31.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 31 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे,

त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।


(हे वात्सल्यमयी मातृभूमि, तुम्हें सदा प्रणाम! इस मातृभूमि ने हमें अपने बच्चों की तरह स्नेह और ममता दी है)



प्रस्तुत है बुद्धिसख आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 31 जुलाई 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/2


ये सदाचार संप्रेषण ज्ञान, भक्ति, वैराग्य, शौर्य, शक्ति, संयम और सदाचरण आदि का समन्वयात्मक प्रस्तुतीकरण हैं 


इनका मूल विषय है



उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।।

(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र १४)


अर्थ - उठो, जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में  दुर्गम मार्ग वाला ज्ञान प्राप्त करो ।


हमारा उद्देश्य है


परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं

समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्॥


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः



बहुत से विकारों, जिनका प्रभाव मन बुद्धि शरीर पर पड़ता है, से ग्रस्त होने के बाद भी मनुष्य यदि चिन्तन करे तो उसे लगता है मैं यह ही नहीं कोई और हूं


अर्जुन को समझाते हुए कृष्ण भगवान् कहते हैं



वासांसि जीर्णानि यथा विहाय


नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।


तथा शरीराणि विहाय जीर्णा


न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।


जीवात्मा पुराने शरीरको छोड़कर अन्यान्य नवीन शरीरों को प्राप्त करता है।



लेकिन यह अनुभूति बहुत कठिन है हमें तो वस्त्रों से घर से अन्य भौतिक वस्तुओं से लगाव रहता है लेकिन क्षणांश भी हमें इनके प्रति लगाव न रहे तो इसे परमात्मा का  प्रसाद समझना चाहिये



यह प्रसाद हमें मिले इसके लिये आचार्य जी आज भी प्रयासरत हैं आचार्य जी के जीवन की लम्बी साधना का परिणाम है कि आज भी अद्वितीय शिक्षक के रूप में इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी हमें प्रसाद रूप में उद्बोधन दे रहे हैं


यह प्रसाद तुलसीदास जी भी चाह रहे हैं  रामचरित मानस की रचना करने के बाद उन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली उसके बाद भी वे 

विनयपत्रिका में कहते हैं



कबहूँ मन बिश्राम न मान्यो ।


निसिदिन भ्रमत बिसारि सहज सुख, जहँ तहँ इंद्रिन तान्यो ॥१॥


जदपि बिषय - सँग सह्यो दुसह दुख, बिषम जाल अरुझान्यो ।


तदपि न तजत मूढ़ ममताबस, जानतहूँ नहिं जान्यो ॥२॥


जनम अनेक किये नाना बिधि करम - कीच चित सान्यो ।


होइ न बिमल बिबेक - नीर बिनु, बेद पुरान बखान्यो ॥३॥


निज हित नाथ पिता गुरु हरिसों हरषि हदै नहिं आन्यो ।


तुलसिदास कब तृषा जाय सर खनतहि जनम सिरान्यो ॥४॥


...ऐसे तालाब से कब प्यास मिट सकती है, जिसके खोदने  में ही सारा जीवन बीत गया


गीता में भी



समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः।


शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः।।12.18।।



तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येनकेनचित्।


अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तमान्मे प्रियो नरः।।12.19।।



जिसको निन्दा और स्तुति दोनों ही बराबर लगती हैं जो मौन  है, जो किसी छोटी सी छोटी वस्तु से भी सन्तुष्ट है, जो अनिकेत है,  स्थिर बुद्धि का वह भक्तिमान् पुरुष मुझे प्रिय है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी का आनन्द आचार्य जी के साथ एक कमरे में रहने का कौन सा प्रसंग था केशवदास  कौन थे जानने के लिये सुनें

30.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 30 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जो करता है परमात्मा करता है और परमात्मा सब अच्छा ही करता है



प्रस्तुत है दीपन आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30 जुलाई 2022

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सार -संक्षेप वर्ष 2 क्र सं 1



हम सब लोग राष्ट्र -यज्ञ की हवन -सामग्री हैं उस सामग्री का महत्त्व और सार्थकता इसी में है कि उसे उचित अग्नि में


त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये।

गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर।।




(हे गोविन्द,  सब कुछ आपका ही दिया हुआ है उसे आपको ही समर्पित कर रहे हैं  आपके सम्मुख जो भी है, उसे प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण करें।)


के भाव के साथ 

प्रवेश कराया जाए और उसकी सुगन्ध फैले

यही सनातन चिन्तन है भारतीय चिन्तन है


इस राष्ट्र -यज्ञ में अनगिनत लोगों ने अपने को होम दिया 


हमें अपने को सौभाग्यशाली मानना चाहिये कि हम ऐसे देश से संयुत हैं जहां ज्ञान का अथाह भण्डार है वेद उपनिषद् मानस गीता महाभारत की तुलना ही नहीं की जा सकती


प्रतिदिन हममें से बहुत से लोग इन सदाचार संप्रेषणों को सुनते हैं  इनसे हमें पूरे दिन की ऊर्जा मिलती है सांसारिक प्रपंचों में निराशा का जड़त्व समाप्त होता है और ये हमें उत्साह से भरते हैं


हम कर्म से विमुख नहीं हो सकते  चिन्तक विचारक लेखक क्रान्तिकारी तिलक जी द्वारा रचित गीता रहस्य में भी कर्म को ही महत्त्वपूर्ण बताया गया है



ईशावास्य उपनिषद् में


ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌ ॥


इसका एक एक शब्द गहन और गम्भीर है इसके अर्थ में जाएं तो मन बहुत उत्तरदायित्व और भावनाओं से भर जाता है इसी कारण आचार्य जी ने युगभारती की प्रार्थना में इस छन्द को समाहित किया


कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥


गीता में


क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।


स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63।।


रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन्।


आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति।।2.64।।


यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।


तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर।।3.9।।

कर्म कर्म कर्म

कर्म ही महत्त्वपूर्ण है 

इन छन्दों की व्याख्या बहुत विशद है लेकिन हम अपने कर्तव्य का निर्धारण करें

हमारा लक्ष्य है राष्ट्र निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बैरिस्टर साहब, ठाकुर जी, वर्णेकर जी, सु. स्वामी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

29.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 29 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है प्रयत आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29 जुलाई 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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समीक्षा क्रम सं 365

(आज एक वर्ष पूर्ण )


जीवन में अत्यधिक कठिन परिस्थितियों को भी हल कर सकने का विश्वास ही हमारी सकारात्मक सोच है। कठिन दौर में भी हिम्मत हौसला बनाए रखना हमारी सकारात्मक सोच की शक्ति है।  हम किसी काम को जितनी सकारात्मकता से करेंगे काम उतना ही  सफल होगा। जीवन की विषम परिस्थितियों में नकारात्मक सोच  से अनेक व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन खोकर अपना बहुत बड़ा नुकसान कर बैठते हैं। आज तक के सभी सफल व्यक्तियों  की सफलता का राज कहीं न कहीं उनकी सकारात्मक सोच है। यह स्वास्थ्य की कुञ्जी भी है। इसी सोच के चलते सकारात्मक वायुमण्डल उत्पन्न होता है

हम राष्ट्रभक्तों को अखंड भारत के लिये सकारात्मक सोच रखनी चाहिये



मात्र उपदेश देने के स्थान पर जो मनुष्य सात्विक भोजन करते हैं प्रातःकाल जल्दी जागते हैं शौर्यमय आध्यात्मिक जीवन जीते हैं वे विशिष्ट होते हैं


मनुष्य अपने COMFORT ZONE से बाहर न निकलने के कारण बहुत से अच्छे विचारों को (जैसे भारत का सच्चा इतिहास लिखना चाहिये शिक्षा में परिवर्तन होना चाहिये आदि ) व्यवहार में नहीं बदल पाता


प्रयासपूर्वक अपना शरीर ठीक रखने पर हम चिन्तनोन्मुख होते हैं अन्यथा उसी की चिन्ता में अपना समय व्यर्थ कर देते हैं


इन सब विषयों को तात्विक रूप से चिन्तन करते हुए गीता और मानस पर बहुत से लोगों ने अध्ययन और लेखन किया है


गीता रहस्य में बाल गङ्गाधर तिलक जी ने कहा है कि गीता कर्मसिद्धान्त का एक आदर्श ग्रन्थ है बिना कर्म के हम रह नहीं सकते


गीता उपनिषदों का सारतत्व है

कठोपनिषद् से


उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।।

(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र १४)


अर्थ - उठो, जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो । विद्वान् मनीषी जनों का कहना है कि ज्ञान प्राप्ति का मार्ग उसी प्रकार दुर्गम है जिस प्रकार छुरी की पैनी धार  पर चलना ।


हमारा लक्ष्य है कि समस्याएं न रहें

गीता और मानस का अध्ययन करते समय हमें यह अनुभूति भी होती रहे तो हमें अपना लक्ष्य दिखाई देता रहेगा

आज के उथल पुथल के दौर में कुछ  पत्रकार अच्छा काम कर रहे हैं जैसे संजय दीक्षित, तुफैल चतुर्वेदी, नीरज अत्री, प्रदीप सिंह, ओंकार चौधरी, मनीष ठाकुर आदि



सांसारिक समस्याओं से चिन्तित न रहें इसलिये परमात्माश्रित होकर सारे कार्य करें दैनिक साप्ताहिक मासिक वार्षिक लक्ष्य  जीवन का लक्ष्य बनायें

28.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 28 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः

स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।

नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः

परोपकाराय सतां विभूतयः॥


नदियाँ अपना जल स्वयं नहीं पीतीं । पेड़ फल खुद नहीं खाते, बादल भी फसल नहीं खाते हैं। उसी प्रकार सज्जनों की सम्पत्ति परोपकार के लिए होती है।

हमारे सारे कार्य  भी राष्ट्र के लिये समर्पित हों



प्रस्तुत है अध्यात्म -प्रवहण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28 जुलाई 2022

 का  सदाचार संप्रेषण




अल्प ज्ञान से व्यक्ति अनेक उलझनों में फंस जाता  है बच्चे में संसारी भाव कैसे विकसित होता है इसके लिये आचार्य जी ने एक उदाहरण दिया कि बच्चा अज्ञानी होते हुए खिलौना समझकर अंगारा  छू लेता है  अंगारा छूकर बच्चा संसार के संभ्रम को समझने लगता है इस प्रकार मां उसकी पहली मार्गदर्शक होती है


हमारे द्वारा सूक्ष्म से विराट् तक की यात्रा में व्यवस्थित दिनचर्या का पालन करने के साथ साथ , जिज्ञासा रखते हुए धैर्यपूर्वक अध्ययन और फिर सहजता से स्वाध्याय अनिवार्य है



अध्ययन के बाद उसे स्व में पचाना ही स्वाध्याय है

एक ही पल में सूक्ष्म विराट् बन सकता है और विराट् सब कुछ कर सकता है,वह सब जानता है, वह पूर्ण है,उसमें कोई कमी नहीं है l



हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें गीता और मानस जैसे ग्रंथ मिले हैं



गीता मानस का अधिक लाभ प्राप्त करने के लिये हमें निश्चिन्तता के साथ आत्मस्थता चाहिये

वायुमण्डल की शुद्धि के लिये अपनी शान्ति के लिये हमें पूजा पाठ आरती आदि करनी चाहिये


भक्तों का आदर्श स्वरूप अर्जुन जब उत्क्रान्त हो गये तो भगवान् के आदर्श स्वरूप श्रीकृष्ण  उन्हें समझाते हैं 

भगवान् अपना विराट् रूप अर्जुन को दिखा चुके थे

इसके बाद


न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानै


र्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रैः।


एवंरूपः शक्य अहं नृलोके


द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर।।11.48।।


हे अर्जुन

तुम्हारे अतिरिक्त इस मनुष्य लोक में किसी अन्य के द्वारा मैं इस रूप में, न वेदों के अध्ययन और न तो यज्ञ, दान,धार्मिक क्रियायों के द्वारा और न उग्र तपों के द्वारा ही देखा जा सकता हूँ।


मा ते व्यथा मा च विमूढभावो


दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम्।


व्यपेतभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वं


तदेव मे रूपमिदं प्रपश्य।।11.49।।



इस प्रकार मेरे इस घोर रूप को देखकर तुम व्यथा और मूढ़भाव को मत प्राप्त हो। निर्भय और प्रसन्नचित्त होकर तुम पुन: मेरे उसी (पूर्व के) रूप को देखो।।





 

 

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समीक्षा क्रम सं 364



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मां हीरा बा, भैया आकाश मिश्र भैया परमपुरिया भैया अशोक का नाम क्यों लिया

जूना से आचार्य जी का क्या आशय था जानने के लिये सुनें

27.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 27 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ज्ञान -वहती आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27 जुलाई 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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समीक्षा क्रम सं 363



महाभारत एक विशाल और अद्वितीय ग्रंथ है इसमें देश काल घटनाएं विधि विधान इतिहास शास्त्र सहित बहुत कुछ है यह पाठक की दृष्टि पर निर्भर करता है कि वो इसमें क्या देखता है

महाभारत में द्वापर के अन्त और कलियुग के प्रारंभ का संकेत है ऊंच नीच धन दौलत कुल परम्परा का संकेत है इससे यह भी परिलक्षित होता है कि यदि पाप ही पाप व्याप्त है तो पुण्य भी कहीं न कहीं सुरक्षित होगा ही क्योंकि बीज कभी मरता नहीं


इसमें विदुरनीति आज भी प्रासंगिक है

अपने भाई धृतराष्ट्र की इच्छा और जिज्ञासा पर विदुर उनको समझा रहे हैं कि मोहान्ध होकर नियम नीति का त्याग कर जो मनुष्य काम करता है तो उसकी स्थिति अत्यधिक अद्भुत होती है 

धृतराष्ट्र मनुष्य का यथार्थ स्वरूप हैं वह ज्ञानी भी हैं तो अज्ञानी भी हैं चिन्ता करते हैं तो चिन्तन भी करते हैं मोहग्रस्त हैं तो त्यागी भी कम नहीं


विदुर कहते हैं


न देवा दण्डमादाय रक्षन्ति पशुपालवत्।

यं तु रक्षितुमिच्छन्ति बुद्‍ध्या

 संविभजन्ति तम्॥


देवता लोग चरवाहों की भाँति  डण्डा लेकर मनुष्यों की रक्षा नहीं करते, लेकिन वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं उसे अपनी रक्षा के लिये उत्तम बुद्धि प्रदान करते हैं।

उत्तम बुद्धि की रुचियां भी वैसी ही हो जाती हैं

जैसे

आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।


रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।17.8।।

तो दूसरा रजोगुणी लोगों का भोजन कैसा है


कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः।


आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः।।17.9।।

और तामसी लोगों का भोजन




यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्।


उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्।।17.10।।

है

इनकी बुद्धि देवता इस तरह की बना देते हैं वे अविश्वासी भी होते हैं


विदुर एक कथा सुनाते हैं



प्रह्लाद पुत्र विरोचन , केशिनी नाम की एक अनुपम सुन्दरी कन्या के स्वयंवर में विवाह की इच्छा से पहुँचा।केशिनी सुधन्वा नाम के ब्राह्मण से विवाह करना चाहती थी।केशिनी ने विरोचन से पूछा — विरोचन ! ब्राह्मण श्रेष्ठ होते हैं या दैत्य ? यदि ब्राह्मण श्रेष्ठ होते हैं , तो मैं ब्राह्मण पुत्र सुधन्वा से ही विवाह करना पसंद करूँगी ।विरोचन ने कहा , हम प्रजापति की श्रेष्ठ संतानें हैं, अत: हम सबसे उत्तम हैं । हमारे सामने देवता भी कुछ नहीं हैं तो , ब्राह्मण श्रेष्ठ कैसे हो सकते हैं।


           केशिनी ने कहा इसका निर्णय कौन करेगा? सुधन्वा ब्राह्मण जानता था कि ,दैत्य राज प्रह्लाद यहाँ के राजा हैं तथा धर्मनिष्ठ भी।अत: प्रह्लाद जी के पास जाने का प्रस्ताव सुधन्वा ने रखा।विरोचन को विश्वास था कि पिताजी तो निर्णय अपने पुत्र के पक्ष में ही देंगे।अत: विरोचन तथा सुधन्वा ने प्राणों की बाजी लगा ली ।अब केशिनी सुधन्वा तथा विरोचन तीनों प्रह्लाद जी  की सभा में पहुँचे।

        प्रह्लाद ने अपने सेवकों से सुधन्वा ब्राह्मण के सत्कार के लिये जल तथा मधुपर्क मँगाया तथा बड़े ही भाव  से ब्राह्मण के चरण धुलवाकर आसन बैठने को दिया तथा पूछा कि आपने यहाँ आने का कष्ट कैसे किया? सुधन्वा ने कहा ! मैं तथा आपका पुत्र विरोचन प्राणों की बाजी लगाकर यहाँ आये हैं , आप बतायें कि  ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं अथवा विरोचन ?

                प्रह्लादजी यह सुनकर गंभीर हो गये।उन्होंने कहा , ब्रह्मण ! मेरे एक ही पुत्र है और इधर धर्म , मैं भला कैसे निर्णय दे सकता हूँ ? विरोचन ने कहा – राजन ! नीति जो कहती है , उसके आधार पर ही निर्णय कीजिये ।प्रह्लादजी ने अपने पुत्र से कहा– विरोचन ! सुधन्वा के पिता  ऋृषि अंगिरा , मुझसे श्रेष्ठ हैं , इनकी माता , तुम्हारी माता से श्रेष्ठ हैं तथा सुधन्वा तुमसे श्रेष्ठ है । अत: तुम सुधन्वा से हार गये हो।सुधन्वा आज से तुम्हारे प्राणों का मालिक है।

              सुधन्वा बोला– आप ने स्वार्थवश असत्य नहीं कहा है। आपने धर्म को स्वीकार करते हुये न्याय किया है , इसलिये  आपका पुत्र मैं आपको लौटा रहा हूँ


( https://anandakandakripa.com/tag/bishnu-bhakt-prahlad-ki-katha-the-story-of-the-son-of-prahlad-and-sudhanwa-brahman-virochan-and-sudhanwa-ki-katha )


आज भी अविश्वास का दौर चल रहा है अल्पसंख्यक कम्युनिस्ट लेफ्ट लिबरल नक्सली अपना अपना राग अलाप रहे हैं

तो हमें अपना कर्तव्य समझना होगा तभी ये संप्रेषण सार्थक होंगे

26.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 26 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कथक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26 जुलाई 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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समीक्षा क्रम सं 362



आज 26 जुलाई है यह दिन करगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है

26 जुलाई, 1999 को पाकिस्तानी सेना के सैनिकों को उनके कब्जे वाले स्थानों से बेदखल करने के साथ युद्ध आधिकारिक रूप से समाप्त हो गया, इस प्रकार इसे करगिल विजय दिवस के रूप में चिह्नित किया गया।



विजय का भाव प्रत्येक भारतवासी के हृदय में जाग्रत रहना चाहिये

भारत जब विजय का संकल्प  लेता है तो उसका कोई उत्तर नहीं दे पाता

हमें देश के शौर्य पराक्रम शक्ति धैर्य उत्साह  पर गर्व करना चाहिये

आचार्य जी ने करगिल विजय पर एक बहुत अच्छी कविता शौर्य- स्तवन लिखी

प्रस्तुत है यह कविता




क्‍या कहा। करगिल कलम की नोंक से लिख दूँ


 घधकते शौर्य का लावा उठाकर पृष्ठ पर रख दूँ


कहाँ  संभव ।



कलम हो वज्र की जो पी सके स्याही हलाहल की


कि हों पन्‍ने अडिग चटटान जो सह लें कथा बल की


तभी शायद लिखे कुछ वीरगाथा लेखनी किञ्चित,

कदाचित, दिख सके चट्टान की दुनिया लहू सिञ्चित |


अरे यह शौर्य का इतिहास है विश्वास जीवन का


अमरता का यशोगायन उमड़ता ज्वार यौवन का


इसे पढ़ते कुशीलव की गिरा अवरुद्ध हो जाती 

घुमड़ती भावना के छन्द वाणी कह नहीं पाती । |


किशोरों का अगम उत्साह जज़्वा मौत छूने का 

झपट बढ़ कर उठाया जो गरल काँपा सफीने का

नहीं विश्वास होता है सुकोमल अधखिली कलियाँ


किलक जिनकी न भूली हैं अभी तक गाँव की गलियाँ |


वही यम-द्वार पर दस्तक बजाते हैं खड़े हँसते 

विजय का ले अटल विश्वास अरि को जा रहे कसते

चढ़े जैसे शिखर "जय” बोल तो भूडोल सा आया

हिमानी वादियाँ काँपी घिरा फिर मौत का साया।


कि युग के व्यास ने देखा अरे। फिर से महाभारत

शताधिक दिख गये अभिमन्यु संगर में अटल अविरत 

दिखी फिर व्योम में छाई भयानक दानवी सेना 

गरज गूँजी, उठी ललकार “पग आगे न रख देना |!


बहुत बाजीगरी कर ली असल संग्राम में आओ

अलहदा सुन चुके खुतबा बिदाई-गीत मिल गाओ 

जलेंगी होलियाँ क्षण में सभी अरमाँ गुमानों की 

धँसेंगी गोलियाँ हर जिस्म पर सौ-सौ जवानों की।


कहीं ललकार लक्ष्मण की कहीं अभिमन्यु अलबेला

कहीं गोरा कहीं बादल कहीं बस केसरी चोला

कहीं बन्दा बहादुर काटता अरि को कतारों में

अकेले ही जोरावर जूझता फिरता हजारों में।


अजब माहौल है, कैसा नशा कुर्बान होने का

भरे अरमान अरि के वक्ष में खंजर चुभोने का

कहीं जय हो भवानी वीरवर बजरंग की जय हो

विजय हो भारती माँ की विजयिनी खग की जय हो |

कहीं घनघोर रव में गूँजता हर हर महादेवम्‌

कहीं हुंकार सत्‌ श्री sकाल, अरिदल में मचा संभ्रम |



अरे यह क्‍या? कहर बरपा | न सोचा था इसे सपने

 कहाँ पर मर गये, वे सब बनाये थे जिन्हें अपने

 अरे जेहाद, जन्नत, जिस्म, दौलत कुछ नहीं आयी

फ़कत वीरान बर्फीली जलालत की कबर' पायी

मची है एक ऊहापोह मजबूरी समर लड़ना 

 लुटेरे ये किराये के, न सीखा था कभी अड़ना।


 हुआ संग्राम धरती-व्योम के धुर मध्य अलबेला

 किलकते दूध में पावन लहू से फाग खुल खेला

बचाई आन भारत के मुकुट अवशेष की फिर से

 किया संकल्प खण्डित भाग पाने को अटल फिर से |


शपथ ली है हिमालय के शिखर पर शौर्य ने फिर से


बजाई दुंदुभी जय की मुखर हो धैर्य ने फिर. से


सुनी भेरी विजय की मस्त 'लरकाना' हुआ फिर से


जयस्वी हॉक से आश्वस्त 'ननकाना” हुआ फिर से |



 लिया संकल्प छू माटी धरा गूँजी गगन गूंजा 

लहू से कर विजय अभिषेक हिमगिरि भाल को पूजा

 अटल संकल्प है भारत अखण्डित अब पुनः होगा

बना अवरोध जो भी राह में खण्डित पड़ा होगा।



चढ़ा सुविधा सलीबों पर सिसकता देश जोड़ूँगा 

अपावन बन्धनों को तोड़ चिन्तन राह मोड़ँगा

लचर कायर कपूतों के कुकर्मों को मिटाऊँगा 

कि विजयी मस्तकों पर चरण रज माँ की सजाऊँगा |


विजय संकल्प अपने देश के घर गाँव में पहुँचा 

भरी चौपाल से चल नीम वाली छाँव में पहुँचा

कि आँसू पोंछती माँ की विजय मुस्कान में पहुँचा 

भविष्यत्‌ को छिपाये कोख की सन्तान में पहुँचा |


सजी राखी, तिलक अक्षत विजय के थाल में पहुँचा

भरे अरमान वाले देश के हर लाल में पहुँचा 

कि, दुश्मन के दरों दीवार के हर कोर में पहुँचा

मरण का दर्द बनकर पाक के हर पोर में पहुँचा।


कि मरना है तुम्हें ओ पाप | जितने दिन मिले जी लो

हलाहल ही निगलना है अभी बेशक सुरा पी लो।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हस्तलिखित नीराजन से संबंधित कौन सा प्रसंग सुनाया 

 क. र. गि. ल  क्यों आया

भैया शशि शर्मा भैया दिनेश भदौरिया आचार्य जी श्री आनन्द जी का नाम क्यों आया जानने के लिये सुनें

25.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 25 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 विधाता स्वयं ही निज सृष्टि में परिव्याप्त रहता है ,

कि, अनगिन नाम रूपों से बहुत कुछ रोज कहता है,

कि, सुनने औ समझने की जहां पर शक्ति जितनी है ,

वहां उतना रसार्णव हर घड़ी हर काल बहता है ।।ओम शंकर



प्रस्तुत है इङ्गितकोविद आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25 जुलाई 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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समीक्षा क्रम सं 361



धन के संग्रह की तरह ही विचारों का भी हम संग्रह कर सकते हैं

भौतिकता से इतर आध्यात्मिकता का संग्रह अधिक अच्छा है


महापुरुषों द्वारा तात्कालिक सुझाए गये समाधान और प्रश्नों पर दिये गये उत्तर इसी संग्रह के परिणाम होते हैं


हमारा हर कार्य व्यवहार विचार ध्यान शक्ति भक्ति प्रेरणा भारत माता के लिये है

यह भाव हमारा सदैव बना रहना चाहिये


भारत मां की अद्भुतता का वर्णन आचार्य जी ने किस प्रकार किया है निम्नलिखित दोहों में परिलक्षित हो रहा है


अनगिन भाषा बोलियां बहुविध भूषा वेश

फिर भी हम सब एक हैं ऐसा अपना देश


आत्मज्ञान संपन्न है पूरा भारत देश

केवल हैं अभिव्यक्तियां विविध विभिन्न विशेष



जय परमेश्वर जय जगत जय अणु रेणु महान

दृश्यमान  जय हे सकल जड़ तृण जीव जहान


वर्तमान परिस्थितियों को अब हम जब देख रहे हैं तो हमें वर्तमान के संबन्ध में भी प्रेरणा मिले इसके लिये प्रस्तुत है आचार्य जी की एक बहुत अच्छी कविता

अब केवल हुंकार नहीं




सीमापार हो गयी साथी फिर क्‍यों सीमा पार नहीं

 अम्बर के अंगारे चुप क्‍यों दहकी अगिन बयार नहीं।


माँ का आँचल सराबोर है रोज खून की होली से


 रातें चौंक-चौंक उठती हैं सीमाओं पर गोली से 

अरुणोदय सब धुवा-धुवाँ आहत बसन्त  अब ज्वाला है


 भय से थर्राया है पूरब सूरज निकला काला है

भैरव गीत सो रहे अब भी क्‍यों चमकी असिधार नहीं | |१। |


सीमा पार हो गयी.....


 हम दुनिया के लिये हमेशा हवन जिन्दगी करते हैं


विष पीते हैं स्वयं दूसरों के हित अमृत झरते हैं


स्वागत किया मौत का आगत को न कभी ठुकराया है


 कभी न ऐसा भान हुआ अग-जग में कोइ पराया है


पर दुनिया के छल-छंदो का मिला अभी तक पार नहीं | ।२।।


 सीमा पार हो गयी.... 

लहू पिला कर पाला जिसको वह विषधर भुजंग निकला

बगल दबाये खूनी खंजर बेशक हँस-हँस गले मिला


गला फाड़कर भाई-भाई हम चिल्लाते रहे मगर

मौका मिला जहाँ पर, जिस पल, खुल कर लेता रहा खबर

शायद ही चूका हो पल जब अजमाया हथियार नहीं | ।३। 

. सीमा पार हो गयी.....



बाँट दिया अपने खेतों को पानी और पहाड़ों को 


आँसू पी पुरजोर दबा कर ममता भरी दहाड़ों को


सोचा था अब शान्त हो गया कटा-बँटा आँगन अपना


शायद कुछ आकार ले सके भारतमाता का सपना


पर कोई दिन हुआ न जिसने झेला कुलिश प्रहार नहीं | |४ | ।


सीमा पार हो गयी.....


सुबह उठा करती है सुनकर तोप तमंचों की गोली 


सोती साँझ सिसकती, सुनती श्वान सियारों की बोली


बारूदों का धुवाँ भरा हर छोर इबादतगाहों में


पहचानें खो गयीं सभी की नफरत भरी निगाहों में


अब खुद हो कर बढ़ो जवानों दुनिया की दरकार नहीं | |५ | |


सीमा पार हो गयी..... 


हमने सागर की छाती पर चढ़कर राह बनायी है


दुनिया का दिल जीत गगन में विजय-ध्वजा फहरायी है


दूध पिलाते हम नागों को और हवन भी करते हैं


अपने पर आये संकट को अपने बल पर हरते हैं 


अब तक जो कुछ हुआ हो चुका अब हम हैं, सरकार नहीं | ।६।।


सीमा पार हो गयी... 


 उठो जवानों फिर से अपना भारत पूर्ण बनाना है 


अपने वज् प्रहारों से संगर में शत्रु सुलाना है


समय आ गया अनल-्मंत्र को फूँक भविष्य सजाने का


कुलिश कवच को धारण कर भैरव स्वर को दोहराने का


वार करो भरपूर भयानक अब केवल हुंकार नहीं | |७।। 

 सीमा पार हो गयी.....

24.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 24 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 रणधर्म जाग, रिपु खङ्ग निहार रहा है

युग-धर्म जाग दानव ललकार रहा है

खाण्डवी आग | विष फिर फुंकार रहा है ll


प्रस्तुत है शुष्म -स्तम्भ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24 जुलाई 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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समीक्षा क्रम सं 360



संसार विचार विकार, सद्गुण दुर्गुण शुद्धि अशुद्धि का मिलाजुला स्वरूप है


समुद्र तट की तरह संसार हमें एक ओर आकर्षित  करता है तो दूसरी ओर भयभीत भी करता है


जन्मदिन पर मोमबत्तियां बुझाना आदि समाज और संसार के विकार हैं पश्चिमी लोग जीवन में घटते हैं यह यथार्थ हो सकता है लेकिन भारतवर्ष की जीवनपद्धति इसके विपरीत है


तिथि -तत्व, समय -मयूख,

और वर्ष -कृत्य कौमुदी इन तीनों पुस्तकों में भिन्न भिन्न प्रकार से जन्मदिन मनाने की आदर्श विधियां बतलाई गई हैं


उस दिन गुरु देव अग्नि ब्राह्मण माता पिता प्रजापति का पूजन सम्मान आवश्यक है हम चिरजीविता चाहते हैं तो चिरजीवियों का ध्यान और पूजन भी आवश्यक है



अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः।

कृपः परशुरामश्चैव सप्तैते चिरजीविनः॥

सप्तैतान् स्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयं तथाष्टमम्।

जीवेद्‌वर्षशतं सोऽपि सर्वव्याधिविवर्जितः॥



धर्म ग्रंथों के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि अमर हैं। आठ अमर लोगों में मार्कण्डेय ऋषि का भी नाम आता है। इनके पिता मर्कण्डु ऋषि थे। जब मर्कण्डु ऋषि को कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने अपनी पत्नी के साथ भगवान शिव की आराधना की। उनकी तपस्या से प्रकट हुए भगवान शिव ने उनसे पूछा कि वे गुणहीन दीर्घायु पुत्र चाहते हैं या गुणवान लेकिन अल्पायु पुत्र। तब मर्कण्डु ऋषि ने कहा कि उन्हें अल्पायु लेकिन गुणी पुत्र चाहिए। भगवान शिव ने उन्हें ये वरदान दे दिया.........


(https://m.punjabkesari.in/dharm/news/how-markandeya-rishi-got-the-blessing-of-immortality-from-bholenath-733105?amp ) से साभार



शक्ति-शौर्य का संवर्धन और प्रकटीकरण हमारा युग-धर्म है इसी युग -धर्म पर आधारित 

आचार्य जी ने अपनी रचित युग -धर्म जाग नामक कविता सुनाई



युग- धर्म जाग


युग-धर्म जाग दानव ललकार रहा है

खाण्डवी आग | विष फिर फुंकार रहा है ll


विश्वास हुआ नीलाम भरे चौराहे

अपनी भेड़ें खा गये क्षुधित चरवाहे

गुरुता गुरुत्व से बोझिल भूमि-धँसी है

अपनी गरदन अपने ही हाथ कसी है

सत्कर्म जाग नैराश्य निहार रहा है

युग-धर्म जाग..... |l 1 l|


सद्भाव सत्य संयम की केवल बातें

अपने अपनों के बीच चल रही घातें

सन्यस्त भाव सुख सुविधा पर ललचाता

तप-त्याग विवश दुख-दुविधा मौन पचाता

जग-मर्म जाग संसार पुकार रहा है

युग-धर्म जाग..... ।l 2  ll


कब कहाँ किसलिये कौन किसे छलता है

मयखाने में ऐसा ही सब चलता है

अभिजात पड़े  बेपर्दा हो पिछवाड़े

दम तोड़  गयी मर्यादा फटे किवाड़े  

 ओ | शर्म जाग संयम धिक्कार रहा है ।

 युग-धर्म जाग ...ll 3  ll


सुखमय विलास घर-घर में जाग रहा है

 पौरुष संघर्षों से डर भाग रहा है

 जीवन की परिभाषा बदनाम हुयी है 

सूरज उगने के पहले शाम हुयी है 

ओ | वर्म जाग तन स्वर्ग सिधार रहा है।

 युग-धर्म जाग..... ।l 4 ll


 संयोग नहीं ये सधी हुयी चालें हैं

भयभीत न हो ये सड़ी  हुयी ढाले हैं

हिम्मत बाँधो फिर दीप जलाओ अपना

हो भले भयावन पर केवल यह सपना

 मख-मर्म जाग परमारथ हार रहा है

युग -धर्म जाग   l l 5 l l 



अब जनमत का जामा उतारना होगा 

 हर मन का दम्भ-भुजंग मारना होगा

 फिर क्षात्र धर्म का आवाहन अभिमंत्रण

 प्रलयंकर के ताण्डव को प्रथम निमंत्रण 

 रणधर्म जाग, रिपु खङ्ग निहार रहा है

युग -धर्म जाग...... ll 6 ll

23.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 23 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है वहति आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23 जुलाई 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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समीक्षा क्रम सं 359


सदाचार संप्रेषणों को सुनने मात्र से संस्कार जाग्रत नहीं होते वे व्यवहार से जाग्रत होते हैं और व्यवहार स्वयं से और अपने परिवार से प्रारम्भ होना चाहिये


जन्मदिन में मोमबत्तियां बुझाना चिन्तनीय विषय है


भाषा, भूषा वेश पराया

प्रेम और आवेश पराया

घर के चूल्हे हुए विरागी

माँ का दूध हो गया दागी

त्याग” कोष का शब्द,

देश का चिन्तन अर्थ प्रधान हो गया |


हम क्योंकि आत्मसंयमी अध्यात्मवादी  हैं  तो हमारा जीवन भी उसी तरह का होना चाहिये हमें यह समझना होगा कि भारतवर्ष के संस्कारों का मूल मर्म संपूर्ण विश्व को प्रेरणा देने वाला है भारत विश्व का आत्मा है और आत्मा कभी मरता नहीं


देवों और असुरों का संग्राम चलता ही रहेगा  अच्छाइयों और बुराइयों का खेल चलता रहेगा यहां सत रज तम का घालमेल है संसार का यह सत्य है मनीषियों विचारकों चिन्तकों के लिये यह एक अद्भुत विषय है

जो इस विषय को आत्मसात् कर लेते हैं ऐसे लोग चिन्तन कम करते हैं कार्मिक व्यवहार अधिक करते हैं जैसे विवेकानन्द

विदेशी धरती पर अपने भावों से अपनी भाषा से अपने व्यवहार से ऐसा स्थान उन्होंने बनाया कि आज भी वहां पूजे जाते हैं


और भी उदाहरण हैं कर्म का चैतन्य उनमें रच बस गया जैसे क्रान्तिकारियों ने प्राणों की परवाह नहीं की


अन्याय अत्याचार सहन नहीं करेंगे ऐसा निश्चय किया


इन उदाहरणों को शिक्षा के माध्यम से मलिन करना शुरु कर दिया गया विदेशियों के जाने के बाद भी

शिक्षा के स्वरूप का भावनात्मक परिवर्तन बहुत आवश्यक है यद्यपि नई शिक्षा नीति आई

भाषा भाव में संशोधन सदैव संभव हैं शिक्षा में ये संभव हैं शिक्षा एक चैतन्य संस्कार है

और चैतन्य में परिवर्तन संभव हैं


निराशा का जड़त्व समाप्त करने के लिये और हमें उत्साह से भरने के लिये ताकि पताका विश्वविजयी व्योम में लहरा उठे फिर से


आचार्य जी ने जवानी शीर्षक कविता के कुछ अंश सुनाये



जवानी जुल्म का ज्वालामुखी बढ़कर बुझाती है

फड़कते क्रान्ति के नव छन्‍द युग-कवि को सुझाती है

जवानी दीप्तिमय सन्देश की अद्भुत किरण सी है

सनातन पावनी गंगा बसन्‍ती आभरण सी है

जवानी के अनोखे स्वप्न जब संकल्प बन जाते

फड़कते हैं सबल भुजदण्ड उन्‍नत भाल तन जाते

जवानी को न सुख की नींद जीवन भर सुहाती है

जकड़ कर मुट्टियों में वज़ युग-जड़ता ढहाती है | ।9। |


जवानी केसरी बाना लपकती ज्वाल जौहर की

भवानी की भयद भयकार वह हुंकार हर हर की

जवानी का उमड़ता जोश जय का घोष होता है

चमकती चंचला सी खड़्ग वाला रोष होता है


जवानी विन्ध्य के तल में कभी सह्याद्रि पर होती

विजय-पथ की शिलायें बन कभी वह हो सिन्धु पर सोती है|

 जवानी के सभी साधन भुजाओं में बसे रहते 

शरासन पर चढ़े या फिर सजग तूणीर में रहते | ।१० |


 ज़वानी शील के सम्मान की सीमा समझती है

 प्रपंचों की शबल चालें समझ तत्क्षण गरजती हैं

 जवानी ने जवानी दे बुढ़ापे को बचाया है 

 लुटा कर स्वयं का मधु गरल अन्तर में पचाया है 

 जवानी की धरोहर को जवानी ही सँजोती है

 धरा में क्रान्ति की तकदीर अपने हाथ बोती है

जवानी को जवानी ने न जब-जब जान पाया है | 

तभी गहरा अँधेरा व्योम में भरपूर छाया है| ।११। | |


जवानी जब जवानी को समय पर जान लेती है

 स्वयं के शत्रु को जब भी तुरत पहचान लेती है

धरा का तब न घुट-घुट कर सहज सौभाग्य रोता है

 

 किलकता दूध” “अनुभव” शान्ति की सुख नींद सोता है


 तभी इतिहास गौरव से भरा अध्याय लिखता है 

विहँसती है तभी धरती गगन में तोष दिखता है

विधाता | कुछ करो ऐसा जगे जीवन जवानी का

 प्रणव के मंत्र गूँजें और हो अर्चन भवानी का । ।१२। |



अरे, ओ नौजवानों | उठ पड़ो परखो जवानी को

शिवा का शौर्य, गुरु की तेग, बन्दा की रवानी को

महाराणा बनो युग के, करो हंकार जी भर के

गगन में भर उठे गुंजार जय श्री राम, हर हर के

भगे श्रष्टाचण का भूत जग-नव्यवहार पावन हो

परस्पर का जगे विश्वास हर मंजर सुहावन हो

हमारे देश का गौरव क्षितिज में छा उठे फिर से

पताका विश्वविजयी व्योम में लहरा उठे फिर से | |१३ | ।

22.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 22 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 ओ वीर वंशधर फिर अपना इतिहास पढ़ो

अभिमंत्रित कर लो अपनी कुलिश-कृपाणों को

आतंकी पारावार ज्वार पर इतराता

संधान करो तरकश के पावक वाणों को

आ गया समय फिर से अंगार उगलने का

अरिदल से कह दो आओ काल बुलाता है।



अरिदल से कह दो आओ काल बुलाता है......





प्रस्तुत है विलुम्पकारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22 जुलाई 2022

 का दिनभर ऊर्जा प्रदान करने वाला प्रेरक और भावनाओं से ओत -प्रोत सदाचार संप्रेषण 


 

 

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समीक्षा क्रम सं 358



हमारा कर्तव्य है कि हम समय का सदुपयोग करते हुए अपने मानस को ग्रहणशील बनाकर आज के विषय पर चिन्तन करें और समीक्षा करें

एक ओर प्रेरणा के लिये


पार्षद से प्रथम नागरिक बनने तक की प्रेरक गाथा

है

तो दूसरी ओर आचार्य जी द्वारा रचित आओ काल बुलाता है शीर्षक की प्रेरक कविता यहां प्रस्तुत है जो हमें उत्साहित और प्रेरित करेगी और हमें सशक्त बनायेगी इसमें बहुत ही सलीके से इतिहास झलक रहा है इसमें 

देवासुर संग्राम, भगवान् राम का काल, महाभारत, परीक्षित का काल, औरंगजेब    शिवाजी का काल है और अन्त में प्रेरणा देती पंक्तियां

कवि ने अपने कर्तव्य को बहुत खूबसूरती से अंजाम दिया है परमात्मा की लीला के सामंजस्य के साथ 




भावों का ज्वाला-मुखी मचलता जब उर में 

हर शब्द दहकता अंगारा बन जाता है

सुधियों में उतरा करता है इतिहास अमर

संकल्प अकल्पित मानस में ठन जाता है ।


उपहास सत्य का जब दर-दर होने लगता

गूंजता गगन में वृत्रासुर का अट्टहास

देवता दीन-दुर्बल हो पन्‍थ भटकते हैं

तब युग-दधीचि आकर अड़ जाते अनायास

यह देवासुर संग्राम सत्य है 'सत्ता' का

चिन्तन कहता है इस पर विवश विधाता है।।॥१।।


भावों का ज्वालामुखी.....


जब स्वार्थ उठाता है अरथी मर्यादा की

कामना सत्य के नयनों में छा जाती है

रण में कराल कालाग्नि पचाने वालों की

कामना, कीर्ति के काँधे चढ़ मुस्काती है

तब दर-दर की ठोकर खाता है राज-मुकुट

घन अन्धकार से सूरज आँख चुराता है।।२॥।


 भावों का ज्वालामुखी.....



जब शौर्य भटक जाता अभिमानी गलियों में 

वीरता विभव की चेरी बन इतराती है

नारी का शील हवन होता दरबारों में 

'साधना' सत्य” से जीवनभर कतराती है

तब पाञ्चजन्य का घोष कैँपाता अन्‍तरिक्ष

'' युग” को शर-शय्या पर गाण्डीव सुलाता है।।३।।


भावों का ज्वालामुखी....

.

जब रक्षक होता भयाक्रान्त तक्षक-कुल से

पौरुष प्राणों की भीख माँगता फिरता है

उन्मत्त हास से काँपा करता दिग-दिगन्त

संयम ठोकर खा-खा कर, उठता गिरता है 

तब नागयज्ञ का होने लगता अनुष्ठान

जनमेजय को आहत इतिहास जगाता है।।४।।


भावों का ज्वालामुखी.....


जब दैत्यवंश इतराता अपने जन-बल पर

 धरती का कण-कण अनाचार को ढोता है

मानवता शील-हरण के भय से थर्रती

इतिहास खून के आँसू क्षिति में बोता है

तब खड्ग सौंपती शिव के हाथ भवानी माँ 

युग के माथे पर प्रलय-मन्त्र लिख जाता हैं |]5ll


भावों का ज्वालामुखी.....



ओ वीर वंशधर फिर अपना इतिहास पढ़ो

अभिमंत्रित कर लो अपनी कुलिश-कृपाणों को

आतंकी पारावार ज्वार पर इतराता

संधान करो तरकश के पावक वाणों को

आ गया समय फिर से अंगार उगलने का

अरिदल से कह दो आओ काल बुलाता है।।६।।


भावों का ज्वालामुखी.....



यह गम्भीर काल है इस समय  अधिक से अधिक मात्रा में कवि अपनी रचनाएं वक्ता अपने वक्तव्य विचारक  अपने विचार संयमित प्रेरक और व्यावहारिक तत्त्वों से परिपूर्ण प्रस्तुत करे  जिनसे हमारा राष्ट्र सशक्त बने


हम छोटे से दीपक भी सूर्य के वंशज हैं राष्ट्र के लिये प्रकाश तो फैलायेंगे ही

व्यक्तिगत यश की परवाह न कर अपने कार्यों को राष्ट्रार्पित करें

21.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 21 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


प्रस्तुत है  विभासा -स्तम्भ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21 जुलाई 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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समीक्षा क्रम सं 357


सदा का सहचर साहित्य



----दर्शन के कैसे दर्शन हों, हो आंखों में अभिमान जहां---


ऊर्जा प्राप्ति के आधार इन सदाचार संप्रेषणों का यदि लाभ लेना है तो हमें अपना अभिमान त्यागना ही होगा


आचार्य जी ने अपनी पुस्तक गीत मैं लिखता नहीं हूं से एक कविता साहित्य सुनाई



इतिहास लिखूँ सोचा लेकिन तिथि-चक्रों का अनुमान नहीं

भूगोल भला कैसे लिखता भू का, मौसम का ज्ञान नहीं

विज्ञान ज्ञान की विषद विधा मेरे अन्तस्‌ में ज्ञान कहाँ

“दर्शन”! के कैसे दर्शन हों, हो आँखों में अभिमान जहाँ ।


साहित्य सदा का सहचर है कुछ भी कह लो परवाह नहीं

चलते फिरते सुनते गुनते अपनों जैसी भरवाह वहीं

फिर लिखें उसी के लिये चलो चन्दन की अग्नि परीक्षा हो

अपनी अपनी-अपनी विधि से अपनों से सार समीक्षा हो


सद्धर्म मर्म की अमर ध्वजा साहित्य उसी का ध्वजादण्ड

 निर्मल विवेक के व्योम बीच रूपाभ सलोना जलद-खण्ड

 संशय अधीरता के पथ का विश्वास घैर्य सा प्रहरी है

जीवन के सभी प्रबन्धों से, इसकी परिभाषा गहरी है ।


यह अन्तरिक्ष का सत्य धरा का मृदु मंगल कल्पना लोक

विश्वासी का विश्वास अधीरा रुचियों का प्रत्यक्ष शोक

 इसका स्वभाव हित करना है कोई कैसा व्यवहार करे

सुख स्वर्ग सजाने वाला यह इससे संसारी काज सरे।|



साहित्य सदा साथी रहता चाहे पनघट या मरघट हो 

हर अवसर का विश्वास समय की चाहे जैसी करवट हो

मीरा के उर का श्याम सूर के हाथों का इकतारा है

दादू कबीर का राम वही तुलसी का राज दुलारा है

भूषण कवित्व में वीर और श्रृंगार बिहारी दोहों में

सिंहासन पर बन भोज व्यास बन बैठा गहरी खोहों में



यह बाल्मिकि की व्यथा, कथा है पाराशर के जीवन की

सिद्धों की बानी और साधना है सन्‍तों के संयम की

यह है दधीच का त्याग राग अनियारे भूप भर्तहरि का

कुम्भज का अतुल उछाह और उपवास उदार उशीनर का |


यह संयम का संदेश और मर्यादा की परिभाषा है

हारे मन का विश्वास थके उन्‍मन जीवन की आशा है

सहचर सुनसान जगत का यह संकट का सही सहारा है

लहरों में भटकी नौका का यह ही विश्राम किनारा है।


इसमें सर्जन का सुख भी है आनन्द मोक्ष का अपरिसीम

इसमें सन्दर्शन परिदर्शन अन्तर्दर्शन सब रहे झीम

हूं इसीलिए साहित्य-शरण अब जैसा और जहाँ पर हूँ

इसको परवाह नहीं किंचित्‌ कब किसके साथ कहाँ पर हूँ



कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के पुत्र  मित्र और वरुण दो हिन्दू देवता हैं।   ज्यादातर पुराणों में 'मित्रावरुण' इस एक ही शब्द का उल्लेख है।। ये दोनों जल पर राज करते हैं, जहां मित्र सूर्योदय और दिवस से संबंधित हैं  तो वरुण सूर्यास्त एवं रात्रि से

आचार्य जी इसके बारे में आगे कभी विस्तार से बतायेंगे


क्योंकि वायुमंडल हमारी प्राणिक ऊर्जा का सहचर है इसलिये कल वर्षा होने के कारण आनन्द का वातावरण रहा 

अपने सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण उससे उत्पन्न असुविधाओं की हम बात नहीं करेंगे


आचार्य जी ने लेखन योग का महत्त्व बताया


इसके अतिरिक्त भैया राव अभिषेक का नाम क्यों आया जानने के लिये सुनें

20.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 20 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


प्रस्तुत है  अलम्भूष्णु आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 20 जुलाई 2022

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समीक्षा क्रम सं 356


हम परमात्मा के बनाये परिवेश में परिस्थितियों से सामंजस्य बैठाते हुए अपने कर्म में लग जाते हैं

गीता में


नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।


शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः।।3.8।।


संसार में कर्म करने और कर्म न करने में स्पष्ट अन्तर दृष्टिगोचर होता है इसलिये मनुष्य नियत कर्म करे यह अकर्म से श्रेष्ठ है क्योंकि अकर्म से तो शरीर निर्वाह भी सिद्ध नहीं किया जा सकता


 इन्द्रियों के अपने काम निर्धारित हैं मन और चित्त के भी

विकारी परमात्मा अपनी रचित सृष्टि में अच्छा बुरा सब कुछ डाल देता है

हम कभी कभी सोचते कुछ हैं और हो कुछ जाता है लेकिन निराश भ्रमित होकर बैठना उचित नहीं


मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।


निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः।।3.30।।



मैं ईश्वर के सेवक के रूप में हूं मेरे सारे कर्म ईश्वर को समर्पित हैं

भगवान् कृष्ण अर्जुन से कहते हैं सारे कर्म मुझे अर्पित करते हुए कामना रहित और ममता रहित होकर युद्ध करो

युद्ध किसी भी तरह का हो सकता है

1 जुलाई को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जमशेद बरजोर पारदीवाला की घातक टिप्पणी भारतीय जीवनदर्शन में विश्वास करने वालों को आहत कर गई थी इसमें पूर्वाग्रह से ग्रसित कुण्ठित मानसिकता साफ झलक रही थी

लेकिन हमारा आत्मबोध जाग्रत हुआ और हमने उन विकारग्रस्त लोगों पर टिप्पणी  की और उसका सुखद परिणाम आया

सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी पर लगाई रोक



प्रेत आत्माएं और देव आत्माएं सर्वत्र हैं प्रेत आत्माएं हमें नष्ट करने के लिये उद्यत रहती हैं तो देव आत्माएं सुरक्षा प्रदान करती हैं

संसार संतुलन का है


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।

लेकिन हमने परधर्म को अच्छा मान लिया हमारी दृष्टि धन की सृष्टि में समा गई


आचार्य जी ने यह भी कहा कि किसी विषय को गहराई और गहनता से समझें

केवल चिन्तातुर होकर संदेश न डालें

आचार्य जी ने शौर्य रहित अध्यात्म से हुआ नुकसान बताया

आजकल भी ठगों का दौर चल रहा है समाज का विश्वास टूट गया है

आत्मविश्वास से लबरेज होकर लोगों में विश्वास जगायें कि हम पराभूत नहीं हो सकते

प्रयास तो 1192 से चल रहा है तराइन की दूसरी लड़ाई से


यह 1192 में घुरिद बलों द्वारा राजपूत संघ के खिलाफ तराइन  के पास लड़ी गई थी।  मध्यकालीन भारत के इतिहास में इस लड़ाई को प्रमुख मोड़  माना जाता है क्योंकि इससे उत्तर भारत में  राजपूत शक्तियों का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ और  मुस्लिम उपस्थिति स्थापित हो गई


जो चला गया उसे न सोचकर

जो है उस पर विचार व्यवहार   करें

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

19.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 19 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कह्यो सुदामा बाम सुनु, वृथा और सब भोग। सत्‍य भजन भगवान को, धर्म सहित जप-जोग।।

(सुदामा चरित )


(सुदामा चरित कवि नरोत्तमदास द्वारा अवधी भाषा में रचित काव्य-ग्रंथ है। इसकी रचना संवत १६०५ के लगभग मानी जाती है)



प्रस्तुत है  वेधस् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19 जुलाई 2022

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समीक्षा क्रम सं 355


संसार में कारण और कार्य का अद्भुत संबंध है इसका दार्शनिक पक्ष भी अद्भुत है लेकिन व्यावहारिक पक्ष हम रोज ही देखते हैं

इस कार्य कारण संबंध से विमुक्ति के लिये लोग भक्ति का आश्रय लेते हैं


व्यक्ति भजन संगीत अध्ययन संगति आदि द्वारा संसार की सांसारिकता से विमुक्त होकर आनन्द की अनुभूति करता है

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें पूजा पाठ ध्यान धारणा सद्संगति आदि केलिये फुर्सत ही नहीं मिलती वे स्वयं में एक समस्या होते हैं


इसीलिये हमें आत्मस्थ होने का प्रयास करना चाहिये


कुछ देर के लिये हमें भावनाओं में जाने का प्रयास करना चाहिये आरती पूजा करने खिलखिलाकर हंसने आदि से हमें संसारी भाव से मुक्ति मिलती है

गीता में


पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।


तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।9.26।।


जो  भक्त मुझे पत्र, फूल,फल, जल आदि भक्ति पूर्वक अर्पित करता है, उस  भक्त का वह अर्पण मैं  सगुण रूप से प्रकट होकर प्रीति सहित ग्रहण  कर लेता हूँ


सगुण रूप से प्रकट होकर खाता हूं यह अद्भुत विषय है

इसके लिये आचार्य जी ने एक कथा सुनाई

कथा इस link पर उपलब्ध है


https://m-hindi.webdunia.com/religious-stories/bhakt-aur-bhagwan-ki-katha-120051000051_1.html?amp=1


भोजन कम हो गया यह किसी को दिख रहा है किसी को नहीं

यही रहस्य है

दिखाई उनको देता है जो उस भाव में बहुत निमग्न हो जाते हैं वह अद्भुत दृष्टि उन्हीं को अनुभव होती है दुनिया को नहीं


आचार्य जी ने सुदामा चरित की चर्चा की


आगे चना गुरुमातु दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने।

 स्‍याम कह्यो मुसुकाय सुदामा सों, चोरी की बानि में हौ जू प्रवीने।।

 पोटरी काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधारस भीने।

पाछिली बानि अजौं न तजी तुम, तैसई भाभी के तन्‍दुल कीने। 48।।


खोलत सकुचत गाँठरी, चितवत हरि की ओर।

 जीरन पट फटि छुटि पख्‍यो, बिथरि गये तेहि ठौर।। 49।।


 एक मुठी हरि भरि लई, लीन्‍हीं मुख में डारि।

 चबत चबाउ करन लगे, चतुरानन त्रिपुरारि।। 50।।


भागवत में कथा है कि सुदामा बहुत कुछ प्राप्त करने के बाद भी विरक्त ही रहे इसी कारण भक्तों में सुदामा शीर्ष पर हैं

18.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 18 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 संत बिसुद्ध मिलहिं परि तेही। चितवहिं राम कृपा करि जेही॥

राम कपाँ तव दरसन भयऊ। तव प्रसाद सब संसय गयऊ॥4॥


प्रस्तुत है  शम्भु आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18 जुलाई 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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समीक्षा क्रम सं 354


खगराज गरुड़जी भगवान् विष्णु के पार्षद हैं और विष्णु का स्वरूप लेकर ही भगवान् राम आये हैं  भगवान् अवतारी हैं इसलिये इनकी स्मृतियां विलीन नहीं होती संसार की लीला में अपने को व्यस्त रखते समय वे अपने को विस्मृत रखते हैं

उत्तरकांड में प्रसंग है 

राम और लक्ष्मण नागपाश में बंधे हैं 

खगराज गरुड़जी उन नागों को खा जाते हैं उन्हें मोह हो जाता है


बोलेउ काकभुसुंड बहोरी। नभग नाथ पर प्रीति न थोरी॥

सब बिधि नाथ पूज्य तुम्ह मेरे। कृपापात्र रघुनायक केरे॥1॥


तुम्हहि न संसय मोह न माया। मो पर नाथ कीन्हि तुम्ह दाया॥

पठइ मोह मिस खगपति तोही। रघुपति दीन्हि बड़ाई मोही॥2॥


तुम्ह निज मोह कही खग साईं। सो नहिं कछु आचरज गोसाईं॥

नारद भव बिरंचि सनकादी। जे मुनिनायक आतमबादी॥3॥


मोह न अंध कीन्ह केहि केही। को जग काम नचाव नजेही॥

तृस्नाँ केहि न कीन्ह बौराहा। केहि कर हृदय क्रोध नहिं दाहा॥4॥

खगराज को समझाया जा रहा है


ग्यानी तापस सूर कबि कोबिद गुन आगार।

केहि कै लोभ बिडंबना कीन्हि न एहिं संसार॥ 70 क॥


इस संसार में ऐसा कौन सा ज्ञानी, तपस्वी, शूरवीर, कवि, विद्वान् और गुणों का आगार है, जिसकी लोभ द्वारा  मिट्टी पलीद न की गई हो


श्री मद बक्र न कीन्ह केहि प्रभुता बधिर न काहि।

मृगलोचनि के नैन सर को अस लाग न जाहि॥ 70 ख॥



लक्ष्मी के मद ने किसको टेढ़ा न किया हो,प्रभुता ने किसको बहरा नहीं करा हो ऐसा कौन है जिसे युवती  के नेत्र बाण न लगे हों

ब्यापि रहेउ संसार महुँ माया कटक प्रचंड।

सेनापति कामादि भट दंभ कपट पाषंड॥ 71 क॥


सो दासी रघुबीर कै समुझें मिथ्या सोपि।

छूट न राम कृपा बिनु नाथ कहउँ पद रोपि॥ 71 ख॥



भक्ति अद्भुत है विश्वास की पराकाष्ठा ही भक्ति है

चाहे वह देशभक्ति हो कर्मभक्ति हो भावभक्ति हो या अन्य कोई भक्ति हो लेकिन वह सिद्ध होनी चाहिये

हम देशभक्ति का आधार लेकर अपने कर्म करते हैं देश हित देखते हैं समाज हित देखते हैं

यह विचार और व्यवहार सदैव बना रहे इन सदाचार संप्रेषणों का मूल उद्देश्य यही है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल संपन्न हुए कार्यक्रम की चर्चा की


सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज, उन्नाव में मेधावी छात्र और छात्राओं के सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि भैया राहुल मिठास जी थे।

विशिष्ट अतिथि उन्नाव के ही पुलिस अधीक्षक श्री शशि शेखर जी थे। भैया डा अमित गुप्त जी भी उपस्थित थे विद्यालय के 

संस्थापक  माननीय श्री राम शंकर जी ने सभी को आशीर्वाद प्रदान किया।आचार्य श्री ओम शंकर जी की गरिमामयी उपस्थिति में कुल मिलाकर बहुत ही अच्छा कार्यक्रम संपन्न हो गया


आचार्य जी ने यह भी बताया कि आयुर्वेद का भविष्य उज्ज्वल है

हम सद्गुणों का संग्रह करते चलें ये सद्गुण समय पर बहुत काम देते हैं


आज आचार्य जी कानपुर क्यों आ रहे हैं जानने के लिये सुनें

17.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 17 जुलाई 2022 रविवार का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  बोधक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 17 जुलाई 2022

 रविवार का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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समीक्षा क्रम सं 353


प्रखर विद्वान ज्ञानी तत्वदर्शी हम मनीषी थे ,

अनोखे आत्मज्ञानी तत्वखोजी हम तपस्वी थे। 

उपेक्षा की मगर हमने खडग क्षुर दण्ड   शूलों की ,

नई पीढ़ी तभी कहती नहीं 'हम भी जयस्वी थे ' ।।



अध्यात्मवादी से भोगवादी बनने के कारण हम सनातन धर्म में आस्था रखने वाले और कौटुम्बिक परम्परा का निर्वाह करने वाले भारतीयों ने बहुत कुछ खो दिया


हम कौटुंबिक परम्परा में विश्वास रखते थे 

 हमारे गुरुकुलों में विशेषज्ञता का अध्ययन किया जाता था

सामाजिक व्यवस्था के दो स्तंभ थे वर्ण और आश्रम

कहने का तात्पर्य है कि 

इस देश की शिक्षा और संस्कार की बहुत अच्छी आदर्श मानवोचित व्यवस्था थी

जब विदेशीगण यहां स्थापित हो गये तो पतन प्रारम्भ हो गया 

चतुर पश्चिमी लोगों ने जानने की कोशिश की कि हमारे अन्दर कौन सा वैशिष्ट्य है कि हम अभाव में भी उत्साहित रहते हैं

उन्होंने पता लगा लिया कि हमारे अन्दर के आत्मज्ञान का मूल आधार अध्यात्म है


भारतवर्ष की शिक्षा का मूल आधार है -- मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति

तो अपने स्वार्थ के लिये उन्होंने हमारे मनों को परिवर्तित करना प्रारंभ कर दिया और उसी का परिणाम है कि शिक्षा का विकृत स्वरूप हमारे सामने है

हम अध्यात्मवादी से भोगवादी बन गये भौतिक रूप से हमारा विस्तार होने लगा

भोग सांत व्यवस्था है भोगों का अन्त होगा ऐसा हमें विश्वास है

मार्गांतरणों के बहुत से प्रयासों के बाद भी मूलमार्ग का दिग्दर्शन कराने वाला कोई न कोई उपस्घित हो जाता है


इसीलिये इसे सनातन संस्कृति कहते हैं


इसके समाप्त होने से सृष्टि भी नहीं बचेगी


भारत "भा" में रत सदा, भा का अर्थ प्रकाश। 

यह प्रकाश ही ज्ञान है , जीवन का मधुमास। ।


अध्यात्म का चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय करने से हमें आनन्द की अनुभूति होगी


हम अमरत्व विचार हैं , हम भविष्य के ज्ञान। 

धरती का आनन्द हम , स्रष्टा का संधान। ।


इसके अतिरिक्त उन्नाव स्थित विद्यालय में आज तीन बजे से पुरस्कार वितरण समारोह है जिसमें भैया राहुल मिठास मुख्य अतिथि हैं

आप सब लोग भी इस कार्यक्रम में आमन्त्रित हैं

16.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 16 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  ज्ञान -प्राणथ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 16 जुलाई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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समीक्षा क्रम सं 352


हम शिक्षार्थियों का कर्तव्य है कि आचार्य जी की वाणी से निःसृत सद्विचार हमारे व्यवहार से संयुत हों तभी संसार में हम समस्याओं का समाधान कर सकते हैं


कहीं अतिवृष्टि कहीं अनावृष्टि    ऐसा असंतुलित प्रकृति का स्वरूप हमारे अन्दर के सुप्त और विलुप्त शैक्षिक संस्कार के कारण है


यूं तो हम योगमार्गी हैं योगमार्ग के यम से समाधि तक आठ अंग हैं 

सभी सजीव प्राणियों को मनसा वाचा कर्मणा दुःख न पहुंचाने का सिद्धान्त ही अहिंसा है

आचार्य जी ने समाधि का अर्थ विस्तार से बताया


आचार्य जी ने यह भी बताया कि हमें क्या कहना चाहिये आम तोड़ लें   या आम उतार लें


मनुष्य जीवन त्वरा में नहीं चलता त्वरा राक्षसी प्रवृत्ति है

धीरे धीरे हमारे जीवन में त्वरा प्रवेश कर गई

मन में धीरज रखें तो सब कुछ होता है


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।


संगठित सेना की तरह न रहकर भीड़ की तरह रहने के कारण ही हमने ईरान  अफगानिस्तान खो दिया

हमारे सदाचार का मूल विषय यही है कि अपने को अपनों को परिवेश को समाज को पर्यावरण को हम सुरक्षित संरक्षित रखें



" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "

यह हमारा ध्येय वाक्य रहा है


व्यस्त होते हुए भी व्यवस्थित दिनचर्या से हमारी अन्तःशक्ति जाग्रत रहेगी


जैन बौद्ध शैव वैष्णव में बंटा वैविध्य व्यर्थ नहीं है भारतीय संस्कृति में सब समाहित है


आत्मविश्वास से लबरेज रहें कर्मानुरागी बनें संयम का ध्यान रखें


गहन गम्भीर अध्ययनों को व्यावहारिक रूप देकर यदि हम भावी पीढ़ी को समझा देते हैं तो हम समझदार शिक्षक हैं

15.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 15 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  भार्गव आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15 जुलाई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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समीक्षा क्रम सं 351



हमारे ऋषि वेदों से लेकर राम चरित मानस तक सिलसिलेवार ज्ञान का ऐसा दीपक जलाते रहे जिससे हम अपनी अज्ञानता दूर करते रहे हैं हमें ज्ञात हुआ कि विज्ञान का आधार भी ज्ञान है परमात्मा एक है तो भी अनेक हो जाता है, पार जाने के बाद भी कुछ दिखाई देता है


हमें प्रयास करते रहना चाहिये कि हम अपनी अज्ञानता दूर करते रहें



ईशावास्योपनिषद् में


हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्‌।

तत् त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥


सच्चाई का चेहरा  सुनहरे ढक्कन से ढका है

हे  सूर्यदेव!  सत्य के विधान को पाने के लिये साक्षात् दर्शन हेतु आप वह ढक्कन हटा दें

भक्त अपने मनोरथों की पूर्ति हेतु अनेक उपाय करता है जैसे राजा दशरथ ने पुत्रेयष्टि यज्ञ किया उन्हें पुत्र प्राप्त हुए दशरथ का संसार में लगा हुआ चक्रवर्ती कर्मों का भाव राम प्रेम में समाहित हो गया

फिर दूसरी परिस्थितियां भी आईं


कीर के कग्गर ज्यों नृपचीर विभूषन उप्पम अंगनि पाइ।

औध तजी मगबास के रुख ज्यों पंथी के साथी ज्यों लोग लुगाइ ॥

संग सुबंधु पुनीत प्रिया, मनो धर्म क्रिया धरि देह सुहाई।

राजीव लोचन राम चले, तजि बाप को राज, बटाऊ की नाईं॥


कमल के समान नेत्रवाले राम अपने पिता के राज्य को छोड़कर पथिक की भाँति चल पड़े।


ईशावास्योपनिषद् में ही


पूषन्नेकर्षे यम सूर्य प्राजापत्य व्यूह रश्मीन्‌ समूह।

तेजो यत् ते रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि

योऽसावसौ पुरुषः सोऽहमस्मि ॥


हे  प्रकाशदाता ! आप अपनी किरणों को व्यूहबद्ध  व्यवस्थित कर, अपने प्रकाश को एकत्र कर लें जो तेज आपका सर्वाधिक कल्याणकारी रूप है वह रूप मैं देखता हूं।

वहां, वहां जो पुरुष है वही हूँ मैं।


वही हूं मैं की स्थायी अनुभूति होने लगे तो हम संसार में रहते हुए इसकी समस्याओं से व्याकुल नहीं होंगे


ये सब वास्तविक ज्ञानवर्धक बातों को आजीवन शिक्षक धर्म का पालन करने वाले आचार्य जी हमें बता रहे हैं तो इसका लाभ भी हमें लेना चाहिये



जैसे आचार्य जी ने राष्ट्र सेवा का संकल्प लिया उसी तरह हम  कुछ भी कर रहे हों  तो भी राष्ट्र सेवा का भाव सदैव हमारे अन्दर विद्यमान रहना चाहिये कंपित करता रहना चाहिये 

देश की सेवा परमार्थ है



इसके अतिरिक्त भैया विभास जी भैया सुनील जौहरी जी भैया अनिल जौहरी जी का नाम क्यों आया जानने के लिये सुनें

