31.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 31 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४९४ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरस्वती विद्या मन्दिर इंटर कालेज, सिविल लाइंस, उन्नाव

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  31 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४९४ वां* सार -संक्षेप


स्थान : सरस्वती विद्या मन्दिर इंटर कालेज, सिविल लाइंस, उन्नाव


वैविध्य, इस चराचर जगत् की अंतःसलिला प्रकृति है  और गतिमत्ता इसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति। अतः प्रातःकाल, जब सृष्टि नवीन जागरण के साथ स्वयं को नव स्वरूप में प्रकट करती है, उस क्षण हमें भी संसार के इस स्वरूप और स्वभाव को आत्मसात् करते हुए आत्मशक्ति, तत्त्वचिंतन, मनुष्यत्व एवं जीवन के मूल उद्देश्यों पर गम्भीर चिन्तन एवं मनन करना चाहिए।

प्रभात वेला केवल शरीर का जागरण नहीं, अपितु अंतःकरण की सजगता और चेतना की जागरूकता का भी क्षण है। इस कारण,शरीर - यन्त्र को चलाने के लिए विचारधारा को सदा सकारात्मक, सर्जनात्मक तथा आत्मोन्नतिपरक बनाकर रखना आवश्यक है।

शरीर हमारा अनुगामी सहयोगक तत्त्व है।

 दिनारम्भ किसी भी प्रकार की नकारात्मकता, विषाद, भ्रम भय संशय के भावों से नहीं होना चाहिए

तो आइये इन्हीं अनुभूतियों के साथ प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में

जैसा कि हम जानते हैं ओरछा में अपना अधिवेशन होने जा रहा है आचार्य जी हमसे अपेक्षा कर रहे हैं कि अपने उत्साह को अधिकाधिक समाजाभिमुख स्वरूप प्रदान करने हेतु तथा अपने प्रयासों को सफलतापथ पर प्रतिष्ठित करने के निमित्त, हमें पूर्णरूपेण संकल्पपूर्वक कटिबद्ध हो जाना चाहिए क्योंकि अब समय कम रह गया है अपने व्यक्तिगत कार्यों में कटौती  भी करना आवश्यक है कार्यक्रम की रचना भी करनी है इस पर  आयोजन समिति ध्यान दे

"उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"  यह ध्येय वाक्य हमारे भीतर ऊर्जा भर देता है

तो हम उठ जाएं जग जाएं  और बिना रुके आज से अभी से अधिवेशन की तैयारियों में जुट जाएं

इसके अतिरिक्त कल सम्पन्न हुए कवि सम्मेलन के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा जानने के लिए सुनें

30.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 30 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४९३ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरस्वती विद्या मन्दिर इंटर कालेज, सिविल लाइंस, उन्नाव

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  30 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४९३ वां* सार -संक्षेप


स्थान : सरस्वती विद्या मन्दिर इंटर कालेज, सिविल लाइंस, उन्नाव


हमारी युगभारती संस्था, राष्ट्र की आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत रखने हेतु, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलम्बन एवं सुरक्षा—इन चार आधारशिलाओं पर गहन चिन्तन, मनन, मन्थन एवं विचारण करती है। इन स्तम्भों के माध्यम से यह संस्था विविध आयोजनों का संचालन करती है, जिनका उद्देश्य समाज में समरसता, आत्मनिर्भरता एवं सशक्तीकरण की भावना का संचार करना है।

हमारी संस्था, सनातन धर्म की परम्परा को जीवित एवं जाग्रत रखने में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रही है। यद्यपि यह भूमिका सीमित प्रतीत हो सकती है, तथापि इसके प्रयासों में निष्ठा, समर्पण एवं सतत साधना का समावेश है।


यह हमारा सौभाग्य है कि सनातन धर्म, समय-समय पर अनेक झंझावातों, आक्रमणों एवं सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों के होने पर भी, कभी भी पूर्णतः लुप्त नहीं हुआ। इसकी जीवन्तता, इसकी आत्मा में निहित सत्य, धर्म एवं करुणा के सिद्धान्तों के कारण है, जो युगों-युगों से मानवता को आलोकित करते रहे हैं।


युगभारती के हम सदस्यों, जिन्हें आचार्य जी नित्य प्रेरित करते हैं ताकि परमात्मा की उपस्थिति हम अपने भीतर अवश्य अनुभव करते रहें और हम कुंठित न हों  साथ ही जो अपनी प्राणिक ऊर्जा समर्पित करते रहते हैं, के प्रयास, इस सनातन परम्परा को सुनिश्चित कर रहे हैं, जिससे यह परम्परा आने वाली पीढ़ियों तक अक्षुण्ण बनी रहेगी


आचार्य जी ने  बताया कि कवित्व की प्रतिभा सबको नहीं मिलती और साथ ही आचार्य जी ने सरस्वती विद्या मन्दिर इंटर कालेज, सिविल लाइंस, उन्नाव के परिवेश,पर्यावरण  और त्रिदिवसीय वार्षिक अधिवेशन  जिसका आज अन्तिम दिन है का उल्लेख भी किया

क्या चीज जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, मैथिलीशरण गुप्त में कम थी और सुमित्रानन्दन पंत में अधिक थी, वार्षिक अधिवेशन के लिए क्या परामर्श आचार्य जी ने दिया जानने के लिए सुनें

29.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 29 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४९२ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरस्वती विद्या मन्दिर सिविल लाइंस उन्नाव

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  29 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४९२ वां* सार -संक्षेप


स्थान : सरस्वती विद्या मन्दिर सिविल लाइंस उन्नाव

हम सौभाग्यशाली हैं कि इन परोक्ष सदाचार संप्रेषणों की एक अनुवर्तन-शृङ्खला चल रही है यद्यपि आचार्य जी कई बार विषम परिस्थितियों में घिर जाते हैं

आत्मबल,आत्मसमर्पण   को जाग्रत करने के लिए सदाचार एक प्रभावी सशक्त माध्यम है। सदाचार केवल बाह्य आचरण नहीं, अपितु अंतःकरण की शुद्धता, संयम और धर्ममय जीवन की प्रतिष्ठा का साधन है।  जब व्यक्ति सदाचार का अनुसरण करता है, तो वह अपने भीतर स्थित आत्मिक सामर्थ्य को पहचानने और जाग्रत करने लगता है। यह आत्मिक बल ही उसे मानसिक रूप से दृढ़, निष्ठावान, और कर्तव्यपरायण बनाता है। साथ ही, आत्मभक्ति — जो आत्मा के प्रति श्रद्धा और संयम का भाव है — वह भी सदाचार के माध्यम से प्रकट होती है। इस प्रकार सदाचार व्यक्ति को भीतर से जाग्रत कर समाज में सच्चरित्रता और नैतिकता की स्थापना में सहायक होता है।


आत्ममन्थन करते हुए हम सदैव विचार करते रहें कि हमने मनुष्य के रूप में जन्म लिया है और हमें ईश्वर ने मनुष्यत्व के प्रसरण के लिए यहां भेजा है यह हमारे सनातन धर्म की विश्वासपूर्ण चिन्तना है

अतः हम अपने मनुष्यत्व की अनुभूति करें  और अपने कर्तृत्व को  पल्लवित पुष्पित फलित करें किन्तु कर्म करते हुए फल की इच्छा न करें फल की इच्छा उस कर्म में हमें रमने नहीं देती

हम पुरुषार्थ की अनुभूति करें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को गहनता से जानें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी भैया मोहन जी भैया वीरेन्द्र जी भैया अक्षय जी  भैया दृश्यमुनि जी के नाम क्यों लिए 

पं परमानन्द जी का उल्लेख क्यों हुआ 

अधिवेशन के विषय में आचार्य जी ने क्या परामर्श दिया जानने के लिए सुनें

28.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 28 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४९१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  28 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४९१ वां* सार -संक्षेप


"*युगभारती "अर्थात् क्या*




युगभारती पं दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय कानपुर के हम पूर्व छात्रों द्वारा संचालित एक अद्वितीय संस्था है जिसके चार आयाम हैं शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा


यह मातृभूमि भारत की मौन भावना का ध्वन्यात्मक प्रतीक है।  हमारी यह संस्था संयम, शक्ति, सेवा तथा साधना के दीप से आलोकित एक जाग्रत संकल्प का स्वरूप है।आचार्य जी हमें स्मरण करा रहे हैं कि हम अपना लक्ष्य न भूलें  लक्ष्य है अखंड भारतवर्ष जो परम वैभव से युक्त हो की कल्पना को मूर्त रूप देना 

हम अपनी संस्था के माध्यम से यह प्रयास करते रहें कि ऐसा भारत बने जिसमें प्रत्येक नागरिक आत्मनिर्भर हो, आन्तरिक शक्ति से परिपूर्ण हो और राष्ट्र के उत्थान के लिए प्रेरित हो।

 हमारी संस्था जनमानस में उच्च आदर्शों की प्रतिष्ठा हेतु सतत प्रयत्नशील रहे

आचार्य जी एक ऐसे समाज की परिकल्पना कर रहे हैं जहाँ शिक्षा केवल जानकारी नहीं, अपितु शक्ति का पर्याय बनकर संयमयुक्त जीवन की कथा कहे। प्रत्येक व्यक्ति की भुजा, शौर्य और पौरुष की प्रतीक हो, सुरक्षा हेतु कोई बाह्य सहायता की अपेक्षा न रखी जाए। ऐसी युवाशक्ति का निर्माण हो जो शील, संयम और मर्यादा से युक्त हो,कदाचार से दूरी बनाए, किसी अन्य के गृह में अनधिकृत दृष्टि भी न डाले।


इस आदर्श स्थिति में सम्पूर्ण प्रकृति आनन्दित होकर कल्याणकारी स्वर गाए और वह चेतना, उत्साह और आत्मबल का उद्घोष करे।

आचार्य जी ने सूचित किया कि आज से उन्नाव विद्यालय में त्रिदिवसीय वार्षिक समारोह प्रारम्भ हो रहा है जिसमें आप सब सादर आमन्त्रित हैं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मैथिली शरण गुप्त का उल्लेख क्यों किया *सूचना* खेल क्या था, अगला अधिवेशन कहां होना चाहिए, प-प क्या है इस अधिवेशन के लिए आचार्य जी ने क्या परामर्श दिया जानने के लिए सुनें

27.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 27 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४९० वां* सार -संक्षेप

 गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर आप सभी को अतीव हर्ष एवं मंगलमय शुभकामनाएं


सनातन धर्म मानव की सतत क्रियमाण गतिविधि है

तपस्वी चिन्तकों सुमनीषियों की प्रगत सन्निधि है

इसे माँ भारती की कोख ने जन्मा दुलारा है

यही संजीवनी सारे जगत भर की यही निधि है

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  27 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४९० वां* सार -संक्षेप


*युगभारती* एक ऐसी संस्था है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित है। इसका उद्देश्य उन पढ़े-लिखे, सुयोग्य, सदाचारी एवं राष्ट्रभक्त  सनातन धर्म को मानने वाले गृहस्थों को संगठित करना है, जो अपने जीवन में गृहस्थ धर्म का  पालन करते हुए समाज एवं राष्ट्र के प्रति अपनी उत्तरदायित्व-बोध से प्रेरित भूमिका निभाना चाहते हैं। युगभारती, ऐसे व्यक्तियों को एक मंच प्रदान कर, उन्हें राष्ट्र-निर्माण की दिशा में सतत प्रेरित एवं सक्रिय करती है। यह संस्था अब एक रूप धारण कर रही है 

