30.4.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 30 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३७१ वां* सार -संक्षेप

 संवेदना भरपूर लेकिन कर्मवृत्ति अभाव है 

परिदेवनारत हम सभी का यही बना स्वभाव है 

जागें जगाएं कर्म के प्रति वृत्ति को खरधार दें 

कर्मानुरागी बन चलें सोया समाज सुधार दें


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 30 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३७१ वां* सार -संक्षेप


संसार समुद्र की तरह है जैसे समुद्र की गहराई का अंत नहीं, वैसे ही संसार की इच्छाएँ, भ्रम और मोह अनंत हैं।   जीवन में निरंतर उठते-दिखते भाव जैसे समुद्र में ज्वार-भाटे, से भी यह स्पष्ट होता है जैसे समुद्र में बिना दिशा के नाव डूब सकती है, वैसे ही संसार में बिना विवेक के जीवन भटक सकता है

हमें इसमें तैरना यानि आत्मज्ञान, धर्म, भक्ति और विवेक से जीवन को पार करना सीखना ही होगा 

"संसार युद्ध भी है"

अर्थात् यह एक सतत संघर्ष का क्षेत्र है, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को बाह्य और आंतरिक युद्धों से जूझना पड़ता है यह कथन हमें जागरूक, सजग और साहसी बनाता है। यह स्मरण कराता है कि जीवन में पलायन नहीं, संघर्ष और समाधान ही  उचित मार्ग है। इस युद्ध में विजयी होने के लिए हमें युद्ध के विधान जानने ही होंगे

संसार अबूझ पहेली भी है इस पहेली को सुलझाने का उपाय खोजने में मनुष्य ही सक्षम है और सौभाग्य से हम मनुष्य हैं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी ही चाहिए

'मातृवत् परदारेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत्, आत्मवत् सर्वभूतेषु यो पश्यति सः पण्डितः' कहने वाले अर्थात् स्व का विस्तार करने वाले आर्ष परम्परा वाले भारत  की परिस्थितियां इस समय अत्यन्त विषम हैं ऐसे में आपद् धर्म और नित्य धर्म में हमें सामञ्जस्य करना है इस समय देश के ऊपर एक भावी कार्य आ रहा है जिसके लिए हम सभी राष्ट्र -भक्तों को खड़ा होना है जब हम सभी राष्ट्र -भक्त एक जुट होकर जोर लगाएंगे तो देश खिलखिला उठेगा और तब हम भी आनन्द की अनुभूति करेंगे हम विलाप न करें एक दूसरे से संपर्कित रहें संगठित रहना समय की मांग है

यह वेद विदों का देश तपस्या सेवा इसकी निष्ठा है 

इसका मंगल विश्वास जगत ईश्वर की प्राण प्रतिष्ठा है 

यह जगन्नियन्ता का विश्वासी पौरुष की परिभाषा है 

संपूर्ण जगत के संरक्षण की एकमात्र शिव आशा है


उन्नाव जाते समय आचार्य जी कल बीच से ही क्यों लौट गए भैया अमित अग्रवाल जी भैया मनीष कृष्णा जी का उल्लेख क्यों हुआ भैया पंकज जी के किस पत्र की चर्चा हुई जानने के लिए सुनें

29.4.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 29 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३७० वां* सार -संक्षेप

 *धर्म हेतु साका करै सोही सच्चा*


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 29 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३७० वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार वेलाओं, जिन्हें आचार्य जी ने अनवरत चलाने का संकल्प लिया है, का उद्देश्य है कि हम संवेदनशील राष्ट्र-भक्त *जाग्रत हों प्रेरित हों उत्साहित हों* विकृत शिक्षा के कारण हमारी जीवन शैली का  जो ढांचा बदल गया है उसे हम सही कर लें हम ऊर्जा प्राप्त करें हम प्रकाशित हो जाएं हमारी आत्मदीप्ति समय पर काम दे जाए  ये हमें *सनातन धर्म*  के वैशिष्ट्य से परिचित कराती हैं  इनसे हम *सदाचारमय विचार* प्राप्त करते हैं

*"सदाचारमय विचार"* अर्थात् नैतिक, संयमित और सत्कर्म-आधारित सोच ही वह भूमि है जिस पर *सनातन धर्म* की नींव टिकी है। सनातन धर्म केवल एक पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि *धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष* के संतुलन की जीवनदृष्टि है — जिसमें *सदाचार* मूल आधार है।

इस समय देश की समाज की परिस्थितियां अत्यन्त विषम हैं अनेक चुनौतियां सामने दिख रही हैं ऐसे में हम व्याकुल होकर हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाएं तो यह कदापि उचित नहीं है हमें तो मार्ग निकालने का प्रयास करना है 

हम अधिक से अधिक अपने आत्मीयजनों को आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर,राष्ट्र -भक्त बनाने का प्रयास प्रारम्भ कर दें

हम शौर्य से प्रमंडित अध्यात्म. वह अध्यात्म जो केवल ध्यान में नहीं, धर्मरक्षा में भी सजग है, की महत्ता को समझने और समझाने का प्रयास प्रारम्भ कर दें  *शौर्य (अर्थात् बाह्य जगत में अधर्म, अन्याय, भय और अंधकार से निर्भीक संघर्ष*)

 *से प्रमंडित अध्यात्म"* — यह एक अत्यंत गहन और ओजस्वी अवधारणा है, जिसमें *आध्यात्मिक चेतना* और *वीरता* का अद्वितीय समन्वय निहित है। यह विचार  सनातन भारतीय परंपरा की पहचान है इसी कारण भगवान् राम कहते हैं 

निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया पुनीत जी भैया सौरभ द्विवेदी जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

28.4.25

*आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का वैसाख शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 28 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३६९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 28 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३६९ वां* सार -संक्षेप


बुद्धियुक्त शक्ति का प्रयोग आत्मभक्ति युक्त 

जन जन सबल समर्थ देशभक्त हो, 

रक्त हो न शीतल विरक्त कोइ भक्त हो  न

बाल युवा प्रौढ़ वृद्ध सबल सशक्त हो ,

व्यक्त  हर एक भाव देश की समृद्घि हेतु 

युवक युवति श्रेष्ठ कर्म में प्रवृत्त हो, 

भारत प्रचंड तेजवन्त शौर्यमंत्र-पूत 

वसुधा समग्र शान्ति संयम का वृत्त हो।


यह था एक ओजस्वी और भावसमृद्ध काव्यांश (घनाक्षरी छंद ) जो अत्यंत प्रभावशाली और प्रेरणादायक है। यह राष्ट्रप्रेम, आध्यात्मिकता, कर्मठता और समाज के हर वर्ग को जागरूक करने का एक सुंदर आह्वान है।जिसमें 

आचार्य जी ने *समाज के हर व्यक्ति* को *सबल (शक्तिशाली)*, *समर्थ (सक्षम)* और *देशभक्त* बनने का आह्वान किया है  उद्देश्य  स्पष्ट है कि हर व्यक्ति की भावना, सोच और कर्म का लक्ष्य *राष्ट्र की समृद्धि* हो उद्देश्य यह भी है कि राष्ट्र/समाज सशक्त हो ताकि *विजातीय*( heterogeneous)

कष्ट न दे सकें  भारत राष्ट्र जब सशक्त रहेगा तो वसुधा भी शान्त रहेगी

 हम कहते हैं *आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः* 

सभी प्राणियों को अपने ही समान समझना चाहिए।किन्तु हमारी उदारता शक्तिहीनता में परिवर्तित न हो इसका हमें ध्यान रखना है हम जाग्रत रहें अपने राष्ट्रभक्त समाज के हर एक व्यक्ति को जाग्रत करने का संकल्प लें इस प्रकार संगठित हों कि कहीं आग लगे हम उसे बुझाने में समर्थ रहेंगे 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राघवेन्द्र जी भैया विवेक चतुर्वेदी जी का नाम क्यों लिया 

सीमन्तोन्नयन संस्कार का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

p

27.4.25

*आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का वैसाख कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 27 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३६८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 27 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३६८ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य है कि हम अपनी सनातन परम्परा पर पूर्ण विश्वास करते हुए कर्मयोगी बनें, सांसारिक अहं को दरकिनार करते हुए सात्विक अहं की अनुभूति करते हुए विश्वासमय समाजोन्मुखी कार्य करें, संकल्पमय भावनामय जीवन जिएं, स्वदेशानुराग का भाव अपने भीतर प्रविष्ट कराएं, भय भ्रम कातर्य से दूर रहें, स्थान स्थान पर अपनों से संपर्क में रहें,*अपने राष्ट्र को परम वैभव पर पहुंचाने का संकल्प लें*

उठो जागो जगाओ बेफिकर सोई जवानी को 

गुरू गोविंद  बन्दा  शिवा राणा सी रवानी को 

न संयम इस तरह का हो कि रिपु दुर्बल समझ बैठे

चलो गंगाजली लेकर नमन करने भवानी को।

(*ओम शङ्कर* )

उपर्युक्त पंक्तियाँ राष्ट्रभक्ति, आत्मगौरव और जागरण का ओजपूर्ण आह्वान हैं। ये न केवल सोई हुई आत्मा को झकझोरती हैं, अपितु *गुरु गोविंद सिंह*, *बन्दा बैरागी*,*छत्रपति शिवाजी*, *महाराणा प्रताप* जैसे *महानायकों की परंपरा* को स्मरण कर हमें प्रेरित करती है।

यह कविता एक *आध्यात्मिक राष्ट्र जागरण का मंत्र* है। यह हमें यह स्मरण कराती है कि *संयम और शांति तभी शोभा देती है जब हम भीतर से सामर्थ्यवान् हों* अन्यथा शत्रु हमारी शांति को दुर्बलता समझ बैठता है l


कवितावली का एक अंश है जिसमें भगवान *शिव* के विविध *गुणों, स्वरूपों, और प्रभावों* का भव्य वर्णन है। यह काव्य न केवल काव्यात्मक सौंदर्य से परिपूर्ण है, अपितु *आध्यात्मिक ऊर्जा* से भी ओतप्रोत है।

यह स्तुति भगवान शिव के *भयंकर और सौम्य दोनों स्वरूपों* को एक साथ प्रस्तुत करती है। *शिव आराधक* को भय भ्रम नहीं रहता है

भूतनाथ भयहरन, भीम, भय भवन भूमिधर।

⁠भानुमंत भगवंत, भूति भूषन भुजंग वर॥

⁠भव्य-भाव बल्लभ, भवेस भव-भार-बिभंजन।

⁠भूरिभाग, भैरव कुजोग-गंजन जन-रंजन।

भारती-बदन, बिष-अदन सिव, ससि-पतंग-पावक-नयन॥

कह तुलसिदास किन भजसि मन, भद्र-सदन मर्दनमयन।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने *सोहनलाल धर्मशाला उन्नाव* में एक छोटी बालिका से संबन्धित कौन सा प्रसंग बताया जानने के लिए सुनें

26.4.25

*आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का वैसाख कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 26 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३६७ वां* सार -संक्षेप

 मैं सत्य कहता हूँ, सखे ! सुकुमार मत मानो मुझे,

यमराज से भी युद्ध को प्रस्तुत सदा जानो मुझे


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 26 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३६७ वां* सार -संक्षेप


उठो जागो जगाओ जो पड़े सोए भ्रमों में हैं 

सुखों की छाँव के सपनों भविष्यत् के ग़मों में हैं 

उन्हें झकझोर कर पौरुष दिखाओ जो छिपा उनमें 

कहो " वह सुख न लम्बी उम्र में जो कुछ क्षणों में है " ।



इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य स्पष्ट है


वह अति अपूर्व कथा हमारे ध्यान देने योग्य है,

जिस विषय में सम्बन्ध हो वह जान लेने योग्य है।

अतएव कुछ आभास इसका है दिया जाता यहाँ,

अनुमान थोड़े से बहुत का है किया जाता यहाँ।।


 इनका श्रवण कर हम जाग्रत रहें  आस्तीन में छिपे सांपों से सचेत रहें धैर्य धारण करना सीखें  राष्ट्रभक्त समाज को भी जाग्रत करें उसे सचेत करते रहें आचार्य जी हमसे यही अपेक्षा करते हैं देश की परिस्थितियां अत्यन्त विषम हैं

ऐसे में आचार्य जी हमें आपद् धर्म का पालन करने का संदेश दे रहे हैं 


*आपद् धर्म* (आपत्ति धर्म) का अर्थ है — *आपत्ति काल में पालन किया जाने वाला धर्म*। जब समाज या व्यक्ति सामान्य परिस्थितियों में स्थापित धर्म का पालन नहीं कर पाता, तब विशेष परिस्थितियों के अनुरूप जो आचरण उचित हो, वही *आपद् धर्म* कहलाता है। यह सिखाता है कि *धर्म कोई जड़ सिद्धांत नहीं*, वह जीवंत है और परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार में लाया जाना चाहिए

हमें अपनी स्थिति जीवित जाग्रत रहने की बनाने के लिए अपनी तैयारी भी रखनी चाहिए 

अग्रतः चतुरो वेदाः *पृष्ठतः सशरं धनुः*

सहजता को धारण कर देशभक्ति का व्यवहार करें स्थान स्थान पर होने वाले संभावित उत्पातों को शमित करने का सामर्थ्य प्राप्त करें यह हमारा धर्म है राष्ट्रभक्त समाज को संगठित करें हमारे मन में लगातार अग्नि धधकनी चाहिए 

अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है;

न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।


..


शर खींच उसने तूण से कब किधर सन्धाना उन्हें;

बस बिद्ध होकर ही विपक्षी वृन्द ने जाना उन्हें।

..


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने धीरेन्द्र ब्रह्मचारी, भूतनाथ का नाम क्यों लिया Blitz का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

25.4.25

*आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का वैसाख कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 25 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३६६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 25 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३६६ वां* सार -संक्षेप


यह गम्भीर समय है भारत की परिस्थितियां अत्यन्त विषम हैं

अनेक जटिल समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं  जैसे मुस्लिम वर्ग, लोभी लालची राष्ट्रद्रोही राजनैतिक दल, नौकरशाही का प्रकोप, नौकरी पाने की लालसा और उसके लिए तथाकथित शिक्षा,अशिक्षित जाति पांति का लोकतन्त्र,गम्भीर चिन्तन से इतर लोलुपता से भरा चिन्तन,सनातन धर्म के प्रति अविश्वास,शुद्ध अध्यात्म बोध का अभाव आदि


 धर्म कसौटी पर है


है लज्जा की यह बात शत्रु—

आये आँखें दिखलाने को।


धिक्कार मर्दुमी को ऐसी,

लानत मर्दाने बाने को॥



 ऐसे समय में हमें अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिए

जो भरा नहीं है भावों से,

बहती जिसमें रस-धार नहीं।


वह हृदय नहीं है पत्थर है,

जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥


हमें अपनी भावुकता को क्रियाशीलता में परिवर्तित करने की आवश्यकता है

हमें पराश्रयता की मानसिकता से बाहर आने की आवश्यकता है

हमें अपनों में अपनों के प्रति विश्वास की भावना को जाग्रत करना होगा

हमें शौर्य पराक्रम शक्ति की अग्नि को धधकाना होगा शुद्ध अध्यात्म वही है जो शौर्य से प्रमंडित हो जिसमें समाजोन्मुखता हो एकांगी अध्यात्म से कोई लाभ नहीं


आओ मिल सद्विवेक में ज्वाला धधकाएँ। 

फिर से अपने भारत में भास्वरता लाएँ  ।।


वही भास्वरता जो कभी भारत में थी जिसके कारण वह विश्वगुरु कहलाया 

यहां भगवान् परशुराम का उल्लेख करना सर्वथा उचित है वे केवल एक पौराणिक चरित्र नहीं, अपितु *धर्मरक्षक, अन्याय के विरुद्ध उठ खड़े होने वाले तेजस्वी पुरुष* का प्रतीक हैं।जब भी समाज में अन्याय, अधर्म और अहंकार बढ़ा, तब उन्होंने उसे समाप्त करने के लिए *तेज और तप* का उपयोग किया।

जब पड़ोसी राष्ट्र (जैसे पाकिस्तान) हमें सरल, शांति-पसंद समझकर पीठ में वार करें, तब “परशुराम” जैसे तेजस्वियों की आवश्यकता होती है। कवि रामधारी सिंह दिनकर ने उन्हीं से प्रेरित होकर आग उगलती

*"परशुराम की प्रतीक्षा"* की रचना की  जो केवल एक युद्ध का उद्घोष नहीं, बल्कि *धर्म, न्याय, और राष्ट्र चेतना की पुकार* है।

यह कविता १९६२ के भारत-चीन युद्ध के परिप्रेक्ष्य में लिखी गई थी, जिसमें दिनकर जी ने राष्ट्र के आत्मबल और वीरता को जाग्रत करने का आह्वान किया है।

हम पर अपने पापों का बोझ न डालें,


कह दो सब से, अपना दायित्व सँभालें।


कह दो प्रपंचकारी, कपटी, जाली से,


आलसी, अकर्मठ, काहिल, हड़ताली से,


सी लें जबान, चुपचाप काम पर जायें,


हम यहाँ रक्त, वे घर में स्वेद बहायें।


हम दें उस को विजय, हमें तुम बल दो,


दो शस्त्र और अपना संकल्प अटल दो।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरविन्द जी का नाम क्यों लिया बी एन एस डी का उल्लेख क्यों हुआ कार्यक्रम किस प्रकार के करें बैठकें क्यों करें जानने के लिए सुनें

24.4.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 24 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३६५ वां* सार -संक्षेप

 अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। कृपः *परशुरामश्च* सप्तैते चिरञ्जीविनः॥


(इन सातों का अमरत्व केवल शरीर का नहीं, अपितु उनके *कर्तव्यों, गुणों और योगदान की अमरता* का प्रतीक है।  

ये चिरंजीवी हमें *धर्म, सेवा, ज्ञान, भक्ति, शक्ति और नीति* के आदर्श प्रदान करते हैं)


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 24 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३६५ वां* सार -संक्षेप


पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने न केवल निर्दोष नागरिकों को क्षति पहुँचाई, अपितु हमारे राष्ट्र के सम्मान को भी चुनौती दी है। इस घटना के प्रति शासन की त्वरित और सशक्त प्रतिक्रिया सराहनीय है किन्तु हमारा राष्ट्रभक्त समाज अपनी तैयारी रखे उसके एक एक व्यक्ति को शौर्य पराक्रम शक्ति सामर्थ्य की अनुभूति हो भय और भ्रम से वह दूर रहे उसके भीतर उपस्थित परमात्म तत्त्व उत्थित हो इसका हमें प्रयास करना है

अतः, आइए हम सभी मिलकर यह संकल्प लें कि हम न केवल अपने अधिकारों के प्रति सजग रहेंगे, बल्कि अपने कर्तव्यों का भी निष्ठापूर्वक पालन करेंगे। हम ऊहापोह में न रहें हमें जागरूक रहने सचेत रहने की आवश्यकता है

दुष्टों की मंशा स्पष्ट है

ये उथल-पुथल उत्ताल लहर पथ से न डिगाने पायेगी।

पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी-आयेगी॥


लहरों की गिनती क्या करना कायर करते हैं करने दो।

तूफानों से सहमे जो हैं पल-पल मरते हैं मरने दो ।

चिर पावन नूतन बीज लिये मनु की नौका तिर जायेगी ।

पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी-आयेगी ॥


भगवान् परशुराम हमें प्रेरणा देते हैं

हमारे मन में उनके प्रति जो विकार भरे गए वो सही नहीं हैं 

उन्होंने दुष्टों का संहार किया और उसके पश्चात् पितरों का तर्पण किया और तर्पण से पितर प्रसन्न हुए हैं 

भगवान् परशुराम ने वरदान मांगा कि मैंने जो क्रोधवश दुष्ट क्षत्रिय वंश का नाश किया है उस कुकर्म के पाप से मैं मुक्त हो जाऊं और उनके रक्त से भरे सरोवर प्रसिद्ध तीर्थ हो जाएं 

समन्तपंचक आज भी प्रसिद्ध है  यह एक पवित्र स्थल का नाम है जो *महाभारत* काल से जुड़ा हुआ है। यह स्थान विशेष रूप से *कुरुक्षेत्र* क्षेत्र में स्थित माना जाता है और इसका वर्णन विशेष रूप से *भीष्म पर्व* और *अनुशासन पर्व* आदि में मिलता है।


📍 *समन्तपञ्चक का अर्थ:*


- *"समन्त"* = चारों ओर या सब ओर

- *"पञ्चक"* = पाँच


इसका शाब्दिक अर्थ हुआ — *चारों ओर फैले हुए पाँच पवित्र स्थल* या पाँच कुण्ड/झीलें, जो एक विशेष क्षेत्र में सम्मिलित हैं।


---


📖 *महाभारत में समन्तपञ्चक:*


- यह वही स्थान है जहाँ *महाभारत का महान युद्ध* हुआ था — *कुरुक्षेत्र* में।

- ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में *पाँच पवित्र सरोवर* थे, जिन्हें ऋषियों और देवताओं ने यज्ञों के माध्यम से पवित्र किया था।

- युद्ध के बाद *इन्हीं सरोवरों में महायोद्धाओं के अंतिम संस्कार* किए गए थे।



🧘‍♂️ *पौराणिक मान्यता:*


- यह स्थल इतना पवित्र माना गया कि स्वयं *भगवान विष्णु और अन्य देवगण* यहाँ पधारे।

- *पांडवों और भगवान कृष्ण* ने भी युद्ध से पूर्व और बाद में यहाँ *तीर्थ स्नान* किया था।


---


🌿 *आध्यात्मिक महत्व:*


- यह स्थल *धर्म और अधर्म के संघर्ष का प्रतीक* है।

- साथ ही यह बताता है कि युद्ध के अंत में भी *पवित्रता और शांति की ओर लौटना आवश्यक* है।

- इसके पश्चात् परशुराम विरक्त हो गए वे महेन्द्र पर्वत पर चले गए 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भीष्म  और परशुराम के बीच हुए युद्ध की चर्चा में क्या बताया भैया प्रमेन्द्र जी के किस वीडियो की चर्चा की जानने के लिए सुनें

23.4.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 23 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३६४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 23 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३६४ वां* सार -संक्षेप


जम्मू-कश्मीर में 2019 के पुलवामा अटैक के बाद सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ है। आतंकियों ने कल पर्यटकों पर फायरिंग की, जिसमें 27 लोगों की मौत हो गई

हमें इस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए और अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिए

जैसा कर्तव्यबोध भगवान् परशुराम को हुआ था


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।

जब धर्म पर संकट हो तो एक संन्यासी भी शस्त्र उठा सकता है।

शस्त्र और शास्त्र दोनों के ज्ञाता भगवान परशुराम *भगवान् विष्णु के  आवेशावतार* माने जाते हैं। 

एक प्रसंग *महर्षि जमदग्नि*, उनकी पत्नी महाराज रेणु की पुत्री *रेणुका* और  पुत्र *परशुराम*

 से जुड़ा हुआ है

 *रेणुका के मन में उठी एक भावनात्मक तरंग:*


- रेणुका देवी प्रतिदिन सुबह *नदी से जल लाकर यज्ञ* के लिए उपयोग करती थीं।

- एक दिन, उन्होंने नदी तट पर एक *गंधर्व और कई अप्सराओं को जल क्रीड़ा करते हुए देखा* और क्षणभर के लिए उनके मन में विकार उत्पन्न हो गया

- इसके कारण वह अपने कार्य (जल लाना) में विलंब कर बैठीं और उनका *योगबल क्षीण हो गया*।


🔥 *जमदग्नि का क्रोध:*


- जब रेणुका लौटकर आईं, तो ऋषि जमदग्नि को उनके *मनोभावों का आभास हुआ*, क्योंकि वे महान तपस्वी और ज्ञानी थे।

- उन्होंने इसे *पतिव्रता धर्म का उल्लंघन* मानते हुए *अपने पुत्रों को आदेश दिया* कि वे अपनी मां का वध करें।


- रुमण्वान्, सुषेण, वसु और विश्वावसु — चारों ने यह कार्य करने से मना कर दिया।  

- सबसे छोटे पुत्र *राम (परशुराम)* ने पिता की आज्ञा मानकर *अपनी माता और चारों भाइयों का वध कर दिया*।


- पिता ने परशुराम से प्रसन्न होकर कहा — "वर मांगो।"

- परशुराम ने कहा — *"मुझे मेरी मां और चारों भाइयों का जीवन वापस चाहिए।"*

- जमदग्नि ने अपने *तपबल से उन्हें पुनर्जीवित कर दिया।*

एक और महत्त्वपूर्ण प्रसंग है 


🐂 *कामधेनु और सहस्रार्जुन का प्रसंग :*


🧘‍♂️ *महर्षि जमदग्नि और कामधेनु:*


- महर्षि जमदग्नि अत्यंत तपस्वी और ब्रह्मर्षि थे।

- उनके पास *कामधेनु* नाम की एक *इच्छा पूर्ति करने वाली दिव्य गौ* थी, जो उन्हें इंद्रलोक से प्राप्त हुई थी।

- कामधेनु यज्ञों में *दूध, घृत, और सभी आवश्यक सामग्री* उत्पन्न कर देती थी — जिससे वे बिना किसी बाहरी साधन के यज्ञ कर सकते थे।


---


👑 *सहस्रार्जुन का लोभ:*


- एक बार *सहस्रार्जुन*, जो कि हैहय वंश का राजा था, अपने सैनिकों के साथ *महर्षि जमदग्नि के आश्रम में अतिथि रूप में* पहुँचा।

- आश्रम में उनका सत्कार इतना उत्तम हुआ कि राजा चकित हो गया — और उसे ज्ञात हुआ कि यह सब *कामधेनु* की कृपा से संभव है।


😈 *कामधेनु को बलात् ले जाना:*


- सहस्रार्जुन ने कामधेनु को *राजकीय कार्यों और यज्ञों के लिए उपयोगी बताया* और उसकी मांग की

- जब महर्षि ने असहमति जताई, तो उसने *बलपूर्वक कामधेनु को छीन लिया* और उसे अपने राज्य *महिष्मती* ले गया।


---


🔱 *परशुराम का क्रोध और प्रतिशोध:*


- जब परशुराम जी को यह ज्ञात हुआ, तो उन्होंने *हैहय वंश पर आक्रमण* कर दिया।

- उन्होंने *राजा सहस्रार्जुन और उसकी सेना का नाश* कर दिया और कामधेनु को पुनः प्राप्त किया।

*सहस्रार्जुन के पुत्र* अपने पिता का बदला लेने के लिए अवसर ढूंढ़ रहे थे। एक दिन जब परशुराम और उनके भाई आश्रम में नहीं थे, तो उनके पुत्र आश्रम में आ धमके। *जमदग्नि* यज्ञ-मंडप में ध्यानस्थ बैठे थे। पुत्रों ने उनका मस्तक काट डाला। वे अपने साथ उनका मस्तक भी ले गए। रेणुका विलाप करने लगीं। संयोग की बात, परशुराम शीघ्र ही आ गए। वे शोकमग्ना अपनी माँ के मुख से *पिता के शिरोच्छेद* किए जाने की बात सुनकर क्रुद्ध हो उठे। वे अपने परशु को लेकर महिष्मती की ओर दौड़ पड़े। उन्होंने *महिष्मती* को तो उजाड़ ही दिया।  पुत्रों को भी मार डाला। उन्होंने अपने पिता का मस्तक लाकर अपनी माँ को दिया। रेणुका अपने पति के साथ सती हो गईं। इस घटना के पश्चात् *परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर दिया* *था*।

यह कथा केवल प्रतिशोध की नहीं, बल्कि *धर्म, न्याय, और अधर्म के विरुद्ध दृढ़ता* की प्रतीक है।  

*पिता के वध से उत्पन्न वह पीड़ा*, एक पूरे युग की *धार्मिक क्रांति* बन गई।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने शासन प्रशासन अनुशासन के विषय में क्या बताया भैया ज्योति जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

22.4.25

*आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का वैसाख कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 22 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३६३ वां* सार -संक्षेप

 मौनान्मूकः प्रवचनपटुश्चाटुलो जल्पको वा

धृष्टः पार्श्वे वसति च तदा दूरतश्चाप्रगल्भः ।

क्षान्त्या भीरुर्यदि न सहते प्रायशो नाभिजातः

सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः ॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 22 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३६३ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपने विकारों को दूर करें, सदाचारमय विचार ग्रहण करें और कर्मानुरागी बनें

सदाचारमय विचारों के लाभ अत्यंत गहन और व्यापक हैं ये जीवन को सम्पूर्ण रूप से *सकारात्मक दिशा* देते हैं।सदाचारमय विचार  जीवन की सफलता, शांति और उन्नति का मूल हैं।

आचार्य जी कहते हैं कि अध्यात्म को यदि केवल आत्म-कल्याण तक सीमित कर दिया जाए और उसमें समाज व राष्ट्र का हित  परिलक्षित न होता हो  तो वह  वास्तविक अध्यात्म नहीं कहलाएगा। वास्तविक अध्यात्म वही है जिसे आचार्य जी *शौर्य प्रमंडित अध्यात्म* कहते हैं जिसमें समाज का हित राष्ट्र का हित दृष्टिगोचर हो

तो आइये व्यक्तिगत कार्यों को करते हुए अत्यधिक भौतिकता में फंसे रहने के बाद भी हम *समाजोन्मुखी* होने और *राष्ट्र के प्रति निष्ठावान्* होने का संकल्प लें


तुलसीदास जी कृत मानस सभी को संतुष्ट करती है जिसे उन्होंने विषम परिस्थितियों में रचा 


*गोस्वामी तुलसीदास* जी ने *रामचरितमानस* की रचना *अकबर के शासनकाल* (16वीं शताब्दी) में की थी और यह वह समय था जब भारत में *धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर अनेक विषम परिस्थितियाँ* विद्यमान थीं।

हिन्दू समाज में मूर्ति पूजा, वेद, पुराण और सगुण भक्ति पर प्रश्न उठाए जा रहे थे। इस्लामी शासन में सनातन धार्मिक परंपराओं पर दबाव था जातिवाद, अंधविश्वास, और आडंबर समाज में व्याप्त थे। शिक्षा का अभाव था और जनता की धार्मिक पुस्तकों तक पहुँच नहीं थी।संस्कृत में धार्मिक साहित्य था जिसे आमजन नहीं समझ पाते थे इसलिए लोगों में धर्म के प्रति जुड़ाव कम होता जा रहा था ऐसे में तुलसी ने अवधी लोकभाषा में यह ग्रंथ लिखा ताकि हर व्यक्ति उसे पढ़ सके, सुन सके, समझ सके उन्होंने *रामकथा* को एक *भक्ति आंदोलन* का माध्यम बना दिया।तुलसीदास जी ने लोगों के हृदय में *भगवान् राम* को एक *आदर्श राजा*, *मर्यादा पुरुषोत्तम*, और *सर्वधर्म समभाव* के प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया

यह ग्रंथ असंख्य लोगों का कल्याण कर रहा है

राम सुप्रेमहि पोषत पानी। हरत सकल कलि कलुष गलानी॥

भव श्रम सोषक तोषक तोषा। समन दुरित दु:ख दारिद दोषा॥


मति अनुहारि सुबारि गुन गन गनि मन अन्हवाइ।

सुमिरि भवानी संकरहि कह कबि कथा सुहाइ॥ 43(क)॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भरद्वाज आश्रम की चर्चा क्यों की heat wave का उल्लेख क्यों हुआ  शरीर की यात्रा को ढोना नहीं है से आचार्य जी का क्या आशय है  जानने के लिए सुनें

21.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 21 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३६२ वां* सार -संक्षेप

 आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 21 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३६२ वां* सार -संक्षेप


भारतीय संस्कृति और दर्शन को जिसमें एक गहरी, *समयातीत और चिरंतन विशेषता* है,विकृत शिक्षा के माध्यम से हमारे मन मस्तिष्क को आक्रांत कर अंग्रेजों ने महत्त्वहीन और तुच्छ बताया हम इसके वैशिष्ट्य को  स्वयं इसे जानें और *भावी पीढ़ी* को भी इससे अवगत कराएं  

भारतीय दर्शन जीवन को केवल *एक जन्म की यात्रा नहीं* मानता, बल्कि यह *अनेक जन्मों की सतत प्रक्रिया* मानता है, जिसका उद्देश्य *आत्मा की पूर्णता* और *मोक्ष* की प्राप्ति है।

हमारे *वर्तमान गुण, स्वभाव, संस्कार* — सब कुछ पूर्व जन्म के कर्मों का ही परिणाम हैं। हमारे वर्तमान जीवन के *विचार, व्यवहार और व्रत* यह तय करते हैं कि *आगामी जन्म किस प्रकार का होगा।*- यह जन्म एक *अवसर* है — *आत्मा के विकास का, ज्ञान और भक्ति के मार्ग का।*

तो आइये इस अवसर का लाभ उठाएं 

जब हमें विश्वास होता है कि जो करता है परमात्मा ही करता है और परमात्मा सब अच्छा ही करता है तो परमात्मा ही हमें प्रेरित करता है कि हम संघर्ष करें

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।


ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।।

(कृष्ण का जीवन दर्शन)

परमात्मा ही प्रेरित करता है कि दुष्टों को पराजित करने के लिए हम उन आत्मीय लोगों को कर्म में प्रवृत्त करते हुए संगठित करेंगे जो अपनी शक्तियों क्षमताओं को पहचान नहीं रहे हैं 

(राम का जीवन दर्शन )

और वही प्रेरित करता है कि हम अपने तत्त्व शक्ति के बोध से प्रलय भी ला सकते हैं (शिव का दर्शन )

यह आत्मबोध शक्ति उत्पन्न करता है 

यस्य सर्वे समारम्भाः कामसङ्कल्पवर्जिताः।


ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः।।4.19।।

जिसके सारे कार्य कामना और संकल्प से रहित हैं,  ऐसे उस ज्ञानरूप अग्नि के द्वारा भस्म हुए कर्मों वाले व्यक्ति को ज्ञानीजन पण्डित कहते हैं।।

 आचार्य जी ने अधिक से अधिक हमारे अनुकूल जीवनियां पढ़ने  का परामर्श दिया ताकि हमें उन महापुरुषों के जीवन में घटित उतार चढ़ाव भी समझ  में आ सकें महर्षि रमण की जीवनी हम पढ़ सकते हैं

महर्षि रमण (30 दिसंबर 1879 – 14 अप्रैल 1950) 20वीं शताब्दी के एक महान् भारतीय संत और आत्मज्ञान के अद्वैत वेदांत परंपरा के प्रमुख आचार्य थे। उनका जीवन और शिक्षाएँ आत्म-अन्वेषण, मौन और आत्मा की शुद्ध अनुभूति पर केंद्रित थीं।


🧘‍♂️ जीवन परिचय


- *जन्म*: वेंकटरमण अय्यर के रूप में तमिलनाडु के तिरुचुली गाँव में।

- *आध्यात्मिक जागृति*: 16 वर्ष की आयु में मृत्यु के गहन अनुभव के बाद आत्मा की शाश्वतता का साक्षात्कार हुआ।

- *अरुणाचल पर्वत*: इस अनुभव के पश्चात् वे तिरुवन्नामलै स्थित अरुणाचल पर्वत पर चले गए, जहाँ उन्होंने शेष जीवन तपस्या और साधना में बिताया

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राघवेन्द्र जी का नाम क्यों लिया किसी भी विषम परिस्थिति के आने पर हमें क्या करना चाहिए जानने के लिए सुनें

20.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 20 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३६१ वां* सार -संक्षेप

 मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत्। आत्मवत् सर्वभूतेषु यःपश्यति स पण्डितः।। 


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 20 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३६१ वां* सार -संक्षेप


अनेक भौतिक प्रपंचों में फंसे रहने के बाद भी आचार्य जी अपना बहुमूल्य समय हमें प्रेरित करने के लिए देते हैं यह हमारा सौभाग्य है 

हमारे ज्ञानियों ने जो सूक्ष्म अध्ययन किया और उसे प्रस्तुत किया उसका उद्देश्य यही था कि हम उस अद्भुत चिन्तन को समझकर संसार और संसारेतर सारे के सारे तत्त्व को समझ जाएंगे किन्तु भ्रमित होने के कारण हम उस ज्ञान के प्रति आस्था नहीं रख पाए अतः आवश्यक है कि हम यह ज्ञान प्राप्त करें हम इसकी उपेक्षा न करें यह हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी है

प्रपंचों से मुक्त होकर चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों परस्पर का संवाद करें शिक्षा और शिक्षक पर  विस्तार से चर्चा करें

उपनिषद् गीता मानस सभी महत्त्वपूर्ण हैं  इनका अध्ययन करें


अन्नं बहु कुर्वीत। तद् व्रतम्‌। पृथिवी वा अन्नम्। आकाशोऽन्नादः। पृथिव्यामाकाशः प्रतिष्ठितः।

आकाशे पृथिवी प्रतिष्ठिता।तदेतदन्नमन्ने प्रतिष्ठितम्‌।स य एतदन्नमन्ने प्रतिष्ठितं वेद प्रतितिष्ठति। अन्नवानन्नादो भवति। महान्भवति प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेन। महान् कीर्त्या॥


यह *तैत्तिरीयोपनिषद्* के *भृगुवल्ली* खंड से लिया गया है और यह *"अन्नमय कोष"* (अन्नमय शरीर) की महिमा को वर्णित करता है। यह अन्न (अर्थात् भोजन) के महत्व को आध्यात्मिक और भौतिक दोनों दृष्टियों से स्पष्ट करता है।


तुम अन्न की वृद्धि और अन्न का संचय करोगे क्योंकि वह भी तुम्हारे श्रम का व्रत है। वस्तुतः पृथ्वी भी अन्न है और आकाश अन्न का भोक्ता है। आकाश पृथ्वी पर प्रतिष्ठित है तथा पृथ्वी आकाश पर । यहाँ भी अन्न पर अन्न प्रतिष्ठित है। जो अन्न पर प्रतिष्ठित इस अन्न को जानता है, स्वयं दृढ़ रूप से प्रतिष्ठित हो जाता है। वह अन्न का स्वामी  एवं अन्न का भोक्ता बन जाता है, वह सन्तति से, पशु-धन से, ब्रह्मतेज से महान् हो जाता है, वह कीर्ति से महान् बन जाता है।

जिसकी कीर्ति होती है वही जीवित है कीर्तिविहीन तो मृत है

स जीवति यशो यस्य कीर्तिर्यस्य स जीवति

संसार में रहकर आप सम्पन्न रहें

सब कुछ अन्नमय है अर्थात् प्राणमय है और प्राण परमात्मा है

अपना द्वार  स्वयं साफ करने से क्या तात्पर्य है  अन्न की चर्चा में नेहरू जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिए सुनें

19.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 19 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३६० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 19 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३६० वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं जिनके लिए नित्य हम प्रतीक्षारत रहते हैं आइये प्रवेश करें आज की वेला में और संसार से कुछ क्षणों के लिए विरत रहने का प्रयास करें ताकि संसार से हम इतने व्यामोहित न हो जाएं कि हमारा विवेक ही नष्टप्राय हो जाए

संसार बुरा नहीं है

जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार। संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥ 


*"संसार सत्य नहीं है, सत्य प्रतीत होता है"* — यह अद्वैत वेदांत, उपनिषदों और योग-दर्शन की अत्यंत गूढ़ और सारगर्भित शिक्षा का साक्षात् प्रतिबिंब है।

ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या- संसार माया के कारण हमें वास्तविक लगता है माया *सच्चिदानंद ब्रह्म* पर अविद्या का आवरण डाल देती है, जिससे हम बदलते हुए को स्थायी मानने लगते हैं अतः हम संसार को एक नाटक समझें जिससे हमें शान्ति मिले हम मनुष्य के रूप में जन्म लेने वाले भाव की अनुभूति करें जो हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी है

मनोबुद्ध्यहङ्कार चित्तानि नाहं न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे । न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ll.

अपने चिन्मय स्वरूप की अनुभूति करें

और इस अनुभूति के लिए एक सरल उपाय यह है कि हम जागरण शयन खानपान  सद्संगति अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन पर ध्यान दें परनिन्दा परस्तुति से बोझिल न हों


प्रथम जो मैं पूछा सोइ कहहू। जौं मो पर प्रसन्न प्रभु अहहू॥

राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी। सर्ब रहित सब उर पुर बासी॥ को आचार्य जी ने कैसे स्पष्ट किया (भैया आदर्श पुरवार जी का प्रश्न ),संतत्व शक्ति से भरपूर है या अशक्त, भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

18.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 18 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३५९ वां* सार -संक्षेप

 ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते।


आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः।।5.22।।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 18 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३५९ वां* सार -संक्षेप

अपने व्यावहारिक कार्यों को करते हुए निःस्पृह भाव से बिना लिप्त हुए अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय सद्संगति में रत होने का प्रयास करें ताकि हमारा मनुष्यत्व जाग्रत हो सके आत्मशक्ति की अनुभूति हो सके 

आत्म का अनुभव हो सके यही आत्म मूलतत्त्व है यह अनुभूति जितनी गहन होगी उतनी ही शक्ति का प्रादुर्भाव होगा अपने अन्दर के भाव जगत् को पहचानना विशिष्ट है यह आत्म का ज्ञान अद्भुत है 



ये ये कामा दुर्लभा मर्त्यलोके सर्वान्कामांश्छन्दतः प्रार्थयस्व।

इमा रामाः सरथाः सतूर्या न हीदृशा लम्भनीया मनुष्यैः।

आभिर्मत्प्रत्ताभिः परिचारयस्व नचिकेतो मरणं माऽनुप्राक्शीः ॥


जिन-जिन कामनाओं को पूर्ण करना मर्त्यलोक में दुर्लभ है, उन सभी कामनाओं को तुम सहर्ष माँग लो। देखो! अपने रथों एवं वाद्यों सहित ये मनोहारिणी रमणीयां हैं, मनुष्यों के लिए इस प्रकार की रमणीयां अलभ्य हैं, मैं इन्हें तुम्हें दूँगा। इनके साथ सुख सें रहो। किन्तु, मृत्यु के विषय में प्रश्न मत करो।


*कठोपनिषद्* का यह श्लोक यमराज द्वारा नचिकेता से उस समय कहा गया है, जब वे उसे मोक्ष के ज्ञान से हटाकर सांसारिक भोगों की ओर मोहित करना चाहते हैं 


 *नचिकेता*, यमराज से *मृत्यु के रहस्य*, *आत्मा*, और *मोक्ष* का ज्ञान मांगता है। यमराज उसकी परीक्षा लेना चाहते हैं — क्या वह वास्तव में ज्ञान का जिज्ञासु है या केवल बाल-हठ में प्रश्न कर रहा है?


किन्तु  नचिकेता अडिग रहता है

श्वोभावा मर्त्यस्य यदन्तकैतत्सर्वेन्द्रियाणां जरयन्ति तेजः।

अपि सर्वं जीवितमल्पमेव तवैव वाहास्तव नृत्यगीते ॥

हे अन्त करने वाले देव!मर्त्य मनुष्य के ये सब भोग पदार्थ कल तक ही रहने वाले हैं, ये सब इन्द्रियों की आतुरता तथा उनके तेज को जीर्णशीर्णं कर देते हैं, सम्पूर्ण जीवन भी स्वल्प मात्र ही है।


इसके अतिरिक्त गेहूं की समस्या की चर्चा क्यों हुई भैया अजय कृष्ण जी भैया मुकेश जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

17.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 17 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३५८ वां* सार -संक्षेप

 रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥

तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 17 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३५८ वां* सार -संक्षेप


उठो जागो जगाओ वंश को शुभ ब्रह्मवेला में, 

जवानी सुप्त क्योंकर है पड़ी पशुवत् तबेला में?

हुए उपदेश अबतक जो वही काफी सुनाने को 

न दो उपदेश लेकर तेग जूझो जग-झमेला में। 

------  ओम शङ्कर

इस कविता के माध्यम से आचार्य जी हमें संकेत कर रहे हैं  ब्रह्ममुहूर्त में उठने का, जागने का और अपने राष्ट्रभक्त समाज को जगाने का। यह आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आह्वान है 

 युवावस्था जो ऊर्जा, चेतना और निर्माण की अवस्था है वह  पशुओं की तरह निद्रा, जड़ता और केवल भोग में न पड़ी रही  यह हम युवाओं को आत्मनिरीक्षण करने के लिए प्रेरित करती है।हमें मनुष्य के रूप में जन्म मिला है हमें मनुष्यत्व की अनुभूति करनी चाहिए हमें अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिए वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः हमारा लक्ष्य है 

अब केवल शब्दों से नहीं, कर्म से परिवर्तन लाना है।

 केवल उपदेश देने की नहीं, बल्कि शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति करने की आवश्यकता है जब हम  स्वयं इस प्रकार का कार्य व्यवहार आरम्भ कर देंगे तो हमारा आत्मबोध जाग्रत होगा ही हम शक्ति शौर्य पराक्रम विश्वास से भर जाएंगे हमें सन्मार्ग मिल जाएगा चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की हम अनुभूति करते हैं तो हमें तर्क वितर्क से दूर होते हुए अपने हिन्दू धर्म जो अगणित मानवों के हृदय जीतने का  हमें हौसला देता है के प्रति आग्रही विश्वास होना चाहिए 

हम अपनी असीमित क्षमताओं को पहचानें 

मै शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार–क्षार।

डमरू की वह प्रलय–ध्वनि हूँ, जिसमे नचता भीषण संहार।

रणचंडी की अतृप्त प्यास, मै दुर्गा का उन्मत्त हास।

मै यम की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुँआधार।

फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती मे आग लगा दूँ मैं।

यदि धधक उठे जल, थल, अंबर, जड चेतन तो कैसा विस्मय?

हिन्दू तन–मन, हिन्दू जीवन, रग–रग हिन्दू मेरा परिचय!

हमें अपने आर्ष ग्रंथों के प्रति पूर्ण श्रद्धा का भाव रखना होगा भावी पीढ़ी को डिगने से बचाने के लिए उसे भी प्रेरित करें अपने सनातन धर्म के प्रति अपने आर्ष ग्रंथों के प्रति उसका भी श्रद्धा का भाव रहे अनेक विकल्पों से भरी अपनी सनातन जीवनशैली को अपनाने की आवश्यकता है खाद्याखाद्य विवेक का ध्यान दें

इसके अतिरिक्त तुलसीदास के जीवन से हमें क्या सीखना चाहिए भैया अनिल महाजन का उल्लेख क्यों हुआ मेरा साबुन बेहतर है से क्या आशय है युगभारती के कार्यक्रम करते समय क्या ध्यान देने की आवश्यकता है जानने के लिए सुनें

16.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 16 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३५७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 16 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३५७ वां* सार -संक्षेप

इन सदाचार वेलाओं का श्रवण हम नियमित रूप से करें ताकि हमें *आत्मबोध* का अनुभव हो सके 

हमें संकटों में बल उत्साह मिल सके 

हम *बाह्य आडंबरों* से प्रभावित न हो सकें और अपने विचार विमल रख सकें 

संसार का चक्र अत्यन्त अद्भुत है जिसमें हर मनुष्य की अलग अलग भूमिका है हमें अपनी भूमिका को पहचानकर उसका परिपालन समुचित प्रकार से  मनोयोगपूर्वक करना चाहिए ऐसा करने पर निश्चित रूप से हम प्रशंसा के पात्र बनेंगे यशस्वी बनेंगे जैसे पिता के रूप में यदि भूमिका है तो उसी के अनुसार कार्य करें

*राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में यदि भूमिका है* तो उसका भी ध्यान देना होगा   राष्ट्र के प्रति बैर रखने वाले दुष्टों की उपेक्षा भी करनी होगी और उस भूमिका को निभाने में आए अवरोधों  से हम भ्रमित और भयभीत नहीं होंगे यह निश्चय करना होगा 


जिस प्रकार भगवान् राम अपने लक्ष्य में आने वाले अवरोधों से भयभीत नहीं हुए 

श्रीरामचरित मानस ग्रंथ इसी कारण महत्त्वपूर्ण हो जाता है  यह एक अद्भुत ग्रंथ है हमें इसका बार बार अध्ययन करना चाहिए यह निश्चित रूप से हमारी समस्याओं का समाधान प्रदान कर देता है आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम इसके *बालकांड के ३५ वें दोहे से ४३ वें दोहे* के बीच का भाग अवश्य देखें जिसमें रामकथा को प्रारम्भ करने का कारण और कथा का स्वरूप पता चलेगा

मैं पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत।

समुझी नहिं तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत॥ 30(क)॥


जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें॥

निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी॥


जम गन मुहँ मसि जग जमुना सी। जीवन मुकुति हेतु जनु कासी॥

रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी। तुलसिदास हित हियँ हुलसी सी॥


"सुठि सुंदर संवाद वर बिरचे बुद्धि बिचारि।  

तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि॥"


इस कथा में बुद्धि से विचारकर जो चार अत्यन्त सुंदर और उत्तम संवाद (कागभुशुण्डि-गरुड़, शिव-पार्वती, याज्ञवल्क्य-भरद्वाज और तुलसीदास और हम सब ) रचे गए हैं, वही इस पवित्र और सुंदर सरोवर के चार मनोहर घाट हैं। 

चार मनोहर घाटों का विवरण:


1. *कागभुशुण्डि और गरुड़ संवाद*: यह संवाद पक्षियों के दृष्टिकोण से जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझाता है।

2. *शिव और पार्वती संवाद*: यह संवाद भगवान शिव और देवी पार्वती के बीच की गहन चर्चा को दर्शाता है।

3. *याज्ञवल्क्य और भरद्वाज संवाद*: यह संवाद दो महान ऋषियों के बीच ज्ञान और भक्ति की गहरी बातें साझा करता है।

4. *तुलसीदास और हम लोगों के बीच का संवाद*: यह संवाद गोस्वामी तुलसीदास जी और हमारे बीच रामकथा के महत्व और भक्ति के विषय में चर्चा करता है।


इन चार संवादों को "चार मनोहर घाट" के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो रामकथा के पवित्र सरोवर में स्नान करने के लिए उपयुक्त स्थानों के समान हैं।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने लपा की चर्चा क्यों की भैया सिद्धनाथ जी और भैया आदर्श पुरवार जी का उल्लेख क्यों किया शब्द ब्रह्म कैसे है जानने के लिए सुनें

15.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 15 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३५६ वां* सार -संक्षेप

 राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥

रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्हि बिबाकी॥

सहित दोष दु:ख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा॥

भंजेउ राम आपु भव चापू। भव भय भंजन नाम प्रतापू॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 15 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३५६ वां* सार -संक्षेप

इन सदाचार वेलाओं का उद्देश्य है कि हम उत्साहित आनन्दित हों *सकारात्मक सोच* रखें अपने सद्ग्रंथों का अध्ययन करें जो हमें शक्ति की अनुभूति कराने में सक्षम हैं, संसार के भावपक्ष की शक्ति की अनुभूति करें, संतत्व का अनुभव करें *आत्मबोधोत्सव* मनाएं 


गोस्वामी तुलसीदास  जिस समय मानस जिसने उस समय राष्ट्रभक्त समाज का बहुत कल्याण किया की रचना कर रहे थे उस समय निर्गुण भक्ति का विस्तार था

निर्गुण भक्ति अर्थात् *ईश्वर, जो निराकार, निर्गुण, निरविकारी है,की भक्ति जो सरल नहीं है, क्योंकि यह रूप, गुण, लीला, और संबंध* से रहित होती है। इसीलिए इसे *अत्यन्त गूढ़, दार्शनिक और कठिन मार्ग* माना गया है।

इसके विपरीत सगुण भक्ति सरल है

भगवान् राम 


राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी॥

नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा॥


और भगवान् कृष्ण जो सगुण रूप में हमारे सामने आकर अपने आचरण अपने कार्य व्यवहार और अपनी लीलाओं से विषम परिस्थितियों को नियन्त्रित कर हमें भी उसी तरह के आचरण कार्य व्यवहार की प्रेरणा देते हैं में हमारा भक्त समाज बहुत रमा


निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार।

कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार॥ 23॥

 निर्गुण से नाम का प्रभाव अत्यंत बड़ा है। अब अपने विचार के अनुसार कहता हूँ, कि राम नाम राम से भी बड़ा है॥ 23॥


*"राम से बड़ा राम का नाम"* — इसका अर्थ है कि *ईश्वर से भी अधिक प्रभावशाली, दिव्य और कल्याणकारी उनके नाम का स्मरण है।*

नामु राम को कलपतरु, कर जो चित चढ़ि धीर।  

   राम सों अधिक राम कर नाम, बिदित सबु संत कबीर॥  

   (राम का नाम कल्पवृक्ष के समान है। संत कबीर भी कहते हैं कि राम से अधिक प्रभावशाली उनका नाम है।)


*राम नाम के पाथरै, तरे सकल संसार।*


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने *ओरछा* में होने वाले संभावित वार्षिक अधिवेशन की चर्चा की 

*भैया राघवेन्द्र प्रताप* *जी* का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया, यक्ष की कन्या कौन थी  युगभारती से समाज को संबल कैसे मिल सकता है जानने के लिए सुनें

14.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 14 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३५५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 14 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३५५ वां* सार -संक्षेप

हम इन सदाचार संप्रेषणों को स्वयं सुनें और अपने परिवार को भी सुनाएं ताकि इनके सदाचारमय विचार ग्रहण कर हमारे संस्कार सुरक्षित रह सकें 


हमारे स्वरूप परिवर्तित हो जाते हैं किन्तु स्वभाव परिवर्तित नहीं होता इस कारण हमें भाव की पूजा करनी चाहिए भाव का आनन्द लेने का प्रयास करना चाहिए और भाव को भक्ति तक पहुंचाने का हमें प्रयास करना चाहिए


*भक्ति* शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत धातु *'भज्'* से हुई है, जिसका अर्थ होता है — *सेवा करना, प्रेम करना, भाग लेना*।


भक्ति में न कोई जटिलता है, न तर्क-वितर्क — केवल प्रेम है, आस्था है, समर्पण है। 

जहाँ बुद्धि चूक जाती है, वहाँ भक्ति जीवन को बाँध लेती है 

स त्वस्मिन परमप्रेमरूपा।  

  (भक्ति परम प्रेम का रूप है।)

भक्ति अर्थात् राष्ट्र -भक्ति 

यह भक्ति विश्व भक्ति तक जाती है तभी हम कहते हैं वसुधैव कुटुम्बकम् 

भारत राष्ट्र  जिसकी आर्ष परम्परा,जीवन शैली जिसका जीवनदर्शन तात्त्विक स्वरूप  संपूर्ण विश्व के लिए कल्याणकारी और सृष्टि का आधार है 

यही हमारा आनन्दमय पक्ष है और हमारी यह परम्परा अद्भुत है और हमारे ऋषियों का उद्देश्य यही रहा है कि हजारों वर्ष बीत जाएं किन्तु हम अपनी इस अद्भुत अप्रतिम परम्परा को भूलें नहीं  १९२५ में अस्तित्व में आए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  जिसकी अनेक धाराएं उपधाराएं हो गई हैं का भी यही उद्देश्य है 

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्।।


कल का कार्यक्रम मेलापक कैसे था,प्रेम की प्रत्यक्ष गरमाहट किस कारण दिखाई नहीं देती, मैं नहीं हम क्या है, जागरण की किस कटिंग का उल्लेख आचार्य जी ने किया जिसमें आचार्य जी की फोटो छपी थी जानने के लिए सुनें

13.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 13 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३५४ वां* सार -संक्षेप

 "युगभारती"  माँ भारती की आरती का एक स्वर है ,

 और हनुमत्कृपा का है यह प्रसाद ,अमूल्य वर है


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 13 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३५४ वां* सार -संक्षेप

सनातन धर्म अर्थात् परमात्म धर्म अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है जिसमें रम जाना भगवान् की कृपा से संभव है


*"सनातन"* का अर्थ होता है — *अनादि, अनंत, शाश्वत*, जो न कभी उत्पन्न हुआ और न ही नष्ट हो सकता है।  

*"धर्म"* का अर्थ है — *कर्तव्य*


सनातन धर्म का मूल आधार *परमात्मा* है — वह परम सत्य जो सभी में व्याप्त है



ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌ ॥


 इस अत्यन्त गतिशील क्षरणशील जगत् में जो भी यह दृश्यमान गतिशील, वैयक्तिक जगत् है-यह सारा ईश्वर के आवास के लिए है। इस सबका त्यागपूर्वक उपभोग करना चाहिए किसी भी दूसरे की धन-सम्पत्ति पर ललचाई दृष्टि नहीं डालनी चाहिए

 हमें लोभ लाभ से मुक्त होकर शास्त्र -सम्मत कार्यों को करते हुए यशस्वी तपस्वी जयस्वी बनते हुए १०० वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिए

इन सूत्र सिद्धान्तों पर हमें एकान्त में मनन करने का प्रयास करना चाहिए 

गौतम व्यास कपिल याज्ञवल्क्य आदि शक्तिसम्पन्न महापुरुषों की एक लम्बी शृङ्खला है जिन्हें हम ठीक से जान भी नहीं पाए क्योंकि हमारी शिक्षा दूषित रही क्योंकि हम शरीर बने रहे आत्म से दूर रहे मनुष्यत्व से दूर रहे 

इस कारण हमें अपने भीतर प्रवेश करने की आवश्यकता है अध्ययन करें तो *स्वाध्याय अवश्य करें सद्विचारों को ग्रहण कर कर्मानुरागी बनें* 

जो कहें उसे करें



*"कीर्ति यस्य स जीवति"*


*जिसकी कीर्ति (यश, यशस्विता, शुभ प्रसिद्धि) जीवित रहती है, वही वास्तव में जीवित होता है केवल शरीर से जीवित रहना ही जीवन नहीं है, बल्कि उत्तम कर्मों, सदाचार, सेवा, और सच्चे मूल्यों के आधार पर जो कीर्ति अर्जित करता है वही व्यक्ति सच्चे अर्थों में अमर बनता है।*

*"कर्म ऐसे करें कि मृत्यु के बाद भी लोग नाम से जीवित रखें ।"*

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने औरास की चर्चा क्यों की आज सायं आचार्य जी का उद्बोधन किस विषय पर आधारित है जानने के लिए सुनें

12.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 12 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३५३ वां* सार -संक्षेप

 जग हट वाड़ा स्वाद ठग, माया वेसों लाइ।

राम चरन नीकों ग्रही, जिनि जाइ जनम ठगाई॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 12 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३५३ वां* सार -संक्षेप


जब जीव माया से घिर जाता है

भूमि परत भा ढाबर पानी, जनु जीवहिं माया लिपटानी

, तो वह भ्रम, दुःख और उलझनों से भर जाता है। ऐसे समय में माया मुक्त होकर *"आत्मस्थ"* होना अर्थात् *अपने भीतर लौटना* – ही उसका सच्चा समाधान है। यह मार्ग साधना, ज्ञान, सेवा और प्रेम से होकर जाता है। माया के अंधकार में आत्म को पहचानना ही वास्तविक जागरण है।इन सदाचार वेलाओं का यही उद्देश्य है कि हम मायामय चिन्तन से बचें आत्मस्थ होने का प्रयास करें किन्तु आत्मस्थता इतनी कि हम समाज और देश को न भूलें हम शक्तिसम्पन्न होते हुए संगठित होते हुए महापुरुषों की सन्निधि करते हुए देश हित के कार्य करें क्योंकि हमारा लक्ष्य वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः इसी की याद दिलाता है हमारे राष्ट्र पर सदैव ही मायावी लोगों द्वारा संकट आया है और आज भी है ऐसे समय में हमारा एक कर्तव्य बन जाता है क्योंकि हम मनुष्य हैं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी ही चाहिए  भगवान् तक ने मनुष्य के रूप में जन्म लेने की आवश्यकता समझी है 


बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।

निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥ 192॥


ब्राह्मण अर्थात् जो ब्रह्म के चिन्तन में निर्विकार रूप से लीन रहे , गो, देवता और  परोपकारी संतों के लिए भगवान् ने मनुष्य का अवतार लिया।


परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।


धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।


 वे अज्ञानमयी माया और उसके गुण (सत, रज, तम) साथ ही बाहरी या भीतरी इंद्रियों से परे हैं। उनका दिव्य शरीर अपनी इच्छा से ही बना है

वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्‌।

तमेव विदित्वातिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय॥


मैं उस परम पुरुष को जान गया हूँ जो सूर्य के समान देदीप्यमान है, जो समस्त अन्धकार से परे है। जो व्यक्ति उसे अनुभूति द्वारा जान जाता है वह मृत्यु से मुक्त हो जाता है। जन्म-मरण के चक्कर से दूर होने का कोई अन्य मार्ग नहीं है।

आचार्य जी ने इस बात पर पुनः बल दिया कि हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन में अवश्य रत हों 

इसके अतिरिक्त वाणी कविता कैसे प्रभावकारिणी होती है भक्ति क्या है और वह हमारे लिए क्यों आवश्यक है सनातन धर्म सभा की चर्चा क्यों हुई  शहद विष कैसे हो जाता है जानने के लिए सुनें

11.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 11 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३५२ वां* सार -संक्षेप

 काम धाम नाम का जहान में प्रपंच मंच 

नायक अनेक नाम रूप के बिराजे हैं

सभी निज प्रकृति प्रवृत्ति शक्ति बुद्धि साथ 

पूरी दमदारी के समेत साज साजे हैं। 

दर्शक बना हुआ विधाता बहु रूप धार 

अभिनय सभी के देख फलहु नवाजे हैं

वाह रे संसार तेरी महिमा अपार, तेरा 

पाए हैं सुपार सिर्फ कोइ बाजे बाजे हैं l


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 11 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३५२ वां* सार -संक्षेप



जब हम अपने जीवन के व्यस्त कार्यक्रम से थोड़ा समय निकालकर आध्यात्मिक चिंतन करते हैं, तो इससे हमारे मन में शांति आती है।

मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः


 सांसारिक जीवन के तनाव और चिंता को कम करने के लिए हमें अपने भीतर की शांति को अनुभव करने की आवश्यकता है। आध्यात्मिक चिंतन इस शांति का मार्ग है, जो हमें जीवन के तनावपूर्ण क्षणों से उबरने में सहायता प्रदान करता है तो आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में 


वर्तमान  तथाकथित शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से प्रतिस्पर्धा, लोभ और मोह पर आधारित है। यह भय और भ्रम का वातावरण बना रही है दृष्टि दूषित कर रही है 

छात्रों को मुख्य रूप से यह सिखाया जाता है कि वे अच्छे अंक प्राप्त करें और एक अच्छी नौकरी प्राप्त करें, जिससे समाज में प्रतिष्ठा और भौतिक सुख-सुविधाएँ मिलें। इस प्रकार की शिक्षा से अधिकतर व्यक्ति अपना ध्यान नौकरी और कमाई पर केंद्रित करते हैं और इसमें गहन आत्मा की शांति, आत्मज्ञान, और सामाजिक योगदान के बारे में विचार कम होता है।

हमें इस शिक्षा से दूर होकर आत्मबोधोत्सव को मनाने की आवश्यकता है

मैं कौन हूं मैं कहां से आया हूं मेरा क्या कर्तव्य है 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 


हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों शौर्य प्रमंडित अध्यात्म में रत हों आत्मबोधोत्सव सिखाने वाली हमारी आर्ष परम्परा अद्भुत रही है भारत देश ही अद्भुत है हम इसी अद्भुतता पर न्यौछावर होने का प्रयास करें 

हमारी सनातन शिक्षा आध्यात्मिक उन्नति और समाज की भलाई पर भी केंद्रित थी । हमें अपनी सनातन शिक्षा के उच्चतर आदर्शों की ओर लौटने की आवश्यकता है, ताकि हम एक संतुलित, मानसिक रूप से स्वस्थ और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध  व्यक्ति और समाज का निर्माण कर सकें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हमीरपुर की कौन सी घटना बताई जिसमें डायरी पर कुल्हाड़ी लग गई थी,भैया राघवेन्द्र प्रताप सिंह जी कहां बैठक करना चाहते हैं, ओरछा का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

10.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 10 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३५१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 10 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३५१ वां* सार -संक्षेप


*"आज भी दैवासुर संग्राम चल रहा है"* सत् असत् सदैव रहेगा इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता अनेक उपद्रव चल रहे हैं  जो भारत राष्ट्र को अस्थिर करने का प्रयास करते हैं जिसके लिए उपद्रवी तत्त्व संगठित रहते हैं शक्ति का भी संचय करते हैं ये तथ्य हमें निराश करते हैं जब उन उपद्रवों को शमित करने के लिए कोई आगे आ जाता है तो अच्छा लगता है 

इस तरह के संघर्षों में हम राष्ट्रभक्तों के निर्णय और कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं,हमें उचित दिशा में पग बढ़ाने के लिए  उच्चतम गुणों सद्संगति अध्ययन स्वाध्याय  निर्भरा भक्ति को अपनाना चाहिए। हमें भी संगठित रहने का प्रयास करना चाहिए

सात्विक संगठनों का भी साथ लेना चाहिए और शौर्य शक्ति पराक्रम की अनुभूति करनी चाहिए असत् का त्याग  करना चाहिए और सत् को ग्रहण करना चाहिए  अपने विकारों को सद्विचारों द्वारा दबाने का प्रयास करना चाहिए यह संतत्व तभी हमारे भीतर आ सकता है जब हम अपने शरीर का ध्यान रखते हुए 

अपनी प्राणिक शक्तियों को आनन्दित करने का प्रयास करेंगे 

संसार में इस समय भी विभूतिमत्ता का प्राचुर्य है 

जो कोई भी विभूतियुक्त, कान्तियुक्त अथवा शक्तियुक्त वस्तु या प्राणी है, वह परमात्मा के तेज के अंश से ही उत्पन्न है 

हमें उस विभूतिमत्ता को पाने की पात्रता उत्पन्न करनी होगी और यह ईश्वर की कृपा से ही संभव है हमें इस पर विश्वास करना चाहिए यह विश्वास हमें उलझनों से भी बचाएगा और शक्ति भी प्रदान करेगा

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गीता के बारहवें अध्याय के किन छंदों का उल्लेख किया, प्रेमानन्द की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

9.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 9 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३५० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 9 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३५० वां* सार -संक्षेप




जब समय पर हमारी वाणी उद्भूत हो जाए तो वह कल्याणकारी वाणी हो जाती है जैसी वाणी भगवान् कृष्ण की उद्भूत हुई 

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को विषम परिस्थितियों में गीता का उपदेश दिया, ताकि वह अपने कर्तव्य को समझे और अपने संकोच त्याग संघर्ष करे। गीता में दी गई शिक्षा न केवल अर्जुन के लिए, अपितु समस्त मानवता के लिए अमूल्य मार्गदर्शन है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में संकटों का सामना करते समय, गीता के उपदेशों से हमें *सहनशीलता*, *कर्तव्य*, और *धर्म* की दिशा में उचित निर्णय लेने की प्रेरणा मिलती है।


गीता का उपदेश महाभारत के भीष्म पर्व में हुआ था, जब कुरुक्षेत्र  की रणभूमि पर युद्ध प्रारम्भ होने वाला था। इस समय अर्जुन अत्यधिक भ्रमित और मानसिक संकट में थे। यह वह विषम स्थिति थी, जिसमें अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया और भगवान श्री कृष्ण से मार्गदर्शन की प्रार्थना की।

गीता के दूसरे अध्याय में 

भगवान् कृष्ण कहते हैं जिस काल में  कर्मयोगी इन्द्रियों के विषयों से इन्द्रियों को हटा लेता है, उस काल में उसकी बुद्धि प्रतिष्ठित हो जाती है

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।


रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।।2.59।।


निराहारी अर्थात् इन्द्रियों को विषयों से हटाने वाले मनुष्य के भी विषय तो निवृत्त हो जाते हैं, किन्तु रस निवृत्त नहीं होता। परन्तु  स्थितप्रज्ञ मनुष्य का तो रस भी परमात्मतत्त्व का अनुभव होने से निवृत्त हो जाता है।


संयम का प्रयत्न करते हुए बुद्धिमान  पुरुष के भी मन को ये इन्द्रियां बलपूर्वक हर लेती हैं 

कर्मयोगी साधक उन सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में करके मेरे परायण होकर बैठे  क्योंकि जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि प्रतिष्ठित है।

और विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुष की उसमें आसक्ति हो जाती है आसक्ति से इच्छा और इच्छा से क्रोध उत्पन्न होता है।।

हमें इस गीता के ज्ञान का अभ्यास करना चाहिए हम प्रतिदिन कुछ ऐसे क्षण निकालें जिनमें हम इस अभ्यास का प्रयास करें भगवान् के प्रति समर्पण का भाव रखें 

भारत मां के प्रति भी समर्पित होवें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हमीरपुर की किस घटना की चर्चा की जिसमें भौतिकी के अध्यापक श्री जयवीर सिंह जी गौतम की केतली टूट गई थी भैया आशीष जोग जी का  उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

. ९

8.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 8 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३४९ वां* सार -संक्षेप

 समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी॥

नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी॥

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष  एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 8 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३४९ वां* सार -संक्षेप



निस्सीम भावनाओं के शिक्षक के रूप में आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं 

ताकि हमारा कल्याण हो इन वेलाओं के सदाचारमय विचार ग्रहण कर हमारा नित्य परिमार्जन होता रहे हम स्वयं जाग्रत हों और हमारे अन्दर वह क्षमता आए कि हमारे माध्यम से हमारे अपने भी जाग्रत हों 


*भाव-जगत् अद्भुत है* हम  इसका आनन्द लेने का अभ्यास करें भाव और बुद्धि के बीच का संतुलन एक महत्वपूर्ण विषय है, जो हमारी मानसिक स्थिति और जीवन के दृष्टिकोण को प्रभावित करता है।यह हमारे भीतर का एक अत्यंत सूक्ष्म और शक्तिशाली पहलू है, जो हमारे विचारों, इच्छाओं, और संवेदनाओं से संयुत है। भाव-जगत् हमें जीवन के गहरे अनुभवों से जोड़ता है उदाहरण के लिए प्रेम, करुणा, शांति, भय, आक्रोश, और आनंद। यह हमारे जीवन को रंगों और अर्थों से भर देता है, और हम अपनी संवेदनाओं के माध्यम से संसार को अनुभव करते हैं। 

भाव निराकार होते हुए भी हमारे जीवन में एक वास्तविक प्रभाव उत्पन्न करते हैं। जब कोई व्यक्ति भावनाओं के स्तर पर उचित रीति से संयुत होता है, तो वह जीवन के प्रत्येक पहलू को गहराई से अनुभव कर सकता है। 


बुद्धि है जीवन को समझने और निर्णय लेने की क्षमता, किन्तु जब यह भावनाओं पर हावी हो जाती है, तो यह हमारे जीवन को यांत्रिक और स्वचालित बना सकती है। अत्यधिक बुद्धि और तार्किकता भावनाओं को दबा सकती है और हम संवेदनाओं और अनुभवों से विरत हो सकते हैं। संसार का स्वरूप विकृत तब हो जाता है जब हम भाव से निकलकर बुद्धि में आते हैं 

अतः प्रयास करें कि हम भावना -शून्य संवेदना -शून्य न हों क्योंकि जिस संसार में हम रह रहे हैं वह हमसे सहारा चाहता है जब हम एकांगी होकर संसार से भागकर भक्ति करने लगते हैं तो हनुमान जी हमें दंडित करते हैं हमें संसार का ध्यान रखते हुए भक्ति करनी है यही शौर्य प्रमंडित अध्यात्म है हमारा अपना कर्तव्य है


 मनुष्य एक यन्त्र है। 

परम पिता जनित सपूत तत्वतः स्वतंत्र है 

मनुष्य कर्म तंत्र है।


अपने परिवार के प्रति अपने राष्ट्र के प्रति भाव के अर्णव को शुष्क न होने दें 

मनुष्य कर्म का सितार तार तार में रमा 

मनस् प्रशान्त भाव में विमुग्ध सी रमी प्रमा 

जगा जगत कि अंगुली सितार पर फिसल गई 

विभाव तिलमिला गया कि चीख सी निकल गई।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने निर्भरा भक्ति का क्या महत्त्व बताया गुलाबराय का उल्लेख क्यों हुआ भैया डा संतोष जी और भैया पंकज जी क्यों चर्चा में आए जानने के लिए सुनें

7.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 7 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३४८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष  दशमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 7 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३४८ वां* सार -संक्षेप

आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हम इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर और गुनकर इनके सदाचारमय विचार जैसे आत्मस्थता उत्साह कर्मशीलता राष्ट्र -भक्ति आदि ग्रहण करें ताकि हमारी इन्द्रियां जो हमारे अधीन हैं सात्विकता में प्रवेश कर पाएं जब इन्द्रियाँ सात्विकता में प्रवेश करती हैं, तो व्यक्ति का मन और आत्मा शुद्ध होते हैं। इससे व्यक्ति को आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है और वह अपने जीवन के उच्चतम उद्देश्य को समझने में सक्षम होता है, व्यक्ति अपनी आंतरिक शांति को अनुभव करता है इन्द्रियाँ जब सात्विकता में होती हैं, तो वे बाहरी आकर्षणों और भोगों से विचलित नहीं होतीं। इससे मन में शांति बनी रहती है और मानसिक तनाव, चिंता, और द्वंद्व दूर होते हैं और जब हम इन्द्रियों के अधीन हो जाते हैं तो नकारात्मकता आती है जिससे संकट उपस्थित हो जाता है  समस्या खड़ी हो जाती है 

अतः प्रयास करें कि हमारी इन्द्रियां सात्विकता की ओर उन्मुख रहें यद्यपि ब्रह्मा द्वारा रची इस सृष्टि में गुण अवगुण दोनों ही हैं किन्तु हमें गुणों को अपनाना है 

भलेउ पोच सब बिधि उपजाए। गनि गुन दोष बेद बिलगाए॥

कहहिं बेद इतिहास पुराना। बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना॥2॥

भले-बुरे सभी ब्रह्मा के  द्वारा ही पैदा किए हुए हैं किन्तु गुण और दोषों को विचार कर वेदों ने उनको अलग-अलग कर दिया है। वेद, इतिहास और पुराण कहते हैं कि ब्रह्मा की यह सृष्टि गुण-अवगुणों से भरी हुई है


दुख सुख पाप पुन्य दिन राती। साधु असाधु सुजाति कुजाती॥

दानव देव ऊँच अरु नीचू। अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू॥3॥

माया ब्रह्म जीव जगदीसा। लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा॥

कासी मग सुरसरि क्रमनासा। मरु मारव महिदेव गवासा॥4॥

सरग नरक अनुराग बिरागा। निगमागम गुन दोष बिभागा॥5॥


दुःख-सुख, पाप-पुण्य, दिन-रात, साधु-असाधु, सुजाति-कुजाति, दानव-देवता, ऊँच-नीच, अमृत-विष,जीवन-मृत्यु, माया-ब्रह्म, जीव-ईश्वर, सम्पत्ति-दरिद्रता, रंक-राजा, काशी-मगध, गंगा नदी -कर्मनाशा नदी , मारवाड़-मालवा, ब्राह्मण-कसाई, स्वर्ग-नरक, अनुराग-वैराग्य आदि  ब्रह्मा की सृष्टि में हैं वेद-शास्त्रों ने उनके गुण-दोषों का विभाग कर दिया है

विधाता जब हंस जैसा विवेक देता है तब दोषों को छोड़कर मन गुणों में अनुरक्त होता है।यद्यपि काल स्वभाव और कर्म की प्रबलता से भले लोग  भी माया के वश में होकर कभी-कभी भलाई से चूक जाते हैं

हम संसार को संसार की दृष्टि से देखें अपने को अपनी दृष्टि से देखें आत्मदृष्टि विकसित करें जिसके लिए आत्मचिन्तन आवश्यक है 

भ्रमित होने से बचने के लिए हमें अपनी भाषा अपने भाव अपने विचार अपने ग्रंथों आदि को अच्छी तरह से जानना आवश्यक है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया समीर राय जी भैया पंकज जी भैया प्रदीप जी का नाम क्यों लिया क्या विद्याभारती युगभारती से तालमेल चाहती है कल किसका उद्घाटन हुआ ११ अप्रैल को कौन सा कार्यक्रम है जानने के लिए सुनें

6.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 6 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३४७ वां* सार -संक्षेप

 रामो विग्रहवान् धर्मः साधुः सत्यपराक्रमः।

 राजा सर्वस्य लोकस्य देवानाम् इव वासवः॥

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष  नवमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 6 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३४७ वां* सार -संक्षेप

 इस कलियुग में हनुमान जी की कृपा से हमें सहारा देते ये सदाचार संप्रेषण अत्यन्त प्रेरक, सार्थक हैं हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी हैं हम इन्हें सुनें, गुनें, भावानुभूति का अभ्यास करें, अपने अहंकार का निरसन कर सतत सक्रिय रहने का प्रयास करें,संयमी, संतोषी, मनस्वी,मृदु,शौर्यसंपन्न स्वदेशानुरागी, निर्भीक बनें और परमात्मा में स्वयं को अवस्थित करें जैसे गीता में कहा गया है 


मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।


निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः।।12.8।।


आज रामनवमी है- भगवान् श्री राम का जन्मदिन 

भगवान् श्रीराम के जीवन में *धर्म*, *सत्यमार्ग* और *कर्तव्य* के आदर्शों को स्वीकारा गया । उनका जीवन प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है कि किस प्रकार जीवन में सत्य, न्याय और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।

भगवान् राम की कथा श्री रामचरित मानस अत्यन्त जिज्ञासा से भरी गूढ़ 

कथा है जिसमें ज्ञान भक्ति वैराग्य शिक्षा रागविहीन त्याग आदि बहुत कुछ है

श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़। किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥ 30(ख)॥


संभु कीन्ह यह चरित सुहावा। बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा॥

सोइ सिव कागभुसुंडिहि दीन्हा। राम भगत अधिकारी चीन्हा॥



शिव जी ने पहले इस सुहावने चरित्र को रचा, फिर कृपा करके पार्वती जी को सुनाया। (पहले सती जी सुनकर भ्रमित हो गईं थीं )वही चरित्र शिव जी ने काकभुशुंडि को रामभक्त और अधिकारी पहचानकर दिया।

जागबलिक जो कथा सुहाई। भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई॥

कहिहउँ सोइ संबाद बखानी। सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने युगभारती कार्यालय के उद्घाटन की चर्चा की 

भैया पंकज जी से आचार्य जी ने शिक्षक के कौन से गुण बताए,एक दुर्गुण क्या हानि पहुंचाता है,मनुष्यत्व का अनुभव कैसे हम कर पाएंगे जानने के लिए सुनें

5.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 5 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३४६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष  अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 5 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३४६ वां* सार -संक्षेप


 सुख हरषहिं जड़ दु:ख बिलखाहीं।


संसाराधारित चिन्तन एक भौतिक और सांसारिक दृष्टिकोण है जो व्यक्ति को बाहरी सुखों और सांसारिक सफलताओं की ओर आकर्षित करता है,हालांकि, यह केवल एक अस्थायी संतोष प्रदान करता है यह स्थायी शांति की ओर नहीं ले जाता। इसके विपरीत, *आध्यात्मिक धर्माधारित चिन्तन* व्यक्ति को शांति, संतुलन, और जीवन के उच्च उद्देश्य की पूर्ति की ओर ले जाता है और यही उसे सच्ची संतुष्टि और आत्मिक शांति प्रदान करता है।

धर्माधारित चिन्तन के विलोप से हम सांसारिकता में लिप्त हो गए जिसने हमें व्याकुल ही किया

इन सदाचार वेलाओं का उद्देश्य स्पष्ट है आचार्य जी  इनके माध्यम से हमारे लिए उपादेय उपयुक्त सदाचारमय  विचार प्रदान करते हैं  जो हमारी मेधा को परिमार्जित करते हैं अतः हम इनका लाभ उठाएं क्षणांश में ही सही आत्मस्थ होने की हम चेष्टा करें


या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।


यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।2.69।।

सम्पूर्ण प्राणियों की जो रात (परमात्मा से विमुखता) है, उसमें आत्मसंयमी व्यक्ति जागता है और जिसमें सब प्राणी जागते हैं अर्थात् भोग और संग्रह में लिप्त रहते हैं, वह तत्त्व को जानने वाले मुनि की दृष्टि में रात्रि है।

 क्षरणशील संसार में लिप्तता रात्रि है क्षरणशीलता के लिए लगातार जुटे रहना उचित नहीं है 

सम्पूर्ण भोग-पदार्थ जिस संयमी मनुष्य को विकार उत्पन्न किये बिना ही  प्राप्त होते हैं, वही मनुष्य परम शान्ति को प्राप्त होता है, भोगों की कामना वाला नहीं।


विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।


निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।2.71।।


हमें मनुष्य का जीवन प्राप्त है हम मनुष्यत्व की अनुभूति करते हुए साधना करें अपने कर्तव्य को जानें 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि मानस जो एक अनुसंधान का भी विषय है का हम पाठ करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मियांगंज का उल्लेख क्यों किया हमारे लिए कौन सा अनिवार्य प्रश्न हल करना आवश्यक है जानने के लिए सुनें

4.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 4 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३४५ वां* सार -संक्षेप

 ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं जिनका श्रवण कर  और उन्हें गुनकर हम भीतर और बाहर दोनों ओर शान्ति की अनुभूति कर सकते हैं हमें अपने लक्ष्य बनाने की प्रेरणा मिल सकती है हम आनन्द की अनुभूति कर सकते हैं तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष  सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  4 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३४५ वां* सार -संक्षेप


इस समय परिस्थितियां विषम हैं  राष्ट्र विरोधी तत्त्व सक्रिय हैं जो  भारत राष्ट्र  जिसकी आर्ष परम्परा,जीवन शैली जिसका जीवनदर्शन तात्त्विक स्वरूप  संपूर्ण विश्व के लिए कल्याणकारी और सृष्टि का आधार है,की अखंडता, सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक ताने-बाने को हानि पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं ऐसे प्रयासों में कई तरह के आंतरिक और बाह्य तत्त्व सम्मिलित  हैं, जिनका उद्देश्य देश को दुर्बल बनाना और उसकी एकता को तोड़ना है  इन राष्ट्र विरोधी तत्त्वों के मंसूबों पर पानी फेरने के लिए धैर्य और धर्म का संतुलन आवश्यक है संगठन आवश्यक है हम हिन्दूओं का धर्म शक्ति उपासना है शक्ति से ही धैर्य और धर्म संतुलित रहते हैं

शक्ति उपासना का अर्थ किसी दूसरे को मारना कतई नहीं है शक्ति -उपासक अभद्र व्यवहार से गुरेज करता है वैसे भी यह समय नवरात्र का चल रहा है जिसमें शक्ति की ही उपासना होती है 

नवरात्र के समय हम व्यवस्थित संयमित अनुशासित सात्विक रहने का प्रयास करते हैं 

हम तपस्विता पर आधारित यशस्विता की कामना करते हैं

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम वाणी और व्यवहार सही रखें प्रातः जल्दी जागें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन व्यायाम  योग प्राणायाम आदि करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया जयन्त सोमानी जी की किस कल्याणकारी योजना की चर्चा की, वक्फ बिल का उल्लेख क्यों हुआ, १३ अप्रैल को कौन सा कार्यक्रम हो रहा है  कार्यक्रमों को करने के बाद क्या करना चाहिए जानने के लिए सुनें

3.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 3 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३४४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष  षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  3 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३४४ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर हम जाग्रत उत्थित प्रेरित हों  संसार के स्वरूप को  हम जानें  सांसारिक समस्याओं से व्यथित न होने के लिए अपने मानस को उत्साहित करें जिसके लिए चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन आवश्यक है 

अद्भुत है यह आचार्य जी का सदाचार संप्रेषण जो उनका एक परिस्थिति- निरपेक्ष कार्य है

आचार्य जी स्पष्ट करते हैं कि 

संगठन का अर्थ मात्र एकत्रीकरण नहीं है प्रेम और आत्मीयता का आधार लेकर एक दूसरे के सुख दुःख के साथ संयुत रहना और किसी लक्ष्य के मार्ग पर अपने पग बढ़ाना संगठन के वास्तविक स्वरूप को दर्शाता है 

जैसे हमारा लक्ष्य है

परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ||


 वयं राष्ट्रे जागृयाम

हम हिन्दू अपने राष्ट्र के उत्थान और जागरूकता के लिए कार्य करें और इसके लिए सबसे पहले हमें अपनी तन्द्रा दूर करनी होगी फिर संकल्प लें लक्ष्य निर्धारण करें 

परिस्थितियां विषम हैं गहरा अंधेरा छाया हुआ है बुद्धियां विकृत प्रतीत हो रही हैं स्वार्थ का बोलबाला है सब विलास में मस्त हैं ऐसे में हमें अपनी भूमिका पहचाननी होगी 

आचार्य जी ने अपनी रचित एक कविता सुनाई जो जागृति का संदेश दे रही है 


यह अविश्वास का अंधकार है आत्मदीप हो जाओ

युगचारण जागो कसो कमर फिर से भैरवी सुनाओ

(अपने दर्द दुलरा रहा हूं ४४वीं कविता)


इसके अतिरिक्त भैया पुनीत जी कौन सा मेला देखना चाहते थे भैया पुरुषोत्तम जी भैया यशोवर्धन जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

2.4.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 2 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३४३ वां* सार -संक्षेप

 मांधाता स महिपति:  कृत युगालंकार भूतो गत:


  सेतुर्येन महोदधौ विरचित: वासौदशास्‍यांतक:


अन्‍येचापि युधिष्ठिर प्रभुतयो याता दिवं भूपते


नैकेनापि सम गता वसुमती मान्‍ये त्वया यास्यति....



प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष  पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  2 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३४३ वां* सार -संक्षेप


निर्भरा भक्ति के आदर्श हमारे इष्ट देवता हनुमान जी की कृपा छाया से सांसारिक योग सदृश ये सदाचार संप्रेषण हमें जाग्रत उत्थित उत्साहित प्रेरित करने के लिए नित्य प्राप्त हो रहे हैं  हमें संसार से मुक्त रहते हुए बुद्धिवादिता से दूर रहते हुए इन्हें सुनकर इनसे लाभ उठाना चाहिए हमें अपने शुभ भाव जगत्  जिसमें निर्भरा भक्ति प्रविष्ट हो को जाग्रत करना चाहिए क्योंकि सुप्त  शुष्क भाव जगत् हमें कष्ट ही प्रदान करता है,व्याधियां देता है

यह सत्य है कि 


भाव का विस्तार सीमातीत जब हो जाएगा, 

और अपना स्वत्व सबके साथ जब मिल जाएगा, 

खिल उठेगी प्रकृति पूरे विश्व की आनन्द से, 

और बंधनमुक्त बिचरेंगे सभी स्वच्छन्द  से ।

गीत गाएगा गगन धरती भरेगी तालस्वर, 

धुंध सब छट जाएगा होंगी दिशाएँ भास्वर,


 

*अतः हे परमात्म प्रतिनिधि भाव को विस्तार दो*, 

*भाव की पूजा करो शुभ भाव को विस्तार दो।*


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम अपने जीवन में संतुलन भी बनाए रखें घर परिवार समाज देश विश्व से हमारा सामञ्जस्य कैसा हो इसका हमें भान होना चाहिए

हमारी संस्कृति हमारा धर्म हमारी परम्पराएं हमारे ग्रंथ अद्भुत हैं स्वयं हमें इन पर विश्वास रखते हुए  भ्रमित नई पीढ़ी को इनके वैशिष्ट्य से अवगत कराना चाहिए जिससे वह स्वावलम्बी बन सके भारतीयता के प्रति उसकी आस्था बन सके अपनी भाषा अपनी संस्कृति आदि पर वह गर्व कर सके 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मुञ्ज की चर्चा क्यों की चून क्या है भैया हरीन्द्र जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

1.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 1 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३४२ वां* सार -संक्षेप

 अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः |

 चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ||


जो व्यक्ति सुशील और विनम्र

होते हैं, बड़ों का सम्मान करते

हैं, वृद्ध व्यक्तियों की सेवा करते

हैं, उनकी आयु, विद्या, कीर्ति

और बल इन चारों में वृद्धि 

होती है।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  1 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३४२ वां* सार -संक्षेप


हनुमान जी की कृपा से प्राप्त ये सदाचार वेलाएं अद्भुत हैं और इनका उद्देश्य सुस्पष्ट है कि हम  जाग्रत हों उत्थित हों उत्साहित हों अपनी सोच सकारात्मक रखें,आत्मविश्वास से भर जाएं, विनम्र रहें, हम राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण अपने समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष करें,हम केवल बैठकर तत्वबोध ही न करते रहें अपितु शौर्य प्रमंडित आत्मबोध को विस्मृत न कर बिना रुके कर्मानुरागी बनें 

जैसा स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि जब तक इस देश का एक भी कुत्ता भूखा है मैं बार बार इस धरा पर जन्म लूं और कर्म करूं 

हम इन्हें मात्र सुनने तक ही सीमित न रखकर इनकी अनुभूति भी करें तो अधिक लाभ पहुंचेगा


जब हम इस सत्य को समझने लगते हैं कि हम शरीर नहीं हैं, अपितु आत्मा हैं, तो जीवन का दृष्टिकोण ही परिवर्तित हो जाता है। यह हमें यह सिखाता है कि हमें सांसारिक वस्तुओं और भौतिक वात्याचक्रों से इतर आत्मा के वास्तविक उद्देश्य की ओर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए


आचार्य जी ने अपनी पुस्तक अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं में छपी एक कविता सुनाई जिसमें दर्शन विचार चिन्तन अनुभव व्यवहार आदि बहुत कुछ है


बीत गया दिन शाम हुई आराम करो

*फिर से सूरज की किरणों का ध्यान करो*

....


लगा सूत का ढेर न चादर बुनी गई

तरह तरह की अनगिन बातें सुनी गईं

......


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि ज्योतिष को वेदों के छह अंगों (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और छंद) में से एक माना जाता है यह वेदपुरुष का नेत्र है

एक young mechanic की चर्चा क्यों हुई  और एक sub inspector का भी उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें