31.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी /दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 31 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५५५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक  शुक्ल पक्ष नवमी /दशमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 31 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५५५ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ३७

जो कार्य करें  उसे प्रभावपूर्ण ढंग से  करें


हमारा जन्म जिस देश में हुआ है, वह भारत केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, अपितु समस्त विश्व के लिए प्रकाशपुंज के समान है। भारत ने सदैव से समस्त मानवता को धर्म, शांति, सहिष्णुता और करुणा का मार्ग दिखाया है। भारतीय संस्कृति की मूल भावना *वसुधैव कुटुम्बकम्*  पर आधारित है।  इस दृष्टिकोण से भारत ने किसी सीमित जाति, वर्ग या राष्ट्र के कल्याण की नहीं, अपितु सम्पूर्ण सृष्टि के मंगल की कामना की है। यही कारण है कि भारत की सोच संकुचित नहीं, अपितु सार्वभौमिक और सर्वकल्याणकारी रही है। ऐसी उदात्त भावना वाला  हमारा यह देश निःसंदेह विश्व का पथप्रदर्शक है।हमारा सनातनधर्मी समाज, जो अखंड हिन्दू राष्ट्र के स्वरूप का विचार करता है,जिसे एकांगी अध्यात्म से इतर शौर्य प्रमंडित अध्यात्म उचित लगता है,अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन के पश्चात् आनन्ददायी कल्याणकारी शक्तिमय अभिव्यक्ति करने वाला समाज रहा है

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम सेवा करें किन्तु वह आत्मदर्शन से दूर न हो कार्य करें उसमें बहुत अधिक लिप्त न हों यही आत्मबोध है जिसका वर्णन हमारे ग्रंथों में बहुत विस्तार से है

जैसे बृहदारण्यक उपनिषद् में है 

आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यः मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः......

यह उपनिषद् यजुर्वेद की शतपथ ब्राह्मण की शाखा से जुड़ा एक प्रमुख उपनिषद् है। यह उपनिषद् आत्मा, ब्रह्म, पुनर्जन्म, मोक्ष आदि विषयों पर गहन दार्शनिक चर्चा प्रस्तुत करता है। इसमें याज्ञवल्क्य,गार्गी आदि के संवाद हैं। यह आत्मा की खोज और ब्रह्म की प्राप्ति का मार्ग दिखाने वाला अत्यंत गूढ़ ग्रंथ है।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने स्वास्थ्य शिविर के लिए क्या परामर्श दिया  एक खूंटे से बंधे रहने से क्या तात्पर्य है भैया पंकज श्रीवास्तव जी भैया मलय जी भैया अजय कृष्ण जी भैया नीरज कुमार जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

30.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी / नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 30 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५५४ वां* सार -संक्षेप

 चलो प्रवीर देश के सघन गहन प्रचार हो


अखंड हिन्दू राष्ट्र के स्वरूप का विचार हो



प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक  शुक्ल पक्ष अष्टमी / नवमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 30 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५५४ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ३६


अहंकार को त्याग आपस में हम प्रेम और आत्मीयता का विस्तार करें 



हनुमान जी की प्रेरणा तथा महापुरुषों के तप, त्याग और साधना के फलस्वरूप जो हमारी युगभारती संस्था अस्तित्व में  है, वह केवल एक संस्था नहीं, अपितु एक उच्च आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और रचनात्मक चेतना का जीवंत स्वरूप है। इसका उद्भव साधारण सामाजिक प्रयोजन से नहीं, अपितु राष्ट्र,धर्म और मानवता की सेवा के दिव्य संकल्प से हुआ है।  हमारी इस संस्था ने दीनदयाल जी के अधूरे कार्यों को पूर्ण करने का प्रण किया है l  संघ की तरह हमने भी भारत देश को परम वैभव पर पहुंचाने का संकल्प लिया है l युगभारती मां भारती के मौन का स्वर है l  इस संस्था का वास्तविक स्वरूप वाणी और लेखनी से पूरी तरह व्यक्त नहीं किया जा सकता  यह अनुभव और आचरण का विषय है। भावना जब विश्वास बनकर खड़ी होती है तो परमात्मा सहायता करता ही है l युग भारती नाम की यह परिकल्पना इसलिए वर्णनातीत कही जा सकती है क्योंकि यह किसी एक आयाम में सीमित नहीं यह शिक्षा, स्वास्थ्य,स्वावलंबन, सुरक्षा आदि को समेटे हुए, समय की पुकार बनकर खड़ी है।

आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हमारे अन्दर शक्ति और भक्ति उत्पन्न हो l  अपने अस्तित्व का भान रखे बिना आपस में हम प्रेम और आत्मीयता का विस्तार करें ऐसा प्रेम जैसा भगवान् राम और भरत में था 

मिलनि प्रीति किमि जाइ बखानी। कबिकुल अगम करम मन बानी॥

परम प्रेम पूरन दोउ भाई। मन बुधि चित अहमिति बिसराई॥1॥


प्रेम और मिलन की अनुभूति को कैसे शब्दों में बताया जा सकता है? यह विषय तो कवियों की कल्पना, मन और वाणी की भी पहुँच से परे है। दोनों भाई (राम और भरत) परस्पर इतने गहरे प्रेम से परिपूर्ण हैं कि उन्होंने अपने मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार तक को भूलकर एक-दूसरे में पूर्ण समर्पण कर दिया है। यह प्रेम सांसारिक नहीं, अपितु आत्मिक और दिव्य स्तर का है, जहाँ व्यक्ति अपने अस्तित्व का भी भान नहीं रखता, केवल प्रेम ही रह जाता है।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भारती जी,कालिका जी, बूजी आदि का उल्लेख क्यों किया, अलादीन के चिराग की चर्चा किस संदर्भ में हुई जानने के लिए सुनें

29.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी/ अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 29 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५५३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक  शुक्ल पक्ष सप्तमी /अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 29 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५५३ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ३५

संघटित रहने का प्रयास करें


मनुष्य मूलतः एक सामाजिक एवं संबद्ध प्राणी है। वह न तो शारीरिक रूप से, न ही मानसिक अथवा आध्यात्मिक रूप से पूर्णतः अकेला रह सकता है। यहाँ तक कि जब कोई साधक गिरिकंदराओं में जाकर एकांत साधना करता है, तब भी वह वास्तव में अकेला नहीं होता। वह अपने भीतर स्थित आत्म के साथ अर्थात् परमात्मा के साथ संवाद करता है। वह अपने चिंतन,मनन, ध्यान,धारणा, निदिध्यासन और भावों के सहचर्य में होता है।


इस सत्य के आधार पर स्पष्ट होता है कि संघटन  (संगठन )परमात्मा का एक महत्त्वपूर्ण प्रसंग है और मनुष्य के अस्तित्व का आवश्यक तत्त्व है। इसका अर्थ केवल बाह्य सामाजिक एकता नहीं, अपितु आत्मिक, वैचारिक और भावनात्मक समन्वय भी है।  

जब व्यक्ति अपने भीतर भी सह-अस्तित्व को अनुभव करता है, तब वह समाज में भी सह-अस्तित्व, सहयोग और समरसता को आगे बढ़ाता है।


जब कोई संघटन को त्यागकर विघटन की ओर बढ़ता है, तो उसका मूल कारण होता है 'मैं' का भाव — जैसे कि मैं ही यह कार्य कर रहा हूँ, यह मेरा धन है, मेरा श्रम है। यह अहंकार ही विभाजन की जड़ बनता है। इसके विपरीत यदि यह भाव रहे कि सब कुछ भगवान् की प्रेरणा से हो रहा है, मैं तो मात्र एक माध्यम हूँ, तब संघटन की भावना दृढ़ होती है।

इस प्रकार, संघटन केवल कार्य का माध्यम नहीं, बल्कि जीवन का दार्शनिक एवं आध्यात्मिक आधार है।  

यह हमें आत्मकेंद्रित नहीं, व्यापक दृष्टिकोण और सहभाव की ओर ले जाता है।  

जहाँ  भक्ति के पंथ पर चलते हुए संघटन होता है, वहीं विकास, सुरक्षा, शांति और समृद्धि संभव होती है। युगभारती इसी कारण महत्त्वपूर्ण है l तुलसीदास जी ने भी संघटन को महत्त्व दिया क्योंकि उस समय की विषम परिस्थितियों में हम सनातनधर्मियों को संघटित रहने की अत्यन्त आवश्यकता थी l

संगठन का उत्तरदायित्व जिस व्यक्ति पर होता है, उसमें अत्यंत गहराई, धैर्य और दूरदृष्टि होनी चाहिए। उसे केवल लोगों को एकत्र करना ही नहीं आता, बल्कि उनकी योग्यताओं को पहचानकर उन्हें उचित दिशा देना भी आता है। संगठनकर्ता को सहिष्णु, समन्वयी और प्रेरक होना चाहिए, ताकि वह भिन्न-भिन्न प्रवृत्तियों के लोगों को एक लक्ष्य की ओर अग्रसर कर सके। ऐसा व्यक्ति ही संगठन को स्थायित्व और शक्ति प्रदान कर सकता है।भगवान् राम ने यही किया l यही हमें करना है क्षेत्र कोई भी हो l 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया नीरज जी भैया राघवेन्द्र जी भैया वीरेन्द्र जी का उल्लेख क्यों किया डा श्यामबाबू श्री लोहिया जी (LML) की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

28.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 28 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५५२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक  शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 28 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५५२ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ३४

जो परमार्थ में लगे हैं वे प्रपंच से मुक्त हैं इस कारण प्रातःकाल हमें परमार्थ की अनुभूति करनी चाहिए और उसकी अभिव्यक्ति में आनन्द का अनुभव होना चाहिए



दरनि धामु धनु पुर परिवारू। सरगु नरकु जहँ लगि ब्यवहारू॥

देखिअ सुनिअ गुनिअ मन माहीं। मोह मूल परमारथु नाहीं॥4॥


जो कुछ भी इस संसार में है — घर, परिवार, धन, भूमि, सुख-सुविधाएं — और जो कुछ हम अनुभव करते हैं, वह सब मोह को उत्पन्न करने वाला है। इनसे परम लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। अतः इनमें आसक्ति रखकर जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य नहीं पाया जा सकता।


जब हम संसार में निवास करते हैं, तो स्वाभाविक रूप से उसके व्यवहारों, संबंधों और गतिविधियों में लिप्त हो जाना सामान्य बात है। परंतु यह लिप्तता यदि सेवा, त्याग, समर्पण,चिन्तन जो चिन्ता का निरसन करने में सक्षम रहता है, स्वाध्याय और लेखन जैसे सत्कर्मों की दिशा में हो, तो वह दिव्यता धारण कर लेती है। यह  ईश्वर की कृपा ही है कि हमें ऐसे कार्यों में प्रवृत्त होने का अवसर मिला है।


हमने शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलम्बन और सुरक्षा नामक महत्त्वपूर्ण मूल्यों को धारण करने का व्रत लिया है। यह व्रत समाज के कल्याण और राष्ट्र की उन्नति के लिए है।  विद्या और अविद्या दोनों की समन्वित समझ से ही पूर्ण जीवन संभव है इस प्रकार का जीवनदृष्टिकोण ही सनातन परम्परा के अनुरूप है, जिसमें संसार में रहकर भी सार की ओर उन्मुख रहने की प्रेरणा दी गई है।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बैरिस्टर साहब का उल्लेख क्यों किया आगामी रविवार को होने जा रहे स्वास्थ्य शिविर के विषय में क्या परामर्श दिया जानने के लिए सुनें

27.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 27 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५५१ वां* सार -संक्षेप

 उठो स्वदेशभक्त जागकर बढ़ो

स्वकर्ममय स्वधर्म पाठ को पढ़ो।

हवा विषाक्त हो रही समाज की

खबर बड़ी खराब सुबह आज की

हर तरफ नसीहतों का शोर है

कर्म के लिए प्रमाद घोर है

सीढ़ियाँ गिनो न बैठ उठ चढ़ो ||१||


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक  शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 27 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५५१ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ३३


आधुनिक युग में शक्ति के संदर्भों को भावी  पीढ़ी को समझाने की योजना बनाएं



शक्ति सनातन धर्म की मूलाधार परम्परा है। यह केवल बाह्य सामर्थ्य नहीं, अपितु आत्मिक बल की प्रतीक भी है। शौर्य शक्ति का ही जाग्रत रूप है, जिससे युक्त आध्यात्मिक व्यक्ति न केवल स्वयं की, अपितु समस्त समाज की रक्षा करते हुए सम्पूर्ण सृष्टि में आश्वासन और सुरक्षा का भाव प्रसारित करता है। 


शक्ति की आराधना भारत में आदिकाल से होती रही है  विविध रूपों में, विशेषतः मातृशक्ति के रूप में। "भारत माता" का संबोधन उसी सनातन भाव का प्रकट रूप है। हम उसके वे पुत्र हैं जो उसके गौरव, मर्यादा और रक्षा का भार कंधों पर लेते हैं, न कि कुपुत्र के समान अज्ञानी,कायर या लोभी बनकर समाज पर बोझ बनते हैं।


शाक्त परम्परा इसी मातृशक्ति की उपासना है। श्रीरामकृष्ण परमहंस इसी परम्परा में सिद्ध महापुरुष थे, जो मां काली के साथ आत्मिक संवाद करते थे। उन्होंने शक्ति के महत्त्व को विवेकानन्द जैसे तेजस्वी शिष्य के माध्यम से जन-जन में प्रकट किया।


पूजा भाव भोग भाव में जब अवस्थित हो जाता है तो हम रावण हो जाते हैं

जिसकी परिणति  है

इक लख पूत सवा लख नाती।

तिह रावन घर दिया न बाती॥

शक्ति के उपासक भगवान् राम ने उसका समूल नाश कर दिया

हिन्दुत्व सार्वभौम संरक्षण का विश्वास दिलाता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने *राम की शक्ति -पूजा* पुस्तक  की चर्चा क्यों की, भैया अजय कृष्ण जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

26.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 26 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५५० वां* सार -संक्षेप

 हिंदु युवकों आज का युग धर्म शक्ति उपासना है ॥


बस बहुत अब हो चुकी है शांति की चर्चा यहाँ पर

हो चुकी अति ही अहिंसा सत्य की चर्चा यहाँ पर

ये मधुर सिद्धान्त रक्षा देश की पर कर ना पाए

ऐतिहासिक सत्य है यह सत्य अब पहचानना है ॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक  शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 26 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५५० वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ३२

शक्ति उपासना को अपना सिद्धान्त बनाएं


हमारे यहां दीर्घ काल तक सत्य, अहिंसा और शांति जैसे मधुर आदर्शों की चर्चा होती रही है, परंतु जब राष्ट्र और धर्म संकट में हों, तब केवल इन आदर्शों की बात करना व्यावहारिक नहीं रह जाता।यद्यपि ये सिद्धान्त अपने आप में महान् हैं, परन्तु जब देश पर आक्रमण होता है या धर्म पर संकट आता है, तब मात्र उपदेश से उसकी रक्षा नहीं हो सकती। 

इतिहास भी यह सिद्ध कर चुका है कि अत्यधिक सहनशीलता और  अहिंसा के कारण अनेक बार हमारी अस्मिता पर आघात हुआ है। इसीलिए अब समय आ गया है कि हम सनातन धर्म के अनुपालक युवक बहुमुखी शक्ति की उपासना करें शक्ति विकृत न करें अर्थात् उसका दुरुपयोग न करें शक्ति संचय को महत्त्व न देकर उसे व्यवहार में प्रदर्शित करें , अपने धर्म और देश की रक्षा हेतु सजग और सन्नद्ध हों, इतिहास के उन कटु सत्यों को पहचानें और उनसे सीख लें।

तुलसीदास जी ने भी इसी के लिए हमें प्रेरित किया उन्होंने भगवान् राम से धनुष बाण कभी नहीं छुड़वाया 

पद-कंजनि मंजु बनी पनहीं धनुहीं सर पंकज पानि लिए। लरिका सँग खेलत डोलत हैं, सरजू-तट चौहट हाट हिए॥ (कवितावली )


इसके अतिरिक्त रोगी और भोगी में आचार्य जी ने कैसे अन्तर स्पष्ट किया,डॉ संकटा प्रसाद जी और नसेड़ी का क्या प्रसंग है, कौन नकल करवा देता था,cocktail का उल्लेख क्यों हुआ, सोनिया गांधी ने किसे जेल में डलवा दिया था जानने के लिए सुने

25.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 25 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५४९ वां* सार

 उठो कि, शौर्य शक्ति का पुनः यजन करो, 

विभर्त शक्तिमंत्र का सतत भजन करो ।


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक  शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 25 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५४९ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ३१

साधना साधना के लिए करें न कि सिद्धि के लिए फल का व्यामोह तज कर्तव्य -पथ पर अग्रसर हों


हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म भारत की दिव्य भूमि पर हुआ है, जहाँ  भगवान् राम,भगवान् कृष्ण और भगवान् शिव ने लीलाएं की हैं। यह क्षेत्र सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत अद्भुत और पवित्र है हमें सुंदर शरीर, श्रेष्ठ वंश-गोत्र, सुशील मित्रों का संग  मिला है। हमारे जीवन में भोजन और प्रसन्नता के लिए सभी संसाधन भी सहज रूप से उपलब्ध हैं। यह सब ईश्वर की अनुकम्पा है, जिन्होंने यह सब प्रदान किया।


फिर भी, यह दुःखद है कि हम इन सबका मूल्य न समझते हुए अकारण दुःखी  रहें इसलिए जो कुछ हमें मिला है, उसके प्रति आभार प्रकट करते हुए जीवन को सार्थक दिशा में अग्रसर करना चाहिए।हमें सकारात्मक सोच रखनी चाहिए l राष्ट्र के आनन्दमय पक्ष का आनन्द उठाएं आत्मबोध को हम महत्त्व दें किन्तु शक्तिशोध को भूलें नहीं क्योंकि इस समय भी परिस्थितियां अत्यन्त विषम हैं l भारत के समस्यामय पक्ष का चिन्तन और  उसके समाधान के लिए प्रयास भी आवश्यक है किसी भी कार्य को समर्पित भाव से करें तो हमें विघ्न पता ही नहीं चलेंगे l


मनुष्य जन्म और दिव्य भरतखण्ड में, 

सुरम्य क्षेत्र राम श्याम शिव प्रखंड में, 

सुरूपमय शरीर वंश गोत्र सब प्रशम

सुसभ्य मित्रमंडली कोई न रंच कम,

उदारता स्वभाव में प्रभाव तोषमय, 

सुलक्ष्य अन्नकोष का आनन्द कोषमय, 

दिया परमपिता ने यह सभी प्रसन्न हो, 

कदर्यता को ओढ़ मूढ़ क्यों रहा है रो।


 इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विभास जी भैया डा मलय जी का उल्लेख क्यों किया अन्नप्राशन कार्यक्रम की चर्चा क्यों हुई प्रेमभूषण जी महाराज के स्वास्थ्य के विषय में आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

24.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 24 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५४८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक  शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 24 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५४८ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ३०


शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की महत्ता को समझें



इन सदाचार वेलाओं का मूल आधार यह है कि हम संसार से जुड़ते हुए भी उसमें न उलझें, बल्कि उसमें छिपे हुए सार अर्थात् सत्य, मूल्यों और उद्देश्य का चिन्तन करें।हमें संसार के साथ व्यवहार करते हुए, संबन्धों और दायित्वों को निभाते हुए, सत् की खोज करनी चाहिए।तो आइये प्रवेश करें  हमारे लिए अत्यन्त कल्याणकारी आज की वेला में


हमारा सनातन धर्म, जो कि अत्यन्त अद्भुत और महान् है, जीवन को आध्यात्मिक प्रगति की सीढ़ियाँ चढ़ाते हुए सर्वोच्च स्तर तक पहुँचाने में सक्षम है, दुर्भाग्यवश वह बेचारगी, हीनभावना और निष्क्रियता का शिकार हो गया l इसका एक कारण यह है कि हम शौर्य  से विमुख हो गए l

श्रीराम का जीवन शौर्य से युक्त अध्यात्म का अनुपम उदाहरण है। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के माध्यम से यह संदेश दिया कि सच्चा अध्यात्म वही है जो शौर्य से आलोकित हो जो अन्याय के विरुद्ध खड़ा हो, समाज की रक्षा करे और धर्म की स्थापना करे।

जब समाज में धर्म की हानि होती है, अधर्म बढ़ता है, तब शिवत्व का प्रवेश होना आवश्यक हो जाता है l

 हम केवल भक्तिभाव में लीन न हों, बल्कि संगठन, सेवा और शौर्य को भी अपने जीवन में स्थान दें। हम संसार के वैविध्य में आनन्द लें l यही सनातन धर्म का पूर्ण स्वरूप है जिसमें दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझने और सबके स्वास्थ्य व सुख की कामना करने की भावना भी विद्यमान है।  

यही है सनातन धर्म  वसुधैव कुटुम्बकम्  की जीवंत अभिव्यक्ति।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया प्रकृति की रमणीयता में जिन लोगों का मन सहज रूप से रमता है अर्थात् जो व्यक्ति प्रातःकाल सूर्य की लालिमा, वृक्षों की हरियाली, तृण और झाड़ियों, सरोवरों, नदियों, पर्वतों तथा समुद्र की सौंदर्यपूर्ण छटा में आनंद अनुभव करते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि वे धीरे-धीरे अध्यात्म की ओर उन्मुख हो रहे हैं।

भैया अरविन्द जी का उल्लेख क्यों हुआ वृक्ष किससे डर जाता है २ नवम्बर का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

23.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 23 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५४७ वां* सार -संक्षेप

 संत कहहिं असि नीति प्रभु श्रुति पुरान मुनि गाव।

होइ न बिमल बिबेक उर गुर सन किएँ दुराव॥ 45॥


 संत लोग ऐसी नीति कहते हैं और वेद, पुराण तथा मुनि आदि भी यही बतलाते हैं कि गुरु के साथ छिपाव करने से हृदय में निर्मल ज्ञान नहीं होता॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक  शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 23 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५४७ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २९

व्यक्ति से व्यक्तित्व बनने के मार्ग पर आज और अभी से चलना प्रारम्भ कर दें 


मनुष्य, एक जीव के रूप में, शारीरिक और मानसिक सीमाओं से बंधा हुआ  है, उसकी आयु, बल, सामर्थ्य आदि की सीमाएं  हैं। यह उसका "व्यक्ति" रूप है, जो ससीम अर्थात् सीमित है।


परंतु जब वही व्यक्ति अपने गुणों, विचारों, आचरण,सेवा,समर्पण और उद्देश्य के आधार पर विकसित होता है, तो वह "व्यक्तित्व" कहलाता है। यह व्यक्तित्व उसके भीतर निहित दिव्यता,प्रेम,आत्मीयता, सेवा, ज्ञान के कारण असीम हो सकता है।  वह समाज को प्रेरणा देता है, युगों तक प्रभाव डालता है हमारा शारीरिक अस्तित्व सीमित हो सकता है, परन्तु हमारे विचार, गुण आदि असीमित हो सकते हैं।

कहने का तात्पर्य है व्यक्ति ससीम है व्यक्तित्व असीम हो सकता है इसी कारण पं दीनदयाल उपाध्याय  विद्यालय के हम पूर्व छात्रों द्वारा संचालित संस्था युगभारती, जो एक प्रेरणा से उद्भूत विचार से अस्तित्व में आयी, का उद्देश्य है 

*राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी "व्यक्तित्व" का उत्कर्ष*

हमने व्रत लिया कि हम केवल अपने लिए ही जीवन व्यतीत नहीं करेंगे हम देश के लिए समाज के लिए कुछ करेंगे क्योंकि देश और समाज के बिना हमारे अन्दर स्वर का अस्तित्व दिखेगा वाणी की विद्यमानता नहीं रहेगी  भाव रहेगा विचार परिलक्षित नहीं होंगे

हमारी प्रार्थना अद्भुत है 

जो हमें स्मरण कराती है कि यह समस्त संसार परमात्मा से आच्छादित है। इसलिए त्याग की भावना से हम  इसका भोग करें और किसी के धन में लोभ मत रखें l  हमें न राज्य चाहिए, न स्वर्ग और न ही मोक्ष। हम दुःख से पीड़ित प्राणियों के कष्टों का नाश करें l हम कामना करें कि सभी सुखी हों, निरोगी रहें l

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने पं परमानन्द जी का कौन सा प्रसंग बताया भैया मनीष कृष्णा जी का उल्लेख क्यों हुआ सनातन धर्म क्या है जानने के लिए सुनें

22.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 22 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५४६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक  शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 22 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५४६ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २८

आध्यात्मिक एवं सांसारिक जीवन में  इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति  के लिए श्रद्धा और विश्वास अत्यन्त आवश्यक हैं



सामान्य मनुष्य में श्रद्धा एवं विश्वास का अभाव प्रायः देखने को मिलता है। इसी कारण वह न केवल अध्यात्म के क्षेत्र में उन्नति करने में असमर्थ रहता है, अपितु अपने सांसारिक जीवन में भी प्रायः इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर पाता।


जो भी कार्य श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाता है, वह ईश्वर की कृपा को आकृष्ट करता है तथा साधक को वांछित फल प्राप्त कराता है। अतः जीवन में श्रद्धा एवं विश्वास का होना अत्यावश्यक है, क्योंकि यही हमारे प्रयासों को सिद्धि की ओर अग्रसर करते हैं।


तुलसीदास श्रद्धा और विश्वास को उमा और शिव का रूप मानते हैं और यह कहते हैं कि योग में सिद्धि प्राप्त करने वाले सिद्ध भी बिना श्रद्धा और विश्वास के अंतर्स्थित ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर सकते।

कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।ऐसे घट घट राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥


श्रद्धा और विश्वास के आधार पर युगभारती में हम सभी सदस्यों के मध्य जो प्रेम, अपनत्व और आत्मीयता का विकास हो रहा है, वह निःसंदेह अनुपम है और यह हमारे लिए सौभाग्य का विषय है। हम न केवल संगठन के बाह्य स्वरूप को, अपितु इसके तत्त्व और सत्त्व को भी भलीभाँति समझते हैं।


हमारे मन में यह अटूट श्रद्धा और अखंड विश्वास है कि हम सब एक ही दिव्य सत्ता की संतान हैं हम सहोदर यूं हैं कि हमारी माता भारतमाता हैं और परमात्मा ही हमारे परमपिता हैं। 


हम अनादि हैं, अनन्त हैं। शरीर भले ही नश्वर हो, परंतु हम आत्मतत्त्व हैं, जो मृत्यु से परे है। हम केवल स्वरूप बदलते हैं  हमारा लक्ष्य केवल सांसारिक उपभोग नहीं, अपितु उस अमरत्व की उपासना है, जिससे हमारा सनातन संबंध है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया

तुलसी की भक्ति और अभिव्यक्ति विलक्षण है

मानस में शिवत्व और रामत्व को एक रूप में प्रदर्शित किया


आचार्य प्रयाग जी का लहसुन वाला कौन सा प्रसंग है श्री के विभिन्न अर्थ क्या हैं जानने के लिए सुनें

21.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या/ शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 21 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५४५ वां* सार -संक्षेप

 जथा अनेक बेष धरि नृत्य करइ नट कोइ।

सोइ सोइ भाव देखावइ आपुन होइ न सोइ॥ 72 ख॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या/ शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 21 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५४५ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २७

सुयोग्य सनातनी ग्रंथों का पाठ करें ताकि हमारे मन का मालिन्य दूर हो और अध्यात्म की ओर हमारा रुझान वृद्धिंगत हो



हमारे देश का परिवेश अनुपम दिव्य पावन है

कि इसकी प्रकृति मोहक मंजु अद्भुत अति सुहावन है

यहाँ पर भी न जिसका मन रमा, सचमुच अभागा है,

जगत के लोभ लाभों में भ्रमित बस एक धावन है।

(धावन का अर्थ संदेश वाहक )

हम अपने देश की मूल्यवान परम्पराओं और दिव्य विरासत  को पहचानें, वरना जीवन की सच्ची पूँजी खो देंगे

कल दीपावली सम्पन्न हुई यह हमें जीवन के विविध पक्षों से जोड़ती है—भावना, परंपरा, यथार्थ और इतिहास।

यह केवल दीप प्रज्वलन का नहीं, बल्कि ऊर्जा और प्रेरणा का उत्सव है सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और चेतनात्मक  पर्व के रूप में स्थापित यह दीपावली हमें अपने मूल्यों, परंपराओं और कर्तव्यों का स्मरण कराती है।


प्रभु राम का अवतरण सामान्य रूप से नहीं, अपितु एक गहन उद्देश्य से हुआ है। संसार में जब-जब अधर्म, अन्याय और पाप की सीमा बढ़ जाती है, तब उसे समाप्त करने के लिए स्वयं परमात्मा को अवतरित होना पड़ता है, क्योंकि देवता भी ऐसे संकटों से संसार को मुक्त कराने में असमर्थ होते हैं। भक्तों की रक्षा, दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनः स्थापना हेतु भगवान राम ने मनुष्य रूप में, राजा के रूप में अवतार  लिया उनका जीवन एक सामान्य मनुष्य के अनुरूप होते हुए भी दिव्यता से पूर्ण है


भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप।

किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप॥ 72 क॥


प्राणिक ऊर्जा की क्या विशेषता है व्यामोहग्रस्त न हों इसके लिए क्या उपाय है भैया मनीष जी का उल्लेख क्यों हुआ श्री बालेश्वर जी का नाम किस संदर्भ में आया जानने के लिए सुनें

20.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी / अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 20 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५४४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी  / अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 20 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५४४ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २६


दीपमिलन जैसे सुअवसरों को कितना प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है आचार्य जी ने इसके लिए कुछ सुझाव  दिए हम अपने आत्मीय जन में उपस्थित वैशिष्ट्य को जानने का प्रयास करें उनकी परिस्थितियों को भी समझें उनके द्वारा किए जा रहे प्रयोगों को जानें

और उन सबका संकलन करें 



जब हमारा संसार मूलतः सारभूत तत्त्वों से विमुख होकर केवल असार, क्षणभंगुर एवं भौतिक विषयों में ही रत हो जाता है, तब हमारी दृष्टि स्वकेन्द्रित हो जाती है। हम स्वार्थ को सर्वोपरि मानने लगते हैं। इस आत्मकेंद्रित प्रवृत्ति के कारण हम माता-पिता को भी भारस्वरूप अनुभव करने लगते हैं, जिनके स्नेह, त्याग, समर्पण एवं संरक्षण के कारण ही हमारा अस्तित्व सम्भव हुआ है।केवल इसलिए कि हम अब आत्मनिर्भर हो गए हैं, उन्हें अप्रासंगिक या अनुपयोगी मान लेना न केवल अकर्तव्य है, अपितु यह सांस्कृतिक एवं मानवीय मूल्यों का पतन भी है।इसी कारण आचार्य जी  इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से हमारा मार्गदर्शन करते हैं कि हम अपने जीवन के केंद्र में पुनः कर्तव्य, कृतज्ञता और सह-अस्तित्व जैसे मूल्यों को स्थान दें  हम संसार में सार की खोज करें  संसार के साथ इस इस सार को व्यवहार में लाएं शौर्यमय अध्यात्म जिससे संसार अत्यन्त आनन्दित रहेगा के महत्त्व को जानें यही हमारी संस्कृति की विशिष्टता और सनातन मूल्यों की पहचान है।

संसार को आनन्दमय बनाने के लिए समय समय पर महापुरुषों के अवतरण होते हैं


आइये आज दीपावली के सुअवसर पर हम

सन्मार्ग पर ही चलते रहने के लिए संकल्पित हों

व्यक्ति से व्यक्तित्व की यात्रा के लिए प्रयास करते रहें


दीपावली उत्साह उत्सव से भरा शुभ पर्व है, 

इसके लिए हम सब सनातनधर्मियों को गर्व है, 

दीपावली दुर्दांत के पददलन का सत्कर्म है, 

शौर्याग्नि से प्रज्वल प्रखर अध्यात्म का सद्धर्म है। 

हम सब उठें अपने बुझे दीपक जलाएँ शान से, 

श्रीराम स्वर उद्घोष कर फहराएँ ध्वज अभिमान से। 



आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हमारी युगभारती में केवल पं दीनदयाल विद्यालय के पूर्व छात्र ही सम्मिलित न रहें अपितु जो भी चिन्तक विचारक स्वाध्यायी राष्ट्रभक्त हों उन्हें भी सम्मिलित करें


इसके अतिरिक्त २१ सितंबर को लिखी कौन सी कविता आचार्य जी ने सुनाई भैया विनय अजमानी जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

19.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 19 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५४३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 19 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५४३ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २५

आत्म- चिन्तन करें कि आज समाज के लिए कितना कार्य किया


मनुष्य का जीवन केवल अपने अकेले के अस्तित्व से नहीं चलता, अपितु सह-अस्तित्व के भाव से अर्थात् दूसरों के साथ मिलकर,सहयोगपूर्वक चलने से ही संतुलित होता है। यह विचार हमें न केवल दूसरों के प्रति संवेदनशील बनाता है, अपितु समाज, प्रकृति और समस्त जीवों के साथ एकता के सूत्र में बांधता है।यह चिंतन व्यक्ति को संकीर्णता से निकालकर व्यापक दृष्टि देता है

कलियुग में  संगठित शक्ति अनिवार्य है साथ साथ मिलकर भोग से इतर तेजस्विता युक्त पुरुषार्थ करें एकाकी शक्ति का उपार्जन नहीं होना चाहिए भक्ति का काल अद्भुत रहा है जिसमें भक्ति के मार्ग से शक्ति की उपासना स्पष्ट की गयी है  तुलसीदास जी कृत

श्रीरामचरितमानस रघुनाथ गाथा है और रघुनाथ गाथा ही संसार की गाथा है स्थान स्थान पर रावण पैदा होता रहता है उस रावणत्व के समापन के लिए रामत्व की उत्पत्ति आवश्यक है


मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर।

अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर॥130 क॥


प्रभु राम! मेरे समान कोई दीन नहीं है, आपके समान कोई दीनों का हित करने वाला नहीं है। ऐसा सोचकर  मेरे जन्म-मरण के भयानक दुःख का हरण कर लीजिए l



*विनय पत्रिका* हनुमान - बाहुक आदि से पूर्व गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक भावपूर्ण भक्ति ग्रंथ है, जो भगवान् श्रीराम के चरणों में निवेदित प्रार्थना का संगृहीत रूप है। यह ग्रंथ कुल २७९ पदों में विभाजित है, जिसमें भक्त तुलसीदास की करुण पुकार, आत्मसमर्पण, भय, आशंका, भाव-वेदना और प्रभु से कृपा की याचना प्रमुख रूप से व्यक्त होती है।इसमें  तुलसीदास जी ने विभिन्न देवताओं की स्तुति की है, लेकिन मुख्यतः यह भगवान श्रीराम को समर्पित ग्रंथ है। वे सबकी स्तुति को श्रीराम की कृपा प्राप्त करने का माध्यम मानते हैं। तुलसीदास अपने दोषों को स्वीकारते हुए अत्यंत करुण स्वर में प्रभु से कह रहे हैं कि वे इतने अशक्त हैं कि यदि प्रभु ने भी त्याग दिया तो उनका उद्धार कहीं संभव नहीं।

इसके अतिरिक्त मानस का प्रारम्भ और समापन किस एक ही अक्षर से हुआ है भोजन -मन्त्र को आचार्य जी ने कैसे व्याख्यायित किया जानने के लिए सुनें

18.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 18 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५४२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 18 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५४२ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २४


हमारे अंतर्मन में *सब कुछ* विद्यमान है, हमें उसे खोजने का सतत प्रयास करते रहना चाहिए।



आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि  यशस्विता की चाह रखने वाले हम लोग चिन्तन, मनन, अध्ययन, स्वाध्याय, लेखन, सद्संगति, भक्ति में रत हों l सत् को ग्रहण करें और असत् को त्याग दें l भक्ति अच्छी है किन्तु एकांगी भक्ति हानिकारक होती है। हमें भक्ति में इतना नहीं डूब जाना चाहिए कि केवल अपने में ही मग्न रहकर संसार और परिवेश से पूर्णतः उदासीन हो जाएं। एक सनातनधर्मी को शौर्य से प्रमंडित अध्यात्म की ओर उन्मुख होना चाहिए। हम सनातनधर्मी हैं और हमको संगठित रहने की अत्यन्त आवश्यकता है यह मोह पालना भी उचित नहीं कि हम स्वयं में पूर्ण हैं और हमें किसी अन्य से कोई सरोकार नहीं। यह दृष्टिकोण अंततः अहंकार और दम्भ का रूप ले सकता है, जो धर्म के विपरीत है। इस संसार में कैसे रहना है और जीवन के सार को कैसे ग्रहण करना है, इसका आत्ममंथन भी आवश्यक है। हम संसार में रहें किन्तु संसार की चमक धमक से अप्रभावित रहें ऐसे मुमुक्षु बनने का प्रयास करें l हमारे भीतर सब कुछ है उसे खोजने का प्रयास करते रहें l

सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत।

श्रीरघुबीर परायन जेहिं नर उपज बिनीत॥127॥

हे पार्वती! सुनो वह कुल धन्य है, सारे संसार के लिए पूज्य है अत्यन्त पवित्र है, जिसमें उस राम , जिन्होंने आजीवन धनुष बाण का त्याग नहीं किया,जिन्होंने सिद्ध किया कि शक्ति के बिना शान्ति स्थापित नहीं होती, के अनन्य भक्त विनम्र पुरुष जन्म लें ॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने 



जानकीस की कृपा जगावती सुजान जीव,

जागि त्यागि मूढ़ताऽनुरागु श्रीहरे ।

करि बिचार, तजि बिकार, भजु उदार रामचंद्र,

भद्रसिंधु, दीनबंधु, बेद बदत रे ॥ १

की चर्चा किस संदर्भ में की जानने के लिए सुनें

17.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी/द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 17 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५४१ वां* सार -संक्षेप

 सो धन धन्य प्रथम गति जाकी। धन्य पुन्य रत मति सोइ पाकी॥

*धन्य घरी सोइ जब सतसंगा*। धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा॥4॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी/द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 17 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५४१ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २३

भक्ति का आश्रय लें क्योंकि यह अत्यन्त विश्वासमयी है और शक्तिशाली भी है


(नीति निपुन सोइ परम सयाना। श्रुति सिद्धांत नीक तेहिं जाना॥

सोइ कबि कोबिद सोइ रनधीरा। जो छल छाड़ि भजइ रघुबीरा॥2॥)


आचार्य जी के प्रयासों से और हम लोगों के भाग्य से यह संभव हुआ है कि हम लोग द्विजत्व अर्थात्‌ आध्यात्मिक रूप से पुनर्जन्म के द्वार पर खड़े हैं, क्योंकि हम लोगों में से अधिकांश का जीवन सात्विक (शुद्ध, संयमित और पवित्र) बन चुका है। हम सत्य के दर्शन  की प्राप्ति के लिए प्रयासरत हैं और अपने जीवन को सेवा एवं कर्तव्य के पथ पर अग्रसर कर रहे हैं। यह जीवन-दृष्टि हमें उच्चतर आध्यात्मिक अवस्था की ओर ले जा रही है, जहाँ से आत्मबोध, त्याग और सेवा भाव का समन्वय संभव होता है।आज कल आचार्य जी औपनिषदिक ज्ञान और श्री रामचरित मानस का आधार लेकर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं हमें इसका लाभ उठाना चाहिए   संकटों का समाधान करने वाली मानस अद्भुत कथा है अत्यन्त सात्विक तात्विक वैचारिक भावनात्मक व्यावहारिक है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने  भैया अरविन्द तिवारी जी के आग्रह पर विनय पत्रिका के उस अंश का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने कहा है कि

मैं श्रीराम का दास हूँ, लोग मुझे 'रामबोला' कहते हैं। राम-नाम जपने से मेरा जीवन यापन हो जाता है और परलोक का कल्याण भी निश्चित है। पहले मैं अहंकार और जड़ कर्मों के बंधन में था, जिससे अत्यन्त कष्ट भोग रहा था। जब मैंने श्रीराम को पुकारा, तो उन्होंने मुझे पापों से जलता देख तुरंत मेरे कर्मबन्धन काट दिए। अब मैं सदा प्रसन्न रहता हूँ।


रामको गुलाम, नाम रामबोला राख्यौ राम,


काम यहै, नाम द्वै हौं कबहूँ कहत हौं ।


रोटी - लूगा नीके राखै, आगेहूकी बेद भाखै,


भलो ह्वैहै तेरो, ताते आनँद लहत हौं ॥१॥


बाँध्यौ हौं करम जड़ गरब गूढ़ निगड़,


सुनत दुसह हौं तौ साँसति सहत हौं ।


आरत - अनाथ - नाथ, कौसलपाल कृपाल,


लीन्हों छीन दीन देख्यो दुरित दहत हौं ॥२॥



भैया राघवेन्द्र जी भैया पुनीत जी का उल्लेख क्यों हुआ आज कहां बैठक है कल २:३० बजे कौन दो भैया गांव पहुंचे जानने के लिए सुनें

16.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 16 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५४० वां* सार -संक्षेप

 प्रभु पद प्रीति न सामुझि नीकी। तिन्हहि कथा सुनि लागिहि फीकी॥

हरि हर पद रति मति न कुतर की। तिन्ह कहँ मधुर कथा रघुबर की॥3॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 16 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५४० वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २२

समाज में प्रतिष्ठा मिले इसका प्रयास करें

अपनी विलक्षण परम्परा से भावी पीढ़ी को अवगत कराएं


आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हम सद्संगति करें


(खलउ करहिं भल पाइ सुसंगू। मिटइ न मलिन सुभाउ अभंगू॥2॥

से इतर)

 हम अपने साहित्य की महत्ता को समझें जो हमें अनन्त काल तक ऊर्जा देने में सक्षम है हम किसी भी प्रकार की हीन भावना, भय या ऐतिहासिक भ्रांति से स्वयं को मुक्त रखें  जैसे कि हम इस भूमि के मूल निवासी नहीं हैं। यह धारणा कि हम बाहर से आए हैं  एक भ्रामक और दुर्भावनापूर्ण विचार है।





किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं ।

हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं



वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान ।

वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य-संतान ।।

इस प्रकार के परिवेश में स्वयं को उपस्थित कर जब हम शक्तिमय शान्ति की अनुभूति करेंगे तो उस शक्ति के आधार पर  जो भी व्यवहार करेंगे वह हमें उलझन में नहीं डालेगा



दुष्ट प्रवृत्तियों के लोगों ने छलपूर्वक धर्म परिवर्तन की एक लहर चलाई, जिससे सनातन धर्म,जिसे मानव जीवन की संजीवनी कहना अतिशयोक्ति नहीं है, की जड़ें हिलाने का प्रयास किया गया जो व्यक्ति केवल भोग-विलास, सुख-सुविधाओं के लोभ में अपने मूल धर्म को त्यागता है, वह न केवल अपनी संस्कृति से कट जाता है, बल्कि जीवन के वास्तविक उद्देश्य  आत्मबोध और कर्तव्यपरायणता से भी विमुख हो जाता है।धर्म का त्याग  जीवन के मर्म को खो देना है।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कपिल सिब्बल का नाम क्यों लिया चौधरा क्या है छायावाद का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

15.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 15 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५३९ वां* सार -संक्षेप

 अणोरणीयान् महतो महीयान्

आत्मा गुहायां निहितोऽस्य जन्तोः ।

तमक्रतुं पश्यति वीतशोको

धातुः प्रसादान्महिमानमात्मनः ॥ - श्वेताश्वतरोपनिषद् ३-२०


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 15 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५३९ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २१


हम अपनी ज्ञान परम्परा को सरल, रोचक एवं जीवनोपयोगी रूप में बालकों को जिज्ञासु बनाकर समझाएं, तो वे आत्मविश्वास, संयम, शक्ति, सामर्थ्य और विवेक से युक्त हो सकते हैं



हमारे यहाँ वैदिक एवं औपनिषदिक ज्ञान की परम्परा अत्यन्त समृद्ध रही है, जिसमें ज्ञान, भक्ति, योग आदि का समन्वय अत्यन्त सहज एवं सरल रूप में  प्रस्तुत किया गया । यह परम्परा केवल दार्शनिक चिन्तन तक सीमित न होकर जीवन की व्यावहारिक दिशाओं को भी आलोकित करती रही है। दुर्भाग्यवश, कालान्तर में जब हम आत्मबलहीन हुए, तब इस महान् परम्परा को हीन दृष्टि से देखने की प्रवृत्ति समाज में विकसित हुई। इसे प्राचीन, अनुपयोगी या पिछड़ा कहकर प्रचारित किया गया, और हम स्वयं भी भ्रमित हो गए।


वास्तव में, यदि इस ज्ञान परम्परा को सरल, रोचक एवं जीवनोपयोगी रूप में बालकों को समझाया जाए, तो वे जीवन की दिशा में आत्मविश्वास, संयम और विवेक से आगे बढ़ सकते हैं। पश्चिमी जगत् की वस्तुएँ भले ही आकर्षक प्रतीत हों, किन्तु हमारी परम्परा की जड़ें आत्मविकास, चरित्र निर्माण और आध्यात्मिक बल में निहित हैं, जो कहीं अधिक उपयोगी हैं।


आचार्य जी स्वयं इसी परम्परा के साधक हैं, और अपने जीवन में संयम, सात्विकता तथा स्वाध्याय को स्थान देकर निरन्तर उसका अनुकरण करते हैं। वे यही प्रयास करते हैं कि हम भी इन गुणों को आत्मसात करें, हम संयमी सात्विक अध्येता स्वाध्यायी तपस्वी बनें चिन्तन मनन ध्यान धारणा निदिध्यासन सत्संगति में रत हों जिससे हम जीवन में स्थिरता, विवेक और आत्मसंतुलन प्राप्त कर सकें।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने

श्वेताश्वतर उपनिषद् की चर्चा की जो ईशादि दस प्रधान उपनिषदों के अनंतर एकादश एवं शेष उपनिषदों में अग्रणी है यह कृष्ण यजुर्वेद का अंग है। छह अध्यायों और ११३ मंत्रों के इस उपनिषद् को यह नाम इसके प्रवक्ता श्वेताश्वतर ऋषि के कारण प्राप्त है। मुमुक्षु संन्यासियों के कारण ब्रह्म क्या है अथवा इस सृष्टि का कारण ब्रह्म है अथवा अन्य कुछ हम कहाँ से आए, किस आधार पर ठहरे हैं, हमारी अंतिम स्थिति क्या होगी, हमारे सुख दु:ख का हेतु क्या है, इत्यादि प्रश्नों के समाधान में ऋषि ने जीव, जगत्‌ और ब्रह्म के स्वरूप तथा ब्रह्मप्राप्ति के साधन बतलाए हैं


युगभारती में क्या आवश्यक है भगवान् राम को विस्तार से वर्णित करता कौन सा उपनिषद् है  गोबर का उल्लेख क्यों हुआ  जानने के लिए सुनें

14.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी /नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 14 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५३८ वां* सार -संक्षेप

 भारत प्रचंड शक्ति शौर्य का स्वरूप दिव्य

शक्ति के महत्त्व को बिसार भक्त क्यों हुआ..



प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी /नवमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 14 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५३८ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २०

 ऐसी शक्ति की , जो समय आने पर उपयोगी सिद्ध हो, आराधना करें। साथ ही राष्ट्रभाव की ज्योति और समाजोन्मुखता की ज्योति को मन्द न होने दें


आचार्य जी हमें सदैव राष्ट्र-भक्ति को केंद्र में रखकर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। वे यह स्पष्ट करते हैं कि "देश" और "राष्ट्र" में एक गूढ़ अंतर होता है। देश केवल एक भौगोलिक क्षेत्र होता है, जिसकी सीमाएँ, प्रशासन और जनसंख्या होती है, जबकि राष्ट्र एक दीर्घ सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और वैचारिक परम्परा का नाम है।इस परम्परा में हमारे यहां गुरुकुल की शिक्षा थी जो जीवन के हर पहलू को समृद्ध करती थी—शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक। यही शिक्षा हमारी परम्परा की रीढ़ थी, जिसने भारत को युगों तक विश्वगुरु बनाए रखा।

 राष्ट्र केवल भूमि का टुकड़ा नहीं, अपितु उसमें निहित जीवन-मूल्य, परम्पराएँ, स्मृतियाँ, आदर्श और आस्थाएँ ही उसे राष्ट्रत्व प्रदान करती हैं।


राष्ट्र का एक अधिष्ठान होता है वह किसी महान् विचार या उद्देश्य पर टिका होता है। उसका अस्तित्व केवल शासन के लिए नहीं, अपितु एक व्यापक लोक-कल्याण हेतु होता है।

हमारे राष्ट्र का उद्देश्य, हमारे ऋषियों द्वारा प्रतिपादित आदर्श में प्रकट होता है:  

"न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम्।  

कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्॥"  


संपूर्ण प्राणी मात्र के कष्टों की निवृत्ति और लोक-कल्याण।


हमारे यहां का व्यक्ति अपने जैसे ही अन्य प्राणियों में भी आत्मा की उपस्थिति अनुभव करता है, वह न किसी से द्वेष करता है, न किसी को क्षुद्र समझता है। यह विचार उपनिषदों, भगवद्गीता और भारतीय दर्शन का मूल भाव है।

  आचार्य जी ने भैया भरत सिंह जी के साथ गायों का उल्लेख क्यों किया, भैया पंकज जी, भैया पवन जी, भैया प्रदीप जी, भैया प्रवीण भागवत जी,भैया संतोष मिश्र जी,भैया सौरभ जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

13.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष सप्तमी/अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 13 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५३७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष सप्तमी/अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 13 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५३७ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १९

 संसार के साथ संसार के स्रष्टा की ओर जाने वाला चिन्तन करते हुए आत्मानन्द के स्तर तक  पहुंचाने वाला सार्थक लेखन करें



तुलसीदास जी भी हमारी ही भाँति एक सामान्य मनुष्य थे। उस समय देश की परिस्थितियाँ अत्यंत विकट थीं। भारत पर मुगल शासक अकबर का आधिपत्य था, जो धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से दमनकारी था। तथाकथित वीर और शिक्षित वर्ग उस शासक की सेवा में संलग्न थे, जिससे देश की आत्मा खंडित हो रही थी। भारत अनेक भागों में बंटा लग रहा था, और समाज दिशाहीन प्रतीत हो रहा था।

तुलसीदास जी का व्यक्तिगत जीवन भी कठिनाइयों और संघर्षों से परिपूर्ण था। किन्तु उन्होंने अपनी मानवीय चेतना को जाग्रत किया। वे ऐसे मनुष्य नहीं थे जो विवेकहीन होकर पशु तुल्य जीवन जिएं। उन्होंने भक्ति को जीवन का आश्रय बनाया। उस भक्ति से उन्हें शक्ति मिली l उस भक्ति में वह भाव था जो इस संसार को सार की ओर उन्मुख करता है इस भक्ति में शौर्य प्रमंडित आध्यात्मिक भाव था


पुनि मन बचन कर्म रघुनायक। चरन कमल बंदउँ सब लायक॥

राजीवनयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक॥5॥


फिर मैं मन, वचन और कर्म से कमलनयन, धनुष-बाणधारी, भक्तों की विपत्ति का नाश करने और उन्हें सुख देने वाले भगवान श्री रघुनाथजी के सर्व समर्थ चरण कमलों की वन्दना करता हूँ

तुलसीदास जी की भक्ति केवल भावुकता नहीं थी, वह व्यावहारिक जीवन में आत्मबल, धैर्य और विवेक का आधार बनी। वे भगवान् शङ्कराचार्य की तरह सनातन धर्म के रक्षक बने l उन्होंने श्रीरामचरितमानस जैसे ग्रंथ की रचना कर


संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी। रामचरितमानस कबि तुलसी॥

करइ मनोहर मति अनुहारी। सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी॥


 जनमानस को न केवल धार्मिक चेतना दी, अपितु सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण का भी वे माध्यम बने।


हम भी मनुष्यत्व की अनुभूति करें भाव भक्ति विचार संयम ध्यान धारणा शक्ति का हम अनुभव करें

इसके अतिरिक्त

क्या विवेकानन्द के एक बाबा सन्न्यासी हो गये थे भैया न्यायमूर्ति सुरेश जी का उल्लेख क्यों हुआ बूजी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

12.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 12 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५३६ वां* सार

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 12 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५३६ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १८

हम सामान्य स्तर से विशिष्ट स्तर पर आ सकें इसके लिए  व्यवस्थित दिनचर्या जिसमें प्रातः काल शीघ्र जागरण सम्मिलित है, अत्यावश्यक है


दिनभर हम लोग सांसारिक प्रपंचों में उलझे रहते हैं। यदि प्रातःकाल हम सारभूत चिन्तन की ओर उन्मुख हों तथा सकारात्मक विचारों की ओर प्रवृत्त हों, तो यह हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होगा।


हमें विचारशील चिन्तनशील संयमी स्वाध्यायी समाजोन्मुखी (समाजोन्मुखता का अर्थ है कि भारतभक्त समाज हमारे कार्य और व्यवहार से प्रसन्न रहे) बनाने के लिए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं यह हमारा सौभाग्य है

तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में



*"ऋषयो मन्त्रद्रष्टारः"* जिसका अर्थ है:  

ऋषि मन्त्रों के द्रष्टा  होते हैं।ऋषि वे लोग नहीं थे जिन्होंने वेद रचे बल्कि वे ऐसे महापुरुष थे जिनके अंतःकरण में दिव्य ज्ञान स्वतः प्रकट हुआ।   उन्होंने जैसा अनुभव किया  उसी अनुभव को शब्द रूप में प्रकट किया।  

अतः उन्हें द्रष्टा कहा गया, रचयिता नहीं। यह दृष्टि भारतीय अध्यात्म की विशेषता है — यहाँ ज्ञान को प्राप्त किया जाता है, न कि उत्पन्न 

इससे यह भी स्पष्ट होता है कि वेद जो ज्ञान के प्रथम स्रोत हैं अपौरुषेय हैं ऋषि ज्ञान के प्रथम प्रवक्ता हैं वे परोक्षदर्शी भी हैं ऋषि संसार के सार के साथ संसार को भी देखता है

 मानस में एक प्रसंग है 


एक बार त्रेता जुग माहीं। संभु गए कुंभज रिषि पाहीं॥

संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी ll


एक बार त्रेता युग में शिव जी अगस्त्य ऋषि के पास गए। उनके साथ जगज्जननी भवानी सती भी थीं। ऋषि ने संपूर्ण जगत् के ईश्वर जानकर उनका पूजन किया।

मुनिवर अगस्त्य ने रामकथा विस्तार से कही, जिसको महेश्वर ने परम सुख मानकर सुना। फिर ऋषि ने शिव जी से सुंदर हरिभक्ति पूछी और शिव जी ने उनको अधिकारी पाकर (रहस्य सहित) भक्ति का निरूपण किया।


आचार्य जी ने प्रयागराज का अर्थ स्पष्ट किया ऋषियों के विभिन्न भेद भी बताए

भैया विनय अजमानी जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया धन को साधन मानना चाहिए या साध्य जानने के लिए सुनें

11.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 11 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५३५ वां* सार

 राम चरित अति अमित मुनीसा। कहि न सकहिं सत कोटि अहीसा॥

तदपि जथाश्रुत कहउँ बखानी। सुमिरि गिरापति प्रभु धनुपानी॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 11 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५३५ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १७

समाज के लिए हम एक आदर्श उदाहरण बन सकें इसके लिए

सदाचारमय विचार ग्रहण करें


गोस्वामी तुलसीदास जी उन महान् विभूतियों में से हैं जिन्होंने समाज में व्याप्त अनेक धार्मिक, दार्शनिक और सांप्रदायिक भ्रांतियों का निवारण कर दिया। उन्होंने श्रीरामचरितमानस ग्रन्थ रचकर शिव और विष्णु भक्ति के मध्य विद्यमान कृत्रिम मतभेदों को मिटाया। विशेषतः काशी जैसे धर्म-केन्द्र में, जहाँ शिवोपासक और वैष्णवों के बीच वैचारिक टकराव हो जाते थे, वहाँ मानस ने समन्वय की भूमिका निभाई।

जब विद्वान् वर्ग स्वयं भ्रमित हो जाता है, तब उनके अनुयायी भी विभ्रांत हो जाते हैं और यह स्थिति संघर्ष को जन्म देती है। आज भी जब विवेक और विचारशक्ति दुर्बल होती है, तब वैचारिक द्वंद्व आसानी से उग्र रूप ले लेता है और समाज में अराजकता फैलने लगती है।

 यदि हम शास्त्रों का अध्ययन करें, तो पाएँगे कि ऋषियों ने इन परिस्थितियों की पूर्व कल्पना की थी।


*मनुस्मृति* में दंड को अत्यंत महत्त्वपूर्ण और दिव्य स्वरूप प्रदान किया गया है। वहाँ दंड को देवता का रूप माना गया है, क्योंकि वह सामाजिक व्यवस्था, अनुशासन और न्याय का रक्षक है।  

दंड ही संसार में शान्ति और संतुलन बनाए रखने वाला तत्व है। जब समाज में दंड का भय नहीं होता, तब शक्तिशाली और अहंकारी लोग निर्बलों को पीड़ित करने लगते हैं, और सामाजिक विषमता व अराजकता फैल जाती है।


इसलिए कहा गया है कि दंड ही राजा का वास्तविक शासन है। राजा यदि दंड नीति का पालन करता है, तो प्रजा भय और अन्याय से मुक्त रहकर शान्तिपूर्वक जीवन व्यतीत करती है।

ऐसे अद्भुत हैं हमारे ग्रंथ

 आज की परिस्थितियों से हम तुलना करें तो जो उन ग्रंथों में वर्णित है वही आज भी सत्य है 

 चाहे लोकतान्त्रिक हो या राजतान्त्रिक दोनों में से कोई  भी प्रजापालन  सरल कार्य नहीं है ढोंगी यदि शासन करने लगे तो वह अत्यन्त भयावह स्थिति है इस कारण शासन के लिए जो पात्र लोग हों वही शासन करें इस समय उचित मार्गदर्शन  अत्यन्त आवश्यक है और इस कारण शिक्षकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है 

 उसके शिक्षार्थी का व्यक्तित्व ऐसा हो जो समाजोन्मुखी चिन्तनपरक स्वाध्यायी संयमी हो उसे अपनी परम्पराओं का भान हो वे ऐसा प्रयास करें

अपने  हितकारी ग्रंथों के प्रति जो शिक्षार्थियों में रुचि जाग्रत कर सके ऐसे शिक्षक सामने आएं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रवीण सारस्वत जी का उल्लेख क्यों किया आचार्य चाणक्य की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

10.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 10 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५३४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 10 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५३४ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १६

अपने मन और तन को संयमित कर शक्ति सामर्थ्य सत्यता शुचिता सेवाभाव आदि का प्रसरण करें


अध्यात्म आनन्द की अनुभूति का विषय है, जबकि शौर्य बाह्य संसार को समुन्नत और सुखमय बनाने का माध्यम। अतः शौर्य से संयुक्त अध्यात्म ही पूर्णता को प्राप्त करता है, जिससे भीतर और बाहर दोनों में संतुलित आनन्द का विस्तार होता है। इसी कारण आचार्य जी शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य बताते हैं जो भय और भ्रम का निवारण करने में सक्षम है शौर्य शक्ति सामार्थ्य के द्वारा ही हम अपना प्रभाव छोड़ सकते हैं संगठित शौर्य सामर्थ्य का और अधिक व्यापक प्रभाव होगा इस कारण संगठन अनिवार्य हो जाता है और संगठन प्रेम आत्मीयता के आधार पर चलता है


शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की महत्ता मानस में भी परिलक्षित होती है  

संकटों का सामना करते समय भगवान् राम जिस प्रकार आचरण करते हैं, वह अत्यन्त अनुकरणीय एवं शिक्षाप्रद है। वे विपत्ति के काल में भी धैर्य, संयम, करुणा, धर्मनिष्ठा एवं मर्यादा का पालन करते हैं। प्रेम आत्मीयता का आधार लेकर संगठन करते हैं भय और भ्रम से दूर रहते हैं शक्ति शौर्य का अप्रतिम प्रदर्शन करते हैं उनके कार्य और व्यवहार  को अपने जीवन में आत्मसात् करना चाहिए।

 मानस वास्तव में ऐसी कथा है कि

बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा। सुनत नसाहिं काम मद दंभा॥


गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीराम की निर्मल कथा



रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥

मन करि बिषय अनल बन जरई। होई सुखी जौं एहिं सर परई॥



 का आरंभ करते समय ही यह स्पष्ट हो जाता है कि इसका श्रवण करने से मनुष्य के भीतर विद्यमान विकार  जैसे वासना, अहंकार और दिखावा  स्वतः ही दूर होने लगते हैं।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने MLA से संबन्धित कौन सा प्रसंग बताया जानने के लिए सुनें

9.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 9 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५३३ वां* सार -संक्षेप

 मागत बिदा राउ अनुरागे। सुतन्ह समेत ठाढ़ भे आगे॥

नाथ सकल संपदा तुम्हारी। मैं सेवकु समेत सुत नारी॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 9 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५३३  वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १५ : शस्त्र भी शास्त्र के समान हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक हैं


हमने समाज और देश के प्रति निष्कलंक सेवा को ही अपना लक्ष्य बनाया है। आचार्य जी स्वयं भी इसी भावना से अनुप्राणित हैं अतः हमें चाहिए कि उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करने का कोई भी अवसर हाथ से जाने न दें। तो आइये प्रवेश करें आज इसी अवसर के रूप में विद्यमान इस सदाचार वेला में


विश्वामित्र ऋषि केवल तपस्वी या ब्रह्मर्षि ही नहीं थे, अपितु वे एक दूरदर्शी राष्ट्रचिन्तक भी थे। उन्होंने धर्म, समाज और राष्ट्र के व्यापक हित के लिए केवल यज्ञ-सम्पादन या वैदिक अनुष्ठानों की रक्षा का संकल्प नहीं लिया था, बल्कि उन्होंने उस उभरते हुए संकट के निवारण का मार्ग भी निर्धारित किया, जो तत्कालीन समाज को भीतर से ग्रस रहा था।

सत्ता के शिखर पर बैठे राजा दशरथ और जनक जैसे शासक, वैभव और गर्व में निमग्न होकर राष्ट्रहित की उपेक्षा कर रहे थे। जब कि राक्षसी शक्तियाँ ताड़का, मारीच, सुबाहु आदि संतों के यज्ञ विध्वंस कर रही थीं  और वे राजा केवल अपनी अपनी सीमाओं में सिमटे थे। समाज में भय व्याप्त था, यज्ञ स्थगित हो रहे थे, ऋषि विह्वल थे, पर शासकों की चेतना सुप्त थी।


ऐसे समय में विश्वामित्र ने निर्णय लिया कि अब वे अपनी तप:शक्ति, योगबल और ज्ञान को केवल आत्मकल्याण तक सीमित नहीं रखेंगे, अपितु एक ऐसे योग्य माध्यम को तैयार करेंगे जो धर्म और राष्ट्र के रक्षक के रूप में उदित हो। वे जानते थे कि राजा दशरथ एक क्षत्रिय हैं, उनके पास बल भी है, और उन्होंने भी जीवन में युद्ध लड़े हैं, किन्तु वे अब वृद्ध हो चुके हैं, उनका मन मोह और वात्सल्य में अधिक स्थिर हो चुका है। अतः उन्होंने राम को चुना एक ऐसा युगपुरुष, जिसमें ब्रह्मतेज और क्षात्रतेज दोनों समाहित थे।


विश्वामित्र ने अपने शस्त्र और अस्त्र जो वर्षों की साधना और तपस्या से प्राप्त हुए थे दशरथ को न देकर राम को इसलिए सौंपे क्योंकि वे जानते थे कि ये दिव्य अस्त्र केवल उसे ही दिए जाने चाहिए जो निःस्वार्थ होकर धर्म के लिए उनका प्रयोग करेगा। राम ही वह पात्र थे, जो संयम, विवेक और शौर्य के समुच्चय थे। उन्हें यह भी ज्ञात था कि राम केवल राक्षसों से नहीं लड़ेंगे, वे उस समस्त अधर्म से युद्ध करेंगे, जो युगों तक धर्म की जड़ों को खोखला करता रहा है।


विश्वामित्र ने राम को मांगते हुए अधिकारपूर्वक दशरथ से कहा कि यह तुम्हारा पुत्र नहीं, अब समाज का पुत्र है; यह मात्र तुम्हारे कुल का रक्षक नहीं, अपितु समस्त आर्यावर्त का पालक है। यह मांग कोई साधारण याचना नहीं थी, यह धर्म के पुर्नस्थापन का आह्वान था।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने संत गुरुशरणानन्द जी और संत प्रेमानन्द जी के किस प्रसंग का उल्लेख किया,विश्वामित्र का तेजस किसके साथ था, भैया विनय अजमानी जी की चर्चा क्यों हुई, अधिवेशन वास्तव में क्या है जानने के लिए सुनें

8.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 8 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५३२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 8 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५३२  वां* सार -संक्षेप

स्थान: सरौंहां

मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १४ 

आत्ममन्थन करते हुए अपने कर्तव्यों को जानें


हमारे विद्यालय में आचार्यों का उद्देश्य मात्र पाठ्यक्रम की समाप्ति नहीं था। उन्होंने हम विद्यार्थियों के जीवन में केवल बौद्धिक ज्ञान भरने का प्रयास नहीं किया, अपितु वे हमारे अंतर्मन तक पहुंचे। उन्होंने हमारे संपूर्ण मानसिक, सामाजिक एवं आत्मिक परिवेश का सूक्ष्म अध्ययन किया। इसके पश्चात् वे हमें उस दिशा में प्रेरित करने लगे, जहाँ से हम अपने भीतर स्थित सामर्थ्य, प्रतिभा एवं ऊर्जा का साक्षात्कार कर सकें, यह अनुभूति कर सकें कि हम एक दिव्य चैतन्ययुक्त प्रकाश हैं उन्होंने ऐसा शिक्षोपदेश किया जिससे वह ऊर्जा समय के अनुकूल प्रकट होकर हमारे व्यक्तित्व के विकास तथा समाज और देश के हित में नियोजित हो सके समाज और देश को सशक्त बनाने में सहायक हो सके और हमें यशस्विता की ओर उन्मुख कर सके

आचार्य जी आज भी यही प्रयास कर रहे हैं कि हम सांसारिक चकाचौंध के विकारों से अपने को बचाते हुए सन्मार्ग पर चलें, एक शिक्षक की भूमिका निभाते रहें और यशस्विता प्राप्त करें



आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त गीता के छठे अध्याय में ११, १२, १३, १४ छंद को पढ़ने का परामर्श दिया, सी जे आई भूषण रामकृष्ण गवई और अधिवक्ता राकेश किशोर का उल्लेख क्यों हुआ, अखंड भारत के चित्र की चर्चा किस प्रसंग में हुई भैया सिद्धार्थ सिंह जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

7.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा/ कार्तिक कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 7 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५३१ वां* सार -संक्षेप

 प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।


आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।2.55।।


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा/ कार्तिक कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 7 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५३१  वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १३

संपूर्ण श्रद्धा, निष्ठा, समर्पण के साथ किसी भी कार्य को करें कर्म में पूर्णरूपेण विलीन होने वाले कर्मयोगी बनें



इस संसार में प्रत्येक क्रिया के पीछे कोई न कोई कारण निहित होता है। कारण और कार्य का परस्पर संबंध इस जगत् का स्वाभाविक विधान है। यही संबंध सृष्टि की गति को बनाए रखता है और यह गति ही संसार का यथार्थ स्वरूप है। सृष्टि का संचालन इसी कारण-कार्य के क्रम में अनवरत चलता रहता है।


हम जो भी कर्म करें, उसमें हमारी संपूर्ण निष्ठा, श्रद्धा और समर्पण होना चाहिए। किसी भी कार्य को दुविधापूर्ण चित्त से करना न केवल कर्मफल को बाधित करता है, अपितु आत्मिक शांति और संतोष से भी हमें वंचित करता है। हमारा उद्देश्य  आत्मकल्याण,सामाजिक सेवा,आदि कुछ भी हो सकता है। विश्वास और धैर्य के साथ कर्म करते हुए यह दृढ़ भावना बनाए रखें कि ईश्वर जो कुछ भी करता है, वह हमारी भलाई के लिए ही करता है। हमें केवल कर्तव्य-पथ पर अग्रसर रहना चाहिए, फल की चिंता किए बिना।जब मन में यह भाव स्थिर हो जाता है कि परमात्मा सदा शुभ करता है, तब जीवन में स्थिरता, शांति और गहन संतोष की अनुभूति होती है। यही आध्यात्मिक दृष्टि हमें संसार में रहते हुए भी आत्मा से संयुत रहने की प्रेरणा देती है।

 आचार्य जी ने बताया प्राणिक ऊर्जा यदि तत्त्वमय हो जाती है तो उसमें शक्ति का विकास हो जाता है

आचार्य जी  ने स्वामी रामसुखदास कृत साधक -संजीवनी हिन्दी -टीका की चर्चा करते हुए त्रिकुटी, त्रिपुटी,संप्रज्ञात समाधि, असंप्रज्ञात समाधि, सबीज समाधि के अर्थ बताए, प्रभाकर जी (रौनक ) राम आधार जी (शास्त्री ) कौन हैं, ज्ञान दो वैराग्य दो भक्ति दो किसने कहा था जानने के लिए सुनें

6.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 6 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५३० वां* सार -संक्षेप

 कोउ किछु कहई न कोउ किछु पूँछा। प्रेम भरा मन निज गति छूँछा॥

तेहि अवसर केवटु धीरजु धरि। जोरि पानि बिनवत प्रनामु करि॥4॥

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 6 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५३०  वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १२

प्रेम और आत्मीयता का विस्तार करें


इन सदाचार संप्रेषणों का मूल उद्देश्य यह है कि हम जीवन के मूलभूत नैतिक सिद्धांतों से विमुख न हो।संसार की बाह्य भव्यता, आकर्षण और क्षणिक सुख-सुविधाएँ हमें प्रायः अपने वास्तविक पथ से विचलित कर देती हैं। चकाचौंध, भोग-विलास, तामसिक प्रवृत्तियाँ अथवा सांसारिक प्रलोभन, आत्मविकास और चरित्र-निर्माण की दिशा में बाधक बन सकते हैं। ऐसे में इन सदाचारवेलाओं द्वारा यह प्रयास होता है कि हम विवेकपूर्वक अपने लक्ष्य को पहचान सके, सत्पथ पर दृढ़ रहे, आत्मिक उन्नयन के पथ पर अग्रसर होते रहें,  निराशा के चिन्तन से बचें, प्रेम और आत्मीयता का विस्तार करें ऐसा विस्तार जैसा हमें मानस में देखने को मिलता है 


राम और भरत के मिलन  (भरत भगवान् राम को लेने चित्रकूट गये हैं )में जो प्रेम उत्पन्न हुआ है, वह वाणी, मन और क्रिया से वर्णन करने में असंभव है। कवियों का समुदाय भी उस गूढ़ भाव को व्यक्त करने में असमर्थ है। यह मिलन ऐसा है जिसमें दोनों भाई पूर्णतः प्रेम से परिपूर्ण हैं; उनके भीतर से मन, बुद्धि, चित्त और 'अहम्' की भावना तक लुप्त हो गई है। वे पूर्णतः एक-दूसरे में तल्लीन हैं



मिलनि प्रीति किमि जाइ बखानी। कबिकुल अगम करम मन बानी॥

परम प्रेम पूरन दोउ भाई। मन बुधि चित अहमिति बिसराई॥1॥

नारी का सम्मान अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि नारी मात्र जाति या लिंग का परिचायक नहीं, अपितु वह सन्देश है उस दिव्य ऊर्जा का, जो समाज की संरचना, संवर्धन एवं सुसंस्कार में मुख्य प्रेरक तत्व है। अतः नारी का सम्मान केवल औपचारिक कर्तव्य न होकर, सांस्कृतिक चेतना एवं सामाजिक कृतज्ञता का उच्चतम प्रकट रूप होना चाहिए।



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विनय अजमानी जी का उल्लेख क्यों किया ऋषि लोमश का प्रसंग क्यों आया महिरावण को किसने मारा  जानने के लिए सुनें

5.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 5 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५२९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 5 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५२९  वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ११


पुरुषार्थ के दर्शन करते हुए रामत्व की अनुभूति करें जो हमें स्मरण कराए कि हम सनातनधर्मी धर्मविपथगामी दुष्टों में भय व्याप्त करने हेतु निरंतर सजग धर्मरक्षक हैं।



हम अरण्य कांड के उस प्रसंग में चलते हैं जब लक्ष्मण जी ने शूर्पणखा के नाक कान काट दिए

 लछिमन अति लाघवँ सो नाक कान बिनु कीन्हि।

ताके कर रावन कहँ मनौ चुनौती दीन्हि॥17॥

श्री राम भांप लेते हैं कि अब युद्ध होगा क्यों कि वे द्रष्टा हैं स्रष्टा हैं भक्ति शक्ति विचार आदि सबका एक पुंजीभूत स्वरूप हैं अद्भुत है रामत्व

देखि राम रिपुदल चलि आवा। बिहसि कठिन कोदंड चढ़ावा॥7॥



हम छत्री मृगया बन करहीं। तुम्ह से खल मृग खोजत फिरहीं॥

रिपु बलवंत देखि नहिं डरहीं। एक बार कालहु सन लरहीं॥5॥


हम क्षत्रिय हैं, वन में शिकार करते हैं और तुम्हारे सरीखे दुष्ट पशुओं को तो ढ़ूँढते ही फिरते हैं। हम बलवान्‌ शत्रु देखकर नहीं डरते।  एक बार तो हम काल से भी लड़ सकते हैं॥5॥


श्रीराम द्वारा कही गई यह वाणी न केवल उनके अद्भुत शौर्य और क्षात्रधर्म की उद्घोषणा है, बल्कि यह भारत की आत्मा में निहित उस अपराजेय शक्ति की प्रतीक भी है, जो समय-समय पर विविध रूपों में प्रकट होती रही है श्रीराम की  दृढ़ता यह दर्शाती है कि बलवान् शत्रु से भी भयभीत न होना ही सच्चे वीर की पहचान है।  यही वह भाव है, जो भारतवर्ष की आत्मा में समाहित है।


भारत का यह रामत्व ही है, जिसने इसे समय के हर झंझावात, आक्रमण और आन्तरिक विषमताओं के पश्चात् भी जीवित और जाग्रत रखा है हर परिस्थिति में हम इसी भारतीयत्व रामत्व की अनुभूति करें 


इस युद्ध में प्रभु राम का प्रथम रणकौशल परिलक्षित हुआ उन्होंने खर दूषण त्रिशरा सहित चौदह हजार शत्रुओं का वध कर दिया


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने परिवार भाव को कैसे स्पष्ट किया किस बैठक की चर्चा हुई चना खाने  और अनुकूल लोगों का साथ से क्या तात्पर्य है जानने के लिए सुनें

4.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 4 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५२८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 4 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५२८  वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १०

लेखन महत्त्वपूर्ण है इसे नित्य करें 



कात रहा था कब से जीवन के धागे

शायद कभी जरूरत पर कोई माँगे

लगा सूत का ढेर न चादर बुनी गयी

तरह-तरह की अनगिन बातें सुनी गयीं

चलो हटाओ उलझे सूत, विराम करो ।।५ ।।

बीत गया दिन..


आचार्य जी निरन्तर परिश्रम कर रहे हैं हम लोगों के चरित्र-निर्माण, राष्ट्रप्रेम, सनातन मूल्यों और सदाचार की स्थापना के लिए। उनकी यह साधना इसलिए कि जब कभी राष्ट्र या समाज को ऐसे व्यक्तित्वों की आवश्यकता हो  तो वे  सामने आ सकें। राष्ट्र और समाज के अंधकार को दूर कर सकेंl


किन्तु आचार्य जी को लग रहा है उस परिश्रम का अपेक्षित फल नहीं निकला। यद्यपि उन्होंने जीवनभर  संस्कारों की प्रेरणा दी किन्तु कोई ठोस चरित्र, आदर्श जीवन या समाजोपयोगी निर्माण नहीं हुआ। उनके तप के स्थान पर केवल बातें हुईं, वाद-विवाद और व्यर्थ की चर्चाएँ हुईं, लेकिन आचरण नहीं बदला।

 ऐसे में हम लोगों का दायित्व है कि हम अपनी भूमिकाओं को पहचानें और उसी के अनुसार कार्य करें आचार्य जी को यह पूर्ण विश्वास है कि प्रभात अवश्य होगा और जब प्रभात होगा, तो न केवल सूर्य का प्रकाश फैलेगा, बल्कि कर्म की चेतना भी जाग्रत होगी। मन में सृजन की ध्वनि गूँजेगी, भावनाएँ गहराई से उमड़ेंगी, भविष्य के निर्माण हेतु योजनाएँ बनेगीं। यह सब एक दृढ़ विश्वास के आलोक में होगा, जो समस्त दिशाओं को प्रकाशित करेगा और आशा, ऊर्जा व प्रेरणा का संचार करेगा। 

इसी कारण उनकी निम्नांकित भावनाएं प्रकट हो रही हैं


गीत गाते रहो गुनगुनाते रहो

साँस जब तक, सदा मुस्कराते रहो

गीत गाते रहो..

गुदगुदाती जगाती प्रभा प्रात में

थपकियाँ दे सुलाती अमा रात में

पालने में झुलाता खिलाता पवन

मृद मही गंध से महमहाता चमन

खिलखिलाते रहो महमहाते रहो

राग बैराग को भी सुनाते रहो ।।१।।

गीत गाते रहो...


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरुण मिश्र जी १९९२, भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी, भैया मनीष कृष्णा जी, भैया पङ्कज जी, भैया प्रशान्त जी का उल्लेख क्यों किया आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति क्या है आत्मीयता और आत्मबोध में क्या संबन्ध है जानने के लिए सुनें

3.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 3 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५२७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 3 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५२७  वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ९

राष्ट्र के प्रति निष्ठावान् बनें


हमारा सनातन धर्म अद्भुत है भारतीय संस्कृति अप्रतिम है हम भारत-भक्तों का आत्म सदैव संयम, मर्यादा और मधुरता से युक्त रहा है।

आत्मवत् सर्वभूतेषु, यो पश्यति सः पण्डितः।

हमने ही संपूर्ण वसुधा को अपना कुटुम्ब माना

 यह इंगित करता है कि भारतीय संस्कृति कभी उच्छृंखल या अराजक नहीं रही, बल्कि उसमें आत्मनियंत्रण और संतुलन की परंपरा रही है। हमारे कर्म लोभ या तृष्णा से प्रेरित नहीं होते, बल्कि उद्देश्यपूर्ण और कल्याणकारी होते हैं, जिनसे हम विभास प्रसरित करते हुए विकास के उच्च सोपानों की ओर बढ़ते हैं।हमारी अपेक्षा उस ईश्वर से है जो इस समस्त सृष्टि का रचयिता है हम व्यक्ति से याचना नहीं करते हमारे वे सभी मित्र हैं  जो मानते हैं कि भारत केवल एक भूभाग, एक भौगोलिक सीमा या नक़्शे पर अंकित कोई क्षेत्र नहीं है भारत एक जीवंत चेतना है, भारत  लाखों वर्षों से ज्ञान, तप, त्याग, साधना और मानवमात्र के कल्याण की भावना से ओतप्रोत रहा है। यहाँ की मिट्टी में ऋषियों की तपश्चर्या, वीरों की शौर्यगाथाएँ, संतों की करुणा है हमारे वे सभी बन्धु हैं जो भारत को केवल सामान्य राष्ट्र नहीं बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में देखते हैं, जो विश्व के लिए मार्गदर्शक रहा है और रहेगा।


हमारा स्वत्व संयम की मधुर भाषा रहा हरदम

हमारे कर्म लिप्सा मुक्त हो सोपान चढ़ते हैं

हमारी याचना उससे कि जो संसार रचता है

हमारे मित्र वे हैं जो स्वधा का मंत्र पढ़ते हैं ।


आचार्य जी सौभाग्यशाली रहें हैं कि

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के द्वितीय सरसंघ चालक "श्री गुरुजी" के उन्होंने दर्शन किए हैं उनका सान्निध्य उन्हें प्राप्त हुआ 

आचार्य जी की दृष्टि में गुरु जी कैसे थे निम्नांकित पंक्तियों में देखिए

युग-पुरुष तुम्हें युग का प्रणाम ।

सदियों से सोया पड़ा शौर्य निष्पंद मौन मन स्वाभिमान

जब पौरुष हुआ प्रमाद - भ्रमित वैभव में खोया महीयान

आत्मस्थ आत्मरत चिन्तन केवल 'भूमा' से संयुक्त हुआ

कर्मानुराग सेवा संयम के आदर्शों से मुक्त हुआ

तब उस कलिमल से ग्रसे समय तुम प्रकटे शिव संकल्पवान ।। १ ।।

युग-पुरुष.....

प्रकटे तुम वीरव्रती अवतारी ज्योति पुरुष सत के प्रतीक

ऊर्जस्वी कुल के आदि पुरुष जैसे तेजस्वी ऋषि ऋचीक

सद्धर्म मर्म की व्याख्या तुम पावन तप की परिभाषा से

संयम के उर में बसी कर्म-कौशल की चिर अभिलाषा से

हे विजयव्रती वैरागी अनुरागी त्यागी शुभ आप्तकाम ||२||

युग -पुरुष.....


इसके अतिरिक्त आचार्य जी आज कहां हैं भैया मनीष जी का उल्लेख क्यों हुआ भैया विभास जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

2.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 2 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५२६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 2 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५२६  वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ८

ब्रह्म वेला में जागरण, उचित खानपान,सत्संगति 



हमारा भारत एक ऐसा अद्भुत राष्ट्र है जिसकी धरा पर ऋषि-मुनियों, वीरों, महान् चिन्तकों एवं मनीषियों ने जन्म लिया है। यह देश न केवल अध्यात्म एवं दर्शन की भूमि है, बल्कि शौर्य, ज्ञान और तपस्या की महान् परम्परा का भी संवाहक है। किन्तु जब कोई शिक्षित व्यक्ति ही इस देश की गरिमा को नकारते हुए यह कहता है कि इसमें कुछ भी विशिष्ट नहीं है, तो वह किसी भी मां भारती के सुपुत्र के लिए एक पीड़ाजनक स्थिति उत्पन्न करता है।


गरिमा को नकारने वाली सोच ने हमारे भीतर  हीनभावना का आरोपण कर दिया है, जिसके कारण हम मानसिक रूप से दुर्बल, उत्साहहीन और आत्मविस्मृत हो गए हैं। केवल हम ही नहीं, अपितु हमने अपनी आगामी पीढ़ी को भी इस मानसिक शैथिल्य का भागीदार बना दिया है। हमें इस भाव से उबरकर अपनी संस्कृति, राष्ट्र और परम्परा के प्रति सम्मान, गौरव और आत्मबोध का जागरण करना चाहिए। यद्यपि कुछ उजास दिख रहा है तथापि अभी सतत प्रयास आवश्यक हैं 

हम आत्मचिन्तन करें 

 और संसार से विरक्त होकर भागने के स्थान पर  संसार-समर से सामञ्जस्य बैठाते हुए कर्मयोगी बनने का प्रयास करें  प्रातःकाल ब्रह्मवेला में जागरण आवश्यक है उचित खाद्याखाद्य विवेक रखें सत्संगति आवश्यक है मानसिक रूप से जो व्यक्ति हमें दुर्बल बनाए वह भी हानिकारक है ऐसे व्यक्ति से बचें इन सबका हम ध्यान रखें  अपने कार्य के प्रति अनुरक्ति रखें

इसके अतिरिक्त 

साधना के मूर्तस्वरूप सर्वप्रिय अशोक सिंघल (15 सितम्बर 1926-17 नवम्बर 2015 )

 जी की चर्चा आचार्य जी ने क्यों की, डा मनीष वर्मा जी का उल्लेख क्यों हुआ

महापुरुषत्व क्या है

अधिवेशन की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

1.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 1 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५२५ वां* सार

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 1 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
  *१५२५  वां* सार -संक्षेप

मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ७

व्यथा में रामकथा का आश्रय लें 

बूंद -बूंद हंस -हंस कर जीवन जला जनम भर 
पर तुम रटते रहे यही अंधियार बहुत है 
अपने प्राणों का रस केवल तुम्हें पिलाया 
तुम दीवाने रहे कि अपने यार बहुत हैं 
बूंद -बूंद.....
दुनिया का दस्तूर मानकर मैं भी चुप हूं..

 *धरती पर खुद्दार बहुत हैं*  दूसरी कविता 'अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं '

यहां एक संवेदनशील कवि की व्यथा झलकती है, जो जीवन भर अपने अस्तित्व को धीरे-धीरे, बूंद-बूंद कर जलाता रहा  जैसे कोई दीपक, जो सबको उजाला देता है, पर स्वयं जलता रहता है। वह व्यक्ति जीवन भर हँसते हुए अपने कष्टों को सहता रहा और अपनी ऊष्मा, अपनी  मिठास दूसरों को अर्पित करता रहा।
किन्तु सामने वाला व्यक्ति इस त्याग, इस पीड़ा, इस समर्पण को समझने के बजाय केवल यह कहता रहा कि "अंधेरा बहुत है", उसे दिया गया प्रकाश कभी पर्याप्त नहीं लगा। वह तो अपने भ्रम में डूबा रहा कि उसे तो बहुतों का साथ प्राप्त है। आचार्य जी एक दीपक के रूप में अंधकार मिटाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं आचार्य जी चाहते हैं कि हम अपने संगठन का विस्तार प्रेम और आत्मीयता के आधार पर करें सांसारिकता में उलझकर संगठन में एक दूसरे पर दोष मढ़ना आरोप लगाना हानिकारक है इससे बचें हमारे व्यवहार में शालीनता मृदुता भी आवश्यक है  
हम भी जब व्यथित हों कष्टों में फंस गए हों तो हमें रामकथा का आश्रय लेना चाहिए 

राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार।
सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार॥ 33॥


भगवान् राम की सत्ता अनंत है, उनके गुणों की कोई सीमा नहीं है और उनकी जीवन-लीला इतनी व्यापक है कि उसका संपूर्ण वर्णन संभव ही नहीं।
रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥

 केवल वही व्यक्ति इस सत्य को समझ सकता है जिसके मन में शुद्ध और सुसंस्कृत विचार हैं। जिन्हें आत्मिक अनुभूति नहीं हुई, उन्हें यह सब असंभव या अतिशयोक्ति लग सकता है, परंतु जिनका चित्त निर्मल है, उन्हें यह दिव्यता स्वाभाविक प्रतीत होती है।

शंकाशील व्यक्ति कभी रामकथा नहीं सुन सकता इसके लिए अंतःकरण की शुद्धता अत्यन्त अनिवार्य है जो आश्वस्त है विश्वस्त है समर्पित है वही इस कथा को सुन सकता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी भैया शुभेन्दु शेखर जी का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें