग में जन्म, दुष्ट लोगों की संगति, अज्ञान  घमंड से भ्रमित बुद्धि एवं अनेक बुरे कर्मों के कारण परम पद  शान्ति कैसे संभव है

संतों और गुरु की सेवा करने तथा वेद और पुराणों के श्रवण से परम शान्ति का  निश्चय हो जाता है जैसे सारंगी बजते ही राग जान लिया जाता है।

 हे तुलसी! प्रभु श्रीरामचन्द्रजी का स्वभाव तो अवश्य ही  इच्छित फल वाले कल्पवृक्ष के समान है  किन्तु, ऐसा भी है कि जैसे दर्पण में मुख का प्रतिबिम्ब (जिस प्रकार अच्छा या बुरा  मुँह बनाकर दर्पण में देखा जायेगा) वह वैसा ही दिखाई देगा इसी प्रकार भगवान् भी हमारी भावना के अनुसार ही फल देंगे

सिद्धग्रंथ मानस के चार श्रोता और चार वक्ता हैं इन्हें तुलसीदास जी ने अद्भुत ढंग से बांधा है 


विनिश्चितं वदामि ते न अन्यथा वचांसि मे।

हरिं नरा भजन्ति येऽतिदुस्तरं तरन्ति ते॥122 ग॥



मैं आपसे भली-भाँति निश्चित  सिद्धांत कहता हूँ

मेरे वचन असत्य नहीं हैं

 जो मनुष्य श्रीहरि का भजन करते हैं वे अत्यंत कठिन संसार सागर को आसानी से पार कर जाते हैं

आचार्य जी ने बताया कि रत्नावली और तुलसी जी कैसे ज्ञान और भक्ति के संगम हो गए

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

3.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 03 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 पुनि सप्रेम बोलेउ खगराऊ। जौं कृपाल मोहि ऊपर भाऊ॥।

नाथ मोहि निज सेवक जानी। सप्त प्रस्न मम कहहु बखानी॥1॥


(सप्त प्रस्न :सब ते दुर्लभ कवन सरीरा

,बड़ दु:ख कवन,कवन सुख भारी,संत असंत सहज सुभाव,कवन पुन्य  बिसाला,

कवन अघ परम कराला

,मानस रोग कहहु समुझाई)


प्रस्तुत है मुख्यरख्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 03 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  674 वां सार -संक्षेप

1=पथ -प्रदर्शक



साहित्य के साथ कथा में इतिहास को पिरोना श्रीरामचरित मानस की अद्वितीय लोकप्रियता का कारण है सहृदय लोगों के लिए  तो अत्यन्त सहज और प्रिय विशेषतः हम उत्तरभारतीय लोगों के लिए 

आइये प्रवेश करते हैं इसी अद्भुत कृति के उत्तरकांड में


सात प्रश्नों के उत्तर मिलने प्रारम्भ हो चुके हैं कागभुशुंडी कहते हैं


सबसे दुर्लभ मनुष्य का शरीर है


भगवान् राम ने भी तिलक होने के बाद प्रजा को उपदेश देते समय कहा था



बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥

साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥4॥



दरिद्रता के समान कोई दुःख नहीं संत मिलन के समान कोई सुख नहीं

धन आवश्यक तो है लेकिन धन ही आवश्यक है संतुष्टि के लिए यह जरूरी नहीं




मन, वचन एवं शरीर से परोपकार करना ही संतों का सहज स्वभाव है

प्रदर्शन के लिए नहीं, वास्तव में  उनके मन में एक भाव रहता है कि दूसरे का कल्याण हो


भूर्ज तरू सम  संत को सदैव अनुभव होता रहता है कि संपूर्ण संसार दुःख का आगार है संत शान्त भी होते हैं 


श्रीवाल्मीकि रामायण में पक्षीराज और कागभुशुंडी जी का संवाद नहीं दिया गया है


मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥

काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥15॥


आचार्य जी ने प्रेम और मोह में अन्तर स्पष्ट किया

प्रेम अन्धा नहीं होता मोह अन्धा होता है प्रेम ही ईश्वर है

प्रेम में समर्पण है त्याग है

राधा कृष्ण के बीच , राम सीता  के बीच अप्रतिम आदर्श प्रेम है

अनुरक्ति भक्ति में परिवर्तित हो जाती है तो त्याग का प्रतीक हो जाती है

षड्विकारों में मोह है प्रेम नहीं


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया भैया शीलेन्द्र जी, धीरेन्द्र शास्त्री का नाम क्यों आया आदि जानने के लिए सुनें

2.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 02 -06- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 जब असमय कोई सुमन वृक्ष का झर जाता, 

आहत वह शाखा मन मसोस कर रह जाती, 

पत्तियाँ सिसकतीं रह रह कर पूरे जीवन, 

फलहीन वृक्ष की व्यथा जिंदगी सँग जाती।



प्रस्तुत है ज्ञान -अभिधानकोश ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 02 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  673 वां सार -संक्षेप

1=ज्ञान का शब्दकोश


हमारे लिए अनुकूल और उपादेय सदाचारमय विचारों को लेकर आचार्य जी एक बार फिर से उपस्थित हैं

सांसारिक प्रपंचों से मुक्त होना और उनमें लिप्त होना चलता रहता है

संसार सागर के समान है कभी हमें ऊपर ले जाता है कभी नीचे ढकेल देता है

कोई भी प्रतिकूल घटना संवेदनशील व्यक्ति को बहुत व्यथित करती है

ऐसी ही कल एक दुर्घटना में अपने विद्यालय की 2023 बैच की बहन ईशा पटेल का आकस्मिक निधन हो गया

इस घटना ने हम सबको झकझोर दिया क्योंकि हमारी भावनाएं विद्यालय से संयुत हैं ऐसी कोई भी सूचना व्यथित करती है


 परमात्मा से यही प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शान्ति प्रदान करे और परिवार को इस असहनीय आघात को सहन करने की शक्ति दे 

ॐ  शान्तिः  शान्तिः  शान्तिः


प्रार्थना ही भक्ति का आधार है ज्ञान में दम्भ हो जाता है भक्ति में समर्पण विश्वास है

ज्ञान में चिन्तन है ज्ञानी संकटों से भी गुजरता है भक्त का भावनाओं से विश्वास से योग रहता है भक्ति योग अद्भुत है

यह नर तन में ही संभव है इस नर को विप्रत्व भी चाहिए


आचार्य जी ने दरिद्रता और निर्धनता में  कल अन्तर बताया था

कागभूशुंडी जी पूर्व जन्म की चर्चा करते हुए कहते हैं

तेहिं कलिकाल बरष बहु बसेउँ अवध बिहगेस।

परेउ दुकाल बिपति बस तब मैं गयउँ बिदेस॥104 ख॥

गयउँ उजेनी सुनु उरगारी। दीन मलीन दरिद्र दुखारी॥

दारिद्र्य अर्थाभाव नहीं है

आचार्य जी ने सुदामा जी का प्रसंग बताया पत्नी के आग्रह पर गए सुदामा विरक्ति भाव से ही रहते हैं  यद्यपि हमें भ्रम है क्योंकि नरोत्तम दास जी की स्वयं की कल्पना से उपजा सुदामा चरित श्रीमद्भागवत से भिन्न है


सुदामा जी कर्म के लिए ही जन्मे थे सुदामा दरिद्र नहीं थे निर्धन थे आचार्य जी ने कवि प्रमोद तिवारी जी की भी चर्चा की जिन्होंने सुदामा पर लेख लिखा था


दरिद्रता वहां होती है जहां संतुष्टि नहीं होती है


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

1.6.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 01 -06- 2023

 धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥

बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना। अंध बधिर क्रोधी अति दीना॥4॥


प्रस्तुत है आप्यान ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 01 -06- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  672 वां सार -संक्षेप

1=संतुष्ट


सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने के लिए अपने भावों को विस्तारित करने के लिए आइये उपस्थित हो जाएं सदाचार वेला में


श्री रामचरित मानस इतिहास -ग्रंथ, भक्ति -ग्रंथ, ज्ञान -ग्रंथ, मार्गदर्शक -ग्रंथ  और जीवन को शक्ति,आश्रय ,विश्वास,अनेक विघ्नों के आने पर भी मर्यादा में रहते हुए जीवन को जीने की प्रेरणा देने वाला ग्रंथ है

यह अद्भुत ग्रंथ हमें भाव विह्वलित कर देता है



अब हम इसी ग्रंथ के पक्षीराज और कागभुशुंडी जी के बीच चल रहे संवाद वाले अंश में प्रवेश करने जा रहे हैं



गरुड़जी के सात प्रश्न तथा काकभुशुण्डि के उत्तर




पुनि सप्रेम बोलेउ खगराऊ। जौं कृपाल मोहि ऊपर भाऊ॥।

नाथ मोहि निज सेवक जानी। सप्त प्रस्न मम कहहु बखानी॥1॥


सब ते दुर्लभ कवन सरीरा


बड़ दु:ख कवन


 कवन सुख भारी


संत असंत सहज सुभाव 


कवन पुन्य  बिसाला


  कवन अघ परम कराला


मानस रोग कहहु समुझाई




सबसे दुर्लभ शरीर मनुष्य का है हमें यह भी समझना चाहिए कि परमात्मा हमारे प्रति कितना भावमय है जिसके कारण हमारा मनुष्य रूप में जन्म हुआ और उसमें भी यदि   अद्भुत पर्यावरण परिवेश वातावरण वाले धर्मक्षेत्र भारत में जन्म हो जाए तो क्या कहना


इस मनुष्य को भगवद्भक्ति में लगना चाहिए ऐश्वर्यवान भगवान का भजन क्या है आचार्य जी ने इसे स्पष्ट किया


जहां भाव शक्ति शौर्य तप त्याग आनन्दमय परिस्थितियों का ऐश्वर्य हो उसका भजन करना चाहिए

भारत मां पर न्यौछावर तक हो जाने वाला सैनिक भगवद्भक्ति ही करता है


जो अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित हो जाए वही भगवद्भक्त है

दरिद्रता के समान कोई दुःख नहीं है आचार्य जी ने अपनी लिखी एक कविता सुनाई...

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गरीबी सत्य के संधान का सोपान होती है

मगर वह धैर्यहीनों के लिए तूफान होती है.....

आचार्य जी ने गरीब और दरिद्र में अंतर स्पष्ट किया

गरीबी और पुरुषार्थ एक साथ नहीं चलते 

जिसने मनुष्य का शरीर पा लिया वो दरिद्र नहीं है आचार्य जी ने इसी पर बैरिस्टर साहब का एक प्रसंग बताया यह प्रसंग क्या था

सबसे  बड़ा सुख कौन सा है आदि जानने के लिए सुनें