31.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 31 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 तासु दूत तुम्ह तजि कदराई। राम हृदयँ धरि करहु उपाई।



प्रस्तुत है सकर्मक आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 31 अक्टूबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  459 वां सार -संक्षेप

सकर्मक =कर्मशील


शिव,शक्ति, संयम, साधना,समर्पित भक्ति के प्रतीक हमारे संरक्षक हनुमान जी की कीर्तिगाथा हमारा मार्गदर्शन करती है उनके संरक्षण में त्याग  समर्पण संयम साधना तप सेवा विश्वास के भावों से ओत प्रोत कल सरौंहां में संपन्न हुआ स्वास्थ्य शिविर अत्यन्त सफल रहा युगभारती के लगभग तीस सदस्यों द्वारा बिना लोभ लाभ की आशा लिये समर्पित बहुमूल्य समय,धन, भाव, शक्ति परमात्मा की आराधना ही है


 235 लाभार्थियों ने हम लोगों पर कृपा करते हुए  एक बार फिर से हमें अपना लक्ष्य याद दिला दिया और हमारा लक्ष्य है

*राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष*


आइये राम कथा में प्रवेश करते हैं

मैं देखउँ तुम्ह नाहि गीघहि दष्टि अपार।।

बूढ भयउँ न त करतेउँ कछुक सहाय तुम्हार।।28।।


जटायु के भाई संपाती जिनके   पंख सूर्य के अश्व खाने के चक्कर में झुलस गए थे को आशा की किरण दिखाई दी कि राम जी की कृपा से उनके पंख फिर से आ जायेंगे



जो नाघइ सत जोजन सागर । करइ सो राम काज मति आगर ।।

मोहि बिलोकि धरहु मन धीरा । राम कृपाँ कस भयउ सरीरा।।

पापिउ जा कर नाम सुमिरहीं। अति अपार भवसागर तरहीं।।

भगवान् राम ने कठिन परीक्षा ली अब जाकर राम मंदिर बन रहा है श्रद्धेय अशोक सिंघल जी जैसे बहुत से उदाहरण हैं जिनके शरीर यह साधना करते करते छूट गये 



तासु दूत तुम्ह तजि कदराई। राम हृदयँ धरि करहु उपाई।।

अस कहि गरुड़ गीध जब गयऊ। तिन्ह कें मन अति बिसमय भयऊ।।

निज निज बल सब काहूँ भाषा। पार जाइ कर संसय राखा।।

जरठ भयउँ अब कहइ रिछेसा। नहिं तन रहा प्रथम बल लेसा।।

जबहिं त्रिबिक्रम भए खरारी। तब मैं तरुन रहेउँ बल भारी।।


बलि बाँधत प्रभु बाढेउ सो तनु बरनि न जाई।

उभय धरी महँ दीन्ही सात प्रदच्छिन धाइ।।29।।


अंगद कहइ जाउँ मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा।।

जामवंत कह तुम्ह सब लायक। पठइअ किमि सब ही कर नायक।।

कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना।।

पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।

कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।

राम काज लगि तब अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्वताकारा।।

कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहु अपर गिरिन्ह कर राजा।।

सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहीं नाषउँ जलनिधि खारा।।

सहित सहाय रावनहि मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी।।

जामवंत मैं पूँछउँ तोही। उचित सिखावनु दीजहु मोही।।

एतना करहु तात तुम्ह जाई। सीतहि देखि कहहु सुधि आई।।

तब निज भुज बल राजिव नैना। कौतुक लागि संग कपि सेना।।


छंद

कपि सेन संग सँघारि निसिचर रामु सीतहि आनिहैं।

त्रैलोक पावन सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानिहैं।।

जो सुनत गावत कहत समुझत परम पद नर पावई।

रघुबीर पद पाथोज मधुकर दास तुलसी गावई।।


दोहा/सोरठा

भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरु नारि।

तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करिहि त्रिसिरारि।।30(क)।।

नीलोत्पल तन स्याम काम कोटि सोभा अधिक।

सुनिअ तासु गुन ग्राम जासु नाम अघ खग बधिक।।30(ख)।।

सुन्दर कांड का संकेत देते हुए आचार्य जी ने आज किष्किन्धा कांड का समापन किया

30.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 30 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 राम काज लगि तब अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्वताकारा।।

कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहु अपर गिरिन्ह कर राजा।।

हनुमान जी को जैसे ही अपना उद्देश्य याद आता है उनमें अपार शक्ति आ जाती है इसी प्रकार हम भी अपने उद्देश्य को ध्यान में रखकर शक्ति संपन्न बनें 


प्रस्तुत है असुषिर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 30 अक्टूबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  458 वां सार -संक्षेप

असुषिर =जिसमें कपट न हो


मनुष्य पशु नहीं है पशु को प्रकृति नियन्त्रित करती है और मनुष्य आत्मनियन्त्रित होता है

यदि उसका आत्मनियन्त्रण खो जाता है तो दूसरे लोग उसको नियन्त्रित करते हैं

पाश्चात्य संस्कृति भोग पर आधारित है


हम अस्ताचल देशों को देखकर भ्रमित हो गये इसी भ्रम के कारण लोग हमारा उपयोग करने लगे


चैतन्य को गिरवी रखने पर हमारी दुर्दशा ज्यादा हुई हमें यही नहीं पता चला कि हमारा साहित्य (जो हमारा हित करे ) क्या है


पराक्रम से विमुखता ने भी हमें हानि पहुंचाई


आचार्य जी का यही प्रयास रहता है कि हमें विश्लेषणात्मक बुद्धि प्राप्त हो हमारा कर्म शैथिल्य भाव शैथिल्य समाप्त हो

राम का रामत्व देखिये जिसमें भाव विचार क्रिया का सामञ्जस्य है 


तो आइये रामचरित मानस के हृदय किष्किन्धा कांड में प्रवेश करें

राम का प्रेम आत्मीयता वाला शुद्ध मानवत्व प्रारम्भ होता है सीता भाव धन है आत्मशक्ति है इसलिये उनकी खोज आवश्यक है 


बरषा गत निर्मल रितु आई। सुधि न तात सीता कै पाई।।

एक बार कैसेहुँ सुधि जानौं। कालहु जीत निमिष महुँ आनौं।।


कतहुँ रहउ जौं जीवति होई। तात जतन करि आनेउँ सोई।।

सुग्रीवहुँ सुधि मोरि बिसारी। पावा राज कोस पुर नारी।।

जेहिं सायक मारा मैं बाली। तेहिं सर हतौं मूढ़ कहँ काली।।

जासु कृपाँ छूटहीं मद मोहा। ता कहुँ उमा कि सपनेहुँ कोहा।।

जानहिं यह चरित्र मुनि ग्यानी। जिन्ह रघुबीर चरन रति मानी।।

लछिमन क्रोधवंत प्रभु जाना। धनुष चढ़ाइ गहे कर बाना।।


दोहा/सोरठा

तब अनुजहि समुझावा रघुपति करुना सींव।।

भय देखाइ लै आवहु तात सखा सुग्रीव।।18।


हम संगठनकर्ता को कोई भी काम आवेश में आकर नहीं करना चाहिये 



सुग्रीव के सेवक रहे हनुमान जी अब राम भक्त होने जा रहे हैं भक्ति ऐसी कि उसकी दूसरी मिसाल ही इस संसार में न थी न है न होगी



इहाँ पवनसुत हृदयँ बिचारा। राम काजु सुग्रीवँ बिसारा।।

निकट जाइ चरनन्हि सिरु नावा। चारिहु बिधि तेहि कहि समुझावा।।

सुनि सुग्रीवँ परम भय माना। बिषयँ मोर हरि लीन्हेउ ग्याना।।


वासनाएं ज्ञान को हर लेती हैं



अब मारुतसुत दूत समूहा। पठवहु जहँ तहँ बानर जूहा।।

कहहु पाख महुँ आव न जोई। मोरें कर ता कर बध होई।।

तब हनुमंत बोलाए दूता। सब कर करि सनमान बहूता।।

भय अरु प्रीति नीति देखाई। चले सकल चरनन्हि सिर नाई।।

एहि अवसर लछिमन पुर आए। क्रोध देखि जहँ तहँ कपि धाए।।



धनुष चढ़ाइ कहा तब जारि करउँ पुर छार।

ब्याकुल नगर देखि तब आयउ बालिकुमार।।19।।



चरन नाइ सिरु बिनती कीन्ही। लछिमन अभय बाँह तेहि दीन्ही।।

क्रोधवंत लछिमन सुनि काना। कह कपीस अति भयँ अकुलाना।।

सुनु हनुमंत संग लै तारा। करि बिनती समुझाउ कुमारा।।

तारा सहित जाइ हनुमाना। चरन बंदि प्रभु सुजस बखाना।।

करि बिनती मंदिर लै आए। चरन पखारि पलँग बैठाए।।

तब कपीस चरनन्हि सिरु नावा। गहि भुज लछिमन कंठ लगावा।।

नाथ बिषय सम मद कछु नाहीं। मुनि मन मोह करइ छन माहीं।।

सुनत बिनीत बचन सुख पावा। लछिमन तेहि बहु बिधि समुझावा।।

पवन तनय सब कथा सुनाई। जेहि बिधि गए दूत समुदाई।।


दोहा/सोरठा

हरषि चले सुग्रीव तबt अंगदादि कपि साथ।

रामानुज आगें करि आए जहँ रघुनाथ।।20।।

सीता खोज का प्रसंग अद्भुत है हनुमान जी ने मुद्रिका मुंह में रख ली उस मुद्रिका में हनुमान जी को जीवनीशक्ति देने वाला रामात्व है


इसके अतिरिक्त आज सरौंहां में होने वाले चिकित्सा शिविर में आप सादर आमन्त्रित हैं

29.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 29 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अपिगीर्ण आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 29 अक्टूबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  457 वां सार -संक्षेप

अपिगीर्ण =यशस्वी



अपनी भारतीय संस्कृति का नित्य संस्मरण सदाचारमय विचारों के साथ होना हम लोगों के लिये सौभाग्य की बात है और इस सदाचार वेला के माध्यम से हम लोग अपने भावों विचारों अध्ययन स्वाध्याय को विस्तार देने में सक्षम हो पा रहे हैं


यश कमाना और धन कमाना अलग अलग है

कल अपने गांव सरौंहां में होने वाला चिकित्सा शिविर बिना स्वार्थ के सेवाभाव से किया जा रहा है


लोग ठगे जाते हैं ऐसे में उनमें विश्वास पैदा करना उनकी सेवा करना एक बड़ी  चुनौती है


सारे संशयों को दूर करने वाली धर्म दर्शन ज्ञान विज्ञान रीति नीति युक्त इस रामचरित मानस में भगवान् राम मानव रूप में सारा यश अपयश ढोते हुए सारी समस्याएं अपने ऊपर लेते हुए असली संन्यासी के रूप में संपूर्ण संसार को त्रस्त करने वाले दुष्ट रावण से संसार को मुक्ति दिलाते हैं

भोग में अनुरक्त भक्त त्याज्य है


कबहु दिवस महँ निबिड़ तम कबहुँक प्रगट पतंग।

बिनसइ उपजइ ग्यान जिमि पाइ कुसंग सुसंग॥

तो आइये सुसंगति पाकर ज्ञान प्राप्त करें

किष्किन्धा कांड में


लछिमन तुरत बोलाए पुरजन बिप्र समाज।

राजु दीन्ह सुग्रीव कहँ अंगद कहँ जुबराज॥11॥


पत्नी को भोग्या समझना गलत है वह मार्गदर्शक भी होती है

संघर्ष करके पुरुष को जगाने वाली पंच कन्याएं अहिल्या, द्रौपदी, तारा, सीता (कहीं कहीं कुन्ती ), मन्दोदरी स्मरण करने योग्य हैं


सुग्रीव और बालि को मार्गदर्शन देने वाली अङ्गद की मां तारा ने संपूर्ण दक्षिण क्षेत्र को सुरक्षित किया


कह प्रभु सुनु सुग्रीव हरीसा। पुर न जाउँ दस चारि बरीसा॥

गत ग्रीषम बरषा रितु आई। रहिहउँ निकट सैल पर छाई॥4॥


अंगद सहित करहु तुम्ह राजू। संतत हृदयँ धरेहु मम काजू॥

जब सुग्रीव भवन फिरि आए। रामु प्रबरषन गिरि पर छाए॥5॥


प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा राखेउ रुचिर बनाइ।

राम कृपानिधि कछु दिन बास करहिंगे आइ॥12॥



प्रवर्षणगिरि (प्रस्रवणगिरि )का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में  है, जो होस्पेटतालुका मैसूर में है।  प्राचीन किष्किंधा के निकट माल्यवान पर्वत  है, जिसके एक भाग का नाम 'प्रवर्षणगिरि' है। यह किष्किंधा के विरूपाक्ष मन्दिर से चार मील की दूरी पर है।


अभिषिक्ते तु सुग्रीवे प्रविष्टे वानरे गुहाम, आजगाम सह भ्रात्रा राम: प्रस्रवणं गिरिम्'-



ततो रामो जगामाशु लक्ष्मेण समन्वित:, प्रवर्षणगिरेरुर्घ्व शिखरं भूरिविस्तरम्। तत्रैकं गह्वरं दृष्टवा स्फटिकं दीप्तिमच्छुभम्, वर्षवातातपसहं फलमूलसमीपगम्, वासाय रोचयामास तत्र राम: सलक्ष्मण:। दिव्यमूलफलपुष्पसंयुते मौक्तिकोपमजलौध पल्वले, चित्रवर्णमृगपक्षिशोभिते पर्वते रघुकुलोत्तमोऽवसत्'- किष्किंधा[



बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध बिद्या पाएँ।

बूँद अघात सहहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसें॥2॥


प्रकृति का आकर्षण भी मनुष्य को शान्ति देता है



छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई॥

भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहि माया लपटानी॥3॥


परमपवित्र जीव यहां आकर माया से लिपट जाता है



समिटि समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा॥

सरिता जल जलनिधि महुँ जोई। होइ अचल जिमि जिव हरि पाई॥4॥


हरित भूमि तृन संकुल समुझि परहिं नहिं पंथ।

जिमि पाखंड बाद तें गुप्त होहिं सदग्रंथ॥14॥

28.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 28 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 उमा राम सम हत जग माहीं। गुरु पितु मातु बंधु प्रभु नाहीं॥

सुर नर मुनि सब कै यह रीती। स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति॥1॥



प्रस्तुत है प्रतिपत्तिविशारद आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 28 अक्टूबर 2022 

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  456 वां सार -संक्षेप

प्रतिपत्तिविशारद =कुशल



ये सदाचार संप्रेषण हम लोगों के लिये अत्यन्त लाभकारी हैं

हम ऐश्वर्य अर्थात् ईश्वरीय शक्ति,जो हमारे शरीर को चलाती है,की उपासना करें

शरीर को साधन मानें लेकिन साध्य नहीं

यह नष्ट योग्य है हमें तो यह दूसरा मिलेगा इसीलिये  मरने पर हम इसे मिट्टी कहते हैं

 आचार्य जी की प्राणिक शक्ति समाजोन्मुखी है भारतीय जीवनशैली में शास्त्रों में आचार्य जी का गहन  प्रवेश है हमें भी परम स्वार्थ की आंधी की ओर पीठ करके इस गलियारे में प्रवेश कर इसका लाभ लेना चाहिये


लेखन, युद्ध, समाज सुधार, सेवा के क्षेत्र में एक से एक महापुरुष इस धन्यभूमि पर जन्मे हैं ऐसे ही एक महापुरुष तुलसीदास हैं


सनातन पद्धति का आधार लेकर ही हम लोगों पर अमिट छाप छोड़ने वाले तुलसीदास जी ने जो रामचरित मानस रची वो तो अद्भुत है


आइये प्रवेश करते हैं इसी ग्रंथ के किष्किन्धा कांड में



अब नाथ करि करुना बिलोकहु देहु जो बर मागऊँ।

जेहि जोनि जन्मौं कर्म बस तहँ राम पद अनुरागऊँ॥

यह तनय मम सम बिनय बल कल्यानप्रद प्रभु लीजिये।

गहि बाँह सुर नर नाह आपन दास अंगद कीजिये॥2॥



अंगद का अर्थ है भुजा पर पहनने वाला आभूषण

बालि ने अंगद नाम इस कारण रखा कि  उसका यह पुत्र उसकी भुजा का सौंदर्य है भुजा अर्थात् बल का प्रतीक 



राम चरन दृढ़ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग।

सुमन माल जिमि कंठ ते गिरत न जानइ नाग॥10॥


राम बालि निज धाम पठावा। नगर लोग सब व्याकुल धावा॥

नाना बिधि बिलाप कर तारा। छूटे केस न देह सँभारा॥1॥



तारा बिकल देखि रघुराया। दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया॥

छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा॥2॥


प्रगट सो तनु तव आगे सोवा। जीव नित्य केहि लगि तुम्ह रोवा॥

उपजा ग्यान चरन तब लागी। लीन्हेसि परम भगति बर मागी॥3॥


उमा दारु जोषित की नाईं। सबहि नचावत रामु गोसाईं॥

तब सुग्रीवहि आयसु दीन्हा। मृतक कर्म बिधिवत सब कीन्हा॥4॥


लछिमन तुरत बोलाए पुरजन बिप्र समाज।

राजु दीन्ह सुग्रीव कहँ अंगद कहँ जुबराज॥11॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने एक कविता सुनाई


हम ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र की भाषा छोड़  उठें.

27.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 27 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 अहिल्या द्रौपदी सीता तारा मंदोदरी तथा । पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ।।

प्रस्तुत है अभिगोप्तृ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 27 अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  455 वां सार -संक्षेप

अभिगोप्तृ =संरक्षक



भाषा इस सृष्टि की निर्मिति का आदिस्रोत है आत्मज्ञान होने पर भाषा अद्भुत लगती है भाषा के बहुत से विरुद हैं जैसे गिरा, सरस्वती, भारती, महाश्वेता, ज्ञानदा, शारदा आदि

भाषा स्वर शब्द के बिना इस तरह के संसार की कल्पना ही नहीं जा सकती


ॐ का स्वर  बहुत प्रभावी है जो शारीरिक रोगमुक्ति,मानसिक भावभक्ति के साथ तत्त्वज्ञता का भी कारण है


इस सदाचार वेला के माध्यम से आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपना लक्ष्य राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष न भूलें


जहां आवश्यकता हो वहां शक्ति का प्रयोग भी करें


आत्मानुभूति का विलोप होने पर हम संकटों में व्यथित होने लगते हैं


हम अपनी शक्ति अपने तत्त्व को पहचानें इसी की पहचान कराती  ये कविता प्रस्तुत है 



भा में रत भारत महान ज्ञान रत्न रहा

 शक्ति शौर्य संयम की यह परिभाषा था

विश्व में जहां कहीं भी गया जिस रूप में भी

वहीं वह हुआ जीवमात्र की सुआशा था

किन्तु जब आत्मज्ञान केवल मनन हुआ

हुआ उसी दिन से ये भारत तमाशा था

इसलिये भारत हे फिर से वरण करो 

शील युक्त शौर्य शक्ति  विक्रम की भाषा का


इस धरोहर को हम संभालें 

इसी भाव को लेकर समाज को जाग्रत करने के लिये तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की

आइये प्रवेश करते हैं किष्किंधा कांड में 



परा बिकल महि सर के लागें। पुनि उठि बैठ देखि प्रभु आगे॥

स्याम गात सिर जटा बनाएँ। अरुन नयन सर चाप चढ़ाएँ॥1॥


बालि के बारे में बहुत सी अन्तर्कथाएं हैं जिनमें हमें सतही तौर पर प्रवेश नहीं करना चाहिये अन्यथा हमें इनसे विरक्ति होने लगती है

हमारी बौद्धिकता को विकृत करने के बहुत से प्रयास हुए और हम शक्तिहीन हो गए 

और इसी कारण हमें अपने पर ही विश्वास नहीं रहा



धर्म हेतु अवतरेहु गोसाईं। मारेहु मोहि ब्याध की नाईं॥

मैं बैरी सुग्रीव पिआरा। अवगुन कवन नाथ मोहि मारा॥3॥


अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी॥

इन्हहि कुदृष्टि बिलोकइ जोई। ताहि बधें कछु पाप न होई॥4॥


मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना। नारि सिखावन करसि न काना॥

मम भुज बल आश्रित तेहि जानी। मारा चहसि अधम अभिमानी॥5॥



सुनहु राम स्वामी सन चल न चातुरी मोरि।

प्रभु अजहूँ मैं पापी अंतकाल गति तोरि॥9॥



सुनत राम अति कोमल बानी। बालि सीस परसेउ निज पानी॥

अचल करौं तनु राखहु प्राना। बालि कहा सुनु कृपानिधाना॥1॥


जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं। अंत राम कहि आवत नाहीं॥

जासु नाम बल संकर कासी। देत सबहि सम गति अबिनासी॥2॥


अब नाथ करि करुना बिलोकहु देहु जो बर मागऊँ।

जेहि जोनि जन्मौं कर्म बस तहँ राम पद अनुरागऊँ॥

यह तनय मम सम बिनय बल कल्यानप्रद प्रभु लीजिये।

गहि बाँह सुर नर नाह आपन दास अंगद कीजिये॥2॥

26.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 26 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 तुम तो हे प्रिय बंधु! स्वर्ग सी 


 सुखद, सकल विभवों के आकर


 धरा-शिरोमणि मातृभूमि में


 धन्य हुए हो जीवन पाकर


 तुम जिसका जल-अन्न ग्रहण कर


बड़े हुए लेकर जिसका रज


 तन रहते कैसे तज दोगे?


 उसको हे वीरों के वंशज!



बिद्याबान गुनी अति चातुर। रामकाज करीबे को आतुर।।



प्रस्तुत है वयुन -मार्ग आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 26 अक्टूबर 2022

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  454 वां सार -संक्षेप

वयुनम् =ज्ञान


राम की कथा हमारी कथा के साथ मिलती जुलती चलती है

इसी कारण हम राष्ट्र -भक्त लोगों का, जिन्होंने उस भारतभूमि में जन्म लिया है जिसके लिये कहा जाता है


गायन्ति देवाः किल गीतकानि , धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे ।

स्वर्गापवर्गास्पद् मार्गभूते , भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वाद् ॥

, इसमें मन लगता है

हम लोगों की देशभक्ति सुख सुविधाओं  स्वार्थों के साथ तुलित होने लगती है तो हम मनुष्यत्व से दूर भागने लगते हैं मनुष्यत्व की राह छूटते ही समस्याओं के अम्बार आने लगते हैं 



राम कथा आज भी प्रासंगिक  है क्योंकि भगवान् राम के समय  में भी   समस्याएं थीं उनके समाधान थे आज भी हमारे सामने समस्याएं आती हैं तो उनके समाधान भी हमें खोजने होते हैं


बालि और सुग्रीव में कटुता कैसे आई इसके लिये आचार्य जी ने एक बहुत रोचक अन्तर्कथा सुनाई


अब आइये रामकथा में प्रवेश करते हैं

बहु छल बल सुग्रीव कर हियँ हारा भय मानि।

मारा बालि राम तब हृदय माझ सर तानि॥8॥


परा बिकल महि सर के लागें। पुनि उठि बैठ देखि प्रभु आगे॥

स्याम गात सिर जटा बनाएँ। अरुन नयन सर चाप चढ़ाएँ॥1॥


पुनि पुनि चितइ चरन चित दीन्हा। सुफल जन्म माना प्रभु चीन्हा॥

हृदयँ प्रीति मुख बचन कठोरा। बोला चितइ राम की ओरा॥2॥

पहले तो बालि तपस्वी था ही

वह समझ गया कि ये तो परमात्मा हैं


धर्म हेतु अवतरेहु गोसाईं। मारेहु मोहि ब्याध की नाईं॥

मैं बैरी सुग्रीव पिआरा। अवगुन कवन नाथ मोहि मारा॥3॥


अब यहां भगवान् राम का उत्तर देखिये यह है रामत्व



अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी॥

इन्हहि कुदृष्टि बिलोकइ जोई। ताहि बधें कछु पाप न होई॥4॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

25.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 25 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम



प्रस्तुत है कौणप -रिपु आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 25 अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  453 वां सार -संक्षेप

कौणपः =राक्षस


हमारी ज्ञान -परम्परा को नष्ट करने के लिये अनगिनत उत्पात हुए इसे संसार की सृष्टि के उतार चढ़ाव का दोष कह सकते हैं लेकिन हमें इस बात पर निश्चेष्ट होकर नहीं बैठना है 

इस समय एक  अत्यन्त विकट समस्या उत्पन्न हो गई है कि हमें अपने पूर्वजों के, हमारी समस्याओं का निर्मूलन करने वाले अनुसंधान, प्रदेय आदि पर विश्वास नहीं होता


और यदि हम विश्वास की एक झलक मात्र भी पा लें तो संसार -सागर को आसानी से तैर कर पार कर सकते हैं


भगवान् राम के जीवन में निश्चेष्टता कभी नहीं रही

राम कभी निराश नहीं हुए उन्होंने 

कभी भी आत्मविश्वास खोया नहीं

उनका विलाप भी उनके नियन्त्रण में ही रहा


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥


सुनु सुग्रीव मारिहउँ बालिहि एकहिं बान।

ब्रह्म रुद्र सरनागत गएँ न उबरिहिं प्रान॥6॥


यही रामत्व है

मनुष्य समस्याओं में उलझता है उनसे व्याकुल होता है लेकिन व्याकुलता दूर होते ही पराक्रम फिर से जाग्रत होना चाहिये

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अपने जीवन को साधें मन को बांधें मूलतत्त्व को नित्य प्रातःकाल पहचानने का प्रयास करें


कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। बालि महाबल अति रनधीरा॥

दुंदुभि अस्थि ताल देखराए। बिनु प्रयास रघुनाथ ढहाए॥6॥

किष्किन्धा कांड में हम प्रवेश कर चुके हैं अब आगे



देखि अमित बल बाढ़ी प्रीती। बालि बधब इन्ह भइ परतीती॥

बार-बार नावइ पद सीसा। प्रभुहि जानि मन हरष कपीसा॥7॥


उपजा ग्यान बचन तब बोला। नाथ कृपाँ मन भयउ अलोला॥

सुख संपति परिवार बड़ाई। सब परिहरि करिहउँ सेवकाई॥8॥


ए सब राम भगति के बाधक। कहहिं संत तव पद अवराधक॥

सत्रु मित्र सुख, दु:ख जग माहीं। मायाकृत परमारथ नाहीं॥9॥

समय पर सुग्रीव का ज्ञान खुल गया


अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति। सब तजि भजनु करौं दिन राती॥

सुनि बिराग संजुत कपि बानी। बोले बिहँसि रामु धनुपानी॥11॥


जो कछु कहेहु सत्य सब सोई। सखा बचन मम मृषा न होई॥

नट मरकट इव सबहि नचावत। रामु खगेस बेद अस गावत॥12॥


चौपाई

लै सुग्रीव संग रघुनाथा। चले चाप सायक गहि हाथा॥

तब रघुपति सुग्रीव पठावा। गर्जेसि जाइ निकट बल पावा॥13॥


सुनत बालि क्रोधातुर धावा। गहि कर चरन नारि समुझावा॥

सुनु पति जिन्हहि मिलेउ सुग्रीवा। ते द्वौ बंधु तेज बल सींवा॥14॥


कोसलेस सुत लछिमन रामा। कालहु जीति सकहिं संग्रामा॥


 दशरथ जी के पुत्र राम और लक्ष्मण संग्राम में काल को भी जीत सकते हैं


अस कहि चला महा अभिमानी। तृन समान सुग्रीवहि जानी॥

भिरे उभौ बाली अति तर्जा। मुठिका मारि महाधुनि गर्जा॥1॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हेडगेवार जी का नाम क्यों लिया मौत से कौन नहीं डरा जानने के लिये सुनें

24.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 24 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।

*राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम*॥ 1॥



प्रस्तुत है क्षपाट -रिपु आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 24 अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  452 वां सार -संक्षेप

