बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥1॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 31 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२५१ वां* सार -संक्षेप
हमारा सौभाग्य है कि आजीवन भारत माता की सेवा में सन्नद्ध होने का संकल्प लेने वाले आचार्य जी का १८ जुलाई १९७० से प्रारम्भ हुआ दाम्भिक अनुभूति से इतर भावना पर आधारित संकल्पबद्ध शिक्षकत्व सदैव हमें शिक्षित प्रेरित उत्साहित संस्कारित करता रहा है हमारा मार्गदर्शन करता रहा है तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में
आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम इस भाव के साथ कि
" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "
संकल्पी जीवन जीने का प्रयास करें और यह अनुभूति करें कि
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्। सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः
हम तो
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्
मानस एक अद्भुत ग्रंथ है इसे हम यदि अपने मानस में उतार लें तो इससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता इस ग्रंथ की जितनी चर्चा की जाए उतनी कम है यदि हम खोजने का प्रयास करें तो इसके प्रत्येक कांड में ज्ञान, वैराग्य, शक्ति की उपासना और आत्मस्वरूप के दर्शन होते हैं
आइये भगवान् राम का स्मरण इस प्रकार करें ताकि हम शौर्य पराक्रम शक्ति तप त्याग संयम सेवा की अनुभूति कर सकें
केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं
शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्।
पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं।
नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम्॥1।
मयूर के कण्ठ की आभा के समान नीलवर्ण, सुरों में श्रेष्ठ, ब्राह्मण भृगुजी के चरणकमल के चिह्न से सुशोभित, शोभा से पूर्ण, पीत वस्त्रधारी, सरसिज अर्थात् कमल के नेत्र, (नरलीला करते समय दुःख व्यक्त करने वाले अन्यथा) सदा ही अत्यन्त प्रसन्न, हाथों में बाण और धनुष धारण किए हुए जो शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति कराता है , वानर समूह से युक्त, लक्ष्मण जी से सेवित, स्तुति किए जाने योग्य,सीता जी के पति, रघुकुल श्रेष्ठ, पुष्पक विमान पर सवार श्री राम जी को मैं निरंतर नमस्कार करता हूँ
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी भैया पंकज जी भैया यज्ञदत्त जी का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें