31.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 31 -01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 Llप्रस्तुत है गर्ह्यवादिन् -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 31 -01- 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  *551 वां* सार -संक्षेप

1 गर्ह्यवादिन् =दुर्वचन बोलने वाला व्यक्ति



जब मनुष्य  रुचियां विकसित कर लेता है और उनमें रत हो जाता है तो सांसारिक प्रपंचों में उलझने के बाद भी ऊबता  नहीं है संसारेतर चिन्तन भी एक रुचि है


कविं पुराणमनुशासितार


मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः।


सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप


मादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।।8.9।।

ऐसा पुरुष अन्त समय में बिना विचलित हुए  योगशक्ति से भृकुटी के बीच में प्राणों को अच्छी तरह से प्रविष्ट करके उस परम दिव्य पुरुष को ही प्राप्त होता है।रचनाकार अद्भुत है विकृत मनुष्य पशु से भी बदतर हो जाता है स्वार्थ के सागर में परमार्थ का चिन्तन भगवान् की ही कृपा है 


आनन्द देने वाले  संसारेतर चिन्तन के लिये ही हम इन सदाचार संप्रेषणों को सुनने की प्रतीक्षा करते हैं और इन्हीं संप्रेषणों के कारण हम अपनी समस्याओं का निदान खोज पाते हैं राष्ट्रोन्मुखी जीवन जीने के मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं खाद्य अखाद्य का निर्धारण कर पाते हैं साधन साधना में क्या महत्त्वपूर्ण है इसे जान पाते हैं हमें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की महत्ता समझ में आती है

आइये चलते हैं लंका कांड में


सीता प्रथम अनल महुँ राखी। प्रगट कीन्हि चह अंतर साखी॥7॥


तेहि कारन करुनानिधि कहे कछुक दुर्बाद।

सुनत जातुधानीं सब लागीं करै बिषाद॥108॥


आचार्य जी ने दुर्बाद की व्याख्या करते हुए बताया कि 

राम के दो रूप हैं 

राजा राम त्यागी तपस्वी संयमी संगठनकर्ता सिद्धान्तवादी वीर पराक्रमी हैं

और परमात्मा राम आत्मस्थ है आत्मज्ञ हैं रावण भी मरकर उनमें समाहित हो जाता है

तासु तेज समान प्रभु आनन।

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिये सुनें

30.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 30 -01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है गीःपति ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 30 -01- 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  *550 वां* सार -संक्षेप

1 विद्वान् पुरुष (गीष्पति, गीर्पति भी )



सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥

बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥3॥


सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें॥6॥

ऐसे धर्ममय रथ पर आरूढ़ होकर ताकि कोई शत्रु हमारे सामने टिक ही न सके , राष्ट्रोन्मुखी जीवन जीते हुए, समस्याओं का डटकर मुकाबला करते हुए हम अखंड भारत के उपासक अपने जीवन में आगे बढ़ें

इन सदाचार संप्रेषणों का मूल भाव यह है जहां हम संसारेतर चिन्तन में रत होते हैं अन्यथा दिन भर तो खीज रीझ बनी रहती है 

भगवान् राम की परिस्थितियां तो बहुत ही विषम थीं तब भी उन्हें विजय मिली क्योंकि वे कभी साधनों के पीछे नहीं भागे उन्होंने साधना का सहारा लिया

*जानता स्वर्णनगरी है यह*

*पर ओढ़े सीतारामी हूं*


हम युगभारती सदस्यों के साथ साथ इन सदाचार संप्रेषणों के अन्य श्रोताओं के बीच आत्मीयता का भाव परमात्मा की अद्भुत लीला और व्यवस्था है


ॐ सह नाववतु।

सह नौ भुनक्तु।

सह वीर्यं करवावहै।

तेजस्वि नावधीतमस्तु

मा विद्विषावहै।

ॐ शान्तिः! शान्तिः!! शान्तिः!!!-श्वेताश्वतर उपनिषद्


हमें सहयोग संगठन का उपक्रम लगातार करना है

अपने सनातन धर्म पर पूर्ण विश्वास रखते हुए रावणत्व पर  बिना भयभीत हुए गहरी दृष्टि रखें सावधानी रखें


अब सोइ जतन करहु तुम्ह ताता। देखौं नयन स्याम मृदु गाता॥

तब हनुमान राम पहिं जाई। जनकसुता कै कुसल सुनाई॥1॥


हम प्रवेश कर चुके हैं लंका कांड में

अंगद विभीषण और हनुमान जी सीता जी को लेने जाते हैं

बहु प्रकार भूषन पहिराए। सिबिका रुचिर साजि पुनि ल्याए॥

ता पर हरषि चढ़ी बैदेही। सुमिरि राम सुखधाम सनेही॥4॥

पालकी में बैठीं सीता जी खुश हैं जब कि विमान में  उस दुष्ट,जिसका वो काल बन गईं,के साथ बैठने पर दुःखी थीं


रामदल ने धैर्य की मूर्ति  मां सीता जी के प्रत्यक्ष दर्शन किये

आचार्य जी ने *सीता जी का अग्निप्रवेश*  हमारी समझ से परे इस अत्यन्त गूढ़ विषय की ओर संकेत किया

इस तत्त्व का स्पष्ट दर्शन अत्यन्त कठिन है

29.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 29 -01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।

किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥ 30(ख)॥


प्रस्तुत है गीर्पति ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 29 -01- 2023 का  सदाचार संप्रेषण


(मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई॥

सो जानब सतसंग प्रभाऊ। लोकहुँ बेद न आन उपाऊ॥3॥

कीरति =कीर्ति, भूति =ऐश्वर्य)

 

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  *549 वां* सार -संक्षेप

¹ विद्वान् पुरुष (गीष्पति भी )


इन संप्रेषणों को सुनते समय हम संसारेतर भाव में रहते हैं



ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति।


निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते।।5.3।।


किसी से द्वेष न रखने वाला और न किसी की आकांक्षा करने वाला पुरुष  सदैव संन्यासी ही समझा जाये क्योंकि  द्वन्द्वों से दूर पुरुष बड़ी आसानी से बन्धन मुक्त हो जाता है।।

एक सहज अवस्था लगती है कि कर्म फल की न इच्छा की जाये न कर्म फल से घृणा की जाये

लेकिन है कठिन


सुख-दुख के इक परे परम सुख तेहि में रहा समाई


उलझनों में हमें गीता मानस का सहारा लेना चाहिये हम लेखन -योग भी कर सकते हैं

अपने उद्देश्य को बड़े से बड़ा बनायें राम राज्य की परिकल्पना करें और उसके लिये सन्नद्ध हों भावों को गहरा रखें प्रतिभा निखारें 


पावन मेरा देश भावन मेरा देश

( *अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं*  से, प्रथम कविता ) को उद्धृत करते हुए आचार्य जी कहते हैं कि हम अपने अस्तित्व की अनुभूति करते हुए अपनी मेधा जाग्रत करें 

हम राष्ट्र की सेवा में रत हों

और अनुवर्तन प्रत्यावर्तन पर विचार करें


किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं।

हमारी जन्मभूमि थी यही, कहीं से हम आए थे नहीं।

..

वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य संतान।

जिएँ तो सदा उसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष।

निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष।


आइये चलते हैं लंका कांड में


नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।

लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥30॥

इस तरह ध्यान मग्न मां सीता को हनुमान जी विजय की सूचना दे देते हैं

सब बिधि कुसल कोसलाधीसा। मातु समर जीत्यो दससीसा॥

मां सीता को समझ में नहीं आ रहा कि हनुमान जी को इस उत्तम समाचार के लिये क्या दें

निस्पृह वैरागी हनुमान जी को तो आत्मीयता श्रद्धा विश्वास प्रेम ही चाहिये


सुनु मातु मैं पायो अखिल जग राजु आजु न संसयं।

रन जीति रिपुदल बंधु जुत पस्यामि राममनामयं॥



हनुमान जी तो भगवान् राम की और सेवा करना चाहते हैं

भगवान् राम जब अपनी मानव लीला बन्द करना चाहते हैं तो भी मातृभूमि अयोध्या सूनी न रहे हनुमान जी को रुकने का आदेश देते हैं

आज भी, में वो विराजमान हैं

28.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 28 -01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 जब जब नाथ सुरन्ह दुखु पायो। नाना तनु धरि तुम्हइँ नसायो॥4॥


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।


अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।



प्रस्तुत है चामीकरप्रख्य   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 28 -01- 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  *548 वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं इनको सुनने के लिये हमें अपने समय का समायोजन अवश्य करना चाहिये क्यों कि ये हमें सात्विकता की ओर उन्मुख करते हैं 


श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।

किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥ 30(ख)॥

उपासना और उपास्य की लीला अद्भुत है

रामकथा हमें आनन्द तो देती ही है यह परिस्थितियों के आने पर शौर्य शक्ति का प्रदर्शन करने के लिये भी है


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥



हम कितने भी ज्ञानी हों लेकिन संसार का गुढ़ रहस्य समझना बहुत कठिन है

जब हम उस तत्त्व को जान लेते हैं तो


अंश आत्मा अंशी परमात्मा में लीन होकर अपना अस्तित्व मिटा देता है


*हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराई।* 


*बूँद समानी समुंद मैं, सो कत हेरी जाइ॥*

 अद्भुत है इस संसार का स्वरूप और स्वभाव


आइये चलते हैं लंका कांड में

भगवान् राम ने सहायता करने के लिये सभी को धन्यवाद दिया तो पूरा सैन्य समूह भावमय हो गया भावुकता जितनी अधिक प्रवेश करती है उसमें उतनी शक्ति और भक्ति भी प्रविष्ट हो जाती है


पुनि प्रभु


(जिन्होंने पहले भी कहा था 

कहहु तात केहि भाँति जानकी। रहति करति रच्छा स्वप्रान की॥4॥)


 बोलि लियउ हनुमाना। लंका जाहु कहेउ भगवाना॥

समाचार जानकिहि

(लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥30॥)


 सुनावहु। तासु कुसल लै तुम्ह चलि आवहु॥

आचार्य जी ने इस प्रसंग की विस्तृत व्याख्या की 

ऋषि द्रष्टा वाल्मीकि जी ने  भी इस प्रसंग का उल्लेख किया है


वैराग्य के प्रतीक हनुमान जी ही भगवान् राम में ध्यानस्थ सीता जी का ध्यान हटा सकते हैं



तब हनुमंत नगर महुँ आए। सुनि निसिचरीं निसाचर धाए॥

बहु प्रकार तिन्ह पूजा कीन्ही। जनकसुता देखाइ पुनि दीन्ही॥


हनुमान जी ने दूर से प्रणाम किया

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज भैया प्रदीप का  नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

27.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 27 -01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 मीन कमठ सूकर नरहरी। बामन परसुराम बपु धरी॥

जब जब नाथ सुरन्ह दुखु पायो। नाना तनु धरि तुम्हइँ नसायो॥4॥



प्रस्तुत है अभिनीत ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 27 -01- 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  547 वां सार -संक्षेप


¹ कृपालु, दयालु



यह देश अद्भुत शक्ति भक्ति विरक्ति से संयुक्त है

यह विश्व के कल्याण हित आजन्मरत आयुक्त है


इस देश में जन्में जिएं इस देश हित जूझें सदा 

इस देश की सारी समस्याएं गुनें बूझें सदा


वाणी यज्ञ द्वारा आचार्य जी अपने साथ हम लोगों को भी देश के लिये जूझने के लिये प्रेरित करते हैं हम समाज देश के लिये समस्या न बनें इसके लिये आचार्य जी हमें सन्मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करते हैं

 हम लोग स्वयं तो अपनी समस्याएं सुलझा ही लें समाज और राष्ट्र की समस्याओं को सुलझाने में भी सहायक बन सकें 


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः वाला भाव रखते हुए हम दंभी से विवेकी बनने का प्रयास करें इन सदाचार संप्रेषणों का मूल भाव यही है

हम अध्यात्मवादी लोगों में यह विश्वास रहता है कि जो कुछ भी संसार में घट रहा है सब परमात्मा की लीला है


श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते।


ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम्।।12.12।।


अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ, ज्ञान से श्रेष्ठ ध्यान, ध्यान से भी श्रेष्ठ कर्मफल त्याग, त्याग  से तत्काल  शान्ति की प्राप्ति होती है

हम कर्म करें फल की इच्छा न करें

सीमित आवश्यक साधनों की अपेक्षा रख कर्मरत रहें 

साधनों के स्थान पर साधना में रत होने वाला रामत्व हम धारण करें भगवान राम ने अनगिनत संकट झेले लेकिन अपनी साधना नहीं त्यागी


आइये चलते हैं लंका कांड में


प्रभु के बचन श्रवन सुनि नहिं अघाहिं कपि पुंज।

बार बार सिर नावहिं गहहिं सकल पद कंज॥ 106॥

भगवान् ने सारी सेना का धन्यवाद दिया

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने लंका कांड में आगे क्या बताया 

समाजवादी नेता मुलायम सिंह को पद्म विभूषण से सम्मानित करने पर आचार्य जी क्या बोले जानने के लिये सुनें

26.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 26 -01- 2023 74 वां गणतन्त्र दिवस /वसन्त पंचमी का सदाचार संप्रेषण

 बिसमय हरष रहित रघुराऊ। तुम्ह जानहु सब राम प्रभाऊ॥


प्रस्तुत है प्राप्तकारिन् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 26 -01- 2023

74 वां गणतन्त्र दिवस /वसन्त पंचमी का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  546 वां सार -संक्षेप


¹ सही कार्य करने वाला


वर्तमान कालगणना के अत्यन्त उच्च कोटि के अद्भुत अद्वितीय व्यापक प्रसार वाले विचार विमर्श का आदिक्षेत्र अपना भारत देश है

लेकिन हमने अपनी मानसिक विकृतियों के कारण आत्मबोध विस्मृत कर परधर्म ग्रहण कर लिया

जब कि

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।

धर्म ज्ञान और व्यवहार का समन्वित स्वरूप है धर्म कर्तव्य है धर्म में मनुष्यत्व का बोध है 


आचार्य जी इन संप्रेषणों से हमारा आत्मबोध जाग्रत करने का प्रयास करते हैं ताकि हम जान सकें कि हमारा धर्म ही श्रेष्ठ है हमारे पास संपूर्ण विश्व का कल्याण करने वाले साहित्य का अद्भुत भंडार है

शौर्य प्रमंडित अध्यात्म हमारे लिये आज की आवश्यकता है 

 हमें स्वयं भी इसी तरह के जागरण का प्रयास करना चाहिये क्योंकि हम जानते हैं


अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।


नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।4.40।।


(पतन को प्राप्त विवेकहीन और श्रद्धारहित संशय वाले मनुष्य के लिये न यह लोक  है न परलोक है और न सुख ही है )


इन्द्रियों को संयमित करके अत्यधिक अनुरक्ति के साथ साहित्य के उसी अद्भुत भंडार के एक ग्रंथ श्रीराम चरित मानस को पढ़कर आत्मजागृति संभव है

ऐसे लोगों का संगठन हम लोग बनायें जिन्होंने अपना आत्म जाग्रत कर लिया है ताकि हम राष्ट्रद्रोहियों दुष्टों आदि पर अपना प्रभाव डाल सकें

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः



आइये चलते हैं लंका कांड में


तासु तेज समान प्रभु आनन।

रावण मर चुका है मन्दोदरी व्याकुल है

जुबति बृंद रोवत उठि धाईं। तेहि उठाइ रावन पहिं आईं॥

लेकिन विदुषी मन्दोदरी ज्ञान और चिन्तन में प्रवेश कर गई है


काल बिबस पति कहा न माना। अग जग नाथु मनुज करि जाना॥

विभीषण जो कि एक जीव हैं


बंधु दसा बिलोकि दुःख कीन्हा। तब प्रभु अनुजहि आयसु दीन्हा॥

लछिमन तेहि बहु बिधि समुझायो। (अब विभीषण को राज्य करना है उसे कमजोरी त्यागनी है )बहुरि बिभीषन प्रभु पहिं आयो॥


विभीषण का राजतिलक हो गया 

भगवान् राम ने सभी सहायता करने वालों का धन्यवाद दिया



तब रघुबीर बोलि कपि लीन्हे। कहि प्रिय बचन सुखी सब कीन्हे

25.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 25 -01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥

मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥


बिसमय हरष रहित रघुराऊ। तुम्ह जानहु सब राम प्रभाऊ॥


प्रस्तुत है  आक्रन्दिक ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 25 -01- 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  545 वां सार -संक्षेप


¹ ऐसा व्यक्ति जो किसी दुःखी जन के विलाप को सुनकर तुरन्त उसके पास जाता है



को छूट्यौ इहिं जाल परि कत कुरंग अकुलात।

ज्यौं-ज्यौं सुरझि भज्यौ चहत त्यौं-त्यौं उरझत जात॥-  बिहारी 

कुरंग = हिरन


इस जाल अर्थात् संसार में फंसने के बाद कौन छूटा? तो हे कुरंग अर्थात् जीव ! तुम क्यों अकुलाते हो ?

 जैसे जैसे सुलझकर भागना चाहते हो , वैसे वैसे इस उछल-कूद से उलझते जाते हो (दलदल में फंसे तो लेटने के लिये कहा जाता है )


यह शरीर भी संसार है इसे चलाने के लिये प्राणिक शक्ति रूपी आध्यात्मिक ऊर्जा की जितनी देर अनुभूति होती है उतनी देर किसी तेजस का प्रवाह चलने लगता है सारी सृष्टि स्रष्टा ने व्यर्थ में नहीं रची है यह विषय प्रस्थानत्रयी में विशेष रूप से वर्णित है


ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।


ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।


 ब्रह्मरूप कर्म में समाधिस्थ पुरुष का गन्तव्य भी ब्रह्म ही है

अध्यात्ममय जीवन से समझ में आता है कि जो घट रहा है सब उस स्रष्टा की लीला है


देवता अध्यात्म की ओर उन्मुख करने में सहायता भी करते हैं और सांसारिक प्रपंचों में भी ढकेलते हैं


राम रावण युद्ध लगातार चल रहा है


हिन्दू राष्ट्र हमारा उपास्य है हम दैवीय शक्ति के उपासक हैं आसुरी शक्तियों से हमारा मुकाबला हो रहा है हमारी उपासना जीवन भर चलेगी

मानस और गीता का आधार लेकर हम समाजोन्मुखी जीवन जीने के लिये प्रवृत्त हों

इन संप्रेषणों का प्रभाव हमारे ऊपर कितना पड़ा   इसका आकलन करें

, में


मन्दोदरी जिनका शरीर राक्षस का है लेकिन मन तत्त्व में समाया है कहती हैं



जान्यो मनुज करि दनुज कानन दहन पावक हरि स्वयं।

जेहि नमत सिव ब्रह्मादि सुर पिय भजेहु नहिं करुनामयं॥

आजन्म ते परद्रोह रत पापौघमय तव तनु अयं।

तुम्हहू दियो निज धाम राम नमामि ब्रह्म निरामयं॥



राक्षस रूपी जंगल को जलाने के लिए  साक्षात् हरि को तुमने मनुष्य मान लिया शिव आदि भी जिनको नमस्कार करते हैं

तुम्हारा यह शरीर जन्म से ही दूसरों से द्रोह करने में लगा रहा!

(जैसे


दैवीय शक्ति के उपासक बागेश्वर धाम वाले बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के ईर्ष्यावश पीछे पड़े हैं 

प्रतापगढ़ जिले के             ब्राह्मणपुर गांव में जन्मे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद (उमाशंकर पांडेय ) )


 इतने पर भी जिन निर्विकार ब्रह्म राम ने तुमको अपना धाम दिया, उनको मैं नमस्कार करती हूँ।

24.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 24 -01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 मिलते रहो जुड़ते रहो मुड़कर न देखो  आपदा। 

संयुत रहो गतियुत रहो लभ शौर्य की शुभ संपदा ।।


प्रस्तुत है  सुकल ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 24 -01- 2023


( हम शक्ति शौर्य संकल्प पराक्रम से अभिमंत्रित हों, 

आवेग अपार धार कर  अपने आप नियंत्रित हों। )


 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  544 वां सार -संक्षेप


¹ उदारता से धन देने और सदुपयोग करने में जिस व्यक्ति ने कीर्ति अर्जित कर ली हो


इन संप्रेषणों से हमें कितना लाभ हुआ कितनी ऊर्जा मिली और उस ऊर्जा का कितना सदुपयोग किया इसकी आत्मसमीक्षा अवश्य करें  अहं ब्रह्मास्मि यह अनुभूति आनन्दमय होती है और इसका अभ्यास मोक्षदायी होता है


यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।


समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।।


जो व्यक्ति, अपने आप जो कुछ मिल जाय, उसमें सन्तुष्ट रहता है और वह भी बिना परिणाम की इच्छा के

और जो व्यक्ति ईर्ष्या से रहित, द्वन्द्वों से दूर तथा सिद्धि असिद्धि में सम है, वह कर्म  (   यज्ञायाचरतः कर्म अर्थात् यज्ञ के लिये किया गया कर्म )करते हुए भी उससे  बँधता नहीं

चंचल वृत्ति के व्यक्ति एकरसता से ऊबते हैं जब कि शान्त मन वाले संयम के अभ्यस्त व्यक्ति आनन्दित होते हैं



श्रीराम रावन समर चरित अनेक कल्प जो गावहीं।

सत सेष सारद निगम कबि तेउ तदपि पार न पावहीं॥2॥

जैसा यह राम रावण युद्ध ब्रह्माण्ड में हुआ वैसा अनन्त काल से इस शरीर में भी चल रहा है

रावण मोह  है , आदर्श राम ज्ञान, सीता भक्ति, हनुमान वैराग्य, कुम्भकर्ण अहंकार, विभीषण विकार विचार से संयुत जीव वानरी सेना पार जाने का साधन और प्रवृत्ति लंका दुर्ग है

ब्रह्म द्वारा मोह कटता है और फिर निकलता है ज्ञान ढका जा सकता है समाप्त नहीं होता

मोह समाप्त होने पर रामराज्य की स्थापना होती है 

 अज्ञानियों के प्रति सजग सचेत रहें उनमें लिप्त न हों क्योंकि यह उनकी अज्ञानता ही है कि वे रामचरित मानस को समाज में नफरत फैलाने वाला ग्रंथ बताते हैं उनकी प्रकृति और प्रवृत्ति दोनों दूषित है 

जब कि मानस ने समाज को एकजुट करने का काम किया

मानस आनन्द प्रदान करता है

व्याकुलता समाप्त करता है 

आचार्य जी ने विनयपत्रिका की भी चर्चा की



देहि अवलंब कर कमल, कमलारमन, दमन - दुख, शमन - संताप भारी ।


अज्ञान - राकेश - ग्रासन विधुंतुद, गर्व - काम - करिमत्त - हरि, दूषणारी ॥१॥


वपुष ब्रह्माण्ड सुप्रवृत्ति लंका - दुर्ग, रचित मन दनुज मय - रुपधारी ।


विविध कोशौघ, अति रुचिर - मंदिर - निकर, सत्त्वगुण प्रमुख त्रैकटककारी ॥२॥

और इसकी व्याख्या की

इसके अतिरिक्त आजकल के किन चर्चित विषयों की ओर आचार्य जी ने संकेत किया जानने के लिये सुनें

23.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 23 -01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 श्रीराम रावन समर चरित अनेक कल्प जो गावहीं।

सत सेष सारद निगम कबि तेउ तदपि पार न पावहीं॥2॥



प्रस्तुत है  अतिशयन¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 23 -01- 2023

राष्ट्रीय पराक्रम दिवस



( हम शक्ति शौर्य संकल्प पराक्रम से अभिमंत्रित हों, 

आवेग अपार धार कर  अपने आप नियंत्रित हों। )


 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  543 वां सार -संक्षेप


¹प्रमुख


इन सदाचार संप्रेषणों के आशय को विस्तार से समझकर अपने जीवन के व्यवहार में संपादित करने का हम लोग लक्ष्य बनायें

हम लोग राष्ट्रार्पित विचारों   (जिसमें एक विचार, अखंड भारत का अस्तित्व हो, है) ,सनातन धर्मी विचारों(

अच्छी तरह आचरण में लाये हुए परधर्म से गुणों की कमी वाला अपना धर्म ही श्रेष्ठ है। अपने धर्म में मरना भी कल्याणकारक है और  परधर्म भय को देने वाला है।

हम रामात्मक लोगों के समाज में अनुशासन है जब कि जिस समाज में रावणत्व का प्रवेश है वहां अनुशासन नहीं दिखता )



 को स्वयं पल्लवित करते हुए नई पीढ़ी को इससे अवगत करायें

हमारा चिन्तन राष्ट्रोन्मुखी  और सदाचार से सम्मिश्रित रहे आचार्य जी का यही प्रयास रहता है

गीता में 

मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।


निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः।।3.30।।


ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः।


श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः।।3.31।।


सारे कर्मों का मुझ में संन्यास करके,  आशा और ममता से रहित और  संताप रहित हुए तुम युद्ध करो


मेरे इस मत का जो व्यक्ति दोष-दृष्टि से रहित होकर श्रद्धापूर्वक (    श्रद्धावान् लभते ज्ञानं ) सदा अनुसरण करते हैं, वे  कर्मों के बन्धन से  छूट जाते हैं


लंका कांड में 

रावण, जिसके रावणत्व ने संपूर्ण संसार को परेशान कर रखा था,जब मरता है



तासु तेज समान प्रभु आनन। हरषे देखि संभु चतुरानन॥

जय जय धुनि पूरी ब्रह्मंडा। जय रघुबीर प्रबल भुजदंडा॥


भारतवर्ष की भूमि भक्ति विचार आर्ष परम्परा हमें इस बात को समझने में सहायता प्रदान करती है कि यह संसार वास्तव में अद्भुत है सांसारिक बल काम नहीं देता

भारतवर्ष की भूमि राम रावण का युद्ध है 

उसी रावण की पत्नी मन्दोदरी, जिसमें रामत्व का प्रवेश है,कहती है


भुजबल जितेहु काल जम साईं। आजु परेहु अनाथ की नाईं॥



राम बिमुख अस हाल तुम्हारा। रहा न कोउ कुल रोवनिहारा॥



काल बिबस पति कहा न माना। अग जग नाथु मनुज करि जाना॥

मन्दोदरी का ज्ञान जाग्रत है वो भगवान् को कोस नहीं रहीं


इसी सकारात्मक वैशिष्ट्य के कारण मन्दोदरी चर्चित हैं

इसके अतिरिक्त भैया रामेन्द्र जी और भैया पवन जी कल कहां गये थे जानने के लिये सुनें

22.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 22 -01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 यस्य सर्वे समारम्भाः कामसङ्कल्पवर्जिताः।


ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः।।4.19।।



प्रस्तुत है  अधिश्री ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 22 -01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  542 वां सार -संक्षेप


¹ऊंची प्रतिष्ठा वाला


श्रीराम रावन समर चरित अनेक कल्प जो गावहीं।

सत सेष सारद निगम कबि तेउ तदपि पार न पावहीं॥2॥


भगवान् श्रीराम और रावण के बीच युद्ध का चरित्र यदि सैकड़ों शेष, सरस्वती, वेद एवं कवि अनेक कल्पों तक गाते रहें तब भी उसका पार नहीं पा सकते


सत् प्रवृत्तियों और दुष्प्रवृत्तियों में संघर्ष आज भी चल रहा है अशान्ति अनिश्चय का बोलबाला है

हमारे अतुलनीय साहित्य के चर्चित चर्वित और वर्णित विषयों का अध्ययन कर इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी हमें सन्मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करते हैं ताकि अशान्ति में रहते हुए भी हम शान्ति की अनुभूति कर सकें,  अनिश्चय के वातावरण में भी निश्चय का संकल्प कर सकें,आजीवन हमारे कामना से रहित प्रयास हों जैसे भगवान् राम सब कर्म करते हैं लेकिन उनमें लिप्त नहीं होते (यह भी रामत्व है ),हम सद्ग्रन्थों में रुचि लें, गहनता का अनुभव करें, समस्याओं का हल स्वयं निकाल सकें, हम मनुष्यत्व की अनुभूति कर सकें और हम


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥


भगवान् राम की तरह प्रण लें

और


खैंचि सरासन श्रवन लगि छाड़े सर एकतीस।

रघुनायक सायक चले मानहुँ काल फनीस॥ 102॥

हम प्रवेश कर चुके हैं लंका कांड में

रावण की नाभि में अमृत था उसको सोखने का समय आ गया था

(राम बिमुख अस हाल तुम्हारा। रहा न कोउ कुल रोवनिहारा॥)


सायक एक नाभि सर सोषा। अपर लगे भुज सिर करि रोषा॥

लै सिर बाहु चले नाराचा। सिर भुज हीन रुंड महि नाचा॥

अद्भुत है प्रभु की लीला


रावण मारा गया तमस विलीन हो गया यही संसार का तत्वबोध है


पति सिर देखत मंदोदरी। मुरुछित बिकल धरनि खसि परी॥

जुबति बृंद रोवत उठि धाईं। तेहि उठाइ रावन पहिं आईं

21.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 21 -01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति

(ऋग्वेद 1:64:46)



प्रस्तुत है हनुमान जी की कृपा से सुजन ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 21 -01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  541 वां सार -संक्षेप


¹सद्गुणी


आज मौनी अमावस्या  है ।  इस व्रत में व्रत करने वाले को पूरे दिन मौन व्रत का पालन करना होता है यदि यह संभव न हो तो आज कम से कम वह कटु वचन न बोले


विरक्ति का भाव रखने वाला व्यक्ति संसार को उसी तरह देखता है जैसे तट पर स्थित व्यक्ति समुद्र को देखता है


गीता मानस जीवन के संघर्षों में हमें विजय की प्रेरणा देते हैं


श्रीमद्भगवद्गीता (स्मृतिप्रस्थान ), ब्रह्मसूत्र (न्यायप्रस्थान )तथा उपनिषदों (श्रुतिप्रस्थान )को  प्रस्थानत्रयी कहा जाता है


परमात्मा ने जीवन को क्यों संघर्षमय बनाया ब्रह्मसूत्र में इसका विस्तार से वर्णन है

चिन्तन संयम भक्ति शौर्य स्वाध्याय का सामञ्जस्य हम लोग करें रामत्व का अनुभव करें 

इन संकेतों के पीछे आचार्य जी का आशय रहता है कि स्वाध्याय की ओर हमारी जिज्ञासा बढ़े

गीता में


ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।


सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।2.62।।..



प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते।


प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते।।2.65।।



विषयों के चिन्तन से मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति पैदा हो जाती है। आसक्ति से कामना, कामना से क्रोध, क्रोध से  मूढ़भाव जिससे स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति भ्रष्ट होने पर बुद्धि का नाश हो जाता है फिर मनुष्य का पतन हो जाता है।


वशीभूत अन्तःकरण वाला  साधक रागद्वेष से रहित अपने वश में करी इन्द्रियों से विषयों का सेवन करता हुआ अन्तःकरण की निर्मलता को पाता है। निर्मलता पाने पर साधक के सारे दुःखों का नाश हो जाता है और ऐसे शुद्ध चित्त वाले  की बुद्धि बिना सन्देह  जल्दी ही परमात्मा में स्थिर हो जाती है।

बुद्धि की अस्थिरता इधर उधर भटकाती रहती है


इसको स्थिर करने का मूलमन्त्र अपार शक्ति है एकात्म मानववाद इसी से प्रेरित है और अद्वैत का मूल है

आइये चलते हैं राम (विचार )रावण (विकार )युद्ध में


लंका कांड में


देखि महा मर्कट प्रबल रावन कीन्ह बिचार।

अंतरहित होइ निमिष महुँ कृत माया बिस्तार॥

विकार अन्त तक संघर्ष करता है

रावण ने रामादल को व्याकुल कर दिया

रावण की माया देखिये

उसने बहुत से हनुमान प्रकट किए, जो पत्थर लिए दौड़े। उन्होंने चारों ओर दल बनाकर श्री राम को जा घेरा

फिर


रघुबीर एकहिं तीर कोपि निमेष महुँ माया हरी॥1॥



भगवान् भगवान् हैं हम भगवान् हैं यह दम्भ नहीं करना चाहिये अंश अंशी बनने का जब दम्भ करता है तो रावणत्व प्रवेश कर जाता है  हमें इसकी अनुभूति तो होनी चाहिये लेकिन अभिव्यक्ति नहीं


युद्ध चल रहा है फिर


खैंचि सरासन श्रवन लगि छाड़े सर एकतीस।

रघुनायक सायक चले मानहुँ काल फनीस॥ 102॥

यह अन्तिम प्रहार है राम जी का

पूरे भारत में फैले रावणत्व को समाप्त करने का मौका था और इसके बाद रामराज्य की स्थापना हुई

20.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 20-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 एकनिष्ठ सेवक हूँ मैं , यही मोक्ष मेरा , आ रहा हूँ पीछे तेरे , तू ही ध्येय तारा



प्रस्तुत है हनुमान जी की कृपा से दुराशय -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 20-01- 2023 

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  540 वां सार -संक्षेप


¹दुराशय =कुत्सित विचारों वाला व्यक्ति


सुख दुःख की अनुभूतियों से मुक्त होकर

भाव विचार कार्य को एक सम पर पहुंचाने का प्रयास करने के लिये और 

सद्विचारों को ग्रहण करने हेतु आइये प्रवेश करते हैं इस सदाचार वेला में


जो मनुष्य भोग और ऐश्वर्य में अत्यधिक आसक्त हैं, उनकी परमात्मा में व्यवसायात्मिका बुद्धि नहीं होती

गीता के दूसरे अध्याय में


भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्।


व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयतेll

का यह अर्थ है


वेद तीनों गुणों के कार्य को वर्णित करते हैं

 हे अर्जुन! तुम त्रिगुण से रहित, निर्द्वन्द्व, निरन्तर नित्य  परमात्मा में स्थित हो जाओ , योगक्षेम की इच्छा भी मत रखो और परमात्मपरायण हो जाओ

वेदों और शास्त्रों को तत्त्व से जानने वाले ज्ञानी का सम्पूर्ण वेदों में  कुछ भी प्रयोजन नहीं रहता।

अतः


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


और आसक्ति को त्याग , सिद्धि  असिद्धि में समभाव योग में स्थित होकर तुम  अर्जुन कर्म करो।

फल की इच्छा करने वाले दीन हैं

समत्वबुद्धि से युक्त मनुष्य जीते जी पुण्य पाप  त्याग  देता है। अतः तुम योग में लग जाओ क्योंकि योग ही कर्मों में कुशलता है।


आइये चलते हैं लंका कांड में


मुख मलीन उपजी मन चिंता। त्रिजटा सन बोली तब सीता॥

होइहि कहा कहसि किन माता। केहि बिधि मरिहि बिस्व दुःखदाता॥


मोर अभाग्य जिआवत ओही। जेहिं हौं हरि पद कमल बिछोही l कहने वाली

माया की सीता चिन्तित हैं कि सारे विश्व को दुःख देने वाला कैसे मरेगा


प्रभु ताते उर हतइ न तेही। एहि के हृदयँ बसति बैदेही॥


परंतु प्रभु  बाण इसलिए नहीं मारते कि रावण के हृदय में सीता बसती हैं


त्रिजटा संदेह दूर करती है


अब मरिहि रिपु एहि बिधि सुनहि सुंदरि तजहि संसय महा॥


युद्ध जारी है


राम जी विभीषण की परीक्षा ले रहे हैं कि वो ईश्वरत्व में प्रवेश कर गये हैं या अभी भी उनके अन्दर संसारत्व और ईश्वरत्व का घालमेल है

तब


नाभिकुंड पियूष बस याकें। नाथ जिअत रावनु बल ताकें॥

सुनत बिभीषन बचन कृपाला। हरषि गहे कर बान कराला॥



इसके नाभिकुंड में अमृत है। हे प्रभु ! यह उसी के बल पर जीवित है। विभीषण के वचन सुनते ही भगवान् ने हर्षित होकर हाथ में विकराल बाण लिए.....

19.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 19-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई॥

तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा॥1॥


प्रस्तुत है अखंड राम जप करने वाले हनुमान जी की कृपा से कुलालम्बिन् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 19-01- 2023 

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  *539 वां* सार -संक्षेप


¹परिवार का पालन पोषण करने वाला


संकट के समय समाज का सहारा बन सकें यह रामत्व हमें धारण करना होगा

मध्य वर्ग में रहते हुए उच्च अवस्था को प्राप्त करने के लिये सतत प्रयत्नशील रहें


 और भावक और भावुकों हेतु लिखे गये रामचरित मानस को अपने स्तर से न जानकर अलग स्तर पर जाकर जानने का संकल्प लेकर

जब कि गीता में कहा गया है


यस्य सर्वे समारम्भाः कामसङ्कल्पवर्जिताः।


ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः।।4.19।।

..

(ज्ञानियों के लिये पण्डित अर्थात् बुद्धिमान वह है जिसके सारे कर्म बिना कामना और संकल्प के हैं और जिसके सारे कर्म ज्ञान रूपी अग्नि से दग्ध हैं


जो पुरुष,  कर्मफल की आसक्ति  त्याग कर,  सदैव तृप्त और सब आश्रयों से रहित है वह कर्म में  रत होते हुए भी कुछ नहीं करता है।



जो पुरुष आशा रहित है  जिसके चित्त, आत्मा   संयमित हैं ,  जिसने सब परिग्रह  त्याग दिये हैं ,वह शारीरिक कर्म करते हुए भी पाप को नहीं प्राप्त होता है)






 चलते हैं लंका कांड में चैतन्य के द्योतक राम और   संपूर्ण विश्व को दुःख देने वाले रावण के युद्ध


श्रीराम रावन समर चरित अनेक कल्प जो गावहीं।

सत सेष सारद निगम कबि तेउ तदपि पार न पावहीं॥2॥




में



विकार और विचार का,   सत और असत का संघर्ष ही है राम रावण युद्ध जहां रावण दम्भ तो राम उस दम्भ के निराकरण के आधार



तेही निसि सीता पहिं जाई। त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई॥

सिर भुज बाढ़ि सुनत रिपु केरी। सीता उर भइ त्रास घनेरी॥

ये माया की सीता हैं

राम जी ने कहा था जब तक निशाचरों का नाश मैं न कर दूं तुम अग्नि में प्रविष्ट रहो


मृगछाला से मोहित होने वाली मायामय सीता चिन्तित हैं कि रावण का नाश कैसे होगा मूल सीता निश्चिन्त हैं


इसके अतिरिक्त 

माध्यमिक शिक्षा और मेरुदंड के लिये आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिये सुनें

18.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 18-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है राम काज करिबे को आतुर हनुमान जी की कृपा से जितारि ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 18-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  538 वां सार -संक्षेप


¹ जिसने अपने शत्रुओं / विकारों पर विजय प्राप्त कर ली है

स्थान :उन्नाव


आज कल हम लोग राम चरित मानस 

(गीताप्रेस गोरखपुर के संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार के अनुसार रामचरितमानस को लिखने में गोस्वामी तुलसीदास जी को २ वर्ष ७ माह २६ दिन का समय लगा था और उन्होंने इसे संवत् १६३३ (१५७६ ईस्वी) के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन पूर्ण किया था।) के लंका कांड में प्रविष्ट हैं

हाहाकार करत सुर भागे। खलहु जाहु कहँ मोरें आगे॥

ऐसे रावण ने अपना दबदबा कायम करने के लिये तपस्या द्वारा बहुत सारी शक्ति अर्जित कर ली थी लेकिन उसे असुर कहा जायेगा 


अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।


दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः।।17.5।।


कर्षयन्तः शरीरस्थं भूतग्राममचेतसः।


मां चैवान्तःशरीरस्थं तान्विद्ध्यासुरनिश्चयान्।।17.6।।




जो मनुष्य शास्त्रविधि से रहित घोर तप करते हैं जो दम्भ और अहङ्कार से अच्छी तरह युक्त हैं जो भोगपदार्थ, आसक्ति और हठ से युक्त हैं

जो शरीर में स्थित पाँच भूतों को  तथा अन्तःकरण में स्थित मुझ परमात्मा को भी कष्ट देते हैं

 उन अज्ञानियों को तू असुर समझ


राम रावण युद्ध हमारे अन्दर तो चलता ही है बाहर भी चला करता है 


रावण देवताओं की ओर दौड़ा 


देखि बिकल सुर अंगद धायो। कूदि चरन गहि भूमि गिरायो॥4॥


अंगद भी तपस्वी है उसने रावण को पटक दिया


और भगवान् राम के पास चला गया

रावण फिर अपना बल दिखाने लगा


तब रघुपति रावन के सीस भुजा सर चाप।

काटे बहुत बढ़े पुनि जिमि तीरथ कर पाप॥97॥


श्रीराम जी ने रावण के सिर, भुजाएँ, बाण और धनुष काट डाले। पर वे फिर बहुत बढ़ गए, जैसे तीर्थ में किए हुए पाप बढ़ जाते हैं

(युगभारती भी एक पवित्र तीर्थ है और जब हम इससे जुड़ें हैं तो खान पान सही रखें और अन्य 

विकारों से बचने का प्रयास करें

रामत्व जहां विकसित होता है वहां उत्साह बढ़ता है

भ्रम भय रावणत्व से आता है


युगभारती के सदस्य आपस में संपर्क करते रहें आत्मीयता में कमी न आये

हमारे अन्दर की सात्विकता विकसित हो और ज्ञान का संस्पर्श करे लोक व्यवहार परिवार व्यवहार परमात्मतत्व का ज्ञान मिलजुलकर मनुष्यत्व है इन्द्रियातीत कर्म सदैव याद रहता है


)


युद्ध जारी है


हनुमदादि मुरुछित करि बंदर। पाइ प्रदोष हरष दसकंधर॥

मुरुछित देखि सकल कपि बीरा। जामवंत धायउ रनधीरा॥

जामवंत अतुलित बलशाली है ये रावण के बाबा के समय के हैं

 लेकिन वृद्धावस्था में भी उनमें आवेश की कमी नहीं आई भीष्म भी इसी तरह के उदाहरण हैं

योगविद्या में यह सुस्पष्ट है कि आयु को भी जीता जा सकता है

जाम्बवान ने अपने दल का विध्वंस देखकर क्रोध करके रावण की छाती में लात मारी।

17.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 17-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।


मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।4.11।।



हे पार्थ ! जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूँ क्योंकि सभी मनुष्य  मेरे मार्ग का अनुकरण करते हैं।



प्रस्तुत है चिरजीवी हनुमान जी की कृपा से धीरचेतस् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 17-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *537 वां* सार -संक्षेप


¹ साहसी


यह संप्रेषण हमारा मार्गदर्शन करता है ताकि समस्याएं आने पर हम घबराएं नहीं और उनका डटकर सामना करें हम मनुष्यत्व की अनुभूति कर सकें 

यह सत्य है कि


काव्य शास्त्र विनोदेन, कालो गच्छति धीमताम्।

व्यसनेन च मूर्खाणां, निद्रयाकलहेन वा। ।


मनुष्य का अपनापन जब विस्तार ले लेता है जो पूरी वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानता है तो यह अपनापन उसे मनुष्यत्व की अनुभूति कराने लगता है


संस्कार युक्त विचार  व्यवहार 

भारतवर्ष का वैशिष्ट्य है उसका आत्मस्वरूप है


उसकी 

यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः


समुद्रमेवाभिमुखाः द्रवन्ति।

की तरह की क्षमता जब तक उसकी रही समृद्ध रूप से वह वसुधैव कुटुम्बकम् के स्वरूप को संसार के सामने प्रस्तुत कर सका


लेकिन जब जब उसका सत् स्वरूप विकृत हुआ यानि

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

तब तब

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।


और फिर उसका सत् स्वरूप संसार के सामने प्रकट हो जाता है

अद्भुत प्रतिभासम्पन्न तुलसीदास जी की रामकथा भारतवर्ष की आत्माभिव्यक्ति है

एक उदाहरण 

माल्यवान रावण को पहले विकृत करता है फिर सुधारता है

गौर करें तो ऐसी परिस्थितियां हमारे सामने भी आती हैं

रामकथा तब भी चल रही थी आज भी चल रही है 

मनुष्य रूप में लीला करने वाले भगवान् राम में सरलता शौर्य  

शक्ति तत्व भक्ति भाव विचार आदि सब कुछ है

आइये उस रामत्व को धारण कर, जो रावण को पराजित करेगा ही, चलते हैं लंका कांड में



अस्तुति करत देवतन्हि देखें। भयउँ एक मैं इन्ह के लेखें॥

सठहु सदा तुम्ह मोर मरायल। अस कहि कोपि गगन पर धायल॥3॥


देवताओं को प्रभु राम की स्तुति करते हुए देख  रावण ने सोचा, मैं इनकी समझ में एक हो गया, किंतु इन्हें यह पता ही नहीं कि इनके लिए मैं एक ही बहुत हूँ और कहा- अरे मूर्खों! तुम तो सदा मेरी मार खाने वाले हो। ऐसा कहकर वह देवताओं की ओर दौड़ा


आज से तुलना करें भीड़ आज इनके पीछे कल उनके पीछे

जैसे देवता कभी रावण की स्तुति कर रहे हैं कभी राम की

हमें भीड़ नहीं संगठन बनाना है



देखि बिकल सुर अंगद धायो। कूदि चरन गहि भूमि गिरायो॥4॥

देवताओं की व्याकुलता देख शक्ति के साथ सौम्य स्वभाव रखने वाले अंगद ने रावण को पटका और राम जी की शरण में चले गये


YouTube (https://youtu.be/YzZRHAHbK1w)

16.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 16-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  हनुमान जी की कृपा से ज्ञान -वेशक ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 16-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *536 वां* सार -संक्षेप


¹ ज्ञान का घर



इस सदाचार वेला से हम सत्  असत् का सांकेतिक चिन्तन करते हैं जिसका विस्तार हम अपनी रुचि के अनुसार कर सकते हैं


भाव की भक्ति ज्ञान पैदा करती है और स्वार्थ की भक्ति साधन एकत्र करती है

इस समय ऐसे लोगों की भीड़ है जिनका कोई उद्देश्य नहीं रहता वे व्यर्थ में अपना समय गंवाते रहते हैं   हम उस भीड़ का हिस्सा  न बनें

यह भाव भाषा बुद्धि विचार हमारा होना चाहिये


आचार्य जी ने

विश्व वेदान्त संस्थान  (संस्थापक आनंद जी महाराज ) द्वारा अयोध्या में आयोजित श्री राम अश्वमेध यज्ञ (1 से 4 दिसंबर 2018)के एक पाठ की चर्चा की जिसके सुनने से स्वास्थ्य ठीक रहता है


इसके अतिरिक्त 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि गीता के  तीसरे  और चौथे अध्याय को विचारपूर्वक पढ़ें



आइये चलते हैं लंका कांड में




संभारि श्रीरघुबीर धीर पचारि कपि रावनु हन्यो।

महि परत पुनि उठि लरत देवन्ह जुगल कहुँ जय जय भन्यो॥

हनुमंत संकट देखि मर्कट भालु क्रोधातुर चले।

रन मत्त रावन सकल सुभट प्रचंड भुज बल दलमले




प्रभु राम को याद कर  हनुमान जी ने ललकारकर रावण को मारा। वे दोनों पृथ्वी पर गिरते उठते लड़ते हैं


देवताओं ने दोनों की जय जयकार की


शिव शक्ति और वैष्णवी शक्ति  का सामञ्जस्य इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि ज्ञानी आनन्द में रहते हैं और भक्त मस्त रहते हैं

शिव जी से वरदान प्राप्त कर जब रावण दुष्टता दिखाने लगा तो भगवान् राम की सहायता के लिये शिव जी हनुमान जी का रूप धारण कर उसी रावण से युद्ध करते हैं


 हनुमान पर संकट देखकर रामादल के अन्य योद्धा दौड़े, किंतु  रावण ने सब योद्धाओं को अपने प्रचंड भुजबल से कुचल  मसल डाला।



भगवान् के ललकारने पर प्रचंड वीर  दौड़े। वीरों के प्रबल दल को देखकर रावण ने माया प्रकट कर दी



युद्ध चल रहा है


सुर बानर देखे बिकल हँस्यो कोसलाधीस।

सजि सारंग एक सर हते सकल दससीस॥ 96॥


देवताओं और वानरों को व्याकुल देखकर प्रभु राम हँसे और अपने धनुष पर एक बाण चढ़ाकर  सब रावणों को मार डाला॥


प्रभु छन महुँ माया सब काटी। जिमि रबि उएँ जाहिं तम फाटी॥

रावनु एकु देखि सुर हरषे। फिरे सुमन बहु प्रभु पर बरषे॥

और विस्तार से जानने के लिये यह संप्रेषण अवश्य सुनें

15.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 15-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।


समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।



जो कर्मयोगी फल की इच्छा के बिना  जो कुछ मिल जाय, उसमें सन्तुष्ट रहता है और जो ईर्ष्या से रहित, द्वन्द्वों से दूर तथा सिद्धि  व असिद्धि में सम है, वह कर्म करते हुए भी उससे नहीं बँधता।




प्रस्तुत है  ज्ञानियों में अग्रगण्य हनुमान जी की कृपा से ज्ञान -परु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 15-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *535 वां* सार -संक्षेप


¹ परुः -समुद्र



यह संसार माया और मायापति का अद्भुत संघर्ष है

अच्छे बुरे का संघर्ष चल रहा है राम रावण का युद्ध हर जगह हर समय चल रहा है 

जब माया आच्छादित होती है तो हमें संसार सत्य दिखाई देता है और जितने क्षणों के लिये हम माया से दूर रहते हैं तो संसार असत्य दिखाई देता है

और दिखाई देता है अहं ब्रह्मास्मि

हम शक्ति बुद्धि बल विवेक भक्ति संकल्प चैतन्य अर्जित करें और उसे राष्ट्र के लिये अर्पित करें समाजोन्मुखी जीवन जिएं 

निराशा हताशा भय भ्रम कुंठा क्रोध से दूर रहकर हम शौर्य प्रमंडित अध्यात्म के विश्वासी और उपासक बनें इसके लिये आइये चलते हैं लंका कांड में


उमा बिभीषनु रावनहि सन्मुख चितव कि काउ।

सो अब भिरत काल ज्यों श्री रघुबीर प्रभाउ॥ 94॥



शिव जी पार्वती जी को संबोधित करते हुए कहते हैं  विभीषण जो कभी रावण के सामने आँख उठाकर भी नहीं देख सकता था  अब वही काल के समान उससे भिड़ रहा है। यह है श्री रघुवीर का प्रभाव l



श्री राम का प्रभाव जिस जिस के शरीर में समावेशित हो जाता है शरीर को देवालय मानकर परमात्मा जहां स्वयं प्रतिष्ठित हो जाते हैं तो वह अपार बल बुद्धि शक्ति विवेक सम्पन्न हो जाता है 

 विवेकानन्द, गुरु गोविन्द सिंह, शिवा जी, चन्द्रशेखर आजाद आदि उदाहरण हैं

हम चाह लें तो हम स्वयं भी उस आवेश से आवेशित हो सकते हैं



विभीषण को बहुत ही थका हुआ देखकर हनुमान जी आगे आ गये


रावण के लात पड़ी वह कांपने लगा


भयंकर युद्ध चल रहा है रावण अब भी पराजित नहीं हो रहा है तब


बुधि बल निसिचर परइ न पारयो। तब मारुतसुत प्रभु संभार्‌यो॥


संभारि श्रीरघुबीर धीर पचारि कपि रावनु हन्यो।

14.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 14-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 उपहास सत्य का जब दर-दर होने लगता

गूंजता गगन में वृत्रासुर का अट्टहास

देवता दीन-दुर्बल हो पन्‍थ भटकते हैं

तब युग-दधीचि आकर अड़ जाते अनायास

यह देवासुर संग्राम सत्य है 'सत्ता' का

चिन्तन कहता है इस पर विवश विधाता है।।॥१।।



प्रस्तुत है चिरजीवी हनुमान जी की कृपा से निरस्तराग ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 14-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *534 वां* सार -संक्षेप


¹ जिसने समस्त सांसारिक अनुरागों का त्याग कर दिया है




यह संसार देवासुर संग्राम राम रावण  का समरांगण है

जहां


जिमि जिमि प्रभु हर तासु सिर तिमि होहिं अपार।

सेवत बिषय बिबर्ध जिमि नित नित नूतन मार॥ 92॥


इस संसार में वाल्मीकि व्यास कंबन तुलसीदास विचार हैं और जब हम उनकी कथाओं में प्रवेश करते हैं तो यह व्यवहार है विकारों से मुक्त होने के लिये और विचारों से युक्त होने के लिये ऐसा व्यवहार आवश्यक है


पुराकालीन शिक्षा के कारण हम विश्वगुरु थे

(दुर्बल देशों का जग में कोई सम्मान नहीं होता है)

तब हमारे विचार लोगों के व्यवहार बनते थे धीरे धीरे शक्ति अध्यात्म से दूर हुई शौर्य अध्यात्म इनके अलग अलग विश्लेषणात्मक स्वरूप सामने आये अध्यात्म अकेला हो गया असंसारी पुरुष उस अध्यात्म से आनन्द लेने लगे


संसारी पुरुष उस अध्यात्म का उपयोग नहीं कर पाये इसीलिये कमजोर हो गये


शरीरस्थ लोग प्राणों के मूल्य को नहीं पहचानते मनुष्यत्व से ऐसे लोग दूर रहते हैं इसलिये मनुष्यत्व के उस तत्व का अनुसंधान करें तब देवासुर संग्राम समझ में आयेगा




इसलिये आज का युगधर्म रावणत्वविहीन राम वाली शक्ति उपासना है

*शौर्य प्रमंडित अध्यात्म* अनिवार्य है

राम का प्रभाव यदि अन्दर प्रवेश कर जाता है तो हमारे अन्दर अद्भुत शक्ति आ जाती है  इसके प्रति ही समाज को जागरूक करना है यही समाज सेवा है 

अद्भुत मानसिक शक्ति से हम  भी शक्तिशाली दुष्ट से भिड़  सकते हैं यह रामत्व धारण कर 

आइये चलते हैं उस कृति में जिसे चाहे साहित्यिक दृष्टि से पढ़ें या  ऐतिहासिक दृष्टि से

 लेकिन हमें समझ होनी चाहिये कि उसे किस रूप में पढ़ना है श्रद्धा विश्वास के साथ हमें पढ़ना है 

अब हम राम रावण समरांगण में प्रवेश करें 

लंका कांड में आगे


दसमुख देखि सिरन्ह कै बाढ़ी। बिसरा मरन भई रिस गाढ़ी॥

गर्जेउ मूढ़ महा अभिमानी। धायउ दसहु सरासन तानी॥



भयानक युद्ध चल रहा है


काटे हुए सिर आकाश मार्ग से दौड़ रहे हैं और जय जय की आवाज करके भय भ्रम उत्पन्न कर रहे हैं।


पुनि दसकंठ क्रुद्ध होइ छाँड़ी सक्ति प्रचंड।

चली बिभीषन सन्मुख मनहुँ काल कर दंड॥ 93॥


तब दंभी निराश रावण ने क्रोधित होकर प्रचंड शक्ति छोड़ी। वह  शंकाशील भक्त विभीषण के सामने ऐसी चली जैसे यमराज का दंड हो


यह घटना वाल्मीकि रामायण में भी है जिसमें दिखाया है कि भगवान् राम ने उस शक्ति को छिन्न भिन्न कर दिया

जब कि मानस में

अत्यंत भयानक शक्ति को आता हुए देख व यह विचार कर कि मेरा प्रण शरणागत के दुःख का नाश करना है, प्रभु ने तुरंत  विभीषण को पीछे कर  वह शक्ति स्वयं झेल ली।

तो 

देखि बिभीषन प्रभु श्रम पायो। गहि कर गदा क्रुद्ध होइ धायो॥


राम बिमुख सठ चहसि संपदा। अस कहि हनेसि माझ उर गदा॥


विभीषण रावण का युद्ध शुरु हो गया

13.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 13-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है चिरजीवी हनुमान जी की कृपा से निर्व्यथ ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 13-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *533 वां* सार -संक्षेप


¹ ईमानदार


इस समय अनन्त स्वार्थ वाले

हम अद्भुत संसार में रह रहे हैं जहां विचार और विकार दोनों का अस्तित्व है हम विकारों से किस प्रकार दूर हों और तात्विक शक्तिमय विचारों से युक्त हों इसका प्रयास आचार्य जी प्रतिदिन इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से कर रहे हैं


कभी कभी ऐसा होता है हमारे साधन उतने सुदृढ़  नहीं होते जितनी सुदृढ़ता की आवश्यकता हमारी साधना को होती है

हमारी प्राणिक ऊर्जा हमारे शरीर का साधन है और शरीर उस प्राणिक ऊर्जा को अभिव्यक्त करने का साधन है



और प्राणिक ऊर्जा एक महातत्त्व की उत्पत्ति है जो सभी क्रियारूपों को व्यक्त करने के बाद उसी महातत्त्व में विलीन होने को आतुर है


स्वार्थ और लिप्साओं की पूर्ति के लिये अजेय रहने के लिये लोभी साधक रावण ने बहुत बड़ी साधना   की

जब कि उसे समझना यह था कि इस मायामय संसार को रचने वाला इस संसार को देखकर जब तक आनन्दानुभूति करता है तो चलाता है अन्यथा अपने में विलीन करता है


रावणी वृत्ति में भोग ही साध्य है अपने अंदर के रावणत्व को दूर करने और रामत्व के दर्शन की आवश्यकता है जिससे हम रामत्व को अपना सकें

इसी रामत्व और रावणत्व को देखने के लिये आइये चलते हैं

उस कृति में जो केवल साहित्यिक ही नहीं

समाज के भयानक भंवर का सेतु है


हम व्याकुलता में गीता और मानस का पाठ करें

 मानस के 

लंका कांड में



रावण चिल्लाकर बोलता है


खर दूषन बिराध तुम्ह मारा। बधेहु ब्याध इव बालि बिचारा॥

निसिचर निकर सुभट संघारेहु। कुंभकरन घननादहि मारेहु॥3॥



तो भगवान् राम मुस्कुराकर कहते हैं


सत्य सत्य सब तव प्रभुताई। जल्पसि जनि देखाउ मनुसाई॥5॥


जनि जल्पना करि सुजसु नासहि नीति सुनहि करहि छमा।

संसार महँ पूरुष त्रिबिध पाटल (गुलाब )रसाल (आम )पनस (कटहल )समा॥

एक सुमनप्रद एक सुमन फल एक फलइ केवल लागहीं।

एक कहहिं कहहिं करहिं अपर एक करहिं कहत न बागहीं॥



मूर्ख स्वार्थी रावण को ज्ञान की ये बातें अच्छी नहीं लगती क्योंकि वो अपने को ही सबसे अधिक ज्ञानी मानता है


युद्ध चल रहा है तुलसीदास जी ने इसे बहुत विस्तार से लिखा है

12.1.23

प्रस्तुत है चिरजीवी हनुमान जी की अहैतुकी कृपा से नयकोविद् ¹ असामान्य आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 12-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है चिरजीवी हनुमान जी की अहैतुकी कृपा से  नयकोविद् ¹ असामान्य आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 12-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *532 वां* सार -संक्षेप


¹ दूरदर्शी



आचार्य जी हमें संसार के व्यवहार को सुस्पष्ट करते हुए संसार में सफल करते हुए संसारेतर चिन्तन की दिशा दृष्टि देते हुए


इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे।


ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।9.1।।



मोह ममता दम्भ आदि विकारों को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं  वे शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता को भी लगातार स्पष्ट कर रहे हैं


भौतिक दृष्टि भौतिक विचार को दरकिनार करते हुए


अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।


परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्।।9.11।।



 आइये लंका कांड में आगे बढ़ते हैं


रावन हृदयँ बिचारा भा निसिचर संघार।

मैं अकेल कपि भालु बहु माया करौं अपार॥88॥


रावण ने अभेद्य माया रचने की योजना बनाई

निराश दंभी रावण को अब अकेलापन महसूस होने लगा था भगवदाश्रित तो वह तब भी होना  नहीं चाहता था


जहां भोग समाहित है वहां ज्ञान तिरोहित है

भोग विलुप्त होने पर ज्ञान के पट खुल जाते हैं

मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः।


राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः।।9.12।।


वृथा आशा, वृथा कर्म और वृथा ज्ञान वाले व्यक्ति राक्षसों के असुरों के मोहित करने वाले स्वभाव को धारण किये रहते हैं


देवताओं में डर बैठा हुआ है तो उन्होंने मातलि सारथी के साथ दिव्य रथ को भेज दिया


भगवान राम ने उसे स्वीकार लिया यह रामत्व है वह स्वयं श्रेय नहीं लेते


मायावी रावण की माया से बहुत से राम-लक्ष्मण देखकर रामादल के सदस्य  डर गए।



तब


बहुरि राम सब तन चितइ बोले बचन गँभीर।

द्वंदजुद्ध देखहु सकल श्रमित भए अति बीर॥89॥



प्रभु राम सबकी ओर देखकर बोले- हे वीरों! तुम सब थक गए हो,  अब मेरा और रावण का युद्ध देखो

प्रभु राम अपने सारे गुरुओं को प्रणाम करते हैं शक्तिसम्पन्न होने के बाद भी भक्ति में कोई कमी नहीं यह रामत्व है


अधिक विस्तार से जानने के लिये यह संप्रेषण अवश्य सुनें

11.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 11-01- 2023 का भाव विचार का सम्मिश्रित यज्ञ

 प्रस्तुत है चिरजीवी हनुमान जी की प्रेरणा से नयज्ञ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 11-01- 2023 

 का  भाव विचार का सम्मिश्रित यज्ञ 


 

 

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  531 वां सार -संक्षेप


¹ दूरदर्शी



मनुष्य जब मन को चलायमान करता है तो उसके सामने  भूत वर्तमान भविष्य के अनेक दृश्य सामने आते हैं

 मन में भाव विचार योजनाएं बनती हैं मन काल्पनिक लोक में भी विचरण करता है

आचार्य जी के मन में भी समाज हित के राष्ट्र हित के हम लोगों के हित के बहुत से भाव विचार आते हैं


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि गीता के तीसरे अध्याय में तीसरे छन्द से इक्कीसवें छन्द तक को कई बार पढ़ें जिससे हम लोगों को लाभ मिलेगा


ज्ञानियों की निष्ठा ज्ञानयोग से तो योगियों की निष्ठा कर्मयोग द्वारा होती है।


लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ।


ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्।।3.3।।




यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।


स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।3.21।।


यह इक्कीसवां छन्द इस समय विद्यालय के प्रवेश द्वार के पीछे लिखा हुआ है

अपने भाव को भूलकर समर्पित करने की स्थिति ही यज्ञ है



आइये चलते हैं लंका कांड में

रावण ने यज्ञ प्रारम्भ कर दिया है



तामसी यज्ञ द्वारा वह भगवान् राम को जीतने के लिये शक्ति अर्जित करना चाह रहा है

प्रात होत प्रभु सुभट पठाए। हनुमदादि अंगद सब धाए॥



सात्विक शक्तियां बिना शंका के भवन में पहुंच गईं 

पैठे रावन भवन असंका॥



अरे  निर्लज्ज!

युद्धभूमि से घर भाग आया और यहाँ आकर बगुले की तरह ध्यान लगाकर बैठा है ऐसा कहकर अंगद ने लात मार दी



फिर भी वह विचलित नहीं हुआ तो



नहिं चितव जब करि कोप कपि गहि दसन लातन्ह मारहीं।

धरि केस नारि निकारि बाहेर तेऽतिदीन पुकारहीं॥

तब उठेउ क्रुद्ध कृतांत सम गहि चरन बानर डारई।

एहि बीच कपिन्ह बिधंस कृत मख देखि मन महुँ हारई॥


इसके बाद देवताओं ने विनती की कि अब रावण को नष्ट करने का समय आ गया है


प्रभु राम युद्ध के लिये तैयार हो जाते हैं


जोशीमठ, भैया सूरज पटेल भैया मोहन का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया आदि जानने के लिये यह संप्रेषण सुनें


विशेष :सदाचार संप्रेषण अवश्य सुनें

10.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 10-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 कभी भी साधना को सिद्धि की वाञ्छा नहीं होती, 

कभी कर्मानुरागी वृत्ति आकांक्षा नहीं ढोती, 

कि वह आजन्म कर्मानंद में अलमस्त रहती है, 

प्रभावों या अभावों में विहँसती है नहीं रोती। ।


प्रस्तुत है संकटमोचक हनुमान जी की प्रेरणा से सुचरित  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 10-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  530 वां सार -संक्षेप


हम इस भावमय विचारमय वेला में रहते हुए संसार के सत्य, अर्थात् कर्म करते हुए भी कर्मबन्धनों में जकड़े न रहने का प्रयास,को आत्मसात् करने का प्रयास करते हैं


कभी मस्त रहते हुए कभी पस्त होते हुए


दिनमपि रजनी सायं प्रातः शिशिरवसन्तौ पुनरायाताः ।


कालः क्रीडति गच्छत्यायुस्तदपि न मुञ्चत्याशावायुः ॥१॥


आयु बीतती जाती है लेकिन फ़िर भी आशा रूपी प्राणवायु छूटती नहीं


सजग रहते हुए कर्तव्य कर्म से विमुख न हों


बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।


तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।।2.50।।


बुद्धि से युक्त मनुष्य इस लोक में जीवित अवस्था में ही पुण्य, पाप दोनों को त्याग  देता है। अतः तू  जीवात्मा और परमात्मा (सत और असत) के योग में रत हो जा, क्योंकि योग ही कर्मों में कुशलता है


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार। संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥


और समता से युक्त मनीषी साधक कर्मजन्य फल  त्याग कर जन्म बन्धन से मुक्त होकर निर्विकारी पद को प्राप्त हो जाते हैं


भगवत् भक्ति में जीवात्मा का योग सफल हो जाता है मनुष्य का जीवन कर्म करने के लिये बना है




अपार संसार समुद्र मध्ये

निमज्जतो मे शरणं किमस्ति ।

गुरो कृपालो कृपया वदैत-

द्विश्वेश पादाम्बुज दीर्घ नौका ॥ १॥


प्रश्न :- हे कृपालु गुरु जी ! कृपया यह बताइये कि अपार संसार रूपी सागर में मुझ डूबते हुए का आश्रय क्या है ?


उत्तर :- परमात्मा के चरण रूपी जहाज |


तितली उड़ी, उड़ जो चली

फूल ने कहा, आजा मेरे पास

तितली कहे, मैं चली आकाश


शेते सुखं कस्तु समाधिनिष्ठो

जागर्ति को वा सदसद्विवेकी ।

के शत्रवः सन्ति निजेन्द्रियाणि

तान्येव मित्राणि जितानि कानि ॥ ४॥


प्रश्न :-  सुख से कौन सोता है ?

उत्तर:- जो व्यक्ति परमात्मा के स्वरूप में स्थित है 


प्रश्न :- और  जागता  कौन है ?


उत्तर:- जो सत्,असत् के तत्त्व का जान लेता है 


प्रश्न :- शत्रु कौन हैं ?


उत्तर:- अपनी इन्द्रियाँ;


 परन्तु यदि वे जीती हुई हों तो वही मित्र  हो जाती हैं |



इन सबसे प्रेरणा लेकर हम कर्मानुरागी बनें संकटों का सामना करें उन्हें सुलझाएं


आनन्द की अखंड धारा में आनन्द लेते हुए साथी सहयोगियों के दुःखों को भी दूर करें



शौर्यपूर्वक अध्यात्माधारित होकर आइये चलते हैं लंका कांड में

लेनदेन का भाव लेकर आनन्द की अनुभूति न करने वाला और शंकर जी को पूजने वाला दुष्ट रावण हठवश अज्ञानवश यज्ञ कर रहा है


इहाँ बिभीषन सब सुधि पाई। सपदि जाइ रघुपतिहि सुनाई॥

नाथ करइ रावन एक जागा। सिद्ध भएँ नहिं मरिहि अभागा॥



यहाँ विभीषण को खबर मिली और तुरंत जाकर राम जी को कह सुनाई कि हे नाथ! रावण जी यज्ञ कर रहा है उसके सिद्ध होने पर वह अभागा सहज ही नहीं मरेगा


तो


प्रात होत प्रभु सुभट पठाए। हनुमदादि अंगद सब धाए॥

9.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 09-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 उहाँ दसानन जागि करि करै लाग कछु जग्य।

राम बिरोध बिजय चह सठ हठ बस अति अग्य॥ 84॥




प्रस्तुत है चिरजीवी हनुमान जी की प्रेरणा से सुचक्षुस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 09-01- 2023 

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  *529 वां* सार -संक्षेप


¹ विवेकशील व्यक्ति


जो अपने साथ चार कदम भी चले हैं हमें अपने मन में उनकी स्मृति रखनी ही चाहिये

इन सदाचार संप्रेषणों से प्रेरणा लेकर हम लोग समाज के विकारों से मुक्त होने का प्रयास करते हैं और सत्कर्मों में लगने के लिये तत्पर होते हैं 


निष्ठा से अपने काम में लगे

 यश संपदा सुख की चाह न रखने वाले लेकिन प्रेम आत्मीयता  विश्वास के भूखे अपने राम स्वारथ जी कल प्रातः पांच बजे स्वर्ग सिधार गए। 

परमेश्वर के लीला-मंच का एक और पात्र अपना अभिनय पूरा कर  मंच से उतर गया।

हाल में हम लोग 25 दिसम्बर 2022 को रजत जयन्ती कार्यक्रम में उनसे मिले थे 

परम पिता उस परमार्थी को फिर से अपनाएँ,  आइये हम सब लोग अपनी भावाञ्जलि  अर्पित करें

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

लक्ष्मण जी भी इसी तरह यश सुख संपदा की चाह नहीं रखते थे वे साधना का आनन्द चाहते थे 

आइये चलते हैं लंका कांड में


साधना का आनन्द चाहने वाले 

साधक लक्ष्मण जी को स्वार्थ के यज्ञों में रत रावण की शक्ति लगी है 

अस कहि लछिमन कहुँ कपि ल्यायो। देखि दसानन बिसमय पायो॥

कह रघुबीर समुझु जियँ भ्राता। तुम्ह कृतांत भच्छक सुर त्राता॥


भगवान् राम का मार्ग कभी बाधित न हो  भगवान् राम में स्वार्थ देखने वाले लक्ष्मण जी ने सदैव इसका ध्यान रखा है

हमेशा समर्पण का भाव

कही जनक जसि अनुचित बानी। बिद्यमान रघुकुलमनि जानी॥

जनक की अनुचित वाणी पर उनका दिया गया जवाब अपने भाई राम जी के प्रति उनके समर्पण को दिखाता है


सात्विक शौर्य के उदाहरण भगवान् राम लक्ष्मण जी का मनोबल जगा रहे हैं 

ये शक्ति कुछ भी नहीं


सुनत बचन उठि बैठ कृपाला। गई गगन सो सकति कराला॥

8.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 08-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः


प्रस्तुत है भगवान् हनुमान जी

(धिग धिग मम पौरुष धिग मोही। जौं तैं जिअत रहेसि सुरद्रोही॥)


 की प्रेरणा से सुगन्धि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 08-01- 2023 

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  *528 वां* सार -संक्षेप


¹ सद्गुणों से युक्त

अपनी तात्विक बुद्धि से गहन भावों से युक्त इन संप्रेषणों को हम अपने लिये उपादेय बना सकते हैं 

ये संप्रेषण हमारी मेधा को परिपुष्ट करते हैं राष्ट्र की सेवा हेतु प्रेरित करते हैं विकारों से दूर करते हैं विचारों से युक्त करते हैं शक्ति बुद्धि शौर्य पराक्रम के साथ समाजोन्मुखी जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं

भारतीय संस्कृति के तात्विक सात्विक यथार्थ चिन्तन को समझने का हौसला देते हैं

शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता बताते हैं 


सांसारिक लोक पावन वाली लीला रामकथा के वाचन के पीछे आचार्य जी का उद्देश्य है कि हम पुरोहित उसके मूल आशय को समझें जिसमें छिपा है भारत माता जिसमें रावण अनन्त काल तक जलता रहेगा , सनातनत्व,हिन्दुत्व और शाश्वत समाज का हित


आइये चलते हैं लंका कांड में

युद्ध प्रारम्भ हो गया है


वरदानों के दुरुपयोग वाला देवताओं को असमर्थ करने वाला रावणत्व परमशक्ति के कारण






*जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी।।*

*करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।*

*तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा।।*



अब समाप्त होने की कगार पर है

निज दल बिकल देखि

अब लक्ष्मण जी ने मोर्चा संभाल लिया है


रे खल का मारसि कपि भालु। मोहि बिलोकु तोर मैं कालू॥


पुनि निज बानन्ह कीन्ह प्रहारा। स्यंदनु भंजि सारथी मारा॥

सत सत सर मारे दस भाला। गिरि सृंगन्ह जनु प्रबिसहिं ब्याला॥


रावण के सारथी और रथ नष्ट हो गये


लक्ष्मण जी को पुनः शक्ति लगी लेकिन अब प्रभु राम विलाप नहीं करते

कह रघुबीर समुझु जियँ भ्राता। तुम्ह कृतांत भच्छक सुर त्राता॥


यह रामत्व है राम आत्मबोध जाग्रत कराते हैं

7.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 07-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी॥

तजउँ न नारद कर उपदेसू। आपु कहहिं सत बार महेसू॥3॥


प्रस्तुत है भगवान् हनुमान जी की प्रेरणा से सुकत् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 07-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *527 वां* सार -संक्षेप


¹ भला करने वाला, विद्वान्


भारतीय देवत्व की अनुभूति और परिकल्पना अद्भुत है और सूक्ष्म रूप में सात्विक विचारवान विश्वासी भक्त लोगों में प्रविष्ट रहती है


जब भी इस कलियुग में श्रुति और सिद्धान्त के सारसंक्षेप वाली

भगति ग्यान बिग्यान बिरागा। जोग चरित्र रहस्य बिभागा॥

जानब तैं सबही कर भेदा। मम प्रसाद नहिं साधन खेदा॥4॥

ऐसे प्रभु राम को जानने का मार्ग बतलाने वाली 

 श्री राम की कथा चलती है सूक्ष्म शरीर में उपस्थित होकर  हम सब  सौभाग्यशाली राष्ट्र भक्तों के प्रेरणास्रोत चिरजीवी हनुमान जी श्रोता और वक्ता दोनों हो जाते हैं

वे भावमय भक्तिमय शक्तिमय हुए कथावाचकों को आनन्द प्रदान करते हैं

इधर कुछ दिनों से इन सदाचार संप्रेषणों में भाव की दक्षिणा विश्वास का प्रसाद वाली संसार में रहते हुए हमारी समस्याओं का हल हमें स्वयं सुलझाने का उपाय बताने वाले रामचरित्र में प्रवृत्त होने का उत्साह देने वाली रामकथा चल रही है

हम इससे शिक्षा ग्रहण करें


आज की शिक्षा जीवनपर्यन्त असंतुष्ट रहने वाली निष्फल व्याकुलता प्रदान करने वाली शिक्षा है जितना शिक्षित उतना असंतुष्ट जितना अशिक्षित उतना संतुष्ट


आइये चलते हैं लंका कांड में


उत पचार दसकंधर इत अंगद हनुमान।

लरत निसाचर भालु कपि करि निज निज प्रभु आन॥80 ग॥


भक्त युद्धरत हैं भगवान् राम और लक्ष्मण देख रहे हैं


सुर ब्रह्मादि सिद्ध मुनि नाना। देखत रन नभ चढ़े बिमाना॥

हमहू उमा रहे तेहिं संगा। देखत राम चरित रन रंगा॥1॥

देवता संदिग्ध हैं भ्रमित हैं लेकिन


प्रस्न उमा कै सहज सुहाई। छल बिहीन सुनि सिव मन भाई॥

से उत्साहित शिव जी जो कथा सुना रहे हैं वे आश्वस्त हैं कि विजय भगवान् राम को ही मिलेगी


भयानक युद्ध चल रहा है

रामादल हावी हो रहा है तो


निज दल बिचलत देखेसि बीस भुजाँ दस चाप।

रथ चढ़ि चलेउ दसानन फिरहु फिरहु करि दाप॥

और जब रावण भारी पड़ने लगा


निज दल बिकल देखि कटि कसि निषंग धनु हाथ।

लछिमन चले क्रुद्ध होइ नाइ राम पद माथ॥ 82॥

6.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 06-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 मिलते रहो जुड़ते रहो मुड़कर न देखो  आपदा। 

संयुत रहो गतियुत रहो लभ शौर्य की शुभ संपदा ।।


प्रस्तुत है सूपसदन ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 06-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  526 वां सार -संक्षेप


¹ जिसके पास पहुंचना आसान हो


इन सदाचार संप्रेषणों की स्वीकार्यता इस कारण है कि ये संप्रेषण नित्य हमें सदाचरण के मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करते हैं, संगठन के महत्त्व को बताते हैं जब सामान्य सी जंगली असंगठित अनगढ़   जनजातियां संगठित होकर इतना बड़ा काम कर सकती हैं तो हम भी ऐसा ही कर सकते हैं

,संसारी भाव के कारण अशुद्ध हुए हम लोगों को शुद्ध करने का सहज स्वभाव का बनाने का प्रयास करते हैं, ये संसार के सत्य को भांपने नापने अपने अन्दर प्रवेश कराने की कुंजी हैं

ये संप्रेषण शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता बताते हैं, ये रावणत्व से दूर रहने  और रामत्व को धारण करने का उपाय हैं

ये हमारे ऋषियों चिन्तकों विचारकों मनीषियों दार्शनिकों द्वारा बताई गई सुस्पष्ट जीवनशैली को अपनाने का मार्ग हैं

धर्मरथ साथ हो तो बहुत सारे साधनों की आवश्यकता नहीं रहती

हमारा देश ऐसा है जहां समरांगण में भी सद्गुण सुनाए जाते हैं

मार्गदर्शक कृपालु सब प्रकार के अनुशासनों के देवता शौर्य पराक्रम संयम के प्रतीक हनुमान जी हमें नैराश्य से भय से भ्रम से संकटों से बचाते हैं

आइये चलते हैं लंका कांड में


जय राम जो तृन ते कुलिस कर कुलिस ते कर तृन सही॥

ऐसे भगवान राम के समझाने पर भ्रमित 

विभीषण को अब समझ में आ गया है


सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज।

एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज॥80 ख


हनुमान जी के माध्यम से राम तक पहुंचने वाले,हनुमान जी के भक्त , कलियुग के वाल्मीकि तुलसीदास जी ने युद्ध का अद्भुत स्वरूप प्रस्तुत किया है

उधर रावण तो इधर अंगद और हनुमान जी हैं

हनुमान जी रावण से 

कंपत अकंपन, सुखाय अतिकाय काय, कुंभऊकरन

 आदि से किस प्रकार जूझ रहे हैं कवितावली में इसका बहुत सुन्दर वर्णन है


बार-बार सेवक-सराहना करत रामु, 'तुलसी' सराहै रीति साहेब सुजानकी।

लाँबी लूम लसत, लपेटि पटकत भट, देखौ देखौ, लखन! लरनि हनुमानकी॥

5.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 05-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है मीमांसक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 05-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  525 वां सार -संक्षेप


¹ अनुसंधानकर्ता



भावना के साथ की गई प्रार्थना में बल की वृद्धि हो जाती है अपनी भारतीय संस्कृति के  संस्कारों को नई पीढ़ी को संप्रेषित करना हमारा धर्म है

हम भावुक और भावक व्यक्तियों को दिये जा रहे ये संप्रेषण बिना हेतु के नहीं हैं


धरती पर चल रहे भोग काम विकारों पर हमारी पैनी दृष्टि रहे उनसे हम स्वयं तो बचते ही रहें उन पर नियन्त्रण भी रखें

बेचारगी घातक है


संयम नियम ध्यान धारणा प्राणायाम अनिवार्य इसीलिये बताये गये हैं ताकि प्राणों की शक्ति शिथिल न हो और शरीर बोझ न लगे

यम नियम ध्यान धारणा आदि को हमारी शिक्षा से दूर कर दिया गया और वह भोगमयी शिक्षा से बदल दी गई

ऐसी शिक्षा को बदलने के लिये हमें आगे आना होगा 


आइये चलते हैं लंका कांड के

सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥

बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥3॥

ऐसे 

 धर्मरथ  वाले प्रसंग में


महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर।

जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर॥80 क॥


हे धीरबुद्धि वाले सखा!

सुनो, जिसके पास ऐसा दृढ़ रथ हो, वह वीर संसार रूपी   रिपु , क्योंकि हम सार हैं तत्व हैं संसार नहीं, को भी जीत सकता है

 रावण, जिसकी साधना साधनों के लिये थी,

 पर विजय तो बहुत आसान है


मरणशील शरीर धारण किया है तो  कोई व्यक्ति अमर कैसे हो सकता है


यदि व्यक्ति अपने को अजेय (अमर )समझेगा तो सामान्य मनुष्य तो घबराने लगेगा


जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी l


करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥



भगवान् राम भी मनुष्य के रूप में आये और उन्होंने रामत्व की अनुभूति करने वाले वनवासी गिरिवासी आदि को संगठित करके अपने को अमर समझने वाले निशाचरों से धरती को मुक्त करने का संकल्प किया


आचार्य जी ने सदाचरण के अंगों का वर्णन करते हुए कथा को आगे बढ़ाया



सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज।

एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज॥80 ख


इस धर्मरथ के वर्णन से,रावण के अन्त के बाद लंका में रावणत्व प्रवेश नहीं कर पायेगा, यह विभीषण को सुनिश्चित हो गया



भगवान् राम के पास दुविधाग्रस्त देवताओं ने मातलि सारथि के साथ स्वर्णिम दिव्य रथ को भेजा था

जब कि भगवान राम को तो धर्मरथ पर विश्वास था



युद्ध का वर्णन करते हुए आचार्य जी ने बताया कि रावण पहले दिन का रण हार जाता है

4.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 04-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् |l 



प्रस्तुत है महारम्भ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 04-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  524 वां सार -संक्षेप


¹ बड़े बड़े कार्यों को हाथ में लेने वाला



ये सदाचार संप्रेषण हमारे अन्दर की सुप्त शक्तियों को जाग्रत करने का प्रयास, भक्ति व भाव की शक्ति को समझने की चेष्टा और उसी शक्ति से अपने सामने आ रही समस्याओं को सुलझाने का उपाय और आज भी बहुआयामी बहुत से दर्शनों को अपनाने वाले धर्म के विस्तार विश्वात्मा भारत की रक्षा में सन्नद्ध महारम्भ  हनुमान जी के कार्यों का विस्तार है उन्हीं की कृपा, छाया,योजना है, भारत मां की सेवा में हम जुटें उसका launchpad हैं 



स्वयं के काम पर ईमान रखना देशसेवा है, 

कि अपने धर्म का सम्मान रखना देशसेवा है, 

सदा सद्भाव से सहयोग करना देशसेवा है, 

पड़ोसी से मधुर संबंध रखना देशसेवा है, 

प्रकृति से प्रेम करना भी अनोखी देशसेवा है, 

मितव्ययिता सरलता और शुचिता देशसेवा है, 

सहज अक्रोध धीरज और मुदिता देश सेवा है

सुसंगति और सेवा भावना भी देशसेवा है।




डा हेडगेवार  भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रारम्भ करने के बाद शुरुआती दिनों में हनुमान जी की मूर्ति के सामने भारतभक्ति आदि की प्रतिज्ञा करवाते थे

आजकल लंका कांड में धर्मरथ का प्रसंग चल रहा है



आचार्य जी ने मानस -पीयूष की चर्चा की

महात्मा श्री अंजनी नन्दन जी शरण  द्वारा सम्पादित "मानस-पीयूष" श्रीरामचरितमानस की सबसे बृहत् टीका है। यह  ग्रन्थ अनेक  रामायणियों,चिन्तकों,विचारकों,  कथावाचकों की व्याख्याओं का एक  उत्कृष्ट संग्रह है।


जिनका भाव सुदृढ़ होता है उनके अन्दर का विश्वास भी सुनिश्चित हो जाता है यहां विभीषण भ्रमित हैं तभी कहते हैं


नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥



उस भ्रम को दूर करने के लिये प्रभु राम कहते हैं वह रथ तो दूसरा ही है जिससे विजयश्री मिलेगी


परमात्मा का भजन आवश्यक है राम राम कहने से भगवान् शिव का भजन होना अद्भुत है


सारथि सुजाना हो जैसे ढीले पहिये को सही करने वाली नीतिकुशल त्यागमयी नारी कैकेयी थीं रथी दशरथ के लिये

 आचार्य जी ने बर बिग्यान बिरति चर्म संतोष कृपाना आदि की व्याख्या की

इतनी चीजों को रखने वाला सारे शत्रुओं को जीत लेगा

3.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 03-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 रसौ वै सः



प्रस्तुत है महेच्छ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 03-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  523 वां सार -संक्षेप


¹ महत्त्वाकांक्षी


शरीर मन बुद्धि का सामञ्जस्य मनुष्य है और यदि मनुष्य को मनुष्यत्व अर्थात् आत्मबोध की अनुभूति होती रहे तो इसे परमात्मा की बड़ी कृपा समझना चाहिये


आत्मबोध डगमगाने पर मनुष्य को परमात्मा की शरण ही दिखाई देती है


ऐसा मनुष्य आर्त भक्त है

ऐसे आर्त भक्त की पुकार को व्यक्त करती कुछ अपनी रचित पंक्तियां आचार्य जी ने सुनाईं


हे जगत पिता हे जगदीश्वर संसार समन्दर पार करो....


....


तुम ही सर्जक विश्वंभर हो


सर्जन पक्ष और विश्वंभरत्व  ये दोनों जब आत्मस्थ हो जाते हैं तो वह कहता है 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्


लेकिन यह कठिन अवस्था है

फिर भी मनुष्यत्व यही है कि इसका हम चिन्तन विचार अवश्य करें यह निराशा नहीं है

हमारा विश्व का भरण करने वाले जगत पिता परमेश्वर के प्रति अनुरक्ति को दर्शाने वाला कर्म है

उत्कर्ष पर पहुंचने वाली अनुरक्ति भक्ति है


भक्त हनुमान जी ने भगवान् राम को जब पहचान लिया तो उनके ज्ञान के नेत्र खुल गये थे


और फिर उन्हें भय भ्रम निराशा नहीं हुई


हनुमान जी चिरजीवी हैं


 भारतवर्ष इसी कारण बचा हुआ है



समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी के समय हनुमान जी की उपासना का आदेश दिया था

 मारीशस गये व्यक्ति मानस का गुटका साथ ले गये थे


हम आर्त भाव से जब हनुमान जी के चरणों में समर्पित होते हैं तो वे कृपा करेंगे ही


आइये चलते हैं लंका कांड में


सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥

बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥3॥

ऐसा है धर्मरथ  मनुष्य का जीवन रथ

आत्मबल का प्रयोग उपयोग दोनों हो

परोपकार सर्वकल्याणकारी है


ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना॥

दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा॥4॥


ईश्वर का भजन ही  चतुर सारथी है। भाव रम जाये वह भजन है

यह भजन गुरुगोविन्द सिंह चन्द्रशेखर आजाद भगत सिंह ने भी किया है

ये शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म के उदाहरण हैं

2.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 02-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है उरुकीर्ति ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 02-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  522 वां सार -संक्षेप


¹ प्रख्यात


सांसारिक प्रपंचों में ही हम उलझकर न रह जायें इसलिये

बुद्धि के पांच भागों में सबसे महत्त्वपूर्ण हमारा विवेक जाग्रत रहे भगवान् से इसकी प्रार्थना करनी चाहिये

हम कभी न अधीर होने वाले संपूज्य लोकोपकारी कल्याणकारी सरल सहज हनुमान जी को अपने भाव विचार क्रिया समर्पित करते चलें 

ऐसे सदाचारमय विचारों का लाभ लेने के लिये आइये शामिल होते हैं इस सदाचार वेला में


लंका कांड में वर्णित धर्मरथ का विषय अत्यन्त गम्भीर है इसे कम शब्दों में समेटना कठिन है यूं तो एक श्लोक वाली रामायण भी उपलब्ध है


विभीषण भय के कारण अधीर हैं अर्जुन भी मोहजनित अधैर्य का शिकार हुए थे


विभीषण समझ रहे हैं साधनों से ही युद्ध जीते जाते हैं

धर्मरथ तो कुछ अलग ही प्रकार का है 

शौर्य और धैर्य उस रथ के दो पहिए हैं।  युद्ध के रथों में दो पहिए ही होते हैं सत्य और शील उसकी मजबूत ध्वजा, पताका हैं। सदा कल्याणकारी सत्य क्रूर नहीं होता तात्विक दृष्टि को सत्य दृष्टि कहते हैं

शील कमजोरी नहीं मृदुता है लेकिन सत्य की आंखें कालनेमि और विभीषण में अंतर करना जानती हैं 


बल, विवेक, दम और परोपकार- ये चार घोड़े हैं

बल आवश्यक है रामत्व आवश्यक है

सत्य मिघ्या जानने का विवेक आवश्यक है

दमन करने की शक्ति भी जरूरी है


आचार्य जी ने परोपकार को भी स्पष्ट किया


 रथ ऐसा है जो क्षमा, दया,समता रूपी लगामों से संयुत है

आचार्य जी ने इसकी व्याख्या में क्या कहा जानने के लिये सुनें

1.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 01-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन। 

आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।। (७।१६)



प्रस्तुत है दोषज्ञ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 01-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *521 वां* सार -संक्षेप



इन सदाचार वेलाओं का उद्देश्य है कि हमारा आत्मबोध जाग्रत हो हम कौन हैं यह जानें

हमें शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म को आत्मसात् करना होगा

शौर्य रहित अध्यात्म के कारण ही हमारी परिस्थितियां ऐसी हुईं

अब न हों यह ध्यान रखना होगा


भक्तों की याचनाओं के कई प्रकार होते हैं जब कि संसारी व्यक्ति की याचना भौतिक ही होती है


जब हम स्वभाववश,परिस्थिति वश संस्कार वश या आत्मबोध के लिये मन्त्र के जाप,पूजन की क्रियाविधि आदि करते हैं तो अन्त में त्रिविध तापों के शमन के लिये कहते हैं

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः


सांसारिक कष्टों की चर्चा और चिन्तन में हम लोग अपना समय व्यतीत कर देते हैं इन सदाचार संप्रेषणों से या अन्य प्रकार से उपलब्ध 

अध्यात्मोन्मुखता का यह अभिप्राय कतई नहीं है कि हम संसार त्याग दें

हमें तो संसारत्व त्यागना है


भक्तों के चार प्रकार हैं

बद्ध, मुमुक्षु, केवली और मुक्त


बद्ध - जो इस जीवन की समस्याओं से बँधा है लेकिन ईश्वरोन्मुख रहता है


मुमुक्षु - जिसमें मुक्ति की चेतना जागृत हो किन्तु उसमें लीन नहीं है

भक्त अथवा केवली - जो मात्र ईश्वर की उपासना में ही लीन हो

मुक्त - जो पूर्णरूपेण ईश्वर में समाविष्ट हो जाते हैं


हम लोग बद्ध भक्त हैं


मानस की यहां चर्चा का


 यही उद्देश्य है  व्यवहार विचार साथ साथ हों

कर्मशीलता जाग्रत करते हुए आइये चलते हैं लंका कांड में


धर्मरथ को समझने का प्रयास करते हैं


रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥

अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥

बद्ध भक्त विभीषण को अपने आश्रय को देखकर मोह हो रहा है जब कि अर्जुन को


आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः।


मातुलाः श्चशुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा।।1.34।।


 अपनों को देखकर मोह हुआ था


हमारे पास साधन नहीं हैं उसके पास साधन हैं बद्ध भक्त साधनों में उलझ जाता है


तो भगवान राम कहते हैं जिससे विजय होती है वह दूसरा ही रथ है


सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥


सौरज (शौर्य )और धैर्य उस रथ के पहिए हैं। सत्य और शील उसकी मजबूत ध्वजा, पताका हैं। सत्य क्रूर नहीं होता l 

बल, विवेक, दम और परोपकार- ये चार घोड़े हैं, जो क्षमा, दया,समता रूपी डोरी से रथ में संयुत  हैं


ईश्वर प्रेरित व्यवस्था वाले किसी भी काम को नहीं त्यागना यह हमारा उद्देश्य हो


...भीतर से जर्जर हैं ये लोग ये आदर्श स्थापित नहीं कर सकते इसलिये इनका मरना जरूरी है यह भगवान् कृष्ण समझाते हैं अर्जुन को


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