क्षपाटः =राक्षस


भयद तूफान की आवाज बढ़ती जा रही है ,

बची कुछ रोशनी अंधियार बीच समा रही है ,

क‌ई कमजोर दिल धड़कन समेटे रो रहे हैं ,

विवश मजबूर से वे जिंदगी को ढो रहे हैं ,

मगर हम हैं कि हिम्मत हौसले से आ डटे हैं ,

न किंचित भी डिगे हैं या कि तिल भर भी हटे हैं ,

हमारे पूर्वजों ने यही हमको है सिखाया ,

कि साधन शक्ति का आगार है यह मनुज-काया ,

सदा उत्साहपूर्वक विजय  पथ को नापना है ,

कठिन कितनी डगर है हमें यह भी मापना है ।।

किसी भय से नहीं भयभीत होते हम कभी भी ,

विगत में भी  दबे हैं और न दबते हैं अभी भी ,

हमारे पूर्वजों ने युद्ध भी हंसकर लड़ा है ,

हमारा शौर्य सीना तान कर हरदम अड़ा है ,

कि हम हैं जो समर में भी उतरकर ज्ञान देते

पराजित शत्रु के भी आत्म को  सम्मान देते

कभी हमने किसी को भी  पराया ही न माना

सदा विश्वात्म को निज अनुभवों में आत्म जाना 


(ओम शङ्कर 24-09-2021)


आचार्य जी के इन भावों की हमें उपेक्षा नहीं करनी चाहिये अपितु इन्हें ग्रहण करना चाहिये यही रामत्व है और आज तो दीपावली है  इससे अच्छा अवसर क्या हो सकता है रामत्व को अपने जीवन में धारण करने का


जो पौरुष पराक्रम का विशाल भण्डार होते हैं वे दुःख को ढोते नहीं हैं अपितु दुःखानुभूति करके समय पर शक्ति बुद्धि पराक्रम प्रकट करते हैं यही रामत्व है


संसार के संबन्धों को वास्तव में पूर्णरूपेण सुस्पष्ट रूप से परिभाषित करने वाले किष्किन्धा कांड में आइये प्रवेश करते हैं


सुनु सुग्रीव मारिहउँ बालिहि एकहिं बान।

ब्रह्म रुद्र सरनागत गएँ न उबरिहिं प्रान॥6॥


जे न मित्र दु:ख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥

निज दु:ख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दु:ख रज मेरु समाना॥1॥


जिन्ह कें असि मति सहज न आई। ते सठ कत हठि करत मिताई॥

कुपथ निवारि सुपंथ चलावा। गुन प्रगटै अवगुनन्हि दुरावा॥2॥


सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी॥

सखा सोच त्यागहु बल मोरें। सब बिधि घटब काज मैं तोरें॥5॥



कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। बालि महाबल अति रनधीरा॥

दुंदुभि अस्थि ताल देखराए। बिनु प्रयास रघुनाथ ढहाए॥6॥


देखि अमित बल बाढ़ी प्रीती। बालि बधब इन्ह भइ परतीती॥

बार-बार नावइ पद सीसा। प्रभुहि जानि मन हरष कपीसा॥7॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भर्तृहरि रामकृष्ण परमहंस मैथिलीशरण गुप्त सुदामा का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

23.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 23 अक्टूबर 2022 (नरक चौदस ) का सदाचार संप्रेषण

 सुनु सुग्रीव मारिहउँ बालिहि एकहिं बान।

ब्रह्म रुद्र सरनागत गएँ न उबरिहिं प्रान॥6॥


हमें इसी रामत्व को धारण करने की आवश्यकता है अत्यन्त आवेशित भगवान् राम कहते हैं

हे सुग्रीव! सुनो, मैं एक ही बाण से बाली, जिसमें  रावण के कारण रावणी वृत्ति आ गई थी,  को मार डालूँगा। ब्रह्मा, रुद्र की शरण में जाने पर भी अब उसके प्राण नहीं बच पायेंगे



प्रस्तुत है ग्रन्थिमोचकारि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 23 अक्टूबर 2022 (नरक चौदस )

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  451 वां सार -संक्षेप

ग्रन्थिमोचकः =जेबकतरा


ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।

भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्।। नीतिशतक 


लेना, देना, खाना, खिलाना, रहस्य बताना और सुनना ये सभी  प्रेम के लक्षण हैं

हमें प्रीति के ये लक्षण अपनाने चाहिये यह असली मित्रता है 

भाव,विचार और क्रिया के आधार पर मनुष्य मनुष्यत्व को प्राप्त करता है गहराई में गये हुए भाव सुस्पष्ट विचार और सधी हुई क्रिया के द्वारा मनुष्य का पौरुष जागता है


वह उत्साहित होता है और दैन्य को दूर भगाता है अपनी व्यथाओं का शमन करने के लिये आइये एक बार फिर से किष्किन्धा कांड में प्रवेश करते हैं


एहि बिधि सकल कथा समुझाई। लिए दुऔ जन पीठि चढ़ाई॥

जब सुग्रीवँ राम कहुँ देखा। अतिसय जन्म धन्य करि लेखा॥3॥


सादर मिलेउ नाइ पद माथा। भेंटेउ अनुज सहित रघुनाथा॥

कपि कर मन बिचार एहि रीती। करिहहिं बिधि मो सन ए प्रीती॥4॥


तब हनुमंत उभय दिसि की सब कथा सुनाइ।

पावक साखी देइ करि जोरी प्रीति दृढ़ाइ॥4॥


कीन्हि प्रीति कछु बीच न राखा। लछिमन राम चरित्‌ सब भाखा ॥

कह सुग्रीव नयन भरि बारी। मिलिहि नाथ मिथिलेसकुमारी॥1॥



मंत्रिन्ह सहित इहाँ एक बारा। बैठ रहेउँ मैं करत बिचारा॥

गगन पंथ देखी मैं जाता। परबस परी बहुत बिलपाता॥2॥


नल नील जामवन्त और हनुमान  इन चार मन्त्रियों के साथ सुग्रीव बैठे विचार कर रहे थे कि बाली से राज्य कैसे प्राप्त करें बाली का क्रोध कैसे शान्त करें तब ही विलाप करती सीता जी आकाशमार्ग में सुग्रीव को दिखी थीं 


राम राम हा राम पुकारी। हमहि देखि दीन्हेउ पट डारी॥

मागा राम तुरत तेहिं दीन्हा। पट उर लाइ सोच अति कीन्हा॥3॥


कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। तजहु सोच मन आनहु धीरा॥

सब प्रकार करिहउँ सेवकाई। जेहि बिधि मिलिहि जानकी आई॥4॥


सखा बचन सुनि हरषे कृपासिंधु बलसींव।

कारन कवन बसहु बन मोहि कहहु सुग्रीव॥5॥


मैं बिछुए पहचान लेता यह किसने कहा आदि जानने के लिये सुनें

22.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 22 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सश्रीक आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 22 अक्टूबर 2022

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  450 वां सार -संक्षेप

सश्रीक =समृद्धिशाली



जिस तरह अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण प्रारम्भ से लेकर अंत तक साथ रहे उसी तरह भगवान राम और हनुमान जी साथ रहे लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न भगवान राम के साथ अन्त में नहीं थे लेकिन श्री राम को विदा करते समय भी हनुमान साथ थे 

भगवान् राम ने हनुमान जी से कहा तुम इस भारतभूमि पर रहो तुमको इसकी रक्षा करनी है इसके भक्त जब भाव में आयेंगे तुम्हारी भक्ति करेंगे तो उनमें शक्ति उत्पन्न होगी और यह बुझती ज्योति फिर से जलेगी



मानस में व्यवहार और सिद्धान्त दोनों हैं भगवान् राम अवतरित होकर आये तो उनकी सहायता के लिये शक्तिशाली वानरवंश भालूवंश आदि देवता रूप में अवतरित होकर आये

भारतवर्ष परमात्मा राम की लीलाभूमि है

भगवान् राम ने  संपूर्ण विश्व की राजधानी   भारतवर्ष में फैली इन्हीं असंगठित शक्तियों को संगठित करने का काम किया यही बात आचार्य जी भी कहते हैं कि हम लोग भी अपनी युगभारती, जिसके सदस्यों को पढ़ते समय हनुमान जी  द्वारा बल भक्ति विश्वास मिला, की विचारधारा वाले राष्ट्रभक्त संगठनों से संपर्क कर एक जुट हों क्योंकि परिस्थितियां इस समय बहुत विषम हैं

भोगाश्रित कामाश्रित संसाराश्रित न होकर वैश्विक मानसिकता वाले हम हिन्दुओं को रामाश्रित होने की आवश्यकता है


स्थानभ्रष्टा न शोभन्ते दन्ताः केशा नखा नराः ।

इति संचिन्त्य मतिमान्न स्वस्थानं न परित्यजेत् ll


नर के लिये स्थानभ्रष्ट होना अच्छा नहीं रामाश्रित होने के लिये द्वारपाल हनुमान जी की आज्ञा लेकर अन्दर प्रवेश करना  होगा

राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥


रामचरित मानस अद्भुत ग्रंथ है और इसके रचयिता

कथावाचक तुलसीदास का जीवन जन्म से ही बहुत कष्टों में बीता भक्तमाल के अनुसार मां पार्वती उन्हें दूध पिलाती थी

नैष्ठिक ब्रह्मचारी नरहरिदास ने उन्हें शेष सनातन की पाठशाला में प्रवेश कराया

आचार्य जी ने यह भी बताया कि उन्होंने *रामाज्ञा प्रश्न* कैसे लिखा जिसमें सात सर्ग हैं प्रत्येक सर्ग में सात सप्तक हैं प्रत्येक सप्तक में सात दोहे हैं 


किष्किन्धा कांड में हनुमान जी कहते हैं


एकु मैं मंद मोहबस कुटिल हृदय अग्यान।

पुनि प्रभु मोहि बिसारेउ दीनबंधु भगवान॥2॥


जदपि नाथ बहु अवगुन मोरें। सेवक प्रभुहि परै जनि भोरें॥

नाथ जीव तव मायाँ मोहा। सो निस्तरइ तुम्हारेहिं छोहा॥1॥



अस कहि परेउ चरन अकुलाई। निज तनु प्रगटि प्रीति उर छाई॥




तब रघुपति उठाई उर लावा। निज लोचन जल सींचि जुड़ावा॥3॥


सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत।

मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत॥3॥


देखि पवनसुत पति अनुकूला। हृदयँ हरष बीती सब सूला॥

नाथ सैल पर कपिपति रहई। सो सुग्रीव दास तव अहई॥1॥


तेहि सन नाथ मयत्री कीजे। दीन जानि तेहि अभय करीजे॥

सो सीता कर खोज कराइहि। जहँ तहँ मरकट कोटि पठाइहि॥2॥


एहि बिधि सकल कथा समुझाई। लिए दुऔ जन पीठि चढ़ाई॥

जब सुग्रीवँ राम कहुँ देखा। अतिसय जन्म धन्य करि लेखा॥3॥


आचार्य जी ने कौन सा बोझ उतारने के लिये कहा

जानने के लिये सुनें

21.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 21 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:।


स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।


सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् ।


नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥


कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूंढै बन माहि। ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखत नाहीं।


प्रस्तुत है शोचिस् -पथ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 21 अक्टूबर 2022

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  449 वां सार -संक्षेप

शोचिस् =प्रकाश


एक निश्चित समय पर इस सदाचार वेला का यदि हम श्रवण करते हैं तो यह अधिक लाभकारी होगा  हमारे कल्याणकामी आचार्य जी हमारे अन्दर शक्ति बुद्धि विचार  चैतन्य उत्साह संकल्पशीलता देशभक्ति आदि भरने के लिये तत्पर रहते हैं


आजकल अपनेपन के अद्भुत भाव का अभाव हो गया है ढोंग ढपाल तो बहुत दिखता है अपने पर विश्वास करना हमें सीखना है और अपनों को भी उत्साहित करें कि वो स्वयं पर विश्वास करें


प्रेम -विवाह से द्वेष -विच्छेद एक ऐसा उदाहरण है जो इंगित करता है कि वहां अपने पर विश्वास का अभाव था

राम कथा इस संकट के निवारण की अद्भुत संजीविनी बूटी है


रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी॥

रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी॥


संशय तो गायब हो ही जायेंगे बस रामकथा में डूब जाने भर की देर है

आइये पुनः प्रवेश करते हैं किष्किंधा कांड में जिसमें अब हम हनुमानाश्रित होकर हनुमान जी के जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं हनुमान जी सशरीर आज भी इस कलयुग में विद्यमान है पूजापाठ से दूर रहने वाले परिपूर्णानन्द जी वर्मा ने   गीताप्रेस के हनुमान अंक में इसी से संबन्धित एक लेख लिखा है 


अस कहि परेउ चरन अकुलाई। निज तनु प्रगटि प्रीति उर छाई॥

तब रघुपति उठाई उर लावा। निज लोचन जल सींचि जुड़ावा॥3॥


ऐसा कहकर पवनपुत्र

 प्रभु के पैरों पर गिर पड़े, उन्होंने अपना वास्तविक शरीर प्रकट कर दिया।  तब श्री राम जी ने उन्हें उठाकर हृदय से लगा लिया और अश्रुओं से सींचकर शीतल किया अश्रुपात बहुत प्रभावशाली होता है 



समाजसुधारक रामानंद जो कबीर के गुरु थे उनसे संबन्धित एक बहुत ही मार्मिक प्रसंग आचार्य जी ने सुनाया


सतगुरु हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग। 


बरस्या बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग॥


सुनु कपि जियँ मानसि जनि ऊना। तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना॥

समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्य गति सोऊ॥4॥


सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत।

मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत॥3॥


सेवक स्वामी से संबन्धित अद्भुत पंक्तियां


सेवक कर पद नयन से मुख सो साहिबु होइ।

तुलसी प्रीति कि रीति सुनि सुकबि सराहहिं सोइ॥


देखि पवनसुत पति अनुकूला। हृदयँ हरष बीती सब सूला॥

नाथ सैल पर कपिपति रहई। सो सुग्रीव दास तव अहई॥1॥


तेहि सन नाथ मयत्री कीजे। दीन जानि तेहि अभय करीजे॥

सो सीता कर खोज कराइहि। जहँ तहँ मरकट कोटि पठाइहि॥2॥

इसके अतिरिक्त कौन सा बच्चा बिलबिला उठा जानने के लिये सुनें


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20.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 20 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी॥

नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा॥



अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति। सब तजि भजनु करौं दिन राती॥


प्रस्तुत है ज्ञान -शैवलिनी आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 20 अक्टूबर 2022

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  448वां सार -संक्षेप

शैवलिनी =नदी

मनुष्य का मनुष्यत्व ईश्वर का अंश है

सुस्पष्ट दिशा और दृष्टि रखने वाले आचार्य जी द्वारा राम कथा कहने का उद्देश्य यह है कि हमारे अन्दर  भक्ति शक्ति   आत्मविश्वास संसार में निवास करने की योग्यता रामात्मक अनुभूति आ जाये


बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।

प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।

जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥17॥

(सर =शर अर्थात् बाण, चाप =धनुष )

अपने अंदर के कलुषों को दूर करके भाव में समर्पित होकर भारतवर्ष की अस्मिता के रक्षक तुलसीदास की राम कथा में  आइये प्रवेश करते हैं



प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाइ नहिं बरना॥

पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना॥3॥


प्रभु को पहचानकर हनुमान जी उनके पैर पकड़कर   गिर पड़े   यह सुख वर्णन नहीं किया जा सकता। शरीर पुलकित है, मुख से वचन नहीं निकल रहे । हनुमान जी सुंदर वेष की रचना देख रहे हैं


पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही। हरष हृदयँ निज नाथहि चीन्ही॥

मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं॥4॥


हनुमान जी भावमय हो गये


एकु मैं मंद मोहबस कुटिल हृदय अग्यान।

पुनि प्रभु मोहि बिसारेउ दीनबंधु भगवान॥2॥


जदपि नाथ बहु अवगुन मोरें। सेवक प्रभुहि परै जनि भोरें॥

नाथ जीव तव मायाँ मोहा। सो निस्तरइ तुम्हारेहिं छोहा॥1॥


ता पर मैं रघुबीर दोहाई। जानउँ नहिं कछु भजन उपाई॥

सेवक सुत पति मातु भरोसें। रहइ असोच बनइ प्रभु पोसें॥2॥


सेवक उसके भरोसे रहता है जिसकी सेवा करता है सुत मां के भरोसे रहता है



अस कहि परेउ चरन अकुलाई। निज तनु प्रगटि प्रीति उर छाई॥

तब रघुपति उठाई उर लावा। निज लोचन जल सींचि जुड़ावा॥3॥


सहज रूप में आने पर भाव आते हैं बनावट में भाव नहीं आते हैं बनावट दूर हो तभी वास्तविकता प्रकट होती है तभी हम भावयुक्त हो जाते हैं



सुनु कपि जियँ मानसि जनि ऊना। तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना॥

समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्य गति सोऊ॥4॥



आचार्य जी ने एक प्रसंग बताकर बहुत अच्छी बात कही कि बराबरी इस संसार का स्वभाव नहीं है स्वधर्म नहीं है इसमें तो बहुत से उतार चढ़ाव हैं  पर्वत है तो खाई भी है  सुख है तो दुःख भी है कोई आ रहा है तो कोई जा रहा है आदि आदि



सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत।

मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत॥3॥

19.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 19 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शैलिक्यारि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 19 अक्टूबर 2022

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सार -संक्षेप 447 वां 

शैलिक्यः =पाखंडी


राम कथा के माध्यम से घोर संकटकाल में बुझती ज्योति में घी डालने का काम किया तुलसीदास जी ने

उन्होंने सोये हुए हिन्दू समाज को उत्साहित शक्तिसंपन्न कर दिया उसे पता चल गया कि उसमें कितनी हिम्मत है


 और

ज्योति फिर से भभक उठी


मूर्खों लंपटों को तर्क की भाषा समझ में नहीं आती है वे शक्ति के प्रकटीकरण से भयभीत होते हैं


आचार्य जी का भी यही उद्देश्य है कि हम अपनी शक्ति पहचानें हथियार औजार रखें और कह सकें


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥

जैसे राम ने कहा था

आचार्य जी ने बताया कि 

माया लिप्त होने पर ज्ञान लुप्त हो जाता है माया को सत्य मानकर मनुष्य भ्रमित होकर घूमता रहता है व्याकुल रहता है व्यथित रहता है 


आइये प्रवेश करते हैं किष्किंधा कांड में

भगवान् शिव कथा कह रहे हैं 

सुग्रीव बहुत उद्विग्न हैं( इनकी उद्विग्नता का वाल्मीकि रामायण में बहुत सुन्दर वर्णन है)


अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना॥

धरि बटु रूप देखु तैं जाई। कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई॥2॥


पठए बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला॥

बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ॥3॥


इसकी व्याख्या में आचार्य जी ने बताया कि विप्रत्व विनम्र भी होता है


को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा ॥

कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी॥4॥


मृदुल मनोहर सुंदर गाता। सहत दुसह बन आतप बाता ॥

की तुम्ह तीनि देव महँ कोऊ। नर नारायन की तुम्ह दोऊ॥5॥


जग कारन तारन भव भंजन धरनी भार।

की तुम्ह अखिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार॥1॥


इहाँ हरी निसिचर बैदेही। बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही॥

आपन चरित कहा हम गाई। कहहु बिप्र निज कथा बुझाई॥2॥


प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना।

*हनुमान जी की खोज समाप्त हुई उन्हें उनके प्रभु मिल गये*

*बहुत ही भावुक क्षण*...



 सो सुख उमा जाइ नहिं बरना॥



पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना॥3॥

18.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 18 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक पर्बत निअराया॥

तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा॥1॥


प्रस्तुत है शोभन आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 18 अक्टूबर 2022

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  446 वां सार -संक्षेप

शोभन =सदाचारी


प्रायः संसार में यही होता है कि श्रद्धा स्वार्थ से संयुत रहती है और इस कारण व्यक्ति व्याकुल रहता है

संसार जितना ज्यादा प्रविष्ट होगा त्रुटियां भय भ्रम उतने ही ज्यादा होंगे लेकिन सुधारों की भी गुंजाइश भी तब तक रहती है जब तक संसार हमारे साथ है संसार अच्छा बुरा दोनों है संसार है तो मनुष्य एक से बढ़कर  एक अच्छे काम कर लेता है केवल अध्यात्म हो तो संभव नहीं

परमात्मा भी संसारी विकारी होने पर सृष्टि की रचना करता है इसलिये संसारी होने पर हमें व्याकुल नहीं होना चाहिये 


अपने अन्दर की आंतरिक शक्ति जिसे ऊर्जा कहते हैं से व्यक्ति आनन्दित रहता है आंतरिक शक्ति के प्रकार भिन्न भिन्न हैं वह अनुसंधान में लगती है चिन्तन में,कृति में लगती है भाव विचार क्रिया का सामञ्जस्य लेकर चलती है 



हमें सांसारिक सुविधाएं प्राप्त हों हमें सांसारिक संतुष्टि मिले यही गुरुत्व है यही ईश्वरत्व है



आइये चलते हैं किष्किन्धा कांड में



किष्किन्धा वर्तमान में  तुंगभद्रा नदी के किनारे वाले कर्नाटक के हम्पी शहर के आस-पास के क्षेत्र में माना गया है। बहुत पहले विन्ध्याचल पर्वत माला से लेकर पूरे भारतीय प्रायद्वीप में एक घना वन फैला हुआ था जिसका नाम था दण्डक वन। उसी वन में यह राज्य था।

आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक पर्बत निअराया॥

तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा॥1॥

शिव जी के स्वरूप, हनुमान जी सूर्यपुत्र सुग्रीव के सचिव हैं  

 ऋष्यमूक पर्वत  तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है।



अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना॥

धरि बटु रूप देखु तैं जाई। कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई॥2॥

बटु अर्थात् ब्राह्मण ब्रह्मचारी,अर्थात् जिस पर कोई भी अविश्वास नहीं कर सकता, का रूप धारण कर पता करें


पठए बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला॥

बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ॥3॥


हनुमान जी की विशेषता यही है कि जिस रूप को धारण करते हैं वही भाव उनके अन्दर प्रवेश कर जाता है इसी कारण जीवन में वे कभी असफल निराश भयभीत न हुए

हनुमान जाग्रत देवता हैं परम पूज्य हैं

आचार्य जी ने भैया राव अभिषेक भैया पङ्कज समर्थ गुरुरामदास मालवीय जी का नाम क्यों लिया 

पीपल पर जल चढ़ाने से संबन्धित क्या बात थी

आचार्य जी आज उन्नाव से संबोधन क्यों कर रहे थे आदि जानने के लिये सुनें

17.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 17 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सेइअ सहित सनेह देह भरि, कामधेनु कलि कासी ।


समनि सोक - संताप - पाप - रुज, सकल - सुमंगल - रासी ॥१॥

....

कहत पुरान रची केसव निज कर - करतूति कला - सी ।


तुलसी बसि हरपुरी राम जपु, जो भयो चहै सुपासी ॥९॥


काशी स्तुति (विनय पत्रिका )




प्रस्तुत है समन्त आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 17 अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  445 वां सार -संक्षेप

समन्त =विश्वव्यापी


भक्ति ही मुक्ति का आधार है यह विचार और विश्वास यदि कुछ क्षणों के लिये भी हमारे मन में आ जाता है तो हमारे जीवन में परिवर्तन स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होने लगता है


यह सृष्टि इच्छा का परिणाम है। मन इच्छाओं का उद्गम स्थल है। ब्रह्म के मन की इच्छा 'एकोऽहं बहुस्याम्' से ही इस जगत् का निर्माण हुआ है।


भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।


अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।7.4।।


स्थूल से सूक्ष्म तक की हमारी यात्रा बहुत अद्भुत है


 सांसारिक प्रपंचों में,पढ़ाई नौकरी धन भोग रोग   में उलझते हुए हम लोग जीवन व्यतीत करते रहते हैं इस उलझन से बचने के लिये हमें भक्ति का आश्रय लेना चाहिये 

व्यक्ति का व्यक्ति से सम्बन्ध यदि भावात्मक रूप से संयुत है तो सशरीर न होने पर भी वह व्यक्ति सदा साथ रहता है जिस प्रकार भगवान राम हमारे साथ भावात्मक रूप से संयुत हैं

बालकांड अयोध्या कांड अरण्यकांड में पहले शिव की वन्दना है क्योंकि तुलसी शिवभक्त हैं और अरण्यकांड तक तुलसी कथा कह रहे हैं लेकिन किष्किन्धा कांड में पहले भगवान् राम की वन्दना है राम से भी पहले लक्ष्मण लेकिन राम और लक्ष्मण तो एक हैं इसलिये यह राम की वन्दना ही कही जायेगी यहां से शिव कथा कह रहे हैं 


कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ

शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।

मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौ हितौ

सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः ॥1॥


ब्रह्माम्भोधिसमुद्भवं कलिमलप्रध्वंसनं चाव्ययं

श्रीमच्छम्भुमुखेन्दुसुन्दरवरे संशोभितं सर्वदा।

संसारामयभेषजं सुखकरं श्रीजानकीजीवनं

धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम्‌॥2॥


मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खान अघ हानि कर।

जहँ बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न ॥


जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।

तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस॥


आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक पर्बत निअराया॥

तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा॥1॥

अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना॥

धरि बटु रूप देखु तैं जाई। कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई॥2॥


पठए बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला॥

बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ॥3॥


शक्ति अर्जित कर बाली जैसा दंभी होना खतरनाक है यह रावणत्व तो अब सब ओर प्रसरित हो गया है इसलिये हमें अपने रामत्व को जगाना ही होगा


इसके अतिरिक्त 

काशी जाने की योजना बनाने का आचार्य जी ने परामर्श दिया


आचार्य जी काशी कब गये थे भैया नीरज जी अरविन्द जी मनीष जी पङ्कज जी प्रदीप जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया आदि जानने के लिये सुनें

16.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 16 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अध्यात्म -वप्रि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 16 अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  444 वां सार -संक्षेप

वप्रिः =समुद्र



तुलसीदास अद्भुत द्रष्टा कवि चिन्तक विचारक मनीषी संस्कृत के विद्वान थे

वे संपूर्ण राष्ट्र के आध्यात्मिक गुरु थे 

अकबर जैसे दुष्ट कपटी छली पाखंडी आक्रांता से जूझते  और बिखरे समाज जिसमें

शैव और वैष्णव के आपसी झगड़े आम  थे 

को एक सूत्र में बांधने के लिए उन्होंने राम को माध्यम बनाया।

शिव की वन्दना अत्यधिक मनोयोग से की ताकि शैव वैष्णव एक सूत्र में बंधें 

मानस आत्मोन्नति का एक अद्वितीय उपाय है नैराश्य को दूर करने का उपाय है समस्याओं का इसमें हल मिलता है 

मानसिक साधनों के प्राचुर्य से तुलसी कहीं अटके भटके नहीं


झंझाओं में झूमते हम लोगों के लिये मजबूत टहनी के समान है यह मानस


बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ॥

पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरें॥1॥

हरि हर जस राकेस राहु से। पर अकाज भट सहसबाहु से॥

जे पर दोष लखहिं सहसाखी। पर हित घृत जिन्ह के मन माखी॥2॥


कहकर उन्होंने,दूसरों के हित की हानि ही जिनकी दृष्टि में लाभ है,ऐसे लोगों की भी वन्दना कर दी


जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृपु अवसि नरक अधिकारी।।

रहहु तात असि नीति बिचारी। सुनत लखनु भए ब्याकुल भारी।।


बहुत गम्भीर समय में इतना प्रभावशाली ग्रन्थ तुलसी ने लिख दिया कि कुटिया से महल तक आदर करने योग्य हो गया

इसमें हम मनोयोग से प्रवेश करें



प्रत्येक सोपान का आरम्भ संस्कृत की एक सुन्दर रचना से है जिस छन्द की आवश्यकता है वही छन्द प्र्सतुत है 

किष्किन्धा कांड में कथा व्यथा पराक्रम सहयोग संगति है यह कांड सुन्दर कांड की भूमिका है


यहां भगवान राम के नाम रूप गुण लीला धाम को दिखा दिया गया


कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ

शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।

मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौ हितौ

सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः ॥1॥



ब्रह्माम्भोधिसमुद्भवं कलिमलप्रध्वंसनं चाव्ययं

श्रीमच्छम्भुमुखेन्दुसुन्दरवरे संशोभितं सर्वदा।

संसारामयभेषजं सुखकरं श्रीजानकीजीवनं

धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम्‌॥2॥


जीवन कर्मों का पुंजिभूत स्वरूप है


कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥


श्री राम चलते फिरते शक्ति भक्ति संयम साधना शौर्य का उपदेश दे रहे हैं एक जगह बैठकर नहीं


स्वयं उस कार्य में रत होकर उसकी प्रेरणा दे रहे हैं

15.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 15 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा॥

मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥1॥



प्रस्तुत है ज्ञान-उदवसित आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 15 अक्टूबर 2022

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सार -संक्षेप 2/78

उदवसितम् =घर



इस सदाचार वेला का श्रवण करते समय अपने मन को केन्द्रीभूत करके हम इसका लाभ लें हम अध्यात्मोन्मुख तो हैं लेकिन अध्यात्म में हमारा प्रवेश नहीं है

अध्यात्म में प्रवेश और फिर उसका आनन्द लेने की अवस्था, है तो दुर्लभ, लेकिन असंभव नहीं

आचार्य जी की कल्पनाएं हमारा यथार्थ बनें

हमारे सांसारिक प्रपंचों के बोझ को आचार्य जी उतारना चाहते हैं 

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम लोगों के अन्दर रामत्व का प्रवेश हो जिस प्रकार शिक्षक के रूप में विश्वामित्र और वशिष्ठ ने राम लक्ष्मण भरत जैसे शिक्षार्थी तैयार किये थे उसी प्रकार हम लोगों को राम लक्ष्मण भरत आदि का स्वरूप धारण करना होगा क्योंकि


..ऋषियों की अंतड़ियों से रावण लहू निचोड़ रहा है...

तो रामत्व धारण करना होगा 

निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥



और फिर हम अपने को विश्वामित्र आदि की तरह शिक्षक मानकर भावी पीढ़ी को राम आदि का स्वरूप धारण कराएं


यह सिलसिला भारतभूमि के भाव के विस्तार का एक विशालकाय उपक्रम है


आचार्य जी ने विनयपत्रिका की अत्यधिक रोचक विधि व्यवस्था बताई


राम चरित मानस तो अद्वितीय है



तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा।। 

भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई।।

जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें।। 

निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी।।



अपना संदेह दूर करके हम दूसरे के संदेह दूर कर सकते हैं राम जी के प्रति विश्वामित्र के मन में संदेह नहीं था ना ही राम जी के मन में उनके प्रति संदेह था परिस्थितियां कितनी विषम थीं इसका अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रावण ऋषियों का रक्त -कोश बना रहा था

आज भी अनन्त रूपों में रावण हमारे सामने विद्यमान है इसलिये इन्हें समाप्त करना ही होगा 


बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि।। 

रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी।।

रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई।।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किष्किन्धा कांड के विषय में आज क्या बताया जानने के लिये सुनें

14.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 14अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।

किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥ 30(ख)॥


प्रस्तुत है यशस्य आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 14अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/77

यशस्य = प्रसिद्ध


रम् धातु में घञ् प्रत्यय संयुत करने से रामः भाववाचक शब्द बनता है

रमन्ते योगिनः इति रामः

अर्थात् जो योगियों में रमते हैं वो राम हैं


राम तो उन सबमें रमते हैं जिनमें मनुष्यत्व है

मनुष्यत्व का अनुभव करने वाले मनुष्य को मिले भाव भाषा विचार परमात्मा के अद्भुत वरदान हैं

मनुष्यत्व की अनुभूति जितनी देर हो जाये जितने स्तर की हो उतना ही अवर्णनीय आनन्द उसे प्राप्त होगा

यह हमारा सौभाग्य है कि हमारा जन्म भारतवर्ष में हुआ है अखण्डानन्द जी(डा शान्तनु बिहारी द्विवेदी )के अनुसार भारत  विश्व की राजधानी है

जिन मनीषियों तपस्वियों ने भारत में जन्म लिया उनकी तपस्या के परिणामस्वरूप परमात्मा यहां स्वयं अवतरित होता है

उसने राम और कृष्ण के रूप में  लीलाएं करके राम को /कृष्ण को हमारा  आदर्श बना दिया

हमारा सौभाग्य है कि ऐसे आदर्श राम की कथा का  आचार्य जी अद्भुत वर्णन करते हैं


प्रभु तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान।

तुलसी कहूँ न राम से साहिब सील निधान॥ 29(क)॥


एहि बिधि निज गुन दोष कहि सबहि बहुरि सिरु नाइ।

बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ॥ 29(ग)॥

जागबलिक जो कथा सुहाई। भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई॥

कहिहउँ सोइ संबाद बखानी। सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी॥

पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत।

समुझी नहिं तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत॥ 30(क)॥


तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥

भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥


बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि॥

रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी॥


आनन्द के लिये भक्ति का प्रवेश हमारे अन्दर होना चाहिये



जिनके विमल विचार होंगे वो इस कथा से आनन्दित होंगे 


हम लोग काक कुक्कुट जीवनशैली त्यागकर आनन्द में रहने वाले मयूर और हंस का जीवन अपनाएं

रामकथा में मर्यादा भाव विचार जीवनशैली जीवन जीने के तरीके शक्ति शौर्य प्रेम आत्मीयता उचित समय पर उचित विधि से प्रयोग हुए हैं


हमें लगेगा कि रामकथा हमारी अपनी कथा है


रामत्व की अनुभूति करने पर विचार करें


इसके लिये ध्यान प्राणायाम सद्संगति स्वाध्याय आदि आवश्यक है


इसके अतिरिक्त गुरुत्व क्या है 

विद्यालय में रामकथा कहना आचार्य जी ने किस कारण से शुरु किया जानने के लिये सुनें

13.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 13 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जे श्रद्धा संबल रहित नहिं संतन्ह कर साथ।

तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ॥ 38॥


संत हृदय नवनीत समाना। कहा कबिन्ह परि कहै न जाना॥

निज परिताप द्रवइ नवनीता। पर दुख द्रवहिं संत सुपुनीता॥4॥


संतन्ह के लच्छन रघुबीरा। कहहु नाथ भव भंजन भीरा॥

सुनु मुनि संतन्ह के गुन कहऊँ। जिन्ह ते मैं उन्ह कें बस रहऊँ॥3॥




प्रस्तुत है ज्ञान -समीच आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 13 अक्टूबर 2022

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सार -संक्षेप 2/76

समीचः =समुद्र

बालकांड और अरण्यकांड की उपर्युक्त पंक्तियों का बहुत विस्तार हो सकता है जैसा मानसपीयूष में कुछ विस्तार है 

आचार्य जी गुरु के रूप में हमें सन्मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करते हैं 

आचार्य जी को गुरुता इस कारण मिली है कि उनका अंधकार विदीर्ण हो गया है और उन्हें सुस्पष्ट दिखाई देता है और इसीलिये वे इन सदाचार वेलाओं में ऐसे विषय उठाते हैं जिनके माध्यम से हम इस संसार में रहते हुए संसार की समस्याओं को केवल नाटक के दृश्य समझें

हम अपनी इच्छानुसार आनन्द का क्षेत्र  ढूंढे  वह संगीत गायन वादन कीर्तन लेखन आदि कोई भी क्षेत्र हो सकता है

यह संसार अकेले चलने का पथ नहीं है हम समूह में चलते हैं तो ही आनन्द में रहते हैं अकेले यात्रा बोझ हो जाती है

संसार को समझना है तो इस स्वरूप का आनन्द हमें लेना ही होगा 

संसार की समस्याओं से हम बच नहीं सकते और इनसे जूझने के लिये हमें आत्मशक्ति चाहिये

और आत्मशक्ति के लिये आवश्यक है कि शरीर के अन्दर अवस्थित आत्मा और परमात्मा का स्वरूप आनन्दित हो

मेरे अन्दर कितना शिवत्व है इसकी अनुभूति करें

अर्जुन के प्रश्न





प्रकृतिं पुरुषं चैव क्षेत्रं क्षेत्रज्ञमेव च।


एतद्वेदितुमिच्छामि ज्ञानं ज्ञेयं च केशव।।13.1।।


 हे केशव ! मैं, प्रकृति, पुरुष, क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ, ज्ञान और ज्ञेय को जानना चाहता हूँ।।

पर भगवान् कहते हैं




इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते।


एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः।।13.2।।



 हे कौन्तेय ! यह शरीर क्षेत्र  है और इसको जो जानता है, उसे क्षेत्रज्ञ कहते हैं।।

स्वाध्याय भक्ति अध्ययन सद्संगति संयम नियम शौर्यप्रमंडित अध्यात्म आदि हमें जानना ही होगा


अरण्य कांड में


रावनारि जसु पावन गावहिं सुनहिं जे लोग।

राम भगति दृढ़ पावहिं बिनु बिराग जप जोग॥46 क॥




दीप सिखा सम जुबति तन मन जनि होसि पतंग।

भजहि राम तजि काम मद करहि सदा सतसंग॥46 ख॥


का उल्लेख करते हुए आज आचार्य जी ने अरण्यकांड का समापन किया

इसके अतिरिक्त  आदरणीय बालेश्वर जी भैया पंकज जी का नाम क्यों लिया तवे पर कौन बैठ गया आदि जानने के लिये सुनें

12.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 12 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 मैंमंता मन मारि रे, नान्हाँ करि करि पीसि।

तब सुख पावै सुंदरी, ब्रह्म झलकै सीसि॥



प्रस्तुत है कितवारि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 12 अक्टूबर 2022

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सार -संक्षेप 2/75

कितवः =धूर्त



संतन्ह के लच्छन रघुबीरा। कहहु नाथ भव भंजन भीरा॥

सुनु मुनि संतन्ह के गुन कहऊँ। जिन्ह ते मैं उन्ह कें बस रहऊँ॥3॥


षट बिकार जित अनघ अकामा। अचल अकिंचन सुचि सुखधामा॥

अमित बोध अनीह मितभोगी। सत्यसार कबि कोबिद जोगी॥4॥


अरण्यकांड की इन चौपाइयों का उल्लेख करते हुए आचार्य जी कहते हैं


संत वह नहीं है जो जपमाला करने में व्यस्त है और  त्राहि त्राहि कर रहे लोगों की आवाज उसे सुनाई न दे

अपितु


संत हृदय नवनीत समाना। कहा कबिन्ह परि कहै न जाना॥

निज परिताप द्रवइ नवनीता। पर दुख द्रवहिं संत सुपुनीता॥4॥


संत  हृदय मक्खन के समान होता है, ऐसा कवियों ने कहा है,  मक्खन  ताप को प्राप्त करने से पिघलता है और अत्यन्त पवित्र संत दूसरों के दुःख से पिघल जाते हैं


संत असंत में अन्तर है



जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृपु अवसि नरक अधिकारी।।

रहहु तात असि नीति बिचारी। सुनत लखनु भए ब्याकुल भारी।।



निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥



राम सही अर्थों में संत है जिन्होंने अनेक दुष्टों का संहार करके संतों की रक्षा की जन्म से लेकर अवसान तक कभी हार नहीं मानी किसी के साथ अन्याय नहीं किया राम ने अपने अन्दर के भाव को नहीं त्यागा सब लोगों ने भगवान् राम पर विश्वास किया 



संत वह है जो सतर्क बुद्धि के साथ समय पर उचित निर्णय लेने की क्षमता रखता हो आवश्यकता होने पर संत खड्ग उठा सकता है


भोग का लोभ और मुक्ति का लोभ दोनों ही हानिकारक हैं



विवेकानन्द की तरह नौजवानों को भावी पीढ़ी को जाग्रत करना सही गलत में अन्तर बताना सनातन धर्म, राष्ट्र के प्रति आस्थावान बनाना उनके  पराक्रम शौर्य को जाग्रत करना हम अपना उद्देश्य बनायें इसे PERSONALITY DEVELOPMENT कह सकते हैं


चारित्र्यसंपन्न हिन्दुओं का संगठन खड़ा करने का विचार हेडगेवार के मन में आया था



जप तप ब्रत दम संजम नेमा। गुरु गोबिंद बिप्र पद प्रेमा॥

श्रद्धा छमा मयत्री दाया। मुदिता मम पद प्रीति अमाया॥2॥


बिरति बिबेक बिनय बिग्याना। बोध जथारथ बेद पुराना॥

दंभ मान मद करहिं न काऊ। भूलि न देहिं कुमारग पाऊ॥3॥


गावहिं सुनहिं सदा मम लीला। हेतु रहित परहित रत सीला॥

मुनि सुनु साधुन्ह के गुन जेते। कहि न सकहिं सादर श्रुति तेते॥4॥



कहि सक न सारद सेष नारद सुनत पद पंकज गहे।

अस दीनबंधु कृपाल अपने भगत गुन निज मुख कहे॥

सिरु नाइ बारहिं बार चरनन्हि ब्रह्मपुर नारद गए।

ते धन्य तुलसीदास आस बिहाइ जे हरि रँग रँए॥


तुलसीदासजी कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं, जो  केवल श्री हरि के रंग में रंग गये हैं

11.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 11 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 अवगुन सिंधु मंदमति कामी। बेद बिदूषक परधन स्वामी॥

बिप्र द्रोह पर द्रोह बिसेषा। दंभ कपट जियँ धरें सुबेषा॥4॥




प्रस्तुत है यष्टिप्राण -रक्षक आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 11 अक्टूबर 2022

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सार -संक्षेप 2/74

यष्टिप्राण =निर्बल


यह दुनिया एक रंगमंच है परमात्मा इसका निर्माता निर्देशक लेखक है हम उस ईश्वरीय व्यवस्था के एक पात्र हैं वही हमें पुरस्कार भी देता है और दंडित भी करता है


हमें अपनी भूमिका को सही ढंग से निभाना चाहिये


हम लोग प्रायः नारदीय भूमिका में रहते हैं नारद एक विचित्र पात्र हैं नारद भक्त जिज्ञासु ज्ञानी लोभी कामी ईर्ष्यालु हैं नारद में गुण बहुत हैं लेकिन अवगुण भी कम नहीं


वातावरण बहुत भ्रामक स्थिति में है इसलिये सदाचार के मूल में हमें रहने की आवश्यकता है जो हमें सदाचार की ओर प्रेरित करता है हमें अपने खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिये राष्ट्र के प्रति निष्ठावान होना चाहिये


इन सदाचार वेलाओं के प्रति हमारा आकर्षण इस बात का तो द्योतक है ही कि परमात्मा से कोई न कोई तो संबन्ध हमारा है इसे झुठलाया नहीं जा सकता जब हमारे सामने समस्याएं आती हैं तो स्वभाव के अनुसार हम उनसे जूझने की कोशिश करते हैं और जब   उपाय नहीं मिलता तो परमात्मा याद आता है


ज्ञान के पटल खोलते समय हमें दम्भ न रहे लेकिन भक्ति विश्वास बना रहे इसका प्रयास हमें अवश्य करना चाहिये


