प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 31 अगस्त 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१४९४ वां* सार -संक्षेप
स्थान : सरस्वती विद्या मन्दिर इंटर कालेज, सिविल लाइंस, उन्नाव
वैविध्य, इस चराचर जगत् की अंतःसलिला प्रकृति है और गतिमत्ता इसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति। अतः प्रातःकाल, जब सृष्टि नवीन जागरण के साथ स्वयं को नव स्वरूप में प्रकट करती है, उस क्षण हमें भी संसार के इस स्वरूप और स्वभाव को आत्मसात् करते हुए आत्मशक्ति, तत्त्वचिंतन, मनुष्यत्व एवं जीवन के मूल उद्देश्यों पर गम्भीर चिन्तन एवं मनन करना चाहिए।
प्रभात वेला केवल शरीर का जागरण नहीं, अपितु अंतःकरण की सजगता और चेतना की जागरूकता का भी क्षण है। इस कारण,शरीर - यन्त्र को चलाने के लिए विचारधारा को सदा सकारात्मक, सर्जनात्मक तथा आत्मोन्नतिपरक बनाकर रखना आवश्यक है।
शरीर हमारा अनुगामी सहयोगक तत्त्व है।
दिनारम्भ किसी भी प्रकार की नकारात्मकता, विषाद, भ्रम भय संशय के भावों से नहीं होना चाहिए
तो आइये इन्हीं अनुभूतियों के साथ प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में
जैसा कि हम जानते हैं ओरछा में अपना अधिवेशन होने जा रहा है आचार्य जी हमसे अपेक्षा कर रहे हैं कि अपने उत्साह को अधिकाधिक समाजाभिमुख स्वरूप प्रदान करने हेतु तथा अपने प्रयासों को सफलतापथ पर प्रतिष्ठित करने के निमित्त, हमें पूर्णरूपेण संकल्पपूर्वक कटिबद्ध हो जाना चाहिए क्योंकि अब समय कम रह गया है अपने व्यक्तिगत कार्यों में कटौती भी करना आवश्यक है कार्यक्रम की रचना भी करनी है इस पर आयोजन समिति ध्यान दे
"उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।" यह ध्येय वाक्य हमारे भीतर ऊर्जा भर देता है
तो हम उठ जाएं जग जाएं और बिना रुके आज से अभी से अधिवेशन की तैयारियों में जुट जाएं
इसके अतिरिक्त कल सम्पन्न हुए कवि सम्मेलन के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा जानने के लिए सुनें