30.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 30 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 साधु-संग', 'साधु-संग' - सर्व-शास्त्रे

काय लव-मात्र साधु-संगे सर्व-सिद्धि हय

सभी  शास्त्रों का निर्णय  है कि एक शुद्ध भक्त के साथ एक क्षण की संगति से भी, हर तरह की सफलता प्राप्त की जा सकती है



प्रस्तुत है  जिगीषु *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 30 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  489 वां सार -संक्षेप

* जीतने का इच्छुक



ये सदाचार वेलाएं संस्कार प्रदान करने की एक व्यवस्था है

 कथा-श्रवण हमारे भारत वर्ष 

की एक अद्भुत संस्कार व्यवस्था है राम कथा के माध्यम से कथात्मक जीवन के साथ जो संस्कार संयुत किये गये हैं उस ओर आचार्य जी द्वारा ध्यान दिलाया जाता है रामकथा हमें संस्कारित करती है कथा के मर्म को समझें

हम शिक्षकत्व की अनुभूति करें

ताकि हम अपने आचरण और व्यवहार को परिशुद्ध करने के लिये सतत प्रयत्नशील रहें

रामाश्रित होकर हम बड़े से बड़े काम कर सकते हैं


तुलसीदास जी ने मानस में समाज को जाग्रत करने के सूत्र सिद्धान्त प्रस्तुत कर दिये हैं 

आइये प्रवेश करते हैं लंका कांड में


उस लंका में भी सज्जन निवास कर रहे हैं शिव जी से रावण को जो वरदान मिला है उसका वह दुरुपयोग कर रहा है

सेतु निर्माण हो चुका है



परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी॥

करिहउँ इहाँ संभु थापना। मोरे हृदयँ परम कलपना॥


पश्चिमी सभ्यता के दुष्प्रभावों में फंसकर हम भाव और भक्ति से आप्लावित देशदर्शन तीर्थयात्रा भूल गये हम picnic करने लगे

आवश्यकता है युगभारती इस दिशा में भी सोचे तीर्थयात्राओं की व्यवस्था करे


जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं। ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं॥

जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि। सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि॥

रामेश्वरम की योजना भी बन सकती है



 भगवान् राम



(श्री रघुबीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषान।

ते मतिमंद जे राम तजि भजहिं जाइ प्रभु आन॥ 3॥)



 चाहते हैं कि इस रम्य स्थल पर शिव जी की स्थापना कर दी जाये क्योंकि


कृतादिशु प्रजा राजन् कलाविच्छन्ति सम्भवम् ।

कलौ खलु भविष्यन्ति नारायणपरायणाः।

क्व‍‍चित् क्व‍चिनमहाराज द्रविषु च भूरिष: ॥ 38॥

ताम्रपर्णी नदी यत्र कृतमाला पयस्विनी ।

कावेरी च महापुण्या प्रतीची च महानदी ॥ 39 ॥

ये पिबन्ति जलं तासां मनुजा मनुजेश्वर।

प्रायो भक्ता भगवति वासुदेवेऽमलाशया: ॥ 40॥



तुलसीदास जी ने शैवों और वैष्णवों के संघर्षों को शमित करने का प्रयास किया



सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा॥

संकर बिमुख भगति चह मोरी। सो नारकी मूढ़ मति थोरी॥


सिंधु पार प्रभु डेरा कीन्हा। सकल कपिन्ह कहुँ आयसु दीन्हा॥

खाहु जाइ फल मूल सुहाए। सुनत भालु कपि जहँ तहँ धाए॥



प्रभु ने समुद्र के पार डेरा डाला और सब वानरों को आज्ञा दी कि तुम जाकर सुंदर फल-मूल खाओ। यह सुनते ही रीछ-वानर जहाँ-तहाँ दौड़ पड़े।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी किस भैया के पुत्र के विवाह में सम्मिलित हुए थे जानने के लिये सुनें

29.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 29 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  वेगवाहिन् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 29 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  488 वां सार -संक्षेप

* तेज



बहुत सी अदृश्य शक्तियां हमारे अन्दर छिपी रहती और हमें पता ही नहीं चलता जीवन बीत जाता है लेकिन जिन्हें पता चल जाता है तो फिर कहना ही क्या शरीर को संयमित कर हम भी अनुभूति करने का प्रयास करें तो निश्चित रूप से कुछ अनुभूतियां होंगी ही 

तुलसीदास जी को भी  ऐसी अनुभूतियां हुईं और उन्होंने मानस की रचना कर डाली

आइये प्रवेश करते हैं मानस के उस भाग में जहां

शौर्य, शक्ति, उत्साह, पराक्रम की उपासना, विजय का विश्वास, आत्मीयता युक्त संगठन साधना की झलक मिल रही है



सिंधु बचन सुनि राम सचिव बोलि प्रभु अस कहेउ।

अब बिलंबु केहि काम करहु सेतु उतरै कटकु॥


कंटक को समाप्त करने के लिये कटक को अब पुल तैयार कर उतार लिया जाये


भगवान् राम के जन्म से पूर्व ही  कंटक रावण को मारना तय हुआ था राजा दशरथ द्वारा कराये गये  पुत्रेष्टि यज्ञ में सभी देवों ने विष्णु भगवान से प्रार्थना की

विष्णोपुत्रत्वमाच्छ कृत्वात्वमानं चतुर्विंधम्। 

तत्र त्वं मानुषो भूत्वा प्रवृद्धम लोक कण्टकम् ॥ 

- वाल्मीकि रामायण 15 वां सर्ग 

हे भगवन्! आप पुत्र भाव को प्राप्त होइये। आप अंश सहित चारों भागों में विभक्त होकर दशरथ जी का पुत्र होना स्वीकारें और मनुष्य शरीर धारण कर  लोक कण्टक रावण का नाश कीजिये | 

भगवान् ने देवों की प्रार्थना स्वीकार ली

लंका कांड में आगे 

सुनहु भानुकुल केतु जामवंत कर जोरि कह।

नाथ नाम तव सेतु नर चढ़ि भव सागर तरहिं॥


अनुभव और विवेक के भंडार जामवंत वृद्ध थे लेकिन कलियुग में रह रहे वृद्धों की तरह उपेक्षित नहीं थे उन्होंने नल नील को वही अनुभूतियां याद दिला दीं


धावहु मर्कट बिकट बरूथा। आनहु बिटप गिरिन्ह के जूथा॥

सुनि कपि भालु चले करि हूहा। जय रघुबीर प्रताप समूहा॥


संगठन में अपार बल होता है आज भी इसकी महत्ता है इसे समझने का प्रयास करें आज जो कंटक हैं उन्हें भी समाप्त करने की आवश्यकता है

राम कथा हमारा इतिहास है

इस इतिहास पर विश्वास करते हुए भविष्य की संरचना करने की योजना बनायेंगे तो आज की परिस्थितियों में हम उस बल विक्रम को अपने अन्दर ला सकेंगे और सफल भी होंगे

चारणी वृत्ति से बचें

हमारा धर्म वैश्विक है आत्मविस्मृत होकर हम बैठे हैं हमें जागना होगा


परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी॥

करिहउँ इहाँ संभु थापना। मोरे हृदयँ परम कलपना॥



सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा॥

संकर बिमुख भगति चह मोरी। सो नारकी मूढ़ मति थोरी॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने झगड़ेश्वर मंदिर की चर्चा क्यों की जानने के लिये सुनें


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28.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 28 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं

योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्‌।

मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं

वंदे कंदावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्‌॥ 1॥




प्रस्तुत है  जितश्रम *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 28 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  487 वां सार -संक्षेप

* परिश्रम करने का अभ्यस्त


मन और शरीर से क्षणांश के लिये सही हम अलग होकर आनंद की अवस्था प्राप्त करें यही उद्देश्य है इन सदाचार संप्रेषणों का

इस संसार में रहना चलना सहज स्वाभाविक गुण है अवस्था है और आवश्यकता भी है

जड़ को  चेतन अपने साथ संसरित करता रहता है


चलना रुकना दार्शनिक सिद्धान्त हैं सामान्य मनुष्य के लिये हमारे ऋषियों चिन्तकों ने सिद्धान्त सूत्र गढ़े हैं कि क्या करना सही है क्या सही नहीं है

कोई भी व्यक्ति परेशान नहीं होना चाहता

मानस के कथाक्रम में इस संसार को मूल तत्त्व और सांसारिकता  दोनों से अद्भुत  ढंग से तुलसीदास जी महाराज ने संयुत किया है



सात को शुभ मानकर और आठ को माया मानकर तुलसीदास जी ने मानस को सात सोपानों में बनाया यद्यपि महाकाव्य आठ सोपानों का होना चाहिये


झ, ह, र, भ ,ष    दग्धाक्षर  छंदशास्त्र में अशुभ माने जाते हैं प्रारंभ में  इनके प्रयोग से  कवि पर संकट की संभावना रहती है।लेकिन कामायनी का प्रारम्भ दग्धाक्षर से है

हिमगिरि के उत्तुंग....

आइये चलते हैं मानस के लंका कांड में


मंगलाचरण की व्याख्या करने के बाद आचार्य जी ने


लव निमेष परमानु जुग बरष कलप सर चंड।

भजसि न मन तेहि राम को कालु जासु कोदंड॥

की व्याख्या की आचार्य जी ने अपने अध्यापक प्रो माता प्रसाद मिश्र जी की चर्चा की 



काल के भाग लव, निमेष, परमाणु, वर्ष, युग और कल्प जिनके प्रचंड बाण हैं और काल जिनका कोदंड अर्थात् धनुष है, हे मन! तू उन राम को क्यों नहीं भजता?


इसके बाद कथा  है


सिंधु बचन सुनि राम सचिव बोलि प्रभु अस कहेउ।

अब बिलंबु केहि काम करहु सेतु उतरै कटकु॥


सुनहु भानुकुल केतु जामवंत कर जोरि कह।

नाथ नाम तव सेतु नर चढ़ि भव सागर तरहिं॥


भावार्थ

जाम्बवान ने हाथ जोड़ कहा हे नाथ! (सबसे बड़ा) सेतु तो आपका नाम ही है, जिस पर चढ़कर मनुष्य संसाररूपी समुद्र से पार हो जाते हैं


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया आचार्य जी आज कहां आये हैं जानने के लिये सुनें

27.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 27 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥

ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥


प्रस्तुत है  नयचक्षुस् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 27 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  486 वां सार -संक्षेप

* दूरदर्शी


संसार में रहते हुए नियमित कर्म धर्म का निर्वाह करते हुए  भगवद्कृपानुभूति का अनुभव करते हुए पूर्वजन्म के प्रारब्ध के प्रभावों से सामञ्जस्य बैठाते हुए मनुष्यत्व जाग्रत करने के लिये  शक्ति सामर्थ्य शान्ति पाने के लिये हमें अध्यात्म का मार्ग चुनना चाहिये

अध्यात्म से समस्याएं स्वयं सुलझाने का मार्ग प्राप्त हो जाता है

आज भी प्रकृति और प्रवृत्ति से   संपन्न अध्यापकों से युक्त विद्यालयों पाठशालाओं की आवश्यकता है ऐसे अध्यापक     छात्रों को उनके जीवन में यशस्विता प्राप्त करने के लिये प्रशिक्षित करें

दुनिया को कुछ भी देने का भाव रखने वाले 

भारत को विश्वगुरु की संज्ञा मिली बाद में हमारे देश का संसार तो भटका लेकिन उसका सार जीवित रहा

हम संकल्प करें तो भारत पुनः विश्वगुरु बन सकता है इसके लिये आवश्यक है कि हम आत्मबोध कभी न डिगने दें हम ज्ञान के उपासक हैं


प्रकृति के हर तत्त्व को हम देवता मानते हैं

समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।

विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ॥

ऐसी हमारी संस्कृति है

आइये चलते हैं सुन्दर कांड में




ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥

ताड़ना यातना नहीं प्रशिक्षण है


संत गिर्राज शास्त्री महाराज से दीक्षित महाराज अनिरुद्ध जी कहते हैं ताड़ना  अर्थात् देखना

प्रशिक्षण की ताड़ना अनिवार्य है

आचार्य जी ने इसकी विस्तृत व्याख्या की


प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई। उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई॥

प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई। करौं सो बेगि जो तुम्हहि सोहाई॥4॥


प्रभु राम के प्रताप से मैं समुद्र सूख जाऊँगा और सेना पार उतर जाएगी, इसमें मेरी बड़ाई नहीं है । फिर भी प्रभु राम की  आज्ञा का उल्लंघन नहीं हो सकता ऐसा वेद गाते हैं। अब आपको जो अच्छा लगे, मैं तुरंत वही करूँ

नल और नील को वरदान मिला कि वो जो पत्थर पानी में फेंकेंगे वह तैरेंगे


एहि सर मम उत्तर तट बासी। हतहु नाथ खल नर अघ रासी॥

सुनि कृपाल सागर मन पीरा। तुरतहिं हरी राम रनधीरा॥3॥


देखि राम बल पौरुष भारी। हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी॥

सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा। चरन बंदि पाथोधि सिधावा॥4॥



श्री रामजी का भारी बल और पौरुष देखकर समुद्र हर्षित होकर सुखी हो गया। उसने उन दुष्टों का सारा चरित्र राम जी को  सुनाया। फिर चरणों की वंदना करके समुद्र चला गया॥


सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।

सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान॥60॥

इस प्रकार आज इस सुन्दर कांड का समापन हो रहा है

इसके अतिरिक्त डा पङ्कज डा पवन मिश्र का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिये सुनें

26.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 26 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जौं तेहि आजु बंधे बिनु आवौं। तौ रघुपति सेवक न कहावौं॥

जौं सत संकर करहिं सहाई। तदपि हतउँ रघुबीर ई॥



प्रस्तुत है ललाटूल *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 26 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  485 वां सार -संक्षेप

* उन्नत मस्तक वाला


आचार्य जी कामना करते हैं कि    राष्ट्रानुकूल शक्ति बुद्धि विचार चिन्तन से संयुत रहते हुए इन सदाचार वेलाओं के विचारों से हम लाभान्वित हों



क्रूरता से हमारे चिन्तन संकल्प विचार विश्वास को डिगाया नहीं जा सकता शीशगंज गुरुद्वारा इसकी गवाही देता है हिन्दुत्व को बचाने के प्रथम बलिदानी पुष्प गुरु तेग बहादुर को मात्र नमन न करते हुए उसके भाव को अपने अन्दर ज्वाला के रूप में जलायें

केन्द्र सरकार भी इस ओर प्रयासरत है 

केन्द्र सरकार ने कुछ समय पूर्व श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के साहबजादों जोरावर सिंह और फतेह सिंह के शहीदी दिवस 26 दिसम्बर को हर वर्ष 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाने का ऐतिहासिक निर्णय भी लिया था


सिख (शिष्य ) हमारे त्याग तप चिन्तन भावना विचार समर्पण का प्रतीक है परमात्मा  का शिष्य है आत्मबोधत्व  मूल  हिन्दुत्व का शिष्य है


भारतीय अस्मिता को जाग्रत करने वाले ग्रंथ  महामानव की अमिट स्मृति

    राम चरित मानस में आइये प्रवेश करते हैं


भगवान राम की संतति विश्राम की आकांक्षी नहीं है


शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की आवश्यकता को समझते हुए आइये चलते हैं सुन्दर कांड में




बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।

बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥57॥



लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु॥

सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति। सहज कृपन सन सुंदर नीति॥1॥


अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा। यह मत लछिमन के मन भावा॥

संधानेउ प्रभु बिसिख कराला। उठी उदधि उर अंतर ज्वाला॥3॥


ऐसा कहकर श्री राम जी ने धनुष चढ़ाया। यह मत लक्ष्मणजी को बहुत अच्छा लगा। भयानक (अग्नि) बाण के संधान से समुद्र के हृदय के अंदर अग्नि की ज्वाला उठी


दुष्ट के साथ समझौते नहीं होते दुष्ट के दम्भ का दलन अपार शक्ति द्वारा किया जा सकता है


इसी के आगे आचार्य जी ने क्या बताया


प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥

ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥

को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने क्या समझाने का प्रयास किया

जानने के लिये सुनें

25.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 25 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 राम तेज बल बुधि बिपुलाई। सेष सहस सत सकहिं न गाई॥

सक सर एक सोषि सत सागर। तव भ्रातहि पूँछेउ नय नागर॥1॥



प्रस्तुत है लघुवासस् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 25 नवम्बर 2022 

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  484 वां सार -संक्षेप

* हल्के और निर्मल वस्त्र धारण करने वाला



हम लोग मनोजवं मारुततुल्यवेगमं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं  हनुमान जी की शरण में हैं हनुमान जी की शरण में आकर ऊर्जा प्राप्त कर अपने कर्म और करण की ओर उत्थित हों


आत्मबल सारे बलों का सिरमौर है

भक्ति का अर्थ समर्पण है लेकिन समर्पण का अर्थ लेकिन निष्क्रियता नहीं है

निष्क्रिय समर्पण बोझ है अपने अन्दर के दम्भ को समाप्त करने वाला समर्पण शक्ति है


हमारे यहां का उपासना का स्वरूप शक्ति प्राप्त करने का है


भयानक परिस्थितियों को भांपकर उसके अनुसार कार्य करके हमारे इष्ट देवताओं ने जो इतिहास बना दिया है वह हमें प्रेरित करने के लिये पर्याप्त है


आज भी रावणत्व के उत्पातों को समाप्त करने के लिये हमें अपने रामत्व को जगाना होगा


मानस में प्रवेश कर शक्ति बुद्धि विचार अर्जित करें

धन आवश्यक है लेकिन वह स्व के लिये हो स्व की अनुभूति करें प्रत्येक क्षण


हम एक एक व्यक्ति शक्ति का पुंज बनकर उभरेंगे

भारत के उज्ज्वल भविष्य से ही विश्व का भविष्य उज्ज्वल होगा


आइये चलते हैं सुन्दर कांड में

जहां  रावण के प्रमुख दूत


 शुक रावण को समझा रहे हैं





द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।

दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि॥54॥


अस मैं सुना श्रवन दसकंधर। पदुम अठारह जूथप बंदर॥

नाथ कटक महँ सो कपि नाहीं। जो न तुम्हहि जीतै रन माहीं॥2॥

...

शुक की अन्तर्कथा अद्भुत है



पूर्व जन्म में शुक एक वेदज्ञ एवं ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण था वह  वानप्रस्थियों की विधि से वह अपने धर्म-कर्म करते हुए वन में रहता था | यज्ञों के माध्यम से सदैव देवताओं की सहायता करने वाला वह ब्राह्मण राक्षसों का विरोधी था, जिसके परिणाम स्वरूप वज्रद्रंष्ट नामक एक  राक्षस शुक्र से बदला लेने का अवसर ढूंढने लगा | एक दिन उस ब्राह्मण के आश्रम में अगस्त्य मुनि पधारे और उनसे भोजन कराने का आदेश दिया और स्वयं स्नान करने चले गए। अच्छा अवसर जान करके बज्रद्रष्ट अगस्त्य के वेश में उस ब्राह्मण के पास पहुंचा और मांसाहार कराने का आदेश दिया | ब्राह्मण ने उस राक्षस को अगस्त्य मुनि समझ मांसाहार की व्यवस्था की | अपना प्रयोजन सिद्ध करके वह राक्षस अंतर्ध्यान हो गया, और जब अगस्त्यमुनि भोजन करने बैठे तो अपने समक्ष मांसाहार देख  क्रोधित हो गए और ब्राह्मण को श्राप दे दिया कि हे दुष्ट तूने मेरे समक्ष राक्षसी भोजन परोसा है अतः तू राक्षस हो जाय | ब्राह्मण ने निवेदन किया कि हे मुनिवर यह भोजन आप के आदेश अनुसार ही बना है | तब अगस्त्यमुनि ने ध्यान लगाकर उस राक्षस के क्रियाकलाप को जाना | और ब्राम्हण से कहा कि तू राक्षस योनि में जन्म तो लेगा लेकिन भगवान राम के दर्शन मात्र से तेरे साररे पाप समाप्त हो जायेंगे  

वही ब्राह्मण शुक राक्षस हुआ


(स्रोत अध्यात्म रामायण गीता प्रेस)


आन्तर्कथाओं का भी अध्ययन करें जिनसे हमें भारतीय संस्कृति का बहुत विस्तार मिल जायेगा


रावण उद्दंड है रावण सचिव से लक्ष्मण का पत्र पढ़वाता है


सुनत सभय मन मुख मुसुकाई। कहत दसानन सबहि सुनाई॥

भूमि परा कर गहत अकासा। लघु तापस कर बाग बिलासा॥1॥


आचार्य जी ने राम के नेतृत्व की तरह किसके नेतृत्व को कहा आदि जानने के लिये सुनें

24.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 24 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सुनहु देव सचराचर स्वामी। प्रनतपाल उर अंतरजामी॥

उर कछु प्रथम बासना रही। प्रभु पद प्रीति सरित सो बही॥3॥


प्रस्तुत है ज्ञातृत्व-सलिलनिधि *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 24 नवम्बर 2022 

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  483वां सार -संक्षेप

* ज्ञान का समुद्र


भारत वर्ष अध्यात्म आधारित चिन्तन में मग्न रहता है

विकृत मानसिकता वाले लोगों के बहुत सारे असफल प्रयासों के बाद भी

( इतिहास का पुनर्लेखन आवश्यक है आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि 

भारतीय संस्कृति से संबन्धित विचारों को स्थान स्थान पर हम लोग रखें अच्छाइयों को खोजकर उसे प्रेषित  करें)


 भारतीय संस्कृति के रोम रोम में बसे हैं राम



सब प्रकार के संकटों को सहन कर उसे विष  की तरह पचाकर राम और शिव के संबन्धों को भारतीय जीवन दर्शन में पिरोकर पौरुष पूर्वक समस्याओं का समाधान दिखलाने वाले 

भारतीय संस्कृति के उन्नायक गोस्वामी सहित्यावतार तुलसीदास द्वारा मानस को रचने का उद्देश्य था भारतीय संस्कृति की सेवा इसी संस्कृति का विचार व्यवहार इसी विलक्षण संस्कृति पर आधारित अपने अन्दर स्थित पौरुष पराक्रम की अवधारणा को मात्र सुरक्षित संरक्षित न कर व्यवहृत करना

