31.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 31 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शारुकारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 31 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/33


मन उल्लसित है तो थका शरीर भी साथ दे जाता है लेकिन यदि मन खिन्न अशान्त हताश हो तो शरीर बोझ लगता है इसलिये हमें अपनी मानसिक शक्ति को पहचानने जानने के साथ संवारने की भी आवश्यकता है

भारत के शौर्य जगो निष्ठा जागो तप त्याग जगो

संपूर्ण समर्पण वाले दृढ़  अनुराग जगो



ओ जगो वेन कुलनाशी ऋषि के आक्रोश

वनवासी रघुकुल राम भरत के त्याग जगो 

ओ कुरुक्षेत्र वाले गीता उपदेश जगो 

गांडीव गर्जना शौर्य शक्ति संदेश जगो....


हमें अपने आत्म की अनुभूति करने की आवश्यकता है

इस समय देश की स्थिति गम्भीर है सांस्कृतिक रूप से हम पराजित होते चले जा रहे हैं अच्छे विचारों वाले व्यक्तियों की जीवनशैली भी प्रायः अच्छी नहीं है संपूर्ण विश्व एक होने के बाद भी भिन्न भिन्न प्रकृतियों की सीमाओं  में बंधा है अपने व्यक्तिगत अस्तित्व व्यक्तित्व की अनुभूति की समाप्ति के कारण हमारा सांस्कृतिक पक्ष डांवाडोल हो गया है


काव्य मंचों पर समस्याओं का प्रस्तुतीकरण होता है लेकिन मात्र प्रस्तुतीकरण से काम चलने वाला नहीं है हमें समाधान भी देखना होगा कविता मात्र मनोरंजनार्थ नहीं है 

देश के प्रति समर्पण भी आवश्यक है  आज के बच्चे कोयल और मोर चित्रों में देखते हैं और विडम्बना यह कि उनके नाम अंग्रेजी में बोलते हैं यह दुःख की बात है

कवि मंच इसी तरह के दुःख के निवारण के लिये है कवि मंच आत्मबोधोत्सव है

हम इन्द्रियों के साथ तो हमेशा रहते हैं लेकिन आत्म के साथ रहना ही काव्यानन्द है


इसी आनन्द की अनुभूति के लिये कुछ भाग्यशाली श्रोताओं को एक अवसर कल मिला यह था उन्नाव विद्यालय में कल संपन्न हुआ कवि सम्मेलन


जिसमें दिव्य संचालन के साथ स्तरीय कविताओं का पाठ हुआ अंसार जी सुरेश जी उत्कर्ष जी अतुल जी पवन जी आचार्य जी प्रख्यात जी आदि कवियों ने अत्यन्त उच्च कोटि की कविताओं से श्रोताओं को झंकृत कर दिया

इसके अतिरिक्त भैया मोहन कृष्ण जी का नाम क्यों आया कौन गहरे समुद्र थे किसने लिफाफा लौटाया आदि जानने के लिये सुनें

30.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 30 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरं शुद्धमपापविद्धम्‌।

कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान्‌ व्यदधात् शाश्वतीभ्यः समाभ्यः ॥



प्रस्तुत है काव्यरसिक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/32







शरीर को नियन्त्रित करके मन को संयमित करके सद्विचारों को उत्थित करके हम ऐसी शक्ति प्राप्त कर सकते हैं जिससे हम उल्लसित रह सकते हैं

हमारा खानपान व्यवहार इसमें मददगार होता है

ऐसी बहुत सी अच्छी बातें हम लोग अपने ग्रंथों से सीख सकते हैं आचार्य जी हमारे अन्दर जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं जिससे हम जान सकें कि उपनिषदों में क्या है आरण्यक किसलिये हैं वेदों में क्या है

कथन चिन्तन कर्म विचार आदि आत्माभिव्यक्तियां परमात्मा का वरदान होती हैं इनको समझना और गहन से गहन विचारणा के साथ इनकी अनुभूति हम लोगों को करवाना आचार्य जी का हमेशा से लक्ष्य रहा है



शिल्पी | उदास क्‍यों हो

गढ़ो अपनी माटी की मूरतें 

उरेहो, अपने मन में समायी सूरतें ।

 ये वर्षा-बवण्डर, पत्थर-पानी तो आते ही रहेंगे ।

 

 पसीना बहाकर कमाई मिट्टी के ढेर

नदी नालों के पेट में समाते ही रहेंगे ।

खिलंदड़ बच्चे ही क्या

ईर्ष्या की आग में दहकते बूढ़े भी कई बार मौका पाकर 

गीले लौंदे लतियाने से चूकते नहीं

गढ़ नहीं सकते न । 

इसीलिये उन्हें दूसरों की

 बनी बिगाड़ने में मजा आता है 

और तुम जैसों का मन 

नाहक सजा पाता है |

 तुम्हारी उदासी उनको हँसाती है 

 और दुनिया के

सभी शिल्पियों को

 दुविधा में फँसाती है | 

उनका यही काम है

.......



भारत देश कवित्वमय देश है हमारी भाषा कवित्वमय है हमारी संस्कृति ही कवित्वमय है कवित्व आत्मानुभूति की आत्माभिव्यक्ति है


कवि गोष्ठी मनुष्य के आनन्द -पक्ष का एक महापर्व है

हम में ऐसे बहुत से  भावुक और भावक लोग हैं जो इस तरह की गोष्ठियों की प्रतीक्षा करते हैं यह हमारा सौभाग्य है कि एक उच्च कोटि का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कवि सम्मेलन आज उन्नाव विद्यालय में सायं चार बजे से होने जा रहा है जिसमें आप सभी सादर आमन्त्रित हैं

आपकी उपस्थिति कवियों का मनोबल बढ़ायेगी

कवि  विशिष्ट होता है उसकी दृष्टि अद्भुत होती है उसे सरस्वती का विशेष वरदान मिला होता है चर्चित हो चर्चित न हो इससे अन्तर नहीं पड़ता

कोई कवित्व की अनुभूति कर लेता है और कोई कवित्व की अनुभूति के साथ उसकी अभिव्यक्ति भी कर लेता है

दोनों का परस्पर आनन्द संप्रेषण ही ये कवि गोष्ठियां हैं



इसके अतिरिक्त मुकेश जी का नाम क्यों आया मैं पच्चीस रुपये लेने वाला व्यक्ति हूं किसने कहा

 मंच पर छत्तीस क्या था 

आदि जानने के लिये सुनें

29.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 29 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है म्रक्ष -नाशक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/31


प्रेम,भावना,कर्तव्य आदि जब

अपने चरम पर होते हैं तो मानस में आनन्द का ऐसा सागर हिलोरे लेने लगता है कि बड़ा काम भी आसानी से हो जाता है आज भी निर्लिप्त भाव से बिना लोभ के बड़े से बड़े काम को करने वाले लोग मिल जाते हैं 


हमें आत्मस्थ होकर आत्मानन्द की अनुभूति का अवश्य ही प्रयास करना चाहिये भले ही हम कितने ही व्यस्त हों

आचार्य जी ध्यान धारणा प्राणायाम आदि पर जोर देते हैं ताकि हमारी आन्तरिक शक्ति की वृद्धि हो


कल होने वाले कवि सम्मेलन की ओर संकेत करते हुए आचार्य जी कहते हैं कवि तो हर व्यक्ति है लेकिन सबमें अभिव्यक्ति नहीं है कवि सम्मेलन में कवि अपनी अपनी अपनी भावनाओं को एक विधि से व्यक्त कर सामान्य जनमानस को आनन्दित करने का प्रयास करते हैं


कल का कार्यक्रम भी बहुत सफलता पूर्वक संपन्न हुआ जिसमें युगभारती से दस सदस्य सम्मिलित हुए नाम हैं भैया अरविन्द भैया प्रदीप वाजपेयी भैया पुरुषोत्तम


भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी भैया मोहन भैया मनीष कृष्णा भैया अजय तिवारी भैया अभय गुप्त  प्रवीण अग्रवाल और भैया सुरेश गुप्त जी ( मुख्य अतिथि )



आचार्य जी ने परामर्श दिया कि


जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।

गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता।।

पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोइ।

जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोइ।।


जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा।

अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा।।

जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनिबृंदा।

निसि बासर ध्यावहिं गुनगन गावहिं जयति सच्चिदानंदा।।...

का पाठ करें



और अत्यन्त महत्त्वपूर्ण



जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा। तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥

अंसन्ह सहित मनुज अवतारा। लेहउँ दिनकर बंस उदारा॥

... का भी पाठ करें

आचार्य जी ने  186 से 198 दोहे तक का पाठ करने का परामर्श दिया


इससे विषम परिस्थितियों में हमें बल मिलेगा गीता का पाठ भी कर सकते हैं



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बैरिस्टर साहब द्वारा कहे गये शब्दों SENSITIVE, THICK -SKINNED शब्दों की चर्चा क्यों की उन्नाव के कलक्टरगंज, नारदानन्द सरस्वती का नाम क्यों आया आदि जानने के लिये सुनें

28.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 28 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है निदर्शिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/30



स्मृतियां दो प्रकार की होती हैं कुछ स्मृतियां हम भूल जाना चाहते हैं लेकिन कुछ स्मृतियां ऐसी होती हैं जिन्हें हम संजो कर रखना चाहते हैं संसार के साथ जो भाव जगत संयुत है उसमें यही स्वरूप परिलक्षित होते हैं

 दर्शन में इसका बहुत गहन चिन्तन और विस्तृत विवरण है

आचार्य जी हम लोगों का नित्य मार्गदर्शन करते हैं ताकि अध्ययन ध्यान चिन्तन मनन स्वाध्याय के प्रति हमारी रुचि में वृद्धि हो पाठ करते समय हमारा उच्चारण शुद्ध हो लेखन में भी अशुद्धियां न हों हम जानते हैं कि शिक्षा उच्चारण का शास्त्र है


हम सभी क्षमतावान हैं हमारे पास शक्ति है बुद्धि है हममें से कोई भी द्रष्टा विद्वान यशस्वी तपस्वी पूर्णज्ञ हो सकता है


हमें जानना चाहिये कि क्या संसार है कैसे सृष्टि रची गई  आत्मा क्या है हमारा धर्म क्या है

गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं 



इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।


विवस्वान् मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।4.1।।



मैंने इस ज्ञाननिष्ठारूप अविनाशी योग को सूर्य भगवान् से कहा था। फिर उन्होंने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा।


कुछ ऐसे नासमझ लोग हैं जो परम्परा के प्रति दुर्भावना रखते हैं आज की दुनिया में जीना चाहते हैं इससे उनकी क्षमताएं कुण्ठित होती हैं वे मशीन बन जाते हैं कंट्रोल दूसरे के हाथ में हो जाता है


आज की शिक्षा विकृत हो गई है जो केवल नौकरियां प्रदान करती है दिशा से भ्रमित हो गये हैं हम

इसीलिये आत्मबोध को जाग्रत करने की आवश्यकता है


आचार्य जी अनेक सांसारिक प्रपंचों में उलझने के बाद भी हमारी भावनाओं को उत्साहित और उत्तेजित करने का नित्य प्रयास करते हैं तो हमारा भी कुछ कर्तव्य है

किसी भी परिस्थिति में यदि आत्मानन्द की अवस्था में हम रहना चाहते हैं तो अपनी परम्परा संस्कृति से  संयुत रहें साधना स्वाध्याय संयम संगठन के साथ भी संयुत रहें


आज से उन्नाव विद्यालय में कार्यक्रम प्रारम्भ हो रहे हैं आप लोग अधिक से अधिक संख्या में वहां पहुंचें

27.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 27 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है गतवैर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/29



जीवन चलने का नाम

चलते रहो सुबहो शाम


कि रस्ता कट जाएगा मितरा

कि बादल छट जाएगा मितरा

कि दुःख से झुकना ना मितरा

कि एक पल रुकना ना मितरा



जीवन गति का ही नाम है और यदि गति न रहे तो जीवन जीवन नहीं रहता वह स्थावर हो जाता है


मनुष्यत्व के यात्री,आत्मावलोकन करने वाले जिज्ञासु गतिशीलता कर्मशीलता को निरन्तर कायम रखते हैं बाधाओं के आने पर भी इस गतिशीलता का वे त्याग नहीं करते

गतिशीलता के अभाव में विश्व का अस्तित्व ही नहीं रह जाता


गतिशीलता प्राप्त करने के कई उपाय होते हैं उनमें से एक है किसी भी कार्यक्रम का आयोजन

कार्यक्रमों से हमें आनन्द की अनुभूति भी होती है

यह हमारा सौभाग्य है कि 28 से 30 अगस्त तक उन्नाव विद्यालय में  लगातार तीन दिन तक कार्यक्रम होने जा रहे हैं जिनमें आप सभी आमन्त्रित भी हैं



एक हमारा सांसारिक पक्ष है और दूसरा भाव पक्ष आत्मस्थ होने पर हम देख सकते हैं कि तत्त्वतः हम सभी एक हैं भारतीय दर्शन का मूल विचार है कि हम सभी तत्त्व हैं सभी ब्रह्म हैं  यह हमारे प्रारब्ध की बात है कि कभी हमारे अन्दर रामत्व प्रवेश करता है कभी कभी श्यामत्व कभी कोई अन्य महापुरुषत्व

26.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 26 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रसृत आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/28



गीता के सोलहवें अध्याय में व्यावहारिक, नैतिक और आध्यात्मिक विचारों को दैवी सम्पदा और उनके विपरीत विचारों को आसुरी सम्पदा के रूप में  गहनता के साथ प्रस्तुत किया गया है।


काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः।

मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः।।16.10।।


कभी पूर्ण न होने वाली कामनाओं पर आश्रित होकर दम्भ, अभिमान और मद में चूर रहने वाले तथा अपवित्र व्रत को धारण करने वाले (जैसे आजकल के प्रेत कहते हैं हमारे साथ इतने लोग संयुत हो जायेंगे तो उनको हम मार डालेंगे ) लोग मोहांध होकर दुराग्रहों को धारण करके इस संसार में भ्रमण करते रहते हैं।


चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः।


कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिताः।।16.11।।


वे मृत्युपर्यन्त रहने वाली अपरिमेय चिन्ताओं का आश्रय लेने वाले, पदार्थों को एकत्र करने और उनका भोग करने में लिप्त तथा 'जो कुछ है, वह इतना ही है' -- ऐसा निश्चय करने वाले होते हैं।


आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः।


ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्।।16.12।।


वे आशा के अनेक पाशों से बँधे हुए मनुष्य काम क्रोध में लिप्त  होकर पदार्थों का भोग करने के लिये अन्यायपूर्वक धन को संचित करने का प्रयास करते रहते हैं।


इसके विपरीत त्याग वृत्ति के लोग सफलता असफलता दोनों में शांत रहते हैं विपरीत परिस्थितियों में शान्त रहने का अवसर खोज लेते हैं

इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से हम भी दिन भर शांति के साथ रहने का प्रयास कर सकें आचार्य जी इसके लिये नित्य हमें अपना बहुमूल्य समय देते हैं


हम अनुभव कर सकें कि ईश्वर हमारे हृदय में स्थित है और हम भ्रम और भय मुक्त हो सकें यही प्रेरणा तो देते हैं ये सदाचार संप्रेषण लेकिन इसके लिये हमें ध्यान धारणा संयम सद्संगति स्वाध्याय उचित खानपान का भी ध्यान रखना होगा और हमें सचेत भी रहना होगा कि कुपात्रों के चक्कर में पड़कर हम अवगुणों को धारण न कर लें

हम लोगों का स्वभाव है दैवी संपदा इसलिये हमें उसी में आनन्द आता है हम लोगों को लगातार प्रयासरत रहना चाहिये कि समाज को भी हम दैवी संपदा के अनुकूल चलाएं

सदाचारी व्यक्तियों का स्वभाव है कि वह भविष्य की योजनाओं से संयुत रहता है हम अपने संगठन युगभारती के कार्यक्रम करते रहते हैं हर कार्यक्रम एक उद्देश्य को लेकर किया जाता है हमारे स्वभाव में सफल आयोजनों से संतुष्टि और असफलताओं की समीक्षा  होती है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने टी राजा, भैया आकाश मिश्र भैया प्रकाश शर्मा, एक सज्जन डा राम कुमार, कवि अतुल का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

25.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 25 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अलेपक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/27



यह हमारा सौभाग्य है कि अनेक प्रपंचों में उलझे रहने के बाद भी आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं

 विचार और निश्चय करने वाली शक्ति अर्थात् बुद्धि *दर्शन* में  प्रकृति का महातत्त्व है  पुरुष ने पहले प्रकृति में अपने को अवस्थित किया


बुद्धि में अहम उद्भूत हुआ अहम के दो रूप हैं एक का अर्थ मैं हूं और दूसरा मैं संसार हूं अर्थात् अहंकार

अहम से जब संसार संयुत होता है तो सूक्ष्म तत्त्व मनस की उत्पत्ति होती है जो व्यक्ति को समझने की शक्ति देता है

क्योंकि उसे संसार को समझना है

मन बुद्धि चित्त अहंकार का फिर चतुष्टय बना

 यह है हमारे यहां का चिन्तन 


आचार्य जी द्वारा लिखे गये निम्नांकित छंदों को कंठस्थ करें  और गाएं

इससे हमारे अन्दर भाव जागेंगे हमारा आत्मविश्वास जागेगा


2019 में लिखा एक छंद 

जाग सोता रहा त्याग राग गाता रहा

जंगलों में बैठ बैठ ज्ञान गीत गाया है......



एक और



आत्मज्ञान आत्मशक्ति के बिना अधूरा सदा 

आन बान शान शौर्य शक्ति की निशानी है 

भौतिक शरीर ही न बलवान हो सका सदा

दुनिया जहान सब व्यर्थ की कहानी है 

ज्ञानी चक्रवर्तियों की पुण्य भूमि भारती मां

कहती रही है शक्तिहीन नहीं ज्ञानी है 

फिर भी न जाने बिना शक्ति का विराग राग 

 जाने कब शौर्य को बना गया  मसानी है


इसके अतिरिक्त एक और छंद है


भा में रत भारत महान ज्ञान रत्न रहा

शौर्य  शक्ति संयम की यह परिभाषा था

विश्व में जहां कहीं भी गया जिस रूप में भी

वहीं वह हुआ सभी मानवों की आशा था

किन्तु जब आत्मज्ञान केवल मनन हुआ

हुआ उसी दिन से ये भारत तमाशा था

इसलिये भारत हे फिर से वरण करो 

शील युक्त शौर्य शक्ति  विक्रम की भाषा था



इसके अतिरिक्त आचार्य जी आगामी 28 से 30 तक  उन्नाव विद्यालय में होने वाले कार्यक्रमों के लिये आप सभी को आमन्त्रित कर रहे हैं

24.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 24 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी॥

राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा॥



प्रस्तुत है दुण्डुक -अराति आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/26


आनन्द की अनुभूति देने वाली इन सदाचार वेलाओं से   आचार्य जी द्वारा हमारे मार्गदर्शन का कार्य निरन्तर चल रहा है



हमारी भारतीय मनीषा इस बात पर विश्वास रखती है कि समाज में सौमनस्य का भाव बना रहे और यदि सौमनस्य का भाव बना रहता है तो ऐसा समाज विकास के पथ पर अग्रसर रहता है


लेकिन इसका विपरीत दर्शन चिन्तन मनन करने वाले व्यक्तियों में व्याकुलता बढ़ा देता है


आचार्य जी ने अपनी पुस्तक युगपुरुष की चर्चा करते हुए बताया कि जिस समाज का जन जन लोभी लालची हो जाता है उस समाज को स्वतन्त्र करने के बाद भी संवारा नहीं जा सकता


हम सभी चिन्तन मनन करने वाले लोग इस बात से उद्विग्न हो जाते हैं जब हम देखते हैं कि कुछ दिग्भ्रमित लोग समाज में सौमनस्य का भाव समाप्त करने का प्रयास कर रहे हैं

इन सब बातों से हम उद्विग्न न रहें इसके लिये आचार्य जी ने बाल कांड में 15 वें से 21 वें दोहे का पाठ उच्च स्वर में करने का परामर्श दिया


सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ।

तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ॥15॥



....



राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।

तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर॥ 21॥



राम के नाम से शान्ति के अतिरिक्त शौर्य और शक्ति का विश्वास उत्पन्न होता है


मात्र दशरथ -सुत न होकर पौरुष पराक्रम वाले विग्रहों का प्रतिफल भारतीय संस्कृति का साक्षात् विग्रह हैं राम


रामो विग्रहवान धर्मः



(श्रीराम जन्मस्थान पर  मंदिर निर्माण हेतु गठित श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने ट्रस्ट का जो लोगो जारी किया है उस पर भी यही लिखा है)



हम मनुष्यों का धर्म अर्थात् कर्तव्य क्या है यह विचारणीय है


राष्ट्र के लिये भगवान् राम ने अनेक संकटों को पार कर रास्ता निकाला


हम लोग नागों से सावधान होकर सेवा करें नाग शिव की शक्ति के सामने पालतू बनता है अन्यथा डसता है


हमें केवल ये संप्रेषण सुनें नहीं अपना कर्तव्य पहचानें

आचार्य जी की हमसे अपेक्षा है कि हम जाग्रत हों


हमारे अन्दर रामत्व प्रवेश करे

23.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 23 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है उत्पथ -अरि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/25

इसमें कोई संशय नहीं कि ये सदाचार संप्रेषण हमारे लिये उपादेय रहते हैं और आचार्य जी का यह अनवरत निर्बाध प्रयास अद्भुत है 

इन सदाचार संप्रेषणों का मूल रूप से यही उद्देश्य  माना जाना चाहिये कि अपना मार्ग सुधर जाये इस कारण चिन्तन मनन निदिध्यासन ध्यान पूजन  अध्ययन लेखन स्वाध्याय आदि आवश्यक है


निः संदेह राष्ट्रार्पित जीवन, समाजोन्मुखी जीवन, आत्मार्पित चिन्तन की ओर  उन्मुखता यदि हमारी होती है तो यह उद्देश्य सफल है अर्थात् सदाचार हमारे लिये सदुपयोगी हो रहा है


निम्नांकित काव्य अंशों में आचार्य जी ने कुछ अपने भाव व्यक्त किये हैं



दुनिया औरों को सदाचार सिखलाती है

पर स्वयं असंयम कदाचार की अभ्यासी

हो गई दशा वैसी ही अजब जमाने की 

जैसे प्रवचन करता कलयुग का संन्यासी


हर ओर सुधार सभाओं की गहमागहमी

पर स्वयं सुधरने को कोई तैयार नहीं

अपने की पहचान खो गई सबकी

इसलिये सभी को लगता कोई नहीं सही

......


यह जीवन सुख दुख  शोक हर्ष उत्थान पतन की परिभाषा

क्षणभंगुर हो यह भले मगर

 अन्तर्मन में केवल आशा


जीवन विराग की करुण कथा

संघर्षों भरी जवानी है

जीवन मरुथल की अबुझ प्यास गंगा का शीतल पानी है


जीवन अलबेला रंगमंच अभिनय अभिनेता एक रूप

और कल्पना कथा संगीत वाद्य सब मिल बनते मोहक स्वरूप


पर वेश उतरते ही दुनिया फिर वैसी वैसा खांव खांव

सुरभित प्रसून भ्रमरावलियां विलुप्त फिर से वह कांव कांव



कोरोना काल में लिखी कविता



हम चलेंगे साथ तो संत्रास हारेगा

पूर्व फिर से अरुणिमा आभास धारेगा 

हम सृजन पर ही सदा विश्वास रखते थे

यजन में ही जिंदगी.........


असीमित सद्विचार अप्रतिम काव्य कौशल  सुस्पष्ट भाषा अथाह बुद्धि की बानगी तो हम इन संप्रेषणों में देख ही रहे हैं फिर भी यदि किसी भी तरह के संशोधन की आवश्यकता हो तो उस पर आचार्य जी द्वारा विचार किया जा सकता

हैं


22.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 22 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सत्त्वविहित आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/24


आज के सदाचार संप्रेषण का मूल पाठ यह है कि हम संसार में रहते हुए सांसारिक प्रपञ्चों से संघर्ष करते हुए भी प्रतिदिन प्राणायाम चिन्तन मनन ध्यान धारणा लेखन आदि के साथ संसार से मुक्त रहने का प्रयास करेंगे तो यह हमारे लिये लाभकारी होगा सांगठनिक बैठकों में भी इसे चर्चा का विषय बनायें


संसार में उलझाव हैं तो सुलझाव भी है उलझाव सुलझाव साथ साथ चलते हैं यही संसार है परमात्मा भी अवतरित होकर संसारी भाव में प्रवेश करते हुए सुख दुःख उत्थान पतन के साथ अपने को समायोजित करते हुए भक्तजीवों का उद्धार करते हुए बिना परेशान हुए संसार -सागर को पार कर लेता है


भारतीय संस्कृति का यह वैशिष्ट्य हमें तभी परिलक्षित होता है जब स्वयं हम अपने को संसार की समस्याओं में ग्रस्त नहीं पाते हैं



जो करता है परमात्मा करता है और परमात्मा सब अच्छा ही करता है इसकी अनुभूति जिन क्षणों में हो जाए वही क्षण धन्य हो जाते हैं आत्मानन्द आत्मविश्वास के इन क्षणों की वृद्धि ही सक्षम सनाथ ऋषित्व की परिभाषा है


जीवन का प्राप्तव्य मोक्ष है मोक्ष और ऋषित्व एक ही हैं ऋषि असम्पृक्त रहते हुए सारे कार्य करता है और हम संलिप्त होकर कार्य करते हैं


हमारा आत्मतत्व उस कार्य की सफलता असफलता से संयुत होता रहता है और आत्मविस्मृति ही संसार की समस्याएं हैं

यह विषय ही अध्यात्म है


हम भी ऋषित्व के प्रयास में रहते हैं संलिप्तता संसारत्व है


आध्यात्मिक शक्ति से ही भारत बार बार गिरने के बाद उठ जाता है



आचार्य जी ने एक बहुत रोचक प्रसंग सुनाया कि कैसे श्री जगपाल जी के श्वसुर श्री जयवीर जी की केतली के टूट जाने पर आचार्य जी के बोले गये शब्दों पर श्री जयवीर जी ने उन्हें ऋषि कहा

आचार्य जी ने कायरता का अर्थ भी बताया

21.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 21अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है परमर्षि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/23



बाल कांड में


जिन्ह के यह आचरन भवानी। ते जानेहु निसिचर सब प्रानी॥

अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी। परम सभीत धरा अकुलानी॥2॥


लोगों की धर्म के प्रति  अतिशय ग्लानि  देखकर सर्वसहा अर्थात् सब कुछ सहने वाली धरती मां अत्यन्त भयभीत एवं व्याकुल हो गई


गिरि सरि सिंधु भार नहिं मोही। जस मोहि गरुअ एक परद्रोही।

सकल धर्म देखइ बिपरीता। कहि न सकइ रावन भय भीता॥3॥



धेनु रूप धरि हृदयँ बिचारी। गई तहाँ जहँ सुर मुनि झारी॥

निज संताप सुनाएसि रोई। काहू तें कछु काज न होई॥4॥


 सुर मुनि गंधर्बा मिलि करि सर्बा गे बिरंचि के लोका।

सँग गोतनुधारी भूमि बिचारी परम बिकल भय सोका॥

ब्रह्माँ सब जाना मन अनुमाना मोर कछू न बसाई।

जा करि तैं दासी सो अबिनासी हमरेउ तोर सहाई॥


धरनि धरहि मन धीर कह बिरंचि हरि पद सुमिरु।

जानत जन की पीर प्रभु भंजिहि दारुन बिपति॥184॥


बैठे सुर सब करहिं बिचारा। कहँ पाइअ प्रभु करिअ पुकारा॥

पुर बैकुंठ जान कह कोई। कोउ कह पयनिधि बस प्रभु सोई॥1॥


जाके हृदयँ भगति जसि प्रीती। प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती॥

तेहिं समाज गिरिजा मैं रहेऊँ। अवसर पाइ बचन एक कहेउँ॥2॥


हरि ब्यापक सर्बत्र समाना। प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना॥

देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं। कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं॥


परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है और प्रेम से वे हर जगह प्रकट हो जाते हैं 

यह प्रेम क्या है?

प्रेम कोई संकुचित विधि और व्यवस्था नहीं है हमारी इन्द्रियों को ही जो सुख दे वही प्रेम नहीं है 

प्रेम तो बहुत व्यापक है



यह प्रेम जहां पशु पक्षी जड़ चेतन आदि से हो जाता है वहां ऋषित्व जाग्रत हो जाता है वह  भावसंपन्न, शक्ति संपन्न,तेजोमय  ऋषित्व का प्रभाव समाज अनुभव करता है

और यह हमारे देश की परम्परा रही है इसकी अनुभूति हमारे घर परिवार समाज हर जगह व्याप्त है

हमें इसकी अनुभूति होनी चाहिये कि जो करता है सब परमात्मा करता है और परमात्मा अच्छा ही करता है लेकिन निष्क्रिय होकर बैठे नहीं


यह अनुभव जिस प्रकार जितना व्यापक होकर अभ्यास में आ जाता है उस प्रकार ही हमारे भाव हमारे विचार और हमारी क्रियाएं होने लगती हैं


हमें भी इसका अभ्यास हो जाये आचार्य जी यही चाहते है


इसी भाव विचार के साथ जब हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं तो यह आनन्द का विषय ही होता है

परमात्माश्रित होकर समाज को ही परमात्मा का स्वरूप मानकर सामाजिक कार्यों को आनन्दपूर्वक करते चलें यह भी इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य है



प्रधानमन्त्री मोदी के माध्यम से समाज को प्राप्त उपलब्धियां यह मुख्य विषय था भाजपा के तत्वावधान में उन्नाव में कल आयोजित एक कार्यक्रम का जिसमें आचार्य जी मुख्य वक्ता थे



इस तरह के अवसरों पर आचार्य जी  उपस्थित समूह में प्राणिक ऊर्जा का संचार कर देते हैं जिससे उस समूह के व्यक्तियों में अपने दायित्व के बोध हेतु उत्साह जाग्रत हो जाता है

20.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 20 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रतिसंधानपात्र आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/22



सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।


दोषयुक्त होने के बाद भी सहज कर्म नहीं त्यागना चाहिए  क्योंकि सभी कर्म दोष से आवृत होते हैं जिस प्रकार धुएं से अग्नि आवृत रहती है


लेकिन


असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः।


नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां संन्यासेनाधिगच्छति।।18.49।।


सर्वत्र आसक्ति रहित बुद्धि वाला वह पुरुष जो स्पृहा से रहित और जितात्मा है, संन्यास से परम नैष्कर्म्य सिद्धि को प्राप्त होता है


कलयुग के अद्भुत प्रसंग विचार प्रवण लोगों के आसपास घूमते रहते हैं उसमें व्याकुलता सबके साथ दिखाई देती है कोई परिवार के कारण  कोई शरीर के रोगों के कारण, कोई समाज सेवा आदि के कारण व्याकुल रहता है अधिक आयु में भी वैराग्य प्राप्त होना परमात्मा की कृपा है अन्यथा व्यक्ति सांसारिक प्रपञ्चों में उलझा रहता है



एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने कहा स्वार्थरत बहुसंख्यक समाज की लापरवाही के चलते छोटे छोटे स्थानों पर विशेष रूप से गांवों में नासूर तैयार हो रहे हैं जो अत्यधिक खतरनाक हैं


इस ओर हम लोग ध्यान दें प्रशासक वर्ग से संपर्क करने की आवश्यकता है


इस उथल पुथल के समय में हम अपने कर्तव्य को समझें


उन्नाव में होने वाले एक कार्यक्रम जिसमें उप्र उच्च शिक्षा राज्यमन्त्री सुश्री रजनी तिवारी भी आ रही हैं का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने एक पुस्तक की चर्चा की


मोदी@20: ड्रीम्स मीट डिलीवरी"

इस पुस्तक में एस जयशंकर का आलेख जिसके कुछ अंश हैं 


 प्रधानमन्त्री मोदी एक ऐसे व्यक्तित्व को परिभाषित करते हैं जिसे दुनिया पहचानने लगी है।

वह आतंकवाद ( मुख्यतः सीमा पार से प्रेरित) को न तो नजरअंदाज करेंगे और न ही बर्दाश्त करेंगे।

विश्व के नेताओं के साथ  व्यक्तिगत संबंधों के चलते सीधे तौर पर हमारे देश और लोगों के हित आगे बढ़े  हैं

आचार्य जी को सबसे उपयुक्त  लगा 


यह पुस्तक प्रधानमन्त्री मोदी के पिछले 20 वर्षों के राजनीतिक जीवन से संबन्धित है  और इसे उद्योग एवं राजनीति के विख्यात बुद्धिजीवियों और व्यक्तित्वों द्वारा संकलित किया गया है। पुस्तक में सुधा मूर्ति, सद्गुरु,  अमित शाह, लता मंगेशकर,  अजीत डोभाल, उदय कोटक, अनुपम खेर,  पीवी सिंधु आदि के भी विचार हैं

19.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 19 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है मोषारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/21


जिस व्यक्ति के उदात्त विचार व्यवहार में परिलक्षित होने लगें तो समझना चाहिये कि मानव जीवन का प्राप्तव्य उसे मिल रहा है और यही दिखा भैया डा अमित गुप्त जी और  भैया डा मनीष वर्मा जी में, आप दोनों को दुर्गाप्रसाद विद्यानिकेतन गुजैनी कानपुर में मा राज्यपाल कलराज मिश्र जी द्वारा 23 अगस्त 2022 को दिया जाने वाला कानपुर विभूति रत्न -2022 सम्मान युगभारती के लिये गर्व का विषय है

इस सम्मान की सुरक्षा करते हुए आगे भी उन्हें और सम्मान मिलें ऐसी आशा है


सम्मान प्राप्त करने के बाद भी जीवन स्तर आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिये जीवन शैली में बदलाव आवश्यक है सम्मानित जीवन जीने का अभ्यास करना चाहिये उनमें त्याग निर्वैर विराग राष्ट्रानुराग परिलक्षित हो जिससे समाज शिक्षा ले


श्री राम का अवतार और श्री कृष्ण का अवतार दोनों अत्यन्त अद्भुत हैं


रामनवमी  चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है नौ का अंक पूर्णांक है नौ में किसी भी डिजिट का गुणा कर दें उसका डिजिटल रूट नौ ही रहता है आठ माया का अंक है

और जन्माष्टमी  भाद्र मास के कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी को मनाने की परंपरा है।


कृष्ण घर घर में पूज्य हैं क्योंकि गम्भीर काली रात में भी जन्म लेने के बाद उन्होंने सूर्य का प्रकाश फैला दिया


परमात्मा प्रदर्शन करने का उत्साह देता है कहता है आप वही हो जो मैं हूं


हमारे यहां का अवतारवाद हमें बहुत शक्ति, पराक्रम,विश्वास,निडरता देता है विजय के लिये व्रत लेने का संकल्प देता है

अवतारी लोगों का जीवन हमें प्रेरणा देता है लेकिन इसके लिये हमें उनके जीवन का समीक्षात्मक दृष्टि से पठन श्रवण करना होगा

भागवतकथा कहने वाले कुछ   कथावाचक अनूठी एवं प्रभावित करने वाली शैली में प्रस्तुतीकरण करते हैं


भागवत और सूरसागर का दशम स्कंध हमें अवश्य  पढ़ना चाहिये


दशम भी महत्त्वपूर्ण है एक और शून्य को जोड़ें तो एक होता है यह तात्विक विषय है


अपने में सद्गुणों को  जोड़ना सीखें सद्गुणों को द्विगणित शतगुणित करना अलग विषय है व्यक्ति से व्यक्ति को संयुत करें तो स्वभाव बदलता है परम पूज्य हेडगेवार इसका उदाहरण हैं


वह भारत के महायज्ञ में समिधा रूप में समर्पित करके चला गया संघ अत्यन्त प्रभावशाली है

हिन्दू संपूर्ण विश्व को आत्मसात करने की क्षमता रखता है


कशाघात की किसे आवश्यकता है सचिन तेन्दुलकर का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

18.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 18 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।


मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.14।।



प्रस्तुत है राष्ट्र -अवष्टम्भ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/20


आचार्य जी ने कल जन्माष्टमी के सम्बन्ध में बताया था उसी विषय को विस्तार देते हुए आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि जन्माष्टमी रामनवमी आदि मनाने के साथ साथ भगवान राम भगवान कृष्ण आदि के सांसारिक जीवन के संबन्ध में भी हम जानकारी प्राप्त करें

हमें इसकी अनुभूति होनी चाहिये कि कैसे उन्होंने संपूर्ण देश को संकटों से उबारकर हमारे सामने स्वच्छ निर्मल वातावरण प्रदान कर दिया


द्वापरकाल में भयंकर युद्ध की समाप्ति के पश्चात् परीक्षित काल आदर्श काल रहा है गीता प्रेस से छपी छोटी छोटी कथाएं हमें पढ़नी चाहिये


हम जो कार्य व्यवहार कर रहे हैं उसका चिन्तन सतत आत्मोन्मुखी रहना चाहिये हम जो कार्य कर रहे हैं वह ठीक है या नहीं इसकी समीक्षा होनी चाहिये


आचार्य जी ने 18 फरवरी 2019 की अपनी लिखी एक कविता  पढ़ी



भारत के शौर्य जगो निष्ठा जागो तप त्याग जगो

संपूर्ण समर्पण वाले दृढ़  अनुराग जगो



ओ जगो वेन कुलनाशी ऋषि के आक्रोश

वनवासी रघुकुल राम भरत के त्याग जगो 

ओ कुरुक्षेत्र वाले गीता उपदेश जगो 

गांडीव गर्जना शौर्य शक्ति संदेश जगो


जागो  रे हरि सिंह नलवा वाले विक्रम 

राणा सांगा के अतुलनीय आवेश जगो

राणा प्रताप की आन बान अभिमान जगो

हिन्दवी राज के सफल युद्ध अभियान जगो

जागो रे वीर व्रती तपसी  गोविन्द सिंह 

जयमल फत्ता गोरा बादल की शान जगो


कश्मीरी केसर क्यारी के उल्लास जगो 

पाणिनी पराक्रम कल्हण के इतिहास जगो 

जागो रे अभिनव गुप्त प्रखर प्रज्ञा प्रतीक

 रणजीत सिंह के बल विक्रम विश्वास जगो


ओ देशप्रेम के पावनतम इतिहास जगो

जल थल अंबर से पराक्रमी उच्छ् वास जगो

ओ जागो भारत के सोए  देशाभिमान

संगठन मन्त्र के जापक दृढ़  विश्वास जगो


इसमें वेन नलवा जयमल फत्ता कल्हण आदि का उल्लेख है हमें इनके बारे में जानना चाहिये

अब समय है कि हम अपने वास्तविक इतिहास से परिचित हों और *अन्य लोगों को भी परिचित कराएं*

हमारा देश अद्भुत है उत्तर तप की प्रतीक भूमि है दक्षिण भक्ति की  पूर्व कला की और पश्चिम  कर्म की


ऐसा अद्भुत भौगोलिक रचना का परमात्मभाव में लीन  उच्च कोटि के विचारों वाला हमारा देश है हमें इस पर गर्व करना चाहिये

इसकी अनुभूति और अभिव्यक्ति इन संप्रेषणों का उद्देश्य है



चिंतन मनन शक्ति संवर्धन और संगठन करना है ,

हर प्रयास से हिंदुराष्ट्र को आत्मशक्ति से भरना है ।


खाली मशीन से आचार्य जी का क्या तात्पर्य है भैया अरविन्द जी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

17.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 17 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अभिष्टवपात्र आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/19



आचार्य जी हमें आत्मबोध, विश्वबोध, विराट् भक्ति, अध्यात्म आदि से संबन्धित विषय बताते रहते हैं आचार्य जी ने इस बात पर जोर दिया कि उत्तरकांड के  गूढ़   लेकिन अत्यन्त उपयोगी विषय हमें जानने चाहिये


जन्माष्टमी निकट है इसे हमें अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिये

जन्माष्टमी का मूल भाव है प्रसाद वितरण

प्रसाद हमें भावपूर्वक ग्रहण करना चाहिये और 

प्रसाद देते समय हम  आनन्दित  भी रहें यह ध्यान रखें 

छठी उत्सव भी अत्यधिक भावपूर्ण है



भगवान राम और भगवान कृष्ण ये दोनों अवतार हमारे देश भारतवर्ष की प्राणिक ऊर्जा हैं शौर्य और पराक्रम का प्रतीक हैं  l समाज की समस्याओं का निस्तारण इन्होंने बहुत सूझबूझ से किया l


भगवान राम का मर्यादामय जीवन के लिये अनगिनत कष्ट उठाना और भगवान कृष्ण का आनन्दमय जीवन के लिये दुःख भोगना यह हमारे लिये अज्ञात विषय नहीं हैं 


भगवान राम  किशोरावस्था तक राजमहल में रहे और जब वो विश्वामित्र के पास गये हैं तब उन्हें कष्टों का अनुभव हुआ है

लेकिन भगवान कृष्ण को जन्म से ही कष्टों का अनुभव हुआ कारागार में जन्म हुआ इसलिये जन्माष्टमी बहुत महत्त्वपूर्ण है

रामनवमी उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मनाई जाती है लेकिन जन्माष्टमी घर घर मनाई जाती है


अनगिनत कष्टों से भगवान कृष्ण के जीवन की रक्षा हुई है बहुत सारे कष्ट उन्होंने उठाए तो बहुत सारे कष्टों का निवारण भी उन्होंने किया

भैया अजय के पुत्र का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने कहा

हमारे देश की सैन्यशक्ति अभावों में भी प्रभाव प्रदर्शित करती है एक सैनिक के लिये भाव अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है इसी आधार पर वह स्वदेश की रक्षा भी करता है


सैनिकों के साथ साथ हम लोगों को भी सदैव यह ध्यान रखना चाहिये कि हम राष्ट्र के सेवक प्रहरी समर्पित भक्त और रक्षक हैं

16.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 16 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है मन्दन -पात्र आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/18



हमारी एक अध्यात्मवादी वैश्विक वैदिक परम्परा है जिसमें हम अपने राष्ट्र को विश्वात्मा मानते हैं


इस आधार पर अपने मन में अपनी संस्कृति की श्रद्धापूर्वक धारणा बनाकर हम इसकी रक्षा के लिये कृतसंकल्प रहते हैं


कल अत्यन्त उत्साह उमंग के साथ मनाये गये  स्वतन्त्रता दिवस की आचार्य जी ने चर्चा की

हम स्वतन्त्रता में सचेत रहकर आनन्द उठाते हैं अभी जितनी स्वतन्त्रता है उसका विस्तार और संस्कार होना बाकी है


पन्द्रह अगस्त का दिन कहता, आजादी अभी अधूरी है।

सपने सच होने बाकी हैं, रावी की शपथ न पूरी है॥



इसकी अनुभूति और संस्कार के लिये अपनी शिक्षापद्धति पर चिन्तन करने की आवश्यकता है


अपने परिवारी जीवनों में गहराई से अध्ययन चिन्तन मनन कर  युगानुकूल व्यवस्थाएं बनानी होंगी


यथास्थिति में तो नहीं लौट सकते लेकिन आंखें मूंदकर किसी भी राह पर चल भी नहीं सकते


इसलिये अत्यन्त सचेत और जाग्रत रहने की भी आवश्यकता है


*राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष* हमारा लक्ष्य है


 व्यक्तित्व के लिये एक छन्द है


रे रे चातक ! सावधानमनसा मित्र ! क्षणं श्रूयताम् ।

अम्भोदा बहवो हि सन्ति गगने सर्वेSपि नैतादृशाः ।।

केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा ।

यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ll


चातक  मित्र सुनो- गगन में हर प्रकार के बादल हैं, किन्तु सभी बादल एक समान नहीं होते ,  कुछ पानी वाले बादल हैं वे संपूर्ण पृथ्वी को  गीला कर देते हैं, शेष गरजने वाले बादल हैं वे गरजते हैं और चले जाते हैं, अतः तुम हर बादल से बरसने की भीख न मांगो


अन्योक्ति भाव स्पष्ट है अनेक बार भ्रम में बिना पात्रता देखे हम लोग लोगों से श्रद्धा भक्ति निवेदित करने लगते हैं यह सही नहीं है हमारी शिक्षा में गुलामी का भाव भर दिया गया जीविका चलाने के लिये हम शान्त हो जाते हैं भ्रष्टाचार सही लगने लगता है भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने पर कष्टों का सामना करना पड़ता है और कष्ट सहने की क्षमता पात्रता है नहीं


कष्ट सहने की क्षमता और पात्रता शिक्षा का मूल मन्त्र है हमारे यहां गुरुकुलों की वैदिक शिक्षा का प्रारम्भ ही कष्टों से था


आचार्य जी ने कुछ अन्य चीजों से भी सावधान रहने के लिये कहा जिससे हमारी मेधा कुण्ठित न हो


आत्मचिन्तन, मन्थन, संगठन, समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी योजनाएं,भारतीय संस्कृति और शिक्षा पर विचार, लेखन, प्रकाशन,आयोजन,सजातीय संस्थाओं से संपर्क की आवश्यकता है इस ओर हम ध्यान दें स्वावलंबन का सही अर्थ समझें


उन्नाव के विद्यालय में आगामी 28/29/30 अगस्त को होने वाले त्रिदिवसीय  वार्षिक समारोह के बारे में सूचना देते हुए आचार्य जी ने दोहराया कि युगभारती के लिये शिक्षा की प्रयोगशाला के रूप में यह विद्यालय उपयुक्त है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरविन्द तिवारी जी भैया पुनीत श्रीवास्तव जी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

15.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 15 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है आचार्यमिश्र आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/17



आचार्य जी ने कल संपन्न हुई युगभारती इन्द्रप्रस्थ की बैठक की चर्चा की जिसका मुख्य एजेण्डा था


  *युग भारती इंद्रप्रस्थ की गतिविधियों को गति प्रदान करने के लिये विमर्श*



लगभग पचास सदस्यों ने आचार्य जी से मार्गदर्शन प्राप्त किया बैठक बहुत सकारात्मक रही कानपुर से भैया अजय शङ्कर जी ने भी  अपने विचार व्यक्त किये


युगभारती बहुत कुछ करने में सक्षम है इसलिये जितना अधिक से अधिक वह कर सकती है उसे करना चाहिये केवल कुछ निर्धारित कार्यक्रमों तक ही हम अपने को सीमित न रखें

बाहर भी निकलें तो विस्तार होगा


समाज की सेवा में रत सजातीय सहविचार वाले लोगों के साथ भी युगभारती अपना सामञ्जस्य बैठाए


दीनदयाल शोध संस्थान के भैया अभय जी के आग्रह पर चित्रकूट जाने की भी भविष्य में योजना है


यह अच्छी बात है कि हम लोग बहुत जगह सक्रिय हैं लेकिन जहां सक्रिय नहीं हैं वहां सक्रियता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिये



राष्ट्र के प्रति हम जाग्रत हैं लेकिन राष्ट्र क्या है इसकी भी अनुभूति करें  इस पर दीनदयाल जी के विचार  हमें पढ़ने चाहिये


सुसंस्कृत मनुष्य के लिये प्रबन्धन बहुत महत्त्वपूर्ण होता है और उसके सहारे वह बड़े से बड़े लक्ष्य पा लेता है


आचार्य जी के विचार प्रायः व्यक्ति से समष्टि को  संयुत करते हैं हम अणु आत्मा का विभु आत्मा से संबन्ध है और विभु आत्मा भी एक प्रबन्धन के आधार पर चलती है


इस तरह के सारे व्यवहारों का चिन्तन प्रकटीकरण हमारे ऋषियों ने ज्ञान की अनुभूति होने पर बहुत विस्तार से किया


इसी आत्मज्ञान से वैदिक ऋचाएं उत्पन्न हुईं  वेद अपौरुषेय हैं यह सामान्य व्यक्ति की समझ से परे है


आत्मज्ञान की अनुभूति सबको नहीं होती लेकिन जिनको होती है उनमें वैशिष्ट्य आ जाता है


हमें समग्र दृष्टि से सोचने का अभ्यास करना चाहिये शंकराचार्य का अद्वैतदर्शन भी यही कहता है मनुष्य का व्यक्तित्व बहुआयामी है और हमें उसका सम्मान करना चाहिये

14.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 14अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अध्यात्मोदवसित आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/16



स्थान :गाजियाबाद


दीनदयाल शोध संस्थान के तीन केन्द्र बिन्दु हैं शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन

आचार्य जी को नाना जी देशमुख जी ने शिक्षा का कार्य भार सौंपा था कल शोध संस्थान की बैठक में आचार्य जी ने शिक्षा के विषय में अपने विचार व्यक्त किये


छह वेदांगों में एक,वेद -पुरुष की नासिका शिक्षा किसी देश के उत्थान में सबसे बड़ी सहायक और उसके पतन में सबसे बड़ी बाधक होती है

ज्ञान केवल जानकारी न होकर चिन्तन मनन निदिध्यासन आत्मानुभूति का सम्मिश्रण है ज्ञान के अभाव में समस्याओं का निवारण न कर पाने के कारण हम अज्ञानी कहलाते हैं


जब ज्ञान का अपने चिन्तन और व्यवहार से सामञ्जस्य नहीं बैठता है तो ज्ञान काम नहीं देता है इसके लिये आचार्य जी ने कभी अपने विद्यालय  की प्रबंधकारिणी समिति के सदस्य रहे  श्री हरि शंकर शर्मा जी से संबन्धित एक प्रसंग सुनाया


अध्यात्म अनुभूति है और धर्म अभिव्यक्ति है दोनों का सामञ्जस्य अनिवार्य है

बोलना खाना  जागना आदि सांसारिक व्यवहार  धर्माधारित होने चाहिये


हमें आत्मविश्वास से डिगना नहीं चाहिये यह आत्मविश्वास समाजोन्मुखी होना चाहिये संपूर्ण देश हमारे चिन्तन में होना चाहिये


प्रयास यह भी होना चाहिये कि हमसे लाभान्वित होकर अधिक से अधिक  लोग आत्मविश्वासी बनें


फिर समाज ही समस्याओं को सुलझाने के लिये अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है


आचार्य जी ने चारणी वृत्ति से परहेज करने को कहा हिन्दी साहित्य में एक चारण काल का भी उल्लेख है क्योंकि उस समय के अधिकांश कवि राजाओं का यशोगान करने वाले थे। उनके द्वारा रचा गया साहित्य चारणी कहलाता है।


हमारा नेतृत्व करने वाले भी चारण बन गये इस कारण उन्हें आत्मविश्लेषण और आत्मचिन्तन करने का अवसर ही नहीं मिला


