31.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 31 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५१ वां* सार -संक्षेप

 बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥

प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥1॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 31 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५१ वां* सार -संक्षेप


हमारा सौभाग्य है कि आजीवन भारत माता की सेवा में सन्नद्ध होने का संकल्प लेने वाले आचार्य जी का १८ जुलाई १९७० से प्रारम्भ हुआ  दाम्भिक अनुभूति से इतर भावना पर आधारित  संकल्पबद्ध शिक्षकत्व सदैव हमें शिक्षित प्रेरित उत्साहित संस्कारित करता रहा है हमारा मार्गदर्शन करता रहा है तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


आचार्य जी  परामर्श दे रहे हैं कि हम इस भाव के साथ कि 


" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "

संकल्पी जीवन जीने का प्रयास करें और यह अनुभूति करें कि 

अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्। सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः

हम तो 

चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्


मानस एक अद्भुत ग्रंथ है इसे हम यदि अपने मानस में उतार लें तो इससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता इस ग्रंथ की जितनी चर्चा की जाए उतनी कम है यदि हम खोजने का प्रयास करें तो इसके प्रत्येक कांड में ज्ञान, वैराग्य, शक्ति की उपासना और आत्मस्वरूप के दर्शन होते हैं

आइये भगवान् राम का स्मरण इस प्रकार करें ताकि हम शौर्य पराक्रम शक्ति तप त्याग संयम सेवा की अनुभूति कर सकें 

केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं

शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्‌।

पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं।

नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम्‌॥1।


मयूर के कण्ठ की आभा के समान  नीलवर्ण, सुरों में श्रेष्ठ, ब्राह्मण भृगुजी के चरणकमल के चिह्न से सुशोभित, शोभा से पूर्ण, पीत वस्त्रधारी, सरसिज अर्थात् कमल के नेत्र,  (नरलीला करते समय दुःख व्यक्त करने वाले अन्यथा) सदा ही अत्यन्त प्रसन्न, हाथों में बाण और धनुष धारण किए हुए जो शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति कराता है , वानर समूह से युक्त, लक्ष्मण जी से सेवित, स्तुति किए जाने योग्य,सीता जी के पति, रघुकुल श्रेष्ठ, पुष्पक विमान पर सवार श्री राम जी को मैं निरंतर नमस्कार करता हूँ


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी भैया पंकज जी भैया यज्ञदत्त जी का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें

30.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 30 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५० वां* सार -संक्षेप

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः को चरितार्थ करते हुए राष्ट्र -जागरण का महान् कार्य करने वाले  और यह अनुभव करने वाले कि दुष्टों के व्याघात से भारतवर्ष सदैव मुक्त हो जाए हविर्याजी आचार्य जी का प्रयास रहता है कि उनकी दृष्टि में हम जो पं दीनदयाल के अंश के अंश के रूप में हैं उनमें  ज्ञान बुद्धि विवेक प्रेम आत्मीयता शक्ति कूट कूट कर भर जाए हम भावसम्पन्न हो जाएं 

कल सम्पन्न हुए कार्यक्रम में प्रेम आत्मीयता की अद्भुत झलक देखने को मिली इसी प्रेम आत्मीयता का विस्तार संसार का आनन्द है

मनुष्य के जीवन में एक सहज प्रवाह चल रहा होता है पर्व उत्सव समुत्सव कार्यक्रम उस सहज प्रवाह को गति देने का कार्य करते हैं ये पर्व आदि मति देने का काम भी करते हैं


ये हमारे यहां संस्कार की एक विधि व्यवस्था रही है इसे हम विचारपूर्वक करते रहें इस तरह के संस्कारी जीवन से हमें उत्साह मिलता है


यदि कोई व्यक्ति उत्साह, तत्पर,

व्यापार करने में निपुण, व्यसनों से मुक्त, बहादुर,कृतज्ञ, अपने व्यवहार में दृढ़ है और मैत्रीपूर्ण व्यवहार करता है, तो धन की देवी महालक्ष्मी स्वयं उसके निवास में निवास करती हैं

लक्ष्मी और सरस्वती में बैर भी नहीं है जो व्यक्ति सरस्वतीवान् होता है लक्ष्मी के प्रति सम्मान प्रदर्शित करता है किन्तु उसके प्रति अतिलालायित नहीं रहता है उससे सम्पन्न कोई नहीं है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया 

भगवान् राम का जीवन आदर्श जीवन  है हमें इसका अनुभव करना चाहिए 

मानस के अयोध्या कांड में लक्ष्मण गीता का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि ८९ वें दोहे से ९८ वें दोहे तक के बीच की चौपाइयों को बार बार देखें 

पितु पद गहि कहि कोटि नति बिनय करब कर जोरि।

चिंता कवनिहु बात कै तात करिअ जनि मोरि॥95॥

आप जाकर पिताजी के चरण पकड़कर करोड़ों नमस्कार के साथ ही हाथ जोड़कर निवेदन करिएगा कि हे तात! आप मेरी किसी बात के लिए चिन्तित नहीं हों

भैया आलोक सिंह जी सतना वाले और भैया विकास मिश्र जी का उल्लेख क्यों हुआ फरवरी के किस कार्यक्रम की चर्चा हुई जानने के लिए सुनें

29.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 29 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२४९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 29 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२४९ वां* सार -संक्षेप


नाम रूपात्मक जगत्  एक बहुत ही गहरा और दार्शनिक विचार है

 हमारा जगत् नाम और रूप से बना हुआ है। यह विचार हमें यह स्मरण कराता है कि इस जगत् में सब कुछ नाम और रूप से जुड़ा हुआ है नाम के साथ भाव संयुत है जैसे भारत नाम आते हमारे भाव उससे संयुत हो जाते  हैं 

 इस जगत् में भारत का अपना वैशिष्ट्य है  आचार्य जी की भावभूमि के जाग्रत स्वरूप के रूप में विद्यमान हम लोगों को उसी वैशिष्ट्य के दर्शन कराने का प्रयास आचार्य जी करते हैं

भारत भगवान् राम की कर्मभूमि है मानस में एक प्रसंग है अयोध्या कांड का 

 प्रसंग है भगवान राम के लिए निषादराज से लक्ष्मण कहते हैं कि इन्हें मात्र अपना मित्र न समझें 


भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल।

करत चरित धरि मनुज तनु सुनत मिटहिं जग जाल॥93॥


वही कृपालु प्रभु श्री राम भक्त, भूमि, ब्राह्मण, गाय और देवताओं के कल्याण हेतु मनुष्य शरीर धारण करके लीलाएँ करते हैं, जिनके सुनने मात्र से जगत् के जंजाल मिट जाते हैं

यही हमारे सबके मन में भी आना चाहिए हम उन्हीं के अंश हैं समय समय पर रामत्व प्रकट भी होता है 

हमें समाज और देश के लिए कुछ करना है यह भाव रखें आत्मीयता का विस्तार करें 


उठें प्रात: सभी उत्साह का उत्सव मनाने को

निशा में नींद के पहले कि कुछ यह गुनगुनाने को 

बड़ा सौभाग्य है अपना कि भारतभूमि में जन्मे 

स्वयं की कर्मनिष्ठा शौर्य नवयुग को सुनाने को




फल की आकांक्षा किए बिना हम कर्म करने में विश्वास करते हैं हम यह भी मानते हैं कि हम अक्षर हैं अविनाशी हैं चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 



इसी तरह दीनदयाल विद्यालय का नाम आते ही हमारे भाव उससे संयुत हो जाते हैं 

पं दीनदयाल उपाध्याय जी का जीवन कर्म और चैतन्य एक एक स्वयंसेवक में अत्यन्त मार्मिक स्वरूप में विद्यमान था क्योंकि दुष्टों ने उनकी हत्या कर दी थी और तब विचार आया कि अनेक दीनदयाल खड़े किए जाएंगे और इस तरह दीनदयाल विद्यालय प्रारम्भ हो गया जिसके हम छात्र रहे हैं यह विद्यालय आत्म का विस्तार है शक्ति की संकल्पना है


आज इसी विद्यालय के हम पूर्वछात्रों द्वारा संचालित संस्था युगभारती का एक विशेष कार्यक्रम है जिसमें आप सभी सादर आमन्त्रित हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्री अशोक सिंघल जी का नाम क्यों लिया जब विद्यालय में labs बन गईं तो एक छात्र ने क्या कहा था जानने के लिए सुनें

28.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 28 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२४८ वां* सार -संक्षेप

 न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:


न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥3॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 28 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२४८ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों को हम वेदमार्ग के अनुयायी लोग ध्यान से सुनें चिन्तन करें और उसके पश्चात् यदि अपने जीवन में कार्यान्वित करेंगे तो हमें लाभ पहुंचेगा

इन्हें सुनकर हम शक्ति अर्जित करें असार संसार से इतर भी अपना चिन्तन रखें हम विभु आत्मा के अंश हैं यह अनुभूति करते हुए मनुष्यत्व की राह पकड़ें प्रेम आत्मीयता का पल्लवन करें अपने जीवन का तिमिर भगाएं प्रशंसा और निन्दा दोनों को पचाना सीखें देने का भाव रखें 

देवताओं में देने का भाव होता है वे अपने अपने भागों को प्राप्त कर संतुष्ट रहते हैं  यही दैवीय चिन्तन है इसी चिन्तन के आधार पर हम मानते हैं जो कुछ इस संसार में है वह सब ईश्वर का है 

देने का भाव न रख उससे इतर भाव रखेंगे तो कष्ट में रहेंगे व्यथित रहेंगे 


संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।

देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते।।

 हम सब एक साथ चलें; एक साथ बोलें; हमारे मन एक हों। प्राचीन काल में देवताओं का  आचरण ऐसा ही रहा इसी कारण से वे वन्दनीय हैं।

हम  अपनी संवेदनाओं विचारों विश्वासों के साथ एक दूसरे से संयुत रहें एक दूसरे से बोलें 

अपनी भुजाओं की शक्ति को पहचानते हुए हम यह अनुभूति करें कि कभी हम विश्व गुरु थे 

हम हैं वही जिन्होंने सागर पर पत्थर तैराए थे....


इसके अतिरिक्त हम लोगों के गांव सरौंहां में स्थित वाटर फिल्टर कैसे सही हुआ हरमेश जी का उल्लेख क्यों हुआ

जानने के लिए सुनें

27.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२४७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 27 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२४७ वां* सार -संक्षेप


हमारा लक्ष्य यूं तो वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः है ही हम अपना लक्ष्य यह भी बनाएं कि हमें अपने संगठन युगभारती को आजीवन जीवित जाग्रत रखना है और यह जाग्रत तब रहेगा जब हम स्वयं जाग्रत रहेंगे अपने विकारों को दूर करते चलेंगे इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य भी यही है कि आचार्य जी के हम भावांश अपने विकार दूर करें सामाजिक चिन्तन का चाव  रखें,भारतीय संस्कृति, मूल्यों और परंपराओं में योगदान करें राष्ट्र के लिए जाग्रत पुरोहित बनें, कुटुम्ब आधारित भारत में अपने कुटुम्बी के शारीरिक मानसिक भौतिक आध्यात्मिक कष्ट को दूर करें  इन वेलाओं के हर क्षण का आनन्द लेते हुए अपनी शक्ति शौर्य पराक्रम का संवर्धन करें किन्तु विनम्रता का त्याग किए बिना 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने

१७ सितम्बर​ १९५७ को एक मध्यवर्ग गुजराती ब्राह्मण परिवार में दिवंगत श्री वैकुंठनाथ जी नागर और श्रीमती लक्ष्मी नागर के घर, प्रयाग में गंगा नदी के तट पर बसे दारागंज में जन्मे सुन्दर कांड के अद्भुत वाचक श्री अजय याज्ञिक की चर्चा क्यों की भैया पुनीत श्रीवास्तव जी का उल्लेख क्यों हुआ भैया नीरज मैली चादर वाले क्या सहायता चाहते हैं भैया नीरज कुमार जी  १९८१ का नाम क्यों आया १९७५ बैच के अगले वर्ष ५० वर्ष पूर्ण हो रहे हैं तो हमें क्या करना है भैया मुकेश जी का जनरेटर से संबन्धित क्या प्रकरण था भैया विकास जी का फरवरी वाला क्या कार्यक्रम है जानने के लिए सुनें

26.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२४६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 26 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२४६ वां* सार -संक्षेप


जोग बियोग भोग भल मंदा। हित अनहित मध्यम भ्रम फंदा॥

जनमु मरनु जहँ लगि जग जालू। संपति बिपति करमु अरु कालू॥3॥



मिलना, बिछुड़ना, भले-बुरे भोग, शत्रु, मित्र आदि  सभी भ्रम के फंदे हैं। जन्म-मृत्यु, सम्पत्ति-विपत्ति, कर्म और काल जगत् के जंजाल हैं


धरा , घर, धन, नगर, परिवार, स्वर्ग, नर्क आदि जहाँ तक व्यवहार हैं इन सबका मूल अज्ञान ही है।

इस तरह इन सांसारिक प्रपंचों के बारे में विचार कर क्रोध न करें न किसी   पर दोषारोपण करें 


मलिन मनों की पीड़ा और गुबारों को दबा जतन से अपने भीतर कहें और सहें


क्योंकि 

मोह निसाँ सबु सोवनिहारा। देखिअ सपन अनेक प्रकारा॥

और 

इस संसार रूपी रात्रि में योगी लोग अर्थात् सृष्टि को स्रष्टा से संयुत करने वाले लोग जागते हैं,वे परमार्थी  भी हैं और प्रपंच  से छूटे हुए हैं। जगत् में जीव को जागा हुआ तभी मानना चाहिए, जब सम्पूर्ण भोग-विलासों से उसे वैराग्य हो जाए


 हम भी आत्मस्थ होने की चेष्टा करें


मैं तत्व शक्ति विश्वास समस्याओं का निश्चित समाधान

मैं जीवन हूं मानव जीवन मैं सृजन विसर्जन उपादान


 चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति करें इस  तात्विक चिन्तन के पश्चात् संसार में प्रवेश करें और विचार करें आनन्द किस विषय का है तो हम देखेंगे आनन्द संबन्ध  की  मधुरता का है मन मुटाव का नहीं क्यों कि हम भारत देश में जन्मे हैं हम जुड़ कर रहना चाहते हैं पश्चिमी जगत की सोच इसके विपरीत है हम समस्याओं से घिरने के पश्चात् भी आनन्द में रहते हैं 



डा पंकज जी कितनी पुस्तकें प्रकाशित कर रहे हैं, आचार्य जी ने श्री माता प्रसाद मिश्र जी की चर्चा क्यों की भैया नीरज अग्रवाल जी मैली चादर वाले का उल्लेख क्यों हुआ निकृष्ट क्षुद्र स्वार्थ क्या है अपनी युगभारती की प्रार्थना को आत्मसात् क्यों करना चाहिए जानने के लिए सुनें



25.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२४५ वां* सार -संक्षेप

 शिक्षा है संयम स्वाध्याय संकल्प सनातन स्वाभिमान

संतोष सरलता शुचिता मुदिता गरिमामय देशाभिमान

शिक्षा उत्साह उमंगों वाली आदिशक्ति की अमरकथा

सम्पूर्ण सृष्टि की जटिल समस्या सुलझा हरती सभी व्यथा

शिक्षित होकर भी जो पीड़ित या  व्यथित निराश्रित रहता है

वह अपने दुःखों अभावों को हरदम अपनों से कहता है 

 सचमुच में निरा अशिक्षित वह अक्षरबोधी  है यन्त्र मात्र 

दिखने में  मानव भले लगे पर सचमुच में है सिर्फ गात्र 


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 25 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२४५ वां* सार -संक्षेप

आचार्य जी नित्य मोह की निशा में सोने वाले हम लोगों को उत्साहित प्रबोधित प्रेरित करते हैं यह हनुमान जी की कृपा है 

आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि सदाचार का सार है कि हम भा में जो है रत ऐसे भारत की अनुभूति करें हम ऐसे क्षण खोजें जिन क्षणों में हमें शान्ति की अनुभूति हो जाए क्योंकि वे क्षण अत्यन्त अद्भुत और आनन्ददायक हैं

ऐसे ही क्षण इस वेला में हमें प्राप्त हो रहे हैं तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


कलि: शयानो भवति सञ्जिहानस्तु द्वापर:।

उत्तिष्ठंस्त्रेता भवति कृतं सम्पद्यते चरन्।।

चरैवेति। चरैवेति।।

ऐतरेयोपनिषद् के इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार है- जो शयन कर रहा है वह कलियुग है


मोह निसाँ सबु सोवनिहारा। देखिअ सपन अनेक प्रकारा॥1॥

, निद्रा से उठ  जो जम्हाई ले रहा है वह द्वापर है, उठकर खड़ा हो जाने वाला त्रेतायुग है लेकिन सतत जाग्रत होकर जो चल रहा है, वह कृतयुग अर्थात् सतयुग  है जिसमें सर्वत्र शिवत्व प्रसरित है । इसलिए चलते रहो, चलते रहो l

अयोध्या कांड में एक प्रसंग है



श्री राम जी और सीता जी को जमीन पर सोते हुए देखकर निषाद को बड़ा दुःख हुआ


बोले लखन मधुर मृदु बानी। ग्यान बिराग भगति रस सानी॥

काहु न कोउ सुख दु:ख कर दाता। निज कृत करम भोग सबु भ्राता॥2॥


तो निषादराज से भगवान् राम, जो नर रूप धारण कर धरा पर आए हैं,की सेवा के कारण लगातार जागने का संकल्प लेने वाले लक्ष्मण जी 

ज्ञान, वैराग्य और भक्ति के रस से सनी हुई मीठी और कोमल वाणी में कह रहे हैं 

 

(यह उपदेश लक्ष्मण -गीता नाम से प्रसिद्ध है )

हे भाई! कोई किसी को सुख-दुःख का देने वाला नहीं है। सब अपने ही किए हुए कर्मों का फल भोगते हैं l



एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी। परमारथी प्रपंच बियोगी॥

जानिअ तबहिं जीव जग जागा। जब सब बिषय बिलास बिरागा॥2॥


इस जगत् रूपी रात्रि में योगी लोग जागते हैं वे परमार्थी हैं और प्रपंचों से छूटे हुए हैं। जगत् में जीव को जाग्रत तभी जानना चाहिए जब उसे सम्पूर्ण भोग-विलासों से वैराग्य हो जाए


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भीगे नोटों वाला क्या प्रसंग बताया अभावों की अनुभूति और मनुष्यत्व की अनुभूति में क्या अन्तर है भैया चांद सेठ जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

24.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२४४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 24 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२४४ वां* सार -संक्षेप


अनेक विकारों से परिपूर्ण इस संसार में उत्थान पतन चलता रहता है ऐसे में हम यदि अपने तत्त्व  को विस्मृत नहीं करेंगे तो व्याकुल नहीं होंगे

हमारा कातर्य दूर होगा हमसे संयुत विकृत स्थितियां हमें भूली रहेंगी

इस तत्त्व की अनुभूति अर्थात् हम मनुष्य हैं इसकी अनुभूति अत्यन्त अद्भुत है

षड्विकारों से ग्रस्त इस संसार में इन्द्रियों से संयुत कामना के विषय व्यक्ति को पतित कर देते हैं 


मानव जीवन के आध्यात्मिक, भौतिक, और नैतिक विकास के लिए चार पुरुषार्थ बताए गए हैं ये यदि हमारे अन्दर व्यवस्थित रूप में हैं तो हमारा ओजस प्रकट होगा

हमारा जन्म निरर्थक नहीं होगा अन्यथा 


धर्मार्थकाममोक्षणां यस्यैकोऽपि न विद्यते।


अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम् ll 


धर्म, अर्थ,काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों में से जिस व्यक्ति में एक भी नहीं होता उसका जन्म बकरी के गले में लटकने वाले स्तन के समान बिना अर्थ का होता है


ईशोपनिषद् शुक्ल यजुर्वेदीय शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है। यह उपनिषद् अपने नन्हें कलेवर के कारण अन्य उपनिषदों के बीच बेहद महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है यह सर्वश्रेष्ठ उपनिषद्  कहा जा सकता है जिसके अठारह ही छंदों में सब कुछ बता दिया गया है 

इसका तीसरा छंद है 

असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसाऽऽवृताः।


ताम्स्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ॥3॥

मानव शरीर सभी शरीरों में श्रेष्ठ है 

देवता से इतर असुर केवल लेना ही लेना जानते हैं जब अपने भीतर असुरत्व भर जाता है तो मनुष्य होते हुए भी हम पशु हैं इसलिए मनुष्य होने के कारण हमें त्यागपूर्ण भोग करना चाहिए

अपने द्वारा ही अपने का उद्धार हमें करना चाहिए हम अपने आत्म को पहचानें अन्यथा हम एक बद्धजीव ही हैं

आत्मस्थ होकर आनन्दित होने का प्रयास करें 

हम विभुआत्मा के अंश अणुआत्मा हैं  

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने स्वामी विवेकानन्द के विषय में क्या बताया राम स्वारथ जी और बैल का क्या संदर्भ है यजुर्वेद का क्या अर्थ है निज घर क्या है जानने के लिए सुनें

23.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२४३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 23 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२४३ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण दूरस्थ शिक्षा का एक विलक्षण माध्यम बन गए हैं जिनमें ज्ञान ध्यान चिन्तन अध्ययन स्वाध्याय समाजोन्मुखता शास्त्रीय चिन्तन सांसारिक व्यवहार आदि समाहित है हमें इनका लाभ उठाना चाहिए आइये प्रवेश करें आज की वेला में 

गीता का एक श्लोक है 

यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः


समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति।


तथा तवामी नरलोकवीरा


विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति।।11.28।।


जिस प्रकार नदियों के अनेक जलप्रवाह समुद्र की ओर वेग से बहते हैं, उसी प्रकार मनुष्यलोक के  वीर योद्धागण आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश करते हैं।।

इसी प्रकार एक सिद्धान्त "वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः " के लिए अनेक संस्थाएं कार्यरत हैं

पं दीनदयाल जी के बलिदान के भाव से उपजी युगभारती ऐसी ही  एक  जीवन्त संस्था है 

हमने अपने भारत राष्ट्र के लिए कमर कसी है वैदिक चिन्तन भी उसी से संबन्धित कार्य है

ऋग्वेद की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने पूर्त शब्द का उल्लेख किया और बताया कि अनेक लोकोपकारी धार्मिक कार्य हैं जैसे कुएं बनबाना तालाब बनवाना विद्यालय बनवाना बाग धर्मशाला का निर्माण  ये सभी पूर्त कार्य हैं


युगभारती चार स्तंभों शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा के आधार पर कार्य कर रही है जिसमें उन्नाव स्थित सरस्वती विद्या मन्दिर विद्यालय शिक्षा का एक माडल है कल इसी विद्यालय की प्रबन्धकारिणी समिति की बैठक थी जिसमें एक प्रस्ताव पारित हुआ उस प्रस्ताव के बारे में युगभारती अपनी कार्यकारिणी में विचार करेगी 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी भैया प्रदीप वाजपेयी जी भैया वीरेन्द्र जी भैया मोहन जी भैया अभय जी भैया मुकेश जी का नाम क्यों लिया  पं मदन मोहन मालवीय का उल्लेख क्यों हुआ औरास के राष्ट्रीय विद्यालय और कुम्भ की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

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22.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 22 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२४२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 22 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२४२ वां* सार -संक्षेप


हमारी प्रच्छन्न शक्तियों को जाग्रत करने लिए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं यह भगवान् की कृपा है


सांसारिक प्रपंचों को जिस क्षण हम विस्मृत कर देते हैं उस क्षण हम कहते हैं चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्

कोई एक भाव हम यदि ग्रहण करें और उसके अभ्यास को न त्यागें तो वह हमारी शक्ति बन जाता है  हम गुणों को ग्रहण करते चलें दोषों को त्यागने की दिशा में चलते रहें तो हमारा कल्याण होगा अपनी धरती को भोगभूमि नहीं मानें  हमारा देश अद्भुत है इसकी अद्भुतता की अनुभूति न करने पर हम व्याकुल होते हैं संबन्धों के विस्तार त्याग धन की अधिक कामना करना गलत है आत्म को विस्मृत करने पर  भी हम बेचैन होते हैं 

यदि हम सांसारिक प्रपंचों को विस्मृत नहीं कर पाते तो अच्छी बात कहकर भी उसका अनुपालन नहीं कर पाते इसका अर्थ है हम सत्त्व के अभ्यासी नहीं हैं

विभूतिमत्ता का अनुभव करने पर हम अहंकारी नहीं रह जाते हमें लगता है जो कर रहा है परमात्मा ही कर रहा है और परमात्मा सब अच्छा ही करता है  जो कुछ संसार में है सब ईश्वर का ही तो है आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि 

जो भी सांसारिक कर्म करें उसे पूजा भाव से करें 

कभी कर्तव्य-पथ से ध्यान टुक हटने न देना है 

कभी निज शक्ति मेधा को भ्रमित बँटने न देना है 

अभी मंजिल भले ही दूर हो पर धैर्य संयम तो 

परिस्थिति कोई हो उसको कभी घटने न देना है।

 आचार्य जी ने कन्नौज की चर्चा करते हुए बताया कि ऋषि ऋचीक का विवाह राजा गाधि की बेटी सत्यवती से हुआ था विवाह के लिए राजा गाधि ने एक हजार श्यामकर्ण अश्व ऋषि से मांगे तो ऋषि ने वरुण देव से कहकर अश्व वहीं प्रकट कर दिए


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि राष्ट्र -भक्त संस्थाओं से अपनी संस्था को संयुत करते चलें नई पीढ़ी को सनातन धर्म भारतीय संस्कृति से परिचित कराएं 

इसके अतिरिक्त परशुराम कुंड की चर्चा क्यों हुई आज की बैठक का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

21.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२४१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 21 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२४१ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर यदि हमें भारतवर्ष के सात्विक चिन्तन का अवबोध हो जाए, शरीर को विस्मृत कर शरीरी का भान हो जाए, अपने आत्मिक तत्त्व की जानकारी हो जाए तो समझना चाहिए कि भगवान्,जो 


बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥

आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥


 है,की कृपा है

तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में सांसारिक प्रपंचों से मुक्त होकर आनन्द -अर्णव में तिरने के लिए 

संसार का स्वभाव विचित्र है कहीं सत्संग चल रहे हैं सदाचार वेलाएं चल रही हैं कुम्भ का आयोजन हो रहा है ५१ कुंडीय यज्ञ प्रारम्भ होने जा रहा है तो कहीं युद्ध हो रहे हैं राष्ट्रविरोधी तत्त्व सक्रिय होकर काम कर रहे हैं

किन्तु संसार का स्वभाव ऐसा है कि वह परिवर्तित होता रहता है जब बुराई आयेगी तो अच्छाई भी आयेगी  इस विश्वास के हम विश्वासी हैं हम मरते नहीं हैं हमारा शरीर सांत है अर्थात् जिसका अंत हो 


वासांसि जीर्णानि यथा विहाय


नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।


तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-


न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।

इसका क्षणांश भी अनुभव करें तो ऐसे क्षण आनन्द के हो जाते हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा प्रवीण भैया डा पंकज का नाम क्यों लिया कुम्भ के लिए किन भैया ने उत्साह का वातावरण तैयार किया उन्नाव के विद्यालय का उल्लेख क्यों हुआ 

कल हमें कहां जाना चाहिए

प्रेरणास्रोत पूज्य गुरुजी को जब बिच्छू ने काट लिया तो उन्होंने क्या किया   जानने के लिए सुनें

20.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष पञ्चमी /षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 20 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२४० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष पञ्चमी /षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 20 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२४० वां* सार -संक्षेप


हम लोग अनेक विकारों से ग्रस्त हैं शरीर से अत्यधिक स्वस्थ नहीं हैं मन कमजोर हैं बुद्धियां उतनी विकसित नहीं हैं किन्तु संसार में रहते हुए हमारा काम चल रहा है किन्तु गम्भीरता से हम सोचें और प्रयास करें कि हमारे विकार दूर हों अपने कर्तव्य का परिपालन समर्पित भाव से करने का प्रयत्न करें इसमें हमारा इष्ट निश्चित रूप से हमें शक्ति प्रदान करेगा अपने विकारों को दूर करने के लिए ये सदाचार संप्रेषण हमें सहायता प्रदान करेंगे तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


अर्जुन शरीर से स्वस्थ हैं अत्यन्त बलशाली हैं गुडाका पर उनका नियन्त्रण हैं ज्ञानी हैं उनमें अनेक गुण परिलक्षित हो रहे हैं किन्तु एक अवगुण कि परिवार के मोह


(मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥

काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥15॥)

 के कारण अपने कर्तव्य का ध्यान न देना और शैथिल्य प्राप्त कर लेना

के कारण भगवान् श्रीकृष्ण को वह ज्ञान देना पड़ा जो गीता के रूप में हमारे सामने है 

इसी के सत्रहवें अध्याय में शरीर वाणी और मन संबन्धी तप बताए गए हैं 


देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।


ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते।।17.14।।


देव, संस्कारी ब्राह्मण, गुरु जो हमारे भीतर का अंधकार दूर करे और ज्ञानी जनों का पूजन, स्वच्छता ,सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा  किन्तु अहिंसा ऐसी नहीं कि दुष्ट हमें हानि पहुंचाए और हम चुप बैठे रहें बल्कि 


"हम समर्थ हैं प्रबुद्ध धर्म अर्थ हैं 

सनातनी सशक्त दुष्ट के लिए अनर्थ हैं।"

यह भाव रखें 


शरीर संबंधी तप है

इसी प्रकार जो बोली उद्वेग उत्पन्न करने वाली नहीं है, जो प्रिय, हितकारक और सत्य है ऐसी बोली बोलना तथा वेदों का स्वाध्याय अभ्यास वाणी का तप है।


मन की प्रसन्नता पर ध्यान देना सौम्यभाव रखना , उचित समय पर मौन रखना आत्मसंयम और अन्त:करण की शुद्धि यह सब मानस तप हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने महाराणा प्रताप,रजनीश का नाम क्यों लिया  वीरयज्ञदत्त शर्मा जी से संबन्धित क्या प्रसंग है जानने के लिए सुनें

19.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष चतुर्थी /पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 19 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२३९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष चतुर्थी /पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 19 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२३९ वां* सार -संक्षेप


तुलसीदास, जिन्हें मां सरस्वती की कृपा का प्रसाद मिला, भारतवर्ष के मूलतत्व की कथा अर्थात् रामकथा  निम्नांकित दोहे से प्रारम्भ करते हैं 


अब रघुपति पद पंकरुह हियँ धरि पाइ प्रसाद।

कहउँ जुगल मुनिबर्य कर मिलन सुभग संबाद॥ 43(ख)॥


मैं अब प्रभु राम के चरण कमलों को हृदय में धारण कर एवं उनका प्रसाद प्राप्त कर दोनों श्रेष्ठ मुनियों याज्ञवल्क्य और 

भरद्वाज मुनि, जो प्रयाग में बसते हैं और जिनका राम के चरणों में अत्यंत प्रेम है,के मिलन का सुंदर संवाद वर्णन करता हूँ

(भारत की रक्षा में ऐसे अनेक मुनियों तपस्वियों का योगदान है ऐसे मुनियों तपस्वियों का चिन्तन कर उनकी तपस्विता को क्षण मात्र के लिए यदि हम अपने भीतर प्रविष्ट करा देते हैं तो परम पवित्र हो जाते हैं)


माघ मास में जब सूर्य मकर राशि पर जाते हैं तब अधिकांश लोग तीर्थराज प्रयाग को आते हैं और प्रातःकाल त्रिवेणी में स्नान करते हैं 


एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं। पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं॥

प्रति संबत अति होइ अनंदा। मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृंदा॥


फिर पूरे मकर भर स्नान करके सब मुनि अपने आश्रमों को लौट गए। परम ज्ञानी याज्ञवल्क्य मुनि को चरण पकड़कर ऋषि भरद्वाज ने  जाने से रोक लिया 


सादर चरन सरोज पखारे। अति पुनीत आसन बैठारे॥

करि पूजा मुनि सुजसु बखानी। बोले अति पुनीत मृदु बानी॥

 गुरु के साथ छिपाव करने से हृदय में पवित्र ज्ञान नहीं होता है 

हे नाथ! सेवक पर दया करके मेरे अज्ञान का नाश कीजिए। संतों, पुराणों और उपनिषदों ने राम नाम के अनन्त प्रभाव का गान किया है।

अविनाशी भगवान शिव भी निरंतर राम नाम का जप करते रहते हैं।

रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही। कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही॥

तो उत्तर देते हैं 


एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा॥

नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयउ रोषु रन रावनु मारा॥


आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त परामर्श दिया कि युगभारती के हम सदस्य महाकुम्भ जाने की योजना बनाएं एक संगठन के रूप में वहां एकत्र हों 

भैया मनीष कृष्णा जी भैया विकास जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया २९ दिसंबर के कार्यक्रम के विषय में क्या कहा जानने के लिए सुनें

18.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 18 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२३८ वां* सार -संक्षेप

 बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध बिद्या पाएँ।

बूँद अघात सहहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसे


बादल पृथ्वी के पास आकर  बरस रहे हैं,जिस प्रकार विद्या प्राप्त कर विद्वान्‌ नम्र हो जाते हैं। बूँदों की चोट पर्वत उसी तरह सहते हैं, जैसे दुष्टों के वचन संत सहते हैं


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 18 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२३८ वां* सार -संक्षेप


प्रतिदिन अनेक झंझावातों को झेलते हुए यदि प्रातः अच्छा चिन्तन मनन संकल्प हो जाए तो यह लाभकारी है ये सदाचार संप्रेषण हमारे विकारों के शुद्धिकरण का प्रयास हैं आचार्य जी हमें ध्यान दिलाते हुए कि अभी बहुत काम बाकी हैं नित्य यही प्रयास करते हैं कि हम अपने धर्म अपनी संस्कृति को जानें  सोए सनातन को जाग्रत करने के लिए उठें भय और भ्रम को दूर करें आत्मस्थ होने का प्रयास करें यह अनुभव करें कि हम ईश्वर के अविनाशी अंश हैं 

अनेक ऋषियों महर्षियों ज्ञानियों तपस्वियों ने हमें जो प्रदान किया है उसे जानना पहचानना और आत्मसात् करने का प्रयास करना हमारे अन्दर घर कर गई हीन भावना को समाप्त कर देगा

अपनी जड़ों  से कटकर अंग्रेजी बोलना अंग्रेजी व्यवहार यह दिखाता है कि हम हीन भाव से ग्रसित हैं

हमने अपना लक्ष्य बनाया है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष 

हम  अपनी परम्परा प्रथा के अति आग्रही स्वाभिमानी राष्ट्रभक्तों का संगठन कर रहे हैं तो हमारा एक कर्तव्य बन जाता है कि हम देखें क्या हमारा जीवन सनातन धर्म के अनुकूल है?


यदि नहीं है तो हमें इस ओर ध्यान देना है  अपनी नई पीढ़ी को अपनी परंपरा से संयुत करें उसे शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की विशेषताएं बताएं 

और 


मिले जितने सुजन उनको संजोकर एक रखना है 

जहाँ जो रुक गए उनको समझना है परखना है

अभी मंजिल हमारी दूर है पर आयेगी निश्चित

यही संकल्प हम सबको अहर्निश नित्य रखना है।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हमारे गांव सरौंहां के जल शोधन यन्त्र की चर्चा क्यों की वर्षा से संबन्धित कौन सी चौपाइयां आचार्य जी ने बताईं शिशुपाल की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

17.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२३७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 17 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२३७ वां* सार -संक्षेप

हमारे उत्साह में विश्वास में वृद्धि करने का सामाजिक चैतन्य को जाग्रत करने का हमारी हीनभावना को दूर करने का हमें याद दिलाने का कि आज का युगधर्म शक्ति उपासना है एक नित्य प्रयास चल रहा है जिससे हम अपने व्यक्तित्व को विस्तार देते हुए अपना दृष्टिकोण सामाजिक रख सकें स्वयं तक ही सीमित न रह जाएं  अपने परिवार  परिवेश को आदर्श स्वरूप दे सकें भय भ्रम से दूर हो जाएं 

हमारे भारतीय जीवनदर्शन में अनेक विलक्षण महत्त्वपूर्ण तत्त्व भरे पड़े हैं जैसे हम सारी प्राकृतिक संपदाओं के स्वरूप में दैवीय चिन्तन करते थे शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की शक्ति की अनुभूति करते थे हमारी भाषा सर्वश्रेष्ठ रही है हमारा धर्म सर्वश्रेष्ठ रहा है हम ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र में विभेद नहीं करते थे हम विश्वगुरु भी थे हमारा समाज सशक्त था जिसकी बहुत से लोगों ने नकल की फिर भी 

हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा

अरुणाचल की छवि बनी नयन में धुँधली कंचन रेखा


जब हम हीनभावना से ग्रसित हो जाते हैं तब हम बहुत सारी नकल करने लगते हैं और यदि हम आत्मस्थ होते हैं तो हमें  भाषा वेश व्यवहार आदि की नकल करने की आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि हमारा चिन्तन एकाग्र रहता है इस कारण हम स्वयं तो आत्मस्थ हों ही   नई पीढ़ी की ओर भी ध्यान दें

क्योंकि नई पीढ़ी को भी आत्मस्थ होकर चिन्तन करने की आवश्यकता है यद्यपि काम चुनौतीभरा है

आचार्य जी ने मनुस्मृति की चर्चा की मनु ने वैदिक विचारों की रक्षा की मनुष्य की प्रकृति के अनुसार उन्होंने वर्ण व्यवस्था की इसी प्रकार चार आश्रमों की व्यवस्था की हर आश्रम के अलग अलग नियम बनाए 

अनेक विद्वानों ने मनुस्मृति पर व्याख्याएं लिखीं 


व्यक्तित्व विकास की  गलत रीतियों से क्या हो रहा है नारदस्मृति की चर्चा क्यों हुई सोरोस काशीराम का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

16.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 16 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२३६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 16 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२३६ वां* सार -संक्षेप


हमारे निकट राष्ट्रीय शक्ति के संवर्धन हेतु जो भी कार्यव्यवहार चल रहे हों हम उनमें सम्मिलित हों और उनके अनुकूल व्यवहार भी करें

विचारपूर्वक व्यवहार करें और उस व्यवहार के प्रभाव की समीक्षा भी करें

आकलन करें कि समाज को इससे क्या लाभ मिला क्योंकि समाज एक सिन्धु है और हम उसके बिन्दु हैं 


सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।


हमने राष्ट्र -सेवा में सन्नद्ध रहने का संकल्प लिया है युग भारती से इतर राष्ट्र -सेवा में जो भी रत हैं वे भी हमारे साथी सहयोगी हैं हमें यह मानना चाहिए 

राष्ट्र -सेवा की दिशा में अध्यात्म पर आधारित ऐसा ही एक एकत्रीकरण कल हुआ

५१ कुंडीय गायत्री महायज्ञ एवं पावन प्रज्ञा पुराण कथा नामक कार्यक्रम का कल भूमिपूजन सम्पन्न हुआ और मियांगंज से हसनगंज तक की कलशयात्रा निकली


ये सदाचार संप्रेषण हमें अत्यन्त उत्साहित करते हैं हमें सही दिशा में चलने का हौसला देते हैं हमारे विकारों को दूर करने की प्रेरणा देते हैं हमें प्रवाहपतित होने से बचाते हैं सदाचार धर्म का एक भाग है धर्म एक विस्तृत विषय है किन्तु अर्थ -संकोच के कारण यह संकुचित विषय जैसा लगने लगा 

जब कि  

मनुस्मृति के अनुसार धर्म है 


वेदः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियमात्मनः। एतच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाद्धर्मस्य लक्षणम्॥

आचार्य जी ने इस छंद की व्याख्या की इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बलराम सिंह परिहार बहन मायावती का उल्लेख क्यों किया भैया मुकेश जी के घर के विषय में आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

15.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 15 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२३५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 15 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२३५ वां* सार -संक्षेप


हमारा देश भास्वर भक्ति का

प्रतिमान है स्वर है

इसी ने तत्त्वदर्शन कर कहा संसार नश्वर है

न जाना जिस किसी ने इस धरा के मूल शिवस्वर को

वही भूले भ्रमे फिर फिर रहे हैं छोड़ निजघर को ।

हमें निजघर नहीं भूलना है अर्थात् हमें अपना अस्तित्व नहीं भुलाना है 

हमने दीनदयाल जी की अधूरी यात्रा को पूर्ण करने का संकल्प लिया है 

हमारा विद्यालय भारतीय विचार दर्शन को आगे बढ़ाने के लिए और भारत राष्ट्र को सशक्त समृद्ध वैभवशाली बनाने का प्रयास कर रहे 

दीनदयाल जी की अपूर्ण कामना को पूर्ण करने के लिए खुला और इस कारण हमारा कर्तव्य बन जाता है कि हम राष्ट्रोन्मुखी समाजोन्मुखी जीवन जिएं 

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं वह हृदय नहीं है पत्थर है......


जितनी भौतिकता में वृद्धि होती है भाव उतना ही विलुप्त होने लगता है फिर संसार दिखाई देने लगता है प्रदर्शन में रुचि हो जाती है सार से दूरी बन जाती है जब तक भावमय संसार अस्तित्व में रहता है मनुष्य मनुष्यत्व के आनन्द की अनुभूति करता रहता है

हम मनुष्यत्व की अनुभूति कर सकें संसार के साथ साथ सार को भी समझने का प्रयास कर सकें हम इन सदाचार संप्रेषणों का आश्रय ले सकते हैं 

इनका श्रवण एक अच्छा कार्य है यदि हम किसी एक भी अच्छे कार्य को करने की  ठान लें और तय कर लें कि कैसी भी विषम परिस्थिति आए हम उसे नहीं छोड़ेंगे तो हमारे अनेक विकार शनैः शनैः दूर होने लगते हैं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया आशीष ओमर जी भैया मनीष जी भैया वीरेन्द्र जी का नाम क्यों लिया भैया मुकेश जी के ५१ कुंडीय गायत्री महायज्ञ की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

14.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 14 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२३४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 14 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२३४ वां* सार -संक्षेप


इस समय उथल पुथल मची हुई है लेकिन हम राष्ट्र -भक्तों

( विध्वंसों का ताण्डव फैला हम टिके सृजन के हेम -शिखर ।

हम मनु के पुत्र प्रतापी हैं वर्चस्वी धीरोदत्त प्रखर।)


 ने यदि अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया है तो इस उथल पुथल से कोई अन्तर नहीं पड़ने वाला हम अपने लक्ष्य तक अवश्य पहुंचेंगे

ये उथल-पुथल उत्ताल लहर पथ से न डिगाने पायेगी।

पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी-आयेगी॥

 पतवार चलाना अनिवार्य है हमें भ्रमित नहीं होना है 

जब हम अपना आत्मबोध समाप्त कर लेते हैं तो दोषारोपण करते हैं और हानि पहुंचाते हैं 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अपनों से तो मिलें ही लेकिन नए लोगों के संपर्क में भी आएं जो हमारे अनुकूल लगें यही संगठन का विस्तार है


हमारे देश की शक्ति इधर उधर बिखरी हुई है


ऐसे में निराश न होकर अपने कर्म अपने धर्म का ध्यान रखें सर्वप्रथम हम अपने से सावधान रहें यही वरिष्ठ मूलमन्त्र है हम ध्यान रखें कि हमारी तार्किकता हमारी शक्ति हमारे विचार हमारा चिन्तन मनन राष्ट्रोन्मुखी ही रहे

यहां पर संगठन महत्त्वपूर्ण हो जाता है संगठन और भीड़ में अन्तर है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की संगठन के रूप में शक्ति हम देख ही रहे हैं 

युगभारती एक संगठन है जिसमें प्रेम आत्मीयता अनिवार्य है हम ध्यान दें कि यह संगठन भी एक शक्ति बने और अंधकार दूर करे

 हमारी शिक्षा आत्मबोधी होनी चाहिए 

हम अपना जीवन चक्र विचारों के साथ सशक्त बनाएं 

धार्मिकता क्या है भगवान् राम धर्म के विग्रह कैसे हैं 

ओमेन्द्र् जी क्या कर रहे हैं हसनगंज की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

13.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 13 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२३३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 13 दिसंबर 2024  का   सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२३३ वां* सार -संक्षेप


नित्य इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी हमारी छिपी हुई शक्तियों को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं 

अपने परिवार अपने परिवेश अपनी उलझी हुई परिस्थितियों अपने शरीर को विस्मृत कर यदि कुछ क्षण हम  परमात्मशक्ति की अनुभूति कर लें तो यह हमें अत्यन्त आनन्द की अनुभूति कराएगी

क्योंकि सत्य यही है कि जड़-चेतन प्राणियों वाली यह समस्त सृष्टि परमात्मा से ही व्याप्त है 


अबिगत गति कछु कहति न आवै।

ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥

परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।

मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥


अद्भुत व्यक्तित्व वाले तुलसीदास जी सभी प्रकार की सांसारिक और संसारेतर परिस्थितियों का सामना कर चुके हैं 

सामान्य भाषा में रचित असामान्य ग्रंथ मानस की रचना करते समय उन्हें राम के स्वरूप में संपूर्ण  ब्रह्माण्ड  का रहस्य दृष्टिगोचर हो गया 


सुनि गुरु बचन चरन सिरु नावा। हरषु बिषादु न कछु उर आवा॥



हृदयँ न हरषु बिषादु कछु बोले श्रीरघुबीरु


नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥


साक्षात् धर्म के विग्रह भगवान् राम के मन में न हर्ष था न विषाद चाहे वनगमन का समय हो चाहे धनुषभंग का समय हो 

ऐसे राम को भूल जो काम में मस्त रहे तो वह अभागा ही है


मानस का अयोध्या कांड अद्भुत है संसार की पूरी कथा का  यथार्थ वर्णन है 

इसी में एक प्रसंग है 

जब भगवान् राम को वनगमन का आदेश मिलता है 

धरम धुरीन धरम गति जानी। कहेउ मातु सन अति मृदु बानी॥

पिताँ दीन्ह मोहि कानन राजू। जहँ सब भाँति मोर बड़ काजू॥3॥

मां कौशल्या का अद्भुत चरित्र सामने आता है 


जौं केवल पितु आयसु ताता। तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता॥

जौं पितु मातु कहेउ बन जाना। तौ कानन सत अवध समाना॥1॥


ऐसी माताएं आज भी इस धरती पर हैं जो अपने पुत्रों को सेना में भेज देती हैं 

ऐसे अनेक मार्मिक प्रसंग हैं इस कांड में 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी का कौन सा प्रसंग बताया  मानस में आचार्य जी ने और क्या बताया तुलसीदास जी और हनुमान जी क्या एक ही हैं जानने के लिए सुनें

12.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 12 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२३२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 12 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२३२ वां* सार -संक्षेप

नित्य इन सदाचार संप्रेषणों को प्रेषित करने का उद्देश्य यह रहता है कि हम अपने शरीर को साधें मन को बांधें सद्विचारों को प्रसारित करें अपने विश्वासों को सुदृढ़ करें  

शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा नामक इन चार सिद्धान्तों के आधार पर हम अपना संगठन युगभारती चलाते हैं जिसमें शिक्षा मूल है

हम सभी शिक्षक के रूप में है हमें शिक्षकत्व की अनुभूति होनी चाहिए हमें उचित शिक्षा का बोध होना चाहिए 

शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो शक्ति उत्पन्न करे विचारशीलता का बोध कराए जब कि हमारे ऊपर ऐसी शिक्षा थोपी गई जिससे हमने शक्तिहीनता अक्षमता का अनुभव किया हमें अपना ही साहित्य खराब दिखने लगा अपनी भाषा में दोष दिखने लगे जब कि हमारी शिक्षा ऐसी होनी चाहिए थी जिससे हम शक्ति की अनुभूति कर सकें क्योंकि आज का युगधर्म भी शक्ति उपासना है और शक्तिहीनता से हमारे अन्दर बेचारगी आती है शक्ति का अर्थ मात्र भुजाओं की शक्ति ही नहीं है अपितु अपने मनुष्यत्व की अनुभूति वाली शक्ति है और यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है अध्यात्म में भी शक्ति महत्त्वपूर्ण है 

परमात्मा शिव के साथ शक्ति का ही संयमन कर सृष्टि रचता है

 


शिक्षा संयम स्वाध्याय संकल्प सनातन स्वाभिमान

संतोष सरलता शुचिता मुदिता गरिमामय देशाभिमान

शिक्षा उत्साह उमंगों वाली आदिशक्ति की अमरकथा

सम्पूर्ण सृष्टि की जटिल समस्या सुलझा हरती सभी व्यथा

शिक्षित होकर भी जो पीड़ित व्यथित निराश्रित रहता है

अपने दुःखों अभावों को हरदम अपनों से कहता है 

 सचमुच ही वह निरा अशिक्षित अक्षरबोधी -मानव है 

तन से मानव भले दिखे वह सचमुच में ही दानव है l


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आज ईशोपनिषद् की चर्चा क्यों की 


रामगोविन्द जी सलिल विश्नोई जी देवकी पैलेस वाले शर्मा जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

11.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 11 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२३१ वां* सार -संक्षेप

 अग्ने अस्मान् राये सुपथा नय। देव विश्वानि वयुनानि विद्वान् अस्मत् जुहुराणाम् एनः युयोधि ते भूयिष्ठां नम विधेम ॥

(ईशावास्योपनिषद्)

सब व्यक्त वस्तुओं के जानने वाले हे अग्निदेव! हम लोगों को सुपथ से, उत्तम मार्ग से आनन्द की ओर ले चलिए ; पाप का कुटिलता से भरा आकर्षण हमारे अन्दर से हटा दीजिए , दूर कर दीजिए आपके प्रति समर्पण  की सर्वाङ्गपूर्ण वाणी हम निवेदित करें।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 11 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२३१ वां* सार -संक्षेप


भावों को भाषाबद्ध करो कर्मठता हित 

वैभव विलास के चिन्तन को कुछ क्षण छोड़ो

प्रातः कुछ क्षण के लिए रहो उत्साह प्रमन 

निस्तेज जवानी को तेजस पथ पर मोड़ो

 हमारी जवानी को निस्तेज करने का कुत्सित प्रयास किया गया शिक्षा से भ्रमित किया गया अंग्रेजी का महिमामण्डन किया गया हमें यह समझ में आ जाना चाहिए


स्वशक्ति हिंदुराष्ट्र की विकीर्ण है इतस्ततः 

स्वकर्म धर्म सीखती रही विदेश से अतः 

हुए निराश या हताश शक्ति के अभाव में 

रहे बहुत दिनों तलक विदेश के प्रभाव में 


 इसलिए अब सचेत होकर हम तेजस पथ की ओर उन्मुख हों धर्माधरित धनार्जन करें हमारे यहां की शिक्षा अद्भुत है वेदों से लेकर मानस तक विलक्षण साहित्य है 


हमारी संस्कृति त्यागमयी संस्कृति है हमारी संस्था युगभारती की प्रार्थना के प्रथम छंद में ही इसकी झलक भी मिल रही है 

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌ ॥

किन्तु मात्र कार्यक्रमों में प्रार्थना को कहना हमें शिक्षित और संस्कारित नहीं कर पाएगा प्रशिक्षित भले ही कर दे

इसलिए हम मन्त्र के जप की तरह अपनी प्रार्थना को मन ही मन बोलते रहें जिसका प्रथम छंद 

ईशावास्योपनिषद्

से लिया गया है 

आचार्य जी ने ईशावास्योपनिषद् को पढ़ने का परामर्श दिया इसमें कुल अठारह ही छंद हैं इन्हें पढ़ने के साथ इन पर विचार भी करें आचरण में भी उतारें इस प्रयास से बिना संदेह हमें शक्ति मिलेगी ही हम यह अनुभूति करने लगें कि हम आत्मा हैं शरीर नश्वर है तो हमारा मरण भी मंगलमय होगा


Personality development से क्या व्यक्तित्व विकसित हो जाएगा 

डा राजबलि पांडेय जी, रज्जू भैया जी की चर्चा क्यों की भैया पवन मिश्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए  सुनें

10.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 10 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२३० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 10 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२३० वां* सार -संक्षेप

जीवन की एक व्याख्या होती है हम मनुष्यत्व की अनुभूति कर रहे हैं संबन्धों का निर्वाह कर रहे हैं अपने यश की कामना कर रहे हैं जीवन में  सार और असार में एक सामञ्जस्य बनाए हुए हैं  तो यह भी एक विशिष्ट व्याख्या है संबन्धों का विस्तार निरर्थक नहीं है हमें संबन्धों के विस्तार पर ध्यान देना चाहिए और इसके लिए सभी से उचित व्यवहार अनिवार्य है जो हमारी आयु के समान नहीं हैं उनसे उनके स्तर पर जाकर व्यवहार करना चाहिए 

पारस्परिक संबन्धों से भाग्य बनते हैं आज का कर्म आने वाले समय का भाग्य बनता है 

समुद्रमथने लेभे हरिः, लक्ष्मीं हरो विषम्।

 भाग्यं फलति सर्वत्र ,न च विद्या न पौरुषम्।।

अर्थात् भाग्य का ही फल सभी जगह मिलता है, विद्या और उद्योग का नहीं


जो हमने परिश्रम किया है उसी के अनुरूप परिणाम मिलेगा


जो हमारे भाग में है अर्थात् हमारे हिस्से में है वही भाग्य है 


आचार्य जी ने काव्य का महत्त्व बताया हम सबके अन्दर काव्य है किसी का प्रकट होता है किसी का नहीं  इस कारण लेखन और गम्भीर विचार महत्त्वपूर्ण हैं 

काव्य छंदरहित भी हो सकता है  बुद्धिमान जनों का समय काव्यशास्त्र में व्यतीत होता है 

काव्यं यशसे अर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये। सद्यः परनिर्वृतये कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे ll 

परिस्थितियों के बारे में विचार करके जब हम समस्याओं के हल तलाश लेते हैं और जब वे हल समाज के लिए लाभकारी होते हैं तो हम आनन्दित होते हैं 

आचार्य जी ने मनुष्य के रूप में जानवर कौन हैं यह भी बताया 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी भैया बृजेश वाजपेयी जी भैया पंकज जी का नाम क्यों लिया  काव्यानन्द क्या है जानने के लिए सुनें

9.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 9 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२९ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है आचार्य जी से प्राप्त विचार हमें लाभ पहुंचाते हैं गहराई से किए अध्ययन और स्वाध्याय के अभ्यास का भी लाभ होता है 

 उचित विचार हमें अवलम्बन और सांसारिक प्रपंचों से जूझने की शक्ति देते हैं  और हम मनुष्यत्व की अनुभूति कर पाते हैं

अध्ययन स्वाध्याय के साथ चिन्तन मनन ध्यान धारणा हमारी सुप्त शक्तियों को जाग्रत करते हैं 


हमारा देश अद्भुत है 

ज्ञान और भक्ति के समन्वय को प्रदर्शित करती इस देश की अद्भुतता दर्शाती ये पंक्तियां देखिए 


हमारा देश भास्वर भक्ति का

प्रतिमान है स्वर है

इसी ने तत्त्वदर्शन कर कहा संसार नश्वर है

न जाना जिस किसी ने इस धरा के मूल शिवस्वर को

वही भूले भ्रमे फिर फिर रहे हैं छोड़ निजघर को ।


जब हमारे भीतर अच्छे विचार आएंगे तो समझ में आयेगा कि ऐसा धन कमाना व्यर्थ है जो हमें शान्ति न दे सके, हमें संगठन का महत्त्व समझ में आएगा  दीनदयाल जी द्वारा छोड़े गए भारत राष्ट्र को समर्पित करने वाले तपस्या के तेजस को अपने भीतर प्रवेश कराने की क्षमता आएगी, चैतन्य को जाग्रत करते हुए धन कमाना अच्छा लगेगा 

आचार्य जी ने पद्मपुराण की चर्चा की  किस युग में कौन से वर्ण तपस्या कर सकते हैं इसमें यह समझाया गया है 

कलियुग में तो जप ही तप है और जप एक अभ्यास है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रुपयों से भरी अलमारी वाला कौन सा प्रसंग बताया श्री प्रयाग जी आचार्य जी को किसने रुपयों की गड्डी दे दी थी 


एक ही सत्य को विप्र कई नामों से पुकारते हैं वाला छंद कौन सा है 

आदि जानने के लिए सुनें

8.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 8 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२८ वां* सार -संक्षेप


भावपूर्ण ढंग से उपस्थित होकर नित्य आचार्य जी विद्वत्ता और भक्ति का सामञ्जस्य करते हुए हमें प्रेरित करते हैं हमारे हित की बात करते हैं आचार्य जी का कहना है गुरु वही जो शिष्य से पराजित होने की कामना करे पिता वही जो पुत्र से हारने में प्रसन्नता का अनुभव करे 

भाव में जाकर हम तत्त्व में प्रवेश कर सकते हैं भाव का संसार अद्भुत है भाव अन्तरात्मा की उत्पत्ति है विभुआत्मा का अंश अन्तरात्मा निश्चेष्ट होकर भी चेष्टायुक्त रहता है अध्यात्मलोक में प्रवेश करके यदि हम सृष्टि की उत्पत्ति का चिन्तन करते हैं तो यही लगता है कि ब्रह्मा ने एक यज्ञ का विधान किया और परमात्मा ने ब्रह्म को प्रेरित किया 

इस संसार में हम कर्म अकर्म नहीं समझ पाते तो हमें अध्यात्म का आश्रय लेना चाहिए अध्यात्म व्यवहार के साथ जब सामञ्जस्य करता है तो हम जयस्वी बनते हैं यही गीता का सार है 

गीता में 


किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।


तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।4.16।।


कर्म और अकर्म के विषय में विद्वान् भी मोहित हो जाते हैं। अतः वह कर्म-तत्त्व मैं तुम्हें भलीभाँति कहूँगा, जिसे जानकर तुम संसार-बन्धन से मुक्त हो जाओगे


हमारे समस्त कार्य कामना और संकल्प से रहित होने चाहिए 

कर्मफलासक्ति को त्यागना चाहिए चित्त और आत्मा को संयमित करना सारे परिग्रहों को त्यागना अनिवार्य है  जो कुछ प्राप्त हो उसमें ही सन्तुष्ट रहना सर्वथा उचित है

अनेक विकारों से ग्रसित भौतिकवादी दुष्ट इस युग की विकृति हैं ऐसे में हमें अपना कर्म समझना है इन विकृतियों को पहचानकर अपनी बुद्धि विवेक विचार कौशल से हम उनके ऊपर हावी होकर उन्हें शान्त कर सकते हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बैरिस्टर साहब के किस लम्बे पत्र की चर्चा की सुदर्शन जी का उल्लेख क्यों किया उशना क्या चाहते थे शौर्य प्रमंडित अध्यात्म क्यों अनिवार्य है जानने के लिए सुनें

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7.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 7 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 7 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२७ वां* सार -संक्षेप


हमें निश्चित रूप से सहारा मिलता है यदि हम अनुभव करें कि परमात्मा हमारे भीतर अवस्थित है यह आत्माभिव्यक्ति आत्मानुभूति अद्भुत है जो आनन्द प्रदान करती है गीता में भगवान् कृष्ण कह रहे हैं 


वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनंजयः।


मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः।।10.37।।


मैं वृष्णिवंशियों में वासुदेव हूँ और पाण्डवों में धनञ्जय , मैं मनन करने वालों में व्यास और कवियों जो चिन्तक विचारक सब पदार्थों को जानने वाले होते हैं में उशना अर्थात् शुक्राचार्य कवि हूँ।।


यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।


तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्।।10.41।।


 जो कोई भी विभूतियुक्त, कान्तियुक्त अथवा शक्तियुक्त वस्तु या प्राणी है, उसको हे अर्जुन मेरे तेज के अंश से ही उत्पन्न समझो

और हमें भी यह समझना चाहिए कि किसी में भी  विशेषता दिखाई दे तो वह ईश्वर अंश है 

शरीर मरता है संसार मरता है हम न शरीर हैं न संसार हैं हम तो विचार हैं उस विचार का जब सहज ढंग से व्यवहार होने लगता है तो हमारा विस्तार होने लगता है

हमारे सनातन धर्म का एक तात्विक स्वरूप है संबन्धों का विस्तार जिसमें विकारों का स्थान नहीं रहता लेकिन यदि विकार हावी हो जाएं तो 


दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्।


मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्।।10.38।।


मैं दमन करने वालों का दण्ड हूँ और विजय चाहने वालों की नीति हूँ मैं गुह्यों में मौन, ज्ञानवान् व्यक्तियों का ज्ञान हूँ।।

दंड देने की क्षमता हमारे पास संगठन के पास होना अनिवार्य है ताकि दुष्ट हमें हानि न पहुंचा सकें दुष्ट में भय इसी कारण आयेगा



हमें कभी अभावों का चिन्तन नहीं करना चाहिए आज का युगधर्म शक्ति उपासना है जिसके लिए हमारा संगठित होना अनिवार्य है संगठन शक्तिशाली तब होगा जब उसके अवयवों में आत्मीयता का भाव होगा विचारों में मग्न होकर व्यवहार के लिए अपने पग उठा लें 

हमारे यहां की

सोऽकामयत् एकोऽहम् बहुस्याम् वाली 

 परिवार पद्धति किस प्रकार विशिष्ट है इसके लिए आचार्य जी ने बबूल को झुकाने वाला एक प्रसंग बताया

लेखन योग क्यों महत्त्वपूर्ण है आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया संदीप शुक्ल जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

6.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 6 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२६ वां* सार -संक्षेप

 हमारे देश की धरती गगन जल सभी पावन हैं 

सभी  सुन्दर सलोने शान्त सुरभित मञ्जु भावन हैं 

यहां पर जो रमा मन बुद्धि आत्मिक अतल की गहराई से 

उसको लगा करती धरा माता और सुजन सब भाई से

पर सिर्फ धन की प्राप्ति जिनका जन्मजात स्वभाव है 

उनको सदा दिखता यहां सर्वत्र अमित अभाव है


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 6 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२६ वां* सार -संक्षेप


शक्ति का अर्जन विसर्जन दम्भ का

मुक्ति का भर्जन भजन प्रारम्भ का 

संगठन संयमन युग की साधना है 

देशहित शुभ शक्तियों को बाँधना

है

 नित्य प्रातः यही शिवसंकल्प जागे 

पराश्रयता का यहाँ से भूत भागे


उठें अपनों को उठायें कर्मरत हों 


बुद्धिमत्ता सहित हम सब धर्मरत हों l


ज्यों ही हमें शक्ति की अनुभूति होती है तो दंभ आ जाता है उसी दंभ को विसर्जित करने के लिए कवि कह रहा है  मुक्ति का अर्थ किसी भी विषय के यथार्थ को समझ लेना है जिसके भर्जन को कवि स्वीकार रहा है कवि परमात्मा के उस स्वरूप को समझते हुए 

बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥

आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥ 

शक्ति की अनुभूति कर रहा है यही कवित्व है कवि सर्वद्रष्टा होता है कवि के ऊपर परिस्थितियों का बहुत प्रभाव पड़ता है वह अत्यन्त संवेदनशील होता है जिसमें यह कवित्व प्रविष्ट हो जाता है वह किसी भी विषय को भावपूर्ण ढंग से व्यक्त करने में सक्षम होता है


मनुष्य के जीवन में रसात्मकता अद्भुत होती है लेकिन अनुभव उन्हीं को होती है जिन पर राम की कृपा होती है

कवित्व की अनुभूति और उस कवित्व की अभिव्यक्ति भगवान् की कृपा का प्रसाद है जो इस कवित्व से आवेशित है वह संपूर्ण सृष्टि को आनन्दमय देखना चाहता है उस आनन्द में विकार के प्रवेश से वह क्रुद्ध हो जाता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा पंकज जी का उल्लेख क्यों किया आचार्य जी ने कौन सा स्वप्न देखा वास्तव में कविता क्या है जानने के लिए सुनें

5.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 5 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२५ वां* सार -संक्षेप



ज्ञान, कर्म और उपासना की त्रिवेणी अद्भुत है और प्रायः इसकी चर्चा होती है

 मनुष्य जन्म से अपूर्ण होता है ज्ञान द्वारा ही वह पूर्ण होता है  ज्ञान देने वाली हमारी ऋषि परम्परा अद्भुत है उसी ने व्यञ्जनों का निर्माण किया जब कि स्वर हैं 

स्वयं राजते इति स्वरः ।

फिर व्याकरण का निर्माण हुआ और उसका आधार बने माहेश्वर सूत्र 

माहेश्वर सूत्र (संस्कृत: शिवसूत्राणि या महेश्वर सूत्राणि) अष्टाध्यायी में आए १४ सूत्र (अक्षरों के समूह) हैं जिनका उपयोग करके व्याकरण के नियमों को अत्यन्त लघु रूप देने में पाणिनि ने सफलता पायी है।भारतीय ज्ञान की परम्परा अद्भुत है अध्ययन और स्वाध्याय चिन्तन मनन मन्थन चाहता है

आचार्य जी ने आधिभौतिक आधिदैविक आध्यात्मिक की चर्चा की


आधिभौतिक का शाब्दिक अर्थ है भूत या जीवित प्राणियों से संबंधित ।

आधिदैविक का शाब्दिक अर्थ है दैव या भाग्य, अदृश्य शक्तियों और देवताओं से संबंधित ।

आध्यात्मिक का शाब्दिक अर्थ है आत्मा या शरीर (और मन ) से संबंधित।


तीनों के सामञ्जस्य से मनुष्य में पूर्णता आती है आधिभौतिक शुद्धि कर्म के द्वारा आती है और आधिदैविक उपासना के द्वारा और आध्यात्मिक शुद्धि ज्ञान के द्वारा आती है


इसको व्यावहारिक रूप में लाने के लिए हमें अपनी दिनचर्या सही करनी होगी शक्ति की अनुभूति आवश्यक है 

हम लोगों का संगठन यदि विचारशील लोगों का संगठन है तो इसकी सार्थकता कैसे सिद्ध होगी वेद-अध्ययन की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

4.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 4 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२४ वां* सार -संक्षेप

विषम परिस्थितियों में होने के बाद आचार्य जी नित्य हमें उद्बोधित करते हैं यह हनुमान जी का वरदान है सतयुग से चला आ रहा दैवासुर संग्राम  आज भी चल रहा है

बुराई के साथ अच्छाई भी विद्यमान है कभी हम निराश हताश रहते हैं कभी उत्साहित रहते हैं 

और इस तरह दिन बीत जाता है ऐसे में यदि कुछ क्षण हमें आत्मस्थता के लिए मिल जाएं हमें ईश्वरत्व की अनुभूति हो जाए तो यह हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी है

आत्मबोध ही ईश्वरत्व है वही तत्व शक्ति विश्वास है 

इसके स्थायित्व के लिए हम उपासना करते हैं 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अभिव्यक्ति से लगता है कि हम बहुत कुछ हैं


विचार नित्य हो यही  रहें बसें जहाँ कहीं 

कि हम अमर अनंत हैं सदा स्वशक्तिमंत हैं 

जगत्पिता के तन्त्र आत्मवंत हैं स्वतंत्र हैं।


तुलसीदास जी को राम किसी न किसी रूप में मिलते ही रहे और फिर हनुमान जी मिल गए तो 

मांगि कै खैबो मसीत को सोइबो, लैबे को एक न दैबे को दोऊ'

कहने वाले तुलसीदास जी को इससे शक्ति की अनुभूति हुई


और तब उन्होंने कहा 

मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की। गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥

जब हमें राम की संगति मिल गई तो कोई भी कुसंगति हमें प्रभावित नहीं करेगी 

भगवान् आवश्यकता पर अवतरित हो सकता है तो हम भी संकटों को झेल सकते हैं क्योंकि हम भी भगवान का ही अंश हैं 

शिवाजी महाराज को भी एक चिन्तक विचारक ने प्रभावित किया विश्वामित्र ने राम को प्रेरित किया

चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को 

प्राणनाथ ने ओरछा के छत्रसाल को प्रेरित किया


इत यमुना, उत नर्मदा, इत चम्बल, उत टोंस।

छत्रसाल सों लरन की, रही न काहू हौंस॥

 प्राणनाथ छत्रसाल के मात्र धार्मिक गुरू ही नहीं थे अपितु वह उन्हें राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मामलों में भी निर्देशित करते थे।


कोई न कोई ऋषि महर्षि विचारक प्रेरणा देता रहा है


आज भी ऐसा ही हो रहा है हम राष्ट्रभक्त प्रेरित हो रहे हैं संगठित होते जा रहे हैं हमारे लिए सेतु तैयार हो रहा है हमें अपना युगधर्म याद रखना है

राक्षसी प्रभाव की काट के लिए आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अपने गांव सरौंहां के मन्दिर में भी ध्वनिविस्तारक यन्त्र लगवा दिए जाएं 

इसके अतिरिक्त चार K की चर्चा क्यों हुई 

जगह जगह मोमबत्ती जलाने का क्या तात्पर्य है अपनी सीमित शक्ति को असीमित बनाने के लिए क्या करना चाहिए संगठन की प्रभावोत्पादकता के लिए क्या करना है  

२९ दिसंबर के लिए क्या परामर्श आचार्य जी ने दिया जानने के लिए सुनें

3.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 3 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 3 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२३ वां* सार -संक्षेप


हम युद्ध भी लड़ते सदा निर्द्वन्द्व निस्पृह भाव से

तुम शान्ति में भी रह नहीं पाते सुशान्त स्वभाव से

हम त्यागकर संतुष्ट रहते जिन्दगी भर मौज से

तुम हर समय रहते सशंकित निज बुभुक्षित फौज से

तुम भोग हो हम भाव हैं तुम रोग हो हम राग हैं 

तुम हो अभावाक्रांत हम इस जगत का अनुराग हैं 

लेकिन समझ लेना न तुम हम शान्त संयत बुद्ध हैं 

हम मुण्डमाली शिव कपाली कालिका का युद्ध हैं



जब यह भाव मन में आता है तो हम शौर्य पराक्रम की अनुभूति करने लगते हैं और हम उत्साहित होते हैं 

हम सृष्टि संघर्ष के योद्धा हैं और सृष्टि के आनन्द के उपासक भी हैं 

इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य भी यही है इनके माध्यम से हम अपने विकारों को दूर करते हैं और संस्कारों को आत्मसात् करते हैं

इनसे प्रेरणा लेकर तूफानों में हम अपने पैर टिकाने का प्रयास कर सकते हैं 

हम अपने भीतर चुम्बकीय आकर्षण पैदा कर सकते हैं 

आचार्य जी ने कहा प्रिय बोलने का अभ्यास अत्यावश्यक है और हम एक दूसरे की सहायता के लिए भी तत्पर रहें 

जहां जिस ठौर जैसे दौर में भी हों वहीं जागें 

कि अपने इष्ट से वरदान बस केवल यही मांगें 

हमारा तन सदा साथी रहे मन शांत संयत हो 

चुनौती कोइ भी हो हम न उससे भीत हों भागें


सर्वत्र अपनी दृष्टि रखते हुए हम अपने कर्तव्य का ध्यान रखें यही कर्तव्य धर्म बन जाता है जीवन पर्यन्त अदैन्य रहे जब भी हमारे सामने कोई चुनौती आए हम उससे न तो भयभीत हों न ही उससे मुंह मोड़ लें हकीकत राय को अत्याचारी नहीं बदल सके थे

इस समय हम श्रुति और स्मृति की चर्चा कर रहे हैं 

श्रुति सहज ज्ञान है जो मनुष्य लेकर पैदा हुआ

श्रुति को ईश्वरीय उत्पत्ति का माना जाता है, जबकि स्मृति को मानव बुद्धि का

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बागेश्वर बाबा की चर्चा क्यों की 

विवेकानन्द और परमहंस में क्या किसी के साथ भगवान् शब्द संयुत किया गया जानने के लिए सुनें

2.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 2 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२२ वां* सार -संक्षेप

 भावनाओं का भले हो भरा पारावार 

लेकिन शक्तिमय निष्ठा समय की माँग है प्यारे 

इसलिए दृढ़ तन गहन मन और शिव जीवन 

सतत अभ्यास में लाओ मिलो  परिवार के सारे


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 2 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२२ वां* सार -संक्षेप


हमारी संसार में इतनी अधिक लिप्तता रहती है कि हम अपने को विस्मृत करे रहते हैं यह अनुचित है इस कारण हमें आत्मानुभूति करनी चाहिए

ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥1॥


 हम मनुष्य हैं यही क्या कम है किन्तु हमें मनुष्यत्व की अनुभूति भी करनी चाहिए इसी अनुभूति से  ब्रह्मत्व की अनुभूति करने वाले हमारे ऋषियों ने संपूर्ण वसुधा को ही अपना कुटुम्ब माना यह मनुष्यत्व का विस्तार अद्भुत है

मनुष्य पशुओं अमीबा प्रोटियस आदि से भिन्न है पशु एक सा आचार व्यवहार करते हैं हम परमात्मा के अद्भुत अंश अंशांश हैं वीरों चिन्तकों विचारकों ज्ञानियों भक्तों में परमात्मा का अंश अवश्य ही है इसे झुठलाया नहीं जा सकता और हममें भी है भले कम हो 

आचार्य जी ने श्रुति और स्मृति के अर्थ स्पष्ट किए हमारे यहां अनेक स्मृतियां हैं जैसे 

मनुस्मृति

याज्ञवल्क्य स्मृति

अत्रि स्मृति

विष्णु स्मृति

हारीत स्मृति

औशनस स्मृति

अंगिरा स्मृति

यम स्मृति

कात्यायन स्मृति

बृहस्पति स्मृति

पराशर स्मृति

व्यास स्मृति

दक्ष स्मृति

गौतम स्मृति

वशिष्ठ स्मृति

आपस्तम्ब स्मृति

संवर्त स्मृति

शंख स्मृति

लिखित स्मृति

देवल स्मृति

शतातप स्मृति


हमारे ऋषियों ने ज्ञान का भंडार संचित किया और उन्हें व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता भी पाई किन्तु हम और हमारी भावी पीढ़ी इससे अनभिज्ञ रही 

कारण :

ये समय समय का फेरा है

कब क्या हो किसने जाना है

समय का नियन्त्रक परमात्मा है उस परमात्मा की जब हम अनुभूति करेंगे तो आनन्द मिलेगा 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी का नाम क्यों लिया परमात्मा हमसे किस प्रकार प्रभावित हो सकता है आदि जानने के लिए सुनें

1.12.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२१ वां* सार -संक्षेप

 हो एकत्रित किसी बहाने हिन्दुभाव के नाते

तभी सुरक्षित रह पायेंगे घर के रिश्ते नाते

हिन्दू हिन्दुस्थान सनातन धर्म 

व चिन्तन ही है

इसके लिए शक्ति संवर्धन और संगठन भी है

हम संगठित तभी होंगे जब अपनों को जानेंगे 

उनके सुख-दुख लाभ-हानि 

को मन से पहचानेंगे

केवल बातें नहीं करें उतरें नित -

प्रति अपनों के हित

अपने वे जो भरतभूमि भारतमाता से गर्वित


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 1 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२१ वां* सार -संक्षेप


आज के संप्रेषण में सिद्धान्तों और सनातनधर्मिता पर आधारित व्यावहारिक तथ्य हैं  जो हम संवेदनशील लोगों को उत्साहित करेंगे 

राजनैतिक और सामाजिक दृष्टि से बहुत से ऐसे कार्य और व्यवहार हैं जो हमें अखर रहे हैं किन्तु हम इसके निदान के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं केवल विचारमग्न रहने से और दोषारोपण से काम नहीं चलेगा हमें अपने स्तर से काम करना होगा

शक्ति -उपासना सदैव का युगधर्म है 

शौर्य पराक्रम अत्यन्त आवश्यक है 

शक्तिसम्पन्न व्यक्ति प्रभाव डालता है शक्तिहीन व्यक्ति अप्रभावी होता है 

शक्तिसंवर्धन करें स्वभाव में परिवर्तन लाएं किसी के सामने किसी की निन्दा न करें न अपमान 

विकारों से बचें अपने संगठन का आकलन करें परिस्थितियों का सदैव ध्यान रखें भावी लक्ष्य के लिए वर्तमान में लिप्त रहें

नई पीढ़ी के लिए उदाहरण बनें 

 

आत्मीयता और प्रेम के आधार पर संगठन विकसित होता है यदि हमें लोगों को एकत्र करना है तो अपने भीतर चुम्बकीय आकर्षण उत्पन्न करना होगा  अपने अन्दर विशालता अत्यावश्यक है संघ का विस्तार इसी आधार पर हुआ है संघ का प्रभाव अद्भुत है संघ में लोकसंग्रह और लोक संस्कार पर विशेष बल दिया गया 

अच्छा व्यक्ति जब बड़े लोगों की संगति पाता है तो समाज के लिए कल्याणकारी होता है 

इसके लिए आचार्य जी ने समुद्र और शीशे की सूर्य से संगति का उदाहरण दिया

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र जी का नाम क्यों लिया माता पिता जब अपने बच्चे की निन्दा करें तो हमें क्या करना चाहिए जानने के लिए सुनें