31.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 31/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है विबुध आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 31/03/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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इस समय हम सबका भविष्य  बहुत अच्छा नहीं है इसलिये हनुमत भक्ति हमें बहुत सहारा देगी

शिवाजी को ‘जाणता राजा’ कहने वाले समर्थ गुरु रामदास (  मूल नाम 'नारायण सूर्याजी पंत कुलकर्णी "ठोसर "  ) ने भी हनुमत भक्ति पर बहुत जोर दिया था


दासबोध मराठी संत-साहित्य का एक प्रमुख ग्रंथ है। इसकी रचना  श्री समर्थ रामदास ने ही की। इस ग्रंथ का महाराष्ट्र में बहुत अधिक सम्मान है। हम लोग श्रीरामचरित मानस को जितने आदर की दृष्टि से देखते हैं उतने ही आदर की दृष्टि से मराठी जानने वाले दासबोध को देखते हैं। महाराष्ट्र का व्यक्तित्व गढ़ने में इस ग्रंथ का  बहुत महत्त्व  है।




सांसारिक प्रपंचों से हम सबका वास्ता  पड़ता है इसलिये हम गीता के अठारहवें अध्याय का बार बार पारायण करें


इसके 48 से 54 तक के छन्दों का बार -बार अभ्यास करें


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।


असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः।


नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां संन्यासेनाधिगच्छति।।18.49।।


सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म तथाप्नोति निबोध मे।


समासेनैव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा।।18.50।।


बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्याऽऽत्मानं नियम्य च।


शब्दादीन् विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।18.51।।


विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः।


ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः।।18.52।।


अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।


विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते।।18.53।।


ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति।


समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्।।18.54।।



सामान्य कदमों को रखते हुए बड़े लक्ष्य की ओर बढ़ें

नई पीढ़ी इस समय भ्रमित है वह धन के लिये तो लालायित  है लेकिन शान्ति का अभाव है  

शान्ति  तभी मिलेगी जब हम लोगों के साथ वो भी अध्ययन, स्वाध्याय, चिन्तन, मनन, आत्म - मन्थन, निदिध्यासन  हेतु ध्यान देगी

30.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है तुल्यदर्शन आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30/03/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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यदि हमें यह समझ में आ जाये कि हमारा कर्म क्या है तो हम अपनी उथल -पुथलों को शांत कर लेते हैं हम सहारा  नहीं खोजते

यही भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं


स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।


स्वकर्मनिरतः सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु।।18.45।।


अपने-अपने स्वाभाविक कर्म में लगा हुआ मानव संसिद्धि को पा लेता है। अपने कर्म में लगा मानव किस प्रकार सिद्धि प्राप्त करता है, उसे तुम सुन लो l


यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्।


स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः।।18.46।।




जिस ईश्वर से भूतमात्र की उत्पत्ति हुई है और जिससे यह पूरा संसार व्याप्त है, उस ईश्वर की अपने कर्म द्वारा पूजा करके मानव सिद्धि को पाता है


स्व समझने में कभी कभी पूरा जीवन व्यतीत हो जाता है स्व तब भी समझ में नहीं आता 

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।18.47।।


आचार्य जी ने स्वधर्म और परधर्म में विस्तार से अंतर बताया जिनका स्व मुखरित हो जाता है वो पर के लिये पीड़ित नहीं होते

कोई भी कार्यक्रम करते समय हमें अपने राष्ट्रधर्म का ध्यान रखना चाहिये क्यों यही भारतीय संस्कृति ऐसी संस्कृति है जो विश्व में शांति फैलाने का माद्दा रखती है 


इसके अतिरिक्त भैया संदीप शुक्ल जी(बैच 1983)का क्या प्रश्न था आदि जानने के लिये सुनें 👇

29.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 सङ्गच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।

देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते।।


हम सब एक साथ चलें, एक साथ बोलें,हमारे मन  भी एक  हों। प्राचीन काल में देवताओं का  आचरण इसी तरह का रहा इसी कारण वे वंदनीय हैं।


समानो मन्त्र: समिति: समानी  समानं मन: सहचित्तमेषाम् 

समानं मन्त्रमभिमन्त्रये व:  समानेन वो हविषा जुहोमि ||


प्रस्तुत है कुलध्वज आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29/03/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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आचार्य जी को गर्व है कि युगभारती परिवार सद्गुणों का ढेर है समय समय हम लोगों की भावाभिव्यक्तियां आचार्य जी को संतुष्ट करती रहती हैं लेकिन फिर भी 

इस समय परिस्थितियां विषम हैं इसलिये हमें संगठित होने की आवश्यकता है यदि हम वर्तमान को संभाल लेते हैं तो भविष्य उज्ज्वल होने ही वाला है

हमें संतुष्ट होकर बैठने की आवश्यकता नहीं है संतुष्टि से शैथिल्य आता है 


आचार्य जी ने कवि रहीम की चर्चा की साथ ही उनकी रचित गङ्गाष्टकम् की चर्चा की


भारत की धरती अद्भुत है जो असंख्य दोषों को अपने में समाहित कर तत्त्व विकसित कर देती है हम लोग इस बात पर भी ध्यान दें कि श्रीमद्भागवत् के अनुसार बाइस जातियां बाहर से आकर यहीं रच बस गईं और हिंदू हो गईं l इस समय हमारा कर्तव्य है कि हम समाज को जाग्रत करें और इसके लिये आपस में मतभेद न रखें

टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार। 


रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥

28.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै


र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।


प्रस्तुत है विजिगीषु आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28/03/2022

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हम युगभारती के सदस्यों के क्रिया -कलापों के प्रति आचार्य जी की जिज्ञासा बहुत प्रबल रहती है इसलिये प्रयासपूर्वक हमें अपने क्रिया -कलापों की जानकारी आचार्य जी को समय समय पर देते रहना चाहिये



हम शौर्ययुत थे कुछ कारणों से शौर्ययुत नहीं रहे लेकिन हमें शौर्ययुत होना ही चाहिये इस संसार के सृजन से लेकर प्रलय तक का चिन्तन करते हैं हम विचारशील हैं चिन्तनशील हैं परममोक्ष हमारा लक्ष्य है हम भारतीय हैं

हमें अपने राष्ट्र धर्म के प्रति जाग्रत रहना चाहिये इसके लिये आचार्य जी ने अपनी लिखी एक कविता सुनाई

जागो भारत जागो महान


यही कविता हम पूर्व के संप्रेषणों (8/8/21 13:38 से..  और 21/12/21 11:36 से..... आदि) में भी सुन सकते हैं

27.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।


क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।



प्रस्तुत है सम्भृतश्रुत आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27/03/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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गीता के तृतीय अध्याय में


सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः।


अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक्।।3.10।।


भगवान् ने सृष्टि के प्रारम्भ में यज्ञ सहित प्रजा का निर्माण कर कहा इस यज्ञ द्वारा तुम वृद्धि को प्राप्त हो और यह यज्ञ तुम्हारे लिये इच्छित कामनाओं को पूरा करने वाला बने l


इसी छंद के अर्थ को विस्तार दिया जा सकता है अन्य छन्दों को भी विस्तार दिया जा सकता है जो चिन्तन, विचार, विवेचन और परस्पर के संवाद से संभव है

जब हम अपने भीतर ही चिन्तनोन्मुख विचारोन्मुख हो जाते हैं तो हमारे अन्दर ही संवाद चलने लगते हैं

यह अध्यात्म की एक दुरूह अवस्था है हम स्वयं ही अपने सलाहकार हो जाते हैं और कुछ कर गुजरने के लिये उद्यत हो जाते हैं

भगवान् सर्वशक्तिमान है इसलिये उसके अंश होने पर हम भी आंशिक रूप से शक्तिमान हैं सीमित क्षमता होने पर हम बद्ध जीव कहे जाते हैं


आचार्य जी ने दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा आयोजित की जाने वाली वैश्विक संगोष्ठी की चर्चा की l संस्थान से एक आमन्त्रण मिला है कि हम लोगों में से चार लोग अपने विचार उस संगोष्ठी में रखें इस तरह के अवसर से हमारे आत्म को विस्तार मिलता है

26.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है

श्लक्ष्ण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26/03/2022

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हम युगभारती के सदस्यों को अपने संपर्कों पर ध्यान देना चाहिये ताकि कोई भी विषय जल्दी पता चल जाए

संवेदनाओं का संचरण सत्पुरुषों में सहज भाव से नित्य जितना  संचरित होता रहता है समाज उतना ही परिपुष्ट होता है

समाज का परिपोषण संवेदनाओं के संचरण और उनके संग्रहण पर आधारित है इससे समाज सुव्यवस्थित और मजबूत रहता है,संवेदनाएं यदि केन्द्रित हैं तो व्यक्ति व्यग्र होने लगता है ब्राह्मी स्थिति है तब तो बात अलग है,यह तत्त्व की बात है


 क्योंकि युग -भारती एक परिवारभाव से चलने वाली संस्था है इसलिये संवेदनाएं प्रभावी ढंग से संचरित होनी चाहिये


हमें जाग्रत संप्रेषण पर ध्यान देना चाहिये हमारे अपने ज्ञानवान तत्त्वदर्शी ब्राह्मी भाव में रहने वाले संपूर्ण विश्व को कुटुम्ब समझने वाले समाज से भी यही जाग्रत संप्रेषण विलुप्त हो गया

जिसके कारण वो भौतिक राक्षसी शक्तियों से परेशान हो गया

समाज के चिन्तन में हम लोगों को बहुत अधिक जागरूक रहना चाहिये

नित्य का यह सदाचार संप्रेषण बहुत आवश्यक है ताकि हम भौतिकता में पस्त न हों और हमारी कमजोरी में अभिवृद्धि न हो


इसीलिये हमारे यहां यज्ञमयी संस्कृति को बहुत महत्त्व दिया गया है


यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।


भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।3.13।।


यज्ञ के बचे अन्न को खाने वाले  पुरुष सब तरह के पापों से मुक्त हो जाते हैं लेकिन जो लोग  स्वयं के लिये ही पकाते हैं वे तो पापों को ही खाते हैं।


अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।


यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।3.14।।


समस्त प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं अन्न की उत्पत्ति बादल से, बादल की उत्पत्ति यज्ञ से और यज्ञ कर्मों से उत्पन्न होता है।


व्यक्ति व्यक्ति को व्यक्तिधर्म परिवारधर्म समाजधर्म राष्ट्रधर्म विश्वधर्म पर चिन्तन करना चाहिये


संवेदनशील बनते हुए हम लोग एक दूसरे से संयुत रहें इसका प्रयास करते रहें



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25.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 तुमको कितनी बार.. जगाया तुमको कितनी बार

तुमको कितनी बार...... जगाया तुमको कितनी बार



प्रस्तुत है

श्लथोद्यमारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25/03/2022

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मनुष्य के शरीर लगभग एक जैसे दिखते हैं लेकिन उनके स्वभाव अलग अलग होते हैं

हम लोग स्वरूप स्वभाव स्वकर्तव्य का संयुत रूप धारण करके यश की कामना करते हुए इस संसार में अपने क्रिया व्यापार में संलग्न हैं


कृण्वन्तो विश्वमार्यम् भारतवर्ष की ही यह धारणा है हम लोग सहअस्तित्व में विश्वास करते हैं

दूसरी ओर हम रूस यूक्रेन के बीच युद्ध को देख रहे हैं


भारतवर्ष के संघर्षकाल में एक आंदोलन था अहिंसावादी आंदोलन उसने संपूर्ण देश की जवानी को नपुंसक बना दिया

अर्जुन भी इसी तरह मोहग्रस्त हो गये 


तं तथा कृपयाऽविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।


विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः।।2.1।।


तो


कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।


अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।2.2।।



क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।


क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।


 हे अर्जुन  कायर मत बनो।  तुम्हारे लिये यह अशोभनीय है

 हृदय की क्षुद्र दुर्बलता को त्यागकर खड़े हो जाओ।।


इसी तरह अब समय आ गया है कि भारतीय तत्त्व को जगाया जाए हम कायरता का त्याग करें सुख सुविधा न देखें


गीता हमें बताती है कि ज्ञान वैराग्य के साथ पुरुषार्थ कैसे किया जाए

24.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है

वित्त आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24/03/2022  का  सदाचार संप्रेषण 

स्थान : उनाव 

आचार्य जी उन अभिभावकों की प्रशंसा करते नहीं थकते जिन्होंने नया नया होने पर भी दीनदयाल विद्यालय में अपने बच्चों का प्रवेश कराया


आपने अतीत की अविस्मरणीय स्मृतियों के कपाट खोलते हुए बताया कि दीनदयाल विद्यालय का भवन बन चुका था लेकिन प्रारम्भ के दिनों में पानी की समस्या होने पर हम लोग पास में ही स्थित गङ्गा नदी का सहारा लेते थे

श्रीमद्भग्वद्गीता, पीपल,गाय की तरह गंगा से यदि संपर्क है  तो कलयुग में इनसे अधिक कल्याणकारी और क्या हो सकता है

ये हमारे ऋषियों ने अध्यात्मोन्मुखी जीवन जीने के लिये सरल मार्ग बता दिये

देवरहा बाबा कहते थे कि गंगा में प्राणवायु का संचार होता है


जो भी हम करते हैं यदि समझ लें कि ये सब परमात्मा ही करवा रहा है तो हम अपने कार्यव्यवहार से असंतुष्ट नहीं रहते


समस्याओं के समाधान के लिये पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है मनुष्य के साथ साथ पुरुष हैं इसकी हमें अनुभूति होनी चाहिये इसलिये हम लोगों को अध्ययन स्वाध्याय निदिध्यासन ध्यान धारणा के साथ साथ उपासना अवश्य करनी चाहिये

विद्यालय से जुड़ी अतीत की स्मृतियों में हम लोग उस समय होने वाली सदाचार वेला की भी चर्चा करें

23.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है समयज्ञ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23/03/2022

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स्थान :उन्नाव


विश्वयुद्ध की आशंका,कोरोना     की संभावनाएं , पंजाब की कुशंकाएं, बंगाल में अत्याचार, महंगाई की मार, उत्तर प्रदेश में उथल पुथल, स्वार्थ में रत जनप्रतिनिधि,विश्व में भारत का बढ़ता प्रभाव, सुदृढ़ नेतृत्व आदि का एक शबल चित्र (COLLAGE) सभी संवेदनशील समझदार पढ़ने लिखने वाले लोगों के सामने बन जाता है


लेकिन ऐसी परिस्थिति में हम युगभारती के सदस्यों के  मन बुद्धि विचार को सुसंगत, समाजोन्मुखी, संयत, प्रभावशाली बनाने के लिए वर्षों से आचार्य जी प्रयासरत हैं

इस तरह की अद्वितीय सदाचार वेला से दूर बैठकर प्रेरित करने का यह प्रयोग कितना सफल है कितना असफल है इसके लिये चिन्तित नहीं होना चाहिये क्योंकि


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।18.47।।


ठीक प्रकार से अनुष्ठित परधर्म की अपेक्षा गुणहीन स्वधर्म श्रेष्ठ है क्योंकि स्वभाव से नियत किये गये कर्म को करते हुए मनुष्य पाप को  प्राप्त नहीं करता।


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।


कोई भी काम करेंगे तो गड़बड़ियां  रह सकती हैं लेकिन उस कारण काम को त्यागना नहीं चाहिये यह शरीर कर्मानुरागी बना रहे इसका ध्यान रखना चाहिये और हमें अपनी संचित संगठित शक्ति का उचित समय पर प्रयोग करने का भी प्रयास करना चाहिये

22.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है दृशान आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22/03/2022

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आचार्य जी ने अध्ययन और वाचन में अन्तर स्पष्ट करते हुए बताया कि कोई भी विषय जो अपने भावों का संस्पर्श कर दे तो वह शक्ति का प्राकट्य है


हम सभी लोग शान्ति खोजते हैं दैहिक दैविक भौतिक तीनों ताप शान्त हो इसके लिये उपाय पूछते हैं उपाय ऐसा जो छोटा हो (SHORTCUT )


नित्य की इस सदाचार वेला के माध्यम से आचार्य जी हमें अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में ले जाने वाली अपनी अमृतवाणी से अभिसिंचित तो करते हैं लेकिन हमारा भी कर्तव्य है कि हम उसका अधिक से अधिक लाभ उठाएं


गीता के 17वें अध्याय का हम लोग अध्ययन करें


अर्जुन उवाच


ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयाऽन्विताः।


तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः।।17.1।।

अर्जुन बोले -- हे कृष्ण ! जो भक्त शास्त्र-विधि  त्याग कर श्रद्धापूर्वक देवता आदि को पूजते हैं तो उनकी निष्ठा  सात्त्विकी है या राजसी या तामसी?


इस अध्याय में शरीर का तप, मन का तप आदि का विस्तार से वर्णन है


जैसे

यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्।


उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्।।17.10।।


आधा पका , रसविहीन , दुर्गन्ध वाला , बासी, उच्छिष्ट तथा अपवित्र  अन्न तामसी लोगों को प्रिय होता है।।


आचार्य जी हमें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन ध्यान शौर्य शक्ति के लिए प्रेरित करते हैं और चाहते हैं कि हम लोग भारत मां की सेवा में रत हों

21.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है महत्तर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21/03/2022

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श्री रामचरित मानस, हनुमान चालीसा,दुर्गा सप्तशती, हनुमान बाहुक आदि  ग्रंथ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं l


वृद्धावस्था में तुलसीदास की भुजाओं में बहुत दर्द हो गया कोई उपचार कारगर नहीं हुआ, अपितु  रोग बढ़ता ही गया तो अंत में असहनीय कष्टों से हताश होकर तुलसीदास जी ने हनुमान जी की शरण ली और रोग के निवारण के लिये तुलसीदास जी ने उनसे प्रार्थना की तथा विनती करने के लिए हनुमानबाहुक  की रचना की।


आपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँह बेदन कही न सहि जाति है ।

औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है ।।

करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है ।

चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो राम दूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है ।।३०।।


हनुमान बाहुक में 2 छप्पय,1झूलना,5 सवैया और 36 घनाक्षरी कुल 44छंद हैं 


 प्रभु हनुमान जी की कृपा से शीघ्र ही वे रोग मुक्त होकर पूर्णतः स्वस्थ हो गए।

कुछ लोग हनुमान बाहुक का नित्य पाठ करते हैं जप करते समय ध्यान कहीं और हो तो भी फल मिलता है लेकिन देर से l 

ध्यान अद्भुत चीज है हमारे यहां चिकित्सा शास्त्र में अष्टांग योग 

(1) यम (2)नियम (3)आसन (4) प्राणायाम (5)प्रत्याहार (6)धारणा (7) ध्यान (8)समाधि

अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है


इनका हमें ज्ञान हो, फिर भान हो और फिर अनुमान हो कि हम कितना कर सकते हैं कैसे कर सकते हैं तो हम  समस्याओं, कष्टों, व्याधियों का निर्मूलन अपने आप करने में सक्षम हो सकते हैं

नित्य अपने शरीर पर प्रयोग करें तो हमारे अन्दर शक्ति बुद्धि क्षमता आयेगी और हम अपने परिवार, समाज की समस्याओं को हल करने का आधार बनेंगे और हमें संतोष भी मिलेगा

20.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शुचिषद् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20/03/2022

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यदि हम लोग परस्पर एक दूसरे का उत्साह बढ़ाते हैं तो इसे परमात्मा द्वारा अधिकतर मानवों को दी गई बहुत अद्भुत उपलब्धि कही जायेगी

हम युगभारती परिवार के सदस्यों को भी सदैव यही प्रयास करना चाहिये कि वो एक दूसरे का उत्साह बढ़ाएं


गीता में


निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै


र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।


मान और मोह दोनों चीजें व्यथित करती हैं मान और मोह दोनों का शमन करने के लिये हमें सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिये


मेरे किसी कार्यव्यवहार से आगे आने वाली पीढ़ी लांछित न हो इस बात का हमें ध्यान देना होगा

खानपान में भी पतित न हों

भ्रष्ट न हों

स्थानभ्रष्टा न शोभन्ते दन्ताः केशा नखा नराः ।

मनुष्य का स्थानभ्रष्टत्व यही है यदि उसके कारण दूसरा लांछित हो जाये


हमारा चिन्तन दूषित हो गया इस कारण अपने काम को पूरी प्रामाणिकता से न कर दूसरों को दोषी ठहराना हमारा शगल बन गया


इस बार वासंतिक नवरात्रि 02 अप्रैल 2022, शनिवार से शुरू होकर 11 अप्रैल 2022, सोमवार तक है। इसी उपलक्ष्य में 6अप्रैल को हम लोगों के गांव सरौंहां में मेला है

यह काम हम लोग नहीं कर रहे हैं यह सब परमात्मा हम लोगों से करवा रहा है और जब यह भाव मन में आ जाता है तो हमारा अहंकार दूर हो जाता है


यह मेरा यह तेरा यह जिला मेरा यह प्रदेश मेरा यह भवन मेरा ऐसा किसी  भी तरह का विभाजन मिथ्या धारणाओं से भरा है जब मनुष्य इस तरह की भ्रान्त धारणाओं से मुक्त हो जाता है तो वह पारिवारिक सामाजिक राष्ट्रीय स्नेह से उत्पन्न कुसंगतियों से मुक्त हो जाता है

19.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है वेदि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19/03/2022

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अध्यात्म में एक अद्भुत प्रक्रिया है कि मनुष्य स्वयं बोले और स्वयं सुने इसके अतिरिक्त मौन का श्रवण, चिन्तन का विस्तार भी अद्भुत पक्ष हैं

होली में एक प्रथा है जिसमें वर्ष -फल सुनाया जाता है

इसी पर आधारित एक कार्यक्रम कल हम लोगों के गांव सरौंहां में हुआ 

इस समय राक्षस संवत्सर चल रहा है

2 अप्रैल से ‘नल’ नामक संवत्सर का आरंभ होगा।

इस साल के राजा शनि महाराज होंगे क्योंकि साल का आरंभ शनि के दिन से हो रहा है।


सूक्ष्म से विस्तार तक, व्यक्ति से समाज तक, तत्त्व से तथ्य तक मनुष्य के जीवन का अद्भुत विस्तार है

गीता में

ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।


छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।


कबीर कहते हैं

सुखिया सब संसार है, खाए अरु सोवै। 


दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै॥


रंगी को नारंगी कहे , नगद माल को खोया


चलती को गाड़ी कहे , देख कबीरा रोया ।


(फिल्म जागते रहो के गाने जिन्दगी ख्वाब है का प्रारम्भ रंगी को नारंगी कहे, बने दूध को खोया

चलती को गाड़ी कहे, देख कबीरा रोया से है)



गीता में ही


न रूपमस्येह तथोपलभ्यते


नान्तो न चादिर्न च संप्रतिष्ठा।


अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल


मसङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा।।15.3।।

ततः पदं तत्परिमार्गितव्य


यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः।


तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये


यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी।।15.4।।


इस संसारवृक्ष का जिस तरह का रूप दिखता है, वैसा यहाँ  मिलता नहीं, कारण है इसका न आदि है न अन्त है और न स्थिति ही है।

अतः इस दृढ़ मूलों वाले वृक्ष को दृढ़  शस्त्र के द्वारा काटकर 

उसके बाद परमात्मा की खोज करनी चाहिये जिसको पाने पर मनुष्य फिर लौटकर  नहीं आते और जिससे अनादिकाल से चल रही यह सृष्टि विस्तार को प्राप्त हुई  है, उस आदिपुरुष परमात्मा की मैं शरण हूँ।


निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै


र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।


ये बहुत प्रबोधित करने वाले छन्द हैं

ये शक्ति के स्वर मन को उत्साह देते हैं  हमें आत्मविश्वासी बनना है

स्वाध्याय ध्यान संगठन शक्ति संचय की आवश्यकता है


समाज के लिये राष्ट्र के चैतन्य के लिये समय निकालें


समस्या का समाधान स्वयं खोजें


युवा बाल वृद्ध से बात करते समय तत्त्व निकालें


जिस काम को करें उसमें व्यवस्थाएं बांट लें समय का ध्यान दें परिणाम का भी ध्यान दें कर्म संन्यास में लगें

विश्वास की अत्यन्त आवश्यकता है


गीता की पृष्ठभूमि को देखें वह बैठने के लिये कतई नहीं है

18.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 आचारवान् सदा पूत: सदैवाचारवान् सुखी

आचारवान् सदा धन्य: सत्यं सत्यं च नारद।।


प्रस्तुत है राष्ट्रोज्झक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18/03/2022

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आज होलिकोत्सव है हमारे यहां के त्यौहारों के मूल में कोई न कोई कथा होती है मनुष्य भी कथा का आधार लेकर अपना जीवन चलाता है और अपने जीवन के साथ पूरी सृष्टि को समाहित कर लेता है

यह  आत्मानुभूति हिन्दू जीवन की विशेषता है

हम अणु आत्मा को जाग्रत होने की आवश्यकता है

हिन्दू क्या है हिन्दुत्व क्या है इस पर लेख लिखा जा सकता है विचार गोष्ठी आयोजित की जा सकती है


आचार्य जी ने आगम, निगम, इष्ट, पूर्त, आचार्य के अर्थ बताये

हमारे यहां की परम्परा गहन विचार करने योग्य है


वशिष्ठ स्मृति में


आचारहीनं न पुनन्ति वेदा यद्यप्यधीता: सह  षड्भिरंगै:। छन्दांस्येनं मृत्युकाले त्यजन्ति नीडं शकुंता इव जातपक्षा: ll


छह अंग वाले वेद भी आचारहीन मनुष्य को पवित्र नहीं करते। मृत्युकाल में आचारहीन मनुष्य को वेद वैसे ही त्याग देते हैं जैसे पंख उगने पर पक्षी अपने घोंसले को त्याग देता है


संस्कार में यह बहुत आवश्यक है कि हम सचेत सक्रिय होने के साथ साथ कठोर भी हों इसके लिये आचार्य जी ने बैरिस्टर साहब का उदाहरण दिया


आचार्य जी ने यह भी बताया कि भगवान् राम और कृष्ण हमारे आदर्श क्यों हैं


सत्पुरुषों को संगठित होने की अत्यन्त आवश्यकता है ताकि उनकी ओर कोई आंख उठाने की हिम्मत न कर सके

17.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रज्ञात आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17/03/2022

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हमें ऐसे चलचित्रों को प्रोत्साहित करना चाहिये जिनका  उद्देश्य केवल मनोरञ्जन न होकर शिक्षा,संस्कार आदि का होता है

अधिकांश चलचित्रों का उद्देश्य मनोरञ्जन होता है लेकिन कुछ चलचित्र ऐसे भी होते हैं जो एक विशिष्ट संदेश देते हैं इसी तरह का एक चलचित्र है द कश्मीर फाइल्स जो 1990 में कश्मीरी पंडितों द्वारा  सहे गए क्रूर कष्टों का आख्यान है

इसे देखने के लिये अपार भीड़ उमड़ रही है

आर्यत्व भारतीयत्व सनातनत्व का उत्साह हिलोरें ले रहा है

इन हिलोरों का उपयोग भी होना चाहिये हमारा आवेग आक्रोश आवेश ऊर्जा में परिवर्तित हो जाये इसकी विधि व्यवस्था हो

 रामलीला का मंचन बहुत लम्बे समय से हो रहा है जो विजय का संदेश,शौर्य का उभार, संगठन का कौशल और समस्याओं का समाधान है

द कश्मीर फाइल्स की तरह हरिसिंह नलवा, महाराजा रणजीत सिंह, गुरु गोविन्द सिंह,बन्दा बैरागी, महाराणा प्रताप के सच्चे स्वरूपों को दिखाते चलचित्र भी बनने चाहिये

आचार्य जी ने गरीबी पर जून 2015 में एक कविता लिखी थी

गरीबी गांव का अभ्यास शहरों की समस्या है 

गरीबी कर्महीनों को बिना फल की तपस्या है...

इसके अन्त में संदेश है कि पुरुषार्थी कभी गरीब नहीं होता है


विश्व में भारत के प्रभाव को बढ़ाने  के लिये हम लोग सदैव प्रयत्नशील रहें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शशि शर्मा का भैया पुनीत श्रीवास्तव का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें 

16.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न

हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न



प्रस्तुत है पौर्तिक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16/03/2022

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आचार्य जी का प्रयास रहता है कि नित्य की इस सदाचार वेला से हम श्रोताओं की भावनाएं उत्थित हों,हम सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा पा सकें, समाज -सेवा और देश -सेवा के लिए सदैव तत्पर रहें, शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन और सुरक्षा का आधार लेकर काम करने का जो संकल्प लिया है उसे भूल न पाएं


राजनीति से पूरा विश्व किस तरह से प्रभावित है पूरी मानवता को ध्वस्त करने का प्रयास किस तरह जारी है इसके लिए आचार्य जी ने रूस यूक्रेन युद्ध का उदाहरण लिया


यही राजनीति अपने देश पर  आज भी हावी है

जब कि हमारा देश परमात्मा की अद्भुत रचना है


हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार

उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक-हार


जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक

व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक.....

बाहरी लुटेरों व्यापारियों द्वारा हमारे सनातन धर्म को नष्ट करने का प्रयास बार बार किया गया लेकिन आग सुलगती रही ऋषित्व मरा नहीं शौर्य संघर्ष करता रहा ऋषित्व चिन्तनरत रहा हमारा भी कर्तव्य है कि भारत के वास्तविक इतिहास से हम परिचित हों


आर्य समाज की स्थापना सर्वप्रथम 10 अप्रैल 1875 में, मुम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती के द्वारा की गई थी। इसके पश्चात स्वामी दयानंद सरस्वती ने सन् 1877 में लाहौर तथा 1878 में दिल्ली में आर्य समाज की स्थापना की। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ' वेदों की ओर लौटो ' का नारा दिया था और आठ वर्ष बाद सन् 1883 में स्वामी जी की हत्या हो गई l

आर्यसमाज के बढ़ते प्रभाव को देखकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28 दिसम्बर 1885 को मुंबई के गोकुल दास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1 मई सन् 1897 को रामकृष्ण परमहंस के  शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने की इस मिशन की स्थापना के केंद्र में वेदान्त दर्शन का प्रचार-प्रसार है।

आचार्य जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के त्रिसूत्र का उल्लेख करते हुए बताया कि निष्क्रिय लोगों के दुश्चक्र में सक्रिय लोग किस तरह  फंस जाते हैं

आज भी स्थिति गम्भीर है इस कारण हमें अपने कर्तव्य की पहचान  करनी होगी और अपने लक्ष्य को पाना ही है यह निश्चय करना होगा

15.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 तुलसी यह तनु खेत है मन बच कर्म किसान ।


पाप-पुन्य द्वै बीज हैं बवै सो लवै निदान ॥ ५॥


प्रस्तुत है  प्रजागर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15/03/2022

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यद्यपि मां सरस्वती वाणी सभी को देती हैं लेकिन वाणी का विधि- विधान सभी को प्राप्त नहीं होता है इसी कारण एक ओर तो किसी किसी की वाणी  इयत्ताशून्य प्रभाव छोड़ती है तो दूसरी ओर उसकी वाणी सुनी भी नहीं जाती

इस अजूबे शबल /शवल संसार में रहते हुए हमें संसार के सत्य का अनुसंधान करना चाहिये

सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई।।

तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन।।

इस भौतिक भंवर में मनुष्य अपने कर्तव्य के प्रति सदा असंतुष्ट रहते हुए डूबता तिरता अपने को संसार में सर्वाधिक दुःखी सिद्ध करते हुए आरोप प्रत्यारोप दूसरों पर मढ़ता रहता है

संसार की यह अद्भुत लीला है   लेकिन कुछ क्षणों के लिये यह समझ में आ जाता है कि परमार्थ ही हमारा कर्तव्य है और जो करता है वह परमात्मा ही करता है तो यह अत्यन्त आनन्दप्रद होता है



तुलसी ऐसे कहुँ कहूँ धन्य धरनि वह संत ।


परकाजे परमारथी प्रीति लिये निबहंत ॥ १०॥


परमार्थ में जुटे मनुष्य निष्क्रिय नहीं बैठते


की मुख पट दीन्हें रहें, जथा अर्थ भाषंत,

तुलसी या संसार में, सो विचारजुत संत [११]

वे चुप रहेंगे या यथार्थ बोलेंगे


हम लोगों के विचारों पर एक ऐसा जाल है कि हम लोग सोचते कुछ हैं और बोलते कुछ हैं


आचार्य जी कहते हैं हममें से जो लोग  पदों पर स्थित हैं या अन्य प्रकार से योग्य हैं उन्हें अपना अपना प्रभाव प्रदर्शित करना चाहिये

गांवों की दशा बहुत खराब है वहां ध्यान दें

वृद्धावस्था में शरीर बोझिल हो जाता है लेकिन उसका बोझ महसूस न हो यह परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिये


मनुष्य के रूप में मिली यह सौगात व्यर्थ न जाये इसके लिये हमें अपनी बुद्धि शक्ति विचार व्यवहार का सदुपयोग करना चाहिये

अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन विचार सब भारत मां के चरणों में अर्पित करें

यही सदाचार का सार है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संतोष जी का नाम क्यों लिया नरौंहां क्या है आदि जानने के लिये सुनें 👇

14.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 सांझ उतर आयी मन की अभिलाष न पूरी है

कोई   चन्द्रगुप्त   गढ़ने  की  साध   अधूरी है


प्रस्तुत है रोहि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14/03/2022

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अद्भुत वाणी के स्यन्दन पर  आरूढ़ आचार्य जी पूर्व निर्धारित विषय न होने पर भी हम लोगों को मार्गदर्शन देने की विलक्षण क्षमता रखते हैं


आत्म से निःसृत दृष्टि सृष्टि रच देती है कल की सदाचार वेला से हम आचार्यजी के शिष्यों की संवेदनाएं झंकृत हो गई थीं

संवेदनशील व्यक्तियों को संवेदनाएं प्रभावित करती रहती हैं और वो लोग व्यथा और आनन्द की अनुभूति करते रहते हैं


कल हम लोगों के गांव सरौंहां  में एक महिला गोलोकवासी हो गई  और उस महिला पर एक उपन्यास तक लिखा जा सकता है

प्रपंचों से भरे इस जगत् में ऐसा ही है कि जब साक्षात् जीवन घूम रहा था वो उपेक्षित रहा हम लोग कल्पना की पूजा करते हैं और यथार्थ की उपेक्षा करते हैं


We are living in such a world, Where Artificial Lemon flavour is used for " Welcome Drink" and real lemon is used in " Finger Bowl".


जीवन एक COLLAGE है

कहने का तात्पर्य है उपन्यास के रूप में कल्पना की एक पृष्ठभूमि बना दी गई इसी तरह परमात्मा के बने इस नाट्य मंच पर हम लोग  भी मंचन करते रहते हैं

आचार्य जी ने विद्यालय की पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए बताया कि दीनदयाल जी जब तक जीवित थे तो उनकी समीक्षा होती रही और फिर उनकी स्मृति में संस्थाएं बनती गईं

आचार्य जी ने अपने काव्य संग्रह  गीत मैं लिखता नहीं हूं के पृष्ठ 97/98 पर लिखी कविता का पाठ किया


सांझ उतर आयी मन की अभिलाष न पूरी है

कोई   चन्द्रगुप्त   गढ़ने  की  साध   अधूरी है


उस स्रष्टा की सृष्टि को पहचानने का हम लोगों को प्रयास करना चाहिये 

13.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्| वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ||



प्रस्तुत है मधुराक्षर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13/03/2022

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हम लोग देख रहे हैं कि आचार्य जी प्रायः जब भी अपनी भावनाएं संप्रेषित करते हैं उनमें यही प्रकट होता है कि कभी तो भारत का दिव्य रूप सामने आयेगा

इसका सपूत हरदम विश्वासी होता है 


आचार्य जी कहते है जब भी सपनों को हकीकत में बदलने का प्रयास किया कल्पनाओं को विस्तार देने का प्रयास किया तो इतने अवरोध सामने आ गये कि सपने सपने ही रह गये

जब विद्यालय प्रारम्भ हुआ तो नये नये चन्द्रगुप्त गढ़ने का विचार मन में आया विद्यालय विस्तार लेगा तरह तरह के विकास के पक्ष उपपक्ष खुलते जायेंगे ऐसे विचार भी मन में आये


आज भी आचार्य जी हम लोगों के व्यवहार, स्नेह, आदर और श्रद्धा के कारण उत्साह से लबरेज हैं


आत्मस्थ होना अतिआवश्यक है इन्हीं भावनाओं को आचार्य जी ने कल एक कविता के माध्यम से व्यक्त किया जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं



सपनों के पंख नहीं होते, होते न सत्य के पांव कभी


वीरों के लेंहड़ न होते हैं संतों के होते गांव कभी?


क्या कहीं प्रतिष्ठा की बाजारें लगती हैं

पौरुष का कहीं न होते देखा मोल -तोल


पुरुषार्थ पराक्रम मौन मनन में रत रहता

पर संकट में अड़ जाता अपना वक्ष खोल


जो नियमनीतियों की परिभाषा गढ़ते हैं

वो शायद ही उनका परिपालन कर पाते......


आज भी प्रतिभाओं की कमी नहीं है लेकिन लोग उन्हें जान नहीं पाते और वे उन्हीं जीवात्माओं में समाई रहती हैं

जिनमें भारतीयता की अनुभूति हो उन्हें एकत्र करें

अपने कार्यव्यवहार भारत मां के चरणों में समर्पित करें

लेखन को अतिमहत्त्वपूर्ण बताते हुए आचार्य जी कहते हैं कि लेखन  आत्मदर्शन आत्मचिन्तन आत्मप्रेरणा आत्मशक्ति है

12.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 उत्साहसंपन्नमदीर्घसूत्रं   क्रियाविधिज्ञं  व्यसनेश्वसक्तम्  |

शूरं  कृतज्ञं  दृढ  सौहृदं  च  लक्ष्मी  स्वयं याति निवासहेतोः ||



प्रस्तुत है परिरक्षक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12/03/2022

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समाज और देश हित के किसी भी बड़े काम को करने के लिये सांगठनिक शक्ति अनिवार्य है क्योंकि यह कलयुग है इसलिये व्यक्ति की शक्ति की अपेक्षा संघ की शक्ति अपार होती है


हमें ऐसे संगठन में विश्वास करना चाहिये जहां हमारे मन मिलते हों


लगभग पंद्रह दिनों तक संघर्ष करने के बाद भैया राजेश मेहरोत्रा  जी (१९८५ बैच) ( आर्य नगर स्वरूप नगर व्यापार मंडल के  प्रचार मंत्री  ) कल हमारे बीच नहीं रहे

इस तरह की सूचनाओं से मन    बहुत खराब हो जाता है

मन भी बहुत विचित्र होता है


मन मन भर का जब हो जाता

उत्साह गाथ का खो जाता


इस कारण हमें गीता /मानस का सहारा लेना चाहिये


शाश्वत वाणी और लौकिक वाणी में अन्तर स्पष्ट करते हुए आचार्य जी ने


ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।


छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।


की व्याख्या की


वैदिक भाषा और लौकिक भाषा में अन्तर है सरल से कठिन की ओर जाना बहुत मुश्किल है


ऋषित्व तक बिना पहुंचे ऋषित्व की अनुभूति करना  बहुत कठिन है


गीता के सार को समझना सबके वश में नहीं है तिलक जी ने इसे समझकर गीता रहस्य विस्तार से लिख दिया


हम भी अपना मार्ग खोजें कदम तेज हों या धीमे उस ओर अवश्य बढ़ायें 

उद्देश्य लेकर चलना हमारा काम है

अपनी दिनचर्या को समाजोन्मुखी बनाकर जीवन आनन्दपूर्ण हो जाता है


आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि भक्ति अकर्मण्यता नहीं है

किसी भी कार्य में तल्लीन हो जाना अद्भुत परिणाम देता है

आत्मस्थ होने का अभ्यास करें तो जीवन मङ्गलमय बनता है

समाज हमें जाने इसका प्रयास करें

समाज में फैले भ्रम को दूर करें

11.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 11/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 हम लाए हैं तूफान से किश्ती निकाल के

इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के

तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के

इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के


प्रस्तुत है परिमितकथ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 11/03/2022

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कल घोषित हुए चुनाव परिणामों की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने कहा विजेता प्रतिनिधियों का अब कर्तव्य है कि धन्यवाद देने के लिये और एक व्यवस्थित व्यवस्था स्थापित करने के लिये पुनः अपने क्षेत्रों का दौरा करें वो अपना तरीका  बदलें 

लोकतन्त्र में पूरा समाज स्वस्थ रहे इसकी व्यवस्था होनी चाहिये

सुविधाभोगी होने के कारण जीते हुए प्रत्याशियों के साथ दूसरी पार्टी के लोग भी चल देते हैं और इसका कारण होता है स्वार्थ


यद्यपि स्वार्थ व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ता है लेकिन स्वार्थ यदि विकृत है तो यह कटुता को जन्म देता है


स्वार्थ उतना ही हो जिससे संबंधियों के साथ प्रेम और लगाव कम न हो

हम इस धरती पर जन्मे है इसको सजाना संवारना हमारा काम है


गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे ।


स्वर्गापवर्गास्पद हेतुभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात ॥ 


विष्णुपुराण


भगवान् कृष्ण ने संकटकाल में अर्जुन को समझाया है


बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्याऽऽत्मानं नियम्य च।


शब्दादीन् विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।18.51।।

विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः।


ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः।।18.52।।


अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।


विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते।।18.53।।


शुद्ध बुद्धि से युक्त, धृति द्वारा आत्म को संयमित कर, शब्दादि विषय  त्याग कर एवं राग-द्वेष का परित्याग कर,एकान्त का सेवन करने वाला, कम उपभोग करने वाला शरीर मन वाणी को काबू में करके ध्यानयोग का अभ्यासी और वैराग्य का आश्रित

अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध , परिग्रह त्याग कर ममत्वभाव से दूर एवं शान्त पुरुष ब्रह्म प्राप्ति का योग्य बन जाता है।


हम लोग संसार के अंधकार में प्रकाश करने की चेष्टा करते हैं वास्तविक इतिहास से हमें परिचित कराने में कुछ लोग जुटे हैं कुछ साहित्य में जुटे हैं हमारी अच्छी बातें कुण्ठित न हों इसके लिये हमें प्रतिष्ठा भी मिलनी चाहिये

प्रयत्नशील लोगों को अकेला न छोड़ें

नई पीढ़ी को संस्कार दें युगभारती का यह धर्म है


आपका प्रकाश  दूसरों को मार्ग दिखाये

10.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है धृतिमत् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10/03/2022

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भारतवर्ष की भूमि का भाव अद्भुत है  हम भावुक जन तो रूस -यूक्रेन युद्ध से भी व्यथित हो जाते हैं 

इसी भावनासंपन्नता के कारण हमारे परिवार कुटुम्ब बहुत गहरी जड़ों से उद्भूत हुए हैं


यही भावना शक्ति काव्य, कथा, चिन्तन में व्यक्त होने लगती है इसी भाव के परिणामस्वरूप ही तमसा तट पर आदिकवि की करुणा जाग उठी और उनके मुख से व्यथा का स्वर निकल गया जो संस्कृत भाषा का प्रथम श्लोक बना

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः।

यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥


सुमित्रानन्दन पन्त कहते हैं

वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान। उमड़कर  नयनों  से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान..।'


मनुष्य का जीवन भावनाओं के सागर में तैरता रहता है

जो भरा नहीं है भावों से

बहती जिसमें रसधार नहीं

वह हृदय नहीं है पत्थर है

जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं




( ये काव्य पंक्तियां गया प्रसाद शुक्ल सनेही जी ने ’स्वदेश’ नामक समाचारपत्र के लिए लिखी थीं )


भाव से संयुत कई विषय हैं चुनाव के आज घोषित होने वाले परिणाम 

भारत मां की कटी भुजाएं तो बहुत लम्बे समय से पीड़ा पहुंचा रही हैं

आदि 


यही भावनाओं का धन भक्ति और शक्ति बनता है इन्हीं भावनाओं के आधार पर जब विचार पल्लवित होते हैं तो वेद की उत्पत्ति होती है


सृष्टि क्या है सत्य क्या है उद्भव पालन प्रलय की कहानी क्या है इन सारी जिज्ञासाओं के शमन के लिये मनुष्य में ज्ञान उत्पन्न होता है


कभी हम विश्लेषणात्मक हो जाते हैं कभी रचनात्मक


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि सदाचार वेला को ध्यान से सुनें और प्रश्न भी करें अपनी दृष्टि निर्मल रखें अपनी बुराइयों की समीक्षा करें आत्मविश्लेषण करें 

किसी भी अनुसंधान में भावना पक्ष के संयुत होने से इधर उधर का ध्यान नहीं रहता

रम जाना ही भक्ति है भक्ति में शक्ति है


किसी संस्था को चलाने का मनोविज्ञान क्या है आदि जानने के लिये सुनें

9.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 09/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अनन्यहृदय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 09/03/2022

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सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें यूक्रेन से लौटे संस्कारविहीन छात्रों के सामने केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी हाथ जोड़े खड़े हैं l

यह अत्यन्त कष्टकारी है जब कि भारत सरकार ने तो अपनी तत्परता दिखाई संवेदनशीलता का नमूना पेश किया

हमारा मानस इस तरह का हो गया है कि हमें विदेश स्वर्ग लगता है और हमारे यहां की संस्कृति कहती है


पञ्चमेऽहनि षष्ठे वा शाकं पचति स्वे गृहे ।

अनृणी चाप्रवासी च स वारिचर मोदते ।।१५।।



 जो व्यक्ति पांचवें,छठे दिन ही सही, अपने घर में सब्जी पकाकर खाता है, जिस पर किसी का ऋण नहीं है और जिसे विदेश में नहीं रहना पड़ता है, वह सुखी है ।

यक्ष युधिष्ठिर संवाद वनपर्व अध्याय 312/313

 

ऋण कई तरह के होते हैं संस्कारों का भी ऋण होता है 

हमारे यहां संस्कार का बहुत महत्त्व है

जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद् द्विज उच्यते।

वेदपाठाद् भवेद् विप्रः ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः।।



मेदिनीकोशः (संस्कृत का एक कोश है), जिसकी रचना चौदहवीं शताब्दी में मेदिनिकर ने की, के अनुसार संस्कार का अर्थ है अनुभव, मानस कर्म


हमारे यहां बचपन के संस्कार बहुत विशाल संपदा हैं जिसके कारण ही हम समय पर सही निर्णय लेने वाले बने


गुरु के रूप में हमारी प्रतिष्ठा इसी कारण विश्व में हुई


आत्मबोध के साथ अपना राष्ट्रबोध भी जाग्रत हो परमात्मा हर जगह विद्यमान है यह अनुभूति करें तब हमें परमात्मा पर विश्वास होता है परमात्मा पर विश्वास का अर्थ ही है आत्मविश्वास


तब हम शरीर नहीं रहते शरीरी हो जाते हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा से संबन्धित कौन सा प्रसंग सुनाया आदि जानने के लिये सुनें

8.3.22

अर्च्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 08/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अर्च्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 08/03/2022

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आचार्य जी ने उ प्र चुनाव के शीघ्र आने वाले परिणाम के लिये बन रही उत्सुकता की चर्चा की


गीता कहती है कि बहुत अधिक लगाव कहीं से नहीं रखना चाहिये लेकिन इस संसार का सत्य यही है कि होता कुछ और है

लेकिन एक बात जरूर है कि कुछ मनस्वी जन जो इसके तथ्यों और तत्त्व को पा लेते हैं वो भाग्यशाली हैं


भैया अनुपम त्रिवेदी जी( बैच 1982) के पूज्य पिता जी कल इस असार संसार को त्याग कर स्वर्गगमन कर गए ।

एक लम्बे समय से वह वृंदावन में निवास कर रहे थे


जितना अधिक परिचय होता है तो एक ओर तो इस कारण उतनी ही व्यथाएं, उलझनें, समस्याएं होती हैं और दूसरी ओर  आनन्द की उतनी ही अनुभूति भी होती है


इसी तरह अर्जुन का भी परिचय था

 युद्ध में भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य दोनों सामने खड़े हैं जब कि अर्जुन दोनों का दुलारा था


एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप।

न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ॥9॥


यहां अर्जुन को गुडाकेश कहा गया है गुडा अर्थात् निद्रा

गुडाकेश अर्थात् जिसने नींद पर भी विजय प्राप्त कर ली हो


जो नींद पर विजय प्राप्त कर सकता है उसके लिए अवसादों पर विजय पाना बायें हाथ का खेल है


वो अर्जुन कहता है हे गोविंद, 'मैं युद्ध नहीं करूंगा," और चुप हो गया।


तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत।


सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः।।2.10।।


दोनों सेनाओं के मध्य  शोकमग्न अर्जुन को भगवान्  ने हँसकर ये कहा


अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।


गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः।।2.11।।


जिनके लिये शोक करना उचित नहीं है उनके लिये तुम शोक करते हो लेकिन ज्ञानियों जैसी बात करते हो , ज्ञानी पुरुष मृत  और जीवित दोनों के लिये शोक नहीं करते हैं।


न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।


न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।।2.12।।

रूप बदल बदल कर आते हैं


देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।


तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति।।2.13।।



हमें ऋषि के सही अर्थ को जानना चाहिये ऋषियों ने एक से एक बढ़कर अनुसंधान किये हैं


परिभाषेन्दुशेखरः पुस्तक में व्याकरण शास्त्र के गम्भीर शब्दों की व्याख्या है


विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार 'सूत्र' की निम्नलिखित परिभाषा  है-


अल्पाक्षरं असंदिग्धं सारवत्‌ विश्वतोमुखम्‌।

अस्तोभं अनवद्यं च सूत्रं सूत्र विदो विदुः॥

(अर्थात् अल्प अक्षरों वाला, संदेहरहित, सारस्वरूप, निरन्तरता धारण किये और त्रुटि रहित कथन को  सूत्र कहते हैं।)


अपने यहां बहुत से सूत्र हैं


ब्रह्मसूत्र

योगसूत्र

न्यायसूत्र

वैशेषिक सूत्र

पूर्व मीमांसा सूत्र

माहेश्वर सूत्र

वास्तुसूत्र

भगवती सू‍त्र

कात्यायन श्रौतसूत्र

शांखायन श्रौतसूत्र

आपस्तम्ब श्रौतसूत्र 

विष्णु धर्मसूत्र

वैखानस धर्मसूत्र

हिरण्यकेशी श्रौतसूत्र

वाराह श्रौतसूत्र 

आश्वलायन श्रौतसूत्र

बौधायन धर्मसूत्र

भारद्वाज श्रौतसूत्र

वैतान श्रौतसूत्र

वासिष्ठ धर्मसूत्र

जैमिनीय श्रौतसूत्र

लाट्यायन श्रौतसूत्र

गौतम धर्मसूत्र

धर्मसूत्र

द्राह्यायण श्रौतसूत्र 

क्षुद्र कल्पसूत्र

वाधूल श्रौतसूत्र

बौधायन श्रौतसूत्र 

हिरण्यकेशि धर्मसूत्र

आर्षेय कल्पसूत्र

मानव श्रौतसूत्र

कल्पसूत्र 

हारीत धर्मसूत्र

दाल्भ्य सूत्र

देवल सूत्र

धन्वन्तरि सूत्र


किसी प्रसिद्ध सूत्रग्रन्थ की व्याख्या को भाष्य कहते हैं। किन्तु भाष्यग्रन्थ मूलग्रन्थ भी हो सकता है। आदि शंकराचार्य का ब्रह्मसूत्र पर लिखा भाष्य प्रसिद्ध है।


भामती एक ग्रंथ है, जो  शंकराचार्य के 'ब्रह्मसूत्र' के भाष्य की  टीका है। 

इसके रचयिता  वाचस्पति मिश्र (नवीं शताब्दी) थे 

भामती 'अद्वैतवाद' का  प्रमाणिक ग्रन्थ है।


ब्रह्मसूत्र से परिमल तक की अद्भुत व्याख्याएं हैं


इतने विशाल भण्डार को हम अनदेखा करते हैं

वेद की नासिका शिक्षा की हमें चिन्ता नहीं है हम इस ओर ध्यान दें चिन्तन करें


भ्रम भय निराशा स्वयं पर अविश्वास से दूर रहें

7.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 07/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 मनभर लोहे का कवच पहन¸

कर एकलिंग को नमस्कार।

चल पड़ा वीर¸ चल पड़ी साथ

जो कुछ सेना थी लघु–अपार॥5॥


घन–घन–घन–घन–घन गरज उठे

रण–वाद्य सूरमा के आगे।

जागे पुश्तैनी साहस–बल

वीरत्व वीर–उर के जागे॥6॥


सैनिक राणा के रण जागे

राणा प्रताप के प्रण जागे।

जौहर के पावन क्षण जागे

मेवाड़–देश के व्रण जागे॥7॥


प्रस्तुत है अर्थार्थिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 07/03/2022

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आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अपने अपने गृहस्थी धर्म को निभाते हुए  हम युग भारती के सदस्य भारतीय संस्कृति हिन्दू धर्म भारतीय चिन्तन को गौरवान्वित कर सकने वाले कार्य कर सकते हैं

कल साप्ताहिक विमर्श में शिक्षा और शिक्षा नीति पर चर्चा हुई

हमें समझना होगा कि मूल शिक्षा क्या है

शिक्षा संस्कार है और विद्या ज्ञान है वेदों में विद्या है शास्त्रों  में शैक्षिक चिन्तन है

शास्त्र का अर्थ है शासन, आदेश,प्रशिक्षण


शास्त्र की उत्पत्ति का वर्णन मत्स्य पुराण में इस प्रकार  है-


पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं बह्मणा स्मृतम्।

.........

कार्य अकार्य को शास्त्र का प्रमाण माना गया है

वेद एक पुरुष है ज्ञान का साक्षात् पुरुष

ज्ञान को हम भीतर की आंखों से देख सकते हैं


शिक्षा वेद की नासिका है छन्द वेद के पैर हैं


शुद्ध उच्चारण का शास्त्र है

क्योंकि हमारी जड़ों को काटकर शिक्षा थोपी गई इसलिये हमें अपनी शिक्षा पद्धति और ज्ञान गरिमा पर भरोसा नहीं रहा


संयोजित समायोजित व्यवस्थित समन्वित शिक्षा से ही शिक्षा का प्रभाव व्यक्तित्व पर होगा


शिक्षा के बहुत से पुराने ग्रंथ हैं महाभारत के शान्तिपर्व में शिक्षा का अंश है भारद्वाजशिक्षा (पुणे से प्रकाशित ) है इन सबका उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने पाणिनीय शिक्षा को पढ़ने का परामर्श दिया


हम लोग शिक्षा संग्रह को भी खोज सकते हैं


इन सबका अध्ययन कर अनुसंधान का काम करके हम लोग बहुत से लोगों का कल्याण कर सकते हैं


व्यवहार से अध्यात्म के सोपान चढ़ें    स्थूल से सूक्ष्म की ओर चलें


सही शिक्षा के लिये एक आन्दोलन चलना चाहिये

6.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 06/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अर्ह्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 06/03/2022

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आयुर्वेद में कहा गया है

वैद्यानां शारदी माता पिता च कुसुमाकर: ।

यमदंष्ट्रा स्वसा प्रोक्ता हितभुक् मितभुक् रिपु: ॥


वसन्त ऋतु में रोगों की वृद्धि होती है  वैद्यों हेतु शरद ऋतु माता की तरह और वसन्त ऋतु पिता की तरह है । ये दो ऋतुएं मृत्यु के देवता यमराज के दो दाँत है ऐसा मानना चाहिए । बचने के लिए एक ही उपाय है कि हितकर आहार और लघु आहार का सेवन किया जाये ।

जिनकी प्रकृति बाह्य प्रकृति से मेल खा जाती है वे लोग रोगों से संघर्ष कर लेते हैं अन्यथा वैद्य /DOCTOR की आवश्यकता होती है

मनुष्य जीवन में वाणी विधान बहुत शक्तिशाली है जिनको वाणी विधान  बहुत अधिक सिद्ध हो जाता है उनके द्वारा उद्भूत भाव मन्त्र/ वरदानी स्वर कहलाते हैं

परमात्मा ने इस तरह की विलक्षण शक्ति मनुष्य को सौंपी है लेकिन माया के भ्रम में मनुष्य अपने को पहचान नहीं पाता इसलिये उस क्षरणधर्मा शरीर की सेवा करता है


भगवान् शंकराचार्य  ने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा की और सनातन धर्म एक बहुत विशाल मेडिकल कालेज की तरह है यहां उसी का इलाज सही ढंग से हो पाता है जो इसके विधि विधान को ठीक से समझता है


अज्ञानता में हम अपना गलत इलाज करा लेते हैं


इसी तरह हमारे मनोभावों का, विचारों का MEDICAL COLLEGE है

गीता से

अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्।


विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम्।।18.14।।


को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने कहा मनुष्य की निर्मिति इस प्रकार होती है

इसी प्रकार पाँचरात्र मत जो वैष्णव सम्प्रदाय का ही एक रूप है,  के अनुसार सृष्टि की सारी वस्तुएँ पुरुष, प्रकृति, स्वभाव, कर्म और देव से उत्पन्न होती हैं


इनको जानने की जिज्ञासा हमारे अन्दर हो ऐसा क्यों है वैसा क्यों है और इस तरह के प्रश्नों के हमें उत्तर मिलने लगें तो हमें समझना चाहिये कि मनुष्यत्व की प्राप्ति की अनुभूति हो रही है


गांव गांव घर घर में संयम शक्ति शौर्य पहुंचाना है ,

प्रेम युक्ति से संगठना कर विजयमंत्र दुहराना है ।।


जो भी जहां कहीं रहता हो,

जो कुछ भी निज-हित करता हो ,

थोड़ा समय देश-हित देकर

निज जीवन सरसाना है ।।

       गांव गांव घर घर में ------


भारत मां हम सबकी मां है यह अनुभूति महत्वमयी ,

सेकुलर वाली तान निराली शुरू हुई है नयी नयी ।

भ्रम भय तर्क वितर्क वितंडा छोड़ लक्ष्य पर दृष्टि रहे ,

हिन्दुराष्ट्र के विजय घोष से नभ को आज गुंजाना है ।।

          गांव गांव घर घर में-----


हिंदुदेश में हम-सब हिंदू जाति पांति आडंबर है ,

शक्ति संगठन के अभाव में दर दर उठा बवंडर है ,

प्रेम मंत्र संगठन तंत्र से बद्धमूल विश्वास करें ,

जनजीवन से भ्रामकता को जड़ से दूर भगाना है ।।

      गांव गांव घर घर में ----


जहां किसी को भय भासित हो उसके दाएं खड़े रहें ,

लोभ लाभ के प्रति आजीवन सभी तरह से कड़े रहें ,

भारत सेव्य और हम सेवक यही भाव आजन्म रहे ,

यही भाव जन जन के मन में हम सबको पहुंचाना है ।।

         गांव गांव घर घर में ------


भारत की संस्कृति में गौरव गरिमा समता ममता है ,

समय आ पड़े तो अपने बल दुष्ट-दलन की क्षमता है ,

हम अपनी संस्कृति की रक्षा हेतु सदैव सतर्क रहें ,

यही विचार भाव जन जन को हमको आज सिखाना है ।।

         गांव गांव घर घर में--------


✍️ ओमशंकर त्रिपाठी


इधर विचार हो रहा

उधर प्रहार हो रहा ,

सितार शान्ति के स्वरों का

तार-तार हो रहा ।

समय नहीं है एक पल,

सुशान्ति हो रही विकल,

जवान तू निकल निकल,

न आएगा कभी ये कल।

व्यथा कि शौर्य ही भ्रमित श्रमित उदार हो रहा।१।

    इधर विचार हो रहा........


कथा व्यथामयी हुई

उदग्रता छुईमुई ,

मनस् भ्रमांध हो गया

बिसास बीज बो गया

विरुद्ध पाठ दीनहीनता का भार ढो रहा ।२। 

इधर विचार------


कभी भ्रमांध दम्भ में

कभी शिथिल प्रबंध में,

कि, ईर्ष्या की आग में

कभी भ्रमे विराग में ।

इसी भ्रमांधता में सत्व आत्मबोध खो रहा ।३।

इधर विचार-----


कि, रक्तबीज बढ़ रहे

सुपृष्ठ देख चढ़ रहे ,

लगा रहे हिसाब हम

बढ़ा रहे हैं वे कदम,

विकर्म क्षुद्र स्वार्थ के विषाक्त बीज बो रहा ।४।

इधर विचार----


समय नहीं विचार का

यही समय प्रहार का,

सभी उठें कमर कसें

कि, एक भाव में बसें ,

दिखेगा यह कि शौर्य शक्ति का उजास हो रहा ।५।

इधर विचार-----


✍️ ओमशंकर त्रिपाठी


आचार्य जी चाहते हैं कि इस सदाचार वेला से हमारे अन्दर उत्साह और चिन्तन का संचार हो और सामाजिक धर्म और राष्ट्र धर्म को निभाने के लिये हमें क्या करना चाहिये इस पर भी हम लोग चिन्तन करें

5.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 05/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अनन्यचेतस् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 05/03/2022

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गहनता की ओर उन्मुख नित्य की इस सदाचार वेला को हम मात्र सुनने तक ही सीमित न रखें अपितु  इसके मूल विषय को खोजकर चिन्तन भी करें


रशिया यूक्रेन युद्ध, उ प्र चुनाव की ओर संकेत करते हुए आचार्य जी ने बताया कि कुछ लोगों का  चिन्तन व्यापक न होकर सीमित हो जाता है जिसके कारण वे भ्रमित रहते हैं और मनुष्यत्व उनसे कोसों दूर रहता है


आचार्य जी ने रशिया यूक्रेन युद्ध और महाभारत युद्ध में अन्तर बताया l महाभारत में युद्धभूमि ऐसे स्थान पर तय की गई थी जहां केवल युद्धरत व्यक्तियों ने ही विजय पराजय का भोग भोगा l बालक, वृद्ध,स्त्री, रोगी आदि युद्ध से दूर थे 

अठारह दिन बाद जब युद्ध समाप्त हुआ उसके बाद का महाभारत भी पढ़ने वाला है


सृष्टि में धर्म का पतन होता ही है लेकिन फिर



परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।


धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।


मनुष्य और ईश्वर का संबंध बहुत पहले से ही एक ही मानवीय भूमि पर प्रतिष्ठित है जहां एक का उत्क्रमण होता है दूसरे का अवतरण होता है


अवतार का क्षेत्र बहुत व्यापक है


एक ही भावभूमि पर उद्भूत होने के कारण भगवान् और भक्त में एकरूपता दिखाई देती है

अपने उपास्य पर साधक का अधिक से अधिक भावारोपण होता है



योगी मूलाधार,स्वाधिष्ठान,मणिपुर ,अनाहत,विशुद्ध,आज्ञा, सहस्रार चक्र तक की यात्रा करते हैं भक्त  अश्रुपात करते हैं विवेचक अनुसंधान में रत हो जाते हैं

मार्ग अनेक हैं गंतव्य एक है


यह हमारे यहां की शिक्षा का आधारभूत तत्त्व रहा है


इस तरह की शिक्षा हमें स्वावलम्बी बनाती है दूसरे को संरक्षण प्रदान करने का भाव उत्पन्न करती है आत्मानुसंधान के लिये प्रेरित करती है और आनन्द की अनुभूति देती है


हममें से प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्र -सेवा कर सकता है लोगों को अपने भाव, विचार, ज्ञान -गरिमा से विषम परिस्थितियों में हौसला दे सकता है

संकट का समय हमारी परीक्षा लेकर यह प्रकट कर देता है कि हम कौन हैं

EMERGENCY से भारत उबर गया

और संकटों से उबर ही जायेगा 

यह उथल पुथल उत्ताल लहर पथ से न डिगाने पाएगी। 

पतवार चलाते जाएंगे, मंजिल आएगी आएगी। 


लहरों की गिनती क्या करना, कायर करते हैं करने दो, 

तूफानों से सहमें हैं जो, पल-पल मरते हैं मरने दो। 

चिर नूतन पावन बीज लिए, मनु की नौका तिर जाएगी।।1।। 

मंजिल आएगी आएगी ………।

यह विश्वास हमें नहीं त्यागना चाहिये इसके लिये अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन आवश्यक है

4.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 04/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 .जाति पाँति पूछै ना कोई।

हरि को भजै सो हरि का होई।


प्रस्तुत है अञ्जस आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 04/03/2022

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जीवन एक निबन्ध है जो निबंध लेखक इस निबन्धात्मक जीवन को भूमिका से लेकर उपसंहार तक बहुत अच्छी तरह से लिख देता है उसे परीक्षक अच्छे अंक दे देता है  और जो विद्यार्थी उस निबन्ध को अच्छी तरह से पढ़ लेता है उसे भी अच्छे अंक मिल जाते हैं

नित्य प्रातःकाल जागकर हम दिनभर के जीवन की भूमिका लिखते हैं मध्याह्न तक उसे शीर्ष पर पहुंचाकर रात्रि आते आते उपसंहार लिखने लगते हैं अध्यात्म की भाषा में यह नित्य प्रलय है


अनुभव की बात है कि हम सब के भीतर परमात्मा विद्यमान है और यदि ध्यानपूर्वक समझने का प्रयास करें तो लगता है सब कुछ अवतरित है

बीच बीच में ऐसे व्यक्तित्व आ जाते हैं जिनमें इतना शक्ति सामर्थ्य होता है कि लगता है स्वयं वो ही परमात्मा हैं


हमारे पास जितना धन है हम यदि उससे संतुष्ट हैं तो हम लोभ मोह मद मत्सर से दूर रहेंगे


और ऐसा भी हो सकता है अपार धन होने पर भी हम संतुष्ट न रहें और परेशान रहें


भौतिक दृष्टि से सर्वत्यागी, आध्यात्मिक दृष्टि से महासंग्रही, विचारक, संत, भक्त  रामानुजाचार्य   दक्षिण में जन्मे   थे और परम्परा देते हुए रामानंदाचार्य तक आये


वैष्णव भक्तिधारा के महान संत रामानन्दाचार्य ने  उत्तर भारत में वैष्णव सम्प्रदाय को पुनर्गठित किया और वैष्णव साधुओं को उनका आत्मसम्मान वापस दिलाया। स्वामी रामानंदाचार्य का जन्म सन् 1299 में माघ माह की कृष्ण सप्तमी को हुआ था।


आठ वर्ष की उम्र में उपनयन संस्कार के बाद उन्होंने वाराणसी पंच गंगाघाट के स्वामी राघवानंदाचार्यजी से दीक्षा प्राप्त की।



वे संत अनंतानंद,संत सुखानंद, सुरासुरानंद, नरहरीयानंद,  योगानंद,  पीपानंद, संत कबीरदास,  संत सेजान्हावी, संत धन्ना, संत रविदास, पद्मावती और संत सुरसरी के गुरु थे।


उनके काल में मुस्लिम बादशाह गयासुद्दीन तुगलक ने हिंदू जनता और साधुओं पर हर तरह की पाबंदी लगा रखी थी। इन सबसे छुटकारा दिलाने के लिए रामानंद ने बादशाह को योगबल के माध्यम से मजबूर कर दिया था और अंतत: बादशाह ने हिंदुओं पर अत्याचार करना बंदकर उन्हें अपने धार्मिक उत्सवों को मनाने तथा हिंदू तरीके से रहने की छूट दे दी ।


रमानन्दाचार्य, कबीर, रैदास, तुलसीदास आदि ने जीवन के निबन्धों को ऐसा लिखा कि उनको जांचने वाला संसार में कोई नहीं मिला

भारत राष्ट्र परमात्मा की एक निर्मिति है और इस राष्ट्र को न नष्ट होने वाला वरदान मिला है 

हम अपनी हरिभक्ति राष्ट्रभक्ति के रूप में देख सकते हैं हम अपना राग खोजें और यह राग इतना अधिक हो कि विराग में भी विस्मृत न हो


इसके अतिरिक्त आचार्य जी से मिलने कल कौन गया था जानने के लिये सुनें

3.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 03/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है युगबाहु आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 03/03/2022

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हमारे यहां अवतारों का विस्तार से वर्णन है यूं तो हम सभी अवतार हैं पूरी सृष्टि ही अवतार है

 भारत भूमि को आधार बनाकर बहुत से चिन्तक विचारक मनीषी जो यहां से लेकर परमात्मा तक अपने सूत्र जोड़े हुए हैं संपूर्ण सृष्टि को संचालित कर रहे हैं


रशिया यूक्रेन युद्ध की ओर संकेत करते हुए आचार्य जी ने कहा भारत में उस विचारधारा की बहुलता होनी चाहिये जिससे भारत पूरे विश्व का आधार बन सके

यूक्रेन और रशिया दोनों ही हमारे प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की ओर इस विश्वास से देख रहे हैं कि वो ही इस युद्ध को शान्त करा सकते हैं

सदाचार वेला एक मन्दिर की तरह है जहां भ्रम भय दुविधा हताशा का कोई स्थान नहीं है


जब आचार्य जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे तो वे हमीरपुर जिले में विद्यामन्दिर इंटर कालेज विशेष अतिथि के रूप में बुलाये गये

उस कार्यक्रम की अध्यक्षता वहीं के RETIRED PRINCIPAL विद्यार्थी जी ने की थी

विद्यार्थी जी ने कहा जब इस देश में अत्याचार बहुत बढ़ जायेगा तो परमात्मा का अवतरण होगा ही क्योंकि वो सर्वत्र रहता है 


यथाऽऽकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्।


तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय।।9.6।।


(गीता में )


महाभारत में द्रौपदी चीरहरण की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने कहा इस धरती ने बहुत से ऐसे भयावह दृश्य देखे हैं और फिर उद्धार भी हुआ है


हमें निराश नहीं होना चाहिये हमारे शरीर में ही बहुत से तत्त्व आदि हैं जिनको पहचानने की आवश्यकता है

आत्मस्थ हों स्वस्थता का अनुभव करें ध्यान धारणा का अभ्यास करें


आने वाले युगभारती के वर्ष प्रतिपदा के कार्यक्रम की समीक्षा अवश्य करें रामनवमी पर भी अपने गांव सरौंहां में कार्यक्रम की योजना  है


ये कार्यक्रम अपने अन्दर की शक्ति बुद्धि विचार उत्साह की अभिवृद्धि के लिये होते हैं

इसके अतिरिक्त किन भट्ट जी की आचार्य जी ने चर्चा की छात्रावास में रहे स्व द्विवेदी जी का हमीरपुर के विद्यामन्दिर से क्या संबन्ध था वैराग्यशतक किसने लिखा आदि जानने के लिये सुनें

2.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 02/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है मञ्जुगिर् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 02/03/2022

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भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ताः तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः ।।

कालो न यातो वयमेव याताः तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः ।।


भर्तृहरि


समय कभी रुकता नहीं यह चलता रहता है जैसे समुद्र चलायमान है समुद्र का स्वभाव है लहराते रहना समय का स्वभाव है संचरित होते रहना


समय के हिसाब से हमारा शरीर हमारी भौतिक स्थिति परिवर्तित होती रहती है पशु पक्षी सब चल रहे हैं इस बात की जिज्ञासा कि ये क्यों चल रहे हैं ये कौन हैं कहां से आये हैं हमारे अध्यात्म के द्वार खुलने लगते हैं

लेकिन जिज्ञासा स्थायी होनी चाहिये

मनुष्य में आध्यात्मिकता  भौतिक जगत से अलगाव के उपरान्त ही उपजती है।

अध्यात्म एक गूढ़ विषय है

यह अनुभूति का विषय है


सामान्य व्यक्ति को यह असत्य ही लगेगा कि हनुमान जी ने सूर्य निगल लिया था लेकिन यदि हम योगमार्ग में जाने के बाद सूर्य के प्रकाश की ऊष्मा की अनुभूति भीतर करने का अभ्यास कर लेते हैं तो हमें उसकी ऊष्मा की अनुभूति होने लगती है


हमारे यहां कहा गया है

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः ॥

चित्त अर्थात् अन्त:करण की वृत्तियों का निरोध सर्वथा रुक जाना योग है ।


यह योगमार्ग एक स्थान पर पहुंचाने वाला है अध्यात्म में रुचि रखने वाले हम भारतीयों को अनुभव होता है कि परमात्म का अंश लेकर जो आते हैं वे वास्तव में परमात्म के अंश की अनुभूति करते हुए रहते हैं


तपःस्वाध्यायनिरतं तपस्वी वाग्विदां वरम्‌। नारदं परिपप्रच्छ वाल्मीकिर्मुनिपुङ्गवम्‌।। 1।।


वाल्मीकि के मन में आया कि मैं किसी के बारे में लिखूं जिसमें सोलह गुण हों तो नारद से पूछते हैं


को न्वस्मिन्‌ साम्प्रतं लोके गुणवान्‌ कश्च वीर्यवान्‌। धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च सत्यवाक्यो दृढव्रतः।। 2।।

चारित्रेण च को युक्तः सर्वभूतेषु को हितः। विद्वान्‌ कः कः समर्थश्च कश्चैकप्रियदर्शनः।। 3।।


तो नारद कहते हैं 


इक्ष्वाकुवंशप्रभवो रामो नाम जनैः श्रुतः। नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान्‌ धृतिमान्‌ वशी।। 8।।

बुद्धिमान्‌ नीतिमान्‌ वाग्ग्मी श्रीमाञ्छत्रुनिबर्हणः। विपुलांसो महाबाहुः कम्बुग्रीवो महाहनुः ।। 9।l

महोरस्को महेष्वासो गूढजत्रुररिन्दमः। आजानुबाहुः सुशिराः सुललाटः सुविक्रमः।। 10।।


समः समविभक्ताङ्गः स्निग्धवर्ण ः प्रतापवान्‌ । पीनवक्षा विशालाक्षो लक्ष्मीवाञ्छुभलक्षणः।। 11।


.....

आचार्य जी नेआठवें से अठारहवें छंद तक पढ़ने का  परामर्श दिया ये छंद प्रभु राम के गुणों का वर्णन करते हैं


यह महापुरुषत्व ही वृद्धि करता करता ईश्वरत्व हो जाता है स्वयं परमात्मा हो जाता है न मनुष्य के पतन की सीमा है न विकास की


रशिया यूक्रेन युद्ध की ओर संकेत करते हुए आचार्य जी ने महाभारत की भी चर्चा की  संसार में सृजन और प्रलय का क्रम चलता रहता है

1.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 01/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है नीतिनिष्ण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 01/03/2022

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यदि गम्भीर विषय न हो सामान्य बातचीत हो तो भी उसमें से तत्त्व निकाले जा सकते हैं

रशिया यूक्रेन युद्ध की ओर संकेत करते हुए आचार्य जी ने बताया कि ये सब अध्यात्म से इतर व्यवहार जगत् का कोप है जो मनुष्य को भस्मीभूत कर रहा है


इन विषयों में हमें  सामञ्जस्य बैठाते हुए चिन्तन मनन कार्यान्वयन करना चाहिये


आज शिव रात्रि का पुनीत पर्व है 

 शिव अद्भुत देवता हैं 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग राम मनोहर लोहिया की पुस्तक पढ़ें

शिव की तरह तरह की पूजा होती है  जैसे लोधेश्वर के लिये  उमड़ती भीड़ का तो क्या कहना


शिव के साथ साथ राम और कृष्ण का इतना गहरा प्रभाव हमारी इस धरती पर है जिस पर चिन्तन किया जा सकता है


अठारह पुराणों 


1. ब्रह्म पुराण 10. ब्रह्म वैवर्त पुराण

2. पद्म पुराण 11. लिङ्ग पुराण

3. विष्णु पुराण 12. वाराह पुराण

4. शिव पुराण 13. स्कन्द पुराण

5. भागवत पुराण 14. वामन पुराण

6. नारद पुराण 15. कूर्म पुराण

7. मार्कण्डेय पुराण 16. मत्स्य पुराण

8. अग्नि पुराण 17. गरुड़ पुराण

9. भविष्य पुराण 18. ब्रह्माण्ड पुराण

में शिव पुराण तो है लेकिन वायु पुराण नहीं है कुछ विद्वानों के अनुसार वायुपुराण शिवपुराण का ही अंश है


आचार्य जी ने भैया (डा )प्रशान्त मिश्र जी सहित हम सबको परामर्श दिया कि शिव पुराण का अध्ययन करें

इसके विस्तार के लिये अलग अलग संहिताएं हैं


नर्मदेश्वर मूर्ति की तो प्राणप्रतिष्ठा की भी आवश्यकता नहीं होती


व्रत उपवास पूजन पाठ सभी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन इनकी महत्ता समझने के लिये हमें चिन्तन भी करना होगा

इनका महत्त्व इसलिये भी है ताकि मनुष्य अपने मरणधर्मा शरीर के सत्य और तथ्य को भी समझे अजरता अमरता का भी चिन्तन करे

कृष्ण अर्जुन को समझा रहें हैं कि देह और देही में अन्तर है


नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।


न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।2.23।।


यदि हम  लोग मानस गीता का अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन करें तो हमें व्याकुलता नहीं सतायेगी


हम स्वयं ही समाधानकर्ता हो जायेंगे


हमारा जन्म उस देश में हुआ है जहां हर समस्या का समाधान भी उपलब्ध है


किन्हीं कारणों से हम अध्यात्म और शौर्य का सामञ्जस्य नहीं कर सके इसलिये शौर्य प्रमंडित अध्यात्म अत्यन्त आवश्यक है