आचार्य जी नित्य हमें जाग्रत करते हैं राष्ट्रोन्मुखी चिन्तन समाजोन्मुखी चिन्तन करते हुए हम अपने व्यक्तित्व का विकास करें और दूसरे हमसे प्रभावित होवें इसका प्रयास करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल दीनदयाल शोध संस्थान की बैठक से संबन्धित कौन सा प्रसंग सुनाया जानने के लिये सुनें

13.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 13अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  ज्ञानोद्ग्रन्थ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक  13अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/15


स्थान :गाजियाबाद


इसमें संदेह नहीं कि 

तन, मन, विचार का हमारा अपना संसार बाह्य संसार से सामञ्जस्य स्थापित कर लेता है

संपूर्ण सृष्टि में भी एक सामञ्जस्य है अनुसंधान करने पर ऋषियों ने पाया कि जो अणु परमाणु में है वही ब्रह्माण्ड में है तो उन्होंने कह दिया


यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे



जो कुछ सूक्ष्म जगत में है वही स्थूल जगत में है


हमारे अन्दर सूक्ष्म,स्थूल,भाव, विचार, चिन्तन है विचारशील व्यक्ति को यह भी पता रहता है कि शरीर का विनाश निश्चित है


शरीर के कमजोर होने पर यदि विचार कमजोर होते हैं तो हम असहाय हो जाते हैं


शरीर कमजोर होने पर भी हमारे विचार  सुदृढ़ रह सकते हैं यदि हम शरीर को सही तरह से चलाने का अभ्यास करेंगे अब हमें कितना भोजन करना चाहिये कितना व्यायाम करना चाहिये यह देखना होगा


हताश होकर अपने विरोधी न बनें इस पर भी ध्यान देना होगा क्योंकि आत्मविरोध परमात्मविरोध ही माना जाना चाहिये

जल में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जाता 

परमात्मा पालक पोषक भी है और नियन्त्रक भी है


त्वमेव माता च पिता त्वमेव। 

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।। 

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।

 त्वमेव सर्व मम देवदेव।।


परमात्मा ही सब कुछ है परमात्मा  हमारे अन्दर भी बैठा है  हमें अनुभूति रहे कि हमारे इस शरीर मंदिर में परमात्मा की मूर्ति विद्यमान है और वो चाहती है कि उसकी पूजा उपासना हो


यदि  उसकी पूजा उपासना नहीं करते हैं तो हम अन्याय करते हैं


ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।


ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।


यह ब्रह्मत्व भाव शंकराचार्य का दर्शन है अन्य दर्शन भी हैं हमारे यहां अन्य प्रकार की संस्कृतियां भी हैं अन्य मत भी हैं इसलिये हम कहते हैं


है देह विश्व आत्मा है भारत-माता

सृष्टि-प्रलय-पर्यन्त अमर यह नाता ॥


हम भारत माता की पूजा करते हैं दीनदयाल जी का एकात्म मानववाद प्रसिद्ध है

हम भी इस तरह के श्रेष्ठ विचार उत्पन्न कर सकते हैं लेखन कर सकते हैं

अपनी संस्कृति की रक्षा के लिये उपाय खोज सकते हैं


हमारी संस्कृति को नष्ट करने वाले राक्षसों से निपटने के लिये हमें संगठित होने का महत्त्व समझना चाहिये

12.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 12 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 अर्जुन कर्म न त्यागिये , चाहे उसमें दाग।

दोष रहे हर काम में, धुँआ ढकता आग ll



प्रस्तुत है  कुटुम्बव्यापृत आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक  12 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/14

दो विषय धर्म और अध्यात्म गूढ़ तो हैं लेकिन प्रायः चर्चा में रहते हैं


धर्म अर्थात् करणीय कार्य जैसे लोकधर्म, समाजधर्म, राष्ट्रधर्म, परिवारधर्म आदि 



किसी दूरस्थ स्थान पर जब हम प्रायः जाते हैं तो अभ्यास के कारण हमें समय और दूरी का पता ही नहीं चलता इसी तरह जीवन की दूरी और समय है यह अध्यात्म का एक रहस्यात्मक विषय है समय और दूरी का सामञ्जस्य जिनके साथ  जितना अधिक हो जाता है वो जीवन को उतनी ही सहजता से लेते हुए संसार सागर को पार कर लेते हैं


इस अभ्यास के सम्बन्ध में गीता में श्लोक है


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।

सहज अर्थात् जो साथ में उत्पन्न हुआ है

जन्म हुआ है तो प्राण वायु का संचरण हो रहा है लेकिन सहज रूप से प्राण वायु का संचरण हो रहा है तो हमें पता ही नहीं चलता


इसी प्रकार इज्जत भी मनुष्य का सहज उत्पन्न भाव है

आचार्य जी ने सहजता के संबन्ध में कई उदाहरण दिये


इस सहजता की स्पष्टता हमारे अन्दर जितनी होगी जीवन में समस्याओं को सुलझाने में हम उतना ही सहज हो सकेंगे


समस्याओं में हम जितना परेशान होंगे चिन्ता करेंगे उतनी ही शरीर में विकृतियां उत्पन्न होंगी

सहजता के साथ यदि हम अध्यात्म की अनुभूति करने लगें  तो आनन्द ही आनन्द है


व्यर्थ की चर्चाओं में समय खराब न करें देश में जगह जगह सुरक्षा कवच होंगे तो देश और अधिक जाग्रत हो जायेगा जो संपूर्ण विश्व के हित में होगा

इसके अतिरिक्त 

आचार्य जी ने माली काका का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

11.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 11 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  सिद्धार्थ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक  11 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/13



हमारे यहां संतों और संन्यासियों की परंपरा बहुत महत्त्वपूर्ण है

उन्हीं में एक सिद्धयोगी परमानन्द जी महाराज (1911-1969) थे जो राम कृष्ण परमहंस की तरह पढ़े लिखे नहीं थे


ये कभी पहलवान रहे थे लेकिन बाद में विरक्त हो गये


उनसे एक बार दो आर्यसमाजी तर्क वितर्क करने आये और उन्हें उद्दण्डता के साथ भाषाई कमाल दिखाने लगे लेकिन उनको तो कमाल की सिद्धियां प्राप्त थीं अगले दिन उन दोनों आर्यसमाजियों को उनकी बात ही सत्य लगी और परमानन्द जी महाराज के प्रति उन्हें अपार श्रद्धा हो गई



परमानन्द जी के ही शिष्य भगवानानन्द जी ने नाना जी को राजापुर के पास वाला कृषि फार्म दान कर दिया था


उनके एक शिष्य स्वामी अड़गड़ानंद जी यथार्थ गीता के रचयिता हैं इस समय मुंबई में रहते हैं



जैसी सिद्धियां स्वामी परमानन्द जी को प्राप्त थीं वैसी ही हमें मिल जाएं यह आवश्यक तो नहीं

जितना जिसको प्राप्त है उसमें संतोष प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिये

यदि चार लोगों को आत्मीयता का संदेश देकर हम अपना प्रिय बना लेते हैं तो यह संतोष की बात है

आत्मतुष्टि एक बहुत बड़ा धन है


लेकिन आत्मतुष्टि निष्क्रियता नहीं है


इसके आचार्य जी ने सूचना दी कि भैया अरविन्द जी और भैया निर्भय जी के साथ वो कल दिल्ली जाएंगे


वहां युगभारती की भी बैठक है हम लोग किसी उद्देश्य को लेकर एकत्र होने का प्रयास करते हैं युगभारती क्यों है   समाज राष्ट्र स्वयं के लिये क्या कर रहे हैं आदि पर चर्चा होगी 

आचार्य जी ने ताड़ना (मारना )का अर्थ बताया


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया आशीष जोग भैया अजय शंकर भैया नित्यानन्द 1983 का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

10.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 10 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है निमित्तविद् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/12



अपना यह मानव शरीर मन, बुद्धि,चित्त,आत्मतत्त्व के साथ सांसारिक शक्तियों को प्राप्त करके इस संसार में कर्म हेतु कटिबद्ध हुआ है



कुछ मनुष्यों की अनुभूतियां बहुत संवेदनात्मक होती हैं और कुछ की आंशिक या बिल्कुल नहीं


यह अद्भुत वैविध्य है इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि सामान्य व्यक्ति में भी संसार और संसारेतर चिन्तन प्रविष्ट रहता है उसे भी परमात्मा की जानकारी रहती है भले ही अनुभूति न होती हो

जिन्हें अनुभूति होती है वे अध्यात्मवादी होते हैं और ये लोग संसार के संजाल  से मुक्त होने का प्रयास करते रहते हैं


आचार्य जी ने स्वामी ईश्वरानन्द तीर्थ जी की चर्चा की जिनके शिष्य रामलला विद्यालय के प्रधानाचार्य पं काली शंकर अवस्थी जी थे

स्वामी जी का अपनी पुत्री से मोह न हो जाये स्वामी जी ने कुम्भ मेला स्थल ही त्याग दिया


संसार के छह विकार काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर से हम जब तक ग्रस्त रहते हैं तब तक हम संसार में रहते हैं और इनसे मुक्त होने पर अध्यात्म में प्रवेश करते हैं

अध्यात्म से ही हम आत्मविश्वासी होते हैं


हम इस संक्रान्तिकाल में भ्रमित और भयभीत न रहें हम जागरूक रहें और लोगों को जाग्रत करें राष्ट्र क्या है हमारा असली इतिहास क्या है


सरौंहां में एक मियां  को प्राप्त पुलिस संरक्षण की ओर संकेत करते हुए आचार्य जी ने बताया कि महाशौर्यसंपन्न दशरथ और आध्यात्मिक शक्ति के प्राचुर्य से भरे हुए जनक के आत्मरत होने पर  गाधि पुत्र राजर्षि ब्रह्मर्षि सृष्टि रचयिता आदर्श शिक्षक विश्वामित्र चिन्तित रहते थे


यह सब चरित कहा मैं गाई। आगिलि कथा सुनहु मन लाई॥

बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी। बसहिं बिपिन सुभ आश्रम जानी॥1॥


जहँ जप जग्य जोग मुनि करहीं। अति मारीच सुबाहुहि डरहीं॥

देखत जग्य निसाचर धावहिं। करहिं उपद्रव मुनि दुख पावहिं॥2॥



गाधितनय मन चिंता ब्यापी। हरि बिनु मरहिं न निसिचर पापी॥

तब मुनिबर मन कीन्ह बिचारा। प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा॥3॥


एहूँ मिस देखौं पद जाई। करि बिनती आनौं दोउ भाई॥

ग्यान बिराग सकल गुन अयना। सो प्रभु मैं देखब भरि नयना॥4॥


बहुबिधि करत मनोरथ जात लागि नहिं बार।

करि मज्जन सरऊ जल गए भूप दरबार॥206॥


मुनि आगमन सुना जब राजा। मिलन गयउ लै बिप्र समाजा॥

करि दंडवत मुनिहि सनमानी। निज आसन बैठारेन्हि आनी॥1॥


चरन पखारि कीन्हि अति पूजा। मो सम आजु धन्य नहिं दूजा॥

बिबिध भाँति भोजन करवावा। मुनिबर हृदयँ हरष अति पावा॥2॥


पुनि चरननि मेले सुत चारी। राम देखि मुनि देह बिसारी॥

भए मगन देखत मुख सोभा। जनु चकोर पूरन ससि लोभा॥3॥




तब मन हरषि बचन कह राऊ। मुनि अस कृपा न कीन्हिहु काऊ॥

केहि कारन आगमन तुम्हारा। कहहु सो करत न लावउँ बारा॥4॥



असुर समूह सतावहिं मोही। मैं जाचन आयउँ नृप तोही॥

अनुज समेत देहु रघुनाथा। निसिचर बध मैं होब सनाथा॥5॥


इस धरा पर भगवान् राम जो लीला करने आये हैं अब उसका मार्ग प्रशस्त होने जा रहा है


वशिष्ठ जी ने दशरथ जी को समझाया तब उनकी बुद्धि खुली


सौंपे भूप रिषिहि सुत बहुबिधि देइ असीस।

जननी भवन गए प्रभु चले नाइ पद सीस॥208 क ॥


हम भी अपनी भूमिका पहचानें चाहे वह विश्वामित्र की हो चाहे वशिष्ठ की भगवान् राम की

उसी अनुसार इस संक्रान्तिकाल में अपने कर्तव्य का निर्वाह करें

9.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 9 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है आप्त आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 9 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/11


सदाचार संप्रेषण का यह समय ऐसा है जिसमें हमें सदैव सकारात्मक सोच रखनी चाहिये जीवन में सफलताएं कैसे प्राप्त करें इस पर विचार करना चाहिये समाज और राष्ट्र का चिन्तन करना चाहिये



मनुष्य, संसार, सृष्टि, सृष्टिकर्ता,प्रकृति आदि पर भारत में बहुत गहन चिन्तन हुआ है और आश्चर्यजनक तो यह है कि इस चिन्तन के विविध स्वरूप सरल या क्लिष्ट भाषा में जन जन तक व्याप्त हैं


हम परमात्मा के अंश स्थान स्थान पर अपना प्रकाश फैला रहे हैं हमारी सबसे बड़ी  यही नैतिकता कर्तव्यपरायणता है कि हम अपने दीप को तब तक बुझने न दें जब तक तेल की एक बूंद भी शेष है बाती का एक अंश भी शेष है


डा ज्योति कुमार गुप्त 1990 ने एक अद्भुत व्यावहारिक सदाचार की मिसाल पेश की है👇



लघु सत्य कथा - मां

 


आज से करीब दस वर्ष पहले जब मैं ( डा ज्योति कुमार) शाम को अपनी काकादेव क्लिनिक पर पहुंचा तो देखा कि एक मैले कपड़े पहने गांव की एक महिला दो बच्चों को लिए मेरा इंतजार कर रही थी। उसका ४ माह का बच्चा उसकी गोद में था जो सीरियस लग रहा था। उस महिला ने बताया कि वो सुल्तानपुर के पास किसी गांव में रहती है और अभी पंद्रह दिन पहले ही मजदूरी करने किसी ठेकदार के बुलाने सपरिवार कानपुर आई है और उसके छोटे ४ माह के बच्चे को सुबह तड़के से १५ से २० दस्त और ५ उल्टियां आ चुकी हैं। मैंने बच्चे को देखा तो बच्चा सीवियर डिहाइड्रेशन में था उसकी नब्ज हल्की चल रही थी। उसने सुबह से पेशाब भी नहीं किया था। मैंने बताया कि बच्चा काफी सीरियस है इसे तुरंत भर्ती करना होगा।  मैंने उसकी गरीबी हालत को समझते हुए उसे हैलट अस्पताल में बच्चों के अस्पताल में भर्ती की सलाह दी।  मैंने  उसको एक नर्सिंग होम में भर्ती के लिए भेज दिया और खुद भी पहुंच कर इलाज शुरू करवा दिया।

अगले दिन मां संतुष्ट दिखी कि अब बच्चा चैतन्य है। बच्चे के पिता पैसे की व्यवस्था करने गए हैं।

जब अगले दिन मैं अस्पताल में बच्चे को देखने गया  तो खबर सुनकर मैं चौक पड़ा , "बच्चे की मां अस्पताल में भर्ती बच्चे को बेचना चाहती है !" 

मैं  मरीज के पास पहुंचा और पूछा कि ये मैं क्या सुन रहा हूं? मां आंखों में आंसू भरे भरभराई आवाज में बोली  कि जो भी अस्पताल की फीस भर दे, मेरे बच्चे को ले जाए। मेरा बच्चे की जान बच गई मेरे लिए यही बहुत है। 

 मां की ममता और त्याग को सच्चे हृदय से नमन किया। फिर बोला कि क्या डॉक्टर परिवार नहीं हो सकता है वो भी परदेस में। जाओ तुम्हें कुछ भी नहीं जमा करना है। नर्सिंग होम ने भी एक पैसा फीस लेने से मना कर दिया।  मां बाप बोले साहब उस ठेकेदार के पास तो अब नहीं जायेंगे।  मैंने डिसचार्ज बनाने के साथ ही उनके हाथ में कुछ धन रखा और अपने स्टाफ को स्टेशन तक छोड़ आने के लिए साथ भेज दिया


हमने देखा एक ओर संसार की पीड़ा संसार का भोग है और दूसरी ओर भाव है

 भाव की परमात्मा रक्षा करता है भोग को काटता है

मार्ग दिखाता है


भावों से संपृक्त इस सत्यकथा पर अपनी अभिव्यक्ति प्रकट करने के लिए सर्वथा उपयुक्त शब्द नहीं हैं



आचार्य जी की कलम ने  एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचनाएं दी हैं कविता हिंदी साहित्य की वो विधा है जो सुन्दर से सुन्दर विचार को कम शब्दों में कहना जानती है।



इन्हीं रचनाओं में एक 

कविता है 

कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है....



एक और कविता है


पद और प्रतिष्ठा सुख सुविधा के पीछे दीवानी दुनिया.....



दुनिया इस प्रकार की है लेकिन भारत को तो दुनिया के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करना है भारतवर्ष के इतिहास को हमें देखना होगा कि हम कौन हैं

इस पर आचार्य जी के व्यक्त भाव इस तरह से हैं


जागो भारत जागो महान....



हमारा वास्तविक इतिहास कितना विलक्षण रहा है इसकी दुनिया में कोई मिसाल नहीं है इसे हमें स्वयं तो समझना ही होगा हमारा भावी भविष्य (भावी  पीढ़ी ) भी जानें इसका प्रयास हमें करना होगा


हमारे ऋषियों का संविधान वैश्विक संविधान है इसी के आधार पर हम कहते हैं कि संपूर्ण विश्व को आर्य बनाएंगे

पूरी वसुधा ही हमारा कुटुम्ब है


इसके लिये परस्पर आत्म विश्वास,आत्मीयता, प्रेम, आत्मशक्ति, आत्मप्रेरणा और आप्तप्रेरणा  से भरा रहना होगा 

हमारी शक्ति बुद्धि भक्ति फलप्रद हो इसकी परमात्मा से प्रार्थना करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया आलोक भैया संदीप शुक्ल का नाम क्यों लिया आचार्य जी दिल्ली कब जा रहे हैं जानने के लिये सुनें

8.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 8 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ज्ञान -प्रशत्त्वन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 8 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/10



समाज की समस्याओं का उद्भव शिक्षा के अभाव से या शिक्षा के विकारों के कारण होता है

और समाज का सुधार एवं संस्कार शिक्षा के माध्यम से होता है

कहने का तात्पर्य है कि शिक्षा ही समस्याओं का कारण भी है और निवारण भी है


इसी कारण शिक्षा पर भारत देश में परिपूर्ण विचारणा धारणा की गई है और शिक्षक   उसी को माना गया जिसमें मनुष्यत्व की पूर्णता दृष्टिगोचर हुई


पूर्ण मनुष्य के लिये चार पुरुषार्थों  धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की आवश्यकता है, मनु इस पुरुषार्थचतुष्टय के प्रतिपादक हैं।


अनुशासित होकर चलना ही धर्म है यह प्रदर्शन न होकर दर्शन है  पशुता से इतर यह मनुष्यत्व की अनुभूति कराता है यह उपासना की पद्धति न होकर विराट् स्वरूप वाली जीवन पद्धति है


भौतिक जीवन से संबन्धित विचार और क्रियाएं अर्थ है

अर्थोपार्जन करना लेकिन धर्म से विमुख होकर नहीं

काम अर्थात् कामनाएं एक स्तर तक ही और मोक्ष मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है


संसार में आये समस्याओं से जूझे और फिर बिना भय के शरीर से मुक्त होना मोक्ष है


यह इस राष्ट्र का शैक्षिक स्वरूप है

जो अभावों की अनुभूति करता है वह शिक्षित नहीं है


मोक्ष आनन्द है


स्थिति ऐसी हो कि भीतर से ललचाएं नहीं और बाहर से उसे व्यक्त भी न करें


और इसके अभ्यास की आवश्यकता है और यह अभ्यास साथ साथ करें


ॐ सहनाववतु

सहनौभुनक्तु ।

सह वीर्यं करवावहै

तेजस्विनावधीतमस्तु ।

मा विद्‌विषावहै

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ।


द्वेष न रखें

फिर त्रिविध तापों की शान्ति होगी


आधुनिक शिक्षा में महर्षि दयानन्द,महर्षि अरविन्द,गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अनेक वैदेशिक लोगों के विचार हैं


हम पूरी वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानते हैं  इस कुटुम्ब का मुखिया परमपिता परमेश्वर है यह चिन्तन हमारी शिक्षा ने ही किया है


यह शिक्षा का स्वरूप है शिक्षा कमाने के लिये नहीं होती उसके लिये प्रशिक्षण होता है


हमारे देश में बाहर से बहुत से लोग आये हमने उन्हें आत्मसात् किया लोभ लालच जिज्ञासा से आये

हमारे यहां वो सब समा गये लेकिन पाचन शक्ति की भी सीमा होती है हमारी वैचारिक भावनाएं हमें ही अद्भुत लगने लगीं हमारी शिक्षा को विकृत करने के बहुत से प्रयास हुए

शिक्षा नौकरी करने वाली हो गई व्याकुलता के भंवर में घुमाने वाली हो गई




तत्कर्म यन्न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये।

आयासायापरं कर्म विद्यऽन्या शिल्पनैपुणम्॥ 

विद्या वही है जो मुक्ति के लिये है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने


राही राह चला चल अविचल मंजिल तेरी दूर नहीं.....सुनाई

आचार्य जी दिल्ली मथुरा चित्रकूट की यात्राओं पर जायेंगे ऐसा उन्होंने सूचित किया

7.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 7 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है तमोहर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 7 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/9


विदित हो कि  2015 में बाबा रामदेव ने अपने  वैदिक शिक्षा अनुसंधान संस्थान के माध्यम से एक नया स्कूली शिक्षा बोर्ड शुरू करने का विचार प्रस्तुत किया था और अब जाकर केंद्र सरकार ने स्वतन्त्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर भारतीय शिक्षा बोर्ड  का गठन कर दिया है और उसके संचालन का जिम्मा बाबा रामदेव के पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट  को सौंपा है


1835 में मैकाले द्वारा फैलाई गई गंदगी को हटाने के लिये बाबा रामदेव का प्रयास रंग लाया


बताते चलें कि आध्यात्मिक दृष्टि से उच्च शिखर पर बैठे बाबा रामदेव को स्व राजीव दीक्षित ने व्यावहारिक शिक्षा प्रदान की थी


यह एक अच्छा प्रयास है और   हम भारतीय दर्शन में आस्था रखने वाले राष्ट्रभक्तों को आशा की किरण दिखाई दे रही है कि हो सकता है कि इससे भारत के साथ साथ संपूर्ण विश्व का भाग्योदय होने लगे


भारत की शिक्षा पद्धति गुरुकुल संस्कार शैली पर आधारित है

गुरु गृह पढ़न गए रघुराई।

अलप काल विद्या सब पाई॥ 



 गुरु अर्थात् जो अन्धकार का हरण कर ले


विद्यालय एक ऐसा संसार है जहां मार्गदर्शन की शैली व्यक्तिशः स्नेह और आत्मीयता से प्रस्फुरित होती है


शिक्षा का अर्थ है विद्यार्थीगण  अध्यापक की अभिलाषाओं के साथ तन्मय होकर जीवन का पाठ ग्रहण करें


श्रेष्ठतम अध्ययन केन्द्र वही हैं जहां लोग उच्चतम जीवन आदर्श को व्यावहारिक जीवन में उतारने के लिये कृतसंकल्प हों


जीवमात्र के लिये निःस्वार्थ प्रेम, हृदय की शुद्धता, माता पिता के प्रति आदर,सच्चाई के प्रति निष्ठा, अपरिग्रह, अहिंसा,स्वतन्त्र चिन्तन, स्पष्ट अभिव्यक्ति,सबके प्रति आदर, नैसर्गिक सृष्टि के साथ सामञ्जस्य और स्वावलम्बन, संवेदनशीलता, स्वाभिमानी जीवन आदि गुण उचित शिक्षा से संभव हैं



समझना समझाना एक रहस्यात्मक आत्मिक तत्त्व है जिसका आधार प्रेम परिचय आत्मीयता सम्बन्ध है


बिना आत्मीयता प्रेम आदि के विद्वान की भाषा के शब्दों में सीखने की चाह रखने वाला व्यक्ति उलझ सकता है


हमारा साफ सुथरा रहना शिक्षा का मूल आधार है और स्वच्छता से ही हमारे अन्दर से सद्विचार उद्भूत होंगे


सादगीपूर्ण जीवन विश्वव्यापी सुख शान्ति का आधार है

ऐश्वर्य और भुखमरी साथ साथ चलते हैं  और ऐश्वर्य के प्रति आकर्षण शमित तब होता है जब प्रकृति के साथ जीवन की समरसता के प्रति आकर्षण होता है ऐश्वर्य प्रकृति से दूर रहता है और सादगी प्रकृति के निकट जाती है यह शिक्षा का मूल आधार है और फिर प्राणीमात्र के लिये हमारे अन्दर भाव उद्भूत होता है


सर्वे भवन्तु सुखिनः ।

सर्वे सन्तु निरामयाः ।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।

मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥



किसी शिक्षित ने ही तो यह कहा

शिक्षक को यह जानकारी होनी ही चाहिये कि शरीर क्या है मन क्या है बुद्धि और आत्मा क्या है इन सबका सामञ्जस्य क्या है



इनके सामंजस्य से समाज कैसे प्रभावित होता है 


व्यावहारिक विषय को तात्त्विक स्वरूप कैसे प्रदान किया जाए शिक्षक को इसका आभास होना चाहिये

शिक्षकत्व विस्तृत होना आवश्यक है अन्यथा शिक्षा कठिन है

शिक्षा और प्रशिक्षण में अन्तर है दिमाग को पुस्तकालय बनाना शिक्षा नहीं है

6.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 6 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शिक्षा -वेश्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 6 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/8



शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिये कि शिक्षार्थी के अन्दर देशभक्ति का भाव कूट कूट कर भर जाए उसे आत्मविश्वासी बना दे त्यागी तपस्वी बना दे वीरता के भाव से ओत -प्रोत कर दे समाजोन्मुखी बना दे



आचार्य जी कहते हैं कि यदि किसी भी महत्त्वपूर्ण विषय को समझाने वाला लेख यदि गहन गम्भीर हो तो सामान्य विद्यार्थी उससे कतराता है


वह उसे आत्मसात् नहीं कर पाता इसी कारण जो विषय आत्मसात् नहीं होता उसे न तो समझा जाता है न समझाया जा सकता है


हमारे यहां प्रारम्भ से ही काव्यमय साहित्य को  महत्त्व दिया गया है क्योंकि काव्य जल्दी याद होता है और गद्य देर से याद होता है

हमारे यहां के धर्मग्रंथ वेद जो विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ हैं काव्यमय हैं


वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् धातु से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान' है।



वेदों को अपौरुषेय (जिसे कोई व्यक्ति न कर सकता हो, यानि ईश्वर कृत) माना जाता है। यह ज्ञान विराट् पुरुष से  श्रुति परम्परा के माध्यम से सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने प्राप्त किया माना जाता है।



वेद एक स्वरूप है यानि रूप है यानि वेद का पुरुष है

उस वेद पुरुष के छह अंग हैं

ये वेदांग हैं

नाक मुख कान नेत्र हाथ पैर


छन्द को वेदों का पैर , कल्प को हाथ, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को कान, शिक्षा को नाक, व्याकरण को मुख कहा गया है।



पुरुष की नाक यानि शिक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है क्यों कि शरीर में नाक एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है

नाकरहित यानि अशिक्षित 

स्वस्थ पुरुष नाक से ही सांस लेता है और छोड़ता है

नाक सूंघती भी है


बदबू और खुशबू बतलाती है इसी आधार पर हम निर्णय लेते हैं कि बदबू से हमें दूर रहना है और खुशबू के पास


बालकांड में



भय कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥

गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई॥



ज्यों ही सब भाई कुमारावस्था के हुए, त्यों ही गुरु, पिता और माता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया। रघुनाथ (भाइयों सहित) गुरु के घर में विद्या पढ़ने गए और थोड़े ही समय में उनको सब विद्याएँ आ गईं।



जाकी सहज स्वास श्रुति चारी। सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी॥

बिद्या बिनय निपुन गुन सीला। खेलहिं खेल सकल नृप लीला॥


भावार्थ-

चारों वेद जिनके स्वाभाविक श्वास हैं, वे भगवान पढ़ें, यह बड़ा कौतुक (अचरज) है। चारों भाई विद्या, विनय, गुण और शील में (बड़े) निपुण हैं और सब राजाओं की लीलाओं के ही खेल खेलते हैं।


करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा॥

जिन्ह बीथिन्ह बिहरहिं सब भाई। थकित होहिं सब लोग लुगाई॥


कोसलपुर बासी नर नारि बृद्ध अरु बाल।

प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहुँ राम कृपाल॥ 204॥


m.bharatdiscovery.org से साभार




इसके बाद वो मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनते हैं



निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥




 यह रामात्मक भाव जिसके अन्दर प्रवेश कर जाता है वो शिक्षित व्यक्ति होता है

क्योंकि उसकी नाक जागरूक है सचेत है



और पुरुष का मुख व्याकरण है क्या बोलना कैसे बोलना कब बोलना और कितना बोलना

पुरुष के कान निरुक्त हैं निरुक्त अर्थात् शब्दों का भाव समझना और उस भाव के आधार पर हम कोई फैसला करते हैं


नेत्र ज्योतिष हैं समझ लेना कि यह होने वाला है यह नहीं होने वाला है


हाथ कल्प हैं ये कर्मशील हाथ परमात्मा सबको नहीं देता सूत्र ग्रंथों को कल्प कहते हैं.

इन्हें सूत्र साहित्य इसलिए कहा गया क्योंकि ये बहुत अधिक बातों को बेहद संक्षिप्त रूप में (सूत्र रूप में) बतलाते हैं । क्योंकि इन्हें कण्ठस्थ करना आसान था



श्रौत सूत्र , गृह्य सूत्र , धर्म सूत्र व शुल्व सूत्र


श्रौत और गृह्य में यज्ञों का वर्णन है

हमारा जीवन यज्ञमय है 


धर्म सूत्र भी महत्त्वपूर्ण है

धर्म के आधार पर संपूर्ण सृष्टि रची हुई है


धर्मसूत्रों में वर्णाश्रम-धर्म, व्यक्तिगत आचरण, राजा एवं प्रजा के कर्तव्य आदि का विधान है।


शिक्षक इन सारे विषयों को आत्मसात् करके शिक्षार्थी को   आसानी से समझा सकता है

मदालसा ने अपने बेटे को भी इसी तरह समझाया था बेटा तुम मुझे नहीं छू पा रहे हो मेरा कान छू रहे है मेरा हाथ छू रहे हो


ज्ञान कहां तक हमारे देश में पहुंचा कि जब मण्डनमिश्र का घर शंकराचार्य जी पूछते हैं तो पता चलता है कि वहां तो ,बोलते हैं



इस देश की शिक्षा ने जीव से ब्रह्म तक की यात्रा कराई है शौर्य शक्ति का सामञ्जस्य बतलाया है

हमें निराशा का भाव नहीं रखना चाहिये उत्थान पतन चलता रहता है भारत फिर से विश्वगुरु बनेगा

5.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 5 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अवभासोदधि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 5 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/7


हमारा यह शरीर बोझ न बने इसलिये हमें अपनी मानसिकता को सामाजिक संदर्भों में संयुत करना चाहिये 

शारीरिक थकान के बाद भी मन यदि प्रफुल्लित रहता है और उस मन के साथ मनोकूल व्यक्तियों का संयोग बना रहता है हमारी सोच सकारात्मक रहती है तो थका शरीर भी अत्यन्त उपयोगी होता है


इससे इतर जिनका सामजिक स्वरूप नहीं होता वे थके शरीर में ही अपने को उलझाए रहते हैं नकारात्मकता उन पर हावी रहती है तो शरीर उन्हें बोझ सा प्रतीत होता है


कल के विषय शिक्षा में  आगे आज आचार्य जी कहते हैं

शिक्षा एक संस्कार है मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति कराने की प्रेरणा है हम इस संसार में आये हैं तो विधि के विपरीत चलने से हमारा भला कभी नहीं हो सकता


संपूर्ण सृष्टि में एक व्यवस्था बनी हुई है सूर्य का कार्य तेजस का प्रसार है पृथ्वी से आकाश तक भी सामञ्जस्य है हर स्थान पर व्यवस्था है जो उस व्यवस्था के विपरीत जाता है उसे अपनी शक्ति बुद्धि के साथ बहुत संघर्ष करना पड़ता है और संघर्ष में शक्ति का क्षरण होता है



इस संसार में हमारे जीवन का प्राकृतिक पर्यावरण के साथ सामंजस्य बना रहे इसके लिये तैत्तिरीय उपनिषद् में शिक्षावल्ली के अंतर्गत एक प्रार्थना है


ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं बह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम । अवतु वक्तारम् ।


वेद कहता है


ॐ सह नाववतु ।

सह नौ भुनक्तु ।

सह वीर्यं करवावहै ।

तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥



ॐ प्रत्येक के साथ संयुत है ॐ शक्ति, मन्त्र,भाव, विचार है और इस सृष्टि के प्रारम्भ का तात्विक स्वरूप है


ये सब समझने के लिये शिक्षक की भूमिका अति महत्त्वपूर्ण है शिक्षक को संपूर्ण मनोविज्ञान का वेत्ता होना भी आवश्यक है


संस्कार भी महत्त्वपूर्ण हैं बाल्यावस्था का प्रारम्भ यदि इस तरह से हो कि



अनुज सखा सँग भोजन करहीं। मातु पिता अग्या अनुसरहीं।।

जेहि बिधि सुखी होहिं पुर लोगा। करहिं कृपानिधि सोइ संजोगा।।

बेद पुरान सुनहिं मन लाई। आपु कहहिं अनुजन्ह समुझाई।।

प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा।।

आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा।।


भगवान् राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं निःसंदेह उनकी शिक्षा भी बहुत संस्कारों वाली अत्यन्त उच्च कोटि की हुई

शिक्षा मानसिक रूप से उद्बुद्ध एक तात्विक स्वरूप है जो अनुभव करने की बात है

DIGITAL SCHOOLS   मात्र प्रशिक्षित  कर देंगे



शिक्षा यानि संस्कार तो जरूरी है ही विद्या अर्थात् ज्ञान की भी आवश्यकता है

ज्ञान सांसारिक भी है और ज्ञान जहां से संसार उद्भूत हुआ है वह भी है


मानसिक शक्ति का विकास भारतीय जीवनशैली में ही है


अच्छी मानसिक शक्ति से ही हम प्रभावशाली और यशस्वी होते हैं


जिसकी कीर्ति है वही जीवित माना जाये



इसके लिये हमें अपने शैक्षिक चिन्तन को विकसित करना होगा

 शिक्षक कैसा हो यह मूल विषय है

शिक्षक को संस्कार देने का प्रबन्ध होना चाहिये ऐसे शिक्षकों को तैयार करने वाले शिक्षक को तपस्वी होना चाहिये


संसार में रहते हुए भी हम सांसारिकता में यदि व्याकुल नहीं होते हैं तो शक्ति बुद्धि युक्त हम बने रहेंगे



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सुनील गुप्त जी, भैया अरविन्द तिवारी जी भैया अजय वाजपेयी भैया पुनीत श्रीवास्तव भैया मुकेश गुप्त जी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

4.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 4 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 स पर्यगाच्छुक्रमकायमब्रणम अस्नाविरम शुद्धम्पापविद्धम |

             कविर्मनीषी परिभू: स्वयंभू: याथातथ्यतोsर्थान व्यदधाच्छाश्वतीभ्य: समाभ्यः ||


प्रस्तुत है प्रतिबुद्ध आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 4 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/6


मनुष्य का जीवन भाव विचार और क्रिया से समन्वित होकर चलता है दिव्य भाव उच्च विचार और सात्विक क्रिया से मनुष्य मनुष्य बनता है

लेकिन इन तीनों में कोई विपरीत है तो मनुष्य मनुष्यत्व से दूर रहता है

इसी का आधार लेकर हम लोगों ने  श्रेष्ठ शिक्षकों से शिक्षा प्राप्त की है


तैत्तिरीय उपनिषद् में शिक्षावल्ली से



मातृदेवो भव। पितृदेवो भव।

आचार्यदेवो भव। अतिथिदेवो भव।

यान्यनवद्यानि कर्माणि तानि सेवितव्यानि । नो इतराणि 

यान्यस्माकं सुचरितानि तानि त्वयोपास्यानि । नो इतराणि ll

जो अच्छा है उसे ग्रहण करें



शिक्षा संस्कार है शिक्षा विचार है शिक्षा आचार है शिक्षा व्यवहार है शिक्षा मनुष्य के जीवन का मनुष्यत्व है

विदित हो कि केन्द्र सरकार DIGITAL E-LEARNING SCHOOL खोलने की दिशा में काम कर रही है इस पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए आचार्य जी ने कहा



ये विद्यालय कभी नहीं हो सकते, इन्हें प्रशिक्षण केंद्र भले कह सकते हैं, वह भी "निर्जीव " ।



 जहां पर digital behaviour होता है वहां भाव समाप्त हो जाता है केवल विचार और क्रिया चलती है यानि तीनों का समन्वय समाप्त हो जाता है यानि मनुष्य मनुष्यत्व से दूर हो जाता है


विद्याञ्चाविद्याञ्च यस्तद्वेदोभयं सह।

अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥


का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने विद्या और अविद्या में अन्तर बताया


जो तत् को इस रूप में जानता है कि वह एक साथ विद्या और अविद्या दोनों है, वह अविद्या से मृत्यु को पार कर विद्या से अमरता का आस्वादन करता है।


( upanishads.org.in से साभार )



यह विद्या का मूल दर्शन है दर्शन प्रत्यक्ष अनुभूतियां है

ज्ञान को हमारे यहां वेद का नाम दिया गया वेद अर्थात् जानो

जिसमें कवित्व नहीं है उसमें शिक्षकत्व नहीं है

कवि अर्थात् सूक्ष्मदर्शी



ऋषि ने निम्नांकित  छन्द में कह दिया 



छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तौ कल्पोऽथ पठ्यते

ज्योतिषामयनं चक्षुर्निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते।

शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मृतम्

तस्मात्सांगमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते॥




छन्द को वेदों का पाद, कल्प को हाथ, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को कान, शिक्षा को नाक, व्याकरण को मुख कहा गया है।



शिक्षा नासिका है यह शुद्ध उच्चारण का शास्त्र है स्वर के अद्भुत संप्रेषण की शक्ति मनुष्य को ही प्राप्त है

स्वर और व्यञ्जनों का शुद्ध उच्चारण शब्दों के अर्थ का ठीक ठीक बोध कराता है

और यही शिक्षा का मूल विषय है


इसके अतिरिक्त नीराजन से संबन्धित कौन सा प्रसंग आचार्य जी ने सुनाया

ऋतम्भरा पत्रिका कहां से छपती है आचार्य जी किस भैया को देखने लखनऊ जा रहे हैं जानने के लिये सुनें

3.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 3 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 श्री भगवानुवाच


मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।


श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।।12.2।।



प्रस्तुत है ऋजुग आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 3 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/5


इन सदाचार संप्रेषणों का मूल उद्देश्य है कि हम भारतीय जीवन शैली से परिचित हों भारतीय संस्कृति, जिसका डंका संपूर्ण विश्व में बजता था, की अद्भुतता से परिचित हों हमारी बुद्धि शक्ति विवेक शौर्य जाग्रत हो हम स्वस्थ रहें

हम अपने को सौभाग्यशाली समझें कि हम इस पुण्य भूमि में जन्मे हैं  मानस गीता उपनिषद् वेद आदि को अपने जीवन का अनिवार्य अंग बना  लें

हम इन संप्रेषणों के उपयुक्त उचित सुपाच्य विचारों को ग्रहण करके सांसारिक प्रपंचों में उलझने के बाद भी आनन्दित रहें इसके लिये आचार्य जी लगातार प्रयासरत हैं शक्ति भक्ति शौर्य आत्मीयता संयम आदि को स्वयं आचार्य जी ने अपने जीवन में उतारा है इसी कारण हमें इन सदाचार वेलाओं को सुनने की ललक रहती है 


हम मनुष्य अपनी उस शक्ति से परिचित हों जो बतलाती है कि हम  परमात्म का अंश हैं 


मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहं न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे


न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥1॥



हाल ही में सउदी अरब में 8000 वर्ष पुराने एक मंदिर की खोज हुई है जो रियाद के दक्षिण पश्चिम इलाके अल -फा में स्थित है


महान भाषाविद, प्रख्यात विद्वान्‌,  भारतीय धरोहर के मनीषी,महान्‌ कोशकार, शब्दशास्त्री  भारतीय संस्कृति के उन्नायक और भारतीय जनसंघ के पूर्व अध्यक्ष  डा रघुवीर  ( ३०, दिसम्बर १९०२ - १४ मई १९६३) कहते थे विश्व के किसी भी स्थान पर हमें भारतीय संस्कृति के चिह्न मिल जायेंगे


महाभारत के युद्ध में संपूर्ण विश्व शामिल हुआ था


इस वैश्विक विध्वंस के बाद पुनः शान्ति स्थापित हो गई 

इसलिये हमें आत्मविश्वास रखना होगा भारत पुनः विश्वगुरु बनेगा भारत पुनः अखण्ड स्वरूप प्राप्त करेगा


भारतीय संस्कृति आत्मीयता सिखाती है  जितना भी संसार का पैसारा है उसमें  प्रेम आत्मीयता रिशते नाते संबन्धी परिचित लोग हैं  इसके विस्तार में जो भी रमा हुआ है वे सब सौभाग्यशाली हैं


गीता में



ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः।


अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते।।12.6।।


परन्तु जो भक्तजन मुझे ही परम लक्ष्य समझते हुए सब कर्मों को मुझे अर्पण करके अनन्ययोग के द्वारा मेरा ही ध्यान करते हैं।।



तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्।


भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्।।12.7।।


जिनका चित्त मुझमें ही स्थिर हुआ है ऐसे भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्युरूप संसार सागर से उद्धार करने वाला होता हूँ।।



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने

मैथिली शरण गुप्त की इन पंक्तियों



दोनों ओर प्रेम पलता है।

सखि, पतंग भी जलता है हा! दीपक भी जलता है!


सीस हिलाकर दीपक कहता--

’बन्धु वृथा ही तू क्यों दहता?’

को किस संदर्भ में प्रयुक्त किया आमिर खान का नाम क्यों आया आचार्य जी ने अपनी गाय से संबन्धित कौन सा प्रसंग बताया जानने के लिये सुनें

2.8.22

ऋतधामा श्री ओम शंकर जी का दिनांक 2 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ऋतधामा श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 2 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/4


प्रातःकाल हमें संश्लेषणात्मक बुद्धि बनाकर रखनी चाहिये विश्लेषणात्मक बुद्धि से हम भ्रमित होंगे 

हम लोग सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाते हैं । इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है और उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है

पूजा भाव हमारी भारतीय संस्कृति का संसार में उत्साह के साथ रहने का आधार है



भागवत का एक अंश है



खं वायुमग्निं सलिलं महीं च

ज्योतींषि सत्त्वानि दिशो द्रुमादीन्।

सरित्-समुद्रांश्च हरेः शरीरं

यत्किञ्च भूतं प्रणमेदनन्यः॥

अर्थः

(  आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, नक्षत्र, प्राणी, दिशाएँ, वृक्ष-वनस्पति, नदियाँ, समुद्र आदि जो कुछ भूत सृष्टि है, वह सब हरि रूप है ऐसी भावना करके वह उन्हें अनन्य भाव से नमस्कार करेगा ) (यहां संश्लेषणात्मक बुद्धि रखनी है )


जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।

बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥7(ग)॥


देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब।

बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब॥7 (घ)



यह भारतीय जीवनशैली है

वैष्णव पंथ  हो या शैव पंथ

उनकी संहिताओं के चार भाग हैं ज्ञानपाद योगपाद क्रियापाद और चर्यापाद 


संहिता का अर्थ है संयोजन, संबंध, संघ, व्यंजन  नियमों के अनुसार अक्षरों का संयोजन या ग्रंथों या छंदों का कोई व्यवस्थित रूप से व्यवस्थित संग्रह



 कहने का तात्पर्य है जिस विषय को हम अच्छी प्रकार से उदाहरणों के माध्यम से समझ लें वह संहिता है


मनुष्य एक अद्भुत प्राणी है भारतीय संस्कृति में विश्वास रखने वाले मनुष्य ने इस अद्भुतता में सौम्य स्वरूप के दर्शन किये हैं


शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्

वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥


ये पूजा उपासना हमारे लिये संजीविनी का काम करते हैं  इसी कारण पर्व निर्धारण होता है


इन पर्वों पर अब अवकाश भी नहीं होते शिक्षा का विकृत स्वरूप हमारे सामने है शिक्षा संस्कृति से अवश्य ही संयुत होनी चाहिये शिक्षा में अपने देश की, स्थानों की विशेषताओं का वर्णन करते अध्याय आदि होने चाहिये



हम अपने मस्तिष्क को क्या केवल computer ही बनाना चाहते हैं?

यदि हम अपने जीवन को आनन्दमय बनना चाहते हैं समस्याओं का समाधान स्वयं खोजना चाहते हैं तो हमें इस ओर चिन्तन करना होगा



अपने परिवार में हम इन सबकी चर्चा करें मानस गीता उपनिषद् की चर्चा करें इन पर्वों को उत्साहपूर्वक मनायें परंपराएं जीवित रखें 

यह अफसोस की बात है कि नई पीढ़ी को यह तक नहीं मालूम कि भगवान् राम के कितने भाई थे  इस ओर भी चिन्तन करें



पशु की जीवनचर्या से अपनी जीवनचर्या भिन्न रखें

1.8.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 1 अगस्त 2022 का सदाचार संप्रेषण

 त्याग” कोष का शब्द, 

देश का चिन्तन अर्थ प्रधान हो गया | |


प्रस्तुत है अभ्यागारिक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 1 अगस्त 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

सार -संक्षेप 2/3


आचार्य जी द्वारा उद्बोधित इन सदाचार वेलाओं के प्रति हमारी जिज्ञासा दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही है और उसका कारण है कि सांसारिक प्रपंचों में उलझकर ज्यादातर व्यर्थ किये गये समय से इतर इस समय का सदुपयोग हो जाता है

यह मार्गदर्शन हमारे लिये अत्यन्त उपयोगी है बस समझने भर की देर है


आचार्य जी चाहते हैं कि  भारतीयता के प्रति  हमारे अन्दर जिज्ञासा उत्पन्न हो और उस जिज्ञासा के समाधान के लिये हम मानस गीता उपनिषदों वेदों आदि ग्रंथों का आश्रय लें

इसके बाद यही ज्ञान प्राप्त कर हम सदाचारी हो जाएं


हम प्रतिष्ठित होंगे तो इससे आचार्य जी की मानसिक भावनाओं को ऊर्जा और उत्साह मिलेगा

आचार्य जी प्रतिदिन हमें अपना बहुमूल्य समय देते हैं और हमें इतनी आसानी से ये सदाचार संप्रेषण उपलब्ध हो जाते हैं हमें इनका महत्त्व समझना चाहिये


कुछ समय के लिये हम अपने पास बैठने का प्रयास प्रतिदिन करते रहें



कठोपनिषद् में

यमराज और नचिकेता का कथानक अत्यन्त रोचक दिव्य शिक्षाप्रद है जो ज्ञान के उपासक हैं उनके लिये प्रकाश

  विन्दु है


ऋतं पिबन्तौ सुकृतस्य लोके गुहां प्रविष्टौ परमे परार्धे ।


छायातपौ ब्रह्मविदो वदन्ति पञ्चाग्नयो ये च त्रिणाचिकेताः ॥ १॥



 जीवात्मा के रूप में परमात्मा 

गुप्त रूप से शरीर में विद्यमान हैं और दोनों ही मोक्ष अवस्था में सत्य स्वरूप हैं   ब्रह्म ज्ञानी इन दोनों को भिन्न ही मानते हैं।



अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययं तथाऽरसं नित्यमगन्धवच्च यत् ।


अनाद्यनन्तं महतः परं ध्रुवं निचाय्य तन्मृत्युमुखात् प्रमुच्यते ॥ १५॥


 ब्रह्म का कोई विषय नहीं है, वह स्पर्श रहित है, रूप विकार से भी रहित है, अनादि अनन्त है, प्रकृति से भी सूक्ष्म है, निश्चल है, उस को जानकर मनुष्य मृत्यु के मुख से छूट जाता है और मोक्ष प्राप्त कर लेता है।



निराशा हताशा चिन्ता आदि ही मृत्यु है इसलिये शरीर से कुछ देर अलग होने का प्रयास ध्यान शवासन आदि से किया जा सकता है



और जब हम सांसारिक प्रपंचों में उलझते हैं तो ध्यान उधर से हट जाता है

आचार्य जी की निम्नलिखित कविता से चिन्तन करें कि हम कहां आ गये हैं


 कविता  पूरा देश मसान हो गया


धन साधन सुविधा के वन में हर घर का इन्सान खो गया

ऐसा जादू किया किसी ने पूरा देश मसान हो गया ।।


सम्बन्धों की रस्म अदाई

हूल रही भीतर तनहाई

धर्म अर्थ के हुआ हवाले 

सच पर जड़े हुए हैं ताले 

 सुख के लिए स्वत्व का तर्पण,

 दैनिक कर्म विधान हो गया | |१ | |


 ऐसा जादू.....


भाषा, भूषा वेश पराया

 प्रेम और आवेश पराया 

 घर के चूल्हे हुए विरागी

माँ का दूध हो गया दागी 

त्याग” कोष का शब्द, 

देश का चिन्तन अर्थ प्रधान हो गया | |२।।

 ऐसा जादू......


 ध्यान योग आयात हो रहा 

स्वत्व लुप्त चैतन्य सो रहा  

स्वारथ पगी प्रवचनी भाषा

बदल गयी तप की परिभाषा 

सत्य सनातन सदाचरण का,

आज नया अभिधान हो गया | |३। |


ऐसा जादू.....


प्रेम वासना का प्रहरी है

 मानवता अंधी-बहरी है

बचा नहीं कुछ अपना जैसा

काबिज हुआ सभी पर पैसा

आकर घिरी अमावस,

लेकिन कहते लोग विहान हो गया | ।४ | |


ऐसा जादू....


बेवश लोक, तन्त्र है हावी

भय से काँप रही है भावी 

पेट हो गया पूरा जीवन

दूषित हुआ प्रगति का चिन्तन

कैसे  कहूँ देश का अपना,  

अलग स्वतंत्र विधान हो गया ll 5ll

ऐसा जादू.....