30.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 30 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५२४ वां* सार -संक्षेप

 प्रेम का प्रवाह शौर्य-शक्ति की उमंग संग

देशभक्ति की विभक्ति संयम के साथ हो,

गात हो सशक्त तप्त लौह के समान शुभ

बात-बात में स्वदेश चिन्तन का माथ हो 


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 30 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५२४ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ६

 हम राष्ट्रहित और समाजहित का ध्यान रख पाएं यह आत्मबोध हो


आज के बौद्धिक युग में हम अत्यधिक भ्रमित और भयभीत हैं हमारे अन्दर अविश्वास का अतिरेक है विश्वास जितना खंडित होता है जीवन उतना ही उलझनों से युक्त हो जाता है ऐसे में हमें आवश्यकता है उचित मार्गदर्शन की 

आचार्य जी नित्य हमारा मार्गदर्शन करते हैं यह हमारा सौभाग्य है हमें इसका लाभ उठाना चाहिए 

आचार्य जी  हमें उच्च आदर्शों से युक्त राष्ट्रभक्ति और आत्मानुभूति, कि हम मात्र शरीर का ढांचा  नहीं हैं हमारे लिए साधन महत्त्वपूर्ण नहीं है, की प्रेरणा देते हैं। आचार्य जी कहते हैं कि हमारा शरीर लोहे के समान दृढ़, तप्त और सक्षम हो और वाणी में सदैव राष्ट्रचिन्तन व्याप्त रहे। साथ में हम सब यह भी अनुभव करें कि हम सब एक ही मातृभूमि के पुत्र हैं यही हमारी परम्परा में भी रहा

लोभ, वासना और लोलुपता से युक्त व्यक्तियों का साथ कभी न हो  इसका अवश्य प्रयास करें हमारे हृदय में सदा श्रीराम जो मर्यादा, आदर्श और धर्म के प्रतीक हैं बसे रहें।रामत्व को अपने भीतर प्रवेश कराएं ताकि हम यशस्वी तपस्वी जयस्ची बन सकें श्रीराम का नाम अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है


एहि बिधि निज गुन दोष कहि सबहि बहुरि सिरु नाइ।

बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ॥ 29(ग)॥

 तुलसीदास जी कहते हैं इस प्रकार अपने गुण-दोषों को कहकर और सबको फिर सिर नवाकर मैं रघुनाथ का निर्मल यश वर्णन करता हूँ, जिसके सुनने से कलियुग के पाप नष्ट हो जाते हैं 

भगवान् राम का यश इस कारण है कि उन्हें हर परिस्थिति में सफलता मिलती गई

उन्हें सफलता प्रेम आत्मीयता संगठन विश्वास आत्मशक्ति के कारण प्राप्त हुई

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया

संगठन विश्वास के आधार पर चलते हैं

मानस में सबसे पहले कौन सा कांड लिखा गया शिशु मन्दिरों की क्या विशेषता रही जानने के लिए सुनें

29.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 29 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५२३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 29 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५२३ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ५

स्वयं को स्वावलम्बी, स्वस्थ एवं सुशिक्षित बनाते हुए अन्य व्यक्तियों को भी स्वावलम्बी, आरोग्यपूर्ण एवं शिक्षित बनाने का प्रयास करना चाहिए।



एक ओर सामान्य जन भय एवं भ्रम के वातावरण में जीवन व्यतीत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर कर्मनिष्ठ एवं कुशल व्यक्ति अपने-अपने मार्ग में निरन्तर अग्रसर हो रहे हैं।हमारा कर्तव्य है कि हम अपने पूर्वजों के पराक्रम, उनकी महान् विशेषताओं से प्रेरणा ग्रहण कर स्वयं भी पराक्रमी बनें। हमें चिन्तन, मनन, सत्साहित्य का अध्ययन, स्वाध्याय तथा लेखन में प्रवृत्त रहना चाहिए, जिससे हमारा जीवन तेजस्विता प्राप्त कर अन्धकार का निराकरण करने में सहायक हो।


हम जो भी कार्य करें, उसमें यश प्राप्त हो इस हेतु हमें निरन्तर प्रयत्नशील रहना चाहिए। कीर्ति केवल धन के संचय से नहीं, अपितु सत्कर्मों से प्राप्त होती है। आत्मबोध नितान्त आवश्यक है। साथ ही, यह भी परीक्षण करें कि क्या हमारे विचारों में औरों की सहभागिता है  और यदि है  तो क्या हम उन विचारों पर सकारात्मक संवाद कर सकते हैं।


इन सबके पश्चात्, हमें अपने परिवेश की सुरक्षा करनी चाहिए। स्वयं को स्वावलम्बी, स्वस्थ एवं सुशिक्षित बनाते हुए अन्य व्यक्तियों को भी स्वावलम्बी, आरोग्यपूर्ण एवं शिक्षित बनाने का प्रयास करना चाहिए। यही जीवन की सच्ची साधना है।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने यह भी बताया कि भगवान् की महिमा को हर कोई सहज रूप से नहीं समझता, पर जो समझते हैं, वे अनमोल रत्न के समान उसे हृदय में धारण करते हैं, और यह विवेक समय के साथ लोगों को पश्चात्ताप के रूप में अनुभव होता है।


कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना। सिर धुनि गिरा लगत पछिताना॥

हृदय सिंधु मति सीप समाना। स्वाति सारदा कहहिं सुजाना॥4॥


भैया डॉ मधुकर वशिष्ठ  जी,भैया प्रदीप वाजपेयी जी,मॉरीशस का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

28.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 28 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५२२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 28 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५२२ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ४

उठें जागें और ज्ञानी जनों से वह ज्ञान प्राप्त करें जो हमें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति कराए


प्रातःकाल का यह सदाचार संप्रेषण अद्भुत परिणाम देने में सक्षम है हमें इसका लाभ उठाना चाहिए हम इसके माध्यम से अपने भावों को शुद्ध कर सकते हैं शुद्ध भावों से विचार परिष्कृत होंगे 

परिष्कृत विचारों से निः संदेह क्रिया उत्कृष्ट और प्रभावशालिनी होगी ही आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम  प्रातः काल  जागें, सात्विक भोजन करें,सत्संगति करें  स्वाध्याय में मन लगाएं और मनुष्यत्व की अनुभूति करें


 हमारे यहां उपनिषद् वे ज्ञानग्रंथ हैं जिनसे शिष्य, गुरु के समीप बैठकर श्रवण मनन  और निदिध्यासन  के माध्यम से  ज्ञान प्राप्त करता है। उपनिषद् आत्मविद्या या ब्रह्मविद्या की शिक्षाएं हैं, जो मोक्ष मार्ग की ओर ले जाती हैं। 

यह केवल बौद्धिक ज्ञान नहीं, बल्कि जीवन की गूढ़तम सत्य की खोज और आत्मबोध की प्रक्रिया का प्रतीक है।

इन्हीं उपनिषदों में एक है *कठोपनिषद्* जिसका एक प्रसिद्ध श्लोक है


उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।  

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥


अर्थात्


*उठो, जागो और श्रेष्ठ ज्ञानी पुरुषों  से ज्ञान प्राप्त करके इसे समझो।* 


हम स्वदेश की सेवा में अनुरक्त शक्ति का स्वर हैं, 

गायत्री गीता गंगा के तेजस् से भास्वर हैं, 

हम शरीर के रथ पर चढ़ चिर विजय मंत्र पढ़ते हैं, 

हम अपना भविष्य अपने हाथों से ही गढ़ते हैं।


 

ज्ञान का मार्ग अत्यंत कठिन है, जैसे किसी तीक्ष्ण तलवार की धार पर चलना।  

यह पथ अत्यन्त सूक्ष्म, कठिन और दुर्गम है ऐसा विवेकशील ज्ञानी लोग कहते हैं।

इसमें आत्मबोध की प्रेरणा दी गई है। मनुष्य को चेताकर कहा गया है कि वह मोह और अज्ञान की नींद से उठे, जीवन के उच्च लक्ष्य को समझे और उसका बोध पाने के लिए योग्य आचार्य से ज्ञान प्राप्त करे।


ऋषित्व वास्तव में क्या है, आचार्य जी ने गोपाल सिंह नेपाली की कौन सी कविता का उल्लेख किया, एक सज्जन नारायण दास जी कौन थे,  प्रशिक्षण और शिक्षा में क्या अंतर है जानने के लिए सुनें

27.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पञ्चमी / षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 27 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५२१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पञ्चमी / षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 27 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५२१ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ३

भ्रमित भयभीत समाज को जाग्रत करना


आइये आनन्द के कुछ क्षणों को प्राप्त करने के लिए प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में


भारतवर्ष एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी मूल चेतना गतिशीलता में निहित है। इसी कारण  यह देश"चरैवेति" मंत्र का जापक है जिसका अर्थ है निरंतर आगे बढ़ते रहना, कभी स्थिर न होना। यह केवल भौतिक गति का ही नहीं, अपितु मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक उन्नति का भी द्योतक है।भारत की सांस्कृतिक और दार्शनिक परंपरा में यह विचार दृढ़ता से व्याप्त रहा है कि जीवन की सार्थकता निरंतर प्रयास, साधना और प्रगति में है।इस दृष्टि से भारतवर्ष केवल भौगोलिक सीमा नहीं, अपितु एक जीवंत चिंतन परंपरा है जो मनुष्य को प्रेरित करती है कि वह कठिनाइयों से घबराए नहीं, अपितु उन्हें साध्य बनाकर अग्रसर होता रहे। यही उसकी शक्ति है l दुर्भाग्य से हमारा समाज इस समय भ्रमित और भयभीत है लेह में अचानक तनावपूर्ण वातावरण हो गया  इस देश में देवासुर संग्राम लगातार चलता रहता है कण कण अनाचार ढो रहा है राजमुकुट के संघर्ष से हम अपरिचित नहीं हैं  ऐसे में हम मनुष्यत्व की अनुभूति कर शक्ति का स्वर बन समाज को जाग्रत करने का कार्य करें हमारा जन जन शक्ति पराक्रम सेवा स्वाध्याय समर्पण साधना और संयम का पर्याय बने दैत्यवंश इतरा न पाए इसका प्रयास करें

अपने लक्ष्य का ध्यान रखें हमारा लक्ष्य है वैभवसम्पन्न अखंड भारत


*ओ वीर वंशधर फिर अपना इतिहास पढ़ो*

*अभिमंत्रित कर लो अपनी कुलिश-कृपाणों को*

*आतंकी पारावार ज्वार पर इतराता*

*संधान करो तरकश के पावक वाणों को*

*आ गया समय फिर से अंगार उगलने का*

*अरिदल से कह दो आओ काल बुलाता है*


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने जनमेजय का उल्लेख क्यों किया भैया वीरेन्द्र जी भैया मोहन जी के नाम क्यों आए 

समीक्षित पत्र से क्या तात्पर्य है अधिवेशन से संबन्धित तीन प्रश्न कौन से हैं जानने के लिए सुनें

26.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्थी /पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 26 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५२० वां* सार -संक्षेप

 राम कीन्ह चाहहिं सोइ होई। करै अन्यथा अस नहिं कोई॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्थी /पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 26 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५२० वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २


भारत देश को प्राणों से अधिक प्रेम करें इसकी रक्षा के लिए शक्तिसम्पन्न बनें




जब जीवन में हमें शारीरिक कष्ट, मानसिक अशांति अथवा दैनंदिन परिस्थितियों की विषमता घेरे, तब हमें किसी सांसारिक उपाय से पूर्व आत्मिक शांति की ओर उन्मुख होना चाहिए। *श्री रामचरितमानस* इस दिशा में एक अचूक प्रतिसंधान की भाँति कार्य करता है।  

यह ग्रंथ मात्र एक धार्मिक आख्यान नहीं, अपितु एक पूर्ण जीवन-दर्शन है। इसमें भक्ति, नीति, कर्तव्य, सहिष्णुता, त्याग, प्रेम, शौर्य, सेवा तथा समर्पण जैसे आदर्शों की पूर्णता विद्यमान है। तुलसीदासजी ने मानस में केवल श्रीराम के जीवन का वर्णन ही नहीं किया, अपितु समस्त मानवीय गुणों को अत्यन्त गहराई से अभिव्यक्त किया है।  

जब हम मानस के विभिन्न प्रसंगों का मनन करते हैं तो वह हमारे भीतर गूढ़ विवेक, धैर्य और समाधान की प्रेरणा उत्पन्न करता है।


कनक सिंघासन सीय समेता। बैठहिं रामु होइ चित चेता॥

सकल कहहिं कब होइहि काली। बिघन मनावहिं देव कुचाली॥3॥

जब सीताजी सहित श्री रामचन्द्रजी सुवर्ण के सिंहासन पर विराजेंगे और हमारी मनःकामना पूरी होगी। इधर तो सब यह कह रहे हैं कि कल कब होगा, उधर कुचक्री देवता विघ्न मना रहे हैं 


वे कहते हैं- हे माता! हमारी बड़ी विपत्ति को देखकर आज वही कीजिए जिससे श्री रामचन्द्रजी राज्य त्यागकर वन को चले जाएँ और देवताओं का सब कार्य सिद्ध हो रावण के आतंक से मुक्ति मिले और तब उसी प्रकार की परिस्थितियां बन जाती हैं  कि भगवान् राम को वन जाना स्वीकारना पड़ता है 

 भारत की भूमि में धर्म की अच्छी प्रकार स्थापना करने के लिए युग युग में भगवान् प्रकट होते हैं अद्भुत है भारत जो विश्व का केन्द्र है हमें भारत के प्रति भक्ति का भाव रखना ही चाहिए 


उस पर है नहीं पसीजा जो,

क्या है वह भू का भार नहीं।


वह हृदय नहीं है पत्थर है,

जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अधिवेशन की चर्चा की आचार्य जी ने परामर्श दिया कि संपूर्ण देश का भ्रमण करें  केवल पर्यटन के लिए नहीं अध्ययन के लिए भी लोगों के बीच समरस होने का प्रयास करें 

आचार्य जी ने भैया विभास जी का नाम क्यों लिया बलिनी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

25.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 25 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५१९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष तृतीया /चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 25 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५१९ वां* सार -संक्षेप

*मुख्य विचारणीय विषय*= पं दीनदयाल जी की तरह हम भी राष्ट्र और समाज के उत्थान हेतु  निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर समष्टि हित में कार्य करें


आज महापुरुष पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्मदिवस है — वह दिन, जब भारत की राजनैतिक, वैचारिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा देने वाली एक महान् विभूति का अवतरण हुआ था। उनका जीवन राष्ट्रीय सेवा, विचारशीलता और एकात्म मानव दर्शन का मूर्त रूप था।

उनका जन्म २५ सितम्बर १९१६ को हुआ, और उन्होंने ऐसा विचार-दर्शन दिया जिसमें व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के मध्य संतुलन एवं समरसता का भाव प्रमुख था

उनकी जयंती केवल श्रद्धांजलि का अवसर नहीं, अपितु उनके सिद्धांतों को आत्मसात् करने, राष्ट्र की एकात्मता और सांस्कृतिक मूल्यों की पुनः स्थापना हेतु संकल्प लेने का दिवस है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि राष्ट्र और समाज का उत्थान तभी संभव है जब हम निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर समष्टि हित में कार्य करें


दीनदयाल उपाध्याय जी के विचारानुसार, भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता को खंडित करने का कार्य मुख्यतः अंग्रेजों की विभाजनकारी नीति के कारण हुआ। उन्होंने हिन्दू‑मुस्लिम एकता में कृत्रिम खाई उत्पन्न कर दी, जिसे राजनैतिक रूप से और गहरा कर दिया गया। विशेषकर मुसलमानों में पृथकता की भावना, धार्मिक पहचान की राजनैतिक अभिव्यक्ति के रूप में विकसित की गई, जो आगे चलकर मुस्लिम लीग की मांगों और देश के विभाजन में परिणत हुई।


हिमालयी दृढ़ता के प्रतीक दीनदयाल जी के मत में, मुसलमान समाज जब तक अपने को इस भूमि का अविभाज्य अंग नहीं मानेगा, जब तक उसका राजनैतिक वर्चस्व का स्वप्न नहीं टूटेगा तब तक वह भारत से सच्चा आत्मीय भाव नहीं रख सकेगा। उनके अनुसार, भारत से प्रेम एवं समर्पण की भावना उसी समय उत्पन्न होगी जब उनकी राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाओं का पूर्ण निरसन हो जाएगा।


यह दृष्टिकोण केवल आलोचना नहीं, अपितु उस समय की राजनैतिक-सामाजिक परिस्थिति का यथार्थ विश्लेषण है। उनका उद्देश्य किसी सम्प्रदाय को नीचा दिखाना नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकात्मता के मार्ग में उपस्थित बाधाओं को स्पष्ट करना था ताकि भारत सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सिद्धान्त पर संगठित हो सके।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने Guilty Men of India's Partition की चर्चा क्यों की, गौस खां का उल्लेख क्यों हुआ, DPS college का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

24.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 24 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५१८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 24 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५१८ वां* सार -संक्षेप


हर अंग में ज्वाला धधकती धुंध है आकाश में

भारत भविष्यत् खोजता मृत, मौन जड़ मधुमास में

विश्वास शंकाशील मर्यादा विवश विक्षिप्त है

हा दैव शिव के देश की मेधा हुई अभिशप्त है ।


मत रो अरे इतिहास, भारत माँ न मेरी बाँझ है

यह है उदय बेला जिसे तू समझ बैठा साँझ है...


तो आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में जो उदय वेला में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है 



लेखन एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण साधन है, जो न केवल अभिव्यक्ति का माध्यम बनता है, अपितु आत्म-दर्शन एवं आत्म-परिष्कार की दिशा में भी एक सशक्त सेतु का कार्य करता है। जब कोई व्यक्ति अपने द्वारा रचित लेखन को पुनः पढ़ता है, तो वह केवल शब्दों का पठन नहीं करता, बल्कि अपने अन्तःकरण की गहराइयों में अवस्थित विचारों, अनुभूतियों एवं भावनाओं का अवगाहन करता है।


लेखन के माध्यम से आत्मा का साक्षात्कार सम्भव होता है क्योंकि आत्मा ही परमात्मा का अंश है इस प्रकार लेखन, एक प्रकार से, दिव्य तत्त्व के स्पर्श का अवसर प्रदान करता है। यह प्रक्रिया आत्ममंथन को  अत्यन्त सहज बना देती है, जिससे व्यक्ति अपनी त्रुटियों को पहचानकर, आत्म-शुद्धि की ओर उन्मुख होता है।


लेखन से आत्म-विश्वास की भी अभिवृद्धि होती है क्योंकि यह स्वयं के विचारों को सुव्यवस्थित करने, उन्हें स्पष्टता से प्रस्तुत करने और जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को दृढ़ता से व्यक्त करने का अभ्यास देता है। लेखन हमें संबल प्रदान करने वाला एक योग है l  हम प्रतिदिन लेखन अवश्य करें क्योंकि हमें जो जीवन सोद्देश्य प्राप्त हुआ है उसे हम सार्थक कर सकें 

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अपने कर्तव्यकर्म का परिपालन प्रामाणिकता से करें वर्तमान में स्थिति अत्यन्त गम्भीर है ऐसे में हम अपने लक्ष्य को विस्मृत न करते हुए गम्भीर स्थिति के निराकरण के लिए उपाय करते हुए राष्ट्र के लिए जाग्रत पुरोहित की भूमिका निभाएं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी भैया मोहन जी, श्री बालेश्वर जी, श्री चन्द्र पाल जी, श्री चन्द्र प्रकाश जी का उल्लेख क्यों किया, युग पुरुष पुस्तक की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

23.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 23 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५१७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 23 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५१७ वां* सार -संक्षेप


विद्यालय केवल ईंट-पत्थर से निर्मित भवन या उपकरणों का संग्रह नहीं होते, वरन् वे ऐसे प्रेरणाकेन्द्र होते हैं जहाँ से समाज को उचित दिशा एवं व्यापक दृष्टि प्राप्त होती है। विद्यालय व्यक्ति को केवल व्यक्तिगत उन्नति नहीं, अपितु समाज के प्रति समर्पण भाव से प्रेरित करते हैं। ये संस्थान ही अतीत में *गुरुकुल* एवं *आश्रम* के रूप में विद्यमान थे, जिनके माध्यम से भारत ने अपने ज्ञान, संस्कृति एवं जीवनदृष्टि से सम्पूर्ण विश्व को आलोकित किया और 'विश्वगुरु' की प्रतिष्ठा प्राप्त की।

धन का जीवन में विशिष्ट स्थान है, परन्तु केवल धन को ही जीवन का परम लक्ष्य मानना उचित नहीं। प्राचीन शिक्षा-प्रणाली में यह बोध कराया जाता था कि जीवन के अन्य आयाम  जैसे धर्म, ज्ञान, नैतिकता, सेवा, संयम, विवेक आदि भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं। शिक्षा का उद्देश्य केवल आजीविका नहीं, अपितु जीवन का समग्र उत्थान था।


हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्य मुखम् अपिहितम् अस्ति। पूषन् तत् सत्यधर्माय दृष्टये त्वम् अपावृणु ॥



 विद्यालयों की यही भूमिका आज भी सामाजिक निर्माण में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है यह हमें समझना चाहिए आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम समाजोन्मुखता का ध्यान रखें भाव विचार शुद्ध रखें यशस्विता के लिए प्रयास करते रहें

इसके अतिरिक्त भैया संतोष जी, भैया प्रदीप वाजपेयी जी,भैया दीपक शर्मा जी, भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी, श्री कृष्णगोपाल जी, श्री श्यामबाबू जी, श्री चन्द्रप्रकाश जी, श्री हरमेश जी और बूजी का उल्लेख क्यों हुआ, केरल में कौन था, लखनऊ में आज कौन सी बैठक है जानने के लिए सुनें

22.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 22 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५१६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 22 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५१६ वां* सार -संक्षेप


दीनदयाल जी भारत की अखण्डता की पुनः स्थापना के लिए संघर्ष करते रहे। दीनदयाल जी  विचार और कर्म में अखण्ड भारत की स्थापना को राष्ट्रीय उद्देश्य मानते थे।हमें भी इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखना चाहिए


यह दृष्टिकोण केवल भौगोलिक अखण्डता नहीं, बल्कि संस्कृति, इतिहास और आत्मा की एकता को भी इंगित करता है।

हमें अपनी कायरता को त्याग इसी अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक रुकना नहीं है

आचार्य जी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार-दर्शन,

खण्ड ६, पृष्ठ ७९-८० में छपे अंश का उल्लेख किया

यह अंश है मई १९५२ में दीनदयाल जी द्वारा प्रस्तुत

जनसंघ का त्रिमुखी सिद्धान्त

१. अखण्ड भारत मात्र एक विचार न होकर, विचारपूर्वक

किया हुआ संकल्प है । कुछ लोग विभाजन को पत्थर की रेखा

मानते हैं। उनका ऐसा दृष्टिकोण सर्वथा अनुचित है। मन में

मातृभूमि के प्रति उत्कट भक्ति न होने का ही वह परिचायक

है । ऐसे लोगों ने न केवल अपने इतिहास को भुला दिया है,

अपितु इतिहास का उन्हें यथार्थ ज्ञान भी नहीं है। मुसलमानों

के शासन में भी इस देश के अनेक टुकड़े हो गये थे। किन्तु उस

समय के हमारे अध्वर्युओं ने उन टुकड़ों को वज्रलेप नहीं माना

था । अखण्ड भारत के लिए वे लड़ते रहे थे ।

२. जनसंघ के सिद्धान्त का दूसरा सूत्र है- 'एकराष्ट्रवाद' ।

राष्ट्र में कोई अल्पमत नहीं होता अर्थात् कोई अल्पसंख्यक भी नहीं

हो सकते। शरीर में एक नाक, दो आँखें होती हैं; किन्तु नाक

अल्पसंख्यक और आँखें बहुसंख्यक हैं, ऐसा हम नहीं कह सकते ।

वे दोनों एक ही शरीर के अवयव होते हैं ।

३. जनसंघ का तीसरा सिद्धान्त-सूत्र है - 'एक संस्कृति' ।

भारत में ईसाइयों या मुसलमानों की कोई अलग संस्कृति नहीं

है । संस्कृति का सम्बन्ध उपासना - प्रणाली से नहीं, देश से होता है। मुसलमानों के सामने कबीर, जायसी, रसखान के आदर्श हैं।

भारत में भारतीय होकर रहना चाहने वाले मुसलमानों के लिए

इन कवियों का जीवन अनुकरणीय है । आज मुसलमानों की

राष्ट्र भक्ति का केन्द्र भारत के बाहर है। मुसलमानों को अपनी

इस भूमिका में आमूलचूल परिवर्तन करना चाहिए ।



आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों ये हमें शक्तिसंपन्न करेंगे

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विजय गुप्त जी भैया सौरभ जी भैया समीर राय जी भैया शैलेन्द्र पांडेय जी के नाम क्यों लिए  प्रेम के आधार क्या हैं जानने के लिए सुनें

21.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 21 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५१५ वां* सार -संक्षेप स्थान : ओरछा

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 21 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५१५ वां* सार -संक्षेप

स्थान : ओरछा


प्रातःकाल का जागरण और प्रातःकाल का चिन्तन अद्भुत परिणाम देता है तो आइये इसी चिन्तन में रत होने के लिए प्रवेश करें आज की वेला में

अखंड भारत हम सनातनधर्मी राष्ट्र -भक्तों का एक स्वप्न है जिसे साकार करने के लिए हम लगातार प्रयत्नशील हैं यह हमारा देश है  यह हमारी धरा है यह हमारा गगन है  ये भाव मात्र शब्द नहीं, आत्म-संवेदन के ऐसे स्रोत हैं जो हमारे भीतर चेतना, ऊर्जा और कर्तव्यबोध को जाग्रत कर देते हैं। ये भाव हमें अपने राष्ट्र के प्रति समर्पण, संरक्षण और सेवा के लिए प्रेरित करते हैं इन भावों विचारों में प्रवेश करने पर हमारे भीतर अतुलनीय शक्ति और प्रेरणा का संचार होता है। यही ऊर्जा हमें कठिनाइयों से लड़ने, धैर्यपूर्वक चलने और सत्कर्म में रत रहने की शक्ति देती है। हम राष्ट्र भक्तों का कर्तव्य है कि हम सत्कर्मों में रत रहें चाहे जैसी परिस्थितियां हों

तुलसीदास जी के समय भारत में विषम परिस्थितियां थीं

वे लिखते हैं


भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु।

सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु॥5॥

भला भलाई ही ग्रहण करता है और नीच नीचता को ही ग्रहण किए रहता है। अमृत की सराहना अमर करने में होती है और विष की मारने में॥



उपजहिं एक संग जग माहीं। जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं॥

सुधा सुरा सम साधु असाधू। जनक एक जग जलधि अगाधू॥3॥

दोनों (संत और असंत) जगत् में एक साथ पैदा होते हैं, पर एक साथ पैदा होने वाले कमल और जोंक की तरह उनके गुण अलग-अलग होते हैं।  साधु अमृत के समान (मृत्यु रूपी संसार से उबारने वाला) और असाधु मदिरा के समान (मोह, प्रमाद और जड़ता उत्पन्न करने वाला) है, दोनों को उत्पन्न करने वाला जगत् रूपी अगाध समुद्र एक ही है।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आज अधिवेशन के विषय में क्या बताया, समाजोन्मुखता के लिए हमें क्या करना चाहिए हमें कैसे पाप लग सकता है अगला अधिवेशन कहां होना चाहिए जानने के लिए सुनें

20.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 20 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५१४ वां* सार -संक्षेप स्थान : ओरछा

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 20 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५१४ वां* सार -संक्षेप

स्थान : ओरछा


आज से ओरछा में अपना अधिवेशन प्रारम्भ होने जा रहा है 

जिसका उद्देश्य है कि जो  निर्बल जनमानस भ्रमित भयभीत है उसके भय भ्रम को दूर किया जाए उसे बल आत्मविश्वास प्राप्त हो

इस अधिवेशन से जनमानस को स्पष्ट होगा कि केवल सभाएं नहीं होती हैं कुछ कार्य भी होते हैं


आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हमें विचरण का अभ्यासी होना चाहिए हमारा मन्त्र है 

चरैवेति चरैवेति 


इस कलियुग में हमें संचारित, सुविचारित, सक्रिय, संगठित होना अनिवार्य है  निराशा के भाव तो लगातार आते हैं हमें कुछ क्षण उनसे विमुख होने के निकालने चाहिए हमारे कुछ व्रतबन्ध होते हैं,हम कुछ ऋणों को चुकाने का संकल्प लेते हैं सात्विक रहने का, संयमी रहने का या कर्मशील रहने का  उद्देश्य बनाते हैं

 कल आचार्य जी ने राजा राम के दर्शन किए और उनसे दिशा दृष्टि मिली तो  आचार्य जी के मन में अद्भुत भाव उद्भूत हुए



हम स्वदेश की सेवा का व्रतबंध बाँध फिरते हैं, 

उन निर्बल भावों का बल जो बार बार गिरते हैं। 

आज ओरछा में कल मथुरा फिर काशी में होंगे, 

चरैवेति का मंत्र जाप कर सतत सदा बिचरेंगे।


 आचार्य जी ने भैया राघवेन्द्र जी, भैया विवेक जी, भैया अखिलेश तिवारी जी, भैया अक्षय जी,भैया गोपाल जी, भैया शैलेन्द्र पांडेय जी,भैया अशोक तिवारी जी, भैया अखिलेश अग्निहोत्री जी, भैया वीरेन्द्र जी, भैया मोहन जी के नाम क्यों लिए,मथुरा और काशी नामों का उल्लेख  क्यों  किया,हम युगभारती के सदस्यों को किनसे दिशानिर्देशन लेने की आवश्यकता है जानने के लिए सुनें

19.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 18 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५१२ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 19 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५१३ वां* सार -संक्षेप

स्थान : कानपुर


इन सदाचार-संप्रेषणों का उद्देश्य यह है कि हम इनका श्रवण कर  अपने अन्तःकरण में निहित शुभेच्छा, सम्यक् वृत्तियों तथा सकारात्मक चिन्तन को जाग्रत कर सके; साथ ही हमारी चित्त-शक्ति का उद्दीपन हो जिससे वह आत्मविकास की दिशा में प्रेरित हो। यह प्रक्रिया आत्म-प्रबोधन की एक सशक्त साधना बन जाती है, जिसके माध्यम से हम अपने मानस में व्याप्त आलस्य, प्रमाद एवं विकारों का परित्याग कर जीवन के कुछ श्रेष्ठ ध्येयों की ओर उन्मुख हो जाते हैं

यह सत्कर्म अबाध गति से चल रहा है यह भगवान् की कृपा है


कल से हमारा अधिवेशन प्रारम्भ हो रहा है जो एक प्रकार से सत्संग है  जहां हम लोग सनातनधर्मी समाज को यह दिखाएंगे कि उसे भयभीत भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है हम उसके साथ हैं 

समाज, समाज का निर्माता, समाज के पात्र  ईश्वर की एक अद्भुत सुविचारित व्यवस्था के अन्तर्गत एक दूसरे से संबद्ध चल रहे हैं और अपने अनुकूल जो व्यक्ति समाज का निर्माण कर लेते हैं उन्हें कर्मशील कर्मठ कर्मयोद्धा कहा जाता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अधिवेशन के सम्बन्ध में क्या बताया भैया संतोष मिश्र जी भैया वीरेन्द्र जी भैया मोहन जी भैया मनीष जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

18.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 18 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५१२ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 18 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५१२ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


यदि हम प्रतिदिन कुछ क्षणों के लिए सांसारिकता का विस्मरण कर, संसार की सारगर्भिता एवं तत्त्वदृष्टि का अवगाहन करें, तो अद्भुत आध्यात्मिक सामर्थ्य की प्राप्ति संभव है। यह साधना सत्सङ्ग संत समागम के माध्यम से ही सुलभ है।


बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥

सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥4॥


अनेक बार जब हम एकल जीवन में रहते हैं तो अनगिनत विकारों के आने की संभावना बन जाती है  इस कारण हमें एकांतता (seclusion ) से बचना चाहिए और सत्संग की ओर उन्मुख होना चाहिए


सत्संग क्या है?

जीव स्वयं की आत्मसत्ता, आध्यात्मिक लक्ष्य एवं जीवन के परमार्थ को समझने का यत्न करता है,दूरदर्शी तत्त्वदर्शी संत महापुरुषों की सन्निधि में रहकर,

 सत्सङ्ग कहलाता है।


संत का स्वभाव और उनका जीवन चरित्र कपास (कपास के पौधे) के समान होता है। जैसे कपास बाहर से नरम, भीतर से गुणमय और उपयोगी होता है, वैसे ही साधुजन बाहर से सहज और भीतर से गुणसम्पन्न होते हैं। 


वे दूसरों के दुःख को सहते हैं, दूसरों की बुराइयों को छिपाते हैं, उनका प्रकटीकरण नहीं करते। ऐसे सज्जनों को संसार में आदर और यश प्राप्त होता है।

(साधु चरित सुभ चरित कपासू। निरस बिसद गुनमय फल जासू॥

जो सहि दु:ख परछिद्र दुरावा। बंदनीय जेहिं जग जस पावा॥3॥)


सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥

बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥5॥


दुष्ट व्यक्ति भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं, जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर सोना बन जाता है, किन्तु दैवयोग से यदि  सज्जन कुसंगति में भी पड़ जाते हैं, तो वे वहाँ भी साँप की मणि के समान अपने गुणों का ही अनुसरण करते हैं।

इसके अतिरिक्त हनुमान जी के स्थान पर डा हेडगेवार जी ने भगवा ध्वज को क्यों महत्त्व दिया भैया स्व यतीन्द्र सिंह जी बैच १९८५ की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

17.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 17 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५११ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 कहाँ पर कौन सा अभियान चलता है उठो देखो,

कहाँ किसका कुटिल अभिमान पलता है चलो देखो

कहाँ किसका सदा सम्मान घुलता है उसे देखो

कि कुछ का प्राण -दीपक भी सतत जलता उसे देखो |

बड़ा अद्भुत निराला देश अपना है उसे जानो

कि इसके प्राण की तासीर अनुपम दिव्य पहचानो

अजब सौभाग्य अपना है कि सत् एकत्र आया है

तपस्या और संयम का गजब मंजर नुमाया है

प्रमादी बन न सोओ घोंसलों में,आत्म को परखो

दधीची वंश के ही अंश हो यह भी तनिक निरखो

उठो वृत्रासुरी अभिमान को फिर से सुलाना है

असुर कुल हो जहाँ जैसा वहीं उसको जलाना है


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 17 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५११ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक अत्यन्त सौम्य, शांत स्वभाव वाले, राष्ट्रनिष्ठ विचारक और भारतीय जनसंघ के प्रमुख नेता थे। वे वैचारिक दृढ़ता रखते हुए भी किसी के प्रति दुर्भाव नहीं रखते थे। विरोधी दलों के नेता भी उनकी सादगी, तर्कशीलता और विचारों की गरिमा के कारण उनका सम्मान करते थे जैसे

बैरिउ राम बड़ाई करहीं। बोलनि मिलनि बिनय मन हरहीं॥

सारद कोटि कोटि सत सेषा। करि न सकहिं प्रभु गुन गन लेखा॥4॥


  अत्यन्त रहस्यमयी परिस्थितियों में उनकी हत्या हो जाती है क्योंकि दुष्ट राष्ट्र- विरोधी तत्त्व  चाह रहे थे कि उनकी हत्या से भारतीय जनसंघ का विचार और भारतीय जीवन दर्शन का व्यवहार स्थगित हो जाएगा 

यह एक अत्यन्त हृदयविदारक घटना थी जिसने अनेक राष्ट्र -भक्तों को झकझोर दिया

उसी दहकती ज्वाला से उत्पन्न भावना के परिणामस्वरूप दीनदयाल विद्यालय अस्तित्व में आया जो केवल सर्टिफिकेट बांटने के लिए नहीं खोला गया वह विद्यालय तो तप त्याग सेवा समर्पण साधना का स्वरूप बना



यह देश वास्तव में एक विलक्षण और अद्वितीय भूमि है उसका साक्षात्कार करना आवश्यक है।   हम प्रमादी बनकर शयन  ही न करते रहें जाग्रत रहें  और आत्मनिरीक्षण करें

हम अमरत्व के उपासक राष्ट्र भक्तों को देश में कहाँ-कहाँ कौन-कौन से दुराग्रहपूर्ण  अहंकारपूर्ण अभियान संचालित हो रहे हैं, इसे देखने और समझने की आवश्यकता है।



अब पुनः समय आ गया है कि वृत्रासुर रूपी दानवी अहंकार को शांत किया जाए। जहाँ-जहाँ असुरी प्रवृत्तियाँ विद्यमान हैं, वहीं पर उन्हें नष्ट करने का संकल्प लेकर कार्यरत होना चाहिए आगामी ओरछा अधिवेशन इसी संकल्प के लिए हम लोग कर रहे हैं हमें इस पर गर्व होना चाहिए कि तप, त्याग और संयम की साधना वहां एक साथ दृष्टिगोचर होगी अध्यात्म शौर्य से प्रमंडित रहना अनिवार्य है इसकी अनुभूति होगी

इसके अतिरिक्त समाज को क्या दिखाना है  अपने विद्यालय का विकास कैसे हुआ जानने के लिए सुनें

16.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 16 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५१० वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 16 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५१० वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


भगवान् राम ने इस लोक में "नर" के रूप में अवतार लेकर कर्मप्रधान जीवन के साक्षात् विग्रह रूप में जन्म लिया  वे केवल दैवीय चमत्कारों से युक्त पुरुष न होकर, चेतन और विवेकयुक्त कर्तव्यनिष्ठ मानव के आदर्श रूप में प्रकट हुए। उनका अवतरण कर्म के क्षेत्र में जाग्रत चैतन्य के रूप में हुआ, जिसमें जीवन का प्रत्येक पक्ष धर्म, मर्यादा, त्याग, और नीति से अनुप्राणित था।

मानस के अयोध्या कांड में एक प्रसंग है सबके हृदय में ऐसी अभिलाषा है और सब महादेवजी को मनाकर कहते हैं कि राजा दशरथ अपने जीते जी श्री रामचन्द्रजी को युवराज पद दे दें



 सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु।

आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु॥1॥


इधर तो सब यह कह रहे हैं कि कल कब होगा, उधर कुचक्री देवता विघ्न मना रहे हैं क्योंकि वे रावण से पीड़ित हैं वे नहीं चाहते कि  श्री राम दशरथ की तरह राजा हो जाएं


संसार का संसारत्व परमात्मा पहले से ही निर्धारित कर देता है तो


करम गति टारै नाहिं टरी ॥

मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि ।

सीता हरन मरन दसरथ को, बनमें बिपति परी ॥ १॥

कहॅं वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहॅं वह मिरग चरी ।

कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि ॥ २॥

और तब उसी तरह के प्रसंग बनने लगते हैं 


सरस्वती जी को बुलाकर देवता विनय कर रहे हैं और बार-बार उनके पैरों को पकड़कर उन पर गिरते हैं॥ वे कहते हैं हे माता! हमारी बड़ी विपत्ति को देखकर आज वही कीजिए जिससे श्री रामचन्द्रजी राज्य त्यागकर वन को चले जाएँ और देवताओं का सब कार्य सिद्ध हो

तो मां सरस्वती मन्थरा जो कैकेई की एक मंदबुद्धि दासी थी, उसे अपयश की पिटारी बनाकर  उसकी बुद्धि को फेरकर चली गईं

विघ्न बाधाएं आने ही लगीं 

हम भी जब कोई अच्छा कार्य करने का संकल्प करते हैं  विघ्न बाधाएं आती हैं हम महत्त्वपूर्ण लक्ष्य बनाते हैं तो विघ्न बाधाओं के आने पर  भी हमें  जो उस परमात्मा के पार्षद हैं उस लक्ष्य से विमुख नहीं होना चाहिए 

लक्ष्य तक पहुँचे बिना, पथ में पथिक विश्राम कैसा


लक्ष्य है अति दूर दुर्गम मार्ग भी हम जानते हैं,

किन्तु पथ के कंटकों को हम सुमन ही मानते हैं,

जब प्रगति का नाम जीवन, यह अकाल विराम कैसा ।।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राजेश खुराना जी का उल्लेख क्यों किया राधाकृष्ण अग्रवाल जी जो कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति थे उनकी आंखों में आंसू किस कारण आ गए जानने के लिए सुनें

15.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 14 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५०८ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 15 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५०९ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।


श्रीराम की गूढ़ कथा केवल एक धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि जीवन के गहरे रहस्यों का उद्घाटन करने वाली एक आध्यात्मिक साधना है। इसके वक्ता और श्रोता साधारण जन नहीं, बल्कि ज्ञान, अनुभव और आत्मबोध के अमूल्य भण्डार होते हैं।  


यह गूढ़ कथा वास्तव में सम्पूर्ण जगत् की कथा है, क्योंकि श्रीराम स्वयं जब जगत् के स्वरूप को धारण कर अवतरित होते हैं, तो उनके जीवन में भी वेदना, संघर्ष और विषमता आती है। 

कथा और व्यथा – इन दोनों का जो आपसी सम्बन्ध है, वही संसार का वास्तविक स्वभाव है। जीवन में कथा और व्यथा  का समन्वय ही मानव अनुभव की पूर्णता को दर्शाता है। जब मनुष्य अपने भीतर के आत्मिक भाव की खोज करता है, तब वह "तत्त्व" की अनुभूति करता है। यही तत्त्वज्ञान – भारत की सनातन परम्परा, इसकी भूमि, संस्कृति और जीवन-दर्शन में अंतर्निहित है।

श्री राम व्यक्तिगत भावनाओं पर कर्तव्य की विजय का उदाहरण  हैं श्री राम ने एक राजा, पुत्र, पति, भ्राता, मित्र और सेनापति के रूप में प्रत्येक भूमिका में कर्तव्यबोध को सर्वोपरि रखा इस प्रकार भगवान् राम की कर्तव्यपरायणता केवल एक गुण नहीं, बल्कि उनके सम्पूर्ण चरित्र का मूलाधार है। वे  दुष्टों और शत्रुओं का संहार करने में निरंतर संलग्न रहे  वे मर्यादा और कर्तव्य के उच्चतम आदर्श हैं।

हमें भी कर्तव्य का उच्चतर आदर्श बनना है जैसे हमने एक कर्तव्य स्वयं अंगीकार किया है कि हम  शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति करते हुए राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित बनेंगे संपूर्ण विश्व को हम आर्य बनाएंगे तो हमें अपने आर्यत्व को शुद्ध व शक्तिसंपन्न रखते हुए वह कर्तव्यबोध होना ही चाहिए

इन्हीं तत्त्वों विचारों विश्वासों के साथ हम एक एक पग आगे  बढ़ा रहे हैं अब हम ओरछा अधिवेशन के लिए पूर्णरूपेण समर्पित हो जाएं जिसमें हम अपनी संगठित शक्ति का परिचय देने जा रहे हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अधिवेशन के लिए कुछ परामर्श दिए 

हरावल दस्ता (vanguard )क्या है 

भैया बलराज पासी जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

14.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 14 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५०८ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 14 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५०८ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


इस असामान्य संसार की विविधताओं और जटिलताओं का अनुभव करते हुए, जब हम इस संसार के स्वरूप को भली-भाँति समझते हैं किन्तु इसके गूढ़ सार की ओर उन्मुख रहने का प्रयास करते हैं, मनुष्यत्व की अनुभूति करते हैं, सन्मार्ग पर चलने का प्रयत्न करते हैं, उत्साह, उमंग की सुन्दर अभिव्यक्तियां करते हैं तब हम जीवन की अनेक समस्याओं, विकृतियों और उलझनों से स्वयं को सुरक्षित रख लेते हैं। यही विचार है भक्ति है और शक्ति भी है l यह तथ्य निस्संदेह पूर्णतः सत्य है। यद्यपि संसार में पूर्ण कुछ भी नहीं होता किन्तु इस अपूर्णत्व को सतत गतिमान रखने की परमात्मा की प्रक्रिया अनादि काल से चल रही है और अनन्त काल तक चलती रहेगी


गोस्वामी तुलसीदास जिस परम्परा में अवतरित हुए, वह आर्ष परम्परा थी, जिसकी मूल विशेषता यह रही है कि वह युगानुकूल परिस्थितियों में मोहग्रस्त समाज को जाग्रत करने का कार्य करती है। इस परम्परा का उद्देश्य सदा यही रहा है कि समय, स्थान और समाज की अवस्था के अनुरूप मनुष्य को सत्य, धर्म और आत्मबोध की दिशा में प्रेरित किया जाए। मुग़ल सम्राट अकबर के शासनकाल में   हमारा सनातनधर्मी समाज विविध कारणों से सांस्कृतिक, धार्मिक और नैतिक दृष्टि से प्रमादावस्था में था। ऐसे समय में  देशभक्त गोस्वामी तुलसीदास ने *रामचरितमानस* के माध्यम से जनमानस को पुनः धर्म, मर्यादा, आदर्श एवं आत्मबोध की ओर उन्मुख किया। यह ग्रंथ केवल धार्मिक काव्य नहीं, अपितु एक जागरण-ग्रंथ बनकर समाज के हृदय में नवचेतना का संचार करने वाला सिद्ध हुआ।

उसे देश -भक्ति की अनुभूति कराने का सशक्त माध्यम बना l

सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई॥

तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा॥1॥


आचार्य जी ने राष्ट्रार्पित भाव से आगामी अधिवेशन,जो शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का एक उदाहरण बनने जा रहा है, में सम्मिलित होने का परामर्श दिया l हमारे यहां संसार के दोषयुक्त भावों के लिए शुद्धि का  अभियान चलता है यह अधिवेशन भी उसी का हिस्सा है l

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा अवधेश तिवारी जी को अधिवेशन में चलने के लिए क्या परामर्श दिया भैया विवेक चतुर्वेदी जी की कौन सी बात अच्छी लगी जानने के लिए सुनें

13.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 13 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५०७ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 राम बिमुख संपति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई॥

सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गएँ पुनि तबहिं सुखाहीं॥3॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 13 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५०७ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां

 प्रातः ५:३५

जो व्यक्ति रामात्मकता में रम जाता है  वह केवल लौकिक सत्ता का अनुगामी न रहकर, अद्भुत आध्यात्मिक चेतना से अनुप्राणित होता है। भगवान् राम की मर्यादा, धर्मनिष्ठा, त्याग, सहिष्णुता एवं लोककल्याण की भावना जब किसी के जीवन का अवलम्ब बन जाती है, तब उसका व्यक्तित्व केवल वैयक्तिक सीमाओं में आबद्ध नहीं रहता, वरन् वह समष्टि की चेतना से एकात्म स्थापित कर लेता है

ऐसे मनस्वी पुरुष में आत्मबल, धैर्य,शौर्य, संकल्प, विवेक, समत्व एवं सहिष्णुता आदि गुण सहज ही प्रकट होते हैं। उसका कर्तृत्व, चिन्तन, व्यवहार एवं दृष्टिकोण सम्पूर्ण लोकहित की ओर उन्मुख हो जाता है, जिससे उसकी ऊर्जा अनन्तगुणित प्रतीत होती है यही कारण है कि रामभाव में रमण करने वाला व्यक्ति असाधारण सामर्थ्य का धनी हो जाता है।

भगवान् राम की तरह ही जब कोई व्यक्ति अपने आध्यात्मिक मूल्यों के साथ खड़ा होकर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करता है, अपने धर्म की रक्षा हेतु त्याग करता है और निर्भय होकर राष्ट्र, समाज या संस्कृति के लिए आगे आता है तब उसका अध्यात्म शौर्य से ओतप्रोत हो जाता है।

यह अध्यात्म न केवल भीतर की शुद्धता चाहता है, बल्कि बाहर की व्यवस्था में भी संतुलन और धर्म की स्थापना के लिए तत्पर रहता है। यही "शौर्य प्रमंडित अध्यात्म" है

रामात्मकता या कृष्णात्मकता या शिवात्मकता आदि सनातन धर्म का विश्वास है यही विश्वास इस विचित्र संसार का आधार है 

हम भी अपनी शक्ति भक्ति बुद्धि विचार समाजोन्मुखी भाव से आगामी अधिवेशन करने जा रहे हैं जो एक प्रकार से हमारा परीक्षा स्थल है उसमें हम तत्परता से जुट जाएं एकत्र होकर किसी संकल्प को सिद्ध करने की योजनाएं बनाना ही अधिवेशन है

इसके अतिरिक्त

बिजली की समस्या,नेपाल, अभिनेता आशुतोष राणा, सतीश सृजन, बूजी की चर्चा क्यों हुई भैया समीर राय जी,भैया सौरभ राय जी, भैया नरेन्द्र शुक्ल जी, भैया मोहन जी, भैया राघवेन्द्र जी, भैया अवधेश तिवारी जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

12.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 12 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५०६ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 कवि ऋषियों का ही वंश अंश देवों का है

कविता ने ही हर समय जगाया जन-जीवन ।

दायित्व आ गया कवि पर फिर से एक बार

वह जागे और जगाए सोया जन-गण-मन ॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 12 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५०६ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां

आचार्य जी हमें प्रायः लेखन-योग की महत्ता को समझाने का प्रयास करते हैं लेखन से हमें शक्ति प्राप्त होती है वर्तमान परिस्थितियों में ध्यान धारणा को अत्यन्त विधि विधान से करना असंभव ही प्रतीत होता है  लेखन के समय हम विशेष ध्यान में अवस्थित हो जाते हैं और जब उस ध्यान को हम अक्षरों में अंकित कर देते हैं तो एक प्रकार से अपने भावों के स्वरूप का निर्माण करके स्वयं उसके दर्शन करते हैं सन् २०१० की लिखी

 आचार्य जी की यह कविता देखिए 


चर्चा है अपना देश प्रगति के पथ पर है

अनुपम खोजों से भास्वर पूरा आसमान ।

व्यापारिक वैभव नित्य छू रहा नए शिखर

अपने वैज्ञानिक दुनिया भर के कीर्तिमान ||

परमाणु परीक्षण हुआ और दुनिया चौंकी

प्रतिबन्ध लगाए किन्तु स्वयं ही तोड़ दिए ।

चर्चा गूँजी दुनिया के कोने-कोने में

अभिमन्त्रित अग्निबाण जैसे ही छोड़ दिये ||..

इसी कविता में आचार्य जी कहते हैं भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली केवल दूसरों की नकल बनकर रह गई है। इसमें न तो भावनाओं का समावेश है और न ही आत्मीयता का भाव।  अंग्रेज़ी भाषा के प्रति व्यामोह चिन्ताजनक है हमारे इतिहास को भी इस तरह बदला गया है कि अपने गौरव, अपने पूर्वजों और अपनी संस्कृति की पहचान ही खोती जा रही है।


गुरुकुल जैसी आत्मीय और संस्कार आधारित शिक्षा पद्धति अब विस्मृति की ओर बढ़ चुकी है। शिक्षा से स्वदेश, स्वभाषा और स्वधर्म का बोध समाप्त होता जा रहा है। इस कारण शिक्षा केवल नौकरी पाने का माध्यम बन गई है, जीवन निर्माण का साधन नहीं।

 आचार्य जी बताते हैं ग्राम्य जीवन की स्थिति  अब भी अत्यन्त दयनीय है। सामान्य जन केवल रोज़गार तक सीमित हो गए हैं और समाज तथा सार्वजनिक हितों के प्रति उनका रुझान कम हो गया है। गांवों में आज भी प्रभावशाली वर्ग का दबदबा बना हुआ है। स्वतंत्रता के बाद भी गांवों की स्थिति बेबसी की मिसाल बनी हुई है। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की चिंता में  लगातार गांवों से पलायन हो रहा है दुर्भाग्यवश संसद और नीति-निर्माण के मंचों पर गांवों की चर्चा केवल औपचारिकता बनकर रह गई है, कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो रही।कभी भारत की संस्कृति और आत्मनिर्भरता का आधार रहे गांव आज उपेक्षा, असमानता और पलायन जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।

और

इतिहास गवाही देता है दुनियाभर का

जन-संस्कार से देश सजाए जाते हैं।

अपने जन-मन की ताकत के बलबूते पर

गौरव गरिमा के ध्वज फहराए जाते है 

तो

अब कौन उठाए जनता के मन में उफान

यह 'यक्ष प्रश्न' चिन्तन के लिए चुनौती है।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अखिलेश तिवारी जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

11.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 11 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५०५ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 11 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५०५ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


भज गोविन्दं भज गोविन्दं गोविन्दं भज मूढ़मते।  

संप्राप्ते सन्निहिते काले नहि नहि रक्षति डुकृङ्करणे॥

यह अंश

*"भज गोविन्दम्"* जो आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक प्रसिद्ध भक्ति-ग्रन्थ है, जिसे *मोहमुद्गर* (अर्थात् मोह को तोड़ने वाला) भी कहा जाता है, से लिया गया है


हे मोह में डूबे हुए बुद्धिहीन मनुष्य! तू गोविन्द का भजन कर, उसका स्मरण कर। जब मृत्यु समीप आ जाती है, तब व्याकरण के नियम ("डुकृङ्" आदि) तुझे नहीं बचा सकते। अर्थात्, शुद्ध तत्त्वज्ञान और ईश्वरभक्ति ही अंतिम मुक्ति का मार्ग है, न कि केवल शास्त्रीय पांडित्य। 

यह ग्रंथ जीवन के अंतिम सत्य की ओर उन्मुख करता है। इसमें शंकराचार्य ने यह बताया है कि केवल विद्या, धन या तर्क से मोक्ष नहीं मिलता — बल्कि भगवान् की भक्ति ही जीवन का परम लक्ष्य है।  सांसारिक मोह, अहंकार, धन और ज्ञान के प्रति आसक्ति से हटकर ईश्वर की भक्ति में रमने का आह्वान है।


जब आयु बढ़ती है तो शरीर स्वाभाविक रूप से दुर्बल होने लगता है, परन्तु मन में वैसी दुर्बलता नहीं आती। यह सोचकर व्याकुल नहीं होना चाहिए कि अब शरीर पहले जैसा नहीं रहा। यह तो प्रकृति की एक सामान्य  सहज प्रक्रिया है।  


हमें इस समझ के साथ संसार में जीवन बिताना चाहिए। केवल जीना ही नहीं, अपितु संसार में रहते हुए भी उसमें लिप्त नहीं होना चाहिए। जब यश, धन, सुख-सुविधाएं महत्त्वहीन हो जाते हैं, तब जो सहज वैराग्य उत्पन्न होता है, वही मनुष्य को सच्चा आनन्द, शान्ति और आत्मविश्वास प्रदान करता है।

त्यागमयी कर्ममयी संस्कृति के उपासक हम युगभारती के सदस्यों ने अपना लक्ष्य बनाया है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष


मातृभूमि के प्रति प्रेम, कर्तव्य और सेवा की भावना के साथ  राष्ट्र को परमेश्वर स्वरूप मानते हुए उसके कल्याण हेतु स्वयं को समर्पित करने का यह लक्ष्य है

आगामी अधिवेशन वास्तव में क्या है  पं दीनदयाल की किस पुस्तक की चर्चा हुई

अधिवेशन के लिए हमें किस प्रकार की तैयारी करनी चाहिए जानने के लिए सुनें

10.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 10 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५०४ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 10 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५०४ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


हमारे देश भारत का अध्यात्म-क्षेत्र अतीव विलक्षण एवं विस्मयकारक है, परन्तु अतीत में कुछ विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा स्वार्थलिप्सा से प्रेरित होकर सुनियोजित रूप में ऐसा प्रयास किया गया कि सनातनधर्मी भारतीय जनमानस को अपनी आध्यात्मिक परम्परा जो कहती है


ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥1॥


वासांसि जीर्णानि यथा विहाय


नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।


तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-


न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।


से विमुख कर दिया जाए। दुर्भाग्यवश वे इस उद्देश्य में सफल भी हुए। फलस्वरूप आज यह भ्रान्त धारणा व्यापक हो गई है कि यदि कोई व्यक्ति आध्यात्मिक शब्दावली या अध्यात्म के सारगर्भित महत्त्व को नहीं भी जानता, तो उससे कोई विशेष क्षति नहीं होती। ऐसी अवधारणा स्वयं में एक गंभीर बौद्धिक भ्रान्ति है।हमें इस भ्रान्ति को अवश्य दूर करने का प्रयास करना चाहिए



हमारी यह धरा वास्तव में अतीव अद्भुत एवं विलक्षण है, जहाँ पराशक्ति के सतत सक्रिय सान्निध्य से समयानुकूल स्वतःस्फूर्त प्रादुर्भाव होता रहता है। भीषण से भी भीषण संकटों के क्षणों में भी यहाँ  अनेक नामी अनामी चिन्तनशील विचारक, गम्भीर मनीषी, तपस्वी आत्मनिष्ठ साधक तथा पुरुषार्थपरायण महापुरुष निरन्तर प्रकट होते रहे हैं जिनके कारण ही इन्द्रियातीत विषयों के प्रति हमारा तीव्र अनुराग उत्पन्न हुआ। उनके असाधारण तेज, लोककल्याणकारी कृतित्व एवं दिव्य जीवनदृष्टि को देखकर सामान्य जन समुदाय उन्हें दिव्यशक्ति का मूर्त रूप, यहाँ तक कि ईश्वर का अवतार मानने लगता है। *हमारी युगभारती संस्था का मूल चिन्तन अध्यात्म और शौर्य का सामञ्जस्य है* l

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अधिवेशन को सफल करने के लिए क्या सूत्र बताए,कृष्ण को कौन केट लिखता था,किनका शब्दाडम्बर हमें व्याकुल करता है, हमारे पूर्वज क्यों महत्त्वपूर्ण हैं जानने के लिए सुनें

9.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 9 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५०३ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  9 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५०३ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां

समय :५:३४ प्रातः 


आचार्य जी कहते हैं कि हम सकारात्मक चिन्तन करें ताकि हमारा उत्साह वृद्धिंगत हो सके इष्ट पर आश्रित रहें क्योंकि वह मार्ग सुझा देता है

भारतीय मनीषा की यह विशेष उपलब्धि रही है कि  हमारे ऋषियों ने केवल भौतिक पक्षों पर नहीं, अपितु आत्मा, ब्रह्म, जीवन का लक्ष्य, धर्म, कर्म और मोक्ष जैसे सूक्ष्म विषयों पर गहन और अद्भुत चिन्तन किया। उनके चिन्तन का मूल यह था कि मनुष्य अपने अस्तित्व को समझे


बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥

साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥4॥



एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥

नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥1॥


, आत्मा और शरीर के भेद को जाने तथा जीवन को केवल उपभोग का साधन न मानकर साधना का क्षेत्र माने,शरीर को यन्त्र न मानकर वरदान माने । ब्रह्म को शाश्वत और जगत् को नश्वर मानते हुए, उन्होंने कर्म के अनिवार्य फल, समत्व की भावना और अंततः मोक्ष की प्राप्ति को जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य स्वीकारा l

 इस प्रकार का चिन्तन विश्व में एक अनूठा योगदान है, जिससे योग, वेद, उपनिषद्, आयुर्वेद आदि जीवनदायिनी परम्पराएं विकसित हुईं। ऐसा अद्भुत है हमारा सनातन धर्म l 

यह सनातनत्व जिनके भीतर प्रविष्ट है वो आनन्द में हैं जिनका जन्म भारत में हुआ है उन्हें  गर्व करना चाहिए कि उनका जन्म  भारत, जो ईश्वर का वरदान है, में हुआ है


आगामी अधिवेशन हमारे कार्य और व्यवहार का एक आयोजन है यह निराश हताश भ्रमित भयभीत समाज, जिसे हम स्वयं  से पृथक नहीं मानते हम अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर सामाजिक कल्याण को अपना कर्तव्य मानते हैं  और उसका सुख-दुःख,उत्थान-पतन हमारी संवेदना में समाहित रहता है,में आशा का आलोक संचारित करेगा। उसे यह अनुभूति कराएगा कि इस कलियुग में सत्कर्म अत्यन्त आवश्यक हैं और संगठित रहना भी अनिवार्य है

स्व०भैया अजीत पांडेय जी  बैच १९७५ के परिवार  को विशेष संबल देने की आवश्यकता है इस पर ध्यान दें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उमाशंकर पांडेय जी, श्याम जी का उल्लेख क्यों किया भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी भैया पंकज जी आदि  के नाम क्यों लिए जानने के लिए सुनें

8.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 8 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५०२ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  8 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५०२ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


संसार अत्यन्त अद्भुत है जहां अनेक भ्रान्तियां व्याप्त हैं

कबीरदास कहते हैं 

चलती को गाड़ी कहै नगद माल को खोया 

रंगी को नारंगी कहै देख कबीरा रोया

(इसी को फिल्म जागते रहो के गाने जिंदगी खाब  है में इस तरह कहा गया है 

रंगी को नारंगी कहे बने दूध को खोया 

चलती को गाड़ी कहे देख कबीरा रोया)

और इस संसार में आवागमन की लीला अनवरत रूप से चलती रहती है जहां जीव सतत जन्म-मरण के चक्र में परिणत होता रहता है।

 मनुष्य  तो और भी अधिक अद्भुत है सांसारिक प्रवृत्तियों में निरन्तर रत रहने के कारण वह  अपने को ही संसार समझने लगता है वह अपनी अंतर्निहित शक्तियों और संभावनाओं के बोध से विमुख हो जाता है। तथापि, जब वह आत्मनिरीक्षण द्वारा अपने वास्तविक स्वरूप का साक्षात्कार करता है, तब आत्मबोध की स्थिति उत्पन्न होती है। यह आत्मबोध ही उसे बाह्य संकटों और जटिल परिस्थितियों से उबरने के लिए समाधान की दिशा में प्रवृत्त करता है। आत्मबोध, वस्तुतः, समस्याओं के पारमार्थिक निवारण का मूल आधार बन जाता है। हमें अपने चिन्तन पक्ष को सुदृढ़ रखना है किन्तु कर्म से विरत नहीं होना है

हमारी युगभारती संस्था का ओरछा में अधिवेशन होने जा रहा है  जिसमें हम पूरी तत्परता से जुट जाएं  जिससे समाज और राष्ट्र लाभान्वित हो सके 

युगभारती की परिकल्पना है कि हमारे भ्रमित भयभीत सनातनधर्मी जन शक्ति सामर्थ्य से युक्त हो जाएं

 आचार्य जी प्रतिदिन हमें पं दीनदयाल की साधना का स्मरण कराते हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने  भैया प्रो नरेन्द्र शुक्ल जी,भैया हिमांशु जी, भैया अश्विनी जी आदि के नाम क्यों लिए, साकल्य की किस कविता का उल्लेख हुआ, सिपाही ने किसको डंडा मारा जानने के लिए सुनें

7.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 7 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५०१ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धाः

वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम्।

नासौ धर्मो यत्र न सत्यमस्ति

सत्यं न तद्यच्छलमभ्युपैति॥

वह सभा, सभा नहीं, जिसमें कोई वृद्ध न हो।वे वृद्ध, वृद्ध नहीं जो धर्म की बात नहीं बोलते।वह धर्म, धर्म नहीं, जिसमें सत्य न हो। वह सत्य, सत्य नहीं जो कपटपूर्ण हो


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  7 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५०१ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


सत्य का आधार लेकर हम सनातनधर्मी जब किसी कार्य को करते हैं तो उसमें साधन नहीं खोजते साध्य की आराधना में साधना का आधार लेते हैं

सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥

बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥3॥

हम सनातनधर्मी यह भी मानते हैं कि संसार की समस्त वस्तुएँ परमात्मा से व्याप्त हैं अतः मनुष्य को त्यागभाव से उनका उपभोग करना चाहिए। यह त्याग केवल भौतिक वस्तुओं का नहीं, अपितु आसक्ति और स्वामित्व की भावना का भी है। मनुष्य को चाहिए कि वह लोभ और संग्रह की प्रवृत्ति से दूर रहकर, ईश्वर द्वारा प्रदत्त संसाधनों का संयमित और न्यायसंगत उपयोग करे। सनातन धर्म में यह विश्वास है कि जब व्यक्ति त्याग और संतुलन के साथ जीवन यापन करता है, तो वह न केवल आत्मिक उन्नति प्राप्त करता है, बल्कि समाज और प्रकृति के साथ भी समरसता स्थापित करता है हमारे जीवन के ऐसे अनेक मार्गदर्शक सिद्धांत हैं।

भगवान् राम का जीवन त्यागमय इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने निजी सुख, अधिकार, और सहज सुविधाओं का त्याग कर धर्म, समाज और मर्यादा के लिए जीवन भर तप और संघर्ष किया। यशस्वी जयस्वी  राजा दशरथ के घर उनका जन्म हुआ किन्तु जनकल्याण को सर्वोपरि मानते हुए, अपने व्यक्तिगत जीवन के सुख दुःख को  उन्होंने गौण कर दिया।इस प्रकार भगवान् राम का संपूर्ण जीवन आत्मनिग्रह, कर्तव्यपरायणता और समाज हेतु त्याग का उज्ज्वल आदर्श है, जो उन्हें ‘त्यागमूर्ति’ बनाता है।उनका पूजनीय पक्ष वनगमन से प्रारम्भ होता है l इसी प्रकार भगवान् कृष्ण का जीवन है l 

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।


धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।

भारत पर अनेक घटाटोप आते रहे हैं इन संघर्षों में हमारी शक्ति बुद्धि तप कौशल अनेक जातियों को अपने में समाहित करता रहा है

 धीरे धीरे हम साधना से विमुख होते गए और साधनों का आश्रय लेने लगे जिस कारण हमें हानि पहुंची

युगभारती संस्था के माध्यम से हम साधना की ओर उन्मुख होने का प्रयास कर रहे हैं हम  राष्ट्र के प्रति निष्ठावान् और समाजोन्मुखी होने का प्रयास कर रहे हैं  

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आगामी अधिवेशन के विषय में क्या बताया सत्यनारायण व्रत कथा की चर्चा क्यों की पद्मपुराण आदि का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें

6.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 6 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५०० वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  6 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५०० वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


भगवान् राम द्वारा सम्पन्न की गई दीर्घ यात्रा केवल एक भौगोलिक गमन नहीं था, अपितु वह एक गहन सांस्कृतिक, सामाजिक तथा अध्यात्मिक पुनरुत्थान की प्रक्रिया थी। इस यात्रा के माध्यम से विभिन्न स्थलों की सुप्त शक्तियों को जाग्रत कर, उन्हें सजग, संयोजित एवं सक्रिय रूप में प्रतिष्ठित किया गया, जिससे अधर्म की प्रवृत्तियाँ स्वयं शमित हो सकें। यही प्रक्रिया संगठनोन्मुख जीवन की अभिव्यक्ति है, जहाँ सामूहिक चेतना एक विराट् उद्देश्य से संयुत होकर, समष्टि के कल्याण हेतु सन्नद्ध होती है। भगवान् राम का यह संकल्प ही संगठन का दार्शनिक व सांस्कृतिक तात्पर्य प्रतिपादित करता है। हमारे युगभारती संगठन का उद्देश्य इससे पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है  संगठन का आधार प्रेम और विश्वास है यह प्रेम और विश्वास हमारे भीतर उतना ही होगा जितना हमारे भीतर आत्मविश्वास होगा और आत्मविश्वास बाह्य विकारों से वृद्धिंगत नहीं होता इसके लिए हमें विकारों से दूर होना होगा प्रातःकाल जागरण अत्यन्त आवश्यक है सदाचारी वृत्तियां अनिवार्य हैं इन्हीं सदाचारी वृत्तियों में ये सदाचार संप्रेषण भी आते हैं आचार्य जी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं तो हम लाभान्वित होने का प्रयास भी करें 

प्रेम आत्मीयता के साथ अनुशासन जब संयुत होता है तो सुखद व्युष्टि प्राप्त होती है जो जितना कर्म करेगा उसका उसी प्रकार प्रभाव होगा हम स्वार्थरत जनों का बृहत् समूह करेंगे तो इससे उत्तम  लक्ष्य बाधित होगा इस कारण हमें इस ओर भी ध्यान देना होगा हम रामत्व के अंशांश को अपने अन्दर प्रविष्ट करा ही सकते हैं प्रेम आत्मीयता का वही स्वरूप जैसा रामराज्य मे था हमारी संस्था युगभारती में आवश्यक है जिसके माध्यम से हम कार्यक्रमों को करके अपने सनातन धर्मी राष्ट्र-भक्त समाज को यह बताना चाहते हैं कि उन्हें  भ्रमित भयभीत होने की आवश्यकता नहीं हम उनके रक्षक हैं 


दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥

सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥1॥


रामराज्य' में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब लोग परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति में तत्पर रहकर अपने अपने धर्म का पालन करते हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बारावफात का उल्लेख क्यों किया बन्दर क्या कर रहे थे रात दस बजे किसने आचार्य जी को फोन किया जानने के लिए सुनें

5.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 5 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४९९ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 यह देश यहाँ पर सब सबके हित जीते हैं

परहित में विष का प्याला हँसकर पीते हैं,

यह देश यहाँ पर शौर्य शक्ति आभूषण है

एक ही बाण से धुँवा हुए खर दूषण हैं


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  5 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४९९ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


भारतीय संस्कृति में गहन आध्यात्मिकता अन्तर्निहित है  भारत एक ऐसा दिव्य स्थान है जहाँ सत्, रजस् और तमस् का संतुलन कर जीवन के रहस्य उद्घाटित किए गए। यह वह भूमि है जहाँ जड़ में चेतन का अनुभूति-सम्पन्न चिन्तन विकसित हुआ, असार संसार में सार का विवेचन हुआ।यह देश कर्तव्यप्रधान है जहाँ धर्म केवल पूजा न होकर आचरणमूलक है। यहां संयम और संतुलित जीवन ही श्रेष्ठता का मापदंड बना। यहाँ चिन्तन की मूल प्रवृत्ति सबके कल्याण में समाहित है, आत्महित में  ही परहित का समन्वय है। 

संतुष्टि यहाँ की अंतर्निहित सम्पदा है और त्यागमय तपस्या इसका वास्तविक वैभव है। यह देश परहित को सर्वोपरि रखता है, जहाँ अपने लिए नहीं, सबके लिए जीवन जिया जाता है। शौर्य और पराक्रम इसके आभूषण हैं और आज की परिस्थितियों को देखते हुए अत्यन्त आवश्यक हैं, शौर्य प्रमंडित अध्यात्म से हम राष्ट्रभक्त अछूते न रहें  क्योंकि यह अनीति का विनाश करने में समर्थ है और हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक है  संसार को संसार की दृष्टि से देखना आवश्यक है 

जब हम अस्ताचल देशों को देखकर भ्रमित हो गए तो अपने सनातन धर्म के विराट् स्वरूप के दर्शन से वञ्चित हो गए अतः हम अपना भय भ्रम त्यागें सनातन धर्म को गहराई से जानें अपने लक्ष्य को सदैव स्मृतियों में रखें लक्ष्य है वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः


अपने स्वदेश की शक्ति शौर्य को पहचानो

अपनी असली इतिहास-प्रथा को भी जानो

मानो अपने वेदों उपनिषदों का दर्शन

जानो अपने अन्तस्तत्वों का आकर्षण ||


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बैरिस्टर साहब को क्या पत्र लिखा था जानने के लिए सुनें

4.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 4 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४९८ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  4 सितंबर 2025 का

 सदाचार संप्रेषण

  *१४९८ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


हम युगभारती सदस्यों की साधना, जो राष्ट्र-निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व के उत्कर्ष की दिशा में उन्मुख है, केवल विचारों और भावनाओं में सीमित न रहकर, कर्म के माध्यम से प्रतिफलित होनी चाहिए। उदाहरण के लिए कल कानपुर में बैठक है तो  आगामी अधिवेशन की आयोजन समिति के सदस्यों को उस बैठक में अवश्य पहुंचना चाहिए l यदि परमेश्वर द्वारा प्रदत्त यह भारत के भविष्य निर्माण की साधना केवल मानसिक स्तर पर ही रह जाए और व्यवहार में प्रकट न हो, तो वह सिद्धि तक नहीं पहुँच पाती, जिससे साधक निराश और हताश हो सकता है। इसलिए, बाधाओं के बावजूद, हम राष्ट्र-सेवकों को साधना का निरंतर परिपालन करना चाहिए, जिससे यह हमारे जीवन में स्थायी रूप से स्थापित हो सके और हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर हो सकें।

सच्चे राष्ट्रसेवक का चिंतन शरीर की स्थिति से नहीं, अपितु आत्मा की प्रेरणा से चलता है। प्रेम आत्मीयता हमारे लिए अनिवार्य है राष्ट्रधर्म हमारे लिए साधना है राष्ट्र की भावना केवल उत्सवों या मंचों तक सीमित न रहे, अपितु जीवन की अंतिम सांसों तक चेतना में बसी रहनी चाहिए। जिस प्रकार डा हेडगेवार के जीवन में अंतिम सांसों तक उनकी चेतना में  वह साधना बसी रही

डा. हेडगेवार जी अपने जीवन के अंतिम समय में जब अस्वस्थ थे, 

 उनके लिए Lumbar puncture (LP) अथवा spinal tap नामक चिकित्सीय प्रक्रिया की जाती थी इस प्रक्रिया में कमर के निचले भाग में एक पतली सुई डाली जाती है ताकि cerebrospinal fluid (CSF) का नमूना एकत्र किया जा सके।  ( CSF वह तरल है जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को घेरता और संरक्षित करता है।)

तब भी उनकी वाणी से राष्ट्र-धर्म के स्वर नहीं थमे। उन्होंने अपने जीवन की अंतिम अवस्था में भी यही उद्घोष किया — *"भारत हिन्दू राष्ट्र है।"* यह कथन मात्र शब्द नहीं, बल्कि उनके जीवन भर के चिंतन, साधना और समर्पण का सार था।


जब वे रोगशय्या पर थे, उस समय स्वयं श्री गुरुजी (माधव सदाशिव गोलवलकर) उनकी सेवा में तत्पर थे।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विषय में और क्या बताया जानने के लिए सुनें

3.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 3 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४९७ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 प्रेम का प्रवाह शौर्य-शक्ति की उमंग संग

देशभक्ति की विभक्ति संयम के साथ हो,

गात हो सशक्त तप्त लौह के समान शुभ

बात-बात में स्वदेश चिन्तन का माथ हो,

एक माँ के पूत हम एक कुल वंश एक

एक लक्ष्य भक्ष्य एक निष्कलंक पाथ हो

साथ हो न एक क्षण कामी लोभी लोलुप का

 मन में बसा सदैव अवध का नाथ हो ॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  3 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४९७ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


सा विद्या या विमुक्तये


वही विद्या वस्तुतः *सार्थक* एवं *श्रेेष्ठ* मानी जाती है, जो प्राणी को *बंधन* (अज्ञान, मोह, भ्रम, आसक्ति आदि) से विमुक्त करे।  

अर्थात् 

वह विद्या ही प्रशस्त एवं ग्राह्य मानी जाती है, जो जीवात्मा को भवबंधन की अविद्यामूलक संकुचित अवस्थाओं से उन्मुक्त कर चैतन्य के परिमार्जित स्वरूप की ओर अग्रसर करती है। जो ज्ञान केवल लौकिक प्रपंच में कुशलता दे, किन्तु आत्मचिन्तन की दिशा न दे, वह अधूरा है।  

 मुक्ति हेतु जो ज्ञान हो, वही विद्या है,  जो यह स्पष्ट करे कि हम त्यागपूर्वक उपभोग करें, लालच न करें, गुरु और शिष्य के बीच किसी भी नकारात्मक ऊर्जा को दूर करे अन्यथा वह केवल जानकारी (सूचना) भर है, न कि आत्मोन्नयन का साधन।

 आज के संदर्भ में कह सकते हैं कि समाज को गरीबी, विषमता, भेदभाव से मुक्त करना ही विद्या का वास्तविक उद्देश्य है। ऐसा अद्भुत है हमारे सनातन धर्म का चिन्तन

इस पर हमें विचार करना ही होगा ताकि हमारा व्यवहार स्वाभाविक रहे और हम लोग ऐसा कर भी रहे हैं हम लोग अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक उत्तरदायित्वों को निभाते हुए समाजोन्मुखी चिन्तन कर रहे हैं और उसी विलक्षण चिन्तन के लिए कार्यरत रहते हैं

हमारा आगामी अधिवेशन इसी का प्रदर्शन है ताकि समाज को दिखे कि गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए भी उसके लिए  कुछ किया जा सकता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शुभेन्द्र जी, भैया न्यायमूर्ति सुरेश जी, भैया न्यायमूर्ति तरुण सक्सेना जी, भैया डा अवधेश तिवारी जी के नाम क्यों लिए, सैन्य स्वभाव क्या है जानने के लिए सुनें

2.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 2 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४९६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  2 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४९६ वां* सार -संक्षेप


बढ़े चलो बढ़े चलो !


कभी उदास हो नहीं

कभी निराश हो नहीं

कभी हताश हो नहीं

विरत प्रयास हो नहीं

कि श्रृंग पर चढ़े चलो || बढ़े चलो बढ़े चलो..

सुभाव को तजो नहीं

कुभाव को भजो नहीं

प्रभाव से हटो नहीं

अभाव से नटो नहीं

कि संगठन गढ़े चलो ll

बढ़े चलो बढ़े चलो..


यह सदाचार वेला हमारे अंतःकरण में सुप्त सामर्थ्य के उद्दीपन हेतु एक सुदृढ़ अधिष्ठाता  है। यह केवल नैतिक अनुशासन की पुनर्स्थापना नहीं, अपितु हमारी अंतर्निहित शक्तियों की साक्षात् अनुभूति का एक प्रामाणिक साधन भी है। इस माध्यम से हम अपने भीतर समाहित दिव्य तत्त्व को स्पर्श कर, आत्मबोध एवं उत्तरदायित्व की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं

तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्‌।

तत् त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥



साधक सूर्यदेव (पूषन्) से निवेदन करता है..


हे पूषन्, आपके तेजस्वी, स्वर्णमय आवरण (हिरण्मय पात्र) ने सत्य के मुख को ढक रखा है। हम सफलता में  इतने मग्न हो जाते हैं  कि सत्य को देखना नहीं चाहते अब उस परम सत्य को देखने की मेरी जिज्ञासा है। आप कृपया उस यवनिका को हटा दें, ताकि मैं सत्यधर्म के पथ पर चलने हेतु उस ब्रह्मस्वरूप सत्य का दर्शन कर सकूं।

यहां "हिरण्मय पात्र" उस माया या अज्ञान का प्रतीक है जो परम सत्य को हमारी दृष्टि से ओझल कर देता है।


साधक, सूर्य को माध्यम बनाकर ब्रह्म से प्रार्थना करता है कि वह अपनी बाह्य प्रकाश-छाया को हटाकर अपने वास्तविक, सौम्य, कल्याणकारी स्वरूप को प्रकट करे, जिससे साधक उस परम पुरुष (ब्रह्म) का साक्षात्कार कर सके और अनुभव करे— *"वह मैं ही हूँ।"*


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आगामी अधिवेशन की चर्चा की 

कम समय में व्यवस्थित रूप से अपनी योजनाओं को प्रस्तुत करना स्वयं को तो शक्ति देता है अपनों को भी उत्साहित करता है इस अधिवेशन की तरह के कार्यक्रम हमें शक्ति सामर्थ्य बुद्धि विवेक विचार कौशल शान्ति संतोष देते हैं 

अब हम इस अधिवेशन पर अपना ध्यान केन्द्रित करें 

आचार्य जी ने बताया कि भैया प्रमोद पांडेय जी के पिता जी अब हमारे बीच में नहीं है 


और 

शुक्रवार को होने वाली किस बैठक की चर्चा हुई  भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

1.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 1 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१४९५ वां* सार -संक्षेप

 राम-राम रटु राम-राम सुनु, मनुवाँ सुवा सलोना रे।

तन हरियाले बदन सुलाले, बोल अमोल सुहौना रे।



प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  1 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१४९५ वां* सार -संक्षेप

स्थान :सरौंहां 



आचार्य जी कहते हैं भगवान् श्रीराम का नाम केवल एक शब्दमात्र न होकर, दिव्य चेतना का सघन संप्रेषण है, जिसका प्रभाव वर्णनातीत एवं चमत्कृत कर देने वाला होता है। इस नाम का जप, साधक के अंतःकरण में सुप्त शक्तियों का जागरण करता है, जिससे उसमें आत्मबल, प्रज्ञा एवं विवेक की उद्भावना होने लगती है। यह नाम भौतिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक क्षेत्रों में संतुलन स्थापित करने का माध्यम बनता है, जिससे साधक की चेतना क्रमशः परिष्कृत होती चली जाती है। अतः श्री राम नाम का स्मरण केवल धार्मिक क्रिया नहीं, अपितु आत्मविकास का दिव्य साधन है।


ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ। पायउ अचल अनूपम ठाऊँ॥

सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥


ध्रुव ने ग्लानि से हरि नाम को जपा और उसके प्रताप से अचल अनुपम स्थान प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की । इसी प्रकार हनुमान ने पवित्र नाम का स्मरण करके राम को अपने वश में कर रखा है।


राम राम रमु ,राम राम रटु, राम राम जपु जीहा।

रामनाम-नवनेह-मेहको,मन! हठि होहि पपीहा ॥ १ ॥

इस प्रकार भगवान् राम के नाम का स्मरण करके हम अपनी सुप्त शक्तियों को जाग्रत करें

भगवान् राम के कृत्य प्रेरित करने वाले हैं उन्होंने बहुत कुछ त्यागा किन्तु धनुष बाण नहीं त्यागे

कागर-कीर ज्यौं भूषन-चीर सरीर लस्यौ तजि नीर ज्यौं काई।

मातु-पिता प्रिय लोग सबै सनमानि सुभाय सनेह सगाई॥


संग सुभामिनि भाई भलो, दिन द्वै जनु औध हुतै पहुनाई।

राजिव लोचन राम चले तजि बाप को  राज बटाऊ की नाई॥

हम भी भगवान् राम की तरह अपने धनुष बाण नहीं त्यागें

हम सदैव शौर्य से प्रमंडित अध्यात्म की ही अनुभूति करें 

हम युगभारती के कर्णधार ऐसा संकल्प करें कि हम अपने व्यक्तिगत शरीर संबंधी प्रयोजनों की पूर्ति के लिए कभी याचन नहीं करेंगे किन्तु यदि लोकहित, धर्मरक्षा या परमार्थ हेतु आवश्यकता होगी तो  बिना किसी संकोच अथवा लज्जा के अपने कर्तव्य को निभाने हेतु तत्पर रहेंगे। ऐसे परमार्थ कार्य में याचन भी सम्मान का ही भाग बन जाता है। यदि हम इस अभ्यास में आएंगे तो समाज की सेवा करने में और अधिक समर्थ होंगे


मरूँ पर माँगू नहीं, अपने तन के काज |

 परमारथ के कारणे, मोहिं न आवै लाज |

-कबीर दास

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विजय गुप्त जी भैया अभय गुप्त जी  भैया वीरेन्द्र जी के नाम क्यों लिए जानने के लिए सुनें