14.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 14 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  वीरतर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14 जुलाई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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समीक्षा क्रम सं 350



राष्ट्रभक्त समाज में संस्कार विचार शौर्य शक्ति संयम श्रद्धा भक्ति विश्वास का प्रसरण हो इसके लिये प्रतिदिन उद्दीपक बने ये सदाचार संप्रेषण प्रस्तुत हो रहे हैं



आचार्य जी ने कल गुरुपूर्णिमा के अवसर पर दीनदयाल विद्यालय में संपन्न हुए कार्यक्रम में मिले विशेष व्यवहार और  मोबाइल पर आये भावुकता एवं श्रद्धा से परिपूर्ण संदेशों की चर्चा की


इस अद्भुत संसार में सम्मान आकर्षित करता है दूसरी ओर अपमान विकर्षित करता है मान सम्मान के लिये मनुष्य जीवनभर संघर्ष करता रहता है

गीता में संसार के स्वरूप को वर्णित करता छंद है 


ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।


छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।


ज्ञानी व्यक्ति इस संसार वृक्ष को ऊपर जड़ और नीचे शाखा वाला अश्वत्थ और अव्यय कहते हैं; जिसके पत्ते छन्द अर्थात् वेद हैं, ऐसे संसार वृक्ष को जो जानता है, वह वेदवित् है।।



अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा


गुणप्रवृद्धा विषयप्रवालाः।


अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि


कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके।।15.2।।

हम किसी के कर्मों के हिसाब से अपनी दुनिया बनाना चाहते हैं

इस संसार वृक्ष के वास्तविक स्वरूप का अनुभव इस संसार में रहते हुए नहीं किया जा सकता 



न रूपमस्येह तथोपलभ्यते


नान्तो न चादिर्न च संप्रतिष्ठा।


अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल


मसङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा।।15.3।।



ततः पदं तत्परिमार्गितव्य


यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः।


तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये


यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी।।15.4।।


निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै


र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।



संसार में रहते हुए संसार की अनुभूति और उसमें तटस्थ होकर संसार की अनुभूति को समझने की चेष्टा इन सदाचार वेलाओं को सार्थक और आनन्दप्रद बना देगी



अपने जीवन को सफल बनाने के लिये अपने अस्तित्व व्यक्तित्व चरित्र कर्मशीलता का सामञ्जस्य करना हम सीख जाएं तो संसार अच्छा लगने लगेगा

आचार्य जी ने बताया कि सृष्टि की संरचना क्यों और कैसे हुई

वैराग्य उत्थित होने पर कमाल के काम करता है

हम सौभाग्यशाली हैं कि हम मनुष्य हैं यह परमात्मा की कृपा है इसलिये हमें सकारात्मक सोच रखनी चाहिये प्रेत रूप में हम इस संसार में न रहें यह प्रार्थना करनी चाहिये

13.7.22

श्री ओम शंकर जी( आचार्य जी )का दिनांक 13 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  गुरूत्तम गुरु श्री ओम शंकर जी( आचार्य जी )का आज दिनांक 13 जुलाई 2022

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समीक्षा क्रम सं 349


हम भारतवर्ष के लोग किसी न किसी बहाने कोई न कोई पर्व मनाते हैं  हमारे यहां हर उत्सव का एक आधार है कालिदास ने एक स्थान पर लिखा है


उत्सवप्रियाः खलु मानवाः


आज भी एक पर्व है गुरु पूर्णिमा जिसे व्यासपूर्णिमा भी कहते हैं



पुं, (गृणाति उपदिशति वेदादिशास्त्राणि इन्द्रादिदेवेभ्यः इति । यद्वा गीर्य्यते स्तूयते देव- गन्धर्व्वमनुष्यादिभिः । गॄ + “कृग्रोरुच्च ।” उणां । १ । २४ । इति उत् ।)


यह गुरु की परिभाषा है

वेदशास्त्रों का गृणन एक दुर्धर कार्य है लेकिन जो भी परम्परा, परिवार, समाज और आदर्श पुरुषों से  मिले सदाचार के ज्ञान से हमें आप्लावित कर दे हम उसे गुरु मान लेते हैं



कूर्मपुराण के अनुसार हम किसी को भी गुरु बना सकते हैं


उपाध्यायः पिता ज्येष्ठभ्राता चैव महीपतिः। मातुलः श्वशुरस्त्राता मातामहपितामहौ। बन्धुर्ज्येष्ठःपितृव्यश्च पुंस्येते गुरवः स्मृताः। मातामही मातुलानी तथा मातुश्च सोदराः। श्वश्रूः पितामहीज्येष्ठा धात्री च गुरवः स्त्रीषु।


इन गुरुओं का शिष्टाचारपूर्वक  आदर करना चाहिये


और गुरु के लक्षण हैं


सदाचारः कुशलधीः सर्व्वशास्त्रार्थपारगः । नित्यनैमित्तिकानाञ्च कार्य्याणां कारकः शुचिः ॥


गुरुपूर्णिमा को मनाने का विधि विधान स्मृतिकौस्तुभ, विष्णुभट्ट की पुरुषार्थचिन्तामणिः आदि ग्रंथों में है


हमें अपनी श्रद्धा कहीं न कहीं टिकानी होती है यही श्रद्धा जब हमें सदैव प्रेरित प्रभावित करती रहती है तो भक्ति का उद्भव होता है भक्ति अडिग विश्वास का नाम है


आचार्य जी आज प्रातःकाल दीनदयाल विद्यालय आ रहे हैं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया दिनेश जी (बैच 2016) का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

12.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 12 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  अध्यात्म -वर्त्मनी आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12 जुलाई 2022

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समीक्षा क्रम सं 348


यह हम लोगों का सौभाग्य है कि आचार्य जी हमें अनवरत प्रभावशाली सद्विचार प्रेषित करते रहते हैं

सफल कर्मानुरागी वही होता है जो परमात्मा की लीला पर विश्वास करता हुआ आगे चलता है


सोशल मीडिया से भी हम सद्विचार ग्रहण कर सकते हैं

और उसके दूषित वातावरण से दूर रह सकते हैं 

जड़ चेतन गुण दोषमय संसार से हम क्या ग्रहण कर सकते हैं ये हमारा प्रारब्ध,हमारा मन्तव्य,हमारे कर्म,  विचार, संस्कार तय करते हैं


आचार्य जी स्वयं एक सफल कर्मानुरागी हैं और उन्हीं से प्रेरित हुए हमारे छोटे बड़े सत्कार्यों से वे संतुष्टि का अनुभव करते हैं


गीता उपनिषद् मानस  वेद आदि से हम अच्छी चीजें ग्रहण करते रहें

मनुष्य को मनुष्यत्व जाग्रत करने का प्रयास यदि भा गया तो वह माध्यम निकाल लेता है


इसी कारण हम इस सदाचार संप्रेषण की प्रतिदिन प्रतीक्षा करते हैं


प्रातःकाल जल्दी जागना धर्म का एक सोपान है


प्रातर्विधि के पश्चात् हमें ध्यान में रत होना चाहिये


लोभ लिप्सा के कार्यों के अतिरिक्त परोपाकारी कार्य भी होते हैं जिन्हें हम  कर सकते हैं


अपने भीतर बैठा परमात्मा इस जीवात्मा से इस संसार में ही रहते हुए ऐसे महत्त्वपूर्ण कार्य करवा लेता है जो उसे स्वयं ही नहीं मालूम


हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराई। 


बूँद समानी समुंद मैं, सो कत हेरी जाइ॥



साधना की चरम अवस्था में जीवात्मा का अहंभाव नष्ट हो जाता है। अद्वैत की अनुभूति जाग्रत होने के कारण आत्मा का पृथकता का बोध समाप्त हो जाता है। अंश आत्मा अंशी परमात्मा में लीन होकर अपना अस्तित्व मिटा देता है।

इसके लिये आचार्य जी ने शर्मा जी का रसायनविज्ञान के अध्ययन वाला रोचक प्रसंग बताया


ऐसे कुछ लोगों का चयन परमात्मा करता है

उसकी योजना से सृष्टि के, समस्याओं के उतार चढ़ाव के हम लोग बहुत अभ्यासी हैं


आचार्य जी ने स्त्री पर्व महाभारत का उल्लेख करते हुए बताया कि एक अरब छाछठ करोड़ बीस हजार वीर  समराङ्गण में बलिदान हो गये


अब कलियुग आ गया है और यह सब ऐसे ही चलता रहेगा इसलिये

हारिये ना हिम्मत बिसारिये न राम, 

तू क्यों सोचे बंदे सब की सोचे राम।


इसके अतिरिक्त भैया आशीष जोग,भैया प्रकाश शर्मा, भैया शौर्यजीत का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिये सुनें

11.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 11 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  प्रोथ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 11 जुलाई 2022

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समीक्षा क्रम सं 347



अपने दिल्ली प्रवास के दौरान 23 अगस्त 2015 को रोहिणी में लिखे लेख को उद्धृत करते हुए कल आचार्य जी ने बताया था



एक संगठनकर्ता को जिज्ञासु, स्वाध्यायी,विवेकशील,कर्मानुरागी, विश्वासी, आत्मगोपी और अप्रतिम प्रेमी होना चाहिये साथ ही उसे सचेत, सक्रिय, सतर्क और सोद्देश्य रहना चाहिये


वह आत्मचिन्तन के लिये भी समय निकाले  आत्मचिन्तन की जिज्ञासाओं,मैं कौन हूं मेरा कर्तव्य क्या है और मेरा प्राप्तव्य क्या है,का शमन ही आनन्दमय जीवन का रहस्य है

 अब आगे


यह बात ठीक है कि सबकी क्षमताएं एक समान नहीं होती सांसारिक सुख वैभव और यशस्विता की प्राप्ति की कामना प्रायः सभी की समान होती है अपनी बेइज्जती कोई नहीं चाहता

यशस्विता की भावी चाह के साथ संस्कारों के माध्यम(अर्थात्  घर से लेकर समाज तक फैली शिक्षा) से वर्तमान का कर्तव्य बोध भी जाग्रत हो जाये तो  मानो आनन्द प्राप्ति के प्रथम सोपान पर हमने पैर रख दिया है

युगभारती एक वैचारिक संगठन है विचार आचरण का प्राणतत्त्व है

लेकिन दुर्विचार दुर्नीति की ओर प्रेरित करते हैं इसलिये सद्विचार बने रहने की आवश्यकता होती है इसके लिये तन स्वस्थ मन प्रसन्न बुद्धि प्रखर और चित्त शान्त होना चाहिये

और इसीलिये 

सात्विक पौष्टिक भोजन, उचित व्यायाम, ध्यान धारणा प्राणायाम, सद्संगति और मनोनुकूल रचनात्मक क्रियात्मकता की ओर हमारी उन्मुखता महत्त्वपूर्ण है



कल सरौंहां में युगभारती परिवार के सदस्यों भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी भैया शौर्यजीत भैया दिनेश प्रताप, भैया मुकेश जी भैया सुनील जी आदि और दीनदयाल विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री राकेश त्रिपाठी जी के साथ आचार्य जी ने विचारविमर्श किया अपनों के सान्निध्य में सभी को अत्यन्त आनन्द की अनुभूति हुई और सबने स्मृतियां संजोकर रख लीं

स्मृतियां मनुष्य की निधि होती हैं इन्हीं स्मृतियों के आधार पर ऋषियों ने स्मृतिग्रंथों की रचना की

मानवजीवन की विधिव्यवस्था के इन मार्गदर्शक ग्रंथों से अपने साथ साथ भावी  पीढ़ी को परिचित कराना आवश्यक है


संसार तो प्रपंचों से भरा हुआ है और इसी कारण यह प्रातः का भावनात्मक प्राणायाम रूपी सदाचार संप्रेषण हम सबको ऊर्जावान बनाता है


इसके अतिरिक्त अध्यात्म को आचार्य जी ने किस तरह आज परिभाषित किया आगामी 13 जुलाई और 17 जुलाई का उल्लेख क्यों किया, मुख्य वक्ता के रूप में किस प्रसंग का उल्लेख किया जानने के लिये सुनें

10.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 10 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है निधन -विश्रय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10 जुलाई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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समीक्षा क्रम सं 346



आचार्य जी प्रतिदिन प्रभावी ढंग से सार्थक विचारों को संप्रेषित करते हैं हमारा कर्तव्य है कि हम उनसे प्रेरणा लेकर अपने सद्गुणों में वृद्धि करें जिससे अपनी पीड़ाएं, उलझनें, कुण्ठाएं शमित रहें



एक संगठनकर्ता को जिज्ञासु, स्वाध्यायी,विवेकशील,कर्मानुरागी, विश्वासी, आत्मगोपी और अप्रतिम प्रेमी होना चाहिये साथ ही उसे सचेत, सक्रिय, सतर्क और सोद्देश्य रहना चाहिये


वह आत्मचिन्तन के लिये भी समय निकाले  आत्मचिन्तन की जिज्ञासाओं,मैं कौन हूं मेरा कर्तव्य क्या है और मेरा प्राप्तव्य क्या है,का शमन ही आनन्दमय जीवन का रहस्य है


हम एक लक्ष्य लेकर चल रहे हैं



लक्ष्य तक पहुँचे बिना, पथ में पथिक विश्राम कैसा


लक्ष्य है अति दूर दुर्गम मार्ग भी हम जानते हैं,

किन्तु पथ के कंटकों को हम सुमन ही मानते हैं,

जब प्रगति का नाम जीवन, यह अकाल विराम कैसा ।। 1।।


धनुष से जो छूटता है बाण कब मग में ठहरता,

देखते ही देखते वह लक्ष्य का ही वेध करता,

लक्ष्य प्रेरित बाण हैं हम, ठहरने का काम कैसा ।। 2।।


बस वही है पथिक जो पथ पर निरंतर अग्रसर हो,

हो सदा गतिशील जिसका लक्ष्य प्रतिक्षण निकटतर हो,

हार बैठे जो डगर में पथिक उसका नाम कैसा ।। 3।।


आज जो अति निकट है देख लो वह लक्ष्य अपना,

पग बढ़ाते ही चलो बस शीघ्र हो सत्य सपना,

धर्म-पथ के पथिक को फिर  देव-दक्षिण वाम कैसा ।। 4।।


हम लक्ष्य प्रेरित बाण हैं और 

हमारा निशाना भी सटीक लगना चाहिये जैसे महाराणा प्रताप भाला चलाते थे


(महाराणा प्रताप का भाला और कवच उदयपुर शहर के सिटी पैलेस के संग्रहालय में रखे हुए हैं )


हमारा देश अद्भुत रहा है यहां का युद्ध कौशल बेमिसाल रहा है हमारी शिक्षा चिन्तन विचार साधना अद्वितीय रही है

हमने तो सृष्टि का समय भी मापा है


चार युगों में तुलसीदास जी के अनुसार कलियुग की परिभाषा है



बहु दाम सँवारहिं धाम जती। बिषया हरि लीन्हि न रहि बिरती॥

तपसी धनवंत दरिद्र गृही। कलि कौतुक तात न जात कही॥




कुलवंति निकारहिं नारि सती। गृह आनहिं चेरि निबेरि गती॥

सुत मानहिं मातु पिता तब लौं। अबलानन दीख नहीं जब लौं॥




ससुरारि पिआरि लगी जब तें। रिपुरूप कुटुंब भए तब तें॥

नृप पाप परायन धर्म नहीं। करि दंड बिडंब प्रजा नितहीं॥




धनवंत कुलीन मलीन अपी। द्विज चिन्ह जनेउ उघार तपी॥

नहिं मान पुरान न बेदहि जो। हरि सेवक संत सही कलि सो॥




कबि बृंद उदार दुनी न सुनी। गुन दूषक ब्रात न कोपि गुनी॥

कलि बारहिं बार दुकाल परै। बिनु अन्न दुखी सब लोग मरै॥


हम अपने कर्तव्य निर्धारित करें संस्कारों से वातावरण को हराभरा बनायें

सद्गुण प्रभावित करते ही हैं

अपने घर को परिवेश को संस्कारमय बनायें पहले स्वयं सद्गुणों को धारण करे


 आचार्य जी ने महायुग मन्वन्तर कल्प आदि की जानकारी दी

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने दीनदयाल विद्यालय में आने से पहले का कौन सा प्रसंग बताया जानने के लिये सुनें

9.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 9 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ज्ञान -विशिप आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 9 जुलाई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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समीक्षा क्रम सं 345



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क से मिले संस्कारों से आचार्य जी को समाजोन्मुखी जीवन जीने की प्रेरणा मिली आचार्य जी अपने पिता जी औऱ बड़े भाई की तरह संघ के निष्ठावान कार्यकर्ता रहे हैं


उस समय के श्वेतवेशधारी युवा संन्यासी प्रचारक भावनाओं से भरे रहते थे उनमें त्याग की कामना सिर चढ़कर  बोलती थी

गुरुजी समग्र की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया

उसमें पूज्य गुरु जी के बहुत से भाषण विचार आदि हैं

गुरु जी के मन में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना का विचार कैसे आया आचार्य जी यह बता रहे हैं 

महाराष्ट्र में एक संत हुए थे तुकोडीजी महाराज


आडकोजी महाराज के शिष्य तुकडोजी महाराज (  माणिकदेव बंदुजी इंगले (30 अप्रैल 1909 - 11 अक्टूबर 1968 )    महाराष्ट्र , भारत के एक आध्यात्मिक संत थे । तुकडोजी महाराज महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण सहित सामाजिक सुधारों में शामिल थे।  उन्होंने ग्रामगीता लिखी जो ग्राम विकास के साधनों का वर्णन करती है।


संत तुकडोजी महाराज से गुरु जी को प्रेरणा मिली कि हमारे देश का संत समाज जो बहुत ज्ञानी तपस्वी अध्येता है लेकिन मठों मन्दिरों तक सीमित है वो यदि समाज के व्यक्ति व्यक्ति में अच्छे विचार डाल सके तो बात बने इसलिये इन संतों का संगठन होना चाहिये


आचार्य जी ने रामरक्षास्तोत्र के कुछ छंद  पढ़े



रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥


श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम । श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।


श्रीराम राम रणकर्कश राम राम । श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥


श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।


श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥


माता रामो मत्पिता रामचन्द्र: । स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र: ।


सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् । नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥


दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥


लोकाभिरामं रणरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् । कारुण्यरूपं करुणाकरन्तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥


मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥


कूजन्तं राम-रामेति मधुरं मधुराक्षरम् । आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥


आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥


भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् । तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥


रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे । रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।


रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम् । रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥


राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥



आचार्य जी ने चिन्मयानन्द जी से संबन्धित एक प्रसंग बताया आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त भैया मनोज अवस्थी भैया प्रवीण भागवत  श्री जैन जी बैरिस्टर साहब का नाम क्यों लिया  आज किस स्थान से आचार्य जी उद्बोधन कर रहे हैं जानने के लिये सुनें

8.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 8 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शूष आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 8 जुलाई 2022

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इस समय देश की भयावह स्थिति है  समाज में उथल पुथल का वातावरण उभर रहा है देश को अस्थिर करने के लिये कुछ लोग लगातार प्रयासरत हैं लेकिन एक ओर उद्वेलन होते हैं तो दूसरी ओर शमन भी आते रहते हैं


हमारे अनुकूल किसी एक व्यक्ति के प्रधानमन्त्री या मुख्यमन्त्री होने से हमें निश्चिन्त होकर नहीं बैठना है

यद्यपि हमारी हिम्मत तो इनसे बढ़ती है ये संकेत हैं और हमें सहारा देते हैं लेकिन 

समाज को सुधारने के लिये संगठन आवश्यक है


जब दो या दो से अधिक व्यक्ति मिलकर किसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं तो उनके बीच स्थापित संबंधों एवं अन्तःक्रियाओं की संरचना को 'संगठन' कहते हैं।


हमारे ऋषियों मुनियों चिन्तकों विचारकों लेखकों ने बखूबी सनातन धर्म का निर्वाह किया है इसी कारण इतने झञ्झावातों के बाद भी हमारा सनातनत्व विनष्ट होने से बचा हुआ है


हम आश्वस्त रहें व्याकुल न हों अन्यथा हमारे अन्दर कमजोरी आयेगी


भय और भ्रम का वातावरण निर्मित होगा


आत्मविश्वास के साथ नित्य  प्रार्थना ध्यान धारणा प्राणायाम अध्ययन स्वाध्याय लेखन सकारात्मक चिन्तन विचार चर्चा करें


आचार्य जी ने भैया डा अमित के प्रश्न पर टिप्पणी करते हुए बताया कथा और घटना में अन्तर है पुराणों और महाभारत में तो अनन्त उपयोगी कथाएं हैं ये हमारे लिये अध्यात्म का मार्ग खोलती हैं

कथाओं को  पढ़ने के बाद उनका सार निकालने की आवश्यकता है


व्यावहारिक दुनिया की समस्याओं को सुलझाने के लिये भी हमें आगे आना होगा


हम अपने कर्तव्य पूरे करते हुए सचेत भी रहें


युगभारती के चारों आयामों के लिये अवसर ही अवसर आते रहते हैं


आधी अधूरी शिक्षा खतरनाक है आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग वैदिक कालीन शिक्षा के बारे में जानकारी जुटाएं


वैदिक कालीन शिक्षा न तो पुस्तकीय ज्ञान में विश्वास रखती थी और न ही जीवकोपार्जन का साधन थी, वह पूर्ण रूपेण नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान का सोपान थी।  शिक्षा का अर्थ था कि किसी व्यक्ति को इस प्रकार से आत्मप्रकाशित किया जाय कि उसका सर्वांगीण विकास होवे


इसके अतिरिक्त भैया राव अभिषेक का नाम क्यों आया

क्या प्रचारणीय है क्या नहीं

कमलेश,रमेश कौन हैं जानने के लिये सुनें

7.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 7 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है वाङ्मय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 7 जुलाई 2022

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आचार्य जी मांसाहार के पक्षधर कतई नहीं हैं आयुर्वेद भी यही कहता है मनुष्य के लिये मांसाहार है ही नहीं क्योंकि उनकी आंतें आदि भी इसके अनुकूल नहीं होती हैं


शाकाहारी भोजन मांसाहारी भोजन की तुलना में हल्का होता है और इसे पचने में बहुत कम ऊर्जा और समय की आवश्यकता होती है।


शाकाहारी भोजन अमीनो एसिड, प्रोटीन और विटामिनों से भरपूर होता है


आधुनिक पैथोफिजियोलॉजिकल प्रयोगों और अध्ययनों में पाया गया है कि जब मांस ठीक से नहीं पचता तो इसके परिणामस्वरूप एनारोबिक बैक्टीरिया का प्रसार होता है जो अंततः शरीर में छद्म मोनोमाइन जैसे विषाक्त पदार्थों का निर्माण करता है।


दार्शनिक सिद्धांतों में एक सिद्धान्त है ख्याति सामान्य अर्थ में ख्याति से तात्पर्य प्रसिद्धि, प्रशंसा, प्रकाश, ज्ञान आदि समझा जाता है। पर दार्शनिकों ने इसे सर्वथा भिन्न अर्थ में ग्रहण किया है। उन्होंने वस्तुओं के विवेचन की शक्ति को ख्याति कहा है और विभिन्न दार्शनिकों ने उसकी अलग-अलग ढंग से व्याख्या की है।

आत्मख्याति,असत् ख्याति, अख्याति,अन्यथा ख्याति और अनिर्वचनीय ख्याति प्रकार हैं


सांख्यदर्शन में तीन प्रकार के तत्त्व हैं  व्यक्त, अव्यक्त तथा ज्ञ l

 मूल प्रकृति को अव्यक्त कहते हैं 

मूल प्रकृति के परिणाम को व्यक्त कहते हैं


जो व्यक्त अव्यक्त को जान लेते हैं ऐसे लोगों की ख्याति असंयत नहीं होती लेकिन इनके आंशिक या अल्प ज्ञान वाले व्यक्ति की यदि ख्याति हो जाती है तो कभी कभी वह स्खलित हो जाता है 


पहले सुनना फिर विचार करना और उसके बाद अपनी बात कहने का हौसला रखना अच्छी बात होती है


संसार के यथार्थों में हमारी गति मति बनी रहे इसके लिये अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन शरीर की शुद्धि शक्ति आवश्यक है

ऐसे लोगों का संगठन समाज की शक्ति बनकर सामने आ जायेगा


जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जमशेद बरजोर पारदीवाला की घातक टिप्पणी का हर जगह विरोध शुभ संकेत है


युगभारती भी इसका विरोध कर रही है


व्यापार और व्यवहार के बीच में किस प्रकार का सामंजस्य हमें रखना है इसका चिन्तन भी करें


और धैर्य भी रखें


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।


हमारा देश हमारी संस्कृति अक्षय है



तैयार रहो मेरे वीरो, फिर टोली सजने वाली है।

तैयार रहो मेरे शूरो, रणभेरी बजने वाली है॥

इस बार बढ़ो समरांगण में, लेकर वह मिटने की ज्वाला।

सागर-तट से आ स्वतन्त्रता, पहना दे तुझको जयमाला॥

6.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 6 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  भाव -प्रशत्त्वन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 6 जुलाई 2022

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तत्त्वज्ञान से भरपूर भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन और समृद्ध संस्कृति है।  यह संस्कृति आदि काल से ही अपने परम्परागत अस्तित्व के साथ अजर-अमर बनी हुई है। इसकी उदारता तथा समन्वयवादी गुण बेमिसाल हैं l यहां सिखाया जाता है कि लेनदेन ही सब कुछ नहीं है l हमारे साहित्य का कथाभाग भी बहुत महत्त्वपूर्ण है 

पहले तो हम इस बात पर दृढ़ रहें कि हमारी परम्परा, विचार, जीवनशैली, ज्ञान विश्व में अद्वितीय है


फिर अपनी भाषा और अपने भावों के प्रति हमें श्रद्धा होनी चाहिये


और नित्य अपने परिवार के वातावरण को परिवर्तित करने के लिये एक अनुष्ठान लेना चाहिये


सस्वर पूजा  होगी भोजन के पहले भोजनमन्त्र होगा मांसाहार से दूर रहना होगा

यह ब्राह्मणत्व की जीवनशैली में अनिवार्य है

लेकिन क्षत्रियत्व की जीवनशैली में तमोगुणी संपर्क की छूट है उन्हें शिकार की अनुमति है


वैश्य लाभ लेगा ही

इसीलिये कहा गया है


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।


कुल मिलाकर वर्ण और आश्रम की उचित जानकारी आवश्यक है

हम इस ज्ञान की परम्परा को अपने परिवार में कर्मकांड के साथ खानपान के साथ और विचार व्यवहार के साथ संयुत कर लेते हैं तो भ्रमित नहीं होंगे

भ्रम से ही निराशा कुंठा आदि आती है भय आता है

सोशल मीडिया पर प्रचार का हिस्सा बन जायें  लेकिन उसे व्यवहार में न लायें तो यह हानिप्रद स्थिति है


इसके अतिरिक्त उपाध्याय का क्या अर्थ है संहिता किसे कहते हैं जानने के लिये सुनें

5.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 5 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है मन्त्रदर्शिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 5 जुलाई 2022

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समाज के मानस के परिपुष्ट व समृद्ध होने चिन्तनयुक्त होने और कर्मशील होने से परिवर्तन संभव होता है सरकारों के आने जाने से फर्क नहीं पड़ता क्यों कि सरकार में काम करने वालों की शैली तेली के बैल की तरह की हो जाती है


हम लोगों का जीवन भी प्रायः तेली के बैल की तरह का हो जाता है लेकिन हमारी गति को दिशा और दृष्टि मिल जाये तो हमारी उन्नति होती जाती है


ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।


सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।2.62।।


क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।


स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63।।


विषय- चिन्तन से पुरुष की विषयों में आसक्ति हो जाती है उस आसक्ति से इच्छा और इच्छा से क्रोध उत्पन्न होता है।


क्रोध से  मोह, मोह से स्मृति विभ्रम उत्पन्न होता है स्मृति के भ्रमित होने पर बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश से वह मनुष्य नष्ट हो जाता है


कुंठित बुद्धि और दूषित चिन्तन के कारण दुष्ट लोग सिर काट देते हैं उनकी सोच सीमित हो जाती है



सहसा विदधीत न क्रियाम् अविवेकः परमापदां पदम्।

वृणते हि विमृश्यकारिणम् गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः॥


अनुचित उचित काजु किछु होऊ। समुझि करिअ भल कह सबु कोऊ।

सहसा करि पाछे पछिताहीं। कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं॥2॥



और हम लोग कहते हैं


यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।


तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति।।6.30।।


जो सबमें मुझे देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता।



इन सबके बीच में हम लोग अपना जीवन चला रहे हैं हम लोग चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय ध्यान संगठन सहयोग सेवा राष्ट्रभक्ति करने के लिये प्रेरित किये जाते हैं


इसीलिये परिवार परिवेश की परिस्थिति देखकर हम लोगों को चिन्तन मनन पूजा ध्यान धारणा भक्ति करनी चाहिये जिससे अपने अन्दर का उद्वेलन शान्त होता है



हम अपने शरीर को एक यात्रा में लगाये रहते हैं हमारी यात्रा अनन्त है अनन्तता परमात्मा की एक विशेष व्यवस्था है परमात्मा निर्विकल्प समाधि में रहकर पुनः सृष्टि की रचना करता है हम न मरते हैं न जन्म लेते हैं


इसके अतिरिक्त 8 जुलाई और 17जुलाई को कौन से कार्यक्रम हैं आचार्य जी ने भैया डा प्रमोद जी भैया डा प्रवीण सारस्वत जी भैया राहुल मिठास जी भैया विनय अजमानी जी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

4.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 4 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरि महा महि भूरि रुजा॥

रजनीचर बृंद पतंग रहे। सर पावक तेज प्रचंड दहे॥2॥


( दस सिर एवं बीस भुजाओं वाले रावण को मारकर पृथ्वी के समस्त कष्टों को हरने वाले भगवान् राम जी राक्षस  रूपी  पतंगे आपके बाण रूपी प्रचण्ड अग्नि  से भस्म हो गए  )


प्रस्तुत है दैतेयारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 4 जुलाई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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यह अत्यन्त गम्भीर समय है  हम सब लोग संसार में रहते हुए वैचारिक जीवन जीने का प्रयास कर रहे हैं इन सदाचार संप्रेषणों से हमें सद्विचार प्राप्त होते रहते हैं  शौर्य प्रमंडित अध्यात्म हम राष्ट्रभक्तों के जीवन का अंग बना रहे सांसारिक प्राप्तियों में हमारी संतुष्टि  बनी रहे,चिन्ता चिन्तन व्यावहारिक स्वरूप लें समाज शक्तिशाली बने आचार्य जी इसका प्रयास करते रहते हैं


अपने परिवेश के प्रशासनिक अधिकारियों से हमारा परिचय होना चाहिये उनकी प्रकृति जानें लेकिन उनमें जो स्वार्थ में रत हैं दुर्भावनाग्रस्त हैं उनसे दूरी बना लें


कौन अपना है कौन पराया यह देखते हुए सतर्क रहें


विवेक के साथ अपने को सुरक्षित और संगठित रखें


 अपने घर में उत्साह और हिम्मत बंधी रहे,आत्मशक्ति आत्मविश्वास में वृद्धि हो इसके लिये नित्य प्रार्थना करें


उत्तरकांड में शिव जी ने भगवान् राम की प्रार्थना की


जय राम रमारमनं समनं। भवताप भयाकुल पाहि जनं॥

अवधेस सुरेस रमेस बिभो। सरनागत मागत पाहि प्रभो॥1॥


दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरि महा महि भूरि रुजा॥

रजनीचर बृंद पतंग रहे। सर पावक तेज प्रचंड दहे॥2॥


महि मंडल मंडन चारुतरं। धृत सायक चाप निषंग बरं।

मद मोह महा ममता रजनी। तम पुंज दिवाकर तेज अनी॥3॥


मनजात किरात निपात किए। मृग लोग कुभोग सरेन हिए॥

हति नाथ अनाथनि पाहि हरे। बिषया बन पावँर भूलि परे॥4॥.......

3.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 3 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कालुष्यारि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 3 जुलाई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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समय बहुत गम्भीर है इसलिये ऐसे गम्भीर समय में गम्भीर चिन्तन होना चाहिये चिन्तन के बाद एक्शन (action )भी होना चाहिये

मूल विषय से भटकने के कारण  जितना प्रभाव दिखना चाहिये उतना नहीं दिख रहा

इसलिये इधर उधर की बातें न कर मूल विषय पर चिन्तन आवश्यक है यह सच है कि हर मनुष्य को उसके लिये की गई श्लाघा अच्छी लगती है लेकिन गम्भीर समय में हम अपने को एक ही लक्ष्य पर केन्द्रित करें


जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जमशेद बरजोर पारदीवाला की घातक टिप्पणी भारतीय जीवनदर्शन में विश्वास करने वालों को आहत कर गई  इसमें पूर्वाग्रह से ग्रसित कुण्ठित मानसिकता साफ झलक रही है


सीता राम गोयल (१६ अक्टूबर १९२१ - ३ दिसंबर २००३) जो  एक राष्ट्रवादी लेखक, इतिहासकार और प्रकाशक थे ने अपने समाज के पराभव के पांच कारण गिनाए

इस्लामीकरण

साम्यवादी चिन्तन

मैकालेवादी शिक्षा व्यवस्था

ईसाइयत वाली जीवनशैली

और

तथाकथित आधुनिकीकरण


इस्लामीकरण का भयानक स्वरूप सामने होने पर भी हम आंख मूंदे बैठे हैं

हमें अपनी आंखे खोलनी होंगी



इधर विचार हो रहा

उधर प्रहार हो रहा ,

सितार शान्ति के स्वरों का

तार-तार हो रहा ।

समय नहीं है एक पल,

सुशान्ति हो रही विकल,

जवान तू निकल निकल,

न आएगा कभी ये कल।

व्यथा कि शौर्य ही भ्रमित श्रमित उदार हो रहा।१।

    इधर विचार हो रहा........


कथा व्यथामयी हुई

उदग्रता छुईमुई ,

मनस् भ्रमांध हो गया

बिसास बीज बो गया

विरुद्ध पाठ दीनहीनता का भार ढो रहा ।२। 

इधर विचार------


कभी भ्रमांध दम्भ में

कभी शिथिल प्रबंध में,

कि, ईर्ष्या की आग में

कभी भ्रमे विराग में ।

इसी भ्रमांधता में सत्व आत्मबोध खो रहा ।३।

इधर विचार-----


कि, रक्तबीज बढ़ रहे

सुपृष्ठ देख चढ़ रहे ,

लगा रहे हिसाब हम

बढ़ा रहे हैं वे कदम,

विकर्म क्षुद्र स्वार्थ के विषाक्त बीज बो रहा ।४।

इधर विचार----


समय नहीं विचार का

यही समय प्रहार का,

सभी उठें कमर कसें

कि, एक भाव में बसें ,

दिखेगा यह कि शौर्य शक्ति का उजास हो रहा ।५।

इधर विचार-----

  (ओमशंकर त्रिपाठी)

2.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 2 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।


रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।17.8।।


(आयु,शुद्धि , बल, आरोग्य, सुख और प्रसन्नता बढ़ाने वाले, स्थिर रहने वाले, हृदय को ताकत देने वाले, रसयुक्त तथा चिकने --  भोजन करने के पदार्थ सात्त्विक मनुष्य को प्रिय होते हैं-गीता )


प्रस्तुत है नियोद्धृ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 2 जुलाई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

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इन सदाचार संप्रेषणों का लाभ हमें तभी मिलेगा जब हम इन्हें सुनेंगे, गुनेंगे, विचार करेंगे और व्यवहार के लिये भी उद्यत और उत्सहित होंगे


हमारे ऋषियों ने स्मृति ग्रंथों में हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक,सामाजिक, वैश्विक कर्तव्यों का उल्लेख किया है हर क्षेत्र में शुद्धता पर बहुत ध्यान दिया गया ताकि शारीरिक मानसिक चारित्रिक शुद्धता से हम प्रबुद्ध रहें

कल्याण के हिन्दू -संस्कृति अङ्क में पृष्ठ 527 से 533 में सात्विक आहार -विवेक नामक लेख में आहार -विवेक का बहुत अच्छा वर्णन है इस पर हम कभी विचार विमर्श करें 


हमारे मन मस्तिष्क को विकृत करने की चेष्टा के परिणामस्वरूप हम अपने कर्तव्य भूल गये परमात्मा का चिन्तन भूल गये शिक्षा को विकृत करने से ये ढोंग लगने लगे 

भारतभूमि का पूरा विश्व ही प्रशंसक है हम राष्ट्रभक्तों का कर्तव्य है कि इसकी रक्षा, सेवा,संस्कृति के प्रति श्रद्धा /समर्पण

और इसके इतिहास पर विश्वास करें


सामाजिक बुराइयों को दूर करने के अपने प्रयत्नों पर भी विचार करें सामाजिक कार्य करने का आनन्द प्राप्त करने के लिये स्वार्थ को दरकिनार करना होगा

सम्मान आत्मीयता प्रेम क्या कम है जो हम सोचें कि हमें मिला क्या

आत्मदृष्टि का नित्य प्रयास   करें तो चिन्तन मनन अध्ययन सार्थक होगा इसे लिपिबद्ध भी करें


युगभारती की बात करें तो यह अधिष्ठान चार स्तंभों शिक्षा स्वावलम्बन स्वास्थ्य और सुरक्षा पर खड़ा है प्रयोग के लिये सरौंहां और उन्नाव का विद्यालय है

थोड़ा  करने से ही संतुष्ट न हों

शिविर लगायें वृक्षारोपण करें कार्यक्रम करें

संगठित स्वरूप में असीम शक्ति है


वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में हम युगभारती परिवारी जन का व्यावहारिक कर्तव्य क्या है इस पर कल होने वाली युगभारती प्रबंधकारिणी समिति की बैठक में समिति सदस्य और विशेष आमन्त्रित सदस्य चर्चा करें

1.7.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 1 जुलाई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 अनगिन संकट जो झेल बढ़ा, वह यान हमारा अनुपम है। 

नायक पर है विश्वास अटल, उर में बाहों में दम खम है। 

यह रैन अंधेरी बीतेगी, उषा जय मुकट  चढ़ाएगी।।

पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी आयेगी..


प्रस्तुत है सदाचार -हयङ्कष आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 1 जुलाई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w



आत्मस्थ होकर विचार करें कि हम अपना कार्य व्यवहार कितने निर्लिप्त भाव से कर रहे हैं हमें विद्यालय में भी इस तरह के संस्कार मिले हैं कि हम समाज के लिये कुछ करें देश के लिये कुछ करें


इन संस्कारों को अपनी पूंजी मानें निराशा का भाव तो बिल्कुल न आये कि अब इनकी आवश्यकता नहीं और अब तो दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है


हमारा जीवन कैसा है हमारे विचार कैसे हैं हमारे कार्य कैसे हैं हमारा व्यवहार कैसा है यह चिन्तन सदाचार का मूल आधार है


आत्म- चिन्तन आत्म- मन्थन करते हुए इन विचारों को लिखते जाएं

नई पीढ़ी के चिन्तन में परिवर्तन क्यों है सदाचारी चिन्तन क्यों नहीं है इसका उत्तरदायित्व भी हम लेकर जानने का प्रयास करें और उस पीढ़ी को भी समाजोन्मुख बनायें राष्ट्र के प्रति निष्ठावान बनायें


प्रार्थना  हमारी संस्कृति का प्राण है

प्रार्थना  /पूजा  तात्त्विक और मानसिक ऊर्जा के शक्ति स्रोत हैं

प्रार्थना उन महाशक्तियों के प्रति विनम्रता का भाव दर्शाती है जिन्होंने इस सृष्टि की रचना की है


भगवान् राम, हनुमान जी महाराज, मां सरस्वती आदि का स्मरण करते समय उन महाशक्तियों को हमें महसूस करना चाहिये


ये सदाचार संप्रेषण सांसारिक और तात्त्विक शक्तियों को ऊर्जा प्रदान करने के आधार हैं


महाराष्ट्र में इस समय उठ रहे राजनैतिक तूफान और राजस्थान के सामाजिक तूफान से हम परिचित हैं

सरकारें बदलने से प्रायः समस्याओं का समाधान नहीं होता है सरकारों को समाज का मनोबल मिलना आवश्यक है


यदि सरकारों के मुखिया निःस्वार्थी निर्लोभी हों तो प्रकाश की झलक मिलती है


परिवारों से मुक्त होकर अपने कार्य व्यवहार को चलाना कठिन काम है वैराग्य लेकर मतलब न रखें निष्क्रिय हो जाएं यह उचित नहीं


वैराग्य का अर्थ निष्क्रियता नहीं है इसका अर्थ है सक्रियता को और अधिक धारदार बनाना

ऐसा सदाचार ग्रंथों में कहा गया है