30.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 30 -04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 मनुष्य का शरीर एक ईश्वरीय यंत्र है 

जगत्पिता-प्रदत्त नित्य सिद्ध शक्तिमंत्र है, 

स्वतंत्र शक्तिमंत है अनंत तेजवंत है, 

ये तबतलक कि जबतलक विशुद्ध भक्तिमंत है।


प्रस्तुत है  शक्त ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  30 -04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  *640  वां* सार -संक्षेप

1=शक्तिशाली

हम मनुष्य हैं हम मनुष्यत्व की अनुभूति करें और अपनी कल्पनाशक्ति को असीमित ऊंचाइयों तक ले जाएं

दम्भ मद से दूर रहें 

श्रीरामचरित मानस में  ज्ञान, भक्ति, भाव, विचार, क्रिया, व्यवहार, प्रेम, निष्ठा आदि का समावेश है

  भक्ति  वह भी विशुद्ध बहुत अद्भुत है

विद्वानों की नगरी काशी में रहते हुए 

विशुद्ध भक्ति का भाव लगातार प्रसिद्ध हो रहे तुलसीदास जी के मन में उठा

होगा तो उन्होंने कह दिया 


कोऊ कहै करत कुसाज दगाबाज बड़ो,

कोऊ कहै राम को गुलाम खरो खूब है।

 साधु जानै महासाधु, खल जाने महाखल,

 बानी झूठी साँची कोटि उठत हबूब है ॥

चाहत न काहू सों, न कहत काहू की कछु,

 सबकी सहत उर अंतर न ऊब है।

तुलसी को भलो पोच हाथ रघुनाथ ही के,

राम की भगति भूमि, मेरी मति दूब है ॥



 कुछ लोग कहते हैं कि मैं बड़ा दगाबाज़ हूँ, कुसाज अर्थात् धोखा देने के लिए बुरा साजोसमान इकट्ठा करता हूँ, तो कुछ लोग कहते हैं कि मैं रामजी का अच्छा भक्त हूँ

 मुझे साधु सरल जानते हैं और दुष्ट महादुष्ट , करोड़ों  झूठी-सच्ची बातें मेरे लिए पानी के बुदबुदे की तरह हैं


 लेकिन न मैं किसी से कुछ चाहता हूँ, और न किसी से कुछ कहता हूँ, सब की सह लेता हूँ।

मेरे मन में  अब कुछ नहीं है तुलसी का भला और बुरा प्रभु राम के हाथ है

राम की भक्ति रूपी दूब मेरी देह रूपी भूमि में सब जगह विराजमान है

दम्भ में डूबे  गरुड़ जी को कागभुशुंडी जी  समझा रहे हैं


निर्गुन रूप सुलभ अति सगुन जान नहिं कोई।

सुगम अगम नाना चरित सुनि मुनि मन भ्रम होई॥ 73 ख॥


सगुण रूप धरने में संसार के सारे दोष भी आ जाते हैं

अभिमान संसार में लिप्तता है भगवान् राम अपने भक्त को अभिमान से दूर रखते हैं


जिमि सिसु तन ब्रन होई गोसाईं। मातु चिराव कठिन की नाईं॥4॥


हम बचपन की यादों को ताजा करें तो हमारे सद् शिक्षक भी इसी तरह का व्यवहार करते थे क्योंकि उन्हें पता रहता था कि इससे आगे अच्छा ही होगा


नाथ इहाँ कछु कारन आना। सुनहु सो सावधान हरिजाना॥

ग्यान अखंड एक सीताबर। माया बस्य जीव सचराचर॥


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

29.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 29-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 अध्ययन स्वाध्याय चिंतन मनन ध्यान 

भारतीय संस्कृति का दिव्यतम कोष है, 

अमर गिरा की दिव्यवाणी का प्रभाव पुंज 

विश्व-संस्कार का अखंड उद्घोष है, 

मानव का पौरुष परुष हो कि पुरुषार्थ 

इसके जवाब का सरल विश्वकोश है ,

भारत सदैव "भा" में रत रहते हुए भी 

दुष्टता -दलन हेतु मेघसंघोष है।


प्रस्तुत है  परुष -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  29-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  639  वां सार -संक्षेप

1=कठोर,निर्मम हृदय वाले व्यक्तियों के शत्रु



हमें सदाचारमय विचारों से प्रबोधित करने के लिए अपने भावों से विशेष प्रभाव  डालने वाले  आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय देते हैं हमें इसका लाभ उठाकर आत्मानन्द की अनुभूति करनी चाहिए



हम भारत में निवास करते हैं भारत जो भा में रत रहता है

इसके निवासी जब अपनी अमर -गिरा से कुछ भी उद्घोष करते हैं तो वह साहित्य -रत्नालय बन जाता है


ऐसा ही साहित्य रत्न है रामचरित मानस जिसके उत्तरकांड में आजकल हम लोग प्रविष्ट हैं

जहां हमें अपने प्रश्नों के उत्तर मिलते जाते हैं



हमें जब श्रद्धा होती है तो तुरन्त सीख जाते हैं


काम क्रोध मद लोभ रत गृहासक्त दुखरूप।

ते किमि जानहिं रघुपतिहि मूढ़ परे तम कूप॥ 73 क॥

व्यासपीठ पर आसीन कागभुशुंडी जी समझा रहे हैं

काम, क्रोध, मद और लोभ में जो व्यक्ति रत हैं और दुःख रूपी घर में आसक्त हैं, वे श्री रामजी को कैसे जान सकते हैं?

वे मूर्ख तो अंधकार रूपी कुएँ में पड़े हुए हैं


व्यासपीठ का क्या महत्त्व है इसके लिए आचार्य जी ने राजा और उसके सेवक,जो पक्षियों की भाषाएं जानता था, से संबन्धित एक कथा सुनाई


भाव से संयुत होने पर भक्ति आती है जिससे आनन्द आता है भक्ति में आनन्द है शैत्य है ज्ञान में ताप है ऊष्मा है

निर्गुन रूप सुलभ अति सगुन जान नहिं कोई।

सुगम अगम नाना चरित सुनि मुनि मन भ्रम होई॥ 73 ख॥


निर्गुण रूप अत्यंत सुलभ  है, परंतु गुणातीत सगुण रूप को कोई नहीं जानता, इसलिए उन सगुण प्रभु के विभिन्न सुगम  अगम चरित्रों को सुनकर  ऋषियों मुनियों को भी  भ्रम हो जाता है



हे पक्षीराज गरुड़जी! श्री रामजी की प्रभुता सुनिए। मैं अपनी बुद्धि के अनुसार वह  कथा कहता हूँ।  मुझे जिस प्रकार मोह हुआ, वह सब भी आपको सुनाता हूँ

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

28.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 28-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किएँ जोग तप ग्यान बिरागा॥

उत्तर दिसि सुंदर गिरि नीला। तहँ रह काकभुसुण्डि सुसीला॥1॥


प्रस्तुत है  ज्ञान -भास्वर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  28-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  638  वां सार -संक्षेप

1=ज्ञान का सूर्य


नित्य आचार्य जी हमें उत्थित प्रेरित उत्साहित करते हैं गांव समाज देश की अनुभूति कराते हैं अध्ययनशील चिन्तनशील मननशील स्वाध्यायी  लेखन -योगी बनाने का प्रयास करते हैं

ब्रह्मसूत्र गीता भागवत मानस उपनिषद  हमारे लिए सहज बन जाएं हम आत्मशक्ति की अनुभूति करें

आत्माश्रित होने का प्रयास करें

अंधकूप से बाहर निकलें



 इसके लिए उनका यह प्रयास अद्वितीय है


ज्ञान में तर्क प्रधान होता है

भक्ति में विश्वास प्रधान होता है

परमात्मा हमारा अभिमान तुरन्त चूर करता है



आचार्य जी ने गांव पर आधारित अपनी रची एक कविता सुनाई

... भारत गांव का देश गांव इसकी थाती....


जहां छल कपट ठगी होती है वह स्थान नरक सा दिखता है तुलसीदास ने सामान्य राक्षसों के जीवन में छल कपट ठगी का जो वर्णन किया है वह भिन्न प्रकार का है


आचार्य जी ने कवितावली की चर्चा की



भलि भारत भूमि, भले कुल जन्म, समाज सरीर भला लहिकै।

करषा तजिकै, परुषा वरषा, हिम मारुत घाम सदा सहिकै॥

जौ भजै भगवान सयान सोई तुलसी हठ चातक ज्यों गहिकै।

न तो और सबै विष-बीज बये हर-हाटक काम-दुहा नहि कै।



'भारत की अच्छी  तपोमय भूमि में, अच्छे कुल में जन्म प्राप्त कर , समाज और शरीर भी अच्छा पाकर, क्रोध छोड़कर, वर्षा, बर्फ, हवा और गर्मी सदा सहकर जो चातक की तरह हठ करके भगवान् को गहै और उनका ही भजन करे वही व्यक्ति सयाना है

अन्यथा

शेष सब तो सोने के हल में कामधेनु जोतकर विष के बीज बोने जैसा है

हम लोग काल्पनिक भयों और भ्रमों में इतना उलझ जाते हैं कि हम अपने से दूर हो जाते हैं

मनुष्य का तन हमें कुछ समय के लिए ही मिला है हमें उसका महत्त्व समझना चाहिए

हम अभिनय करने ही आएं हैं

हम कभी पिता हैं कभी भाई कभी व्यापारी

लेकिन जब भ्रम हो जाए कि हम बस यही हैं तो यह गलत हो जाता है

  गरुड़ जी को भी यही भ्रम हो गया जब कि भगवान् राम तो लीला कर रहे थे


दिशाभ्रम हो जाए तो पूर्व पश्चिम समझ में नहीं आता

नयन दोष हो तो पीला पीला ही दिखेगा

ऐसे तमाम भ्रम हमें हो जाते हैं


हरि बिषइक अस मोह बिहंगा। सपनेहुँ नहिं अग्यान प्रसंगा॥

माया बस मतिमंद अभागी। हृदयँ जमनिका बहुबिधि लागी॥4॥


ते सठ हठ बस संसय करहीं। निज अग्यान राम पर धरहीं॥5॥


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

27.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 27-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 रेफ आत्मचिन्मय अकल, परब्रह्म पररूप।

हरि-हर- अज- वन्दित-चरन, अगुण अनीह अनूप।1।


प्रस्तुत है  ज्ञान -विरेफ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  27-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  637  वां सार -संक्षेप

1=ज्ञान की नदी

रामचरित मानस और कवितावली दोनों अद्भुत ग्रंथ हैं तुलना करें तो 

रामचरित मानस में बाल कांड और अयोध्या कांड विस्तार से हैं जब कि कवितावली में उत्तर कांड विस्तार से लिखा गया है


मानस पूर्ण हो चुकी थी तुलसीदास जी काशी में रह रहे थे 

काशी में महामारी आ गई

तुलसीदास ने उस समय बहुत सेवा की

कवितावली में महामारी का उल्लेख करते हुए तुलसी कहते हैं 


आश्रम -बरन कलि बिबस बिकल भए,

निज-निज मरजाद मोटरी-सी डार दी।।


संकर सरोष महामारिहीतें जानियत,

साहिब सरोष दूनी-दिन-दिन दारदी।।


 नारि-नर आरत पुकारत , सुनै न कोऊ ,

काहूँ देवतनि मिलि मोटी मूठि मारि दी।।

लेकिन 

भयभीतों की रक्षा करने वाले कृपालु भगवान् राम की कृपा होते ही महामारी समाप्त हो गई

यह है भक्ति की पराकाष्ठा

भक्ति जो प्राप्ति निवृत्ति के भाव से दूर हो

स्वार्थ रहित हो

तुलसी ऐसी ही अखंड भक्ति की अनुभूति कर चुके थे


आइये ज्ञान के साथ इसी भक्ति की झलक पाने के लिए

प्रवेश करते हैं मानस के उत्तरकांड में


एक सोरठा है

मोहि भयउ अति मोह प्रभु बंधन रन महुँ निरखि।

चिदानंद संदोह राम बिकल कारन कवन॥68 ख॥


युद्ध में प्रभु को नागपाश से बंधा देख मुझे अत्यंत मोह हो गया था कि श्री राम जी तो सच्चिदानंद हैं वे किस कारण व्याकुल हैं


इसी भ्रम के निवारण के लिए यह प्रेरक स्थान है जहां शिव जी को भी आनन्द मिला

राम जी की कृपा हो जाए तो सारे संशय दूर हो जाते हैं


तुम्हहि न संसय मोह न माया। मो पर नाथ कीन्हि तुम्ह दाया॥

पठइ मोह मिस खगपति तोही। रघुपति दीन्हि बड़ाई मोही॥2॥

इसका उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि विष्णुभक्तों की परम्परा में विष्णुभक्त एक दूसरे को प्रणाम करते हैं


मायामय संसार से छूटने के लिए रामभक्ति आवश्यक है

आचार्य जी ने यह भी बताया कि नाट्यमञ्च वास्तविकता नहीं है

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने किसको चप्पल फेंक कर मारी थी जानने के लिए सुनें

26.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 26-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  ज्ञान -संवास ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  26-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  636  वां सार -संक्षेप

1=ज्ञान का घर


आचार्य जी का नित्य का हमें उत्साहित और प्रेरित करने का यह कार्य अद्भुत है

आत्मबोध की शून्यता से आत्माभिमान कम होता है

हमें भ्रमित किया गया कि अंग्रेजी साहित्य ज्यादा सम्पन्न है अपना साहित्य बहुत कम है जब कि सत्य इसके विपरीत है केवल रामचरित मानस में उन्नीस हजार शब्दों का

प्रयोग हुआ है जब कि शेक्सपीयर का शब्द भंडार केवल छह हजार शब्दों का है


आचार्य जी ने पं धनराज शास्त्री के अनुसंधान की चर्चा की और विभिन्न रामायणों के श्लोकों की संख्या बताई


आत्मबोध जाग्रत होगा तो अनुसंधान की प्रवृत्ति आयेगी


आत्मबोध जाग्रत करने के लिए संतोष प्राप्त करने के लिए आइये प्रवेश करते हैं रामकथा में


कथा अरंभ करै सोइ चाहा। तेही समय गयउ खगनाहा॥

आवत देखि सकल खगराजा। हरषेउ बायस सहित समाजा॥3॥


कागभुशुण्डिजी कथा आरंभ कर ही रहे थे कि उसी समय पक्षीराज गरुड़ जी वहाँ  पहुँच गए

 गरुड़ जी को आते देखकर काकभुशुण्डि जी सहित सारा पक्षी समाज खुश हो गया


सदा कृतारथ रूप तुम्ह कह मृदु बचन खगेस।॥

जेहि कै अस्तुति सादर निज मुख कीन्ह महेस॥63 ख॥


पक्षीराज गरुड़ जी ने मृदु वचन कहे- आप तो सदा ही कृतार्थ रूप हैं, जिनकी बड़ाई स्वयं शिव जी ने आदरपूर्वक अपने मुख से की है


सुनहु तात जेहि कारन आयउँ। सो सब भयउ दरस तव पायउँ॥

देखि परम पावन तव आश्रम। गयउ मोह संसय नाना भ्रम॥1॥


वहां पहुंचकर मोह भ्रम शंका सब दूर हो गए



गरुड़ जी की विनम्र, सरल, सुंदर, अत्यंत पवित्र वाणी सुनते ही कागभुशण्डिजी के मन में परम उत्साह हुआ और वे श्रीराम जी के गुणों की कथा कहने लगे


आचार्य जी ने लीला और वास्तविकता में अन्तर बताया

जीव जिसे वास्तविकता मानकर भ्रमित रहता है वह ब्रह्म की लीला है और जो जीव इस संसार को लीलामय मान लेता है वह ब्रह्मत्व को प्राप्त कर लेता है



इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

25.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 25-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  बर्हिषद् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  25-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  635 वां सार -संक्षेप

1=कुश पर बैठे हुए



जब हम लोग विद्यालय में अध्ययन कर रहे थे तब भी आचार्य जी हमें जीवन जीने की शैली बताते थे और आज भी आचार्य जी हमें यही बताते हैं साथ ही यह भी समझाने का प्रयास करते हैं कि मनुष्य जीवन क्या है


अपना कार्य और व्यवहार राष्ट्र हित में समर्पित करते हुए  पं दीनदयाल जी की तरह  अनेक संत अद्भुत शक्ति वाली इस धरती में समा गए

उन्हीं के द्वारा दी गई राष्ट्र भक्ति हम लोगों को भी प्राप्त हुई


यद्यपि हमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रश्रय मिला उससे संस्कार मिले लेकिन हम युगभारती को उस तरह का स्वरूप नहीं दे पा रहे

प्रेम का विस्तार तो दिख रहा है



आचार्य जी ने स्मृतियों के विग्रह स्वामी रामभद्राचार्य जी की चर्चा की



आचार्य जी ने  उत्तरोत्तर का अर्थ स्पष्ट किया हमारी अधोगति न हो

उत्तरकांड में प्रवेश का अर्थ है कि 

इस धरती की समस्याओं से निजात पाते हुए हम आत्मशक्ति में प्रवेश कर रहे हैं

कुंजी से विमुखता हमारा उद्देश्य होना चाहिए व्याख्याएं अद्भुत हैं


आचार्य जी ने संस्कारित स्थानों का उल्लेख किया ऐसा ही स्थान है जहां 



गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुण्डा। मति अकुंठ हरि भगति अखंडा॥

देखि सैल प्रसन्न मन भयउ। माया मोह सोच सब गयऊ॥1॥


गरुड़ जी वहाँ गए जहाँ निर्बाध बुद्धि, पूर्ण भक्ति वाले काकभुशुण्डि रहते थे। उस पर्वत को देखकर उनका मन प्रसन्न हो गया और उसके दर्शन से सब माया, मोह, सोच जाती रही



आवत देखि सकल खगराजा। हरषेउ बायस सहित समाजा॥3॥


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया आचार्य जी ने जे पी आचार्य जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

24.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 24-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  बद्ध -परिकर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  24-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  634 वां सार -संक्षेप

1=कमर कसे हुए

आचार्य जी अपने भावों विचारों और वाणी को समन्वित कर हमें नित्य प्रेरित करते हैं ताकि हम आत्मशक्तिसम्पन्न शरीरशक्तिसम्पन्न समाज के प्रति संगठनशक्तिसम्पन्न 

बन सकें

एक शिक्षक के रूप में आचार्य जी का यह प्रयास अद्वितीय है हम भी इसी तरह उत्कृष्ट उपादेय शिक्षक बनें और समाज को नई पीढ़ी को प्रेरित करें


पश्चिमी लोगों का चिन्तन खंडित हो जाता है हमें उस ओर ध्यान न देकर एकात्म चिन्तन का दर्शन करना चाहिए

संयोगवश सृष्टि बन गई संयोगवश विकास हो गया यह खंडित चिन्तन पश्चिम का

है

हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा

अरुणाचल की छवि बनी नयन मे धुँधली कंचन रेखा

तब आया ज्योति-पुरुष केशव चेतन का सूर्य उगाता ॥५॥


ऐसे अनेक ज्योतिपुरुष इस धरती पर अवतरित होते रहे हैं राम भी परमात्मा होकर एक ज्योतिपुरुष के रूप में अवतरित हुए 

साकेत में मैथिली शरण गुप्त कहते हैं 


राम, तुम मानव हो? ईश्वर नहीं हो क्या?


विश्व में रमे हुए नहीं सभी कहीं हो क्या?


तब मैं निरीश्वर हूँ, ईश्वर क्षमा करे,


तुम न रमो तो मन तुम में रमा करे ।


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥


संसार में सब कुछ है क्या कुछ लेना है इस ओर ध्यान दें


रामत्व यह है कि हम संसार में रक्षा करने के लिए आये हैं


न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।

कामये दुःखताप्तानां प्राणिनाम् आर्तिनाशनम् ॥



इसी से हम कर्मानुरागी बनते हैं


आइये प्रवेश करते हैं उत्तर कांड में



मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किएँ जोग तप ग्यान बिरागा॥

उत्तर दिसि सुंदर गिरि नीला। तहँ रह काकभुसुण्डि सुसीला॥1॥


बिना प्रेम के केवल योग, तप, ज्ञान ,वैराग्य के करने से श्री राम जी नहीं मिलते। इसलिए तुम सत्संग के लिए वहाँ जाओ जहाँ उत्तर दिशा में एक सुंदर नील पर्वत है। वहाँ परम सुशील काकभुशुण्डिजी निवास करते हैं


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया माता जी का नाम क्यों लिया प्रेमभूषण जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

23.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 23-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 जौं अपने अवगुन सब कहऊँ। बाढ़इ कथा पार नहिं लहऊँ ॥

ताते मैं अति अलप बखाने। थोरे महुँ जानिहहिं सयाने ॥3॥


प्रस्तुत है  शमनीषद -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  23-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  633 वां सार -संक्षेप

1शमनीषदः =राक्षस



हमारा शरीर आलस्य की ओर उन्मुख रहता है लेकिन यदि उसे आलस्य से विरत करना हो तो अभ्यास की आवश्यकता होती है


शरीर बोझ न लगे शरीर को सुविधाएं भी हम दें लेकिन उसके वशीभूत न हों हमें इसका प्रयास करना है


शरीर यदि बोझ लगता है तो हम कुछ सीख नहीं पाते क्योंकि सीखने के लिए हमें अपने comfort zone से बाहर आना होता है शिक्षार्थी होने के साथ साथ 

हम सभी शिक्षक  भी हैं और 

शिक्षक के अभिप्रेत गुण हैं कि शिक्षक स्वस्थ स्वाध्यायी सुशील संतुष्ट और स्वाभिमानी हो


बिनु सतसंग न हरि कथा तेहि बिनु मोह न भाग।

*मोह गएँ बिनु राम पद होइ न दृढ़ अनुराग॥61ll


आइये इन्हीं सदाचारमय विचारों के प्रवाह में प्रवाहित होते हुए  अपने गुरुत्व को जाग्रत करने के लिए आत्मबोध की अनुभूति के लिए  अशान्त मन को शान्त करने के लिए चलते हैं




सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई॥

तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा॥1॥

बहुत सी अन्तर्कथाओं को समाहित करने वाली अद्भुत पवित्र 

राम कथा में


शिव जी कहते हैं


परमातुर बिहंगपति आयउ तब मो पास।

जात रहेउँ कुबेर गृह रहिहु उमा कैलास॥60॥

तब 

बड़ी आतुरता  से  गरुड़  जी मेरे पास आए।  उस समय मैं कुबेर के घर जा रहा था और आप कैलाश पर थीं


(उमा कभी सती थीं सती के जन्म की कथा किसी और कल्प की है शिव जी ने सत्तासी हजार वर्ष की समाधि लगाई है)



गरुड़ जी ने आदरपूर्वक मेरे चरणों में सिर नवाया और फिर मुझको अपना संदेह बताया


मैंने कहा


तबहिं होइ सब संसय भंगा। जब बहु काल करिअ सतसंगाll


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

22.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 22-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रयास हो शरीर हेतु खाद्य-पेय शुद्ध हो, 

प्रयास हो कि भाव अरु विचार भी विशुद्ध हों ,

प्रयास हो कि कर्मचेतना परम प्रबुद्ध हो, 

प्रयास हो कि मन प्रशांत  अप्रलुब्ध हो। 



प्रस्तुत है  सदय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  22-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  632 वां सार -संक्षेप

1= कृपालु



कल भैया शरद गुप्त जी 1992 ने हृदय को विदीर्ण करने वाली एक अत्यन्त दुःखद सूचना दी कि भैया रोहित पांडेय 1992 अब हमारे बीच नहीं रहे


ऐसे समय में "शोक" ही संसार का पर्याय है, 

हम मरणधर्मा जीव के कर में न कोइ उपाय है।


शरीर मन बुद्धि विचारों कर्मों में आये अनगिनत विकारों से हमारा चैतन्य भ्रमित हो जाता है इसलिए हमें अपने और अपनों के आध्यात्मिक चैतन्य को जाग्रत करने का प्रयास करना चाहिए

अर्थ कमाने के ढोंग से बचें


चिन्तन मनन ध्यान धारणा अध्ययन स्वाध्याय भजन आदि से कष्टों से निवारण पा सकते हैं


तबहिं होइ सब संसय भंगा। जब बहु काल करिअ सतसंगा॥2॥

आइये शान्ति प्राप्त करने के लिए प्रवेश करते हैं हरि कथा में


नारद जी के पास भ्रमित खगराज पहुंचे


प्रभु बंधन समुझत बहु भाँती। करत बिचार उरग आराती॥3॥


ब्यापक ब्रह्म बिरज बागीसा। माया मोह पार परमीसा॥

सो अवतार सुनेउँ जग माहीं। देखेउँ सो प्रभाव कछु नाहीं॥4॥

उन्हें भ्रम हो गया कि इस अवतार (प्रभु राम )का प्रभाव तो कुछ दिखा ही नहीं


भ्रम तो बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न कर देता है

नारद जी असमर्थ थे

उन्होंने ब्रह्मा जी के पास खगराज को भेजा


महामोह उपजा उर तोरें। मिटिहि न बेगि कहें खग मोरें॥

चतुरानन पहिं जाहु खगेसा। सोइ करेहु जेहि होई निदेसा॥4॥

ब्रह्मा जी उन्हें शिव जी के पास भेजते हैं

जान महेस राम प्रभुताई॥3॥


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

21.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 21-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 ..धन के आगे भारत की माटी भूल गई....



प्रस्तुत है  स्कन्ध ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  21-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  631 वां सार -संक्षेप

1=विद्वान पुरुष


( आचार्य जी के लिए प्रतिदिन एक नए विशेषण के प्रयोग का प्रयास अनवरत व्यवहार में है)


प्रसुप्त मनीषा को जाग्रत करने का, कुलबुलाती भावनाओं को व्यक्त करने का हौसला देने का, अभिमन्त्रित गीत लिखने का उत्साह देने का प्रेरक गीतों से भारतीय भावों में रहने वालों को गुंजित करने का  आचार्य जी का नित्य यह प्रयास अद्वितीय है जो प्रतिदिन हमें इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से प्राप्त हो रहा है

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम


(हरि माया कर अमिति प्रभावा। बिपुल बार जेहिं मोहि नचावा॥2॥)

स्वस्थ रहने की चेष्टा करें और इस संसार के महासागर में आनन्दपूर्वक तैरने की योजना बनाएं अपने भीतर के छिपे वैभव को देखें 

तथाकथित शिक्षा से हम धन कमाना तो सीख जाते हैं लेकिन भय भ्रम बुजदिली से दूर होकर आत्मशक्ति,संगठित रहने का भाव आदि प्राप्त करने के लिए हमें अध्यात्म, वास्तविक विद्या का सहारा लेना ही होगा


आचार्य जी ने तीन जनवरी 2010 को पूर्ण करी एक भावपूर्ण कविता सुनाई


शिक्षा नासमझी भरी परायी नकलमात्र

भाषा भावों के बिना रटाई जाती है.....




आइये इन भावों के साथ प्रवेश करते हैं मानस में


भव बंधन ते छूटहिं नर जपि जा कर नाम।

खर्ब निसाचर बाँधेउ नागपास सोइ राम॥58॥


गरुड़ का मन सशंकित हो गया कि जिनका नाम जपने से मनुष्य संसार के बंधन से छूट जाते हैं, उन्हीं  प्रभु राम को एक तुच्छ राक्षस ने नागपाश से कैसे बाँध लिया



गरुड़ जी ने अनेक प्रकार से अपने मन को समझाया। पर उन्हें ज्ञान  प्राप्त नहीं हुआ, भ्रम और भी अधिक छा गया।

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया 

किसने बीस रामायणों का उल्लेख किया जानने के लिए सुनें

20.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 20-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  लब्धकाम आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  20-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  630 वां सार -संक्षेप


नियमित रूप से एक लम्बी अवधि से श्री रामचरित मानस का आधार लेकर सदाचारमय विचारों का संप्रेषण हो रहा है हमारा कर्तव्य है कि उन विचारों को हम अभ्यास में लाएं क्योंकि हम संसार में रहते हुए संसार के सत्य को जानना चाहते हैं 

उस जानने का आधार कर्म उपासना ज्ञान है कर्म उपासना ज्ञान एक दूसरे से संयुक्त भी हैं जानना एक भाव है शंकाओं के निवारण हेतु शिक्षक द्वारा शिक्षार्थी 

को शिक्षित करना अनन्त काल से चल रहा है


हम भारतवर्ष के लोग भाव विचार क्रिया पर आधारित एक ऐसी मानसिक सृष्टि का निर्माण करते हैं जिससे अपना और अपनों का जीवन संवार सकें हिमालय से कन्याकुमारी तक एक सांस्कृतिक सूत्र में संयुत 

भारतवर्ष की बाह्य प्रकृति भी सुरम्य है और अन्तः प्रकृति भी

ज्ञान वैराग्य भक्ति के दर्शन कराने वाले उत्तरकांड में आइये प्रवेश करते हैं


शिव जी सती के वियोग में जब विरक्त भाव से घूम रहे थे तो उन्हें एक अनुरक्ति का स्थल मिल गया


सीतल अमल मधुर जल जलज बिपुल बहुरंग।

कूजत कल रव हंस गन गुंजत मंजुल भृंग॥56॥


इस स्थान पर दैहिक दैविक भौतिक कष्ट दिख ही नहीं रहे थे


आचार्य जी ने मानस तीर्थ आदि का उल्लेख किया और तीर्थ का शाब्दिक अर्थ बताया

नदी के तट पर जो घाट होता है उसे तीर्थ कहते हैं नदियां पवित्र स्थल मानी गईं हैं  इन्हीं के तटों पर वैदिक ज्ञान की अनुभूति और अभिव्यक्ति हुई है


ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः । अनेन वेद्यं सच्छास्त्रमिति वेदान्तडिण्डिमः ॥


कथा सुनने के बाद उसे गुनना महत्त्वपूर्ण है आचार्य जी ने शिव जी द्वारा मराल वेश धारण करने का रहस्य भी स्पष्ट किया


सुनहिं सकल मति बिमल मराला। बसहिं निरंतर जे तेहिं ताला॥

आचार्य जी ने 

चौदह तमिल शैव सिद्धान्त ग्रंथों का उल्लेख क्यों किया

कबड्डी में मरने जीने का दार्शनिक पक्ष क्या है 

उत्तरकांड में आगे क्या बताया जानने के लिए सुनें

19.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 19-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 अँब छाँह कर मानस पूजा। तजि हरि भजनु काजु नहिं दूजा॥3॥


आम्र -वृक्ष की छाया में कागभुशुण्डि  मानसिक पूजा करता है।  हरि के भजन को छोड़कर उसे दूसरा कोई काम ही नहीं है



प्रस्तुत है  वक्र -रिपु आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 19-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  629 वां सार -संक्षेप


जब हमें मानसिक उद्वेलन होते हैं तो सबसे अधिक शान्ति हमें परमात्मा द्वारा चारों ओर प्रसरित बाह्य प्रकृति से मिलती है

उर उपजा आनंद बिसेषा॥

बाह्य प्रकृति में वृक्ष सरोवर पर्वत नदी झील समुद्र आदि नाम आते हैं इन्हें रचने वाला परमात्मा हमारे अन्दर भी अवस्थित है यही ध्यान की अनुभूति है प्रकृति का प्यार जितना हमें मिलेगा उतने ही हम आनन्दित रहेंगे


हमारे ऋषि हमको अद्भुत जीवन दर्शन प्रदान कर गए


सदा नगारा कूच का, बाजत आठों जाम। 

रहिमन या जग आइ कै, को करि रहा मुकाम॥

हमारा शरीर जहां से उपजा है उसी में मिल जाएगा


 जीव जीव का संपोषण करता है जीव हमारा संरक्षण करता है हम मनुष्य रूप में जीव साधना करते हैं ये साधन के रूप में हमारा सहयोग करते हैं


माया कृत गुन दोष अनेका। मोह मनोज आदि अबिबेका॥


अर्थ की आपाधापी एक भयानक रोग के रूप में उभरकर सामने आ रहा है जिसमें हम प्रकृति को भी नष्ट करने लगते हैं शरीर को भोगों के हवाले कर देते हैं लगाना साधना में चाहिए

हमारा कर्तव्य है कि चिन्तन मनन ध्यान स्वाध्याय राष्ट्र -उपासना में हमें रत होना चाहिए सही खानपान पर ध्यान देना चाहिए

रामचरित मानस ग्रंथ हमें आत्मशक्ति से भर देता है भ्रम भय व्याकुलता से दूर कर देता है अतः इसका पाठ हमें अवश्य करना चाहिए 


पीपर तरु तर ध्यान सो धरई। जाप जग्य पाकरि तर करई॥

अँब छाँह कर मानस पूजा। तजि हरि भजनु काजु नहिं दूजा॥3॥


बर तर कह हरि कथा प्रसंगा। आवहिं सुनहिं अनेक बिहंगा॥

राम चरित बिचित्र बिधि नाना। प्रेम सहित कर सादर गाना॥4॥

पीपल के नीचे ध्यान लगाया जाता है जैसे भगवान् बुद्ध ने ध्यान लगाया था प्रभु राम ने बरगद के नीचे निवास बनाया 

आम के नीचे मानसिक पूजन किया जाता है यानि सबकी एक विशेषता है 

पीपल, आम, बड़, गूलर एवं पाकड़ के पत्तों को जिन्हें 'पंचपल्लव' के नाम से जाना जाता है महत्त्वपूर्ण हैं पूजा में इनका प्रयोग किया जाता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने क्या बताया भैया प्रवीण सारस्वत जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

18.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 18-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 माया कृत गुन दोष अनेका। मोह मनोज आदि अबिबेका॥1॥


प्रस्तुत है  वैदिक आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 18-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  *628 वां* सार -संक्षेप


स्थान :उन्नाव


मनुष्य जीवन में भाव विचार क्रिया की त्रिवेणी   बहुत अद्भुत है  भाव आने पर विचार उत्पन्न होते हैं और विचार आने पर क्रियाएं होती हैं


हमारा संगठन भाव प्रधान है


संपर्क यदि मोबाइल पर ही रहता है तो भाव जाग्रत नहीं होते इसलिए आवश्यक है कि हम एक दूसरे के संपर्क में अधिक से अधिक रहें



कुछ क्रियाएं सहज होती हैं जिनके परिणाम सहज होते हैं विचारोपरान्त क्रियाओं के परिणाम विशेष  होते हैं


शिव जी पार्वती जी से बता रहे हैं 


सुमेरु पर्वत के उत्तर में एक बहुत ही सुंदर नील पर्वत है। उसके सुंदर स्वर्णमय शिखर हैं उनमें चार सुंदर शिखर मेरे मन को बहुत ही अच्छे लगे॥

उन शिखरों में एक-एक पर बरगद, पीपल, पाकड़  और आम का एक-एक विशाल पेड़  है। पर्वत के ऊपर एक सुंदर तालाब शोभित है, जिसकी मणियों की सीढ़ियाँ देखकर मन  अत्यंत मोहित हो जाता है 


सीतल अमल मधुर जल जलज बिपुल बहुरंग।

कूजत कल रव हंस गन गुंजत मंजुल भृंग॥56॥


तेहिं गिरि रुचिर बसइ खग सोई। तासु नास कल्पांत न होई॥


उस सुंदर पर्वत पर काकभुशुण्डि जी हैं जिनका नाश कल्प के अंत में भी नहीं होता


अब सो कथा सुनहु जेहि हेतु। गयउ काग पहिं खग कुल केतू॥1॥



अब वह कथा सुनो जिस कारण से गरुड़ जी काकभुशुण्डि जी के पास गए थे



इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया

आठवीं मंजिल पर किसने वृक्ष लगवाए थे

जानने के लिए सुनें

17.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 17-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 .. विरक्त भाव से जब हम प्रकृति के दर्शन करते हैं तो सहज अपने भीतर सुकृति उत्पन्न होने लगती है....


प्रस्तुत है  वेल्लहल -रिपु आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 17-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  627 वां सार -संक्षेप


सदाचारमय विचारों को ग्रहण  करने के लिए हम प्रतिदिन इन वेलाओं की प्रतीक्षा करते हैं हमें इनमें अध्यात्म  के दर्शन भी होते हैं


यद्यपि प्रपंची लोगों की रामचरित मानस के प्रति दुर्भावना भरी दृष्टि की ओर न ध्यान दें तो यह कथा संपूर्ण मानवता के लिए अत्यन्त कल्याणकारी है


प्रपंचियों द्वारा इसकी चर्चा इसके  व्यापक प्रचार में सहायक हो रही है


प्रपंचियों द्वारा व्यक्त भावों में तर्क न कर अपने स्वभाव से मेल खाते लोगों के साथ इस कथा का हमें आनन्द लेना चाहिए


आइये प्रवेश करते हैं इस कथा में

सती के रूप में अद्भुत मोह वाली  जगत के सारे रहस्यों को जानने वाली मां पार्वती जिन्हें लगता था कि शिव जी से  बड़ा कौन है अब कहती हैं 


श्रवनवंत अस को जग माहीं। जाहि न रघुपति चरित सोहाहीं॥

ते जड़ जीव निजात्मक घाती। जिन्हहि न रघुपति कथा सोहाती॥3॥


शिव जी से कहती हैं

आपने श्री रामचरित मानस का  जो गान किया, उसे सुनकर मैंने अपार सुख पाया। आपने  यह बताया कि यह अति सुंदर कथा काकभुशुण्डि जी ने गरुड़ जी से भी कही थी

शिव जी कहते हैं 

दच्छ जग्य तव भा अपमाना। तुम्ह अति क्रोध तजे तब प्राना॥

मम अनुचरन्ह कीन्ह मख भंगा। जानहु तुम्ह सो सकल प्रसंगा॥2॥

दक्ष के यज्ञ में तुम्हारा अपमान हुआ। तब तुमने अत्यंत क्रोध करके प्राण त्याग दिए थे और फिर मेरे सेवकों ने यज्ञ विध्वंस कर दिया था। वह सारा पूर्व जन्म का प्रसंग तुम जानती ही हो


तब अति सोच भयउ मन मोरें। दुखी भयउँ बियोग प्रिय तोरें॥

सुंदर बन गिरि सरित तड़ागा। कौतुक देखत फिरउँ बेरागा॥3॥

प्रकृति का रचनाकार अद्भुत है जब हम प्रकृति में प्रवेश करते हैं तो हमारा आनन्द अनन्तगुणित हो जाता है 

आचार्य जी ने देश दर्शन का एक प्रसंग बताया


आचार्य जी ने यह भी बताया कि माया के सताने पर हम कहां भागते हैं और वैराग्य उत्पन्न होने पर कहां जाते हैं

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

16.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 16-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  लब्धोदय आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 16-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  626 वां सार -संक्षेप



चिन्तन मनन स्वाध्याय मनुष्य के शरीर को धन्य करने वाले आत्मदर्शन का द्वार है


श्रवनवंत अस को जग माहीं। जाहि न रघुपति चरित सोहाहीं॥

ते जड़ जीव निजात्मक घाती। जिन्हहि न रघुपति कथा सोहाती॥3॥


ऐसी रामचरित मानस  कथा, जिसके हर भाग में तथ्य हैं,के अत्यन्त तत्त्वपूर्ण उत्तरकांड का आधार लेकर आचार्य जी द्वारा प्रस्तुत सदाचारमय विचार ग्रहण करने के लिए हम इन वेलाओं की आजकल   प्रतीक्षा करते हैं

ताकि आत्मदर्शन की अनुभूति कराने वाला हम लोगों का मार्ग भी प्रशस्त हो

हम आत्मानन्द की नई नई ऊंचाइयां प्राप्त करें 


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग कोई भी कार्यक्रम करें तो उसमें उत्साह का प्रदर्शन तो हो साथ ही गहन चिन्तन मनन भी हो 

रामचरितमानस में चार वक्ता और चार श्रोता है:

 कागभुसुंडी ने गरुड़ जी को रामकथा सुनाई, उमेश्वर जी ने पार्वती जी को,याज्ञवल्क्य जी ने भारद्वाज जी को और तुलसीदास जी हम लोगों को सुना रहे हैं


गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा। मैं सब कही मोरि मति जथा॥

राम चरित सत कोटि अपारा। श्रुति सारदा न बरनै पारा॥1॥


बिमल कथा हरि पद दायनी। भगति होइ सुनि अनपायनी॥

उमा कहिउँ सब कथा सुहाई। जो भुसुंडि खगपतिहि सुनाई॥3॥


पार्वती जी को संदेह था लेकिन शिव जी को नहीं कि 

कर्मशील योद्धा अप्रतिम प्रेमी  उदात्त ग्रहस्थ अद्वितीय संगठक शूरवीर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम गुणों की खान हैं


जिनकी कथा ऐसी जिससे सबको आनन्द आता है


हजारों  में कोई एक धर्म के व्रत को धारण करने वाला होता है,करोड़ों धर्मात्माओं में कोई एक  विषयों का त्यागी और वैराग्य परायण होता है


वेद कहते है कि करोड़ों विरक्तों में कोई एक ही यथार्थ ज्ञान को प्राप्त करता है और करोड़ों ज्ञानियों में कोई एक ही जीवन मुक्त होता है।


सत ते सो दुर्लभ सुरराया। राम भगति रत गत मद माया॥

सो हरिभगति काग किमि पाई। बिस्वनाथ मोहि कहहु बुझाई॥4॥

कागभुसुण्डी की कथा भी अद्भुत है

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

15.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 15-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा। मैं सब कही मोरि मति जथा॥

राम चरित सत कोटि अपारा। श्रुति सारदा न बरनै पारा॥1॥


प्रस्तुत है  लब्धास्पद आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 15-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  625 वां सार -संक्षेप

हम जागरूक अन्तेवासी इन सदाचार वेलाओं से लाभ प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं आचार्य जी सदाचारमय विचारों को इस प्रकार सुस्पष्ट करते हैं कि हम उन्हें आत्मसात् कर सकें यदि दिशा दृष्टि हम सही रखें तो अध्यात्म और संसार दोनों में आगे निकल सकते हैं 


भारतीय साहित्य अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है इसके सभी क्षेत्रों के,भले ही उसमें सांसारिक बातें हों, मूल में परमात्मा रहता है

सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म

ज्ञान लगातार अपने सुस्पष्ट दृश्य दिखाता रहता है ज्ञान और ब्रह्म कभी कभी एक हो जाते हैं

विद्या क्या है?

आचार्यः पूर्वरूपम्। अन्तेवास्युत्तररूपम्‌। विद्या सन्धिः। प्रवचनं सन्धानम्‌।इत्यधिविद्यम्‌।


इसकी व्याख्या करते हुए आचार्य जी बताते हैं कि शिक्षार्थी द्वारा विद्या प्राप्त करने के लिए शिक्षक के लिए विषय को और शिक्षार्थी के भाव को आत्मसात् करना अनिवार्य है

वास्तविक व्यक्तित्व विकास क्या है? इसे भी आचार्य जी ने बताया


एक बार बसिष्ट मुनि आए। जहाँ राम सुखधाम सुहाए॥

अति आदर रघुनायक कीन्हा। पद पखारि पादोदक लीन्हा॥1॥

रामचरित मानस के उपसंहार में हम प्रवेश कर चुके हैं जहां ज्ञानी वशिष्ठ भगवान् राम को तत्त्व मान रहे हैं 

नाथ एक बर मागउँ राम कृपा करि देहु।

जन्म जन्म प्रभु पद कमल कबहुँ घटै जनि नेहु॥49॥



इसे भक्ति कहते हैं

तुलसीदास जी ने कथा का उपसंहार अद्भुत कौशल से किया है

विरक्ति के सोपान सामने दिखते जा रहे हैं

हरन सकल श्रम प्रभु श्रम पाई। गए जहाँ सीतल अवँराई॥

भरत दीन्ह निज बसन डसाई। बैठे प्रभु सेवहिं सब भाई॥3॥


ज्ञानी जन समझ रहे हैं कि अब पटाक्षेप हो रहा है


अनुरक्ति में बहुत सारे काम करने वाले आदर्श राम विरक्ति की ओर हैं


आचार्य जी ने नारद शब्द का अर्थ बताया

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

14.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 14-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु। 


बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ।। 


इन्द्रियाणि हयानाहुर्विषयां स्तेषु गोचरान्।


आत्मेन्द्रियमनोयुक्तं भोक्तेत्याहुर्मनीषिणः।। 


(कठोपनिषद्-1.3.3-4)



प्रस्तुत है  लस्त ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 14-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  624 वां सार -संक्षेप

1=कुशल


सांसारिक प्रपंच इतने ज्यादा हैं कि हम लोगों का मानसिक स्तर अस्त व्यस्त रहता है इसी कारण ये सदाचार संप्रेषण महत्वपूर्ण हैं जिनसे हम अपना मानसिक स्तर सही रखने के रहस्य खोज सकते हैं अपना आत्मबोध जाग्रत कर सकते हैं ये  संप्रेषण बोध कराते हैं कि हमने पुनर्जन्म में विश्वास करने वाली संस्कृति के चिन्तन वाली अद्भुत भारत भूमि पर जन्म लिया है 

गीता में



योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन।


एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात् स्थितिं स्थिराम्।।6.33।।


चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।


तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।6.34।।



अर्जुन ने कहा --  हे कृष्ण ! इस साम्य योग की चिरस्थायी स्थिति को नहीं देख पा रहा हूं क्योंकि मन बड़ा ही चञ्चल, प्रमथनशील, जिद्दी और बलवान् है। उसका निग्रह करना वायु की तरह अत्यन्त कठिन लगता है

लेकिन भगवान् कृष्ण कहते हैं

अभ्यास के साथ वैराग्य संयुत करने से यह संभव है


आचार्य जी ने वैराग्य का अर्थ स्पष्ट किया

चिन्ताएं हानिकारक हैं


उत्तरकांड में


एक बार बसिष्ट मुनि आए। जहाँ राम सुखधाम सुहाए॥

अति आदर रघुनायक कीन्हा। पद पखारि पादोदक लीन्हा॥1॥

विसंगति का मेल देखिये राम संसार के धर्म कर्म में रत हैं और वशिष्ठ मुनि संसार के आवरण को उतारकर आत्मबोध में लिप्त राम से मिलने आ रहे हैं


जो भगवान राम को तत्त्व देख रहे हैं

आचार्य जी ने अनुरक्त विरक्ति को  स्पष्ट किया और 

इसके आगे क्या बताया जानने के लिए सुनें

13.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 13-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सुनत सुधा सम बचन राम के । गहे सबनि पद कृपाधाम के॥

जननि जनक गुर बंधु हमारे। कृपा निधान प्रान ते प्यारे॥1॥


प्रस्तुत है   लब्धावसर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 13-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  623 वां सार -संक्षेप


सनकादिक नारदहि सराहहिं। जद्यपि ब्रह्म निरत मुनि आहहिं॥

सुनि गुन गान समाधि बिसारी। सादर सुनहिं परम अधिकारी॥4॥


जीवनमुक्त ब्रह्मपर चरित सुनहिं तजि ध्यान।

जे हरि कथाँ न करहिं रति तिन्ह के हिय पाषान॥42॥


एक बार रघुनाथ बोलाए। गुर द्विज पुरबासी सब आए॥

बैठे गुर मुनि अरु द्विज सज्जन। बोले बचन भगत भव भंजन॥1॥


 रामचरित मानस  अद्भुत कथा है  इसे सुनकर हमें रामत्व की अनुभूति हो हम सचेत जाग्रत स्वाध्यायी आत्मचिन्तक बनें शरीर और मन का सामञ्जस्य सही रहे

शरीर को स्वस्थ रखने की चाहत आए मन को शान्त करने की तमीज आए प्रश्न करने की जिज्ञासा बलवती हो लेखन योग का अभ्यास करने का हौसला आए  खानपान व्यवहार सही हो  आनन्द निश्चिन्तता मनुष्यत्व की अनुभूति हो तो इसको सुनने का वास्तविक लाभ होगा 

 उत्तरकांड इस संपूर्ण कथानिबन्ध का उपसंहार है जहां 

सनक सनातन सनत कुमार सनन्दन नारद और अपने भाइयों आदि के अतिरिक्त भगवान् राम ने मुख्य रूप से अयोध्यावासियों को समझाया है


अब आगे

वशिष्ठ प्रकरण आता है


उमा अवधबासी नर नारि कृतारथ रूप।

ब्रह्म सच्चिदानंद घन रघुनायक जहँ भूप॥47॥

शिव जी पार्वती जी को बता रहे हैं

अयोध्या में रहने वाले  सभी कृतार्थस्वरूप हैं, जहाँ  संपूर्ण संसार के विष को अपने भीतर डालकर पचाने वाले महाविष्णु  राजा हैं जो सभी को आनन्दित करते हैं



धर्म की हानि पर बार बार अवतार आएंगे यह भारत की सांस्कृतिक विरासत है

एक बार बसिष्ट मुनि आए। जहाँ राम सुखधाम सुहाए॥

अति आदर रघुनायक कीन्हा। पद पखारि पादोदक लीन्हा॥1॥

वशिष्ठ मुनि मार्गदर्शक हैं

आचार्य जी ने उनका राजदंड से संबन्धित प्रसंग सुनाया


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी रचित एक कविता सुनाई

अपने और परायों की परिभाषा है ये दुनिया......

आचार्य जी ने एक सूचना दी कि भैया आशीष जोग को mild brain stroke आया

ईश्वर उन्हें शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें

12.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 12-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है   लब्धावकाश आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 12-04- 2023

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  622 वां सार -संक्षेप



सह नौ यशः। सह नौ ब्रह्मवर्चसम्‌। अथातः संहिताया उपनिषदं व्याख्यास्यामः। पञ्चस्वधिकरणेषु। अधिलोकमधिज्यौतिषमधिविद्यमधिप्रजमध्यात्मम्‌। ता महासंहिता इत्याचक्षते।

अथाधिलोकम्‌। पृथिवी पूर्वरूपम्‌। द्यौरुत्तररूपम्। आकाशः सन्धिः। वायुः सन्धानम्‌। इत्यधिलोकम्।



हम दोनों  प्रेम, जिसका आधार भारत मां है,से आवृत आचार्य एवं शिष्य एक साथ यश  प्राप्त करें, एक साथ  ब्रह्मवर्चस् प्राप्त करें। इसके पश्चात् हम संहिता के गहन अर्थ की व्याख्या करेंगे जिसके पाँच प्रमुख अधिकरण हैं....उपनिषद् का यह छंद बहुत महत्त्वपूर्ण है

हमें इन सबकी जानकारी रखनी चाहिए  इसके लिए हमें संस्कृत भाषा की जानकारी भी होनी चाहिए वास्तविक शिक्षा यही है मनुष्यत्व का ज्ञान  यशस्विता की अनुभूति  पुरुषार्थ के प्रति उत्साह  अधोगामी दिशा से विमुखता सही विद्या से ही संभव है शिक्षा कमाने के लिए नहीं होनी चाहिए अशिक्षित भी धनार्जन कर लेता है



तुलसीदास जी का ज्ञान विद्वत्ता उनके संस्कृत छंदों में पता चलती है लेकिन अवधी बोली का आधार लेकर उन्होंने कल्याणकारी रामचरित मानस के रूप में एक अद्भुत बेमिसाल ग्रंथ हमें दे दिया जिसकी घर घर में पहुंच है एक ओर मानस में बीच बीच में आए संस्कृत छंदों से उनकी विद्वत्ता परिलक्षित होती है तो दूसरी ओर दोहे चौपाइयां भी अत्यधिक तात्विक हैं और उनकी रचना किसी विद्वान/विदुषी से ही संभव है 


अंग्रेजी बोलने में गर्व महसूस करना और संस्कृत से अनभिज्ञता यह दिखाती है कि गुलामी की तौंक अभी भी हम गले में डाले हैं

दुष्ट और शिष्ट का संघर्ष दिखाती राम की कथा गुलामी से मुक्ति की कथा है

यह गुलामी की तौंक गले से निकालने की प्रेरणा देती है


रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।

तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥ 31॥


 कथा मन्दाकिनी तब होगी जब हमारा चित्त भी चित्रकूट जैसा पवित्र होगा हम अपने शरीर, परिवार, समाज के लिए तो समय निकालें ही लेकिन आत्मिक विकास के लिए समय निकालना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है


आइये  अंश रूप में रामत्व का अपने अंदर प्रवेश कराने के लिए रावणत्व से निपटने के लिए प्रवेश करते हैं  उत्तरकांड में

जननि जनक गुर बंधु हमारे। कृपा निधान प्रान ते प्यारे॥1॥

भगवान् राम की शरण में जो जाता है उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं  

भगवान् राम की साथियों सहयोगियों के प्रति कृतज्ञता रामत्व है

राम ऐसे हैं जिनसे एक एक व्यक्ति प्रेम करता है

भैया सुरेश गुप्त जी के देश दर्शन से संबंधित क्या बात आचार्य जी ने बताई और उत्तरकांड में इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

11.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 11-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  अत्याहारयमाण -रिपु आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 11-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  621 वां सार -संक्षेप



इन सदाचार वेलाओं से सदाचारमय विचार ग्रहण कर हम लोग ब्रह्मवर्चस् की प्राप्ति का प्रयास कर रहे हैं व्याकुलता दूर करने का प्रयास कर रहे हैं 

भौतिक,आध्यात्मिक, भावनात्मक, विचारात्मक, क्रियात्मक प्रयास मनुष्य का सहज भाव है 

संसार के स्रष्टा और संसार के बीच के सेतु मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति और अनुभूति के बाद उसकी अभिव्यक्ति अद्भुत है अभिव्यक्ति के प्रभाव का प्रदर्शन रहित दर्शन कठिन है लेकिन असंभव नहीं परमात्मा की कृपा से सामान्य जीव भी इस कठिन काम को कर लेते हैं

तुलसीदास के कर्म से उपजी कृति  भावाभिव्यक्ति उनके कर्मसिद्धान्त व्यवहार की प्रस्तुति मानस के उत्तरकांड में 

भगवान् राम समझा रहे हैं 

अनारंभ अनिकेत अमानी। अनघ अरोष दच्छ बिग्यानी॥3॥


जो कोई भी आरंभ अर्थात् फल की चाह रखते हुए  कर्म करना नहीं करता, जिसका कोई अपना घर नहीं है अर्थात् घर के प्रति ममता नहीं है जो मानहीन है , पापहीन है और क्रोधहीन है, जो भक्ति करने में दक्ष और विज्ञानवान्‌ है


अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।


सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.16।।


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।



सत्संग में जिसकी रुचि है, जिसके मन में सब विषय  तिनके के समान हैं, जो भक्ति के पक्ष में हठी है, किन्तु दूसरे के मत का खण्डन नहीं करता तथा जिसने सब कुतर्कों को दूर कर दिया है वह मुझे प्रिय है 

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

10.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 10-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 बैर न बिग्रह आस न त्रासा। सुखमय ताहि सदा सब आसा॥

अनारंभ अनिकेत अमानी। अनघ अरोष दच्छ बिग्यानी॥3॥



प्रस्तुत है  मितवाच् आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 10-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  620 वां सार -संक्षेप

कल के शब्द सङ्कसुक का अर्थ दुष्ट


रामचरित मानस के अंशों  आदि  महत्त्वपूर्ण सदाचारमय विचारों को उद्धृत करने के पीछे आचार्य जी का यही उद्देश्य रहता है कि हम जाग्रत हों भारत राष्ट्र, गो गीता गंगा गायत्री वाला ऐसा देश जहां देवता भी आने के लिए व्यग्र रहते हों,के प्रति और समाज के प्रति संवेदनशील अनुरक्त बनें चिन्तन मनन ध्यान निदिध्यासन अध्ययन लेखन स्वाध्याय में रत हों खानपान सही रखें मैं कौन हूं मेरा कर्तव्य क्या है मेरा प्राप्तव्य क्या है ये तीन जिज्ञासाएं  हों

अपना जीवन भावापन्न सचेत सक्रिय सतर्क  सोद्देश्य बना सकें व्याकुलता व्यग्रता निराशा हताशा उदासी त्याग सकें 


आचार्य जी ने 23 अगस्त 2015 रविवार को  दिल्ली प्रवास के दौरान आचार्य जी द्वारा ही लिखे गए संघटक के गुणों को आज पुनः दोहराया 

संघटक जिज्ञासु, स्वाध्यायी, विवेकशील, कर्मानुरागी, विश्वासी, आत्मगोपी, सहज अप्रतिम प्रेमी होना चाहिए


ऐसे चार संघटक चार हजार के बराबर हैं 


उत्तरकांड के अंश रामगीता में 

आइये प्रवेश करें 

औरउ एक गुपुत मत सबहि कहउँ कर जोरि।

संकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोरि॥45॥


और एक गुप्त मत भी है, मैं उसे सबसे हाथ जोड़कर कहना चाहता हूँ कि उपदेष्टा शंकर जी के भजन बिना व्यक्ति मेरी भक्ति नहीं  प्राप्त कर पाता

वेदतन्त्र में शिव जी की उपासना प्रधान है

भगवान् राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए शिव की उपासना की है रावण भी शिव उपासक था

रावण की उपासना तमोगुणी और भगवान् राम की उपासना सतोगुणी है



तमोगुण आतंक का पर्याय है

सतोगुण निर्मिति का सोपान है

राम रावण संघर्ष संसार का मूल स्वरूप और स्वभाव है यह लगातार चलता रहता है


कहहु भगति पथ कवन प्रयासा। जोग न मख जप तप उपवासा।

सरल सुभाव न मन कुटिलाई। जथा लाभ संतोष सदाई॥1॥

इसकी व्याख्या करते हुए आचार्य जी बताते हैं कि 

रामसुखदास जी अपने जीवन से चाहिए शब्द ही निकाल देना चाहते थे


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

9.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 09-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 "मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की"

जो सुनहि मन मन गुनहि गावहि रुचि करहि शुभ साथ की, 

होवहि परम कल्यान ताकर कृपा श्री रघुनाथ की ।



प्रस्तुत है   सङ्कसुकारि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 09-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  619 वां सार -संक्षेप



सदाचारमय विचारों का कथन वाचन चिन्तन मनन श्रवण निदिध्यासन अद्भुत है लाभकारी है संश्लेष्मणात्मक सोच वाले हम इन्हें व्यवहार में भी उतारने का प्रयास करें


यावत्स्वस्थमिदं कलेवरगृहं यावच्च दूरे जरा ।

यावच्चेंद्रियशक्तिरप्रतिहता यावत्क्षयो नायुषः ।

आत्मश्रेयसि तावदेव विदुषा कार्यः प्रयत्नो महान् ।

सन्दीप्ते भवने तु कूपखननं प्रत्युद्यमः कीदृशः ॥



घर जलने पर कुआं खोदने से क्या फायदा इसलिए जब हमारा शरीर स्वस्थ है आयु क्षीण नहीं है  हम विभ्रमा से दूर हैं तब ही हम आत्मकल्याण के लिए   बड़े से बड़े प्रयत्न कर लें


मनुष्य शरीर शुभ फलों का प्राप्तिकर्ता है लेकिन यदि हम इसे पाकर भी अशुभ फलों को पाने का प्रयास करें तो हम अपना बहुत नुकसान कर रहे हैं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी ही चाहिए


हल्के कामों के चक्कर में हमारा चिन्तन गहन नहीं हो पाता और शरीर हमें मनुष्य का मिला है

इस ओर हम ध्यान दें

प्रतिदिन समीक्षा करें कि आज हमने समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी रुझान वाला कौन सा काम किया


भारतवर्ष ही ऐसी धरती हैं जहां प्रलय और सृजन दोनों अनुभव किए जा सकते हैं


अनगिनत भोगभूमियों के बीच तपोभूमि भारतवर्ष ही ऐसी धरती हैं जहां प्रलय और सृजन दोनों अनुभव किए जा सकते हैं


उत्तरकांड में  रामगीता के अंश देखिए 


ग्यान अगम प्रत्यूह अनेका। साधन कठिन न मन कहुँ टेका॥


ज्ञान अगम  है और उसकी प्राप्ति में अनेक विघ्न हैं। उसका साधन कठिन है और उसमें मन के लिए कोई आधार नहीं है।


तुलसीदास जी ने  कथा में पिरोकर सामान्य जीवन को प्रभावित करने वाला सरल भक्ति पथ हमें बता दिया है


भगवान् राम जनमानस को समझा रहे हैं

पुन्य एक जग महुँ नहिं दूजा। मन क्रम बचन बिप्र पद पूजा॥

सानुकूल तेहि पर मुनि देवा। जो तजि कपटु करइ द्विज सेवा॥4॥


आचार्य जी ने तात्विक द्विज और तथाकथित द्विज में अन्तर बताया


द्विज अर्थात् दूसरा जन्म जिनका होता है अर्थात् ज्ञान का जन्म

ऐसे द्विजों का चिन्तन भावबोध विलक्षण हो जाता है

संकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोरि॥45॥

उस समय वैष्णवों और शैवों का संघर्ष चल रहा था उनमें एकता स्थापित करने के लिए    तुलसी ने यह अद्भुत बात कही

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

8.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैशाख कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 08-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी॥

सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥1॥



प्रस्तुत है   लब्धान्तर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

वैशाख कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 08-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  618 वां सार -संक्षेप



मन की उद्विग्नता से तन में भी तमाम विकार हो जाते हैं इसलिए हमें अपने मन को उद्विग्न होने से बचाने के लिए  प्रयत्न करना चाहिए  अच्छे विचारों को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए ताकि हम जीवन में आ रहे संकटों का आसानी से सामना कर सकें

हम जैसे जैसे  बड़े होते हैं हमारे भाव बदलने लगते हैं विचारों में परिष्करण के भाव का समावेश होने लगता है

आत्मस्थता की अनुभूति से हम अपने जीवन को मूल्यवान बना लेते हैं

आत्मस्थता से ब्राह्मणत्व उत्पन्न होता है 

हम अंशी के अंश हैं यह चिन्तन कठिन है लेकिन लोग इसके लिए प्रयत्नशील रहते हैं


किसी विषय को समझाने से पहले  हम उसे ठीक से समझ लें


आचार्य जी ने अध्ययन, स्वाध्याय, भक्ति के प्रथम सोपान, ब्राह्मण, ब्राह्मण के चार कर्तव्य,सद्संगति, राष्ट्र -सेवा आदि का अर्थ स्पष्ट किया



फिरत सदा माया कर प्रेरा। काल कर्म सुभाव गुन घेरा॥

कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस बिनु हेतु सनेही॥3॥


सृष्टि का क्रम है कि परमात्मा भी मायामय होता है मनुष्य के रूप में विरला जीवन हमें मिला है इसकी अनुभूति और अभ्यास  होना चाहिए



नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो॥

करनधार सदगुर दृढ़ नावा। दुर्लभ साज सुलभ करि पावा॥4॥


यह मनुष्य का शरीर भवसागर पार करने के लिए बेड़ा  है। मेरी कृपा ही अनुकूल वायु है। गुरु इस  जहाज को खेने वाले हैं। इस तरह दुर्लभ साधन सुलभ होकर  उसे प्राप्त हो गया है


पुन्य पुंज बिनु मिलहिं न संता। सतसंगति संसृति कर अंता॥3॥

सद्संगति से बहुत सारी भ्रांतियां हम दूर कर सकते हैं बहुत से प्रश्नों के उत्तर हमें मिलने लगते हैं आपस में चर्चा करें तो अज्ञानता के पर्दे छटेंगे यज्ञ दान तप कभी न त्यागें

मानस की एक एक चौपाई लम्बे चिन्तन मनन का विषय हो सकती है

हमारा पतन न हो इसके लिए नित्य चिन्तन मनन आवश्यक है ये संप्रेषण हमें पतित होने से बचाते हैं

आचार्य जी ने और क्या बताया जानने के लिए सुनें

7.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माधवमास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 07-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 समय नहीं विचार का समय नहीं सुधार का, 

सभी पिशाच एक हैं न कोई किंच नेक है।



प्रस्तुत है   यातुधान -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

माधवमास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 07-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  617 वां सार -संक्षेप

1 यातुधानः = राक्षस


जौं परलोक इहाँ सुख चहहू। सुनि मम बचन हृदयँ दृढ़ गहहू॥

सुलभ सुखद मारग यह भाई। भगति मोरि पुरान श्रुति गाई॥1॥


प्रभावकारी वाणी द्वारा आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं कि हम संसार की समस्याओं से जूझते हुए उस उन्नत भाव की ओर अग्रसर रहें जिसके लिए मनुष्य प्रयत्नशील रहता है विशेष रूप से भारतवर्ष में रहने वाला मनुष्य जो संवेदनशील है स्वाध्यायी है और जो सद्संगति संयम साधना की ओर रुझान रखने वाला हो

जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ।

सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ॥44॥


 राक्षस अपनी तैयारी में लगे रहते हैं 

अद्भुत सृष्टि में परमाणु 

से लेकर ब्रह्माण्ड तक सब चलायमान है सर्वत्र ब्रह्म है




न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदार् न यज्ञा:


अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप:शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥4॥

हम अंशी के अंश हैं यह अनुभूति बहुत महत्त्वपूर्ण है

आचार्य जी ने शाश्वत स्थान का अर्थ भी स्पष्ट किया



उत्तरकांड में


ग्यान अगम प्रत्यूह अनेका। साधन कठिन न मन कहुँ टेका॥

करत कष्ट बहु पावइ कोऊ। भक्ति हीन मोहि प्रिय नहिं सोऊ॥2॥


दुर्गम ज्ञान की प्राप्ति में अनेक विघ्न हैं। उसका साधन भी कठिन है

 मन के लिए  उसमें कोई आधार नहीं है।

बहुत कष्टों द्वारा कोई उसे प्राप्त भी कर लेता है, तो वह भी बिना भक्ति मुझको प्रिय नहीं लगता

भक्ति अद्भुत है


भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानी। बिनु सतसंग न पावहिं प्रानी॥



भगवान् राम शिक्षक के रूप में हैं

शिक्षक एक विशेष भूमिका के साथ अवतरित होता है आचार्य जी ने एक अलंकार के कारण भाई बहन के बीच हुई बहस वाला प्रसंग भी बताया


रामकृष्ण परमहंस (विवेकानन्द नहीं -आचार्य जी ने फोन करके मुझे बताया )अपने शिष्यों को जो आपस में बहस कर रहे थे  पूछते हैं

क्या विश्वास की भी आंखें होती हैं?

समझाते हुए कहते हैं 

विश्वास तो अंधा होता है इसी का नाम भक्ति है

भक्ति निष्क्रियता नहीं है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

6.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पूर्णिमा /वैशाख कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 06-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी

कमला कमलदलविहारिणी

वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वां 

कमलां अमलां अतुलाम् सुजलां सुफलां मातरम्‌।




प्रस्तुत है   मलिम्लुच -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पूर्णिमा /वैशाख कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 06-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  616 वां सार -संक्षेप

1 मलिम्लुचः =लुटेरा, राक्षस


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः शपथ लेकर लेकिन राष्ट्र को दीन हीन अवस्था में देखकर भी आंख मूंदकर हम बैठ जाएं तो हमारा पौरोहित्य किस काम का

हमें तो अपनी अध्यात्मोन्मुखता के साथ साथ राष्ट्र के प्रति भी संवेदनशीलता बनाए रखनी है

आत्मोन्नति के साथ समाज का भी ध्यान रखना है

अस्तित्व और व्यक्तित्व दोनों की रक्षा करनी है

हमें अध्यात्मोन्मुखता और राष्ट्रोन्मुखता में संतुलन रखना है


उत्तरकांड के अध्यात्म से बहुत प्रकार की शंकाओं का निवारण करने का प्रयास किया गया है भक्ति और ज्ञान का विवेचन हुआ है भक्ति कर्तव्य के प्रति समर्पण है भक्ति प्रेम की पराकाष्ठा है

आचार्य जी ने एक ट्रेन में यात्रा कर रहे बच्चे और मां का उदाहरण दिया जिसमें बच्चा मां को लगातार लात मार रहा था

आचार्य जी ने रामभद्राचार्य जी का भी उदाहरण दिया कि अपने को वे अनन्तचक्षु क्यों कहते हैं 


मानस जैसे ग्रंथों से प्रेरणा लेकर नए नए आयाम हम भी खोजें


जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ।

सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ॥44॥



निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

कहलवाकर तुलसीदास जी उस समय की गम्भीर परिस्थितियों में शौर्यप्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता बतला देते हैं

अब 2024 के चुनाव आने वाले हैं तो हमें अपनी भूमिका ध्यान में रखनी है



सन् २०२४ चुनाव है, चुनाव है।


चुनाव देशप्रेम और स्वार्थसिद्धि बीच है, 

प्रताप एक ओर एक ओर मान नीच है।

 

चुनाव त्याग और तप परिश्रमी स्वभाव का 

कि ढोंग लोभ लाभ याकि पश्चिमी प्रभाव का।


चुनाव भारतीयता अभारतीयता के मध्य है, 

चुनाव देशभक्ति और भोगवृत्ति मध्य है।....


.इस तरह के कवियों का भाव जब राष्ट्रार्पित हो जाता है तो संजीविनी प्रसारित हो जाती है

इसके अतिरिक्त उत्तरकांड में आचार्य जी ने और क्या बताया 

आत्मस्थ होने के लिए क्या चीज त्यागनी होगी आदि जानने के लिए सुनें

5.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्दशी /पूर्णिमा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 05-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है   पुण्यनिवह ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्दशी /पूर्णिमा विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 05-04- 2023

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  615वां सार -संक्षेप

1 गुणी


रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥

मन करि बिषय अनल बन जरई। होई सुखी जौं एहिं सर परई॥

इस अद्भुत कथा के रचयिता तुलसीदास जी ने


रुक्मिणी मंगल, छप्पय नीति,कवित्त संग्रह के रचयिता पखरौली में जन्मे रामानन्द के एक शिष्य गुरु नरहरिदास से पूछकर



अपार संसार समुद्र मध्ये

निमज्जतो मे शरणं किमस्ति ।

गुरो कृपालो कृपया वदैत-

द्विश्वेश पादाम्बुज दीर्घ नौका ॥ १॥

फिर सद्बुद्धि प्राप्त की और नरहरिदास ने उन्हें शेष सनातन की पाठशाला में   भेजा जहां उन्होंने सनातन साहित्य आदि का अध्ययन किया

कथा में विचार ज्ञान व्यवहार आदर्श का प्रवेश तुलसीदास जी का अद्भुत कौशल है

इस ग्रंथ ने मुगलों के आततायी शासन में अपने अस्तित्व की    लड़ाई  लड़ रहे हिन्दुओं में नये विश्वास और नई ऊर्जा का संचार किया था



एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥

नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥1॥


फिरत सदा माया कर प्रेरा। काल कर्म सुभाव गुन घेरा॥

कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस बिनु हेतु सनेही॥3॥


माया से प्रेरित  काल, कर्म, स्वभाव, गुण से आवृत यह सदा भटकता रहता है। बिना ही कारण स्नेह करने वाले ईश्वर कभी विरले ही दया करके इसे मनुष्य का शरीर देते हैं


मनुष्य परमात्मा का प्रतिनिधि है भगवान् राम समझा रहे हैं 

यह मनुष्य का शरीर भवसागर के लिए बेड़ा है।

यह शरीर उपाय प्रधान है


मनुष्य विलक्षण है  वह प्रतिकूल परिस्थिति को अनुकूल बनाने का उपाय रचता है

विश्व के मालिक परमात्मा के चरण गति मति के प्रतीक हैं

गतिमान जीवन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है


संसार की समस्याओं से निजात पाना ही धारा के पार जाना है


समस्याएं अकबर के काल में थीं तो मानस की रचना हो गई समस्याएं अब भी हैं तो उसी मानस के सहारे की अब भी जरूरत है

आचार्य जी ने अखंड पाठ का अर्थ बताया


आत्मदीप्ति आवश्यक है हम भी रचयिता बन सकते हैं


आचार्य जी ने पत्रकार प्रदीप सिंह की  क्या चर्चा की आदि जानने के लिए सुनें

4.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी/चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 04-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रतिष्ठित देश का हर नागरिक सम्मान पाता है, 

वहाँ वातावरण आनन्दमय हो गीत गाता है, 

जवानी के सबल भुजदण्ड पौरुष से भरे रहते, 

छिछोरे स्वार्थ लोलुप भ्रष्ट भीतर से डरे रहते।



प्रस्तुत है   तारल -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी/चतुर्दशी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 04-04- 2023

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  614 वां सार -संक्षेप

1तारलः =विषयी


एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥

नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥1॥


चाहे श्रीमद्भगवद्गीता हो चाहे लक्ष्मण, मंदोदरी, राम -गीता

ये सारी गीताएं  सुख दुःख लाभ हानि उत्थान पतन आनन्द विषाद के समन्वित स्वरूप वाले मानव जीवन को सही रूप से जीने की शैली का ज्ञान देती हैं 


आजकल हम लोग उत्तर कांड के रामगीता अंश में प्रविष्ट हैं जिसमें मनुष्य की लीला करने वाले भगवान् राम हमें समझा रहे हैं और इसकी अनुभूति कर वाल्मीकि, तुलसीदास से लेकर आज के कथावाचक भी अपने विचार प्रस्तुत कर रहे हैं और यह तो है ज्ञान -गरिमा, मानवता,मोक्ष के मार्ग का 


युग-युग से बहता आता, यह पुण्य प्रवाह हमारा l



परिवर्तनशील सांसारिक जीवन में ही रहने की कामना करने वाली महादेवी वर्मा कहती हैं कि जहां परिवर्तन होता ही नहीं ऐसे स्वर्ग में 


वे मुस्काते फूल,नहीं

जिनको आता है मुरझाना,

 वे तारों के दीप, नहीं

 जिनको भाता है बुझ जाना


उनको रहने की कामना नहीं है


बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥

साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥


हमें कोई व्यथा विषाद चिन्ता न हो तो यही मोक्ष है और हम जिस लोक अर्थात् स्थान पर हैं उसे ही संवारें जिस पद पर हों उसके साथ न्याय करें


सहज जीवन मनुष्यत्व है

गम्भीर विषयों में व्यावहारिक अर्थ लें 


हमारा मनुष्यत्व कर्मशीलता जाग्रत रहनी चाहिए हमें अपने ग्रंथों से कथाओं से प्रेरणा मिलती है

हमें स्वयं भी एक नई कथा की रचना करनी चाहिए यही जीवन है

आचार्य जी ने पारसमणि और गुंजा का उदाहरण देते हुए बताया कि हमारी नासमझी कैसी बनी रहती है

हमें अपना विवेक जाग्रत रखना चाहिए

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

3.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 03-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो॥

करनधार सदगुर दृढ़ नावा। दुर्लभ साज सुलभ करि पावा॥4॥


प्रस्तुत है दन्दशूक -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 03-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  613 वां सार -संक्षेप

1 दन्दशूकः =राक्षस


परमात्मा के प्रसाद के रूप में प्राप्त इन  राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण अध्यात्मोन्मुख सदाचार वेलाओं का संप्रेषण अनवरत चल रहा है यह परमात्मा की अद्भुत लीला है


भारत की आत्मा गाँवों में बसती है और भारतवर्ष का महत्त्व  गाँवों से ही आँका जाता है।लेकिन गांव आज भी उपेक्षित हैं


ओलावृष्टि में कुछ गांवों का बहुत नुकसान हुआ है इस कारण हमारी संस्था को उन गांवों के किसानों की बेचारगी दूर करने की आवश्यकता है


पर हित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई॥

निर्नय सकल पुरान बेद कर। कहेउँ तात जानहिं कोबिद नर॥1॥


जो व्यक्ति किसी कार्य को तपस्या मानकर करता है लेकिन उससे वह कुछ प्राप्त करने की चेष्टा करता है तो वह कैसा तपस्वी

समरभूमि में आत्मार्पित तपस्वी को कुछ प्राप्त करने की इच्छा करनी ही नहीं चाहिए


बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥

साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥4॥

यहां परलोक का व्यापक अर्थ समझना चाहिए हम जहां भी जाएं उसे संवारे भगवान् राम स्थान स्थान पर लोगों को संगठित करते रहे और वह तो कलियुग भी नहीं था 


सङ्घे शक्ति: कलौ युगे


कलियुग में संगठन का महत्त्व  और अधिक है हमें इस ओर कर्मयोद्धा बनकर ध्यान देना चाहिए समान विचार वाले संगठनों को भी एक छत के नीचे आने की आवश्यकता है


भगवान् राम कहते हैं


सोइ सेवक प्रियतम मम सोई। मम अनुसासन मानै जोई॥

जौं अनीति कछु भाषौं भाई। तौ मोहि बरजहु भय बिसराई॥3॥


भगवान् राम का मम बहुत विस्तार लेता है

 मेरा  तो वही सेवक है  वही प्रिय है, जो मेरी आज्ञा मानेगा यदि मैं कुछ अनीति की बात कहूँ (यद्यपि भगवान् राम ने नीति से इतर कभी कुछ कहा ही नहीं) तो भय बिसारकर मुझे रोक देना


मनुष्य को मनुष्य का शरीर मिला है तो उसको मनुष्यत्व की अनुभूति भी होनी चाहिए


कर्मयोगी मनुष्य  सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में करके भगवान का परायण करे क्योंकि जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि भी प्रतिष्ठित है

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।


सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।2.62।।


क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।


स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63।।

Society में हमें और तपस्वी स्वरूप में आने की आवश्यकता है  अब प्रौढ़ मति आवश्यक है

प्रवाह पतित अवस्था क्या है? आचार्य जी ने और क्या बताया जानने के लिए सुनें

2.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 02-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है पेशल ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 02-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  612वां सार -संक्षेप

1 विशेषज्ञ


हम मनुष्य प्रायः मार्ग में ही रहते हैं , लक्ष्य निर्धारित करते हैं और अपने लक्ष्य /लक्ष्यों को पाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं


हमें शिक्षक खोजने का लक्ष्य भी बनाना चाहिए क्योंकि समाज में शिक्षकों का अभाव हो रहा है  सेवकों की वृद्धि से समाज पराश्रित हो जाता है


विचार और व्यवहार का आदर्श शिक्षक के अन्दर आ जाए तो शिक्षक परिवर्तन करने में सक्षम होता है


शिक्षक कुंठित होता है तो समाज में अंधकार फैल जाता है

और शिक्षक जब जाग्रत होता है तो भय भ्रम शोक कुंठा अविश्वास का निवारण कर देता है



उषा सुनहले तीर बरसती, 


जय-लक्ष्मी-सी उदित हुई; 


उधर पराजित काल-रात्रि भी, 


जल में अंतर्निहित हुई। 


वह विवर्ण मुख त्रस्त प्रकृति का, 


आज लगा हँसने फिर से; 


वर्षा बीती, हुआ सृष्टि में, 


शरद विकास नए सिर से।



सुदृढ़ संस्कारों वाले भैया शशिकांत अग्रवाल जिनको शिक्षकत्व का स्वभाव प्राप्त है वह समाज के सामने एक आदर्श प्रस्तुत कर रहे हैं

आचार्य जी उनके शिक्षकत्व की प्रकाशवान रश्मि की झलक पाकर आनंदित हुए


ऐसे शिक्षकत्व के भाव वाले लोगों के साथ बैठकर हमें कुछ विचारोन्मुख होना चाहिए

उनके  भाव  विचार उनका विश्वास प्रशंसनीय है


उत्तर कांड में भी 


एक बार रघुनाथ बोलाए। गुर द्विज पुरबासी सब आए॥

बैठे गुर मुनि अरु द्विज सज्जन। बोले बचन भगत भव भंजन॥1॥



एक बार श्री रामजी के बुलावे पर  गुरु वशिष्ठ , ब्राह्मण व अन्य  पुरवासी सभा में आए। जब  सब सज्जन यथायोग्य बैठ गए, तब भक्तों के जन्म-मरण का कष्ट मिटाने वाले श्री राम जी  बोले

(भगवान् राम का अहंकारविहीन शिक्षकत्व वाला भाव देखिए )


बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥

साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥4॥

आचार्य जी ने बताया कि शिक्षकत्व शिष्यत्व से     चढ़कर आता है  भगवान् राम का बार बार समर्पण का भाव  अद्भुत है


राजु देन कहुँ सुभ दिन साधा। कहेउ जान बन केहिं अपराधा॥

तात सुनावहु मोहि निदानू। को दिनकर कुल भयउ कृसानू॥4॥


राजतिलक में हर्ष नहीं वनवास में दुःख नहीं

रामत्व देखिए कानन भी अयोध्या जैसा लगेगा

इसी रामत्व को अपने अन्दर लाने की आवश्यकता है

स्वानुशासन का क्या महत्त्व है अपने भीतर की किरण देखने से क्या तात्पर्य है मनुष्यत्व की अनुभूति से दूर होने से क्या हानि है जानने के लिए आचार्य जी का आज का उद्बोधन अवश्य सुनें 


इसके अतिरिक्त



कल दीनदयाल शोध संस्थान के कृषि विज्ञान केन्द्र मझगवां में वीरांगना रानी दुर्गावती की प्रतिमा का अनावरण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख माननीय मोहन जी भागवत ने किया इसके साथ ही उन्होंने विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए भारत रत्न सुरर्षि नानाजी देशमुख की कर्मस्थली में रानी दुर्गावती के शौर्य पराक्रम पर प्रकाश डाला

इस अवसर पर अनेक सांसद, विधायक, मंत्री, सतना जिले के अनेक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित रहे

युगभारती की ओर से आचार्य जी के अतिरिक्त


भैया संपूर्ण सिंह जी 78,डॉ प्रवीण सारस्वत जी 82,वीरेंद्र त्रिपाठी जी 82,मनोज अवस्थी जी 84,मोहन कृष्ण  जी 86,प्रदीप बाजपेयी जी 89,अजय कोस्टा जी 91,आलोक पांडेय जी 93,अक्षय अवस्थी जी 2008,डॉ दीपक सिंह जी 2009 उपस्थित रहे

1.4.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 01-04- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 देनहार कोउ और है , भेजत सो दिन रैन ।


प्रस्तुत है सुनीथ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत्  2080 

तदनुसार 01-04- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  611वां सार -संक्षेप

1 सद्गुणी


स्थान :चित्रकूट



चित्रकूट में रमि रहे, ‘रहिमन’ अवध-नरेस ।

जा पर बिपदा परत है , सो आवत यहि देस ॥



अयोध्या के महाराजा  श्री राम जी अपना देश अयोध्या छोड़कर चित्रकूट में जाकर बस गये, इस क्षेत्र में वही आता है, जिस पर  विपदा आती है

अत्यन्त भावुक रहीम, जो भक्त नहीं कहे जा सकते,के इस दोहे से तो यही लगता है कि भगवान् राम पर जब विपत्ति आई तो वे चित्रकूट आए लेकिन यह सत्य नहीं है समाज पर जब विपत्ति आई तब  चित्रकूट आकर ऋषियों से ज्ञान प्राप्त कर संयम शक्ति संगठन 

आदि का महत्त्व समझकर  दुष्ट रावण को भगवान् राम ने मारा है 

चित्रकूट सामान्य स्थान नहीं है यह अत्यन्त प्रेरक पुनीत पवित्र प्रभावकारी स्थल है और मोदक बाबा के अनुसार चित्रकूट चिन्ताहरण स्थान है

चित्रकूट बद्रीनाथ रामेश्वरम आदि स्थान तीर्थस्थान है इनका एक हेतु भी है जो इस हेतु को समझते हैं वे तीर्थयात्रा करते हैं हमें तीर्थोन्मुख होने की आवश्यकता है जब यह भाव हमारे अन्दर प्रवेश करेगा तो हमें पूरा भारत ही तीर्थ लगेगा

जो कार्य करेंगे वह पूजा लगेगा जो उपभोग करेंगे वह प्रसाद लगेगा यही विशिष्ट भारतीय संस्कृति है

हमारे अन्दर जब देश को देखने की इच्छा जाग्रत होगी तब हम उससे प्रेम करेंगे ही

इसी कारण सगुणोपासक सामने विग्रह रखकर पूजा करते हैं 


नाना जी देशमुख को भी यह स्थान बहुत भा गया और उन्होंने इसे अपनी कर्मस्थली बना लिया

उत्तरकांड में भगवान राम संत और असंत का भेद बता चुके हैं उन्होंने भाइयों के प्रश्नों जीवन का संघर्ष क्या है परिस्थितियां क्या हैं संतोष क्या है आत्मीयता का प्रसार कैसे होता है, का उत्तर दे दिया है


पर हित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई॥

निर्नय सकल पुरान बेद कर। कहेउँ तात जानहिं कोबिद नर॥1॥


संत असंतन्ह के गुन भाषे। ते न परहिं भव जिन्ह लखि राखे॥4॥


और इसके बाद


पुनि रघुपति निज मंदिर गए। एहि बिधि चरित करत नित नए॥

बार बार नारद मुनि आवहिं। चरित पुनीत राम के गावहिं॥2॥


जौं अनीति कछु भाषौं भाई। तौ मोहि बरजहु भय बिसराई॥3॥


विचारों के स्रोत चिन्तकों  ध्यानियों योगियों से यह बात    राजा राम,  जिनके पास राजा के रूप में अधिकार हैं, कह रहे हैं

विचार और अधिकार के सामञ्जस्य से समाज सुखी होता है और जब इनमें सामञ्जस्य नहीं होता तो समाज दुःखी होता है


आचार्य जी ने दशशीश का अर्थ स्पष्ट किया सिर अहंकार का भी प्रतीक है

रामराज्य की स्थापना कैसे होती है यह भी स्पष्ट किया

समाज के समन्वित होने से रामराज्य स्थापित होता है  चिन्तक  समाज को जाग्रत कर सकते हैं और इसलिए चिन्तकों की वृद्धि आवश्यक है