जिस कारण से कुछ लोग इसके स्वरूप का अवबोधन करने में प्रवृत्त हुए हैं।जब कोई संस्था अपना रूप धारण करती है तो इसके पीछे भगवत्ता  होती है

हम युगभारती संस्था के सदस्यगण भलीभांति इस बोध से युक्त हैं कि हम सारी शक्तियों के केन्द्र परमात्मा की लीलामयी क्रीड़ा में अभिप्रेत पात्र रूप में नियोजित हैं तथा हमें परमात्मा द्वारा प्रदत्त अपनी  भूमिका का सम्यक् रूपेण निर्वहन करना अनिवार्य है। और हम ऐसा करने का प्रयास भी कर रहे हैं हम आपाधापी वाले इस कलियुग में रामकथा सुनते सुनते रामत्व की अनुभूति करने लगे हैं

निष्काम, समर्पण-भाव से  कर्म करना हम अनिवार्य समझने लगे हैं 

आचार्य जी ने बताया पराधीनता भयानक है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किसके भाषण की चर्चा की 

जानने के लिए सुनें

26.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 26 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४८९ वां* सार -संक्षेप

 कर्मव्रती संकल्प सिद्ध सेवाभावी संन्यासी हम 

भारत मां के पूत जयस्वी ईश्वर के विश्वासी हम 

हम भविष्य के भास्वर स्वर हैं अंधकार के सूरज हैं 

गंगा का पावित्र्य और वृन्दावन की अनुपम रज हैं l


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  26 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४८९ वां* सार -संक्षेप

अपने देश की भक्ति परंपरा, वस्तुतः राष्ट्र-सेवा की मूल प्रेरणा रही है। निर्गुण और सगुण भक्ति, राम व कृष्ण भक्त शाखाओं के माध्यम से यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, अपितु सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना का संवाहक भी रही है। यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो भक्ति आंदोलन शक्ति-स्रोत से ही उद्भूत हुआ, जिसके अनेक रूप समाज में अद्भुत प्रभाव उत्पन्न करते हैं। यह परंपरा जनमानस में कर्तव्यबोध और आत्मनिष्ठा को जाग्रत करती है।

इसी भक्ति परम्परा में पारंगत विद्वान् ज्ञान सम्पन्न संस्कृत के अद्भुत रचनाकार

तुलसीदास अद्वितीय हैं

जो भारतीय समाज को दिशा प्रदान करने वाले एक दिव्य दीपस्तम्भ हैं, जिनकी काव्य-कृतियां जो ब्रज वाणी में हैं

(श्री रामचरित मानस अवधी में) केवल साहित्यिक रचनाएं न होकर, सांस्कृतिक, धार्मिक, नैतिक एवं राष्ट्रीय चेतना की ज्योतियां भी हैं। उन्होंने रामकथा के माध्यम से सनातन धर्म के मूल तत्त्वों—धर्म, भक्ति, मर्यादा और कर्तव्य को जन-जन में प्रतिष्ठित कर, राष्ट्रभक्ति एवं अध्यात्म को परस्पर पूरक रूप में प्रस्तुत किया।


उनकी वाणी में जहाँ एक ओर गहन भक्तिपरक संवेदना है, वहीं दूसरी ओर शौर्य, आत्मबल और धैर्य की उज्ज्वल प्रतिष्ठा भी दृष्टिगोचर होती है। तुलसीदास ने अपने युग में खंडित हो रहे समाज को एकात्मता, धर्मनिष्ठा एवं संस्कारशीलता की ओर उन्मुख कर, अध्यात्म के आलोक में राष्ट्र का दीप प्रज्वलित किया। इस प्रकार वे केवल भक्तकवि नहीं, अपितु राष्ट्र के पुनर्निर्माणकर्ता भी सिद्ध होते हैं। तुलसीदास सरीखे व्यक्तित्व का जब हम अपने भीतर भाव समाहित करेंगे तो हम उत्साहित, संकल्पित, आश्वस्त रहेंगे और विश्वासपात्र लोगों को संगठित करेंगे

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने २८, २९ व ३० अगस्त को होने जा रहे किन कार्यक्रमों की चर्चा की, वैराग्य संदीपिनी का उल्लेख क्यों हुआ,आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण  जो शास्त्रों और लोक परंपराओं के सम्मिश्रण की खोज करते हैं और आध्यात्मिकता, संस्कृति और जीवन मूल्यों पर गहन चर्चा करते हैं की चर्चा क्यों हुई 'घुन मत बनो' किसने कहा था  दीनदयाल जी ने किसके आदेश पर राजनीति में प्रवेश किया जानने के लिए सुनें

25.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 25 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४८८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  25 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४८८ वां* सार -संक्षेप


सितंबर में होने जा रहे अधिवेशन में हम युगभारती के सदस्य एकत्र हो रहे हैं अच्छा लग रहा है कि हम लोग मिल रहे हैं यह आनन्द का एक अवसर है किन्तु इस अधिवेशन का परम उद्देश्य यह है कि हमारे भीतर यह गहन अनुभूति जाग्रत हो कि यह राष्ट्र केवल जीवन का उत्सर्ग करने हेतु नहीं, अपितु जीवन को पूर्णता से जीने, विश्वास, शक्ति, शौर्य एवं पराक्रम के आदर्शों को मूर्त रूप देने के लिए सृजित हुआ है।उसी परम उद्देश्य में हम वह स्वर सुन लें

मेरा रंग दे बसंती चोला..

 जब हम आज से और अभी से निरंतर प्रयासरत रहेंगे कि हमारे अंतःकरण में ओजस और तेजस की वृद्धि हो और नैराश्य, भय तथा भ्रम का क्षय हो, तभी हम इस अधिवेशन के माध्यम से समाज को यह आश्वस्त कर सकेंगे कि वह निराश न हो,हम संकट की घड़ी में उनके साथ दृढ़ता से खड़े हैं।


इस प्रकार, यह अधिवेशन केवल एक आयोजन नहीं, अपितु एक संकल्प है एक ऐसा संकल्प जो राष्ट्र की आत्मा को पुनः जाग्रत करने, उसके मूल्यों को पुनर्स्थापित करने  और उसके नागरिकों में आत्मविश्वास, साहस एवं कर्तव्यपरायणता की भावना को प्रबल करने का प्रयास है।क्यों कि

परिस्थितियां अब भी विषम हैं 

लोगों का विश्वास डगमगा गया है, और छद्म ने कई रूप धारण कर लिए हैं।

पश्चिमी प्रभाव हमारी संस्कृति और मूल्यों को प्रभावित कर रहा है

अनेक स्थानों पर कुटिलता, षड्यंत्र व्याप्त हैं

ऐसे में

हिंदु युवकों आज का युग धर्म शक्ति उपासना है ॥

अणु अणु में शक्ति की उपासना को प्रविष्ट कराने की आवश्यकता है क्योंकि शकुनि की छाया अत्यन्त भयानक रूप धारण किए हुए है


आचार्य जी  अपनी एक कविता के माध्यम से 

 उन लेखकों और विचारकों को, जो वर्तमान सामाजिक अन्याय और भ्रष्टाचार के प्रति मौन हैं जागने और सक्रिय होने का प्रयास कर रहे हैं 


री, सुप्त लेखनी जाग....

जल रही हर जगह आग, धुन्ध आँगन तक घिर आया

री, सुप्त लेखनी जाग, छल रही फिर से मृग- माया ।

है बदहवास विश्वास छद्म ने अनगिन रूप धरे

घुट रही समय की साँस, राख सब मंजर हरे-भरे

करुणा कराहती संयम की साधना बिलख रोती

देशाभिमान पर बाजारु व्यवहारों के मोती

घिर रही हस्तिनापुर के वैभव पर शकुनी छाया ॥ १ ॥

आचार्य जी ने भैया शुभेन्द्र जी भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें

24.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 24 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४८७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  24 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४८७ वां* सार -संक्षेप


स्थान: ग्राम सरौंहां


हम सौभाग्यशाली हैं गुरु के तात्विक स्वरूप को प्राप्त आचार्य जी नित्य हमारे अंधकार को दूर करने का  प्रयास कर रहे हैं हमारे हित का उपदेश कर रहे हैं हमें कुमार्ग पर जाने से बचा रहे हैं भ्रम भयों में डगमगाने से बचा रहे हैं

इन सदाचार संप्रेषणों से हम तत्त्व प्राप्त करते हैं यह अत्यन्त उत्साहजनक विषय है


आगामी अधिवेशन कोई दिखावा या प्रदर्शन का मंच नहीं है, अपितु यह हमारी श्रद्धा, भक्ति, भाव, विचार और विश्वास के पुष्पों की भेंट है। ऐसे आयोजनों का उद्देश्य आत्म-प्रदर्शन नहीं, आत्म-समर्पण है  एक ऐसे मार्ग पर चलने का प्रयास, जिस पर चलकर गुरु गोविन्द सिंह, छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, चंद्रशेखर आज़ाद, डॉ. हेडगेवार,पंडित दीनदयाल उपाध्याय आदि महान् आदर्शों ने जीवन समर्पित किया।


इन महामानवों की भाँति हम भी अपने तत्त्व,अपने मूल, अपनी पहचान को जानने और जीने का प्रयास करते हैं।


हमें उनके समान नहीं बनना है जो केवल सुख और सुविधा के समय साथ रहते हैं और विपत्ति में दूर हो जाते हैं। हमें स्थिर, निष्ठावान् और जीवन के हर आयाम में समर्पित रहने वाले साधक बनना है जो केवल उत्सव में नहीं, तप में भी सहभागी हों।

हम समाज को आश्वस्त करना चाहते हैं कि हम उनके साथ हैं उन्हें भ्रमित भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है 

उसे विश्वास दिलाना है कि सनातनत्व खिलखिलाता ही रहेगा



कर्म के सिद्धान्त जब व्यवहार बनकर दीखते हैं,

तब भविष्यत् के सभी अंकुर सहज ही सीखते हैं।

और जब सिद्धान्त केवल सूत्रवत् रटवाये जाते, 

तभी प्रवचन मन्त्र सारे व्यर्थ यो हीं

फड़‌फड़ाते।

इसलिए व्यवहार को आदर्श का जामा पिन्हाओ,

नयी पीढ़ी को सनातन धर्म की लोरी सुनाओ।

गुनगुनाओ गीत पुरखों के पराक्रम शौर्य वाले,

नोचकर फेंको मनों पर चढ़ चुके सुख-स्वार्थ जाले।

ज़िन्दगी पौरुष पराक्रम शील संयम की कहानी,

ज़िन्दगी आदर्श पूरित शौर्य विक्रम की निशानी,

गति प्रगति सद्‌गति जहाँ पर एक स्वर में गीत गाएँ,

द्वन्द्व के आसन्न क्षण निर्द्वन्द्व हो गीता सुनाएँ।

उस धरा पर जन्म लेकर भी अगर हम जग न पाए,

और दृढ़ चट्टान पर भी भ्रम भयों से डगमगाए।

तो भविष्यत् में वही इतिहास हमको क्या कहेगा? 

युगयुगों का शौर्य साधक किस तरह हमको सहेगा?

अतः हे, चिंतक विचारक! कर्मपथ पर पग बढ़ाओ,

मातृभू- हित स्वयं का श्रम-स्वेद शोणित भी चढ़ाओ।


आचार्य जी ने कीट भृंग न्याय का अर्थ बताया

जिसे वेदान्त के 'साहचर्य के सिद्धांत' के रूप में भी जाना जाता है, जहाँ लगातार किसी वस्तु या व्यक्ति पर विचार करने से वह व्यक्ति या वस्तु स्वयं भी उसी विचार के अनुरूप ढल जाती है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने दीनदयाल जी का कौन सा अत्यन्त मार्मिक प्रसंग बताया  सात्विक जन क्यों भ्रमित हो रहे हैं जानने के लिए सुनें

23.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 23 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४८६ वां* सार -संक्षेप

 यह संसार समर है साथी 

समर हमें ही लड़ना है 

बल विवेक के साथ समर में 

विजयविन्दु तक अड़ना है...


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  23 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४८६ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य हमारे मानस को सुसंस्कृत  परिष्कृत करने का प्रयास कर रहे हैं

हम यदि अपने भीतर के मन, विचार, भावनाओं और दृष्टिकोण को बेहतर बनाने, उन्हें उच्च संस्कारों से युक्त करने और आंतरिक रूप से शुद्ध व विकसित करने का प्रयास करते हैं, तो यह एक उत्तम दिशा में किया गया प्रयास है।


क्योंकि व्यक्ति का व्यवहार, उसका जीवन और समाज पर उसका प्रभाव, सब कुछ उसके मानसिक स्तर पर ही आधारित होता है। यदि मन उच्च, शुद्ध और सम्यक् विचारों से युक्त है, तो व्यक्ति का जीवन भी वैसा ही बनता है।


अतः यह प्रयास केवल व्यक्ति-कल्याण ही नहीं, अपितु समाज और संस्कृति के परिष्कार का आधार बनता है। यही कारण है कि आत्मचिंतन, साधना, अध्ययन, सत्संग  और इस तरह के सदाचार संप्रेषण जैसे माध्यमों से मानस को परिष्कृत करना अत्यंत सराहनीय और आवश्यक माना गया है। यद्यपि हम कलियुग में है किन्तु कलियुग में भी सतयुग की झलक मिल जाती है l महाराणा प्रताप, शिवा जी, बन्दा बैरागी, विवेकानन्द, चन्द्रशेखर आजाद,भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, डा हेडगेवार इसी कलियुग में हुए हैं

जैसे सतयुग में भी कुछ अंश  में कलियुग विद्यमान था हमें स्मरण है हिरण्यकशिपु जो एक असुर राजा के रूप में वर्णित  है, जिसका वध भगवान् विष्णु के नरसिंह अवतार ने किया था।इसी तरह त्रेता में रावण l द्वापर में दुर्योधन  कुछ उदाहरण हैं

कलियुग में संगठन अत्यन्त आवश्यक है इसी कारण हम युग भारती के रूप में संगठित होकर समाजोन्मुखी कार्यों में रत हैं

....अतः हे, चिंतक विचारक! कर्मपथ पर पग बढ़ाओ,

मातृभू- हित स्वयं का श्रम-स्वेद शोणित भी चढ़ाओ।


आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम चिन्तन, मनन, अध्ययन, स्वाध्याय, लेखन में रत  हों

संसार में जो सत्  प्राप्त हो रहा है उसे ग्रहण करें और जो असत् है उसका परित्याग करें

संसार से विरत होकर  कुछ समय के लिए आत्मबोध की ओर उन्मुख हों किन्तु पूर्ण विरक्ति से बचने का प्रयास करें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र जी भैया डा अवधेश तिवारी जी आचार्य श्री दीपक जी का नाम क्यों लिया 

श्री राम जनम पाठक जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

22.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 22 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४८५ वां* सार -संक्षेप स्थान : शारदा नगर, कानपुर

 निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें। 

स्वार्थ साधना की आँधी में वसुधा का कल्याण न भूलें।।..



प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  22 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४८५ वां* सार -संक्षेप

स्थान : शारदा नगर, कानपुर


मनुष्य जब परिस्थितियों को परे रखकर प्रयत्नशील होता है, जब  अपने मनुष्यत्व की अनुभूतियों को व्यवहार में  प्रकट करने का सामर्थ्य प्राप्त कर लेता है, परमात्मा पर विश्वास रखता है और भौतिकता के उत्थानों में जब  जीवन का उत्थान नहीं भूलता है तब वह विशेष बन जाता है हम इसी वैशिष्ट्य के लिए प्रयत्नशील हों  हमारे ऋषि मुनि ज्ञानी चिन्तक विचारक इसी की प्रेरणा देते रहे हैं और आचार्य जी  भी नित्य  इसी की प्रेरणा देते हैं


कर्म के सिद्धान्त जब व्यवहार बनकर दीखते हैं 

तब भविष्यत् के सभी अंकुर सहज ही सीखते हैं 

और जब सिद्धान्त केवल सूत्रवत् रटवाए जाते 

तभी प्रवचन मंत्र सारे व्यर्थ यों ही फड़फड़ाते l


जब कर्म के सिद्धांत केवल कहे नहीं जाते, अपितु आचरण में प्रकट होते हैं जैसे प्रातःकाल का जागरण, खाद्याखाद्य विवेक, अहंकार रहित अच्छा व्यवहार आदि, तब भावी पीढ़ियां उन्हें सहज रूप से आत्मसात् कर लेती हैं। उनका आचरण स्वयं में शिक्षा बन जाता है। भविष्यत् के अंकुर केवल सुनकर नहीं, देखकर और अनुभव से सीखते हैं।

इसके विपरीत, जब वही सिद्धांत केवल स्मरण के लिए सूत्रों की भांति रटवाए जाते हैं और जीवन में उनका कोई प्रयोग नहीं होता, तब वे केवल वाणी तक सीमित रह जाते हैं। ऐसे प्रवचन, उपदेश और मंत्र जो केवल कहे जाते हैं पर आचरण में नहीं उतारे जाते, वे निरर्थक हो जाते हैं  केवल शब्दों की गूंज बनकर रह जाते हैं, जिनका कोई प्रभाव नहीं होता।

आचार्य जी का कहना है शिक्षा और सिद्धांत तभी सार्थक होते हैं जब वे जीवन में उतरें


इसके अतिरिक्त संगठन कैसे पल्लवित हो सकता है  भैया डा अवधेश तिवारी जी भैया डा प्रवीण सारस्वत जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

21.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 21 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४८४ वां* सार -संक्षेप ग्राम :सरौंहां

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  21 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४८४ वां* सार -संक्षेप

ग्राम :सरौंहां



यदि हम सकारत्मक सोच रखें तो हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें अत्यधिक सुन्दर और अनुकूल परिवेश मिला है और परिस्थितियां हमारे अनुकूल हैं परमात्मा द्वारा प्रदत्त बुद्धि,विचार, विवेक, शक्ति, पराक्रम को प्रसरित करने पर हम प्रशंसा यशस्विता पाने में सक्षम हैं तो आइये इसी अनुभूति के साथ प्रवेश करें आज की वेला में


हम सभी शिक्षक हैं और साथ ही शिक्षार्थी भी। शिक्षकत्व केवल एक भूमिका नहीं, अपितु सामाजिक धर्म है। शिक्षा केवल ज्ञान का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि वह संस्कार, विचार और चेतना के प्रसार का साधन है। जिस परमात्मा ने हमें रचा है, उसने हमें कुछ कर्तव्य भी सौंपे हैं। इन्हीं कर्तव्यों में एक है -शिक्षार्थी और शिक्षक के भाव से जीवन पथ पर अग्रसर होना।


जब तक हम इस संसार में  इस भाव से युक्त होकर चलते रहते हैं, तब तक हमारा विकास सतत बना रहता है  हम निरंतर कुछ न कुछ सीखते और सिखाते रहते हैं।

हमारे सनातन धर्म के विलक्षण ग्रंथों में शिक्षा के महत्त्व को विशेष रूप से प्रतिपादित किया गया है। वहाँ स्पष्ट किया गया है कि शिक्षा केवल लौकिक ज्ञान (अपरा विद्या) तक सीमित नहीं है, अपितु वह आत्मज्ञान (परा विद्या) की ओर भी ले जाती है। परा और अपरा विद्या दोनों ही जीवन को समग्रता प्रदान करती हैं — एक से व्यवहार की निपुणता आती है तो दूसरी से आत्मा का साक्षात्कार होता है।

हम मनुष्य के रूप में जन्मे हैं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति करनी ही चाहिए यह मनुष्यत्व संगति के आधार पर वृद्धिंगत होता है  कुसंगति करके कुमार्ग को अपनी विवशता नहीं बनाना चाहिए

पश्चिम की भोगवृत्ति के अनुगामी नहीं बनना चाहिए

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥

बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥5॥

हमारे सद्गुण यदि समाजोन्मुखी हैं वे हरेक सजातीय व्यक्ति को रामत्व की अनुभूति कराने में सक्षम हैं तो वे संपूर्ण परिवेश को आनन्दित करने में समर्थ हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मृग शब्द की क्या परिभाषा बताई आज आचार्य जी कहां जा रहे हैं साकल्य की चर्चा क्यों हुई हमें अपने विस्तार के लिए क्या करना चाहिए समाज को विभिन्न भागों में बांटने से क्यों बचना चाहिए जानने के लिए सुनें

20.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 20 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४८३ वां* सार -संक्षेप ग्राम :सरौंहां

 सदाचार जग का अजब राग है

बजा जब जहाँ वह चमन बाग है

मनुष्यों ! सदाचार संजीवनी

इसी से सदा शुभ्र करनी बनी...

उठो फिर सदाचार का कर गहो

अमर जाह्नवी तीर तट पर रहो ।


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  20 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४८३ वां* सार -संक्षेप

ग्राम :सरौंहां

इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि जब-जब मनुष्य सदाचार से दूर हुआ, प्रकृति से कटकर केवल भोग में लिप्त हुआ, परमात्मा से उद्भूत और आवेष्टित इस संसार की सांसारिकता में लुप्त हो गया तब-तब संकट, दुःख और विनाश उपस्थित हुए हैं l


जहाँ प्रभात सो रहा 

वहीं का गात रो रहा

वो जिंदगी को ढो रहा

स्व राह शूल बो रहा

निजात्म शक्ति खो रहा

जो हो रहा सो हो रहा

प्रलाप - स्वर पिरो रहा

न गा रहा न रो रहा।



 इसलिए आह्वान है कि हम अपने जीवन में सदाचार को अवश्य अपनाएँ  यही जीवन की शुभ्रता और जगत् की रक्षा का मार्ग है।

 सदाचार  तभी प्रभावी होता है जब वह आचरण में उतरे। जैसे सर्जक ने सुंदर वीणा बनाई हो, पर यदि वह न बजे, तो उसका कोई मूल्य नहीं।

इस कारण हम इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर कर्मरत अवश्य हों कदाचार से बचें l 


जो व्यक्ति "तत्" (परम तत्त्व) को विद्या और अविद्या — दोनों के रूप में एक साथ जानता है, वही वास्तव में जीवन के रहस्य को समझता है"तत्" ही जन्म का कारण है और वही जन्म का अंत भी है।इसे जो इस समग्र दृष्टि से समझता है, वह जन्म की समाप्ति द्वारा मृत्यु से मुक्त होता है और पुनः जन्म के माध्यम से अमरत्व का साक्षात्कार करता है।

अर्थात, विद्या-अविद्या, जन्म-मरण — इन द्वैतों का सम्यक् ज्ञान ही मुक्तिपथ है।

हम सनातन धर्म को मानने वाले राष्ट्र -भक्त अगाध प्रेम, आत्मीयता के साथ संगठित रहें  छ्ल कपट से दूर रहें 

बालकांड में एक सोरठा है

जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि।

बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि॥ 57(ख)॥

प्रीति की सुंदर रीति देखिए कि जल भी (दुग्ध के साथ मिलकर) दुग्ध के समान भाव बिकता है, किन्तु कपटरूपी खटाई पड़ते ही पानी अलग हो जाता है अर्थात् दूध फट जाता है और स्वाद (प्रेम) जाता रहता है॥ 


उस अध्यात्म को आत्मसात् करें जो शौर्य से प्रमंडित हो, अपने आत्म की अनुभूति करें 

भय भ्रम से दूर रहें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन में रत हों

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज श्रीवास्तव जी का नाम क्यों लिया  अधिवेशन के लिए आचार्य जी ने क्या परामर्श दिया जानने के लिए सुनें

19.8.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 19 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४८२ वां* सार -संक्षेप ग्राम :सरौंहां

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  19 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४८२ वां* सार -संक्षेप

ग्राम :सरौंहां


इस कलियुग में, जो साधु-संतों की प्रकृति वाले भारत -भक्त मार्ग से भटक गए हैं, जो अपने अप्रतिम अद्भुत विलक्षण मानव जीवन को जानने का प्रयास नहीं कर रहे हैं, जिन्होंने अपने वास्तविक इतिहास, जो साहित्य में अद्भुत रूप से समाहित किया गया है, को जानने का प्रयास नहीं किया उन्हें दिशा और दृष्टि प्रदान करने का कार्य स्वयं हनुमान जी करते हैं। वे इस युग के आधार हैं। 

भगवान् राम, जिन्होंने समाज को एक सूत्र में बाँधने वाले लोकनायक के रूप में कार्य किया।  जिनका जीवन केवल व्यक्तिगत मर्यादाओं का पालन नहीं था, बल्कि सामाजिक समरसता, न्याय, करुणा और धर्म की स्थापना का एक जीवंत उदाहरण था और जिस कारण भगवान् राम  को यशस्विता मिली जो केवल उनके कर्मों की नहीं, बल्कि उनके समाजोपयोगी दृष्टिकोण, समर्पण और लोकमंगल की भावना की देन है ( वैसे तो

राजा जनक, राजा दशरथ आदि समाज के प्रतिष्ठित और धर्मनिष्ठ शासक थे। वे ज्ञान, वैराग्य और मर्यादा के प्रतीक माने जाते थे। यद्यपि वे समाज से पूर्णतः विमुख नहीं थे, परन्तु उनकी भूमिका अधिकतर राजधर्म और निजी साधना तक सीमित थी। उन्होंने अपने युग में यश और आदर प्राप्त किया, किंतु वह यश उतना व्यापक और सर्वग्राही नहीं था जितना भगवान् श्रीराम को प्राप्त हुआ।)

,ने उन्हें यह दायित्व सौंपा था कि वे धर्म की रक्षा करें और जनमानस को सत्य, भक्ति एवं कर्तव्य के मार्ग पर स्थापित रखें।

हनुमान जी इस युग में भी सक्रिय रूप से लोकमंगल में संलग्न हैं

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन राष्ट्र-सेवा आदि में रत हों 

संत का क्या अर्थ है

वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में कितने सर्ग हैं चुन्नीलाल कौन था छोटापन कैसे समाप्त करें जानने के लिए सुनें

18.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 18 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४८१ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  18 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४८१ वां सार -संक्षेप

ग्राम :सरौंहां


हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था की संरचना इस प्रकार की गई कि यह सरल और सहज न होकर जटिल, टेढ़ी-मेढ़ी हो गई। इसके परिणामस्वरूप विद्यार्थी प्रारंभ से ही भ्रम और द्वंद्व में पड़े रहे तथा ज्ञान के मूल स्रोतों तक उनकी पहुंच कठिन हो गई। 


ऐसी स्थिति में, जब हमने अपनी मातृभाषा और पारंपरिक शिक्षण पद्धति की उपेक्षा करते हुए अंग्रेज़ी माध्यम को प्राथमिकता दी, तब शिक्षा केवल एक औपचारिक प्रक्रिया बनकर रह गई। अंग्रेज़ी भाषा को दक्षता और बौद्धिकता का पर्याय मानते हुए हमने अपने सांस्कृतिक और बौद्धिक मूल्यों से विमुख होना आरंभ किया। 


इस देश में कभी घर-घर में पाठशालाएँ थीं,यहां के गुरुकुल अद्भुत थे जो केवल ज्ञान का केंद्र नहीं थे, वे जीवन निर्माण की प्रयोगशालाएं थीं जिनमें शिक्षा, सेवा, साधना, अनुशासन और आत्मविकास का अद्वितीय समन्वय था। 

 ज्ञान का सहज प्रवाह होता था l

विदेशी आक्रमणों और औपनिवेशिक शासन के दौरान यह प्रणाली कमजोर पड़ती गई। अंग्रेज़ी शिक्षा प्रणाली के आगमन के साथ गुरुकुलों को "अप्रासंगिक" बताकर उनकी उपेक्षा की गई।

इस कारण आज शिक्षा केवल चुनिंदा संस्थानों तक सीमित होकर रह गई है। उस सहज, तात्त्विक ज्ञान की परंपरा, जो आत्मा को उन्नयन की ओर ले जाती थी, अब विलोपित होती जा रही है। 


इस स्थिति का प्रत्यक्ष परिणाम यह हुआ कि हमारे बच्चों की सोच सतही बन गई। वे तत्त्व, सार और मूलभूत सिद्धांतों की ओर उन्मुख नहीं हो सके। आधुनिक शिक्षा की यह त्रुटिपूर्ण दिशा उन्हें उस गहराई तक पहुँचने से वंचित रखती है, जहाँ से सच्चा ज्ञान और विवेक उद्भूत होता है।

आधुनिक समय में भले ही स्वरूप बदल गया हो, लेकिन गुरुकुल की आत्मा को पुनः जीवित करना भारतीय शिक्षा को अपनी जड़ों से जोड़ने का मार्ग बन सकता है। इसके लिए हम ऐसे भावों में प्रविष्ट हों जो हमें प्रेरित करें

भावना न हो तो विचार पल्लवित नहीं होते हैं


भावना का ज्वार कब तटबंध को गिनने चला है

कब किसी युग ने इसे लखकर कहा यह मनचला है

अतः निज भावोर्मियों को किसी भ्रम -भय से न रोको 

परखकर निज कर्मक्रम को भ्रम -भयों को अभय ठोको ll

( अपनी सच्ची भावनाओं को दबाओ मत,भ्रम और भय से डर कर अपने विचारों या कर्मों को सीमित मत करो,आत्मनिरीक्षण करके साहसपूर्वक आगे बढ़ो।)


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया 

जो परिवेश हमें मिलता है उसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है इसके लिए रामू भेड़िया का उदाहरण दिया 

भैया अम्बुज सिंह जी १९९९, भैया मोहन जी, भैया आशीष जोग जी का उल्लेख क्यों हुआ 

कौन पैर टिकाएगा का क्या आशय है अधिवेशन के विषय में क्या सुझाव आज आचार्य जी ने दिए जानने के लिए सुनें

17.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 17 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४८० वां सार -संक्षेप ग्राम :सरौंहां

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  17 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४८० वां सार -संक्षेप

ग्राम :सरौंहां


रात्रि तक जीवन में अनेक प्रकार के कष्ट, व्यथाएँ और क्लेश अनुभव में आते हैं किन्तु यदि प्रातःकाल हम उन्हें विस्मृत कर सकें, तो यह  वेला हमारे चैतन्य को पुनः जाग्रत करने का एक उत्तम अवसर प्रदान करती है। हमें इस नवप्रभात की वेला का स्वागत करते हुए आत्मचिन्तन,आत्मावलोकन, नूतन संकल्प और आन्तरिक शान्ति के लिए  पूर्ण लाभ उठाना चाहिए l सबसे पहले इसके लिए प्रातः काल हम शीघ्र जागने का संकल्प लें l

व्याधियों में मोह की व्याधि अत्यन्त हानिकारक है संसार के प्रति मोह,परिवार के प्रति मोह, धन के प्रति मोह आदि


मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥

काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥15॥


महाभारत जो एक बृहद् इतिवृत्त है  जिसमें हमारी अनेक ऐतिहासिक परम्पराएं वर्णित हैं  जिसमें द्वापरकाल का पारिवारिक विग्रह अत्यन्त भयानक रूप में प्रकट हुआ और जिसमें सांसारिक अहंकार का रौद्ररूप दिखा, की युद्धभूमि में अर्जुन जब अपने सगे-संबंधियों, गुरुजनों और मित्रों को  अपने सम्मुख युद्ध के लिए खड़ा देखकर मोह, ममता और मानसिक भ्रम में आच्छन्न हो गया, तब उसका विवेक नष्टप्राय हो गया। वह अपने धर्म, कर्तव्य और जीवन के उद्देश्य को लेकर भ्रमित हो गया। उस समय भगवान् श्रीकृष्ण ने उसे गीता का उपदेश देकर आत्मस्वरूप, धर्म, कर्म, भक्ति और ज्ञान का सार समझाया।


 क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।


क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।


हे  अर्जुन ! इस नपुंसकता को मत प्राप्त हो क्योंकि तुम्हारे लिए यह उचित नहीं है।  हृदय की इस तुच्छ दुर्बलता का त्याग करके युद्ध के लिए खड़े हो जाओ


यह प्रसंग आज भी हमें यह सिखाता है कि जब हम जीवन में किसी दुविधा या मोह में फँसते हैं, तब विवेक और सत्प्रेरणा के माध्यम से हमें सत्य और धर्म का मार्ग चुनना चाहिए।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि अधिवेशन में 

हमें वहां जाना है गम्भीरता से रहना है और यह देखना है कि हमारी संस्था का परिवार इतना विशाल है

बैच प्रमुख कौन हैं भैया अरविन्द जी भैया पुनीत जी भैया प्रदीप जी का नाम क्यों आया

अधिवेशन के लिए क्या परामर्श आचार्य जी ने आज दिया जानने के लिए सुनें

16.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 16 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४७९ वां सार -संक्षेप ग्राम :सरौंहां

 दादुर धुनि चहु दिसा सुहाई। बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई॥

नव पल्लव भए बिटप अनेका। साधक मन जस मिलें बिबेका॥1॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  16 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४७९ वां सार -संक्षेप

ग्राम :सरौंहां


स्वाभाविक रूप से अधर्म और अवगुण स्वतः प्रस्फुटित होते हैं, जबकि सद्गुणों का संवर्धन अत्यंत कठिन होता है। हमारा यह सौभाग्य है कि आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं ताकि हम सद्गुणों को विकसित कर सकें

भूमि जीव संकुल रहे गए सरद रितु पाइ।

सदगुर मिलें जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाइ॥17॥


,उत्साहित रह सकें और समाजोन्मुखता का ध्यान दे सकें

 हम आजीविकोपार्जन की व्यग्रता, परनिन्दा की प्रवृत्ति तथा क्षुद्र स्पर्धाओं में व्यस्त न रहें,आत्मविकास की ओर  भी दृष्टिपात करें


हम राष्ट्र-भक्तों का यह दुर्भाग्य था कि हमारी शिक्षा कुछ इस प्रकार की रही कि स्वाध्याय एवं गम्भीर अध्ययन के प्रति न तो हमारे अन्तःकरण में अभीप्सा शेष रही , न ही उसे किसी ने विधिपूर्वक अभिवर्द्धित किया, क्योंकि जिन विदेशी शक्तियों ने भारतवर्ष पर अधिकार किया, उनके स्वार्थ उन्हें भारत की मौलिक चेतना से काटने में ही सन्तुष्ट थे।


सुख की कामना मनुष्य को भोग-वासना की ओर आकृष्ट करती है। किन्तु भोग अंततः एक बोझ ही सिद्ध होता है। अतः उससे विमुक्त रहने का निरन्तर प्रयास आवश्यक है और कुमार्गगमन से अपने को संयत रखना अत्यावश्यक।

भारतीय संस्कृति, चिन्तन और मूल्यों के प्रति दृढ़ आग्रह रखना ही आवश्यक नहीं, अपितु भावी पीढ़ी को भी यही दृष्टिकोण प्रदान करना हमारा नैतिक दायित्व है।

आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है 

(अंक विज्ञान में आठ माया का अंक है और नौ ब्रह्म का अंक है )

आज हम इसी नैतिक दायित्व को निभाने का संकल्प लें 

पूर्णावतार भगवान् श्रीकृष्ण का जीवन और उनके उपदेश समस्त मानवता को गहन दिशा प्रदान करते हैं। वे बताते हैं कि अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा ही सच्चा धर्म है। व्यक्ति को अपने कर्म करते रहना चाहिए, फल की चिंता किए बिना। वे यह भी सिखाते हैं कि धर्म की स्थापना हेतु यदि संघर्ष करना पड़े, तो पीछे नहीं हटना चाहिए। श्रीकृष्ण का जीवन प्रेम, करुणा, साहस और नीति का समन्वय है।  जब मानव जीवन के सारे आश्रय छूट जाएं, तब भी ईश्वर पर पूर्ण विश्वास और समर्पण ही कल्याण का मार्ग है। वे यह भी बताते हैं कि जीवन में भय नहीं, आत्मबल और विवेक की आवश्यकता है।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अट्टमी शब्द का उल्लेख क्यों किया भैया राघवेन्द्र जी भैया प्रतिपाल सिंह जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

15.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 15 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४७८ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  15 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४७८ वां सार -संक्षेप

ग्राम :सरौंहां


भारत वह राष्ट्र है जो सदा 'भा' अर्थात् प्रकाश, ज्ञान और चेतना में रत रहा है। इसके राष्ट्रभक्तों का यह दृढ़ विश्वास है कि


है देह विश्व, आत्मा है भारत माता;  

सृष्टि-प्रलय-पर्यन्त अमर यह नाता।

दुर्भाग्यवश, कभी-कभी यह महान् राष्ट्र भ्रम और एकांगिता की स्थिति में चला जाता है

हम, भारत के पुत्र, जो शक्ति के स्रोत और बुद्धि के आगार हैं, जब किसी को भ्रम और भय होता है, तो उसे दूर करने के लिए एक विश्वास के मेरु के रूप में संकल्पित रहते हैं। हमारा उद्देश्य है:


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः  

( हम राष्ट्र को जाग्रत और जीवंत बनाए रखने वाले पुरोहित बनें उसे सही दिशा में ले जाने के लिए अग्रणी भूमिका  निभाएं )


हम इन विकारों को विविध आयोजनों और व्यावहारिक प्रयासों के माध्यम से दूर करने का प्रयास करते हैं, जिससे समाज में जागरूकता और एकता बनी रहे।


इसी प्रकार का एक आयोजन है अखंड भारत संकल्प दिवस  जो भारत की सांस्कृतिक और भौगोलिक एकता की पुनःस्थापना के संकल्प के लिए होता है


इस आयोजन का उद्देश्य भारत के विभाजन की स्मृति को जीवित रखना और आने वाली पीढ़ियों को अखंड भारत की अवधारणा से परिचित कराना है। कार्यक्रमों में अखंड भारत माता की पूजा, दीप प्रज्वलन, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, और वक्ताओं के विचार साझा किए जाते हैं


आचार्य जी नित्य गीता के तात्त्विक छन्द,उपनिषदों के संदेश, मानस के प्रसंग  लेकर हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है


जो अपने से बड़ा अपनों को,अपनों से बड़ा  राष्ट्र -सेवकों, समाज-सेवकों, संतों, बलिदानियों को मानता है  वह व्यक्ति महान् है 

जैसे भगवान् राम

 

परम प्रीति समीप बैठारे। भगत सुखद मृदु बचन उचारे॥

तुम्ह अति कीन्हि मोरि सेवकाई। मुख पर केहि बिधि करौं बड़ाई॥2॥



बड़े ही प्रेम से श्री रामजी ने उनको अपने पास बैठाया और भक्तों को सुख देने वाले कोमल वचन कहे- तुम लोगों ने मेरी बड़ी सेवा की है। मुँह पर किस प्रकार तुम्हारी बड़ाई करूँ?

मेरे हित के लिए तुम लोगों ने घरों को तथा सब प्रकार के सुखों को त्याग दिया। इससे तुम मुझे अत्यंत ही प्रिय लग रहे हो।

यह रामत्व है 

हम इसी रामत्व की अनुभूति करें आत्म का बोध करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विवेक 'शास्त्री जी ', भैया मुकेश जी का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सु

14.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 14 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४७७ वां सार -संक्षेप ग्राम :सरौंहां

 निज अनुभव अब कहउँ खगेसा। बिनु हरि भजन न जाहिं कलेसा॥

राम कृपा बिनु सुनु खगराई। जानि न जाइ राम प्रभुताई॥3॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  14 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४७७ वां सार -संक्षेप

ग्राम :सरौंहां


इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर यदि हम आत्मबोध की झलक पा लेते हैं तो साधना के सांसारिक स्वरूप का निर्वाह हो  ही जाएगा यह निश्चित है संसार है तो समस्याएं भी निश्चित हैं ऐसे में हम व्याकुल न हों यह प्रयास करें

आत्मचिन्तन अत्यन्त शक्तिशाली है


जब आत्मबोध जागता है कि प्रत्येक जीवात्मा में वही परमात्मा विद्यमान है, तब 'मैं' और 'तू' का भेद मिट जाता है। यह अद्वैत (द्वैत रहित) की अनुभूति है, जहाँ सभी प्राणी एक ही सत्ता के विविध रूप जान पड़ते हैं।  यह अनुभूति केवल ज्ञान का विषय नहीं, बल्कि साधना और अनुभव से प्राप्त होने वाली जीवंत सच्चाई है। इसे प्राप्त करने के बाद व्यक्ति के भीतर करुणा, समत्व और सेवा की भावना स्वतः जाग्रत होती है। वह अब केवल अपने लिए नहीं, अपितु समस्त सृष्टि के कल्याण के लिए जीता है।  

इस प्रकार आत्मबोध न केवल व्यक्तिगत मुक्ति का मार्ग है, बल्कि वह एक वैश्विक चेतना की ओर भी ले जाता है



राष्ट्र के अद्भुत तपस्वी विद्वान् विचारक वीर महापुरुष चाणक्य एक सुभाषित,जिसका मूल तत्त्व आत्मबोध है, कहते हैं

कः कालः कानि मित्राणि को देशः कौ व्ययागमौ । कश्चाहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः ॥


वर्तमान समय कैसा है, मेरे मित्र और शत्रु कौन हैं, मैं किस देश में हूं उस में कैसी स्थिति है, मेरी आय और व्यय में क्या संतुलन है, मैं स्वयं किस स्थिति में हूं और कितना शक्तिशाली हूं, इन सभी विषयों पर

बारंबार विचार करें l


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उत्तरकांड का उल्लेख क्यों किया भैया मुकेश जी भैया पङ्कज जी का उल्लेख क्यों हुआ 

यज्ञ क्यों महत्त्वपूर्ण हैं अधिवेशन के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा जानने के लिए सुनें

13.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 13 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४७६ वां सार -संक्षेप

 हंसिबा षेलिबा रहिबा रंग। कांम क्रोध न करिबा संग।

हंसिबा षेलिबा गाइबा गीत। दिढ करि राषि अपना चीत॥

(हँसिए खेलिए ख़ुश रंग रहिए काम क्रोध से दूर रहें हँसिए खेलिए आनंद के गीत गाइए

किंतु अपने चित्त को

दृढ़ता से संयत रखिए!

संसार के सुख-भोग में

अचंचल रहिए!)

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  13 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४७६ वां सार -संक्षेप

ग्राम :सरौंहां

जीवनीशक्ति मानव जीवन की आधारशिला है यही शक्ति व्यक्ति को कर्मशील, जागरूक और सक्षम बनाए रखती है। इसका संरक्षण और संवर्धन अत्यंत आवश्यक है। यदि यह शक्ति क्षीण होने लगे, तो न केवल शरीर अपितु मन और आत्मा की गति भी मंद हो जाती है।

अतः आवश्यक है कि हम अपनी जीवनीशक्ति को निरंतर प्रबल बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करें चाहे वह शारीरिक व्यायाम हो, मानसिक शांति के लिए ध्यान या आत्मिक बल के लिए सत्संग, अध्ययन, स्वाध्याय, लेखन

 इसे जाग्रत और उत्साहित रखने का कोई भी प्रयास तुच्छ नहीं है


जीवनीशक्ति का उत्साह बना रहे, इसके लिए आवश्यक है कि हम सकारात्मक वातावरण, सात्त्विक आहार, उचित दिनचर्या और आत्म-व्यवहार को अपनाएं। इन सदाचार संप्रेषणों का श्रवण करें l अपनी जीवनीशक्ति को जाग्रत करने के लिए त्यागपूर्ण भोग की भी महत्ता है क्योंकि वह चिन्ताओं से मुक्त रखता है l


जिस मनुष्य के अन्दर यह परमोच्च चेतना जाग गयी है कि स्वयम्भू आत्मसत्ता ही, परम आत्मा ही स्वयं सभी भूत, सभी सत्ताएं या सम्भूतियां बना है, उस मनुष्य में फिर मोह कैसे होगा, शोक कहां से होगा जो सर्वत्र आत्मा की एकता ही देखता है।

कालान्तर में यही शुद्ध अध्यात्म विकृत हो गया यहीं शौर्यप्रमंडित अध्यात्म महत्त्वपूर्ण हो जाता है एकांगी अध्यात्म नहीं 

आचार्य जी ने  सन् २०१० में "भारत महान् भारत महान् "नामक स्वरचित कविता की चर्चा की

... भारत माता की चाह यही हों सभी स्वावलम्बी जवान...


... हमको फिर अपनी कमर बांध इन अपनों से लड़ना होगा...


आचार्य जी कहते हैं कि  इसके लिए हमें संकल्पित होना होगा अपनों की पहचान आवश्यक है

शौर्य शक्ति पराक्रम की अनुभूति करनी होगी संगठित होना होगा 

परिणाम तब सुखद होंगे यदि अध्ययन स्वाध्याय लेखन दिशा और दृष्टि दे रहा है तो इसका अर्थ है हमारी शक्ति वृद्धिङ्गत हो रही है पराश्रयता से  भी हम बचें

आचार्य जी ने भैया डा पङ्कज जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए  सुनें

12.8.25

रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 12 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४७५ वां सार -संक्षेप

 रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  12 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४७५ वां सार -संक्षेप

ग्राम :सरौंहां


"शौर्य-प्रमंडित अध्यात्म" का चिंतन, जिसमें अध्यात्म को केवल आत्मविकास तक सीमित न रखकर उसे समाज के कल्याण के लिए सक्रिय योगदान देने का माध्यम माना गया है, भारतीय परंपरा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  के मूलभूत सिद्धांतों के अनुरूप है।

 "शौर्य-प्रमंडित अध्यात्म" व्यक्ति को आत्मिक गहराई और सामाजिक उत्तरदायित्व दोनों से संयुत करता है, जिससे वह एक संतुलित और प्रभावशाली जीवन जीता है। आचार्य जी प्रायः इसकी प्रेरणा देते हैं, किन्तु हमें प्रेरणा के परिणाम के बारे में भी विचार करना चाहिए। हमें स्वयं इस पर विश्वास करते हुए एक संकल्प के साथ अपने परिवेश को भी इस दिशा में जाग्रत करने का प्रयास करना चाहिए,  हम एक ज्वाला के समान समाज में प्रकाशवान् बने रहें।

तुलसीदास जी के समय अत्यन्त विषम परिस्थितियां थीं दुष्ट अकबर का शासन था 

तुलसीदास ने अकबर के दरबार में सम्मिलित होने से मना कर दिया, यह कहते हुए कि वे केवल भगवान राम के भक्त हैं और किसी सांसारिक सत्ता के अधीन नहीं हैं

संतन को कहा सीकरी काम॥

आवत जात पन्हैयाँ टूटीं, बिसरि गयौ हरि-नाम॥ (कुम्भन दास)

कुंभनदास, तुलसीदास आदि ने सांसारिक आकर्षणों को त्यागकर ईश्वर भक्ति को सर्वोपरि माना। उनका यह दृष्टिकोण आज भी संतों और भक्तों के लिए प्रेरणास्रोत है।


जब तुलसीदास जी ने अकबर के सामने झुकने से इनकार कर दिया तो अकबर ने क्रोधित होकर उन्हें फतेहपुर सीकरी किले की जेल में डाल दिया था।

तब तुलसीदासजी ने वहीं हनुमान चालीसा लिखी और उसका निरंतर पाठ किया। कहा जाता है कि हनुमान चालीसा के कई बार पाठ के बाद अकबर के महल परिसर और शहर में अचानक बंदरों ने हमला कर दिया 

हमें इन कथाओं पर विश्वास नहीं हुआ क्योंकि हमारी शिक्षा में दोष व्याप्त रहे जिन्हें हमने अपना समझा उन्हीं लोगों ने शिक्षा को दूषित किया

अब समय है कि हम सनातनधर्मी विश्वास को लेकर जागने वाले राष्ट्रभक्त अपनों को पहचानें  संघर्ष के लिए सन्नद्ध रहें

और इसके लिए संगठन महत्त्वपूर्ण है


गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।

बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न॥18॥

भगवान् राम ने उपेक्षितों को गले से लगाया संगठन का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया और फिर शक्तिशाली रावण को परास्त किया

विघटन टूटन देश के लिए हानिकारक है उससे बचें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हजारीप्रसाद का उल्लेख क्यों किया 

अश्विनी उपाध्याय का नाम क्यों लिया

नाम समाज -सत्य है और रूप व्यक्ति -सत्य है  किसने कहा  नाम का क्या महत्त्व है जानने के लिए सुनें

11.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 11 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४७४ वां सार -संक्षेप

 प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥

आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  11 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४७४ वां सार -संक्षेप

ग्राम :सरौंहां


जैसा कि हम जानते हैं अगले माह ओरछा में दीनदयाल  विद्यालय के पूर्व छात्रों द्वारा संचालित युगभारती संस्था का राष्ट्रीय अधिवेशन होने जा रहा है इस प्रकार के आयोजनों का उद्देश्य यही है कि ये समाज के हित के लिए हों  समाज में जो लोग निराश और हताश हो चुके हैं, उन्हें आशा की किरण दिखाई दे। वे अनुभव करें कि आज भी ऐसे भले लोग हैं, जो मात्र दिखावा नहीं करते, बल्कि जिनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व राष्ट्र-निष्ठा से परिपूर्ण और समाजोन्मुखी है।

हमारा लक्ष्य भी है

राष्ट्र-निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष

समाज के उन लोगों को यह चमत्कार लगे उनके मन में प्रश्न उठे कि ऐसे व्यक्तित्व किन महान् प्रेरणा-स्रोतों से अनुप्रेरित हैं और यह जिज्ञासा जागे कि अन्य विद्यालय तथा शैक्षिक संस्थाएँ इस प्रकार के चरित्रवान्, राष्ट्रभक्त और समाजोपयोगी व्यक्तित्वों के निर्माण में  सफल नहीं हो पा रहीं तो उस विद्यालय में ऐसा क्या है इसका अर्थ है  दीनदयाल विद्यालय विशेष है युग भारती संस्था विशेष है

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अपनी संतानों को भी संस्कारित करें हम इसकी गम्भीरता को समझें उन पर हम ध्यान दें 

हमारे यहां पहले बच्चों को बहुत अच्छी प्रकार से संस्कारित किया जाता था  


मानस में


भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥

गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई॥


ज्यों ही सब भाई कुमारावस्था के हुए, त्यों ही गुरु, पिता और माता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया। रघुनाथ (भाइयों सहित) गुरु के घर में विद्या पढ़ने गए और थोड़े ही समय में उनको सब विद्याएँ आ गईं।


आचार्य जी ने बताया

यज्ञोपवीत को त्रिगुणात्मक (सत्त्व, रज, तम) और त्रि-ऋणात्मक (देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण) कहा जाता है क्योंकि यह हमें जीवन के तीनों गुणों को संतुलित रखने की प्रेरणा देता है तथा यह भी स्मरण कराता है कि हम तीन प्रकार के ऋणों से बंधे हैं।

 और परामर्श दिया कि उस कार्यक्रम के स्वरूप की रूपरेखा बनाएं 


भैया प्रदीप जी भैया अजय शंकर जी का उल्लेख क्यों हुआ जर्मनी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

10.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 10 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४७३ वां सार -संक्षेप ग्राम :सरौंहां

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  10 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४७३ वां सार -संक्षेप

ग्राम :सरौंहां


एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी। परमारथी प्रपंच बियोगी॥  

जानिअ तबहिं जीव जग जागा। जब सब बिषय बिलास बिरागा॥


मानस में लक्ष्मण गीता के  इस अंश में गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि यह संसार वास्तव में एक रात के समान है जिसमें योगी,जो परमार्थ के साधक हैं  अर्थात् जिनका स्व परम बन गया है , जो संसार के प्रपंचों से विमुख हो गए हैं,जागते हैं।  

जब कोई जीव विषय-विलासों से विरक्त हो जाता है, तभी वास्तव में वह जाग्रत हुआ माना जाता है अर्थात, जिस क्षण व्यक्ति मोह, वासना, भोग आदि से ऊपर उठकर आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होता है, वही उसका "जागना" होता है। बाकी सब तो मोह रूपी नींद में ही डूबे रहते हैं।

मोह निशा सब सोवन हारा। देखिअ सपन अनेक प्रकारा॥

अर्जुन को भी मोह हो गया था अर्जुन मोहग्रस्त इसलिए हुआ क्योंकि युद्धभूमि में अपने परिजनों, गुरुजनों और स्नेहियों को सम्मुख देखकर उसका मन द्रवित हो गया। उसे लगा कि जिनके लिए युद्ध करना है, यदि वही नहीं रहेंगे, तो उस युद्ध और विजय का कोई मूल्य नहीं होगा। वह कर्तव्य और भावनाओं के बीच उलझ गया। उसे अपने कुल के नाश, धर्म की हानि, और अधर्म के विस्तार की चिंता सताने लगी। यह मानसिक स्थिति मोह की चरमावस्था थी, जिसमें अर्जुन का चित्त विचलित हुआ और उसने अपने शस्त्र त्याग दिए। यहीं से गीता का उपदेश प्रारंभ होता है, जिसमें श्रीकृष्ण उसे कर्तव्य, समत्व और आत्मस्वरूप का ज्ञान देकर मोह से मुक्त करते हैं,उसे तात्विक दृष्टि प्रदान करते हैं  अर्जुन को धैर्य धारण करने के लिए कहते हैं

अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।

गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः।।2.11।।

तुमने शोक न करने योग्य का शोक किया है और  पण्डिताई की बातें कह रहे हो परन्तु जिनके प्राण चले गये हैं, उनके लिये और जिनके प्राण नहीं गये हैं, उनके लिये पण्डित लोग शोक नहीं करते।


 आचार्य जी ने अधिवेशन की चर्चा करते हुए कहा कि अब हम संख्या पर विचार करें समय पर उचित निर्णय लें अपना सुख त्यागकर कर्मानुरागी बन जाएं ताकि परिणाम के आनन्द की अनुभूति हो सके 

इसके अतिरिक्त हम यह अनुभूति करें कि इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर हमारे भीतर क्या परिवर्तन आ रहा है भैया प्रदीप जी भैया पुनीत जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

9.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 9 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४७२ वां सार -संक्षेप

 हनुमान जी हमारे रक्षक हैं तो हमें अपना विश्वास नहीं खोना है....

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  9 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४७२ वां सार -संक्षेप


इस समय संसार में प्रदर्शनों की भरमार है ऐसे में हमारे अन्दर तत्त्व बना रहे तो यह अत्यन्त आश्चर्य का विषय है और आनन्दप्रद भी है आचार्य जी नित्य हमें इसी तत्त्व की अनुभूति कराते हैं 

जिन व्यक्तियों के माध्यम से संस्कार हमारे भीतर प्रविष्ट हो जाते हैं वे व्यक्ति हमारे लिए श्रद्धास्पद हो जाते हैं आचार्य जी इसी कारण हमारे लिए श्रद्धास्पद् हैं क्योंकि वे नित्य विषम परिस्थितियों से घिरे रहने पर भी अपना बहुमूल्य समय देकर हमें संस्कारित करने का प्रयास करते हैं ताकि संस्कारों के कारण तप और त्याग की भावना हमारे स्वान्त में विकसित हो जाए हमारे अन्तःकरण में श्रद्धा और विश्वास जाग्रत हो जाए 

जब हमारे भीतर श्रद्धा और विश्वास जाग्रत होता है तो हमें अपने हृदय में स्थित ईश्वर के दर्शन हो जाते हैं

जैसे ही विश्वास दृढ़ीभूत होता है हमें शक्ति भक्ति आदि की अनुभूति होने लगती है

श्रद्धावान्,  तत्पर और जितेन्द्रिय पुरुष ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान को प्राप्त करके शीघ्र ही वह परम शान्ति को प्राप्त होता है।।


श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।


ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।4.39।।


इस समय सनातन धर्म के पर्वों का विकास हो रहा है यह एक शुभ लक्षण है इस विकास के साथ यदि विचार भी संयुत हो जाए तो निश्चित रूप से यह आनन्द का विषय होगा


आचार्य जी कहते हैं कि व्यक्ति का महत्त्व नहीं है व्यक्ति का व्यक्तित्व महत्त्वपूर्ण है इसलिए हमारा लक्ष्य भी है

राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्रावणी उपाक्रम का क्या अर्थ बताया भैया राघवेन्द्र जी आदि का नाम क्यों लिया अधिवेशन के लिए क्या परामर्श दिया अग्निहोत्री जी के बाल विद्यालय की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

8.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 8 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४७१ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  8 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४७१ वां सार -संक्षेप

स्थान : शारदा नगर, कानपुर


सनातन धर्म एक शाश्वत जीवन-पद्धति है जो आदिकाल से भारतीय चिंतन का मूल आधार रही है। यह धर्म केवल पूजा-पद्धतियों तक सीमित नहीं, अपितु जीवन के हर पक्ष (धार्मिक, नैतिक, सामाजिक  और आध्यात्मिक )का समग्र मार्गदर्शन करता है।

यह धर्म उस सार्वभौमिक सत्य को स्वीकारता है जो समय, स्थान और परिस्थिति से परे है। इसमें आत्मा की अमरता, पुनर्जन्म, कर्मफल और मोक्ष की अवधारणा के साथ एक समन्वित दृष्टिकोण है, जिसमें भक्ति, ज्ञान, योग और कर्म सभी को स्थान प्राप्त है। इसमें मनुष्य अपने मनुष्यत्व का स्मरण करता है l यह प्रत्येक जीव में ईश्वर की अनुभूति कर, सभी के कल्याण की भावना को पोषित करता है।समस्याओं के आने पर हम अपने इष्ट का स्मरण करते हैं जिससे हमें प्रेरणा प्राप्त होती है और उस समस्या का समाधान हो जाता है हमारे सनातन धर्म का मूल उद्देश्य है अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना, मनुष्य के भीतर और समाज के स्तर पर भी।

समाज को देखते हुए ही हमने अपना संगठन युगभारती बनाया इस  संगठन युगभारती को साधनापूर्वक, अपने निरंतर प्रयासों से जिस स्तर तक विस्तार दिया है, उसमें यदि कभी डांवाडोल स्थिति उत्पन्न हो भी जाए, तो हमें यह अटल विश्वास रखना चाहिए कि श्रीराम हमारा संबल बनेंगे और मार्गदर्शन देंगे।


आंधियां जोर की चलती हों 

उल्काएं रूप बदलती हों 

धरती अधैर्य धर हिलती हो 

अपनों की सुमति न मिलती हो 

तब जय श्रीराम पुकार उठो 

अपना पौरुष ललकार उठो 

पुरखों का शौर्य निहार उठो 

हनुमन्त तेज को धार उठो


साधना की जिस भूमि पर हमने श्रमपूर्वक उन्नयन किया है, उसमें कोई विकार न आने पाए—यही हमारा सतत प्रयास होना चाहिए।



आचार्य जी ने परामर्श दिया कि प्रातः काल हम जल्दी उठें,मुस्कराती प्रकृति को निहारें,आत्मबोध की अनुभूति करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राघवेन्द्र जी भैया वीरेन्द्र जी भैया मोहन जी का उल्लेख क्यों किया १४ को आचार्य जी कहां जा रहे हैं जानने के लिए सुनें

7.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 7 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४७० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  7 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४७० वां सार -संक्षेप

स्थान : शारदा नगर, कानपुर


यदि अध्ययन और स्वाध्याय का उद्देश्य आत्मिक उन्नति हो, तो वह आत्मानुभूति का मार्ग बनकर गहन आध्यात्मिक आनन्द प्रदान करता है। परन्तु यदि उसका आधार केवल सांसारिक उपलब्धियाँ या भौतिक हित हो, तो वह ज्ञान भी मात्र सांसारिक सुख तक सीमित रह जाता है। अध्ययन की दिशा ही यह निर्धारित करती है कि वह आत्मविकास का साधन बनेगा या केवल व्यवहारिक लाभ का माध्यम।

वर्तमान लेखन में यद्यपि विषयों की विविधता और प्रस्तुति की नवीनता है, तथापि प्रायः उसमें वह गहराई और तात्त्विक दृष्टि नहीं दिखाई देती, जो पूर्वकालीन रचनाओं की विशेषता थी। आज लेखन अधिकतर सूचना प्रधान हो गया है l


कभी हमारा लेखन साधना, अनुभूति और आत्मिक अनुशीलन से उद्भूत होता था। वह मात्र शब्दों का संकलन नहीं, अपितु जीवन के गहनतम सत्यों का सार होता था। गीता जिसका अभिप्रेत केवल युद्ध की परिस्थिति में अर्जुन के मोह का निवारण करना नहीं था, अपितु यह ग्रंथ मानव जीवन के प्रत्येक संघर्ष में मार्गदर्शन करने वाला ग्रंथ है। इसमें कर्म, ज्ञान और भक्ति का समन्वित दर्शन है, जो व्यक्ति को निष्ठापूर्वक कर्तव्यपालन करते हुए आत्मबोध की दिशा में अग्रसर करता है।इसी कारण यह ग्रंथ आज भी उतना ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक है, जितना सहस्राब्दियों पूर्व था।इसी तरह उपनिषदों, श्रीरामचरितमानस आदि की रचना लोकमंगल, धर्मबोध और आध्यात्मिक उत्थान की भावना से प्रेरित होकर हुई थी। ऐसे ग्रंथ कालातीत हैं, क्योंकि उनमें जीवन की सार्वभौमिक समस्याओं के समाधान समाहित हैं। भावी पीढ़ी को हम वर्तमान परिस्थितियों के साथ संयुत करते हुए इन ग्रंथों 

के वैशिष्ट्य से परिचित

कराने का उद्देश्य बनाएं, उसे भय और भ्रम से बचाएं, उसे अपने संस्कारों से आप्लावित करें,उसे भौतिकता में अत्यधिक डूबने से बचाएं l


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया 

प्रेमचन्द की कहानियां आदर्शोन्मुख यथार्थ की कहानियां हैं

 आचार्य जी ने भैया मोहन जी भैया डा अवधेश तिवारी जी भैया विभास जी के नाम क्यों लिए अधिवेशन के विषय में क्या संदेश दिया मानव कौल की पुस्तक चलता फिरता प्रेत की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

6.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 6 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४६९ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  6 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४६९ वां सार -संक्षेप


हिन्दू धर्म की विशेषता इसकी समन्वयी, शाश्वत और बहुआयामी दृष्टि में निहित है। यह  कोई पंथ या सम्प्रदाय नहीं, बल्कि एक ऐसी जीवन-दृष्टि है जो व्यक्ति को आत्मकल्याण की दिशा में अग्रसर करती है और साथ ही उसे विश्व के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने का मार्ग दिखाती है।आर्यसमाज, ब्रह्मसमाज आदि हिन्दू समाज के सुधार आंदोलनों के उदाहरण हैं। वे समय सापेक्ष और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तो हैं, परन्तु शाश्वत नहीं हैं। शाश्वत है वह तत्त्वचिंतन, जो वेदों, उपनिषदों, पुराणों, गीता, मानस से होकर आज भी प्रवाहित हो रहा है।


यह चिंतन भक्ति, ज्ञान, योग और कर्म—सभी को समाहित करता है।  आदि शंकराचार्य जैसे अद्वैतवादी ज्ञानयोगी भी भगवान् की शरण में जाते हैं, जो इस धर्म की विनम्रता और समग्रता का प्रमाण है। अहंकार से बचने के लिए यहां भक्ति को भी स्वीकारा जाता है।

गीता में भगवान् कहते हैं


योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना।


श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।।6.47।।

 

 समस्त योगियों में जो भी श्रद्धावान् योगी मुझ में युक्त हुए अन्तरात्मा से अर्थात् एकत्व भाव से मुझे भजता है, वह मुझे युक्ततम (सर्वश्रेष्ठ) मान्य है।।


हिन्दू धर्म का मानना है कि केवल ज्ञान पर्याप्त नहीं है, जब तक उसमें प्रेम, श्रद्धा और समर्पण का भाव न हो। इसलिए भक्ति में शक्ति की अनुभूति होती है, क्योंकि वह व्यक्ति को परमात्मा से जोड़ते हुए अहंकार का विघटन करती है।


इस प्रकार हिन्दू धर्म न तो केवल दर्शन है, न केवल उपासना, न केवल तर्क—यह इन सबका जीवंत समन्वय है। यही इसकी शाश्वतता और विशिष्टता का मूल है।

भारत में जन्मे हम लोगों को इसकी अनुभूति होनी चाहिए और हमने मनुष्य के रूप में जन्म लिया है तो हमें अपने मनुष्यत्व की अनुभूति भी होनी चाहिए 

मनुष्य साधक है मनुष्य योनि कर्म योनि है इससे इतर देवता साधना में बाधक हो जाता है वह देवयोनि है

 देवता शंकालु रहता है जैसे इन्द्र देव को शंका हुई मानस में आया है :

इंद्र के मन में यह शंका हुई कि देवर्षि, अर्थात् देवता होने के बाद भी जिन्हें ऋषित्व प्राप्त है,नारद मेरी पुरी अमरावती का राज्य चाहते हैं। जगत में जो कामी और लोभी होते हैं, वे कुटिल कौए की तरह सबसे डरते हैं।

सुनासीर मन महुँ असि त्रासा। चहत देवरिषि मम पुर बासा॥

जे कामी लोलुप जग माहीं। कुटिल काक इव सबहि डेराहीं॥


सूख हाड़ लै भाग सठ स्वान निरखि मृगराज।

छीनि लेइ जनि जान जड़ तिमि सुरपतिहि न लाज॥ 125॥


जैसे मूर्ख कुत्ता सिंह को देखकर सूखी हड्डी लेकर भागे और वह मूर्ख यह समझे कि कहीं उस हड्डी को सिंह छीन न ले, वैसे ही इंद्र को,नारद मेरा राज्य छीन लेंगे, ऐसा सोचते लाज नहीं आई॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि  शिक्षित व्यक्ति का यदि अध्ययन स्वाध्याय लेखन स्वभाव हो जाता है तो उसे सांसारिक प्रपंचों में घिरे रहने पर भी शान्ति की अनुभूति होती है

आज आचार्य जी ने अधिवेशन के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें

5.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 5 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४६८ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  5 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४६८ वां सार -संक्षेप


हमारी मातृभाषा हिन्दी न केवल तार्किक है, बल्कि भावनाओं से परिपूर्ण भी है। इसके बावजूद, हम अभी भी भय और भ्रम में जी रहे हैं कि अंग्रेज़ी ही श्रेष्ठ है। तथाकथित शिक्षित वर्ग का मानस इस मानसिक कुंठा से ग्रस्त हो चला है। इस रोग का उपचार करने वाले शिक्षक आज विरले ही दिखाई देते हैं। इसके पीछे कई कारण हैं— हमारी भाषा के प्रति हमारे मन में योजनाबद्ध रूप से आशंका और हीनता का भाव उत्पन्न किया गया आदि जिसके परिणामस्वरूप हम स्वयं भ्रमित हो गए।

हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा....

हमने अपने धर्मग्रंथों की उपेक्षा की शौर्य प्रमंडित अध्यात्म से विमुख हो गए

ये चिन्ता के विषय हैं और चिन्तन के भी 

इस कारण 


जो जहां है वहीं ज्योति बनकर जले 

उल्लुओं घुघ्घुओं को हमेशा खले 

नित्य प्रातः जगे साधना में पगे 

राष्ट्र -हित जन्मभर शौर्ययुत जगमगे


साधना के लिए हमें मन को केन्द्रित करना होगा 

मन को शांत करना होगा

जब हम प्रकृति के रंग, रूप, लय और मौन से जुड़ते हैं,सूर्योदय का सौंदर्य देखते हैं, वृक्षों की छाया में बैठते हैं, नदी की धारा को निहारते हैं, पक्षियों की चहचहाहट सुनते हैं तो हमारे भीतर का विक्षिप्त और व्याकुल मन शांत होने लगता है। यह शांति केवल बाहरी नहीं होती, वह भीतर तक उतरती है।

प्रकृति, जो परमात्मा की सात्विक रचना है, उसमें कोई छल, प्रदर्शन या विकृति नहीं वह निष्कलंक और संतुलित है। जब हम उससे जुड़ते हैं, तो स्वतः हमारी चेतना भी उस सात्विकता से स्पर्शित होती है। उसी क्षण हमारा मन भूत-भविष्य की चिंता छोड़ कर "अभी और यहीं" में टिकता है यही मन की केन्द्रीयता है, यही है ध्यान की प्रारम्भिक अवस्था।


प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करना अर्थात परमात्मा के मूल भाव से जुड़ना यही मानसिक एकाग्रता, संतुलन और आत्मिक शांति का मार्ग है।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मानस का कौन सा प्रसंग उठाया, भैया सुलभ सिंह जी, भैया मनीष कृष्णा जी, भैया पङ्कज जी, भैया प्रदीप जी, भैया शुभेन्दु शेखर जी, राम आधार जी का उल्लेख क्यों हुआ, अधिवेशन के विषय में क्या परामर्श है, वर्जनल क्या है जानने के लिए सुनें

4.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष दशमी /एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 4 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४६७ वां सार -संक्षेप

 असम्भवं हेममृगस्य जन्म

तथापि रामो लुलुभे मृगाय।

प्रायः समापन्नविपत्तिकाले

धियोऽपि पुंसां मलिना भवन्ति॥

(आपदा के समय लोगों की मति आमतौर पर भ्रष्ट हो जाती हैं।)


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  दशमी /एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  4 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४६७ वां सार -संक्षेप


हमने यह संकल्प लिया था कि अपने समस्त कर्तव्यों और गतिविधियों के बीच भी हमारी उन्मुखता सदैव समाज के सशक्तीकरण की ओर बनी रहेगी। इसी आधार पर हमने अपना लक्ष्य निर्धारित किया था  

"राष्ट्र-निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष।"  

यह लक्ष्य न केवल हमारी दिशा का संकेतक है अपितु हमारे चिंतन और आचरण की मूल प्रेरणा भी है। हमें इसका सदैव ध्यान रखना चाहिए l

एक प्रश्न वास्तव में आत्ममंथन के निमित्त है कि क्या हम स्वयं अपने आचरण, व्यवहार और विचारों से अपने आसपास सकारात्मकता, मार्गदर्शन और प्रेरणा का प्रकाश फैला रहे हैं?  यदि उत्तर अस्पष्ट है, तो यही जागरण का क्षण है  आत्मनिरीक्षण करने का पल है। यह सही है कि यदि हम प्रकाश फैला रहें हैं तो हम एक ज्योति हैं किन्तु वह ही पर्याप्त नहीं है क्योंकि अंधकार बहुत भयानक है जिसके लिए ज्वाला आवश्यक है ज्योति से ज्वाला बनने की प्रक्रिया संगठन की शक्ति से ही संभव होती है। अकेली ज्योति सीमित प्रकाश देती है, किन्तु अनेक ज्योतियों का समवेत प्रकाश ज्वाला बनकर अंधकार को छिन्नभिन्न कर देता है। संगठन, व्यक्तियों की ऊष्मा और ऊर्जा को एक दिशा देता है  यही वह उपक्रम है जो साधारण को असाधारण बनाता है।Energy से Synergy बेहतर है l

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने लोकतन्त्र, व्यवस्थातन्त्र की विकलांगता का भी संकेत दिया, उन्होंने सुझाव दिया कि स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों,  जिनके हाथों में सारा तन्त्र होता है,से संपर्क  अवश्य करते रहें 

भैया संदीप रस्तोगी जी, भैया शैलेश जी, भैया प्रदीप शुक्ल जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

3.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 3 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४६६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  दशमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  3 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४६६ वां सार -संक्षेप



दैहिक, दैविक और भौतिक इन तीनों प्रकार के ताप व्यक्ति को जीवन में विविध स्तरों पर पीड़ा पहुँचाते हैं। ये शारीरिक रोगों, प्राकृतिक आपदाओं और सांसारिक संघर्षों के रूप में प्रकट होते हैं, जिनका प्रभाव मन, शरीर और जीवनशैली पर पड़ता है।ऐसे में यदि क्षणभर के लिए भी जीवन में आनन्द की अनुभूति हो जाए, तो वह जीवन निष्फल नहीं कहा जा सकता। मनुष्य का जीवन सर्वाङ्गपूर्ण जीवन है और यदि  कर्मशीलता, सद्संगति, सम्यक् विचार और संतुलन से परिपूर्ण जीवन से भी कोई ऊबता है, तो वास्तव में वह दुर्भाग्यशाली है।इस कारण जब भी हमें कोई कष्ट हो बाधा हो  हमारे लिए श्रीरामचरित मानस का सस्वर पाठ करना उचित रहेगा 

निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी॥


बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि॥

रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी॥


रामकथा पंडितों को विश्राम देने वाली, सब मनुष्यों को प्रसन्न करने वाली और कलियुग के पापों का नाश करने वाली है। रामकथा कलियुग रूपी साँप के लिए मोरनी है और विवेकरूपी अग्नि के प्रकट करने के लिए अरणि है।

ऐसी रामकथा जो घर घर में पहुंची हुई है उसके होने के बाद भी यदि हम कष्ट में हैं दुःखी हैं तो यह दुर्भाग्य है 

हमारा लक्ष्य है शान्ति शौर्य के साथ विचार व्यवहार के साथ और आचार चिन्तन के साथ 

आत्मनिरीक्षण अत्यावश्यक है


रात भर का है मेहमां अँधेरा

किसके रोके रुका है सवेरा

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संपूर्ण सिंह जी, भैया शौर्यजीत सिंह  २००८,भैया मुकेश जी, भैया मनीष कृष्णा जी और भैया पंकज श्रीवास्तव जी के नाम क्यों लिए उत्थित समाधि -स्वर का क्या अर्थ है जानने के लिए सुनें

2.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 2 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४६५ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  2 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४६५ वां सार -संक्षेप


किसी भी परिस्थिति का सामना करना पड़ रहा हो, ऐसे समय में भी यदि हमने कोई नियम संकल्पपूर्वक बनाया है, तो उसका 

यथासंभव पालन करने का प्रयास अवश्य होना चाहिए। यही आत्मानुशासन की पहचान है।


अपनी बुद्धि सर्वत्र आसक्तिरहित हो और अपना शरीर अपने वश में हो ऐसा प्रयास भी होना चाहिए  स्पृहारहित होना श्रेयस्कर है


आचार्य जी ने बताया कि संगठन सूत्र यदि प्रेम से बंधा है तो उसका आनन्द ही कुछ अलग प्रकार का  होता है 

परिवार से कुटुम्ब की ओर उन्मुख यह संगठन, जिसने विखंडित समाज को संगठित करने का संकल्प लिया है, निश्चय ही सफलता की पताका फहराएगा।

इसलिए अपने इष्ट पर अटल विश्वास रखें कि जो अनुष्ठान पूर्ण करने का संकल्प हमने लिया है, वह उनकी कृपा से अवश्य पूर्ण होगा। संकल्प की सिद्धि श्रद्धा और धैर्य से ही संभव होती है।

इसके अतिरिक्त नित्यसिद्धशक्ति क्या है 


भैया  राघवेन्द्र जी भैया अरविन्द जी भैया वीरेन्द्र जी भैया मोहन जी भैया  पुनीत जी भैया पङ्कज जी भैया विवेक जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

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1.8.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 1 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण १४६४ वां सार -संक्षेप

 ..तब महादेव को याद करो, 

क्षणभर भी मत बरबाद करो, 

निज शक्ति शौर्य के साथ वरो,

 उत्थित समाधि-स्वर बन विचरो l


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  1 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४६४ वां सार -संक्षेप


हम सनातन धर्म के संवेदनशील अनुयायियों के अंतःकरण में स्थित जो हवनकुण्ड है, यदि उसमें शुभ और शुद्ध विचारों की आहुति दी जाए, तो आंतरिक तथा बाह्य वातावरण निर्मल और सकारात्मक बनता है।

तो आइये इन्हीं शुद्ध शुभ पावन पुनीत विचारों की प्राप्ति के लिए, आत्मविश्वासमय वातावरण की निर्मिति के लिए प्रवेश करें आज की वेला में जो मानसिक क्लेश सांसारिक क्लेश आदि   विकारों के समाधान का माध्यम भी है

आचार्य जी जो प्रतिकूल परिस्थितियों से आवृत होने पर भी  

नित्य हमें उद्बोधित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है 

आचार्य जी कहते हैं 

अपनी दिशा-दृष्टि सदैव सम्यक् और स्पष्ट रखें ताकि जीवन की गति लक्ष्य की ओर हो। साथ ही, शरीर स्वस्थ और पुष्ट रखें  जिससे हम कर्तव्य पालन और साधना में समर्थ बन सकें। 


जब विचार और दृष्टिकोण सही होते हैं, तब निर्णय भी सार्थक होते हैं। और जब शरीर सशक्त होता है, तब वे निर्णय कर्मरूप में फलीभूत होते हैं। अतः मानसिक स्पष्टता और शारीरिक सुदृढ़ता दोनों का संतुलन ही जीवन की पूर्णता है। सज्जनों का संगठन  जैसे हमारा युगभारती नामक कलियुग की आवश्यकता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भर्तृहरि का नाम क्यों लिया भैया राघवेन्द्र जी भैया वीरेन्द्र जी का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें