30.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  30 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०६७ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण अत्यन्त  लाभकारी, युग को जाग्रत सचेत करने की प्रेरणा देने वाले,मन और मस्तिष्क को पोषित करने वाले हैं हमें कर्तव्यशील विचारशील संयमशील बनने का उत्साह देने वाले हैं अपनी श्रवणेन्द्रिय को सात्विक बनाकर हमें इन्हें अवश्य सुनना चाहिए इन्हें सुनने से हमारे भीतर शक्ति आती है वेद भी सुने ही गए इसी कारण वेद श्रुति कहलाए

सुनने के बाद अत्यन्त ऊर्जामय भाव उत्पन्न होता है 

कर्म के माध्यम से ज्ञान की उपासना करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए संसार सागर है इसे समर भी कह सकते हैं सागर हो या समर हो दोनों पर विजय प्राप्त करना मनुष्य के लिए एक चुनौतीपूर्ण संकल्प है हमें परा और अपरा दोनों विद्याएं जाननी चाहिए  हमारा शरीर संसार है परिवार भी संसार है जो जितना भावुक होता है उसका संसार उतना ही विस्तृत हो जाता है उस विस्तृत संसार को वह अपने ढंग से चलाने का प्रयत्न करता है लेकिन यदि उसकी बुद्धि जाग्रत नहीं है तो वह उलझ जाता है

संतुलन बिगड़ जाता है 

शरीर हो परिवार हो संसार हो सारे संतुलन से चलते हैं 

आचार्य जी ने युग -चारण नामक अपनी रची एक कविता सुनाई 

उसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं 


युग-चारण हूँ क्रान्तिकथा के लिये निमंत्रण देता हूँ

 और भोग की चिता जलाने का आमंत्रण देता हूँ। 


जहाँ दूध के लिये बिलखता बचपन हुचकी भरता हो, 

और बुढ़ापा बिना मौत के घुट-घुट भूखों मरता हो 

भरी जवानी बदहवास हो दुविधा के चौराहे पर

 शामत बन बैठी हो सत्ता हर गरीब हलवाह़े पर

 उस दुनिया को आग लगाने का आमंत्रण देता हूँ | ।१। | 

युग-चारण हूँ .............


जहाँ जनमते ही छाती पर बोझ कर्ज का भारी हो 

खुद॒दारी दर-बदर दीन, पर मस्त मगन मक्‍कारी हो 

जहाँ सुहाग दफन होता हो चाँदी के शमशानों में

 मर्यादा सिसकी भरती हो चकला बने मकानों में

 उस दुनिया के लिये लपट का खुला निमंत्रण देता हूँ । ।२। । 

 युग-चारण हूँ........



जहाँ सत्य गुमनाम नामवर झूठे चोर लफंगे हों,

 धर्माधीश चलाते चोरी चुपके काले धंधे हों

 न्याय दलालों के हाथों सत्ता गुण्डों की बंधक हो

 जनता के पीछे खाई हो

 आगे गहरा खन्‍दक हो

 उस दुनिया को स्वाहा करने का अभिमंत्रण देता हूँ। ।३।

  युग-चारण हूँ ...........

......

इसी कविता में आगे आचार्य जी ने कहा 


... उलझ- पुलझ मेधा बेसुध हो दौलतमंद झमेले में...


ऐसी गंद -गलीज फूंकने का आमन्त्रण देता हूं....


हमारे पास जितना प्रकाश है उस प्रकाश की उपासना करें हम बेचारगी की अनुभूति कतई न करें इसके लिए शारीरिक व्यायाम के साथ प्राणायाम भी करें 

बाहर की वायु भी शुद्ध रहे हम स्वयं भी आनन्दित रहें और अन्य को भी आनन्दित करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मुकेश जी भैया अनिल महाजन जी भैया आकाश जी भैया सौरभ जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

29.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 29 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०६६ वां सार -संक्षेप


प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  29 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०६६ वां सार -संक्षेप


हनुमान जी की महती कृपा है कि हमें ये सदाचार संप्रेषण प्राप्त हो रहे हैं ज्ञान में अग्रणी होने के बाद भी हनुमान जी अद्भुत भक्त हैं  भगवान् राम हनुमान जी को रोक देते हैं कि तुम असहायों का आधार बने रहो तुम कहीं नहीं जाओ 

हनुमान जी सदैव हमारे साथ हैं उनके भक्त होने के बाद भी हम भ्रमित रहें अज्ञानी रहें तो यह दुःखद है 

अज्ञानी लोगों की इस संसार में भरमार है यही संसार का स्वरूप और स्वभाव है परमात्मा इस संसार की रचना अपनी लीला करने के लिए करता है उसका महामन करता है मनोरञ्जन करने के लिए 

हमारे पास लघु मन है महामनस्वी परमात्मा हम जीवात्माओं की सृष्टि करता है

हम उसकी बनाई सृष्टि में विविध कार्यों में लिप्त रहते हैं कोई अपने को परोपकारी समझता है कोई अपने को उद्यमी आदि समझता है 

चिन्तनशील गीता के दूसरे अध्याय को गीता का सार बताते हैं 

इस सार को समझने के लिए हमें उसी प्रकार की बुद्धि विकसित करनी पड़ती है 

गीता में  मोहग्रसित अर्जुन कहते हैं 


अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्।


यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः।।1.45।।

 

यह बड़े आश्चर्य और खेद का विषय है कि हम लोग बड़ा भारी पाप करना ठान चुके हैं यह कि राज्य एवं सुख के लोभ से अपने स्वजनों को ही मारने के लिए सज्ज हैं

भगवान् कृष्ण समझाते रहते हैं वे कहते हैं 


विषयों का चिन्तन करने वाले व्यक्ति की उन विषयों में आसक्ति पैदा हो जाती है। आसक्ति से कामना, कामना से क्रोध पैदा होता है। क्रोध के कारण सम्मोहन  हो जाता है। सम्मोहन से स्मृति भ्रष्ट हो जाती है।जब कि स्मृति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है जिसके भ्रष्ट होने पर बुद्धि, जिसका अन्तिम तत्त्व विवेक है,का सर्वनाश हो जाता है और व्यक्ति का पतन हो जाता है।

 (गीता २/६२)

जिस प्रकार अर्जुन भ्रमित थे उसी प्रकार हम भी भ्रमित रहते हैं 

हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा 


ये अस्ताचल वाले देशों की जीवनशैली हमें व्यामोहित कर देती है 


जब परमात्मा ज्ञान देता है तो ज्ञानी पुरुष परमात्मवत हो जाता है 


सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥

तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन॥2॥


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम विकारों को दूर करें शरीर शुद्ध करें ढोंगी न बनें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपने गांव सरौंहां के निवासी भैया रौनक की चर्चा क्यों की भैया सौरभ राय भैया नीरज कुमार भैया अनिल महाजन का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

28.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 28 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०६५ वां सार -संक्षेप

 सदा संयम नियम के नाम पर वैराग्य मत पालो, 

कभी सुख शान्ति के बदले नहीं संघर्ष को टालो, 

समस्या जगत भर में हर कदम पर ही समायी है ,

उसे दो-चार होकर ही हटाओ शक्ति भर घालो।


प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  28 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०६५ वां सार -संक्षेप


हमारे देश में हमारे ऋषियों ने जितना लेखन चिन्तन मनन किया है ऐसा विश्व में अन्यत्र कोई उदाहरण नहीं है लेकिन हमारा चिन्तन लेखन जब कर्म से दूर हो गया तो भयावह परिणाम सामने आया हम निराश हो गए और स्वार्थी भी हो गए लेकिन अद्भुत है हमारा देश कि जब भी लगा कि 

हताशा ही हताशा व्याप्त है आग बुझ गई है तो आग फिर प्रज्वलित हो जाती है हम लोग उसी आग के प्रज्वलन की प्रक्रिया हैं हमें यह अनुभव करना चाहिए

 जहां कहीं भी प्रकाश मद्धिम होता है हम उसे अपने प्रकाश से प्रकाशित कर देते हैं 

हमारा लेखन चिन्तन कर्म में प्रवृत्त होना चाहिए हमें विचारपूर्वक बोलना चाहिए वाचिक व्यवहार भी अत्यन्त सशक्त व्यवहार होता है 

मनुष्य का जीवन अद्भुत जीवन है धन्य भाग्य से प्राप्त होता है इसे प्राप्त कर लेने के बाद यदि संसार और संसारेतर गतिविधियों की हमें समझ आ जाती है तो यह अत्यन्त आनन्ददायक है

समस्याओं का समाधान हम स्वयं खोजें 

यदि हमारी दृष्टि में भ्रम नहीं है तो हमें संसार गड्डमड्ड नहीं दिखता है यह तो एक व्यवस्थित व्यवस्था है 

हमें जवानी भी नहीं भूलनी चाहिए जवानी का अर्थ है पराक्रम की अनुभूति, प्रणव का घोष

 यह जीवन की ज्योति है और इसमें उम्र आड़े नहीं आनी चाहिए जवानी का अनुभव न होना अत्यन्त पीड़ादायक है


जवानी के अनोखे स्वप्न जब संकल्प बन जाते  

फड़कते हैं सबल भुजदंड उन्नत भाल तन जाते

हमें जवानी की अनुभूति होनी ही चाहिए आज का युग -धर्म शक्ति उपासना है 

हमें विलासपूर्ण जीवन से दूर रहना चाहिए हमें संघर्षों से विमुखता नहीं रखनी चाहिए हमें सधी हुई चालों से सचेत रहना चाहिए देशद्रोहियों की योजनाओं से भी सचेत रहना चाहिए  हम जागरूक शिक्षक की भूमिका निभाएं हमें जनमत का जामा उतारना होगा

इसके अतिरिक्त भैया पुनीत श्रीवास्तव जी भैया वीरेन्द्र जी भैया गोपाल जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया 

स्वार्थ क्यों आवश्यक है 

जानने के लिए सुनें

27.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०६४ वां सार -संक्षेप

 सांझ उतर आयी मन की अभिलाष न पूरी है

कोई   चन्द्रगुप्त   गढ़ने  की  साध   अधूरी है


प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  27 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०६४ वां सार -संक्षेप


हम राष्ट्र -भक्त संपूर्ण विश्व की आस हैं हम भाव विचार क्रिया विश्वास शौर्य शक्ति संकल्प पराक्रम उत्साह उमंग  हैं हम खंडित भाग पाने के लिए संकल्पित हैं हमारी जिजीविषा अद्भुत हैं हम कहते हैं चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्


हम संकल्पों के उपासक हैं जो विकल्पों पर विचार नहीं करते हम मरण का उत्सव मनाते हैं जन्म की किलकारियों में भ्रमित नहीं होते



ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं जिसमें आचार्य जी एक ललक लेकर नित्य अपनी ज्वाला धधकाते हुए हमें उत्साहित प्रेरित उमंगित संस्कारित कर रहे हैं 



दीनदयाल विद्यालय भावनाओं का मूर्त स्वरूप है यह पहले भी मूर्त स्वरूप था और आगे भी रहेगा इसी विद्यालय के हम पूर्व छात्र सितम्बर में राष्ट्रीय अधिवेशन करने जा रहे हैं 



 हम राष्ट्रीय अधिवेशन देश और समाज के लिए कर रहे हैं अखंड भारत के लिए कर रहे हैं अविश्वासी मृत समाज में विश्वास के प्रसरण के लिए कर रहे हैं



आचार्य जी ने करगिल विजय पर एक बहुत अच्छी कविता शौर्य- स्तवन लिखी

प्रस्तुत है यह कविता




क्‍या कहा। करगिल कलम की नोंक से लिख दूँ


 घधकते शौर्य का लावा उठाकर पृष्ठ पर रख दूँ


कहाँ  संभव ।


....

अरे यह शौर्य का इतिहास है विश्वास जीवन का


अमरता का यशोगायन उमड़ता ज्वार यौवन का


इसे पढ़ते कुशीलव की गिरा अवरुद्ध हो जाती 

घुमड़ती भावना के छन्द वाणी कह नहीं पाती । |


किशोरों का अगम उत्साह जज़्वा मौत छूने का 

झपट बढ़ कर उठाया जो गरल काँपा सफीने का

नहीं विश्वास होता है सुकोमल अधखिली कलियाँ


किलक जिनकी न भूली हैं अभी तक गाँव की गलियाँ |


वही यम-द्वार पर दस्तक बजाते हैं खड़े हँसते 

विजय का ले अटल विश्वास अरि को जा रहे कसते

चढ़े जैसे शिखर "जय” बोल तो भूडोल सा आया

हिमानी वादियाँ काँपी घिरा फिर मौत का साया।

...

 हुआ संग्राम धरती-व्योम के धुर मध्य अलबेला

 किलकते दूध ने पावन लहू से फाग खुल खेला

बचाई आन भारत के मुकुट अवशेष की फिर से

 किया संकल्प खण्डित भाग पाने को अटल फिर से |


शपथ ली है हिमालय के शिखर पर शौर्य ने फिर से


बजाई दुंदुभी जय की मुखर हो धैर्य ने फिर. से


सुनी भेरी विजय की मस्त 'लरकाना' हुआ फिर से


जयस्वी हांक से आश्वस्त 'ननकाना” हुआ फिर से |



 लिया संकल्प छू माटी धरा गूँजी गगन गूंजा 

लहू से कर विजय अभिषेक हिमगिरि भाल को पूजा

 अटल संकल्प है भारत अखण्डित अब पुनः होगा

बना अवरोध जो भी राह में खण्डित पड़ा होगा।



चढ़ा सुविधा सलीबों पर सिसकता देश जोड़ूँगा 

अपावन बन्धनों को तोड़ चिन्तन राह मोड़ँगा

लचर कायर कपूतों के कुकर्मों को मिटाऊँगा 

कि विजयी मस्तकों पर चरण रज माँ की सजाऊँगा 


....



आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम विकारों से दूर रहें खाद्याखाद्य पर ध्यान दें इसके अतिरिक्त आचार्य जी कायमगंज अपनी मोटरसाइकिल में किसे बैठाकर ले गए थे, अधिवेशन के लिए आ रहे सुझावों के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा 

परीक्षा परिणाम की किन स्मृतियों में आचार्य जी हमें ले गए  आदि जानने के लिए सुनें

26.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०६३ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  26 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०६३ वां सार -संक्षेप


मनुष्य और मनुष्यत्व परमात्मा का सांसारिक वरदान है इसकी अनुभूति हमारे सनातन धर्म में बहुत विस्तार से हुई है परस्पर का संपर्क सम्बन्ध मनुष्य के लिए एक ईश्वरीय वरदान है जो इससे दूरी बनाते हैं वे अभिशप्त हैं 

ध्यान धारणा समाधि का एकाकीपन अपना महत्त्व रखता है किन्तु कुंठा का एकाकीपन अत्यन्त घातक है ऐसे कुंठाग्रसित लोगों को संपर्क में लाना ही उचित उपचार है 

परमात्मा हमारे देश पर कृपा करता ही रहता है बौद्ध धर्म की विकृतियों के कारण देश में विचित्र स्थितियां उत्पन्न हो गई थीं ऐसे में उनके समाधान के लिए आठवीं शताब्दी में भगवान् शंकराचार्य का जन्म होता है 

संपूर्ण भारत का स्वरूप उन्हें दैवीय भाव से प्रभावित करता रहा 

हिंदू धर्म की एकजुटता और व्यवस्था के लिए चार मठों की उन्होंने स्थापना कर डाली 

इसी प्रकार स्वामी विवेकानन्द का जन्म बिषम परिस्थितियों में होता है 

बीच में भी अनेक महापुरुषों के अवतरण हुए 

हम लोग इसी परम्परा का स्मरण करते हुए अपना कार्य व्यवहार करते हुए अपना रुझान समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी करने का प्रयास कर रहे हैं अपनी ही दीनदुनिया में मस्त रहना हमें नहीं भाता इसी कारण हमारा लक्ष्य भी 

राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष

है


साथ ही संयम शौर्य शक्ति से संपन्न बनते हुए हम प्रेम आत्मीयता का विस्तार करें संगठन का महत्त्व समझें समाज से भय भ्रम दूर करने का प्रयास करें दुष्ट -दलन की समार्थ्य रखें गद्दारों से सावधान रहें खाद्याखाद्य विवेक जाग्रत करें

अपने सनातन धर्म की रक्षा के प्रति सदैव सतर्क रहें

जो करें देश के लिए करें सपने भी देश के लिए सजाएं 

जब हमारा देश शक्तिसम्पन्न साधनसंपन्न विवेकसम्पन्न बनेगा तो हमें भी प्रतिष्ठा मिलेगी 

देश को अपना परिवार समझें आत्मदर्शन आत्मचिन्तन करें तो आत्मबोध होगा 

आचार्य जी ने सितम्बर में होने जा रहे अधिवेशन के लिए एक गीत भी सुझाया 

गीत इस प्रकार है 


गांव गांव घर घर में संयम शौर्य शक्ति पहुंचाना है ,

प्रेम युक्ति से संगठना कर विजयमंत्र दुहराना है ।।


जो भी जहां कहीं रहता हो,

जो कुछ भी निज-हित करता हो ,

थोड़ा समय देश-हित देकर

 जीवन को सरसाना है ।।

       गांव गांव घर घर में ------


भारत मां हम सबकी मां है यह अनुभूति महत्वमयी ,

सेकुलर वाली तान निराली शुरू हुई है नयी नयी ।

भ्रम भय तर्क वितर्क वितंडा छोड़ लक्ष्य पर दृष्टि रहे ,

हिन्दुराष्ट्र के विजय घोष से नभ को आज गुंजाना है ।।

          गांव गांव घर घर में-----


हिंदुदेश में हम-सब हिंदू जाति पांति आडंबर है ,

शक्ति संगठन के अभाव में दर दर उठा बवंडर है ,

प्रेम मंत्र संगठन तंत्र पर बद्धमूल विश्वास करें ,

जनजीवन से भ्रामकता को जड़ से दूर भगाना है ।।

      गांव गांव घर घर में ----


जहां किसी को भय भासित हो उसके दाएं खड़े रहें ,

लोभ लाभ के प्रति आजीवन सभी तरह से कड़े रहें ,

भारत सेव्य और हम सेवक यही भाव आजन्म रहे ,

यही भाव जन जन के मन में हम सबको पहुंचाना है ।।

         गांव गांव घर घर में ------


भारत की संस्कृति में गौरव गरिमा समता ममता है ,

समय आ पड़े तो अपने बल दुष्ट-दलन की क्षमता है ,

हम अपनी संस्कृति की रक्षा हेतु सदैव सतर्क रहें ,

यही विचार भाव जन जन को हमको आज सिखाना है ।।

         गांव गांव घर घर में--------


✍️ ओमशंकर त्रिपाठी


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पीयूष बंका १९९५ जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

25.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०६२ वां सार -संक्षेप

 सशक्त व्यक्ति द्वारा किए गए प्रहार में भी ज्ञान बना रहता है लेकिन प्रयास यह हो कि प्रहार की आवश्यकता ही न हो

दुष्ट हमसे दूर रहें.....



प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  25 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०६२ वां सार -संक्षेप


(Take Home Message : अपनी स्मृतियां सुरक्षित रखें)


जब हम अपने बारे में जान लेते हैं तो हमारी कमजोरी दूर हो जाती है हम अपने बारे में जानने का प्रयास नहीं करते हैं अपितु औरों के बारे में जानने के प्रयास में अपना समय व्यर्थ करते रहते हैं यह इस संसार का एक रोग है जो प्रायः सभी को ग्रसित किए हुए है इस रोग से मुक्त होने का प्रयास ही सदाचार है सद्चिन्तन है इस संसार में शक्ति भक्ति बुद्धि कौशल के साथ हमें जीवनयापन का प्रयास करना चाहिए और अपनों को इसके लिए प्रेरित करना चाहिए

हमारा सनातनधर्मी संसार अत्यन्त अद्भुत है


हमारा चिन्तन वैश्विक है 


बिच्छू के काटने पर संत का उसे बार बार बचाने का प्रयास उचित है या अनुचित यह हम सनातनधर्मियों के लिए चिन्तन का विषय है 

किन्तु हमें अपनी स्मृतियों को सही रखना ही होगा


श्रुतिः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियमात्मनः । एतच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाद्धर्मस्य लक्षणम्।

धर्म और कर्म हमें भलीभांति समझने होंगे 

स्मृति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है स्मृति का अर्थ ही है अपने को समझे रहें परिस्थितियों को देखे रहें स्मृति एक प्रकार से इतिहास है स्मृतियां जब मिट जाती हैं तो परम्पराओं के प्रति चिन्तन समाप्त हो जाता है और भ्रम का वातावरण व्याप्त हो जाता है हमारे साथ ऐसा ही हुआ और हमने नौकर बनाने वाली शिक्षा को अपना लिया  लेकिन अब हमें समाज से भ्रम भय दूर करना है हम इसी अंधकार को मिटाने वाले दीपक हैं हमें अपने दीपकत्व को पहचानने की आवश्यकता है 

शक्ति भक्ति बुद्धि शौर्य कौशल से सम्पन्न मनु अंगिरा वशिष्ठ विष्णु (भगवान् विष्णु नहीं )आदि ऋषियों ने हमारे इतिहास को रचा हमें अद्भुत जीवन शैली प्रदान की जिसका परिपालन करते हुए हम विश्वगुरु के पद पर आसीन हो गए थे

आचार्य जी ने बताया जो हमें घाव मिले उनका दर्द हमें महसूस होना चाहिए जैसे 

इतिहास को कलंकित करने वाले दिन २५ जून १९७५ की त्रासदी याद आ जाती है

संविधान के सारे अधिकार समाप्त हो गए 

शिष्ट भले लोग जेल में डाल दिए गए

इसके अतिरिक्त अध्यक्ष जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

24.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०६१ वां सार -संक्षेप

 इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।


मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।3.42।।


प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  24 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०६१ वां सार -संक्षेप



प्रखर विद्वान ज्ञानी तत्वदर्शी हम मनीषी थे ,

अनोखे आत्मदर्शी तत्वखोजी हम तपस्वी थे। 

उपेक्षा की कभी हमने खडग क्षुर दण्ड   शूलों की ,

तभी पीढ़ी न कह पाती  ' कभी हम भी जयस्वी थे ' ।।

११ अप्रैल २०२२



हम भी अनुभूति करें और नई पीढ़ी को भी यह अनुभूति कराएं कि हम तपस्वी आत्मदर्शी जयस्वी तत्वखोजी मनीषी रहे हैं  अपने धर्म अपनी परम्परा अपनी यज्ञमयी संस्कृति अपनी भावमयी शिक्षा की उपेक्षा करने पर यह दुर्दशा हो गई है new generation नाच कूद में लगी है 

इस कारण हमें शिक्षा में सुधार करने की आवश्यकता है

कल लखनऊ में संपन्न हुई सफल बैठक में इसी पर चर्चा हुई 

वेद बोझ नहीं हैं वेद अर्थात् तत्त्व-ज्ञान 

अहं ब्रह्मास्मि आदि सूत्रों की व्याख्याएं संहिताओं में हैं ब्राह्मण ग्रंथों में विधि विधान हैं 

आरण्यक अनुसंधान और स्वाध्याय के ग्रंथ हैं

 उपनिषदों से हमें शिक्षा मिलती है गीता व्यवहार का ग्रंथ है ब्रह्मसूत्र तत्त्व चिन्तन का ग्रंथ है 

मानस तो और भी अद्भुत  कथात्मक आनन्दमय ग्रंथ है 

कुछ ऐसी परिस्थितियां रहीं हमारे ग्रंथागार भस्मीभूत कर दिए गए 

इस कारण हमें  शक्ति के साथ सामञ्जस्य बैठाकर शक्ति की अनुभूति करनी है शक्ति की केवल चर्चा नहीं करनी है

शक्ति केवल व्यायामशालाओं में ही नहीं आती वह शोधशालाओं और उपासना -गृहों में भी आती है 

शिक्षा में शक्ति का प्रवेश होना चाहिए 

शक्ति के बिना संसार शव है 

शिव शिव इसी कारण हैं कि वे शक्तिसम्पन्न हैं 

अपना शिवत्व शक्तिसम्पन्न बना रहे इसके लिए अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन निदिध्यासन व्यायाम आसन ध्यान धारणा खाद्याखाद्य विवेक आदि आवश्यक है 

राष्ट्रीय अधिवेशन का उद्देश्य यही है New generation में केवल प्रदर्शन की भावना न हो 

वह शक्तिसम्पन्न बने जिससे दुष्ट भयभीत हों 

जो इन विचारों से सहमत हों उन्हें साथ लेकर चलें 

दंभ भय से दूर रहें 

हम अखंड भारत की कल्पना करते हैं अखंड भारत की परिकल्पना करना किसी को परेशान करना नहीं है लेकिन खुद भी परेशान नहीं होना भी है 

अखंड भारत हमारा उपास्य है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी भैया मनीष जी भैया निखिल अवस्थी जी की चर्चा क्यों की जीवन की दुर्दशा क्या है श्री हरमेश जी को क्या अच्छा लग रहा है जानने के लिए सुनें

23.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०६० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  23 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०६० वां सार -संक्षेप



विद्यालय में जब हम अध्ययनरत थे तब से सदाचार वेला हमें लाभान्वित करती रही है

मानसिक रूप से इसमें उपस्थित होने पर इसके लाभ असीमित हो सकते हैं बस विश्वास बनाए रखने की आवश्यकता है


बल बुद्धि विद्या आदि विभिन्न याचना के तत्त्व हमारी संस्कृति की एक विशेषता हैं बल बुद्धि विद्या के सामञ्जस्य से हमारे विचार उत्कृष्ट होंगे

व्यवहार सामञ्जस्यपूर्ण होगा 

संसार की विविधताओं में भी एकता की अनुभूति होगी 

हमारे विद्यालय के शिक्षकों ने चिन्तन मनन कर अपने को विद्यार्थी को मात्र पढ़ाने तक सीमित नहीं रखा अपितु उससे आत्मीयता भी प्रकट की उसके घर परिवेश की भी चिन्ता की

आचार्य जी ने बताया कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस शुद्ध सात्विक शाक्त शक्ति के उपासक थे  शक्ति भक्ति दोनों जहां संयुत हो जाती हैं वह हनुमान जी का विग्रह बन जाता है और हनुमान जी शिवावतार हैं

शिव जी  शौर्य भक्ति शक्ति आवेश उदारता सारल्य के प्रतीक हैं 

 स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानन्द की संस्था रामकृष्ण मिशन से भक्ति प्राप्त कर बूजी हनुमान जी की परम भक्त बन गईं

इसी परम्परा का निर्वाह करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में विचारों का प्रसार हुआ 

हम उन्हीं विचारों के वाहक हैं उन विचारों का संग्रह कर उनका विस्तार करना हमारा धर्म है 

संसार में निशाचरों की कमी नहीं है जिनके कारण धरती बार बार व्याकुल होती है जो हमारे लिए मां है और राक्षसों निशाचरों के लिए भोग्या है इनके खिलाफ अकेले यदि हम हिम्मत नहीं जुटा सकते तो हिम्मत का एक पुंजीभूत रूप तैयार करें जिसे संगठन कहते हैं 

भगवान् राम ने भी संगठन पर बल दिया था 

भले लोग जब निराश हो जाते हैं तो भगवान् अवतार लेते हैं भले लोगों को उत्साहित करते हैं भले लोग बेचारे होते हैं नाकारा होते हैं इस कारण भले लोगों में से एक बनने के बजाय हमें शक्तिसम्पन्न बनने की आवश्यकता है 

अपने भीतर ईश्वरत्व को जाग्रत करने की आवश्यकता है प्रेम शक्ति की अनुभूति है भगवान् राम को संपूर्ण धरती से प्रेम था लोगों से प्रेम था इस कारण वन वन भटके 

रामत्व की अनुभूति करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने प्रतापगढ़ की चर्चा क्यों की मानस के किस कांड पर ध्यान देने के लिए आचार्य जी ने कहा 

भोजन कैसा हो जानने के लिए सुनें

22.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 22 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०५९ वां सार -संक्षेप

 यदहङ्कारमाश्रित्य न योत्स्य इति मन्यसे।


मिथ्यैष व्यवसायस्ते प्रकृतिस्त्वां नियोक्ष्यति।।18.59।।


अहंकार के वशीभूत होकर तुम अर्जुन जो यह सोच रहे हो कि "मैं युद्ध नहीं करूंगा", यह झूठ है क्योंकि तुम्हारा स्वभाव ही तुम्हें बलात् कर्म में प्रवृत्त करेगा


प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  22 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५९ वां सार -संक्षेप


यह संसार विविध रूपों में हमारे सामने प्रस्तुत होता है भिन्न भिन्न संबन्धों स्वरूपों स्वभावों का यह संसार है संपूर्ण विश्व को दिशा देने वाला भारत तो अद्भुत है 

भगवान् कृष्ण युद्धस्थल में अर्जुन को समझा रहे हैं 

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।


स्वधर्म -पालन श्रेयष्कर है


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।18.47।।


स्वभाव से नियत किए गये कर्म को करते हुए मनुष्य पाप को नहीं पाता 

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।

सहज भाव से कर्म करते चलें 

यद्यपि सारे कार्य दोष से युक्त हैं 


असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः।


नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां संन्यासेनाधिगच्छति।।18.49।।


सर्वत्र आसक्ति रहित बुद्धि वाला ऐसा व्यक्ति जो स्पृहारहित और जितात्मा है, संन्यास से परम नैष्कर्म्य सिद्धि को पाता है।


सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म तथाप्नोति निबोध मे।


समासेनैव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा।।18.50।।


हे अर्जुन तुम मुझसे संक्षेप में जान लो कि 


सिद्धि को प्राप्त मनुष्य किस प्रकार ब्रह्म को पाता है साथ ही ज्ञान की परा निष्ठा को भी किस प्रकार पाता है


असक्त बुद्धि वाले व्यक्ति के लक्षण इस प्रकार होते हैं 


बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्याऽऽत्मानं नियम्य च।


शब्दादीन् विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।18.51।।


विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः।


ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः।।18.52।।


विशुद्ध बुद्धि से युक्त, धृति द्वारा आत्मसंयम कर, शब्दादि विषयों को त्याग साथ ही राग-द्वेष को दूर कर 

विविक्त सेवी अर्थात् एकांत में रहने वाला ,स्वल्पाहारी जिसने अपने शरीर, वाणी,मन को संयत किया है, ध्यानयोग के अभ्यास में सदा ही तत्परता दिखाने वाला तथा वैराग्य पर  आश्रित रहता है



अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।


विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते।।18.53।।

अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध और परिग्रह को त्याग ममत्वभाव से रहित  शान्त मनुष्य ब्रह्म प्राप्ति के काबिल बन जाता है


हमारा सनातन चिन्तन अद्भुत है लेकिन हमारे पास शक्ति भी अनिवार्य रूप से होनी चाहिए 

कुछ प्राप्त करना है तो शक्ति के बिना प्राप्त नहीं कर सकते 

पहले शक्ति शौर्य पराक्रम और फिर संयम 

हिन्दू दर्शन का यह सामञ्जस्य अद्भुत है 

हम विश्व को संवारने का काम करते हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हनुमान जी के विभिन्न स्वरूपों का क्या वर्णन किया जानने के लिए सुनें

21.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०५८ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  21 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५८ वां सार -संक्षेप


आज अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस है भारतवर्ष योग की उद्भव भूमि है भारत ऐसे अनेक भावों विचारों की उद्भव भूमि रहा है जिसे संपूर्ण विश्व अपनाता है 

संकट का समय हो उत्साह का समय हो कर्म अकर्म विकर्म का जहां भ्रम हो वहां हमें गीता पाठ करना चाहिए

सरल रूप में कथात्मक ढंग से यदि गीता को देखना हो तो श्री रामचरित मानस के रूप में एक अद्भुत ग्रंथ हमारे समक्ष है जिसमें लक्ष्मण -गीता, राम -गीता, मन्दोदरी -गीता हमारा मार्गदर्शन करती हैं   इनका पाठ कर यदि ये व्यवहार में  प्रकट हों तभी इनकी उपयोगिता सिद्ध होगी 

हम संसार -धर्म का निर्वाह करें कोई कार्य व्यवहार बुरा नहीं है मोह बुरा है 

गीता का दूसरा अध्याय संपूर्ण गीता का सार तत्त्व है 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ 

काम करना धर्म है फल की इच्छा धर्म नहीं है निर्लिप्त भाव से कर्म करते रहें 

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।


सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।2.48।।


हे अर्जुन!आसक्ति को त्याग कर, सिद्धि और असिद्धि में समान भाव का होकर योग में स्थित हुए तुम कर्म करो। समत्व ही योग कहलाता है l 


सुख हरषहिं जड़ दु:ख बिलखाहीं। दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी किस कार्यक्रम में जा रहे हैं भैया सौरभ जैन जी का नाम क्यों लिया 

भूटान देश की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

20.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी/ चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 20 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०५७ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी/ चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  20 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५७ वां सार -संक्षेप


आचार्य जी ने सांसारिक जीवन को स्पष्ट किया 

हम नए स्थान की स्मृतियां लेकर अपने उसी स्थान पर लौट जाना चाहते हैं जहां से चले थे 

इसी तरह इस संसार में भी हम कहीं और से आए हैं 


रहना नहिं देस बिराना है। 


यह संसार कागद की पुड़िया, बूँद पड़े घुल जाना है। 


यह संसार काँट की बाड़ी, उलझ-पुलझ मरि जाना है। 


यह संसार झाड़ औ झाँखर, आग लगे बरि जाना है। 


कहत कबीर सुनो भाई साधो, सतगुरु नाम ठिकाना है॥



भारत राष्ट्र परमात्मा की अद्भुत रचना है यह संपूर्ण विश्व का प्राणतत्त्व है और हम अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म भरत -भू पर हुआ है और हम इसकी सेवा इसके संरक्षण के लिए कृतसंकल्प हैं 


गायन्ति देवाः किल गीतकानि, धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे। स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते, भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्।।


कल अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस है 

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में एक प्रस्ताव रखा 

११ दिसम्बर २०१४ को संयुक्त राष्ट्र के १७७ सदस्यों द्वारा २१ जून को 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' के रूप में मनाने वाले प्रस्ताव को स्वीकृति मिली। भारत के इस प्रस्ताव को ९० दिन के अन्दर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो किसी भी प्रस्तावित दिवस को संयुक्त राष्ट्र संघ में पारित करने के लिए सबसे कम समय है


योग साम्प्रदायिक पद्धति नहीं है योग का अर्थ है जोड़ना 

आत्मशक्ति को परमात्मशक्ति से संयुत करना 

योग हमारे वैदिक ग्रंथों में   वर्णित है पतञ्जलि को योगमार्ग का प्रवर्तक कहते हैं अर्थात् सेश्वर योग मार्ग का 

इससे इतर कपिल का सांख्य भी योग कहलाता है 

योग एकाग्रता लाता है योग से हमें शान्ति प्राप्त होती है


पतञ्जलि के सूत्रों पर वाचस्पति मिश्र, व्यास मुनि, भोजराज आदि ने व्याख्याएं लिखी हैं हमें इनका अध्ययन करना चाहिए 

ये शिक्षा के भाग होने चाहिए और हम जो शिक्षा ग्रहण करते आ रहे हैं वह नौकरी देने वाली शिक्षा है


योग केवल आसन मात्र नहीं है 

आचार्य जी ने यम नियम आदि स्पष्ट किए 

योग मार्ग बहुत सी समस्याओं का समाधान सुझाता है 

प्राणायाम द्वारा मृत्यु से भय तक समाप्त हो जाता है 


आचार्य जी ने बताया कि योग दिवस कल अपने गांव सरौंहां में भी मनाया जाएगा 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने दिनेश जी और ललित जी का नाम क्यों लिया रविवार को होने वाली बैठक के विषय में क्या महत्त्वपूर्ण बात बताई जानने के लिए सुनें

19.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 19 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०५६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  19 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५६ वां सार -संक्षेप


सृष्टि की सद्व्यवस्थाओं में सहयोग करने के अनेक उपाय हैं ये सदाचार संप्रेषण उन्हीं में एक उपाय है जो हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराते हैं मनुष्यत्व की अनुभूति करने पर मनुष्य बुराई को मिटाने अच्छे लोगों का सहयोग करने का संकल्प लेता है कदाचारों की संलिप्तता से बचता है ये संप्रेषण हमें कर्तव्यबोध से दूर न होने की प्रेरणा देते हैं क्योंकि कर्तव्यबोध से दूर होने पर समस्याएं विकराल रूप धारण कर लेती हैं  इन संप्रेषणों से हमें परिस्थितियों से जूझने की क्षमता विकसित करने की प्रेरणा मिलती है 

आइये आत्मबोधोत्सव मनाने के लिए प्रवेश करें आज की वेला में 


यदि कुंठाओं में ही सदैव हम विचार करते रहेंगे तो हमारे विचारों में गति तो होगी लेकिन वह हमें पीछे ही ढकेलेगी जब कि हम तो आगे बढ़ना चाहते हैं 

मानस के बाल कांड में 



एक बार त्रेता जुग माहीं। संभु गए कुंभज रिषि पाहीं॥

संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी॥


एक बार त्रेता युग में शिव  महर्षि अगस्त्य (कुम्भ से जन्म लेने के कारण कुंभज )के पास गए।

रामकथा मुनिबर्ज बखानी। सुनी महेस परम सुखु मानी॥


मुनिवर ने रामकथा विस्तार से सुनाई , जिसको शिव जी ने परम सुख मानकर सुना।

अद्भुत है रामकथा  जिसमें बहुत सारे संघर्ष वर्णित हैं प्रभु राम का स्वभाव अप्रतिम है विषम परिस्थितियों ने तुलसीदास जी ने  रामकथा लिखी 

उस समय की राजसत्ता भयावह थी ऐसे संकट के समय में ऐसी दिव्य रचना हमें आश्वस्त करती है कि निश्चित रूप से परमात्मा का कोई न कोई स्वरूप सदैव विद्यमान रहता है 

परमात्मा ने जिस प्रकार संसारी पुरुष की रचना की उसी प्रकार ज्ञान की रचना की  वेद इसीलिए अपौरुषेय कहलाए 

हमारा सनातन साहित्य अद्भुत है 


इसके अतिरिक्त हमारा आत्म कैसे विस्तार लेता है  बिजली से संबन्धित क्या प्रकरण था आदि जानने के लिए सुनें

18.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी/द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 18 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०५५ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  शमथ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी/द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  18 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५५ वां सार -संक्षेप

¹ परामर्शदाता



यह सदाचार केवल भाषाई शब्द नहीं 


यह जीवन का विश्वास सत्य का विग्रह है 

निखरा करता इससे मानवता का स्वरूप 

स्रष्टा का अद्भुत अनुपम एक अनुग्रह है


इन सदाचार संप्रेषणों का मूल आशय यही है कि हम भ्रष्ट जीवन से सचेत रहें भ्रष्टाचार को हम पनपने न दें शिष्टाचार का वरण करें 

अपने कर्तव्य, कर्म और विचार का विस्तार करें 

भिन्न भिन्न प्रपंचों से अप्रभावित रहते हुए कर्मशील बनें 

अपनी दिशा दृष्टि सुस्पष्ट रखें संगठित रहें 

कठिन कामों को करने के लिए उद्यत हों स्वार्थी न बनें पुरुषार्थी बनें

अपनेपन का विस्तार करते चलें माटी की परिपाटी की पहचान भी रखें सद्धर्म की मशाल जलाते रहें 

आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


जब व्यक्ति चिन्तन की गहराइयों में उतर जाता है तो उसे सब माटी ही लगता है आचार्य जी ने कुछ इसी तरह के भाव व्यक्त किए हैं 

(२७ अगस्त २०११ को लिखी कविता )

यह तन क्या है बस माटी 

का  सुन्दर सा एक खिलौना है 

पहने माटी ओढ़े माटी माटी का सुखद बिछौना है.......

आचार्य जी ने एक दूसरी कविता सुनाई 


पथभ्रष्ट कभी मंजिल पाने में हुए सफल?


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सौरभ जैन जी भैया अमित जी का नाम क्यों लिया तालाब सूखने पर क्या action लिया गया जानने के लिए सुनें

17.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०५४ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  शन्ताति ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  17 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५४ वां सार -संक्षेप

¹ आनन्द प्रदान करने वाला


आनन्द प्रदान करने वाले ये सदाचार संप्रेषण हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं ताकि हमें समाज और राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व का बोध हो हम मनुष्यत्व की अनुभूति करें  ये हमें चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय के लिए प्रेरित करते हैं हमें ध्यान दिलाते हैं कि हम केवल खाने पीने में मस्त न रहें केवल भौतिक उन्नति ही न करें हम देवासुर संग्राम में अपनी भूमिका स्पष्ट रखें 

विषम परिस्थितियों में भी आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय देकर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं यह हनुमान जी की महती कृपा है


आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


हमारे यहां उपनिषदों में शिक्षा शिक्षण प्रशिक्षण प्रबोधन की अनेक विधियां हैं उसी में एक विधि है 

आत्मसंलापात्मक विधि

इसे SOLILOQUY

(Ref OTHELLO )कह सकते हैं 

अर्थात् मन में सोचते रहना 

कठोपनिषद् में नचिकेता आत्मसंलाप कर रहा है


मेरे पिता (वाजस्रवा) ‘विश्वजित’ यज्ञ के विधान में मेरे संपोषण के मोह में ग्रस्त होकर उपयोगी गायों को बचाते हुए बूढ़ी और दूध न दे सकने वाली गायों का दान दे यज्ञ की औपचारिकता पूरी करना चाह रहे हैं यह तो अनर्थ कर रहे हैं

नचिकेता कहता है 

आपको तो प्रियातिप्रिय वस्तु देनी चाहिए 

पिता उसे यमराज को सौंपने के लिए कह देते हैं 

यह कथा अत्यन्त रोचक और शिक्षाप्रद है 

आज यमराज और जीवात्मा दूर दूर हो गए हैं लेकिन हमारा अतीत अध्यात्म का युग रहा है 

अमरत्व की उपासना अद्भुत है 



विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह ।


 अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते॥

शास्त्र के ये सिद्धान्त अत्यन्त बल देते हैं 


इसके पश्चात् आचार्य जी ने BROCHURE की चर्चा की 

इसमें सुझाव दिया कि 

 इस परिचयात्मक पत्र में भावनात्मक पुट भी हो 

दीनदयाल विद्यालय का निर्माण भावनाओं की अभिव्यक्ति था

इस पापी संसार में पं दीनदयाल जी की हत्या दुष्टों ने कर दी थी तब यह निश्चय किया गया कि इस पापमोचन के लिए हम संकल्पवान् व्यक्तियों को  तैयार करेंगे 

इसके अतिरिक्त मोक्ष का पद क्या है भैया मोहन जी भैया मनीष जी भैया वीरेन्द्र जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिए सुनें

16.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 16 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०५३ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  न्यूङ्ख ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  16 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५३ वां सार -संक्षेप

¹ प्रिय


अत्यन्त प्रिय और अत्यन्त प्रभावशाली इन सदाचार संप्रेषणों से हम सदाचारमय विचार ग्रहण करते हैं स्वदेश और समाज हेतु उद्यत होने की प्रेरणा पाते हैं ये विचार हमें बताते हैं कि स्वदेश -प्रेम प्रदर्शन में न होकर आत्मदर्शन में होता है तत्त्वों से परिपूर्ण ज्ञानवर्धक विचारों का यह परिवेश अद्भुत है जो हमें नित्य संस्कारित करता है  पश्चिमी ईर्ष्यालु भौतिक चिन्तन से हमें दूर करता है 

आजकल आचार्य जी शिक्षा,जो अत्यन्त गहन गम्भीर विषय है,का आधार लेकर हमें उद्बोधित कर रहे हैं 

शिक्षा हेतु हमें गहन चिन्तन और अध्ययन स्वाध्याय करने की आवश्यकता है 

शिक्षा जिनके भीतर प्रविष्ट नहीं है वे अत्यन्त …

प्रस्तुत है  न्यूङ्ख ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  16 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५३ वां सार -संक्षेप

¹ प्रिय


अत्यन्त प्रिय और अत्यन्त प्रभावशाली इन सदाचार संप्रेषणों से हम सदाचारमय विचार ग्रहण करते हैं स्वदेश और समाज हेतु उद्यत होने की प्रेरणा पाते हैं ये विचार हमें बताते हैं कि स्वदेश -प्रेम प्रदर्शन में न होकर आत्मदर्शन में होता है तत्त्वों से परिपूर्ण ज्ञानवर्धक विचारों का यह परिवेश अद्भुत है जो हमें नित्य संस्कारित करता है  पश्चिमी ईर्ष्यालु भौतिक चिन्तन से हमें दूर करता है 

आजकल आचार्य जी शिक्षा,जो अत्यन्त गहन गम्भीर विषय है,का आधार लेकर हमें उद्बोधित कर रहे हैं 

शिक्षा हेतु हमें गहन चिन्तन और अध्ययन स्वाध्याय करने की आवश्यकता है 

शिक्षा जिनके भीतर प्रविष्ट नहीं है वे अत्यन्त व्याकुल और भ्रमित हैं उनकी भाषा व्याकुलता बढ़ा रही है   विचित्र अबूझ वातावरण बना हुआ है लेकिन 


हमारी भावनाओं में हमेशा देश रहता है 

विचारों में हमेशा ही वही परिवेश रहता है 

किसी से करूं तुलना यह हमारा मन नहीं करता 

सदा सत्कर्म करने को हमारा देश कहता है


प्रशंसित वे नहीं जिनके खजाने स्वर्ण-पूरित हैं ,

न वे भी जो बड़ी सी चापलूसी भीड़ घूरित हैं ,

प्रशंसित वे भरत -भू पर रहे हैं और होंगे भी ,

कि जिनके कर्म हैं सेवार्थ और मानस भाव-पूरित हैं ।।


वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, गीता, पुराण अर्थात् जो पुराना होने पर भी नया लगे और एक अर्थ यह भी कि जिसमें पुरातन आख्यान हो , ब्रह्मसूत्र,छह वेदांग आदि के प्रति हमारी रुचि जाग्रत होनी चाहिए 

इनके द्वारा हमें तेजस्वी वीर बलशाली सामर्थ्यवान् बनने की प्रेरणा मिलती है संगठन का महत्त्व हमें समझ में आता है 

इनसे मिली शिक्षा हमारे यथार्थ चिन्तन को सुस्पष्ट करती है 

संसार क्या है संसार में रहने का तात्पर्य क्या है

संस्कारी शिक्षा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है 


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।

यही शिक्षा हमें बताती है कि 

हम सहज कर्म करते चलें व्याकुल न हों

यह हमें स्वस्थ रहने का संदेश देती है आत्मनिर्भर बनाती है आत्मबोधोत्सव मनाने की प्रेरणा देती है

इसके अतिरिक्त 

कौन कहता था कि पलक न झपके, भैया शुभेन्द्र भैया मनीष कृष्णा आदि का उल्लेख क्यों हुआ  विवेकानन्द क्या कहते थे  भगवान् राम के वे कौन से गुण हैं जो हमें अपनाने चाहिए

किसका हर तत्त्व उपादेय है आदि जानने के लिए सुनें

15.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 15 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०५२ वां सार -संक्षेप

 टूटता-जुड़ता समय-‘भूगोल’ आया,


 गोद में मणियाँ समेट ‘खगोल’ आया,


क्या जले बारूद? हिम के प्राण पाये !


 क्या मिला ? जो प्रलय के सपने में आये


प्रस्तुत है  न्युङ्ख ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  15 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५२ वां सार -संक्षेप

¹ प्रिय


संसार में रहते हुए  भी यदि संसारी पुरुष कुछ समय के लिए संसार से अलिप्त रहते हुए अपने भावों विचारों में प्रवाहित रहता है तो यह ईश्वर की कृपा है 

जिसे संसार त्याग दे या जो संसार को त्याग दे और उसके बाद भी संसार में रहता रहे ऐसे दिव्य जीवन जीने वाले लोग भारतवर्ष में रहे हैं और अभी भी हैं 

अद्भुत तत्त्वों से परिपूर्ण इन सदाचार संप्रेषणों से हम संसार की समस्याओं को आसानी से सुलझा सकते हैं 

आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


२४ छात्रों से शुरु हुए अपने विद्यालय ने जनमानस का ध्यान तब खींचा जब १९७५ में इसका परीक्षा परिणाम आया 

शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन सुरक्षा नामक चार आयाम लेकर हम चल रहे हैं उसमें मूल  शिक्षा है 

विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह । अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते ll 

ईशोपनिषद् का ग्यारहवां छंद 

अविद्या  सांसारिक विद्या है जिसे संक्षेप में हम कर्म कह सकते हैं

और विद्या अर्थात् असांसारिक विद्या या ज्ञानात्मक विद्या जिससे संसार उत्पन्न होता है 


कर्म और ज्ञान दोनों को जो भलीभांति जानता है 

वह अमरत्व का उपासक होता है 

हम मरते नहीं हैं हमारा शरीर मरता है 

हम न शरीर हैं न मन हैं तो हम क्या हैं मैं कौन हूं 


......

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

भगवान् आदिशंकराचार्य ने जब सारा संसार देख लिया तब यह कहा 

कम समय में उन्होंने बहुत कुछ किया 

न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर्न वा....


मैं न प्राण हूं,  न ही पंच वायु हूं


मैं न सात धातु हूं,


और न ही...


मैं ये सब नहीं हूं मैं शुद्ध चेतना हूं यह ज्ञान आसानी से नहीं आता 

शिक्षा इसी पर आधारित है

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम गीता का चौथा अध्याय अवश्य देखें जो अत्यन्त ज्ञान सम्पन्न है इसके १८ से २४ तक के छंद याद कर लें 


निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः।


शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।४/२१।।



जिसका शरीर और अन्तःकरण भलीभांति वश में  है, जिसने सब प्रकार के संग्रह को त्याग  दिया है, ऐसा आशारहित कर्मयोगी  शरीर-सम्बन्धी कर्म करता हुआ भी पाप को प्राप्त नहीं होता।


हमें भ्रम हो गया कि मानस गीता पुराण महाभारत भागवत रामायण उपनिषद् पूजा की वस्तु हैं ये अध्ययन के लिए नहीं हैं ये चर्चा के लिए नहीं हैं इसी कारण शिक्षा पंगु है 

शिक्षा से नौकरी देखी जाती है स्वावलम्बी बनने का भाव नहीं आता भीख मांगने का भाव जो उत्पन्न करे वह शिक्षा नहीं है 

युगभारती स्वावलम्बी बनाने वाली शिक्षा के लिए प्रयत्नशील है और इसके लिए ऐसी शिक्षा देने वाले शिक्षकों के निर्माण की आवश्यकता है अंतिम बूंद जलने तक हम असंतुष्ट नहीं होंगे

आचार्य जी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की चर्चा की 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शुभेन्द्र जी भैया सुरेश जी भैया विवेक जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

14.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 14 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०५१ वां सार -संक्षेप ¹ आत्मम्भरि =स्वार्थी

 सभी देशानुरागी बन्धु-भगिनी जागकर सोचें, 

मिटाएँ कालिमा अपनी न दर्पण को रगड़ पोछें, 

रही गलती स्वयं की क्या कहाँ कब चूक कर बैठे, 

भविष्यत् के लिए सन्नद्ध हों मत बाल अब नोचें।


प्रस्तुत है आत्मम्भरि -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  14 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५१ वां सार -संक्षेप

¹ आत्मम्भरि =स्वार्थी


युगभारती का यश हर दिशा में फैल रहा है युगभारती  युगों से चली आ रही भारतीय जीवन दर्शन,भारतीय चैतन्य


जिस दिन सबसे पहले जागे,

नव- सृजन के स्वप्न घने,

जिस दिन देश-काल के दो-दो,

विस्तृत विमल वितान तने,

जिस दिन नभ में तारे छिटके,

जिस दिन सूरज-चांद बने,

तब से है यह देश हमारा,

यह अभिमान हमारा है।



 की परम्परा है

इसी भाव को लेकर स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो में उल्लेखनीय विश्व धर्म सभा में विश्वासपूर्वक कहा था कि आज भी भारत संपूर्ण विश्व को दिशा देने में सक्षम है उद्यत है जब कि भारत में निर्धनता का तांडव चल रहा था 

इसी निर्धनता को देखकर  इसे मिटाने के लिए विवेकानन्द ने बार बार जन्म लेने की कामना की मोक्ष की इच्छा नहीं की

इस परम्परा का परिपालन करते हुए अनगिनत उतार चढ़ाव आए हम भ्रमित हुए 




हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा

अरुणाचल की छवि बनी नयन मे धुँधली कंचन रेखा


उस भ्रम में हम रस्सी में सांप  देखने लगे 

भौतिकवादी आज भी भ्रमित भयभीत हैं 

लेकिन महापुरुषों की एक लम्बी शृङ्खला भी पनपती चली गई जिसने हमारा भ्रम भय दूर करने का प्रयास किया

पं दीनदयाल जी भी ऐसे ही महापुरुष थे 

कष्टों में बीता उनका जीवन हमारे सामने स्पष्ट है लेकिन मन से वे सदैव परिपुष्ट रहे ऐसे महापुरुष की जयचंदों ने मिलकर हत्या कर दी 

आज भी उनकी हत्या को रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मृत्यु बताया जाता है 

हम लोग उस आग को संजोए हुए हैं ऐसी अनगिनत चिङ्गारियां हम लोगों के अन्तःकरण में हैं

दीनदयाल जी की मृत्यु के उपरान्त हमारे विद्यालय का निर्माण हुआ जो भावनाओं की अभिव्यक्ति थी 

बूजी ने दीनदयाल की परम्परा को परिपोषित करने का संकल्प लिया 

उस परिपोषण के संकल्प का विग्रह है हमारे विद्यालय का भवन 

आदरणीय रज्जु भैया ने आचार्य श्री चन्द्रपाल जी को आदरणीय भाउराव जी ने आचार्य श्री शेंडे जी को और आदरणीय अशोक सिंघल जी ने आचार्य श्री ओम शङ्कर जी को कार्यभार सौंपा 

जब आपातकाल लागू हुआ तो विद्यालय शैशवावस्था में था आचार्य जी ने उस समय एक पुस्तक लिखी थी युगपुरुष 

विद्यालय को मान्यताएं मिलती गईं सन् १९८१ में इंटर का पहला बैच बैठा 

भारतवर्ष की परम्परा का सिलसला बना रहे इस कारण युगभारती (पूर्व में तरुणभारती )का जन्म हुआ 

महापुरुषों से सम्बन्ध बना रहा वह सिलसिला आजतक टूटा नहीं है 

आचार्य जी भी उसी परम्परा के वाहक हैं 

कि जब तक इस देश का एक कुत्ता भी भूखा है मैं (विवेकानन्द ) बार बार जन्म लूं 


भूखे का अर्थ  पेट की आग नहीं 

इसका अर्थ है हमारा मान सम्मान शक्ति भक्ति कौशल हमारा अपना हो

शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन सुरक्षा हमारे कार्य करने के आधारभूत बिन्दु हैं इन्हें आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने के लिए हम उद्यत हुए हैं ऐसे और विद्यालय हो जाएं तो हमारे जीवन का वे अमृत कुंड बन जाएंगे 

यूं तो विद्यालयों में नौकरी की शिक्षा दी जाती है जीवन जीने की शिक्षा नहीं दी जाती 

हमें ऐसे विद्यालयों को स्थापित करने की आवश्यकता है जो जीवन जीने की भी शिक्षा दें जो जीवनव्रती 

विचारवान संकल्पी स्वदेशभक्त तैयार करें 

आचार्य जी ने बताया कि 

वेद उपनिषद् आरण्यक आदि हमारे शिक्षा के आधार में होने चाहिए 

हम लक्ष्य प्राप्ति तक रुकें नहीं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी भैया शुभेन्द्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

13.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 13 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०५० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है रुधिरपायिन् -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  13 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५० वां सार -संक्षेप

¹ रुधिरपायिन् =राक्षस



भारतवर्ष सत्यानुभूति की पवित्र धरती है परम सत्य की खोज के इस सनातन तीर्थ में सत्य की  खोज करने वाले ऋषियों मुनियों मुमुक्षुओं सत्यदर्शियों की संख्या अनगिनत है


परम सत्य एक है लेकिन जब हम देखेंगे तो इसकी लाखों अभिव्यक्तियां मिलेंगी 

एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति 

सत्य एक है लोग उसे अलग अलग प्रकार से बोलते हैं द्वैत शुद्धाद्वैत द्वैताद्वैत केवलाद्वैत विशिष्टाद्वैत ज्ञान मार्ग भक्ति मार्ग योग मार्ग आदि 

भारत भूमि की इसी तत्त्व -जिज्ञासा से संपूर्ण विश्व में ज्ञान की अजस्र सरिता प्रवाहित हुई 

जो ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे वे इससे लाभान्वित भी हुए 

सनातन  चिरन्तन भारतीय यात्रा का केन्द्र बिन्दु एक ही रहा कि अणु आत्मा और विभु आत्मा में एक सम्बन्ध है लेकिन भारत ने किसी एक ही प्रज्ञावान् एक ही देवता /देवदूत एक ही प्रतीति पर कभी भी हठधर्मिता नहीं दिखाई

 दीनदयाल विद्यालय,जो अनेक सांसारिक अपघातों को झेलने वाले अद्भुत विलक्षण महापुरुष दीनदयाल जी के नाम पर बना,के  हम छात्र सितम्बर में राष्ट्रीय अधिवेशन करने जा रहे हैं 


हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी



जिसमें  अपने भावों में गाय गंगा गायत्री गीता बसाने वाले हम छात्र समाज के उस वर्ग को, जो भारतभूमि को अपना मानता है, को बताना चाह रहे हैं कि हम कौन हैं हमारे उद्देश्य क्या हैं और हम यह संदेश भी देना चाह रहे हैं कि हमारी अनुभूति को व्यापकता प्राप्त करने की आवश्यकता क्यों है

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः 

हम अपने राष्ट्र को परम वैभवशाली बनाना चाहते हैं 

प्रपंच मुक्त होकर हमें इन विषयों के लिए कुछ समय निकालना होगा हममें से कोई एक समय निकालकर समर्पित होकर आचार्य जी के साथ बैठकर कुछ points बना ले

अधिवेशन के प्राण -तत्त्व  को परिपुष्ट करने की आवश्यकता है


शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा चार आयाम हैं जिसका मूल है शिक्षा


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने दीनदयाल जी का संक्षिप्त जीवनपरिचय दिया श्री सुरेश सोनी जी की पुस्तकों भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परम्परा 

और 

हमारी सांस्कृतिक विचारधारा के मूल स्रोत 

और दीनदयाल जी द्वारा रचित राष्ट्र जीवन की एक दिशा की चर्चा की हम उनका अध्ययन करें 


परदोष -दर्शन से बचें 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम अपने तत्त्व को पहचानें और उसके प्रकाश को प्रसरित करने का प्रयास करें 

आचार्य जी ने भैया अरविन्द जी का नाम क्यों लिया किन लोगों ने साहित्य को विकृत किया आदि जानने के लिए सुनें

12.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 12 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०४९ वां सार -संक्षेप

 कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥

राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥3॥



प्रस्तुत है रुधिराशन -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  12 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०४९ वां सार -संक्षेप

¹ रुधिराशनः =राक्षस


हमारे सद्ग्रन्थों जैसे  श्रीमद्भगवद्गीता श्रीरामचरित मानस के समान ही हम लोगों के परिवेश में उपस्थित अत्यन्त प्रभावशाली इन सदाचार संप्रेषणों की सन्निधि भी हमारे भावों को उद्दीप्त करती है  भावावेग अद्भुत है यह भावावेग हमारा भगवान् के आधार में भी हो सकता है और राष्ट्र एवं समाज के आधार में भी हो सकता है  हमें संस्कृत करने वाले परिवेश से इतर एक परिवेश ऐसा भी होता है जो हमें विकृत कर सकता है हमें ऐसे परिवेश से बचना चाहिए


युद्धस्थल में सेनाएं आमने सामने हैं 


पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनंजयः।


पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः।।1.15।।

लेकिन युद्धस्थल में विरोध में खड़े  स्वजनों को देखकर अत्यन्त संवेदनशील अर्जुन व्याकुल हो जाता है

वह भीतर तक हिल जाता है 


तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितृ़नथ पितामहान्।


आचार्यान्मातुलान्भ्रातृ़न्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा।।1.26।।



सञ्जय उवाच


तं तथा कृपयाऽविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।


विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः।।2.1।।

संजय ने कहा -- इस प्रकार करुणा एवं विषाद से अभिभूत अत्यन्त व्याकुल अश्रुपूरित नेत्रों वाले अर्जुन से भगवान्  यह बोले 



कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।


अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।2.2।।

मित्र आत्मीय सहयोगी श्रीकृष्ण समझाते हैं ज्ञान -चक्षु बन्द किए अर्जुन को कि 

इस विषम अवसर पर तुम्हें यह कायरता कहाँ से मिली  जो श्रेष्ठ पुरुष  नहीं दिखाते 

इस कायरता से न तो स्वर्ग मिलता है और न कीर्ति 

भगवान् कृष्ण की अवहेलना की तरह भगवान् राम की भी अवहेलना हुई 

किष्किन्धा कांड में 


को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा ॥

कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी॥4॥



प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना।

हनुमान जी पैरों पर गिर गए 

क्योंकि ये शिव का स्वरूप हैं हनुमान जी शिव का अवतार हैं और अर्जुन इन्द्र का स्वरूप हैं दोनों में अन्तर है 

शिव बहुत जल्दी ज्ञान से सम्पन्न हो जाते हैं इन्द्र बहुत भ्रमित रहते हैं 

अर्जुन प्रश्न पर प्रश्न करते रहते हैं 

किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम।


अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते।।8.1।।


ब्रह्म,अध्यात्म,  कर्म अधिभूत अधिदैव अधियज्ञ आदि क्या हैं?


भगवान् समझाते चले जाते हैं 

हम गीता मानस का अध्ययन करें इनके प्रसंगों में प्रवेश करें

हम कमाऊ machine न बनकर मनुष्य बनें 


इसके अतिरिक्त शून्य से शिखर कैसे बनता है भैया प्रमोद जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया  जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का उल्लेख क्यों हुआ आचार्य जी ने कितने विद्यालयों में पढ़ाया है आदि जानने के लिए सुनें

11.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 11 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०४८ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है भीमपराक्रम ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  11 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०४८ वां सार -संक्षेप

¹ भयानक पराक्रम वाला


पूर्णत्व की दिशा दिखाने वाले ये सदाचार संप्रेषण इस कारण भी महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि ये बताते हैं कि संसार केवल भौतिकता नहीं है और भौतिक विकास ही पर्याप्त नहीं है भौतिकता के सारे साधन भी हमें संतुष्ट नहीं करते अध्यात्म हमारी व्याकुलता दूर करता है

ये संप्रेषण हमें याद दिलाते हैं कि हमारा लक्ष्य क्या है 

हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष 


परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं


समर्था भवत्वाशिषाते भृशम् ।।३।।


सारा राष्ट्रीय चिन्तन एक ही स्थान पर जाता है मार्ग भिन्न भिन्न होते हैं 

हमारा राष्ट्र एक  अद्भुत जीवित जाग्रत स्वरूप है इसकी अद्भुतता उन्हें ही समझ में आती है जो देश दुनिया में घूमते रहते हैं हमारा स्वभाव राष्ट्र -भक्ति की ओर होना चाहिए

अपने परिवार के प्रति स्वदेश के प्रति हमारा अनुराग तब और बढ़ जाता है जब हम अपने भावों को पवित्र करते हैं 

हम लोग अपने परिवार से लेकर देश भर में और फिर विश्व भर में इसी अनुराग को उत्पन्न करने की चेष्टा करते हैं हम कहते हैं 

कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम् 

वसुधैव कुटुम्बकम् 

उस अनुराग की उत्पत्ति अपने भावों से होती है और भावों की शुद्धि शिक्षा से होती है प्रेम स्नेह श्रद्धा भक्ति के सोपानों पर चलने वाली शिक्षा संस्कार है 

इस संसार की सांसारिकता को यथार्थ रूप में समझने के लिए किसी व्यक्ति को स्पष्ट दृष्टि नहीं मिली तो वह उपद्रव करता रहता है उस नटखट बालक की तरह जो अपने घर में उप्रद्रव करता रहता है  घर के लोग परेशान रहते हैं उसी तरह देश के नागरिकों का हाल है 

कुलद्रोहियों से इतर यहां के नागरिक इस देश को अपना घर परिवार मानकर अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता दर्शाते हुए उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं और देश के विकास हेतु अपने श्रम अपनी शक्ति समर्थता को समर्पित करते  हैं

शिक्षा इसी कारण महत्त्वपूर्ण हो जाती है पाठ्यक्रम से इतर शिक्षा पर हमें विचार करने की आवश्यकता है 

आचार्य जी ने बहुत व्यवस्थित ढंग से संपादित पं दीनदयाल जी के भाषणों पर आधारित एक पुस्तक 

राष्ट्र जीवन की एक दिशा की चर्चा की 

आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि शिक्षा का कलेवर क्या है और शिक्षा का प्राण क्या है 

इस प्राणिक ऊर्जा को हम यदि समझना चाहते हैं तो हमें अध्ययन स्वाध्याय करना होगा परस्पर का संपर्क करना होगा 

शिक्षा के कारण समस्याएं उत्पन्न होती हैं लेकिन उनका समाधान भी शिक्षा में ही है 

यदि सुशिक्षित समाज होता तो चुनावों में  वह सही पार्टी को चुनता 

सुशिक्षित समाज ही शासन प्रशासन को सही सुझाव देने में सक्षम है 

समाज को सुशिक्षित करने में हमारी सक्रियता आवश्यक है 

आचार्य जी कहते हैं शिक्षक में आत्मीयता विकसित होनी चाहिए 

वैसे तो शिक्षक में माता पिता और गुरु का समन्वय होता है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्री हरमेश जी का नाम क्यों लिया भैया पुनीत जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

10.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 10 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०४७ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है कृताभय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  10 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०४७ वां सार -संक्षेप

¹भय से सुरक्षित

भय भ्रम से सुरक्षित रहने का उपाय है अध्यात्म 

और इस अध्यात्म की महत्ता दर्शाते ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं जिनके सदाचारमय विचार हम  भारत में जन्म लेकर भारत के होने वाले अध्यात्मवादियों को प्रेरित करते हैं  इन भाव -यज्ञों से हमें संसार, जो उत्थान पतन अपने साथ लेकर जीवित रहता है,में संकटों का सामना करने का उत्साह मिलता है और इस संसार में हमारा देश अद्भुत है और निःसंदेह विधि -रचना का प्रतिनिधित्व करता है 


यह देश विधाता की रचना का प्रतिनिधि है 

सत रज तम के साथ बनी युति सन्निधि है 

परमात्म तत्त्व की लीला का यह रंगमंच 

इसमें  दर्शित होते जगती के सब प्रपंच 

यह जन्म जागरण मरण सभी का द्रष्टा है 

यह आदि अन्त का वाहक शिव है स्रष्टा है

हम हुए अवतरित पले बढ़े तम से जूझे 

विश्रान्त शान्त रहकर रहस्य हमको सूझे


रहस्यों की सूझ बूझ ही वेदों की अभिव्यक्ति है ज्ञान का विस्तार और तत्त्व का चिन्तन है


आचार्य जी ने गुरुगोविन्द सिंह के शिष्य बन्दा बैरागी की शौर्य -गाथा बताई 


बंदा बैरागी लक्ष्मण देव, माधवदास, वीर बंदा बैरागी और बंदा सिंह बहादुर के नाम से प्रसिद्ध रहे हैं। इस धर्म योद्धा ने सत्य , देशभक्ति, वीरता और त्याग के पथ पर चलते हुए नौ जून १७१६ को मानव उत्थान यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी।

संघ की शाखाओं में गाया जाने वाला निम्नांकित गीत अश्रुपात करा देता है 

नख नख में ठोंकी गई कील भालों से छलनी हुआ बदन...



सिखों के साथ मजाक करने का एक लम्बा सिलसिला चला जो आत्महत्या के समान है 

अपनों को दुत्कारने और गैरों को गले से लगाने का इससे भयावह और क्या परिणाम हो सकता है जैसा इस समय दिख रहा है वर्तमान में आया चुनाव परिणाम 

भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला इसके बाद भी कल अन्य सहयोगी दलों की सहायता से नरेन्द्र मोदी ने अपनी तीसरी पारी की शुरुआत कर दी 

मोदी ही सब कुछ कर डालें ऐसी सोच गलत है हर व्यक्ति को मोदी बनने की आवश्यकता है 

शिव बनकर शिव की उपासना करें 

देश और समाज के लिए कार्य करें  समाज का जो हिस्सा आपके संपर्क में आता है उसमें हौसला भरें उसे भय भ्रम मुक्त करें हम समस्या न बनें न उन समस्याओं का हिस्सा बनें 

हम समाधान खोजें 

हिन्दू समाज जो बंटा है उसे एकजुट करने का प्रयास करें

हमें शान्ति तभी मिलेगी जब हमारा आस पड़ोस शान्त होगा  विश्वासी होगा यदि वह निराश हताश है तो शान्ति नहीं मिलेगी हमें इसके लिए संगठित भी होना होगा 

देशहित के सभी कार्यों में भाग लें 

संस्कृति सबकी एक चिरंतन खून रगों मे हिंदू हैं

विराट सागर समाज अपना हम सब इसके बिंदू हैं


राम कृष्ण गौतम की धरती, महावीर का ज्ञान यहां

वाणी खंडन मंडन करती, शंकर चारों धाम यहां

जितने दर्शन राहें उतनी, चिंतन का चैतन्य भरा

पंथ खालसा गुरू पुत्रों की बलिदानी यह पुण्य धरा....

हम अपने साहित्य सद्ग्रंथों की ओर  श्रद्धा के साथ उन्मुख हों 

इसके अतिरिक्त एक यज्ञकर्ता को लोभी लालची बताने के पीछे आचार्य जी का क्या अभिप्राय है अपने सरौंहां के पास वाले गांव में घटी दुर्घटना क्या थी जानने के लिए सुनें

9.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०४६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है पुण्यकर्मन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  9 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०४६ वां सार -संक्षेप

¹स्तुत्य कार्यों को करने वाला

स्तुत्य कार्यों की एक लम्बी सूची है आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम सनातन जीवन के प्रति विश्वास  में वृद्धि करें शुद्ध अध्यात्म बोध की अनुभूति करें अपनों के प्रति विश्वास करें अपने पूर्वजों के प्रति गर्व की अनुभूति करें

सितम्बर में हम लोग राष्ट्रीय अधिवेशन करने जा रहे हैं जिसके लिए हम लोग अत्यन्त उत्साहित हैं और सुस्पष्ट दिशा में आगे बढ़ रहे हैं 

योजनाएं बना रहे हैं 

अधिवेशन में हम शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा पर चर्चा करने जा रहे हैं जिसके लिए अभी से तैयारी प्रारम्भ होनी चाहिए 

शिक्षा अर्थात् संस्कार 

शिक्षा तो जन्म के पूर्व से ही प्रारम्भ हो जाती है 

मां प्रथम शिक्षिका है 

हमें इसकी  चिन्ता करनी है कि मां का पालन पोषण किस प्रकार हुआ है वर्तमान में जो बेटियां हैं वही भविष्य की माताएं हैं बेटे भारत के भविष्य के कर्णधार हैं

उन बेटे बेटियों को संस्कारित करने की आवश्यकता है 

परिवार के संस्कार को शास्त्रीय पद्धति से व्यावहारिक रूप में किस प्रकार संयुत किया जाए इस पर चिन्तन आवश्यक है  पूजा पाठ भोजन आदि  शिक्षा के विषय हैं 

शिक्षा में मात्र पाठ्यक्रम ही नहीं आता है 

स्वास्थ्य का अर्थ GYM जाना ही नहीं है 

जो मन से व्याकुल है वह स्वस्थ नहीं है स्वस्थ व्यक्ति को अपने शरीर का भान ही नहीं रहता 

शक्तिमत्ता शरीर का स्वभाव होना चाहिए

 इसी प्रकार स्वावलंबन 

और सुरक्षा के विषय में आचार्य जी ने विचार दिए 

सुरक्षा में बाहुबल आत्मबल संगठन -बल आता है हमें आवश्यक अस्त्र शस्त्र चलाने का कौशल भी आना चाहिए 

इन सबका विस्तार हो सकता है इसके लिए चिन्तक विचारक बैठकें करें उन बैठकों से जो सार निकलेगा उसका  अधिवेशन में उल्लेख होगा



भाव की भाषा जहां व्यवहार के पथ पर चली है

और सात्विक शक्ति के चैतन्य की झंकृति मिली है

वहीं सन्निधि का अनोखा प्रेममय संबल मिला है 

सहज प्रेमी साथियों का हर तरह का बल मिला है


इसी बल को ज्ञानियों ने संगठन का नाम देकर

और मानव को विधाता ने यशस्वी काम देकर

जगत के झंझा झकोरों पर विजय का पथ दिखाया

और मानव को मनन चिन्तन भरा जीवन सुझाया


इस समय बहुत सी समस्याएं हमारे सामने हैं आचार्य जी ने इन्हीं समस्याओं पर आधारित अपनी एक कविता सुनाई


हमारी भाषा संगठनात्मक रहे कर्म उत्साहपूर्ण रहें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बृहस्पतिवार को होने वाली किस बैठक की चर्चा की जानने के लिए सुनें

8.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०४५ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है पृथु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  8 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०४५ वां सार -संक्षेप

¹ महत्त्वपूर्ण



कर्मशीलता अनिवार्य है



अत्यन्त महत्त्वपूर्ण इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से  भावसम्पन्न कर्मयोद्धा आचार्य जी हमें परामर्श देते हैं कि हम आत्मशोध अवश्य करें केवल परिस्थितियों से ही आप्लावित न हों अपने लिए भी समय निकालें भय भ्रम से दूर रहें 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्  का भाव अद्भुत है 


आचार्य जी  नित्य प्रयास कर रहे हैं कि हम अत्यन्त संवेदनशील चिन्तनशील राष्ट्र -भक्त कर्मशील भी बनें हमें कर्मशीलता में बिना संशय के उद्यत होना चाहिए क्योंकि प्रायः यही होता है कि चिन्तनशील व्यक्ति कर्मशील नहीं होता

वह अपने में ही मस्त रहता है 

 कर्मशीलता से दूर के सुविधाभोगी प्रवचनकर्ता, chalk घिसने वाला master आदि  उदाहरण हैं 

किन्तु आचार्य जी ने मात्र शिक्षक का ही दायित्व पर्याप्त नहीं समझा कर्मशीलता के उनके अनेक उदाहरणों से हम परिचित हैं 

आचार्य जी ने एक प्रसंग बताया कि किस प्रकार रामजन्मभूमि आंदोलन 

के समय लखनऊ में अपनी कर्मशीलता का परिचय उन्होंने दिया था

भारत के इतिहास में कर्मशीलता के  अनेक उदाहरण हैं अस्सी वर्ष की अवस्था में वीर कुंवर सिंह  ने युद्ध किया चार बेटे खोने के बाद भी गुरुगोविन्द सिंह जूझते रहे

भारतवर्ष संपूर्ण विश्व के विद्रूप रूपों से संघर्ष करने में सदैव सक्षम रहा है रह रहा है और आगे भी रहेगा 


प्रभंजन² कभी भी संदेश देकर के नहीं आता 

किसी भी भांति का अवरोध उसको टुक नहीं भाता 

मगर हम हैं सदा अवरोध ही बनते रहे उसके

यही उसका हमारा जन्म जन्मों का रहा नाता

² तूफान

यह उनको समझाने की आवश्यकता है जो सुविधाओं में बैठे उपदेश करते रहते हैं 

ऐसा ही उपदेश अर्जुन भगवान् श्रीकृष्ण को देने लगा 

आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो


नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद।


विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं


न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्।।11.31।।


अर्जुन कहते हैं 

कृपया मुझे यह बताइये कि  इतने उग्ररूप वाले आप  हैं कौन ? हे देवों में श्रेष्ठ ! आपको नमस्कार 

 आप प्रसन्न हो जाएं  मैं तत्त्व से जानना चाहता हूँ और उसका कारण यह है कि मैं आपकी प्रवृत्ति को नहीं जानता हूं ।

तो 

श्री भगवान् कहते हैं 


कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो


लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।


ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे


येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।11.32।

 मैं सारे लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ काल हूँ और इस समय मैं इन सब लोगों का संहार करने के लिए ही यहाँ आया हूँ। तुम्हारे विपक्ष में जो योद्धा खड़े हैं  वे सभी तुम्हारे युद्ध किये  बिना भी नहीं रहेंगे।

जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥


करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥


आचार्य जी ने कहा कि राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए  निष्क्रियता त्यागनी होगी परिश्रम करना होगा पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की भी आवश्यकता होगी 

इससे हमें यश की तो प्राप्ति होगी ही सुख शान्ति भी मिलेगी 

धर्म की संस्थापना आवश्यक है अपनी अपनी कर्म -ज्योति बुझने न दें संपूर्ण विश्व को आर्य बनाने का अपना संकल्प न भूलें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वैभव सचान जी का नाम क्यों लिया किन्ही शरद मिश्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

7.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 7 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०४४ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है पिञ्ज -पुञ्ज ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  7 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०४४ वां सार -संक्षेप

¹ शक्ति का पुंज


शक्ति के अद्भुत पुंज कर्मशील आचार्य जी नित्य हमें इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से जाग्रत करते हैं हमारी निराशा दूर करते हैं हमें ऊर्जस्वित करते हैं हमें आत्मानुभूति कराते हैं कि हम कहें 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

 लम्बे समय से साधना कर रहे आचार्य जी जो हमारी क्षमताओं को जानते हैं का यही प्रयास रहता है कि हम अपनी क्षमताओं का सही उपयोग कर श्रद्धा और भक्ति के साथ बिना दुविधाग्रस्त हुए राष्ट्र -कर्म समाज -कर्म के लिए उद्यत हों 

वे स्मरण कराते हैं कि 

हम समाज को शक्ति भक्ति विश्वास राष्ट्र -निष्ठा प्रदान करने के लिए प्रतिज्ञा कर चुके हैं यह ध्यान रखें 



नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे इति

त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम् ।

महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे

पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।१।।


हे मातृभूमि मैं आपको प्रणाम करता हूं क्योंकि आप की ही गोद में मैं सुखपूर्वक पल रहा हूं 

हे मंगलमयी मां आपकी सेवा में मेरी काया पतित हो



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विस्तार होता चला गया वह किसी राजनैतिक दल में सम्मिलित नहीं हुआ इस पर प्रतिबन्ध भी लगे 

इस संस्था की राष्ट्र -निष्ठा संदेह से परे रही है राष्ट्र -निष्ठा की ज्वाला जिनमें प्रज्वलित होती है वह कभी बुझती नहीं 

कर्मयोद्धा भगवान् आदि शंकराचार्य ने चार धाम स्थापित किए अनेक ग्रंथों की रचना कर डाली अनेक यात्राएं की अनेक तर्कशास्त्रियों को पराजित किया तब जाकर सनातन धर्म जीवित रह पाया समाज को जिस तरह  उन्होंने जाग्रत किया यह अद्वितीय उदाहरण है 

समाज को ही जाग्रत करने के लिए हम राष्ट्रीय अधिवेशन करने जा रहे हैं आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इसके लिए आत्मदर्शन की क्षुधा वाले हम  राष्ट्र -भक्त बिना देर लगाए उद्यत हों 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने एक कर्महीन शिष्य वाला कौन सा प्रसंग सुनाया भैया मनीष जी के परिवार की किसी महिला का अयोध्या जाने वाला क्या प्रसंग है हमें किस झटके से उबरना है आदि जानने के लिए सुनें

6.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 6 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 यह वेद विदों का देश तपस्या सेवा इसकी निष्ठा है 

इसका मंगल विश्वास जगत ईश्वर की प्राण प्रतिष्ठा है 

यह जगन्नियन्ता का विश्वासी पौरुष की परिभाषा है 

संपूर्ण जगत के संरक्षण की एकमात्र शिव आशा है


प्रस्तुत है शैलसार ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  6 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०४३ वां* सार -संक्षेप

¹ चट्टान की तरह दृढ़


चट्टान की तरह दृढ़  रहते हुए  हम अपनी परम्परा पर विश्वास रखें अपने पौरुष के प्रति विश्वस्त रहें सूझबूझ के साथ कदम बढ़ाएं अपने परायों की सही पहचान करें अपने वास्तविक सच्चे इतिहास से परिचित हों और अपनों को परिचित कराएं 

इसके लिए आचार्य जी नित्य प्रयत्नशील रहते हैं


जहां श्रम शक्ति सेवा साधनामय प्रेम होता है

जहां  निज देश के प्रति प्रेम निष्ठा नेम होता है

जहां अपनों परायों की सही पहचान होती है

जहां चर्चा कथा में पूर्वजों की शान होती है

वहां हरदम सुमंगल गीतमय व्यवहार होता है

कि हर दिन दिव्य मंगलमय  मधुर त्यौहार होता है



 प्रेरक उद्गारों और सार्थक विचारों से युक्त ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं


हम भारतीयों का अभिप्रेत कभी भी निराश रहना नहीं रहा है 

नर हो, न निराश करो मन को


करके विधि वाद न खेद करो 


निज लक्ष्य निरंतर भेद करो 


बनता बस उद्यम ही विधि है 


मिलती जिससे सुख की निधि है 


समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को 


नर हो, न निराश करो मन को 


कुछ काम करो, कुछ काम करो


हम व्याकुल न रहें आश्वस्त रहें कि भाजपा ही सत्ता में आ रही है देश का भविष्य मंगलमय है 

अच्छे फैसले होंगे सरकार में मदान्ध लोगों की आंखें खुलेंगी मूर्खों की समीक्षा होगी 

ढोंगी अपने कुकृत्यों में सफल नहीं होंगे जयचन्द सदैव लांछित थे लांछित रह रहे हैं और लांछित ही रहेंगे 


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम शीशगंज गुरुद्वारे के दर्शन करें 

हिन्दू धर्म की रक्षा का यह अप्रतिम उदाहरण है 

दुर्भाग्य है कि हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अनगिनत बलिदान देने वाले सिखों को हम हिन्दुओं से अलग करते हुए कहते हैं 

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई 


सितम्बर में होने जा रहे राष्ट्रीय अधिवेशन से अपने भीतर आग जलनी चाहिए 

भावाग्नि संकल्पाग्नि की हम अनुभूति करें देशभक्ति की क्षुधा उत्पन्न करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गुरु तेग बहादुर का उल्लेख क्यों किया

किसने मदमत्त होकर अपनी भविष्यवाणी को सही बताया जानने के लिए सुनें

5.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०४२ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है गुण्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  5 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०४२ वां सार -संक्षेप

¹ गुणों से युक्त



हम जागरूक लोग अपने अपने स्थान पर अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए यदि राष्ट्रोन्मुखी जीवन जिएंगे तो राष्ट्र का विकास रुकेगा नहीं और विश्व में अपनी साख कम नहीं होगी

 क्योंकि  भारत का नेतृत्व जिसके हाथ में है वह गुण्य,धैर्यशाली, समझदार, राजनैतिक दृष्टि से चतुर, व्यावहारिक बुद्धियुक्त और सुयोग्य है

हम चाहते भी यही हैं कि हमारा राष्ट्र वैभवशाली बने 

परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्

जो हमारे राष्ट्र के साथ है वह हमारा अपना है जो राष्ट्र के विरुद्ध है वह पराया है यही भाव हम श्री राम के चरित्र से अपने भीतर प्रवेश कराते हैं 

हम सहज कर्म करते चलें 

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्। सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृता:॥ १८/४८

उतार चढ़ाव आते रहते हैं 


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार। संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥ 


सर्वत्र जिसकी बुद्धि आसक्तिरहित है, जिसने शरीर को अपने वश में कर रखा है, जो स्पृहा से रहित है, वह व्यक्ति सांख्ययोग के द्वारा नैष्कर्म्य-सिद्धि को प्राप्त हो जाता है।


संसार के कार्य व्यवहार तो हम करें लेकिन उनमें लिप्त न हों 

आचार्य जी ने कल ४ जून को आये चुनाव परिणाम की चर्चा करते हुए यह  भी बताया कि उत्तर प्रदेश के संगठन में कुछ लोभी लालची लोगों के प्रविष्ट होने से ऐसा परिणाम आया

ऐसे में हम संवेदनशील लोगों का धैर्य बना रहे इसके लिए  आत्म अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बन जाता है 

वाणी जब भाव बनकर भीतर प्रविष्ट होती है तो आनन्द की ऊर्मियां उठने लगती हैं 


न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:


न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥3॥


न मुझे घृणा है, न लगाव , न मुझे लोभ है, न मोह

न अभिमान है, न ईर्ष्या

मैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूं

मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

हमारा आनन्द लगातार बना रहे इसका प्रयत्न हम सब करें 

आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि संन्यास में भी मोक्ष की कामना रहती है संसार में हैं तो कामना तो रहेगी ही जब वह भावना के रूप में रहती है तो ऊपर उठेगी ही वासना के रूप में हानि पहुंचाती है 

सिद्धि प्राप्त होने पर प्रदर्शन न करें यह साधना में बाधक है 

अब हम अपने राष्ट्रीय अधिवेशन पर ध्यान दें योजनाएं बनाएं यात्राएं करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मुकेश जी भैया अरविन्द जी  भैया मोहन जी का नाम क्यों लिया धन्ना भगत की चर्चा किस संदर्भ में आई जानने के लिए सुनें

4.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 जून 2024 (जयेष्ठ मास का द्वितीय मंगलवार )का सदाचार सम्प्रेषण १०४१ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है अलङ्करिष्णु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  4 जून 2024 (जयेष्ठ मास का द्वितीय मंगलवार )का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०४१ वां सार -संक्षेप

¹ सजाने की क्रिया में कुशल


हमारे विचारशील ऋषियों ने शब्द को ब्रह्म माना है शब्द में शक्ति है शब्द में स्वर है और स्वर में बल होता है 

हमारे ऋषियों ने वेद को पुरुष कहा है और जब उसे पुरुष कहा तो उसके अंग भी अनिवार्य हैं  इस प्रकार शिक्षा को नासिका कहा गया है 

नासिका शरीर की शोभा तो है ही यह प्राणों के संचालन का आधार भी है  शिक्षा का वास्तविक अर्थ संस्कार है विचार संयम स्वाध्याय साधना है शिक्षा का अर्थ है सिद्धि के तत्त्व को समझना उसी शिक्षा का आधार लेकर हम शिक्षार्थी आचार्य जी से सदाचारमय विचार ग्रहण कर रहे हैं जिनसे हम शक्ति सामर्थ्य कर्मकौशल प्राप्त करते हैं हमारे राष्ट्र के प्रति प्रेम में वृद्धि होती है 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इन संप्रेषणों से जो हमें संकेत रूप में प्राप्त होता है उसका विस्तार हम करें 

 शैक्षिक प्रयोगों के लिए हम उन्नाव के अपने विद्यालय सरस्वती विद्या मन्दिर इंटर कालेज को चुन सकते हैं शिक्षा एक गम्भीर विषय है इस पर चर्चा होनी ही चाहिए 

आज मतगणना है  आज लोकतन्त्र पर्व का समापन दिवस है 

भगवान् राम के जन्म 


जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।

चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥ 190॥

की तरह योग, लग्न, ग्रह, वार,तिथि सब अनुकूल लग रहे हैं 

आचार्य जी ने स्वस्थ लोकतन्त्र को स्पष्ट किया

ठगी करके लोभ लालच के द्वारा चुनाव जीतना अच्छा नहीं होता जनमानस यदि शिक्षित है तो कभी ठगी का शिकार नहीं होगा

हम मात्र पूजा पाठ कर निश्चिन्त रहने में विश्वास नहीं रखते हैं हम पूजा पाठ राष्ट्र के लिए करते हैं हम अपने राष्ट्र को परम वैभव तक पहुंचाने का प्रतिदिन सामर्थ्य चाहते हैं 

देवताओं के साथ दानवों का भी अस्तित्व है तुलसीदास जी कहते हैं 


देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब।

बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब॥


देवता, दानव , मनुष्य, नाग, पक्षी, प्रेत, पितर, गंधर्व, किन्नर एवं निशाचर सभी को मैं प्रणाम करता हूँ। अब सब मुझ पर कृपा करें


आचार्य जी ने राम नाम के जप का महत्त्व बताया राम का नाम विश्वासपूर्वक लें आचार्य जी ने बताया विश्वास में बहुत बल होता है यही आत्मविश्वास में परिवर्तित हो जाता है अविश्वासी व्यक्ति भ्रमित रहता है आचार्य जी ने विश्वासी अविश्वासी वाला पेड़ से कूदने वाला प्रसंग बताया

इसके अतिरिक्त 

रमखुदय्या क्या है आज अपने गांव में कौन सा कार्यक्रम है जानने के लिए सुनें

3.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 3 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०४० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है अलघुप्रतिज्ञ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  3 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०४० वां सार -संक्षेप

¹ गम्भीर प्रतिज्ञा करने वाला

हमारे कुछ लक्ष्य हैं 

पहला है 

आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च


यह मानवजीवन के एक ही साथ दो उद्देश्यों को निर्धारित करता है- अपने मोक्ष  के साथ संसार के कल्याणार्थ कार्य करना।

दूसरा 

कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम् 

तीसरा 

वसुधैव कुटुम्बकम् 

और चौथा है 

आत्म से परमात्म तक की यात्रा को सुविचारित ढंग से करना 

इन सबके लिए प्रकृति और परिस्थितियां हमारे अनुकूल रहती हैं क्योंकि हम भारतवर्ष में जन्मे हैं 

किन्तु हम भ्रमित रहते हैं

क्योंकि हमें भ्रमित किया गया हमारी शिक्षा को विकृत किया गया 

यह सत्य है कि शिक्षा से ही समस्याओं का समाधान संभव है शिक्षा अर्थात् संस्कार 

और संस्कार का अर्थ है विचारों को परिपोषित करने का एक सात्विक उपाय 

शिक्षा के ऊपर हमारे देश के पूर्वजों ऋषियों चिन्तकों विचारकों ने बहुत विस्तृत चिन्तन मनन किया है और प्रकाशन भी किया है 

दुर्भाग्य से हम इस चिन्तन मनन प्रकाशन से ठीक प्रकार से अवगत नहीं हो पाए और न ही अपनी  पीढ़ियों  को अवगत करा पाए हमने कमाना खाना उद्देश्य बना लिया 

चूंकि हम कमाने खाने से भी संतुष्ट नहीं रहते हैं 

तो हम मानसिक विकास व्यक्तित्व विकास की चाह में दौड़ते हैं  व्यक्ति के भीतर जो व्यक्तित्व छिपा है उसकी खोज में हम सब हैं यह आनन्दमय पक्ष है जिसके शिक्षा,स्वास्थ्य, स्वावलम्बन और सुरक्षा सोपान हैं


हमें इन्हें विस्तार से समझना चाहिए भ्रमित नहीं रहना चाहिए


आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि अपने प्राण को हम उदास न रखें 

इसके साथ अपने वातावरण पर्यावरण परिवेश को पहचानें 

साफ सफाई का ध्यान रखें संतुलन बैठाकर चलें

हम सितम्बर में राष्ट्रीय अधिवेशन करने जा रहे हैं जिसके माध्यम से हम समाज के निराश हताश वर्ग की निराशा को दूर करने का प्रयास करेंगे

उसे विश्वास दिलाएंगे कि हर जगह अंधकार ही नहीं है कुछ ऐसे लोग हैं ऐसी संस्थाएं हैं जो अंधकार दूर करने हेतु प्रयासरत हैं 

समाज की जागृति के लिए होने जा रहे इस अधिवेशन हेतु  अत्यधिक धन की आवश्यकता है जिसके लिए हम अभियान चलाएं 

मर जाऊ मांगू नहीं अपने तन के काज परमार्थ के कारन मोहे ना आवे लाज 


इसके अतिरिक्त स्वामी विवेकानन्द का रामकृष्ण परमहंस ने किस प्रकार मार्गदर्शन किया आचार्य जी ने आम के वृक्ष की चर्चा क्यों की कल सम्पन्न हुई बैठक के विषय में क्या कहा जानने के लिए सुनें

2.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 2 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०३९ वां सार -संक्षेप ¹ सदाचारी

 प्रस्तुत है सद्वृत्त ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  2 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०३९ वां सार -संक्षेप

¹ सदाचारी


इन तात्त्विक और यथार्थपरक सदाचार संप्रेषणों से हम नित्य उत्साहित हो जाते हैं यह हनुमान जी महाराज की महती कृपा है इन संप्रेषणों का गतिशील रहना अद्भुत है हमारे लिए लाभकारी है 

भावात्मक संसार में किसी विषय की या वस्तु की गति जब बाधित होती है तो वह विकृत हो जाती है 

जहां गति नहीं वहां जीवन नहीं

हाल में ही चुनाव सम्पन्न हुए 

भैया पवन मिश्र जी की एक टिप्पणी का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि मूर्खों का लोकतन्त्र क्या है 

संस्कारी वर्ग वोट डालने में उदासीन हो जाता है इस कारण शिक्षा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो जाती है शिक्षा संस्कार है विद्या ज्ञान है 

जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैर्द्विज उच्यते। विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रिय उच्यते॥ - (अत्रिसंहिता, श्लोकः १४०)



ब्राह्मण पिता के द्वारा ब्राह्मणी माता के गर्भ से उत्पन्न बालक जन्म से ब्राह्मण कहलाता है ।उपनयन आदि संस्कारों के द्वारा उस ब्राह्मण में द्विजत्व की पात्रता आ जाती है तत्पश्चात् वह    द्विज  जब  साङ्गोपाङ्ग वेद का अध्ययन/ अध्यापन करता  है और  वेद शास्त्र के मनन  चिन्तन से जब वह वैदिक सिद्धान्त के रहस्यों को भली भांति जान  लेता है तब वह विप्र कहलाता है ।  इन सब योग्यताओं से सम्पन्न पुरुष श्रोत्रिय  होता है ।

द्विज विप्र श्रोत्रिय सभी शिक्षित हैं यह कोई भी हो सकता है किसी भी कुल में जन्म लेने वाला 

और ऐसे अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं जिसमें व्यक्ति परिश्रम से शिक्षित हुआ 

अच्छे लोग प्रशंसा के पात्र हैं लेकिन यदि उनसे भी त्रुटि होती है तो शिक्षक का धर्म है कि उस त्रुटि के बारे में उस अच्छे व्यक्ति को संकेत करे ऐसा शिक्षक गुरु है 

गुरु का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण दायित्व होता है गुरु वशिष्ठ ने ही परामर्श दिया कि भरत के बिना ही राम को राज्य दिया जा सकता है क्यों कि यह मुहूर्त सही है अनहोनी भी गुरु ही संभालते हैं 



सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।

हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ॥171॥

भरत का धीरज बंध जाता है किन्तु गुरुत्व के वरण के लिए कर्म का तप आवश्यक है यह कर्म की तपस्या चिन्तन मनन अभ्यास के बाद  आती है 

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अपनी अपनी समीक्षा करें अपनों की समीक्षा करें 

संशोधन करें कठिनाइयों से घबराएं नहीं आगे चलते जाएं 

संसार में समस्याओं के साथ संघर्ष करें आपस में बांटें आपस में बांटने पर हल्कापन लगेगा रामकथा  इसी कारण हमें सुकून देती है कि भगवान् राम संघर्षों से घबराए नहीं उन्हें केवल अपना लक्ष्य दिखा 


रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु। तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥ 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रमोद जी का नाम क्यों लिया बिजली से संबन्धित क्या प्रकरण था जानने के लिए सुनें

1.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 पराए वे नहीं जो कोख के जाए नहीं होते, 

पराए वे सभी जो भावमय साए नहीं होते, 

जगत का प्रेम अपनापन बड़े सौभाग्य से मिलता, 

(क्योंकि)

जगत के जड़ जटिल जंजाल सबके साथ ही सोते



प्रस्तुत है ज्ञान -निदाधकर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  1 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०३८ वां* सार -संक्षेप

¹ निदाधकरः =सूर्य


आचार्य जी इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से नित्य हमें उत्साहित उत्थित करते हैं ताकि व्याकुलता में जीवन जीने की अपेक्षा हम, जो बुद्धि से विकसित मन से जाग्रत  और साधना के द्वारा सिद्धि तक पहुंचने की प्रक्रिया में रत हैं, भाव विचार और क्रिया को राष्ट्र हेतु अर्पित करने के लिए कृतसंकल्प हैं,जो मानते हैं कि चूंकि संसार में विकार और विचार साथ साथ चलते हैं इसलिए शुद्धि का प्रयास करते रहना ही उचित है,आनन्द की अनुभूति करते हुए जीवन जिएं

ये संप्रेषण हमारे लिए हमारे परिवार, जो एक भावनात्मक प्रेमात्मक विश्वासात्मक संबन्धों का नाम है, 

 के लिए हितकर हैं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराते हैं

हमारे भीतर अवस्थित तत्त्वरूप ईश्वरत्व का अनुभव कराते हैं 

 हमें इनसे लाभ लेना चाहिए 

वल्लभाचार्य जी कहते हैं 

सत् चित् और आनन्द नामक त्रिगुणात्मक शक्तियों के द्वारा सृष्टि की संरचना हुई है जड़ में सत् है मनुष्य में सत् और चित् है लेकिन परमात्मा में सत् चित् और आनन्द तीनों शक्तियां हैं अतः वह सच्चिदानन्द है

श्री रामचरित मानस हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी है इसके अन्तिम भाग में शिव जी कहते हैं 


गिरिजा संत समागम सम न लाभ कछु आन।

बिनु हरि कृपा न होइ सो गावहिं बेद पुरान॥125 ख॥

अर्थात् 

हे गिरिजे! संत समागम जैसा दूसरा कोई लाभ नहीं है किन्तु संत समागम  श्री हरि की कृपा के बिना नहीं हो सकता, ऐसा वेदों और पुराणों में है

परमात्मा की कृपा के बिना हम अच्छे काम भी नहीं कर सकते इसलिए परमात्माश्रित रहना चाहिए 


जहँ लगि साधन बेद बखानी। सब कर फल हरि भगति भवानी॥

भगति अर्थात्  भक्ति (जैसे हरि -भक्ति, शिव -भक्ति, राष्ट्र -भक्ति) जहां संयुत है वहां लोभ लाभ अलग हो जाते हैं और जिस भक्ति में लोभ लाभ संयुत रहते हैं वह व्यापार है 



सोइ सर्बग्य गुनी सोइ ग्याता। सोइ महि मंडित पंडित दाता॥

धर्म परायन सोइ कुल त्राता। राम चरन जा कर मन राता॥1॥


जिसका मन प्रभु राम ( वे हमारे आदर्श हैं क्योंकि राम का जीवन सारी परिस्थितियों को समेट कर उसका समाधान प्रस्तुत करता है) के चरणों में लगा हुआ है, वही सर्वज्ञ,गुणी,ज्ञानी है। वही पृथ्वी का भूषण, पण्डित,दानी है। वही धर्मपरायण, कुल का रक्षक है



धन्य देस सो जहँ सुरसरी। धन्य नारि पतिब्रत अनुसरी॥

धन्य सो भूपु नीति जो करई। धन्य सो द्विज निज धर्म न टरई॥3॥



वह देश धन्य है, जहाँ मां गंगा  हैं, वह स्त्री धन्य है जो पतिव्रता है वह राजा धन्य है जो न्याय करता है और वह ब्राह्मण धन्य है जो स्वधर्म से नहीं डिगता है



 आचार्य जी ने सीता मां का धरती में समाना, अनुकूलता, द्विजत्व  आदि का अर्थ स्पष्ट किया

इसके अतिरिक्त भैया सौरभ राय भैया अनिल महाजन भैया आकाश मिश्र का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिए सुनें