हमें इस बात पर चिन्तन मनन करना चाहिये कि स्त्री, धन, पुत्र, व्यापार आदि के प्रति लगाव मेरे कारण है या उस व्यक्ति वस्तु के कारण है



वृहदारण्यकोपनिषद् में याज्ञवल्क्य और उनकी एक पत्नी मैत्रेयी का अत्यधिक रोचक संवाद का उल्लेख  है। मैत्रेयी  ने याज्ञवल्क्य से  यह ज्ञान ग्रहण किया कि हमें किसी भी तरह का संबंध  प्रिय इस कारण होता है क्योंकि उससे कहीं न कहीं हमारा स्वार्थ संयुत होता है।  आत्मज्ञान के लिए ध्यान,समर्पण और एकाग्रता आवश्यक है। याज्ञवल्क्य ने  समझाया कि जिस तरह नगाड़े की ध्वनि के सामने हमें कोई दूसरी ध्वनि सुनाई नहीं देती उसी तरह  आत्मज्ञान के लिए सभी इच्छाओं का त्याग आवश्यक है।

अरण्यकांड में



अवगुन मूल सूलप्रद प्रमदा सब दु:ख खानि।

ताते कीन्ह निवारन मुनि मैं यह जियँ जानि॥44॥




सुनि रघुपति के बचन सुहाए। मुनि तन पुलक नयन भरि आए॥

कहहु कवन प्रभु कै असि रीती। सेवक पर ममता अरु प्रीती॥1॥


संतन्ह के लच्छन रघुबीरा। कहहु नाथ भव भंजन भीरा॥

सुनु मुनि संतन्ह के गुन कहऊँ। जिन्ह ते मैं उन्ह कें बस रहऊँ॥3॥


षट बिकार जित अनघ अकामा। अचल अकिंचन सुचि सुखधामा॥

अमित बोध अनीह मितभोगी। सत्यसार कबि कोबिद जोगी॥4॥


का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया षड्विकार हमारे अन्दर अवस्थित हैं उसी के बाद हमारी रचना हुई है

ज्ञान प्राप्ति के बाद भक्ति बनी रहनी चाहिये इसका प्रयास करें क्योंकि भक्ति ही शक्ति है

10.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 10 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है शुक्षि -स्तम्भ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 10 अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/73

शुक्षि =प्रकाश 


कई बार विषम परिस्थितियों में इन सदाचार संप्रेषणों का प्रसारण होता है यह परमात्मा की कृपा है 


राम चरित मानस अद्भुत ग्रंथ है जो ज्ञान चिन्तन मनन ध्यान और अन्य भावों को एक साथ रख देता है


आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि इसे अवश्य पढ़ें

इससे हमारे विचार परिष्कृत होंगे शान्ति मिलेगी संसार का भी ज्ञान होगा और संसारेतर तो होगा ही




एक ही व्यक्ति अर्थात् तुलसीदास में इतने सारे गुण आश्चर्य का विषय है



अब हम अरण्य कांड के समापन की ओर उन्मुख हैं


भाव जब किसी मुख्य सूत्र से समर्पित हो जाता है तो उसका सीधा सम्बन्ध हो जाता है यहीं भाव की प्रबलता परिलक्षित होती है भक्त का भगवान् से तादात्म्य स्थापित हो जाता है


भक्ति और भाव के माध्यम से भीलिनी निषाद भरत आदि का परमात्मा तक सीधा संपर्क सूत्र संयुत है


यह अद्भुत ज्ञान है

ज्ञान और भक्ति एक स्थान पर मिल जाते हैं और

भक्त विश्वासी  भी होते हैं



पंपा सरहि जाहु रघुराई। तहँ होइहि सुग्रीव मिताई॥

सो सब कहिहि देव रघुबीरा। जानतहूँ पूछहु मतिधीरा॥6॥



बार बार प्रभु पद सिरु नाई। प्रेम सहित सब कथा सुनाई॥7॥




कहि कथा सकल बिलोकि हरि मुख हृदय पद पंकज धरे।

तजि जोग पावक देह हरि पद लीन भइ जहँ नहिं फिरे॥

नर बिबिध कर्म अधर्म बहु मत सोकप्रद सब त्यागहू।

बिस्वास करि कह दास तुलसी राम पद अनुरागहू॥


सारा कथाप्रबन्ध कहकर भगवान के  दर्शन कर योगाग्नि से देह  त्याग कर शबरी वहां चली गई, जहाँ से लौटना नहीं होता। तुलसीदास  कहते हैं कि अनेक प्रकार के कर्म,  मत शोकप्रद हैं,

  इनका त्याग कर दो और विश्वासी बनते हुए  रामजी के चरणों में प्रेम करो।


चले राम त्यागा बन सोऊ। अतुलित बल नर केहरि दोऊ॥

बिरही इव प्रभु करत बिषादा। कहत कथा अनेक संबादा॥1॥

लछिमन देखु बिपिन कइ सोभा। देखत केहि कर मन नहिं छोभा॥


यह संसारी भाव है रोना गाना संसार का अद्भुत स्वरूप है



नारि सहित सब खग मृग बृंदा। मानहुँ मोरि करत हहिं निंदा॥2॥


हमहि देखि मृग निकर पराहीं। मृगीं कहहिं तुम्ह कहँ भय नाहीं॥

तुम्ह आनंद करहु मृग जाए। कंचन मृग खोजन ए आए॥3॥



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल संपन्न हुए कार्यक्रम की चर्चा की


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9.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 9 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।

कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम् ॥

 हे प्रभु! न मुझे राज्य की कामना है,न  स्वर्ग  की   और न ही मुक्ति की

मेरी एकमात्र इच्छा यही है कि दुःखी प्राणियों का कष्ट समाप्त हो जाए



प्रस्तुत है आर्तसाधु आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 9 अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/72

आर्तसाधुः =दुःखी व्यक्तियों का मित्र

आज आचार्य जी कानपुर आ रहे हैं क्योंकि आज विक्रमाजीत सिंह सनातन धर्म कालेज कानपुर के शताब्दी समारोह की शृङ्खला में  *देवपुरुष बैरिस्टर नरेन्द्रजीत सिंह* पुस्तक का विमोचन, पूर्व गुरुवन्दन एवं पूर्व छात्र अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया है जिसका समय सायं 5:30 बजे से है


इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परमपूज्य सरसंघचालक मा डा मोहन राव भागवत जी, छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो विनय पाठक जी, श्री ब्रह्मावर्त सनातन धर्म महामण्डल के अध्यक्ष मा श्री वीरेन्द्रजीत सिंह आदि उपस्थित रहेंगे


आइये अरण्यकांड में शबरी प्रसंग के सबसे प्रमुख भाग नवधा भक्ति जो अध्यात्म रामायण में दसवें सर्ग में है में प्रवेश करते हैं


विवादों में संवाद नहीं होते उसमें तर्क होते हैं जहां तर्क होते हैं भक्ति का भाव विलुप्त रहता है भक्ति हृदय आधारित है और तर्क बुद्धि आधारित है


हृदय और बुद्धि के सहयोग से आत्मबोध  की प्राप्ति होती है


कंद मूल फल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि।

प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि॥34॥


यहां तुलसीदास ने मूलभाव रखा है बहुत विस्तार नहीं दिया है



पानि जोरि आगें भइ ठाढ़ी। प्रभुहि बिलोकि प्रीति अति बाढ़ी॥

केहि बिधि अस्तुति करौं तुम्हारी। अधम जाति मैं जड़मति भारी॥1॥

भगवान् राम के दर्शन का आश्वासन मतंग ऋषि ने शबरी को दिया था

अब राम सामने हैं तो शबरी कह रही हैं मेरा कल्याण करो


मुझे भक्ति के बारे में जानकारी दें



जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई। धन बल परिजन गुन चतुराई॥

भगति हीन नर सोहइ कैसा। बिनु जल बारिद देखिअ जैसा॥3॥


नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥

प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥4॥


गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।

चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान॥35॥


मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥

छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥1॥


सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥

आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा॥2॥


नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना॥

नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरुष सचराचर कोई॥3॥


सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरें। सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें॥

जोगि बृंद दुरलभ गति जोई। तो कहुँ आजु सुलभ भइ सोई॥4॥


एक गुण आ जाये तो बहुत से गुण आ जाते हैं


मम दरसन फल परम अनूपा। जीव पाव निज सहज सरूपा॥


इसके बाद भगवान राम मनुज स्वरूप में आ जाते हैं


जनकसुता कइ सुधि भामिनी। जानहि कहु करिबरगामिनी॥5॥




पंपा सरहि जाहु रघुराई। तहँ होइहि सुग्रीव मिताई॥

सो सब कहिहि देव रघुबीरा। जानतहूँ पूछहु मतिधीरा॥6॥

8.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 8 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।


तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।4.13।।


न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।


इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते।।4.14।।


कर्म मुझे लिप्त नहीं करते हैं और न मुझे कर्मफल में स्पृहा है। इस तरह मुझे जो जानता है, वह  कर्मों से नहीं बंधता है


प्रस्तुत है अव्यभिचारिन् आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 8 अक्टूबर 2022

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सार -संक्षेप 2/71

अव्यभिचारिन् =सदाचारी


ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति मनुष्य के विरुद्ध चल रही है तभी तो इन दिनों असमय वर्षा हो रही है

वर्षा जो मङ्गलकारिणी होती है इस समय विपत्तिकारिणी बनी हुई है 

इसी तरह वैचारिक क्षेत्र में भी विपत्ति वाले विचार फैले हुए हैं उनसे हमें सचेत रहते हुए दूरी बनानी है और मङ्गल करने वाले विचारों को अपनाना है 


यह नाम रूपात्मक जगत है एकात्मकता इसका स्वभाव है और भिन्नात्मकता इसका स्वरूप है  यहां रूप के नाम हैं और भाव के नाम रूप से संयुत होने पर हैं और भाव यदि तत्त्वरूप में है तो भाव का कोई नाम नहीं रूप के अनेक नाम हैं

दर्शन के इन विषयों को भी हमें समझना चाहिये और मार्गदर्शक बनकर भावी पीढ़ी को भी समझाना चाहिये

आइये फिर एक बार अरण्य कांड में आगे चलते हैं



मन क्रम बचन कपट तजि जो कर भूसुर सेव।

मोहि समेत बिरंचि सिव बस ताकें सब देव॥33॥


मन, वचन,कर्म से कपट छोड़कर जो  ब्रह्म की जिज्ञासा रखने वाले भूमि के देवता ब्राह्मणों की सेवा करता है, मुझ सहित ब्रह्मा, शिव आदि  उसके वश में हो जाते हैं



सापत ताड़त परुष कहंता। बिप्र पूज्य अस गावहिं संता॥

पूजिअ बिप्र सील गुन हीना। सूद्र न गुन गन ग्यान प्रबीना॥1॥

गुरु हमारा हित ही करता है

संत ऐसा भी होता है जो संसार की बहुत सी वस्तुओं को नहीं जानता गुण शील आदि संसार से संयुत तत्त्व हैं

ज्ञानी संसारी से अज्ञानी असंसारी श्रेष्ठ है



कहि निज धर्म ताहि समुझावा। निज पद प्रीति देखि मन भावा॥

रघुपति चरन कमल सिरु नाई। गयउ गगन आपनि गति पाई॥2॥



रामजी ने अपना भागवत धर्म उसे समझाया। अपने चरणों में प्रेम देखकर वह उनके मन को भाया। श्री राम जी के चरणकमलों में सिर नवाकर वह आकाश में चला गया



ताहि देइ गति राम उदारा। सबरी कें आश्रम पगु धारा॥

सबरी देखि राम गृहँ आए। मुनि के बचन समुझि जियँ भाए॥3॥



श्री रामजी उसे गति देकर  शूद्र वर्ण की शबरीजी के मतंग आश्रम में पधारे। शबरीजी ने श्री रामचंद्रजी को घर में आए देखा, तब मुनि मतंगजी के वचनों को याद करके उनका मन प्रसन्न हो गया॥3॥


सरसिज लोचन बाहु बिसाला। जटा मुकुट सिर उर बनमाला॥

स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। सबरी परी चरन लपटाई॥4॥



प्रेम मगन मुख बचन न आवा। पुनि पुनि पद सरोज सिर नावा॥

सादर जल लै चरन पखारे। पुनि सुंदर आसन बैठारे॥5॥


कंद मूल फल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि।

प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि॥34॥



अधम ते अधम अधम अति नारी। तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी॥

कह रघुपति सुनु भामिनि बाता। मानउँ एक भगति कर नाता॥2॥

भक्ति का आधार प्रेम है



जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई। धन बल परिजन गुन चतुराई॥

भगति हीन नर सोहइ कैसा। बिनु जल बारिद देखिअ जैसा॥3॥



जातपात , कुल, धर्म, धन, बल, परिवार , गुण, चातुर्य इन सबके होने पर भी भक्ति से रहित मनुष्य वैसा लगता है, जैसे जलहीन बादल शोभारहित लगता है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मनोज मुन्तशिर का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिये सुनें

7.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 7 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः।


प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः।।17.4।।




प्रस्तुत है ज्ञान -निश्रयणी आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 7 अक्टूबर 2022

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सार -संक्षेप 2/70

निश्रयणी =सीढ़ी


गीता के इस छन्द का अर्थ है 

सात्त्विक जन देवताओं का पूजन  अर्थात् सात्त्विक पूजन करते हैं,राजसी  यक्ष और राक्षसों को, तथा अन्य तामसी जन प्रेत और भूतगणों को पूजते हैं।।


मनुष्य के अन्दर उठ रहे भाव  विचारों को पल्ल्वित करके व्यवहार रूप में  बहुत से सिद्धान्त प्रस्तुत कर देते हैं

सात्त्विक पुरुष कहते हैं ये सब ईश्वर करता है




हम अपने अन्दर के सात्त्विक तत्त्व को उचित खानपान, उचित आहार विहार उत्तम विचारों के माध्यम से विकसित करें जिसके लिये सद्सङ्गति स्वाध्याय ध्यान धारणा संयम निदिध्यासन आवश्यक है 

सभी कर्मशील व्यक्तियों के शरीर मन बुद्धि एकाकार होने के लिये उत्साहित होते रहते हैं और इन व्यक्तियों का   जीवन  यज्ञ नित्य चलता रहता है 



कल 10 से 14 नवंबर 2022 के मध्य मियागंज में होने वाले राजसूय यज्ञ का  भूमि पूजन संपन्न हुआ जिसमें कार्यक्रम के मुख्य अतिथि इस यज्ञ के अध्यक्ष परम आदरणीय पूज्य आचार्य श्री ओम शङ्कर जी, भैया मुकेश जी,क्षेत्रीय विधायक श्री बंबा लाल जी, बांगरमऊ विधायक श्री कटियार जी,तहसील हसनगंज के एसडीएम साहब, मियागंज ब्लाक के बीडीओ साहब आदि ने भाग लेकर प्रसाद ग्रहण किया

आइये एक बार फिर से अरण्यकांड में प्रवेश करते हैं


सीता हरन तात जनि कहहु पिता सन जाइ।

जौं मैं राम त कुल सहित कहिहि दसानन आइ॥ 31॥


हे तात! सीता हरण की सूचना पिताजी को न दें । यदि मैं राम हूँ तो दशमुख परिवार सहित स्वर्ग में स्वयं ही कहेगा



गीध देह तजि धरि हरि रूपा। भूषन बहु पट पीत अनूपा॥

स्याम गात बिसाल भुज चारी। अस्तुति करत नयन भरि बारी॥1॥


जय राम रूप अनूप निर्गुन सगुन गुन प्रेरक सही।

दससीस बाहु प्रचंड खंडन चंड सर मंडन मही॥

पाथोद गात सरोज मुख राजीव आयत लोचनं।

नित नौमि रामु कृपाल बाहु बिसाल भव भय मोचनं॥1॥


बलमप्रमेयमनादिमजमब्यक्तमेकमगोचरं।

गोबिंद गोपर द्वंद्वहर बिग्यानघन धरनीधरं॥

जे राम मंत्र जपंत संत अनंत जन मन रंजनं।

नित नौमि राम अकाम प्रिय कामादि खल दल गंजनं॥2॥



सुनहू उमा ते लोग अभागी। हरि तजि होहिं बिषय अनुरागी।

पुनि सीतहि खोजत द्वौ भाई। चले बिलोकत बन बहुताई॥2॥

संकुल लता बिटप घन कानन। बहु खग मृग तहँ गज पंचानन॥

आवत पंथ कबंध निपाता। तेहिं सब कही साप कै बाता॥3॥



सापत ताड़त परुष कहंता। बिप्र पूज्य अस गावहिं संता॥

पूजिअ बिप्र सील गुन हीना। सूद्र न गुन गन ग्यान प्रबीना॥1॥


शाप देता , मारता  और कटु वचन कहता  ब्राह्मण  पूजनीय है, संत ऐसा कहते हैं। शील और गुण से रहित भी ब्राह्मण पूजनीय है।  गुण गणों से युक्त और ज्ञान में निपुण  शूद्र पूजनीय नहीं है


ब्राह्मण का अर्थ है जो सतत ब्रह्म के चिन्तन में डूबा रहे संसार से उसे कोई मतलब न रहे


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया निर्भय जी भैया आलोक जी ( सतना ), हिटलर का नाम क्यों लिया

बबूल के पास दिया कौन रखता था आदि जानने के लिये सुनें

6.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 6 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है उत्प्रभ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 6 अक्टूबर 2022

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सार -संक्षेप 2/69


उत्प्रभ =प्रकाश बिखेरने वाला


संसार के रचनाकार का रहस्यात्मक जीवन अद्भुत है

हम लोगों पर भगवान की कृपा ही है कि इन सदाचार वेलाओं से हमें दिशा और दृष्टि प्राप्त हो रही है  सांसारिक प्रपञ्चों में उलझने के बाद भी हम ऊंचे से ऊंचे आदर्श की कल्पना करें बड़े से बड़े लक्ष्य बनायें खराब से खराब परिस्थितियों में संघर्ष करने की विस्तृत योजना बनायें

हम राष्ट्र के लिये त्यागमय जीवन व्यतीत करें


हमें आचार्य जी के संकेतों को समझकर उन्हें विस्तार देना है

राम और कृष्ण हमारे आदर्श हैं मार्गदर्शक हैं

एक कहते हैं



निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥


सीता हरन तात जनि कहहु पिता सन जाइ।

जौं मैं राम त कुल सहित कहिहि दसानन आइ॥ 31॥


समस्या के मूल को नष्ट करना हमारा उद्देश्य होना चाहिये यही रामत्व है 




और दूसरे कहते हैं

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।


धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।


जो लोग राम और कृष्ण के चरित्र को इस संसार के स्वरूप में देखते हैं वो भ्रमित होते हैं  माया का सम्मोहन ही उन्हें भ्रमित करता है



कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः।


स बुद्धिमान् मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत्।।4.18।।



जो मनुज कर्म में अकर्म देखता है और अकर्म में कर्म , वह बुद्धिमान् है,  योगी है और सारे कर्मों को करने वाला  है।


जिस कालखंड में  मनुष्य को अपना मनुष्यत्व समझ में आता है उस समय वह अपने शरीर को भूल जाता है जैसे भारत मां का सैनिक


आइये अरण्यकांड में प्रवेश करते हैं



हा गुन खानि जानकी सीता। रूप सील ब्रत नेम पुनीता॥

लछिमन समुझाए बहु भाँति। पूछत चले लता तरु पाँती॥4॥


गुणों की खान जानकी! हे रूप, शील, व्रत, नियमों में पवित्र सीते! श्री लक्ष्मण ने बहुत प्रकार से समझाया। तब श्री राम लताओं और वृक्षों  से पूछते हुए चले


हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम्ह देखी सीता मृगनैनी॥

खंजन सुक कपोत मृग मीना। मधुप निकर कोकिला प्रबीना॥5॥


किमि सहि जात अनख तोहि पाहीं। प्रिया बेगि प्रगटसि कस नाहीं॥

एहि बिधि खोजत बिलपत स्वामी। मनहुँ महा बिरही अति कामी॥8॥


पूरकनाम राम सुख रासी। मनुजचरित कर अज अबिनासी॥

आगें परा गीधपति देखा। सुमिरत राम चरन जिन्ह रेखा॥9॥


कर सरोज सिर परसेउ कृपासिंधु रघुबीर।

निरखि राम छबि धाम मुख बिगत भई सब पीर॥30॥


कृपा के समुद्र श्री राम ने अपने हाथ से उसके सिर का स्पर्श किया   श्री रामजी का  मुख देखकर उसकी सब पीड़ा जाती रही


तब कह गीध बचन धरि धीरा। सुनहु राम भंजन भव भीरा॥

नाथ दसानन यह गति कीन्ही। तेहिं खल जनकसुता हरि लीन्ही॥1॥



राम कहा तनु राखहु ताता। मुख मुसुकाइ कही तेहिं बाता॥

जाकर नाम मरत मुख आवा। अधमउ मुकुत होइ श्रुति गावा॥3॥


परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥

तनु तिज तात जाहु मम धामा। देउँ काह तुम्ह पूरनकामा॥5॥


इसके अतिरिक्त करपात्री जी महाराज का कौन सा प्रसंग आचार्य जी ने बताया जानने के लिये सुनें

5.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 5 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अरण्येचरारि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 5 अक्टूबर 2022

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सार -संक्षेप 2/68


अरण्येचर = जंगली



मनुष्य जीवन बहुत अद्भुत है अद्वितीय भी है  यह कर्मयोनि देवताओं की भोगयोनि से बहुत आगे है  इस जीवन को हम व्यर्थ न जाने दें सकारात्मक सोच के साथ हम सन्मार्ग की ओर चलने का अभ्यास करें 



आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमें इन वेलाओं से शक्ति बुद्धि समय पर  सर्वथा उचित निर्णय लेने की क्षमता आदि प्राप्त हो हम जल में कमल की तरह रहते हुए संसार में सारे कार्य करें लेकिन उनमें लिप्त न हों


पूर्णावतार धर्मज्ञ सर्वज्ञ शास्त्रज्ञ भगवान् श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।


आज विजयादशमी के पर्व पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं



आजकल हम लोग रामकथा के अरण्यकांड में  प्रविष्ट हैं इस कांड में घटनाओं का वैविध्य देखने को मिलता है परिस्थितियां क्षण क्षण में परिवर्तित होती रहती हैं


बिपति मोरि को प्रभुहि सुनावा। पुरोडास चह रासभ खावा॥

सीता कै बिलाप सुनि भारी। भए चराचर जीव दुखारी॥3॥



भगवान् को मेरी यह विपत्ति कौन सुनायेगा यज्ञ के अन्न (पुरोडाशः ) को गधा ( रासभः )खाना चाहता है।

 सीतामइया का भारी विलाप सुनकर जड़-चेतन सारे जीव दुःखी हो गए




गीधराज सुनि आरत बानी। रघुकुलतिलक नारि पहिचानी॥

अधम निसाचर लीन्हें जाई। जिमि मलेछ बस कपिला गाई॥4॥

जटायु में बल संयम विचार शक्ति समर्पण जूझ मरने का जज्बा था इसी कारण वो आश्वासन दे रहे हैं


सीते पुत्रि करसि जनि त्रासा। करिहउँ जातुधान कर नासा॥

धावा क्रोधवंत खग कैसें। छूटइ पबि परबत कहुँ जैसें॥5॥


रे रे दुष्ट ठाढ़ किन हो ही। निर्भय चलेसि न जानेहि मोही॥

आवत देखि कृतांत समाना। फिरि दसकंधर कर अनुमाना॥6॥


सुनत गीध क्रोधातुर धावा। कह सुनु रावन मोर सिखावा॥

तजि जानकिहि कुसल गृह जाहू। नाहिं त अस होइहि बहुबाहू॥8॥


धरि कच बिरथ कीन्ह महि गिरा। सीतहि राखि गीध पुनि फिरा॥

चोचन्ह मारि बिदारेसि देही। दंड एक भइ मुरुछा तेही॥10॥

यह वीर का भाव होता है



जेहि बिधि कपट कुरंग सँग धाइ चले श्रीराम।

सो छबि सीता राखि उर रटति रहति हरिनाम॥29 ख॥


ध्यान जब सिद्ध हो जाता है तो बहुत शक्ति देता है इसी ध्यानसिद्धि के आधार पर शक्ति बुद्धि संयम समर्पण की प्रतीक मां सीता लङ्का में बहुत दिन तक निवास करते हुए रावण का प्रतिकार करते हुए अपनी साधना को फलीभूत कर पाईं



कथा में आगे राम का विलाप है


हम भक्त हैं और राम भगवान् हैं इसी सत्य को स्वीकारते हुए कथा का आनन्द हम लोग लें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कवि चोंच का नाम क्यों लिया कौन किसका चेहरा धूमिल करता है आदि जानने के लिये सुनें

4.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 4 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 इमि कुपंथ पग देत खगेसा। रह न तेज तन बुधि बल लेसा॥5॥


बुरे रास्ते पर पैर रखते ही शरीर में तेज, बुद्धि,शक्ति सामर्थ्य बिल्कुल भी  शेष नहीं बचता

और जिसके अन्तरचक्षु बन्द हैं वह गलत काम कर ही जाता है हाल की घटना देखें तो वनन्त्रा रिजार्ट कांड है




मनीष कृष्णा जी आपके लिये प्रश्न है

खगेस का क्या अर्थ है?



प्रस्तुत है शारद आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 4अक्टूबर 2022

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सार -संक्षेप 2/67


शारद = निपुण


तन मन बुद्धि का बहुत अच्छा सामञ्जस्य हो तो विचार पल्लवित होने लगते हैं और उन विचारों के पल्लवन के साथ जब वाणी का व्यवहार दिखता है तो वह प्रभावशाली होती है



आइये अरण्यकांड में प्रवेश करते हैं आज के समय में व्यावहारिक परिस्थितियां उत्पन्न करने की प्रेरणा देती है रामकथा


प्रगटत दुरत करत छल भूरी। एहि बिधि प्रभुहि गयउ लै दूरी॥

तब तकि राम कठिन सर मारा। धरनि परेउ करि घोर पुकारा॥7॥


कभी प्रकट होता हुआ और कभी छिपता हुआ  बहुत प्रकार के छल करता हुआ मारीच भगवान् राम  को दूर ले गया। तब रामजी ने निशाना लगाकर कठोर बाण मारा और वह चिल्लाता हुआ पृथ्वी पर गिर पड़ा


भगवान् तो उसे पहले ही मार सकते थे दूर जाना ही नहीं पड़ता लेकिन यही लीला है



लछिमन कर प्रथमहिं लै नामा। पाछें सुमिरेसि मन महुँ रामा॥

प्रान तजत प्रगटेसि निज देहा। सुमिरेसि रामु समेत सनेहा॥8॥


पहले लक्ष्मण का नाम लिया ताकि सीता को भ्रम हो जाये कि वे संकट में हैं फिर भगवान् राम का नाम लिया प्राण त्यागते समय उसने अपना राक्षसी रूप प्रकट किया और प्रेम के साथ भगवान् राम का स्मरण किया।


सर्वज्ञ राम ने उसके  प्रेम को जानकर उसे वह गति  दी जो मुनियों को भी दुर्लभ है।



खल बधि तुरत फिरे रघुबीरा। सोह चाप कर कटि तूनीरा॥

आरत गिरा सुनी जब सीता। कह लछिमन सन परम सभीता॥1॥


मारीच को मारकर श्री राम तुरंत लौट पड़े। हाथ में धनुष और कमर में तरकस शोभायमान हैं इधर जब सीताजी ने दुःखभरी वाणी  सुनी तो वे बहुत ही भयभीत हो गईं


सांसारिक सीता जी को भय होगा जब कि साक्षात् सीता तो अग्नि में प्रवेश कर गई हैं

*प्रश्नोत्तर वेला की योजना बनाकर इसे विस्तार दिया जा सकता है*



जाहु बेगि संकट अति भ्राता। लछिमन बिहसि कहा सुनु माता॥

भृकुटि बिलास सृष्टि लय होई। सपनेहुँ संकट परइ कि सोई॥2॥



मरम बचन जब सीता बोला। हरि प्रेरित लछिमन मन डोला॥

बन दिसि देव सौंपि सब काहू। चले जहाँ रावन ससि राहू॥3॥


लक्ष्मण को माया प्रभावित नहीं कर रही है जब कि सीता को कर रही है

लेकिन मर्मस्थल को चुभ जाने वाले सीता जी के वचनों से लक्ष्मण जी का मन डोल गया मति नहीं डोली



सून बीच दसकंधर देखा। आवा निकट जती कें बेषा॥

जाकें डर सुर असुर डेराहीं। निसि न नीद दिन अन्न न खाहीं॥4॥


सो दससीस स्वान की नाईं। इत उत चितइ चला भड़िहाईं॥

इमि कुपंथ पग देत खगेसा। रह न तेज तन बुधि बल लेसा॥5॥



क्रोधवंत तब रावन लीन्हिसि रथ बैठाइ।

चला गगनपथ आतुर भयँ रथ हाँकि न जाइ॥28॥


बिपति मोरि को प्रभुहि सुनावा। पुरोडास चह रासभ खावा॥

सीता कै बिलाप सुनि भारी। भए चराचर जीव दुखारी॥3॥


गीधराज सुनि आरत बानी। रघुकुलतिलक नारि पहिचानी॥

अधम निसाचर लीन्हें जाई। जिमि मलेछ बस कपिला गाई॥4॥



जटायु ने सीताजी की दुःखभरी वाणी सुनते ही पहचान लिया कि ये रामजी की पत्नी हैं। उसने देखा कि नीच  इनको इस तरह लिए जा रहा है, जैसे कपिला गाय म्लेच्छ के हाथ आ गई हो



चर अचर जीव सब दुःखी हो गये


यदि जटायु ऐसा कर सकते हैं तो हम भी बहुत कुछ कर सकते हैं



सीते पुत्रि करसि जनि त्रासा। करिहउँ जातुधान कर नासा॥

धावा क्रोधवंत खग कैसें। छूटइ पबि परबत कहुँ जैसें॥5॥


ऐसा आत्मविश्वास होना चाहिये आज के समय में तो इसकी बहुत आवश्यकता है

3.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी कादिनांक 3अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ज्ञातृत्व - सागर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 3अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/66


ज्ञातृत्व =ज्ञान



माया ईस न आपु कहुँ जान कहिअ सो जीव।

बंध मोच्छ प्रद सर्बपर माया प्रेरक सीव॥15॥




रामकथा के माध्यम से अपनी व्यथाएं शमित करें

अपने को दीन हीन बेचारा न समझें  संसार में संयोग एक अदृश्य शक्ति का लीला क्रम है इस दिव्यता का अनुभव करते हुए संसार सागर  में उलझें नहीं देखा जाये तो हम सब अवतार हैं इसका अनुभव करने के लिये आवश्यकता है आत्मबोध की

अपने पास बैठने का प्रयास करें यह अनुभव करें कि मैं केवल संसार नहीं हूं कुछ और भी हूं इस आनन्द का अनुभव करें



लछिमन गए बनहिं जब लेन मूल फल कंद।

जनकसुता सन बोले बिहसि कृपा सुख बृंद॥ 23॥



सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि ललित नरलीला॥

तुम्ह पावक महुँ करहु निवासा। जौ लगि करौं निसाचर नासा॥1॥



पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली सीता जी से भगवान् राम कह रहे हैं कि मैं अब कुछ मनोहर मनुष्य लीला करूँगा


...

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥


..

, इसलिए मेरे द्वारा राक्षसों के विनाश  तक तुम अग्नि में निवास करो

अर्थात् अपने अन्दर के अग्नि तत्व को अन्य तत्वों आकाश पृथ्वी जल वायु की अपेक्षा प्रबल करने का कार्य 

इस पंचतत्व को ब्रह्मांड में व्याप्त लौकिक एवं अलौकिक वस्तुओं का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष कारण और परिणति माना गया है।



जबहिं राम सब कहा बखानी। प्रभु पद धरि हियँ अनल समानी॥

निज प्रतिबिंब राखि तहँ सीता। तैसइ सील रूप सुबिनीता॥2॥



लछिमनहूँ यह मरमु न जाना। जो कछु चरित रचा भगवाना॥

दसमुख गयउ जहाँ मारीचा। नाइ माथ स्वारथ रत नीचा॥3॥


(यह दशानन रावण षड्विकारों से ग्रस्त है

उसमें से एक काम विकार के कारण मां सीता पर वह मुग्ध हो गया था )


नवनि नीच कै अति दुखदाई। जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई॥

भयदायक खल कै प्रिय बानी। जिमि अकाल के कुसुम भवानी॥4॥




नीच व्यक्ति की नम्रता भी अत्यन्त दुःखदायी  है

 जैसे अंकुश, धनुष, साँप और बिल्ली का झुकना

दुष्ट की मीठी वाणी भी भय देने वाली होती है

मारीच तो भगवान् राम को समझ चुका था लेकिन रावण को समझ में नहीं आया


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने FLAME TEST, LICENCE, शिक्षावल्ली का उल्लेख किस कारण किया भैया पङ्कज का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

2.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 2 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 अबलौं नसानी, अब न नसैहौं। राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैहौं॥ पायेउँ नाम चारु चिंतामनि, उर कर तें न खसैहों। स्यामरूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं॥ परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं। मन मधुकर पनकै तुलसी रघुपति-पद-कमल बसैहौं॥




प्रस्तुत है राम-सात्वत आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 2 अक्टूबर 2022

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सार -संक्षेप 2/65


सात्वत =भक्त



अबलौं नसानी, अब न नसैहौं........



अब तक तो यह उम्र बेकार चली गई लेकिन अब इसे नष्ट नहीं होने दूँगा। भगवान् राम की कृपादृष्टि से संसार रूपी रात बीत गई है, अब जागने के बाद पुनः (मायामय) बिस्तरा नहीं बिछाऊँगा। मुझे राम नाम की अतिसुंदर चिंतामणि प्राप्त हो गई है। उसे हृदयरूपी हाथ से कभी नहीं गिरने दूँगा। राम जी का जो पावन श्यामसुंदर रूप है उसकी कसौटी पर अपने चित्तरूपी सोने को कसूँगा। जब तक मैं इंद्रियों के अधीन था, तब तक  मुझे मनमाना नाच नचाकर मेरी बड़ी हँसी उड़ाई गई , लेकिन अब इंद्रियों को जीत लेने पर उनसे अपनी हँसी नहीं कराऊँगा। अब तो प्रण करके अपने मनरूपी भौंरे को राम जी के चरण-कमलों में लगा दूँगा।


भारत की मनीषा संघर्षों से कभी डरकर रुकी नहीं और अपने जीवन के सोपानों पर चढ़ती चली जा रही है


यदि हम सांसारिक प्रपञ्चों से हटकर कुछ समय इस सदाचार वेला के लिये निकाल लेते हैं तो यह हमारे लिये अत्यन्त लाभकारी है


राम जी के संघर्षों समस्याओं सफलताओं पर   दृष्टिपात कर हम उनसे प्रेरणा लें इसी मनुष्यत्व इसी रामत्व की अनुभूति इस वेला का उद्देश्य भी है

कठिन समय आने पर बुद्धि का मालिन्य न रहे इसकी प्रार्थना करें और महसूस करें कि हम बहुत क्षमतावान हैं हर समस्या का समाधान खोजने में सक्षम हैं



आइये राम -कथाप्रबन्ध में प्रवेश करते हैं

कथा के बोधतत्व में प्रवेश करके इसका रसपान करते हुए आनन्द प्राप्त करें और अपने अन्दर की शक्ति को तत्व को जाग्रत करें


अरण्य कांड में आगे


हरषित बरषहिं सुमन सुर बाजहिं गगन निसान।

अस्तुति करि करि सब चले सोभित बिबिध बिमान॥ 20(ख)॥


सीता चितव स्याम मृदु गाता। परम प्रेम लोचन न अघाता॥

पंचबटीं बसि श्री रघुनायक। करत चरित सुर मुनि सुखदायक॥2॥

इस  मोक्ष देने वाली पंचवटी का कवि हृदयराम ने बहुत अच्छा वर्णन किया है


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग गीतावली भी पढ़ें


धुआँ देखि खरदूषन केरा। जाइ सुपनखाँ रावन प्रेरा॥

बोली बचन क्रोध करि भारी। देस कोस कै सुरति बिसारी॥3॥


अतुलित बल प्रताप द्वौ भ्राता। खल बध रत सुर मुनि सुखदाता॥

सोभा धाम राम अस नामा। तिन्ह के संग नारि एक स्यामा॥4॥


सूपनखहि समुझाइ करि बल बोलेसि बहु भाँति।

गयउ भवन अति सोचबस नीद परइ नहिं राति॥22॥


सुर नर असुर नाग खग माहीं। मोरे अनुचर कहँ कोउ नाहीं॥

खर दूषन मोहि सम बलवंता। तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता॥1॥


सुर रंजन भंजन महि भारा। जौं भगवंत लीन्ह अवतारा॥

तौ मैं जाइ बैरु हठि करऊँ। प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ॥2॥


देव समूह को आनंदित करने वाले और इस धरा का भार हरण करने वाले भगवान ने  यदि अवतार ले लिया है तो मैं  उनसे हठपूर्वक वैर करूँगा और उनके बाण  से प्राण त्यागकर इस भवसागर से तर जाऊँगा


रावण को कर्म के स्वभाव घेरे रहते हैं लेकिन था तो वह ऋषि का पुत्र ही

इसलिये जन्म के स्वभाव के कौंधने से उसका ज्ञान कभी कभी खुलता है



सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि ललित नरलीला॥

तुम्ह पावक महुँ करहु निवासा। जौ लगि करौं निसाचर नासा॥1॥



पावक अर्थात् अग्नि में निवास करने का भौतिक अर्थ है अपने अन्दर का तेजस जाग्रत करना


जबहिं राम सब कहा बखानी। प्रभु पद धरि हियँ अनल समानी॥

निज प्रतिबिंब राखि तहँ सीता। तैसइ सील रूप सुबिनीता॥2॥

1.10.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 1 अक्टूबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 बलमप्रमेयमनादिमजमब्यक्तमेकमगोचरं।

गोबिंद गोपर द्वंद्वहर बिग्यानघन धरनीधरं॥

जे राम मंत्र जपंत संत अनंत जन मन रंजनं।

नित नौमि राम अकाम प्रिय कामादि खल दल गंजनं॥2॥


प्रस्तुत है राष्ट्र -विच्छाय आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 1 अक्टूबर 2022

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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सार -संक्षेप 2/64


विच्छायः =रत्न


इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य यही है कि 

इन्हें सुनकर गुनकर विचारकर चिन्तनकर  हम अपनी शक्ति बुद्धि  कौशल का अनुभव करें 

....

कठिन है नापना इस अटपटे संसार की राहें

बची है हाथ में सीपी लहर में गुम हुई मोती



और इसी मोती की खोज गम्भीर महायोगी आदि शंकराचार्य ने अद्वैत सिद्धान्त के माध्यम से की

 उन्होंने कहा सत्ता के चार प्रकार हैं


मिथ्या, प्रातिभषिक, व्यावहारिक, पारमार्थिक


आचार्य जी ने इनकी व्याख्या की

हमें भी इसी प्रकार की अनुभूतियों में प्रवेश करना चाहिये जिसके लिये हम लोग कुछ समय निकालें ताकि हमारी आत्मशक्ति आत्मविश्वास बढ़े



भगवान् राम के चरित्र में सब प्रकार के सद्गुणों का समावेश कर तुलसी ने  अद्भुत कौशल प्रदर्शित किया है

आइये एक बार पुनः अरण्यकांड में प्रवेश करते हैं



जद्यपि भगिनी कीन्हि कुरूपा। बध लायक नहिं पुरुष अनूपा॥

देहु तुरत निज नारि दुराई। जीअत भवन जाहु द्वौ भाई॥3॥

के उत्तर में राम जो कहते हैं वैसे ही उत्तर हमारे अन्दर से उद्भूत होने चाहिये 


हम छत्री मृगया बन करहीं। तुम्ह से खल मृग खोजत फिरहीं॥

रिपु बलवंत देखि नहिं डरहीं। एक बार कालहु सन लरहीं॥5॥

तुम्हारे जैसे दुष्ट जानवर हम लोग खोजते हैं काल से भी युद्ध कर सकते हैं



जद्यपि मनुज दनुज कुल घालक। मुनि पालक खल सालक बालक॥

जौं न होइ बल घर फिरि जाहू। समर बिमुख मैं हतउँ न काहू॥6॥


यद्यपि हम मनुज हैं लेकिन दैत्यों का नाश करने वाले और मुनियों की रक्षा करने वाले हैं, हम बालक  दिखते हैं किन्तु दुष्टों को दण्ड देने वाले। यदि बलहीन हो तो वापस लौट जाओ। युद्ध में पीठ दिखाने वाले किसी व्यक्ति को मैं नहीं मारता



तब चले बान कराल। फुंकरत जनु बहु ब्याल॥

कोपेउ समर श्रीराम। चले बिसिख निसित निकाम॥1॥



अवलोकि खरतर तीर। मुरि चले निसिचर बीर॥

भए क्रुद्ध तीनिउ भाइ। जो भागि रन ते जाइ॥2॥



तेहि बधब हम निज पानि। फिरे मरन मन महुँ ठानि॥

आयुध अनेक प्रकार। सनमुख ते करहिं प्रहार॥3॥


रिपु परम कोपे जानि। प्रभु धनुष सर संधानि॥

छाँड़े बिपुल नाराच। लगे कटन बिकट पिसाच॥4॥


महि परत उठि भट भिरत मरत न करत माया अति घनी।

सुर डरत चौदह सहस प्रेत बिलोकि एक अवध धनी॥

सुर मुनि सभय प्रभु देखि मायानाथ अति कौतुक कर्‌यो।

देखहिं परसपर राम करि संग्राम रिपु दल लरि मर्‌यो॥4॥

(ऐसे संमोहास्त्र छोड़ दिये  जाते हैं जैसे यहां कि राम समझकर वे दुष्ट आपस में ही मरने कटने लगे )




इस रामकथा के माध्यम से आचार्य जी यही संदेश देना चाहते हैं कि हम राम का रामत्व जानें


सीता हरन तात जनि कहहु पिता सन जाइ।

जौं मैं राम त कुल सहित कहिहि दसानन आइ॥ 31॥



हे तात! सीता हरण की बात पिताजी से न कहिएगा। यदि मैं राम हूँ तो दशानन परिवार सहित वहाँ आकर स्वयं ही कहेगा

ये हैं राम




अनुशासन प्रेम आत्मीयता आत्मविश्वास हमारे यहां घर घर में व्याप्त रहा है इसी कारण अनेक प्रहारों के बाद भी हम अक्षयवट के समान खड़े रहे