प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी /दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 31 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५५५ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ३७
जो कार्य करें उसे प्रभावपूर्ण ढंग से करें
हमारा जन्म जिस देश में हुआ है, वह भारत केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, अपितु समस्त विश्व के लिए प्रकाशपुंज के समान है। भारत ने सदैव से समस्त मानवता को धर्म, शांति, सहिष्णुता और करुणा का मार्ग दिखाया है। भारतीय संस्कृति की मूल भावना *वसुधैव कुटुम्बकम्* पर आधारित है। इस दृष्टिकोण से भारत ने किसी सीमित जाति, वर्ग या राष्ट्र के कल्याण की नहीं, अपितु सम्पूर्ण सृष्टि के मंगल की कामना की है। यही कारण है कि भारत की सोच संकुचित नहीं, अपितु सार्वभौमिक और सर्वकल्याणकारी रही है। ऐसी उदात्त भावना वाला हमारा यह देश निःसंदेह विश्व का पथप्रदर्शक है।हमारा सनातनधर्मी समाज, जो अखंड हिन्दू राष्ट्र के स्वरूप का विचार करता है,जिसे एकांगी अध्यात्म से इतर शौर्य प्रमंडित अध्यात्म उचित लगता है,अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन के पश्चात् आनन्ददायी कल्याणकारी शक्तिमय अभिव्यक्ति करने वाला समाज रहा है
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम सेवा करें किन्तु वह आत्मदर्शन से दूर न हो कार्य करें उसमें बहुत अधिक लिप्त न हों यही आत्मबोध है जिसका वर्णन हमारे ग्रंथों में बहुत विस्तार से है
जैसे बृहदारण्यक उपनिषद् में है
आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यः मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः......
यह उपनिषद् यजुर्वेद की शतपथ ब्राह्मण की शाखा से जुड़ा एक प्रमुख उपनिषद् है। यह उपनिषद् आत्मा, ब्रह्म, पुनर्जन्म, मोक्ष आदि विषयों पर गहन दार्शनिक चर्चा प्रस्तुत करता है। इसमें याज्ञवल्क्य,गार्गी आदि के संवाद हैं। यह आत्मा की खोज और ब्रह्म की प्राप्ति का मार्ग दिखाने वाला अत्यंत गूढ़ ग्रंथ है।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने स्वास्थ्य शिविर के लिए क्या परामर्श दिया एक खूंटे से बंधे रहने से क्या तात्पर्य है भैया पंकज श्रीवास्तव जी भैया मलय जी भैया अजय कृष्ण जी भैया नीरज कुमार जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें