31.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 31-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सत पंच चौपाईं मनोहर जानि जो नर उर धरै।

दारुन अबिद्या पंच जनित बिकार श्री रघुबर हरै॥2॥



प्रस्तुत है आशर -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 31-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  610वां सार -संक्षेप

1 आशरः =राक्षस


इन सदाचार संप्रेषणों के सात वर्ष पूर्ण हो चुके हैं इनको सुनने के लिए प्रतिदिन हमारी उत्सुकता बनी रहती है और हम सदाचारमय विचार ग्रहण करते हैं


हम संसारी पुरुषों में कभी कभी कमजोरी के भाव आ जाते हैं लेकिन कुछ क्षणों के लिए भी यदि आत्मस्थता आ जाती है तो आत्मविश्वास में वृद्धि होती है क्यों कि आत्म परमात्म का अंश है और परमात्मा कभी व्याकुल विकृत नहीं होता

वह व्याकुल विकृत तभी होगा जब संसार में स्वरूप धारण करेगा


जैसे

सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि ललित नरलीला॥

तुम्ह पावक महुँ करहु निवासा। जौ लगि करौं निसाचर नासा॥1॥


कहने वाले भगवान् राम को भी संसार स्पर्श करता रहा



यह संसार परमात्मा की रचना है और कभी कभी उन्हीं को परेशान करता है

मिट्टी के घरौंदों का उदाहरण देते हुए आचार्य जी ने बताया कि परमात्मा का लगाव हट जाता है तो वह खेल खराब कर देता है इसे प्रलय कहते हैं

महादेवी वर्मा कहती हैं


पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला! 

घेर ले छाया अमा बन, आज कज्जल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन; 

और होंगे नयन सूखे, तिल बुझे औ, पलक रूखे, आर्द्र चितवन में यहाँ शत विद्युतों में दीप खेला! 

......

आज जिस पर प्रलय विस्मित, मैं लगाती चल रही नित, मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला! 


 'आत्मिका'


संसार अपरिचित राह है संबन्ध हम बनाते हैं



भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥


कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।


भगवान् राम ने बहुत प्रकार की लीलाएं कीं


तुलसीदास जी कहते हैं



मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर।

अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर॥130 क॥

मेरे जन्म-मरण के भयानक दुःख का हरण कर लीजिए


परमात्मा सृजन करे या विनाश हमें तो उसे अपने अन्दर बैठाना है


मेरे अंदर बैठकर अपने रामत्व का प्रसार करिए


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।



कल एक अध्यात्म समन्वित कार्यक्रम संपन्न हुआ

आचार्य जी ने चित्रकूट के कार्यक्रम की भी चर्चा की 


हमें तार बनना है या रस्सी इससे क्या आशय है जानने के लिए

और 

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

30.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 30-03- 2023

 ए सब लच्छन बसहिं जासु उर। जानेहु तात संत संतत फुर॥

सम दम नियम नीति नहिं डोलहिं। परुष बचन कबहूँ नहिं बोलहिं॥4


पुनि रघुपति निज मंदिर गए। एहि बिधि चरित करत नित नए॥

बार बार नारद मुनि आवहिं। चरित पुनीत राम के गावहिं॥2॥




प्रस्तुत है सुरर्षि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 30-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  609 वां सार -संक्षेप

1 =दिव्य ऋषि


सुनि बिरंचि अतिसय सुख मानहिं। पुनि पुनि तात करहु गुन गानहिं॥3॥


इस सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी स्वयं जिस कथा को बार बार सुनना चाहते हैं ऐसी राम कथा को आजकल हम लोग इन सदाचार संप्रेषणों में आचार्य जी से सुन कर लाभ प्राप्त कर रहे हैं

यह कथा हमें प्रेरित करती है कि जीवन में कितने भी कष्ट आएं हम अपने लक्ष्य के प्रति अडिग बने रहें

जैसी भी गम्भीर परिस्थितियां आएं उन्हें आंकते भांपते हुए अपने कर्तव्य का बोध करें

कैसे करना है क्यों करना है कब करना है कहां करना है इन सारे प्रश्नों के उत्तर इस कथा में मिल जाएंगे


The world is too much with us; late and soon,

Getting and spending we lay waste our powers;

Little we see in Nature that is ours;

We have given our hearts away, a sordid boon!

This Sea that bares her bosom to the moon,



इसका आशय यह है कि सांसारिकता मनुष्य को इतना घेरे रहती है कि उसे अध्यात्म की ओर ध्यान ही नहीं रहता संकट आने पर उसे परमात्मा का नाम याद आता है


लेकिन हम लोगों के भाव विचार इससे भिन्न हैं हम ये सदाचार संप्रेषण सुन रहे हैं परमात्मा का नित्य स्मरण करते हैं हमारी उन्मुखता अध्यात्म की ओर रहती है

हम अत्यन्त भावुक हैं देश के लिए समाज के लिए  कुछ न कुछ करने की हमारी चाह बनी रहती है 


जीवनमुक्त ब्रह्मपर चरित सुनहिं तजि ध्यान।

जे हरि कथाँ न करहिं रति तिन्ह के हिय पाषान॥42॥


सनक सनातन सनत कुमार सनन्दन मुनि जैसे जीवनमुक्त  ब्रह्मनिष्ठ पुरुष भी  ब्रह्म समाधि छोड़कर श्री रामजी की कथा सुनते हैं।  यह तो बहुत आश्चर्य की बात है

यह जानकर भी जो इस कथा से प्रेम नहीं करते, उनके हृदय  पत्थर के समान हैं

इसके अतिरिक्त

  सरौंहां में चल रहे मानस के अखंड पाठ में सम्मिलित होने के लिए  आप सब सादर आमन्त्रित हैं


श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं , प्रभु श्री राम सभी की हर प्रकार से रक्षा करें ! जय श्री राम

29.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 29-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 अकेले में तभी आनन्द आता है 

मनस् का आत्म जब कुछ गुनगुनाता है, 

ये दुनिया सिर्फ भारी भीड़ लगती है 

मुखौटों और तिनकों से बुना इक नीड़ लगती है।

जीवन भी एक अनोखा संगम है

 जड़ लादे किन्तु स्वयं में एक जंगम है

मन की उड़ान आकाश छुआ करती 

तन की थकान कुछ और दुआ करती


तन मन का मेल कठिनता से होता

और यह मेल  प्रयाग त्रिवेणी का गोता



प्रस्तुत है आसक्तमानस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 29-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  608 वां सार -संक्षेप

1 =एकाग्र

भगवान राम अपने लक्ष्य को पाने के लिए निकल चुके हैं गंगा पार कर चुके हैं 


आगें रामु लखनु बने पाछें। तापस बेष बिराजत काछें॥

उभय बीच सिय सोहति कैसें। ब्रह्म जीव बिच माया जैसें॥1॥


संसार में हम जो कुछ देखते हैं वह सब माया है अर्थात् वास्तव में जो है ही नहीं

माया का अनुभव तो होता है लेकिन उसका अस्तित्व नहीं है काल्पनिक दुनिया वास्तविक लगती है

हमें कुछ ऐसा समय निकाल लेना चाहिए जिसमें हम अपना आत्मावलोकन कर सकें और यह देखें कि कहीं मन मस्तिष्क पर माया तो हावी नहीं हो रही  अत्मावलोकन करने पर महंगी महंगी कारें भी किसी संन्यासी को टीन के डिब्बे मात्र लगती थीं 

माया का यही भ्रम दुःखों का कारण है

अंशी और अंश के बीच में माया एक पर्दे की तरह है

लेकिन माया का यह भ्रम हटाना कठिन काम है

मंच पर अपना अभिनय मनोयोग पूर्वक करें लेकिन मंच से उतरते वेश भी उतार लें 

हम यदि यह चिन्ता ही न करें कि हमने क्या खोया क्या पाया तो यह आनन्द की अवस्था है अच्छाई और बुराई दोनों को त्याग देना आनन्द है



तन मन का मेल कठिनता से होता

और यह मेल  प्रयाग त्रिवेणी का गोता


जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ।

सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ॥44॥

श्री राम चरित मानस ऐसा ही एक साधन है जिसके उत्तरकांड में आजकल हम प्रविष्ट हैं

आगे

करहिं मोह बस नर अघ नाना। स्वारथ रत परलोक नसाना॥2॥


कालरूप तिन्ह कहँ मैं भ्राता। सुभ अरु असुभ कर्म फलदाता॥

अस बिचारि जे परम सयाने। भजहिं मोहि संसृत दु:ख जाने॥3॥

भाइयों को यह सब बताने के बाद भगवान् राम पुनः संसार में लग गए

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सुदर्शन पटनायक की चर्चा की

आज से श्री राम चरित मानस का अखंड पाठ भी अपने गांव में शुरु हो रहा है

उत्तरकांड में आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

28.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 28-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सत्य की उद्घोषणा मिथ्यात्व का व्यवहार है, 

राजनैतिक मंच सजकर लोकहित तैयार है।


प्रस्तुत है आसक्तचेतस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 28-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  607 वां सार -संक्षेप

1 =एकाग्र



आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं कि हम इन  महौषधि के रूप में प्राप्त संप्रेषणों से अपने विकार दूर कर सकें

सदाचार के माध्यम से हमें अपने शरीर को साधने परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करना ही चाहिए तभी हमें इनका लाभ भी समझ में आयेगा प्रातःकाल जल्दी जागना अपना खान पान सही रखना दुर्घट नहीं है नींद न आने पर अपने इष्ट का ध्यान करें तो नींद आ जाएगी



परमात्मा द्वारा प्रतिनिधि के रूप में भेजा गया मनुष्य इस सृष्टि का व्यवस्थापक है  यही रामत्व की परिकल्पना है

अपने विचारों को निर्मल बनाकर  व्यथाओं को शमित करने के लिए हम तुलसीदास द्वारा विष का पान कर अमृत के रूप में दी गई रामकथा सुनें तो यह अत्यन्त लाभकारी होगी 


जेहिं यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करै सुनि सोई॥

कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी॥

रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥

नाना भाँति राम अवतारा। 

रामायन सत कोटि अपारा॥


लेकिन



सत्य संयम शम ,कसौटी पर चढ़े हैं 

पर कसौटी के शजर सोने-मढ़े हैं, 

घोर इस कलिकाल की कुछ यह दशा है 

इसलिए  शायद मनुज की दुर्दशा है।


ऐसे अधम मनुज खल कृतजुग त्रेताँ नाहिं।

द्वापर कछुक बृंद बहु होइहहिं कलिजुग माहिं॥40॥



  मनुष्य की दुर्दशा घोर संकट का कारण बन जाती है



आइये प्रवेश करते हैं उत्तर कांड में


पर हित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई॥

निर्नय सकल पुरान बेद कर। कहेउँ तात जानहिं कोबिद नर॥1॥

आचार्य जी ने डूबते चक्रवाती कलियुग के सागर की व्याख्या की और बताया कि हनुमान जी इसकी नौका हैं 

बुराई की ओर मनुष्य का रुख तुरन्त हो जाता है


सुनहु तात माया कृत गुन अरु दोष अनेक।

गुन यह उभय न देखिअहिं देखिअ सो अबिबेक॥41॥


हमें तो अच्छाई की ओर उन्मुख होना है इस कथा को सुनने के पीछे यही उद्देश्य है कि हम यह देखें कि रामत्व हमारे अन्दर कितना प्रवेश कर रहा है

कथावाचन वह जो जीवन में प्रवेश करे

सोशल मीडिया पर हम अपनी बात रखें मीडिया द्वारा दुष्टों का महिमामण्डन निन्दनीय है 

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

27.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 27-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 संत - संतापहर, विश्व - विश्रामकर, राम कामारि, अभिरामकारी ।


शुद्ध बोधायतन, सच्चिदानंदघन, सज्जनानंद - वर्धन, खरारी ॥१॥


शील - समता - भवन , विषमता - मति - शमन, राम, रामारमन, रावनारी ।


खङ्ग, कर चर्मवर, वर्मधर, रुचिर कटि तूण, शर - शक्ति - सारंगधारी ॥२॥




सिद्ध - कवि - कोविदानंद - दायक पदद्वंद्व मंदात्ममनुजैर्दुरापं ।


यत्र संभूत अतिपूत जल सुरसरी दर्शनादेव अपहरति पापं ॥८॥


नित्य निर्मुक्त, संयुक्तगुण, निर्गुणानंद, भगवंत, न्यामक, नियंता ।


विश्व - पोषण - भरण, विश्व - कारण - करण, शरण तुलसीदास त्रास - हंता ॥९॥



प्रस्तुत है आसक्तचित्त ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 27-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  606 वां सार -संक्षेप

1 =एकाग्र


हम अपने संतों ज्ञानियों विचारकों  दर्शनवेत्ताओं  के सुझाए गए मार्ग पर चलकर उनके सद्गुणों से प्रेरणा पाकर अपनी प्राणिक ऊर्जा को जाग्रत करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि हम सांसारिक समस्याओं के आने पर भय और भ्रम मुक्त होकर उन्हें आसानी से सुलझा सकें,

आनन्द की अनुभूति कर कर्ममय जीवन अपना सकें 


हमारी संस्कृति में परिष्करण एक विशेषता है 

एक घड़ी आधी घड़ी ,आधी की पुनि आध ,


तुलसी संगत साधु  की ,काटे कोटि अपराध।


सद्संगति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ऐसी ही सद्संगति का सुअवसर हमें 29 व 30 मार्च,1अप्रैल को मिल रहा है


हमें विकारमय संतत्व का बोध है जिसके अनुसार संत का अर्थ है विरक्त रूप से रहने वाला जिसे संसार से कोई मतलब न हो जब कि ऐसा है नहीं

आचार्य जी हमें इन दिनों यही बता रहे हैं कि

संत हृदय नवनीत समाना। कहा कबिन्ह परि कहै न जाना॥

निज परिताप द्रवइ नवनीता। पर सुख द्रवहिं संत सुपुनीता॥4॥


पर दुःख में द्रवित होना संतत्व है दीनों व्याकुल लोगों का ताप हरने वाला संत है 

संतत्व संस्कारों से आता है जन्म से आता है आचार्य जी ने इसके लिए गुरु तेगबहादुर

 शिवा जी का उदाहरण दिया


भोगी अपना ही सोचते हैं भोगी कब्जा करने की कोशिश करते हैं संत इन्हीं को पराभूत करते हैं

हमें भ्रमित नहीं होना है हमें अपने संतत्व की परीक्षा देनी है आत्मकल्याण में भी हम प्रवृत्त हों 

आज भी संतों का भोगियों और ढोंगियों से संघर्ष चल रहा है


काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।

सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत॥38॥



सुनहु असंतन्ह केर सुभाऊ। भूलेहुँ संगति करिअ न काऊ॥

तिन्ह कर संग सदा दुखदाई। जिमि कपिलहि घालइ हरहाई॥1॥


जहँ कहुँ निंदा सुनहिं पराई। हरषहिं मनहुँ परी निधि पाई॥2॥


इनसे सचेत रहें दुष्ट का प्रचार उसका हौसला ही    बढ़ाता है इनकी चर्चा विकार है हम इस ओर भी ध्यान दें


दुष्ट


काम क्रोध मद लोभ परायन। निर्दय कपटी कुटिल मलायन॥

होते हैं

वे दूसरों से द्रोह करते हैं  पराई स्त्री, पराए धन, पराई निंदा में आसक्त रहने वाले ये पापी नर का शरीर धारण किए  राक्षस हैं


वैलंटाइन डे आदि के रूप में आए विकारों को हमने व्यवहार में प्रदर्शित करना प्रारम्भ कर दिया यह भी असंतत्व है इसका शुद्धिकरण भी आवश्यक है

मन्दिरों का निर्माण समर्पित भाव से किया जाता था


नवजागरण काल की एक महान नारी रानी रासमणि  दक्षिणेश्वर काली मंदिर की संस्थापिका थीं वह नवजागरण काल के प्रसिद्ध दार्शनिक स्वामी रामकृष्ण परमहंस की मुख्य   पृष्ठपोषिका भी थीं


स्वाध्याय का एक अर्थ यह भी है कि हम अपना भी अध्ययन करें

इसके अतिरिक्त भैया विवेक भागवत जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

26.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 26-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।

सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित॥14 घ॥

(बाल कांड से एक सोरठा )



प्रस्तुत है सुप्रतिष्णात ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 26-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  605 वां सार -संक्षेप

1 =किसी विषय का अच्छा जानकार


कर्ममय जीवन जगत का मूल है अकर्मण्यता दोष है 

असामान्य आचार्य आo श्री ओम शंकर जी हमें इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से प्रेरित करते हैं कि हम लोग कर्ममय जीवन अपनाएं

किसी भी कार्यक्रम के लिए हमारा उत्साह बना रहना चाहिए  29 व 30 को सरौंहां में हम लोगों ने एक कार्यक्रम करने का संकल्प  किया है और 31 को चित्रकूट जाने की योजना बनाई है ये संकल्प टूटने नहीं चाहिए


इसी कर्ममय जीवन की प्रेरणा देने वाली  संतोष सहारा देने वाली सचेत जीवित जाग्रत संगठित होने का उत्साह देने वाली रामकथा


निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी

में आइये प्रवेश करते हैं



मैली चादर  ओढ़कर श्री राम की    कलि कलुष बिभंजनि गूढ़ कथा हम समझ ही नहीं सकते हमें तो अपने विचार विमल करने ही होंगे

कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दंभ पाषंड।

दहन राम गुन ग्राम जिमि इंधन अनल प्रचंड॥


रामचरितमानस में चार वक्ता और चार श्रोता है:

 कागभुसुंडी ने गरुड़ जी को रामकथा सुनाई,शिवजी ने पार्वती जी को,याज्ञवल्क्य जी ने भारद्वाज जी को और

 तुलसीदास जी,जो नाभादास के अनुसार कलिकाल के वाल्मीकि थे

इतिहासकार स्मिथ के अनुसार  ‘मुगलकाल के सबसे   बड़े  व्यक्ति’ थे 

ने संतों के समूह को रामकथा सुनाई

राम कथा ऐसे समय में लिखी गई जब दुष्ट अकबर का शासन था और इस कथा ने बुझती ज्योति को जलाने का काम किया इस तरह के संतों की परम्परा ने भारतीय जीवन दर्शन को प्राणिक ऊर्जा प्रदान की भारतीय शैली को सुरक्षित रखा शौर्य शक्ति को परिमार्जित किया यह संतत्व है 



संवत् सोलह सौ इकतीसा। करौं कथा हरिपद धरि सीसा।।


नौमी भौम वार मधुमासा। अवधपुरी यह चरित प्रकासा।।”


मानस की रचना संवत 1631 ई० में चैत्र मास, शुक्ल पक्ष, नवमी तिथि, मंगलवार को पूर्ण हुई थी।


उत्तर कांड में


संत असंत भेद बिलगाई। प्रनतपाल मोहि कहहु बुझाई॥

संतन्ह के लच्छन सुनु भ्राता। अगनित श्रुति पुरान बिख्याता॥3॥


वैश्विक कल्याण की चाह रखने वालले भरत जी पूछ रहे हैं संत के साथ असंत के लक्षण भी बता दीजिये

सुनहु असंतन्ह केर सुभाऊ। भूलेहुँ संगति करिअ न काऊ॥

तिन्ह कर संग सदा दुखदाई। जिमि कपिलहि घालइ हरहाई॥1॥

दुष्टों से हमें सचेत रहना चाहिए

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया भैया हरीन्द्र त्रिपाठी जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

25.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 25-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 बिस्वामित्र समय सुभ जानी। बोले अति सनेहमय बानी॥

उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक परितापा॥


प्रस्तुत है आर्षेय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 25-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  604वां सार -संक्षेप

1 =आदरणीय



अपनी संचेतना/प्राणिक ऊर्जा को जाग्रत करने के लिए हमें अध्ययन और स्वाध्याय की आवश्यकता होती है ये सदाचार संप्रेषण हमें विचारोन्मुख चिन्तनोन्मुख अध्ययनोन्मुख स्वाध्यायोन्मुख विकासोन्मुख कर देते हैं   आचार्य जी द्वारा यह  वपन   का कार्य (बीज बोना )सुचारु रूप से चल रहा है यह कार्य हमारे चिन्तन को राष्ट्रोन्मुखी भी बनाता है भारत का चिन्तन सनातन चिन्तन है इसी चिन्तन में पृथ्वी का कल्याण छिपा है 

संत इसी कार्य में लगे रहते हैं 

जो निरक्षर हैं

मसि-कागद छूयो नहीं, कलम गही नहिं हाथ॥

 वे  अपने काम में दत्तचित्त होकर आनन्दानुभूति कर सकते हैं

दत्तचित्तता कठिन है अद्भुत है लेकिन मनुष्य के लिए प्राप्य है

आचार्य जी ने अद्भुत ब्रह्मवर्चस की प्राप्ति के लिए परस्पर का सहयोगी भाव आवश्यक बताया 


सह नौ यशः। सह नौ ब्रह्मवर्चसम्‌। अथातः संहिताया उपनिषदं व्याख्यास्यामः। पञ्चस्वधिकरणेषु। अधिलोकमधिज्यौतिषमधिविद्यमधिप्रजमध्यात्मम्‌। ता महासंहिता इत्याचक्षते।

अध्यात्म बहुत महत्त्वपूर्ण विषय है

तीनों तापों की शान्ति  ही संतत्व है


आरामदायक स्थिति (comfort zone )से बाहर निकलकर हम लोग  कार्यक्रमों में भाग लें एक ऐसा ही कार्यक्रम 29 व 30 मार्च को अपने गांव सरौंहां में हो रहा है ऐसे कार्यक्रमों से हमें कुछ न कुछ अवश्य मिलता है


परिवर्तनमय संसार में हमें अपने को परिवर्तनों के अनुकूल ढाल लेना चाहिए हमें सकारात्मक सोच रखनी चाहिए संसार में सर्वत्र भय है

संत अकुतोभय होता है

अभयं सत्वसंशुद्धिः ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।


दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।।16.1।।

उत्तर कांड में 

प्रभु राम अपने भाइयों को बता रहे हैं

बिषय अलंपट सील गुनाकर। पर दु:ख दुख सुख सुख देखे पर॥

सम अभूतरिपु बिमद बिरागी। लोभामरष हरष भय त्यागी॥1॥

संत भक्तियोगी कर्मयोगी या ज्ञानयोगी होते हैं


यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।


शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।।12.17।।


भगवान् राम  गुरु पिता मां के प्रति अत्यधिक समर्पित रहे उनके आदेशों को सिर माथे पर लिया यह भक्तियोगी संत की परिभाषा है


बिगत काम मम नाम परायन। सांति बिरति बिनती मुदितायन॥

सीतलता सरलता मयत्री। द्विज पद प्रीति धर्म जनयत्री॥3॥



ये ज्ञानयोगी संत की परिभाषा है


कोई कामना नहीं । वे मेरे नाम का परायण करने वाले होते है। उनमें शांति, वैराग्य, विनय और प्रसन्नता निवास करती है । उनमें शीलता, सरलता होती है वे सबके प्रति मित्रता का भाव रखते हैं और ब्राह्मण के चरणों में भी उनकी प्रीति होती है


सम दम नियम नीति नहिं डोलहिं। परुष बचन कबहूँ नहिं बोलहिं॥4॥


निंदा अस्तुति उभय सम ममता मम पद कंज।


ये कर्मयोगी संत के लक्षण हैं विवेकानन्द डा हेडगेवार उदाहरण हैं अपने कर्म में लगा रहना लक्ष्य के प्रति समर्पण


तुलसीदास जी द्वारा संत के इस तरह के वर्णन के पीछे सीधी बात यह है कि उस समय का हिन्दू समाज जो अपने को पददलित होने का अनुभव कर रहा था उसमें संतत्व जाग्रत हो संतत्व वीर भाव से अलग नहीं होता तभी उन्होंने भगवान् राम से कहलवाया


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥


संतत्व और शिवत्व को आचार्य जी ने और कैसे विश्लेषित किया जानने के लिए सुनें

24.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 24-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कुड्मलित ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 24-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  603वां सार -संक्षेप

1 =हंसमुख


सदाचारमय विचार प्राप्त कर हम अपने व्यक्तित्व को उत्कृष्ट बनाने का प्रयास करते हैं

आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं कि रामचरितमानस श्रीमद्भग्वद्गीता उपनिषदों के साथ साथ हम अपने साहित्य की अन्य कृतियों को खोजें उनका अध्ययन करें


साथ ही साथ हम शयन जागरण खानपान आदि का भी ध्यान रखें ताकि हम स्वस्थ रहें

आनन्दित रहें


शरीर को सहायक बनाए रखने के लिए नियम व्यवस्था के अतिरिक्त अपने इष्ट पर पूर्ण आस्था रखें


अपनी युगभारती के अन्य बन्धुओं से प्राप्त आत्मीयतापूर्ण सहायता के लिए भैया अजय शंकर द्वारा व्यक्त की गई कृतज्ञता की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया  कि कर्तव्यभाव से काम करने और अत्यधिक आत्मीयता से काम करने में अन्तर होता है



अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।


निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी।।12.13।।


सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।


मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.14।।


समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः।



इस संतत्व में सभी से बहुत अधिक लगाव हो जाता है

यह लगाव परमात्मा की अद्भुत लीला है लगाव देश व्यक्ति स्थान किसी से हो सकता है कामनारहित संत संसार के वैविध्य पर हंसता है


शान्ति वैराग्य विनम्रता मुदिता उपेक्षा संत के लक्षण हैं


संत असंतन्हि कै असि करनी। जिमि कुठार चंदन आचरनी॥

काटइ परसु मलय सुनु भाई। निज गुन देइ सुगंध बसाई॥4॥


हम प्रवेश कर चुके हैं उत्तर कांड में


आइये आगे चलते हैं

संतत्व सशर्त नहीं होता है यह स्वभाव होता है


बिषय अलंपट सील गुनाकर। पर दु:ख दुख सुख सुख देखे पर॥

सम अभूतरिपु बिमद बिरागी। लोभामरष हरष भय त्यागी॥1॥


भगवान राम संतों के लक्षण बता रहे हैं


संत विषयों में लिप्त नहीं होते,  वे सद्गुणों  का खजाना होते हैं, उन्हें परदुःख देखकर दुःख और सुख देखकर सुख होता है।  उनके मन में कोई उनका शत्रु नहीं है। वे मद से रहित  वैरागी होते हैं  लोभ, क्रोध, हर्ष  भय आदि विकारों से दूर रहते हैं



तुलसीदास का भी संतत्व देखिए वो विदुषी रत्नावली के प्रति कृतज्ञता दिखाते हुए कहते हैं कि तुमने मुझे प्रभु राम से मिलाया

यद्यपि संन्यासी के लिए अंत्येष्टि करना वर्जित है लेकिन शंकराचार्य ने अपनी मां की और  रामचरित मानस को हृदय से लगाकर जीवनभर तप करने वाली अपनी पत्नी की तुलसीदास ने अंत्येष्टि की है


संत अकुतभय होता है

इसके अतिरिक्त किस महापुरुष को आचार्य जी ने अजातशत्रु बताया जानने के लिए सुनें

23.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 23-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कुलम्भर -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 23-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  602 वां सार -संक्षेप

1 कुलम्भरः =चोर


मनुष्य की परस्थ होकर विचार करने की वृत्ति पतनोन्मुखी वृत्ति है जो प्रायः अधिकांश में होती है लेकिन हमें आत्मस्थ होकर आत्मोन्नति के उपाय खोजने चाहिए


हम अपने समाज में उचित व्यवहार का अभाव देखते हैं जिसका कारण संस्कारहीनता है इसी कारण समाज में हमें यदि उचित व्यवहार देखना है तो उचित शिक्षा महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि शिक्षा संस्कार है संस्कार से विचार उत्पन्न होते हैं और विचार से व्यवहार आता है


 इस उचित शिक्षा की महत्ता दर्शाते ये सदाचार संप्रेषण हमें आत्मोन्नति के उपाय भी बताते हैं

इन संप्रेषणों से समझ में आता है कि  भारतीय संस्कृति विलक्षण है  अक्षय है इस संस्कृति को समाप्त करने के बहुत से उपाय किये गए लेकिन यह अक्षय ही रही



हम भारतीय संस्कृति के उपासक कभी हताश नहीं हुए

होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥

अस कहि लगे जपन हरिनामा। गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥


यह हरिनाम का जप प्राणिक ऊर्जा को उत्पन्न कर देता है प्राणिक ऊर्जा के बिना शरीर कुछ भी नहीं है इसी प्राणिक ऊर्जा में भक्ति भाव शक्ति आदि बहुत कुछ है लेकिन इसकी अनुभूति संस्कारों से ही की जा सकती है

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः वाला भाव हमारे अन्दर धीरे धीरे प्रवेश कर रहा है लेकिन इस जागरण में हम उन्माद से ग्रसित न हों हमें तो संतवृत्ति अपनानी है


जिसके लिए आइये चलते हैं रामचरित मानस

जो सुनि होइ सकल भ्रम हानी

के 

उत्तर कांड में


सनकादिक बिधि लोक सिधाए। भ्रातन्ह राम चरन सिर नाए॥

पूछत प्रभुहि सकल सकुचाहीं। चितवहिं सब मारुतसुत पाहीं॥1॥


भगवान् राम से जानना चाहते हैं कि संत की महिमा क्या है


संत असंत भेद बिलगाई। प्रनतपाल मोहि कहहु बुझाई॥

भगवान् राम कहते हैं

 अगनित श्रुति पुरान बिख्याता॥3॥


संतों, असंतों की करनी ऐसी है जैसे कुल्हाड़ी और चंदन का आचरण होता है। कुल्हाड़ी चंदन को काटती है क्योंकि उसका स्वभाव ही काटना है लेकिन चंदन अपने स्वभाव के कारण अपना गुण देकर उसे भी सुगंधित कर देता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने और क्या बताया जानने के लिए सुनें

22.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 (प्रथम नवरात्र ) तदनुसार 22-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 नववर्ष मंगलमय सुखद आनन्दमय विश्वासमय हो, 

 शौर्य शक्ति प्रपन्न वंचित वर्ग को शुभ आशमय हो ,

ज्ञान-गरिमा से प्रमंडित हो नयी पीढ़ी हमारी, 

प्रकृति पुष्पित पल्लवित फलवती और सुवासमय हो।


प्रस्तुत है कृतागस् -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत्  2080 (प्रथम नवरात्र )

तदनुसार 22-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  601 वां सार -संक्षेप

1 कृतागस् =मुजरिम



भारतीय कालगणना पहले हम लोगों के व्यवहार में सहज रूप से रहती थी धीरे धीरे पाश्चात्य सभ्यता की परतें  पड़ती गईं जिसके कारण हम भारतीय कालगणना आदि भूलते चले गए आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 को हम लोग संकल्प लें कि अपनी संस्कृति पर जमी धूल  साफ करेंगे


नई पीढ़ी को ज्ञान -गरिमा से प्रमंडित करने का भी हम संकल्प लें उसे भारतीय संस्कृति की विशेषताओं से परिचित कराएं


हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा

अरुणाचल की छवि बनी नयन मे धुँधली कंचन रेखा


आइये अपने सारे भ्रम समाप्त करने का संकल्प लेकर चलते हैं रामकथा के उत्तरकांड में


बार-बार अस्तुति करि प्रेम सहित सिरु नाइ।

ब्रह्म भवन सनकादि गे अति अभीष्ट बर पाइ॥35॥



प्रेम के साथ बार-बार स्तुति करके, सिर नवाकर और अपना  अभीष्ट वर ( अर्थात् अणु आत्मा को यह हमेशा अनुभव होता रहे कि वह विभु आत्मा का ही अंश है उसे अपनी असीमित शक्ति हमेशा अनुभव होती रहे) पाकर अपरिवर्तनीय रूप वाले सनक सनन्दन सनातन सनत कुमार मुनि ब्रह्मभवन को चले गए


संसार में आने पर माया लिपट जाती है शरीर धारण किया है तो विकार तो होंगे ही

विचार अस्त व्यस्त होंगे इसलिए हमारा विकार मुक्त शरीर हो इसके लिए हमें संकल्पित होना चाहिए इसी दिव्यत्व की प्राप्ति की हमारी कामना होनी चाहिए


पूछत प्रभुहि सकल सकुचाहीं। चितवहिं सब मारुतसुत पाहीं॥1॥


जोरि पानि कह तब हनुमंता। सुनहु दीनदयाल भगवंता॥

नाथ भरत कछु पूँछन चहहीं। प्रस्न करत मन सकुचत अहहीं॥3॥



भरत जी ही का नाम आया क्योंकि वो बहुत दिन से वियोग की साधना कर रहे हैं


आचार्य जी ने संत का वास्तविक अर्थ बताया

संत  सारे विकारों को समाप्त करता है

और अधिक विस्तार से जानने के लिए सुनें

21.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्दशी/अमावस्या विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 21-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 उद्देश्य भारत-भक्ति जग-व्यवहार प्रेमी का रहे ,

भाव मन का परम पावन कोइ भी कुछ भी कहे, 

यह दशा हे इष्ट मेरे ! करो मेरी लालसा ,

उफ्  नहीं निकले कभी तन कष्ट कितने भी सहे। ।


प्रस्तुत है साभ्यसूय -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्दशी/अमावस्या विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 21-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  600 वां सार -संक्षेप

1साभ्यसूय =ईर्ष्यालु


हम सभी को सद्गति मिलनी है लेकिन 

तन की गति के लिए हम लोग इतने चिन्तित रहते हैं तन से मन इतना संयुत रहता है कि हम तन को ही सत्य मान लेते हैं और इसे सत्य मानने से संसार प्रायः भयानक लगता है समस्याओं से आप्लावित लगता है कभी कभार ही मोहक लगता है

इसलिए यदि हमें आनन्दित रहना है तो हमें तन की गति के लिए चिन्तित नहीं रहना है



आजकल हम लोग रामचरित मानस,जिसमें छोटी छोटी बात भी बहुत महत्त्वपूर्ण है,से मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे हैं ताकि हम भी संकट आने पर उनका हल निकाल सकें तुलसीदास ने स्वयं भी बहुत संकट झेले और उस कृति के नायक भगवान् राम ने भी अनगिनत संकटों को झेलकर अपना लक्ष्य

निसिचर हीन करउँ महि( भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥)

प्राप्त किया


मानस सामान्य कथा के साथ तत्व को प्राप्त करने वाली गहन कथा भी है

आइये चलते हैं उसी ग्रंथ के उत्तर कांड में


एकटक रहे निमेष न लावहिं। प्रभु कर जोरें सीस नवावहिं॥2॥


तिन्ह कै दसा देखि रघुबीरा। स्रवत नयन जल पुलक सरीरा॥

कर गहि प्रभु मुनिबर बैठारे। परम मनोहर बचन उचारे॥3॥


संत संग अपबर्ग कर कामी भव कर पंथ।

कहहिं संत कबि कोबिद श्रुति पुरान सदग्रंथ॥33॥


आचार्य जी ने नारदभक्तिसूत्र की चर्चा करते हुए बताया कि भक्ति से आत्मानन्द में मग्न कैसे हुआ जा सकता है


संत का संग ही मोक्ष का मार्ग   है लेकिन है कठिन

और यदि हम ही संतत्व प्राप्त कर लें हम स्वयं ही अपने साथी हो जाएं तत्त्व सत्व की अनुभूति कर लें तो क्या कहना 



हम अनन्त पथ के पथिक हैं

राम जनम के हेतु अनेका

हमारा चिन्तन यही है कि इतिहास दोहराया जाएगा


जय भगवंत अनंत अनामय। अनघ अनेक एक करुनामय॥1॥


भक्ति में भिखमंगापन नहीं होना चाहिए


आचार्य जी ने लेखनयोग का महत्त्व बताया मानस की बहुत सी व्याख्याएं हैं लेकिन

हम स्वयं भी अपनी व्याख्याएं निकाल सकते हैं

20.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 20-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 ॐ

शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं बह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम । अवतु वक्तारम् ।


ॐ शान्तिः । शान्तिः । शान्तिः ।



प्रस्तुत है व्यवसायिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 20-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  599 वां सार -संक्षेप

1 =धैर्यवान्


बड़े भाग पाइब सतसंगा। बिनहिं प्रयास होहिं भव भंगा॥4॥

हमें इस सत्संग का लाभ उठाना चाहिए ये सदाचार वेलाएं हमें आनन्दित करती हैं

हमारी सांसारिक समस्याओं को सुलझाने का उपाय बताती हैं अपनी रुचि के अनुसार हम गम्भीर विषयों में भी प्रवेश कर सकते हैं

उत्तरकांड में


रूप धरें जनु चारिउ बेदा। समदरसी मुनि बिगत बिभेदा॥

आसा बसन ब्यसन यह तिन्हहीं। रघुपति चरित होइ तहँ सुनहीं॥3॥



ब्रह्मा के पुत्र सनक सनन्दन सनातन सनत कुमार निर्लिप्त होने के बाद भी रामकथा के व्यसनी हैं भगवान् राम के अन्य भाई,हनुमान जी आदि भी भक्ति में डूब रहे हैं 



संत संग अपबर्ग कर कामी भव कर पंथ।

कहहिं संत कबि कोबिद श्रुति पुरान सदग्रंथ॥33॥



संत की संगति मोक्ष  का मार्ग है और कामी का साथ जन्म-मृत्यु के बंधन में लिप्त होने वाला  मार्ग है। संत, कवि,पंडित,वेद, पुराण  सभी सद्ग्रंथ ऐसा ही बताते हैं


इसके विस्तार के लिए विनय पत्रिका जिसमें मानस का सारतत्त्व है ऐसा कहा जा सकता है में हमें प्रवेश करना चाहिए




जिव जबते हरितें बिलगान्यो। तबतें देह गेह निज जान्यो ॥ 

मायाबस स्वरुप बिसरायो। तेहि भ्रमतें दारुन दुख पायो ॥ 

पायो जो दारुन दुसह दुख, सुख-लेस सपनेहुँ नहिं मिल्यो।

भव-सूल,सोक अनेक जेहि, तेहि पंथ तू हठि हठि चल्यो ॥ 

बहु जोनि जनम,जरा,बिपति, मतिमंद! हरि जान्यो नहीं।

श्रीराम बिनु बिश्राम मूढ़! बिचारु, लखि पायो कहीं ॥ 

             (२)

 आचार्य जी ने बताया 

उत्साह के साथ एक योजना बन रही है कि 29 व 30 मार्च को मानस का अखंड पाठ कार्यक्रम हो भगवान् की कृपा से ही सद् संगति का अवसर आता है 


रघुपति-भगति सुलभ,सुखकारी। सो त्रयताप-सोक-भय-हारी ॥ 

बिनु सतसंग भगति नहिं होई। ते तब मिलै द्रवै जब सोई l


इसके अतिरिक्त


मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर।

अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर॥130 क॥

उच्च स्वर में कौन गाते थे भैया मनीष भैया डा पङ्कज का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

19.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 19-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 कावयशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम् ।


     व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन  वा  ।।



प्रस्तुत है व्यंसक -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी


संत संग अपबर्ग कर कामी भव कर पंथ।

कहहिं संत कबि कोबिद श्रुति पुरान सदग्रंथ l


 का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 19-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 


बड़े भाग पाइब सतसंगा। बिनहिं प्रयास होहिं भव भंगा॥


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  598 वां सार -संक्षेप

1 व्यंसक =ठग

आज कल हम लोग रामकथा सुन रहे हैं 

आइये प्रवेश करते हैं उत्तर कांड में 


रूप धरें जनु चारिउ बेदा। समदरसी मुनि बिगत बिभेदा॥

आसा बसन ब्यसन यह तिन्हहीं। रघुपति चरित होइ तहँ सुनहीं॥3॥



ऐसा लगता है चारों वेदों ने ही बालक रूप धारण किया हो चारों मुनि सनक सनन्दन सनत कुमार सनातन समदर्शी और भेदरहित हैं। वे दिगंबर हैं । उन सभी का एक ही व्यसन है - जहाँ रामकथा होती है वे वहाँ जाकर  उसे अवश्य ही सुनते हैं

क्योंकि


रामकथा

रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।

तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥ 31॥

 भावक भावुक ज्ञानी चिन्तक  मूढ़ सभी का कल्याण करती है


राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं॥

जीवनमुक्त महामुनि जेऊ। हरि गुन सुनहिं निरंतर तेऊ॥1॥


यह रस संसार से संयुत रहने का  एक आधार है जो रसहीन होते हैं उनकी न दिशा होती है न दृष्टि होती है


रसात्मक संसार में कोई न कोई व्यसन हो जाता है वह सद् व्यसन भी हो सकता है और दुर्व्यसन भी


तहाँ रहे सनकादि भवानी। जहँ घटसंभव मुनिबर ग्यानी॥

राम कथा मुनिबर बहु बरनी। ग्यान जोनि पावक जिमि अरनी॥4॥




घटसंभव मुनि  (घड़े से उत्पन्न हुए ) अर्थात् अगस्त्य ऋषि के यहां ये चारों  राम की कथा सुनते हैं

आचार्य जी ने अरणि की व्याख्या की


हमारा जो रूप है उस भाव में रहने पर हम सम्मानित होंगे

भगवान् राम मनुष्य रूप में लीला कर रहे हैं तो उन मुनियों का स्वागत कर रहे हैं



इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

18.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 18-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सर्वस्व सौंपता शीश झुका, लो शून्य राम लो राम लहर,

फिर लहर-लहर, सरयू-सरयू, लहरें-लहरें, लहरें- लहरें,

केवल तम ही तम, तम ही तम, जल, जल ही जल केवल,

हे राम-राम, हे राम-राम

हे राम-राम, हे राम-राम


भारत भूषण






प्रस्तुत है अकुतभय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 18-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  597 वां सार -संक्षेप

1 जिसे कहीं से भी डर न हो



हमारे साथ ही साथ कुछ भाव उत्पन्न हुए हैं अर्थात् सहज भाव जैसे आत्मीयता प्रेम ईर्ष्या द्वेष आदि 

ये सदाचार संप्रेषण हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपने स्वभाव में सद्भाव ग्रहण करें और बुरे भावों का परित्याग करें


तुलसीदास  जी का वैशिष्ट्य देखिये निम्नांकित एक अर्धाली में प्रकृति का वर्णन दूसरी में स्वभाव का वर्णन


छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई॥

भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहि माया लपटानी॥3॥


पानी से भरी छोटी नदियाँ  किनारों को तुड़ाती हुई चलीं, जिस प्रकार थोड़े धन से ही दुष्ट व्यक्ति इतरा जाते हैं और मर्यादा का त्याग कर देते हैं भूमि पर पड़ते ही पानी गंदला हो गया है, जैसे शुद्ध जीव  माया से ग्रसित हो गया है



तुलसीदास जी का स्वान्तः सुखाय हम लोगों के आनन्द का विषय बन गया और मानस के रूप में हमें ऐसा मार्गदर्शक ग्रंथ मिला है जिसके अवगाहन में आनन्द ही आनन्द है


अंधेरे के समान परिस्थितियां मनुष्य को सदैव घेरे रहती हैं लेकिन आत्मप्रकाश से हमें इनसे निपटने का हौसला मिल जाता है और संगठन हो तो फिर कहना ही क्या

यह शतगुणित हो जाता है

रामचरित मानस  ग्रंथ यही संदेश देता है


धर्म ज्ञान विज्ञान सुख संतोष की वृद्धि होती है षड्रिपु नष्ट होते हैं यह महत्त्व है रामकथा का

भगवान् राम की साकेत यात्रा का समय हो रहा है लेकिन जिसने जिसने राम की कथा सुनी है उनमें रामात्मकता का प्रवेश हो गया है और उसी रामात्मकता को उन्होंने प्रसारित किया

हम भी यही करें 



तुलसी दास जी में तो अद्भुत कौशल था उन्होंने बार बार संकेत किया कि भगवान् राम मनुष्य के रूप में लीला तो करने आये हैं लेकिन हम उन्हें केवल मनुष्य न समझें वो तो साक्षात् भगवान् ही हैं ये समझें 

आइये चलते हैं उत्तरकांड में



जब ते राम प्रताप खगेसा। उदित भयउ अति प्रबल दिनेसा॥

पूरि प्रकास रहेउ तिहुँ लोका। बहुतेन्ह सुख बहुतन मन सोका॥1॥


जब से रामप्रताप रूपी अत्यंत प्रबल सूर्य उदित हुआ है तब से तीनों लोकों में



 प्रकाश भर गया है। इस कारण बहुतों को सुख मिला और बहुत  शोकग्रस्त हो गए

एक अद्भुत प्रसंग का तुलसीजी ने उल्लेख किया 


जानि समय सनकादिक आए। तेज पुंज गुन सील सुहाए॥

ब्रह्मानंद सदा लयलीना। देखत बालक बहुकालीना॥2॥

ब्रह्मा की अयोनिज संतानें 

  सनक, सनन्दन, सनातन व सनत  कुमार हैं पुराणों में उनकी विशेष महत्ता वर्णित है।

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

17.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 17-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 हमारा देश स्रष्टा की मनोरचना परम पावन, 

समूचे विश्व को लगती रही हरदम मनोभावन, 

हमारा धर्म संयम-शक्ति का अद्भुत समन्वय था, 

तभी हम थे जगत के मार्गदर्शक और शुभ 'आयन' ।


प्रस्तुत है अंसल ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 17-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  596 वां सार -संक्षेप

1 शक्तिशाली

प्रातःकाल जागरण एक सत्कर्म है जो हमें अद्भुत ऊर्जा से भर देता है यह हमारा आत्मकल्याण तो करता ही है हमें अन्य लोगों के बीच में उपयोगी सम्मानित व्यक्ति भी बना देता है 

ब्रह्मवेला का समय अत्यन्त अद्भुत होता है हमें इसका लाभ उठाना चाहिए

हमारे मनोभाव कुछ करने के लिए प्रेरित करते हैं मानसिक शक्ति आत्मीयता संयम प्रेम साधना आदि भावों से भावित रहती है इसकी अभिव्यक्ति जिस रूप में भी हो जाए हमें उसका प्रयास करना चाहिए


अध्ययन स्वाध्याय जप मौनजप आदि से इस समय का सदुपयोग करें


सदाचारी के मन में सदाचार तो विकारी के मन में विकार आते हैं हमें विकारों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए और इसके लिए ये सदाचार वेलाएं अत्यन्त उपयुक्त हैं


आइये प्रवेश करते हैं रामचरित मानस में


बहुत सारा अध्ययन करके परिस्थितियों का आकलन करके तुलसीदास जी ने भगवान् राम के रूप में ऐसा चरित्र पाया जिसने सब प्रकार की परिस्थितियों को अनुभव करके सात्विक तात्विक वैचारिक सर्वसम्पन्न आनन्दमय वातावरण से परिपूर्ण रामराज्य को स्थापित किया


सुख इन्द्रियजन्य होता है और आनन्द मानसिक होता है मानसिक आनन्द में बहुत क्षमता होती है

क्रूर शासक अकबर से त्रस्त समाज को जाग्रत करने का तुलसी का यह प्रयास अद्भुत है

तुलसीदास जी को लगा अब भी हम यदि भगवान राम का रामत्व धारण कर लें तो रामराज्य स्थापित हो सकता है ऐसा रामराज्य जहां


सब कें गृह गृह होहिं पुराना। राम चरित पावन बिधि नाना॥


मोर हंस सारस पारावत। भवननि पर सोभा अति पावत॥

जहँ तहँ देखहिं निज परिछाहीं। बहु बिधि कूजहिं नृत्य कराहीं॥3॥



दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥

सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥1॥


अवधपुरी बासिन्ह कर सुख संपदा समाज।

सहस सेष नहिं कहि सकहिं जहँ नृप राम बिराज॥26॥


नारदादि सनकादि मुनीसा। दरसन लागि कोसलाधीसा॥

दिन प्रति सकल अजोध्या आवहिं। देखि नगरु बिरागु बिसरावहिं॥1॥

नारद,सनक आदि मुनीश्वर सब मनुष्य के रूप में लीला करने आए भगवान् श्री रामजी के दर्शन के लिए प्रतिदिन अयोध्या आते हैं और उस नगरी को देखकर वैराग्य भुला देते हैं


बाज़ार रुचिर न बनइ बरनत बस्तु बिनु गथ पाइए।

बस्तु बिनु गथ की आचार्य जी ने बहुत सुन्दर व्याख्या की


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

16.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 16-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सब कें गृह गृह होहिं पुराना। राम चरित पावन बिधि नाना॥

नर अरु नारि राम गुन गानहिं। करहिं दिवस निसि जात न जानहिं॥4॥




प्रस्तुत है व्यंसक -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 16-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  595 वां सार -संक्षेप

1 व्यंसक =ठग


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः इस मूल सिद्धान्त से हम लोग चिपके रहें

आचार्य जी प्रतिदिन हम लोगों का चैतन्य जाग्रत करने का प्रयास करते हैं

हमारी शक्ति बुद्धि विचार क्रिया चैतन्य हनुमान जी द्वारा प्रेरित हैं

इसी को इष्ट की साधना कहते हैं

हनुमान जी की भक्ति के लिए भाव समर्पण विश्वास अत्यन्त आवश्यक है

आचार्य जी ने भैया डा पंकज जी की जिज्ञासा शमित करते हुए बताया कि 

सृष्टि के आदि के कारण हैं नाद  विन्दु  बीज

निर्विकल्प समाधि में रहना वाला परमात्मा जब विकारी होता है तो ॐ स्वर निकलता है यह आदिस्वर नाद है


नाद विन्दु बीज से ही सृष्टि की सारी अभिव्यक्तियां होती हैं


आगम अर्थात् शास्त्र विधि विधान में मन्त्रों का प्रथम अक्षर बीजाक्षर कहलाता है


शिव प्रणीत तन्त्र शास्त्र तीन भागों में है

आगम यामल और मुख्य तन्त्र


वाराहीतंत्र' के अनुसार आगम निम्नांकित लक्षणों से प्रकट होता है : सृष्टि, प्रलय, देवतार्चन, सर्वसाधन, पुरश्चरण, षट्कर्म(शांति, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन तथा मारण) साधन और ध्यानयोग


आचार्य जी ने महानिर्वाण तन्त्र का उल्लेख करते हुए बताया कि कलियुग में सुधी लोग देवों की पूजा करेंगे निगम अर्थात् वेदों द्वारा वे सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकते


अब चलते हैं रामचरित मानस की कथा में 


आत्मबोध की जागृति मानस का मूल तत्व है


कहा कहौं छवि आज की, भले बने हो नाथ ।

तुलसी मस्तक तब नवै, जब धनुष बान लो हाथ ।।

धनुष उठाना ही लोग भूल गए थे  अध्यात्म शौर्य से दूर हो गया था तो तुलसी जी ने हमारा आत्मबोध जगाने का प्रयास किया 

अब चलते हैं इसी मानस के उत्तर कांड में 


अहनिसि बिधिहि मनावत रहहीं। श्री रघुबीर चरन रति चहहीं॥

दुइ सुत सुंदर सीताँ जाए। लव कुस बेद पुरानन्ह गाए॥3॥

नगर के लोग दिन-रात ब्रह्मा जी को मनाते रहते हैं और उनसे प्रभु राम के चरणों में प्रीति चाहते हैं।

मां सीता  के लव और कुश नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए, जिनका वेद-पुराणों ने भी वर्णन किया है


मार्गदर्शक तुलसीदास जी ने भगवान् राम को विष्णु का अवतार न मानकर ब्रह्म का अवतार माना


तुलसीदास जी ने भगवान् राम का वही स्वरूप वर्णित किया जिससे उनपर कोई धब्बा  न लग सके

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि

गीता प्रेस का अवतार अंक अवश्य देंखे

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

15.3.23

¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 15-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। रहहिं एक सँग गज पंचानन॥

खग मृग सहज बयरु बिसराई। सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई॥1॥


प्रस्तुत है लोकाधिक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 15-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  594 वां सार -संक्षेप

1 असाधारण



राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं॥


प्रभु राम की कथा सुनते-सुनते जो तृप्त हो जाते हैं  वे उसका विशेष रस जान ही  नहीं पाए

हमें तो इसे बार बार सुनना है अभी तो हम इसे सांकेतिक रूप से सुन रहे हैं  और आचार्य जी हमें  गहन मन्थन की प्रेरणा देने और अध्यात्म के द्वार तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं 



मनुष्य के दो स्वरूप हैं संबन्धों का स्वरूप और तात्विक स्वरूप

हम लोग संबन्धों में ही उलझते पुलझते रहकर समय व्यतीत करते रहते हैं जिसके कारण तात्विक स्वरूप की ओर ध्यान ही नहीं दे पाते

तुलसीदास जी ने कथा में बहुत से स्थानों पर हमें याद दिलाया है कि हम अपने तात्विक स्वरूप की ओर भी ध्यान दें हम अणु आत्मा हैं और वो विभु आत्मा हैं जो धर्म की हानि देखकर 

 धरि बिबिध सरीरा


उत्तरकांड में बहुत  विशेष प्रसंग नहीं हैं इसमें प्राकृतिक पारिवारिक सामाजिक परिस्थितियां आदि वर्णित हैं

वनवासियों भाइयों आदि के रूप में प्राप्त 

शक्तियों के साथ अवतरित हुए सर्वत्र मान्य भगवान् राम


(ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार।

सोइ सच्चिदानंद घन कर नर चरित उदार॥25॥)


  जो पुरुष हैं उन्हें मां सीता मिलीं जो प्रकृति के रूप में शक्ति हैं

प्रकृति और पुरुष का साहचर्य दिखाती ये पंक्तियां



बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि तप जेतनेहि काज।

मागें बारिद देहिं जल रामचंद्र कें राज॥23॥

प्रकृति पूज्य है पुरुष पूजक है


पति अनुकूल सदा रह सीता। सोभा खानि सुसील बिनीता॥


यद्यपि घर में बहुत से दास दासियाँ हैं और वे सब सेवा की विधि में कुशल हैं, फिर भी  सीता जी घर की सब सेवा अपने ही हाथों से ही करती हैं और श्री राम की आज्ञा का अनुसरण करती हैं


और अधिक जानने के लिए सुनें

14.3.23

 फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। रहहिं एक सँग गज पंचानन॥

खग मृग सहज बयरु बिसराई। सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई॥1॥




प्रस्तुत है दाण्डाजिनिक -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 14-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  593 वां सार -संक्षेप

1दाण्डाजिनिक =ठग


हनुमान जी की कृपा से और भगवान् राम के वरदान से तुलसीदास जी ने बहुत ही सहज ढंग से लिख दिया


अब्यक्तमूलमनादि तरु त्वच चारि निगमागम भने।

षट कंध साखा पंच बीस अनेक पर्न सुमन घने॥

फल जुगल बिधि कटु मधुर बेलि अकेलि जेहि आश्रित रहे।

पल्लवत फूलत नवल नित संसार बिटप नमामहे॥5॥


आचार्य जी ने बताया कि कुछ दिन पूर्व उत्तरकांड में आये इस अंश को समझने की जिज्ञासा भैया डा पंकज में जाग्रत हुई और उन्होंने इस पर अनुसंधान किया और इसमें सफलता प्राप्त की


सारे कार्यव्यवहारों में लगे रहने के पश्चात् भी इस प्रकार की अनुसंधित वृत्ति सराहनीय है


हम सब व्यस्त हैं यही व्यस्तता आनन्द का मूल है

सृष्टि के वैविध्य में आनन्द की अनुभूति करें


हम सब लोग भी इसी प्रकार के अनुसंधान कर सकते हैं


यह मानकर कि हमारा यह शरीर रूपी यन्त्र क्षरणशील है

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः के लिए हम संकल्पित हों


धर्मरत पुनी


धर्म अपने जीवन का विकास है

हमारे ऋषियों ने भारतवर्ष की जो वन्दना की है वह दिव्य है


मानस से ही हम अपना अनन्तगुणित विकास कर सकते हैं इसका पाठ ही हम करते रहें तो हमारे अंदर कभी भी अध्ययन का भाव जाग सकता है

आइये चलते हैं उत्तरकांड में


राम राज्य में आनन्द ही आनन्द है


दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥



एक ओर रामराज्य और दूसरी ओर इस समय भारत की स्थिति


यह वर्तमान स्थिति व्यथित करती है

हमारा कर्तव्य है कि हम जाग्रत रहें


अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥

नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना॥3॥

इसके अतिरिक्त 

आचार्य जी ने आयुर्विज्ञान की विशेषता  बताई


आचार्य जी ने अभिमन्त्रण का अर्थ स्पष्ट किया

13.3.23

 प्रस्तुत है मेध्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 13-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  592 वां सार -संक्षेप

1=पुण्यशील




भारतीय चिन्तन की विधि है कि जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य का मनुष्योचित विकास हो

इन सदाचार वेलाओं का मूल उद्देश्य है कि हम सदाचारमय विचार ग्रहण कर ऊर्जा से भर जाएं हमारी अध्यात्म की ओर उन्मुखता हो लेकिन वह शौर्य प्रमण्डित ही हो




सदा वेदपथ की ओर चलने वाले तुलसीदास जी कहते हैं



श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।

किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥

विषम परिस्थितियों में लिखी रामचरित मानस के  गूढ़ तत्व को समझने के लिए हमें इस कथा को बार बार   पढ़ना पड़ेगा


मानस के उन भावों में हम भी जाने का प्रयास करें जिन भावों से भावित होकर तुलसीदास जी ने वह तत्व हमें दे दिया


आइये चलते हैं उत्तर कांड में

बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग।

चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग॥20॥





धर्म इस समय बहुत चर्चा का विषय है वर्णाश्रम व्यवस्था भारतवर्ष का वैशिष्ट्य है

यह समाप्त नहीं किया जा सकता यह व्यवस्था संपूर्ण प्रकृति में है स्थावर जंगम में है हमें इन्हें समझने के लिए समय भी चाहिए हमें समय के सदुपयोग के लिए भी प्रयास करना चाहिए


हम सूक्ष्मतत्त्व लेकर अवतरित हैं महातत्त्व लेकर अवतरित हुए शंकराचार्य बहुत कम समय में ही बहुत कुछ कर गए

कोई भी काम अच्छा है बस मन उसमें रम जाए संत रविदास पुराने जूते बनाते थे

उन्होंने इसी जूते के काम में परमात्मा के दर्शन कर लिए

यह भारतीय जीवन दर्शन है 


जब हम अपना पथ त्यागकर दूसरे के पथ पर प्रवेश कर जाते हैं तो हमें भय रोग शोक आदि होते हैं 


संघर्ष वहीं होता है जहां लगता है हम सही हैं दूसरा गलत है बहुत प्रकार के पंथ हैं सभी  एक  स्थान पर जाते हैं लेकिन ऐसा भी होता है कि लोग पंथों को ही गंतव्य मान लेते हैं

बीज कभी मरता नहीं इसकी आचार्य जी ने बहुत सुंदर व्याख्या की

हम अपने कर्तव्य को समझें

अपने दर्शनतत्व को भी जानने का प्रयास करें 



आचार्य जी ने यह भी कहा कि कोई भी forwarded message भेजने से पहले उसे भली भांति जांच लें



आचार्य जी ने भैया डा अनुराग भैया आलोक सांवल भैया राहुल मिठास भैया डा मधुकर भैया मनीष का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

12.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 12-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 राही वही जो राह से अपना नाता न तोड़े


प्रस्तुत है पर्युत्सुक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 12-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  591 वां सार -संक्षेप

1=प्रबल इच्छा रखने वाला

अपने विकारों को परिवार के विकारों को समाज के विकारों को पचाने वाले महात्मा तुलसीदास जी के महामन्त्र वाले अद्भुत ग्रंथ 

रामचरित मानस की कथा का तत्वसार प्रेम का विस्तार है

वह प्रेम माला जपने वाला न होकर उचित स्थान पर पराक्रम का प्रकटीकरण करने वाला शौर्य है तभी रामराज्य बनता है 

अपनी शक्ति को जाग्रत करने के लिए,

धर्म -पथ के ,  सेवा -पथ  के ,वेद -पथ के,विद्या और अविद्याओं को जानने के जिज्ञासु  राही बनने के लिए, कलियुग की वैतरणी को पार करने वाली नाव के यात्री बनने के लिए आइये चलते हैं ज्ञान भक्ति का  भी विवेचन करने वाले उत्तर कांड में 


अपने वक्ष की माला पहनाकर भगवान् राम ने अंगद को अत्यधिक प्रेमपूर्वक भेजा


भगवान् भी भक्त का ऋणी हो जाता है दोनों का अद्भुत संपर्क है भगवान् राम एक जगह हनुमान जी से कहते हैं कि मैं तुम्हारा ऋणी हूं


विभु आत्मा से अणु आत्मा की ओर संप्रेषित होने वाला संपर्क है ये


चरन नलिन उर धरि गृह आवा। प्रभु सुभाउ परिजनन्हि सुनावा॥

रघुपति चरित देखि पुरबासी। पुनि पुनि कहहिं धन्य सुखरासी॥3॥



फिर भगवान राम के चरणों को हृदय में बसाकर निषादराज ने घर आकर अपने कुटुम्बियों को  भगवान् का स्वभाव वर्णित किया प्रभु का यह चरित्र देखकर अयोध्यावासी बार-बार दोहराते हैं कि सुख की राशि प्रभु धन्य हैं

साधना के बाद प्रभु राम को राज्याभिषेक के रूप में सिद्धि मिली है भगवान् अब सिद्धि बांट रहे हैं

आचार्य जी ने बताया कि पुरुषत्व क्या है वैर क्या है वैषम्य क्या है 


विवाद समाप्त विषय समाप्त यही पुरुषत्व है



बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग।

चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग॥20॥


इस दोहे की व्याख्या बहुत विस्तार ले सकती है

जब ब्राह्मण भ्रमित हो गए तो उससे बहुत हानि हुई

विकारी समाज ने पावनी अर्थात् गंगा मैली कर दी

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

11.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 11-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 अनंतानंद है विश्वास हनुमद्भक्ति है 

भारती भावों में परम अनुरक्ति है 

फिर और क्या कुछ चाहिए दाता मुझे

(जब)

"युगभारती" के साथियों की शक्ति है ।

---  ओम शङ्कर



प्रस्तुत है प्रणायक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी


*तुम्ह मम सखा भरत सम भ्राता। सदा रहेहु पुर आवत जाता॥*


 का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 11-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  *590 वां* सार -संक्षेप

1=पथ -प्रदर्शक


सतोगुणी पोषण से समाज-वृक्ष पल्लवित होता है उसे तमोगुणी पोषण नहीं चाहिए होता है सतोगुणी पोषण भारतवर्ष का वैशिष्ट्य है इसीलिए हमारी भूमि और हम स्वयं विशेष हैं

इसीलिए हमारा भी कर्तव्य हो जाता है कि हम स्वयं भी सद्गुण ग्रहण करें और समाज को उन्हीं सद्गुणों से पल्लवित करें



कभी हम भ्रमित थे

हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा

अरुणाचल की छवि बनी नयन मे धुँधली कंचन रेखा


अब हमें सारे भ्रम  दूर कर लेने चाहिए

अकबर के काल में भी समाज भ्रमित हो गया था मोहांध था तो तुलसीदास ने नर रूप में जन्म लेने वाले प्रभु राम द्वारा 

स्थापित आदर्श को पकड़ा

और मानस के रूप में एक मार्गदर्शक ग्रंथ दे दिया जिससे समाज भगवान राम के आदर्शों पर चल सके

समस्याएं जितनी भी आएं जैसी भी आएं हम अपने कर्तव्य पथ से भटके नहीं मानस का यही संदेश है

आइए चलते हैं समाज में अपने को एक आदर्श रूप में स्थापित करने की प्रेरणा लेने के लिए उसी मानस के उत्तरकांड में



अंगद बचन बिनीत सुनि रघुपति करुना सींव।

प्रभु उठाइ उर लायउ सजल नयन राजीव॥18 क॥


निज उर माल बसन मनि बालितनय पहिराइ।

बिदा कीन्हि भगवान तब बहु प्रकार समुझाइ॥18 ख॥


भगवान् राम ने अंगद को उसके कर्तव्य याद दिला दिए


अब सूर्य से शिक्षाप्राप्त हनुमान जी जिन्हें भगवान् राम के रूप में इष्ट मिल गए हैं सूर्य के अवतार सुग्रीव से विनती कर अयोध्या में रुकना चाहते हैं

अंगद का कहना


कहेहु दंडवत प्रभु सैं तुम्हहि कहउँ कर जोरि।

बार बार रघुनायकहि सुरति कराएहु मोरि॥19 क॥

हनुमान जी ने जब भगवान् राम को बताया तो इनके आंसू आ गए


आचार्य जी ने यह भी बताया कि विकारों के कारण ही विचार महत्त्वपूर्ण होते हैं



उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हमें स्थूल का ध्यान न कर सूक्ष्म का ध्यान करना है

मनुष्य का काम केवल सोना खाना नहीं है उसका तो कोई कर्तव्य है

10.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 10-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज।

जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज॥22॥




प्रस्तुत है प्रणाय्य¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 10-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  589 वां सार -संक्षेप

1=ईमानदार



ये सदाचार संप्रेषण हमारे लिए अत्यन्त उपयोगी हैं इनसे हम प्रेरित होकर चिन्तन मनन स्वाध्याय अध्ययन द्वारा हम बहुत से कठिन विषय भी समझ सकते हैं


संसार को समझने की शक्ति प्राप्त करने के बाद हम संसार के आदि का रहस्य भी जान सकने में समर्थ हो सकते हैं


बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग।

चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग॥20॥



अध्यात्म हमें आनन्द की स्थिति में पहुंचाता है

यही शिवत्व है


ब्रह्मानंद मगन कपि सब कें प्रभु पद प्रीति।

जात न जाने दिवस तिन्ह गए मास षट बीति॥15॥


समय बीतते देर नहीं लगती भगवान् राम का राजतिलक हुए छह माह बीत गए हैं

भगवान् तो स्वयं नर का रूप धारण कर


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।


 धरती का भार उतारने आए हैं भारतवर्ष उसका केन्द्रबिन्दु है उन्होंने अपनी शक्ति बुद्धि विचार ऐश्वर्य को झोंकने के साथ अपनों का संगठन बनाकर भारतवर्ष की सुरक्षा की

इसी रामत्व को धारण करने के प्रयास के लिए संत तुलसीदास ने एक अद्भुत कृति रच दी


जिसके उत्तरकांड में आइये प्रवेश करते हैं



अब गृह जाहु सखा सब भजेहु मोहि दृढ़ नेम।

सदा सर्बगत सर्बहित जानि करेहु अति प्रेम॥16॥


अब आप लोग अपने अपने स्थान पर जाइये लेकिन आप लोग अपना कर्तव्य न भूलें 


प्रेम जब कर्तव्य में बाधा बन जाता है तो वह मोह हो जाता है

वही प्रेम जब कर्तव्य में प्रेरणा बन जाता है तो वह भक्ति हो जाती है

इस प्रकार भक्ति ज्ञान का आधार है



परम प्रेम तिन्ह कर प्रभु देखा। कहा बिबिधि बिधि ग्यान बिसेषा॥

प्रभु सन्मुख कछु कहन न पारहिं। पुनि पुनि चरन सरोज निहारहिं॥2॥



प्रभु राम ने उनका अत्यंत प्रेम देखा तो उन्हें विशेष ज्ञान का उपदेश दिया। प्रभु के सामने वे कुछ कह नहीं सकते वे बार-बार उनके चरणों को देखते हैं




लेकिन अंगद बहुत दुःखी है वह जाना नहीं चाहता है


असरन सरन बिरदु संभारी। मोहि जनि तजहु भगत हितकारी॥

मोरें तुम्ह प्रभु गुर पितु माता। जाउँ कहाँ तजि पद जलजाता॥2॥


अंगद की दास्य भक्ति देख्ने लायक है


अस कहि चरन परेउ प्रभु पाही। अब जनि नाथ कहहु गृह जाही॥4॥

इस अवसर पर राम जी के नयन भीग गए

निज उर माल बसन मनि बालितनय पहिराइ।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि भाई साहब अस्वस्थ हैं

हम लोग ईश्वर से उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की प्रार्थना करते हैं

9.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 09-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।


छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।




अब्यक्तमूलमनादि तरु त्वच चारि निगमागम भने।

षट कंध साखा पंच बीस अनेक पर्न सुमन घने॥

फल जुगल बिधि कटु मधुर बेलि अकेलि जेहि आश्रित रहे।

पल्लवत फूलत नवल नित संसार बिटप नमामहे॥5॥




प्रस्तुत है प्रगेनिश -अरि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 09-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  588वां सार -संक्षेप


नाना जी देशमुख ने एक ऐसे माडल पर काम किया था जिसके अनुसार  देश का उत्थान गांवों से ही संभव है  सिद्ध करने का प्रयास किया गया 

हम भी इस दिशा में योजना बना सकते हैं 

फिल्म बादल का एक गीत है


अपने लिये जिये तो क्या जिये

अपने लिये जिये तो क्या जिये

तू जी ऐ दिल ज़माने के लिये

अपने लिये जिये तो क्या जिये


 नाना जी कहते थे मैं अपने लिए नहीं अपनों के लिए हूं  मेरे अपने वे सब हैं जो पीड़ित शोषित वंचित उपेक्षित हैं और जिनके लिए नाना जी जीवनपर्यन्त तन मन धन से समर्पित रहे


उसी तरह आचार्य जी भी अपने लिए नहीं अपनों के लिए हैं और उनके अपने वे सब हैं जो दीनदयाल विद्यालय में उनके छात्र रहे हैं

इसी लगाव का विस्तार हमें एक दूसरे से संयुत रखता है


कहा तो यह जाता है कि बिना कारण के कार्य नहीं होता लेकिन बिना कारण के भी कार्य होता है ऐसा उपनिषदों में वर्णित है

और ये सदाचार संप्रेषण तो एक उद्देश्य के लिए हैं हमें इन्हें सुनकर लाभ  प्राप्त करना ही चाहिए

और हम सुनते भी हैं जिसके साथ हमें प्रेम होता है हम उसे त्यागना नहीं चाहते 


आइये चलते हैं उत्तरकांड में


अब गृह जाहु सखा सब भजेहु मोहि दृढ़ नेम।

सदा सर्बगत सर्बहित जानि करेहु अति प्रेम॥16॥

इस छंद में ज्ञान और व्यवहार दोनों है भजेहु मोहि.. का अर्थ है

संगठनकर्ता पौरुष के विग्रह  सनातन सत्य व्यवहार कुशल अंशी राम के 

 रामत्व को हम अंशों द्वारा भजना

हम भी उस रामत्व को धारण करें ऐसे सत्कर्म करें कि लोगों के हृदयों में उतर जाएं


एकटक रहे जोरि कर आगे। सकहिं न कछु कहि अति अनुरागे॥1॥


भगवान राम  ज्ञान दे रहे हैं इसी ज्ञान से मां कैकेयी मां कौशल्या का मोह भंग किया भरत के प्रेम को दिशा मिली विभीषण का धर्म रथ प्रसंग मंदोदरी को दिया उपदेश याद आ जाते हैं

आचार्य जी ने बताया कि भगवान् राम अंगद को क्यों भेजना चाहते हैं और हनुमान जी को क्यों रखना चाहते हैं

8.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 08-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 जपि नाम तव बिनु श्रम तरहिं भव नाथ सो समरामहे॥3॥



दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरि महा महि भूरि रुजा॥

रजनीचर बृंद पतंग रहे। सर पावक तेज प्रचंड दहे॥2॥



प्रस्तुत है धूर्तकृत् -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 08-03- 2023

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  587वां सार -संक्षेप

1 धूर्तकृत् =मक्कार


आजकल हम लोग उत्तरकांड में प्रविष्ट हैं 


वेद चारण का स्वरूप त्यागकर जब मूल स्थान पर चले गये

सब के देखत बेदन्ह बिनती कीन्हि उदार।

अंतर्धान भए पुनि गए ब्रह्म आगार॥13 क॥


 तो शिवजी की स्तुति हुई है और यह अनायास ही नहीं हुआ है 

गोस्वामी संत मार्गदर्शक धर्मरक्षक तुलसीदास के माध्यम से परमात्मा ने हम जीवात्माओं को एक अद्भुत संदेश दिया है इस अद्भुतता का अल्प मात्रा का संस्पर्श ही हम जीवात्माओं को आनन्दित कर देता है और फिर उनके कर्म अत्यन्त शुभ होते हैं


ब्रह्मानंद मगन कपि सब कें प्रभु पद प्रीति।

जात न जाने दिवस तिन्ह गए मास षट बीति॥15॥



वनवासी जो वास्तव में देवता ही हैं  सब वास्तविक आनन्द में मग्न हैं। अव्यक्त अनादि अज प्रभु के चरणों में सबका प्रेम भाव  दिख रहा है। वे जान ही नहीं पाए दिन बीतते रहे और इस प्रकार छह महीने बीत गए॥


वे अपने घर भूल ही गए।  उन्हें सपने में भी घर की  याद नहीं आती, जैसे संत जनों के मन में दूसरों से द्रोह करने की बात कभी नहीं आती। तब प्रभु ने सब सखाओं को बुलाया। सबने आदर सहित सिर नवाया l


भगवान् राम कहते हैं यद्यपि

घर सीता जी भाई आदि सब प्रिय हैं लेकिन तुम्हारे बराबर नहीं क्योंकि तुम लोगों का समर्पण वर्णनातीत है



अब गृह जाहु सखा सब भजेहु मोहि दृढ़ नेम।

सदा सर्बगत सर्बहित जानि करेहु अति प्रेम॥16॥



हे सखाओं

अब सब लोग घर जाओ, वहाँ दृढ़ नियम से मुझे भजते रहना। मुझे हमेशा सर्वव्यापक और सबका हित करने वाला ही जानना और अत्यधिक प्रेम करना l


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा पंकज भैया के प्रश्न के उत्तर में बताया कि

अब्यक्तमूलमनादि तरु त्वच चारि निगमागम भने।

षट कंध साखा पंच बीस अनेक पर्न सुमन घने॥

की व्याख्या के लिए बहुत अधिक समय चाहिये

भैया मनीष कृष्णा जी का नाम क्यों आया जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी से कौन भेंट करना चाहता है जानने के लिये सुनें

7.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 07-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सिंघासन पर त्रिभुअन साईं

 देखि सुरन्ह दुंदुभीं बजाई



हमारा देश स्रष्टा के सृजन का दिव्य दर्शन है, 

जगत भर के लिए संपूर्ण सुन्दर मार्गदर्शन है, 

अभागे हैं जिन्होंने यहाँ की महिमा नहीं जानी 

कि ऐसों के लिए सबकुछ नुमाइश का  प्रदर्शन है।



प्रस्तुत है धव -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 07-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  586वां सार -संक्षेप

1 धव =ठग


यह दुःखद है कि मिथ्या ज्ञान के अभिमान में मस्त होकर बहुत से लोग भक्ति का आदर नहीं करते जब कि भक्ति जन्म मृत्यु के भय तक को हर लेती है


सारे गुणों की खान हनुमान जी के परम भक्त तुलसीदास में अद्भुत कौशल था उन्होंने रामकथा में कथा के साथ ज्ञान का गहन भाव भी पिरो दिया था

परमात्मा राम नर रूप धारण करके आये हैं लेकिन उन्हें नर लीला करनी है तो लगातार ज्ञान तो बना नहीं रह सकता 

ज्ञान में निमग्न होने पर क्रोध ईर्ष्या लोभ मोह कुछ नहीं आ सकता  नर होने पर माया लिपटेगी ही  संसार भ्रम है

भगवान राम का राज्यारोहण हो चुका है वेद बन्दी रूप में उनके पास आये तो भगवान् राम का ज्ञान जाग गया


हनुमान जी की कृपा से तुलसीदास में ज्ञान और भक्ति में जैसे ही सामञ्जस्य होता है तो बहुत तात्विक कथन निकलने लगते हैं

ऐसा ही एक कथन है उत्तरकांड में



जय सगुन निर्गुन रूप रूप अनूप भूप सिरोमने।

दसकंधरादि प्रचंड निसिचर प्रबल खल भुज बल हने॥

अवतार नर संसार भार बिभंजि दारुन दु:ख दहे।

जय प्रनतपाल दयाल प्रभु संजुक्त सक्ति नमामहे॥1॥



वही सगुण वही निर्गुण रूप वाले 

  अनुपम रूप वाले  राजाओं में श्रेष्ठ आपकी जय हो।


 आपने रावण जैसे  दुष्ट निशाचरों को अपनी भुजाओं के बल से मार डाला। आपने नर अवतार लेकर संसार के भार को समाप्त करके अत्यंत कठोर दुःखों को भस्म कर दिया।


अत्यन्त दयालु,  शरणागत की रक्षा करने वाले प्रभु राम आपकी जय हो।

मैं शक्तिसंपन्ना सीता जी सहित शक्तिमान आपको नमस्कार करता हूँ

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिये सुनें

6.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 06-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 अवधपुरी अति रुचिर बनाई। देवन्ह सुमन बृष्टि झरि लाई॥

राम कहा सेवकन्ह बुलाई। प्रथम सखन्ह अन्हवावहु जाई॥1॥


प्रस्तुत है बकव्रतचर -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 06-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  *585 वां* सार -संक्षेप

1 बकव्रतचर =ढोंगी



संसार के व्यवहार के साथ साथ यदि हम विकारों को दूर करने का प्रयास करते हुए वैचारिक दृष्टि  से उचित मार्ग पर चलते हैं तो सांसारिक समस्याओं का हल आसानी से हमें मिल जाता है यही आत्मनिर्भरता है

श्रीरामचरित मानस के रूप में जो मार्गदर्शक ग्रंथ हमें मिला है उसके लिए तुलसीदास जी ने बहुत सारे ग्रंथों का अध्ययन किया उनको बहुत सारी समस्याओं का सामना भी करना   पड़ा फिर भी उनके चिन्तन मनन निदिध्यासन की कोई सीमा नहीं रही 

अद्भुत कौशल था तुलसीदास जी का 

उन्हीं की तरह हम भी क्षमतावान हैं अर्थात् हम और वो एक हैं यह संबन्धों का संसार है इस संसार का निर्माण जिसने किया वो परम  पिता परमेश्वर है यह अनुभूति अध्यात्म का द्वार है

आइये उसी अध्यात्म की झलक पाने के लिये बल बुद्धि विवेक पाने के लिए प्रवेश करते हैं मानस के उत्तरकांड में


प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा। पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा॥

सुत बिलोकि हरषीं महतारी। बार बार आरती उतारी॥3॥

हर जगह आनन्द ही आनन्द है त्रैलोक्य स्वामी भगवान् राम के दर्शन कर सब धन्य हो गये 

भिन्न भिन्न अस्तुति करि गए सुर निज निज धाम।

बंदी बेष बेद तब आए जहँ श्रीराम॥12 ख॥


सारे देवता अलग-अलग स्तुति करके अपने-अपने धाम चले गए। तब बन्दियों का रूप धारण करके चारों वेद वहाँ आए जहाँ ज्ञान के भण्डार  परमात्मा श्री रामजी थे परमात्मा से ही ज्ञान उत्पन्न हुआ है 


वेद ज्ञान है ज्ञान मूल तत्त्व है वेद मनुष्य की रचना नहीं हैं

आचार्य जी ने भक्ति का अर्थ स्पष्ट किया यह अत्यन्त तात्विक पक्ष है हम इतना समझ लें कि हम अंशी के अंश हैं रोग सांसारिकता बाह्य है विकार है विजातीय है

हम विकारों को दूर करने का प्रयास करते हैं 

साफ चादर   ही हम ओढ़ना  चाहते हैं 

आचार्य जी ने यह भी बताया कि हमारा शरीर पत्थर नहीं मिट्टी होने के कारण क्यों महत्त्वपूर्ण है

5.3.23

¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी /चतुर्दशी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 05-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 हनुमान जी महाराज! हमको शक्ति दो निज भक्ति दो, 

निज देश भारतवर्ष के प्रति सहज शुचि अनुरक्ति दो, 

विश्वास दो निज पर कि जिससे कभी भी विचलित न हों 

निर्लिप्तता ऐसी कि हम इस जगत में प्रचलित  न हों।



प्रस्तुत है छिदुर -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी /चतुर्दशी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 05-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  584 वां सार -संक्षेप

1 छिदुर =बदमाश


आजकल हम लोगों को रामकथा सुनने का सौभाग्य मिल रहा है रामकथा अत्यन्त लाभकारी है इससे हम सांसारिकता में व्याकुल नहीं होते समस्याएं कैसी भी हों हमें उनके हल मिल जाते हैं

हमें तो रामकथा में रमना ही चाहिये


जब रामकथा में हम रमने लगेंगे तो हमें आनन्द प्राप्त होगा आनन्द और सुख में अन्तर है सुख इन्द्रियजन्य है और आनन्द इन्द्रियातीत मन से संबन्धित है


आइये चलते हैं रामकथा के उत्तर कांड में


अवधपुरी अति रुचिर बनाई। देवन्ह सुमन बृष्टि झरि लाई॥

राम कहा सेवकन्ह बुलाई। प्रथम सखन्ह अन्हवावहु जाई॥1॥



अयोध्या बहुत ही सुंदर सजाई गई। देवताओं ने फूलों की वर्षा की झड़ी लगा दी। प्रभु रामजी ने सेवकों से कहा कि तुम लोग जाकर पहले मेरे सखाओं को स्नान आदि करा दो

सेवक आदेश का  तुरन्त पालन करने लगे जब किसी काम का उत्साह होता है तो थकान  नहीं होती मन महामन से मिल जाए तो आनन्द ही आनन्द है 

पुनि करुनानिधि भरतु हँकारे। निज कर राम जटा निरुआरे॥2॥



फिर श्रीरामजी ने भरत जी को बुलाया और उनकी जटाओं को अपने हाथों से सुलझाया

राम जी बच्चों जैसा व्यवहार कर रहे हैं

आज बहुत ज्यादा प्रेम जागा है राम जी छोटे भाइयों को नहला रहे हैं

अयोध्या भावमय हो रही है


पुनि निज जटा राम बिबराए। गुर अनुसासन मागि नहाए॥


फिर प्रभुराम जी ने अपनी जटाएँ खोल लीं

 गुरु जी की आज्ञा लेकर स्नान किया।

राम बाम दिसि सोभति रमा रूप गुन खानि।


रामदरबार के इस स्वरूप का आनन्द लीजिये

प्रभु राम के बायीं ओर रूप और गुणों की खान सीता जी शोभित हो रही हैं।

इसके आगे कथा बताते हुए आचार्य जी कहते हैं कि इस देश का राजतिलक भोग हेतु न होकर प्रजातांत्रिक था

भारत में लोकतन्त्र बहुत पहले से है


जिस दिन देश-काल के दो-दो,

विस्तृत विमल वितान तने,

जिस दिन नभ में तारे छिटके,

जिस दिन सूरज-चांद बने,

तब से है यह देश हमारा,

यह अभिमान हमारा है।


आचार्य जी आज कहां जा रहे हैं और उन्होंने शोभन सरकार के बारे में क्या बताया जानने के लिये सुनें

4.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 04-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 कहहिं बचन मृदु बिप्र अनेका। जग अभिराम राम अभिषेका॥

अब मुनिबर बिलंब नहिं कीजै। महाराज कहँ तिलक करीजै॥4॥


प्रस्तुत है छान्दस ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 04-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  583 वां सार -संक्षेप

1 वेदज्ञ

आचार्य जी की परिस्थितियां कैसी भी हों इन सदाचार संप्रेषणों का नित्य संप्रेषण एक अत्यन्त आश्चर्य का विषय है हमारे जीवन में ये अत्यन्त उपयोगी हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिये

विषय कोई भी हो उसका अध्ययन करें उसका मनन करें और उसकी भावभूमि पर जायें तो यह हमें आनन्द प्रदान करेगा 


यह सृष्टि परमात्मा की ऐसी एक संरचना है जो अनादि काल से आरंभ विलय का विषय रही है

 परमात्मा बार बार विविध शरीर धारण कर कभी कृष्ण बनकर कभी राम बनकर कभी कोई अन्य बनकर सज्जनों के कष्टों का निवारण करने आये हैं और आते रहेंगे

यह सत्य है



सच वह है नहीं जिसको निजी आंखें निरखती हैं

नहीं  वह है कि जिसको स्वयं की मेधा परखती है


हम स्वयं भी अवतार हैं हम स्वयं भी बड़े से बड़े काम कर सकते हैं गीता मानस ऐसे ग्रंथ हैं जो यही प्रेरणा देते हैं

आइये चलते हैं मानस के उत्तरकांड में


उस मर्यादा पुरुषोत्तम राम के रामत्व का शतांश प्राप्त करने के लिये जिनका राज तिलक होने जा रहा है


उत्तरकांड ज्ञान का भण्डार है उस ज्ञान को पाने के लिये उसके प्रति हमारा आकर्षण होना चाहिये


कृपासिंधु जब मंदिर गए। पुर नर नारि सुखी सब भए॥

गुर बसिष्ट द्विज लिए बुलाई। आजु सुघरी सुदिन समुदाई।2॥


सब द्विज देहु हरषि अनुसासन। रामचंद्र बैठहिं सिंघासन॥

मुनि बसिष्ट के बचन सुहाए। सुनत सकल बिप्रन्ह अति भाए॥3॥


पुर नर नारि सनाथ करि भवन चले भगवान। 9 ख॥

भगवान् राम कहते हैं अब आप लोगों को  कोई चिन्ता नहीं करनी है 


मुनि बसिष्ट के बचन सुहाए। सुनत सकल बिप्रन्ह अति भाए॥3॥


वशिष्ठ मुनि के सुन्दर वचन सारे ब्राह्मणों को बहुत ही अच्छे लगे



आचार्य जी ने एक बहुत रोचक प्रसंग बताया कि क्योंकि दुःखी होने के कारण कैकेयी अभी राजसिंहासन के योग्य नहीं हैं इसलिये उन्हें यह भार नहीं सौंपा जा सकता

तब राजदंड की रक्षा में रत कुश द्वारा अयोध्या की रक्षा हुई

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिये सुनें

3.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल द्वादशी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 03-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ज्ञान -अम्बुभृत् ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल द्वादशी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 03-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  582 वां सार -संक्षेप

1 अम्बुभृत् =समुद्र



परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।


धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।


जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥

करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥

ये छंदों के रूप में व्यक्त अद्भुत भाव हैं और यह कवित्व सबको प्राप्त नहीं होता लेकिन हम सौभाग्यशाली हैं कि इस भारतवर्ष की धरती पर जन्मे हैं यहां तो ऐसे कवित्व को प्राप्त कवियों की बहुत लम्बी सूची है

सूर्य की तरह प्रकाश बिखेरने वाले ये कवि हमारे मार्गदर्शक हैं जो 

हमें अंधकार में भटकने से बचाते हैं

रोम रोम में रमे परमात्मा राम की कथा कहने वाले अनेक ऋषियों मनीषियों कवियों ने भी यही प्रयास किया है कि किस प्रकार भगवान् राम, जिनके सामने तो विकट समस्याएं आईं, से प्रेरणा लेकर  हम अपने पौरुष को जाग्रत कर सकते हैं समस्याओं के समाधान के लिए निर्भय होकर जूझते रह सकते हैं


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः के भाव के साथ शौर्य की उपासना हमारा उद्देश्य है

आइये चलते हैं इन्हीं भावों को धारण करते हुए तुलसीदास जी की अत्यन्त मोहक रामकथा में

उत्तर कांड में आगे



अयोध्या में सबको सबके अनुकूल सम्मान मिल रहा है प्रेम आत्मीयता से लबरेज वातावरण है


कौसल्या के चरनन्हि पुनि तिन्ह नायउ माथ।

आसिष दीन्हे हरषि तुम्ह प्रिय मम जिमि रघुनाथ॥8 क॥



फिर नल नील विभीषण सुग्रीव आदि ने मां कौशल्या के चरणों में मस्तक नवाए। मां जी ने हर्षित होकर आशीषें दीं और कहा तुम मुझे राम के समान प्रिय हो क्योंकि तुम लोगों ने 

राम की सुरक्षा सेवा की है 

पूरे अयोध्या में हर्ष का वातावरण है हर जगह सजावट हो रही है



प्रभु जानी कैकई लजानी। प्रथम तासु गृह गए भवानी॥

ताहि प्रबोधि बहुत सुख दीन्हा। पुनि निज भवन गवन हरि कीन्हा॥1॥


सबसे पहले मां कैकेयी के घर  राम जी गये

उस समय मां कैकेयी का ज्ञान जागा था जब उन्होंने राम जी को वन भेजा था क्योंकि उन्हें तो मालूम था कि प्रभु का जन्म  पूरे संसार को आतंकित करने वाले रावण के साथ अन्य राक्षसों को मारने के लिये हुआ है

इस समय राम और कैकेयी का बहुत मार्मिक मिलन है



आचार्य जी ने यह भी बताया कि राम जी मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहे जाते हैं

अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं की कौन सी कविता आचार्य जी ने सुनाई जानने के लिये सुनें

2.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल एकादशी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 02-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 किमुक्त्वाबहुधाचापिसर्वथाविजयीभवान् ।


निमित्तानिचपश्यामिमनोमेसम्प्रहृष्यति ।।6.2.25।।



प्रस्तुत है संस्कृत ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल एकादशी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 02-03- 2023

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  581वां सार -संक्षेप

1 =विद्वान्



भारतवर्ष की धरती में कुछ ऐसा आकर्षण है कि कुछ लोग इसे आशाभरी नजर से कुछ लोग लालचभरी नजर से देखते हैं कुछ ऐसे भी हैं जो विकृत नजरों से देखते हैं

यहां आकर्षण के लिये बहुत कुछ है

हमारी संस्कृति का स्वर है 


वयम् अमृतस्य पुत्राः


 हम कहते हैं



वासांसि जीर्णानि यथा विहाय


नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।


तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-


न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।

इसलिये हम संकट के क्षणिक अवरोध को अत्यन्त उत्साह के साथ समाप्त करने के लिये सदा उद्यत रहते हैं


शरीरों को शरीरी की सदा अनुभूति जब रहती, 

सुमंगल गान गाती प्राण की भागीरथी  बहती, 

मनों में शौर्य का शृंगार मय  उत्सव रचा रहता, 

मरणधर्मा जगत में भी अमर स्वर-सुख बचा रहता ।।

हमें यही सिखाया गया है कि हमारा कर्म में तो मन लगे लेकिन उसके फल की इच्छा हम न करें

हम संघर्षों में समाधान खोजते हैं

इस धरती पर जन्मे ऐसे महापुरुषों की एक लम्बी फेहरिस्त है जिन्होंने अपना लक्ष्य बनाया कि हम तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक हमारा समाज हमारा परिवेश आनन्दमय नहीं होगा

अन्तःकरण के सुख के लिये रामकथा रचने वाले 

तुलसीदास जी भी ऐसे ही महापुरुष थे जिनमें समाज को जाग्रत करने की चाह थी


आइये उसी रामकथा

जिसे  पढ़कर हमें विश्वास से भर जाना  चाहिये कि हमारा देश अमरत्व की उपासना करने वाला देश है



 के उत्तरकांड में प्रवेश करते हैं



लंकापति कपीस नल नीला। जामवंत अंगद सुभसीला॥

हनुमदादि सब बानर बीरा। धरे मनोहर मनुज सरीरा॥1॥




भरत सनेह सील ब्रत नेमा। सादर सब बरनहिं अति प्रेमा॥

देखि नगरबासिन्ह कै रीती। सकल सराहहिं प्रभु पद प्रीती॥2॥


वे सब लोग भरत जी के प्रेम त्याग आदि की आदरपूर्वक बड़ाई कर रहे हैं और नगरवासियों की प्रेम, शील और विनय से परिपूर्ण रीति देखकर  प्रभु के चरणों में उनके प्रेम की सराहना कर रहे है


अयोध्या स्वर्ग से भी महान है


फिर भगवान राम ने सब साथियों को बुलाया और कहा कि मुनि के चरणों में लगो। ये गुरु वशिष्ठ जी हमारे  पूज्य हैं जिनकी कृपा से राक्षस मारे गए हैं

यह रामत्व है

कि गुरुदेव को भी उन सखाओं का  परिचय दिया जिन्होंने अपनी जान की भी परवाह नहीं की थी

1.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल दशमी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 01-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है विवर्ण -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल दशमी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 01-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  580 वां सार -संक्षेप

1 विवर्ण =दुष्ट


हम आत्मस्थ होकर इन सदाचार संप्रेषणों को सुनें तो इनसे हमें बहुत लाभ होगा


अध्यात्म रामायण में एक वक्ता शिव जी और एक श्रोता पार्वती जी हैं जब कि मानस में चार वक्ता और चार श्रोता हैं


अध्यात्म रामायण में एक प्रसंग है

दशरथ जी राम जी से कहते हैं मैं वरदान से बंधा हूं तुम मुझे बन्दी बना लो इससे मेरी प्रतिज्ञा भंग भी नहीं होगी और तुमको वनवास भी नहीं करना होगा


स॑स्कॖत काव्य शास्त्र के एक महान आचार्य आo विश्वनाथ के ' साहित्य दर्पण ' ग्रंथ " के अनुसार

रसात्मक॑ वाक्य॑ काव्यम् रसात्मक वाक्य ही काव्य होता है


हम लोग संघर्षों के साथ रसात्मकता भी अपने जीवन में लाएं

रामचरित मानस में यह रसात्मकता बहुत है जिसके उत्तर कांड में आजकल हम लोग प्रविष्ट हैं

अन्य से तुलना करें तो

तुलसीदास जी की कथा बहुत मोहक है


मानस में ऐसे बहुत से प्रसंग हैं जो अश्रुपात करा देते हैं अश्रु इसलिये आते हैं क्योंकि केवल वाणी से ही भाव व्यक्त नहीं हो पाते


लछिमन सब मातन्ह मिलि हरषे आसिष पाइ।

कैकइ कहँ पुनि पुनि मिले मन कर छोभु न जाइ॥6 ख॥


लक्ष्मणजी  तीनों माताओं से मिले और आशीर्वाद पाकर खुश हुए। वे  कैकेयी मां से बार-बार मिले, परंतु उनके मन का क्षोभ  नहीं जाता था कि मां मेरे मुख से ऐसा गलत निकल गया


सासुन्ह सबनि मिली बैदेही । चरनन्हि लाग हरषु अति तेही॥

देहिं असीस बूझि कुसलाता। होइ अचल तुम्हार अहिवाता॥1॥


सीता जी सब माताओं से मिलीं और उनके चरणों में लगकर उन्हें अत्यंत खुशी हुई । माताएं कुशल पूछकर आशीष दे रही हैं कि तुम्हारा सुहाग अचल हो


कैकेयी कैसा अनुभव कर रही होंगी


आचार्य जी ने अध्यात्म रामायण का वह प्रसंग बताया जब कैकेयी सीता जी को वल्कल वस्त्र देती हैं तो वशिष्ठ जी डांटते हैं


हृदयँ बिचारति बारहिं बारा। कवन भाँति लंकापति मारा॥


माताएं तब गर्व से अभिभूत हो जाती हैं जब वे देखती हैं कि मेरा पुत्र केवल सुन्दर ही नहीं वीर पराक्रमी शक्तिसम्पन्न और विवेकी भी है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रानी दुर्गावती की मूर्ति स्थापना के सम्बन्ध में बताया 


भारतवर्ष की संस्कृति के द्वार पर   खड़े होने के लिए हमें क्या करना होगा आइये सुनें यह संप्रेषण