राष्ट्र के लिये जो जितना समर्पित रहा उसे उतना ही सम्मान मिला


आइये प्रवेश करते हैं सुन्दर कांड में


सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी॥

समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं॥3॥


सीता की खोज में लगे  भगवान् राम स्वयं परेशान हैं लेकिन संकटों से घिरे विभीषण को समझा रहे हैं


यह रामत्व है भगवान् राम ने ही कहा था 


सुनु सुग्रीव मारिहउँ बालिहि एकहिं बान।

ब्रह्म रुद्र सरनागत गएँ न उबरिहिं प्रान॥6॥


विभीषण जी भक्ति मांग रहे हैं


अब कृपाल निज भगति पावनी। देहु सदा सिव मन भावनी॥

एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा। मागा तुरत सिंधु कर नीरा॥4॥


राम जी उन्हें भक्ति देंगे लेकिन माला जपने वाली नहीं शक्ति वाली भक्ति देंगे जिससे अत्याचारी भाई रावण का अन्त हो अस्त व्यस्त लंका को वे संभाल सकें 


सुनु कपीस लंकापति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा॥

संकुल मकर उरग झष जाती। अति अगाध दुस्तर सब भाँति॥3॥

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बतलाया जानने के लिये सुनें

23.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 23नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 तब लगि हृदयँ बसत खल नाना। लोभ मोह मच्छर मद माना॥

जब लगि उर न बसत रघुनाथा। धरें चाप सायक कटि भाथा



लोभ, मोह, मत्सर , मद और मान आदि दुष्ट तभी तक हृदय में निवास करते हैं, जब तक कि धनुष,बाण,  तरकस धारण किए हुए  भगवान् श्रीराम हृदय में नहीं बसते



प्रस्तुत है धुर्य *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 23नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  482वां सार -संक्षेप

* बोझ संभालने के योग्य



हमारे अंदर अपने परिवार अपने परिवेश अपनी जीवनशैली से उत्पन्न सद्भावों के अंकुरित होने पर आये सद्विचारों के कारण ही हम इन सदाचार वेलाओं के प्रति जिज्ञासु और उत्सुक रहते हैं

यद्यपि मार्गान्तरित शिक्षापद्धति और जीवनशैली

के कारण   विश्वास की कमी आई  जिसके कारण विकृत समय प्रबन्धन के चलते बहुत सी अच्छी बातें हमें प्रभावित नहीं करती 


इनमें अतिशयोक्ति नहीं कि सदाचार के लिये संध्या -वन्दन,प्रातःकाल जागरण,सुपाच्य सादगीयुक्त भोजन आवश्यक हैं

अष्टांग योग बहुत महत्त्वपूर्ण है


इन सदाचार संप्रेषणों में निहित तत्त्वों के दर्शन की हमें क्षमता प्राप्त हो आचार्य जी ऐसी कामना करते हैं

भाव जगत में उपस्थित होकर

 अपने मानस को तैयार करें

सदाचार स्वाध्याय मनोयोग चाहता है


मानस का नित्य पाठ करें स्वभाव में परिवर्तन आयेगा

आइये स्वस्थ मानस के साथ मानस में प्रवेश करते हैं

सुन्दर कांड में आगे


श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर।

त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर॥45॥


विभीषण जी से जो प्रश्न भगवान् राम ने पूछे उससे स्पष्ट हो रहा है कि उनमें अपनापन उत्पन्न हो रहा है

फिर विभीषण उपदेशात्मक स्वर में बोल जाते हैं

..तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला। ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला॥3॥...


तब राम जी ने जो उत्तर दिया वो गीता से मिलता जुलता है

सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ॥

जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवै सभय सरन तकि मोही॥1॥

साधुता आने पर  प्राप्य हमें प्राप्त होती हैं


सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी॥

समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं॥3॥


आत्मानुभूति की पराकाष्ठा क्या है राजेश्वारानन्द जी का नाम क्यों आया

आदि जानने के लिये सुनें

22.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 22 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 *चलो चलें राष्ट्र -निर्माण की ओर चलें*



प्रस्तुत है आमोदन *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 22 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  481वां सार -संक्षेप

* प्रसन्न करने वाला



धर्म के मर्म को सदैव प्रेषित करने वाले स्वधर्म का पालन करते हुए एक शिक्षक के रूप में आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं


आचार्य जी कल अयोध्या


(श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर।

त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर॥45॥)


 और छपिया से लौट आये हैं बताते चलें   गोण्डा जनपद के गांव छपिया में स्वामीनारायण  (अक्षरधाम मंदिर से प्रसिद्ध)का आविर्भाव 1781 में  घनश्याम पांडे के रूप में हुआ था। 1792 में, उन्होंने नीलकंठ वर्णी नाम  अपनाते हुए मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में  संपूर्ण भारत  की   यात्रा शुरू की थी


अयोध्या काशी मथुरा चित्रकूट रामेश्वरम द्वारका आदि भारतवर्ष के ऐसे स्थान हैं जहां श्रद्धा के स्वरूप के दर्शन होते हैं श्रद्धा विश्वास से उत्पन्न होती है यही श्रद्धा भक्ति से बलवती होती है बलहीन भक्ति बोझ होती है

भक्ति में शक्ति की अनुभूति कर संकल्प में व्यवहृत करते हुए क्रिया में उसे लायें


राष्ट्र के प्रति संकल्प की अद्भुत अनुभूति कराने का प्रयास अनगिनत महापुरुषों ने किया है


हम हिन्दू आत्मस्थ होकर विचार करें कि संगठित होने का भाव अपने अन्दर क्या ला पा रहे हैं


अंग्रेजियत को लादे समाज को बदलने का संकल्प हमें अपने घर से लेना होगा



वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः वाले भाव में उतरकर आइये प्रवेश करते हैं कल्याणकारी सुन्दर कांड में

जिससे हमारे अन्दर भक्ति भाव अनुरक्ति संयम साधना का प्रवेश हो और हम उठ सकें 


उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत।

जय कृपाल कहि कपि चले अंगद हनू समेत॥44॥

हमारे पास छुपाने के लिये कुछ नहीं है प्रकट करने के लिये सब कुछ है छुपाने से शक्ति का ह्रास होता है



नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता॥

सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा॥4॥

भगवान् राम भावुक हो गये



अस कहि करत दंडवत देखा। तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा॥

दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा॥1॥


अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी। बोले बचन भगत भय हारी॥

कहु लंकेस सहित परिवारा। कुसल कुठाहर बास तुम्हारा॥2॥

विभीषण जी को पहले ही लंकेश कह दिया ताकि उनके अवचेतन मन में यह बात बैठ जाये कि वो लङ्केश हैं

(अवचेतन मन इतना शक्तिशाली है कि उसे जो भी बातें कही जाए, वही बातों को वह सच कर देता है )




तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम।

जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम॥46॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया यतीन्द्रजीत सिंह का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिये सुनें

21.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 21 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है निष्प्रतिद्वन्द्व *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 21 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  480वां सार -संक्षेप

* अनुपम


स्थान :अयोध्या

आचार्य जी आज माता जी बड़े भाईसाहब सुनील जी सपत्नीक अभय प्रताप जी राम कुमार जी के साथ अयोध्या में हैं


आचार्य जी को भाव विचार क्रिया की अद्भुत त्रिवेणी  की जो अनुभूति और अभिव्यक्ति प्राप्त है उसी के कारण इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हमें प्रेरणा मिलती है


सकारात्मक सोच रखें तो यह संसार आनन्दार्णव है

भारतवर्ष में परिवार की अनुभूति सर्वत्र होती है


परिवार का भाव विचार करने योग्य है और अपनी भावी पीढ़ी को सिखाने योग्य है परिवार में आयुवृद्ध लोगों से भी सीखना चाहिये

हमारा आत्मविस्तार होगा तो हमें आनन्द की अनुभूति होगी हमें अच्छाइयों की खोज करनी है बुराइयों को दूर करना है सद्गुण प्राप्त करने के लिये ग्रंथों का सहारा लें

नानाश्रान्ताय श्रीरस्तीति रोहित शुश्रुम।

पापो नृषद्वरो जन इन्द्र इच्चरतः सखा चरैवेति॥”


पुष्पिण्यौ चरतो जङ्घे भूष्णुरात्मा फलग्रहिः ।


शेरेऽस्य सर्वे पाप्मानः श्रमेण प्रपथे हतश्चरैवेति ॥


कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः ।


उत्तिष्ठस्त्रेता भवति कृतं संपाद्यते चरंश्चरैवेति ॥


चरैवेति का सिद्धान्त जीवन से अलग न हो इसका ध्यान दें 





आचार्य जी से आज प्रातः फोन पर जो वार्ता हुई उसके आधार पर जो सुझाव मिले वे अपने युगभारती परिवार के लिये अत्यन्त उपयोगी हैं

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि नित्य निश्चय करके हम लोग  अपने चार पांच भाइयों से संपर्क करके एक दूसरे का कुशलक्षेम पूछें 

  राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य के विषय लेकर मानस के कुछ पक्ष लेकर वेबिनार आयोजित करें

छोटे बच्चों के कार्यक्रम बनायें


आइये चलते हैं मानस में


मानस में हमें जीवन जीने की शैली जीवन के बहुत सारे सिद्धान्त व्यवहार मिलते हैं

यह रचना उस समय हुई जब देश संकटों से घिरा हुआ था और समाधान खोजे नहीं मिल रहे थे


सुन्दरकांड में 



भेद हमार लेन सठ आवा। राखिअ बाँधि मोहि अस भावा॥

सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी॥4॥


लगता है यह मूर्ख हमारा भेद लेने आया है, इसलिए मुझे  लगता है कि इसे बाँध रखा जाए।श्री रामजी ने कहा  तुमने नीति तो अच्छी विचारी, परंतु मेरा प्रण तो है शरण में जो आये उसके भय को हर लेना


संगठन में जब लोग संयुत होते हैं और उन्हें महत्त्व मिलता है तो उन्हें लगता है कि संगठन उन्हीं के भरोसे चल रहा है


जग महुँ सखा निसाचर जेते। लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते॥

जौं सभीत आवा सरनाईं। रखिहउँ ताहि प्रान की नाईं॥4



उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत।

जय कृपाल कहि कपि चले अंगद हनू समेत॥44॥


 श्री राम जी ने हँसकर कहा- दोनों ही स्थितियों में चाहे वह भेद लेने आया हो या शरण में आया हो उसे ले आओ। तब अंगद और हनुमान सहित सुग्रीव जी 'श्री रामजी की जय हो' कहते हुए चले

20.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 20 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रयास हो कि शक्ति बुद्धि के समीप ही रहे, 

प्रयास हो कि युक्ति देशभक्ति में बनी रहे, 

प्रयास हो कि आत्मबोध हर समय बना रहे, 

प्रयास हो वितान शौर्य शील का तना रहे।



प्रस्तुत है हैरिकारि *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 20 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  479 वां सार -संक्षेप

*चोरों के शत्रु



भगवान् राम का केवल यही उद्देश्य होता कि रावण को समाप्त करना है तो बैठे बैठे उसे भस्मीभूत कर देते लेकिन उनका उद्देश्य था  बिखरे हुए समाज को संगठित करना 

त्रेतायां मंत्रशक्तिश्च, ज्ञानशक्तिः  कृते युगे।

द्वापरे युद्धशक्तिश्च, *संघशक्तिः कलौ युगे*।।


कलियुग ही नहीं हर युग में संगठन की आवश्यकता रही है तुलसीदास जी ने भी अनुभव किया कि अंधकार फैला है समाज इस समय बिखरा हुआ है और वह संगठित होकर ही दुष्ट अकबर के शासन से मुक्त हो सकता है तो उन्होंने मानस की रचना कर डाली जिससे वह प्रेरणा ले सके

इसी मानस के संदेश को लेकर हम भी संगठन स्वाध्याय संयम आदि में प्रवृत्त हों यह उद्देश्य है इन सदाचार संप्रेषणों का


भारत भूमि भोग भूमि न होकर आत्म से परमात्म की ओर ले जाने वाली चिन्तन अध्यात्म कर्म धर्म की भूमि है


यहां अवतरित ऋषियों  में संपूर्ण सृष्टि के मर्म को जानने की पात्रता उत्पन्न हो जाती है

हमने संपूर्ण विश्व को अपना परिवार माना संपूर्ण ब्रह्माण्ड को अपना अंश माना


अहं ब्रह्मास्मि दम्भ नहीं विश्वास है


संसार में रहते हुए भी संसार के सत्य को जो जान लेते हैं वे   समस्याओं का समाधान आसानी से कर लेते हैं



The world is too much with us; late and soon,

Getting and spending we lay waste our powers;

कहकर कवि विलियम वर्ड्सवर्थ बता रहे हैं कि सांसारिकता की अधिक मात्रा से हम पशु से भी गये गुजरे हो जाते हैं


वैभव विलास का ही हम जीवन न जियें आत्मनियन्त्रण    आत्मचिन्तन न खोयें इसी के लिये आचार्य जी हमें सचेत करते रहते हैं हमें अन्धकार में अपना दीपक जलाना होगा


हम भी अपने पूर्वजों की तरह पराक्रमी चिन्तक विचारक संयमी मार्गदर्शक सपूत बन सकते हैं



आइये चलते हैं सुन्दर कांड में

विभीषण जी महाराज राम जी के पास पहुंच गये


भेद हमार लेन सठ आवा। राखिअ बाँधि मोहि अस भावा॥

सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी॥4॥


तो राम जी कहते हैं 


कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू।।

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं।।

अपनी शक्ति को नष्ट करके हम शरणागत की रक्षा नहीं कर सकते


विभीषणजी  रामजी की शरण में आ गये हैं अब तो उनका कल्याण निश्चित है



भगवान् राम को अपने भाई लक्ष्मण पर कितना विश्वास है कि


जग महुँ सखा निसाचर जेते। लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते।।

जौं सभीत आवा सरनाई। रखिहउँ ताहि प्रान की नाई।।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अनुराग जी सुनील जी की चर्चा क्यों की पशु खूंटे पर ही मर जायेगा किसने कहा आदि जानने के लिये सुनें

19.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 19 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 अन्तरिक्ष उद्वेलित धरती आकुल व्याकुल 

भोग-भवन निश्चिंत जिंदगी सुविधा-संकुल

अन्तराग्नि उठ जाग भोग-भव भस्मसात कर

 उठ दहाड़ पुरजोर जी रहा क्यों मर मर कर।



प्रस्तुत है वरूथिन् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 19 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  478 वां सार -संक्षेप

*आश्रय देने वाला


भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।

याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्।।2।।


मार्गान्तरित श्रद्धा दुर्दशा को प्राप्त होती है,और हो भी गई

(श्रद्धा- आफताब, निधि- सूफियान )

अपनी अपनी श्रद्धा निधि की संरक्षा करना हमारा धर्म है

उन्हें अनाथ न छोड़ें



विषम परिस्थितियों में अपने को झोंककर तुलसीदासजी ने मानस की रचना की 

श्री रामचरित मानस का उद्घोष है उसकी मूल शिक्षा है कि हम भारत वर्ष की रक्षा शौर्य शक्ति से संपन्न होकर बुद्धि संकल्प के साथ संगठन का महत्त्व समझते हुए करें


मानस का अवगाहन करें इसमें डूब जायें तो द्विगुणित शतगुणित आनन्द की प्राप्ति होगी इसमें अतिशयोक्ति नहीं


स्वान्तः सुखाय में निमज्जित आचार्य जी की अत्यन्त प्रभावकारी वाणी में आज कल हम सुन्दर कांड में प्रविष्ट हैं

रावन जबहिं बिभीषन त्यागा...



जे पद जनकसुताँ उर लाए। कपट कुरंग संग धर धाए॥

हर उर सर सरोज पद जेई। अहोभाग्य मैं देखिहउँ तेई॥4॥


जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ।

ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ॥42॥


 आचार्य जी ने गीतावली की भी चर्चा की उसमें वह प्रसंग देखें

जब रावण ने विभीषण को लात मारी

बताते चलें

वैवस्वत मनु श्राद्धदेव की वंशावली की कड़ी पुलस्त्य ऋषि का विवाह कर्दम ऋषि की नौ कन्याओं में से एक  हविर्भू से हुआ  उनसे  दो पुत्र उत्पन्न हुए -- महर्षि अगस्त्य, विश्रवा 

विश्रवा की दो पत्नियाँ थीं - एक थी  सुमाली एवं  ताड़का की पुत्री कैकसी, जिससे रावण


उत्तम कुल पुलस्ति कर नाती। सिव बिंरचि पूजेहु बहु भाँती॥

बर पायहु कीन्हेहु सब काजा। जीतेहु लोकपाल सब राजा॥



, कुम्भकर्ण उत्पन्न हुए, तथा दूसरी थी इडविडा- जिससे कुबेर तथा विभीषण उत्पन्न हुए।


ऐहि बिधि करत सप्रेम बिचारा।

विभीषण शीघ्र ही समुद्र के इस पार (जिधर श्री रामचंद्रजी की सेना थी) आ गए। वानर सेना ने उन्हें  आते देखा तो लगा कि शत्रु का कोई दूत है


भेद हमार लेन सठ आवा। राखिअ बाँधि मोहि अस भावा॥

सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी॥4॥


राम जी का प्रण है शरणागत के भय को हर लेना

शरणागत की रक्षा वही कर सकता है जो शक्तिसंपन्न है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अटल बिहारी जी का नाम क्यों लिया चीन यूक्रेन रूस का नाम किस प्रसंग में आया

जानने के लिये सुनें

18.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 18 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जय श्री राम जय जय श्री राम 


प्रस्तुत है अनून *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 18 नवम्बर 2022 

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  477 वां सार -संक्षेप

*महान्




निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥


जो व्यक्ति ईश्वरीय संयोगों का अनुभव कर  व्यक्ति से व्यक्तित्व की यात्रा को सफलीभूत करते हैं उनके जन्म और निर्वाण दिवस पूजनीय और स्मरणीय हो जाते हैं जैसे अनेक व्यक्तियों के प्रेरक प्रकाशपुंज राम मंदिर आंदोलन के नायक हिन्दुत्व जागरण के पुरोधा अशोक सिंघल जी का कल निर्वाण दिवस था



वंदन नमन और अभिनंदन उस अनुभूति अभिज्ञा का, 

सुखद संस्मरण जन्मभूमि की अभिनव भीष्म प्रतिज्ञा का ।।



दुष्ट अकबर के शासन में जब नारियां बिकती थीं सनातन धर्म को नष्ट करने का प्रयास चल रहा था घोर निराशा के वातावरण में तुलसीदास एक  आशा की किरण बनकर आये


एहिं कलिकाल न साधन दूजा। जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा।।

रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि। संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि।।


राम का भजन शक्ति प्रदाता है

हमें भी अपने व्यक्तित्व की अनुभूति करने की आवश्यकता है हम पशु से भिन्न हैं मनुष्य के रूप में जन्म लेने का क्या अर्थ यदि मनुष्यत्व की अनुभूति न हो

रुपया पैसा ही संपत्ति नहीं है


जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥3॥..

सद्बुद्धि की बहुत आवश्यकता है और इसके लिये हमें चिन्तन करना चाहिये

हम आत्मस्थ होने की चेष्टा करें और फिर कर्मयोद्धा बनकर सामने आयें


यही हेतु है आचार्य जी का उस मानस कथा, जो तुलसी का व्यक्तित्व है, जो वेद आधारित संस्कृति है, जो कुटिया से महल तक सर्वत्र पहुंच गई, को कहने का जिसमें पुनः आज हम प्रवेश करने जा रहे हैं

सुन्दर कांड में आगे 



जिस सभा में किसी की बोलने तक की हिम्मत नहीं थी उसमें विभीषण कहता है


रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि।

मैं रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि॥41॥



रावन जबहिं बिभीषन त्यागा। भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा॥

चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं। करत मनोरथ बहु मन माहीं॥2॥

पहले तो हनुमान जी की अवज्ञा के कारण सोने की लंका भस्मीभूत हो गई और अब विभीषण के जाने से रावण वैभवहीन हो गया


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया

महाराणा प्रताप और शिवाजी का नाम उन्होंने क्यों लिया  आचार्य जी कहां जा रहे हैं जानने के लिये सुनें

17.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 17 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥

जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥3॥



प्रस्तुत है मानुष*आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 17 नवम्बर 2022 

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  476 वां सार -संक्षेप

*कृपालु




कलिकाल में काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर आदि विकारों का बाहुल्य है लेकिन यह विभिन्न रूपों में विद्यमान ऋषिसत्ता ही है जो क्षणांश ही सही, क्योंकि बाकी समय संसारत्व के कारण भाव विचार क्रिया का सामञ्जस्य बैठाना कठिन होता है, हमें सदाचार सद्व्यवहार सद्विचारों के लिये प्रेरित उत्साहित करती है

संसारत्व से हटकर आर्षचिन्तन को ही हमारे अन्दर प्रवेश कराने के लिये आचार्य जी नित्य हमें इन संप्रेषणों के माध्यम से प्रेरित करते हैं

*आत्मस्वरूप में हम प्रविष्ट होने की चेष्टा करें संगठन का महत्त्व समझते हुए हमारे अन्दर रामत्व का  प्रवेश हो यही तो इन संप्रेषणों का उद्देश्य है*


निश्चेष्ट होकर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है;

न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।..

आइये एक बार फिर से रामचरितमानस का आश्रय लेते हैं जो एक अद्भुत कथा है और इसमें बीच बीच में इतने सूत्र सिद्धान्त तुलसीदास जी देते चलते हैं जो स्वयं में एक एक ग्रंथ के बराबर हैं

सुन्दर कांड में 

रावण दरबार में हम प्रवेश कर गये हैं



रावण पत्नी से अनुरक्त है लेकिन उसके पिता शम्बर से भयाक्रांत है भक्त विभीषण समझा रहे हैं राम क्या हैं 


तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला॥

ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता॥1॥


बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस।

परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस॥39क॥




मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात।

तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात॥39ख॥



माल्यवंत अति सचिव सयाना। तासु बचन सुनि अति सुख माना॥

तात अनुज तव नीति बिभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन॥1॥

लेकिन दुष्ट का स्वभाव है कि उसे दम्भ बहुत होता है


रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ। दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ॥

माल्यवंत गह गयउ बहोरी। कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी॥2॥

माल्यवंत स्वयं चले गये

लेकिन विभीषण नहीं माने

भक्त भयभीत नहीं होता 




अस कहि चला बिभीषनु जबहीं। आयू हीन भए सब तबहीं॥

साधु अवग्या तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी॥1॥





ऐसा कहकर विभीषणजी ज्यों ही चले, त्यों ही सब राक्षस आयुहीन हो गए।  साधु का अपमान तुरंत ही संपूर्ण कल्याण की हानि कर देता है


शम्बर की कितनी पुत्रियां थीं आदि जानने के लिये यह संप्रेषण सुनें

16.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 16 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला॥

ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता॥1॥



प्रस्तुत है विगतभी* आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 16 नवम्बर 2022 

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  475 वां सार -संक्षेप

*निर्भय



इन सार्थक सदाचार संप्रेषणों  को हम केवल सुनें ही नहीं अपितु सुनने के साथ गुनें  मनन करें और कार्यान्वयन के लिये भी उद्यत हों क्यों कि हम लोगों में आचार्य जी समाज को संचेतना प्रदान करने की क्षमता देखते हैं

इस प्रेरक भावयज्ञ का नित्य अवगाहन करते हुए 

हम जिस क्षेत्र में हों उसमें निर्भय होकर योजनाएं बनायें

सकारात्मकता के साथ सोचें भविष्य उज्ज्वल है हम मानस के आधार पर अपने जीवन की रचना करें 


वयं राष्ट्रे जागृयाम, सर्वे भवन्तु सुखिनः आदि सूत्र सिद्धान्तों पर कार्यान्वयन होना ही चाहिये जब हनुमान जी को हम अपना इष्ट मानते हैं तो उन्हें नाराज क्यों करें



 गोस्वामी तुलसीदास ने सुन्दर कांड द्वारा संपूर्ण भारतवर्ष की भावना को आन्दोलित किया उसी सुन्दर कांड में आइये प्रवेश करते हैं



कुछ के चरित्र सांसारिकता के कारण भ्रामक लगते हैं जैसे विभीषण जबकि 

विभीषण की दृढ़भक्ति अद्भुत है

उन्हें राम के चरणों में बहुत विश्वास है

विभीषण को चिरजीविता का वरदान मिला है उनमें हमें सद्गुणों की खोज करनी चाहिये


सोइ रावन कहुँ बनी सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई॥



रावण तो दंभी ठहरा


ग्रह ग्रहीत पुनि बात बस तेहि पुनि बीछी मार।

तेहि पिआइअ बारुनी कहहु काह उपचार॥180॥


फिर भी


अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा॥1॥


पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन॥

जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरूप कहउँ हित ताता॥2॥




जो आपन चाहै कल्याना। सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना॥

अगर आप कल्याण चाहते हैं शुभगति चाहते हैं तो



सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाईं॥3॥

आचार्य जी ने इसकी विस्तृत व्याख्या की

लक्ष्मण जी तो सीता जी के कुंडल नहीं पहचान पाये क्यों कि सीता जी को वे मां के रूप में देखते थे ( ऐसे संबन्ध थे बाद में हमारे संबन्धों को कलंकित करने का काम विदेशी आक्रमणों के बाद बहुत हुआ)


चौदह भुवन एक पति होई। भूत द्रोह तिष्टइ नहिं सोई॥

गुन सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ न कोऊ॥4॥

आचार्य जी ने चौदह भुवनों के नाम बताये


यहां तुलसीदास ने अकबर की ओर भी संकेत किया

 


काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।

सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत॥38॥

..

बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस।

परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस॥39क॥

15.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 15 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।

सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत।।38।।



प्रस्तुत है धुरन्धर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 15 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  474 वां सार -संक्षेप

धुरन्धर =महत्त्वपूर्ण कर्तव्यों से लदा हुआ


हमें सिर्फ धन के अर्जन में ही लिप्त नहीं रहना चाहिये धनार्जन से हटकर हमें चिन्तन यह करना चाहिये कि हमें मानव जीवन क्यों मिला है  हमें अपने को जानने का भी प्रयास करना चाहिये

आत्मशोध आत्मबोध आत्म ज्ञान के पश्चात् आत्मभक्ति का प्रयास करें


चिन्तन एक गहन प्रक्रिया है और मनुष्य को मिली मूल्यवान उपलब्धि है चिन्तन में चिन्ता का कारण प्रविष्ट है

अगर मैं किसी वजह से परेशान हूं तो क्या उस परेशानी को मैं स्वयं सुलझा सकता हूं अपने के साथ दूसरे की भी सुलझा सकता हूं इन भावों का आना चिन्तन कहलाता है अपने अन्दर के विकारों पर ध्यान दें हमारी विद्वत्ता शील का त्याग न करे इस ओर ध्यान दें 

हमारे अन्दर ये भाव आयें इसी के लिये  हमारे हितैषी चिन्तक विचारक मानस -मर्मज्ञ  आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं


आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि बालकांड में 23 वें दोहे से 25 वें दोहे तक पढ़ें जिसमें नाम जप का प्रभाव है उस समय निर्गुण का प्रभाव था 


निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार।

कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार॥ 23॥


राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी॥

नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा॥



राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥

रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्हि बिबाकी॥

सहित दोष दु:ख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा॥

भंजेउ राम आपु भव चापू। भव भय भंजन नाम प्रतापू॥




.....

ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।

रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि॥ 25॥


आइये प्रवेश करते हैं सुन्दरकांड में

रावण को मन्दोदरी की बातें अच्छी नहीं लगीं और वह चापलूसों के बीच आ गया 


सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस

राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥37॥



सोइ रावन कहुँ बनि सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई।।

तब  विचारक चिन्तक भक्त विभीषण का प्रवेश होता है


अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा।।

पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन।।

जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरुप कहउँ हित ताता।।

जो आपन चाहै कल्याना। सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना।।

सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाई।।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने शंकराचार्य जी की चर्चा क्यों की आदि जानने के लिये सुनें


YouTube (https://youtu.be/YzZRHAHbK1w)

14.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 14 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है तरीष आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 14 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  473 वां सार -संक्षेप

तरीष =सक्षम व्यक्ति


स्व सत् की ओर उन्मुख हो यह मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ प्राप्तव्य है यूं तो मन अत्यधिक स्वार्थी होता है अपने ही आनन्द में मग्न रहना चाहता है लेकिन संतवृत्ति वह है जो दूसरे के आनन्द में आनन्द ले

निर्मल चित्त वालों को ही अवतारत्व समझ में आता है

संसार में लिप्त होने पर मलिनता चढ़ जाती है


 स्व को सत् की ओर उन्मुख करने के लिये आचार्य जी नित्य सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हमें  उत्साहित करते हैं

आज कल हम लोग राम चरित मानस में प्रविष्ट हैं


विलक्षण कृति है राम चरित मानस

इसका एक एक शब्द विशिष्ट है  इसमें वेद वेदांग पौराणिक कथानक औपनिषदिक तथ्य स्मृतियां और सबसे महत्त्वपूर्ण तन्त्रशास्त्रीय विधिविधान का समावेश है जिसके कारण ही यदि इसके एक कांड 

सुंदरकांड का पाठ किया जाये तो उस भक्त को हनुमान जी बल प्रदान करते हैं। उसके आसपास  नकारात्मक शक्ति भटक नहीं सकती।  जब भक्त का आत्मविश्वास कम हो जाए या जीवन में कोई काम ना बन रहा हो, तो सुंदरकांड का पाठ करने से सभी काम अपने आप ही बनने लगते हैं।

आचार्य जी ने भी इसकी अनुभूति की है



सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस।

राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास।।37।।

हमें अपने अन्दर गुरुत्व खोजना होगा क्योंकि जब हम किसी अन्य को गुरु मानते हैं और उसमें दोष देखते हैं तो भ्रमित हो जाते हैं

आत्मस्थ होने की चेष्टा करें


  आत्मस्थ होने के लिये आइये चलते हैं मानस में




जासु दूत बल बरनि न जाई। तेहि आएँ पुर कवन भलाई।।

दूतन्हि सन सुनि पुरजन बानी। मंदोदरी अधिक अकुलानी।।

रहसि जोरि कर पति पग लागी। बोली बचन नीति रस पागी।।

कंत करष हरि सन परिहरहू। मोर कहा अति हित हियँ धरहु।।


तासु नारि निज सचिव बोलाई। पठवहु कंत जो चहहु भलाई।।

तब कुल कमल बिपिन दुखदाई। सीता सीत निसा सम आई।।

सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें। हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें।।



राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक।

जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक।।36।।



श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहसा जगत बिदित अभिमानी।।

सभय सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा।।

जौं आवइ मर्कट कटकाई। जिअहिं बिचारे निसिचर खाई।।

कंपहिं लोकप जाकी त्रासा। तासु नारि सभीत बड़ि हासा।।

अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभाँ ममता अधिकाई।।

बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई। सिंधु पार सेना सब आई।।

बूझेसि सचिव उचित मत कहहू। ते सब हँसे मष्ट करि रहहू।।

जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं। नर बानर केहि लेखे माही।।

इसके अतिरिक्त पतावर क्या है?

आचार्य जी ने कमल टावरी जी की चर्चा क्यों की

जानने के लिये सुनें

13.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 13 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 उहाँ निसाचर रहहिं ससंका। जब तें जारि गयउ कपि लंका॥

निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा। नहिं निसिचर कुल केर उबारा।1॥



प्रस्तुत है वयोकर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 13 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  472 वां सार -संक्षेप

वयोकर =जीवन को पुष्ट करने वाला


जब कार्य का क्रम अपने स्वभाव में सहज हो जाता है तो हम कर काम व्यवस्थित रूप से करके आनन्दित होते हैं  व्यक्ति जितना सुयोग्य होता है उतना ही क्रम और व्यवस्था का ध्यान रखता है यही अनुशासन है यह मनुष्य जीवन का विशिष्ट वरदान है और यह अनुशासन उसे सफल बनाने का उपाय भी है



कल राजसूय यज्ञ में भैया विनय अजमानी भैया शशि शर्मा भैया सुरेश गुप्त भैया सुनील जैन भैया अरविन्द भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी भैया मनोज अवस्थी भैया अक्षय

भैया महेश चौहान भैया कृष्ण तिवारी भैया निर्भय सिंह उपस्थित रहे


प्रेम भूषण जी भजन पर जोर दे रहे थे भजन सात्विकता का अभ्यास है सात्विकता है :सूझबूझ के साथ संसार का सामञ्जस्य देखते हुए इस संसार में रहने की तमीज, अच्छा व्यवहार और आचरण


 संघर्ष के समय पीठ दिखाना कायरता है सात्विकता नहीं



अब बिलंबु केह कारन कीजे।

आइये प्रवेश करते हैं सुन्दर कांड में जिस कांड में गोस्वामी राष्ट्रभक्त तुलसीदास  की उस साधना की प्रस्तुति  है जिसके कारण ही कालनेमि के रूप में बैठे अकबर के कारण निराश हुए भारतीय लोगों में आशा का संचार हुआ उन्हें अपनी शक्ति क्षमता की पहचान हुई संगठन का महत्त्व समझ में आया 

नेतृत्व के कारण कभी कभी हम भ्रमित हो जाते हैं अन्यथा सहज रूप से हम वीर पराक्रमी त्यागी तपस्वी हैं 

इसी कारण हम परतन्त्र नहीं हुए आज भी भारत वर्ष सजग है उसे उज्ज्वल भविष्य दिख रहा है


घर से निकला राजकुमार जिसने कष्टों को उपहार के रूप में सहर्ष स्वीकारा ऐसा राम 

 यही राम तो हमारे आदर्श बने


ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल।

तव प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल॥33॥


नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी॥

सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी। एवमस्तु तब कहेउ भवानी॥1॥


उमा राम सुभाउ जेहिं जाना। ताहि भजनु तजि भाव न आना॥

यह संबाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा॥2॥


सुनि प्रभु बचन कहहिं कपि बृंदा। जय जय जय कृपाल सुखकंदा॥

तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा। कहा चलैं कर करहु बनावा॥3॥


अब बिलंबु केह कारन कीजे। तुरंत कपिन्ह कहँ आयसु दीजे॥

कौतुक देखि सुमन बहु बरषी। नभ तें भवन चले सुर हरषी॥4॥


कपिपति बेगि बोलाए आए जूथप जूथ।

नाना बरन अतुल बल बानर भालु बरूथ॥34॥


नख आयुध गिरि पादपधारी। चले गगन महि इच्छाचारी॥

केहरिनाद भालु कपि करहीं। डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं॥5॥


चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे।

मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किंनर दु:ख टरे॥

कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं।

जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं॥1॥


एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर।

जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर॥

12.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 12नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कहु कपि रावन पालित लंका। केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका॥

प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना। *बोला बचन बिगत अभिमाना*॥3॥


प्रस्तुत है वलूल आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 12नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  471 वां सार -संक्षेप

वलूल =शक्तिशाली



.. बोला बचन बिगत अभिमाना॥3॥

भगवान् से प्रार्थना करें कि हम लोगों में भी कभी दम्भ न आये इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि हम सब में किसी न किसी बात पर दम्भ जरूर आता है इसलिये नित्य इसके शमन के लिये इन सदाचार संप्रेषणों का सहारा लें

आइये चलते हैं  सुन्दर कांड में


सीता कै अति बिपति बिसाला। बिनहिं कहें भलि दीनदयाला॥5॥


निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति।

बेगि चलिअ प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति॥31॥


सुनि सीता दु:ख प्रभु सुख अयना। भरि आए जल राजिव नयना॥

बचन कायँ मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही॥1॥


सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं। देखेउँ करि बिचार मन माहीं॥

पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता। लोचन नीर पुलक अति गाता॥4॥


सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत।

चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत॥32॥



बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥

प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥1॥



भगवान् उनको बार-बार उठाना चाहते हैं, परंतु प्रेम में निमज्जित हनुमान जी को उनके चरणों से उठना अच्छा नहीं लग रहा प्रभु का हाथ हनुमान जी के सिर पर है। उस स्थिति को याद करके शिव जी प्रेममग्न हो गये



सावधान मन करि पुनि संकर। लागे कहन कथा अति सुंदर॥

कपि उठाई प्रभु हृदयँ लगावा। कर गहि परम निकट बैठावा॥2॥


कहु कपि रावन पालित लंका। केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका॥

प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना। बोला बचन बिगत अभिमाना॥3॥


साखामग कै बड़ि मनुसाई। साखा तें साखा पर जाई॥

नाघि सिंधु हाटकपुर जारा। निसिचर गन बधि बिपिन उजारा॥4॥



सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई॥5॥



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मियांगंज में चल रहे राजसूय यज्ञ की चर्चा की

जिसमें कल कमल आनन्द जी (पूर्व में  डा कमल टावरी जी 1968 बैच के पूर्व आई ए एस प्रमुख सचिव )और भाग्योदय फाउंडेशन के संस्थापक श्री राममहेश मिश्रा जी आदि उपस्थित रहे

आचार्य जी ने 

भैया यज्ञदत्त जी के सहयोग की चर्चा की

आज लखनऊ से प्रेम भूषण जी महाराज राजसूय यज्ञ में आ रहे हैं

हम भी  आमन्त्रित हैं और  हमारे पास सात्विक संसार में प्रवेश करने का एक अवसर है

11.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 11 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है वन्द्र आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 11 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  470 वां सार -संक्षेप

वन्द्र =पूजा करने वाला



यज्ञ भारतीय संस्कृति का आराध्य इष्ट है

 यज्ञ के बिना  दैनिक जीवन की कल्पना भी असंभव है । यज्ञ की महिमा का वेदों, उपनिषदों, गीता , रामचरित मानस आदि में  विस्तार से वर्णन है


हमें यज्ञ के महत्व को समझकर अपने जीवन जीने की विधि में उसका समावेश करना चाहिये अन्यथा हम कितने भी साधन अर्जित कर लें , हमें सुख और संतोष नहीं मिल सकता

भोग भाव दयनीय स्थिति को दर्शाता है 


मियागंज उन्नाव में कल से राजसूय यज्ञ का शुभारंभ हो गया जिसमें  प्रातः  शुभ मंगल कलश यात्रा हुई कल सुंदरकांड के मर्मज्ञ अत्यन्त मृदु स्वभाव वाले सात्विक पंडित श्री अजय याज्ञिक जी ( जन्म :दारागंज प्रयागराज, प्रायः दिल्ली में रहते हैं )ने सुंदरकांड का  पाठ प्रारंभ किया 


(याज्ञिक गुजराती ब्राह्मणों की एक उपजाति है याज्ञिक का अर्थ है यज्ञ करने और करवाने वाला )


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि युगभारती उन दो बच्चों की पढ़ाई लिखाई का खर्चा उठाए जिनकी चर्चा आज के संबोधन में हुई है


आइये सुन्दरकांड,जो हमें शक्ति भक्ति संयम बुद्धि सेवा संस्कार आदि प्रदान करता है, में प्रवेश करते हैं जिसे भक्ति भाव विचार भावना से ओतप्रोत आचार्य जी हमें सुना रहे हैं 


चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी॥

नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥1॥


मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी॥

चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा॥3॥


नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।

लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥30॥


हनुमान जी ने कहा  आपका नाम रात-दिन पहरा देने वाला है, आपका ध्यान ही किवाड़ है। आंखों को अपने चरणों में लगाए रहती हैं, यही ताला लगा है, फिर प्राण जाएँ तो किस रास्ते से?



चलत मोहि चूड़ामनि दीन्हीं। रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही॥

नाथ जुगल लोचन भरि बारी। बचन कहे कछु जनककुमारी॥1॥


अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना। दीन बंधु प्रनतारति हरना॥

मन क्रम बचन चरन अनुरागी। केहिं अपराध नाथ हौं त्यागी॥2॥


अवगुन एक मोर मैं माना। बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना॥

नाथ सो नयनन्हि को अपराधा। निसरत प्रान करहिं हठि बाधा॥3॥

निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति।

बेगि चलिअ प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति॥31॥

10.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 10 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥

दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी॥2॥


प्रस्तुत है रसज्ञ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 10 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  469 वां सार -संक्षेप

रसज्ञ =कवि



संसार में वैभव के प्रति अनुरक्ति स्वाभाविक तो है लेकिन अनिवार्य नहीं

जिन लोगों के लिये यह वैभव अनावश्यक है वो तत्त्वज्ञ हैं जैसे हनुमान जी

संसार, जो अनेक प्रपंचों से भरा है,में इस तत्त्व को धारण करना कठिन है इसलिये

सहजं कर्म कौन्तेय.....के अनुसार व्यावहारिक जीवन जीते हुए निन्दनीय कार्यों से बचते हुए सेवा की भावना रखें


सेवा किसी की भी हो सकती है  दीन दुःखियों की माता पिता की सहयोगियों की शिक्षकों की क्योंकि अन्ततः इन सबकी सेवा उस स्रष्टा की सेवा है जिसकी सिसृक्षा के कारण ही यह सृष्टि है


यही बात गोस्वामी तुलसीदास जी के रचे ग्रंथों में परिलक्षित होती है


आइये चलते हैं सुन्दरकांड में



स्वर्णमयी लङ्का के दोषों को समाप्त करने का प्रयास हनुमान जी ने उसे भस्मीभूत करके प्रारम्भ कर दिया


पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।

जनकसुता कें आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि॥26॥



मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा॥

चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ॥1॥


तात सक्रसुत कथा सनाएहु। बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु॥

मास दिवस महुँ नाथु न आवा। तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा॥3॥


जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह।

चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह॥


चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी॥

नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥1॥


मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी॥

चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा॥3॥


नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।

लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥30॥


हनुमान जी ने कहा  आपका नाम रात-दिन पहरा देने वाला है, आपका ध्यान ही किवाड़ है। आंखों को अपने चरणों में लगाए रहती हैं, यही ताला लगा है, फिर प्राण जाएँ तो किस रास्ते से?


इसके अतिरिक्त

मियागंज उन्नाव में आज से राजसूय यज्ञ का शुभारंभ होने जा रहा है जिसमें आज प्रातः 9:00 बजे से शुभ मंगल कलश यात्रा प्रारंभ होगी आप सभी सादर अमान्त्रित हैं

9.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 9 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है न्यासिन् आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 9 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  468 वां सार -संक्षेप

न्यासिन् =संन्यासी



अत्यादित्य अद्भुत साहित्यावतार महात्मा योगी चिन्तक  विद्वान ज्ञानी विचारक गोस्वामी तुलसीदास कवितावली में अपने बारे में लिखते हैं


जोगु न बिरागु , जप, जाग ,तप, त्यागु ,

ब्रत, तीरथ न धर्म जानौं ,बेदबिधि किमि है।


    तुलसी-सो पोच न भयो है , नहि ह्वैहै कहूँ,

   सोचैं सब, याके अघ कैसे प्रभु छमिहैं।


मेरें तौ न डरू, रघुबीर! सुनौ , साँची कहौं ,

खल अनखैहैं तुम्हैं, सज्जन न गमिहैं।


    भले सुकृतीके संग मोहि तुलाँ तौलिए तौ,

    नामकेें प्रसाद भारू मेरी ओर नामिहैं।।


द्रोणाचार्य द्वारा पढ़ाये जाने के बाद शिष्यों में युधिष्ठिर 


सत्यं वद । धर्मं चर । स्वाध्यायान्मा प्रमदः । आचार्याय प्रियं धनमाहृत्य प्रजानन्तुं मा व्यवच्छेसीः ।...


याद नहीं कर पा रहे थे 

और कई दिन बाद सत्यं वद याद कर पाये क्योंकि उन्होंने उसे ढाला 

बोलना अलग बात है और जानना अलग बात है 

उपदेश शिक्षा बहिर्मुखी हो जाती है जो हम बोल रहे हैं वैसा करें भी तभी उसका महत्त्व है  आत्मबोध की ओर हमें ध्यान देना चाहिये हम सत्य बोलने के लिये दूसरे को उपदेश दे रहे हैं तो स्वयं भी सत्य बोलें 

तुलसी जी को भक्ति पर बहुत विश्वास था

बहुत ही अडिग विश्वास था 

उनको किसी की चिन्ता नहीं थी 


आचार्य जी ने अपनी एक कविता सुनाई

पक चुके कान सोने की गाथा सुन सुन कर....


जिसक आशय है हम जितना संसार से विरक्त रहेंगे उतना ही स्वर्ण से मुक्त रहेंगे


जैसे हनुमान जी महा विरागी हैं


रावनु सो राजरोगु बाढ़त बिराट-उर,

 दिनु-दिनु बिकल, सकल सुख राँक सो।


नाना उपचार करि हारे सुर, सिद्ध, मुनि,

 होत न बिसोक, औत पावै न मनाक सो।।


 रामकी रजाइतें रसाइनी समीरसूनु ,

 उतरि पयोधि पार सोधि सरवाक सो।।


 जातुधान पुटपाक लंक -जातरूप,

रतन जतन जारि कियो है मृगांक-सो।25।

रावण से सभी त्रस्त थे रावण का राजयोग बढ़ गया था स्वयं उसे भी चैन नहीं था तब हनुमान जी ने सोने की लंका को भस्मीभूत कर दिया





जारि-बारि, कै बिधूम, बारिधि बुताइ लूम,

 नाइ माथो पगनि, भो ठाढ़ो कर जोरि कै।


 मातु! कृपा कीजै, सहिजानि दीजै , सुनि सीय,

  दीन्ही है असीस चारू चूडामनि छोरि कै।।


कहा कहौं तात! देखे जात ज्यों बिहात दिन,

 बड़ी अवलंब ही , सो चले तुम्ह तोरि कै।।


तुलसी सनीर नैन , नेहसो सिथिल बैन,

 बिकल बिलोकि कपि कहत निहोरि कै।


दिवस छ-सात जात जानिबे न, मातु! धरू,

 धीर, अरि -अंतकी अवधि रहि थोरिकै।


बारिधि बँधाइ सेतु ऐहैं भानुकुलकेतु

सानुज कुसल कपिकटकु बटोरि कै

8.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 8 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥

तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥2॥



प्रस्तुत है नीवर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 8 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  467 वां सार -संक्षेप

नीवरः =संन्यासी


रामचरित मानस, जिसमें भगवान राम जी

जाकें बल बिरंचि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा॥

जा बल सीस धरत सहसानन। अंडकोस समेत गिरि कानन॥3॥


धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥

हर कोदंड कठिन जेहिं भंजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥4॥

खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली। बधे सकल अतुलित बलसाली॥5॥



 हनुमान जी


सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी॥

संकर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥4॥

   सीता जी आदि आदर्श के मानदंड हैं,का आधार लेकर आचार्य जी हम राष्ट्र -भक्तों को एक संदेश देना चाहते हैं और यह संदेश हमें बड़ा सुस्पष्ट होना चाहिये

संदेश है

समय पर भक्ति विश्वास संयम साधना सहयोग संगठन करने की क्षमता सद्बुद्धि आदि शक्तियों को एकत्र कर विकृति पर 

वज्र प्रहार करना विकृति को भस्मीभूत करना ताकि वह फिर से सिर न उठा सके मनुसाई 

( पुरुषार्थ )की यही परिभाषा है

लंका दहन एक अद्भुत प्रसंग है कवितावली में तो इस पर तॆईस छंद हैं

आइये प्रवेश करते हैं सुन्दरकांड में 


ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहिं मारा। परतिहुँ बार कटकु संघारा॥

तेहिं देखा कपि मुरुछित भयऊ। नागपास बाँधेसि लै गयऊ॥1॥


कपि बंधन सुनि निसिचर धाए। कौतुक लागि सभाँ सब आए॥

दसमुख सभा दीखि कपि जाई। कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई॥3॥


कर जोरें सुर दिसिप बिनीता। भृकुटि बिलोकत सकल सभीता॥

देखि प्रताप न कपि मन संका। जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका॥4॥


कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद।

सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिसाद॥20॥

इसी तरह का बुरा बोलने वाले आज भी हमें दिखते हैं जिन्हें वोट तो चाहिये लेकिन उन्हें अपने राष्ट्र से ही प्रेम नहीं अपनी संस्कृति से प्रेम नहीं

रावण को सुझाव भी हनुमान जी देते हैं


सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी॥

संकर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥4॥

..


सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना। बेगि न हरहु मूढ़ कर प्राना॥

सुनत निसाचर मारन धाए। सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए॥3॥


रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला॥

कौतुक कहँ आए पुरबासी। मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी॥3॥


स्वर्ण लंका को भस्मीभूत कर देना एक तात्विक पक्ष है आज जो धन का स्वरूप हमारे सामने है उसमें हनुमान भक्ति की बहुत आवश्यकता है



बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥

पावक जरत देखि हनुमंता। भयउ परम लघुरूप तुरंता॥4॥


निबुकि चढ़ेउ कप कनक अटारीं। भईं सभीत निसाचर नारीं॥


हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।

अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास॥25॥


पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।

जनकसुता कें आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि॥26॥


जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया॥

ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर। सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर॥1॥

7.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 7 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥

तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥2॥


प्रस्तुत है दर्शक आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 7 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 

 

 

 

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  466 वां सार -संक्षेप

दर्शकः =कुशल व्यक्ति



दम्भ बहुत भयानक होता है यह रावणत्व बहुत हानि पहुंचाता है इसलिये शक्ति अर्जित करें लेकिन सात्विकता में रमी हुई

नित्य इन सदाचार वेलाओं के संप्रेषण के पीछे  उद्देश्य यही है कि हमारी साधना टूटे नहीं

अपनी संस्कृति के प्रति पूर्ण विश्वास करें हम गर्व कर सकें कि हम भारतवर्ष की भूमि पर जन्में हैं 

हम सशक्त भावनाओं विचारों से संपन्न बनें भक्ति शक्ति अर्जित करें गीता राम चरित मानस आदि से हमें यही प्रेरणा मिलती है


मानस का अध्ययन करने के पश्चात् कुछ समय उन घटनाओं चौपाइयों दोहों पर विचार करने में लगायें भाव क्या है कथा क्या है इसे समझें

साहित्यावतार महात्मा चिन्तक विचारक विद्वान मनीषी तुलसीदास की साधना का परिणाम है कि आज भी स्थान स्थान पर मानस का अखंड पाठ होता है तमाम अनुसंधान हो रहे हैं भक्त गाते रहते हैं 



सुन्दर कांड में हनुमान जी को मां सीता का आशीर्वाद मिला



अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥

करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना॥2॥


बेटा तुम अजर (बुढ़ापे से रहित), अमर और गुणों के खजाने हो जाओ

श्री राम जी तुम पर बहुत कृपा करें। 'प्रभु कृपा करें' ऐसा  सुनते ही हनुमान जी पूर्णरूपेण प्रेम में मग्न हो गए

....

और फिर 


नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी॥

खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥2॥


सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना॥

सब रजनीचर कपि संघारे। गए पुकारत कछु अधमारे॥3॥


पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला संग लै सुभट अपारा॥

आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥4॥



कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।

कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि॥18॥



सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना॥

मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥1॥


तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा॥

मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई॥4॥



ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा मन कीन्ह बिचार।

जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार॥19॥



आगे लंका दहन है जिसको आचार्य जी आगे विस्तार से बतायेंगे

6.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 6 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सत्यानुसारिणी लक्ष्मीः कीर्तिस्त्यागानुसारिणी ।

अभ्याससारिणी विद्या बुद्धिः कर्मानुसारिणी ॥


प्रस्तुत है ज्ञान -वस्त्य आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 6 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  465 वां सार -संक्षेप

वस्त्यम् =घर

 सुन्दर कांड के प्रसंग अद्भुत हैं मां सीता के द्वारा हनुमान जी को सोत्साह मिले वरदान को हनुमान जी द्वारा आजीवन ग्रहण करने की पात्रता अद्वितीय है


सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल।

प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल॥16॥



अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥


हनुमान जी को चित्र में वृद्ध दिखाना समझ से परे है वो तो आज भी अजर विद्यमान हैं 

*करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना॥2॥*

निर्भरा भक्ति की बात क्या कहें

हम इसका श्रवण कर रहे हैं यह भगवान् राम का हनुमान जी का हम लोगों को मिला आशीर्वाद है 





मां सीता और हनुमान जी दोनों का परस्पर का संवाद अद्भुत है


आइये इस कांड का श्रवण करते हैं


अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई। प्रभु आयुस नहिं राम दोहाई॥

कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा॥2॥


निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं। तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥ हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना। जातुधान अति भट बलवाना॥3॥



मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा॥

कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा॥4॥


सारे गुण वाले हनुमान जी ने विशाल शरीर प्रकट कर दिया



और फिर छोटा रूप धर लिया

सीता मन भरोस तब भयऊ। पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ॥5॥


मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी॥


मां द्वारा दिया आशीर्वाद तो कवच बन जाता है

बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा॥

अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता॥3॥


मां सीता ने आशीर्वाद दे दिया


आसिष दीन्हि राम प्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना॥1॥


फिर हनुमान जी ने वहां फल खाये और


नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी॥

खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥2॥

5.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 5 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अनुकूलित आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 5 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  464 वां सार -संक्षेप

अनुकूलित =सम्मानित


आइये सुंदर कांड में पुनः प्रवेश करते हैं



सुन्दर कांड का पाठ मात्र दुःख के निवारण हेतु ही नहीं करें अपितु हनुमान जी के  चरित्र के सार तत्त्व को ग्रहण करें इसी कांड में हम मां सीता में आत्मविश्वास, विषम परिस्थितियों से जूझने की बौद्धिक मानसिक क्षमता, मातृत्व,संयम,दृढ़ता  आदि की झलक भी पाते हैं


सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा॥

अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की॥4॥

कथा में आगे..

हनुमान जी ने संकेतों से ही समझ लिया क्यों कि वो बहुत बुद्धिमान हैं 


जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवन सुत बिदा कराई॥

करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ॥3॥

सीता जी अपने पैरों में देख रहीं थीं क्यों कि आस पास तो राक्षस ही राक्षस हैं उन्हें क्यों देखतीं 

निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन।

हनुमान जी में मातृ भाव जाग्रत हो गया 

परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन॥8॥


तरु पल्लव महँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई॥

तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा॥1॥

सीता जी में भरपूर आत्मशक्ति है उसकी झलक देखिये 


सठ सूनें हरि आनेहि मोही। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही॥5॥


तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर॥

चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी॥1॥



जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई॥

सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना॥2॥



रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दु:ख भागा॥

लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई॥3॥


राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की॥

यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी॥5॥



बचनु न आव नयन भरे बारी। अहह नाथ हौं निपट बिसारी॥

देखि परम बिरहाकुल सीता। बोला कपि मृदु बचन बिनीता॥4॥


आचार्य जी ने परामर्श दिया 13 वें से 17 वें दोहे तक का पारायण करें 

कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास

जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास॥13॥...



आचार्य जी ने कल कानपुर में संपन्न हुए एक कार्यक्रम की चर्चा की जिसमें आचार्य जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी और भैया अक्षय उपस्थित थे

आचार्य जी ने हम युग भारती सदस्यों को परामर्श दिया कि शुद्ध आत्मीय भाव से  एक दूसरे के संपर्क में रहें

4.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 4 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥

कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू॥


प्रस्तुत है मर्षिन् आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 4 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  463 वां सार -संक्षेप

मर्षिन् =धैर्यशील

स्थान :उन्नाव 


हमारे धैर्य उत्साह आदि में वृद्धि करने वाले ये सदाचार संप्रेषण हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराते हैं अंश का अंशी से संबन्ध बताते हैं हमें याद दिलाते हैं कि संसार में हम निस्पृह भाव से प्रेमाधारित सेवा भक्ति कर्म के लिये आये हैं कर्म को धर्म बनाने में व्याधिमंदिर अर्थात् शरीर  को कष्ट सहने होते हैं लेकिन इस शरीर को इतना व्याधिग्रस्त न होने दें कि यह विद्रोह करने लगे


सुनि दसकंठ रिसान अति तेहिं मन कीन्ह बिचार।

राम दूत कर मरौं बरु यह खल रत मल भार॥56॥

यह कालनेमि भी राम राम कह रहा था और विभीषण भी हनुमान जी ने कालनेमि को मार डाला और विभीषण से मित्रता कर ली राम नाम कहने में दोनों के भाव में अन्तर था 

भाव और भाषा एक साथ होने पर एक अलग ही परिणाम देते हैं

आइये प्रवेश करते हैं सुन्दर कांड में


बिप्र रूप धरि बचन सुनाए। सुनत बिभीषन उठि तहँ आए॥

करि प्रनाम पूँछी कुसलाई। बिप्र कहहु निज कथा बुझाई॥3॥


सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥

तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥1॥

विभीषण जी ने कहा  हे पवनपुत्र!  मैं यहाँ वैसे ही रहता हूँ जैसे दाँतों के बीच में अभागी जीभ

हे तात! मुझे अनाथ जानकर सूर्यवंशी रामजी क्या कभी कृपा करेंगे


दंभी रावण को यह पसंद नहीं था कि उसकी विधि व्यवस्था में कोई दखल दे  लेकिन विभीषण की राम भक्ति से उसे कोई एतराज नहीं


तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥

अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥2॥


तामसी तन में मन सात्विक है




जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥

सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥3॥

पुनि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही॥

तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता॥2॥


,जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवन सुत बिदा कराई॥

करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ॥3॥


देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥

कृस तनु सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी॥4॥


निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन।

परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन॥8॥

3.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 3 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 तुलसी सरनाम गुलाम है राम कौ जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।

मांगि कै खैबो मसीत को सोइबो लेबे को एक न देबे को दोऊ।


प्रस्तुत है मस्कर -माथ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 3 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  462 वां सार -संक्षेप

मस्कर =ज्ञान

माथ =  मार्ग


इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि इन सदाचार संप्रेषणों में समय की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी उत्साहप्रद सद्विचारों का व्यवस्थित अभिव्यक्तिकरण हो रहा है


तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।

तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग॥4॥


मनुष्य का जीवन देवताओं के जीवन से भी श्रेष्ठ है यदि वह कर्म और उस कर्म के मर्म को समझता रहे जिसकी अनुभूति और अभिव्यक्ति ही धर्म है


धर्म संपूर्ण सृष्टि को धारण करता है सृष्टि का नियमन और नियन्त्रण करता है


अस्त व्यस्त होने पर लयकाल   परिलक्षित होता है


इस अनुभूति के साथ भारत वर्ष की मनीषा विषम परिस्थितियों में भी व्याकुल नहीं होती

आचार्य जी ने यह भी बताया कि राष्ट्र और समाज की वास्तविक शक्ति कौन लोग हैं



छद्मवेशी अकबर की , जिसे बहुत से लोग अपना हितैषी मानते थे बहुत से विद्वान पण्डित उसकी चाटुकारिता में संलग्न थे, तुलसीदास जी ने उपेक्षा की

रामजन्मभूमि की दुर्दशा देखकर तुलसीदास जी ने प्रण किया कि 


(जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।)


जिस प्रकार शिव तांडव स्तोत्र के रचयिता 

ज्ञानार्जन शिवार्चन करने वाले रावण को उसके समर्थकों खर दूषण त्रिशरा सुबाहु आदि को भगवान् राम ने स्थान स्थान पर फैली असंगठित शक्तियों को संगठित करके परास्त किया था उसी प्रकार इस अकबर से राष्ट्र को मुक्त करना है

इसके लिये उन्होंने मानस की रचना की  मानस के 

सुन्दरकांड में हनुमान जी, जिन्हें देशभर में फैले असंगठित लोगों का प्रेममय संगठन करने वाले भगवान् राम पर पूर्ण विश्वास है,का ही सारा कार्यव्यवहार है 

तुलसीदास जी की तरह समर्थ गुरु राम दास जी मालवीय जी अशोक सिंघल जी बूजी के लिये  शक्ति भक्ति विवेक उत्साह के परिचायक हनुमान जी महत्त्वपूर्ण रहे


कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।

राम काज लगि तब अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्वताकारा।।


लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥

मन महुँ तरक करैं कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा॥1


राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥

एहि सन सठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी॥2॥


आचार्य जी ने हनुमान जी की एक और विशेषता बताई कि उन्होंने कालनेमि और विभीषण को पहचानने में कैसे अन्तर किया यही हनुमानत्व हमें धारण करना है राष्ट्र के लिये घातक छद्मवेशियों को हम भी पहचानें


न्याय के लिये अपने बन्धु को दंड देना गलत नहीं चाहे हम कौरव पांडव प्रकरण देख लें अमर विभीषण गलत नहीं थे


पुनि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही॥

तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता॥2॥


जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवन सुत बिदा कराई॥

करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ॥3॥


कल प्रातः अपने पूर्व आचार्य एवं  वर्तमान में ए डी बेसिक( झांसी मंडल) श्री अरुण जी शुक्ल की पूज्य माता जी का आकस्मिक निधन हो गया था । उनकी अंतिम यात्रा उनके यशोदा नगर स्थित आवास से आज प्रातः 9 बजे ड्योढ़ी घाट के लिये प्रारम्भ होगी।

2.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 2 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥




प्रस्तुत है उरुपराक्रम आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 2 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  461 वां सार -संक्षेप

उरुपराक्रम =अत्यधिक शक्तिशाली



हमारे ऋषियों ने विश्व की आयु मापी सत त्रेता द्वापर कलि नाम दे दिये महायुग कल्प मन्वन्तर (मनु +अन्तर =मनु की आयु )प्रलय आदि से परिचित कराया


वर्तमान मे  सातवां मन्वन्तर अर्थात् वैवस्वत मनु चल रहा है. इससे पूर्व छह मन्वन्तर स्वायम्भव, स्वारोचिष, औत्तमि, तामस, रैवत, चाक्षुष बीत चुके हैं और आगे सावर्णि आदि हैं हमारा एक कर्तव्य यह भी है कि हम ऋषिऋण चुकायें

 आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग विस्तार से मानस पीयूष अध्यात्म रामायण आदि का अध्ययन करें और प्रश्नोत्तर भी करें




शक्ति बुद्धि सदाचारमय विचार संयम आत्मविश्वास उत्साह ग्रहण करने के लिये, परिस्थितियों से संघर्ष करने की क्षमता पाने के लिये आजकल हम लोग मनुष्य को मनुष्यत्व प्रदान करने वाले सदाचरिता के शाश्वत अद्भुत ग्रन्थ रामचरित मानस में, जिसे तुलसीदास जी ने बहुत अध्ययन करने के पश्चात् हम लोगों के सम्मुख प्रस्तुत किया,प्रविष्ट हैं जिसके मुख्य पात्र पूर्व में सुग्रीव के सेवक शिवावतार उरुपराक्रम हनुमान जी हैं  जिनसे प्रेरणा लेते हुए सर्वव्यापी दनुजों का समापन करने के लिये हमें अपने लक्ष्य निर्धारित करने ही होंगे

कल से हम लोग सुन्दरकांड में प्रविष्ट हैं 

सुन्दरकांड में हनुमान जी, जिन्हें देशभर में फैले असंगठित लोगों का प्रेममय संगठन करने वाले भगवान् राम पर पूर्ण विश्वास है,का ही सारा कार्यव्यवहार है अखण्ड विश्वास से ही आत्मशक्ति आती है 


जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥

सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥


तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥

कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥3॥


जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा ॥

सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥4॥


राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।

आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान॥2॥


निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई॥

जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥1॥


ताहि मारि मारुतसुत बीरा। बारिधि पार गयउ मतिधीरा॥

तहाँ जाइ देखी बन सोभा। गुंजत चंचरीक मधु लोभा॥3॥



जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥

मुठिका एक महा कपि हनी।

ऐसे हैं हनुमान जी किस समय कौन सा कार्य करना उनसे प्रेरणा ले सकते हैं हम लोग 


 रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥2॥

1.11.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 1 नवम्बर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 *हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम*।

*राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम*॥ 1॥

राम काज करने में राष्ट्र कार्य करने में समाज सेवा करने में जो लोग संलग्न हैं वो विश्राम की बात  सोचें भी नहीं अन्त तक इनमें लगे रहें 


प्रस्तुत है इन आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 1 नवम्बर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  460 वां सार -संक्षेप

इन =योग्य


अत्यन्त प्रेरक लाभकारी आनन्द देने वाले इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य ही है कि हम राष्ट्र भक्त बनें सतर्क दृष्टि के साथ सेवाभावी बनें स्वाध्यायी बनें


आइये राम कथा में प्रवेश करते हैं जो



तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥

भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥


रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई॥

सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि॥



रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।

तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥ 31॥

है 

पञ्चम सोपान राम कथा का शीर्ष स्वरूप है क्योंकि यहां कथा में शिवत्व सशक्त रूप में पूरी तरह से सम्मिलित हो गया है    राम और हनुमान


सुन्दर कांड का नाम सुन्दर क्यों?

यह प्रश्न है


लंका त्रिकूट पर बसी हुई थी। त्रिकूटाचल  पर तीन पर्वत थे। पहला सुबैल पर्वत,जहां युद्ध हुआ था, दूसरा नील पर्वत जहां राक्षसों के महल थे और तीसरा सुंदर पर्वत जहां अशोक वाटिका थी।



एक किंवदंती के अनुसार  हनुमान जी की माता उन्हें प्यार से “सुंदरा” कहकर पुकारती थीं इसीलिए  इस भाग का नाम सुन्दरकाण्ड हो गया

हनुमान जी ने यहीं से अपना प्रभाव दिखाया है


इन प्रश्नों में न उलझकर भावमय होकर इसमें रमें इसका श्रवण करें तभी हमें शतगुणित आनन्द प्राप्त होगा



शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं

ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदांतवेद्यं विभुम् ।

रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं

वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम् ॥ १ ॥


नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये

सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा ।

भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे 

कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च ॥ २ ॥


अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं

दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं

रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥ ३ ॥


जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा । तासु दून कपि रूप देखावा ॥

सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा । अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा ॥ ५ ॥