31.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 31 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥


प्रस्तुत है धिप्सु -द्विषत् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 31 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *520 वां* सार -संक्षेप

*

धोखा देने वालों के शत्रु 

धिप्सु =धोखा देने वाला

द्विषत् = शत्रु


हम सेवाभावी, विश्वासयुक्त, शक्तिसम्पन्न बनें राष्ट्रार्पित जीवन का भाव सदा पुलकित रहे इन सदाचार संप्रेषणों का मूल भाव है



अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम् । 

शेषाः स्थिरत्वमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ॥

( महा० वन० ३१३ । ११६)


जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है फिर भी

इससे बड़ा संसार  का आश्चर्य  और क्या हो सकता है कि शेष लोग यहां स्थिर रहना चाहते हैं


इस दुनिया में लोग आते जाते हैं लेकिन अपने निकट का जब कोई जाता है तो व्यथा होती है

लेकिन एक अपरिचित चला जाये तो भी यदि व्यथित कर दे तो..


सौ बरस तपस्या की लेकिन वरदान नहीं कोई माँगा, 

अर्पित कर दिया मातृभू को जीवन-पट का धागा धागा ।

हे जननी, हे माता-ममता, हे सत्यतीर्थ, हे शुभाशीष, 

कर्तव्यमूर्ति, हे अनासक्ति, साकार तपस्या, हे अमीश। 

श्रद्धानत पूरी धरती है पुष्पांजलि देता महाकाश, 

स्तब्ध महोदधि शान्त पवन मंगलमय पुलकित चिदाकाश।


ये हीराबा, जो अपने पुत्र की तपस्या के कारण नहीं अपनी तपस्या के कारण चर्चित हुईं,के चले जाने पर आचार्य जी के व्यक्त उद्गार हैं

यह धरती श्रद्धा विश्वास की धरती है पुण्यभूमि कर्मभूमि धर्मभूमि भावभूमि सर्वस्व है

इस सर्वस्व के  एक अंश के विदा होने पर निकले भाव हैं

आइये चलते हैं मानस में

लंका कांड में आगे 


युद्ध का सिद्धान्त है कि शत्रु की धरती पर जाकर युद्ध करें और विजय प्राप्त करें

प्रभु राम ने भी ऐसा ही किया

रावण जो घमंड में चूर है 

सो अबहीं बरु जाउ पराई। संजुग बिमुख भएँ न भलाई॥

निज भुज बल मैं बयरु बढ़ावा। देहउँ उतरु जो रिपु चढ़ि आवा॥


अच्छा  तो यही है वह शत्रु अभी भाग जाए। युद्धरत होकर  पीठ दिखाकर भागने में भलाई नहीं है। मैंने अपनी भुजाओं के बल पर बैर बढ़ाया है  उस शत्रु को मैं  जवाब दूंगा

प्रभु राम ने प्रतिज्ञा की कि ऐसे रावण 

को लंका में जाकर परास्त करना है


रावण मैदान पर आ चुका है

असगुन अमित होहिं तेहि काला। गनइ न भुज बल गर्ब बिसाला॥


भगवान् राम जो नंगे पांव हैं से अधिक प्रीति करने वाले विभीषण परेशान हैं


रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥

अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥


इस बलवान से कैसे जीत पायेंगे तो प्रभु कहते हैं


सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥


जिससे जय होती है वह दूसरा ही रथ है यह राम जी का विश्वास है यही रामत्व है

30.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 30 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ज्ञान -तोयालय *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 30 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *519 वां* सार -संक्षेप

*ज्ञान का समुद्र



संस्कृत भाषा और  देवनागरी लिपि बहुत गहराई वाले चिन्तन में प्रवेश करा देती है यदि हम गम्भीरता से जानने का प्रयास करें

यह बात हम लोग तर्कपूर्ण ढंग से कह सकते हैं

सत्य के पास तर्क तो होते ही हैं उसके पास प्रभाव भी होता है

इस प्रभाव की अनुभूति भारत अनन्त काल से करता आ रहा है


इतिहास की विकृतियों विदेशी आक्रमणों सामजिक विकारों को झेलते हुए भी भारतीय संस्कृति अक्षयवट की तरह है


जब हम इन्द्रियों के वश में हो जाते हैं तो दुविधाग्रस्त हो जाते हैं जैसे अर्जुन


एक परिवार में कितना विरोध विग्रह है कि

उसी परिवार का दंभी लोभी क्रोधी दुर्योधन कहता है


जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्तिर्जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः।


केनापि देवेन हृदि स्थितेन यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि।। (गर्गसंहिता अश्वमेध0 50। 36)


अर्जुन  भी यही कहता है


अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पुरुषः।


अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः।।3.36।।


लेकिन वो जानना चाहता है कि कैसे उससे बचा जाए


 पापपूर्ण आचरण न करना पड़े

भगवान् कृष्ण कहते हैं



ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति।


निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते।।5.3।।



हे अर्जुन! जो व्यक्ति न किसी से द्वेष करता है, न किसी की आकांक्षा करता है, वह कर्मयोगी सदा संन्यासी ही समझा जाये  क्योंकि राग-द्वेष आदि द्वंद्वों से रहित व्यक्ति सुखपूर्वक संसार के बंधन से मुक्त हो जाता है


अपने जीवन को सहारा देने वाली पूजा तभी सार्थक है जब वह कर्म को उत्साह दे


पाप पुण्य ज्ञान शक्ति भक्ति विकार विचार आदि का विवेचन हमारे ग्रंथों में है लेकिन उनके रहस्यों को जानने का हमारे अन्दर उत्साह हो आत्मशोध की भावना हो इसी का प्रयास आचार्य जी प्रतिदिन करते हैं


रामचरित मानस भी ऐसा ही ग्रंथ है उसी के लंका कांड में



मेघनाद भी मारा गया लेकिन 

रावण अभी भी संसार का भोग भोगने में आसक्त है




सो अबहीं बरु जाउ पराई। संजुग बिमुख भएँ न भलाई॥

निज भुज बल मैं बयरु बढ़ावा। देहउँ उतरु जो रिपु चढ़ि आवा॥


यह व्यर्थ का दम्भ है

Fuse Bulb की क्या कीमत 

?


लेकिन


ताहि कि संपति सगुन सुभ सपनेहुँ मन बिश्राम।

भूत द्रोह रत मोहबस राम बिमुख रति काम॥ 78॥



रामदल का उत्साह बढ़ा हुआ है


इसके बाद आचार्य जी ने राम गीता अर्थात् धर्मरथ का संकेत दिया जिसका विस्तार कल करेंगे


नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥

सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥

29.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 29 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 ताहि कि संपति सगुन सुभ सपनेहुँ मन बिश्राम।

भूत द्रोह रत मोहबस राम बिमुख रति काम॥ 78॥



प्रस्तुत है दाम्भिक -रिपु *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 29 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *518 वां* सार -संक्षेप

*धोखेबाजों के शत्रु



स्थान :उन्नाव


शास्त्रसिद्धान्त है कि ब्राह्मण अपना घर नहीं बनाता

प्रश्न यह कि ब्राह्मण कौन


इस तरह के अद्भुत प्रश्नों का  हल भारत वर्ष की इस पावन भूमि पर समय समय पर होता रहता है


स्रष्टा की विधि व्यवस्था है कि युग परिवर्तित होते रहते हैं कलियुग में भी अच्छाइयां हैं


परिवर्तन अनिवार्य है एकरसता खलने लगती है


मनुष्य सामाजिक प्राणी है सहारों से संतुष्ट न रहने वाले सतत व्याकुल रहते हैं


और ऊबते हैं


यह सदाचार संप्रेषण हमें यही सिखाता है कि सांसारिक व्यथाएं हमें पीड़ित न करें संसार का आनन्द हमें आनन्दित करे


हमारा मन लगे हम अपने अस्तित्व, तत्त्व, अध्यात्म की समझ भी साथ साथ रखते चलें

मानस गीता भी यही संदेश देते हैं


अत्यधिक क्षमतावान शक्तिसम्पन्न अर्जुन में भी युद्ध के समय मोहजनित भय व्याप्त हो गया


षड्रिपुओं में भय साथ साथ चलता है निर्भयता ही मोक्ष है

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।


क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।


इस छन्द से हमारा तत्त्व जाग्रत हो जाता है


इन्हीं ग्रंथों का सहारा लेकर आइये चलते हैं अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिये सत् आचरण के मार्ग पर


लंका कांड मे



सुमिरि कोसलाधीस प्रतापा। सर संधान कीन्ह करि दापा॥

छाड़ा बान माझ उर लागा। मरती बार कपटु सब त्यागा॥



भगवान् राम जी के प्रताप का स्मरण करके लक्ष्मणजी ने वीरत्व दर्शाते दर्प के साथ बाण का संधान किया। बाण  उसकी छाती के बीचों बीच  लगा। मरते समय उसने सारे कपट त्याग दिये

भीतर का आत्मतत्त्व जाग्रत हो गया



रावण को जब यह खबर लगी


मुरुछित भयउ परेउ महि तबहीं॥


मंदोदरी रुदन कर भारी। उर ताड़न बहु भाँति पुकारी॥

नगर लोग सब ब्याकुल सोचा। सकल कहहिं दसकंधर पोचा॥


तब रावण   समझा रहा है कि  जगत् का यह दृश्य  नाशवान है, इसमें संशय नहीं


*पर उपदेस कुसल बहुतेरे। जे आचरहिं ते नर न घनेरे॥*


यह मनुष्यत्व की कमजोरी है हमें इसी से सावधान रहना चाहिये



यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।


शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।।12.17।।



रावण मैदान में उतर चुका है


ताहि कि संपति सगुन सुभ सपनेहुँ मन बिश्राम।

भूत द्रोह रत मोहबस राम बिमुख रति काम॥ 78॥

28.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 28 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 भारत भारती भरतभू की हर कथा अनोखी अनुपम है, 

इसकी भूरज का कण अणु अणु अद्भुत मनोज्ञ है अनुपम है, 

सौभाग्य हमारा इस धरती पर जन्म हुआ पालन-पोषण, 

हम आत्मबोध- संयुक्त कर्म की कथा क्रान्ति के संघोषण।



प्रस्तुत है प्रशमन *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 28 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *517 वां* सार -संक्षेप

*धीरज बंधाने वाला


आचार्य जी कुछ समय से श्रीमद्भगवद्गीता,जिसमें

युद्ध की तैयारी के साथ आत्मबोधोत्सव का विलक्षण दर्शन है,

और श्री रामचरित मानस का आधार लेकर  कुछ तथ्य, तत्त्व, विषय, राग प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि हम आत्मबोध से संयुक्त, कर्मानुरागी,भारतभू के प्रति पूर्णरूपेण सतत कृतज्ञता रखने वाले वाले बन सकें

हमें ध्यान रखना चाहिये कि इस देश के उत्थान और सम्मान के लिये इसकी सेवा के लिये अपने से जो भी बन पड़े उसे हम करते चलें


दम्भ द्वेष हीनभावना सांसारिक अहंकार से रहित होकर 

समभाव से रहना और सहयोगियों को रहने सहने के लिये प्रेरित करना -यह युगभारती का व्यवहार होना चाहिये

शौर्यप्रमंडित अध्यात्म अनिवार्य है इसमें किसी प्रकार का भ्रम न हो


स्वामित्व का अभिमान यदि दुष्टों को हो जाये तो अत्यधिक घातक होता है इसलिये शिष्ट बनें

लंका कांड चल रहा है

रावण का सबसे अधिक विश्वासपात्र सबसे बड़ा सहारा  सर्वाधिक तामसी यज्ञों को करने वाला और उसका प्रतिफल पाने वाला उसका पुत्र इन्द्रजीत मेघनाद

प्रभु राम सहित सबको नागपाश में बांध देता है


हमारे यहां वृद्धावस्था बोझ नहीं होती अद्भुत है यह धरती

सलाह मशविरा परामर्श देने वाला सबसे अधिक वृद्ध आत्मशक्ति युक्त जामवन्त


मारिसि मेघनाद कै छाती। परा भूमि घुर्मित सुरघाती॥

पुनि रिसान गहि चरन फिरायो। महि पछारि निज बल देखरायो॥4॥


खगपति सब धरि खाए माया नाग बरुथ।

माया बिगत भए सब हरषे बानर जूथ॥74 क॥


पक्षीराज गरुड़जी  सब माया-सर्पों के दलों को पकड़कर खा गए। तब सारे वानरों के झुंड माया  रहित होकर प्रसन्न हुए॥


मेघनाद कै मुरछा जागी। पितहि बिलोकि लाज अति लागी॥

तुरत गयउ गिरिबर कंदरा। करौं अजय मख अस मन धरा॥

मेघनाद गुफा में चला गया ताकि स्वार्थ वाला तामसिक यज्ञ कर सके

सात्विक यज्ञ करने वालों का साथ देने वाले 

उसी कुलगोत्र के विभीषण चिन्तित हो गये

तब प्रभु राम कहते हैं


लछिमन संग जाहु सब भाई। करहु बिधंस जग्य कर जाई॥


लक्ष्मण का सात्विक आवेश देखिये

जौं सत संकर करहिं सहाई। तदपि हतउँ रघुबीर ई॥


और


रघुपति चरन नाइ सिरु चलेउ तुरंत अनंत।

अंगद नील मयंद नल संग सुभट हनुमंत॥ 75॥


भीषण युद्ध होने लगा

मेघनाद मारा गया


मरती बार कपटु सब त्यागा॥

मरते समय उसने सारे कपट त्याग दिये

इसके अतिरिक्त

आचार्य जी ने 

गीता के सोलहवें अध्याय का उल्लेख क्यों किया जानने के लिये सुनें

27.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 27 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्।


कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्।।9.7।।



प्रस्तुत है आधर्मिक -रिपु *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 27 दिसंबर 2022 

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  *516 वां* सार -संक्षेप

*बेईमानों का शत्रु

देवताओं से भी अधिक शक्ति प्राप्त करने में सक्षम और परमात्मा के परिष्कृत अंश मनुष्य से ही संसार आचार विचार विकार संयम नियम ध्यान धारणा व्यवहार संयुत है


मनुष्य कभी अपने को बहुत विचलित कर लेता है और कभी जब उसे सुस्पष्ट रहता है कि


वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव


दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्।


अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा


योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्।।8.28।।

तो 

विचलनों से बाहर निकलने का मार्ग भी स्वयं ही खोज लेता है

वह भक्ति के आधार पर परमात्माश्रित रहता है यद्यपि किसी को अपना स्थान त्यागना अच्छा नहीं लगता फिर भी संसार रूपी रंगमंच पर  बिना लिप्त हुए सांसारिक कार्यों को अभिनेता की भांति करते हुए वह मुक्त भाव से परमात्मा से पुरस्कृत होता है

लेकिन 

अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।


परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्।।9.11।।


मूर्ख  मेरे  महान् ईश्वर रूप परम भाव को न जानते हुए मुझे  साधारण मनुष्य मानकर मेरी अवज्ञा करते हैं।


कुछ पाने का भाव लिये भक्ति करने वाले शक्ति के मद में चूर राक्षसी स्वभाव वाले रावण मेघनाद भगवान् राम को साधारण मनुष्य ही मान रहे हैं


लरहिं सुभट निज निज जय हेतू। बरनि न जाइ समर खगकेतू॥6॥


दृश्य है

सांसारिक ज्ञानियों के लिये अबूझ रामचरित मानस के 

 लंका कांड में युद्ध का


कुम्भकर्ण मारा जा चुका है

मेघनाद का आगमन हो गया है

मेघनाद मायामय रथ चढ़ि गयउ अकास।

गर्जेउ अट्टहास करि भइ कपि कटकहि त्रास॥72॥


देवताओं से वरदान प्राप्त मेघनाद का दुस्साहस देखिये

पुनि रघुपति सैं जूझै लागा। सर छाँड़इ होइ लागहिं नागा॥5॥


ब्याल पास बस भए खरारी। स्वबस अनंत एक अबिकारी॥


लेकिन

चरित राम के सगुन भवानी। तर्कि न जाहिं बुद्धि बल बानी॥

*अस बिचारि जे तग्य बिरागी। रामहि भजहिं तर्क सब त्यागी*॥1॥


यह भक्ति है उसे तर्कों से दूर रखना चाहिये


भक्ति के भाव को समझने की चेष्टा करें


मिट्टी में भी भाव देखे जाते हैं

उसकी मूर्ति की पूजा करते हैं


फिर जामवंत ने लंका के द्वार पर मेघनाद को फेंक दिया


इसके अतिरिक्त भैया दीपक शर्मा जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिये सुनें

26.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 26 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कर सारंग साजि कटि भाथा। अरि दल दलन चले रघुनाथा॥

प्रथम कीन्हि प्रभु धनुष टंकोरा। रिपु दल बधिर भयउ सुनि सोरा॥1॥




प्रस्तुत है आत्मसम्पन्न *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 26 दिसंबर 2022 

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  515 वां सार -संक्षेप

*स्वस्थचित्त


कल सम्पन्न हुआ कार्यक्रम प्रेममय कार्य की सफलता का नमूना था

हम जीवनपर्यन्त संयुत रहने का अभ्यास लेकर चल रहे हैं

यह हमारी भारतीय संस्कृति का मूल आधार है


आचार्य जी ने षड् रिपुओं में मत्सर के अतिरिक्त बाकी को सात्विकता से संयुत किया

संपूर्ण सृष्टि में देवत्व मनुष्यत्व  विद्यमान है


भारत का अध्यात्म इन सबका संयोजन करता है

गीता में

बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्याऽऽत्मानं नियम्य च।


शब्दादीन् विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।


विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः।


ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः।।


अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।


विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते।।18.53।।


विशद बुद्धि से युक्त व्यक्ति , धृति द्वारा आत्मसंयम कर, शब्द आदि विषयों, राग, द्वेष को त्यागते हुए 

विविक्त सेवी,  मिताहारी जिसने अपने शरीर, वाणी और मन को संयत कर लिया है,जो ध्यानयोग के अभ्यास में सदैव लगा रहता है, जो वैराग्य पर समाश्रित है


अहंकार, बल, घमंड , काम, क्रोध और परिग्रह को किनारे कर ममता के भाव से रहित और शान्त पुरुष ब्रह्म प्राप्ति हेतु सुयोग्य बन जाता है


मोक्ष  मृत्यु नहीं उत्साहमय संकल्पमय आनन्दमय विश्वासमय जीवन है

रोग दोष विचारमय जीवन है

हमें शंकाशील लोभी कामी देवत्व कभी नहीं प्राप्त करना

कर्मशील मनुष्य का हमें जीवन जीना है 

इसी सात्विक चिन्तना के पश्चात् आइये रामदल के हम सदस्य चलते हैं लंका कांड में


कुम्भकर्ण के हावी होने पर भगवान् राम ने अपने हाथ में कमान ले ली 


सुनु सुग्रीव बिभीषन अनुज सँभारेहु सैन।

मैं देखउँ खल बल दलहि बोले राजिवनैन॥67॥



छन महुँ प्रभु के सायकन्हि काटे बिकट पिसाच।

पुनि रघुबीर निषंग महुँ प्रबिसे सब नाराच॥68॥



भगवान् राम के बाणों ने पलक झपकते ही  राक्षसों को काटकर रख दिया। फिर वे सब बाण वापस श्री राम के तरकस में पहुंच गये


खैंचि धनुष सर सत संधाने। छूटे तीर सरीर समाने॥

लागत सर धावा रिस भरा। कुधर डगमगत डोलति धरा॥4॥

कुम्भकर्ण मारा गया

और


सो सिर परेउ दसानन आगें। बिकल भयउ जिमि फनि मनि त्यागें॥

धरनि धसइ धर धाव प्रचंडा। तब प्रभु काटि कीन्ह दुइ खंडा॥3॥


देव नगाड़े बजाते हुए , हर्षित होते हुए, स्तुति करते हुए बहुत से पुष्प बरसाने लगे


संग्राम भूमि बिराज रघुपति अतुल बल कोसल धनी।


...यह भगवान् राम के वीरत्व का तुलसीदास जी ने अद्भुत वर्णन किया है

कुम्भकर्ण की मृत्यु पर



बहु बिलाप दसकंधर करई। बंधु सीस पुनि पुनि उर धरई॥2॥


फिर मेघनाथ आ जाता है


मेघनाद मायामय रथ चढ़ि गयउ अकास।

गर्जेउ अट्टहास करि भइ कपि कटकहि त्रास॥72॥



हिन्दू मानस के भय को समाप्त करने के लिये तुलसी जी ने ये सब वर्णन किये हैं

 रामजन्म का हेतु है


असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु।

जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु।।121।।

25.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 25 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै


र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।


प्रस्तुत है आत्मयाजिन् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 25 दिसंबर 2022 

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  *514 वां* सार -संक्षेप

*वह पुरुष जो शाश्वत आनन्द प्राप्ति हेतु स्वयं की और दूसरों की आत्मा का अध्ययन करता हो

ईश्वरत्व यही है जो दूसरे के ताप का हरण कर उसे शैत्य प्रदान करे

हम सभी पुरुष जो उस परमपुरुष के अंश हैं यदि सुख दुःख के द्वन्द्व से मुक्त हैं संसार और सार को समझने का विचार और विवेक यदि हमारे साथ संयुत रहता है तो हम प्रसन्न रहते हैं और अन्य को भी प्रसन्न रखते हैं

यही प्रसन्नता रखते हुए आइये प्रवेश करते हैं लंका कांड में


हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥

तुरत बैद तब कीन्ह उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई॥1॥

लक्ष्मण जी अब उठ गये हैं


तुलसीदास जी की अद्भुत कल्पना देखिये असंगति अलंकार (कार्य कहीं परिणाम कहीं )का उत्कृष्ट उदाहरण है यह



गीतावली में


हृदय घाउ मेरे पीर रघुबीरै |

  पाइ सजीवन, जागि कहत यों प्रेमपुलकि बिसराय सरीरै ||


  मोहि कहा बूझत पुनि पुनि, जैसे पाठ-अरथ-चरचा कीरै |

  सोभा-सुख, छति-लाहु भूपकहँ, केवल कान्ति-मोल हीरै ||


  तुलसी सुनि सौमित्रि-बचन सब धरि न सकत धीरौ धीरै |

  उपमा राम-लषनकी प्रीतिकी क्यों दीजै खीरै-नीरै ||

घाव लक्ष्मण जी के है लेकिन पीड़ा प्रभु राम को है


प्रेम में पुलकित होने पर शरीर का भान नहीं रहता


उधर कुम्भकर्ण जब निद्रा में था तो उसका राक्षसत्व शमित था 

जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान॥1

लेकिन जैसे उसका राक्षसत्व उस पर हावी हुआ


यही भाव परिवर्तन संसार है


कुंभकरन दुर्मद रन रंगा। चला दुर्ग तजि सेन न संगा॥1॥


सात्विक कथा को तामसी कथा से तुलसीदास जी ने अद्भुत रूप से संयुत किया है


 कुम्भकर्ण   युद्धरत है 


तब मारुतसुत मुठिका हन्यो। परयो धरनि ब्याकुल सिर धुन्यो॥


भयानक युद्ध चल रहा है



कुम्भकर्ण हावी हो रहा है तब राम जी अपने हाथ में कमान लेते हैं


सुनु सुग्रीव बिभीषन अनुज सँभारेहु सैन।

मैं देखउँ खल बल दलहि बोले राजिवनैन॥67॥

इसके अतिरिक्त


*युग भारती आज  बैच 97 के सदस्यों का रजत जयन्ती कार्यक्रम मना रही है*


*आप सभी सदस्य अपने परिवारजनों के साथ प्रातःकाल दस बजे से अपराह्न भोजन के पश्चात तक हम सभी के साथ रहेंगे, ऐसी अपेक्षा करते हैं |*


YouTube (https://youtu.be/YzZRHAHbK1w)

अत्यादित्य वागृषभ आचार्य श्री ओम शंकर त्रिपाठी जी

Idea                                     :        Ajay Shanker Dixit, Mohan Krishna Mishra

 Director and Producer     :        Praveen Agarwal

Executive Producer           :       Mina Rani Agarwal

Assistant Executive 

Producer,

 Cinematographer,

Director of Photography    :       Ram Pratap

Assistant Director of


24.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 24 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है आत्मविद् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 24 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *513 वां* सार -संक्षेप

*बुद्धिमान पुरुष


स्थान :कानपुर


एक व्यवस्थित व्यवस्था के अनुसार यदि हमारा शरीर मन बुद्धि चलते हैं तो हम विचार चिन्तन आदि के लिये समय निकाल लेते हैं

मन बुद्धि चित्त अहं सूक्ष्म तत्त्व हैं जो स्थूल शरीर को संचालित करते हैं


हम भारतीय ऐसा सोचते हैं कि मन ठीक तो बुद्धि ठीक रहेगी

बुद्धि ठीक तो विचार ठीक, विचार ठीक तो व्यवहार ठीक रहेगा और व्यवहार ठीक रहेगा तो संसार अर्थात् शरीर ठीक रहेगा

इससे उलट भोगवादी देश सोचते हैं कि शरीर ठीक रहेगा तो सब ठीक रहेगा


हमें सम अवस्था में रहने का प्रयास करना चाहिये


न बहुत व्याकुल न बहुत निश्चिन्त



परिस्थिति को भांपकर बौद्धिक व्यवहार करना चाहिए 



विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम्।


श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते।।17.13।।


शास्त्रविधि से हीन, अन्न-दान से दूर , बिना मन्त्रों,  दक्षिणा और श्रद्धा के  किया गया यज्ञ तामस यज्ञ है


तामस यज्ञ शरीर के भोग के लिये है जितना शरीर को महत्त्व मिलेगा उतना वह बोझिल होता जायेगा


देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।


ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते।।17.14।।


देवता, ब्राह्मण, गुरु और ज्ञानी का पूजन करना, शुद्धि रखना, आर्जवम् अर्थात् सरलता, ब्रह्मचर्य का पालन करना और अहिंसा  शरीर सम्बन्धी तप   है।


इसी तरह आचार्य जी ने वाणी का तप और मन का तप  बताया


इस तप को जो व्यवहार में ले आते हैं वे सम्मानित होते हैं


इसी तरह के बहुत से सम्मान के पात्र हैं रामचरित मानस में जिसके लंका कांड में आइये प्रवेश करते हैं


सोरठा है

प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।

आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस॥61॥


करुणा रस का प्रसंग अब वीर रस के प्रसंग में परिवर्तित हो गया


संरक्षक सहायक अभिभावक  के रूप में विद्यमान हनुमान जी आ चुके हैं



हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥

तुरत बैद तब कीन्ह उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई॥1॥

*यही रामत्व है कि हमारी तरह परमात्मा के ही अंश सेवक के प्रति  भी हमारी कृतज्ञता हो*



सारे समूह में हर्ष की लहर दौड़ गई


वैद्य वैद्य है शिक्षक शिक्षक है उसके सामने शत्रु मित्र का सवाल नहीं होता रावण ने सुषेण को यह जानने के बाद भी निकाला नहीं


यह बृत्तांत दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ॥

ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा॥3॥

लक्ष्मण जी फिर भगवान् राम के साथ खड़े  हो गये हैं यह सुनकर रावण विषादग्रस्त हो गया



कुम्भकरण जग गया है


सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बिलखान।

जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान॥62॥

लेकिन उसके मुख से भी सत्य ही निकला

मूर्ख!

(रावण से)

 जगज्जनी को हर लेने के बाद सुख चाह रहे हो


रावण का विनाश निकट है इसलिये उसकी बुद्धि विकृत ही रही


सुनु भयउ कालबस रावन। सो कि मान अब परम सिखावन॥

धन्य धन्य तैं धन्य विभीषन। भयहु तात निसिचर कुल भूषन॥4॥


रावण चापलूसों से घिरा है

अकबर भी रावण की तरह का था अकबर को भी बहुत लोगों का समर्थन था तब तुलसीदास चेतावनी दे रहे थे


रामत्व जाग्रत हुआ सल्तनतें नष्ट हुईं

भारत का दीप कभी बुझेगा नहीं


भारत की प्रज्ञा को परमात्मा मार्ग देता है


यही यथार्थ है


हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक रुकना नहीं है अपने रामत्व से हम रावणों को नष्ट करते चलेंगे

23.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 23 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जेहिं बिधि राम बिमुख मोहि कीन्हा। तेहिं पुनि यह दारुन दु:ख दीन्हा॥

जौं मोरें मन बच अरु काया॥ प्रीति राम पद कमल अमाया॥3॥


प्रस्तुत है आत्मवश्य *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 23 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *512 वां* सार -संक्षेप

*अपने मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाला व्यक्ति


इन अर्थवान सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हम समस्याओं के अम्बार को भगवान् राम की कृपा से और मनुष्यत्व जाग्रत कर दूर करने का प्रयास करते हैं


देवों और दानवों की सूक्ष्म शक्तियां इस अंतरिक्ष में तैरती रहती हैं जो हमारे अस्तित्व व्यक्तित्व की रक्षा  करती हैं और संकट भी उत्पन्न करती हैं


अब यह हमारे पूर्वजन्म के प्रारब्ध हमारे आचरण व्यवहार कर्म पर आधारित होता है कि हमें क्या अधिक मिलता है

एक दूसरे के सहयोग से यह संसार चलता रहता है


दूसरे की कमजोरी को अपनी शक्ति क्षमता से दूर करने का हमें प्रयास करना चाहिये यही अपनत्व है

आत्मस्थ होने का प्रयास करें

रामत्व की अनुभूति करते हुए 

आइये लंका कांड में पुनः चलते हैं


देखा सैल न औषध चीन्हा। सहसा कपि उपारि गिरि लीन्हा॥

गहि गिरि निसि नभ धावक भयऊ। अवधपुरी ऊपर कपि गयऊ॥4॥

हनुमान जी पर्वत लेकर लौट रहे हैं




बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई॥

शक्ति बुद्धि विचार सहन करने की असीम क्षमता वाला व्यक्ति ही विश्व का भरण पोषण कर सकता है भरत ऐसे ही हैं उन भरत ने अयोध्या पर संकट देखकर हनुमान जी  पर प्रहार कर दिया


हनुमान जी की बात सुनकर भरत जी दुःखी हो गये

सांकेतिक विलाप कर बोले 


अहह दैव मैं कत जग जायउँ। प्रभु के एकहु काज न आयउँ॥

जानि कुअवसरु मन धरि धीरा। पुनि कपि सन बोले बलबीरा॥2॥


तात गहरु होइहि तोहि जाता। काजु नसाइहि होत प्रभाता॥

चढ़ु मम सायक सैल समेता। पठवौं तोहि जहँ कृपानिकेता॥3॥

हनुमान जी को भेज दिया


उधर लक्ष्मण जी के बारे में सुनकर अयोध्या में हलचल मच गई


आचार्य जी ने यहां अन्य ग्रंथों का संदर्भ देकर बताया कि मां सुमित्रा का  मातृत्व विलक्षण


 त्याग और बलिदान का प्रतीक है और मां उर्मिला का भी बड़ा मार्मिक प्रसंग है



और उधर


उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी॥

अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायउ॥1॥

भगवान राम का लक्ष्मण के प्रति प्रेम देखते ही बनता है


हनुमान जी पहुंच गये हैं

इसके अतिरिक्त समास शैली और व्यास शैली में क्या अन्तर है  मा अशोक सिंघल जी का नाम क्यों आया जानने के लिये सुनें

22.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 22 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 भजि रघुपति करु हित आपना। छाँड़हु नाथ मृषा जल्पना॥

नील कंज तनु सुंदर स्यामा। हृदयँ राखु लोचनाभिरामा॥3॥


प्रस्तुत है आत्ममानिन् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 22 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  *511 वां* सार -संक्षेप

*आदरणीय

स्थान :कानपुर 

प्रातःकाल विचारों का एक विशेष स्वरूप आचार्य जी के मन में आ जाता है और भाव उद्भूत होने लगते हैं


प्रतिदिन इन्हीं भावों विचारों से लाभान्वित होने के लिये शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा के लिये संकल्पित हम लोग इन सदाचार संप्रेषणों की प्रतीक्षा करते हैं

किसी भी परिस्थिति में नित्य आचार्य जी की अभिव्यक्ति वास्तव में आश्चर्य का विषय है


*यह कौतूहल जानइ सोई। जा पर कृपा राम कै होई॥*


इन्द्रियां सदैव विकार ही नहीं हैं विचार भी हैं जाग्रत इन्द्रियां  हमारी सहायता करती हैं

जड़ चेतन गुण दोष मय शरीर में जड़त्व शमित रहे चैतन्य जाग्रत रहे भाव भक्ति की ओर उन्मुख रहे भक्ति हमें सहारा देती है भक्ति विश्वास है अविश्वासी सदैव कष्ट में रहता है

अपनी समस्याओं का समाधान अपने ही पास है


अपनेपन का अद्भुत आत्मविस्तार हमें दिखाता है कि दूसरे ने हमारी मदद की


बीरघातिनी छाड़िसि साँगी। तेजपुंज लछिमन उर लागी॥

मुरुछा भई सक्ति के लागें। तब चलि गयउ निकट भय त्यागें॥4॥

असीम रामकथा के लंका कांड के इस दृश्य में पहुंचाते हुए आचार्य जी बता रहे हैं

कि यद्यपि मेघनाथ अत्यंत शक्तिशाली है लेकिन भीतर से वह भयभीत है


लेकिन  विश्वास के प्रतिरूप हनुमान जी को विश्वास है कि लक्ष्मण जी का शरीर प्राणयुक्त है


जामवंत कह बैद सुषेना। लंकाँ रहइ को पठई लेना॥

धरि लघु रूप गयउ हनुमंता। आनेउ भवन समेत तुरंता॥4॥

सुषेण वैद्य आ चुके हैं

कालनेमि ने भी रावण को अन्य लोगों की तरह समझाया

देखत तुम्हहि नगरु जेहिं जारा। तासु पंथ को रोकन पारा॥2॥


लेकिन रावण को क्रोध आ गया


सुनि दसकंठ रिसान अति तेहिं मन कीन्ह बिचार।

राम दूत कर मरौं बरु यह खल रत मल भार॥56॥


कालनेमि ने माया रच डाली

उसके बाद जब हनुमान जी पर्वत पर पहुंच गये


देखा सैल न औषध चीन्हा। सहसा कपि उपारि गिरि लीन्हा॥

गहि गिरि निसि नभ धावक भयऊ। अवधपुरी ऊपर कपि गयऊ॥4॥



अतुलित बलशाली हनुमान जी को देखकर अयोध्या की सेवा और सुरक्षा करने वाले भरत जी ने गलत समझ लिया


परेउ मुरुछि महि लागत सायक। सुमिरत राम राम रघुनायक॥

सुनि प्रिय बचन भरत तब धाए। कपि समीप अति आतुर आए॥1॥

कालनेमि द्वारा राम राम बोलने और हनुमान जी द्वारा राम राम बोलने में अन्तर है


उसी की पहचान सुस्पष्ट होती है जिसके भाव शुद्ध रहते हैं

हनुमान जी भरत जी को अब भक्त दिख रहे हैं

21.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 21 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 स्वयं के काम पर ईमान रखना देशसेवा है, 

कि अपने धर्म का सम्मान रखना देशसेवा है, 

सदा सद्भाव से सहयोग करना देशसेवा है, 

पड़ोसी से मधुर संबंध रखना देशसेवा है, 

प्रकृति से प्रेम करना भी अनोखी देशसेवा है, 

मितव्ययिता सरलता और शुचिता देशसेवा है, 

सहज अक्रोध धीरज और मुदिता देश सेवा है

सुसंगति और सेवा भावना भी देशसेवा है।

जहाँ पर देशसेवा के लिए शर्तें हुआ करतीं, 

वहाँ पर कर्म के ऊपर सदा पर्तें पड़ा करतीं।


प्रस्तुत है आत्मनिष्ठ *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 21 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  510 वां सार -संक्षेप

* आत्मज्ञान का लगातार अन्वेषण करने वाला

स्थान :कानपुर 


प्रातःकाल सदाचार संप्रेषण का मूल हेतु है कि हम लोग सद् व्यवहार सत्कर्म सदाचरण सात्विक जीवन अध्यात्म लेकिन शौर्यमय  से संयुत हों


अध्यात्म को शौर्य प्रमण्डित न करने का परिणाम यह हुआ कि एक रूप एक रस एक भाव एक भक्ति एक शक्ति और एक चैतन्य वाला हमारा भारत देश खंड खंड में बंट गया


शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म का एक अद्वितीय उदाहरण अपने जीवन की चिन्ता न करने वाले लेकिन अपनी संस्कृति की चिन्ता करने वाले 

पिता वारिया ते लाल चार वारे सरबंसदानी गुरु गोविन्द सिंह हैं जिनका जन्म पौषशुक्ल सप्तमी संवत् 1723 तदनुसार 22 दिसंबर 1666 को हुआ था



इतिहास का स्मरण हमारे चैतन्य को जाग्रत करता है दुर्भाग्य अभी भी साथ है कि अपने आत्मबोध को ही हानि पहुंचाने वाली अंग्रेजी और अंग्रेजियत में डूबा विद्यालय अभी भी ढूंढा  जाता है


हमें अपनी भूमिका के अनुसार ही काम करना चाहिये

मनुष्य कर्मयोनि है देवता भोगयोनि है इसलिये जब हम कर्म करते हैं तो भोग वाले देवताओं से ऊपर हो जाते हैं


 कुछ कर्मानुरागी देवता भी होते हैं जैसे हनुमान जी 


अपना भारतीय जीवन दर्शन , रामकथा कर्तव्य कर्म और कर्तव्य बोध पर आधारित है

राम जी का काम अटक न जाये तो 

आइये चलते हैं  रामात्मक चिन्तन करते हुए अध्यात्म इतिहास अलंकार साहित्य छंद से सुसज्जित आनन्दप्रद पथप्रदर्शक रामकथा के लंका कांड में ताकि हमारे ऊपर राम की कृपा हो और हम भ्रमित न हों 



जासु प्रबल माया बस सिव बिरंचि बड़ छोट।

ताहि दिखावइ निसिचर निज माया मति खोट॥51॥


शिव और ब्रह्मा तक जिन राम जी की अत्यंत बलवान माया के वश में हैं, राक्षस उनको अपनी माया दिखला रहे हैं



युद्ध चल रहा है



घायल बीर बिराजहिं कैसे। कुसुमति किंसुक के तरु जैसे॥

लछिमन मेघनाद द्वौ जोधा। भिरहिं परसपर करि अति क्रोधा॥1॥


नाना बिधि प्रहार कर सेषा। राच्छस भयउ प्रान अवसेषा॥

रावन सुत निज मन अनुमाना। संकठ भयउ हरिहि मम प्राना॥3॥

मेघनाद ने  अनुमान लगा लिया कि अब तो प्राण संकट में हैं


तब मेघनाथ ने वीरघातिनी शक्ति चला दी


दुराचारी ने शक्ति का दुरुपयोग कर दिया


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग प्रश्न पूछें

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इसके अतिरिक्त भैया संदीप शुक्ल का नाम क्यों आया जानने के लिये सुनें

20.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 20 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ज्ञान -रीति *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 20 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  509 वां सार -संक्षेप

* रीति =मार्ग



जो किसी को कुछ अच्छी बात बताना चाहता है वह गुरुत्व की अभिव्यक्ति है


गुरुत्व सबको प्राप्त नहीं होता लेकिन इसका अंश सभी में रहता है


गुरुत्व की अनुभूति जिनको होने लगती है वह उस गुरुत्व को संरक्षित न कर विकसित करने की चेष्टा करने लगते हैं

यही व्यक्ति महान् व्यक्ति कहलाते हैं 

आचार्य जी भी अपने गुरुत्व को विकसित करते हुए इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हमें अपने गुरुत्व की अनुभूति कराने की चेष्टा करते हैं


सदाचार एक प्रयास है अपने स्वभाव को परिवर्तित करने का, हम रामत्व धारण करें समजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी बनें

भगवान् राम से पुरुषार्थमय जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है 

हम सभी के अन्दर रामत्व और रावणत्व दोनों विद्यमान रहता है




और हमें एक बात और ध्यान रखनी चाहिये कि हम गुरु के अवगुणों को  न देखकर सद्गुणों की ओर देखें 


भलेउ पोच सब बिधि उपजाए। गनि गुन दोष बेद बिलगाए॥

कहहिं बेद इतिहास पुराना। बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना॥2॥


भले लोग बुरे लोग सभी ब्रह्मा ने पैदा किए हैं, किन्तु गुणों और दोषों को विचार कर वेदों ने उनको विभाजित कर दिया है। वेद, इतिहास और पुराण यह कहते हैं कि ब्रह्मा की यह सृष्टि गुण-अवगुणों से युक्त  है



अस बिबेक जब देइ बिधाता। तब तजि दोष गुनहिं मनु राता॥

काल सुभाउ करम बरिआईं। भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाईं॥1॥

तुलसीदास जी पर ईश्वरीय कृपा थी उनका सदाचार का प्रयास सहज प्रारम्भ हो गया



आइये चलते हैं उन्हीं की कृति मानस के लंका कांड में


राक्षसों के सामने हनुमान जी का आवेश देखते ही बनता है

 रावण का पुत्र रावण को हिम्मत बंधाता है


तब सकोप बोलेउ घननादा॥

कौतुक प्रात देखिअहु मोरा। करिहउँ बहुत कहौं का थोरा॥3॥


मेघनाद सुनि श्रवन अस गढ़ पुनि छेंका आइ।

उतर्‌यो बीर दुर्ग तें सन्मुख चल्यो बजाइ॥49॥


हनुमान जी तो हर संकट में साथ हैं


देखि पवनसुत कटक बिहाला। क्रोधवंत जनु धायउ काला॥

महासैल एक तुरत उपारा। अति रिस मेघनाद पर डारा॥1॥


इसके बाद लक्ष्मण मेघनाथ में युद्ध प्रारम्भ हो जाता है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अवधेशानन्द जी की चर्चा क्यों की भैया शीलेन्द्र जी ने क्या प्रेधित किया था जानने के लिये सुनें

19.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 19 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है निश्चक्रिक *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 19 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  508 वां सार -संक्षेप

* ईमानदार


भैया मनीष कृष्णा के आग्रह से प्रारम्भ हुआ सदाचार वेला का यह स्वरूप परमात्मा की अद्भुत योजना का एक भाग कहा जायेगा


क्षिति जल पावक गगन समीर से बना यह अधम शरीर ढोते हुए हम अपने को सुख दुःख झेलते हुए मात्र खाने पीने सोने तक सीमित कर जीवन न व्यतीत कर दें इसलिये आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमारी जिज्ञासा प्रबल हो कि अध्यात्म क्या है हम चिन्तन मनन निदिध्यासन अध्ययन स्वाध्याय में रत हों

हमारा रुझान अपने आत्मोत्थान के लिये सतत बना रहे


चिन्ता मनुष्य का स्वाभाविक गुण है लेकिन चिन्तन प्रयासपूर्वक कर सकते हैं


आत्मानुभूति से उत्पन्न आत्मशक्ति की अनुभूति प्रत्येक क्षण होती रहे इसी के लिये एक सरल सा सूत्रसिद्धान्त है

जो करता है परमात्मा करता है और परमात्मा सब अच्छा ही करता है


यह निश्चिन्तता न होकर जिज्ञासा का मूल आधार है

जैसे

भौतिक निर्माण के लिए, कृष्ण के पूर्ण विस्तार में तीन विष्णु  हैं। पहले, महा विष्णु जो कुल भौतिक ऊर्जा का निर्माण करते हैं, जिसे महातत्व के रूप में जाना जाता है। दूसरे, गर्भोदकशायी विष्णु, विविधता पैदा करने हेतु सभी ब्रह्मांडों में प्रवेश करते हैं और तीसरे, क्षीरोदकशायी विष्णु, सभी ब्रह्मांडों में सर्वव्यापी परमात्मा के रूप में फैले हुए हैं. वे परमाणुओं के भीतर भी मौजूद हैं।यही मौजूदगी अद्वैतवाद के सिद्धान्त को जन्म देती है


महामनीषी तुलसीदास की एक अद्भुत  चर्चित कृति मानस  भगवान् राम की कथा है जिसमें रावण आदि पात्र हैं


लंका कांड में आगे

रावण का दरबार है जहां चर्चा हो रही है


अंगद अरु हनुमंत प्रबेसा। कीन्ह दुर्ग अस कह अवधेसा॥

लंकाँ द्वौ कपि सोहहिं कैसें। मथहिं सिंधु दुइ मंदर जैसें॥4॥

कछु मारे कछु घायल कछु गढ़ चढ़े पराइ।

गर्जहिं भालु बलीमुख रिपु दल बल बिचलाइ॥47॥



रावण को रावण बनाने वाला रावण का सबसे अधिक हितैषी माल्यवान समझा रहे हैं


जब ते तुम्ह सीता हरि आनी। असगुन होहिं न जाहिं बखानी॥


परिहरि बयरु देहु बैदेही। भजहु कृपानिधि परम सनेही॥

ताके बचन बान सम लागे। करिआ मुँह करि जाहि अभागे॥1॥


रावण ने तमोगुण पाये थे तमोगुणों का सबसे पहले आधार है धन  फिर साधन


ऋषि भटक जाता है भोगी हो जाता है तो राक्षसी वृत्ति दिखती है


अंगद हनुमान मन्दोदरी विभीषण आदि बहुत लोग समझा चुके थे.

अब माल्यवान समझाते समझाते हार गया 



सो उठि गयउ कहत दुर्बादा।

तब सकोप बोलेउ घननादा॥

कौतुक प्रात देखिअहु मोरा। करिहउँ बहुत कहौं का थोरा॥3॥


वह रावण को दुर्वचन कहता हुआ  चला गया। तब मेघनाद क्रोधित होकर बोला- सुबह मेरी करामात देखना। मैं बहुत कुछ करूँगा, थोड़ा क्या कहूँ?


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने

आचार्य चतुरसेन की वयं रक्षामः की चर्चा की

18.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 18 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 देहिं परम गति सो जियँ जानी। अस कृपाल को कहहु भवानी॥

अस प्रभु सुनि न भजहिं भ्रम त्यागी। नर मतिमंद ते परम अभागी॥3॥


प्रस्तुत है बहुश्रुत *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 18 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  507 वां सार -संक्षेप

* विज्ञ पुरुष



अध्यात्म से हमारा सबसे बड़ा बल मनोबल परिपुष्ट होता है इसीलिये प्रतिदिन हम लोग सदाचार संप्रेषण के इन क्षणों का लाभ प्राप्त करते हैं क्यों इन संप्रेषणों में अध्यात्म की भी चर्चा होती है


अन्यथा शेष बचा दिन सांसारिक प्रपंचों और रात्रि निद्रा /स्वप्न में ही तो जाया हो जाती है


जब अध्यात्म व्यवहार में प्रवृत्त होता है तो व्यक्ति द्वारा सारी समस्याएं सुलझा ली जाती हैं


कभी कभी अध्यात्मवादी भी व्याकुल होते हैं


सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।

हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ॥


वशिष्ठ मुनि ने  दुःखी होकर कहा- हे भरत! सुनो, भावी बड़ी बलवान है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश आदि विधाता के हाथ हैं


अपनी व्याकुलता अपनों की व्याकुलता अध्यात्म को डांवाडोल कर देती है


तब साधक को भगवत् शरण दिखती है



इसीलिये  कुछ क्षणों के लिये भगवत् शरण में जाने का प्रयास करें


मानस में कथा उतार चढ़ाव मानसिक अभिव्यक्तियां अध्यात्म के साथ स्रष्टा की सृष्टि का अद्भुत स्वरूप भारत, जो अध्यात्म आधारित है,का इतिहास है

आइये चलते हैं लंका कांड में


अंगद सुना पवनसुत गढ़ पर गयउ अकेल।

रन बाँकुरा बालिसुत तरकि चढ़ेउ कपि खेल॥43॥


मां सीता से अमरता का वरदान प्राप्त शिवावतार हनुमान जी के साथ अंगद भी लंका में प्रविष्ट हो गये हैं अद्भुत युद्ध चल रहा है राम के बल का प्रताप देखिये कि दुर्ग में दोनों  प्रवेश कर गये



कवितावली में अत्यन्त उत्साह के साथ हनुमान जी की वीरता का वर्णन है


जाकी बाँकी बीरता सुनत सहमत सूर,

⁠जाकी आँच अजहूँ* लसत लंक लाहसी।

सेई हनुमान बलवान बाँके बानइत,

⁠जोहि जातुधान-सेना चले लेत थाहसी॥

कंपत अकंपन, सुखाय अतिकाय काय,

⁠कुम्भऊकरन आइ रह्यो पाइ आहसी।

देखे गजराज मृगराज ज्यों गरजि धायो

⁠बीर रघुबीर को समीर-सूनु साहसी॥


मानस में


अंगद अरु हनुमंत प्रबेसा। कीन्ह दुर्ग अस कह अवधेसा॥

लंकाँ द्वौ कपि सोहहिं कैसें। मथहिं सिंधु दुइ मंदर जैसें॥4॥


भुजबल से शत्रु  सेना को कुचलकर मसलकर, फिर दिन का अंत होता देखकर हनुमान जी और अंगद दोनों कूद पड़े और थकावट रहित होकर   भगवान श्री रामजी के पास आ गये

युद्ध फिर शुरु 


मायामय युद्ध चल ही रहा है


अग्निबाण ने प्रकाश फैला दिया और उस प्रकाश से रामदल में उत्साह आ गया


और उधर रावण घबरा गया कि आधी सेना तो इन दो वानरीं ने नष्ट कर डाली लेकिन दस अवगुणों काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष एवं भय के प्रतीक रावण का दम्भ देखिये


उसका काल निकट था बुद्धि फिर गई थी


ताके बचन बान सम लागे। करिआ मुँह करि जाहि अभागे॥1॥

17.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 17 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 राम प्रताप प्रबल कपिजूथा। मर्दहिं निसिचर सुभट बरूथा॥

चढ़े दुर्ग पुनि जहँ तहँ बानर। जय रघुबीर प्रताप दिवाकर॥1॥


प्रभु रामजी के प्रताप से  वानरों के झुंड राक्षसों के समूह के समूह मसल रहे हैं। वानर  जहाँ-तहाँ किले पर चढ़ गए और सूर्य के समान प्रतापी श्री राम की जय बोलने लगे


प्रस्तुत है बहुमान्य *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 17 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  506 वां सार -संक्षेप

* आदरणीय


अव्यवस्थाओं बाधाओं अवरोधों का उपस्थित होना संसार का सहज स्वभाव है

बाधाओं अवरोधों को पार करते हुए संघर्षों से टकराते समय विजय की कामना करते हुए  सुस्पष्ट बुद्धि विचार के साथ हमें आगे बढ़ना चाहिये


आत्मशक्ति जाग्रत करना आवश्यक है यदि हम किसी के द्वारा धक्का दिये जाने पर आगे बढ़ते हैं तो वह एक ढोंग ही है


भगवान् राम के दल के एक एक योद्धा की आत्मशक्ति जाग्रत है जब कि रावण की सेना धक्के द्वारा आगे चल रही है

ये बात हो रही है लंका कांड की


भारत भ्रमित तब होता है जब उसे भारतीयत्व समझ में नहीं आता है


बहुत लम्बा समय भ्रम और भय में व्यतीत हो गया है लेकिन अब हमारी आंखें खुल गई हैं

अब हमारा विश्वास जागा हुआ दिख रहा है

आत्मशक्ति जाग्रत है इसे हाल की चीन वाली घटना में हम देख सकते हैं


प्रत्यक्ष राम रावण युद्ध आज भी चल रहा है

जिनके मन विचलित हैं स्वार्थ में रत हैं मनोबल गिरा है वो सफल नेतृत्व को भी गाली देते हैं 


इन्हीं सुस्पष्ट विचार चिन्तन मनन तर्क के साथ आइये  चलते हैं  लंका कांड में


राक्षसों के पास साधन है और रामादल में शुद्ध मन से की गई साधना है

साधना फलवती होती है 


जहां निराशा होती है वहां हाहाकार होता है लेकिन जहां उत्साह हो तो कहना ही क्या 



उत रावन इत राम दोहाई। जयति जयति जय परी लराई॥

निसिचर सिखर समूह ढहावहिं। कूदि धरहिं कपि फेरि चलावहिं॥4॥


निज दल बिकल सुना हनुमाना। पच्छिम द्वार रहा बलवाना॥

मेघनाद तहँ करइ लराई। टूट न द्वार परम कठिनाई॥2॥


हनुमान जी  यह नहीं सोच रहे कि भगवान् राम ही चिन्ता करेंगे

हमें भी हनुमान जी की तरह सोचना है केवल वर्तमान नेतृत्व के भरोसे न रहें आस्तीन में पल रहे सांपों को पहचाने सुस्पष्ट तर्क विचार के साथ राष्ट्र के प्रति निष्ठावान रहें

यही देशभक्ति है

कम्युनिस्टों वामपंथियों आदि की प्रमा कुण्ठित है वे स्वार्थी हैं अपने तत्व को मानस के अंशों से मिलाकर चलें और विजय की योजना बनायें 


आचार्य जी ने राम रावण युद्ध को विस्तार दिया

कवितावली में हनुमान जी के प्रबल प्रताप को आचार्य जी ने वर्णित किया

आज भी हमारे वीर हनुमान युद्ध करते हैं


सन् 1962 में भगवान् राम जैसा मार्गदर्शक नहीं था अन्यथा विजय मिलती

इसी लिये हमें राम का आदर्श गीता का ज्ञान लेकर ही आगे चलना है 


अब तो अंगद भी आ गया



अंगद सुना पवनसुत गढ़ पर गयउ अकेल।

रन बाँकुरा बालिसुत तरकि चढ़ेउ कपि खेल॥43॥


अद्भुत वर्णन चल रहा है


कपिलीला करि तिन्हहि डेरावहिं। रामचंद्र कर सुजसु सुनावहिं॥

पुनि कर गहि कंचन के खंभा। कहेन्हि करिअ उतपात अरंभा॥3॥

16.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 16 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जयति राम जय लछिमन जय कपीस सुग्रीव।

गर्जहिं सिंहनाद कपि भालु महा बल सींव॥39॥



प्रस्तुत है बहुप्रद *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 16 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  505 वां सार -संक्षेप

* उदार



भारतीय जीवन पद्धति और भारतीय जीवन दर्शन से यह सुस्पष्ट रहता है कि हम संसार में हैं और यह संसार भी उसी तरह निर्मित किया गया है जिस प्रकार हम निर्मित किये गये हैं निर्माता तो कोई है ही जिसकी खोज हम अपने आत्म के अन्दर कर लेते हैं और साथ में जीवन जगत में व्यवहाररत रहते हैं

इसी आत्मस्थता के लिये सदैव प्रयासरत रहें


हम कौन हैं हमारा कर्तव्य क्या है और उसका निर्वाह हम किस प्रकार कर रहे हैं इसका हमेशा ध्यान रखना चाहिये


हम भोगवादी न होकर विचारवादी लोग हैं हमें अस्ताचल वाले देशों को देखकर भ्रमित नहीं होना चाहिये


हमारे मानस को विकृत करने के अनेक प्रयास चले

हमें नीचा दिखाने के प्रयास चलते रहे



लेकिन जब जब संकट आया तब तब उसके निवारण की युक्ति भी आई 

सन् 1857 हो 1925 हो या 2014 हो



जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥

करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥


नियम है


तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥


भयानक दृश्यावलि में सूर्योदय होता रहा है



प्रथा इस देश की सचमुच समंदर की सदा जैसी, 

कि जिसका मन हुआ जैसा सुनी उसने उसे वैसी, 

मगर विद्वान ज्ञानी जानते ऋषिवर्ग का तप-बल ,

उन्हें यह भान रहता है कि होगी रीति कब कैसी।



रामकथा में भी जब रावण द्वारा सारी धरती में उत्पात मचाया जा रहा था तो रामोदय हुआ


भोगवादी रावणी वृत्ति और योगवादी राम की शक्ति में चल रहे संघर्ष को देखने आइये चलते हैं मानस में




यज्ञ भाव रखते हुए नित्य चल रहे सदाचार संप्रेषण रूपी इस यज्ञ में आइये अपनी आहुति डालें

लंका कांड में


रिपु के समाचार जब पाए। राम सचिव सब निकट बोलाए॥

लंका बाँके चारि दुआरा। केहि बिधि लागिअ करहु बिचारा॥1॥


अङ्गद शत्रु के समाचार ला चुका है अब आक्रमण की योजना बन रही है अंगद का आत्मबल और बाहुबल हम देख ही चुके हैं


जथाजोग सेनापति कीन्हे। जूथप सकल बोलि तब लीन्हे॥

प्रभु प्रताप कहि सब समुझाए। सुनि कपि सिंघनाद करि धाए॥3॥



नौकरी करने वाले सैनिकों वाली सेनाएं सशंकित होकर लड़ती हैं चीन का उदाहरण हमारे सामने है और हमारी सेना मातृभूमि के लिये लड़ती है


हम लोग अपनी साधना को साधन बना लेते हैं

उत रावन इत राम दोहाई। जयति जयति जय परी लराई॥

निसिचर सिखर समूह ढहावहिं। कूदि धरहिं कपि फेरि चलावहिं॥4॥



उधर रावण की और इधर प्रभु राम की दुहाई बोली जा रही है। 'जय' 'जय' 'जय' की आवाज होते ही लड़ाई छिड़ गई। राक्षस पहाड़ों के ढेर के ढेर शिखरों को फेंकते हैं तो वानर कूदकर उन्हें पकड़ लेते हैं और वापस उन्हीं की ओर कर देते हैं

15.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 15 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥

नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥




प्रस्तुत है बहुदृश्वन् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 15 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  504 वां सार -संक्षेप

* बहुत अधिक अनुभवी


स्थान :सरौंहां


उत्साह से लबरेज, नैराश्य अकर्मण्यता को दूर करने वाले आत्मबोध की शक्ति दर्शाने वाले इन सीमित क्षणों में कथा विचार व्यवहार की बातें से हम अरसे से लाभान्वित हो रहे हैं ये ऐसे क्षण हैं जिनमें हम संसारेतर भी सोच सकते हैं अन्यथा अधिकांश समय तो सांसारिक प्रपंचों में चला जाता है


किसी भी क्षेत्र में जायें समाजोन्मुखी जीवन जियें

यशस्विता के लिये आगे बढ़ें 


धर्म के लिये जियें समाज के लिये जियें 

ये धड़कनें  ये श्वास हो पुण्यभूमि के लिये कर्मभूमि के लिये ll 


गर्व से सभी कहें हिन्दु हैं हम एक हैं 

जाति पंथ भिन्नता स्नेह सूत्र एक है

शुभ्र रंग की छटा सप्त रंग है लिये ॥१॥


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः मूल भाव होना चाहिये


अपने अन्दर अवस्थित भावों के भी अंदर प्रवेश कर व्यक्ति वस्तु स्थान समाज देश अर्थात् सर्वत्र राममय संसार को देखने वाले साहित्यावतार तुलसीदास की

परम साधना की प्रतिकृति

श्रीरामचरित मानस को समझने का हम लोग प्रयास करें जो भक्ति की आराधना है

यह भक्ति की अपार शक्ति को दिखाती है


विविधरूपी सुन्दर साहित्य में जितना अवगाहन करें उतने ही अर्थ निकलते हैं ऐसे साहित्य की अद्भुत कृति है मानस


आइये चलते हैं लंका कांड में



इहाँ राम अंगदहि बोलावा। आइ चरन पंकज सिरु नावा॥

अति आदर समीप बैठारी। बोले बिहँसि कृपाल खरारी॥2॥


अधर्मी रावण के ये मुकुट नहीं चार गुण हैं


साम, दान, दण्ड और भेद

तासु मुकुट तुम्ह चारि चलाए। कहहु तात कवनी बिधि पाए॥

सुनु सर्बग्य प्रनत सुखकारी। मुकुट न होहिं भूप न गुन चारी॥4॥


अंगद ने डींग नहीं हांकी

नीति की बात देखिये जिससे युद्ध करना है उसके अंदर की बातें भी पता चलें 


रिपु के समाचार जब पाए। राम सचिव सब निकट बोलाए॥


सैनिकों का उत्साह बढ़ाया जाता है वर्तमान नेतृत्व उनके उत्साह में वृद्धि कराता है हाल में चीन का उदाहरण हमारे सामने है

ऐसा ही उत्साह भगवान् राम बढ़ा रहे हैं 


जथाजोग सेनापति कीन्हे। जूथप सकल बोलि तब लीन्हे॥

प्रभु प्रताप कहि सब समुझाए। सुनि कपि सिंघनाद करि धाए॥3॥

14.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 14 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जेहिं जलनाथ बँधायउ हेला। उतरे प्रभु दल सहित सुबेला॥

कारुनीक दिनकर कुल केतू। दूत पठायउ तव हित हेतू॥


प्रस्तुत है बहुदक्षिण *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 14 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  503 वां सार -संक्षेप

* दानशील


स्थान :उन्नाव



भारतीय जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है कि विचार और व्यवहार में सामञ्जस्य बनाने के लिये हम लोग अपने इष्टदेवों से प्रार्थना करते रहते हैं इसका अर्थ पराश्रयता कतई नहीं है इसका वास्तविक अर्थ आत्मानुभूति है जब हम अनुभव करते हैं कि परमात्मा हमारे अन्दर शक्ति बुद्धि विचार भक्ति के रूप में विद्यमान है और जब वह व्यवहार के रूप में प्रकट होने लगते हैं तो वह व्यक्ति चर्चित प्रशंसित होने लगता है  और फिर उसको आत्मसंतोष होता है यही संतोष मनुष्य का प्राप्तव्य भी है लेकिन 

ओछेपन की संतुष्टि से बचें

आइये चलते हैं मानस में जहां 

पक्ष में भगवान् राम और विपक्ष में रावण है


राम रावण का खेल संसार में चलता रहता है

लंका कांड में आगे 


रिपु बल धरषि हरषि कपि बालितनय बल पुंज।

पुलक सरीर नयन जल गहे राम पद कंज॥ 35(क)॥


शत्रु  रावण,जो भोगवादी स्वार्थी असंयमी अविवेकी तामसिक यज्ञ करने वाले चापलूसों से घिरा है, के बल का मर्दन कर अंगद ने हर्षित होकर  भगवान के चरणकमल पकड़ लिए। उनका शरीर पुलकित है और नेत्रों में  उल्लास का जल भरा है.


और उधर रावण को मंदोदरी फिर समझा रही है


साँझ जानि दसकंधर भवन गयउ बिलखाइ।

मंदोदरीं रावनहिं बहुरि कहा समुझाइ॥ 35(ख)॥



हम लोगों के पुत्र को भी मार दिया


रखवारे हति बिपिन उजारा। देखत तोहि अच्छ तेहिं मारा॥

जारि सकल पुर कीन्हेसि छारा। कहाँ रहा बल गर्ब तुम्हारा॥


नारि बचन सुनि बिसिख समाना। सभाँ गयउ उठि होत बिहाना॥

बैठ जाइ सिंघासन फूली। अति अभिमान त्रास सब भूली॥1॥



स्त्री के बाण के समान वचन सुनकर रावण सुबह होते ही उठकर सभा में चला गया और सारा डर भुलाकर अत्यंत अभिमान में  सिंहासन पर जा बैठा



इहाँ राम अंगदहि बोलावा। आइ चरन पंकज सिरु नावा॥

अति आदर समीप बैठारी। बोले बिहँसि कृपाल खरारी॥2॥



सुबेल पर्वत पर प्रभु श्री राम ने अंगद को बुलाया। उन्होंने आकर चरणों में सिर नवाया। बड़े आदर से उन्हें पास बैठाया


आचार्य जी ने यह भी बताया कि पक्ष और विपक्ष दोनों को देशहित का ध्यान रखना चाहिये

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया दृश्यमुनि चाकमा का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

13.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 13 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जगदातमा प्रानपति रामा। तासु बिमुख किमि लह बिश्रामा॥


प्रस्तुत है बहुज्ञ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 13 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

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  502वां सार -संक्षेप


आचार्य जी प्रतिदिन हमारा मनोबल उत्थित करने का प्रयास करते हैं


मन तो मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है मन गिरता है तो तन पीछे पीछे चल देता है

दीनदयाल विद्यालय को खोलने का उद्देश्य ही था कि हमारा मनोबल ऊंचा रहे

हम मनुष्यत्व की अनुभूति करें  दीपकत्व की अनुभूति कर प्रकाश फैलाएं 

विद्यालय से ऐसे  अनेक दीनदयाल निकलें जिनका उद्देश्य हो

राष्ट्रनिष्ठा से परिपूर्ण समजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष


यही हमारा व्यवहार होना चाहिये

भूमि न छाँड़त कपि चरन देखत रिपु मद भाग।

कोटि बिघ्न ते संत कर मन जिमि नीति न त्याग॥ 34(ख)॥


पौरुष पराक्रम से पूर्ण   सत्  वाले और बहुत सी बिखरी हुई शक्तियों को संगठित करने का भाव रखने वाले संत का मन   बहुत से विघ्न आने पर भी नीति का त्याग नहीं करता


इसी संतत्व को धारण कर भगवान् राम कहते हैं

निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

शक्ति उपासना युगधर्म है

इसी रामत्व को धारण करने के लिये आइये चलते हैं राम चरित मानस के लंका कांड में


तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में कथा के साथ एक उद्देश्य लेकर इतिहास भी संयुत किया है


भाव और कला पक्ष वाले अत्यधिक क्षमता वाले साहित्य की एक अनुपम कृति है मानस


रामत्व के साथ रावणत्व भी अस्तित्व में है रावण समस्या है राम समाधान हैं


जब हम समस्याओं में घिरते हैं तो समाधान खोजते हैं


कपि बल देखि सकल हियँ हारे। उठा आपु कपि कें परचारे॥

गहत चरन कह बालिकुमारा। मम पद गहें न तोर उबारा॥


अंगद का बल देखकर सब हृदय में हार गए। तब अंगद के ललकारने पर रावण खुद उठा।  वह अंगद का पैर पकड़ने लगा, तब  अंगद ने कहा - मेरा पैर पकड़ने से तेरा बचाव नहीं होगा



गहसि न राम चरन सठ जाई॥ सुनत फिरा मन अति सकुचाई॥

भयउ तेजहत श्री सब गई। मध्य दिवस जिमि ससि सोहई॥


सिंघासन बैठेउ सिर नाई। मानहुँ संपति सकल गँवाई॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि कल भैया उमेश्वर पाण्डेय जी के पिता जी इस संसार में नहीं रहे

12.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 12 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 भूप सहस दस एकहि बारा। लगे उठावन टरइ न टारा॥

डगइ न संभु सरासनु कैसें। कामी बचन सती मनु जैसें॥



प्रस्तुत है बहुगुण *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 12 दिसंबर 2022 

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  501वां सार -संक्षेप

* अनेक सद्गुणों से युक्त


स्थान :उन्नाव


ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई धनुष बहुत से लोग हिला भी न सकें,लोग अङ्गद का पांव हिला न सकें

हमें इन तरह के भ्रमों से बचना होगा


ग्रंथों के अध्ययन से यदि लाभ लेना है तो भ्रम का त्याग करना होगा


परिस्थितियों,शरीर, परिवेश, समय के साथ सामञ्जस्य बैठाते हुए सांसारिक कर्दम (कर्द /कर्दट भी ) में लिप्त हम लोग सांसारिक संघर्षों में विजय हों इसकी आचार्य जी नित्य कामना करते हैं


कठिन तपस्या करने के बाद भी कुछ न मांगना भारतीय संस्कृति है रावण की तपस्या भिन्न है

भक्ति श्रद्धा का भाव रखते हुए विश्वास करते हुए बिना भ्रमित हुए आइये प्रवेश करते हैं लंका कांड में

साँचेहुँ मैं लबार भुज बीहा। जौं न उपारिउँ तव दस जीहा॥

समुझि राम प्रताप कपि कोपा। सभा माझ पन करि पद रोपा॥


जौं मम चरन सकसि सठ टारी। फिरहिं रामु सीता मैं हारी॥

सुनहु सुभट सब कह दससीसा। पद गहि धरनि पछारहु कीसा॥

अरे मूर्ख! यदि तू मेरा पांव हटा सके(  तो एक तरह से पांव की ओर भागने पर रावण लज्जित होगा)   तो राम लौट जाएँगे, मैं सीता को हार गया


यहां हमें किसी तरह का भ्रम नहीं पालना चाहिये कि अंगद ने मां सीता को दांव पर लगा दिया भक्त अंगद का भाव निरन्तर भगवान् राम से संयुत है उसका उनसे सीधा संपर्क है राम जी ने ही उसे प्रेरित किया कि यह बात बोल दो


इंद्रजीत आदिक बलवाना। हरषि उठे जहँ तहँ भट नाना॥

झपटहिं करि बल बिपुल उपाई। पद न टरइ बैठहिं सिरु नाई ll 


मेघनाद आदि अनेक बलवान योद्धा  हर्षित होकर उठे। वे  बहुत से उपाय करके झपटते हैं। पर पैर टलता नहीं, तब सिर नीचा करके फिर अपने-अपने स्थान पर वे  बैठ जाते हैं।


दार्शनिक भाव के साथ लिखे दोहे 

भूमि न छाँड़त कपि चरन देखत रिपु मद भाग।

कोटि बिघ्न ते संत कर मन जिमि नीति न त्याग॥ 34(ख)॥


(जैसे करोड़ों विघ्न आने पर भी संत का मन नीति को नहीं छोड़ता, वैसे ही अंगद का चरण पृथ्वी को नहीं छोड़ता। यह देखकर रावण का मद दूर हो गया)


की आचार्य जी ने विस्तृत व्याख्या की

11.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 11 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 धर्मार्थकाममोक्षणां यस्यैकोऽपि न विद्यते।


 अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम् ll



प्रस्तुत है नैःश्रेयस् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 11 दिसंबर 2022 

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  500वां सार -संक्षेप

* मोक्ष या आनन्द की ओर ले जाने वाला



भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।

याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥


श्रद्धा और विश्वास के प्रतीक  पार्वती जी और  शंकर जी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्दर विराजमान ईश्वर को नहीं देख सकते



गीता प्रेस गोरखपुर के आदि-सम्पादक भाईजी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार का 

विश्वासपूर्वक  कहना था राम चरित मानस मात्र काव्य नहीं भारत का इतिहास है

इतिहास स्थान और परिस्थितियों के साथ लिखा जाता है


धर्मार्थकाममोक्षाणाम् उपदेश समन्वितम् l

पूर्ववृत्तकथायुक्तम्  इतिहासं प्रचक्षते ll


भक्त तर्कों में नहीं उलझता

विडम्बना देखिये 

जो कुतर्क करने वाले अविश्वासी होते हैं उन्हें हम बुद्धिवादी कहते हैं जिनमें भक्ति श्रद्धा विश्वास नहीं होता वे Robots की तरह हैं और इनकी भीड़ वाले स्थान पर आनन्द की कल्पना नहीं की जा सकती


आइये

भगवान् राम द्वारा संगठन के महत्त्व को समझते हुए

भक्ति का भाव साथ रखते हुए आनन्द की प्राप्ति के लिये चलते हैं अमृत तुल्य मानस में


जेहिं यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करै सुनि सोई॥

कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी॥

रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥

नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥



लंका कांड में

अब तक

गिरत सँभारि उठा दसकंधर। भूतल परे मुकुट अति सुंदर॥

कछु तेहिं लै निज सिरन्हि सँवारे। कछु अंगद प्रभु पास पबारे॥


भगवान् राम की निन्दा पर यह हश्र तो होना ही था


अब आगे


कह प्रभु हँसि जनि हृदयँ डेराहू। लूक न असनि केतु नहिं राहू॥

ए किरीट दसकंधर केरे। आवत बालितनय के प्रेरे॥

और उधर

अङ्गद का आत्मविश्वास देखिये



उहाँ सकोपि दसानन सब सन कहत रिसाइ।

धरहु कपिहि धरि मारहु सुनि अंगद मुसुकाइ॥



तव सोनित कीं प्यास तृषित राम सायक निकर।

तजउँ तोहि तेहि त्रास कटु जल्पक निसिचर अधम॥ 33(ख)॥


साँचेहुँ मैं लबार भुज बीहा। जौं न उपारिउँ तव दस जीहा॥

समुझि राम प्रताप कपि कोपा। सभा माझ पन करि पद रोपा॥



अङ्गद का पांव इतिहास प्रसिद्ध हो गया

यह अङ्गद का पांव 

भारत का विश्वास शक्ति भक्ति के साथ भूत और भविष्य भी है

10.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 10 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 जब तेहिं कीन्हि राम कै निंदा। क्रोधवंत अति भयउ कपिंदा॥

हरि हर निंदा सुनइ जो काना। होइ पाप गोघात समाना॥



प्रस्तुत है नृसिंह *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 10 दिसंबर 2022 

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  499 वां सार -संक्षेप

* पूज्य व्यक्ति


इन सदाचार वेलाओं के सांकेतिक सूत्र यह इङ्गित करते हैं कि ग्रंथों के माध्यम से समर्पित हमारे ऋषियों के अनुसंधानों  पर विश्वास करते हुए हमारा आत्मबोध जाग्रत हो धर्म कर्तव्य का अर्थ समझें

अपनी गलतियों की समीक्षा करें शौर्य को अध्यात्म से दूर करने के दुष्परिणाम हम देख चुके हैं उसे दोहरायें नहीं

समीक्षक विचारक उत्साहप्रदाता बनें

छोटी छोटी उपलब्धियों पर बहुत उल्लसित होने की आवश्यकता नहीं

शरीर मन बुद्धि चित्त के सामञ्जस्य को परखें


अपनी भूमिका को आदर्श ढंग से मनायें


राम चरित मानस का भी यही संदेश है कि आदर्श जीवन हम कैसे जियें

आजकल हम लंका कांड में हैं 

अङ्गद रावण संवाद दंभी की कमियों को व्यक्त करता है

दंभी को उसके घर में घुसकर  उसकी कमियां बताना दौत्य कर्म की एक श्रेष्ठ मिसाल है


सुनि अंगद सकोप कह बानी। बोलु संभारि अधम अभिमानी॥

सहसबाहु भुज गहन अपारा। दहन अनल सम जासु कुठारा॥


(अन्याय का फल अवश्य मिलता है चाहे इमर्जेंसी हो या गोरक्षा आंदोलन जब 

७ नवम्बर १९६६ को संसद पर हुये ऐतिहासिक प्रदर्शन में  निहत्थों पर गोलियाँ चली थीं)

अंगद कहता है


राम जी को तुमने सामान्य मनुष्य मान लिया

राम मनुज कस रे सठ बंगा। धन्वी कामु नदी पुनि गंगा॥

पसु सुरधेनु कल्पतरु रूखा। अन्न दान अरु रस पीयूषा॥


सुनु रावन परिहरि चतुराई। भजसि न कृपासिंधु रघुराई॥

जौं खल भएसि राम कर द्रोही। ब्रह्म रुद्र सक राखि न तोही॥


रावण अपनी प्रशंसा के पुल बांधता है अंगद याद रखता है कि वह एक दूत है


जौं अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई॥

कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥


सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥

तनु पोषक निंदक अघ खानी। जीवत सव सम चौदह प्रानी॥



यदि ऐसा करूँ तब भी इसमें कोई विशेष बड़ाई नहीं है। मरे हुए को मारने में कुछ भी पुरुषत्व  नहीं

 वाममार्गी, कामी, कंजूस,  मूढ़, अति दरिद्र, बदनाम, बहुत बूढ़ा,

नित्य का रोगी, लगातार क्रोध में रहने वाला, भगवान विष्णु से विमुख, संतों का विरोधी,केवल अपने ही शरीर का पोषण करने वाला,  निंदा करने वाला और  पापी - ये चौदह प्राणी जीते मृतक समान हैं।


गिरत सँभारि उठा दसकंधर। भूतल परे मुकुट अति सुंदर॥

कछु तेहिं लै निज सिरन्हि सँवारे। कछु अंगद प्रभु पास पबारे॥

9.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 9 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कष्टतपस् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 9 दिसंबर 2022 

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  498 वां सार -संक्षेप

* घोर तपस्या करने वाला



उदात्त भाव उत्कट भक्ति सुस्पष्ट दिशा सुस्थिर दृष्टि सद्विचारों का अथाह भण्डार रखने वाले आनन्दप्रद व्यवहार करने वाले  भरपूर अनुभव से संपन्न आचार्य जी

नित्य हमें प्रेरित करते हैं कि हम इन सदाचार संप्रेषणों को मात्र सुनें नहीं गुनें भी


हीन भावना मनुष्य की शक्ति बुद्धि विचार को कमजोर कर देती है इसलिये  इसे त्याग कर हम सक्रिय सचेत सर्वसमर्थ बनें


हम सब एक पिता की संतान हैं किसी के दोषों बुराइयों को हम विचार व्यवहार शक्ति बुद्धि से नियन्त्रित संयत संस्कारित करने का प्रयास करते रहे हैं  यही भारतीय जीवन दर्शन है



इस संकेत का अनन्त विस्तार सम्भव है इन भावों विचारों को  ऊंचे से ऊंचे स्तर तक हम पहुंचा सकते हैं



तुलसीदास ने विषम परिस्थितियों के काल में छद्मवेषी रावणीवृत्ति वाले शासक से आक्रांत भारतीयों को प्रेरित करने की दृढ़ता दिखाते हुए मानस की रचना कर डाली

आइये चलते हैं लंका कांड में

जहां अंगद रावण संवाद चल रहा है


अङ्गद रावण संवाद एक नीतिगत विषय है



सत्य नगरु कपि जारेउ बिनु प्रभु आयसु पाइ।

फिरि न गयउ सुग्रीव पहिं तेहिं भय रहा लुकाइ॥ 23(क)॥


बालि से भयभीत रावण बालि के पुत्र के सामने भी भयभीत है

कहता है

हँसि बोलेउ दसमौलि तब कपि कर बड़ गुन एक।

जो प्रतिपालइ तासु हित करइ उपाय अनेक॥ 23(च)॥


तब अंगद कहता है

कह कपि तव गुन गाहकताई। सत्य पवनसुत मोहि सुनाई॥

बन बिधंसि सुत बधि पुर जारा। तदपि न तेहिं कछु कृत अपकारा॥


आपकी  गुणग्राहकता तो मुझे हनुमान ने सुनाई थी। उसने अशोक वन में विध्वंस  कर तुम्हारे पुत्र को मारकर लंका को जला दिया था। तो भी तुमने अपनी गुणग्राहकता से यही समझा कि उसने तुम्हारा कुछ भी अपकार नहीं किया।


दौत्य कर्म को कौशल के साथ प्रस्तुत किया है अंगद ने


एक बहोरि सहसभुज देखा। धाइ धरा जिमि जंतु बिसेषा॥

कौतुक लागि भवन लै आवा। सो पुलस्ति मुनि जाइ छोड़ावा॥



एक कहत मोहि सकुच अति रहा बालि कीं काँख।

इन्ह महुँ रावन तैं कवन सत्य बदहि तजि माख॥ 24॥


एक रावण की बात कहने में तो मुझे बड़ा संकोच हो रहा है  वह बहुत दिनों तक बालि की काँख में रहा था। इनमें से तुम कौन-से रावण हो? खीझना छोड़कर सच-सच बताओ


अंगद ने रावण का पूरा इतिहास बता डाला


(वैसे रावण ने हिम्मत नहीं हारी थी और बाद में उसने शिव को प्रसन्न किया था)

देवत्व हिन्दुत्व दुष्टों को वरदान देकर स्वयं कई बार परेशान हुआ है

हिन्दुत्व का स्वभाव है वह कई बर पराजित हुआ दिखता है

लेकिन हिन्दुत्व मरता नहीं है वह फिर उत्थित होता है

 मानस के इन्हीं तत्त्वों को हमें समझना चाहिये


इसके अतिरिक्त मानेकशा जी का नाम क्यों आया


संगठन की जंजीर की एक भी कड़ी को कमजोर नहीं होना चाहिये से क्या आशय है आचार्य जी का

जानने के लिये सुनें

8.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 8 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है दीप्ततपस् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 8 दिसंबर 2022 

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  497 वां सार -संक्षेप

* उत्कट भक्ति वाला


व्यक्तिगत विकास के साथ समाज के प्रति सुदृष्टि युगभारती का तात्विक पक्ष है इसी की एक मिसाल भैया विजय दीक्षित जी ने पेश की

जब उनकी समिति से सहायता पाकर एक बच्ची कञ्चन दीक्षित की नौकरी software engineer के रूप में लग गई


यद्यपि इस सांत संसार के अनन्त प्रपंचों में हम फंसे रहते हैं लेकिन उसके बाद भी  भारतीय जीवन दर्शन के विविध स्वरूपों से सुपरिचित होते हुए हम समाज को सदाचारी बनाने के साथ साथ स्वयं सदाचरण के मार्ग पर चलने के लिये तैयार हों इसके लिये राष्ट्र के प्रति प्रभु राम के प्रति उत्कट भक्ति वाले आचार्य जी प्रतिदिन हमें इन वेलाओं के माध्यम से प्रेरित उत्साहित करते हैं


भक्ति का आनन्द चिमटा बजाने माला फिराने में नहीं है

वह पौरुष पुरुषार्थ प्रकट करने में है इसी भाव को समाज में जगाने के लिये परमात्मा के संदेशवाहक मार्गदर्शक महापुरुष तुलसीदास जी ने 


व्यवहार जगत में बहुत कुछ सिखाने वाली

 मानस की रचना कर डाली

आइये चलते हैं इसी मानस के लंका कांड में


प्रनतपाल रघुबंसमनि त्राहि त्राहि अब मोहि।

आरत गिरा सुनत प्रभु अभय करैगो तोहि॥ 20॥



दृढ़ आत्मबल वाले निर्भीक अंगद की बात छली दंभी भौतिकता को सर्वस्व मानने वाले बनावटी भाषा बोलने वाले प्रपंची रावण को समझ में नहीं आती


रे कपिपोत बोलु संभारी। मूढ़ न जानेहि मोहि सुरारी॥

कहु निज नाम जनक कर भाई। केहि नातें मानिऐ मिताई॥


अब कहु कुसल बालि कहँ अहई। बिहँसि बचन तब अंगद कहई॥

दिन दस गएँ बालि पहिं जाई। बूझेहु कुसल सखा उर लाई॥


अंगद और रावण की वार्ता चल रही है


कह कपि धर्मसीलता तोरी। हमहुँ सुनी कृत पर त्रिय चोरी॥

देखी नयन दूत रखवारी। बूड़ि न मरहु धर्म ब्रतधारी


रावण को भय से आक्रांत कर रहा है अंगद


जो अति सुभट सराहेहु रावन। सो सुग्रीव केर लघु धावन॥

चलइ बहुत सो बीर न होई। पठवा खबरि लेन हम सोई॥

7.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 7 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रनतपाल रघुबंसमनि त्राहि त्राहि अब मोहि।

आरत गिरा सुनत प्रभु अभय करैगो तोहि॥ 20॥



प्रस्तुत है दिग्विभावित *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 7 दिसंबर 2022 

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  496 वां सार -संक्षेप

* सब दिशाओं में प्रसिद्ध


हम भारतीय  उदयाचल संस्कृति के उपासक हैं प्रातःकाल का जागरण एक तरह से नये जीवन का उदय है इस काल में अपने अन्दर सद्विचार भरने के लिये हमारे सामने ये सदाचार वेलाएं उपलब्ध हैं हमें इनका लाभ लेना चाहिये 

हम सबके इष्ट देवता अलग अलग हैं लेकिन सबका इष्ट एक है  वह है मोक्ष अर्थात् परम आनन्द


समस्याओं  प्रपंचों बन्धनों निषेधों से मुक्ति ही मोक्ष है

हम सब इसकी कामना करते हैं हमारा अध्यात्म दर्शन साहित्य इसकी ओर ही हमारा ध्यान दिलाता है


हमारी शिक्षापद्धति जीविका चलाने का साधन है लेकिन इसमें  भी गहराई में जाकर हम बहुत कुछ देख सकते हैं कवियों का भाव क्या है यह न समझकर कविता के अर्थ तक अपने को सीमित करते हैं

अध्ययन के प्रति  हमारा सहज आत्मबोध होना चाहिये


इस आत्मबोध की स्थिति में आने पर राम चरित मानस की कथा का हेतु हमें समझ में आयेगा


इसमें एक संदेश है


इसी में अङ्गद दौत्य नामक एक  प्रसंग है

रावण की सभा में भगवान राम के दत्तक पुत्र अंगद प्रवेश करते हैं

कवितावली में



आयो! आयो! आयो सोई बानर बहोरि!'भयो सोरु चहुँ ओर लंकाँ आएँ जुबराजकें।

एक काढ़ैं सौंज, एक धौंज करैं, 'कहा ह्वैहै, पोच भई, 'महासोचु सुभटसमाजकें॥

गाज्यो कपिराजु रघुराजकी सपथ करि, मूँदे कान जातुधान मानो गाजें गाजकें।

सहमि सुखात बातजातकी सुरति करि, लवा ज्यों लुकात, तुलसी झपेटें बाजकें॥

अद्भुत रचना है यह तुलसी दास की 



मानस में 

गयउ सभा दरबार तब सुमिरि राम पद कंज।

सिंह ठवनि इत उत चितव धीर बीर बल पुंज॥ 18॥


वीर के मन में विशालता वितृष्णा उत्पन्न करती है और कायर के मन में भय

अब लंका कांड में आगे



भुजा बिटप सिर सृंग समाना। रोमावली लता जनु नाना॥

मुख नासिका नयन अरु काना। गिरि कंदरा खोह अनुमाना॥


अंगद की तेजस्विता के प्रभाव से सभासद खड़े हो गये


गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा। बालितनय अतिबल बाँकुरा॥

उठे सभासद कपि कहुँ देखी। रावन उर भा क्रोध बिसेषी॥


अंगद


उत्तम कुल पुलस्ति कर नाती। सिव बिंरचि पूजेहु बहु भाँती॥

बर पायहु कीन्हेहु सब काजा। जीतेहु लोकपाल सब राजा॥



रावण से कहता है


राजदम्भ में तुमने मां सीता का हरण कर लिया है यह तो बहुत बड़ा अपराध है


नृप अभिमान मोह बस किंबा। हरि आनिहु सीता जगदंबा॥

अब सुभ कहा सुनहु तुम्ह मोरा। सब अपराध छमिहि प्रभु तोरा॥


इसलिये अच्छा तो यही रहेगा


दसन गहहु तृन कंठ कुठारी। परिजन सहित संग निज नारी॥

सादर जनकसुता करि आगें। एहि बिधि चलहु सकल भय त्यागें॥

6.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 6 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सोइ गुन सागर ईस राम कृपा जा कर करहु॥ 17 (क)॥




प्रस्तुत है तपोराशि *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 6 दिसंबर 2022 

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  495 वां सार -संक्षेप

*संन्यासी


शौर्य प्रमंडित अध्यात्म हमारा लक्ष्य बन जाये  इन सदाचार वेलाओं का लाभ लेकर हम सुयोग्य सुदक्ष बलशाली सुविज्ञ राष्ट्रभक्त बन सकें इसी का प्रयास आचार्य जी प्रतिदिन करते हैं

आइये चलते हैं लंका कांड में सुबेल पर्वत पर


इहाँ प्रात जागे रघुराई। पूछा मत सब सचिव बोलाई।।

कहहु बेगि का करिअ उपाई। जामवंत कह पद सिरु नाई।।


जामवंत सबसे वृद्ध हैं और इसीलिये सबसे अनुभवी हैं

वृद्ध ज्ञान का भंडार होते हैं 


न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धाः । वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम् ॥ नासौ धर्मो यत्र नो सत्यमस्ति । न तत्सत्यं यच्छलेनानुविद्वम् ॥ (१)

वह सभा ही कैसी जिसमें वृद्ध न हों

वृद्धों को मान सम्मान मिलना चाहिये 

युवा में शक्ति बुद्धि बल होता है लेकिन अनुभव का विवेक नहीं

वृद्ध में अनुभव- बल होता है



आचार्य जी ने यह भी बताया कि अंगद को दूत बनाकर क्यों भेजा गया


सुभाषित रत्नाकर में दूत के गुण बताये गये हैं

वह बुद्धिमान,बोलने में चतुर,ज्ञानी,दूसरों की चित्तवृत्ति जानने वाला, धीर,जैसा कहा जाये वैसा ही बोलने वाला, निर्भय होता है अंगद में ये सब गुण थे 

बालि में अनेक गुण थे लेकिन दम्भ और वासना के कारण वह मारा गया था

लेकिन 

मरते समय उसका ज्ञान खुल गया था

यह तनय मम सम बिनय बल कल्यानप्रद प्रभु लीजिये।

गहि बाँह सुर नर नाह आपन दास अंगद कीजिये॥2॥



बहुत बुझाइ तुम्हहि का कहऊँ। परम चतुर मैं जानत अहऊँ॥

काजु हमार तासु हित होई। रिपु सन करेहु बतकही सोई॥


भगवान ने अंगद को उसका बल याद दिला दिया

अब रामत्व देखिये रावण को मारने के बजाय रावणी वृत्ति समाप्त करना उद्देश्य है


एक एक सन मरमु न कहहीं। समुझि तासु बध चुप करि रहहीं॥

भयउ कोलाहल नगर मझारी। आवा कपि लंका जेहिं जारी॥

जिसने लंका जलाई थी वही लौट आया है जब कि ये अंगद हैं हनुमान जी नहीं 


गयउ सभा दरबार तब सुमिरि राम पद कंज।

सिंह ठवनि इत उत चितव धीर बीर बल पुंज॥ 18॥


दंभी रावण भयभीत तो है लेकिन प्रकट नहीं करता

5.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 5 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है व्यक्तविक्रम *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 5 दिसंबर 2022 

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  494वां सार -संक्षेप

* शक्ति प्रदर्शित करने वाला



भारतीय जीवनपद्धति में रचे बसे लोग सांसारिक प्रपंचों में फंसने के साथ साथ संसारेतर चिन्तन भी करते हैं उसी संसारेतर चिन्तन के लिये हमारे सामने ये सदाचार वेलाएं उपलब्ध हैं हमें इनका लाभ लेना चाहिये ताकि संसार सागर में न हम डूबें न भटकें


ॐ सह नाववतु ।

सह नौ भुनक्तु ।

सह वीर्यं करवावहै ।

तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।

वाले भाव का आदर करते हुए


पूर्णता की साधना में रत होते हुए


शिक्षक शिक्षार्थी के भाव में चिन्तनरत होते हुए आगे चलने पर समस्याओं के हल हम निकाल लेंगे

मानस में भी हमें समस्याओं के हल मिलते हैं

राम की कथा जीवन की कथा है मनुष्य की कथा है जीवनदर्शन है

आइये प्रवेश करते हैं उसी मानस के लंका कांड में

जहां 

विदुषी सुविज्ञा शक्तिसंपन्ना पूज्या नित्य स्मरणीया पञ्चकन्याओं में से एक मां मन्दोदरी  सब कुछ प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले असीमता की चाह रखने वाले  अपने को ज्ञानी समझने वालेi मलिन बुद्धि वाले भ्रमित दंभी प्राणपति रावण

(फूलइ फरइ न बेत जदपि सुधा बरषहिं जलद।

मूरुख हृदयँ न चेत जौं गुर मिलहिं बिरंचि सम॥ 16 (ख)॥)



  को समझा रही हैं कि राम (भगवान ) वन वन भटकने वाले साधारण मनुष्य नहीं हैं

वो तो


अहंकार सिव बुद्धि अज मन ससि चित्त महान।

मनुज बास सचराचर रूप राम भगवान॥ 15(क)॥



शिव जिनका अहंकार है, ब्रह्मा बुद्धि है, चंद्रमा मन है और महान् (विष्णु) ही चित्त है। वही चराचर रूप भगवान राम मनुष्य रूप में निवास कर रहे हैं

अस बिचारि सुनु प्रानपति प्रभु सन बयरु बिहाइ।

प्रीति करहु रघुबीर पद मम अहिवात न जाइ॥ 15(ख)॥


और इधर सुबेल पर्वत पर प्रातःकाल भगवान राम जागे और उन्होंने सारे मंत्रियों को बुलाकर सलाह पूछी कि शीघ्र बताइए, अब क्या उपाय करना चाहिए? 

तो अंगद को भेजने की योजना बनती है 

भगवान राम को विश्वास है कि हनुमान जी ने जो भूमिका रची है अंगद उस पर लेख लिख देंगे इसलिये

जवानों को प्रेरित करने वाले मानस के दो पात्रों में से एक अंगद (दूसरे हनुमान जी )

 को भेजने की योजना बनी 



बंदि चरन उर धरि प्रभुताई। अंगद चलेउ सबहि सिरु नाई॥

प्रभु प्रताप उर सहज असंका। रन बाँकुरा बालिसुत बंका॥



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने परामर्श दिया कि बैठकों से चिन्तन में प्रवेश करें और उस चिन्तन को व्यवहार में बदलें तो आनन्द ही आनन्द की अनुभूति होगी

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा प्रमोद पांडेय जी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

4.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 4 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 रोम राजि अष्टादस भारा। अस्थि सैल सरिता नस जारा॥

उदर उदधि अधगो जातना। जगमय प्रभु का बहु कलपना॥4॥



प्रस्तुत है सवितर्क *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 4 दिसंबर 2022 

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  493 वां सार -संक्षेप

* विचारवान्


स्थान :शारदा नगर कानपुर



संसार का स्वभाव है संघर्षों में गिरते लहरते तट पाने की आकांक्षा

संसार है तो समस्याएं रहेंगी ही

उन समस्याओं को स्वयं या

दूसरों के सहयोग से खोजते हुए उनसे निजात पाकर उन्नति के शिखर को प्राप्त करना हमारा लक्ष्य रहता है


कल गीता जयन्ती थी

गीता जयंती मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी तिथि(मोक्षदा )को मनाई जाती है।


गीता यही संदेश देती है कि समस्याओं से जी नहीं चुराना है हमें ललकारों से पलायन नहीं करना है


आइये लंका कांड में प्रवेश करते हैं जिसमें एक और गीता मन्दोदरी -गीता का आचार्य जी विस्तार से वर्णन कर रहे हैं



छत्र मुकुट तांटक तब हते एकहीं बान।

सब कें देखत महि परे मरमु न कोऊ जान॥ 13 (क)॥


अस कौतुक करि राम सर प्रबिसेउ आइ निषंग।

रावन सभा ससंक सब देखि महा रसभंग॥ 13 (ख)॥


यह रंग में भंग देखकर रावण की सारी सभा भयभीत हो गई

लेकिन

मंदोदरी सोच उर बसेऊ। जब ते श्रवनपूर महि खसेऊ॥


मन्दोदरी एक सुविज्ञ नारी है इन्होंने बाद में विभीषण का मार्गदर्शन भी किया है इसीलिये ये पूज्या हैं


अहल्या द्रौपदी तारा कुन्ती मन्दोदरी तथा।

पञ्चकन्या: स्मरेतन्नित्यं महापातकनाशम्॥[२]



रावण से कहती हैं कि राम जी को मनुष्य समझकर उनसे युद्ध करने की न सोचें

महात्मा तुलसीदास ने यहां भगवान् राम का स्वरूप वर्णित किया यही मन्दोदरी गीता है 


बिस्वरूप रघुबंस मनि करहु बचन बिस्वासु।

लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु॥


उत्पत्ति, पालन और प्रलय जिनकी क्रियाएं हैं


प्रभु विश्वमय हैं, अधिक कल्पना  क्या की जाए?


अस बिचारि सुनु प्रानपति प्रभु सन बयरु बिहाइ।

प्रीति करहु रघुबीर पद मम अहिवात न जाइ॥ 15(ख)॥

3.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 3 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 बिस्वरूप रघुबंस मनि करहु बचन बिस्वासु।

लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु॥ 14॥



प्रस्तुत है  धीसख *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 3 दिसंबर 2022 

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  492 वां सार -संक्षेप

* परामर्शदाता


यह संसार बहुत अद्भुत है अच्छे अच्छे चिन्तक विचारक मनीषी इस संसार की अद्भुतता में भ्रमित हो जाते हैं

भय भ्रम संसार के स्वरूप का एक हिस्सा है संसार में रहने जीने कर्म करने का बल हमें मिले इसकी परमात्मा इष्टदेव से याचना करनी चाहिये


आइये लंका कांड में प्रवेश करते हैं


दंभी रावण को न तो मन्दोदरी की बात समझ में आई न प्रहस्त की दंभी किसी की नहीं सुनता

बाजहिं ताल पखाउज बीना। नृत्य करहिं अपछरा प्रबीना॥


सुनासीर सत सरिस सो संतत करइ बिलास।

परम प्रबल रिपु सीस पर तद्यपि सोच न त्रास॥ 10॥


रावण लगातार सैकड़ों इंद्रों के समान भोग-विलास करता रहता है। यद्यपि राम के रूप में प्रबल शत्रु सिर पर है, फिर भी उसको चिंता भय नहीं है



इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा। उतरे सेन सहित अति भीरा॥

सिखर एक उतंग अति देखी। परम रम्य सम सुभ्र बिसेषी॥


यहाँ भगवान् सुबेल पर्वत पर सेना की बड़ी भीड़ के साथ उतरे। पर्वत का एक बहुत ऊँचा, परम रमणीय, समतल और  उज्ज्वल शिखर दिख रहा है



लंका के बारे में विभीषण से जानकारी ली जा रही है

सभी को विश्वास होना चाहिये कि राम मात्र वन वन भटकते राजकुमार नहीं हैं राम तो राम हैं


छत्र मुकुट तांटक तब हते एकहीं बान।

सब कें देखत महि परे मरमु न कोऊ जान॥ 13 (क)॥


भगवान् राम ने एक ही बाण से रावण के छत्र-मुकुट और मंदोदरी के कर्णफूल काट गिराए। सबके देखते-देखते वे जमीन पर आ पड़े, पर इसका भेद कोई नहीं जान पाया



अस कौतुक करि राम सर प्रबिसेउ आइ निषंग।

रावन सभा ससंक सब देखि महा रसभंग॥ 13 (ख)॥


ऐसा चमत्कार करके राम  जी का बाण वापस आकर  तरकस में पहुंच गया । यह रंग में भंग देखकर रावण की सारी सभा विचलित हो गई

श्री राम का अस्त्र संचालन अद्भुत है 



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चन्द्रमा के काले धब्बे के बारे में  क्या बताया वीरासन में कौन बैठा है जानने के लिये सुनें

2.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 2 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है  समदुःख *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 2  दिसंबर 2022 

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  491 वां सार -संक्षेप

*दूसरों के दुःख को अपने जैसा दुःख समझने वाला


यह संसार ही जिनका परिवार हो जाता है वो व्यक्ति न होकर विशिष्ट व्यक्तित्व हो जाते हैं


यह व्यक्ति ही विकसित होते होते  सबके प्रति प्रेम, लगाव, आदर,अनुकूल व्यवहार कहलाने वाले  ईश्वरत्व में जब प्रवेश करता है तो उसकी अद्भुत गति होती है


ईश्वरत्व में प्रवेश करने वाले आनन्ददायक क्षणों में हम संसार न होकर संसार के द्रष्टा लगते हैं

इसी आनन्द की प्राप्ति के लिये हमारे ऋषियों ने चार आश्रम बनाये अन्तिम आश्रम संन्यास आश्रम में दुर्बल शरीर लेकिन प्रबल मन अनिवार्य है प्रबल मन का अर्थ है जो शरीर से दूर हो और शरीर को धारण करने वाले शरीरी के पास हो

शरीर को विस्मृत करना अध्यात्म की एक अद्भुत उपलब्धि है

इन्हीं भावों में डूबने के लिये आइये प्रवेश करते हैं लंका कांड में

जिसमें एक ओर संसार के उपभोग के लिये तपस्या करने वाला रावण तो दूसरी ओर संसार के कल्याण के लिये तपस्या करने वाले भगवान राम हैं


अस कहि नयन नीर भरि गहि पद कंपित गात।

नाथ भजहु रघुनाथहि अचल होइ अहिवात॥ 7॥


मंदोदरी ने रावण को बहुत तरह से समझाकर कहा किंतु उसने उसकी एक भी बात न सुनी और वह फिर सभा में जाकर बैठ गया


सभाँ आइ मंत्रिन्ह तेहिं बूझा। करब कवन बिधि रिपु सैं जूझा॥

कहहिं सचिव सुनु निसिचर नाहा। बार बार प्रभु पूछहु काहा॥


सब के बचन श्रवन सुनि कह प्रहस्त कर जोरि।

नीति बिरोध न करिअ प्रभु मंत्रिन्ह मति अति थोरि॥ 8॥


 सबके वचन सुनकर रावण का पुत्र प्रहस्त हाथ जोड़कर कहने लगा - हे प्रभु! नीति के विरुद्ध कुछ भी नहीं करना चाहिए, इन मंत्रियों में बहुत ही अल्प बुद्धि है


नारि पाइ फिरि जाहिं जौं तौ न बढ़ाइअ रारि।

नाहिं त सन्मुख समर महि तात करिअ हठि मारि॥ 9॥


इस पर दंभी पाखंडी रावण चापलूसों का मनोबल वर्धन करता है


अबहीं ते उर संसय होई। बेनुमूल सुत भयहु घमोई॥

सुनि पितु गिरा परुष अति घोरा। चला भवन कहि बचन कठोरा॥

आचार्य जी ने बेनुमूल और घमोई की जानकारी दी

फिर रावण अपने महल चला गया 


बाजहिं ताल पखाउज बीना। नृत्य करहिं अपछरा प्रबीना॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा अजय कटियार जी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें

1.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 1 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सोइ रघुबीर प्रनत अनुरागी। भजहु नाथ ममता सब त्यागी॥

मुनिबर जतनु करहिं जेहि लागी। भूप राजु तजि होहिं बिरागी॥


प्रस्तुत है  हर्षविवर्धन *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 1  दिसंबर 2022 

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  490 वां सार -संक्षेप

* आनन्द को बढ़ाने वाला



पर्यावरण, समाज, हिन्दुत्व  और राष्ट्र के लिये जूझने वाले बहुचर्चित तपोनिरत  के . एन. ग़ोविन्दाचार्य (जन्म - ०२ मई १९४३) के आग्रह पर आचार्य जी कल बिठूर पहुंचे

गोविन्दाचार्य जी के शरीर में भौतिक शक्ति की जो कमी है उस ओर उनके निकटस्थ लोग  यदि ध्यान देंगे तो उनके संकल्प पूरे हो सकेंगे


भारतीय स्वाभिमान आंदोलन  के तत्वावधान में गंगा संवाद पद यात्रा करके समाज को अपनी आंखों से देखते हुए गोविन्दाचार्य जी 

नरोरा से  करीब 412  किमी चलकर बिठूर में हैं 


भगवान राम बहुत से गुणों जैसे समर्पण शक्ति भक्ति से संपन्न एक अवतार हैं हम भी छोटे से अवतार हैं और यदि हम सांगठनिक सामञ्जस्य बनाने का भाव अपने अन्दर भर लेते हैं तो ये सदाचार वेलाएं अपनी सार्थकता सिद्ध कर लेंगी



आइये चलते हैं लंका कांड में

सेतु बन गया है


सेतु बंध भइ भीर अति कपि नभ पंथ उड़ाहिं।

अपर जलचरन्हि ऊपर चढ़ि चढ़ि पारहि जाहिं॥ 4॥


अत्यन्त उत्साहित वातावरण है


सिंधु पार प्रभु डेरा कीन्हा। सकल कपिन्ह कहुँ आयसु दीन्हा॥

खाहु जाइ फल मूल सुहाए। सुनत भालु कपि जहँ तहँ धाए॥


आचार्य जी ने वाल्मीकि रामायण  जिसमें व्यूह पर जोर था की चर्चा करते हुए बताया कि तुलसीदास जी ने व्यूह पर जोर नहीं दिया क्यों कि जहां भय आशंका रहती है वहां व्यूह की आवश्यकता होती है और यहां राम हैं तो भय कैसा


आज भी हमारे वनों में शक्तिसंपन्न लेकिन असंगठित क्षेत्र है उनमें रहने वाले लोग छले जाते हैं ऐसे शक्तिसंपन्न सरल लोगों का ही संगठन भगवान् ने किया


जहँ कहुँ फिरत निसाचर पावहिं। घेरि सकल बहु नाच नचावहिं॥

दसनन्हि काटि नासिका काना। कहि प्रभु सुजसु देहिं तब जाना॥


अब यह रावण के कानों तक बात पहुंच गई


समुद्र पर पुल अचंभा था



बाँध्यो बननिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस।

सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीस॥ 5॥


मन्दोदरी को विश्वास है कि राम मनुष्य नहीं हैं


वह रावण से कहती है

नाथ बयरु कीजे ताही सों। बुधि बल सकिअ जीति जाही सों॥

तुम्हहि रघुपतिहि अंतर कैसा। खलु खद्योत दिनकरहि जैसा॥


मां जानकी को आप भगवान राम को सौंप दें

लेकिन दुष्ट कहां मानने वाला

हमें  भी इसी रावणत्व से दूर रहना है