30.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 30 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम्।


सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्।।2.32।।


प्रस्तुत है षट्प्रज्ञ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30 अप्रैल 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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जिस समय कोई भी भाव जगत में रहता है उसे अपने शरीर की शक्ति का भान नहीं होता है उसके शरीर की शक्ति मानसिक शक्ति में विलीन हो जाती है

उसकी वाणी उसका व्यवहार शक्तिसंपन्न हो जाता है

जब हम किसी भाव का सम्मान करते हैं तो वह भाव बोलता है


जब तक हम खंडित अध्ययन से संयुत रहेंगे तो हम इस तरह की चर्चा करेंगे कि हमारी संस्कृति पांच हजार वर्ष पुरानी है यह निराधार है

हमारी क्षमता कुंद कर दी गई क्यों कि हमारे संस्कारों को लगातार कमजोर किया गया इन संस्कारों को जाग्रत करने के लिये हमें सन्नद्ध होना होगा

आचार्य जी ने आज गीता के कुछ अध्यायों की चर्चा की


गीता का प्रथम अध्याय पूरे ग्रंथ की भूमिका है

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।


मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।।1.1।।

युद्द में ज्ञान की चर्चा अद्भुत है


दूसरे और तीसरे अध्याय में आध्यात्मिक ज्ञान है

देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।


तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.30।।


यह देही आत्मा सबके शरीर में सदैव अवध्य है, अतः सभी प्राणियों के लिए तुम शोक करो यह उचित नहीं।

नवें अध्याय में अनन्य भक्ति का वर्णन है 


अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।


साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः।।9.30।।



यदि कोई बुरा सा बुरा काम करने वाला व्यक्ति भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है।



पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।


तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।9.26।।


जो कोई भी भक्त मुझे पत्ता,फूल , फल, पानी आदि भक्ति से अर्पण करता है, उस  भक्त का वह भक्तिपूर्वक अर्पण मैं  स्वीकार करता हूँ।।


आचार्य जी का सदैव प्रयास रहा कि हम समाज का लाभ करें और प्रतिदिन सदाचार संप्रेषण के माध्यम से हम लोगों को अध्यात्म की ओर उन्मुख करने के लिये वे प्रयत्न करते हैं  यह युगभारती की प्राणिक शक्ति है जो इसलिये आवश्यक है ताकि परिस्थितियों की झंझाओं को झेलते हुए हम ऐसे काम करें कि

त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये।

गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर।।

हम सेवाभावी हैं हमारा परम धर्म है कि हम उनकी सेवा करें कि जो ये तक नहीं जानते कि वो कौन हैं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शौर्यजीत, भैया आशीष जोग भैया मनीष कृष्णा का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

29.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 29 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 विषुवत-रेखा का वासी जो 

जीता है नित हाँफ-हाँफ कर 

रखता है अनुराग अलौकिक 

वह भी अपनी मातृभूमि पर 

ध्रुव-वासी जो हिम में तम में 

जी लेता है काँप-काँप कर 

वह भी अपनी मातृभूमि पर 

कर देता है प्राण निछावर।


तुम तो हे प्रिय बंधु! स्वर्ग से 

सुखद, सकल विभवों के आकर 

धरा-शिरोमणि मातृभूमि में 

धन्य हुए हो जीवन पाकर 

तुम जिसका जल-अन्न ग्रहण कर 

बड़े हुए लेकर जिसका रज 

तन रहते कैसे तज दोगे? 

उसको हे वीरों के वंशज!



प्रस्तुत है कृपणवत्सल आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29 अप्रैल 2022

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जिस समय हमारा मन अध्यात्म में अधिक प्रविष्ट रहता है तो हमें सुस्पष्ट रहता है कि हम शरीर नहीं हैं 

यद्यपि हम शरीर नहीं हैं लेकिन तब भी शरीर हमारा है इसके प्रति दुर्व्यवहार दुर्लक्ष्य और भ्रम नहीं रहना चाहिये


शरीर हमारा सहयोगी है इसे ठीक रखना अत्यन्त आवश्यक है इसे गतिमान मतिमान रखें केवल खाने और सोने तक सीमित न रखें इसे साधन बनाएं इसे साधनायुक्त बनाने के लिये सही प्रकार का भोजन सही वातावरण मिले इसका ध्यान दें

मन को मारना तन को कष्ट पहुंचाना विचार को गलत दिशा में भेजना उस भाव के विपरीत है जहां कहा गया कि

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।


(हे अर्जुन ! दोषयुक्त होने पर भी सहज कर्म को न त्यागें क्योंकि सारे कर्म दोष से आवृत  हैं  धुएं से अग्नि की तरह)

यह संसार सार और असार का मिश्रित रूप है सुधीजन कहते हैं कि  इसमें उलझें नहीं

तुलसीदास कहते हैं


भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥

सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥

पूजन अर्चन उपासना ध्यान जप साधना के ये सारे अंग शरीर को शुद्ध और सिद्ध करने के उपाय हैं


विद्यालय से संयुत बहुत सी स्मृतियां हमारे मन मस्तिष्क में हैं आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अच्छी स्मृतियों में हमें जाना चाहिये और बोझिल स्मृतियों से दूर रहना चाहिये


भोजन मन्त्र में हम कहते थे

ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।


ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।....


संसार हमें आनन्द का पालना तब ही दिखेगा यदि हम वर्तमान में रहें अतीत में खीझने और भविष्य में रीझने से संसार समस्याओं का मूल दिखाई देगा


हमारे यहां महापुरुषों की बहुत लम्बी फ़ेहरिस्त है आज भी सिलसिला टूटा नहीं है इस काल्पनिक पावन सत्संग में भी हमें प्रवेश करना चाहिये

आचार्य जी ने मनोरंजन और सत्संग में अन्तर और भक्त का सही अर्थ बताया


बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥

सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥4॥


भक्ति भाव समर्पण की आत्मानुभूति करें तो हमारे अन्दर उत्साह बल आनन्द उत्पन्न होगा

28.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 28 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 तू है गगन विस्तीर्ण तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ,

तू है महासागर अगम मैं एक धारा क्षुद्र हूँ ।

तू है महानद तुल्य तो मैं एक बूँद समान हूँ,

तू है मनोहर गीत तो मैं एक उसकी तान हूँ ।।

(भक्त की अभिलाषा -गया प्रसाद 'सनेही ')


प्रस्तुत है जातप्रत्यय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28 अप्रैल 2022

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हम लोगों को यह मानकर चलना ही चाहिये कि यह सदाचार संप्रेषण परमात्मा की व्यवस्था से ही चल रहा है

हम जब इस सदाचार संप्रेषण से अपने को प्रातःकाल संयुत करते हैं तो क्षणांश में भी यह अनुभूति यदि आ जाए कि मैं कौन हूं तो मन का मालिन्य अभाव कुंठाएं कष्ट निराशा व्यथाएं शमित हो जाती हैं यदि ये कुछ देर के लिये शमित होती हैं तो इनका विस्तार भी हो सकता है संभव सब कुछ है

इसका प्रारम्भ शरीर की शुद्धि से करें खानपान सही रखें

प्रतिदिन विकारों को साफ करते रहें उपासना करें 

इस संसार की तरह मनुष्य जीवन भी अद्भुत है इसके रचनाकार का वर्णन करना असंभव है क्योंकि किसी भी अनुभवकर्ता की अनुभूतियां अभिव्यक्ति को उसके निकट तक तो पहुंचा देती हैं लेकिन उसका स्पर्श नहीं कर पातीं


देखन बागु कुअँर दुइ आए। बय किसोर सब भाँति सुहाए॥

स्याम गौर किमि कहौं बखानी। गिरा अनयन नयन बिनु बानी॥

के द्वारा कवि की इसी तरह की अभिव्यक्ति हम देख सकते हैं कि वाणी बिना नेत्र की है और नेत्र बिना वाणी के हैं तो उसका वर्णन कैसे किया जाए


आचार्य जी ने परामर्श दिया

कि हम लोग निम्नांकित छंद पढ़ें 


मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥

राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा॥4॥

बिधि निषेधमय कलिमल हरनी। करम कथा रबिनंदनि बरनी॥

हरि हर कथा बिराजति बेनी। सुनत सकल मुद मंगल देनी॥5॥

बटु बिस्वास अचल निज धरमा। तीरथराज समाज सुकरमा॥

सबहि सुलभ सब दिन सब देसा। सेवत सादर समन कलेसा॥6॥

अकथ अलौकिक तीरथराऊ। देह सद्य फल प्रगट प्रभाऊ॥7॥

यह संतत्व हम सबके अन्दर विद्यमान है उदय होने की देर है

इसके अतिरिक्त 

भैया अक्षय बैच 2008,भैया मनीष कृष्णा, बैरिस्टर साहब, नाभा दास का नाम क्यों आया हनुमान धारा में आचार्य जी को कौन मिला था आदि जानने के लिये सुनें

27.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 27 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जाहि बड़ाई चाहिए, तजे न उत्तम साथ।


ज्यों पलास संग पान के, पहुँचे राजा हाथ।।



प्रस्तुत है कृतपरिश्रम आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27 अप्रैल 2022

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शरीर से संसार की यात्रा हम प्रतिदिन जागरण से शयन तक करते हैं जिनका अन्तर और बाह्य एकाकार हो जाता है वो अध्यात्म की सरितांवरा में पूरी तरह डूब जाते हैं


उन्हें कोई व्याधि नहीं सताती, वो शब्दों में प्रवेश करते हैं वो चिन्तन करते हैं कि ॐ कैसे आया

इस तरह की अनुभूति यदि अभिव्यक्ति पा जाती है तो संसार के लिये अत्यन्त कल्याणकारी उपाय है

बहुत से कथावाचक भीड़ घसीट लेते हैं


यदि हमें कोई व्याधि न सताए  हमें किसी पीड़ा  का अनुभव न हो तो यह शरीर ही संसार हो जाता है हम लोगों के साथ ऐसी अनुभूति और अभिवक्ति कुछ मात्रा में सहयोग कर रही है इसलिये आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम लोग मानस का सहारा लें



मुगलों के क्रूर शासन में अपने अस्तित्व के लिये जूझ रहे हिन्दुओं में आत्मोत्थान की ज्योति जलाने शौर्य का संचार करने के लिये राष्ट्रभक्त तुलसीदास ने मानस की रचना की


जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।

करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।।1।।

गणेश जी का मुख इस प्रकार का क्यों हैं यह तथाकथित विचारशील लोगों को कभी समझ में नहीं आयेगा इसलिये हम लोग विश्वास करना सीखें


बंदउं प्रथम महीसुर चरना। मोह जनित संसय सब हरना॥

सुजन समाज सकल गुन खानी। करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी॥2॥

आचार्य जी ने इस दोहे की व्याख्या करके बताया कि हम लोग आत्मस्थ होने का प्रयास करें, शरीर और मन को शुद्ध करें मानस का पाठ करें हनुमान चालीसा का पाठ करें सस्वर पाठ करें उपासना ध्यान धारणा करें मनुष्य का जीवन बहुत महत्त्वपूर्ण है

हम लोग अपने दीप बाती तेल को संयुत करें ज्ञान का दीप प्रदीप्त करें

इसके अतिरिक्त आचार्य रजनीश का नाम माननीय प्रधानमन्त्री का नाम क्यों आया जानने के लिये सुनें

26.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 26 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥

बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥


प्रस्तुत है प्रयतमानस आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26 अप्रैल 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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इन सदाचार संप्रेषणों का मुख्य विषय अध्यात्म रहता है   जिसे आचार्य जी शौर्य से संयुत करते हैं क्योंकि शौर्य ही इस संसार की लगभग सारी समस्याओं को सुलझाने का आधार बनता है l शौर्य प्रमंडित अध्यात्म से संसार और असंसार दोनों की समझ आसानी से आ जाती है संसार में समस्याएं हैं और अध्यात्म में समाधान और इनके बीच का सेतु शौर्य है


इस रहस्य को समझने के लिये चिन्तन की आवश्यकता है फिर चिन्तन के मन्थन की और सबसे महत्त्वपूर्ण है कि चिन्तन मन्थन से जो प्राप्त है उसको यथासमय यथाविधि यथास्थान प्रयोग किया जाए


ये सब प्राप्त होने पर हम समाज के समझदार आत्मविश्वासी आत्मशक्तिसंपन्न संभ्रान्त व्यक्ति गिने जाते हैं


आचार्य जी ने स्वामी अभेदानन्द (2/10/1866-8/9/1939)

(पूर्व नाम काली प्रसाद चन्द्र )

द्वारा लिखी पुस्तक मृत्यु के उस पार की चर्चा की जिसमें प्रेत योनि का उल्लेख है

प्रेत योनि को हम लोगों जैसा शरीर नहीं मिलता प्रेतों को प्यास लगती है पानी पी नहीं सकते अर्थात् भावों को क्रिया रूप में परिवर्तित नहीं कर सकते

अध्यात्म के चिन्तन मनन विचार और अपने शारीरिक सदाचार के अनुपालन से हम बुरी संगति में पड़ने पर भी अपना अच्छा आचरण नहीं छोड़ेंगे

प्रातःकाल जागरण, उचित दवाओं का प्रयोग, पूजा का सहज अभ्यास,प्राणायाम, घर में हवन, अच्छे ग्रन्थों का अध्ययन आदि आवश्यक हैं जहां भी सत् है उसकी संगति करें


इसके अतिरिक्त सहज मृत्यु क्या है शरीर का अभ्यास क्या है

नीरज भैया, डा संकटा प्रसाद पांडेय जी, करपात्री जी महाराज, डा वाजपेयी जी , स्वामी रामकृष्ण परमहंस का नाम किन संदर्भों में आया जानने के लिये सुनें

25.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 25 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 स्वस्त्यस्तु विश्वस्य खलः प्रसीदतां

ध्यायन्तु भूतानि शिवं मिथो धिया।

मनश्च भद्रं भजतादधोक्षजे

आवेश्यतां नो मतिरप्यहैतुकी।।(भागवत 5/18/9)


प्रस्तुत है वाचोयुक्ति आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25 अप्रैल 2022

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विषयों का संगुम्फन संस्कार का मूल होता है हम लोग विषयों का संगुम्फन नहीं कर पाते क्योंकि हमारी शिक्षा बहुत विश्लेषणात्मक हो गई है

मातृ भाव के कारण हम  कहते हैं भारत माता, धरती माता, सरस्वती माता

इसका विश्लेषण नहीं होना चाहिये 


आत्मचिन्तन में हम प्रवेश करें गम्भीरता से चिन्तन करते हुए हम लोग समाज जीवन में परिवार  में और चाहे हम लोग संपूर्ण विश्व का चिन्तन करें तो भी समन्वय सामञ्जस्य ढूंढे


मनु की चर्चा ऋग्वेद से है मनु सूर्यपुत्र हैं सूर्य प्राणदाता है गायत्री मन्त्र सूर्य उपासना पर आधारित है सूर्य को हम संस्कारी लोग जल देते हैं

इसी तरह हम लोग गंगा माता मां नर्मदा आदि कहते हैं प्रकृति में भी संस्कार का भाव प्रविष्ट कराया गया  प्रकृति की निर्मिति सूर्य के पश्चात् हुई परमात्मा क्या है

परमात्मा है 

महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा।


मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः।।10.6।।


सात महर्षि, उनसे भी पहले होने वाले चार सनकादि और चौदह मनु -- ये सारे मेरे मन से पैदा हुए हैं और मुझमें श्रद्धाभक्ति रखनेवाले हैं, जिनकी संसार में यह सम्पूर्ण प्रजा है।


अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण ने  अपना विराट् स्वरूप दिखाया 


दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि


दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि।


दिशो न जाने न लभे च शर्म 


प्रसीद देवेश जगन्निवास।।11.25।।


त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण


स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।


वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम


त्वया ततं विश्वमनन्तरूप।।11.38।।

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम इनका अध्ययन करें और चर्चा भी करें


ज्ञान के नेत्र खुलने पर हमारे भाव को पोषण मिलता है यह सब हमें सत्य लगने लगता है अज्ञानता में भय और भ्रम रहता है

" भारत में लोकतांत्रिक संस्कार "

विधि और व्यवहार पर भी चर्चा कर सकते हैं


विश्वास सबसे   बड़ा धन है फिर हम आत्मविश्वासी हो जाते हैं और हम परमात्मा पर भी विश्वास करने लगते हैं हमारे अन्दर शक्ति का पुञ्ज प्रवेश करता है


इसके अतिरिक्त पारखद क्या है? भैया राजीव शर्मा जी का उल्लेख क्यों हुआ आदि जानने के लिये सुनें

24.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 24 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रकाशक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24 अप्रैल 2022

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आचार्य जी ने कल 23-04-2022 के एक प्रसंग का विस्तार से उल्लेख किया जिसमें उन्होंने बताया कि हम लोगों के गांव सरौंहां के बिल्कुल बीच में एक तीर्थस्थान है *न्यायीनाथ स्वामी महाराज*

 सफलता मिलने पर इस स्थान पर  घंटा बांधा जाता है


राम और कृष्ण हमारे जीवन के आदर्श मानदंड हैं जो हमें बताते हैं कि समय पर क्या करना चाहिये


का बरषा सब कृषी सुखानें। समय चुकें पुनि का पछितानें॥

अस जियँ जानि जानकी देखी। प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी॥

गुरु, सिद्धांत,विचार, राष्ट्र, विश्व के प्रति श्री राम का समर्पण अद्भुत है

आचार्य जी ने मानस के स्वयंवर प्रसंग का उल्लेख किया


लखन लखेउ रघुबंसमनि ताकेउ हर कोदंडु।

पुलकि गात बोले बचन चरन चापि ब्रह्मांडु॥ 259॥

..

देखी बिपुल बिकल बैदेही। निमिष बिहात कलप सम तेही।

तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा। मुएँ करइ का सुधा तड़ागा॥

...

भगवान राम ने यहां समय पर सही काम किया


हम भी समय का सदुपयोग करें अपने सूत्र सिद्धान्त भी याद रखें समाज के लिये उपयोगी बनें दिशा दृष्टि सही रखें शक्ति  आदि का संचय करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राघवेन्द्र दीक्षित भैया रश्मेन्द्र भैया राघवेन्द्र प्रताप भैया मोहन भैया राजीव आदि की चर्चा क्यों की जानने के लिये सुनें

23.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 23 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है स्थितधी आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23 अप्रैल 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 


किसी को यह भ्रम नहीं पालना चाहिये कि वो अमुक कर्म कर रहा है और इसका जितना अधिक अभ्यास हो जाता है उसको कर्म के आनन्द का लाभ उतना अधिक मिलता है

संसार की समस्याओं में राहत पाने के लिये आचार्य जी प्रायः गीता का सहारा लेने के लिये कहते हैं


मोहग्रस्त अर्जुन के सम्मोहन को दूर करने के लिये भगवान्  श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया हम लोगों में भ्रम है कि एक घटना से गीता उत्पन्न हुई जब कि महाभारत के शान्तिपर्व में लिखा है



त्रेतायुगादौ च ततो विवस्वान्मनवे ददौ |

मनुश्र्च लोकभृत्यर्थं सुतायेक्ष्वाक्वे ददौ |

इक्ष्वाकुणा च कथितो व्याप्य लोकानवस्थितः ||


“त्रेतायुग के आदि में विवस्वान् ने परमेश्र्वर सम्बन्धी इस विज्ञान का उपदेश मनु को दिया और मनुष्यों के पिता मनु ने इसे अपने सुत इक्ष्वाकु को दिया | इक्ष्वाकु इस पृथ्वी के शासक थे और उस रघुकुल के पूर्वज भी थे,

 इससे प्रमाण मिलता है कि मानव समाज में महाराजा इक्ष्वाकु के काल से ही भगवद्गीता विद्यमान थी |


ये सारे हम लोगों के इतिहास के पन्ने परिस्थितिओं के कारण गायब कर दिये गये और हम लोग पार्थिव चिन्तन में भ्रमित हो गये हम इस चिन्तन से उठकर अपने आत्मचिन्तन में प्रवेश करें


आचार्य जी ने जोर दिया कि इसके लिये  नियमित रूप से हमें उपासना  करनी चाहिये  ताकि हम पार्थिव चिन्तन भौतिक चिन्तन के भ्रम में डूबे न रहें


आचार्य जी ने पूजन अर्चन और उपासना में अन्तर बताया


विचारपूर्वक काम करना आनन्द देता है  बेगार टालना परेशानी पैदा करता है

उपासना से मानव जीवन संस्कारी हो जाता है अनेक क्यों के उत्तर हमें मिलते जाते हैं आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम गीता के चौथे अध्याय में 16 से 24 छन्द तक पढ़ लें


हमें संसार में रहने का सलीका आ जाये तो संसार आनन्द देता है हमारा मनोबल कष्टों का निवारण करता है मनुष्य का शरीर बहुत रहस्यात्मक है कष्टों में हम परेशान न हों अपनी क्षमता पहचानें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल अपनी लखनऊ यात्रा के बारे में क्या बताया जानने के लिये सुनें

22.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 22 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 वाचक ! प्रथम सर्वत्र ही ‘जय जानकी जीवन’ कहो,

फिर पूर्वजों के शील की शिक्षा तरंगों में बहो।

दुख, शोक, जब जो आ पड़े, सो धैर्य पूर्वक सब सहो,

होगी सफलता क्यों नहीं कर्त्तव्य पथ पर दृढ़ रहो।।

--जयद्रथ वध (मैथिली शरण गुप्त )


प्रस्तुत है शुद्धमति आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22 अप्रैल 2022

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स्थान :उन्नाव


जिनके पास संसारी दृष्टि है वो संसार के हिसाब से अपनी सफलता असफलता का आकलन कर  समय व्यतीत करते हैं जिन भाग्यशाली लोगों के पास दिव्यदृष्टि होती है वो वर्तमान का स्मरण करते हुए भविष्य

 का दर्शन भी कर लेते हैं वे परमात्मा के कृपापात्र होते हैं  वे कृपापात्र कभी कभी परमात्मा के पार्षद भी हो जाते हैं


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि स्वाध्याय संयम श्रद्धा से हमारे मन में उठ रहे बहुत से प्रश्नों के उत्तर खोजने पर मिल जायेंगे

श्रद्धा स्वयं के प्रति भी होनी चाहिये आत्मानुभूति का प्रयास भी आवश्यक है

आचार्य जी का सदैव यही प्रयास रहा है कि वो गूढ़ विषय को भी सरल करके समझा देते हैं


हम लोग बहुत भाग्यशाली हैं कि आज भी हम लोग आचार्य जी के संपर्क में हैं और साथ मिलकर योजनाएं बनाते हैं

योजनाओं की सफलता असफलता की ओर हमें ध्यान नहीं देना चाहिये योजनाएं न बनाना अकर्मण्यता है


निश्चेष्ट होकर बैठना और सब प्रकार की संपत्तियों को अपने नाम कर लेना यह संसार की वृत्ति संघर्ष का कारण बनती है जिसे हम रूस यूक्रेन युद्ध  में देख सकते हैं महाभारत की तरह


मनुष्यत्व का आनन्द हमें तभी मिलेगा जब हम संवेदनशीलता के साथ अपने कार्य और व्यवहार को संपादित करेंगे

तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥

भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥

बार बार गीता मानस उपनिषद् पर आचार्य जी जोर देते हैं ताकि इनके माध्यम से हम संसार में रहने का सलीका सीख सकें

तुलसीदास वेदव्यास वाल्मीकि के प्रति भी हमारी श्रद्धा होनी चाहिये क्योंकि इन्हीं के माध्यम हमें गीता मानस जैसे अद्वितीय ग्रंथ मिले हैं


आचार्य जी का भी यही प्रयास रहता है कि हमारा आत्मबोध जाग्रत हो


आज आचार्य जी लखनऊ जा रहे हैं l 

इसके अतिरिक्त ज्ञान -यज्ञ क्या है रस्सी बालटियां क्या हैं 

 भविष्य में इतिहास का निर्माण कौन करने जा रहा है आदि जानने के लिये सुनें

21.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है स्थिरसङ्गर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21अप्रैल 2022

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योग पद्धति की एक विधा है हठ योग लेकिन आचार्य जी उसके पक्षपाती नहीं हैं न ही तन्त्र -शास्त्र के

आचार्य जी सहज कर्मशील उदात्त सरल जीवन के पक्षधर हैं


हमें संसार में रहकर संसारी भावों को समझकर  संसार की अनुकूलता देखनी चाहिये और संसार की समस्याओं को अपने पौरुष और पराक्रम से शमित करने का संकल्प करना चाहिये

यद्यपि 

सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो


मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।


वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो


वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।15.15।।


इसकी व्याख्या को विस्तार देते हुए आचार्य जी ने कहा कि संसार में आये हो तो कर्म करो जो स्वयं को परिवेश को आनन्दमय रख सके


संसार के स्वरूप के साथ स्वभाव का संतुलन करना अपने को आनन्द में रखता है

इन्द्रियां तो अद्भुत हैं कि तृप्त होने के बाद फिर अतृप्त हो जाती हैं


हमारी सहज रूप से प्रशंसा हो रही है तो यह हमें आनन्द देती है



सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।


ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।।


ये सिद्धयोगी अलग हैं


सामान्य रूप से निन्दा बुरी लगती है प्रशंसा अच्छी लगती है यही संसार है इस संसार के साथ अपना निर्वाह करना जीवन की विधि व्यवस्था है

संसार के सहज जीवन का एक उपक्रम है कि अपने वाणी व्यवहार से न मैं किसी को कष्ट पहुंचाऊं न मुझसे कोई खराब व्यवहार करे


आचार्य जी ने सूचित किया कि वो आज और कल उन्नाव और लखनऊ रहेंगे


जिस कारण आचार्य जी का लेखन और चिन्तन बाधित रहेगा

ऐसी परिस्थितियों में हमें परेशान नहीं होना चाहिये कि हमारा लेखन चिन्तन आदि बाधित हो रहा है और हमें प्रकृति के साथ सान्निध्य स्थापित करना चाहिये


आचार्य जी ने यह भी बताया कि हमें क्यों अन्य मनोरंजन के साधन  ढूंढने की आवश्यकता नहीं है


सहजसमाधि अत्यन्त आनन्दमय है इसकी विस्तृत और उत्कृष्ट व्याख्या अत्यन्त प्रबल जिज्ञासु प्रश्नकर्ताओं और उत्तर देने में आनन्द की अनुभूति करने वाले उत्तरकर्ता के कारण संभव है


आचार्य जी से कल कौन भैया (जिन्होंने जुगलदेवी विद्यालय से सन् 1997 में इंटरमीडिएट  किया) मिले

आचार्य जी लखनऊ क्यों जा रहे हैं आदि जानने के लिये सुनें

20.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है तार्किक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20 अप्रैल 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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कभी कभी प्रतिभाएं भ्रमित हो जाती हैं उनमें व्यामोह छा जाता है प्रतिभा आवृत हो जाती है जब अर्जुन की प्रतिभा आवृत हो गई थी तो हम तो सामान्य लोग हैं

गीता उपनिषद् ब्रह्मसूत्र आदि  ग्रंथों का साहित्य हमारे जीवन का आधार है

कल भैया प्रदीप वाजपेयी से विचार विमर्श कर आचार्य जी ने तय किया कि अगले माह आचार्य जी और भैया प्रदीप जी भैया नीरज कुमार जी (1981) के आवास पर जायेंगे


आचार्य जी ने 28 अप्रैल 2021 को लिखी एक कविता सुनाई


हम चलेंगे साथ तो संत्रास हारेगा.......

यह कविता निश्चित रूप से हम लोगों के उत्साह में अभिवृद्धि करने वाली है


आचार्य जी ने एक और कविता सुनाई

चलो गांव की ओर साथियों चलो गांव की ओर......

19.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 " प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "


प्रस्तुत है वयःस्थ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19 अप्रैल 2022

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स्थान : सरौंहां

आचार्य जी हाल में ही चित्रकूट से लौटे हैं

किसी समय चित्रकूट की पावन धरती की व्यवस्थाएं बहुत अनगढ़ थीं लेकिन नाना जी देशमुख के पौरुष -प्रदर्शन से अब वहां बहुत सुधार आ गया है आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग वहां अवश्य जायें


आचार्य जी सदैव भगवान् से यह प्रार्थना करते हैं कि उनके मानस पुत्र भाव के साथ अभिव्यक्तिमय हो जायें लेखन -योग पर ध्यान दें चिन्तन मनन करें चर्चा करें संकल्पसिद्ध हों ताकि वे भारत मां के सेवक बन सकें


आचार्य जी ने  निम्नलिखित पंक्तियों में अपने अद्भुत भाव उकेरे 

*अपने और परायों की परिभाषा है ये दुनिया*

*तरह तरह के मनभावों की भाषा है ये दुनिया*.....

और आचार्य जी ने

2010 में लिखी अपनी एक और कविता सुनाई 

*था गांव एक परिवार देवता सब सबके*...


इसके अतिरिक्त जवासा घास क्या होती है नागर शब्द के क्या क्या अर्थ हैं आदि जानने के लिये सुनें

18.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है दर्शयितृ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18 अप्रैल 2022

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स्थान :उन्नाव


सदाचार संप्रेषण का उद्देश्य है कि हमारे अन्दर सत् आचरण का प्रवेश हो

वासनोन्मुख इंद्रियां निरंतर गमन करती रहती हैं, उनकी इस गति को अपने अंदर ही लौटाकर मन में समाहित करना प्रत्याहार है। जिस प्रकार कच्छप अपने अंगों को समेट लेता हैं उसी प्रकार इंद्रियों को  घातक वासनाओं से विमुख करने का प्रयास  ही प्रत्याहार है।


यम नियम आसन प्राणायाम को साधने से प्रत्याहार अपने आप सध जाता है और इससे हमारे ऊर्जा के स्तर में वृद्धि हो जाती है


फिर हमारे पास शारीरिक और मानसिक रोग फटकते तक नहीं


हम इस ओर भी ध्यान दें कि हमारी परिस्थिति हमारे परिवेश के आधार पर हमारी संस्कृति हमारी सभ्यता का विकास हो


WhatsApp संदेश बाह्य दर्शन पर आधारित होते हैं अतः सीमित रूप से ही विचारों का प्रसार करें, अधिकता से मानसिक क्षमताओं का क्षरण होता है

परिवार में पड़ोस में साथियों से सहयोगियों से प्रत्यक्ष संबन्धों की ओर ध्यान दें


ॐ सहनाववतु सहनौभुनक्तु सहवीर्यं करवावहै, तेजस्विना वधीतमस्तु मा विद्विषावहै। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः। 

इस औपनिषदिक सिद्धान्त का परिपालन आज से ही करें


समय समय पर एक दूसरे का सहयोग करें केवल विचार न करें व्यवहार भी करें हम लोगों की कर्मशीलता से समाज प्रभावित होगा


आचार्य जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी और भैया शुभेन्द्र जी की चित्रकूट यात्रा से हम किस प्रकार लाभान्वित हो सकते हैं इसके लिये आप लोगों से संपर्क करें

17.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सूरिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17अप्रैल 2022

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दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा संयुक्त राष्ट्र के धारणीय विकास के लक्ष्यों पर चित्रकूट की पावन धरती में 15 से 17 अप्रैल 2022:तक आयोजित होने वाले प्रथम त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आज समापन होने जा रहा है

आज का सदाचार संप्रेषण भी पिछले दो दिनों की भांति आचार्य जी चित्रकूट से ही कर रहे हैं

आचार्य जी ने अष्टांग योग के बारे में बताया

हमारे ऋषि-मुनियों ने योग के द्वारा शरीर, मन और प्राण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति के लिए आठ प्रकार के साधन बताये हैं, जिसे अष्टांग योग कहते हैं। योग के ये आठ अंग हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि। इनमें पहले पांच साधनों का संबंध मुख्य रूप से स्थूल शरीर से है। ये सूक्ष्म से स्पर्श मात्र करते हैं, जबकि बाद के तीनों साधन सूक्ष्म और कारण शरीर का गहरे तक स्पर्श करते हुए उसमें परिष्कार करते हैं। इसीलिए पहले साधनों - यम, नियम, आसन, प्राणायाम व प्रत्याहार को बहिरंग साधन और धारणा, ध्यान तथा समाधि को अंतरंग साधन कहा गया है।( साभार http://yogainstantly.in)


आचार्य जी ने कामदगिरि की भी चर्चा की जो चित्रकूट में किसी भी स्थान से देखे जाने पर धनुषाकार दिखाई देता है।

आचार्य जी ने विस्तार से बताया कि जब भी हम अकेले हों तो अपने को किस प्रकार प्रफुल्लित रख सकते हैं

इसके अतिरिक्त जाग्रत स्थान से क्या तात्पर्य है? भारतवर्ष के स्वर्गिक स्वरूप को किस प्रकार आचार्य जी ने वर्णित किया? कल कुछ समय के लिये आचार्य जी अकेले क्यों थे? जानने के लिये सुनें

16.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अवाक्ष आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16 अप्रैल 2022

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मनुष्य द्वारा की गई अभिव्यक्ति उसका वैशिष्ट्य है और विभिन्न प्रकार से की गई उसकी अभिव्यक्तियां वैशिष्ट्य का विशेषीकरण है

इसी से व्यक्ति के व्यक्तित्व बनते हैं व्यक्ति, महत्त्वपूर्ण व्यक्ति,अतिमहत्त्वपूर्ण व्यक्ति,महापुरुष, अतिपुरुष,ऋषि, द्रष्टा आदि श्रेणियां हैं

और फिर सोपान चढ़ते चढ़ते वह सोsहम् की स्थिति में पहुंचता है और दूसरों को तत्त्वमसि का अनुभव कराता है

विश्व में भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जिसे जीवनपद्धति का यह वैशिष्ट्य प्राप्त है कुछ अन्य देशों को भौतिक समृद्धि और दैहिक सौष्ठव प्राप्त है

भारत का वैशिष्ट्य अध्यात्म है इसे हमें गम्भीरता से समझना होगा जिस व्यक्ति का जितना अधिक अध्यात्म में प्रवेश होगा तो उसकी भाषा उतनी ही प्राणवान बलवती हो जाती है भाव का संपोषण मिलने पर वह भाषा अन्य व्यक्तियों को प्रभावित करती है और मन्त्र की अवस्था तक पहुंच जाती है


यह गम्भीर चिन्तन का विषय है जो अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन निदिध्यासन से संभव है

हम सभी के लिये तत्त्वदर्शिता की ओर उन्मुखता संभव है


हमारे यहां का साहित्य बहुत बड़ा है जैसी जीवन जीने की शैली यह साहित्य बता देता है अन्य कहीं के साहित्य में नहीं है

शरीर को साधना अत्यन्त आवश्यक है

प्रातःकाल का जागरण अत्यन्त आवश्यक है शरीर शुद्धि भी आवश्यक है अपने खानपान पर भी ध्यान दें


फिर हम स्वावलम्बी हो जायेंगे हमारे यहां का भक्तिमार्ग भी स्वावलम्बन का ही मार्ग है शरीर से आत्म की यात्रा अध्यात्म है 

अध्यात्म निष्क्रियता नहीं है संसार से विमुखता नहीं है


आचार्य जी ने पुनः दोहराया कि शौर्यप्रमण्डित अध्यात्म महत्त्वपूर्ण है

15.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार

उषा ने हँस अभिनंदन किया, और पहनाया हीरक हार ।

जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक

व्योम-तम-पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक ।

जय शंकर प्रसाद



प्रस्तुत है उरुगाय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15अप्रैल 2022

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परमात्मा ने मनुष्य को अपना प्रतिनिधि बनाया सृष्टि के वैविध्य का आनन्द ले अनुसंधान करे चिन्तन विचार करे मानवीय कल्याण के लिये काम करे यही महाप्राणा भारतीय संस्कृति का आधार है जिससे संपूर्ण जगत को ऊर्जा मिलती हैl विषम परिस्थितियों में भी अपनी प्राणिक ऊर्जा के प्रकाश से अपने को जीवन्त बनाये रखना महाप्राणता कहलाती है

डा हेडगेवार ने चारित्र्य संपन्न हिन्दुओं का संगठन करने का संकल्प किया l उन्होंने कहा हम भारतीय संस्कृति के आधार पर इसके चिन्तन में रत व्यक्तियों को खोजेंगे और प्रेम से उनका संगठन करेंगे


शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन का आधार लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने चित्रकूट में  यहां के लोगों को संगठित कर जाग्रत करने का संकल्प किया

उसी के आधार पर 

आज से चित्रकूट में एक चिन्तनशिविर प्रारम्भ हो रहा है इसी से संयुत होने के लिये आचार्य जी ने यहां युगभारती का प्रवेश कराया इस शिविर में आचार्य जी के अतिरिक्त भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी और भैया शुभेन्द्र सिंह परिहार भाग ले रहे हैं 


राष्ट्र के हित के लिये काम करने वाले संगठनों में कोई अन्तर नहीं है चाहे वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हो युग भारती हो या दीनदयाल शोध संस्थान

यद्यपि सबकी भूमिकाएं अलग अलग हैं लेकिन  आधार राष्ट्रहित है


राष्ट्रहित में काम करते समय यह न सोचें कि इससे हमको क्या मिलेगा  विचारों को सात्विक बनाने के लिये 

प्रातःकाल जाग्रत होकर आत्मचिन्तन में बैठने का अभ्यास करें यही ध्यान की भूमिका है केवल प्रकाश स्थिर करना ही ध्यान नहीं है

संसार उपयोगहीन नहीं है श्मशान वैराग्य तो क्षणिक होता है

14.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे

त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।

महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे

पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥१॥......

(इसे सर्वप्रथम २३ अप्रैल १९४० को पुणे के संघ शिक्षा वर्ग में गाया गया था। श्री यादव राव जोशी ने इसे सुर दिया था।)




प्रस्तुत है विद्याकर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14 अप्रैल 2022

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व्यक्ति में दोष हो सकते हैं लेकिन विचार कभी दूषित नहीं होता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कोई व्यक्ति नहीं है एक विचार है l यह संस्था 27 सितम्बर 1925 को एक ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रारम्भ की गई जिसके जीवन में प्रसिद्धि परान्मुखता मूर्त रूप बनकर समा गई यानि 

हमें प्रसिद्धि चाहिये ही नहीं हमें केवल काम करना है



उस व्यक्ति का नाम है डा केशव बलिराम हेडगेवार


 उनके संबंध में पहली छोटी पुस्तिका का प्रकाशन उनकी मृत्यु के पश्चात व.ण. शेंडे ने 1941 में किया था । इसके दो दशक बाद नारायण हरि पालकर ने उनका जीवन चरित्र लिखा हेडगेवार जी को अपने काम में सफलता मिली 


दरिद्रता, प्रसिद्धिविहीनता, बड़ों की उदासीनता, परिस्थिति की प्रतिकूलता, पग-पग पर बाधाएँ, विरोध, उपेक्षा, उपहास आदि के कटु अनुभव के साथ-साथ स्वीकृत कार्य की पूर्ति के लिए आवश्यक साधनों का अत्यन्त अभाव आदि कितनी ही कठिनाइयाँ मार्ग में आयें तो भी अपने कार्य के साथ तन्मय होकर

मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः।


सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते।।18.26।।

इस वृत्ति से 

सुख-दुख, मानापमान, यशापयश आदि किसी की भी चिन्ता न करते हुए यदि कोई प्रयत्नरत रहेगा तो उसे अवश्य ही सफलता मिलेगी।


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमारे देश की ऋषि परम्परा का कलियुग का व्यावहारिक स्वरूप है

जिस दिन संपूर्ण भारत भगवामय हो जायेगा उस दिन सारे विश्व का कल्याण हो जायेगा

13.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 को छूट्यौ इहि जाल परि, कत कुरंग अकुलात। ज्यौं-ज्यौं सुरझि भज्यौ चहत, त्यौं त्यौं उरझत जात॥

कवि बिहारी



प्रस्तुत है प्रगुण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13 अप्रैल 2022

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मन को शान्त और आनन्दित करने के लिये अध्यात्म में प्रवेश आवश्यक है

ध्यान का एक छन्द है


शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्

वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥


आचार्य जी ने इसकी बहुत अच्छी व्याख्या की


एक और छन्द है


पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथापः ;


 स्पर्शी च वायुर्ज्वलितं च तेजः।


 नभः सशब्दं महता सहैव ;


 कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।


इस तरह के ध्यान से हमें शान्ति मिलती है


यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै-

र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।

ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो-

यस्तानं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:।।


मनुष्ययोनि को प्राप्त कर हम अपने मनुष्यत्व को सफल करते रहें इसके लिये अध्यात्म का मार्ग बहुत प्रेरक सहायक और शान्तिदायक है


अध्यात्म का मार्ग वैराग्यमय होने के साथ कर्ममय भी है इसके लिये गीता के अन्दर प्रवेश लाभप्रद है


हमारी संस्कृति में ध्यान धारणा योगमार्ग ज्ञानमार्ग उपासनामार्ग आदि  गीता में यथासमय में प्रदर्शित कर दिये गये हैं इस कारण इस अतुलनीय ग्रंथ में बहुत उच्चकोटि के विद्वान आनन्द की अनुभूति करते हैं और अपने विचारानुरूप व्याख्याएं करते हैं


जीवन की समयसारणी बना लें लेकिन जो करें उसमें रमें

यह न करें कि घर पर हैं तो कार्यस्थल के बारे में सोच रहे हैं कार्यस्थल पर हैं तो घर के बारे में

एक अत्यन्त दुःखद सूचना है कि भैया राजेश मल्होत्रा जी बैच 1975 के पूज्य पिता जी श्री किशन लाल मल्होत्रा जी निवासी 120/304 लाजपत नगर कानपुर का स्वर्गवास 11.04 2022 को हो गया

12.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है आर्यक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12 अप्रैल 2022

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दुनिया उलझ जाती है तो उसे सुलझाना अत्यन्त कठिन है प्रयास असफल रहता है भौतिकता से बचाव के कारण ही संन्यास की परिकल्पना की गई लेकिन संन्यास भी भौतिकता का सुसंस्कृत स्वरूप है क्योंकि चाह वहां भी बनी रहती है मोक्ष की शान्ति की

आचार्य जी ने 13 दिसंबर 2015 को लिखीअत्यन्त भावों से पूर्ण अपनी रचित एक कविता सुनाई



पद और प्रतिष्ठा सुख सुविधा के पीछे दीवानी दुनिया

कुदरत से लोहा लेने को आतुर है शैतानी दुनिया......


और गीता कहती है संसार में आये हैं तो सहज जीवन जिएं


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।


जसो थारो गाणो वसो म्हारो बजाणो


हम सबमें भावनाएं भरी हैं इसीलिये हम लोग समाज राष्ट्र की चिन्ता करते हैं अतः प्रातःकाल हमें भावनाओं की उपासना करनी चाहिये


प्रकृति में बहुत आकर्षण है यह भावों के साथ जब घुलमिल जाता है तो आत्मानन्द की अनुभूति होती है ध्यान सुदृढ़ होने लगता है और धारणा से संयुत हो जाता है फिर हमारा भाव समाधिस्थ होने लगता है


संसार का मल दूर करने का प्रयास किसे करना चाहिये जानने के लिये सुनें

11.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 11 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है भावितात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 11 अप्रैल 2022

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हम सुदृढ़ परम्परा के वाहक रहे हैं लेकिन परिस्थितियों के झोकों ने हमें समूल नष्ट करने का असफल प्रयास किया

हमारे मन मस्तिष्क को सदैव यह बात आन्दोलित करती रहनी चाहिये कि हम तत्त्वदर्शी हैं भावनाओं के ज्वार हैं विचारों के आगार हैं

इस सदाचार संप्रेषण का मूल हेतु यही है

हमारी सांस्कृतिक ज्योति को बुझाने के घृणित प्रयास किये गये हैं लेकिन यह ज्योति बुझी नहीं


विद्यालय में हनुमान जी की प्राणप्रतिष्ठा के समय मुख्य पुरोहित रहे डा श्रीकृष्ण देव(पूर्व अध्यक्ष संस्कृत विश्वविद्यालय काशी )ने कहा था कि मैक्समूलर ने बहुत नुकसान किया यद्यपि स्वामी विवेकानन्द ने मैक्समूलर की बहुत प्रशंसा की थी

हमारी सांस्कृतिक विचारधारा के मूल स्रोत (लोकहित प्रकाशन ) (सुरेश सोनी )(2016)

में  भी बताया गया है कि मैक्समूलर ने बहुत नुकसान पहुंचाया 

The Life and Letters of the Right Honourable Friedrich Max Muller; (Ed. by His Wife) पुस्तक में कहा गया है कि वेद निकृष्ट हैं 

आचार्य जी ने अप्पय दीक्षित का उल्लेख किया जिनकी चर्चा तक नहीं होती 

अप्पय दीक्षित  वेदांत दर्शन के विद्वान्‌ थे इनके पौत्र नीलकंठ दीक्षित के अनुसार ये 72 वर्ष तक जीवित रहे थे।  सुप्रसिद्ध वैयाकरण भट्टोजि दीक्षित इनके शिष्य थे। इनके करीब 400 ग्रंथों का उल्लेख मिलता है। शंकरानुसारी अद्वैत वेदान्त का प्रतिपादन करने के अलावा इन्होंने ब्रह्मसूत्र के शैव भाष्य पर भी शिव की मणिदीपिका नामक  टीका लिखी।

(स्रोत :विकीपीडिया )

मस्तिष्क परिवर्तित करते हुए अंग्रेजी और अंग्रेजियत ने हमारा बहुत नुकसान किया है

हमें इस पर चिन्तन करना चाहिये 


जीवन की भूमिका तैयार करें ताकि उपसंहार विकृत न हो

(एक सूचना :युगभारती को 80G के अंतर्गत मान्यता प्राप्त हो गई है)

10.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 हम शक्ति शौर्य संकल्प पराक्रम से अभिमंत्रित हों, 

आवेग अपार धार कर  अपने आप नियंत्रित हों।



प्रस्तुत है वशिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10अप्रैल 2022

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विकलांग समाज समस्याओं से हमेशा जूझता रहता है


हमारे समाज में यह रोग छठी सातवीं शताब्दी से चल रहा है

इस विकलांगता को समाप्त करने के प्रयास चलते रहे

फिर संघर्षकाल में राजनैतिक कुचक्र शुरु हुआ


यह समाज इतने लंबे समय से संघर्षशील रहते हुए भी जीवित है जाग्रत है और उठने पर दिशा दृष्टि भी दे देता है यही आत्मबोध है यही आत्मबोध जब जाग्रत होता है तो वैदिक ज्ञान हमारे अन्दर से प्रबुद्ध हो जाता है

आचार्य जी ने शारीरक आत्मा और विभु आत्मा में अन्तर बताया

इसी उद्भूत हुए  वैदिक ज्ञान में उठते प्रश्न और उनके उत्तर अध्यात्म- चिन्तन  है

वेदांग  आदि ज्ञान के अङ्ग प्राप्त करने के लिये आसपास शान्ति  होनी चाहिये प्राकृतिक अनुकूल वातावरण  होना चाहिये


परमात्मा और प्रकृति ने तो हम भारतवासियों को सब प्रकार से संपन्न किया लेकिन हम आत्मबोध से भागने लगे शौर्य को अध्यात्म से संयुत न करने का परिणाम हुआ कि स्वैराचार में वृद्धि होने लगी


संयम की साधना से दूर हो गये

धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:।

धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌।। (मनुस्‍मृति ६.९२)

आदि जीवन जीने की शब्दों में पिरोई हुई अभिव्यक्तियां हैं

इन सबके लिये आश्रम थे

ऐसी समृद्ध परंपरा के वाहक हम अब कहां पहुंच गये हैं इस पर चिन्तन करने की आवश्यकता है


दुर्गाष्टमी पर कल दिल्ली युगभारती का भव्य कार्यक्रम संपन्न हुआ l


.इस तरह के कार्यक्रमों में चिन्तनपक्ष भी रखें निष्कर्ष लिखें प्रकाशन के लिये सामग्री खोजें

 यह संगठन को मजबूती देगा

सदाचार संप्रेषण की इन सब जानकारियों से लाभ प्राप्त करने का प्रयास करते रहें तो 

सदाचार का शिक्षण देने का हमारे अन्दर भी उत्साह आ जायेगा


इसके अतिरिक्त मनीष कृष्णा जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया आदि जानने के लिये सुनें

9.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 9 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 दुर्गति नाशिनी दुर्गा जय जय,

काल विनाशिनी काली जय जय ।


प्रस्तुत है परार्थघटक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 9 अप्रैल 2022

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कल भैया विजय मित्तल जी ने आचार्य जी को सूचित किया कि NOIDA में दिल्ली युगभारती   का एक कार्यक्रम नवरात्रि पर होने जा रहा है


संयम और शक्ति के प्रतीक दोनों नवरात्र शारदीय और बासन्ती हमारे जीवन में बहुत महत्त्व रखते हैं

यह विश्व भर में अन्यत्र न मिलने वाला  जीवनदर्शन है


व्रत के साथ पर्व संयुत है इस दुर्गाष्टमी पर हमें संकल्पसिद्ध और संकल्पबद्ध होना चाहिये

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः


साध्य को समझाते हुए आचार्य जी ने कहा कि हम अपना संकल्प न भूलें तब हमारा जीवन आदर्श जीवन होगा

सामाजिकता से हमारे उत्साह में भी वृद्धि होती है

हमारा महापुरुषत्व जाग्रत हो जाता है

आत्मसंतोष सबसे बड़ा धन है जो केवल इस चिन्ता में रहते हैं कि अखबारों में उनका नाम आये लोग उनके पीछे पीछे  दौड़ें वो अपना खजाना खाली कर रहे हैं उनका 

संयम,स्वाध्याय,श्रद्धा, निष्ठा, परिश्रम शिथिल होता जायेगा

दुर्गाष्टमी पर संकल्प लें कि हम अपने सदगुणों का कोश खाली नहीं करेंगे


हमारे सूक्ष्म शरीर की तात्त्विक शक्तियां उत्फ़ुल्ल रहें इसका प्रयास करें


दृष्टि सुस्पष्ट रखें

8.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 8 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है उत्तमश्लोक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 8 अप्रैल 2022

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बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥

सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥4॥


सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥

बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥5॥


सत्संग अतिमहत्त्वपूर्ण है हमें इनके अवसर अवश्य खोजने चाहिये 

अच्छे लोगों के साथ बैठने पर हम अच्छे कार्यों को करने के लिये उन्मुख होंगे अच्छी योजनाएं बनायेंगे


Seminars गोष्ठियां सत्संग का ही एक बदला हुआ रूप हैं जैसे आश्रमपद्धति से चलने वाले विद्यालयों का स्वरूप अब बदल गया है


उस समय की शिक्षा के स्वरूप को जानने का हमें प्रयास करना चाहिये


अच्छे विद्यार्थी के मन में बहुत से प्रश्न होते हैं, प्रश्न प्रतिप्रश्न होते हैं


प्रश्न पूछने की तैयारी करते समय कामना करनी है


ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।

स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ॥

(ऋग्वेद मंडल 1, सूक्त 89, मंत्र 8)


इसकी व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया हमारे द्वारा प्राणिमात्र का कल्याण होना चाहिये


अध्यात्म,शिक्षा,ध्यान धारणा, पूजा आदि से संबंधित प्रश्न सुस्पष्ट होने चाहिये और इनके उत्तर आदरपूर्वक प्राप्त करें भले ही उत्तर देने वाला आपसे आयु में छोटा हो

पद में छोटा हो

शौर्य प्रमंडित अध्यात्म केवल SOCIAL MEDIA पर डालकर  हमें संतुष्ट नहीं होना चाहिये


निस्पृह भाव से समाजसेवा करें

इस संसारी भाव में आत्मविस्तार ही मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा प्राप्तव्य है


अपनी भूमिका को पहचानकर कार्य करते रहें

चित्रकूट के आगामी कार्यक्रम में पहुंचकर अपना व्याप बढ़ाएं

7.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 7 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रणत आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 7 अप्रैल 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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सम्बन्ध जोड़ना संसार का सत्य है और संसार का जीवन है

इस सम्बन्ध को मधुर और प्रभावशाली बनाने के लिये अपने आचरण अपने व्यवहार और अपने विचारों को अच्छा बनाने की आवश्यकता होती है


सद्गुणों से तो सम्बन्ध बनते ही हैं स्वार्थवश भी सम्बन्ध बनते हैं दर्शनशास्त्र के अनुसार स्वार्थ का अर्थ है अपने लिये

लेकिन स्वार्थ शब्द का अर्थापकर्ष होने से उसका अर्थ हो गया 'खराब '


स्व -अर्थ संसार में सबके साथ संयुत है बिना अर्थ के हम निरर्थक हो जाने के कारण त्याज्य हो जाते हैं


इसी कारण स्वार्थ सार्थकता का आधार है हम स्वार्थमय संसार में अपने स्वार्थमय शरीर के साथ संयुत होकर राष्ट्र के स्वार्थ के लिये कार्य करते रहते हैं और इसे अच्छा मानते हैं


चिन्तन, मनन, स्वाध्याय, संसार में रहने हेतु सामर्थ्य जुटाने के लिये हमें कुछ करना होता है

हमारे जीवन का प्रातःकाल जाग जाये तो हम असुविधाओं में भी सुविधाएं खोज सकते हैं

जीवन का प्रभात सोता रहे तो बहुत से साधन एकत्र करने के बाद भी हम प्रसन्न नहीं रहते

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरविन्द तिवारी जी की चर्चा क्यों की जानने के लिये सुनें 👇

6.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 6अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥

तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन॥2॥


.प्रस्तुत है कुटप आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 6अप्रैल 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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शरीर केवल एक नहीं है जो हम धारण किये हुए हैं इसके भीतर दो और शरीर हैं सूक्ष्म और कारण

और इन तीनों का सामञ्जस्य   बैठाना बहुत कठिन है हमें कई तरह की परीक्षाओं से गुजरना होता है इनमें उत्तीर्ण होना दम्भ का कारण नहीं बनना चाहिये 

हमें ज्ञानी,समाजसेवी,ध्यानी, विचारक,योगी,लेखक,अभियन्ता , उद्योगपति आदि होने का दम्भ नहीं करना चाहिये


हम कुछ नहीं हैं हम तो किसी की निर्मिति हैं

एक गीत है

ज़िन्दगी एक नाटक है

हम नाटक में काम करते है

पर्दा उठते ही पर्दा गिरते ही

सबको सलाम करते है

इन भावों के साथ हमें संसार में रहने का सलीका आना चाहिये

ये भाव हमें शक्ति देते हैं

संकटों में हमें जप करना चाहिये


संकट कटै मिटै सब पीरा,जो सुमिरै हनुमत बलबीरा


हमारा मन भक्ति में रमे यह विश्वास की पराकाष्ठा है

आज हम लोगों के गांव सरौंहां में परंपरागत मेला है जिसमें आल्हा सम्राट स्वर्गीय लल्लू बाजपेई जी की शिष्या बहन शीलू राजपूत आल्हा  गायन करेंगी शाम को दीपोत्सव  होगा जिसमें राष्ट्र को सशक्त समर्थ बनाने  हेतु और आसुरी शक्तियों के नाश हेतु आहुतियां प्रदान की जाएंगी।

 मुख्य अतिथियों के रूप में सफीपुर विधानसभा, मोहान विधानसभा और बांगरमऊ विधानसभा के विधायक उपस्थित रहेंगे

आप लोग सादर आमन्त्रित हैं

5.4.22

 प्रस्तुत है उत्साहहेतुक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 5 अप्रैल 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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हम लोग सदाचार संप्रेषण का श्रवण कर उससे अवगत होकर उसे कार्य में परिणत कर लें तो यह भगवान् की अत्यन्त कृपा है

लेकिन सामान्य रूप से सुनना अलग होता है समझना कुछ होता है और करना कुछ होता है

महाभारत में 105 भाइयों को  द्रोणाचार्य पहला पाठ बता रहे हैं

सत्यं वद धर्मं चर स्वाध्यायान्मा प्रमदः ।

आचारस्य प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः ll


युधिष्ठिर को इसे याद करने में बहुत समय लगा और बहुत दिन बाद सत्यं वद याद हो पाया l

आचार्य जी ने विस्तार से शिक्षा का मर्म क्या है इसे समझाया 


आजकल की  स्कूली शिक्षा से आचरण चिन्तन विचार संकल्प क्रियासिद्धि की कल्पना भी नहीं की जा सकती


इस सदाचार संप्रेषण से बहुत   अधिक मात्रा में प्रभाव दिखे इसके लिये हम सबको चिन्तन करना होगा


अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम्।


भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च।।13.17।।

की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि शिक्षार्थी और शिक्षक के बीच में घिसी पिटी लीक वाली रटाई का काम चल रहा है किसी के भी द्वारा सत्ता में बैठने मात्र से ही क्या राष्ट्र -कल्याण हो सकता है



चारों ओर नकली आयोजनों की  बाढ़ है ऐसा ही बहुत कुछ चल रहा है लेकिन  किसी को किसी समय यह चलना अच्छा नहीं लगता और उसके अन्दर बहुत से भाव आने लगते हैं

उसके अन्दर युधिष्ठिर जैसी जिज्ञासा बलवती हो जाती है यह भावमय संसार अद्भुत है

भगवान् की ही कृपा है कि 

हम युगभारती सदस्य भी किसी विशिष्ट भाव के कारण संयुत हैं


समाज के लिये काम करते समय हम आनन्द का अनुभव करते हैं बोझिल नहीं होते हैं

4.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 4 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अध्यात्म -निलय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 4 अप्रैल 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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https://youtu.be/YzZRHAHbK1निर्मान


स्थान, पर्यावरण, वातावरण, सुसंगति, कुसंगति आदि संसार का स्वरूप है और उसका स्वभाव है सुख की खोज और दुःख की निवृत्ति के लिये प्रयत्न करते रहना

क्योंकि संसार स्वयं गतिमान है तो जब तक हम संसारी भाव में रहते हैं तब तक गतिमानता हमारा स्वभाव होती है किन्तु हम लगातार गतिमान नहीं रहना चाहते हैं और स्थिरता  खोजना चाहते हैं ये संसार के प्रयत्न हैं 

कल के अत्यन्त उत्साहजनक आनन्दप्रद युग -भारती नवसंवत्सर स्वागत समारोह में बहुत सी छिपी प्रतिभाएं उजागर हुईं

इस तरह के कार्यक्रमों से उत्साह उमंग जोश की अभिवृद्धि होती है

इसी कारण हमारे देश में कुम्भ के मेले आदि बहुत प्रकार के मेले होते हैं अन्य कार्यक्रम होते हैं


हमें इस देश के अस्तित्व को पहचानते हुए अपने व्यक्तित्व का सामञ्जस्य बैठाना होगा

यही सदाचार का मूल संदेश है 

उत्साह सम्पन्नं अदीर्घ सूत्रं क्रियाविधिज्ञं व्यसनेष्वासक्तं |

शूरं कृतज्ञं दृढ़सौह्रदं च लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः ||


जो उत्साह से भरा हुआ है, आलसी नहीं है, कार्य की विधि को जानता है, नशा से

मुक्त है, पराक्रमी है और लोगों की भलाई चाहने वाला है उसके पास लक्ष्मी  स्वयं चलकर निवास करने आती है


निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै


र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।

की व्याख्या में आचार्य जी ने कहा कि अध्यात्म में प्रवेश शौर्य की भूमिका है शैथिल्य नहीं है और हम कुसंगति के दोष से भी बचें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राजेश खरे का नाम क्यों लिया, सरौंहां में परसों क्या है आदि जानने के लिये सुनें

3.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 3अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ज्ञान -अभिधानमाला आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 3अप्रैल 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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https://youtu.be/YzZRHAHbK1समारोह


आज युगभारती के चिरप्रतीक्षित नवसंवत्सर स्वागत समारोह  में 1975 से 2022 (1975 से 1978 हाईस्कूल,1981 से 2022 इंटरमीडिएट बैच )तक के 46 बैच में से 46 बैच की उपस्थिति एक कीर्तिमान स्थापित करने जा रही है


एक विद्यालय में पढ़े विद्यार्थी उस विद्यालय को कर्मभूमि धर्मभूमि भावभूमि मानकर विकसित हुए और उसके आधार पर संपूर्ण देश में अपनी सुगन्ध प्रसरित करने के लिये उद्यत हैं


इससे संदेश यह जाना चाहिये   कि हम ही केवल जागे हुए नहीं हैं अपितु और लोगों को भी जगाने के लिये उद्यत हैं

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः


राष्ट्र -देवता को सर्वस्व दान करने के बाद आनन्द की अनुभूति हो

भाव, विश्वास  और समर्पण जहां होता है वहीं पर त्याग में आनन्द आता है त्याग करने के बाद पछतावा नहीं होता हल्कापन लगता है

अगली पीढ़ी को भी इन भावनाओं से ओत प्रोत करना हमारा लक्ष्य होना चाहिये

अन्य विद्यालय भी यज्ञीय भाव से संचालित होने लगें तो     भारत मां निश्चिन्त हो जाएगी और उसको सम्पूर्ण विश्व की समस्याओं का भय और भ्रम नहीं रहेगा

2.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज नव संवत्सर 2079 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा दिनांक 2 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 नववर्ष मंगलकामना की भावना का पर्व है ,

हम भरतभू के पुत्र हैं, इसका हमें अति गर्व है ।



प्रस्तुत है वप्ता आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज नव संवत्सर 2079 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा दिनांक 2 अप्रैल 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w



शरीर हमारा साथी है शरीर के माध्यम से ही शक्ति की अभिव्यक्ति होती है लेकिन जब हमारा शरीर शिथिल होता है तो मन उसकी विवेचना में लग जाता है उत्साह कम हो जाता है और ऐसी परिस्थितियों में जिनमें त्वरित हल न मिलता हो भक्ति के आश्रय में जाने का प्रयास करना चाहिये


शरीर अद्भुत यन्त्र है भक्ति विश्वास के आधार पर विषम परिस्थितियों में भी मनुष्य आगे बढ़ जाता है


दैवीय विधान के आधार पर ही हम लोग चल रहे हैं विचार कर रहे हैं दैवीय विधान क्या है गीता के दूसरे अध्याय के इन छन्दों में परिलक्षित हो रहा है


कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः


पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः।


यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे


शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।2.7।।


न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्

यचछोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् ।

अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं

राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्।।8।।


अर्जुन जैसे योगस्थ व्यक्ति को  संसार कितना अधिक लिपट गया कि भगवान् कृष्ण जैसे मार्गदर्शक को अर्जुन को समझाने में बहुत समय लग गया और फिर उसके मोह के परदे खुले


हम आत्मस्थ होने का प्रयास करें

अनुभूत भावों पर आधारित सदाचार का प्रभाव हमारे लिये अधिक लाभकारी है


कार्यक्रमों को बहुत प्रभावशाली बनाना चाहिये ताकि बहुत लम्बे समय तक लोग उनको याद कर सकें और बहुत लोगों पर वे प्रभाव छोड़ सकें


इसके अतिरिक्त श्री रवीन्द्र पाठक जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिये सुनें 👇

1.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 01/04/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रसादस्थ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 01/04/2022

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प्रकृति से दूर भागता हुआ और विकृति को प्रकृति बनाने की चेष्टा में रत मनुष्य भ्रम भय दुःख द्वन्द्व का सामना करने लगता है

जब कि यदि हम प्रकृति के सान्निध्य में रहें तो संयम और साधना को सिद्धि तक पहुंचा सकते हैं,आनन्द प्राप्त कर सकते हैं l 

प्रकृति से हमें जीवन जीने का   उत्साह मिलता है मन को शान्ति मिलती है


कल  भैया वैद्य शीलेन्द्र गुप्त और भैया विक्रम गुप्त के पिता जी आदरणीय डा रामकिशोर गुप्त जी( कुरारा  निवासी )ने आचार्य जी से भेंट की l इस भेंट से आचार्य जी के सामने  पुरानी स्मृतियां उभर कर  आ गईं इन संयोगों के क्षणों को भी संजो कर रखना चाहिये जो बहुत सहारा देते हैं l 


गीता में


चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्परः।


बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्तः सततं भव।।18.57।।

भक्ति विश्वास है,विश्वास और आत्मविश्वास एक साथ संयुत हैं आत्मविश्वास परमात्मविश्वास का ही भाग है


मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।


अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि।।18.58।।

की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि राक्षसी प्रवृत्ति के लोग कौन होते हैं


इसके अतिरिक्त भारत वर्ष की संस्कृति के किस रहस्य को हमें नित्य समझने की आवश्यकता है जानने के लिये सुनें