31.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 31 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 बड़े भाग  मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥

साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥4॥


प्रस्तुत है ऋजुक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 31 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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परमात्मा के निर्देश से जो प्रतिदिन का यह सदाचार रूपी प्रसाद हम लोगों को मिल रहा है इसका महत्त्व किसी भी तरह कम नहीं आंका जा सकता


इनका श्रवण मनन निदिध्यासन कर हम लोगों को अवर्णनीय लाभ हो रहा है


इनका जिन पर अनुकूल प्रभाव   पड़ रहा है  उनमें किसी को गीता में किसी को मानस में आनन्द मिल रहा है, लेकिन वे अपने सांसारिक कार्य व्यवहार से भी विरत नहीं हैं

 समस्याओं के आने पर व्याकुल नहीं हो रहे हैं


खोखले वाणी -व्यवहार के अभ्यासी लोगों से संपर्क रखें लेकिन न उनसे निर्देश प्राप्त करें न उनके प्रति ज्यादा संवेदनशील बनें न उनके प्रति चिन्तित हों

हम सबका उद्देश्य है चिन्तनशील होकर कर्मशीलता की ओर आगे  बढ़ना 


आत्मशक्ति   को आत्मभक्ति में बदलने का उद्देश्य अत्यन्त गम्भीर और महत्त्वपूर्ण है


त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।

ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥ – महाभारत, पर्व १, अध्याय १०७, श्लोक ३२


आत्म शरीर मन बुद्धि विचार नहीं है यह तत्त्व है यह परमात्म का अंश है

एक कवि की इस पंक्ति 

व्याकुल धरती आकाश हृदय के तार छू गये तारों से....

का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि ये परमात्म के तार हैं निराशा हताशा के नहीं और यही अध्यात्म है


एक बार रघुनाथ बोलाए। गुर द्विज पुरबासी सब आए॥

बैठे गुर मुनि अरु द्विज सज्जन। बोले बचन भगत भव भंजन॥1॥


सुनहु सकल पुरजन मम बानी। कहउँ न कछु ममता उर आनी॥

नहिं अनीति नहिं कछु प्रभुताई। सुनहु करहु जो तुम्हहि सोहाई॥2॥


सोइ सेवक प्रियतम मम सोई। मम अनुसासन मानै जोई॥

जौं अनीति कछु भाषौं भाई। तौ मोहि बरजहु भय बिसराई॥3॥


मम कौन है  मम आत्मभक्ति है  हम सूर्यवंशी हैं हम दीपक सूर्य की तरह प्रकाश करते हैं हमारा प्रकाश सीमित है सूर्य का प्रकाश असीमित है लेकिन हमारा एक दूसरे से संबन्ध है


इस संबन्ध की अनुभूति उन्हीं को होगी जो चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय सत् संगति    करते हैं


व्यर्थ की चर्चाओं में समय बरबाद नहीं करना चाहिये


आज की स्थिति विषम है हम गृहस्थ हैं लेकिन आदर्श गृहस्थ नहीं

 है तो ये कलियुग ही

कलियुग से बाहर तो हम आ सकते नहीं

सूक्ष्म और कारण शरीर हमारे वश में नहीं है स्थूल शरीर वश में है

सूक्ष्म और कारण शरीर भी कष्ट न पायें इसके लिये हमें अध्यात्म की शरण में जाना चाहिये

गृहस्थ जीवन की लोलुपता से बाहर आयें शवासन ध्यान धारणा संयम प्राणायाम भजन आदि के माध्यम से अध्यात्म की ओर उन्मुख हों



इस समय परिस्थिति गम्भीर है अध्यात्म के साथ शौर्य भी आवश्यक है


शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्।


दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्।।18.43।।


शौर्य, तेज, धृति,  दक्षता , युद्ध से पलायन न करना, दान और ईश्वर भाव  - ये सब क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं


चिर विजय की कामना के लिये विश्वास रखें

वास्तविक इतिहास का अध्ययन करें 

यशस्विता के लिये संगठन के कार्यक्रम करते रहें


दूसरों के छिद्रान्वेषण के स्थान पर मैं स्वयं क्या कर सकता हूं इस पर अवश्य विचार करें

30.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 30 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,

पुनरपि जननी जठरे शयनम्।

इह संसारे बहुदुस्तारे,

कृपयाऽपारे पाहि मुरारे॥21॥


प्रस्तुत है अवृथार्थ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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ये सदाचार संप्रेषण हम लोगों को प्रेरित करने, हमें उत्साह से लबरेज करने के लिये शौर्य प्रमंडित अध्यात्म के साथ आगे चलने के लिये सांसारिक समस्याओं से निपटने के लिये होते हैं


नई पीढ़ी को  प्रेरित करके पुरानी  पीढ़ी आनन्दित होती है

रिले-रेस की बैटन जिसे एक धावक टीम के दूसरे धावक को थमाता है की तरह हम भी इस बैटन को नई पीढ़ी को देकर आनंदित होवें



संसार बहुत विचित्र है जहां जीवन के दोनों पहलू सुख और दुःख दिखते हैं यहां दोष भी हैं गुण भी हैं अच्छे बुरे सिद्धान्तों से पुस्तकें पटी हुई हैं ज्ञान अनन्त है संसार की रचना और समापन चलता रहता है जब हमें संसारत्व की अनुभूति होती है तो इस तरह संसार-सागर में डूबने पर हम व्याकुल हो जाते हैं और जरा सा भी तटस्थ होना चाहें तो इसके लिये ध्यान धारणा साधना और भक्ति भाव में रमना आवश्यक है

अन्यथा


अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं दशनविहीनं जतं तुण्डम् ।

वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम् ॥ १५ ॥



इन संप्रेषणों से हमें उत्साह के साथ शान्ति भी मिलती है जब हमारे सामने शारीरिक पारिवारिक मानसिक सामाजिक समस्याएं आती हैं तो हम व्याकुल नहीं होते हैं

हम अपनी शक्तियों की अनुभूति करके उन्हें समाहारित करके परमात्मा को अर्पित नहीं करेंगे तो बेचारगी बहुत आयेगी


बहुत सी लालसाओं को लेकर संसार त्यागने पर लालसाओं में और वृद्धि हो जाती है इसलिये हमें लालसाओं को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिये


इसके लिये आचार्य जी ने उत्तरकांड में दोहा 35 से दोहा 42 के बीच का भाग पढ़ने का परामर्श दिया


सनकादिक बिधि लोक सिधाए। भ्रातन्ह राम चरन सिर नाए॥

पूछत प्रभुहि सकल सकुचाहीं। चितवहिं सब मारुतसुत पाहीं॥1॥


सुनी चहहिं प्रभु मुख कै बानी। जो सुनि होइ सकल भ्रम हानी॥

अंतरजामी प्रभु सभ जाना। बूझत कहहु काह हनुमाना॥2॥


जोरि पानि कह तब हनुमंता। सुनहु दीनदयाल भगवंता॥

नाथ भरत कछु पूँछन चहहीं। प्रस्न करत मन सकुचत अहहीं॥3॥

....


जीवनमुक्त ब्रह्मपर चरित सुनहिं तजि ध्यान।

जे हरि कथाँ न करहिं रति तिन्ह के हिय पाषान॥42॥


इनकी बहुत अच्छी व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि जब हमें अनुभूतिजन्य विश्वास हो जाता है तो हमारा ज्ञान सुदृढ़ होने लगता है आत्मविश्वास में वृद्धि हो जाती है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अंशुल भैया हिमांशु आदि का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

29.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 29 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अव्यलीक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29 मई 2022

  का मन बुद्धि विचार को परिष्कृत करता सदाचार संप्रेषण 




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हम राष्ट्र के प्रति निष्ठावान हों,देशद्रोहियों से सावधान रहें उन्हें पहचानें निष्क्रिय निश्चिन्त होकर न बैठें राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण विचारों को फैलाएं इन्हीं सब बातों को कहते आचार्य जी द्वारा रचित निम्नांकित काव्यांश वास्तव में बहुत अच्छे बन  पड़े हैं



करो गिनती कि  अपनी कोठरी में बिल अभी कितने

तभी ही द्वार पर पहरा समझदारी का आयेगा

दरो दीवार आंगन कोठरी में झांकना होगा

मुखौटों और मुख के फर्क को भी आंकना होगा


चुनौती आ खड़ी है सामने फिर देश के आगे 

कहां कब कौन  क्या कुछ कर रहा यह भांपना होगा


अभी कुछ लोग अपने में मगन हैं 

कठिन धरती उन्हें लगती

गगन है

समूचा देश संकट से घिरा है

लगी उनको मगर अपनी लगन है


हमारा राग पूरे देश के अनुराग वाला है

हरी खेती भरा खलिहान गुरुद्वारा शिवाला है 

सलीका आन पाये अगर समुन्दर में उतरने का 

साहिल की या मौजों की कहो इसमें खता क्या है


अभी निश्चिन्त होने का समय आया नहीं है 

अभी अपराध को उपदेश मन भाया नहीं है

रहो चौकस न श्लथ हो हाथ की मुट्ठी 

स्वदेशी भाव  कुछ ने अभी अपनाया नहीं है


हमारी राह अपने आप हमने खुद बनाई है 

मरुस्थल में सुधामय शान्ति की सरिता बहाई है

कभी हमने  किसी से भी परायापन नहीं माना 

सदा ही राम की गाथा कथा सबको सुनाई है


आज के सदाचार संप्रेषण में  हमको हिम्मत बंधाने का भी आचार्य जी ने प्रयास किया है

गीता में

चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्परः।


बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्तः सततं भव।।18.57।।


मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।


अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि।।18.58।।


ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।


भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।।18.61।।


चित्त से सारे कार्य मुझमें अर्पण करके,  मेरी कृपा से सम्पूर्ण विघ्नों को तर जायगा और यदि तू अहंकार के कारण मेरी बात नहीं सुनेगा तो तेरा पतन हो जायगा।


 ईश्वर सम्पूर्ण प्राणियों के हृदय में रहता है और अपनी माया से शरीररूपी यन्त्र पर आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को  भ्रमण कराता रहता है।और हम खिलौनों की भांति नाचते रहते हैं l


भगवान् पर विश्वास रखें घरेलू पारिवारिक आदि समस्याओं को परमात्मा ही सुलझाता है समस्याओं और संकटों के आने का कोई समय नहीं होता लेकिन समाधान मिलते रहते हैं हमें अपनी सोच सकारात्मक रखनी चाहिये

आचार्य जी हम लोगों को आशीर्वाद दे रहें हैं कि हमारी योजनाएं संकल्प उद्देश्य तक पहुंचें

28.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 28 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।


न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति।।3.4।।


प्रस्तुत है सचेतस् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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हम अच्छा औऱ उपयोगी पढ़ें अच्छा और उपयोगी सुनें और पढ़ने सुनने के पश्चात् उसे गुनकर विचारों के रूप में प्रकट करें विचारों का प्रकटीकरण अत्यन्त उपयोगी है लेकिन उसके लिये विचारों का संग्रह तो आवश्यक है ही


अपनी प्रतिभा व्यर्थ न हो इसके लिये अपनी प्रतिभा के माध्यम से संसार को समझना आवश्यक है


गीता के कर्मयोग सिद्धान्त में


नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।


शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः।।3.8।।


यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।


तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर।।3.9।।


सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः।


अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक्।।3.10।।



तुम  अपने नियत  कर्म को करो क्योंकि अकर्म से  कर्म श्रेष्ठ है, तुम्हारे अकर्मयुक्त होने से तुम्हारा शरीर निर्वाह भी सिद्ध नहीं होगा


यज्ञ हेतु किये हुए कर्म के अलावा अन्य कर्म में प्रवृत्त  पुरुष कर्मों द्वारा बंध जाता है अतः आसक्ति को त्यागकर यज्ञीय कर्म का ठीक प्रकार से आचरण करो।।


सृष्टि के रचयिता ने सृष्टि के प्रारम्भ में यज्ञ सहित प्रजा का निर्माण कर कहा इस यज्ञ से तुम वृद्धि को प्राप्त हो और यह यज्ञ तुम्हारे लिये इच्छित कामनाओं को पूर्ण करने वाला होवे


भारत त्याग बलिदान शौर्य शक्ति का पुंज है l  आचार्य जी बार बार शौर्य प्रमंडित अध्यात्म पर बल देते हैं क्यों कि शौर्य रहित अध्यात्म की अति के कारण हम अपना कर्तव्य भूल गये इस अकर्म्यणता के कारण काशी मथुरा अयोध्या दुर्दशा को प्राप्त हो गये उस समय हमारा कर्तव्य था कि जो युद्ध कर रहे थे उनके साथ हम   खड़े होते


1992 में रामजन्म भूमि की मुक्ति का द्वार खुल गया था उस समय आचार्य जी विश्व हिन्दू परिषद में सक्रिय थे और उन्होंने ज्ञानवापी पर एक अंक निकाला था


राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम” पूज्‍य श्री गुरूजी द्वारा राष्‍ट्र को समर्पित इस मंत्र का ध्यान करते हुए हम लोगों को जाग्रत करें राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य न भूलें

उथल पुथल के समय अपने संगठन का स्वरूप दिखायें


झूठइ लेना झूठइ देना। झूठइ भोजन झूठ चवेना।

बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा। खाइ महा अति हृदय कठोरा।



दृष्ट मनुष्य का लेने देन  भोजन से लेकर उसकी कही गई बातें सब झूठ होती हैं। क्योंकि जिस तरह मनमोहक मोर अपनी मीठी बोली के अलावा कठोर हृदय का होता है, जो जहरीले सांपों को अपना खाना बनाता है। इस प्रकार जो अत्यंत मधुर और अच्छी-अच्छी बातें करते हैं वह हृदय से बड़े ही क्रूर होते हैं


इसी तरह स्वार्थवादी दलों से बचें जिनके लोगों की भाषा से हम भ्रमित न हों

नित्य अपने शरीर को अपने परिवार को अपने परिवेश को सिद्ध अवस्था में रखें

अपने शरीर के माध्यम से धर्म को सिद्ध करें

हमें कार्यक्रम भी करने चाहिये जिनसे हमें शक्ति ऊर्जा उत्साह मिलता है


हमारा उद्देश्य है

राष्ट्र - निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष

इसे न भूलें

27.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 27 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।


अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।2.2।।



प्रस्तुत है रणशौण्ड आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27 मई 2022

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हम परमात्मा के सर्वाधिक प्रियपात्र बद्धजीवों को परमात्मा की योजनाएं पता नहीं रहती लेकिन इतना पता रहता है कि जो करता है सब परमात्मा ही करता है


यदि हम भक्तिपूर्वक किसी कार्य को करते हैं तो काम छोटा हो या बड़ा वह पूजा का रूप ले लेता है

इसके उदाहरण हैं जूतों की मरम्मत करने वाले महात्मा रविदास  कपड़ा बुनने वाले कबीर राजा वीरसिंह की मालिश करने वाले नाई संत शिरोमणि सेन


शौर्य पराक्रम का विजयक्षेत्र भारत भक्तों की खान, तपस्वियों का अरण्य है l इस भारत पर परमात्मा की विशेष कृपा है l


यदि हम मनुष्य सेवा पारायण हो जाते हैं तो स्वाभाविक रूप से भक्त हो जाते हैं


प्रेम - भाव के कारण ही जो अपने युगभारती परिवार की निधि है कल हम लोगों के गांव सरौंहां में बैच 1977 से 

श्री संजय मिश्रा जी लखनऊ सपरिवार श्री बलराज पासी जी देहरादून उत्तराखंड सपरिवार,श्री संजय गर्ग जी दिल्ली सपरिवार,श्री मनोज गुप्ता जी कानपुर,श्री विजय अग्रवाल जी कोलकाता सपरिवार पूज्य आचार्य से आशीर्वाद लेने पधारे।

सुनील जी और मुकेश जी भी प्रेम -भाव के कारण युगभारती से संयुत हैं


हमारा जिसके प्रति प्रेम नहीं होगा तो लगाव नहीं होगा जिसके प्रति हमारा आकर्षण है उसी के प्रति हमारा आकर्षण होगा आचार्य जी ने आकर्षण और लोलुपता में अंतर स्पष्ट किया


हमारे देश का साहित्य अद्भुत है अद्वितीय है

 ब्रज से मथुरा जाने पर भगवान् श्रीकृष्ण के ब्रज की याद न छूटने की ओर संकेत करते हुए आचार्य जी नेअर्जुन द्वारा हथियार न उठाने पर भगवान् की बदली हुई भूमिका के बारे में भी बताया

एक ओर कृष्ण विलाप करते हैं तो दूसरी ओर गीताज्ञान देते हैं वे मनुष्य का पूर्ण अवतार हैं 


गीता और मानस आदि हमें भक्ति ज्ञान वैराग्य कर्म संसार में जीने का सलीका खराब परिस्थितियों से संघर्ष करना सिखाते हैं

26.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 26 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 मैं हूँ विश्वास निरीहों की उच्छ् वासों का

अम्बर में अटकी दृष्टि दिशाओं श्वासों का

उर में कराल कालाग्नि पचाने की क्षमता

आँसू अनुताप कराहों पर पूरी ममता ।॥३।॥। ( मैं विद्रोही कविता के अंश )



प्रस्तुत है  तरस्विन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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संसार विकारों और विचारों का मिला जुला स्वरूप है एक सामान्य व्यक्ति भी यदि श्रीमद्भगवद्गीता की ओर उन्मुख हो जाये तो उसे शक्ति मिलती है बुद्धि विकसित हो जाती है और संसार में रहते हुए समस्याओं से जूझने की क्षमता मिलती है 

तीसरे अध्याय से


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।


अच्छी तरह आचरण में लाये हुए दूसरे के धर्म से गुणों की कमी वाला अपना धर्म श्रेष्ठ है। अपने धर्म में तो मरना भी कल्याण करने वाला है और परधर्म भय  देने वाला है।

स्व विस्तार ले लेता है तो पूरी वसुधा ही कुटुम्ब हो जाती है

यह भाव का विस्तार है लेकिन जब तक भाव का विस्तार नहीं होता तब तक 

हमारे छोटे छोटे स्वधर्म भी होते हैं जैसे विद्यार्थी के रूप में हमारा धर्म है अध्ययन मनन स्वाध्याय चिन्तन लेखन

शिक्षक के रूप में प्रबन्धकारिणी समिति के सदस्यों के प्रति अभिभाव्कों के प्रति कर्मचारियों के प्रति उचित व्यवहार शिक्षक का स्वधर्म है

गृहस्थ धर्म में तो धर्म के बहुत से मुख हो जाते हैं


काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।


महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्।।3.37।।


धूमेनाव्रियते वह्निर्यथाऽऽदर्शो मलेन च।


यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्।।3.38।।



आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।


कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च।।3.39।।


भगवान् बोले -

 रजोगुणसे उत्पन्न हुआ  यह काम ही क्रोध  है। यह बहुत पेटू और महापापी है।

 इस विषय में  तुम इसको  शत्रु समझो


यह काम किस प्रकार शत्रु है इसके लिये निम्नांकित दृष्टान्त  हैं

 जैसे प्रकाश वाली अग्नि अपने साथ उत्पन्न हुए अन्धकार रूपी धूएँ से और शीशा धूल से आच्छादित हो जाता है तथा जैसे गर्भ अपने आवरणरूप जेर से आच्छादित होता है वैसे ही उस काम से यह ज्ञान ढका हुआ है।


इस अग्नि के समान कभी तृप्त न होने वाले और विवेकियों के नित्य शत्रु इस काम के द्वारा मनुष्य का विवेक ढका हुआ है।



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्रीरामकृष्णलीलाप्रसंग पुस्तक की चर्चा की

श्री अशोक मिश्र जी कौन हैं

भैया संजय गर्ग जी भैया विनय अग्रवाल जी का नाम किस संदर्भ में आया जानने के लिये सुनें

25.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 25 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  अमानिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25 मई 2022

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इस समय एक बहुत भयानक  वैचारिक चक्रवात जिसका केन्द्र भारत है चल रहा है


हम लोगों को गहन चिन्तन करना चाहिये  कि हजारों वर्षों से भारत ही क्यों आकर्षण का केन्द्र रहा है जिज्ञासु तो भारत की ओर आकर्षित हुए ही दुष्ट लोभी लालची भी आये


326 ईसा पूर्व सिकन्दर का आक्रमण हो या 636ईस्वी में  खलीफा उमर के नेतृत्व में थाने के निकट  भारतीय सीमाओं पर झपट्टा मारा गया हो या मुहम्मद बिन कासिम के हाथों राजा दाहिर की पराजय हो आदि

लेकिन हम कहीं गये तो किसी के बुलावे पर शान्ति का संदेश मानवता के उपदेश आदि देने गये


शिक्षा की दुर्दशा करने वाले कुचक्र चले जिससे यह भय और भ्रम उत्पन्न हुआ कि जीविका के लिये ऐसी शिक्षा सही है और अंग्रेजी महत्त्वपूर्ण है आदि आदि


भौतिकता की आंधी में भगवान राम और भगवान कृष्ण अदृश्य हो गये वेद काल्पनिक हो गये


हमारा खानपान पूजा व्यवस्था शिक्षा सब बदलाव की भेंट  चढ़ गये


लाखों ग्रंथ नष्ट कर दिये गये लेकिन उसके बाद भी गीता मानस उपनिषद्  पुराण भागवत हमारे पास रहे

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)


■ काष्ठा = सेकंड का  34000 वाँ भाग

■ 1 त्रुटि  = सेकंड का 300 वाँ भाग

■ 2 त्रुटि  = 1 लव ,

■ 1 लव = 1 क्षण

■ 30 क्षण = 1 विपल ,

■ 60 विपल = 1 पल

■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,

■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घंटा )

■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)

■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,

■ 7 दिवस = 1 सप्ताह

■ 4 सप्ताह = 1 माह ,

■ 2 माह = 1 ऋतु 

■ 6 ऋतु = 1 वर्ष ,

■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी

■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,

■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग

■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,

■ 3 युग = 1 त्रेता युग ,

■ 4 युग = सतयुग

■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग

■ 72 महायुग = मनवन्तर ,

■ 1000 महायुग = 1 कल्प

■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )

■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )

■ महाप्रलय  = 730 कल्प ।(ब्रह्मा का अन्त और जन्म )


हमारे पास ऋषियों मुनियों के अद्भुत अनुसंधानों का भंडार है

हमें गर्व करना चाहिये कि हम ऐसे हैं 

हम शरीरांतरण करते हैं हम ऐसे पूर्वजों के अनुयायी हैं

इसके बाद भी दुःखी परेशान हों तो इसका अर्थ है कि हम पूजा उपासना ध्यान चिन्तन मनन से दूर हैं

पूजा चिन्तन ध्यान मनन स्वाध्याय से हम विश्वासी 

उत्साही क्रियाशील श्वोवसीय हो जाते हैं

गांव में अभी भी एक वर्ग इस प्रकार का है जो दुःख में भी सुख की अनुभूति कर लेता है

गांव की बाह्य प्रकृति के साथ साथ अन्तःप्रकृति भी गुणों से भरपूर है

हमारा कर्तव्य है कि हम अगली पीढ़ी को संस्कारित करें उसमें आत्मबोध पैदा करें


किस तरह के शिक्षण संस्थानों से हमें दूर रहना चाहिये भैया अमित गुप्त का नाम कैसे आया बैरिस्टर साहब ने गीता कहां समझी आदि जानने के लिये सुनें

