30.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा /द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 30 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *793 वां*

 ध्यान से जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह बहुत मूल्यवान् होता है

इसलिए ध्यान महत्त्वपूर्ण है

लेकिन ध्यान और ज्ञान धार्मिक पुरुष में होगा यह अनिवार्य नहीं........


प्रस्तुत है दोः शालिन् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा /द्वितीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 30 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *793 वां* सार -संक्षेप


 1 = प्रबल भुजाओं वाला 


05:51, 16.37 MB, 16:41



बहुत बार ऐसा होता है कि हमारे जीवन में प्रपंचों की बाढ़ आ जाती है और हमें उन प्रपंचों को सुलझाने में किसी प्रकार की सहायता नहीं मिलती ऐसे समय में हमें श्री रामचरित मानस की शरण में जाना चाहिए


रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी॥



मानस अद्भुत ग्रंथ है जिसमें बालकांड और उत्तर कांड इसके दार्शनिक ज्ञानात्मक पक्ष को उजागर करते हैं लेकिन 

मानस के कथा भाग में यदि प्रवेश करें तो प्रपंचों को सुलझाने में हमें मदद मिलेगी


इससे अवर्णनीय शान्ति मिलेगी

विलक्षण प्रतिभा के धनी कवि दार्शनिक चिन्तक दीनदयालु विचारक राष्ट्र -हितैषी विद्वान शब्दोपासक करुणाकर तुलसीदास जी ने कथा दर्शन ज्ञान की इस ग्रंथ के रूप में एक ऐसी सुन्दर माला बना दी जो कभी मुरझाती ही नहीं


आइये इस माला के दर्शन कर लें


प्रभु राम लीला कर रहे हैं

मायामनुष्यं हरिम्



वन गमन का प्रसंग है माता सीता का हरण हो गया है भगवान वन वन उन्हें खोज रहे हैं शिव जी दूर से देख रहे हैं मां सती भ्रमित हैं


सतीं सो दसा संभु कै देखी। उर उपजा संदेहु बिसेषी॥

संकरु जगतबंद्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावत सीसा॥



मां सती   भगवान शंकर की  ऐसी दशा देख भ्रमित हो गईं वे मन ही मन कहने लगीं कि भगवान शंकर की तो सारा संसार वंदना करता है, वे जगत के ईश्वर हैं देवता नर नारी मुनि सब उनके प्रति सिर नवाते हैं

तो वे भी राम जी को प्रणाम कर रहे हैं

शंकर जी ने समझाया कि लीला करना परमात्मा का स्वभाव है लेकिन उन्हें समझ में नहीं आया

फिर मां सती की लम्बी कथा है उनकी  सिद्धि तक पहुंची साधना अद्भुत थी और फिर वे मां पार्वती के रूप में आईं


भक्तिपूर्वक जिज्ञासु होकर मां पार्वती पूछती हैं


पुनि प्रभु कहहु सो तत्त्व बखानी। जेहिं बिग्यान मगन मुनि ग्यानी॥

भगति ग्यान बिग्यान बिरागा। पुनि सब बरनहु सहित बिभागा॥


तुम्ह त्रिभुवन गुर बेद बखाना। आन जीव पाँवर का जाना॥

प्रस्न उमा कै सहज सुहाई। छल बिहीन सुनि सिव मन भाई॥



मगन ध्यान रस दंड जुग पुनि मन बाहेर कीन्ह।

रघुपति चरित महेस तब हरषित बरनै लीन्ह॥ 111।


शिव  जी कुछ क्षणों तक आनंद  में डूबे रहे, इसके बाद उन्होंने मन को बाहर खींचा और प्रसन्नचित्त होकर प्रभु का चरित्र वर्णन करने लगे


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सुरेश सोनी जी का नाम क्यों लिया विद्यालय का कौन सा प्रसंग आचार्य जी ने सुनाया जानने के लिए सुनें

29.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 29 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *792 वां*

 प्रस्तुत है प्रथित ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 29 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *792 वां* सार -संक्षेप


 1 = विख्यात 


06:01, 16.57 MB, 16:53

ये सदाचार संप्रेषण हमारे जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं आचार्य जी का एक एक शब्द हमें प्रभावित करता है शब्दों की महिमा अद्भुत है


एक या एक से अधिक वर्णों  से बनी  स्वतंत्र सार्थक इकाई शब्द कहलाती है।

भारतीय संस्कृति में तो शब्द को  ब्रह्म, जो सृष्टि का स्रष्टा है,कहा गया है।

शब्द उस ब्रह्म की एक ऐसी सहज उत्पत्ति है जो संसार को बांध भी देती है और खोल भी देती है

शब्द सब तरह के दृश्य पदार्थ कल्पना भाव विचार की प्रतिच्छाया है

शब्द के अभाव में ज्ञान का प्रकाशत्व लुप्त हो जाता है

ज्ञान स्वयं प्रकाशित है किन्तु शब्द बोलता है

किसी न किसी रूप में सारे मतानुयायी शब्द की ही उपासना करते हैं

वैदिक ज्ञान की बात करें तो प्रणव अर्थात् ॐ आदि शब्द /आदि स्वर है

शब्द में रूप भाव आकार है

भर्तृहरि, जो उज्जयिनी के राजा थे और  'विक्रमादित्य' उपाधि धारण करने वाले चन्द्रगुप्त द्वितीय के बड़े भ्राता थे, ने तो शब्दाद्वैत का प्रवर्तन कर डाला

शब्द हमें बांधता भी है और विरक्त भी करता है

यह शब्द हमें ऊंचाइयों पर ले जाता है

यह शब्द ही है जो रौद्र रूप धारण करने पर विशाल प्रस्तर को भी खंडित खंडित कर देता है

शब्दों के संबन्धों के आधार पर चिन्तन मनन अध्ययन करने पर शब्द प्रमाण हो जाता है

शब्द  वैखरी वाणी की शोभा है

शब्द के उपासक ज्ञानी भी हैं भक्त भी हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि बैच 1996 के भैया विनय वर्मा जी यद्यपि भगवद्भक्ति के साथ अपनी पूज्य माता जी की सेवा कर रहे थे लेकिन वे उन्हें बचा नहीं सके और कल माता जी महाप्रयाण कर गईं


ईश्वर भैया विनय जी को इस असीम दुःख को सहने की शक्ति दे और माता जी की आत्मा को शांति प्रदान करे

28.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 28 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *791 वां*

 चंदन चर्चित भाल है, कण्ठ तुलसिका माल। 

पंडित प्रवर बताओ तो, क्या इस जग का हाल। ।


प्रस्तुत है वैरङ्गिक ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी (अनन्त चतुर्दशी )विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 28 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *791 वां* सार -संक्षेप


 1 = संन्यासी 


06:29, 16.59 MB, 16:54



परिस्थितियां कैसी भी हों आचार्य जी के मन में जो एक उद्देश्य का भाव रहता है कि हमारा मार्गदर्शन हो इस कारण नित्य हमें ये सदाचार संप्रेषण प्राप्त हो पा रहे हैं

 यह हमारा सौभाग्य ही है


हम यदि विषम परिस्थितियों में भी उन्नत से और अधिक उन्नत होते रहने का प्रयास करते हैं साथ ही अपने परिवेश को भी समुन्नत करते हैं तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है

हम आनन्दित हो लेकिन प्रतिवेश में आर्तनाद हो तो  हम  व्यथित  हो जाते है क्योंकि हम संवेदनशील हैं हमारा संसार बहुत विस्तार ले लेता है यही संवेदनशीलता मनुष्य को दार्शनिक बना देती है मुमुक्षु बना देती है 

 मैं कौन हूं

चिदानन्द रूपस्य शिवोऽहं शिवोऽहम्


संसार अद्भुत है यह विकार और अविकार का मिला जुला रूप है इन्हीं के बीच रहकर हमें अपना मार्ग खोजना है

कर्तव्य और अकर्तव्य का हमारे अन्दर विवेक होना चाहिए हमें व्यध्व पर नहीं चलना है

भारतीय जीवन भारतीय परम्परा हमें यही सिखाती है कि हमें यह पता होना चाहिए कि हमारे लिए करणीय क्या है हमारे ऋषियों मुनियों को इसकी अनुभूति हुई और उन्होंने अनेक सद्ग्रन्थों का प्रणयन कर दिया जो हमारे मार्ग को सुस्पष्ट कर देते हैं

हम युगभारती के सदस्य इसी मार्ग पर चलने का प्रयास करते जा रहे हैं 

युगभारती का यह तात्विक पक्ष स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है 

चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन हमारे लिए लाभकारी है

सेवा समर्पण त्याग वैराग्य शक्ति शौर्य आत्मबोध का संकलन भी सदैव हमारे लिए लाभकारी रहेगा


देश के प्रति सेवा समर्पण का हमारे अन्दर भाव  विद्यमान रहे  और हम सेवारत भी हों समाज को जाग्रत करने का भी हम प्रयास करते रहें


आचार्य जी ने दर्शन और PHILOSOPHY में अन्तर भी बताया दर्शन इन्द्रियातीत है और PHILOSOPHY इन्द्रियगम्य है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने संपूर्ण सिंह कालरा जी का नाम क्यों लिया JAIPUR DIALOGUES की चर्चा क्यों  हुई  आचार्य जी ने जयशंकर प्रसाद की किस कविता का उल्लेख किया जानने के लिए सुनें

27.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 27 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *790 वां*

 प्रस्तुत है सत्योद्य ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 27 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *790 वां* सार -संक्षेप


 1 = सत्यभाषी 


06:39, 16.63 MB, 16:57


मनुष्य को एक अद्भुत शक्ति के रूप में वाणी मिली है यह वाणी मनुष्य के लिए वरदान और अभिशाप दोनों है इसलिए इसका प्रयोग करते समय हमें अत्यधिक सावधान रहना चाहिए


ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए |

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ||


हमारी वाणी में मधुरता का जितना अधिक अंश विद्यमान रहेगा, उतना ही हम दूसरों के लिए प्रिय बनेंगे

 सारा संसार वाणी के आधार पर चल रहा है

यहां चार प्रकार की वाणी है । वैखरी/बैखरी , मध्यमा , पश्यंती और परा


जो कंठ से ध्वनि द्वारा शब्दों से बोली जाए और कान द्वारा सुनी जाए वह वैखरी  है


वाणी कर्म को नियन्त्रित भी करती है और गति भी देती है

वैखरी का जिन्हें अभ्यास हो जाता है वे सहज रूप से बोलते चले जाते हैं जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ( जन्म: १९ फ़रवरी १९०६ - मृत्यु: ५ जून १९७३) की अद्भुत बैखरी थी

आचार्य जी को उनका सान्निध्य प्राप्त हुआ था

परम पूज्य हेडगेवार जी का मानना था कि व्यक्ति में कभी भी कोई  दुर्गुण आ सकते हैं   लेकिन त्याग का प्रतीक भगवा झंडा सदैव संदेश ही देगा  अतः व्यक्ति की अपेक्षा ध्वज को गुरु मानना बेहतर है



नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे

त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।

महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे

पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥१॥

भगवा ध्वज साक्षी है और भारत माता की प्रार्थना हो रही है परमेश्वर से याचना हो रही है कि हिन्दु राष्ट्र को परम वैभव पर पहुंचाने में मैं समर्थ हूं यह साधना का अंश है 

साधना के किसी भी अंश को हमने  करने के लिए यदि तय किया है तो उसे पूर्ण अवश्य करें


व्यवधानों को न देखें


परिस्थितियों के साथ सामञ्जस्य बैठाना मनुष्य के लिए अनिवार्य है सामञ्जस्य बैठाने से मनुष्य संकट से ग्रस्त नहीं होता


भगवान राम हमारे आदर्श हैं जिनका जीवन अनुकरणीय है समय गम्भीर है हमें ऐसे समय में रामत्व का वरण करना चाहिए संकट के इस समय में प्रभु राम जैसा धैर्य त्याग विवेक शक्ति सामर्थ्य चिन्तन आवश्यक है इनका नित्य स्मरण करना चाहिए

प्रभु राम हमारे मार्गदर्शक हैं

सिद्धान्त से भटके भ्रमित लोगों का मार्गदर्शन  भी आवश्यक है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने वर्तमान सरसंघचालक का कौन सा प्रकरण बताया जानने के लिए सुनें

26.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 26 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *789 वां*

 युगभारती के मूल में प्रेमाम्बु-सरिता बह रही है 

और हम सबके सुरों से स्यात् यह ही कह रही है,

कि," ओ ! भरत भू के सुतो जागो उठो उद्बुद्ध हो खुद 

और इस बुद्धत्व का शौर्याग्नि से शृंगार कर दो। "



प्रस्तुत है सत्याभिसन्धि ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 26 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *789 वां* सार -संक्षेप


 1 = अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करने वाला 


06:34, 16.37 MB, 16:41



इस अद्भुत संसार के रहस्य की ज्ञीप्सा रखने वाले  अद्भुत विलक्षण शक्तियों से सम्पन्न हम संसारी लोग कुछ ऐसे सुअवसरों का लाभ प्राप्त कर लेते हैं जो हमें ऊर्जा उत्साह उमंग से भर देते हैं और उसकी अनुभूति लम्बे समय तक होती रहती है

ऐसा ही एक सुअवसर युगभारती के राष्ट्रीय अधिवेशन के रूप में परसों हमें प्राप्त हुआ जो एक अत्यन्त सफल कार्यक्रम था



रहिमन यो सुख होत है बढ़त देखि निज गोत 


ज्यों बड़री अँखियाँ निरखि आँखिन को सुख होत



ऐसे अवसरों का हमें अवश्य लाभ प्राप्त करना चाहिए

परिस्थितियां अनुकूल हों या प्रतिकूल संसार के साथ साथ संसारेतर चिन्तन के लिए अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है और अध्ययन के लिए हमारे पास तो अद्भुत साहित्य का भंडार है जो विश्व में अन्यत्र है ही नहीं


हमारे साहित्य में वेदों,ब्राह्मणों, आरण्यकों,  उपनिषदों, पुराणों द्वारा जगत की उत्पत्ति जीव का जगत में व्यवहार तथा जगत के मूलाधार परमात्मा का तत्वज्ञानात्मक विश्लेषण किया गया है


ज्ञान, जिससे हमारे अन्दर ऐसा भाव जाग्रत हो जाए कि हमें कुछ चाहिए ही नहीं, ज्ञान है




 किं कारणं ब्रह्म कुतः स्म जाता जीवाम केन क्व च संप्रतिष्ठा। अधिष्ठिताः केन सुखेतरेषु वर्तामहे ब्रह्मविदो व्यवस्थाम्॥१॥


(श्वेताश्वतरोपनिषद्)

ब्रह्म की चर्चा करते हुए ऋषि पूछते हैं : क्या ब्रह्म जगत का कारण है?

 हम कहाँ से उत्पन्न हुए, किसके द्वारा हम जीवित रहते हैं और अन्त में किस में विलीन हो जाते हैं?

 और यह भी बताएं कि वह कौन अधिष्ठाता है जिसके मार्गदर्शन में हम सुख-दुःख के विधान का पालन कर रहे हैं



सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।....

यह धीरज कैसे आ सकता है


औपनिषदिक चिन्तन से यह धीरज आ सकता है

मैत्रेयी- याज्ञवल्क्य यम- नचिकेता संवाद भी इसी विषय पर है


इसी तरह मुण्डकोपनिषद् में शौनक की इस जिज्ञासा के शमन में कि "किस तत्व के जान लेने से सब कुछ जान लिया जाता है

ऋषि अंगिरा  ने उसे ब्रह्मविद्या का उपदेश दिया जिसमें उन्होंने विद्या के परा और अपरा भेद करके वेद वेदाङ्ग को अपरा और उस ज्ञान को पराविद्या नाम दिया जिससे अक्षर ब्रह्म की प्राप्ति होती है

यह जिज्ञासा अद्भुत है और मनुष्य को ही मिली है

मुक्त होने का भाव उसके मन में रहता है



को छूट्यौ इहि जाल परि कत कुरंग अकुलात।

ज्यौं-ज्यौं सुरझि भज्यौ चहत त्यौं-त्यौं उरझत जात॥


यही संसार है इसलिए मुक्त होने के लिए आत्मस्थ होना आवश्यक है

ऐसा अद्भुत है हमारा हिन्दुत्व

रूपी वटवृक्ष जिसके बीज से लेकर विस्तार तक का चिन्तन भी हमारे लिए आवश्यक है

अपने धर्म कर्म चिन्तन विचार रहन सहन को परिष्कृत करने   की आवश्यकता है

प्रत्येक सोपान का आनन्द लेते हुए जीवन यात्रा करते चलें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

25.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 25 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *788 वां*

 प्रस्तुत है प्राण ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 25 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *788 वां* सार -संक्षेप


 1 = प्राणों के समान प्रिय 


06:29, 13.53, 13:47


आहार निद्रा भय मैथुनं च सामान्यमेतत्पशुभिर्नराणाम्, धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीना: पशुभिः समाना:।।


आचार्य जी इसकी व्याख्या करते हुए बता रहे हैं कि धर्म से हीन मनुष्य पशु के समान है हमें अपने धर्म के प्रति लगाव होना चाहिए 

भारतीय जीवन दर्शन कहता है कि हम परमात्मा के अंश हैं परमात्मा की इच्छा से हमारा अवतरण उसी के द्वारा निर्मित इस संसार में हुआ है उसके सबसे महत्त्वपूर्ण अंश अर्थात् मनुष्य के रूप में जन्म लेने के कारण उसके प्रतिनिधि हैं और जब हम उसके प्रतिनिधि हैं तो  अपने शरीर मन बुद्धि  चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय व्यवहार आचरण आदि पर गहनता से विचार करें हम भी परमात्मा की तरह क्रियाशील रहते हैं हम आत्मस्थ होने की चेष्टा करें मैं कौन हूं

चिदानन्द रूपस्य शिवोऽहं शिवोऽहम्

 कल्याण करना हमारा कर्तव्य हो जाता है अपने लिए ही नहीं जीना अपनों के लिए जीना

और यह अपनापन राष्ट्र और विश्व तक चला जाता है

कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम्

वसुधैव कुटुम्बकम्


इतने उदात्त  विचारों वाले हमारे धर्म के प्रति भी बहुत से लोग दुर्भावना रखते हैं हमें उनसे सचेत रहना चाहिए

इसके लिए संगठन का महत्त्व अधिक हो जाता है हमारा वज्र चरण रुकना नहीं चाहिए 

स्थान स्थान पर संगठन को फलप्रद बनाएं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आकर्षण को कैसे परिभाषित किया भैया डा अमित जी भैया विजय भैया देवर्षि भैया विवेक जी की चर्चा क्यों की कल सम्पन्न हुए राष्ट्रीय अधिवेशन के बारे में क्या बताया जानने के लिए सुनें

24.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 24 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *787 वां*

 प्रस्तुत है अनन्यसाधारण ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 24 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *787 वां* सार -संक्षेप


 1 = असाधारण 


05:57, 15.78MB, 16:05



येषां न विद्या न तपो न दानं,

ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।

ते मर्त्यलोके भुविभारभूता,

मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति॥



भारतीय जीवन दर्शन कहता है कि हम परमात्मा के अंश हैं परमात्मा की इच्छा से हमारा अवतरण उसी के द्वारा निर्मित इस संसार में हुआ है उसके सबसे महत्त्वपूर्ण अंश अर्थात् मनुष्य के रूप में जन्म लेने के कारण उसके प्रतिनिधि हैं और जब हम उसके प्रतिनिधि हैं तो  अपने शरीर मन बुद्धि  चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय व्यवहार आचरण आदि पर गहनता से विचार करते हुए हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम संसार में अच्छे का विकास करें और बुरे का शमन करें


हमारा मनुष्यत्व सतत जाग्रत रहे इसका ध्यान रखें आसपास का वातावरण परिपोषित करें प्रतिदिन  शयन से पूर्व अपने क्रिया व्यापारों की सहज समीक्षा और अगले दिन की व्यवस्थित योजना बनाएं

यही संसार में सफलता का राज है सफल वह व्यक्ति है जो चर्चित हैं जो एक उदाहरण हैं 

आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि तिरस्कृत कौन होता है और कौन पुरस्कृत होता है


विकास की अंधी दौड़ में भ्रम का बोलबाला भी बहुत रहता है

हम आत्मानुभूति करते हुए अपने शरीर का भी ध्यान रखें ताकि वह हमारा अच्छी तरह से सहयोग करता रहे


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम युगभारती के सदस्य आत्मचिन्तन आत्ममन्थन अवश्य करें और यह ध्यान रखें कि हमारा लक्ष्य एक है


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः


परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं

समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्।।३।।


आज युगभारती का वार्षिक अधिवेशन है


संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।

देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते।।


 कोई भी कार्यक्रम अपनी जीवनचर्या को उत्साहित करने के लिए होता है

यह कार्यक्रम भी ऐसा ही है


आप सभी सम्मानित सदस्यों की गरिमामयी उपस्थिति से हमारी संस्था को सेवा, समर्पण आदि के संकल्पों को पूर्ण करने का संबल मिलेगा


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कौन सी कथा  बताई कि धृतराष्ट्र के पुण्य कैसे क्षीण हुए जानने के लिए सुनें

23.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 23 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *786 वां*

 प्रयास में लगे रहो , प्रयास ही मुकाम है, 

मनुष्य पौरुषेय का प्रयास ही सुकाम है।।


प्रस्तुत है तीव्रगति ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 23 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *786 वां* सार -संक्षेप


 1 = फुर्तीला


06:01, 15.67MB, 15:58



कर्मपंथ के इन्द्रजाल अर्थात् इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से हम सदाचारमय विचारों को ग्रहण कर रहे हैं क्योंकि इन्हें ग्रहण कर हमें मनुष्यत्व का बोध होता है

जीवन की जटिलताओं से निपटने के लिए हमारे मार्गदर्शक के रूप में ये विचार काम में आते हैं


राही अनथक राह चला चल

 क्षण भर भी विश्राम न ले

 हानि लाभ की वणिक वृत्ति

या तर्कबुद्धि से काम न ले




ये सदाचारमय विचारों की ही शक्ति है जो प्रेम और आत्मीयता का विस्तार करती है सत्य को आत्मसात् करने में सदाचार महत्त्वपूर्ण है 

हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म भारतदेश में हुआ है यहां सनातन धर्म का पालन करने वाला हिन्दू मूल निवासी है सनातन धर्म हमें  सिखाता रहा है कि हम सदाचारमय विचारों को ग्रहण कर अपने मनुष्यत्व को पहचानें अपने कर्तव्य को जानें 

सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या सदा बना रहने वाला अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त

इसे कोई समाप्त नहीं कर सकता

हमारा एक कर्तव्य है कि 

अपने भाव विचारों और क्रियाओं के साथ सात्विक भाव से समाज की सेवा करते चलें क्योंकि समाज ही हमें देता है समाज न हो तो हम मनुष्य नहीं बन सकते इस कारण हमारा चिन्तन सामाजिक चिन्तन रहता है रहना भी चाहिए

इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संगठन/ संघठन अत्यन्त आवश्यक है वैसे शुद्ध शब्द है संघटन

संघटन संघट संघ ऐसे मिलते जुलते कई शब्द हैं 

संघ शब्द का एक बहुत अच्छा अर्थ है

विशेष उद्देश्य के लिए एक साथ रहने वाले व्यक्तियों का समूह

संघटन  का अर्थ है

किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए नियमित संस्था


संघटन अपने उद्देश्य की पूर्ति तब कर पाता है जब व्यक्ति व्यक्ति आत्मचिन्तन करते हुए अपने साथ समाज के लिए भी कुछ करने का भाव रखें

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक महत्त्वपूर्ण संघटन का उदाहरण है आचार्य जी ने इस संघटन का उद्देश्य विस्तार से बताते हुए कहा कि अध्यात्म के साथ शौर्य अनिवार्य है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने एक अत्यन्त प्रतिभाशाली सज्जन बुद्धदेव जी से संबन्धित क्या प्रसंग बताया

भैया पंकज भैया शौर्यजीत की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

22.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 22 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *785 वां* सार -संक्षेप

 जाति पाँति मत पंथ व्यक्तिहित छोड़ अखंडित राष्ट्र जपें 

हम सब एक सनातनधर्मी  मंत्र जपें दिन रात तपें।


प्रस्तुत है प्रीणन ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 22 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *785 वां* सार -संक्षेप


 1 = जो प्रसन्न या संतुष्ट करता है

06:14, 16.60MB, 16:55



शिवेतर  अर्थात् जो कल्याण से इतर है उसको क्षत करना ही काव्य रचने का उद्देश्य होता है होना चाहिए

आचार्य जी की काव्य रचनाएं इसी उद्देश्य को पूर्ण करती हैं अब इसी रचना को देखिए



दिनरात तन को सोचते जो मन उसी के साथ रख

सुख मानते दिनरात जिह्वा के वशी बहुभोग  चख

वे क्या समझ सकते कि यह संसार अद्‌भुत मंच है


सब मंच मंडप पर चढ़े क्षणजीवियों का संच है


 इसलिए अपने को न उनके साथ तुम जोड़ो सखे


 शुभ दिव्य  जीवन  मन्त्र धारो वह   कि जिससे शिव लखे


शुभ शिव समर्पित दिव्य जीवन तत्व है वरदान है

यह शक्ति संयम साधना  बुद्धत्व का अवदान है



आचार्य जी का भावनात्मक आग्रह रहता है कि इन सदाचार वेलाओं को मन लगाकर हम सुनें और उनमें मनुष्यत्व को परखने वाले भावों को ग्रहण करें  सुप्त ऊर्जा को जाग्रत करें ज्ञान का अनुभव करें साधना में रमने का अभ्यास करें और अपने अन्दर इतनी क्षमता लाएं कि हम भी इसी तरह लोगों को उद्बोधित करने लगें

यह कठिन नहीं है क्योंकि हमारा देश अध्यात्मवादी देश है

भारतीय संस्कृति के हम उपासक सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म उस देश में हुआ है जिसने मनुष्य को मनुष्यत्व का बोध कराया है


भारतीय संस्कृति में ही इतनी क्षमता है जो दम तोड़ती मानव जाति को अनुप्राणित कर सके दुर्लक्ष्य की चाह रखने वाले व्यक्तियों को सबक सिखा सके


भारत का भूगोल तड़पता , तड़प रहा इतिहास है

तिनका-तिनका तड़प रहा है , तड़प रही हर सांस है |


शौर्यमय अध्यात्म की पटकथा लिखने वाले राम और कृष्ण हमारे आराध्य हैं


मन बुद्धि विचार तत्व जो हमारे शरीर की  प्राणिक ऊर्जा से संयुत हैं अद्भुत हैं

मैं कौन हूं

शिवोऽहं शिवोऽहम्

ऐसी परम्परा के वाहक हम भ्रमित क्यों रहते हैं

हमको भ्रमित नहीं रहना चाहिए

हम इतने क्षमतावान् हैं कि शून्य से शिखर तक पहुंच सकते हैं

हम गंदगी के परमाणुओं पर ध्यान न देकर आत्मबोध के साथ उन लोगों को साथ में लें जिनमें राष्ट्रनिष्ठा समाजसेवा की ललक है उनको संगठित करें

आचार्य जी ने सहज साधना को परिभाषित किया और बताया कि सहज साधना का परिणाम हमारे सामने है

आचार्य जी ने कहा गांवों को ही तीर्थ बना लें केवल स्वास्थ्य शिविर लगाना पर्याप्त नहीं है लाभार्थियों के प्रति प्रेम आत्मीयता भी आवश्यक है

वार्षिक अधिवेशन में भी प्रेम आत्मीयता के विस्तार पर ध्यान दें


ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो,

राह में आये जो दिन दुखी सब को गले से लगाते चलो…


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने वार्षिक अधिवेशन के विषय में और क्या बताया भैया पवन मिश्र भैया पंकज का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

21.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 21 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण 784 वां

 जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद् द्विज उच्यते ।


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः



प्रस्तुत है प्रदुष्ट -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 21 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *784 वां* सार -संक्षेप


06:12, 16.02 MB, 16:20

 1 प्रदुष्ट =भ्रष्ट


एक बुजुर्ग डॉक्टर  अपने कमरे में मृत मिले

तो विदेश में रह रहे उनके बेटे ने अपनी मां के साथ वीडियो कॉल पर ही उन्हें अंतिम विदाई दी

ऐसा भयावह है हाईप्रोफाइल फैमिली का सच जो पश्चिमी जगत के लिए तो अजूबा नहीं है लेकिन  भारतवर्ष के हम जैसे सनातन चिन्तन करने वालों को ऐसी घटनाएं व्यथित कर देती हैं वास्तव में वर्तमान समय में हाई फाई शिक्षा का वास्तविक परिणाम यही है।

मूल भाव को विस्मृत कर आवरण की चर्चा आजकल आम हो गई है


शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे हमें अच्छे संस्कार मिल सकें अच्छे संस्कारों पर आधारित मनुष्य जीवन की क्रिया बहुत अद्भुत है जो इसे नहीं समझता वह इस धरती का बोझ है

 इन वेलाओं में हमें अच्छे संस्कार मिलते हैं जिनसे हम अपने जीवन को आदर्श बना सकते हैं


तो आइये बिना विलम्ब किए प्रवेश कर लें सनातन धर्म के इस महान तीर्थ सदाचार वेला में


मेदिनीकोश के अनुसार संस्कार शब्द का अर्थ है


प्रतियत्न, अनुभव तथा मानस कर्म


 प्रति यत्न

अर्थात् जिसने आपके परिपोषण के लिए यत्न किया है तो उसके उत्तर में यदि आप प्रतियत्न नहीं करते तो आप पापी हैं

आचार्य जी ने अनुभव का अर्थ भी स्पष्ट किया 

हम केवल शरीर नहीं हैं जीवन हैं इसलिए मानस कर्म अत्यन्त आवश्यक है


दोषों के निस्सारण के साथ गुणों का आधान ही संस्कार शब्द का वास्तविक अर्थ है


दोषनिस्सारणपूर्वकं गुणाधानक्रिया नाम संस्कारः


धार्मिक अनुष्ठानों से दोषों का निवारण व गुणों का विकास हो सकता है ।


संस्कारों का मानव जीवन से गहरा सम्बन्ध है ।

संस्कार मानव के दैहिक, मानसिक, बौद्धिक परिष्करण हेतु किया गया अनुष्ठान है ।


न्याय शास्त्र के अनुसार संस्कार का अर्थ गुण विशेष है । यह निम्नांकित तीन प्रकार का है

 1. वेगाख्य संस्कार

 2. स्थितिस्थापक संस्कार

 3. भावनाख्य संस्कार


संस्कार तत्व के अनुसार संस्कार शब्द का अर्थ शुद्धि अदृष्ट विशेष कर्म होता है

हमारे यहां षोडश संस्कार हैं

जिनमें ये संस्कार नहीं वे मनुष्य नहीं हैं

अब समय है कि हम सचेत हो जाएं हम अपने को सम्हालें

आत्मचिन्तन करना आवश्यक है


मनुष्य के लिए भावना भी आवश्यक है


आगामी वार्षिक अधिवेशन में बाह्य स्वरूप के अतिरिक्त आत्मीयता आदि को भी परखने की चेष्टा करें


संबन्धों को गहराई अवश्य दें केवल विस्तार से ही काम नहीं चलेगा


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने प्रेम मनोहर जी से संबन्धित कौन सा प्रसंग सुनाया जानने के लिए सुनें

20.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 20 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *783 वां*

 सनातनधर्म मानव मात्र की प्रिय प्राणधारा है ,

जलधि की ऊर्मियों के बीच सिकतामय किनारा है ,

अभागा जो नहीं समझा इसे वह डूब जाएगा ,

उसे इस जगत में किंचित न कोई भी सहारा है।



प्रस्तुत है अभी ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 20 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *783 वां* सार -संक्षेप


 1 निर्भय



सत्य सनातन धर्म ही, विश्व धर्म अभिराम। 

शौर्य पराक्रम धार कर , बोलो जय श्रीराम। ।


मनुष्य जिस स्थान पर निवास करते करते अभ्यस्त हो जाता है तो संसार का जड़ स्वरूप चेतन होकर उसके साथ संवाद करने लगता है यही कारण है कि संन्यास आश्रम के लिए जाने वाले व्यक्तियों का प्रकृति से सीधा संवाद हो जाता था, उनका शरीर प्रकृतिमय वातावरण में रम जाता था और वे अपने  नाशवान पदार्थों से बने अस्थायी शरीर को विस्मृत कर देते थे

लेकिन शरीर की जटिल संरचना और इसमें चल रही स्वचालित गतिविधियां हमें सोचने के लिए विवश कर देती हैं और तब लगता है कि कोई शक्ति तो है जिसका कोई पार नहीं पा सकता

हमारे सनातन धर्म का यही विश्वास है


इस धर्म के विश्वास में धरती पर प्रकट होने वाले विकारों की शुद्धि के उपाय भी हैं


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।



यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

विभिन्न प्रकार की शुद्धियां चलती रहती हैं यह इतना गहन विषय है कि वेद भी कहते हैं

नेति नेति

इतना ही नहीं है और भी कुछ है


हमारे सनातन धर्म में कथाओं के साथ ज्ञान भी संयुत है उसमें निहित तत्व भी समझ में आने लगता है


आचार्य जी ने श्रीरामचरित मानस का एक रोचक कथानक बताया जिसमें भगवान् राम सीता जी को खोज रहे हैं ऐसे समय में शिव जी ने उनके दर्शन किए हैं मां सती भ्रमित हैं तो शिव जी कहते हैं राम सामान्य मनुष्य नहीं हैं मां सती को फिर पश्चाताप होता है ,फिर उन्हें नया रूप मिलता है आदि आदि


नाथ धरेउ नरतनु केहि हेतू। मोहि समुझाइ कहहु बृषकेतू॥

उमा बचन सुनि परम बिनीता। रामकथा पर प्रीति पुनीता॥


शिव जी जो सुन चुके थे वही बताते हैं यही श्रुति का अर्थ है

सुनते आने की परम्परा अनन्त चलती आ रही है

सनातन धर्म अनन्त है


जब जब होई धर्म की हानि, बाढ़हि असुर अधम अभिमानी।


तब तब प्रभु विविध शरीर धारण करते हैं


हमारे ग्रंथ अद्भुत हैं इनका मूल भाव यही है कि हम अपना लक्ष्य अवश्य प्राप्त करें


जब भी आपके मन में भाव आएं और उन्हें शब्द मिल जाएं तो इसे भगवान् की अद्भुत कृपा ही कहा जाएगा


आचार्य जी की रचित कविता 'जवानी ' के ये अंश देखिये


जवानी मातृ-मन्दिर के लिये कुर्बान होती है

 जवानी दर्द दिल का शीश का सम्मान होती है

 जवानी शक्ति मन्दिर का सजीला शौर्य का विग्रह

 जवानी ध्यान ध्रुव का और अर्जुन का मनोनिग्रह

 जवानी के लिये संसार का स्रष्टा मचलता है

 कभी वह राम अथवा श्याम बन लिप्सा कुचलता है

 जवानी से से सदा सदा मजबूरियाँ डरती-सहमती हैं

 जवानी अग्निधर्मा कोख है ज्वाला जनमती है ।।



और यह कृपा हम सबको मिले आचार्य जी इसकी कामना कर रहे हैं

अपने को ऊर्जा से भरने के क्षण खोजें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किस राजा का उल्लेख किया आर्यनगर कानपुर वाले डा बुधवार जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

19.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 19 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *782 वां*

 🔶श्री गणेशाय नमः🔶



अत्याचार सहन करने का

कुफल यही होता है

पौरुष का आतंक मनुज

कोमल होकर खोता है।


क्षमा शोभती उस भुजंग को

जिसके पास गरल हो

उसको क्या जो दंतहीन

विषरहित, विनीत, सरल हो ।



प्रस्तुत है यजुर्विद् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 19 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *782 वां* सार -संक्षेप


 1 यज्ञीय विधि का ज्ञाता


स्थान :उन्नाव


यदृच्छातस् सदाचारमय विचारों का संप्रेषण हमें अत्यन्त सरलता से प्राप्त हो जाता है यह हमारा सौभाग्य है आइये आत्मस्थ होकर आत्मानन्द के लिए इस वेला में प्रवेश कर जाएं जिसमें सद् विचारों का अजस्र प्रवाह हमें सांसारिक प्रपंचों में उलझे रहने के बाद भी अध्यात्मोन्मुखी बना देता है

अध्यात्म महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें संसार में रहने का, समस्याओं को दूर करने का उपाय बताता है इसके द्वारा हमें शक्ति, सामर्थ्य, शान्ति,संतोष प्राप्त होता है

भारतीय विचारधारा अद्भुत है हम सूर्य को देवता मानते हैं हमारे यहां जल के देवता हैं अग्नि  वर्षा  वायु आदि के देवता हैं 

कोई भी परालौकिक शक्ति का पात्र देवता है और इसलिये पूजनीय है।

हमारे यहां 33 कोटि देवी देवता हैं इनमें 12 आदित्य,11 रूद्र,8 वसु और 2 अश्विनी कुमार हैं।

यही सनातन धर्म है


यह धर्म हमें आत्मज्ञान सिखाता है

जिसके द्वारा अपने दृष्टिकोण में अन्तर लाकर हम दुःखों से दूर रह सकते हैं 


गीता में भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन के शोक मोह के मूल कारण अर्थात् आत्मअज्ञान को ही दूर करने का प्रयत्न करते हुए कहते हैं


अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।


गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः।।2.11।।


जिन व्यक्तियों के लिए शोक करना उचित नहीं है, उनके लिये तुम शोक करते हो जब कि ज्ञानियों जैसे वचन  कहते हो

लेकिन ज्ञानी पुरुष मृत  और जीवित दोनों के लिये शोक नहीं करते हैं


देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।


तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.30।।


यह देही अर्थात् देह को धारण करने वाला सबके शरीर में सदा ही अवध्य है इसे मारा नहीं जा सकता अतः समस्त प्राणियों के लिए तुम शोक करो यह उचित नहीं है


जो व्यक्ति मान, मोह से रहित हो गये हैं, जिन्होंने आसक्ति द्वारा होने वाले दोषों  पर विजयश्री प्राप्त कर ली है जो नित्य-निरन्तर परमात्मा में लीन हैं , जो  सम्पूर्ण कामनाओं से रहित हो गये हैं, जो सुख और दुःख वाले द्वन्द्वों से मुक्त हो गये हैं, ऐसे मोहरहित साधक भक्त उस परमात्मा  को प्राप्त होते हैं


यह बात हम एक दूसरे को समझा सकते हैं समझाते भी हैं भारत में तो प्रायः सब एक दूसरे को सांत्वना देना जानते ही हैं परस्पर का यह संसारी भाव संसार से तिरने का एक माध्यम है

किसी भी परिचित को हमें आत्मबोधित करने का प्रयास त्यागना नहीं चाहिए

आचार्य जी ने संगठन,जो कलियुग में अत्यन्त महत्त्व का है,के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा इसमें  एक का भाव दूसरे के भाव से संयुत रहे यह अनिवार्य है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विनय वर्मा जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

18.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 18 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *781 वां*

 लड़े हरदम विजयश्री प्राप्त करके ही लिया है दम, 

हमारा शौर्यमय अध्यात्म ही हरदम रहा हमदम, 

अतीत अपना अभी भी शान से लहरा रहा नभ में, 

कभी भी और अब भी हैं न हम जग में किसी से कम।


प्रस्तुत है कुलाभिमान ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 18 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *781 वां* सार -संक्षेप


 1 कुल का गौरव


स्थान :उन्नाव



हम संसारी पुरुष प्रायः संसार के स्तर पर  विचार चिन्तन मनन कर उसी से मार्ग निकालकर अपने जीवन को उन्नत बनाने का प्रयास करते हैं यही सदाचार है


हमें जब भी सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने का अवसर मिले उन्हें अवश्य ग्रहण करें उन्हें ग्रहण न करने की चूक हमारे लिए हानिकारक है

आइये बिना विलम्ब किए इस वेला में प्रवेश कर जाएं क्यों कि यह वेला भी सदाचारमय विचारों को प्रदान करने वाला ऐसा ही एक अवसर है 

भारतीय जीवन दर्शन यही सिखाता है कि ऐसे अवसर चूकें नहीं

भारत की धरती अद्भुत है 

यहां भगवान राम भगवान श्रीकृष्ण जैसे अवतार शौर्य शक्ति संयम स्वाध्याय आत्मबोध का उपाय हैं प्रेरण हैं 


परस्पर का संवाद और परस्पर के कार्य व्यवहारों में आनन्द की अनुभूति भारतवर्ष का सनातन मन्त्र है


हम अणुआत्मा होते हुए विभु आत्मा का चिन्तन करने वाले भारतीय जीवन दर्शन को आत्मसात् करने वाले ऐसे राष्ट्र भक्त हैं जिन्होंने अपने मान को सदैव सुरक्षित रखने का प्रयास किया है और सुरक्षित रखा भी है

हम भारत के मात्र निवासी नहीं है हम भारतवर्ष को केवल भूमि का टुकड़ा नहीं मानते हम कुलाभिमान हैं हम कुलाङ्गार नहीं जो उसी कुल में रहते हुए उसी को नष्ट करने का प्रयास करते रहें

लेकिन ऐसे कुलाङ्गारों का बोझ भी यह अद्भुत धरती सहन कर लेती है इसकी प्राणशक्ति अद्भुत अनोखी है

इसी प्राणशक्ति की अनुभूति करने वाले हम लोग भी कम अद्भुत नहीं



हम कभी रुकेंगे नहीं कभी झुकेंगे नहीं आत्मबोध को भी नष्ट नहीं होने देंगे

जो यह जानते हों कि मरना तो वस्त्र बदलना है कैसे मान लेंगे कि वे नष्ट भी हो सकते हैं

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय


नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।


तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-


न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आगामी वार्षिक अधिवेशन के बारे में क्या बताया भैया विभास जी भैया प्रदीप जी भैया पङ्कज जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

17.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 17 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *780 वां*

 प्रस्तुत है पृथग्जन -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 17 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *780 वां* सार -संक्षेप


 1पृथग्जनः =दुष्ट आदमी



आचार्य जी का कर्तव्यबोध वास्तव में अद्वितीय है जिसके फलस्वरूप हमें उत्थित जाग्रत प्रबोधित परिपुष्ट करने के लिए ये सदाचार संप्रेषण उपलब्ध हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए समय सबको उपलब्ध है हम लोगों को  अधिक से अधिक क्षणों का सदुपयोग सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने के लिए करना चाहिए प्रातः जागरण सदाचार की भूमिका कही जा सकती है दिन भर का व्यवहार सदाचार का मध्य -आलेख है और सन्ध्या उपसंहार

सत् के साथ आचरण संयुत है और आचरण जीवन का कार्य और व्यवहार है

वास्तव में सदाचारी व्यक्ति कौन है यह समझने का विषय है हम राष्ट्र भक्तों का कर्तव्य क्या है मनुष्यत्व किस ओर संकेत करता है अस्ताचल देशों से भ्रमित होकर हमने अपने ही पुराणों को, अद्भुत साहित्य को, भाषा को हेय दृष्टि से देखा अब समय है यह भ्रम हम दूर करें और भावी पीढ़ी को भी भ्रमित रहने से बचाएं

हमारे साहित्य में वेदों,ब्राह्मणों, आरण्यकों,  उपनिषदों, पुराणों द्वारा जगत की उत्पत्ति जीव का जगत में व्यवहार तथा जगत के मूलाधार परमात्मा का तत्वज्ञानात्मक विश्लेषण किया गया है

वेद अर्थात् ज्ञान

परिवार से व्यवहार प्रतिवेशी से व्यवहार अन्य से व्यवहार ज्ञान की ही बात है यही जगत व्यवहार बौद्धिक ज्ञान है

इसी तरह आध्यात्मिक ज्ञान भी ज्ञान का एक प्रकार है

ज्ञान के विश्लेषण के लिए वेद के बाद वेदांग हैं जो संख्या में छः हैं

सर्वांगपूर्ण परम्परा के वाहक हम लोगों को अपनी भाषा अपने भावों अपने विचारों के प्रति लगाव उत्पन्न हो इसके लिए आचार्य जी  नित्य प्रयासरत रहते हैं 

हमारा सनातन धर्म संपूर्ण विश्व के कल्याण की कामना करता है

सनातन स्वयमेव उद्भूत है और स्वयमेव अपनी व्यवस्था करता है

आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक तें कांपै॥

लेकिन हमारे तेज को कोई दूसरा नियन्त्रित करे यह परतन्त्रता है  अपने तेज को स्वयं नियन्त्रित करना अनुशासन है



न वै ताडनात् तापनाद् वहिमध्ये,

न वै विक्रयात् क्लिश्यमानोSहमस्मि ।

सुवर्णस्य मे मुख्यदुःखं तदेकं

यतो मां जनाः गुञ्जया तोलयन्ति ।।

हमारे धर्म की अन्य पंथों से तुलना व्यर्थ है

हमारा साहित्य अद्भुत है अप्रतिम है


हमें अपना परिचय देने की आवश्यकता नहीं है हम अतुलनीय हैं 


परिचय के लिये तरसते वे जो सचमुच में हैं बेचारे

पहचान छिपाये फिरते हैं पहचान बनाने के मारे

 परिचय सनाथ उनका जिनके सम्बन्धों को सब ललचाते

फिर भूल स्वयं को गढ़ते हैं जाने कितने रिश्ते नाते

 परिचय अथवा इतिहास रचा करता है हर युग का चारण

 पीढ़ियाँ जिसे गाया करतीं बनता संकल्पों का कारण

 निर्भ्रान्त लक्ष्य-पथ पर चलते रहना ही है निश्चय मेरा

 "दुनियादारों के लिये अजूबा हूँ'' यह भी परिचय मेरा ।


अब समय आ गया है हम अपने को पहचानें आत्मानुभूति ही अध्यात्म है

यही अध्यात्म इस संसार का तत्व है शक्ति है

हमें अपनी संस्कृति अपनी भाषा अपनी सभ्यता अपने धर्म पर गर्व करना चाहिए यही सनातनत्व है



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने ओरछा पन्ना की चर्चा क्यों की Smart व्यक्ति का अनाथालय से क्या संबन्ध है

कलियुग के बाद क्या आयेगा आदि जानने के लिए सुनें

16.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 16 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *779 वां*

 वर्जनायें हार थक कर बैठ जातीं 

वंचनायें मस्त मन-मन गुनगुनातीं

 याद डूबी साँझ झपकी ले रही है

और अपने हाथ थपकी दे रही है

ठिठकता हर ठौर, पर टिकता नहीं हूँ । 

गीत मैं लिखता नहीं हूँ । । 1 । ।


पथ अभी भी हार कर आवाज देता

 पर न पहले सा चपल अंदाज होता 

पंथ ही पाथेय सुख देता रहा है 

हर हवन में मन स्वयं होता रहा है 

धार में घुलमिल गयी माटी, विरस सिकता नहीं हूँ ।


गीत मैं लिखता नहीं हूँ ।। 2 l l



प्रस्तुत है शर्शरीक -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 16 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *779 वां* सार -संक्षेप


 1 शर्शरीकः =धूर्त



धर्म के मार्ग पर चलकर अपनी उपस्थिति से  हम राष्ट्र- भक्त लोगों   को प्रभावित करने वाला एक अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत कर रहे आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय दे रहे हैं यह हम लोगों का सौभाग्य है हमें इस मानसिक शिक्षण  का लाभ उठाना चाहिए

अच्छे प्रतिसाद के कारण हम लोग नित्य इसे प्राप्त कर पा रहे हैं यह हनुमान जी की कृपा है

समस्याग्रस्त संसार में आनन्द की अनुभूति वाले कुछ क्षण प्राप्त करने के लिए परमात्मा द्वारा प्रदत्त इस शरीर में मंगलमयता के अनुभव हेतु आइये प्रवेश कर जाएं आज की वेला में



प्राचीन साहित्य के प्रति हमारे मन में उत्साह जाग्रत करने हमारी बच्चों जैसी समझ में परिपक्वता लाने के पीछे आचार्य जी का उद्देश्य यही है कि प्राचीन घटनाओं का वर्णन  हमारे साथ भ्रमित वातावरण में पल रही नई  पीढ़ी को कुछ सिखा सके

नई पीढ़ी प्रेरित प्रभावित रोमाञ्चित हो सके हम सब लोगों को मिलकर इसका प्रयास करना चाहिए

आचार्य जी ने व्यास जी और गणेश जी वाली अद्भुत कथा बताई

हमारा साहित्य शश्वच्छान्ति में भंग डालने वाले अधर्म पर चलने वाले लोगों से सचेत करने का एक सुगम उपाय है


हमारे साहित्य में वेदों,ब्राह्मणों, आरण्यकों  उपनिषदों पुराणों द्वारा जगत की उत्पत्ति जीव का जगत में व्यवहार तथा जगत के मूलाधार परमात्मा का तत्वज्ञानात्मक विश्लेषण किया गया है

ये सारे तत्व सर्वसामान्य व्यक्ति तक पहुंचें साधारण से साधारण व्यक्ति के मन में सरलता से ज्ञान अंकित हो इस विचार से प्राचीनकाल से ही प्रयास होते रहे हैं

इस प्रयास में हम भी सम्मिलित हों

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी की चर्चा क्यों की आचार्य जी की पुस्तक गीत मैं लिखता नहीं हूं का शीर्षक किसने दिया था जानने के लिए  सुनें यह संप्रेषण


इति शम्

15.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 15 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *778 वां*

 वेवेंष्टि व्याप्नोति इति विष्णुः । देशकालवस्तुपरिच्छेदशून्य इत्यर्थः।


यस्माद्विष्टमिदं सर्वं तस्य शक्त्या महात्मनः | तस्मादेवोच्यते विष्णुर्विशेर्धातोः प्रवेशनात् ॥



प्रस्तुत है व्यवसित ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 15 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *778 वां* सार -संक्षेप


 1=प्रयत्नशील



हम सब राष्ट्र -भक्तों की दृष्टि में भारतीय जीवन दर्शन भारतीय संस्कृति भारतीय चिन्तन जो सृष्टि का आधार है अद्भुत अवर्णनीय और अतुलनीय है

हमारे यहां वेदों,ब्राह्मणों, आरण्यकों एवं उपनिषदों में जगत की उत्पत्ति जीव का जगत में व्यवहार तथा जगत के मूलाधार परमात्मा का तत्वज्ञानात्मक विश्लेषण किया गया है

ये सारे तत्व सर्वसामान्य व्यक्ति तक पहुंचें साधारण से साधारण व्यक्ति के मन में सरलता से ज्ञान अंकित हो इस विचार से प्राचीन समय में  वेदों को विस्तार से समझाने वाले पुराणों की रचना हुई

ये प्राचीन होते हुए भी नित्य नूतन लगते हैं ये अद्भुत पुराण भारतीय संस्कृति के अजस्र प्रवाह को दर्शाते हैं और भारत के वास्तविक इतिहास को जानने की कुंजी हैं

हमारे अन्दर इनके प्रति किसी प्रकार का भ्रम नहीं होना चाहिए

पुराणों में वर्णित है पृथ्वी शेषनाग के फन पर परमाणु के समान स्थित है

शेषशायी( शान्ताकारं भुजगशयनम् )विष्णु के प्रतीक के रूप में ब्रह्माण्ड विज्ञान को समझाया गया है


विवर्धते इति विष्णुः अर्थात् जो फैल रहा है वही विष्णु है

विष्णु जो जगत के पालनकर्ता हैं

विशाल होते चले जा रहे हैं

ब्रह्माण्ड ही विष्णु है जो फैल रहा है  विष्णु शेष पर शयन कर रहे हैं शेष उनसे विशाल हुआ 

शेष का एक अर्थ अनन्त है

अर्थात् शान्त ब्रह्माण्ड अनन्त पर स्थित है इस तरह वैज्ञानिक तथ्य को सरल भाषा में समझाया गया है



शुकदेव महाभारत काल के मुनि थे। वे वेदव्यास जी के पुत्र थे। वे बचपन में ही ज्ञान प्राप्ति के लिये वन  चले गये थे। इन्होने ही परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण की कथा सुनायी थी l

परीक्षित पूछ्ते हैं

काल का स्वरूप क्या है

तो शुकदेव मुनि कहते हैं

विषय का परिवर्तन ही काल का स्वरूप है

संसार परिवर्तनशील है इसमें कोई संशय नहीं


पुराणों में इतिहास है और हमारी इतिहास की दृष्टि विलायती लोगों के इतिहास की दृष्टि से अलग है


इतिहास मात्र इतिवृत्त नहीं


वह तो जीवन की दिशा चेतना की तरंग

 मन की गति प्राणों की उमंग 

केवल घटनाओं का वह छायाचित्र नहीं । इतिहास मात्र..... । । 1 । । 

इतिहास जो कि, 

 आवेगों की तरलित धारा कर वेगवती ऊर्जस्वित पौरुष को अदम्य कर देता है

संयम की सरिताओं का कर अद्भुत संगम

 तीरथ कर्मठता का सुरम्य कर देता है

वह प्राणों का संगीत शब्द का ब्रह्मनाद

 केवल काली स्याही से अंकित चित्र नहीं

 इतिहास मात्र..... । । 2 । । 

इतिहास वह कि, 

जो भावी पीढ़ी को रोमाञ्चित करता हो

शोणित में ज्वार जगाता जो सन्देशों से

भावना क्षितिज पर जो तूफान उठा पहले

फिर शमित किया करता गीता उपदेशों से

वह मानवता का मंत्र कर्म का तत्व ज्ञान

 केवल थोथी मतियों से प्रेरित कथ्य नही

 इतिहास मात्र..... । । 3 । ।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आचार्य राजकरण जी की चर्चा क्यों की COSMOS पुस्तक की बात कैसे उठी EINSTEIN की पत्नी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

14.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 14 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *777 वां*

 मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।


मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।9.34।।


प्रस्तुत है शमिन् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 14 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *777 वां* सार -संक्षेप


 1: जिसने अपने आवेशों का दमन कर लिया है


हमारे राष्ट्र का जीवन दर्शन अद्भुत है  भक्ति, जो विश्वास की पराकाष्ठा है, का आधार संपूर्ण विश्व के भरण पोषण की हमारी परिकल्पना अद्भुत है हमारा राष्ट्र अनार्य को आर्य बनाने में विश्वास रखता है और इसके लिए कृतसंकल्प भी है 

हम अपने कार्य व्यवहार खानपान को परिशुद्ध करते हुए अपने बड़े उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए समाज और देश पर भक्ति की सीमा तक विश्वास करें क्योंकि विश्वासी कभी कुंठित चिन्तित भ्रमित व्यथित नहीं रह सकता वह संकटों से कभी घबराता नहीं है और उनसे बाहर भी निकल आता है जिसके मन में मरना भी वस्त्र बदलने के समान है भाव विद्यमान रहता है 




पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।


तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।9.26।।


जो  भक्त मेरे लिए पत्र, पुष्प, फल, जल आदि को भक्ति पूर्वक अर्पित करता है, उस शुद्ध मन वाले भक्त का वह अर्पण  मैं  स्वीकार करता हूँ



जो संसार को जितना अधिक सत्य समझता है वह उतना ही व्यथित चिन्तित रहता है उसका परामर्शदाता उसे और अधिक भ्रमित करता है


जाका गुर भी अंधला, चेला खरा निरंध। 


अंधा−अंधा ठेलिया, दून्यूँ कूप पड़ंत॥


स्वार्थमय भक्ति में लीन व्यक्ति को तथ्य सत्य तत्त्व व्यर्थ का दिखता है वह अपने परिवेश को भी दूषित कर देता है


कल आचार्य जी ने पुराणों पर चर्चा की थी पुराण भारतीय संस्कृति के अजस्र प्रवाह को दर्शाते हैं और भारत के वास्तविक इतिहास को जानने की कुंजी हैं वे अत्यन्त प्राचीन होते हुए भी नूतन लगते हैं इनमें कथा से कथा संयुत होती चलती है

हमें इन पर पूर्ण विश्वास करना चाहिए

पुराणों में अद्भुत अलंकारिकता है


विष्णु पुराण छोटे पुराण ग्रंथों में से एक है, जिसके उपलब्ध संस्करणों में लगभग 7,000 छंद हैं।  यह मुख्यतः भगवान विष्णु और कृष्ण जैसे उनके अवतारों पर केंद्रित है , किन्तु यह ब्रह्मा और शिव की  भी प्रशंसा करता है

 विल्सन का कहना है कि पुराण सर्वेश्वरवादी है और इसमें विद्यमान विचार वैदिक मान्यताओं और विचारों पर आधारित हैं


इसी में वर्णित है


यावत् सूर्य उदेति स्म यावच्च प्रतितिष्ठति ।

तत् सर्वं यौवनाश्वस्य मान्धातु: क्षेत्रमुच्यते ॥


क्षितिज में जहाँ से सूर्य उदय होकर चमकता है और जहाँ सूर्य अस्त होता है वे सारे स्थान युवनाश्व के पुत्र मान्धाता (भगवान् राम के पूर्वज )के अधिकार में माने जाते हैं



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने ग्यारहवीं कक्षा की एक छात्रा की चर्चा क्यों की भोजनालय वाले नन्द कुमार जी का उल्लेख क्यों हुआ आदि जानने के लिए सुनें

13.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 13 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *776वां*

 युजे वां ब्रह्म पूर्व्यं नमोभिर्विश्लोक एतु पथ्येव सूरेः।

शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्रा आ ये धामानि दिव्यानि तस्थुः॥


ज्ञानियों के पदचिह्नों का अनुगमन करते हुए मैं लगातार ध्यान के द्वारा तुम दोनों का  ब्रह्म में विलयन करता हूँ  दिव्यधाम में निवास करने वाले अमृत के पुत्र मेरी बात सुनें


श्वेताश्वतरोपनिषद्


प्रस्तुत है अध्यात्म -मयूख ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 13 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *776वां* सार -संक्षेप


 1:  अध्यात्म की ज्वाला


हम राष्ट्रभक्त कर्मशील योद्धाओं के पथ को प्रशस्त बनाने के लिए आचार्य जी पुनः आज सदाचार वेला में उपस्थित हैं

समय का सदुपयोग करते हुए 

आइये इस आनन्द -अर्णव में प्रवेश कर जाएं 

परमात्मा की इस अद्भुत रचना में वास करने वाला मनुष्य किसी भी तरह का प्रयास करने में सक्षम है

मनुष्य के लिए संसार को विस्मृत करना कठिन काम है लेकिन इसका प्रयास तो उसे करना चाहिए

क्योंकि



बड़ा कमज़ोर है आदमी

अभी लाखों हैं इसमें कमी

पर तू जो खड़ा है दयालू बड़ा

तेरी किरपा से धरती थमी

दिया तूने हमे जब जनम

तू ही झेलेगा हम सबके ग़म


इस सारे संसार के अन्तर में एक आत्मसत्ता है जो अग्निस्वरूप भी है और जो जल की अतल गहराई में अवस्थित है।'उसका ज्ञान प्राप्त करके व्यक्ति मृत्यु की पकड़ से  दूर हो जाता है तथा इस महद्-गति के लिए दूसरा कोई रास्ता नहीं है



वेदों,ब्राह्मणों, आरण्यकों एवं उपनिषदों में जगत की उत्पत्ति जीव का जगत में व्यवहार तथा जगत के मूलाधार परमात्मा का तत्वज्ञानात्मक विश्लेषण किया गया है


ये सारे तत्व सर्वसामान्य व्यक्ति तक पहुंचें साधारण से साधारण व्यक्ति के मन में सरलता से ज्ञान अंकित हो इस विचार से प्राचीन समय में  वेदों को विस्तार से समझाने वाले पुराणों की रचना हुई



और ऐसे अत्यन्त प्राचीन होते हुए भी नित्य नूतन अद्भुत पुराणों को,जो भारतीय संस्कृति के अजस्र प्रवाह को दर्शाते हैं और भारत के वास्तविक इतिहास को जानने की कुंजी हैं, वारुणी से भ्रमित हम लोगों ने बहुत लांछित किया हमारे अन्दर बहुत से विकार आ गए

अब समय है हम इन विकारों को दूर करते जाएं

हमारे मन में इनके प्रति श्रद्धा होनी चाहिए और चार लोगों को भी बताएं

हम ऋषित्व की अनुभूति करें

आनन्द के कुछ क्षण निकालें


पुराणों में कथा से कथा संयुत होती जाती है


म द्वयं भ द्वयं चैव ब्र त्रयं व चतुष्टयम् ।

अ ना प लिं ग कू स्कानि पुराणानि प्रचक्ष्यते ।।


अर्थात् 

म अक्षरे पुराणद्वयं- 

मत्स्यपुराणं मार्कण्डेय पुराणम् 


भ अक्षरे पुराण द्वयं- भागवत पुराणं,भविष्यपुराणञ्च ।


ब्र -अक्षरे पुराण त्रयं - ब्रह्मपुराणं,ब्रह्मवैवर्त पुराणम्,ब्रह्माण्डपुराणञ्च ।


व-अक्षरे पुराणचतुष्टयं- वायुपुराणं,वामनपुराणं,वराहपुराणं,विष्णुपुराणञ्च ।


अ -अक्षरे एकम्- अग्निपुराणम्

ना-अक्षरे एकम्- नारदीयपुराणम्

प-अक्षरे एकम्- पद्मपुराणम्

लि-अक्षरे एकम्- लिङ्गपुराणम्

ग-अक्षरे एकम्- गरुड़ पुराणम्

कू-अक्षरे एकम्- कूर्म पुराणम्

स्क- अक्षरे एकम्- स्कन्दपुराणम्



सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च।

वंशानुचरितं चैव पुराण पंचलक्षणम् ।।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उदयनिधि का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

12.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 12 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *775 वां*

 हम क्या कर लेंगे

हम कर लेंगे 

आत्मशक्ति की आहुति बनकर 

समय परिस्थिति भांप परखकर

 दिशा दृष्टि रख

भावी की भविष्य रचना इतिहास बाँचकर

  और संगठन को युग का अवतार मानकर

भाग्य रचेंगे

यह कर लेंगे यह कर लेंगे यह कर लेंगे




प्रस्तुत है निरन्तर ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 12  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *775 वां* सार -संक्षेप


 1:  सदा आंखों के सामने रहने वाला




भाव विचार चिन्तन मनन ध्यान दर्शन अध्ययन स्वाध्याय को प्रचुर मात्रा में संचित करने का जिससे हम सांसारिक प्रपंचों में इसे अधिक से अधिक व्यय कर सकें जिससे उन प्रपंचों में न उलझ सकें क्योंकि उनमें उलझने से हम दुःखी होते हैं हमारा शरीर भी कष्ट पाता है  तो सबसे सुगम मार्ग है यह नित्य की सदाचार वेला

और इसकी निरन्तरता का कारण है भगवान हनुमान जी का आदेश मां सरस्वती की कृपा आचार्य जी का समर्पण और हमारा सद् -आग्रह के लिए सदा आग्रही होना

ये वेलाएं हमें अनुभूति कराती हैं कि हम अत्यन्त विलक्षण मनुष्य हैं मनुष्यत्व हमारा कर्तव्य है संपूर्ण विश्व के कल्याण की कामना करने वाले जिस देश में  जन्मे होने का हमें सौभाग्य मिला है उस देश के प्रति निष्ठा हमारा धर्म है,

हमारा शरीर नाशवान है तो शरीर से मोह क्यों मृत्यु से भय क्यों

आइये प्रवेश करें आज की वेला में



आचार्य जी कहते हैं कि हमारे अन्दर मानवता के कल्याण का भाव होना चाहिए

ध्यानी योगी ऋषि मुनि यदि एकांत में बैठे हैं और कहते हैं हमें संसार से मतलब नहीं तो ऐसे संतत्व का क्या अर्थ रह जाता है

अध्यात्म सदैव शौर्य प्रमंडित होना चाहिए

अध्यात्म ऐसा जो रामत्व की अनुभूति कराये


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥


आचार्य जी चाहते हैं कि हम शौर्यप्रमंडित अध्यात्म के महत्त्व को समझकर अस्ताचल देशों से भ्रमित न होकर  राष्ट्र के प्रति अपनी भाषा के प्रति निष्ठावान रहें

ऐसा न होते देख आचार्य जी निम्नांकित पंक्तियों में अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं 

 


क्या कर लोगे

जब चिन्तन बैरागी बन वन वन भटकेगा

कर्मठता कुण्ठित होकर दम तोड़ चलेगी

धर्म ध्वजाएं भी रूठेंगी लिप्साओं से

पछुआ की लपटों से पुरवाई झुलसेगी.....


हम आत्महीनता का त्याग करें गुलामी की भाषा का मोह त्यागें भविष्य के लिए वर्तमान का संस्कार करें 

आत्मशक्ति को परखें संगठन का महत्त्व समझें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गीता के किन श्लोकों का उल्लेख किया चिन्तक विचारक किसमें मस्त होता है

संगठन में कौन सा भाव रचना बसना चाहिए आदि जानने के लिए सुनें

11.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 11 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *774 वां*

 प्रस्तुत है  सञ्चारक ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 11  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *774 वां* सार -संक्षेप


 1:  पथ -प्रदर्शक



हम संवेदनशील मनुष्यों को अनेक सांसारिक चिन्ताएं समय समय पर सताती रहती हैं और ऐसे में यही लगता है कि हर समय प्रसन्न कैसे रहा जा सकता है 

सदा मुस्कराना महमहाना अर्थात् सुगंधि देना खिलखिलाते रहना बैराग को राग सुनाना आत्मदीप होना भयानक रात में सुर सजाना सिन्धु से बिन्दु का मन मिलाना निर्लिप्त भाव से अपने सत्कर्मों से संसार में प्रकाश फैलाकर  चिर निद्रा को सहर्ष स्वीकारना कठिन काम है लेकिन यही मनुष्य का तात्विक बोध है

 भयानक भय या परम आनन्द की उपस्थिति दोनों अवस्थाएं अद्भुत हैं और एक सम पर जाकर मिलती हैं अध्यात्म का चिन्तन यही है

अध्यात्म शैथिल्य निराशा कर्महीनता नहीं है अध्यात्म कर्म का एक महान यज्ञ है

हम यज्ञमयी संस्कृति के उपासक हैं 

अतः याजक पूजक की भूमिका में रहते हुए हमें कर्मशील रहना चाहिए

राह के राही के रूप में राह का आनन्द लेना चाहिए 

सनातन धर्म में इसका बहुत विस्तार है भ्रम अद्भुत है भय जब चरम पर पहुंच जाता है और उसे नाम मात्र का भी आश्रय मिल जाता है तो ज्ञान के चक्षु खुलने लगते हैं

स्रष्टा अपनी रची सृष्टि को द्रष्टा रूप में देखते देखते जब संतृप्त हो जाता है तो विलयन प्रारम्भ हो जाता है

ये सब तात्विक विषय हैं

संसार और सार दोनों ही विषयों को समेटे हुए हौसला देती एक कविता जिसे आचार्य जी ने रचा है अद्भुत बन पड़ी है

इसकी कुछ पंक्तियां हैं


गीत गाते रहो गुनगुनाते रहो

सांस जब तक सदा मुस्कराते रहो

गीत गाते रहो 

गुदगुदाती जगाती प्रभा प्रात में

थपकियां दे सुलाती अमा रात में



इसकी शेष पंक्तियों के लिए सुनें यह संप्रेषण

10.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष एकादशी /द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 10 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *773 वां*

 तैत्तिरीय उपनिषद् के साथ

कौषितकीब्राह्मणोपनिषद् तथा मुद्गलोपनिषद् में भी सम्मिलित एक प्रार्थना है:


ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं बह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम । अवतु वक्तारम् ।


ॐ शान्तिः । शान्तिः । शान्तिः ।



इसमें एक शब्द आया है वायु

वायु प्राण को संचरित करती है इसके विकृत होने पर तरह तरह के उपद्रव होते हैं एक वैद्य कहते थे वायु अस्सी प्रकार से विकृत होती है इसलिए वायु को सम रखने के उपाय किए जाते हैं वायु को प्रत्यक्ष ब्रह्म माना गया है 


ऐसे अद्भुत हैं उपनिषद्

 जो ज्ञान के अद्भुत स्रोत हैं



मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर।

मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर?

मेरा स्वर नभ में घहर-घहर, सागर के जल में छहर-छहर।


हमारे सनातन धर्म में जो कुछ है इतना तात्विक है शक्तिप्रद है कि उसमें हम रम जाएं तो स्वाभाविक रूप से हमारी शक्तियां जाग्रत हो जाएंगी

यही अध्यात्म है इससे विमुखता ही हमें कष्ट देती है 

इसी के प्रति हमारे मन में अनास्था आये इसके अनेक प्रयास होते रहे

अब समय है हम सचेत जाग्रत रहें तो 


प्रस्तुत है  मनोजिघ्र ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष एकादशी /द्वादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 10  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *773 वां* सार -संक्षेप


 1:  दूसरे व्यक्तियों के मन के विचार भांपने वाला



दूसरों के हृदयों पर राज करने में सक्षम हम राष्ट्रभक्त कर्मशील योद्धाओं के जीवन को उन्नत बनाने के लिए आचार्य जी पुनः आज सदाचार वेला में उपस्थित हैं

परमात्मा द्वारा प्रदत्त एक उपहार अर्थात् सदाचार हमारी भारतीय संस्कृति के स्वरूप को परिलक्षित करता है आइये समय का सदुपयोग करते हुए  उनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर हम अपने कार्य और व्यवहार को समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी बनाने का प्रयास करें 

हम शरीर और मन शुद्ध कर भाव विश्वास भक्ति शक्ति संयम को अपने भीतर प्रवेश कराने का प्रयास करें 


दिनांक 1 अक्टूबर 1847 को लंदन में जन्मी एनी बेसेंट पर अपने माता-पिता के धार्मिक विचारों का अत्यन्त गहरा प्रभाव था।

सन् 1878 में उन्होंने पहली बार भारत राष्ट्र के बारे में अपने विचार रखे । उनके राष्ट्र भावना से ओतप्रोत विचारों ने भारतीयों के मन में उनके प्रति अत्यन्त गहरा स्नेह उत्पन्न कर दिया।

उन्हीं के भाषण का एक अंश है


“हिंदू धर्म भारत की आत्मा है। हिंदुत्व के बिना भारत नहीं हो सकता. हिंदुत्व के बिना भारत का कोई भविष्य नहीं है. हिंदू धर्म वह मिट्टी है जिसमें भारत की जड़ें जमी हुई हैं और वह अपने स्थान से उखड़े हुए पेड़ की तरह अनिवार्य रूप से सूख जाएगा। भारत में कई जातियाँ फल-फूल रही हैं, लेकिन उनमें से कोई भी उसके अतीत की सुदूर सुबह तक नहीं जाती है, और न ही वे एक राष्ट्र के रूप में उसके धीरज के लिए आवश्यक हैं। हो सकता है कि हर कोई आते ही ख़त्म हो जाए और फिर भी बना रहे।..... अतीत की भौगोलिक अभिव्यक्ति, नष्ट हो चुके गौरव की धुंधली स्मृति, उनका साहित्य, उनकी कला, उनके स्मारक सभी पर हिंदू धर्म लिखा हुआ है। और अगर हिंदू हिंदू धर्म को कायम नहीं रखेंगे, तो इसे कौन बचाएगा? *यदि भारत के अपने बच्चे ही उसके विश्वास पर कायम नहीं रहेंगे, तो इसकी रक्षा कौन करेगा?* हिन्दू ही भारत को बचा सकते हैं, और भारत और हिंदू धर्म एक हैं”।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अटल जी की कौन सी कविता का उल्लेख किया G-20 का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

9.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 9 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *772 वां*

 प्रभा प्रकाश दे रही निशा तमस् उगल रही, 

अपार पार जो गए कहीं कभी विकल नहीं, 

यही दशा दिशा निशा-प्रकाश का रहस्य है, 

सखे,  सदा समझ रखो,  ये सिर्फ नर के वस्य है।



प्रस्तुत है  मनोजव ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 9  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *772 वां* सार -संक्षेप


 1:  मन के समान वेगवान्


तमाम आपाधापी के बीच समय व्यतीत होता रहता है ऐसे बहुत से प्रसंग प्रपंच आते हैं जो हमें हताशा में डुबो देते हैं इसलिए हमें नित्य जीवित जाग्रत उत्साहित होने के लिए इन सदाचार संप्रेषणों का आश्रय लेना ही चाहिए हमें मनुष्यत्व की अनुभूति हो रामत्व का बोध हो  संसार के सत्य असत्य का बोध हो अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए यह भाव ला सकें कि मैं संसार नहीं सार हूं इसके लिए ज्ञानी चिन्तक विचारक कर्मशील योद्धा आचार्य जी नित्य हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में



हमारा उद्देश्य है

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः


राष्ट्रजागरण का महान् कार्य  जाग्रत अन्तःकरण वाले हम लोगों का है  समाज और राष्ट्र के लिए जीना आनन्ददायक है 

हम अद्भुत धर्मक्षेत्र में रहते हैं

 हमारे यहां जैसा ज्ञान, ज्ञान के विभेद, अध्यात्म की एकात्मता, संसार के सत्य, संसारेतर जीवन आदि पर गहन चिन्तन मनन विचारण हुआ है वैसा अन्यत्र नहीं हुआ है यह परमात्मा की अद्भुत व्यवस्था है  हम परमात्मा पर विश्वास करते हैं सृष्टि परमात्मा ने ही बनाई है सृष्टि का निर्माण अनायास ही नहीं हो गया है इस विश्वास के कारण ही हम सनातन चिन्तन वाले कहे जाते हैं

हम चिरन्तन हैं हम परमात्मा का अंश हैं हम उसका वरदान हैं हम स्वयं ही परमात्मा हैं


सनातन सत्य इस संसार का शाश्वत विचिंतन है, 

कला कविता कथा इतिहास दर्शन धर्म-ग्रंथन है, 

सनातन की महत्ता और सत्ता को न समझे जो, 

बेचारा बुद्धि से अतिक्षीण व्याकुल है अकिंचन है।


हमें व्याकुलों और अकिंचनों को उनका ठीक स्थान बताते रहना है इस रामत्व को हमें अनुभव करते रहना है


जो सनातन सत्य है वही सनातन धर्म है यह शुष्क चिन्तन नहीं है मूर्खों को यह समझ में नहीं आ सकता है

सनातन धर्म को नष्ट करने वाले दूषित चिन्तन को अपने अमृत के प्रभाव से हम शमित करें 

आचार्य जी ने अपनी रचित पुस्तक अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं से हमें संबल प्रदान करती एक कविता सुनाई


बीत गया दिन शाम हुई आराम करो

फिर से सूरज की किरणों का ध्यान करो


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रामास्वामी की चर्चा क्यों की अटल जी को  भीड़ क्यों पसंद थी भैया अमित गुप्त जी  का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

8.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 8 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *771 वां

 अध्ययन स्वाध्याय चिंतन मनन ध्यान 

भारतीय संस्कृति का दिव्यतम कोष है, 

अमर गिरा की दिव्यवाणी का प्रभाव पुंज 

विश्व-संस्कार का अखंड उद्घोष है, 

मानव का पौरुष परुष हो कि पुरुषार्थ 

इसके जवाब का सरल विश्वकोश है ,

भारत सदैव "भा" में रत रहते हुए भी 

दुष्टता -दलन हेतु मेघसंघोष है।



प्रस्तुत है  वनोकस् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 8  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *771 वां* सार -संक्षेप


 1:  =तपस्वी



अनुगच्छतु प्रवाहम्


समय कह रहा है कि सदाचार संप्रेषणों के इस अखंडित प्रवाह का हम लोग लाभ प्राप्त कर लें विकारों को दूर कर  सद्विचारों को ग्रहण कर अपने जीवन को उन्नत बना लें क्योंकि हमारा जन्म ही उस परम अद्भुत तपोभूमि में हुआ है जो विश्व -संस्कार का अखंड उद्घोष है जो पुरुष को पुरुषार्थ करने की प्रेरणा  है  जो निशा में विचरण कर रहे मनुष्यों का मार्गदर्शक है मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति कराने वाला   है 


(डा शान्तनु बिहारी)स्वामी अखंडानन्द जी, जिनका जन्म शुक्रवार 25 जुलाई 1911 को वाराणसी के महारय गाँव में हुआ था,के अनुसार भारत विश्व की राजधानी है



विश्वम्भर मिश्र,निमाई पण्डित, गौराङ्ग महाप्रभु, गौरहरि, गौरसुंदर, श्रीकृष्ण चैतन्य भारती आदि नामों से भी सुशोभित चैतन्य महाप्रभु जिनका जन्म फाल्गुनी पूर्णिमा तिथि  18 फ़रवरी 1486 को नवद्वीप (नादिया ज़िला), पश्चिम बंगाल में हुआ था के एक शिष्य सनातन गोस्वामी (पूर्व नाम अमरदेव )जो पितामह की मृत्यु पर अठारह वर्ष की अवस्था में उन्हीं के पद पर नियत किए गए जिन्होंने उत्कृष्ट योग्यता से कार्य सँभाल लिया जो हुसैन शाह के समय में  प्रधान मंत्री हो गए जो दरबारे खास की उपाधि से भी नवाजे गए 

का आचार्य जी ने एक प्रसंग बताया


सनातन गोस्वामी ने बहुत सारे विग्रहों को खोजकर उनकी सेवा का प्रबंधन किया,बहुत से लुप्त तीर्थों का उद्धार किया और अनेक ग्रंथ लिख डाले

बृहत् भागवतामृत,वैष्णवतोषिणी, श्रीकृष्णलीलास्तव आदि कुछ प्रमुख ग्रंथ हैं

ऐसा अद्भुत देश है भारत जहां ऐसे अनेक महापुरुष हुए हैं

 उत्थान पतन संसार का स्वभाव है भारत को भी खंडित करने के सनातन धर्म को नष्ट करने के अनेक प्रयास हुए हैं और आज भी चल रहे हैं हमें बांटने का कुत्सित प्रयास कई बार हुआ है

फिर भी सनातन धर्म अक्षुण्ण है

हे पार्थ प्रण पूरा करो अभी दिन शेष है कहने वाले भगवान् कृष्ण और निसिचर हीन करउँ महि कहने वाले भगवान् राम का देश है यह

तो हम निराश क्यों रहें

ऐसे जीवन दर्शन वाले देश में जन्मे हम लोगों में निराशा भय भ्रम का क्या काम

भोगवादी निराश होते हैं कर्मयोद्धा निराश नहीं रह सकता

सनातन को संगठित करने की आवश्यकता है हम इसका ध्यान रखें

शौर्य प्रमंडित अध्यात्म अनिवार्य है 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया त्रिलोचन जी भैया अनुराग त्रिवेदी का नाम क्यों लिया अर्जुन जयद्रथ का क्या प्रसंग है रामकृष्ण मिशन की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

7.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 7 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *770 वां*

 हवा का रुख समय पर भांप लेते जो ,

प्रभंजन से सहज टकरा सके हैं वो। 

समय पर जो न जागे नींद को तजकर ,

मिला उनको नहीं कुछ राम को भजकर  ।

समस्याएं सदा संसार की पर्याय होती हैं ,

किसी को चुभन कुछ को दाय होती हैं ।

अगर है जन्म तो जीवन मरण भी है ,

हुआ यदि अवतरण तो उद्धरण भी है ।

रहेगा ध्यान यदि अस्तित्व का अपने ,

समस्या लगेंगी ज्यों रात के सपने ।



प्रस्तुत है  लोकज्ञ ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 7  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *770 वां* सार -संक्षेप


 1:  =संसार को जानने वाला



ज्ञान के असीमित विलक्षण स्रोत रूपी ये मानस तीर्थ रूपी सदाचार संप्रेषण हमें उपलब्ध हैं जो हमें सत्य क्षमा सहजता दया का पाठ पढ़ाते हैं यह ईश्वर की कृपा है   

दम तोड़ती मानव जाति को अनुप्राणित करने वाली भारतीय संस्कृति के वंशज हम लोगों को  संसार को जानते हुए समस्त आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान यहां मिलेगा इसमें कोई संशय नहीं 

आइये आज के कथा -वाचन रूपी वाचिक शिक्षण का लाभ उठाने के लिए  प्रवेश कर जाएं इस सदाचार वेला में


जब हम इन संप्रेषणो को सुनते हैं तो लगता है हम नित्य तीर्थ कर रहे हैं  क्योंकि सांसारिक प्रपंचों के कारण डूबे हुए हम लोगों को किनारा मिल जाता है सत्य,क्षमा, इन्द्रियों पर नियन्त्रण, प्राणियों पर दया,सरलता, दान, मन का संयम, संतोष, धैर्य, उचित खानपान 

सब तीर्थ हैं ब्रह्मचर्य परम तीर्थ है आचार्य जी ने मानस तीर्थ को विस्तार से बताया

विलायती लोगों


सन इव खल पर बंधन करई। खाल कढ़ाई बिपति सहि मरई॥

खल बिनु स्वारथ पर अपकारी। अहि मूषक इव सुनु उरगारी॥9॥



ने हम लोगों को वश में करने के लिए ही हमें मानस तीर्थ से दूर किया

हमारी शिक्षा को दूषित किया

हमें आवश्यकता है मानस तीर्थ की हम इसे त्यागे नहीं 

हम लोग ऐसे देश में जन्मे हैं

जिसने संपूर्ण विश्व को  ज्ञान की राह दिखाई है



एतद् देश प्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः।

स्वं स्वं चरित्रां शिक्षरेन् पृथिव्यां सर्वमानवाः।।


सम्पूर्ण विश्व के किसी भी भाग से ज्ञान की चाह रखने वाले मनुष्य ज्ञान की खोज में भारत आएंगे और यहां के सुसंस्कृत साहित्य एवं संस्कृति से नैतिकता और चरित्र की शिक्षा ग्रहण करेंगे



हमारे लिए मोह का त्याग आवश्यक है 


मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥

काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥15॥

हम अहंकार कपट दम्भ आदि से दूर रहें



अहंकार अति दुखद डमरुआ। दंभ कपट मद मान नेहरुआ॥

तृस्ना उदरबृद्धि अति भारी। त्रिबिधि ईषना तरुन तिजारी॥18॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संपूर्ण सिंह जी भैया सुरेश गुप्त जी भैया पंकज जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें 



जो पूरी वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानता है परिवार भाव हमें आनन्दित करता है 

हम जहां जाते हैं वहीं हमें परिवार मिल जाता है लेकिन हमारा कुटुम्ब पवित्र रहे हम इसका प्रयास करते हैं और करते भी रहना चाहिए

6.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 6 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *769 वां*

 हे ! आदिस्वरा कल्याणी संस्कृत नमो नमो,

हे! देवों की शुभ वाणी संस्कृत नमो नमो, 

हे ! आदिकाव्य की भाषा संस्कृत नमो नमो, 

हे ! संस्कृति की परिभाषा संस्कृत नमो नमो, 

हे ! तत्वशक्ति का अर्पण संस्कृत नमो नमो, 

मानवमूल्यों का दर्पण संस्कृत नमो नमो ,

हे! वैदिक ऋचा -मंत्र -उच्चारण नमो नमो, 

हे! सृष्टि सर्जना का शिव कारण नमो नमो।


प्रस्तुत है  परीणामदर्शिन् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 6  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *769 वां* सार -संक्षेप


 1:  =दूरदर्शी



यज्ञमयी संस्कृति के उपासक हम राष्ट्रभक्त कर्मशील योद्धाओं के पथप्रदर्शन के लिए माङ्गलिक आचार्य जी पुनः सदाचार वेला में उपस्थित हैं आइये समय का सदुपयोग करते हुए  व्यक्तिगत स्वार्थ को किनारे करते हुए परमार्थ का भाव रखते हुए उनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर हम अपने कार्य और व्यवहार को समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी बनाने का प्रयास करें जिससे समाज और राष्ट्र का तानाबाना उदात्त बन सके

हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय निदिध्यासन प्राणायाम लेखन में रत हों हम अपनी भीरुता और पराश्रयता को समाप्त करने का प्रयास करें अपने परिवेश को संस्कारित करने का हम लोग लगातार प्रयास करें 




मुनित्रय पाणिनि, कात्यायन और पतंजलि अन्त: प्रेरणा प्राप्त मुनि माने जाते हैं ॐ के अनुनाद से प्रारम्भ हुई भाषा को व्यवस्थित स्वरूप देने में पाणिनि का अद्भुत योगदान है। उपवर्ष गुरू के शिष्य पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े  वैयाकरण हुए हैं। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जो' तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्रण भी करता है। इसमें भौगोलिक, सामाजिक, ऐतिहासिक,आर्थिक, शैक्षिक और दार्शनिक प्रसंगों की भरमार है आठ अध्यायों 3995 सूत्रों वाली अष्टाध्यायी का अन्य भाषाओं पर भी बहुत प्रभाव पड़ा है । वैदिक भाषा को गेय,विश्वस्त, बोधगम्य, सुन्दर बनाने में पणिन और दाक्षी पुत्र शालातुरीय अर्थात् पाणिनि अग्रणी हैं अष्टाध्यायी विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत  के अध्ययन हेतु आधार ग्रंथ है और इसने संस्कृत भाषा को स्थायित्व प्रदान किया और तब यह भाषा अपरिवर्तनशील बन गई  हमारी संस्कृति के ऋषि पाणिनि को माङ्गलिक आचार्य कहा गया है उनके हृदय में मंगल करने वाले कर्म करने की इच्छा थी


आचार्य जी ने काशिकावृत्ति की ओर संकेत किया काशिकावृत्ति प्राचीन व्याकरण शाखा का ग्रन्थ है। इसमें पाणिनिकृत अष्टाध्यायी के सूत्रों की वृत्ति (संस्कृत: अर्थ) लिखी गयी है।


आचार्य जी ने बताया पूर्व राष्ट्रपति डा राधाकृष्णन का दर्शन पाश्चात्य प्रभावित रहा है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी आज कहां से उद्बोधन दे रहे हैं भैया पंकज का नाम क्यों आया आदि जानने के लिए सुनें

5.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 5 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *768 वां*

 ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः।


अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते।।12.6।।



प्रस्तुत है  परिणामदर्शिन् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 5  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *768 वां* सार -संक्षेप


 1:  =दूरदर्शी


संसार अद्भुत है इसमें जगह जगह तीर्थ हैं उनमें सबसे अद्भुत है भारत तीर्थ जहां हमने जन्म लिया है अनेक पवित्र नदियों का सान्निध्य हमें प्राप्त है गो गंगा गायत्री का अद्भुत देश, विश्व को राह दिखाने वाला देश है यह

यहां स्वयं भगवान अवतरित होते हैं 

हमारा सनातन धर्म ही वास्तविक धर्म है सर्वोत्तम धर्म है यज्ञमयी संस्कृति के हम उपासक हैं हम भोगमयी प्रवृत्ति के विरोधी हैं ब्रह्म को ही हम सब समर्पित करना चाहते हैं हमारा साहित्य दर्शन विज्ञान अद्वितीय है अब हम सूर्य की उपासना के लिए उसके पास तक जा रहे हैं उनसे प्रसादी प्राप्त कर संपूर्ण विश्व को वितरित करेंगे हमारा परमार्थ भाव ही है वसुधा ही हमारा कुटुम्ब है हमें भ्रमित करने के अनेक प्रयास हुए हैं और आज भी चल रहे हैं कोई सनातन धर्म को समाप्त करने की बात करता है  कोई कुछ

अनेक राक्षसी प्रयास चल रहे हैं देवासुर संग्राम संसार का सत्य है इस सत्य को समझने के लिए सदाचार का आश्रय लेना अनिवार्य है यह हनुमान जी का वरदान है हमारे मार्गदर्शन के लिए इससे उचित और क्या हो सकता है इसी लिए आइये प्रवेश करते हैं इस सदाचार वेला में


जब हम अपने परिवेश के कारण उद्वेलनों के भंवर में फंस जाते हैं तब हम असीमित शक्ति वाली भक्ति का आश्रय लेते हैं जब हम उद्वेलनों  उलझनों का अनुभव नहीं करते तो शरीर मन बुद्धि वाली सीमित शक्ति का प्रयोग कर संघर्ष करते हैं

इसी पर आधारित गज ग्राह की एक अद्भुत कथा है



गज अर्थात् गजेन्द्र पूर्व जन्म में द्रविड़ देश का पांड्यवंशी राजा  इंद्रद्युम्न था । वह भगवान्‌ का एक श्रेष्ठ उपासक  था. एक बार वह राजपाठ त्यागकर मलय पर्वत पर रहने लगा 

एक बार परम यशस्वी अगस्त्य मुनि अपनी शिष्यमण्डली के साथ वहाँ जा पहुँचे। उन्होंने देखा कि वह प्रजापालन का धर्म और गृहस्थ के लिए उचित आतिथ्य सत्कार भूल करके  एकान्त में  उपासना कर रहा है, अतः वे राजा  पर क्रुद्ध हो गये उन्होंने राजा को शाप दिया कि इसे घोर अज्ञानमयी हाथी की योनि प्राप्त हो


ग्राह पूर्व जन्म में हू हू नाम का एक श्रेष्ठ गन्धर्व था। एक बार जब देवल ऋषि सरोवर में खड़े होकर तपस्या कर रहे थे तो उसे  शरारत सूझी। उसने ग्राह रूप धारण कर उन ऋषि के पैर पकड़ लिए। क्रोधित ऋषि ने उसे शाप दिया कि तुम ग्राह की तरह अब रहो।



इसी गजेन्द्र को ग्राह ने एक बार  पकड़ लिया

वह भगवान् को याद करने लगा 

जब भगवान्‌ ने देखा कि गजेन्द्र अत्यन्त पीड़ित हो रहा है, तब वे गरुड़ को  छोड़कर कूद पड़े और  गजेन्द्र के साथ ही ग्राह को सरोवर   से बाहर निकाल लाये। फिर  भगवान्‌  ने सुदर्शन चक्र से ग्राह का मुँह फाड़ डाला और गज़ेद्र को छुड़ा लिया ( गजेन्द्र मोक्ष )


मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।


श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।।12.2।।


मुझमें मन को एकाग्र कर नित्ययुक्त हुए जो भक्तजन परम श्रद्धा के साथ मेरी उपासना करते हैं, वे श्रेष्ठ हैं


हमें सहज ध्यान करना चाहिए हम कौन हैं हमें अपने मनुष्यत्व की पहचान होनी चाहिए कर्म करने का अधिकार भगवान् ने हमें दिया है हमें  आभार व्यक्त करना चाहिए


यह मानव का शरीर स्रष्टा की दिव्य धरोहर है, 

शिव साधन कर्मों का धर्मावृत रूप मनोहर है, 

अन्याय न हो इसके प्रति जिम्मेदारी अपनी है, 

यह दिव्य रूप इसमें अनुपम आनन्द सरोवर है।




इसके अतिरिक्त किसने कहा चन्द्रमा पर बहुत सोना मिला है जानने के लिए सुनें

4.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 4 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *767 वां*

 हम देश के सेवक सदा रहते सतर्क हैं,

 बेशक प्रलापवादियों के अपने तर्क हैं। 

हम जानकर अनजान बनों को न छेड़ते,

लेकिन बचे सभी को कोशिशों से जोड़ते।



प्रस्तुत है  प्रवाहक -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 4  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *767 वां* सार -संक्षेप


 1:  प्रवाहकः =राक्षस



आचार्य जी प्रतिदिन  इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से हमें तत्त्व की कुछ बातें बताते हैं आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं ताकि हमें आध्यात्मिक भान हो सके

हम सभी शिक्षक हैं यह भान हो सके हम  नई पीढ़ी को भ्रमित होने से बचाने वाले मार्गदर्शक हैं यह सुस्पष्ट रूप से समझ सकें

आचार्य जी चाहते हैं कि हम शक्ति भक्ति विश्वास अर्जित कर समाज और राष्ट्र के लिए जाग्रत रहें अपने साध्य को  पवित्र साधनों से प्राप्त कर पाएं राक्षसों के तर्कों को नजर अंदाज कर उनसे सतर्क सचेत रहते हुए संगठित रहने के लिए बहुमुखी उपाय खोजते रहें 

हमारा अतुल साध्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष 

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम्



दिन भर ऊर्जस्वित रहने का आनन्दित रहने का यह सर्वोत्तम उपाय है



लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि



इंद्रीं द्वार झरोखा नाना। तहँ तहँ सुर बैठे करि थाना।।

आवत देखहिं बिषय बयारी। ते हठि देही कपाट उघारी।।




से हम भ्रमित न हो जाएं और हमारा ज्ञान रूपी दीपक बुझ जाए आत्मानुभूति का प्रकाश





सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥

आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा॥1॥


'सोऽहमस्मि' ( अहं सः अस्मि =वह ब्रह्म मैं हूँ) यह जो अखंड  वृत्ति है, वही उस ज्ञान के दीपक की अत्यन्त प्रचंड दीपशिखा  है। इस तरह जब आत्मानुभूति   का सुंदर प्रकाश प्रसरित होता है, तब संसार के मूल भेद रूपी भ्रम का सर्वथा नाश हो जाता है


मिट जाए

इसके लिए प्राणायाम ध्यान अध्ययन स्वाध्याय लेखन उचित खानपान पर हम लोग ध्यान दें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल संपन्न हुए कार्यक्रम के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें


3.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 3 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *766 वां*

 अपनेपन का विस्तार जगत का जीवन है, 

हे, गतिज शून्य संसार तेरा अभिनंदन है।


प्रस्तुत है  सत्यसङ्गर ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 3  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *766 वां* सार -संक्षेप


 1:  वादे का पक्का



हम किसी के सद्गुणों को ग्रहण करने के लिए प्रयासरत हों और उनके दुर्गुणों से दूर रहें


राष्ट्र -धर्म ही विश्व- धर्म है  और यही परमार्थ -धर्म है

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः वाला सूत्र सदैव हम जाग्रत रखें

वाणी पर संयम रखें


फलाकांक्षा संसार की एक मौलिक समस्या है लेकिन हमारे धर्मक्षेत्र में समझाया जाता है

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


मात्र कर्म करने  में ही तुम्हारा अधिकार है इसे ध्यान रखते हुए फलाकांक्षा की वृत्ति नहीं रखो । तुम कर्म के फल के हेतु वाले मत हो लेकिन अकर्म में भी तुम्हारी आसक्ति न हो।।


फल की चिन्ता न करें लेकिन फल का निरीक्षण अवश्य करें


हमारे भीतर भगवान विद्यमान है यह अनुभूति ही विद्या है जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है  इस विद्या को प्राप्त करना कठिन है

हम अविद्या को विद्या समझ लेते हैं


ब्रह्मेतर ज्ञान को  अविद्या बतलाया गया है।विज्ञान भी अविद्या  है। ऐसा नहीं है कि भारतीय दर्शन में हर स्थान पर अविद्या को हीन ही कहा गया है हमने उसे विद्या का पूरक भी माना है

हमें सांसारिक कार्यों में भी सफलता चाहिए


*चन्द्रमा पर मानव ने पहली बार कदम रखे अंतरिक्ष में मनुष्य ने पहली बार चहलकदमी की*

इस तरह की उपलब्धियों से हमें लगता है कि हमने यह काम पहली बार किया है लेकिन गहनता से हम अपने ग्रंथों का अध्ययन करें तो देखते हैं कि यह तो पहले ही हो चुका है आचार्य जी ने इसके लिए मानस में हनुमान जी का चूडामणि और मुद्रिका वाला प्रसंग बताया



यह ऋषित्व जो यह विश्वास दिलाता है कि हर कल्प में राम होते हैं हर कल्प में रामकथा होती है अद्भुत है


यह सगुणोपासना का आधार है



हमें लगता है यह पहली बार हो रहा है

जब कि ऐसा नहीं है हमें निश्चिन्त रहना चाहिए

यह सब होता ही रहता है इसलिए व्याकुलता क्यों


कल उन्नाव विद्यालय में  कार्यक्रम सफल रहा इस कार्यक्रम में भैया विनय अजमानी जी और भैया सुनील जैन जी पहुंचे

आज कवि सम्मेलन है

जिसमें निम्नांकित कवि अत्यन्त उत्साह के साथ भाग ले रहे हैं


१. श्री अंसार कम्बरी जी कानपुर २. डॉ. सुरेश अवस्थी जी कानपुर ३. डॉ. कमल मुसद्दी जी कानपुर ४. श्रीमती व्याख्या मिश्र जी लखनऊ ५. श्री अतुल बाजपेयी जी लखनऊ ६. श्री प्रख्यात मिश्र जी लखनऊ ७. श्री कुमार दिनेश जी उन्नाव ८. डॉ. पवन मिश्र जी कानपुर

अपनेपन के विस्तार हेतु आप सब लोग इस कार्यक्रम के लिए आमन्त्रित हैं

इसके अतिरिक्त 

भैया मोहन कृष्ण जी भैया दीपक शर्मा जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

2.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 2 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *765 वां*

 प्रस्तुत है  फेरव -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 2  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *765 वां* सार -संक्षेप


 1:  फेरवः =राक्षस



अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते ।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥


हमारा राष्ट्र अद्भुत है


यह देश मेरा धरा मेरी गगन मेरा।

उसके लिये बलिदान हो प्रत्येक कण मेरा॥


हम राष्ट्रभक्त कर्मशील योद्धाओं के पथ को प्रशस्त बनाने के लिए आचार्य जी पुनः आज सदाचार वेला में उपस्थित हैं आइये समय का सदुपयोग करते हुए  उनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर हम अपने कार्य और व्यवहार को समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी बनाने का प्रयास करें हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन सद्संगति निदिध्यासन में रत हों

सात्विक कर्म करने की इच्छा रखें अपने भाव विचार क्रिया का प्रकटीकरण

स्वदेशानुरागी होकर करें

विचारों की पूरी संपदा को राष्ट्र के लिए समर्पित करें

 नई पीढ़ी को भी उत्साह से भर दें उसे भ्रमित होने से बचाएं उसे संस्कृत और संस्कृति का महत्त्व समझाएं 

सात्विक कर्म में  अनुरक्ति अद्भुत अवस्था है  सात्विक कर्म करना कठिन तो है लेकिन हम सब लोग यह कर्म कर सकते हैं  और ऐसा कर्म करने से जो आनन्द हमें मिलेगा उसका वर्णन नहीं किया जा सकता


गीता में



नियतं सङ्गरहितमरागद्वेषतः कृतम्।


अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत्सात्त्विकमुच्यते।।18.23।।


कर्म के तीन भेदों में से सात्विक कर्म वह है जो शास्त्रविधि से नियत, आसक्तिरहित, बिना राग द्वेष के हो और जिसमें फल की इच्छा न की जाए


यत्तु कामेप्सुना कर्म साहङ्कारेण वा पुनः।


क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम्।।18.24।।


परन्तु जो कर्म भोगोंको चाहनेवाले मनुष्यके द्वारा अहंकार अथवा परिश्रमपूर्वक किया जाता है, वह राजस कहा गया है।


 आचार्य जी ने बताया कि 

सरस्वती विद्या मंदिर उन्नाव विद्यालय के ३६वें वार्षिक समारोह में आज रूप-सज्जा, रंगोली प्रतियोगिता, कला प्रतियोगिता, मेधावी अलंकरण, सांस्कृतिक कार्यक्रम है जिसमें शैक्षिक राजनीति में शुचिता के प्रतीक मुख्य अतिथि :मा. श्री राज बहादुर सिंह चन्देल जी सदस्य विधान परिषद आ रहे हैं और इस कार्यक्रम के 

मुख्य वक्ता हैं भैया 

 आशू शुक्ल जी 1982 बैच

आप सब लोग इस कार्यक्रम के लिए आमन्त्रित हैं

इसके अतिरिक्त मा गोविन्दाचार्य जी से संबन्धित क्या प्रसंग है बलिया वाले पंडित जी कौन हैं इस संप्रेषण की तुलना नर्मदा मैय्या से क्यों हुई आदि जानने के लिए सुनें

1.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 1 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *764 वां*

 हे ! आदिस्वरा कल्याणी संस्कृत नमो नमो,

हे! देवों की शुभ वाणी संस्कृत नमो नमो, 

हे ! आदिकाव्य की भाषा संस्कृत नमो नमो, 

हे ! संस्कृति की परिभाषा संस्कृत नमो नमो, 

हे ! तत्वशक्ति का अर्पण संस्कृत नमो नमो, 

मानवमूल्यों का दर्पण संस्कृत नमो नमो ,

हे! वैदिक ऋचा -मंत्र -उच्चारण नमो नमो, 

हे! सृष्टि सर्जना का शिव कारण नमो नमो।



कल विश्व संस्कृत दिवस था

आइये हम कृतसंकल्प हों कि विश्व की प्राचीनतम भाषा सभी भाषाओं की जननि देवों की शुभवाणी अपनी भारतीय संस्कृति की परिभाषा मानवमूल्यों का दर्पण मनुष्यत्व को जानने अपनाने की कुंजी संस्कृत भाषा को अवश्य सीखेंगे और इसका प्रयास आज से ही प्रारम्भ कर देंगे 


प्रस्तुत है  शुक्रशिष्य -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 1  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *764 वां* सार -संक्षेप


 1:  शुक्रशिष्यः =राक्षस



संसार अत्यन्त रहस्यात्मक और अद्भुत है यह अनौपचारिक रूप से प्रारम्भ होकर औपचारिक रूप ले लेता है स्रष्टा के मन में इच्छा अर्थात् विकार उत्पन्न हुआ वह अनौपचारिक था और फिर उसके मुख से ॐ का स्वर उद्भूत हुआ


यह उसके मुख से निकलने वाला पहला शब्द था और फिर सृष्टि की रचना हो गई


 अनौपचारिकता से औपचारिकता की यात्रा प्रारम्भ हो गई

परमात्मा अनौपचारिक से औपचारिक हो जाता है और स्वयं अवतार लेता है वह संसार की सांसारिकता से घिर जाता है और फिर मुक्त हो जाता है

उस अवतारी स्वरूप को जो सम्बन्ध मान लेते हैं वे दुःखी होते हैं 

हम अनौपचारिकता से औपचारिकता की यात्रा करते हुए  फिर से अनौपचारिक बनने का प्रयास करते हैं लेकिन सांसारिकता के आवरण में इतना लिपट जाते हैं कि अनौपचारिक बन नहीं पाते  बहुत से प्रपंचों से हमारा सामना होता है हम भूल जाते हैं कि हम कौन हैं

हम संसार के भंवरजाल में फंस चुके होते हैं 

बस यहीं पर अध्यात्म का महत्त्व समझ में आता है नहीं आता है तो आना चाहिए


होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥

अस कहि लगे जपन हरिनामा। गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥4॥


अध्यात्म का वह स्वरूप अपनाएं जो शौर्य को महिमामंडित करे शक्ति का गायन करे 

भारतवर्ष की जीवन पद्धति और विचार अत्यन्त अद्भुत है

हम ध्यान धारणा का अभ्यास करें शवासन महत्त्वपूर्ण है अध्ययन स्वाध्याय लेखन चिन्तन सद्संगति का अभ्यास लाभकारी है

उचित खानपान आवश्यक है 

कुछ समय अपने लिए अवश्य निकालें कुछ अधिक समय अपनों के लिए और उससे भी अधिक समय परमात्मा के लिए निकालें

अपने लिए निकले समय में हमारे परमात्मा से संयुत होने पर अद्भुत परिणाम सामने आते हैं यही आत्मविस्तार है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी कल और परसों उन्नाव विद्यालय में होने वाले कार्यक्रमों के लिए हम सबको आमन्त्रित कर रहे हैं

और भैया आशुतोष द्विवेदी जी भैया पंकज श्रीवास्तव जी का उल्लेख क्यों हुआ आदि जानने के लिए सुनें