Llप्रस्तुत है गर्ह्यवादिन् -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 31 -01- 2023 का सदाचार संप्रेषण
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*551 वां* सार -संक्षेप
1 गर्ह्यवादिन् =दुर्वचन बोलने वाला व्यक्ति
जब मनुष्य रुचियां विकसित कर लेता है और उनमें रत हो जाता है तो सांसारिक प्रपंचों में उलझने के बाद भी ऊबता नहीं है संसारेतर चिन्तन भी एक रुचि है
कविं पुराणमनुशासितार
मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः।
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप
मादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।।8.9।।
ऐसा पुरुष अन्त समय में बिना विचलित हुए योगशक्ति से भृकुटी के बीच में प्राणों को अच्छी तरह से प्रविष्ट करके उस परम दिव्य पुरुष को ही प्राप्त होता है।रचनाकार अद्भुत है विकृत मनुष्य पशु से भी बदतर हो जाता है स्वार्थ के सागर में परमार्थ का चिन्तन भगवान् की ही कृपा है
आनन्द देने वाले संसारेतर चिन्तन के लिये ही हम इन सदाचार संप्रेषणों को सुनने की प्रतीक्षा करते हैं और इन्हीं संप्रेषणों के कारण हम अपनी समस्याओं का निदान खोज पाते हैं राष्ट्रोन्मुखी जीवन जीने के मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं खाद्य अखाद्य का निर्धारण कर पाते हैं साधन साधना में क्या महत्त्वपूर्ण है इसे जान पाते हैं हमें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की महत्ता समझ में आती है
आइये चलते हैं लंका कांड में
सीता प्रथम अनल महुँ राखी। प्रगट कीन्हि चह अंतर साखी॥7॥
तेहि कारन करुनानिधि कहे कछुक दुर्बाद।
सुनत जातुधानीं सब लागीं करै बिषाद॥108॥
आचार्य जी ने दुर्बाद की व्याख्या करते हुए बताया कि
राम के दो रूप हैं
राजा राम त्यागी तपस्वी संयमी संगठनकर्ता सिद्धान्तवादी वीर पराक्रमी हैं
और परमात्मा राम आत्मस्थ है आत्मज्ञ हैं रावण भी मरकर उनमें समाहित हो जाता है
तासु तेज समान प्रभु आनन।
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिये सुनें