24.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 24 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 ग्रामे ग्रामे स्थितो देवो देशे देशे स्थितो मखः।

गेहे गेहे स्थितं द्रव्यं धर्मश्चैव जने जने।। भविष्य पुराण प्रतिसर्ग पर्व


प्रस्तुत है  भूयोविद्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24 मई 2022

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यदि हम चिन्तन की गहराइयों में उतरें तो ईश्वर की बहुत सी आश्चर्यजनक अद्भुत लीलाएं देखने को मिल जायेंगी

और इससे बड़ा आश्चर्य क्या कि 


अहन्यहनि भूतानि गच्छन्ति यममन्दिरम् |

शेषा जीवितुमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ||


कहीं कहीं


अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम् ।

शेषाः स्थावरमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम्।।१६।।


प्रतिदिन कितने ही मनुष्य यम मंदिर  जाते हैं अर्थात् मृत्यु को प्राप्त होते हैं यह देखने के बाद भी शेष मनुष्य सदैव जीवित रहना चाहते हैं| यह तो सबसे बड़ा आश्चर्य है|


पानी केरा बुदबुदा अस मानस की जात

एक दिना छिप जायेगा ज्यों तारा परभात


अशोक जी ने आचार्य जी से विद्यालय में मात्र दो तीन वर्ष रुकने के लिये कहा था और आचार्य जी 38 वर्ष तक विद्यालय में रहे इस विश्वास के साथ कि हम लोगों के माध्यम से राष्ट्र का कार्य कर सकेंगे


दीनदयाल जी अशोक सिंघल जी रज्जू भैया जी जिस तरह जीवनपर्यन्त राष्ट्र -सेवा करते रहे उनसे प्रेरित होकर हम भी

राष्ट्र के लिये कार्य करते रहें इसके लिये दोषरहित विकाररहित प्रखर बुद्धि, उत्कृष्ट विचारों गहन भावों से संपन्न राष्ट्र -सेवा के लिये सदैव तत्पर रहने वाले स्वयंसेवक आचार्य जी इस समय भी प्रयासरत हैं

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः


संपूर्ण युग को अपनी सेवा सहायता से संपोषित संवर्धित और संस्कारित करने वाली युग भारती के मुख्य संरक्षक

आचार्य जी आज भी 

ON DUTY हैं ताकि हम

समाज सेवा के लिये उत्साहित उद्वेलित आंदोलित उद्यत बने रहें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रज्जू भैया प्रेम भूषण जी ईश्वर जी से संबन्धित कौन सा प्रसंग सुनाया पासंग क्या होता है भारती के क्या क्या अर्थ हैं बढ़ई से कौन कांपता है भैया मनीष कृष्णा के किस विशिष्ट गुण का आचार्य जी ने उल्लेख किया आदि जानने के लिये सुनें

23.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 23 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जवानी ज्योति जीवन की अंधेरे को भगाती है

प्रणव का घोष मंगल आरती की दिव्य बाती है


प्रस्तुत है  प्रेप्सु आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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हम अनन्त पुत्रों में उत्साह उमंग आत्मीयता स्मृतियों से लगाव देखकर आचार्य जी को अपने प्रयास फलीभूत होते दिख रहे हैं

भारत वर्ष इस समय  उन्तीस वर्ष का एक जवान देश है और सारा विश्व भारत की इस जवानी की ओर देख रहा है

आचार्य जी ने जवानी शीर्षक से एक कविता लिखी थी जो 

गीत मैं लिखता नहीं हूं में छपी थी (पृष्ठ 39से 44)


आचार्य जी ने जवानी को किस तरह परिभाषित किया है आइये देखते हैं 

जवानी शौर्य का शृंगार संयम की सरल भाषा

उमड़ती भावना का ज्वार तप की मौन परिभाषा

जवानी के लिये इतिहास के पन्ने मचलते हैं

जवानी की धमक से काल के आलेख टलते हैं

जवानी की उमंगों से नये प्रतिमान बन जाते

प्रबंधों के नये अध्याय नूतन गान बन जाते

जवानी ने कभी अवरोध की सत्ता न मानी है

प्रथाओं वर्जनाओं की इयत्ता भी न जानी है

जवानी ने सदा संकल्प को साथी बनाया है

मधुर पय ही नहीं केवल, गरल भी आजमाया है


....


जवानी उम्र के दर की नहीं मोहताज होती है

समय के भाल पर जगमग चमकता ताज होती है

जवानी भावना का ज्वार है संसार सागर का

जवानी कर्म का संभार है यह मंत्र साबर का

जवानी को जरा का लोभ जब -जब घेर लेता है

धरा का भाग्य अपने आप ही मुंह फेर लेता है

जवानी ज्योति जीवन की अंधेरे को भगाती है

प्रणव का घोष मंगल आरती की दिव्य बाती है


जवानी आत्मवश अलमस्त इन्द्रिय की नहीं चेरी

गरजती भीम भैरव से बजी जब -जब समर -भेरी


जवानी वह नहीं जिसको मनोभव जीत लेता है

जवानी का वही हकदार जो मन का विजेता है

न वह जीवन जवानी का जहां लिप्सा पनपती है

प्रखर तेजस्विता की कान्ति जीवन भर दमकती है

जवानी से लड़ा जब भी जमाना मात खाया है

जगत भर ही नहीं विधि भी सदा प्रतिघात पाया है


जवानी लक्ष्य के संधान की अनुपम कहानी है

शिखर से सिन्धु के तल की अमर पावन निशानी है

जवानी ने जगाया व्योम को पाताल को साधा

रही कोई न अग -जग में हटाई जो नहीं बाधा

जवानी आचरण का कोष है व्यवहार की भाषा

  घुमड़ती भावना का घोष, वह संसार की आशा

जवानी ने कभी ललकार पर रुकना नहीं जाना

स्वयं यम ही न क्यों छेड़े कभी झुकना नहीं जाना

....

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मोहन, भैया पवन मिश्र भैया प्रकाश शर्मा जी भैया राजकुमार का नाम क्यों लिया आचार्य जी जब महाविद्यालय में  पढ़ाते थे तो उस समय का कौन सा प्रसंग उन्होंने सुनाया आदि जानने के लिये सुनें

22.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 ऊषा सुनहले तीर बरसती,

जयलक्ष्मी-सी उदित हुई।

उधर पराजित काल रात्रि भी

जल में अतंर्निहित हुई।


वह विवर्ण मुख त्रस्त प्रकृति का,

आज लगा हँसने फिर से।

वर्षा बीती, हुआ सृष्टि में,

शरद-विकास नये सिर से।



प्रस्तुत है  तैतिक्ष आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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यह हम लोगों का सौभाग्य है कि वर्तमान समय में भी इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी अध्यापनरत शिक्षक की भांति हम लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं


कल हम लोगों के विद्यालय पं दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय की स्थापना के पचास वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित हुए पूर्व छात्र सम्मेलन में सम्मिलित सभी लोगों को अत्यन्त हर्ष और आनन्द का अवर्णनीय अनुभव हुआ


हम यदि शक्तिसंपन्न मेधासंपन्न भावनासंपन्न हैं तो हमारी ओर सभी लोग आकर्षित होंगे और इसी कारण युग भारती के प्रति  लोगों का आकर्षण बढ़ रहा है


कल के कार्यक्रम में किसी कारणवश बैरिस्टर साहब की परम्परा को चलाने वाले श्री वीरेन्द्रजीत सिंह जी अनुपस्थित रहे जो आचार्य जी की तरह उस समय के पथिक हैं जब विद्यालय की नींव रखी गई थी


मुख्य अतिथि क्रोएशिया में भारतीय राजदूत भैया राज कुमार श्रीवास्तव (युग भारती 1989 बैच ) ने बताया कि 2014 के बाद से विदेशों में भारत की छवि बदली है  अद्वितीय भारतीय संस्कृति के विचार संपूर्ण विश्व को आच्छादित कर रहे हैं


हम भारत माता के सपूत संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं हमारी वाणी भारत की वाणी है हमारा व्यवहार आचरण भारत का व्यवहार आचरण है यह यदि हमारे मन मानस में सदैव कौंधता रहेगा तो हम विश्रंखलित नहीं होंगे विभ्रमित नहीं होंगे न ही नैराश्य धारण करेंगे परिस्थिति कैसी भी आये


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः को ध्यान में रखते हुए हम अपने कदम  बढ़ाते  चलें



ये जिंदगी है देश की देश पर लुटाए जा

21.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 21 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  आगमवृद्ध आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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नित्य प्रातः आचार्य जी की वाणी से प्रभावित होकर हम लोग सद्गुणों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं भाव विचार और क्रिया के सामञ्जस्य के कारण ही आचार्य जी की वाणी प्रभावकारिणी होती है

हमें  चिन्तन मनन और लेखन पर ध्यान देना चाहिये प्रत्येक शब्द का मूल्य है प्रत्येक विचार महत्त्वपूर्ण है लेकिन यह मनुष्य के चिन्तन और विश्लेषण का विषय है कि कौन सा विचार कहां महत्त्वपूर्ण है


उत्तर कांड में

रामराज्य का वर्णन हुआ है रामराज्य कैसा है कि


अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥

नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना l l


एक दोहा अत्यधिक रोचक और मोहक है



राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।

काल कर्म सुभाव गुन कृत दु:ख काहुहि नाहिं॥21



हम काल, कर्म, गुण, दोष और स्वभाव से उत्पन्न  दुःख से दुःखी होते रहते हैं जहां जो कुछ है उसे परमात्मा का प्रसाद समझना चाहिये जो हमारे हिस्से का है उसमें संतुष्ट रहना चाहिये हमें परमात्मा का चिन्तन मनन करना चाहिये अगर हम अपनी इन्द्रियों से बाहर नहीं जा पाते तो हम अपरिमित अविनाशी परमात्मा का महत्त्व नहीं समझ सकते


हमें इन्द्रियों का जब आधार मिल जाता है तब इन्द्रियां संसार से बाहर  सोचने में सक्षम होती हैं


सत्संगति से क्षुदा पिपासा आदि इच्छाएं शान्त रहती हैं


बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥

सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥4॥



हमें अपने सूत्र वाक्य 

" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l ",

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः,राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष

आदि याद रखने चाहिये

किसी व्यक्ति की कमियों को हमें दूर करने का प्रयास तो करना चाहिये लेकिन उसमें असफल होने पर हताश नहीं होना चाहिये

अन्यथा हमारे ही सद्गुणों का ह्रास होगा

हम अपने संस्कारों को नई पीढ़ी को अवश्य दें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सौरभ राय, भैया पुनीत श्रीवास्तव, भैया मोहन का नाम क्यों लिया

वर्तमान प्रधानाचार्य जी ने आचार्य जी से क्या निवेदन किया है जानने के लिये सुनें

20.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 20 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।


शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।।12.17।।


प्रस्तुत है   इज्याशील आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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आचार्य जी का प्रयास रहता है कि इन सदाचार संप्रेषणों के महत्त्व को समझते हुए हम अपना महान् जीवनदर्शन तैयार कर सकें और इतिहास में हमें स्थान मिले

मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं अपितु  परिस्थितियों के साथ संतुलन स्थापित कर जीवन की यात्रा को आगे बढ़ाता चलता है

कोई यह भी कहता है कि मनुष्य परिस्थितियों का दास है

विचार भिन्न भिन्न हो सकते हैं लेकिन इनका गंतव्य एक ही है कि हमें आनन्द मिले


वेदा विभिन्नाः स्मृतयो विभिन्ना

नासौ मुनिर्यस्य मतं न भिन्नम् |

धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां

महाजनो येन गतः स पन्थाः ||


लेकिन हमें यह पहचानना होता है कि महाजन कौन है

महाजन वह है जो समअवस्था में रहता है


मनुष्य अपनी राह को सरल बनाने के लिये विभिन्न प्रकार के सुरक्षा चक्र तैयार करता है 

जीवन को ठीक प्रकार से चलाने के लिये सुरक्षा चक्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है


सुरक्षा चक्र ऐसा कि हमारा मन प्रसन्न हो बुद्धि सक्रिय हो शरीर का सहयोग भी मिले और अपने परिवेश के साथ सामञ्जस्य बैठा लें


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।


एक दुःखद घटना हुई कि  डाक्टर दीपेन्द्र प्रताप  सिंह तोमर जी  (बैच 1987)अल्पायु में हमें   छोड़कर ब्रह्मलीन हो गये 

ब्रेन हेमरेज के लिए उनका उपचार कुछ समय से  चल रहा था।

19.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 19 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि इन सदाचार संप्रेषणों से हमें दिन भर की ऊर्जा मिलती रहती है प्रस्तुत है   क्षेमंकर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19 मई 2022 का  इसी तरह का एक और सदाचार संप्रेषण


भाव के साथ भाषा का संयोग भाषा को प्रभावकारिणी बनाता है मनुष्य की भाषा ही उसके संबन्धों को जोड़ती औऱ तोड़ती है

भाव विचार अध्ययन अनुभव और साधना भाषा को अद्भुत प्रभाव  छोड़ने वाला बना देते हैं

भाषा का मूल आदिस्वर ॐ है  ॐ का उच्चारण करने से शरीर में कई तरह के परिवर्तन होते हैं

भाषा के बिना ज्ञान हमारे पास नहीं पहुंच सकता


वंशानुक्रम को परिभाषित करते हुए आचार्य जी ने बताया वंशानुक्रम में संबन्धों के नाम होते हैं भारतवर्ष में तो अनन्त नाम हैं  इस नाम रूपात्मक जगत् में एक रूप के अनेक नाम हैं एक ही व्यक्ति किसी का चाचा किसी का पुत्र किसी का पिता किसी का मामा हो सकता है


और यह भी कि यह मेरा खेत है यह मेरा घर है लेकिन जब हम अपने संबन्ध किन्हीं कुंठाओं के कारण  तोड़ लेते हैं  तो हम अकेले हो जाते हैं


साधनारत मनुष्य अकेला नहीं रहता है


अकेला मनुष्य तमाम संसाधनों के होने पर भी खालीपन का अनुभव करता है



जितने अधिक लोग हम लोगों

 के साथ संयुत होंगे उतना ही हमें आनन्द मिलेगा स्व को पहचानने की चेष्टा करें


संबन्धों को प्रगाढ़  बनाने का एक और मौका हमें 21 मई 2022 को विद्यालय में होने जा रहे कार्यक्रम के माध्यम से मिल रहा है जिसमें लखनऊ से भैया प्रदीप वाजपेयी और प्रयागराज से श्री अरिंदम जी के आने की सूचना है



जब आप बहुत पस्त हों तो शवासन या अनुलोम विलोम अवश्य करें

पुराना शरीर बोझिल होने लगता है इसीलिये बहुत से ऋषि साधक परकाया प्रवेश करते हैं


महाभारत के शांति पर्व में वर्णन है कि सुलभा नामक विदुषी  योगबल की शक्ति से राजा जनक के शरीर में प्रविष्ट कर विद्वानों से शास्त्रार्थ करने लगी थी


प्रसिद्ध तांत्रिक कापालिक भूपेंद्र आनंद के अनुसार उनके गुरु योगानंद सरस्वती ने उन्हें एक बार परकाया प्रवेश का साक्षात दर्शन कराया था


नाथ संप्रदाय के आदि गुरु मुनिराज मछन्दरनाथ के विषय में भी कहा जाता है कि उन्हें परकाया प्रवेश की सिद्धि प्राप्त थी सूक्ष्म शरीर से वे अपनी इच्छानुसार गमनागमन विभिन्न शरीरों में करते थे  एकबार अपने शिष्य गोरखनाथ को स्थूल शरीर की सुरक्षा का भार सौंपकर एक मृत राजा के शरीर में उन्होंने सूक्ष्म शरीर से प्रवेश किया था


इसका सबसे प्रचलित उदाहरण मंडन मिश्र की पत्नी द्वारा आदि शंकराचार्य से पूछे प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने के लिए उनके द्वारा परकाया प्रवेश की घटना में मिलता है

18.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 18 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  विष्टपहारिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18 मई 2022

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जो सिद्धयोगी अपनी किन्हीं साधनाओं के स्खलन के कारण या उनकी न्यूनता के कारण या अस्तव्यस्तता के कारण अपनी साधना को सिद्धि तक नहीं पहुंचा पाते तो वो एक जन्म लेते हैं और उनका जन्म एक उच्च संभ्रान्त कुल में होता है

ऐसे ही एक सिद्धयोगी महामानव अपने दीनदयाल विद्यालय के पुरोधा बैरिस्टर साहब श्री नरेन्द्र जीत सिंह जी का जन्म पंजाब के एक गांव भवन में 18 मई 1911 को रायबहादुर विक्रमाजीत सिंह(आम आदमी उन्हें मुकदमा जीत सिंह कहते थे )के पुत्र के रूप में हुआ

दीनदयाल विद्यालय के दूसरे पुरोधा पं शिव शरण शर्मा का घर आपके पड़ोस में था


रायबहादुर विक्रमाजीत जी व्यस्त रहते थे लेकिन अपने बच्चों पर बहुत ध्यान देते थे अत्यधिक संपन्न होने के बाद भी बच्चे  स्नान के लिये कुंए से स्वयं ही पानी निकालें इस पर अडिग रहते थे 


किसी समय बैरिस्टर साहब के  पैर टेढ़े थे जब उनके मामा जी ने मन्दिर की    सीढ़ियों से उन्हें उतरवा दिया तो उनके पैर सही हो गये


आपने हाईस्कूल आर्ट साइड से किया और इंटरमीडिएट साइंस से करते हुए पोजीशन हासिल की और बी एस सी में फर्स्ट क्लास से पास हुए


जम्मू कश्मीर राज्य के दीवान बद्रीनाथ जी की पुत्री सुशीला जी (बूजी ) से उनका विवाह 1935 में हुआ

निस्पृह संन्यासी के रूप में उन्होंने राजयोग का अभ्यास किया


अन्तिम समय में उन्होंने विशंभर नाथ द्विवेदी जी से श्रीमद्भागवत् का दसवां अध्याय सुना

विद्यालय के यश और समाज में हम लोगों की पहचान के मूल में बैरिस्टर जी हैं


उन्होंने अपनी साधना को सामाजिकता में बिखेर कर सिद्धि तक पहुंचा दिया


त्रिवेणी की कौन सी तीन वेणियों से विद्यालय चर्चित हुआ कल लखनऊ कार्यक्रम के बारे में आचार्य जी ने क्या बताया कथा लेकर कौन मिलता है व्यथा लेकर कौन मिलता है जानने के लिये सुनें

17.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 17मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  लक्ष्मण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17मई 2022

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हर तरह से सामञ्जस्य बैठाते हुए हमें बिना व्याकुल हुए,    क्योंकि जो करता है परमात्मा करता है और परमात्मा सब अच्छा ही करता है, जीवन जीने का प्रयास करना चाहिये


आचार्य जी ने सर्वे भवन्तु सुखिनः... का उल्लेख करते हुए सर्वे का व्यापक अर्थ बताया


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥

आदि का उल्लेख करते हुए आचार्य जी कहते हैं कि इस संश्लेषणात्मक जीवन को जीते हुए भी हमने अनुसंधानों का दम्भ नहीं किया जब कि पश्चिम में ऐसा नहीं है


UNO को समझ में आया कि विश्व को आनन्दित और स्थिर बनाने के लिये निम्नांकित लक्ष्य उचित हैं


The 17 sustainable development goals (SDGs) to transform our world:

GOAL 1: No Poverty


GOAL 2: Zero Hunger


GOAL 3: Good Health and Well-being


GOAL 4: Quality Education


GOAL 5: Gender Equality


GOAL 6: Clean Water and Sanitation


GOAL 7: Affordable and Clean Energy


GOAL 8: Decent Work and Economic Growth


GOAL 9: Industry, Innovation and Infrastructure


GOAL 10: Reduced Inequality


GOAL 11: Sustainable Cities and Communities


GOAL 12: Responsible Consumption and Production


GOAL 13: Climate Action


GOAL 14: Life Below Water


GOAL 15: Life on Land


GOAL 16: Peace and Justice Strong Institutions


GOAL 17: Partnerships to achieve the Goal


भारतीय चिन्तन बहुत सकारात्मक और ऊर्जा प्रदान करने वाला है उत्तरकांड में


बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग।

चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग॥20॥

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥

सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥1॥


चारिउ चरन धर्म जग माहीं। पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं॥

राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी॥2॥

अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥

नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना॥3॥


..

राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।

काल कर्म सुभाव गुन कृत दु:ख काहुहि नाहिं॥21॥


..

राम राज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।।

बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।।


UNO ने तो सत्रह लक्ष्य निर्धारित किये तुलसीदास जी ने बहुत  थोड़े में ही उन्हें रख दिया यही रामराज्य है

अपनी भारतीय जीवन पद्धति को न समझते हुए वैदैशिक विश्लेषणात्मक जीवन को समझकर अपने ऊपर लागू करने का निरर्थक अभिशप्त प्रयास करते हैं


हमें यह प्रयास करना है कि इस भारतीय चिन्तन को नये रूप में किस तरह प्रस्तुत किया जाए दीनदयाल जी कहते थे कि हम अपनी नींव पर नया निर्माण करेंगे


वैश्विक दृष्टि से हम अपने को बीस साबित करें



सही शिक्षा से ही बहुत कुछ सुधार सकता है



छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तौ कल्पोऽथ पठ्यते, ज्योतिषामयनं चक्षुर्निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते। शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मृतम् , तस्मात्सांगमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते॥

शिक्षा वेद की नासिका है



समय समय के आन्दोलनात्मक कार्यों में अपना सहयोग करें हमारे अन्दर सेवा स्वाध्याय संयम श्रद्धा आदि सद्गुणों का प्रवेश हो इसका प्रयास करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत भैया मोहन भैया मनीष भैया अरविन्द का नाम क्यों लिया वर्तमान प्रधानाचार्य श्री राकेश राम त्रिपाठी जी ने आचार्य जी से क्या निवेदन किया जानने के लिये सुनें

16.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 16 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

प्रस्तुत है  धीर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16 मई 2022

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जैसी परिस्थिति हो हमें वैसा व्यवहार करना चाहिये  हमारे सामने जैसा परिदृश्य उपस्थित हो उसी के अनुसार हमारा कर्म होना चाहिये

संकट में हमें अपना धैर्य नहीं खोना चाहिये


नास्त्यधृतेरैहिकमुष्मिकम्


जो व्यक्ति धैर्यवान नहीं है, उसका न तो वर्तमान  है और न ही भविष्य।

धैर्य रखकर संकट से निकलने का रास्ता खुद ब खुद सामने आ जाता है


कबिरा धीरज के धरे, हाथी मन भर खाय।

टूक एक के कारने, स्वान घरै घर जाय॥


हम किसी भी समस्या पर दृष्टिपात करें उसका हल मनुष्य के ही पास है और किसी के पास नहीं समस्या चाहे विश्व की हो राष्ट्र की हो समाज की हो परिवार की हो या व्यक्तिगत हो


लेकिन मनुष्य वही जो मनुष्यत्व का अनुभव कर रहा हो

कथनी और करनी में अन्तर न रखे

पूर्ण मनुष्यत्व यानि महामानवता बहुत कठिन है

लेकिन उसकी सीढ़ियों पर हम लोगों को चढ़ते रहना चाहिये


बड़े भाईसाहब  आदरणीय श्री राम शंकर त्रिपाठी जी आज स्नानागार में गिर गये थे इसके बाद भी आचार्य जी ने आज सदाचार संप्रेषण का क्रम नहीं टूटने दिया यह हम लोगों का सौभाग्य है हमें इसका महत्त्व समझना चाहिये

15.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 15 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कर्म देश-हित के रहें, ईश्वर पर विश्वास। 

भावपूर्ण अन्तःकरण, मनस् आत्मविश्वास। ।

अपनों पर विश्वास हो, वैरी पर हो दृष्टि ।

इसी तरह करते चलें, संगठना की सृष्टि ।।

निज चरित्र आदर्श हो, भटके के प्रति प्रेम। 

प्रतिदिन ही करते रहो, सबका योग क्षेम। ।

भारत माँ के पूत हम , हम जगती के

 मूल। 

निर्वारेंगे फिर हमी , जग के उपजे शूल ।।



प्रस्तुत है  समाकर्षिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15 मई 2022

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अपने देश में बारहवीं शताब्दी से साजिशों का घिनौना खेल चल रहा है l यूं तो साजिशें पहले भी हुई हैं लेकिन पहले के विवाद  विकृत मानसिकताओं की भेंट नहीं चढ़े थे सीधे सीधे युद्ध होते थे  विचारों, व्यवहारों के युद्ध होते थे बाहर से लुटेरे आते थे

यद्यपि हम संगठित नहीं थे लेकिन छली प्रपंची नहीं थे

छल और प्रपंच पश्चिम की देन है लेकिन फिर भी पश्चिमी विचार पश्चिमी आचार पश्चिमी व्यवहार हमें आकर्षित करता है

और इसी कारण हम अपने पर विश्वास नहीं करते


अरण्य कांड में

जब लक्ष्मण ने शूर्पणखा (जिसके नख छाज जैसे लम्बे चौड़े हों ) के नाक कान काट डाले तो वह रावण के पास गई 

यहां विद्वान महात्मा चिन्तक तपस्वी समाज के पथ- प्रदर्शक तुलसीदास ने प्रपंचपूर्ण छलपूर्ण भाव से अद्भुत प्रस्तुतिकरण किया है


धुआं देखि खरदूषन केरा। जाइ सुपनखाँ रावन प्रेरा॥

बोली बचन क्रोध करि भारी। देस कोस कै सुरति बिसारी॥3॥


करसि पान सोवसि दिनु राती। सुधि नहिं तव सिर पर आराती॥

राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा। हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा॥4॥

बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ। श्रम फल पढ़ें किएँ अरु पाएँ॥

संग तें जती कुमंत्र ते राजा। मान ते ग्यान पान तें लाजा॥5॥


प्रीति प्रनय बिनु मद ते गुनी। नासहिं बेगि नीति अस सुनी॥6॥


 रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि।

अस कहि बिबिध बिलाप करि लागी रोदन करन॥21 क॥


सभा माझ परि ब्याकुल बहु प्रकार कह रोइ।

तोहि जिअत दसकंधर मोरि कि असि गति होइ॥21 ख॥


सुनत सभासद उठे अकुलाई। समुझाई गहि बाँह उठाई॥

कह लंकेस कहसि निज बाता। केइँ तव नासा कान निपाता॥1॥


अवध नृपति दसरथ के जाए। पुरुष सिंघ बन खेलन आए॥

समुझि परी मोहि उन्ह कै करनी। रहित निसाचर करिहहिं धरनी॥2॥


जिन्ह कर भुजबल पाइ दसानन। अभय भए बिचरत मुनि कानन॥

देखत बालक काल समाना। परम धीर धन्वी गुन नाना॥3॥


अतुलित बल प्रताप द्वौ भ्राता। खल बध रत सुर मुनि सुखदाता॥

सोभा धाम राम अस नामा। तिन्ह के संग नारि एक स्यामा॥4॥


रूप रासि बिधि नारि सँवारी। रति सत कोटि तासु बलिहारी॥

तासु अनुज काटे श्रुति नासा। सुनि तव भगिनि करहिं परिहासा॥5॥


...रहित निसाचर करिहहिं धरनी ....

आज भी बहुत से लोगों को लग रहा है कि यह वातावरण निशाचर रहित हो जायेगा इसलिये वो व्याकुल हैं हमें छल बल समझने की जरूरत है


उत्तेजित न हों होश के साथ जोश रखें विचार के साथ व्यवहार हो


अच्छे लोगों को साथ मिलाते चलें

समय व्यर्थ न करें लेखन आदि में समय लगाएं संगठन को समय दें समाज -गंगा में अपना योगदान दें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने केजरीवाल सच्चाई या साजिश पुस्तक (लेखक :संदीप देव कपोत बुक्स )की चर्चा की

विद्यालय में सस्ते में कौन ईंट देता था भैया ज्योति भैया प्रकाश शर्मा आदि का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिये सुनें

14.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 14 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  प्रयुयुत्सु आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14 मई 2022

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भारतवर्ष के इतिहास पर हम दृष्टि डालते हैं तो देखते हैं कि जब अध्यात्म और शौर्य दोनों अलग अलग राह पर चलने लगे परस्पर विद्वेष बढ़ने लगा विद्वानों में राजाओं में  विद्वेष  देखकर आम जनता में इसकी नकल होने लगी सुखसुविधाओं के लिये जाने अनजाने देशद्रोह के काम होने लगे तो बाहर की शक्तियां भारत से सबकुछ पाने के लिये लालायित हो गईं

पराक्रम से दूर होने पर वेद की ऋचाएं बोझ हो गईं

लेकिन अच्छी बात यह भी रही बीच बीच में समाजोन्मुखी जीवन जीने वाले महापुरुषों के जीवन आते गये जिन्होंने लोकसंस्कार का काम सबसे पहले किया

जो बार बार याद दिलाते रहे कि हम अपने को पहचानें


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी यही किया हेडगेवार जी चाहते थे कि कम से कम समय में समाज संस्कारित होकर अपने पैरों पर खड़ा हो जाए


संघ में भी तमाम उतार चढ़ाव  आये


अब हम भगवान् राम के काल में आते हैं

दशरथ को समाज से मतलब नहीं था लेकिन विश्वामित्र को था विश्वामित्र ने दशरथ से सेना न मांगकर राम और लक्ष्मण मांगे उनका संस्कार करेंगे संस्कार का नतीजा था कि ताड़का  को मारते समय यह नहीं देखा कि वो स्त्री है


बिस्वामित्र समय सुभ जानी। बोले अति सनेहमय बानी॥

उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक परितापा॥


यह सुनकर


सहजहिं चले सकल जग स्वामी। मत्त मंजु बर कुंजर गामी॥

चलत राम सब पुर नर नारी। पुलक पूरि तन भए सुखारी॥


सहजहिं चले  वाला भाव संघ ने भी उत्पन्न करने की चेष्टा की आचार्य जी ने इसे व्यक्त करता हुआ एक कार्यकर्ता आशाशंकर जी का बहुत रोचक प्रसंग बताया


राष्ट्रसेवा का भाव अब जब सिर चढ़कर बोल रहा है तो संसार भी भारत को महत्त्वपूर्ण समझ रहा है


राम को आदर्श मानकर अपने संगठनों को हम लोगों ने उस प्रकार से रचने की चेष्टा की कि हमारे अन्दर रामत्व प्रविष्ट हो गया है


हनुमान जी के पूछने पर भगवान राम कहते हैं


कोसलेस दसरथ के जाए । हम पितु बचन मानि बन आए।।

नाम राम लछिमन दौउ भाई। संग नारि सुकुमारि सुहाई।।

इहाँ हरि निसिचर बैदेही। बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही।।

आपन चरित कहा हम गाई। कहहु बिप्र निज कथा बुझाई।।

हनुमान जी पहचान गये


प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा नहिं बरना।।

पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना।।

पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही। हरष हृदयँ निज नाथहि चीन्ही।।

मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं।।

तव माया बस फिरउँ भुलाना। ता ते मैं नहिं प्रभु पहिचाना।।

राम और हनुमान की मैत्री अद्वितीय है


हम भी एक दूसरे को पहचानें अपना कर्तव्य न भूलें अपने बल को पहचानें हनुमान जी भी सदैव किसी भी तरह की समस्या को हल करते  रहे

हम भी आत्मकर्मनिष्ठा आत्मशक्ति को अनदेखा न करें समाज में अपनी पहचान बनाएं

13.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 13 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ

शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।

मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौ हितौ

सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः ॥1॥



प्रस्तुत है  अधिगुण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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शरीर में विकार होते हुए भी विचार यदि सुरक्षित संरक्षित परिपोषित संबलित और व्यवस्थित रहते हैं तो यह भगवान् की कृपा है मन शरीर बुद्धि की ऐसी सामञ्जस्यपूर्ण अवस्था का हमें लाभ उठाना चाहिये


शरीर में विकारों से मन शरीर की चिन्ता में मग्न रहता है और विचार खंडित हो जाते हैं

विचार विकृत हो जायें तो हम अंधकार में भटकेंगे


खाद्य अखाद्य का विवेक हो आहार विहार सही हो तो तन सही रहेगा तन सही होगा तो हमारा सही काम में मन लगेगा


मानस और गीता हमें स्वाध्याय अध्ययन और भक्तिपूर्वक जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं शौर्य प्रमंडित अध्यात्म कितना महत्त्वपूर्ण है यह भी समझ में आता है


आचार्य जी ने 6मई के संप्रेषण में नारद जी का प्रसंग   बताया था

 अरण्यकांड में ही 


षट बिकार जित अनघ अकामा। अचल अकिंचन सुचि सुखधामा॥

अमित बोध अनीह मितभोगी। सत्यसार कबि कोबिद जोगी॥4॥


सावधान मानद मदहीना। धीर धर्म गति परम प्रबीना॥5॥


गुनागार संसार दु:ख रहित बिगत संदेह।

तजि मम चरन सरोज प्रिय तिन्ह कहुँ देह न गेह॥45ll

का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि जो भक्तिपूर्वक जीवन जीते हैं वो सांसारिक प्रपंचों में रहते हुए भी उसमें संलिप्त नहीं होते


यह काम कठिन है लेकिन इसकी ओर हमारी उन्मुखता रहती है


जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी।।

करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा।।


हम सब राममय हैं राममयता से ही अयोध्या में राममन्दिर बन रहा है परमात्मा भी हम लोगों के विग्रह रच देता है और स्वयं विराजमान हो जाता है


कहि सक न सारद सेष नारद सुनत पद पंकज गहे।

अस दीनबंधु कृपाल अपने


 भगत गुन निज मुख कहे॥

सिरु नाइ बारहिं बार चरनन्हि ब्रह्मपुर नारद गए।

ते धन्य तुलसीदास आस बिहाइ जे हरि रँग रँए॥


रावनारि जसु पावन गावहिं सुनहिं जे लोग।

राम भगति दृढ़ पावहिं बिनु बिराग जप जोग ll


दीप सिखा सम जुबति तन मन जनि होसि पतंग।

भजहि राम तजि काम मद करहि सदा सतसंग॥



तुलसीदास जी ने जहां भगवान् राम की वन्दना की वहां शिव को भी लिया

 क्योंकि उस समय शैव वैष्णव संघर्ष से हमारी वैचारिक शक्ति क्षीण हो रही थी


हम लोग भी यदि इस तरह से लोगों को उलझते देखें तो उन्हें सुलझाने का प्रयास करें 

समाज को अनुभव कराएं कि आप उनसे बीस हैं

ज्ञान ध्यान शक्ति भक्ति विचार व्यवहार प्रेम आत्मीयता में बीस हों तो 

इस देवभूमि को नर्क बनाने वालों को आपसे लगाव होगा

लेकिन दीनहीन न बनें अपने विचारों को मजबूत बनाएं

संगठन के काम हेतु समय भी हमें निकालना होगा

लखनऊ में 17 मई को एक कार्यक्रम है उसमें अधिक से अधिक लोग जाएं

12.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 12 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम्।


सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्।।2.32।।



प्रस्तुत है  शैलसार आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12 मई 2022

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संपूर्ण संसार मोहाछन्न है लेकिन संसार का स्वरूप है कि स्वयं तो हम मोहाछन्न रहते हैं लेकिन दूसरे को शिक्षा देते हैं

युद्ध करने गये अर्जुन भी मोह से ग्रस्त हैं


कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन।


इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन।।2.4।।


निम्नांकित श्लोक में अर्जुन भगवान् कृष्ण से पूछते हैं कि स्थितप्रज्ञ पुरुष के क्या लक्षण होते हैं

स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।


स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्।।2.54।।


हे केशव!

समाधि में स्थित स्थिर बुद्धि वाले पुरुष के क्या लक्षण होते हैं वह किस प्रकार बोलता बैठता चलता है


स्थितप्रज्ञता का वर्णन करना एक बात है और व्यवहार में लाना दूसरी बात

व्यवहार में लाना अद्भुत है

कश्मीर से संबन्धित प्रसंग का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि श्रद्धेय बैरिस्टर साहब वास्तव में स्थितप्रज्ञ की प्रतिमूर्ति थे


ऐसे लोग ही संसार में रहते हुए भी संसार का संस्पर्श नहीं कर पाते काम कठिन है लेकिन इस कलियुग में भी इस प्रकार के उदाहरण मिल जाते हैं


भगवान् कृष्ण समझाते हैं


प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।


आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।2.55।।


मन में स्थित सारी कामनाओं को त्यागकर बाह्य लाभ की अपेक्षा न करने वाला स्वयं से स्वयं में संतुष्ट रहता है उस समय वह स्थितप्रज्ञ है


दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः।


वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते।।2.56।।


दुःख और सुख में समान रहे वह स्थितप्रज्ञ है


.....

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।


रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।।2.59।।


ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।


सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।2.62।।


क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।


स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशोआदि बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63।।

आदि की आचार्य जी ने व्याख्या की

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अनुज सारस्वत जी का नाम क्यों लिया भैया मनोज अवस्थी जी किसके साथ आचार्य जी से मिलने हम लोगों के गांव जा रहे हैं आदि जानने के लिये सुनें

11.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 11 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 विस्तराय तु लोकानां स्वयं नारायणः प्रभुः।

व्यास रुपेण कृतवान् पुराणानि महीतले।।


प्रस्तुत है बृहन्नेत्र आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 11 मई 2022

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आचार्य जी के संप्रेषणों में अत्यन्त उपयोगी ज्ञानवर्धक प्रेरक संसार अथवा संसारेतर ज्ञान से समन्वित विषय रहते हैं


खण्डित शिक्षा के साथ लम्बे समय तक जीवनयापन करने का ही दुष्परिणाम हुआ कि हम मनुष्यत्व भूल गये


पशुवर्ग जिसे ईश्वर की अनुभूति है अभिव्यक्ति नहीं है से इतर मानववर्ग को अनुभूति और अभिव्यक्ति दोनों का सौभाग्य प्राप्त है


विद्यालय के एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि किस कारण वेद अपौरुषेय हैं



आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमारा जीवन संस्कारोन्मुख विचारोन्मुख बना रहे हम जीवन के रहस्यों को जानने वाले जिज्ञासु बनें


मनुष्य ईश्वर की एक अद्भुत कृति है मनुष्य मनुष्य के रूप में ही आया है लेकिन मनुष्य का परिष्करण चिन्तन संगति ज्ञान नियमों के आधार पर हुआ है


मनुष्य को पहले ज्ञान प्राप्त हुआ और तब ज्ञान को उसने विधान प्रदान किया ज्ञान का विधान ही शास्त्र है इसी शास्त्र को आगे हमने शिक्षा कहा


पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम् l अनन्तरं च वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिर्गताः ll


इन संप्रेषणों में इतने सारे तत्त्व हैं कि हम अपनी सांसारिक समस्याओं को आसानी से सुलझा सकते हैं

कुछ गूढ़ विषयों को हम सरलता से समझ सकते हैं यदि हम प्रश्न पूछें और आचार्य जी उत्तर दें


इस वायवीय शिक्षण से लाभ प्राप्त करते हुए हम अपने कार्य व्यापार को कर्तव्य मानकर आनन्द के साथ करेंगे


यदि हम बेगार टालेंगे तो चिन्तन से दूर हो जायेंगे

आत्मस्थ होने की चेष्टा करें अपने शरीर को पवित्र मन्दिर मानें दूसरों में भी मन्दिर देंखे लेकिन दुष्ट को दंड देने से भी न चूकें


विषधरतोऽप्यति विषमः ख़लः इति न मृषा वदन्ति विद्वांसः।

यदयं नकुलद्वेषी स कुलद्वेषी पुनः पिशुनः ll

10.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 10 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर जट जूट बाँधत सोह क्यों।

मरकत सयल पर लरत दामिनि कोटि सों जुग भुजग ज्यों॥

कटि कसि निषंग बिसाल भुज गहि चाप बिसिख सुधारि कै।

चितवत मनहुँ मृगराज प्रभु गजराज घटा निहारि कै॥


प्रस्तुत है  गोप आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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इन सदाचार संप्रेषणों से हमें उचित और अनुचित का अन्तर समझ में आता रहता है 

इन्हें सुनते समय हम यदि ध्यानस्थ   होंगे तो हमें अधिक लाभ होगा

आजकल हमलोग अरण्यकांड में प्रवेश किये हुए हैं

अरण्यकांड में घटनाएं अनेक हैं और वो घटनाएं किसी एक  दिशा को प्रेरित करती हैं



सूपनखा रावन कै बहिनी। दुष्ट हृदय दारुन जस अहिनी॥

पंचबटी सो गइ एक बारा। देखि बिकल भइ जुगल कुमारा॥2॥......

लछिमन अति लाघवँ सो नाक कान बिनु कीन्हि।

ताके कर रावन कहँ मनौ चुनौती दीन्हि॥17॥


तुलसीदास ने इस घटना को संसार धर्म से संयुत कर बहुत अच्छा निर्वाह किया है


लै जानकिहि जाहु गिरि कंदर। आवा निसिचर कटकु भयंकर॥

रहेहु सजग सुनि प्रभु कै बानी। चले सहित श्री सर धनु पानी॥6॥



नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।

स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा-भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति।।7।।

का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि


वाराहीतंत्र' के अनुसार आगम इन सात लक्षणों से परिलक्षित होता है :


सृष्टि, प्रलय, देवतार्चन, सर्वसाधन, पुरश्चरण, षट्कर्म (=शांति, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन तथा मारण) साधन तथा ध्यानयोग।


आगम तन्त्र शास्त्र की गहन परम्परा है  यह इस संसार में रहने के सलीके तरीके बताता है 

कलियुग में सुधी इस आगम पद्धति से देवताओं का पूजन करते हैं

इन सब को बताने के पीछे आचार्य जी का उद्देश्य यही रहता है कि हमें  विश्वास हो सके कि हमारी संस्कृति हमारा ज्ञान हमारा अनुसंधान अनुपमेय है अद्भुत है

हमने बहुत सी समस्याओं को सुलझाया है

ऐतिहासिक गलतियों पर चिन्तन न कर सफलताओं पर चर्चा करें ताकि हमारा हौसला  बढ़े

सकारात्मक सोच रखें


ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है हम पिटते नहीं पीटते हैं



परमात्मा पर आश्रित विचार विकार नहीं है

यह शैथिल्य नहीं है विश्वास की भूमिका है

9.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 9 मई 2022

 सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुंदरं

पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्।

राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं

सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभिरामं भजे॥2॥


प्रस्तुत है आत्मयाजिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 9

मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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हम अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं कि आचार्य जी के सांसारिक प्रपंचों में लगातार फंसे रहने के बाद भी उनके आप्तवचन से हम लाभान्वित हो रहे हैं


साधनों के भंवर में फंसकर साधानानुरक्त होना भक्ति का आश्रय लेकर साधना की ओर उन्मुख होना यही दर्शाता है कि वास्तव में मनुष्य परमात्मा की एक अद्भुत रचना है


परमात्मा द्वारा बनाया गया संयोग है कि हम आनन्द और उत्साह में उछलते हैं और सुख दुःख में डूब जाते हैं


परमात्मा के बनाये सिद्धान्तों पर निरन्तर चलते रहने से दैविक, आधिदैविक और अधिभौतिक त्रितापों से हमें सहज मुक्ति मिलेगी।


अरण्य कांड में


भगवान् राम कई ऋषियों के आश्रम में जाते हैं प्रसंग वहां का है जब सीता लक्ष्मण सहित भगवान् राम सुस्ता रहे हैं

एक बार प्रभु सुख आसीना। लछिमन बचन कहे छलहीना॥

सुर नर मुनि सचराचर साईं। मैं पूछउँ निज प्रभु की नाईं॥3॥


मोहि समुझाइ कहहु सोइ देवा। सब तजि करौं चरन रज सेवा॥

कहहु ग्यान बिराग अरु माया। कहहु सो भगति करहु जेहिं दाया॥4॥


ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ।

जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ॥14॥


थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई। सुनहु तात मति मन चित लाई॥

मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥1॥


एक दुष्ट अतिसय दुखरूपा। जा बस जीव परा भवकूपा॥

एक रचइ जग गुन बस जाकें। प्रभु प्रेरित नहिं निज बल ताकें॥3॥


एहि कर फल पुनि बिषय बिरागा। तब मम धर्म उपज अनुरागा॥

श्रवनादिक नव भक्ति दृढ़ाहीं। मम लीला रति अति मन माहीं॥4॥


बचन कर्म मन मोरि गति भजनु करहिं निःकाम।

तिन्ह के हृदय कमल महुँ करउँ सदा बिश्राम॥16॥


आचार्य जी ने इनको पढ़ने का परामर्श दिया


भगवान् राम बता रहे हैं कि मेरी भक्ति भक्तों को सुख देने वाली है

जो माया ईश्वर आत्मस्वरूप को नहीं जानता वो जीव है

अविद्या दुष्ट है विद्या जगत की रचनाकार है


जो करता है परमात्मा करता है परमात्मा सब अच्छा ही करता है

हमें आत्मचिन्तन में समय लगाना चाहिये भ्रमित होने पर मानस और गीता का सहारा लें मार्ग निकल आयेगा

आत्मशक्ति की आवश्यकता है आत्मिक स्वास्थ्य परिशुद्ध बना रहे इसका प्रयास करते रहें


घटाकाश (09:00 पर ) का क्या अर्थ है,किसी की निष्प्राण देह के प्रति हमारा व्यवहार कैसा रहता है आदि जानने के लिये सुनें

8.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 8 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 .            ll ध्येय -वाक्य ll

" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "



प्रस्तुत है युक्त आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 8 मई 2022

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इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हमारे अन्दर स्वात्मदर्शन करते हुए आचार्य जी हमें इस संसार, संसारेतर, कर्तव्य भाव विचार क्रिया आदि बहुत से विश्लेषणात्मक विषयों को लेकर प्रेरित करते रहते हैं

*वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः* के लिये


हमारा देश हमारी संस्कृति हमारा चिन्तन वैश्विक है यह संपूर्ण सृष्टि जगत् को आत्मस्वरूप मानता है


इस अध्यात्म के साथ शौर्य को प्रमण्डित करना आवश्यक है

संघर्ष सर्वत्र हैं जिनके लिये शक्ति आवश्यक है विजय के लिये युक्ति आवश्यक है और धीरज बनाये रखने के लिये भक्ति आवश्यक है

हमारे अन्दर शक्ति भक्ति युक्ति चैतन्य विचार विश्वास आत्मीयता आत्मबोध को जाग्रत करने के लिये आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं


इस सदाचार का हेतु है कि हम लोग उचित दिशा में प्रेरित हो सकें ताकि संसार की समस्याओं से जूझते हुए सामञ्जस्य समन्वय का आनन्द लेने में कठिनाई न हो


मानस गीता उपनिषद् ब्रह्मसूत्र आदि के लिये आप बार बार प्रेरित करते हैं


आचार्य जी कभी हिन्दू जागरण मंच में बौद्धिक विभाग के प्रभारी रहे थे उस समय आचार्य जी ने एक अंक प्रकाशित किया था *अब काशी की बारी है*


राम कृष्ण शिव की त्रिशक्ति को हम व्यामोहित नहीं देखना चाहते हम विचारों के लिये संघर्ष करते हैं

गीता ज्ञान भी यही कहता है जो मार्गभ्रष्ट है उसे हटा दो


उसे ललकारने के लिये हमारे अन्दर शक्ति युक्ति भक्ति भी होनी चाहिये


हिन्दुत्व ही राष्ट्रीयत्व है हिन्दुत्व ही सनातनत्व है


इस हिन्दुत्व बोध से जो उत्साहित रहते हैं उनको संगठित संस्कारित विचारित और उद्देश्य हेतु समर्पित करना हमारा कर्तव्य है


मैंने सामाजिक उत्थान सामाजिक चैतन्य हेतु आज क्या किया इस पर सोने से पूर्व अवश्य चिन्तन करें


युगभारती के संगठन का मूलाधार यह होना चाहिये कि   एक आवाज पर कितने लोग एकत्र हो सकते हैं चाहे आक्रमण हुआ हो किसी का उत्सव हो आदि 


राष्ट्रभक्त जो छद्मवेशी न हो शुद्धहृदयी हो को साथ लेकर चलें

7.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 7 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 महामृत्युंजय मंत्र 

||ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥



प्रस्तुत है विवेकदृश्वन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 7 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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हम जब भी कोई कार्य करें तो सबसे पहले अपने इष्टदेव का स्मरण अवश्य करें इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य ही है कि हमें इनसे वैचारिक बल मिले वैचारिक बल तभी सुरक्षित रहता है जब शारीरिक बल सहज रहता है शारीरिक स्वस्थता की ओर लगातार सचेष्ट रहने की आवश्यकता है  जीवनचर्या भी महत्त्वपूर्ण है उस बल का सदुपयोग  स्वयं करें और स्वयं जैसे समाज की निर्मिति के लिये करें


यह क्रिया संस्कार है संस्कार लगातार चलते हैं विकार सहज रूप से आ जाते हैं

इन विकारों को दूर करने का सतत् प्रयास करते रहना चाहिये अच्छे सात्विक बीजों को विचार के रूप में  पल्लवित करने की कोशिश करते रहना ही संसार का कर्तव्य पालन है


कार्य सामान्य हो असामान्य हो व्यवहार साधारण हो असाधारण हो सबके प्रति लगातार सचेत रहने की क्रिया जिन लोगों के मन मस्तिष्क में छाई रहती है ऐसे लोग अपने को संसार सागर से बचा लेते हैं

शरीर को स्वस्थ करके आराम देना भी गलत है


सबसे बड़ा भय मृत्यु से होता है  लेकिन हमें शरीर बदलने में भी कष्ट नहीं होना चाहिये जैसे पका हुआ खरबूजा लता से संबंध को त्याग देता है

मानस में भी इसी प्रकार की शिक्षा हम लोगों को दी गई है


अरण्य कांड में


अबिरल भगति मागि बर गीध गयउ हरिधाम।

तेहि की क्रिया जथोचित निज कर कीन्ही राम॥32॥


अखण्ड भक्ति का वर माँगकर  जटायु  परमधाम को चले गये । भगवान् राम ने उनकी  क्रियाएँ यथायोग्य अपने हाथों से कीं॥32॥


संकुल लता बिटप घन कानन। बहु खग मृग तहँ गज पंचानन॥

आवत पंथ कबंध निपाता। तेहिं सब कही साप कै बाता॥3॥

दुरबासा मोहि दीन्ही सापा। प्रभु पद पेखि मिटा सो पापा॥

सुनु गंधर्ब कहउँ मैं तोही। मोहि न सोहाइ ब्रह्मकुल द्रोही॥4॥


मन क्रम बचन कपट तजि जो कर भूसुर सेव।

मोहि समेत बिरंचि सिव बस ताकें सब देव॥33॥


.....

मानस और गीता के नित्य पाठ से हमारी ज्ञान की परतें खुलती जायेंगी और हम व्याकुल नहीं होंगे

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने विप्रत्व और शूद्र का क्या अर्थ बताया भैया विधुकांत जी भैया मोहन कृष्ण जी और भैया प्रवीण सारस्वत जी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

6.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 6 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 राम कहा तनु राखहु ताता। मुख मुसुकाइ कही तेहिं बाता॥

जाकर नाम मरत मुख आवा। अधमउ मुकुत होइ श्रुति गावा॥



प्रस्तुत है अकुतोभय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 6 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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इन सदाचार संप्रेषणों में आचार्य जी के व्यवस्थित विचारों के प्रकाशन  से प्रतिदिन हम लाभान्वित हो रहे हैं और हमारा समय सार्थक हो रहा है

इनमें आत्मीयता की प्राप्तियां बहुत हैं 

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम इनमें से तत्त्व ग्रहण करते जाएं और अपने जीवन में सद्गुणों का संचार करें


भारतीय संस्कृति,जिसमें अद्वितीय सुख और आनन्द है अनगिनत शक्तियां हैं, को पहचानकर हमें इसे आत्मसात् करना चाहिये


यही संस्कृति संबन्धों की सुरम्य वाटिका है


आजकल हमारे देश में पाश्चात्य रंगों की नुमाइश लगी है  एक विषय चल रहा है नारी विमर्श

 स्त्री पुरुष का ये संबन्ध नहीं अनुबन्ध है 

जहां संबन्ध नहीं होते हैं वहां औपचारिकता होती है औपचारिकता में क्षुद्र स्वार्थ सामने आते हैं

जहां संबन्ध नहीं अनुबन्ध हों तो ज्यों ही शर्त टूटी अनुबन्ध टूट जाता है

विदेशों में अनुबन्ध होते हैं हमारे यहां संबन्ध होते हैं

हम संबन्धों के लिये समर्पित रहते हैं


तुलसीदास अपनी पत्नी के लिये जीवन भर वियोग से तप्त रहे इस वियोग का परिणाम ही श्रीरामचरित मानस है यह वियोग संबन्धों का वियोग है नारी का वियोग नहीं है



अवगुन मूल सूलप्रद प्रमदा सब दु:ख खानि।

ताते कीन्ह निवारन मुनि मैं यह जियँ जानि॥44॥


की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि भगवान् राम ने विष्णु स्वरूप में नारद जी को विवाह करने से क्यों रोका


भगवान् राम ने संबन्धों को बहुत महत्त्व दिया 

सीता से संबन्ध के कारण ही भगवान् राम ने कहा


हा गुन खानि जानकी सीता। रूप सील ब्रत नेम पुनीता॥

लछिमन समुझाए बहु भाँति। पूछत चले लता तरु पाँती॥4॥


भगवान् राम का पौरुष जागता है सीता उनकी पत्नी है पत्नी और नारी में अन्तर है 


सीता हरन तात जनि कहहु पिता सन जाइ।

जौं मैं राम त कुल सहित कहिहि दसानन आइ॥ 31॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शुभेन्द्र सिंह और भैया नीरज कुमार का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

5.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 5 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 पाप उलूक निकर सुखकारी। नारि निबिड़ रजनी अँधियारी॥

बुधि बल सील सत्य सब मीना। बनसी सम त्रिय कहहिं प्रबीना॥

प्रस्तुत है गीष्पति आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 5 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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जब हमारे सामने आपद्धर्म (इस पर छान्दोग्योपनिषद् में उषस्ति की एक अत्यधिक रोचक कथा है ) आता है तो व्यवस्थित दिनचर्या अव्यवस्थित हो जाती है


हम लोग अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं कि आपद्धर्म के संकट में घिरे होने के बाद भी आचार्य जी हम लोगों को इस सदाचार संप्रेषण के माध्यम से प्रेरित कर रहे हैं


मनुष्य का मन बहुत चञ्चल होता है लेकिन चंचलता उसका दोष ही नहीं सद्गुण भी है जब चञ्चल मन शान्ति की सरणियों में पहुंच जाता है  तो वह शान्ति की अनुभूति कराने लगता है यह प्रतिदिन का संप्रेषण  चंचल मन का सात्विक भावबोध है


आचार्य जी ने परसों अरण्य कांड में भगवान् राम के स्वरूप को वर्णित करते छंदों के बारे में हमें बताया था अरण्य कांड में अनेक प्रसंग हैं इन्द्रपुत्र जयन्त का प्रसंग,सीता हरण का प्रसंग, जटायु प्रसंग और इनके साथ नारद भगवान् राम के संवाद का भी प्रसंग है


कभी नारद विष्णु भगवान्   से रूप मांगने गये थे वो नारद मोह कहा जाता है इस अरण्य कांड में नारद ज्ञान कहा जाता है

प्रभु राम इस समय कुछ शांत बैठे हैं


बिकसे सरसिज नाना रंगा। मधुर मुखर गुंजत बहु भृंगा॥

बोलत जलकुक्कुट कलहंसा। प्रभु बिलोकि जनु करत प्रसंसा॥1॥


देखि राम अति रुचिर तलावा। मज्जनु कीन्ह परम सुख पावा॥

देखी सुंदर तरुबर छाया। बैठे अनुज सहित रघुराया॥1॥


तहँ पुनि सकल देव मुनि आए। अस्तुति करि निज धाम सिधाए॥

बैठे परम प्रसन्न कृपाला। कहत अनुज सन कथा रसाला॥2॥


बिरहवंत भगवंतहि देखी। नारद मन भा सोच बिसेषी॥

मोर साप करि अंगीकारा। सहत राम नाना दुख भारा॥3॥

...

काम क्रोध लोभादि मद प्रबल मोह कै धारि।

तिन्ह महँ अति दारुन दुखद मायारूपी नारि॥43॥


.......

आदि का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया नारी विमर्श  सशक्तिकरण जाति पाति का भेद आदि बहुत से विकार इस समय आ गये हैं

आत्मीय संबंधों की जगह विश्लेषणात्मक संबन्धों ने ले ली है पाश्चात्य विश्लेषणात्मक प्रवृत्ति अत्यधिक घातक है


इस पर विमर्श होना चाहिये प्रश्न होने चाहिये नाटक में एकरसता बहुत खलती है इसी तरह सृष्टि में भी

मनुष्य जीवन में पुरुषत्व भी है नारीत्व भी है


पुरुष और प्रकृति के संपर्क से सृष्टि की रचना होती है

स्त्री और पुरुष दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं

4.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 4 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रदातृ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 4 मई 2022

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आचार्य जी जब भी हमें गीता और मानस का संदर्भ देते हैं तो उनका मूल उद्देश्य यह रहता है हम लोग अपने कार्य और व्यवहार में लगे रहते हुए भी इन सहज प्राप्य ग्रंथों का अवगाहन करें और इनके प्रति हमारा आकर्षण हो


अत्यधिक विषम परिस्थितियों में इस देश के ऋषियों कवियों संतों आदि ने बार बार हम लोगों को आत्मबल दिया है इसी आत्मबल के भरोसे आज भी हम हैं किसी अन्य नाम रूप में हम परिवर्तित नहीं हुए  मूल रूप से आज भी हम वही हैं


दृढ़ विश्वास के साथ हम कहते हैं कि प्रलय तक भारतवर्ष भारतवर्ष ही रहेगा


स्वयं स्वस्थ रहते हुए पारिवारिक रूप से समृद्ध रहते हुए सुसंस्कृत समाज का हिस्सा बनते हुए जब सर्वत्र हमारा प्रभाव पहुंच जाता है तो कहा जाता है कि हम सृष्टि के संरक्षक हैं

यह यात्रा सतत चलती रहती है

यूरोपीय यात्रा के दूसरे दिन मा प्रधानमन्त्री मोदी के कोपनहेगन में दिये भाषण का संदर्भ देते हुए आचार्य जी ने बताया कि विश्व को भारतीय जीवनदर्शन अपनाना ही होगा


यही दर्शन संपूर्ण विश्व को प्राणधारा देने वाला है


विल्सन, ग्रिफिथ, मैक्समूलर आदि द्वारा वेदों में किये गये घालमेल से सामान्य जनमानस गलत धारणाएं न बना ले तो उसे जागरूक करने के लिये महर्षि दयानन्द ने *ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका*

 लिखी

ताकि यह पता चले कि वास्तव में वेदों में क्या है


ऋषि दयानन्द ने वेदों के अर्थ रूपी ताले को खोलने के लिए हमें कुंजी रूप में ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ प्रदान की

हम भारतीयों को अपने पर विश्वास करना ही होगा


ज्ञान के आधार पर ऋषि दयानन्द भक्ति के आधार पर रामकृष्ण परमहंस भक्ति और ज्ञान के आधार पर स्वामी विवेकानन्द उस समय  दहाड़ते रहे जब देश में भुखमरी अशिक्षा अकाल अज्ञान आदि विकार थे

विकार के पाचन के लिये यदि विचार उद्यत नहीं होता तो विकार उद्धत हो जायेगा

विकार को समाप्त करने के लिये भगवान् राम भी उद्यत हुए


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥



भगवान् रामजी ने भुजा उठाकर प्रण किया कि मैं मही अर्थात् पृथ्वी को राक्षसों से रहित कर दूँगा। फिर समस्त मुनियों के आश्रमों में जा जाकर उनको (दर्शन एवं सम्भाषण का) सुख दिया॥9॥


आचार्य जी ने रामजप का महत्त्व बताया

आचार्य जी ने बताया कि आत्ममुक्ति जगत के हित के लिये है 


आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च ( स्वयं के मोक्ष के लिए तथा जगत के कल्याण के लिए), ऋग्वेद का एक श्लोक है। स्वामी विवेकानन्द प्रायः इस श्लोक को उद्धृत करते रहते थे और बाद में यह वाक्यांश रामकृष्ण मिशन का ध्येयवाक्य बनाया गया।

3.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 3 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है विगतकल्मष आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 3 मई 2022

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हम श्रवणोत्सुक समूह के लिये आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इस संप्रेषण में जो कुछ बोला जा रहा है उस शक्ति की अनुभूति का प्रयास करें


वर्तमान में जीवित रहने का उत्साह हम सभी का है वर्तमान में जीवित रहते हुए संसार के साथ सामञ्जस्य स्थापित करते हुए संसार का आनन्द लेते हुए शौर्य शक्ति के साथ आगे बढ़ना औऱ ताप तप्त को ऐसी छाया प्रदान करना कि कुछ देर के लिये उस छाया में वो शान्त होकर बैठ सके किसी की व्याकुलता शान्त कर दी तो हमने उसे छाया दे दी यही संसार में रहते हुए भक्ति है


गीता के बारहवें अध्याय भक्ति योग में बीस छन्द हैं


संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः।


ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः।।12.4


इन्द्रिय समूह को ठीक प्रकार से नियमित करके, सब जगह समभाव वाले,  भूतमात्र के हित में रत वे भक्त मुझे ही प्राप्त होते हैं।।



अरण्य कांड में 


मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं

वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।

मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शङ्करं

वन्दे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्रीरामभूपप्रियम्।।1।।


और दूसरे छन्द में राम का स्वरूप देखते ही बनता है 

सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुन्दरं

पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्

राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं

सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभिरामं भजे।।2।l



जिनका शरीर  मेघों के समान सुंदर एवं आनंदघन है, जो सुंदर  पीत वस्त्र धारण किए हैं, जिनके हाथों में बाण और धनुष हैं, कमर उत्तम तरकस के भार से सुशोभित है, कमल  तुल्य विशाल आंखें हैं और माथे पर जटाजूट धारण किए हैं, उन अत्यन्त शोभायमान सीता जी और लक्ष्मण जी सहित मार्ग में चलते हुए आनंद देने वाले श्री राम जी को मैं भजता हूँ॥2||

हाथ में धनुषबाण  इस भाव का हमें वरण करना चाहिये 


त्रिकालदर्शी अत्रि के आश्रम में



* प्रभु आसन आसीन भरि लोचन सोभा निरखि।

मुनिबर परम प्रबीन जोरि पानि अस्तुति करत॥3॥

भावार्थ:-प्रभु आसन पर विराजमान हैं। नेत्र भरकर उनकी शोभा देखकर परम प्रवीण मुनि श्रेष्ठ हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे॥3॥


*नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलं॥

भजामि ते पदांबुजं। अकामिनां स्वधामदं॥1॥

भावार्थ:-हे भक्त वत्सल! हे कृपालु! हे कोमल स्वभाव वाले! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निष्काम पुरुषों को अपना परमधाम देने वाले आपके चरण कमलों को मैं भजता हूँ॥1॥

*निकाम श्याम सुंदरं। भवांबुनाथ मंदरं॥

प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि दोष मोचनं॥2॥

भावार्थ:-आप नितान्त सुंदर श्याम, संसार (आवागमन) रूपी समुद्र को मथने के लिए मंदराचल रूप, फूले हुए कमल के समान नेत्रों वाले और मद आदि दोषों से छुड़ाने वाले हैं॥2॥

*प्रलंब बाहु विक्रमं। प्रभोऽप्रमेय वैभवं॥

निषंग चाप सायकं। धरं त्रिलोक नायकं॥3॥

भावार्थ:-हे प्रभो! आपकी लंबी भुजाओं का पराक्रम और आपका ऐश्वर्य अप्रमेय (बुद्धि के परे अथवा असीम) है। आप तरकस और धनुष-बाण धारण करने वाले तीनों लोकों के स्वामी,॥3॥

( shriramcharitmanas. in से साभार )

इन स्तुतियों को हमें याद करना चाहिये और अन्य लोगों को भी सुनाना चाहिये 


भक्ति और शौर्य का संयोग गीता और मानस दोनों में है यदि हम इनका अवगाहन करेंगे तो हमारे अन्दर इतना शक्ति सामर्थ्य आयेगा कि हम उदाहरण बन जायेंगे

2.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 2 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रत्ययकारिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 2 मई 2022

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सांसारिक प्रपंचों से विरक्त होकर भी मनुष्य को शान्ति नहीं मिलती और उनमें अनुरक्त होकर भी शान्ति का अभाव रहता है तो उसे सामञ्जस्य स्थापित करने की आवश्यकता होती है जिसके लिये वह संयम का आश्रय लेता है

बहुअर्थी संयम की तरह बहुत सी चीजें हैं जो हमें स्वयं तो समझ में नहीं आती हैं फिर भी हम लोगों को समझाने के अभ्यस्त हो जाते हैं यह अभ्यास ही दुनिया का जगत व्यवहार है


पूर्ण विज्ञ और पूर्ण अज्ञ के विपरीत हम मध्यवर्गीय मनुष्यों के साथ ही यह होता है


यह मध्य अतिमहत्त्वपूर्ण है l जैसे मध्य का गात (कटि से ग्रीवा तक )और मेरुदंड

मध्य का कार्य है धरती और आकाश को संयुत करना

इसी तरह माध्यमिक शिक्षा भी,आर्थिक दृष्टि से मध्यवर्ग भी महत्त्वपूर्ण है हम में सभी प्रायः मध्यवर्गीय हैं मध्यवर्ती हैं मध्यमार्गीय हैं


शुक्लयजुर्वेद की कण्व शाखा की तरह माध्यान्दिनी भी उसकी एक शाखा है


सेना का मध्यभाग भी अतिमहत्त्वपूर्ण है


तुलसी के मानस में मध्य में कथा है  प्रारम्भ और अन्त में अध्यात्म है  सामान्य  भाषा में प्रस्तुत मानस अद्भुत जीवनदर्शन है


2 नवंबर  1834 को एटलस नामक जहाज से यूपी और बिहार के मजदूरों को जब अंग्रेज बहला फुसलाकर माॅरिशस ले गये थे तो ये अपने साथ मानस के गुटके ले गये थे


आचार्य जी ने सस्वर गीता और मानस का पाठ करने का परामर्श दिया ताकि हम संयमित रहें

हम व्याकुल न हों

डांवाडोल धरती को संयमी लोग साधते हैं

धन की अधिकता से भी हम व्याकुल हो गये


साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय । मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥


इसीलिये संतुलन बहुत आवश्यक है

इन बातों को अपने तक सीमित न रख अपनों तक पहुंचाये तो यह पुरुषार्थ पराक्रम का प्रकटीकरण है


इससे यह दिखॆगा कि राष्ट्र की रक्षा के लिये हम सतत जागरूक हैं


आचार्य जी ने नेता शब्द का क्या अर्थ बताया भैया मुकेश गुप्त जी का नाम केरल की किस घटना के संदर्भ में आया जानने के लिये सुनें

1.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 1 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करहिं सब कोई। जिनके कपट, दम्भ नहिं माया, तिनके ह्रदय बसहु रघुराया।


प्रस्तुत है महातेजस् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 1 मई 2022

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प्रतिदिन के सांसारिक प्रपंचों में व्यस्त होने के बाद भी आचार्य जी हमारा मार्गदर्शन करते हैं यह हम लोगों का सौभाग्य है


व्यक्ति को संपदा, वैभव, शिक्षा, सुविधा, यश प्राप्त होने पर भी गुरूर नहीं करना चाहिये

किसी भी परिस्थिति में उलझाव में कर्तव्यनिर्वाह में होने के बाद भी आप समय निकालकर आत्मचिन्तन करें और भक्ति की ओर उन्मुख हों

क्योंकि 

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ।।


जड़-चेतन प्राणियों वाली यह सारी सृष्टि ईश्वर से व्याप्त है। व्यक्ति इसके पदार्थों का आवश्यकतानुसार भोग करे,  ‘ यह सब मेरा नहीं है 'के भाव के साथ

और उनका संग्रह न करे।

भक्ति आप किसी भी तरह की कर सकते हैं 

भक्ति के तो नौ प्रकार हैं


श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।

अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥


(1 फरवरी 2022 को नवधा भक्ति के बारे में  आचार्य जी ने विस्तार से बताया था)

समय पर जागरण स्नान भोजन शयन आदि भी आवश्यक है

चिन्तन मनन स्वाध्याय अध्ययन ध्यान निदिध्यासन शौर्यप्रमण्डित अध्यात्म में रत हों


नवें अध्याय में


महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः।


भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्।।9.13।।



 हे अर्जुन !  दैवी प्रकृति के आश्रित महात्मा पुरुष मुझे समस्त भूतों का आदिकारण और अव्ययस्वरूप जानकर मुझे भजते हैं।।


सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रताः।


नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते।।9.14।।


सतत मेरा कीर्तन करते हुए, प्रयत्नशील, दृढ़व्रती पुरुष मुझे नमस्ते करते हुए भक्तिपूर्वक मेरी उपासना करते हैं।।


अपने से अधिक कोई नहीं जानता कि वो क्या सही कर रहा है और क्या बुरा कर रहा है अतः स्वयं के बारे में चिन्तन करें डायरी लेखन करें

युगभारती संगठन के लिये भी काम करते हुए भक्ति का ध्यान रखें


संस्कार सिर चढ़कर बोलते हैं

संस्कारी शिक्षा के कारण ही हम बड़े लोगों के पैर छूते हैं


डा हेडगेवार ने भगवा ध्वज को गुरु क्यों बनाया भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी का नाम क्यों आया नारद का अर्थ क्या है आदि जानने के लिये सुनें