30.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी/अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२० वां* सार -संक्षेप

 जागते रहो भारती भाव के विश्वासी

अँधियार घेर कर बढ़ता आता चतुर्दिशा

वैभव की सीमा नहीं अभावों का न अन्त 

जाग्रत विवेक से भाँप बढ़ें पग उषा निशा ।

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी/अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 30 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२० वां* सार -संक्षेप



भगवान् शङ्कराचार्य का जन्म ऐसे समय में हुआ जब भारत में विषम स्थितियां थीं वैदिक सनातन धर्म अनेक प्रापंचिक कर्मकांडों में उलझ गया था धर्म कर्म विवाद चरम पर थे 

ऐसे महापुरुष  ईश्वर का अंश लेकर अवतरित होते हैं और अपनी शक्ति बुद्धि विचार के अनुसार अंधकार दूर कर देते हैं इन्हीं महापुरुषों के कारण हमारा सनातनत्व अनेक झंझावातों को झेलने के बाद भी विनष्ट नहीं हुआ

शङ्कराचार्य कहते हैं कि भक्ति ज्ञानोत्पाद का प्रधान साधन है भक्ति और शक्ति एक हैं 

मोहम्मदी चिन्तन, जिसमें माना जाता है कि ईश्वर के अतिरिक्त और कुछ नहीं है और इसे जो नहीं मानता उसे नष्ट कर दो, में और सनातनत्व में भेद है


किसी भी विचार को काटने के लिए उससे अधिक सशक्त विचारों की जरूरत पड़ती ही है


हम लोगों का आज का युगधर्म शक्ति उपासना है शिव और शक्ति की विशिष्टता अवर्णनीय है

हमें जानना चाहिए कि शक्ति क्या है 

प्रत्येक संप्रदाय के उपास्य देव की एक शक्ति है वह देव उस शक्ति से ही संसार का संचालन करता है भगवान् कृष्ण ने अपनी द्विधा प्रकृति माया की चर्चा अनेक बार की है


राधाकृष्ण, शिवाशिव ,लक्ष्मीनारायण, सूर्यसावित्री, सीताराम आदि अनेक उदाहरण हैं जो सिद्ध करते हैं कि शक्ति और तत्त्व का सम्मिश्रण अद्भुत है हमें ये सब जानकर नई पीढ़ी को भी इन सबसे अवगत कराना चाहिए ताकि वह केवल उदरपूर्ति में ही व्यस्त न रहे हमें आत्मस्थ भी होना चाहिए केवल धन की ही चर्चा गलत है 

संसार के प्रपंचों की सीमा नहीं है हमें अपने लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए

केवल पुत्र को संतान को पैसा कमाने की machine बनाना गलत है पुत्र को किस प्रकार प्रकट किया जाए तो बालकांड में है 


सृंगी रिषिहि बसिष्ठ बोलावा। पुत्रकाम सुभ जग्य करावा॥

भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें। प्रगटे अगिनि चरू कर लीन्हें॥

ऋषि वशिष्ठ ने श्रृंगी ऋषि को बुलवाया और उनसे शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आज कौन सी कविता सुनाई जिसमें दशरथ यह भूल गए कि  वे शम्बरारि भी थे का उल्लेख है आचार्य श्री जे पी जी का कौन सा प्रसंग बताया 

जानने के लिए सुनें

29.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 29 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२१९ वां* सार -संक्षेप

 भारत का कण कण हिंदू हिंदुत्व सनातन संस्कृति है 

बाकी सब मजहबोन्माद उद्दण्ड भाव की विकृति है, 

यह विश्वास हमारे तन मन जीवन का शृंगार बने 

इस विश्वास शौर्य संबल के साथ प्रेम का राग सुनें। 



प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 29 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२१९ वां* सार -संक्षेप


हमें रामत्व की अनुभूति कराने वाले ताकि हम निशाचरों से निपटने के लिए शक्ति का प्रदर्शन कर सकें,समाज को जाग्रत कराने वाले, हमें अपने सनातन धर्म और संस्कृति से परिचित कराने वाले इन सदाचार संप्रेषणों को सुनने के पश्चात् हम अपनी वाणी द्वारा इन्हें प्रसरित भी करें ताकि हमारा भाव संयुत हो सके हमें इनसे शक्ति तो प्राप्त होगी ही 

नर का हमें जो वेश मिला है उस चुनौती को स्वीकारते हुए 

आइये प्रवेश करें राम कथा में 

भगवान् राम के जन्म का हेतु क्या था आइये जानने का प्रयास करें


राम जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका॥


सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं। कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं॥


भक्तों के हित के भगवान  शरीर धारण करते हैं



जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा। तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥

अंसन्ह सहित मनुज अवतारा। लेहउँ दिनकर बंस उदारा॥


हे मुनि, सिद्ध और देवताओं के स्वामियों ! भयभीत मत होएं आपके लिए मैं मनुष्य का रूप धारण करूँगा और पावन सूर्यवंश में अंशों सहित मनुष्य के रूप में अवतार लूँगा।


भगवान् राम धनुष बाण धारण किए हुए हैं शारङ्गधर भगवान् राम 

यह शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की पुष्टि करता है तुलसीदास जी मात्र कवि ही नहीं थे उन्होंने समाज की सेवा की काशी की रामलीला के संस्थापक भी बने उन्होंने संकटमोचन मन्दिर बनवाया वे एक अद्भुत द्रष्टा स्रष्टा  विचारक भी थे


इसके अतिरिक्त आचार्य ने बताया ॐ का उच्चारण परा पश्यन्ती वैखरी तीनों का मेल है

धीरेन्द्र शास्त्री का उल्लेख क्यों हुआ गीता में किसकी परम्परा दी गई है दिनकर की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

28.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 28 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२१८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 28 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२१८ वां* सार -संक्षेप


लोक -चिन्तन, राष्ट्र -चिन्तन, समाज -चिन्तन, संसार -चिन्तन, जीवन -चिन्तन आदि मनुष्य की चैतन्य वृत्ति का भाव रूप है

हम राष्ट्र भक्त भावों से भरे हैं 

कोई एक अच्छा गुण अभ्यास में आ जाए तो अच्छी बात है और कोई दुर्गुण अभ्यास में अवस्थित रहे यह अच्छी बात नहीं है

प्रयास करें आज से अभी से कि हम एक सद्गुण धारण करेंगे 

यह वेला आचरण, आचरण के अभ्यास और राष्ट्रीय चिन्तन की वेला है


हम सत्कर्मों में संयुत रहें आचार्य जी ऐसी अपेक्षा करते हैं

हम इन वेलाओं में गहराई से प्रवेश करें स्वयं समझते हुए नई पीढ़ी को समझा सकें कि हमारी संस्कृति हमारे ग्रंथ हमारी साधना और सिद्धियां अत्यन्त अद्भुत हैं यहां अनेक पारगामी विद्वान रहें हैं  शौर्य प्रमंडित अध्यात्म पर यहां बहुत बल दिया गया है और भारतभूमि धरती का स्वर्ग है


श्रीरामचरित मानस का आधार लेकर

इसके रचयिता ने अपना सामाजिक जीवन जीते हुए भक्तिपथ को अपनाया भक्ति अर्थात् विश्वास 

जब प्रभु राम हमारे साथ हैं तो हमें भय और भ्रम क्यों


भक्ति और शक्ति को प्रदर्शित करते मानस और विनय पत्रिका उनके गम्भीर तात्विक ऐतिहासिक विचारणीय मार्गदर्शक ग्रंथ हैं 

उन्होंने सिद्ध किया कि बिना शक्ति के भक्ति नहीं होती 

रामराज्य की उनकी कल्पना अद्भुत है रामराज्य ऐसा कि विपरीत प्रकृति के व्यक्ति प्रभाव के कारण उपद्रव नहीं करते

मनुष्य के दुष्कर्मों से धरती का क्या होता है ऋषि क्या जानता 

गंधर्व लोक का वर्णन किसमें विस्तार से है  मनुष्य कब महान् है आदि जानने के लिए सुनें

27.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२१७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 27 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२१७ वां* सार -संक्षेप


भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥

सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥


मानस की इस अद्भुत चौपाई का आशय यह है कि भगवान् राम के नाम का मुखर जप या मौन जप परम कल्याणकारी है


क्योंकि उनके कृत्स्न कार्य दोषरहित हैं सकारण भी हैं


उनका जीवन व्यक्ति के लिए मात्र चिन्तन का नहीं आचरण का जीवन है

तुलसीदास जी ने उनके जन्म से लेकर कर्म तक को कथा के रूप में प्रस्तुत किया है उनके समापन का उल्लेख उस कथा में नहीं है क्यों कि परमात्मा का समापन नहीं होता है



अंधेरे में भटके  संवेदनशील लोगों को राह दिखाने वाले इस ग्रंथ में जिस प्रकार तुलसीदास जी ने राम का जीवन प्रस्तुत किया है वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है


रघुबर कीरति सज्जननि सीतल खलनि सुताति।

ज्यों चकोर चय चक्कवनि तुलसी चाँदनि राति।194



इसमें दो पक्षियों का उल्लेख हुआ है चकवा और चकोर 

चकवा जिसे रात्रि अच्छी नहीं लगती जब कि चकोर को चांदनी रात बहुत अच्छी लगती है दोनों ही पक्षी हैं इसी प्रकार भक्त और दुष्ट दोनों ही मनुष्य हैं भक्त में मनुष्यत्व होता है


दुष्ट में मनुष्यत्व नहीं होता है रावण इस कारण मर नहीं रहा है क्यों कि शक्ति उसे अपनी गोद में लिए बैठी है 

दुष्टों के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए आज भी हम राष्ट्र भक्तों को सात्विक शक्ति की आवश्यकता है जिसमें रामात्मकता आ जाए तो अत्यन्त प्रभावशाली होती है


आचार्य जी ने यह भी बताया सभी प्राकृतिक शक्तियां देव रूप में हैं जिनको इनकी अनुभूति होती है वे इससे लाभान्वित भी होते हैं 

इसके अतिरिक्त किसमें कुष्ठ के लक्षण प्रकट हुए थे 

राजनीति की क्या दशा है रामकथा की भूमिका क्या है ईश्वर क्यों आता है भैया पंकज जी को आचार्य जी क्या भेज रहे हैं रामात्मक शक्ति के क्या लाभ हैं जानने के लिए सुनें

26.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२१६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 26 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२१६ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों को सुनने के पश्चात् एक गम्भीर चिन्तन का विषय सामने आ जाता है कि अत्यन्त विलक्षण हमारी आर्ष परम्परा विलुप्त क्यों हो गई


इसका कारण शिक्षा में आई विद्रूपता है हमें अब सचेत जागरूक हो जाना चाहिए निश्चित रूप से हमारी आर्ष परम्परा विशिष्ट है अद्वितीय है


यह भारत की समृद्ध संस्कृति का एक अहम भाग है ऋषियों की प्रज्ञा और परंपरा ने विश्व को सन्मार्ग की दिशा दिखाई


ऋषि ज्ञान का अद्भुत कोश है ज्ञान का वह प्रवक्ता है और परोक्षदर्शी भी है उसके पास दिव्य दृष्टि होती है वह ज्ञान के माध्यम से मन्त्रों को अथवा संसार की चरम सीमा का अवलोकन करता है


इनके अनेक प्रकार है जैसे महर्षि राजर्षि देवर्षि आदि


"ऋषयो मन्त्रद्रष्टारः कवय क्रान्तदर्शिन: ..!"



ऋषि क्योंकि ज्ञानी हैं इस कारण वे परेशान नहीं हैं जब कि


सुर मुनि गंधर्बा मिलि करि सर्बा गे बिरंचि के लोका।

सँग गोतनुधारी भूमि बिचारी परम बिकल भय सोका॥


ब्रह्माँ सब जाना मन अनुमाना मोर कछू न बसाई।

जा करि तैं दासी सो अबिनासी हमरेउ तोर सहाई॥


देवता मुनि गंधर्व परेशान हैं 

वे ब्रह्म-लोक गए। भय और शोक से अत्यंत व्याकुल धरा भी गाय का रूप धरे उनके साथ थी ब्रह्मा जी सब जान गए। उन्होंने मन में अनुमान लगाया कि इसमें मेरा कुछ भी वश नहीं चलेगा उन्होंने पृथ्वी से कहा कि  जिसकी (अर्थात् विष्णु की) तू दासी है, वही अविनाशी परमात्मा विष्णु हमारा और तुम्हारा दोनों का सहायक है।


हमारी वैष्णवी शक्ति अद्भुत है राम इसके अवतार हैं तुलसीदास जी तो कहते हैं ब्रह्म ही सीधे अवतरित होकर राम के रूप में आये हैं


बालकांड में ये सब सांकेतिक रूप में है सृष्टि क्या है उसकी रचना कैसे हुई आदि 


बहुत सारी घटनाओं के कारण भगवान् अवतार लेते हैं वे कल्याण के लिए अवतार लेते हैं हम सभी में ईश्वरत्व है कुछ अंश में ही सही


ईश्वर की अद्भुत लीला के अनेक उदाहरण हैं हमें इन पर विश्वास करना चाहिए ईश्वरत्व की अनुभूति जो व्यक्ति अपने भीतर करने लगते हैं उनका जीवन सांसारिक प्रपंचों में फंसने के बाद भी समस्याओं का समाधान खोज लेता है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया 


अभ्यास किसी भी चीज का चाहे वह अध्ययन लेखन पूजन चिन्तन प्रवचन या भजन का हो यदि हमें रुचता है तो वह कल्याणकारी है


विधाता के विषद संसार का विस्तार अद्भुत है 

यहाँ हर एक कण के साथ ही चैतन्य संयुत है, 

मगर अनुभूति का अभ्यास जिनको भी नहीं होता 

उन्हें "भयकर जगत " यह विश्व विश्रुत है।



करपात्री जी संकटा प्रसाद जी डा वाजपेयी जी का उल्लेख क्यों हुआ 

भैया त्रिलोचन जी भैया अरविन्द वाजपेयी जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

25.11.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२१५ वां* सार -संक्षेप

 हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रगट होय मैं जाना'


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 25 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२१५ वां* सार -संक्षेप


शिवो भूत्वा शिवं यजेत्'

हमारे यहां का एक सिद्धान्त वाक्य है 

 जिसका अर्थ है शिव बनकर शिव का आराधन चिन्तन मनन करो

आचार्य जी,जिनके इन सदाचार संप्रेषणों में व्यवस्थित विचारों का एक अजस्र प्रवाह बहता रहता है, का प्रयास रहता है कि हमारे भाव उस भावना से संयुत हो जाएं जो बहुत विस्तार लिए हुए है

आचार्य जी जगो और जगाओ का मन्त्र दे रहे हैं 

वही पिता वही गुरु श्रेष्ठ होता है जो यह कामना करता है कि वह अपने पुत्र से अपने शिष्य से पराजित हो जाए जैसा भगवान् राम के जीवन में भी घटित हुआ है 

वे अपने पुत्रों से हार कर आनन्दित हैं 

उन्होंने राम रूप में आकर जो लीला की वह अद्वितीय है उन्होंने बताया कि रामात्मकता क्या है रामराज्य की परिभाषा क्या है तुलसीदास जी ने राम का रामत्व अत्यन्त सुन्दर व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत किया


श्रीरामचरित मानस के रूप में कविता का जो स्वरूप सिन्धु प्रयास करते हुए तुलसीदास ने  प्रस्तुत किया उसका कोई अन्य उदाहरण है ही नहीं


कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है

हारे मानस की आस प्राण परिभाषा है


वरदान भारती का है ये शिव का संयम


शुभ सुखद सहज करती जीवन का  पथ दुर्गम


 भटके राही को राह दिखाती कविता है

कविता रजनी में चांद दिवस में सविता है


संसारी घमंड वाले मैं की अनुभूति न कर वास्तविक मैं की अनुभूति करते हुए तुलसीदास जी विधर्मी के शासन से आहत हो जाते हैं उस समय की दशा बहुत खराब थी सत्य के अनुसंधान में लगने के कारण शौर्य को हमने विस्मृत कर दिया था हम व्यक्तिवादी हो गए थे समाजोन्मुखता का ध्यान नहीं था 

ऐसे समय में तुलसीदास जी ने हमें प्रभुता, शक्ति की अनुभूति कराई

उन्हें परिवर्तन आवश्यक लगा मानस ने जन जन में उत्साह भर दिया 


धेनु रूप धरि हृदयँ बिचारी। गई तहाँ जहँ सुर मुनि झारी॥

निज संताप सुनाएसि रोई। काहू तें कछु काज न होई॥



धरनि धरहि मन धीर कह बिरंचि हरि पद सुमिरु।

जानत जन की पीर प्रभु भंजिहि दारुन बिपति॥ 184॥



गाय का रूप धारण कर  पृथ्वी ने रोकर उनको अपना दुःख सुनाया किन्तु किसी से कुछ काम न बना

तो ब्रह्मा ने कहा 

 हे धरती! मन में धैर्य धारण करके प्रभु के चरणों का स्मरण करो क्योंकि वे अपने दासों की पीड़ा को जानते हैं, वे तुम्हारी कठिन विपत्ति का नाश करेंगे


आज भी वैसी ही समस्याएं हैं किन्तु हम धीरे धीरे उनसे पार पा रहे हैं रामात्मक होकर शक्ति पराक्रम सामर्थ्य की अनुभूति कर रहे हैं



कोटि कोटि हिन्दुजन का,

हम ज्वार उठा कर मानेंगे,

सौगंध राम की खाते हैं,

भारत को भव्य बनाएंगे,

भारत को भव्य बनाएंगे।।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अशोक सिंघल जी, लक्ष्मीशंकर जी की चर्चा क्यों की आचार्य जी ने उन्नाव  के किस मन्दिर की चर्चा की बाबा बागेश्वर, पुष्पेन्द्र का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

24.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२१४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 24 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२१४ वां* सार -संक्षेप


अध्ययन, स्वाध्याय, चिन्तन, मनन, निदिध्यासन और स्मृतियों के आधार पर,किन्तु अनेक प्रपंचों के पाश में फंसने और विषम परिस्थितियों में घिरे रहने के पश्चात् भी , नित्य आचार्य जी अपना बहुमूल्य समय देकर हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा  परम सौभाग्य है हमें इसका लाभ उठाना चाहिए और आत्मस्थ होने की चेष्टा भी करनी चाहिए

विद्यालय के समय से प्रारम्भ इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी समस्याओं का चिन्तन करते हुए और समाधानों के उपाय सुझाते हुए हमें प्रबोधित करने का प्रयास करते हैं


श्रीरामचरित मानस  एक अद्भुत कथात्मक प्रबोधात्मक ग्रंथ है इस ग्रंथ में कथा और इतिहास का अप्रतिम मिश्रण है 

इस ग्रंथ की अद्भुतता अवर्णनीय है विषम परिस्थितियों से घिरी अयोध्या में तुलसीदास जी ने कथा लिखी रामजन्मभूमि को तोड़कर वहां मस्जिद बना दी गई थी और इसका कारण यह था कि हमारे यहां का पुरुषार्थ पराभूत हो गया था जिस व्यक्ति जाति वंश समाज का पुरुषार्थ पराजित हो जाता है उसमें मनुष्यत्व विलुप्त रहता है


शिव के भी परमभक्त तुलसीदास जी पढ़े लिखे थे यह इस छंद से स्पष्ट हो जाता है


वर्णानां अर्थसंघानां रसानां छंद सामपि। मंगलानां च कत्र्तारौ वंदे वाणीविनायकौ।।

उन दिनों शैव और वैष्णव विवाद भी चल रहा था  भ्रमित करने के लिए अपने स्वरूपों को परिवर्तित करने में समर्थ कालनेमि सदृश अकबर शासन कर रहा था 

भारतवर्ष की मनीषा ऐसे कालनेमियों के वश में हो गई 

जिसका परिणाम यह हुआ कि तथाकथित गुलामी अभ्यास में आ गई

ऐसे कालनेमियों से हमें अब भी सावधान रहने की आवश्यकता है 

रामकथा मंगल करने वाली है हम उस प्रसंग में चलते हैं जब विदुषी राजनीतिवेत्ता युद्धविद्या -विशारद कैकेयी जिनके चरित्र को अद्भुत ढंग से साकेत ग्रंथ में प्रस्तुत किया गया है भगवान् राम को वन जाने के लिए  तैयार करती हैं क्योंकि राम रावण को मारने के लिए ही अवतरित होकर आए हैं तो उन्हें यह काम करना ही है और संसार में भ्रमित नहीं होना है


'तापस वेष बिसेषि उदासी, चौदह बरिस रामु बनबासी'


यहां देखने की बात है कि मनुष्य रूप में अवतरित भगवान् राम का वेश तो तपस्वियों जैसा हो उनका उदासीन भाव भी हो किन्तु 

मां कैकेयी उनका धनुषबाण नहीं उतरवातीं उन्हें और भी अस्त्र शस्त्र दिए वे राष्ट्र की रक्षा के लिए भगवान् राम को सुसज्ज करके भेजती हैं ऐसा अद्भुत चरित्र है देश के प्रति अनुरक्त मां कैकेयी का 

धरा को अकुलाती देखकर आहत हुई मां उन्हें वन भेजने के बाद जीवनपर्यन्त अशांत रहीं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कथावाचक रामकिंकर जी की कथा में पानी बरसने से संबन्धित क्या प्रसंग बताया मनुष्य कर्मयोनि है या भोगयोनि जानने के लिए सुनें

23.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२१३ वां* सार -संक्षेप

 मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।

गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥

प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी

भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 23 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२१३ वां* सार -संक्षेप

स्वार्थ में रत रहने वालों से इतर उत्साहपूर्ण चिन्तन करने वाले जो भी भारत राष्ट्र के प्रति निष्ठावान् हैं जिनमें राष्ट्र -सेवा की ललक है जो समृद्ध सुसंपन्न राष्ट्र की कल्पना कर रहे हैं वे इस तथ्य के प्रति आशान्वित हैं कि शक्तिहीनता एक अवक्रोश है और कलयुग में संगठन ही शक्ति है 

*सङ्घे शक्तिः कलौ युगे*


हिंदु युवकों आज का युग धर्म शक्ति उपासना है ॥


बस बहुत अब हो चुकी है शांति की चर्चा यहाँ पर

हो चुकी अति ही अहिंसा सत्य की चर्चा यहाँ पर

ये मधुर सिद्धान्त रक्षा देश की पर कर ना पाए

ऐतिहासिक सत्य है यह सत्य अब पहचानना है ॥

 अपने संस्कारों को अपने विचारों से संयुत रखने पर हमारा आचरण संस्कारवान् होगा

शक्ति का संवर्धन और उसका प्रयोग आवश्यक है 

यही शौर्य प्रमंडित अध्यात्म है जिसकी आज नितान्त आवश्यकता है कारण स्पष्ट है क्यों इस समय दुष्ट बहुत उत्पात मचा रहे हैं ऐसी ही स्थिति त्रेता युग में भी थी

रावण कुम्भकर्ण आदि का जन्म हो चुका था और


बाढ़े खल बहु चोर जुआरा। जे लंपट परधन परदारा॥

मानहिं मातु पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा॥


पराए धन और परस्त्री पर बुरी दृष्टि डालने वाले, दुष्ट, चोर, जुआरी बहुत बढ़ गए । लोग माता-पिता, देवताओं को नहीं मानते थे और साधु संतों से सेवा करवाते थे।


तुलसीदास जी में राष्ट्र के प्रति प्रेम का भाव था उनमें राम के प्रति प्रेम का भाव था क्योंकि उनके मन में राम राष्ट्र के रूप में बैठे थे 

यही कथा की भूमिका है 


राम भगति भूषित जियँ जानी। सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी॥

कबि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू। सकल कला सब बिद्या हीनू॥4॥

भगवान् राम के मन में भी समाज और राष्ट्र सामने झलकता था उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं किया

हमारे लिए  यही संदेश है कि हमें अपने कर्तव्य का परिपालन संपूर्ण प्रामाणिकता से करना है हमें छल प्रपंच बॆईमानी नहीं करनी है यही रामभक्ति है यही राष्ट्रभक्ति है 

आज राष्ट्र का जो भी स्वरूप हो हम उस स्वरूप की आराधना करें जिसमें ऋषि मुनि  यज्ञ करके प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करते थे मंत्रों के स्वर गूंजते थे धनुर्धारी शक्तिसम्पन्न राजा त्यागवृत्ति से रह रहे थे ऐसा था राम का राज्य 

राम राज बैठे त्रैलोका, हर्षित भए गए सब सोका।


इसके अतिरिक्त भगवान् राम के द्वार के भीतर प्रवेश करने के लिए किसकी आज्ञा आवश्यक है आचार्य जी ने वर्तमान युगभारती के प्रथम अध्यक्ष भैया राजेश पांडेय जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

22.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 22 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२१२ वां* सार -संक्षेप

 भल अनभल निज निज करतूती। लहत सुजस अपलोक बिभूती॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 22 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२१२ वां* सार -संक्षेप



अध्ययन स्वाध्याय और चिन्तन के पश्चात् आचार्य जी का सदाचार उद्बोधन के रूप में यह अध्यापन कार्य अत्यन्त प्रभावशाली है हमें दिन भर की ऊर्जा प्रदान करने वाले मन


(मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्॥ _अमृतबिन्दुपनिषद्,६/३४ )


 पर अंकित होने वाले ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं आइये आज का संप्रेषण सुन आत्मस्थ होने की चेष्टा करें

तुलसीदास जी इस युग के इन परिस्थितियों के दिशादर्शक थे हमारा इतिहास पौराणिक काल के बाद अस्तव्यस्त हो गया


हिंदू धर्म में एक राजा हुआ है वेन जो अपनी दुष्टता और कुशासन के लिए कुख्यात है 

 विष्णु के प्रति किए गए अपमान से क्रोधित होकर, ऋषियों ने हुं ध्वनि करते हुए पवित्र घास के पत्तों से उसका वध कर दिया था

इसके बाद राजा पृथु शासन में बैठे

इसी कारण धरा पृथ्वी कहलाई 

इतने अलौकिक दिव्य सुन्दर स्वरूप वाले भारत में विचारों विकारों का गड्डमड्ड होना दुर्भाग्य है


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार। संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥

जड़ चेतनहि ग्रंथि परि गई। जदपि मृषा छूटत कठिनई॥2॥


जड़ और चेतन में गाँठ पड़ गई। यद्यपि वह मिथ्या ही है, तथापि उसके छूटने में कठिनाई है

हम बन्धनों में जकड़े हुए हैं


रामकथा में इन तत्त्वों का कथात्मक रूप में अप्रतिम विश्लेषण है रामावतार की चर्चा सर्वत्र है रामराज्य ने एक आदर्श हमारे सामने रखा गांधी जी ने भी रामराज्य की कल्पना की 

हमें कौन सा मार्ग चुनना है इस पर विचार करें विश्लेषणात्मक दृष्टि रखते हुए मनुष्यों के दोषों को नजरान्दाज कर दें 

हमें विशिष्ट व्यक्तियों के गुणों को देखना चाहिए जैसे दीनदयाल जी देर से उठते थे

स्वामी विवेकानंद को तंबाकू खाने की आदत थी आदि विकारों को नहीं 

 संतत्व की अनुभूति कर 

सद्गुण ग्रहण करें दुर्गुणों को न ग्रहण करें मनुष्यत्व की अनुभूति करें प्रयास करें कि अपने अन्दर  जड़त्व न आ पाए


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किन अमितगति की चर्चा की नेहरू जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

21.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२११ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 21 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२११ वां* सार -संक्षेप


हमारी जिज्ञासा को जाग्रत करने वाले ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं जो हमें प्रभावित  प्रेरित भी करते हैं आचार्य जी के प्रति भारतीय संस्कृति के प्रति भारत मां के प्रति प्रेमासक्त भी करते हैं 


तुलसीदास मात्र भक्त लेखक कवि संत के रूप में ही नहीं हैं वे एक प्रकार से परिपूर्ण मानव बनकर इस धरा पर आए परिपूर्ण मानव वह होता है जो संसार और संसारेतर चिन्तन को व्यावहारिक रूप में एक साथ प्रस्तुत करता है तुलसीदास जी ने चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन तो किया ही संगठन के महत्त्व को समझकर संगठन भी किया जिसकी बदौलत वे काशी और अयोध्या में विभिन्न क्रियाकलाप कर पाए


उन्होंने कलियुग के आधार और भक्ति के मूल हनुमान जी महाराज को अपना आदर्श गुरु बनाया 

चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय संगठन कार्य व्यवहार का सम्मिश्रण कर भक्ति के रूप में हमें मार्गदर्शन देने वाली श्रीरामचरित मानस पुस्तक के रूप में प्रस्तुत कर दिया  हमें प्रेम और भक्ति से भरा देने वाले प्रभु राम उनके आदर्श बन गए


तजि माया सेइअ परलोका। मिटहिं सकल भवसंभव सोका॥

देह धरे कर यह फलु भाई। भजिअ राम सब काम बिहाई॥3॥



मानव के रूप में देह धारण करने का यही फल है कि संपूर्ण कामनाओं का परित्याग कर श्री रामजी का भजन ही किया जाए

तुलसीदास जी बनारस में नागनथैया लीला प्रह्लाद लीला ध्रुवलीला भी करवाते थे

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम उनके ग्रंथों का अध्ययन करें 

उनका जीवन संघर्ष विद्रोह समर्पण का पर्याय है उन्हें भगवान् राम के जीवन,जो हम सबके जीवन में तत्त्व बनकर समाया हुआ है, में बहुत संघर्ष दिखाई दिए



हनुमान जी तो समुद्र लांघ गए हम भी इसी की अनुभूति करें असफलता से घबराएं नहीं सफल होंगे ही इसका विश्वास कायम रखें जो आनन्द की अनुभूति कराएगा

हम समस्या न होकर समाधान हैं मनुष्यत्व की अनुभूति करें मनुष्य से देव देव से परमात्म की ओर उन्मुख हों यही रामकथा का आधार है जिसे समझकर हम भगवान् राम के चरित्र को अपने भीतर अनुभव करने लगेंगे जो हमें शक्ति विश्वास शौर्य संयम पराक्रम त्याग तप समर्पण साधना प्रदान करेगा

इसके अतिरिक्त श्री आनन्द आचार्य जी ने हनुमान जी का चित्र क्यों बनाया था ८६ और ९३ बैच का उल्लेख क्यों हुआ राम की शक्तिपूजा किसने रचा आदि जानने के लिए सुनें

20.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 20 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२१० वां* सार -संक्षेप

 रामचरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु।

सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड़ लाहु॥ 32(ख)॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 20 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२१० वां* सार -संक्षेप


अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन निदिध्यासन और स्मृतियों के आधार पर,किन्तु अनेक प्रपंचों में फंसने के बाद भी, नित्य आचार्य जी अपना बहुमूल्य समय देकर हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है हमें इसका लाभ उठाना चाहिए


इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर हम आत्मस्थ होने की चेष्टा करें

जो आत्म की अनुभूति न कर दूसरों की प्रशंसा करने में रत रहता है उसे चारण (भाट ) कहा जाता है रीतिकाल और मध्य काल में यह वृत्ति खूब चली

हम इस चारणी वृत्ति से बचें 

 और आत्म से संयुत होने के इस सुअवसर का हम लाभ उठाएं पूर्वजन्म के कार्य व्यवहार के साथ वर्तमान के कार्यव्यवहार के आधार पर ही हम यशस्विता पा सकते हैं इस कारण वर्तमान के कार्यव्यवहार पर हम ध्यान दें

हमारे यहां दो अद्भुत अवतार हैं राम और कृष्ण  बीच में देवों के महादेव शिव एक विरक्त तत्त्व हैं जो सर्वत्र हैं राम उन्हें पूजते हैं कृष्ण भी उन्हें पूजते हैं 

भगवान् राम रमने के लिए अपने गुरु विश्वामित्र के साथ बिना सैनिकों सेवकों को लिए राजभवन से निकले हैं गुरु कई अवसरों पर परीक्षा लेता है वो जानता है कि इनमें क्षमता है ये संकटों से घबराते नहीं हैं

गुरु की शरण में आ गए तो उन पर भगवान् राम पूर्ण विश्वास करते हैं राम सर्वत्र रमते चले गए

भीलों कोलों वानरों भालुओं राजाओं सभी में रमते चले गए सर्वत्र रामत्व व्याप्त हो गया हनुमान जी में भी राम व्याप्त हो गए


कवन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं, राम काज लगि तव अवतारा, सुनतहिं भयउ पर्बताकारा



राम जब रमते हैं तो ऐसा ही व्यक्तित्व हो जाता है रामकथा अद्भुत है सत्य है जिनके विचार विमल नहीं हैं वही इसे काल्पनिक मानते हैं इसी प्रकार कृष्ण खींचते हैं उनमें एक विशेष प्रकार का आकर्षण है लोग खिंचे चले आते हैं कल्प भेद से राम कृष्ण बन जाते हैं

इसके अतिरिक्त शिक्षा के अभाव में हमारे यहां क्या हानि हुई  ज्ञान क्या है कर्तव्य त्यागकर किसमें प्रवेश न करें भैया विभास जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी भैया पङ्कज जी भैया मधुकर जी भैया उमेश्वर जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

19.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 19 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२०९ वां* सार -संक्षेप

 राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार।

सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार॥ 33॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 19 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२०९ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषणों के श्रवण से हम अपने समय का सदुपयोग कर सकते हैं हमें इसका लाभ उठाना चाहिए हमें परिपूर्ण बनाने का व्यवस्थित विचारों का अजस्र प्रवाह इनकी विशेषता है 

इनके माध्यम से हम सांसारिक बाधाओं से सरल ढंग से निपट सकने की योग्यता प्राप्त कर सकते हैं 

आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


संसार अपार अखंडित जीवन दर्शन है 

यह स्रष्टा का सुविचार प्रसार प्रदर्शन है 

इसमें सुख शान्ति सत्य मिथ्या का मिश्रण है 

मानव इसका बहुरूप धारता चित्रण है


मानव ही विविध रंग रूप धारण करता है पशु यदि शाकाहारी है तो वह मांस का भक्षण नहीं करेगा जब कि मनुष्य शाकाहारी भी होता है और मांसाहारी भी होता है मनुष्य वीर भी होता है और कायर भी होता है कोई त्यागी होता है कोई भोगी होता है 

इसका अर्थ है मनुष्य को परमात्मा ने कुछ विशिष्टता प्रदान की है बुद्धि विचार शक्ति का अद्भुत सम्मिश्रण उसे मिला है 

वास्तव में मनुष्य का मनुष्यत्व एक अद्भुत प्रहेलिका है जिसे हमारे ऋषियों द्रष्टाओं ने बूझने का प्रयास किया है 

मनुष्यत्व एक अद्भुत तत्त्व है अतिविशिष्ट शक्ति है और वह हमारे अंदर अवस्थित है


यह भाव हमारे अन्दर कुछ समय के लिए ही यदि आ जाएगा तो हम अपने कार्यक्षेत्र से बाहर निकलकर अपने बारे में चिन्तन करने लगेंगे


और तब हमें लगेगा कि हम विशिष्ट हैं 

हमारे ऋषियों ने भक्ति का चिन्तन किया है उसके पीछे विश्वास की अवधारणा है ज्ञान पर अडिग विश्वास होना हमें बहुत सहारा देता है हम उसी से संयुत होते हैं जिसके प्रति हमें विश्वास हो जाता है



यह हमारा है यह तुम्हारा है यह संसार का अद्भुत स्वरूप और स्वभाव है जिनमें यह हमारापन विस्तार ले लेता है वे ऋषित्व की श्रेणी में पहुंच जाते हैं  

आचार्य जी ने


राम अनंत अनंत गुनानी। जन्म कर्म अनंत नामानी॥

जल सीकर महि रज गनि जाहीं। रघुपति चरित न बरनि सिराहीं॥2॥

कहने वाले तुलसीदास जी के जीवन के बारे में आज क्या बताया विनय पत्रिका और हनुमान बाहुक में अन्तिम रचना उनकी कौन सी थी भक्ति का आश्रय लेने से हमें क्या लाभ मिलेगा जानने के लिए सुनें

18.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 18 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२०८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 18 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२०८ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमारा देशभक्ति का भाव और अपनी संस्कृति की रक्षा का भाव अखंड चलता रहे

गंगा के प्रवाह की तरह हमारा राष्ट्र -भक्ति का प्रवाह किसी न किसी रूप में चलता रहे इसी की प्रेरणा देती ये पंक्तियां देखिए 


देशभक्ति वह भक्ति है 

जिसमें सारी शक्ति


सेवा संयम साधना 

यज्ञ दान तप वृत्ति

हानिकारक मानसिक संघर्षण, जो अध्यात्म के साथ शौर्य और संगठन को संयुत करने में बाधा बनता है,से बचते हुए 

जो भी कार्य हम करें यह मान कर चलें कि वह मां भारती की सेवा है

 जन जन में लोकप्रिय गोस्वामी तुलसीदास में भी देशभक्ति का अप्रतिम भाव था उन्होंने बहुत कुछ लिखा 


१ रामचरितमानस

२ रामललानहछू

३ वैराग्य-संदीपनी

४ बरवै रामायण

५ पार्वती-मंगल

६ जानकी-मंगल

७ रामाज्ञाप्रश्न

८ दोहावली

९ कवितावली

१० गीतावली

११ श्रीकृष्ण-गीतावली

१२ विनयपत्रिका

१३ सतसई

१४ छंदावली रामायण

१५ कुंडलिया रामायण

१६ राम शलाका

१७ संकट मोचन

१८ करखा रामायण

१९ रोला रामायण

२० झूलना

२१ छप्पय रामायण

२२ कवित्त रामायण 

२३ कलिधर्माधर्म निरुपण

२४ हनुमान बाहुक 


उनके शिष्य प्रशिष्य भी अत्यन्त कर्मशील थे मानस पाठ की परम्परा को भी उन्होंने चलाया 


सादर सिवहि नाइ अब माथा। बरनउँ बिसद राम गुन गाथा॥

संबत सोरह सै एकतीसा। करउँ कथा हरि पद धरि सीसा॥


अयोध्या में मानस की रचना कर तुलसी विद्वानों की धरा काशी आए मानस की रचना ऐसे समय की जब बड़े से बड़े पंडित  प्रजा को दुःखी करने वाले अकबर की चापलूसी करते थे 

एक घटना है 

एक बार जब पट खोले गए तो ग्रंथ पर लिखा था सत्यं शिवं सुन्दरम् 

काशी  शिव की उपासना के लिए प्रसिद्ध है वहां के पंडितों ने इस कारण आपत्ति की कि तुलसीदास यहां कैसे आ गए वे तो रामानन्दी है शैव वैष्णव संघर्ष बहुत पुराना है

किन्तु धीरे धीरे उनकी प्रसिद्धि वृद्धिंगत होने लगी 

सर्वत्र सम्माननीय अद्वैत संप्रदाय के आचार्य मधुसूदन सरस्वती से मानस की समीक्षा करने के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा 


आनन्दकानने ह्यस्मिजंगमस्तुलसीतरुः। कवितामंजरी भाति रामभ्रमरभूषिता॥


उनके द्वारा जब ऐसी समीक्षा हो गई तो काशी के पंडित तुलसीदास का सम्मान करने लगे तुलसीदास ने काशी में रामलीला का शुभारम्भ भी कर दिया 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी भैया शीलेन्द्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

17.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२०७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 17 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२०७ वां* सार -संक्षेप


जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।

करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।।1।।

इस सोरठे में  तुलसीदास जी, जिनके साहित्यिक चिन्तन में शौर्य प्रमंडित अध्यात्म प्रमुख है,गणेश जी की वन्दना कर रहे हैं


जिनका स्मरण करने से सारे कार्य सिद्ध हो जाते हैं, जो गणों के स्वामी, सुंदर हाथी के मुख वाले हैं, वे ही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों के सदन  मुझ पर कृपा करें


फिर नारायण की वन्दना भगवान् शिव की वन्दना करने के पश्चात् गुरु की वन्दना करते हैं 


बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।

फिर अन्य की करते हुए कहते हैं


प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।

जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥17॥


मैं पवनकुमार श्री हनुमानजी को प्रणाम करता हूँ, जो दुष्ट रूपी वन को भस्म करने हेतु अग्नि हैं, जो ज्ञान की घनमूर्ति हैं और जिनके हृदय रूपी भवन में *धनुर्धर* प्रभु राम निवास करते हैं



प्रभु राम कैसे जो धनुष धारण किए हुए हैं 

यह है शौर्य प्रमंडित अध्यात्म जिसकी आवश्यकता इस कारण भी है संपूर्ण वातावरण शान्त और स्निग्ध रह सके


इसके लिए मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए उसको पुरुषार्थ पराक्रम का अनुभव होना चाहिए

यही तात्विक रूप से दर्शन है इस दर्शन को स्वयं की अनुभूति होना भी कहा जा सकता है 


समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी॥

नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी॥

अद्भुत है नाम रूपात्मक जगत

सतयुग में ध्यान त्रेता में यज्ञ द्वापर में पूजा 

किन्तु कलियुग में राम का नाम ही पर्याप्त है 

नाम लेने पर उनकी कथा सामने आ जाएगी


तुलसीदास बहुत व्यावहारिक हैं इसी तरह सूरदास भी व्यावहारिक हैं इस कारण आचार्य जी उनके साहित्य के अध्ययन के लिए हमें प्रेरित करते हैं

आदि शंकराचार्य का यहां उल्लेख करना भी प्रासंगिक है 

वे स्थान स्थान पर उनसे चर्चा करने जाते थे जो कर्मकांड में रत थे 

सामान्य व्यक्ति के लिए यह कठिन कार्य था कि वह कर्मकांड पर बहुत जोर दे 

उस सामान्य व्यक्ति में कुछ गुण आवश्यक थे जिससे राष्ट्र की रक्षा हो सके

ज्ञान उष्ण होता है हमारे पास ज्ञान है लेकिन हम संसार से  मतलब न रखें तो संसार अनाथ हो जाएगा 

जो उसका ध्यान रखेगा संसार उसी का हो जाएगा 

इसके अतिरिक्त मंडनमिश्र का उल्लेख क्यों हुआ आदि शंकराचार्य की तरह तुलसीदास ने कौन सा कार्य किया जानने के लिए सुनें

16.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 16 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२०६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१

  (कालयुक्त संवत्सर ) 16 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२०६ वां* सार -संक्षेप


मनुष्य के साथ आचरण पर सनातन धर्म में गहन चिन्तन किया गया है

अपरा विद्या अर्थात् भौतिक विद्या में ही उलझे रहना सही नहीं है इसके साथ हमें परा विद्या पर भी ध्यान देना चाहिए


भारतवर्ष में उत्थान पतन वैभव अभाव की एक अद्भुत प्रक्रिया चलती रहती है इस कारण शौर्य प्रमंडित अध्यात्म आज की आवश्यकता है


दैवासुर संग्राम चलता ही रहा है


इसमें हमें असुरों को लेकर बहुत व्याकुल नहीं होना चाहिए


अध्यात्म रामायण में सीता माता के वनवास का प्रसंग है


अध्यात्म रामायण ब्रह्माण्ड पुराण का उत्तर खंड है पौराणिक रचनाएं द्वापर युग में उपस्थित भगवान् व्यास द्वारा की गई हैं और भगवान् वाल्मीकि की उपस्थिति त्रेता युग में है

राम की कथा अत्यन्त गूढ़ कथा है

इसे मनोरंजन के लिए कहना आसान है किन्तु 

राम की कथा में प्रवेश करके, आत्मसात् करके उसे समझाने की दृष्टि से कहना तप का काम है


स्वस्थ व्यक्ति ही इसे कह सकता है इस कथा का आनन्द ही अद्भुत है


इसके अतिरिक्त काल गणना के लिए कौन सी पुस्तक है


पुनर्जन्म के विषय में आचार्य जी ने क्या बताया भैया पंकज जी भैया विनय जी का उल्लेख क्यों हुआ 

वाल्मीकि और तुलसीदास में क्या समानता है


तुलसीकृत मानस में क्या सम्मिलित नहीं  था जानने के लिए सुनें

15.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 15 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२०५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 15 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२०५ वां* सार -संक्षेप


संपूर्ण सृष्टि का केन्द्र बिन्दु भारत है जहां चिन्तन,मनन,अध्ययन, स्वाध्याय,निदिध्यासन,तप, त्याग,सेवा,समर्पण, संयम, पुरुषार्थ, शौर्य और पराक्रम आचरण के अंग हैं

हम भारतवर्ष के विश्वासी सनातनधर्मियों ने अनेक झंझाओं का सामना किया है किन्तु कभी निराश हताश नहीं हुए हैं और उत्साह को कभी कम नहीं होने दिया है


जिन्हें संसार अधिक प्रभावित करता है वे कष्टों में रहते हैं इसी कारण अध्यात्म का महत्त्व है जो हमें आनन्द की अनुभूति कराता है


ये सदाचार संप्रेषण संसारी दृष्टि से संस्कारों का प्रसार हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए 

हम आत्मस्थ होने की चेष्टा करें

इस समय अद्भुत मेधा की धनी नई पीढ़ी का मार्गदर्शन भी आवश्यक है हम इस ओर भी ध्यान दें


हमको फिर अपनी कमर बांध इन अपनों से लड़ना होगा 

फिर से भारत के लिए भारती भावों पर अड़ना होगा 

भारत माता के पुत्र जलाते दिया सदा तूफानों में 

अरमान लिए हर क्षण जीते मरते भी हैं अरमानों में 

सुख दुःख हो या जीना मरना रहते हरदम सबमें समान 

भारत महान् भारत महान्


इन पंक्तियों में अपनों से लड़ना होगा.. में अपनों का अर्थ है जो स्वतन्त्रता के बाद सत्ता के लोभी हो गए 



हमें मनुष्य के रूप में जन्म मिला है यह एक अद्भुत निधि है 

हमें इसका लाभ उठाना ही चाहिए बेचारगी से दूर रहना चाहिए जो भी संस्कार हमें प्राप्त हुए हैं उन्हें पहचानना चाहिए 

भक्ति में शक्ति है इसकी अनुभूति करनी चाहिए भक्ति का अर्थ है अडिग विश्वास


अनन्त कलाओं वाला परमात्मा कुछ कलाओं के साथ बार बार धरती पर आता है ऐसे विशिष्ट बार बार यहां अवतरित हुए हैं 

हमें यह अनुभव करना चाहिए कि हम यदि विशिष्ट नहीं हैं तो अशिष्ट भी नहीं हैं हम शिष्ट हैं 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आदि शंकराचार्य का क्या महत्त्व बताया हम किस भाव के आधार पर अपने को परम शक्तिशाली मान सकते हैं जानने के लिए सुनें........

14.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 14 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२०४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 14 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२०४ वां* सार -संक्षेप


कवि जब अपने कवित्व के भाव में रहता है तो वह एक अद्भुत सृष्टि रच देता  है ऐसी ही भावों से भरी आचार्य जी की 

सन् २०१० में लिखी एक कविता है "भारत महान् भारत महान् "जो हम सबके लिए उपादेय है 

इस कविता के माध्यम से कवि बता रहा है कि अद्भुत दृष्टि वाले ऋषियों वाला भारत कैसा था वर्तमान में कैसा है और आगे कैसा होगा


भारत महान् भारत महान् 

जग गाता था गा रहा नहीं गाएगा फिर पूरा जहान...



शम्बर के विरुद्ध इन्द्र की सहायता के लिए दशरथ युद्ध लड़ते हैं उधर जनक हैं लेकिन रावण के अत्याचार देखकर भी ये लोग एकजुट नहीं हैं शौर्य बिखरा पड़ा है ऐसे में राम जगते हैं संगठन करते हैं रावण को पराजित करते हैं 


अपने पुरखों का सपना था कि यह धरती स्वर्ग समान सजे धरती पर शान्ति रहे हमने जन जन को आर्य बनाने का संकल्प लिया पूरी वसुधा को अपना कुटुम्ब माना पुरुषार्थ पराक्रम के अनोखे कीर्तिमान रचे गए भारत तो तप त्याग सेवा समर्पण साधना का पर्याय रहा है

काल व्याल बार बार करवट लेता रहा है

जब द्वापर युग आया तो कुटी ने सुख सुविधा को अपना लिया तामसी रजोगुण ने घेर लिया ईर्ष्या की अग्नि प्रज्वलित हो गई जिसने महाभारत करा दिया

बाद में शिक्षा में आये विकारों ने दुर्दशा की 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज श्रीवास्तव जी, भैया मुकेश जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

13.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 13 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२०३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 13 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२०३ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार अत्यन्त प्रभावी और प्रामाणिक हैं क्योंकि इनमें चिन्तन मनन अध्ययन और स्वाध्याय के आधार से उपजे जो विचार आचार्य जी प्रस्तुत करते हैं वे अद्भुत हैं 

और हम शिक्षार्थियों को जो, संसार की समस्याओं में घिरे रहने के बाद भी  समाजोन्मुख राष्ट्रोन्मुख हैं, ज्ञानसम्पन्न बना रहे हैं


श्रीरामचरित मानस की कथा अद्भुत है 

कथा रोचक तो होनी चाहिए किन्तु मात्र मनोरञ्जक नहीं 

रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी॥

रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी॥


शिव जी कह रहे हैं कि यह कथा हाथ की एक अतिसुंदर ताली है, जो संदेह रूपी पक्षियों को उड़ा देती है और कलियुगरूपी वृक्ष को काटने हेतु एक कुल्हाड़ी  जैसी है इस कारण हे गिरिराजकुमारी! आप इसे आदरपूर्वक सुनिए


संदेह संशय मनुष्य के जीवन में बना ही रहता है जब कि सुनिश्चितता यदि हो तो ईश्वरत्व का प्रवेश हो जाता है इस कारण क्योंकि यह कथा हमारे भ्रम विभ्रम संशय संदेह दूर करती है इसलिए महत्त्वपूर्ण हो जाती है हम कभी विश्वास ही नहीं कर पाते कि हम पूर्ण हैं 

वेद कहते हैं


ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥'



वह सच्चिदानंदघन परब्रह्म पुरुषोत्तम परमात्मा सभी प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है। यह जगत् भी उस परब्रह्म से पूर्ण  है, क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है।

हमें विश्वास करना चाहिए कि हम पूर्ण हैं 

इस कथा का उत्तरकांड बहुत महत्त्वपूर्ण है ज्योंही रामराज्य स्थापित हुआ तीनों लोकों में हर्ष व्याप्त हो गया और इस प्रकार यह सुकाल हो गया 

इस कथा को समझने के लिए भीतर से बाहर तक पावित्र्य चाहिए

इसके अतिरिक्त आचार्य जी के पास नागरी प्रचारिणी सभा वाले कोष के कौन से खंड नहीं हैं 

राहुल गांधी का कौन सा भाव अच्छा है जानने के लिए सुनें

12.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 12 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२०२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 12 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२०२ वां* सार -संक्षेप

 इन सदाचार संप्रेषणों में तात्विक अंश रहते हैं जिन्हें हमें ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए 

आचार्य जी प्रयास करते हैं कि हमारा मन भाव जगत और भौतिक जगत दोनों में लगा रहे और कर्मानुरागी रहे वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः ही हमारा कर्म है राष्ट्र हमारे विचारों संकल्पों  सिद्धान्तों का एक विशिष्ट विग्रह है जिसके हम उपासक हैं विद्यालय से ही हमें संस्कार मिल रहे हैं अध्ययन स्वाध्याय महत्त्वपूर्ण है हम अपने अग्नि तत्त्व का अनुभव करते रहें 


जागबलिक जो कथा सुहाई। भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई॥

कहिहउँ सोइ संबाद बखानी। सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी॥


श्री रामचरित मानस अद्भुत कथा है सब सज्जन सुख का अनुभव करते हुए उसे सुनें

मानस में चार वक्ता और चार श्रोता हैं

पहले वक्ता भगवान शिव और श्रोता माता पार्वती हैं 

दूसरे वक्ता कागभुशुंडी और श्रोता पक्षीराज गरूड़ हैं 

 

तीसरे वक्ता याज्ञवल्क्य (जागबलिक) और श्रोता भारद्वाज मुनि हैं 

चौथे वक्ता तुलसीदास और श्रोता उनका मन है

 यह चक्र चल रहा है 

आचार्य जी ने हनुमान जी का खो गई मुद्रिका वाला प्रसंग बताया जिसका सार था कि हर कल्प में राम जन्म ले रहे हैं आदि 


नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥

कथा सुनने के लिए विचार विमल होने चाहिए कथा मनोरञ्जन के लिए नहीं होनी चाहिए आत्मस्थ होकर उसे सुनें समय निकालें 

 अपने दंभ का निरसन करते रहें आनन्द की प्राप्ति होगी

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया संबन्धों के आधार पर बना यह भौतिक जगत मोह मण्डल से मण्डित रहता है 

हमारा प्राणवान् शरीर सूक्ष्म और स्थूल से बना हुआ है

तत्व जितना सूक्ष्म होता है उतना ही बलशाली होता है और जो जितना स्थूल है उतना ही बोझिल है

भैया मोहन जी भैया संतोष जी की चर्चा क्यों हुई आचार्य जी ने माता जी के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें

11.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 11 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२०१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 11 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२०१ वां* सार -संक्षेप


अध्यात्म कर्म विचार संयम साधना के चिन्तन और मन्थन की गति सदैव हमारे अन्दर बनी रहनी चाहिए 

हम जिस कुटुम्ब के अंश है वह भारतीय जीवन पद्धति का एक महत्त्वपूर्ण चिन्तन वर्ग है उस वर्ग में शिक्षा के साथ अनेक सामाजिक क्षेत्र हैं उस कुटुम्ब के अंश होने के कारण हम भारतीय जीवन शैली भारतीय धर्म ग्रंथों शास्त्रोक्त विचारों का अनुसरण करते हैं

हम यह जानते हैं कि हमारा समाज हमारे आत्म का विस्तार ही है 

हमारी वैचारिक संस्था युगभारती भी उसी का ही अनुसरण करती है जिसमें अनेक ऐसे सदस्य हैं जिनके कार्य हमें आश्चर्य, उत्साह और आनन्द से भर देते हैं अनेक उदाहरण हैं जैसे भैया प्रवीण भागवत का कार्य भैया विजय दीक्षित ३०० वंचित बच्चों के अभिभावक बनकर हमें गौरवान्वित कर रहे हैं 

अच्छे परिवार अपनों के उत्कर्ष को देखकर सदा ही आनन्दित होते हैं 

हम आत्मचिन्तन आत्ममन्थन आत्मशोधन करें और तत्पश्चात् उस शुद्धि का प्रसारण करें अपने बहुआयामी जीवन में जो काम हमारे लिए अनुकूल है उनके लिए प्रयास अवश्य करें अच्छे कार्य के नैरन्तर्य को कभी न त्यागें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मोहन जी भैया आलोक सांवल जी का नाम क्यों लिया 

बिरसा मुंडा छात्रावास क्यों चर्चा में आया जानने के लिए सुनें

10.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 10 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२०० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 10 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२०० वां* सार -संक्षेप


यह सुखद अनुभूति का विषय है कि हमारा संगठन विस्तार ले रहा है जिसका लक्ष्य है 

राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाज से ही संपोषित एक ऐसे व्यक्तित्व का उत्कर्ष जो समाजोन्मुखी हो 


हम ऋषियों की दी गई दिशा दृष्टि का परिपालन करते हुए सदैव समस्याओं के समाधान के लिए संकल्पित हो एक सीधे सपाट मार्ग पर चल रहे हैं वह मार्ग है परमपिता परमेश्वर का स्मरण अपने महान् पूर्वजों का स्मरण शक्ति बुद्धि विचार सौमनस्य का प्रकटीकरण राष्ट्र -भक्त समाज जिसका हमारे ऊपर एक बहुत बड़ा ऋण है के साथ समरसता स्थापित करना संपूर्ण वसुधा को कुटुम्ब मानना अहिंसा के एक ऐसे सनातन मार्ग पर चलना जिसमें विध्वंसक  हमारे शौर्य पराक्रम से भयभीत रहे जिस भी राष्ट्र -भक्त में पात्रता हो उसे अपने प्रयास से उत्थित करना उसे संस्कारित करना भारत राष्ट्र का संरक्षण संवर्धन और इसकी अद्वितीय परम्पराओं का परिपोषण

अपना दीनदयाल विद्यालय भी उसी परम्परा का एक अंश है

दैवासुर संग्राम हमेशा चलता रहा है यह सौन्दर्य और विकृति दोनों की ही द्योतक सृष्टि का एक नियम है 

गुरु तेग बहादुर का बलिदान हम जानते हैं 


भाई मतिदास, भाई सतिदास तथा भाई दयाला का बलिदान

(बलिदान पर्व - 9 नवंबर और 10 नवम्बर सन 1675 ई. 

चांदनी चौक, दिल्ली) भी हमें झकझोर देता है 

 आचार्य जी ने एक जीवन -मन्त्र बताया 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विजय दीक्षित जी भैया अमित गुप्त जी भैया मोहन जी भैया मनीष जी की चर्चा क्यों की लोप कौन है  रज्जू भैया का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

9.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११९९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 9 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११९९ वां* सार -संक्षेप


संगठन को महत्त्व देने वाले भगवान् राम का महत्त्वपूर्ण भाग है उनकी वनवास यात्रा राक्षसत्व के भाव वाले रावण पर विजय और रामराज्य का प्रसार 

इसी प्रकार  संगठन को महत्त्व देने वाले भगवान् कृष्ण के राक्षसत्व के विरोध में कार्य हैं 

राक्षसत्व भाव अत्यन्त विध्वंसकारी 

भयानक होता है रूप अलग होते हैं लेकिन उनके कार्य बहुत विनाशकारी होते हैं दैवासुर संग्राम से लेकर आजतक किसी न किसी रूप में यही चल रहा है  एक उदाहरण हाल का ही है 


प्रत्यक्ष देव सूर्य को समर्पित छठ पर्व पर  जिहादियों का हंगामा -

घटना  पूर्णिया के बायसी थाना क्षेत्र के हरिणतोड़ पंचायत के माली गांव की है


भगवान् राम एक शक्ति हैं उनके साथ एक तत्त्व संयुत है लक्ष्मण की सेवा इसी प्रकार शत्रुघ्न की साधना और भरत की भक्ति 

सेवा साधना भक्ति मिलकर भगवान् राम की शक्ति बनती है 

भारतवर्ष रामत्व कृष्णत्व का आगार है और इस आगार में सेवा साधना भक्ति के साथ शक्ति का संयोजन होना ही आवश्यक है 

भगवान् राम और भगवान् कृष्ण दोनों भारतवर्ष में जन्मे यहां लीलाएं कीं दुष्टों ने दोनों की जन्मभूमि हथिया ली इसी तरह शिव जी के स्थल के साथ भी ऐसा ही किया 

और जनमानस का विस्मयकारी भ्रामक भाव हो गया कि झंझटों से बचना चाहिए


जैसा आचार्य जी ने बताया सेवा साधना भक्ति के साथ शक्ति संयुत है इसी तरह है ज्ञान ,कर्म और भक्ति 

ज्ञान में भी सेवा साधना भक्ति और शक्ति है ज्ञानाधारित कर्म में सभी चीजें सम्मिलित हैं 

भक्ति एक विशिष्ट भाव है उसमें हिसाब किताब नहीं लगाया जाता क्यों कि हिसाब किताब लगाने वाला संकल्पी नहीं हो सकता वह विकल्पी हो सकता है 

गीता धर्म अध्यात्म पर आधारित समुच्चयवादी धर्म है 


*अध्यात्म एक शक्ति है* उससे स्रष्टा परमात्मा की प्राप्ति होती है 

अध्यात्म से हम यदि ऐसी शान्ति को परिभाषित करें जो व्यक्ति को कायर बनाए तो वह शान्ति नहीं मृत्यु है 

मृत्यु के सिलसिले को जो नहीं जानते वे मृत्यु से डरते हैं 

भगवान् राम और भगवान् कृष्ण दोनों ने यही सिद्ध किया कि  भक्ति संयम साधना के साथ शक्ति किसी भी विध्वंसक शक्ति को पराजित करने के लिए आवश्यक है

कर्म के चैतन्य का अभ्यास आवश्यक है जितने अधिक हमारे सामने कार्य होंगे उतने ही हम सक्रिय रहेंगे शरीर की कमजोरी का अनुभव नहीं होगा अन्यथा शिथिलता समस्याओं को जन्म देती है 


इसके अतिरिक्त 

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि अपनी  बात कहीं जब  हमें सुनाई दे तो उसकी समीक्षा अवश्य करें और उसमें आवश्यक सुधार आदि लिख लें तो इससे लाभ मिलेगा

स्थान स्थान पर शक्तिपुञ्ज आवश्यक हैं अन्यथा दुष्ट विनाश करते ही रहेंगे

दोषों का निरसन आवश्यक है 

 अवधेशानन्द ने क्या कहा जानने के लिए सुनें

8.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११९८ वां* सार -संक्षेप

 अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव।


मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिमवाप्स्यसि।।12.10।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 8 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११९८ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी का प्रारम्भ से ही प्रयास रहा है कि हमारा विकास हो सके हमारे अन्दर राष्ट्र के प्रति भक्ति का भाव जाग्रत हो सके हमारे अन्दर वह भाव भर सके कि दीनदयाल सरीखे अजातशत्रु दुष्टों के द्वारा मार क्यों दिए जाते हैं

हमारे अन्दर राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण वह शक्ति आ जाए कि दुष्ट हमसे थर्राने लगें वे हिम्मत न दिखा सकें

सनातन धर्म श्रेयस्कर है यह जान सकें 

भारत के रूप में परमात्मा ने जो प्रसाद दिया है उसमें निवास करने का आनन्द प्राप्त कर सकें गर्व कर सकें


और इसके मार्ग निकलते गए 

हनुमान जी की प्राण प्रतिष्ठा हुई , तत्पश्चात् नित्य पूजन होने लगा , सदाचार वेलाएं चलने लगीं

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि इस कलियुग में राम नाम का जप जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है को हम लोग करते रहें तो अनेक खुराफातों से हम बच सकेंगे हमें समस्याओं के समाधान मिलने लगेंगे 


राम जपु, राम जपु, राम जपु, बावरे ।


घोर-भव नीर-निधि नाम निज नाव रे ॥१॥


एक ही साधन सब रिद्धि सिद्धि साधि रे ।


ग्रसे कलि रोग जोग संजम समाधि रे ॥२॥


कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा"


इसका अभ्यास करें 

क्योंकि अभ्यास बहुत महत्त्वपूर्ण है 

अभ्यास से क्या नहीं किया जा सकता 

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं।


*अभ्यासेन तु कौन्तेय* वैराग्येण च गृह्यते।।6.35।


अभ्यास से तो चञ्चल मन को भी वश में किया जा सकता है


अभ्यासेन क्रियाः सर्वाः अभ्यासात् सकलाः कलाः ।

अभ्यासात् ध्यानमौनादिः किमभ्यासस्य दुष्करम् ॥



अबन्धुर्बन्धुतामेति नैकट्याभ्यासयोगतः।




अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना।


परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन्।।8.8।।

 अर्जुन से भगवान् कह रहे हैं 


 अभ्यासयोग से युक्त अन्यत्र न जाने वाले चित्त से निरन्तर चिन्तन करता हुआ साधक परम दिव्य पुरुष को प्राप्त होता है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष जी भैया विनय जी का नाम क्यों लिया रामभद्राचार्य जी एक चौपाई पर कितने समय तक बोल सकते हैं वह कौन सा प्रसंग था जिसके कारण आचार्य जी को रामकथा कहने का अभ्यास हो गया, आचार्य जी ने किनसे कहा कि किसी भी चौपाई का अर्थ पूछ लें जानने के लिए सुनें

7.11.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 7 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११९७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 7 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११९७ वां* सार -संक्षेप


सर्वप्रथम हम यह सीखने का प्रयास करें कि हम परमात्मा का अंश हैं

परमात्म शक्ति आत्मशक्ति के अनेक स्वरूप इस संसार में स्थापित कर देती है यह अनुभूति जब हमें होने लगेगी तो तुरन्त ही इस भाव में हम पहुंच जाएंगे 


न तो मैं मन हूँ, न बुद्धि या अहंकार,

न तो मैं सुनने की इंद्रियाँ हूँ, न ही चखने  सूँघने  या देखने की इंद्रियाँ हूँ,

न तो मैं आकाश हूँ, न पृथ्वी, न अग्नि और न ही वायु,

मैं नित्य शुद्ध आनंदमय चेतना हूँ; मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ,

नित्य शुद्ध आनंदमय चेतना हूँ

यह भाव अद्भुत है तभी कवि कहता है 

मैं तत्व शक्ति विश्वास समस्याओं का निश्चित समाधान

मैं जीवन हूं मानव जीवन मैं सृजन विसर्जन उपादान


आचार्य जी  वाचिक संवाद द्वारा नित्य यही प्रयास करते हैं कि यह भाव हम सबके मन में आए और हम लोग एक रूप होकर भारत के रूप में परमात्मा प्रदत्त जो प्रसाद हमें मिला है उसमें रहने का आनन्द प्राप्त करें अपने मन को चंगा करने का यह सुअवसर न गवाएं 

आचार्य जी परामर्श देते हैं कि हम  पढ़ने सुनने के साथ धारण करने की अपनी क्षमता को विकसित करें जैसे ॐ आदिस्वर है मनुष्य क्यों अद्भुत है आदि विषय बहुत विस्तार चाहते हैं जो अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन द्वारा संभव है अंग्रेजी के कारण हमें जो भ्रम और भय हो गया है उससे बाहर निकलने का प्रयास करें 

श्री और सिया एक  है या अलग अलग, चहबच्चा ज्ञान -सिन्धु कौन मान रहा है,भैया विनय जी भैया मनीष जी की चर्चा क्यों हुई,क्या सारे दर्शन एक हैं, समन्वय सिद्धान्त के अनुयायी कौन थे धर्मान्तरित लोगों को वापस लाने का कार्य किसने किया जिसके कारण कबीर को कहना पड़ा 

सतगुरु हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग। 


बरस्या बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग॥


शिवाजी और मेंढकी का क्या प्रसंग है जानने के लिए सुनें

6.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 6 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११९६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  6 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११९६ वां* सार -संक्षेप

अध्ययन, स्वाध्याय,चिन्तन, मनन के साथ निदिध्यासन की प्राप्ति होने पर मनुष्य ज्ञान स्वरूप हो जाता है लेकिन अपने शरीर मन बुद्धि विवेक विचार चैतन्य के साथ हमें जो मनुष्य जीवन प्राप्त हुआ है उसमें इस भाव को ग्रहण करना कठिन लगता है  गुरु हमारा अंधकार दूर करता है भारत देश तो ऐसा है जिसमें मिट्टी की मूर्ति में भी गुरुत्व का वरण हो जाता है भक्त का भाव देखिए 

भक्त को मूर्ति में ही साक्षात् इष्ट दिखाई देता है 


भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥ सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥

नाम का जप 

(मानस,उपांशु,वाचिक, जिह्वा,नित्य,नैमित्तिक,काम्य, निषिद्ध,प्रायश्चित,अचल आदि जप के प्रकार हैं )

भी अद्भुत भाव बोध है

यह चौपाई मानस के बाल कांड से है 

तुलसीदास जी ने बहुत अध्ययन किया 

वाल्मीकि जी से तुलना की जाए तो तुलसीदास जी हमारे अधिक निकट हैं उनकी रचना मानस 

 रामायण,अनेक पुराणों में निहित ज्ञान का अमृत है इसमें वेदों, शास्त्रों और उपनिषदों का भी सार है।इसमें सबसे प्रमुख बात है कि अपने सुख के लिए उन्होंने मानस की रचना की 

जिससे अपने मन को शान्ति मिले ऐसी बात जब कही जाए तो वह अधिक प्रभावकारी होती है 

उन्हें श्री राम के चरित्र में शान्ति मिली 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विनय जी,मोटवानी जी का नाम क्यों लिया पद्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा विष्णु महेश एक हैं या तीन हैं 

किसी एक तत्त्व पर पहुंचने के लिए हमें क्या करना चाहिए 

*वो बात कहां से लाओगे* किसने कहा था आगामी रविवार की बैठक की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

5.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११९५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  5 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११९५ वां* सार -संक्षेप


संसार का चक्र अत्यन्त अद्भुत है और सामान्य बुद्धि की समझ से परे है जब भक्त, जो परमात्मा का ही अंश है,की बुद्धि संसार की विचित्रता देखकर काम नहीं करती तो वह शरणागत हो जाता है

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥'



वह सच्चिदानंदघन परब्रह्म पुरुषोत्तम परमात्मा सभी प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है। यह जगत् भी उस परब्रह्म से पूर्ण  है, क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है।


इस मन्त्र का प्रारम्भ ॐ से हो रहा है यह ॐ वह आदिस्वर है जो परमात्मा की भावभूमि से उत्पन्न होकर उसकी वैखरी से प्रकट हुआ है 

परमात्मा का अस्तित्व मनुष्य की कल्पनाओं में ही संभव है तिर्यग्योनि के लिए असंभव


जो इस काल्पनिक तत्त्व को प्राप्त करने के पश्चात् भी उस कल्पना जगत में प्रवेश नहीं कर पाता वो मनुष्य के रूप में पशु ही है

संसार असार इस कारण है क्योंकि वह परिवर्तनशील है जब कि परमात्मा अपरिवर्तित रहता है 

जो कुछ है वह परमात्मा से व्याप्त है उसका *त्यागपूर्ण उपभोग* करना चाहिए

आचार्य जी ने इसके लिए मकानमालिक और किरायेदार का उदाहरण दिया यह संसार किराये के मकान की तरह है और उसका मकान मालिक परमात्मा है 

जाते समय कोई विवाद नहीं खड़ा करना यही ईश्वरत्व है ब्रह्मत्व है 


कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥

आचार्य जी ने भौतिकवादियों और अध्यात्मवादियों में अन्तर बताया और 

ईशावास्योपनिषद् को पढ़ने का परामर्श दिया जिसके सारे छंद हम याद कर सकते हैं 

संसार के संकट हमारे विलाप करने से दूर नहीं हो सकते


इसके अतिरिक्त भैया विनय अजमानी जी का उल्लेख क्यों हुआ रामकथा सुनाने के लिए आचार्य जी क्या अपेक्षा कर रहे हैं  विद्यालय में स्थित हनुमान जी की मूर्ति के विषय में आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

4.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११९४ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  4 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११९४ वां सार -संक्षेप



श्रीरामचरित मानस में उत्तर कांड का विशेष महत्त्व है 


केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं

शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्‌।

पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं।

नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम्‌॥1।


मोर के कण्ठ की आभा के समान  नीलवर्ण, देवों में श्रेष्ठ, ब्राह्मण के चरणकमल के चिह्न से सुशोभित, शोभा से परिपूर्ण, पीत-अम्बरधारी, कमल नेत्र, सदैव प्रसन्न, हाथों में बाण व धनुष धारण किए हुए, वानर समूह से युक्त भ्राता लक्ष्मण जी से सेवित, स्तुति किए जाने योग्य, मां जानकी  के पति, रघुकुल श्रेष्ठ, पुष्पक विमान पर सवार श्री रामचंद्र जी को मैं निरंतर नमस्कार करता हूँ


इसके बाद उत्तरकांड में वर्णित है 


श्री राम जी के लौटने की अवधि का एक ही दिन शेष रह गया तो अयोध्यावासी बहुत आतुर हो रहे हैं। राम के वियोग में दुबले हुए स्त्री-पुरुष जहाँ-तहाँ विचार कर रहे हैं कि श्री रामजी क्यों नहीं आए


फिर रामराज्य का वर्णन है उसके पश्चात् ऋषियों देवताओं के प्रश्नोत्तर हैं अन्त में भरत के प्रश्नोत्तर हैं 

और उसके बाद गरुड़ जी की स्थिति को दर्शाया है 

उनका भ्रम दर्शाता यह सोरठा देखिए 


मोहि भयउ अति मोह प्रभु बंधन रन महुँ निरखि।

चिदानंद संदोह राम बिकल कारन कवन॥68 ख॥


युद्ध में प्रभु का नागपाश - बंधन देखकर मुझे अत्यंत मोह हो गया था कि श्री राम जी तो सच्चिदानंद हैं फिर वे किस कारण व्याकुल हैं


फिर उनका संशय दूर हो जाता है

ऐसे ही बहुत से लोग ये काल्पनिक मानते हैं मनुष्य रूपेण मृग विशेष रूप से 

कलियुग में ऐसे लोभी लंपटों की तो भरमार है 

अद्भुत है संसार 

हम सनातनधर्मी ये सब सत्य मानते हैं 


भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप।

किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप॥ 72 क॥

भक्तों के लिए ही भगवान ने साधारण मनुष्य के रूप में ऐसी लीलाएं अनेक बार की हैं 


परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥


हम सब नर उन्हें साधारण नर समझ लेते हैं तो हमारा भ्रम बहुत भयानक हो जाता है 



निर्गुन रूप सुलभ अति सगुन जान नहिं कोई।

सुगम अगम नाना चरित सुनि मुनि मन भ्रम होई॥ 73 ख॥


निर्गुण रूप अत्यंत सुलभ है, परंतु दिव्य सगुण रूप को कोई नहीं जानता, इसलिए उन सगुण भगवान के अनेक प्रकार के सुगम और अगम चरित्रों को सुनकर मुनियों के भी मन को भ्रम हो जाता है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने Third Way की चर्चा क्यों की भैया राजेश गर्ग जी का नाम क्यों आया 'कुछ भी लिखो' किसने कहा एक सप्ताह का कौन सा कार्यक्रम बनाया जा सकता है जानने के लिए सुनें

3.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 3 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११९३ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  3 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११९३ वां सार -संक्षेप


हम  चाहे आमिषप्रिय हों या निरामिष देशभक्ति की भावना को तो हमें धारण करना ही चाहिए और ईमानदार भी रहना चाहिए 

आहार एक अलग विषय है और व्यवहार अलग विषय है जिनका आहार और व्यवहार दोनों ही पवित्र सनातनानुकूल हो जाते हैं वो विशिष्ट हो जाते हैं हम सामान्य रहते हुए भी ईमानदारी देशप्रेम संगठन प्रेम आत्मीयता  शक्ति -संवर्धन समाजोन्मुखता की भावना को तो वरण कर ही सकते हैं

सूक्ष्म तत्व के जाग्रत होने पर स्थूल तत्व उसके पीछे भागा चला जाता है 


जो जहां है वहीं की समीक्षा करे


आत्मबल की स्वयं ही परीक्षा वरे 


संगठन -भाव क्षण भर न ओझल रहे 


देश के प्रेम की शीश शिक्षा धरे


जो देश के लिए समर्पित हो रहा हो उसके प्रति अपने मन में भाव भक्ति विश्वास रहे हम शक्ति की आराधना भी करें क्योंकि इस समय भारत पर संकटों के बादल छाए हुए हैं देवासुर संग्राम चल रहा है इसमें छल बल भी आवश्यक है दीनदयाल जी की नृशंस हत्या से विक्षुब्ध हम लोगों ने एक संकल्प लिया है

 वो भाव हम लोगों के नहीं मिटने चाहिए 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कार्तिक मास की पवित्रता के विषय में क्या बताया वर्तमान प्रधानाचार्य श्री राकेश राम त्रिपाठी जी का उल्लेख क्यों किया भैया पंकज जी भैया मनीष जी भैया उमेश्वर जी का नाम क्यों लिया 

आगामी चुनावों में हम क्या ध्यान रखें गृहस्थ आश्रम क्यों विशेष है जानने के लिए सुनें

2.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 2 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११९२ वां सार -संक्षेप

 तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मंह डेरा॥



प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  2 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११९२ वां सार -संक्षेप

हम राष्ट्र -भक्त संसार में रहते हुए संसार से असंपृक्त रहने का प्रयास करते हुए आचार्य जी का नित्य वाणी रूपी प्रसाद ग्रहण करते हैं और यह प्रसाद हमें ऊर्जा प्रदान करता है हमें समस्याओं को सुलझाने में सहायता करता है

हमें अपनी इन्द्रियों को नित्य शुद्ध और संयमित करना चाहिए 

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।


मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।3.42।।


शरीर से परे इन्द्रियाँ कही जाती हैं,इन्द्रियों से परे मन है  मन से परे बुद्धि  और जो बुद्धि से भी परे है, वह है आत्मा।।


एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।


जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।3.43।।


इस प्रकार बुद्धि से परे आत्मा को जानकर आत्मा (बुद्धि) के द्वारा आत्मा (मन) को वश में करके, हे अर्जुन ! तुम इस दुर्जेय कामरूप शत्रु को मारो।।

अपनी इन्द्रियों से हम विकार ग्रहण न करें यह प्रयास करें 

अपने शरीर मन बुद्धि विचार को परिमार्जित करना अत्यावश्यक है 

अपने इष्ट का ध्यान करते रहें  परमात्मा पर विश्वास रखें विश्वास कारगर होता है उपनिषद् गीता मानस हमें प्रेरणा देते हैं 

परिस्थितियों के हिसाब से व्यक्ति के अन्दर भिन्न भिन्न भाव उठते हैं भावहीन विचार प्रभावकारी नहीं होते 


इसके अतिरिक्त सेंट जेवियर से कौन आया था भैया पंकज जी भैया मनीष कृष्णा जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया सोहनलाल धर्मशाला का भावुक करने वाला कौन सा प्रसंग था 

बुद्धिराक्षस कौन होते हैं जानने के लिए 

1.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११९१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  1 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११९१ वां* सार -संक्षेप


साधनाएं अनेक होती हैं लेकिन सिद्धि एक ही है 

 वह सिद्धि है -अपने भीतर जो ईश्वरत्व की उपस्थिति है उसकी अनुभूति होना 

विद्या और अविद्या दोनों को हमें ठीक प्रकार से जानना चाहिए संसार के साथ उसके सार को समझना चाहिए हमें इसी जन्म में संसार के सारे रहस्यों को समझते हुए उचित मार्ग का चयन करना चाहिए हमें संसार में रहते हुए संसार के कष्टों व्याधियों व्याकुलताओं की समीक्षा करनी चाहिए हम अपनी दृष्टि स्पष्ट रखें हम कौन हैं कहां से आए हैं और हमें क्या करना चाहिए 

हमारे लक्ष्य में व्यक्तित्व का निर्माण स्पष्ट है 

राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष 

यही लक्ष्य है हमारा

हमें विभिन्न आवरण धारण करने हैं 

जाति पंथ के भेदभाव से ऊपर उठें त्यागपूर्वक उपभोग करें 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अध्ययन करें तो इसके साथ रहस्यों को भी समझें भावों को विस्तार दें 

यह सत्य है कि हमारी शक्ति देखकर लोगों को हमसे अनुरक्ति होगी 

हमें जहां से भी प्रेरणा मिले उसे लें 


जो महापुरुष विशेष प्रेरणा देते हैं उनमें स्वदेश की रक्षा में सक्रिय योगदान देने वाले गुरुगोविन्द सिंह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रेरक विचार विश्वास शक्ति के अवतार हैं वे शौर्यप्रमंडित अध्यात्म का एक अप्रतिम उदाहरण हैं



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सिख धर्म की पहली महिला योद्धा माई भागो (माता भाग कौर ) की चर्चा क्यों की भावुक कर देने वाली पुस्तक गोविन्द -गाथा की चर्चा क्यों हुई  सौरभ चतुर्वेदी भैया की चर्चा क्यों हुई मुक्तसर चमकौर निहंग का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें