31.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी (भीमसेन एकादशी )विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 31 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रथमहिं कहहु नाथ मतिधीरा। सब ते दुर्लभ कवन सरीरा॥

बड़ दु:ख कवन कवन सुख भारी। सोउ संछेपहिं कहहु बिचारी॥2॥



प्रस्तुत है पुरुष -सिंह ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी (भीमसेन एकादशी )विक्रम संवत् 2080 

  तदनुसार 31 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  671 वां सार -संक्षेप

1=पूज्य व्यक्ति




इन सदाचार वेलाओं का उद्देश्य है कि इनका लाभ उठाकर हम सदाचारमय विचार ग्रहण कर सकें

जिस भी तरह से मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति हो सके वह प्रयास अवश्य करना चाहिए


जन्तूनां नरजन्म दुर्लभमतः पुंस्त्वं ततो विप्रता

तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता विद्वत्त्वमस्मात्परम्।

आत्मानात्मविवेचनं स्वनुभवो ब्रह्मात्मना संस्थितिः

मुक्तिर्नो शतजन्मकोटिसुकृतैः पुण्यैर्विना लभ्यते॥ २॥


हमारे परिवार इस तरह के रहे हैं कि हम संस्कारित होते रहे हैं पर्व हमें उत्साह प्रदान करते हैं आशावादी बनाते हैं

व्रत आदि के भी नियम हैं 


समय का प्रभाव है कि  प्रायः मनुष्य अर्थ कमाने में ही लगा है

आचार्य जी हमें बता चुके हैं कागभुशुंडी जी ने किसी कल्प में शूद्रतन पाया था फिर पूजा की,पूजा भी कुछ पाने के लिए की


मानस के कथा भाग ज्ञान भाग भक्ति भाग को संयुत करके जब हम इतिहास में प्रवेश करते हैं तो देखते हैं जब भी धर्म की हानि होती है प्रभु बार बार जन्म लेते हैं शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, बुद्ध भगवान्, जय शंकर प्रसाद, तुलसीदास आदि सभी अवतार हैं


हमारे यहां शास्त्रों की रचना अद्भुत ढंग से की गई है



मानस का पाठ हमारा प्राप्तव्य नहीं है

इसके पीछे का उद्देश्य हमें समझना चाहिए

आत्मचिन्तनपरक होकर मानस जैसे ग्रंथों का अध्ययन कर उनसे लाभ उठाएं


मोरें मन प्रभु अस बिस्वासा। राम ते अधिक राम कर दासा॥8॥


क्योंकि



राम सिंधु घन सज्जन धीरा। चंदन तरु हरि संत समीरा॥

सब कर फल हरि भगति सुहाई। सो बिनु संत न काहूँ पाई॥9॥


श्री राम समुद्र हैं तो धीर संत पुरुष मेघ हैं। श्रीहरि चंदन के वृक्ष  जैसे हैं तो संत समीर हैं। सब साधनों का फल  हरि भक्ति ही है। उस फल को संत के बिना अब तक किसी ने नहीं पाया




हरि भक्ति  रामभक्ति का अर्थ है संघर्षों में मुस्कराना संकटों में हौसला बनाए रखना भयानक से भयानक संकट को भारी न समझना संसार को पार करते चले जाना और साधना से सिद्धि प्राप्त करना

प्रण कर लिया कि

निसिचर हीन करउँ महि तो उसे पूर्ण करना 


हम भी संतत्व की अनुभूति कर संत हो सकते हैं

जिसने रामभक्ति में प्रवेश कर लिया वह राष्ट्रभक्त होगा ही


बिरति चर्म असि ग्यान मद लोभ मोह रिपु मारि।

जय पाइअ सो हरि भगति देखु खगेस बिचारि॥120 ख॥



वैराग्य रूपी चर्म अर्थात् ढाल से अपने को बचाते हुए, ज्ञान रूपी असि अर्थात् तलवार से मद, लोभ और मोह रूपी शत्रुओं को मारकर जो विजय प्राप्त करती है, वह हरि की भक्ति ही है, हे पक्षीराज! इसे विचार कर देख लीजिए



पक्षीराज समझ चुके हैं लेकिन कागभुशुंडी जी के पास से वे जाना नहीं चाहते

उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है

अब तो वे उनके गुरु हो गए हैं उनके प्रति पक्षीराज को भक्ति होनी ही है


नाथ मोहि निज सेवक जानी। सप्त प्रस्न मम कहहु बखानी॥1॥


ये सात प्रश्न अत्यन्त तात्विक हैं

आचार्य जी ने इनकी व्याख्या में क्या बताया आदि जानने के लिए सुनें

30.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 30 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है पुरुष -पुङ्गव ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 30 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  *670 वां* सार -संक्षेप

1=श्रेष्ठ पुरुष



आइये सदाचार वेला में उपस्थित होकर  आचार्य जी से सदाचारमय विचार ग्रहण करें ताकि हम गम्भीर से गम्भीर संकट का  आसानी से सामना कर सकें भय और भ्रम से मुक्त होकर अपने जीवन को संवार सकें

शिक्षक की भूमिका में आकर नई पीढ़ी का मार्गदर्शन कर सकें


हम लोग उत्तरकांड के ज्ञान भक्ति वाले अद्भुत विवेचन में प्रविष्ट हैं


ग्यान पंथ कृपान कै धारा। परत खगेस होइ नहिं बारा॥

जो निर्बिघ्न पंथ निर्बहई। सो कैवल्य परम पद लहई॥1॥



ज्ञान का पथ कृपाण की धार के समान है।  इस पथ से च्युत होने में देर नहीं लगती। लेकिन जो इस पथ को निर्विघ्न निबाह ले जाता है, वही कैवल्य  रूप परमपद पा लेता है


ज्ञानी जिज्ञासु होता है भक्त विश्वासी होता है ज्ञान में तर्क तो भक्ति में भरोसा है


भक्ति ऐसा विश्वास है जिसमें शक्ति सेवा सामर्थ्य सदाचार संयम आदि बहुत कुछ है

 आज के समय की पुकार है हमें राष्ट्र-भक्त बनना चाहिए


आचार्य जी ने भक्ति शब्द की व्याख्या करते हुए बताया कि भज् धातु का अर्थ सेवा करना भजना इष्टदेव में आसक्ति होना है


84 सूत्र वाले ग्रंथ नारदभक्तिसूत्र के अनुसार भक्ति

*यत्प्राप्य न किन्चिद्वाञ्छति न शोचति न द्वेष्टि न रमते नोत्साही भवति*


प्राप्त करने के बाद मनुष्य संतृप्त और अमर हो जाता है


व्यास जी ने पूजा में अनुराग को भक्ति कहा

गर्गाचार्य के अनुसार कथा श्रवण में अनुरक्ति ही भक्ति है


भारत के धार्मिक साहित्य में भक्ति का उदय वैदिक काल से ही है


सगुण और निर्गुण दोनों तरह की भक्ति है

हमारे यहां भक्ति का विशाल साहित्य है

श्रीमद्भागवत महापुराण भक्ति का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है

इसका दसवां स्कंध अद्भुत है आनन्दित कर देता है



अस बिचारि हरि भगत सयाने। मुक्ति निरादर भगति लुभाने॥

भगति करत बिनु जतन प्रयासा। संसृति मूल अबिद्या नासा॥4॥


ऐसा विचार कर बुद्धिमान हरिभक्त भक्ति की ओर आकर्षित होकर मुक्ति का तिरस्कार कर देते हैं।


ऎसा तेरा लोक, वेदना

नहीं,नहीं जिसमें अवसाद,

जलना जाना नहीं, नहीं

जिसने जाना मिटने का स्वाद!


क्या अमरों का लोक मिलेगा

तेरी करुणा का उपहार

रहने दो हे देव! अरे

यह मेरे मिटने क अधिकार


भक्ति इसी शरीर में होती है मरणधर्मा शरीर  भक्ति का आधार है


शंकराचार्य ने ज्ञान की मशाल जलाई लेकिन भक्ति पर वे न्यौछावर हो गए


धन भक्ति से दूर करता है


सेवाभाव के उदय होने पर भक्ति  का उदय होता है


भक्ति ढोंग नहीं है


इसके अतिरिक्त द्वारपाल की अभ्यर्थना से क्या तात्पर्य है

आचार्य जी ने नए संसद भवन की चर्चा क्यों की

आदि जानने के लिए सुनें

29.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 29 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 पावन पर्बत बेद पुराना। राम कथा रुचिराकर नाना॥

मर्मी सज्जन सुमति कुदारी। ग्यान बिराग नयन उरगारी॥7॥


प्रस्तुत है पुरुष -पुण्डरीक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 29 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  669वां सार -संक्षेप

1=श्रेष्ठ पुरुष


आजकल हम लोग उत्तरकांड में प्रविष्ट हैं ज्ञान और भक्ति के विवेचन में ज्ञान की चर्चा पूर्ण हो चुकी है


वातावरण पर्यावरण परिवेश शब्दों की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि

परमात्मा की अद्भुत कृति मनुष्य का जीवन, कर्म और व्यवहार वातावरण,पर्यावरण, परिवेश आदि से प्रभावित होकर चलता रहता है


भलेउ पोच सब बिधि उपजाए। गनि गुन दोष बेद बिलगाए॥

कहहिं बेद इतिहास पुराना। बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना॥2॥


इन्हीं मनुष्यों में किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति का आश्रय लेकर शिक्षक शिक्षार्थी को शिक्षित करता है

अद्भुत है शिक्षकत्व


यदि शिक्षक को यह अनुभव हो जाता है कि शिक्षार्थी जिज्ञासु है तो शिक्षक प्रयास करता है कि उसकी जिज्ञासा वह शान्त कर सके



विद्यालय में पढ़ते समय जब हम अबोध थे संसार ने उतना संस्पर्शित नहीं किया था तब भी आचार्य जी से हम सद्विचार ग्रहण करते थे

और आज भी हनुमान जी की कृपा से यह सिलसिला चल रहा है आज भी सदाचार उतना ही महत्त्वपूर्ण है

जो अद्भुत अनुभूतियों में विचरण करके आचार्य जी द्वारा आज भी अभिव्यक्त किया जा रहा है


बहुचर्चित तपस्वी चिन्तक लेखक इतिहासकार कवि त्यागी वीर सावरकर

पर लिखी आचार्य जी की ये पंक्तियां 


कथा कविता ज्वलित इतिहास के विग्रह मनीषी तुम

समर्पण त्याग तप पर्याय हिम्मत के शुभैषी तुम

तुम्हारी साधना की छाँव में भारत पुलकता है 

हमेशा देशभक्तों के लिए भारत- हितैषी तुम।

अत्यन्त प्रेरक हैं


वीर सावरकर भारतीय इतिहास के छह स्वर्णिम पृष्ठ के लेखक हैं

सद्गुण विकृति के कारण यह वीर तपस्वी चिन्तक विचारक देश गुलामी के चक्रव्यूह में फंस गया

संघर्ष करते    पीढ़ियां  गुजर गईं


आज भी हम संघर्ष कर रहे हैं जिसके लिए हमें संगठन का महत्त्व समझना है तुलसीदास जी ने मानस में संगठन की महत्ता दर्शाई है   इसमें प्रभु राम के जीवन के उतार   चढ़ाव अद्भुत भावनाओं के साथ व्यक्त हैं क्योंकि उस समय भी भारत की जनता त्राहि त्राहि कर रही थी और उसे संगठित होने की जरूरत थी उसे शौर्य पराक्रम की आवश्यकता थी


तपस्वियों की भूमि में राक्षस कैसे पनप गए चिन्तन इसका होना चाहिए  शंकराचार्य की जन्मस्थली केरल का आज क्या हाल है हम लोग इस पर विचार करें 

अपने लक्ष्य को पहचानें संगठन का महत्त्व समझते हुए संकल्प लें

हमें जाग्रत होने की आवश्यकता है

इसके अतिरिक्त 

भैया नीरज जी भैया पंकज जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

28.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी/नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 28 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सेवक सेब्य भाव बिनु भव न तरिअ उरगारि।

भजहु राम पद पंकज अस सिद्धांत बिचारि॥119 क॥



हे उरग अर्थात् सर्प के शत्रु गरुड़ जी! मैं सेवक हूँ और भगवान मेरे स्वामी हैं, इस महत्त्वपूर्ण भाव के अभाव में संसार रूपी समुद्र से पार पाना संभव नहीं । ऐसे सिद्धांत का चिन्तन मनन कर प्रभु राम जी के चरण कमलों का भजन  करें


प्रस्तुत है पुरुष -व्याघ्र ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी/नवमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 28 -05- 2023

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  668 वां सार -संक्षेप

1=पूज्य व्यक्ति


INTERNATIONAL YEAR OF 

MILLETS 2023  को मनाते हुए कल सरौंहां में एक कार्यक्रम 

'प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजनान्तर्गत पात्र कृषकों के संतृप्तीकरण हेतु बृहद ग्राम पंचायत स्तरीय शिविर ' हुआ

ग्राम से पलायन रोकना उद्देश्य था इसके अन्तर्गत गांव के नौजवानों का एक समूह बनाया गया है


एक  दृढ़  संकल्प लें कि किसी भी तरह के छोटे कारणों से  बड़े कार्य बाधित न हों

नित्य साधना के कार्य सत्कार्य बाधित न हों


मन के उत्साह को कम न करें

उत्साहित मन हो तो शरीर भी  बहुत सक्षम रहता है


श्री रामचरित के सूत्र सिद्धान्त अद्भुत हैं और हम लोगों के लिए मानने योग्य हैं

इनका अनुसरण करने पर समस्याओं के आने पर हमें तनिक भी भय भ्रम नहीं रहेगा

आइये प्रवेश करें उत्तरकांड में 


कहत कठिन समुझत कठिन साधत कठिन बिबेक।

होइ घुनाच्छर न्याय जौं पुनि प्रत्यूह अनेक॥118 ख॥



ज्ञान समझाने  समझने में कठिन है साधने में भी कठिन है। यदि घुणाक्षर न्याय से संयोग के कारण शायद यह ज्ञान हो भी जाए, तो  उसे बचाए रखने में अनेक विघ्न आ जाते हैं


अविद्या का संसार विचित्र है अविद्या अनित्य को नित्य समझती है क्षरणशील मरणशील को शाश्वत समझने की भूल करती है


सुख के साधनों में इसकी तृष्णा रहती है  और सबसे अधिक अभिनिवेश अर्थात् 

मृत्यु के भय से होनेवाला कष्ट या क्लेश( जो योग-शास्त्रों में पाँच क्लेशों में से एक माना गया है)उसे सताता है जब कि मरना आवश्यक है


इस अविद्या के संसार में सभी तैर रहे हैं


ज्ञान का मार्ग दुधारी तलवार की धार की तरह  है।

हे पक्षीराज! इस पथ से गिरते देर नहीं लगती। जो इस पथ को निर्विघ्न निबाह ले जाता है, वही मोक्ष प्राप्त करता है


आचार्य जी ने एक विद्यार्थी का प्रसंग बताया जिसने कहा था फेल होना जरूरी है



इंद्री द्वार झरोखा नाना। तहँ तहँ सुर बैठे करि थाना॥

आवत देखहिं बिषय बयारी। ते हठि देहिं कपाट उघारी॥6॥

का विस्तार करते हुए आचार्य जी ने बताया नारद जी में कैसे काम उत्पन्न हो गया जब कि नारद का हित वैराग्य में है


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया

भैया आलोक सांवल जी का कौन सा प्रसंग बताया


मोक्ष में भक्ति के बिना टिके रहना संभव नहीं इसको आचार्य जी ने बैरिस्टर साहब के किस प्रसंग से संयुत किया

जानने के लिए सुनें

27.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 27 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 घर दीन्हे घर जात है, घर छोड़े घर जाय। 


‘तुलसी’ घर बन बीच रहू, राम प्रेम-पुर छाय॥ 


यदि मानव एक स्थान पर रुककर बैठ जाय तो वह वहीं की माया में फँसकर  परमात्मा के घर से विमुख हो जाता है। इसके उलट यदि मानव घर छोड़ देता है तो उसका घर ही बिगड़ जाता है, इसलिए तुलसी कहते हैं कि भगवान् राम का प्रेम - नगर बना कर घर और वन दोनों में समान रूप से रहो, पर आसक्ति किसी में न रखो।


प्रस्तुत है पुरुष -शार्दूल ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 27 -05- 2023

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  667 वां सार -संक्षेप

1=पूज्य व्यक्ति


प्रायः सारे जीव सुख चाहते हैं  ये सात्विक श्रद्धा से युक्त नहीं हैं ये मायामय जीव हैं इस मायामय जीवन में हमें पुरुषार्थ के दर्शन करने चाहिए  एकान्त के लिए कुछ समय निकालें एकान्त में अनुभूति करें अभाव प्रभाव निन्दा प्रशंसा में समान भाव रहे मैं कौन हूं यह प्रश्न करें

अप्प दीपो भव

सो ऽहम् तब यह जीव कृतार्थ हो जाता है


छोरन ग्रंथि पाव जौं सोई। तब यह जीव कृतारथ होई॥

छोरत ग्रंथ जानि खगराया। बिघ्न नेक करइ तब माया॥3॥

प्रकृति मेरी मां है परमात्मा मेरा पिता है इनके संयोग से मेरा मनुष्य रूप में जन्म हुआ है यदि मनुष्य मनुष्यत्व की अनुभूति नहीं कर पा रहा है तो माया आवश्यकता से अधिक लिपटी है


भगवान् राम की कृपा हनुमान जी की कृपा गुरु की कृपा पाकर तुलसीदास जी ने ज्ञान का दीपक जलाया


सात्विक श्रद्धा धेनु सुहाई। जौं हरि कृपाँ हृदयँ बस आई॥

जप तप ब्रत जम नियम अपारा। जे श्रुति कह सुभ धर्म अचारा॥5॥


तीनि अवस्था तीनि गुन तेहि कपास तें काढ़ि।

तूल तुरीय सँवारि पुनि बाती करै सुगाढ़ि॥117 ग॥


जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति की तीनों अवस्थाएँ और सत रज  तम तीनों गुण रूपी कपास से तुरीय अवस्था रूपी रूई को निकालकर,सँवारकर उसकी सुंदर कड़ी बत्ती बनाएँ


बत्ती ही जलेगी बत्ती तैल का शोषण करके जलेगी जब तैल समाप्त होगा तो स्वयं जलेगी

तैल प्राणिक ऊर्जा है प्रकाश करता है इस प्रकाश से यदि हमें ज्ञान हो जाए तो हमें कुछ नहीं चाहिए


माया अनेक विघ्न करती है संसार का खेल सबके विरक्त होने पर नहीं चल सकता है

सभी ज्ञानी नहीं हो सकते


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि

ग्राम का पलायन रोकने की दिशा में युगभारती काम करे हम अपनी परम्परा को जानें

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया


भैया विवेक सचान के पिता जी श्री वंशलाल जी, मृणाल जी, वलीरमानी जी, शैलेन्द्र जी की चर्चा क्यों की आज कहां कार्यक्रम है 

जानने के लिए सुनें

26.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 26 -05- 2023

 अप्प दीपो भव


 (भगवान् बुद्ध द्वारा शिष्य आनन्द के प्रश्न का उत्तर)


प्रस्तुत है सस्यक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 26 -05- 2023

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  666 वां सार -संक्षेप

1=सद्गुणों से युक्त


आत्मस्थ होकर हम विचार करें तो हम देखेंगे न हम शरीर हैं न मन न बुद्धि न विचार  न संबंध और न ही संसार हैं

हम तत्त्व हैं जो तत्त्व है वही सत्य है जो सत्य है वही तत्त्व है




सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥

आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा॥1॥



'सोऽहमस्मि' (वह ब्रह्म मैं ही हूँ) यह जो  कभी न टूटने वाली वृत्ति है, वही उस ज्ञान के दीपक की परम प्रचंड लौ है। इस तरह जब आत्मानुभूति के सुख का सुंदर प्रकाश प्रसरित होता है, तब संसार के मूल भेद रूपी भ्रम का नाश हो जाता है

यह संसार सराय है 


यह उत्तरकांड की अद्भुत चौपाई है 

श्री रामचरित मानस जैसे प्रेरणा के आधार ग्रंथों से हम लोग बहुत कुछ पा सकते हैं


हम लोग सदाचारमय जीवन जीने के लिए इन प्रसंगों का संस्पर्श करते चलते हैं ज्ञानियों चिन्तकों योगियों तपस्वियों के लिए ये प्रसंग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और चर्चा के विषय हैं

उनके लिए आत्मा के सप्त प्रस्थान हैं

सात्विक श्रद्धा धेनु सुहाई। जौं हरि कृपाँ हृदयँ बस आई॥

जप तप ब्रत जम नियम अपारा। जे श्रुति कह सुभ धर्म अचारा॥5॥


का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने सातों प्रस्थान बताए


आचार्य जी ने विमल वैराग्य को स्पष्ट किया

इस शरीर में रहते हुए भी कुछ न चाहने का भाव


छोरन ग्रंथि पाव जौं सोई। तब यह जीव कृतारथ होई॥

छोरत ग्रंथ जानि खगराया। बिघ्न नेक करइ तब माया॥3॥


यदि विज्ञान रूपिणी बुद्धि उस गाँठ को खोल ले  तो यह जीव कृतार्थ हो,लेकिन हे पक्षीराज जी! गाँठ खोलते हुए जानकर माया फिर अनेक विघ्न करने लगती है



इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया 

अकबर का क्या हाल है?

क्या हमारे शत्रु हो?किसने कहा

आदि जानने के लिए सुनें

25.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 25 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है निधि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080

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  665 वां सार -संक्षेप

1=सद्गुण सम्पन्न व्यक्ति


सदाचार का व्रत लेकर नित्य आचार्य जी हम लोगों को सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने के लिए प्रेरित करते हैं 

इस भाव यज्ञ की सुगंध से हमें सुवासित करते हैं ताकि हम संसार की समस्याओं का समाधान बन सकें 




संसार समस्या है तो हम हैं समाधान, 

हम नीति नियन्ता अनुशासन हम संविधान, 

हम आत्मज्योति अव्यक्त शक्ति कर्मानुराग 

हम अम्बर की शहनाई धरती का सुहाग। 

हम मानव हैं  मानवता ही पहचान हमारी है, 

हम से ही शोभित हुई सृष्टि की क्यारी है।


अद्भुत है यह कविता तभी तो



कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है

हारे मानस की आस प्राण परिभाषा है....


हमसे ही सृष्टि की क्यारी शोभित है हमें इसके लिए अब भी प्रयासरत रहना है

सत्कर्म सद्धर्म सदाचरण के लिए अपने शरीर को उसी प्रकार ढालना होता है अन्यथा शरीर तो श्रीमान है वह सुख चाहता है भ्रान्ति में जीता है

लेकिन ऐसे भी उदाहरण हैं जिनके शरीर उनके अनुकूल हो गए जैसे रामकृष्ण परमहंस

हम सिद्धयोगी तो नहीं हैं लेकिन सिद्धि को स्वीकारते हैं यानि संस्कारों के प्रति हमारा लगाव रहता है


आजकल हम लोग उत्तरकांड में प्रविष्ट हैं तुलसीदास जी विलक्षण कवि हैं जिनकी एक से   बढ़कर एक अप्रतिम रचनाएं हैं वेद भी अद्वितीय हैं अपौरुषेय हैं अपौरुषेयता पुरुषत्व की प्रतीति है  पुरुष परमपुरुष का अंश है और पुरुष उसका अंश है यह ज्ञानियों को तब समझ में आता है जब उन्हें सात्विक श्रद्धा मिल जाती है

कुछ मिल जाए यह सात्विक श्रद्धा नहीं है कुछ मिल जाने वाली इच्छा ही संसार है यही माया से लिपटना है


भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहि माया लपटानी॥3॥


यह संसार का व्यवहार करणीय है लेकिन तत्त्व शक्ति सात्विकता को जान लेने पर हम असफल होने पर निराश नहीं होंगे सफल होने पर इतराएंगे नहीं


हम तत्त्व हैं  शरीर हमसे अलग है शरीर को स्वयं समझना ही सांसारिकता है माया है



कागभुशुंडी जी कहते हैं


सात्विक श्रद्धा धेनु सुहाई। जौं हरि कृपाँ हृदयँ बस आई॥

जप तप ब्रत जम नियम अपारा। जे श्रुति कह सुभ धर्म अचारा॥5॥


आचार्य जी ने सात्विक श्रद्धा को स्पष्ट किया



तेइ तृन हरित चरै जब गाई। भाव बच्छ सिसु पाइ पेन्हाई॥

नोइ निबृत्ति पात्र बिस्वासा। निर्मल मन अहीर निज दासा॥6॥

नोई  गाय के दुहते समय पिछले पैर बाँधने की रस्सी है


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया

डा अमित जी के किस अद्भुत भाव की आचार्य जी ने चर्चा की जानने के लिए सुनें

24.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 24 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सुनहु तात यह अकथ कहानी। समुझत बनइ न जाइ बखानी॥

ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥1॥



प्रस्तुत है लेलिहान -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 24 -05- 2023

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  664 वां सार -संक्षेप

1 लेलिहानः= सर्प (भाव :आस्तीन के सांप )


जीवन एक अद्भुत कथा है प्रातःकाल हम लोग इन वेलाओं से सदाचारमय विचार ग्रहण कर रहे हैं हम इनका लाभ उठाकर सांसारिक समस्याओं को आसानी से सुलझा सकते हैं

सांसारिक समस्याओं से बोझिल होने के बाद भी हम आनन्दित रहें प्रसन्नता की अभिव्यक्ति करें तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है

तब हमें यह संसार आनन्द का आगार लगेगा

हमें बच्चों की तरह जीवन नहीं जीना है जो संसार को सत्य मानते हैं

अपनी कथा स्वयं सुनें और आनन्द प्राप्त करें

हम आत्मविश्वासी बनें जैसा आत्मविश्वास प्रभु राम में था


रामत्व ईश्वरत्व का अद्भुत उदाहरण है कि जब भगवान् राम ने वन जाते समय सेना के लिए मना कर दिया था (कम्ब रामायण )

अद्भुत आत्मविश्वास


ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥1॥


जीव ईश्वर का अंश है। इसलिए वह अविनाशी, चेतन, निर्मल और स्वभाव से ही सुख की राशि है॥


उच्च कोटि के विद्वान रामपदार्थ दास जी विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त में बहुत सुन्दर व्याख्या करते थे


ईश्वर अर्थात् ब्रह्म जीव माया तीनों तत्त्व हैं  एक ही से निकले हैं कोई भी मिथ्या नहीं है 

ज्ञान के भंडार भक्ति के आगार भाव के संसार सांसारिक विचारों के आधार तुलसी जी का निम्नांकित छंद अद्भुत है 

आगें रामु लखनु बने पाछें। तापस बेष बिराजत काछें॥

उभय बीच सिय सोहति कैसें। ब्रह्म जीव बिच माया जैसें॥1॥

यह त्रिगुण जो वन में जा रहा है सबके अपने अपने स्वरूप हैं लेकिन स्वभाव एक है

आचार्य जी ने लक्ष्मण जी से सीता जी द्वारा पानी मंगाने वाला  और राम जी के कंटक लगने वाला प्रसंग बताया

हर कोई एक दूसरे की चिन्ता कर रहा है कोई एक दूसरे से अलग नहीं है




जिव जब ते हरि ते बिलगान्यो l 

 तबते देह गेह निज जान्यो ।

 मायावस स्वरूप विसरायो ।

 तेहि भ्रमते दारुन दुख पायो ।


विस्मृति दवाई भी है और रोग भी है अगर तत्त्व को भूलते हैं तो हम रोगी हो जाते हैं और संसार को भूलने पर रोगमुक्त हो जाते हैं

इस विस्मृति के लिए भक्तिमय भावमय जीवन जीने की प्रार्थना आवश्यक है

शरीर सत्य नहीं है अगर होता तो मरने पर जब हमारा शरीर वहां उपस्थित है तो हमारे अपने लोग क्यों रोएं


आचार्य जी ने सात्विक श्रद्धा को स्पष्ट किया

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

23.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 23 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 चितव जो लोचन अंगुलि लाएँ। प्रगट जुगल ससि तेहि के भाएँ॥

उमा राम बिषइक अस मोहा। नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा॥




प्रस्तुत है यतव्रत ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 23 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  663 वां सार -संक्षेप

1 =अपने व्रत को पूरा करने वाला


भारत में परब्रह्म के स्वरुप के बारे में कई विचारधाराएं हैं जिसमें (माधवाचार्य )द्वैत,  (रामानुजाचार्य )विशिष्टाद्वैत, (शंकराचार्य) केवलाद्वैत, (निम्बक )द्वैताद्वैत , (वल्लभाचार्य )शुद्धाद्वैत आदि कई विचारधाराएँ हैं। इतनी विचारधाराएँ होने पर भी सभी यह मानते है कि भगवान ही इस सृष्टि का नियंता है।

किसी भी ऋषि की विचारधारा का अवगाहन करें  तो लगता है यही सही है

यानि सभी सही हैं

आज तुलसीदास जी (रामानुज -रामानन्द -नरहरिदास-तुलसीदास )के विशिष्टाद्वैत दर्शन  की चर्चा होगी


मां सती  शरीर त्यागने पर मां पार्वती के रूप में उत्पन्न हुईं

जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी॥

तो वह रामकथा सुनना चाहती हैं


शिव जी समझ रहे हैं मां भवानी में रामात्मक भाव के प्रति आर्त जिज्ञासा है


रामात्मक भाव जिनमें प्रवेश कर जाता है तो समझिए उसे सब कुछ मिल गया

सामान्य जन कथा में आनन्द लेते हैं उनके लिए अद्भुत अप्रतिम शौर्य तप पराक्रम वाले राम भरत के भाई दशरथ के पुत्र हैं वे तत्त्व को नहीं समझते

तत्त्व समझने वाले आत्मानन्द में एकान्त की तलाश करते हैं 


रामपद के प्रति स्नेह अनन्त हो जाए तो वह भक्ति में रम जाता है



रां रामाय नमः


सुनहु तात यह अकथ कहानी। समुझत बनइ न जाइ बखानी॥

ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥1॥


शिष्य  गरुड़ से गुरु कागभुशुंडी जी कह रहे हैं


हे तात! यह अकथनीय कहानी  सुन लें

यह समझने में तो आती है,इसकी अभिव्यक्ति नहीं हो सकती जिन्हें अनुभूति अभिव्यक्ति दोनों मिल जाती है वो ऋषि हो जाते हैं


जीव ईश्वर का अंश है। इसलिए वह अविनाशी, चेतन, निर्मल और स्वभाव से ही सुख की राशि है॥


हम ईश्वर का अंश है माया में बहुत अधिक लिप्त हैं



सो मायाबस भयउ गोसाईं। बँध्यो कीर मरकट की नाईं॥


जीव मायावश होता है परमात्मा राम मायावश नहीं होते



आचार्य जी ने एक संन्यासी फोटोग्राफर का रोचक प्रसंग बताया वह प्रसंग क्या था


मीराबाई ने तुलसीदास जी को पत्र लिखा था उसमें क्या लिखा था

आदि जानने के लिए सुनें

22.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 22 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 सुनहु तात यह अकथ कहानी। समुझत बनइ न जाइ बखानी॥

ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥1॥



प्रस्तुत है तैजस ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 22 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  662 वां सार -संक्षेप

1 =ऊर्जस्वी


अनेक बार आचार्य जी के सामने विषम परिस्थितियां आती हैं फिर भी उन परिस्थितियों की उपस्थिति के बाद भी आचार्य जी वाणी के माध्यम से भावनात्मक रूप में हम लोगों से भगवत्कृपा से संयुत हो जाते हैं

अद्भुत है वह शक्ति और उसका प्रवाह जो यह सब करवा देती है


इन वेलाओं का उद्देश्य है कि अपने भीतर के कर्मानुराग पुरुषार्थ पराक्रम की अनुभूति हम करें

सांसारिक दम्भ को दरकिनार कर  पूजा भाव से यज्ञ भाव से सेवा करें

आचार्य जी हमें मार्ग दिखा रहे हैं

हम भी नई पीढ़ी के लिए शिक्षक बनें


आचार्य जी ने  बताया कि परिवार में संघर्ष से बचना है तो भगवदाश्रित होकर काम करें

परमात्मा ही सब करता है  यह भाव आने पर प्रेम आत्मीयता का समावेश हो जाता है संघर्ष समाप्त हो जाता है


भक्ति का आधार प्रेम है



यह रहस्य रघुनाथ कर बेगि न जानइ कोइ।

जो जानइ रघुपति कृपाँ सपनेहुँ मोह न होइ॥116 क॥


रहस्य यह है कि ज्ञान के भंडार परमात्मा को  भक्ति प्रिय है  लेकिन ज्ञान के मार्ग को उसने कठिन बना दिया


कहहिं संत मुनि बेद पुराना। नहिं कछु दुर्लभ ग्यान समाना॥

सोइ मुनि तुम्ह सन कहेउ गोसाईं। नहिं आदरेहु भगति की नाईं॥5॥


गरुड़ जी! ज्ञान और भक्ति का और भी भेद सुन लीजिए जिसके सुनने से श्रीराम जी के चरणों में सदा अविच्छिन्न प्रेम हो जाता है


करपात्री जी महाराज के ग्रंथ मार्क्सवाद और रामराज्य  की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया भारतीय संस्कृति क्यों विशेष है

दुष्टों को अवतार आदि समझ में नहीं आ सकते

पाश्चात्य दर्शन दर्शन न होकर प्रदर्शन है


परमात्मा अनेक रूपों में उत्पन्न होते हैं अग्नि जल देवता हैं

वेद कहता है भगवान् माया के संयोग से अनेक रूप धारण करते हैं


तुलसीदास जी भी अवतार ही हैं


परिवारों में प्रसरित होती रही भाव और भक्ति के कारण भारतीय संस्कृति सुरक्षित रही है इसके लिए आचार्य जी ने अपने बचपन का एक प्रसंग बताया वह प्रसंग क्या था उत्तरकांड में आचार्य जी ने आगे क्या बताया जानने के लिए सुनें

21.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 21 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है श्लथोद्यम -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 21 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  661 वां सार -संक्षेप

1 श्लथोद्यम =जिसने अपने प्रयत्न ढीले कर दिये हों


प्रातःकाल नित्य इन वेलाओं में उपस्थित होकर संसार की समस्याओं संकटों चिन्ताओं चर्चाओं पर ध्यान रखते हुए  हम लोग

सदाचारमय विचारों में भक्तिपूर्वक रमने का प्रयास करते हैं हमारा सोने जागने खाने पीने का क्रम सही बना रहे इसके लिए हम अपने प्रयत्न ढीले न होने दें 


कलियुग ,    जिसमें सारे कार्य क्षुद्र स्वार्थ के लिए होते हैं,  में संघर्ष के साथ अध्यात्म को संयुत करने वाले लोगों की उत्कर्ष पर दृष्टि रहती है लेकिन जो संघर्ष के साथ उत्कर्ष का चिन्तन नहीं करते वो शंकाशील रहते हैं


शंकाएं ही विविध समस्याएं उत्पन्न करती हैं


शंकाशील होने पर  कार्य व्यवहार क्षमताएं भस्मीभूत होने लगती हैं


विश्वासी लोगों के अनुसार भगवान् सब कुछ है

भगवान् की अमृतवाणी गीता में 

भगवान् स्वयं कहते हैं 



पिताऽहमस्य जगतो माता धाता पितामहः।


वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक् साम यजुरेव च।।9.17।।


गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्।


प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्।।9.18।।


निष्क्रियता से सक्रियता श्रेष्ठ है भले ही माला जपना ढोंग लगे

चिन्तन मनन ध्यान अध्ययन स्वाध्याय सद्संगति से यह भाव जाग्रत होता है कि हम परमार्थ हेतु हैं


भारत के ऋषि मुनि चिन्तक विचारक कवि हम जिज्ञासुओं को संसार में रहने का सलीका सिखाते रहे हैं



WhatsApp के forwarded messages की ओर संकेत करते हुए आचार्य जी कहते हैं जो पराये विचारों को ओढ़ लेते हैं उन्हें आनन्द की अनुभूति नहीं होती

आनन्द की अनुभूति तभी होती है जब भीतर से विश्वास उत्पन्न होता है विश्वास ही भक्ति है शक्ति प्रेम उत्साह उमंग शौर्य पराक्रम है


बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु।

राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु॥90 क॥


धीरे धीरे  विष्णु भगवान् की संगति करने वाले पक्षीराज में विश्वास उत्पन्न हो गया अहंकार उत्पन्न होने पर पालनकर्ता भक्त की परीक्षा अवश्य लेता है


ग्यानहि भगतिहि अंतर केता। सकल कहहु प्रभु कृपा निकेता॥

सुनि उरगारि बचन सुख माना। सादर बोलेउ काग सुजाना॥6॥


कृपा के धाम हे प्रभु

ज्ञान और भक्ति में कितना अंतर है? यह सब बताएं । गरुड़ जी के वचन सुनकर गुरु काकभुशुण्डिजी ने सुख माना और आदर के साथ कहा


भगतिहि ग्यानहि नहिं कछु भेदा। उभय हरहिं भव संभव खेदा॥

नाथ मुनीस कहहिं कछु अंतर। सावधान सोउ सुनु बिहंगबर॥7॥


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

20.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 20 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 तुलसीदास मथुरा में बांकेबिहारी की मूर्ति  देख कहते हैं-


“का बरनौं छवि आपकी, भले बने हो नाथ।


तुलसी मस्तक तब नवे, जब धनुष-बाण लो हाथ।।”




प्रस्तुत है लब्धवर्णभाज् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 20 -05- 2023

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  *660 वां* सार -संक्षेप

1=honouring the learned



परमात्मा की कृपा से हम लोगों के लिए उपलब्ध ये सदाचार वेलाएं अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं इनसे सदाचारमय विचार प्राप्त कर हम आसानी से सांसारिक समस्याओं को  स्वयं सुलझा सकते हैं इसका हम जितना अनुभव करेंगे उतना ही हमारे लिए लाभकारी होगा


इसका अर्थ है हमें अपने इष्ट की भक्ति प्राप्त हो गई भक्ति अर्थात् विश्वास


ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।


मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।4.11।।


हे अर्जुन!

जो मुझे जैसे भजते हैं उन पर मैं उसी तरह का अनुग्रह करता हूँ

 सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुवर्तन करते हैं


जिन भी महापुरुषों ने चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय ध्यान कर वाणी से लेखनी से हमारे सामने अद्भुत साहित्य प्रस्तुत कर दिया है  हमारे पास भक्ति परंपरा में तुलसी मीरा नानक कबीर धन्ना के रूप में अद्भुत शक्ति है जिससे हमने सांसारिक समस्याओं को सुलझाया है दुष्टों को पराजित किया है

इसी तरह वास्तविक शिक्षकों ने बहुत कल्याण किया है यह परमात्मा की कृपा है हमें इसका लाभ उठाना चाहिए हम इसकी संगति पाकर व्याकुल हो ही नहीं सकते

पढ़ाई लिखाई कर अर्थ कमा लेना ही हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए

हमें तो संस्कारित होना चाहिए जाग्रत होना चाहिए आत्मचिन्तन में रत होना चाहिए

अपने अन्दर का शिक्षकत्व जगाएं दान ज्ञान का दम्भ न करें तत्व में जाकर शक्ति प्राप्त करें 


समाज में मची हुई उथल पुथल को समाप्त करने के लिए हम पहले अपने व्यक्तित्व का उत्कर्ष करें फिर परिवार से भावपूर्ण संबंध बनाएं


हमें इन वेलाओं के भाव ग्रहण करने चाहिए आचार्य जी ने परामर्श दिया कि यदि कहीं हम उलझाव में हैं तो उनसे परामर्श ले सकते हैं

आइये प्रवेश करें उत्तरकांड में 


अति बिसमय पुनि पुनि पछिताई। सादर मुनि मोहि लीन्ह बोलाई॥

मम परितोष बिबिधि बिधि कीन्हा। हरषित राममंत्र तब दीन्हा॥3॥

पहले प्रभु राम का ध्यान करें


अयोध्यानगरे रम्ये रत्नमण्डपमध्यगे । 

स्मरेत्कल्पतरोर्मूले रत्नसिंहासनं शुभम् ॥ १०॥


तन्मध्येऽष्टदलं पद्मं नानारत्नैश्च वेष्टितम् । स्मरेन्मध्ये दाशरथिं सहस्रादित्यतेजसम् ॥ ११॥

और फिर राममन्त्र 


*ॐ रां रामाय नमः*

*रां रामाय नमः*


श्रद्धेय अशोक जी का राममन्त्र था

जय श्री राम


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया

आज आचार्य जी ने विद्यालय से संबंधित कौन से दो प्रसंग बताए जानने के लिए सुनें

19.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 19 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

प्रतिपल अनुभव करना सीखो

'मैं अमरतत्व रखवाला हूँ'

परमात्म शक्ति की दिव्य ज्योति

इस जगती तल की ज्वाला हूँ।


प्रस्तुत है लब्धातिशय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष अमावस्या      शनि जंयती, वट सावित्री व्रत         भरणी नक्षत्र  विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 19 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  659 वां सार -संक्षेप

1=जिसे अलौकिक शक्ति प्राप्त हो चुकी है


आजकल हम लोग श्री रामचरित मानस के उत्तरकांड में प्रविष्ट हैं


उद्बोधक प्रेरक  राष्ट्रीय ग्रंथ श्री रामचरित मानस का अनुशीलन पठन पाठन कर शक्ति बुद्धि विचार संयम भक्ति  ज्ञान साधना स्वाध्याय सेवाभाव संपूर्ण विश्व के कल्याण का भाव राष्ट्रीयता का भाव  सांसारिक जीवन जीने का भाव संसारेतर चिन्तन प्राप्त होते हैं


उत्तरभारत में अनगिनत लोग इस सद् ग्रंथ से जीविकोपार्जन भी करते हैं

आइये प्रवेश करें उत्तरकांड में


हाहाकार कीन्ह गुर दारुन सुनि सिव साप।

कंपित मोहि बिलोकि अति उर उपजा परिताप॥107 क॥

तो अंधकार का हरण करने वाले अर्थात् गुरु शिव जी से विनती करते हैं


भगवान रुद्र की स्तुति के अष्टक द्वारा भगवान शम्भु प्रसन्न हो जाते हैं


लेकिन

मोर श्राप द्विज ब्यर्थ न जाइहि। जन्म सहस अवस्य यह पाइहि॥3॥


इस प्रकार हे पक्षीराज! मैंने बहुत से शरीर धारण किए, पर मेरा ज्ञान नहीं गया


सुनत फिरउँ हरि गुन अनुबादा। अब्याहत गति संभु प्रसादा॥6॥


काकभुशुण्डि जी  लोमशजी के पास गए



सठ स्वपच्छ तव हृदयँ बिसाला। सपदि होहि पच्छी चंडाला॥

पक्षीराज गरुड़ जी! सुनिए, इसमें ऋषि का कुछ भी दोष नहीं था।


अति बिसमय पुनि पुनि पछिताई। सादर मुनि मोहि लीन्ह बोलाई॥

मम परितोष बिबिधि बिधि कीन्हा। हरषित राममंत्र तब दीन्हा॥3॥


आचार्य जी ने राममन्त्र के लिए सनतकुमार संहिता को देखने का परामर्श दिया


कागभुशुंडी जी  मन्त्र पाकर आनन्द में हो गए


सदा राम प्रिय होहु तुम्ह सुभ गुन भवन अमान।

कामरूप इच्छामरन ग्यान बिराग निधान॥113 क॥


ज्ञानी का विरक्त होना कठिन होता है क्योंकि ज्ञानी जिज्ञासु होता है उसकी जिज्ञासाएं शान्त नहीं होती हैं लेकिन पराकाष्ठा पर पहुंचने पर ज्ञानी विरक्त हो जाता है


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा का पीपल वृक्ष से संबंधित क्या प्रसंग था

जानने के लिए सुनें

18.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 18 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 देशभक्ति है वही जो कर्मानुरागी की शिक्षा दे

देशभक्त को ललकारे उठ पग पग  कठिन परीक्षा दे....



प्रस्तुत है यतमानस ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 18 -05- 2023

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  658 वां सार -संक्षेप

1=मन को वश में रखने वाला


सदाचारमय विचारों को ग्रहण  करने के लिए हम नित्य इन सदाचार वेलाओं की प्रतीक्षा करते हैं  सांसारिक प्रपंचों से इतर इन वेलाओं के प्रति हम लोगों की अनुरक्ति वास्तव में बहुत मूल्यवान है


अपने अध्यात्म को परिपोषित करने का इसे आत्मसात् करने का यह दुर्लभ अवसर हमें गंवाना नहीं चाहिए


यह हम लोगों का सौभाग्य है भगवान् हनुमान जी की विशेष कृपा है कि अतिमूल्यवान समय के कुछ क्षण आचार्य जी हमें दे देते हैं


प्रेम आत्मीयता के कारण हमारा एक दूसरे से संपर्क बना हुआ है संपर्क में यदि संकोच है तो यह द्वैत भाव दर्शाता है



आज श्रद्धेय बैरिस्टर साहब, कुछ भी यज्ञ भाव से  ही करने वाले महापुरुष,का जन्मदिन है आचार्य जी ने बताया कि विद्यालय से संबन्धित किसी भी  तप का वन्दन करने वाले महापुरुष जैसे ठाकुर साहब, शर्मा जी, जे पी जी भी के जन्मदिन पर उनके चित्र के सामने अखंड दीपक को जलाने का क्रम बना हुआ था


यह स्मरण करने का कर्म है कर्म और धर्म  प्रायः एक दूसरे के पर्याय हैं  जब कर्म और धर्म अभ्यास में आ जाते हैं तो तत्त्व के प्रति व्यक्ति के अंदर अभ्यासी आस्था हो जाती है


यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन।


कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते।।3.7।।


हे अर्जुन जो पुरुष मन  से इन्द्रियों को वश में करके अनासक्त हुआ कर्म इन्द्रियों से कर्मयोग का आचरण करता है  वास्तव में वह श्रेष्ठ है।

मन से वश में रखना कठिन काम है


आचार्य जी ने ठाकुर साहब के जन्मदिन का एक प्रसंग बताया


बैरिस्टर साहब के जीवन में गीता किस प्रकार अभ्यास में आई थी आचार्य जी ने कश्मीर से संबन्धित उनका एक प्रसंग बताया


और यह अभ्यास उन्हें जेल में रहते हुए हुआ था


आइये प्रवेश करें उत्तरकांड में इस कामना के साथ कि कागभुशुंडी जी का ज्ञान हम लोगों में प्रवेश कर जाए


भरि लोचन बिलोकि अवधेसा। तब सुनिहउँ निर्गुन उपदेसा॥

मुनि पुनि कहि हरिकथा अनूपा। खंडि सगुन मत अगुन निरूपा॥6॥


सर्वप्रथम नेत्र भरकर श्री अयोध्यानाथ को देखकर, तब निर्गुण का उपदेश सुनूँगा। मुनि ने पुनः अनुपम हरिकथा कहकर, सगुण मत का खण्डन किया और निर्गुण का निरूपण किया



सठ स्वपच्छ तव हृदयँ बिसाला। सपदि होहि पच्छी चंडाला॥

लीन्ह श्राप मैं सीस चढ़ाई। नहिं कछु भय न दीनता आई॥8॥

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

17.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 17 -05- 2023

 उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।।

(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र १४)


प्रस्तुत है यतमनस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 17 -05- 2023

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  657 वां सार -संक्षेप

1=मन को वश में रखने वाला

हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक रुकना नहीं है लक्ष्य मानव जीवन को सनाथ कर देता है


हे परमपिता! मानवपन पर

विश्वास सदा ही बना रहे,

शुभकर्मों का मंगल वितान

आजीवन सिर पर तना रहे।।


इस समय कागभुशुंडी जी और गरुड़ जी का संवाद चल रहा है

भ्रमित गरुड़ जी के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि इतना तत्त्वदर्शी प्रभावशाली पारगामी ज्ञानी कौवा कैसे है

जो जितना संसारी भाव में लिप्त रहेगा उसका ध्यान उतना ही रूप पर रहेगा

और  सतत परिवर्तित हो रहे संसार से ऊपर उठने वाले नाम पर आधारित रहते हैं



स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम् |परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते ||.

लेकिन इस संसार में अमरत्व की उपासना मनुष्य ही करता है

कौवा अमरौती खाय के आवा है को स्पष्ट करते हुए आचार्य जी ने बताया कौवा अपने आप मरा तो देखा ही नहीं

कागभुशुंडी जी भी कौवा हैं 

कागभुशुंडी जी ने जन्म जन्मान्तर की कथा सुनाई


हम सनातनधर्म पर विश्वास करने वाले लोगों का ज्ञान विद्या और अविद्या के विश्लेषण को भली भांति समझता है जबकि अन्य सभ्यताओं में ज्ञान जानकारी तक सीमित है


कल की कथा में आगे


जदपि कीन्ह एहिं दारुन पापा। मैं पुनि दीन्हि कोप करि सापा॥

तदपि तुम्हारि साधुता देखी। करिहउँ एहि पर कृपा बिसेषी॥2॥


शिव जी ने प्रसन्न होकर विशेष कृपा की हामी भर दी

फिर भी


मोर श्राप द्विज ब्यर्थ न जाइहि। जन्म सहस अवस्य यह पाइहि॥3॥

हजार जन्म तो इसे मिलेंगे ही


परंतु जन्म लेने में और मरने में जो असहनीय कष्ट होता है, इसको वह दुःख जरा भी नहीं सतायेगा और किसी भी जन्म में इसका ज्ञान नहीं मिटेगा।


औरउ एक आसिषा मोरी। अप्रतिहत गति होइहि तोरी॥8॥



इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया त्रिकालदर्शी लोमश ऋषि की चर्चा कैसे हुई  कागभुशुंडी जी को राममन्त्र किससे मिला जानने के लिए सुनें

16.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 16 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।


निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।


वेद तीनों गुणों के विषय हैं लेकिन हे अर्जुन! तुम तीनों गुणों से रहित हो जाओ , निर्द्वन्द्व हो जाओ , निरन्तर नित्य  परमात्मा में स्थित हो जाओ , योगक्षेम की इच्छा भी मत रखो व परमात्मपरायण हो जाओ ।


प्रस्तुत है यतचित्त ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 16 -05- 2023

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  656 वां सार -संक्षेप

1=मन को वश में रखने वाला


कल आचार्य जी ने बताया था

संकट आने पर परिस्थिति की समीक्षा करनी चाहिए व्याकुल नहीं होना चाहिए


आइये इसी तरह के सद्विचारों को ग्रहण करने के लिए, आत्मबोधित होने के लिए, तत्त्व की बातें समझने के लिए प्रवेश करें आज की वेला में

संसार के कार्यव्यापार में मग्न रहते हुए, गृहस्थ आश्रम के पवित्र कर्मों धर्मों का परिपालन करते हुए यदि हम जीवात्माओं को आनन्द की अवस्था प्राप्त करनी है तो मैं का भाव अपने अन्दर कम करना होगा

आइये प्रविष्ट होते हैं 

उत्तरकांड में जिसमें ज्ञान भक्ति उपासना  तत्त्व आदि को अद्भुत रूप से दर्शाया  गया है



विषय और कथा का अद्भुत सम्मिश्रण है 

शूद्रतन प्राप्त प्रारम्भ के कागभुशुण्डी जी शिवभक्त हैं

पूजा कर रहे हैं उनमें शिव की उपासना का दम्भ भर गया है

अखंड जप चल रहा है

गुरु जी के आने पर भी जप चल रहा है सर्वज्ञ सर्वत्र शिव जी क्रुद्ध हो गए


मंदिर माझ भई नभबानी। रे हतभाग्य अग्य अभिमानी॥

जद्यपि तव गुर के नहिं क्रोधा। अति कृपाल चित सम्यक बोधा॥1


उसी समय मंदिर में आकाशवाणी हुई कि अरे हतभाग्य! अज्ञ ! अभिमानी! यद्यपि तुम्हारे गुरु को क्रोध नहीं  हो रहा वे अत्यंत कृपालु चित्त के हैं और उन्हें पूर्ण यथार्थ ज्ञान है


फिर भी  मैं तुम्हें शाप दूँगा, क्योंकि नीति का विरोध मुझे अच्छा नहीं लगता है l


गुरु से ईर्ष्या करना अच्छा नहीं है

गुरु के प्रति हमें बहुत कृतज्ञ रहना चाहिए


हाहाकार कीन्ह गुर दारुन सुनि सिव साप।

कंपित मोहि बिलोकि अति उर उपजा परिताप॥107 क॥


प्रेम सहित दण्डवत करके वे ब्राह्मण श्री शिव जी के सामने हाथ जोड़कर विनती करने लगे


....


निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं॥

करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं॥2॥......


तुलसीदास जी के अनुसार


रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति॥9॥


भगवान रुद्र की स्तुति का यह अष्टक  शिवजी को प्रसन्न करने के लिए  उस ब्राह्मण द्वारा कहा गया। जो मनुष्य इसे भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं,  भगवान शिव उन पर प्रसन्न होते  ही हैं



शिव जी प्रसन्न हो गए

वरदान के रूप में 

ब्राह्मण ने अपने लिए भक्ति ही मांगी

शक्ति, संसार नहीं मांगा

वह गुरु शूद्रतन व्यक्ति के कल्याण की कामना करता है


एवमस्तु इति भइ नभबानी॥1॥


और शिव जी प्रसन्न हो गए


जदपि कीन्ह एहिं दारुन पापा। मैं पुनि दीन्हि कोप करि सापा॥

तदपि तुम्हारि साधुता देखी। करिहउँ एहि पर कृपा बिसेषी॥2॥

आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त और क्या बताया जानने के लिए सुनें

15.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष एकादशी (अपरा एकादशी )विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 15 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 जे सठ गुर सन इरिषा करहीं। रौरव नरक कोटि जुग परहीं॥

त्रिजग जोनि पुनि धरहिं सरीरा। अयुत जन्म भरि पावहिं पीरा॥3॥



प्रस्तुत है लब्धसिद्धि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष एकादशी (अपरा एकादशी )विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 15 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  655 वां सार -संक्षेप

1=one who has attained perfection


कल आचार्य जी ने बताया था


जिनके अंदर रामत्व प्रवेश नहीं करता वे संसार को ढोते हैं




आइये प्रवेश करें आज की वेला में


हम ऋषियों से तात्विक ज्ञान लें हनुमान जी की साधना करें अपने व्यक्तित्व के निर्माण हेतु प्रयास करें


ॐ सह नाववतु ।

सह नौ भुनक्तु ।

सह वीर्य करवाहै ।

तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

चैतन्य को जाग्रत करने वाले सांसारिक सद्वयवहार दिव्य कर्म अर्थात् भोजन के समय किये जाने वाले इस मन्त्र से हम अच्छी तरह से परिचित हैं

सह नाववतु ।

सह नौ भुनक्तु ।......

जब ऐसा होता है तो तीनों तापों में शान्ति मिलती है 

यज्ञ भाव से किया गया भोजन साधना का कारक बनता है 

पवित्रता के साथ हमें भोजन करना चाहिए


अन्यथा


मन पछितैहै अवसर बीते।

दुर्लभ देह पाइ हरिपद भजु, करम, बचन अरु हीते॥१॥

सहसबाहु, दसबदन आदि नप बचे न काल बलीते।

हम हम करि धन-धाम सँवारे, अंत चले उठि रीते॥२॥

सुत-बनितादि जानि स्वारथरत न करु नेह सबहीते।


पुत्र, वनिता अर्थात् पत्नी  आदि  परिवार जनों का सम्बद्ध तुझसे स्वार्थ के कारण है  इसीलिए उनसे प्रेम न कर

यह नेह सात्विक स्नेह नहीं है यह आत्मभावयुक्त आत्मबोध नहीं है

यह मोह है जो सभी व्याधियों का मूल है


अंतहु तोहिं तजेंगे पामर! तू न तजै अबहीते॥३॥


वो सब तुझे अंतिम समय में त्याग देंगे, तू उनको अभी से ही क्यों नहीं त्याग देता।


वाल्मीकि जी महाराज का प्रसंग याद कर सकते हैं जिसमें उनके परिवार ने पाप में भागीदारी मना कर दी थी

इसीलिए हमारे यहां परिवारभाव संबंधों का होता है साधनों का नहीं


मां रत्नावली ने तुलसी जी के ज्ञान के कपाट खोल दिए थे


संकट आने पर परिस्थिति की समीक्षा करनी चाहिए व्याकुल नहीं होना चाहिए


ऐसी ही समीक्षा आनन्द में डूबे कागभुशुंडी जी कर रहे हैं

वे हर तरह के रूप धर सकते हैं उन्हें पूर्वजन्म भी याद हैं


एक बार गुर लीन्ह बोलाई। मोहि नीति बहु भाँति सिखाई॥

सिव सेवा कर फल सुत सोई। अबिरल भगति राम पद होई॥1॥


एक बार हर मंदिर जपत रहेउँ सिव नाम।

गुर आयउ अभिमान तें उठि नहिं कीन्ह प्रनाम॥106 क॥


एक दिन मैं शिव जी के मंदिर में शिवनाम जप रहा था। उसी समय गुरुजी वहाँ आए, किन्तु अभिमान के कारण मैंने  उनको प्रणाम नहीं किया


यह शिव जी को ही अच्छा नहीं लगा गुरु तो बहुत महत्त्वपूर्ण हैं

शिव जी का भयानक शाप सुनकर  नवनीत के समान हृदय वाले गुरु जी  हाहाकार करने लगे । मुझे काँपता हुआ देखकर उनके हृदय में बड़ा संताप पैदा हुआ

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया रमेश भाई ओझा जी अशोक सिंघल जी का नाम क्यों आया


नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं॥

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं॥1॥

की क्या विशेषता है जानने के लिए सुनें

14.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 14 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 असंतोष और अविश्वास दोनों ही सगे सहोदर हैं

दोनों ही अविवेकपूर्ण हैं भूखे और महोदर हैं

इनसे जो भी बच जाए यह  दुनिया उनको नन्दन है

और न बच पाया जो इनसे उन्हें अमंगल क्रंदन है


प्रस्तुत है लब्धलाभ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 14 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  654वां सार -संक्षेप

1=संतुष्ट


(चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह। 


जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥

साहन के साह =राजाओं के राजा

)


आइये प्रवेश करें सदाचार वेला में और ध्यानपूर्वक सात्विक गुरु आचार्य जी द्वारा प्रोक्त सदाचारमय विचारों के माध्यम से अपनी आत्मशक्ति आत्मविश्वास आत्मगौरव का वरण करें हम साधक संसार में रहते हुए सांसारिकता का संस्पर्श न करने का प्रयास करें और ऐसे साधकों का संगठन बनाएं राह में थककर बैठें नहीं मंजिल मिलेगी ही

भ्रम भय ईर्ष्या कुंठा से दूरी बनाएं




राम कहत चलु , राम कहत चलु , राम कहत चलु भाई रे ।


नाहिं तौ भव - बेगारि महँ परिहै , छुटत अति कठिनाई रे ॥१॥


बाँस पुरान साज सब अठकठ , सरल तिकोन खटोला रे ।


हमहिं दिहल करि कुटिल करमचँद मंद मोल बिनु डोला रे ॥२॥

जिनके अंदर रामत्व प्रवेश नहीं करता वे संसार को ढोते हैं

.....


मारग अगम , संग नहिं संबल , नाउँ गाउँकर भूला रे ।


तुलसिदास भव त्रास हरहु अब , होहु राम अनुकूला रे ॥५॥

आत्मविश्वास बहुत आवश्यक है

चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय सद्संगति संसार का अनुकूल खाद्य है पोषण है

और जिनका ये पोषण नहीं है उनको न संसार भाता है और न संसार को ये लोग भाते हैं


परमात्मा ने जीवात्मा को अद्भुत शक्ति सम्पन्न करके भेजा है

उठो जागो लक्ष्य प्राप्ति तक रुको नहीं


हमारा लक्ष्य मोक्ष है 

एक तुम, यह विस्तृत भू-खंड प्रकृति वैभव से भरा अमंद,

कर्म का भोग, भोग का कर्म, यही जड़ का चेतन--आनंद।


आचार्य जी ने आज उत्तरकांड में क्या बताया

जानने के लिए सुनें

13.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 13-05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 राम नाम को प्रभाउ पाउ महिमा प्रताप 

तुलसी से जग मनियत महामुनि सो ।”



प्रस्तुत है अलुप्तमहिमन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 13-05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  653 वां सार -संक्षेप

1=जिसकी अक्षुण्ण कीर्ति बनी हुई है


आचार्य जी की भाव विचार गुञ्जा भक्ति शक्ति संयम  अध्ययन स्वाध्याय साधना -तत्त्व वाली अभिव्यक्तियां सांसारिकता में लिप्त हम लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं और यह परमात्मा के भक्त सेवक हनुमान जी की कृपा ही है 

हमें इन तत्त्वमय विचारों का लाभ उठाना चाहिए हम लोगों को अपने विचार पल्लवित करने चाहिए हमारी सात्विकता विकसित होनी चाहिए


कलियुग में रामभक्ति का आधार लेकर हम अपनी शक्ति का संचयन कर परमार्थ के लिए तैयार रहते हैं राष्ट्रार्पित जीवन जीते हैं तो यह कलियुग सतयुग बन जाता है



तुलसीदास जी का रामबोला से गोस्वामी तुलसीदास बनने का सफर इतना सरल  नहीं था । उन्होंने अपनी बाल्यावस्था की दीन-दशा को निम्नांकित मार्मिक शब्दों में चित्रित किया है



जायो कुल मंगन बधावनो बजायो सुनि,

भयो परिताप पाप जननी जनक को ।

बारे तेँ ललात बिललात द्वार द्वार दीन,

⁠जानत हौं चारि फल चारि ही चनक को॥

तुलसी सो साहिब समर्थ को सुसेवक है,

⁠सुनत सिहात सोच बिधि हू गनक को।

नाम, राम! रावरो सयानो किधौं बाबरो,

⁠जो करत गिरी तेँ गरु तृन तेँ तनक को॥



मैं तुलसी मँगतों वाले कुल में जन्मा हूँ। न जन्म का बधावा  बजा, जन्म सुनकर माता-पिता दोनों को पाप का परिताप हुआ। छोटे से, दरवाजे दरवाजे ललचाता रोता फिरता हूँ, दीन हूँ

 चार चनों  को चार फल जानता हूँ अर्थात् चार चने मिल जाने से जान जाता हूँ कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष (चारों फल) मिल गये। सो तुलसी समर्थ साहब का एक अच्छा सेवक है, जिससे  करी गई सेवक की तारीफ  सुनकर  ब्रह्मा सराहना करते हैं और सोचने लगते हैं कि यह इतना बड़ा कैसे हो गया। हे राम! आपका नाम  हल्के तिनके  को पहाड़ सा भारी कर देता है

आइये चलते हैं उत्तर कांड में

कृतजुग त्रेताँ द्वापर पूजा मख अरु जोग।

जो गति होइ सो कलि हरि नाम ते पावहिं लोग॥102 ख॥


सतयुग, त्रेता और द्वापर में जो सद्गति पूजा, यज्ञ, योग से प्राप्त होती है, लोग वही सद्गति कलियुग में  केवल भगवान के नाम से पा जाते हैं


अपने इष्ट का नाम अन्तर्मन में गूंजता रहे तो आनन्द ही आनन्द है

सोइ भव तर कछु संसय नाहीं


राम जी का प्रताप कलियुग में स्पष्ट दिखाई देता है


प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।

जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥103 ख॥



धर्म के चार चरण (सत्य, दया, तप और दान) विख्यात हैं, जिनमें से कलियुग में एक चरण ही प्रधान है और वह है दान

जिस किसी प्रकार से भी दिया जाए

दान कल्याण ही करता है


चारों युगों में कुछ न कुछ अन्तर है



कल आचार्य श्री वीरेन्द्र पाण्डेय जी   हम सबको छोड़ कर परम धाम चले गए

भैया अनुराग मिश्र 1983 के पिता जी भी कल गोलोकवासी हो गए

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उत्तरकांड में आगे क्या बताया जानने के लिए सुनें

12.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 12-05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अलुप्तयशस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 12-05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  652वां सार -संक्षेप

1=यशस्वी


आजकल रामचरित मानस का आधार लेकर इन सदाचार वेलाओं का अनवरत प्रसारण जारी है इन वेलाओं से हम सदाचारमय विचार ग्रहण कर लाभान्वित हो रहे हैं इन्हीं विचारों से हम  यदि नई पीढ़ी को अवगत करा देते हैं तो वास्तव में इनको संप्रेषित करने का उद्देश्य सफल हो जाता है


हमें इतिहास अपना ध्यान रखना है

कि अपने पूर्वजों का मान रखना है

अरे अनिश्चय और दुविधा हो न  क्षण भर भी कभी मन में

भविष्यत के लिए निज सांस्कृतिक उत्थान लखना है


हमें अपनी संस्कृति का सिलसिला चलाते रहना है

पश्चिमी देशों को देखकर भ्रम नहीं पालना है

कायर लोगों की भाषा नहीं बोलनी है हमारे आदर्श तो वो राम हैं जो धनुष बाण हाथ में लिए हैं


(कहा कहौं छवि आज की, भले बने हो नाथ । तुलसी मस्तक तब नवै, जब धनुष बान लो हाथ ।। )


हमें उस तरह के माता पिता नहीं बनना है कि


मातु पिता बालकन्हि बोलावहिं। उदर भरै सोइ धर्म सिखावहिं॥4॥

हमें इस कलियुग में नये तुलसी बनकर अपनी भूमिका को निभाना है 


भगवान् राम तो परमात्मा हैं

 नाना पुराणों का अध्ययन करने के पश्चात अनुभव करने के बाद जीवन को सही ढंग से जीते हुए तुलसीदास हमें मानस के रूप में अद्वितीय ग्रंथ देते हैं

शाश्वत द्रष्टा तुलसीदास जी के अनुसार राम विष्णु अवतार नहीं हैं  परमात्मा  को स्वयं अवतरित होकर मनुष्य का तन धारण कर लीला करनी    पड़ी   क्योंकि

गुर सिष बधिर अंध का लेखा। एक न सुनइ एक नहिं देखा॥3॥


शिष्य और गुरु में बहरे और अंधे जैसा हिसाब किताब होता है। शिष्य गुरु के उपदेश नहीं सुनता और गुरु को ज्ञानदृष्टि ही प्राप्त नहीं है


हरइ सिष्य धन सोक न हरई। सो गुर घोर नरक महुँ परई॥


समय समय पर हमें ऐसे संत ज्ञानी विरक्त देश के प्रति अनुरक्ति रखने वाले भक्त मिलते रहे हैं जिनकी कथाएं अत्यधिक प्रभावकारी रही हैं


भारत के अद्भुत जीवन को हम पहचानने की चेष्टा करें


उत्तरकांड में एक सोरठा है


जे अपकारी चार तिन्ह कर गौरव मान्य तेइ।

मन क्रम बचन लबार तेइ बकता कलिकाल महुँ॥98 ख॥

कलियुग का वर्णन हो रहा है



नारि बिबस नर सकल गोसाईं। नाचहिं नट मर्कट की नाईं॥

सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं ग्याना। मेल जनेऊ लेहिं कुदाना॥1॥

आचार्य जी ने नारी शब्द  शूद्र शब्द की व्याख्या की

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

11.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 11-05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 निराशा या हताशा जब स्वयं में पैठ जाती है, 

तभी धुर राह में संभ्रम जवानी बैठ जाती है, 

अभी तुम सब जवानी के असल किरदार हो प्यारे, 

तुम्हारी ही बदौलत नयी पीढ़ी गुनगुनाती है।


प्रस्तुत है लब्धविद्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 11-05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  651 वां सार -संक्षेप

1=Learned



भारतवर्ष के प्राचीन विद्वानों ज्ञानियों चिन्तकों विचारकों से प्रेरणा प्राप्त कर  चिन्तन मनन स्वाध्याय कर राष्ट्र -निर्माण में महती भूमिका निभाने का संकल्प लेकर

मन्त्रों के समान भावाव्यक्तियां करने वाले

 अद्वितीय शिक्षकत्व के उदाहरण आचार्य जी नित्य हमारे लिए उपयुक्त अपने सदाचारमय विचारों से हमें लाभान्वित कर रहे हैं




आचार्य जी ने अपने विद्यालय के वर्तमान प्रधानाचार्य श्री राकेश राम त्रिपाठी जी की चर्चा की जिन्होंने लोकव्यवहार और सहानुभूति की अद्भुत मिसाल पेश की

साठ सत्तर किलोमीटर चलकर वे वर्तमान में द्वादश कक्षा के छात्र भैया अभिषेक के घर पहुंचे जिनके पिता  सुनील जी का हाल में ही निधन हो गया था


दूसरे के दुःख में सहभागी बनकर जो सहानुभूति की अभिव्यक्ति होती है तो लोकव्यवहार के इन उदाहरणों से संसार नन्दनवन लगने लगता है


अवध प्रभाव जान तब प्रानी। जब उर बसहिं रामु धनुपानी॥

सो कलिकाल कठिन उरगारी। पाप परायन सब नर नारी॥4॥


जीव अवध का प्रभाव  तब जान पाता है, जब हाथ में धनुष धारण करने वाले प्रभु राम जी उसके हृदय में बस जाते हैं। हे गरुड़जी महाराज ! वह कलिकाल बड़ा ही कठिन था जिसमें सभी नर-नारी पाप कर्मों में लिप्त थे

हम प्रवेश कर चुके हैं उत्तरकांड में


अवध के प्रभाव की तरह भारत का प्रभाव हमें तभी पता चलेगा जब भारत की भावना हमारे अंदर रहेगी

क्रान्तिकारी सैनिक समाजसेवक भक्त त्यागी इसी तरह भारत मां की सेवा करते हैं



आचार्य जी ने अद्भुत भावाव्यक्तियां करने वाले स्वामी विवेकानन्द का उदाहरण दिया


कथा से कथा संयुत करने में तुलसीदास जी का कौशल अद्भुत है


आचार्य जी ने हनुमान जी और एक साधु से संबन्धित वह कथा सुनाई जिसमें कई कल्पों की चर्चा आई

हनुमान जी भ्रमित हो गए कि किस कल्प की मुद्रिका लें


तपस्वी के लिए तप का महत्त्व है शरीर का नहीं

शरीरान्तरण होता रहता है स्मृतियां विलुप्त नहीं होतीं


आज जिस पर प्रलय विस्मित

मैं लगाती चल रही नित

मोतियों की हाट औ’

चिनगारियों का एक मेला

(दीपशिखा -महादेवी वर्मा )


मनुष्य का शरीर मरता है हम नहीं मरते


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

10.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 10-05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 तजउँ न तन निज इच्छा मरना। तन बिनु बेद भजन नहिं बरना॥

प्रथम मोहँ मोहि बहुत बिगोवा। राम बिमुख सुख कबहुँ न सोवा॥3॥


प्रस्तुत है लब्धलक्ष्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 10-05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  650 वां सार -संक्षेप

1=जिसका निश्चित लक्ष्य हो




हम प्रविष्ट हो चुके हैं सदाचार वेला में

आइये सदाचारमय विचारों को ग्रहण कर अपने जीवन को समृद्ध बनाएं

इन्द्रियों पर नियन्त्रण का प्रयास करें ताकि इन्द्रियां हमारे शरीर की शत्रु न बनें


आज कल हम लोग मानस के पाठ में रत हैं लेकिन 

हम अध्ययन के साथ मनन करने का प्रयास करें और तात्विक शक्ति को अपने अंदर उतारने की चेष्टा करें तो इससे और अधिक लाभ मिलेगा



जब तक हैं तन में प्राण प्राण में ओज

ओज में गति मति की संयुति है

तब तक है यह संसार सारवत 

और प्रभाव प्रगति है

निष्प्राण देह संसार सरिस हो जाती

ऐरों गैरों की सदा ठोकरें खाती

को उद्धृत करते हुए आचार्य जी कहते हैं जब हम किसी अपने से आहत हो जाते हैं तो अन्दर ही अन्दर परेशान होने लगते हैं धोखा बहुत खलता है 

भारत में तो यह कुछ ज्यादा ही है कि अपने अपनों के शत्रु बने रहे हैं


हमारे देश में तुलसीदास कबीर धन्ना सेन रविदास भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत हैं  अवतार हैं यह लम्बी भक्ति परम्परा हमारे देश की प्राणिक ऊर्जा है इसके न होने से इतिहास ही बदल जाता


भर्तृहरि के वैराग्य शतक का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि प्रेम एकलमार्गी है

हम एकल होने के बाद अपने आत्मानन्द में प्रविष्ट  नहीं हो पाते

यही तो संसारत्व है इसी संसारत्व को रामत्व में परिवर्तित करने के लिए चर्चा हो रही है


रामत्व अर्थात् अपने जीवन में  विचार कर्म  चिन्तन मनन तपस्या भक्ति पुरुषार्थ करना

जो इस मनुष्य रूप में मिले शरीर से ही संभव है इसलिए यह तन महत्त्वहीन नहीं है

हमें इस शरीर की रक्षा करनी है यह शरीर भोग के लिए न होकर भक्ति तपस्या कर्म चिन्तन मनन स्वाध्याय ध्यान के लिए है राम भजन के लिए है


एहिं तन राम भगति मैं पाई। ताते मोहि ममता अधिकाई॥

जेहि तें कछु निज स्वारथ होई। तेहि पर ममता कर सब कोई॥4॥



राम बिमुख लहि बिधि सम देही। कबि कोबिद न प्रसंसहिं तेही॥

राम भगति एहिं तन उर जामी। ताते मोहि परम प्रिय स्वामी॥2॥





इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया 

चमारों की सभा किसने कहा

आदि जानने के लिए सुनें


(आचार्य जी ने मानद सदस्य भैया सुनील जी के त्रयोदशा संस्कार की सूचना दी)

9.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 09-05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 जब तक हैं तन में प्राण प्राण में ओज

ओज में गति मति की संयुति है

तब तक है यह संसार सारवत 

और प्रभाव प्रगति है

निष्प्राण देह संसार सरिस हो जाती

ऐरों गैरों की सदा ठोकरें खाती

इसलिए सखे तुम करो प्राण परिपोषण

होने दो  किञ्चित मात्र न अपना शोषण



प्रस्तुत है लब्धलक्ष ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 09-05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  649 वां सार -संक्षेप

1=जिनका निश्चित लक्ष्य हो




हम प्रविष्ट होने जा रहे हैं सदाचारमय विचारों वाली वेला में जिससे हम आनन्द में डूबने का भाव, आत्मबोध कि हम शरीर नहीं हैं,भक्ति जिसका अर्थ रोना नहीं है और  जो ज्ञान को निरुत्तरित कर दे,

शिष्यत्व की अनुभूति करते हुए हनुमान जी महाराज की शक्ति बुद्धि आदि बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं बस हमें  पूर्ण विश्वास रखना है

हमें अपना शोषण नहीं होने देना है हमें यह अनुभव करना है कि हमें भगवान् ने कर्म करने के लिए प्राणिक ऊर्जा और शक्ति दी है


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।

संसार में सब कुछ करने की आवश्यकता है


संसार से भागे फिरते हो

भगवान को तुम क्या पाओगे

इस लोक को भी अपना ना सके

उस लोक में भी पछताओगे



संसार में ऐसे बहुत से व्यवहार हैं जो रूप बदल लेते हैं स्व का स्वरूप बदलता है तो हम स्व को पर समझने लगते हैं  अस्तित्वहीन माया में मस्त हो जाते हैं

सुख प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं


आचार्य जी ने सुदर्शन जी का एक प्रसंग बताया जिसमें उन्होंने रुदनमंडलों को गठित होने से बचने के लिए कहा क्योंकि ये रुदनमंडल भक्ति को शक्तिहीन बना देते हैं



भक्त को रुदन नहीं करना है उसे कमजोर नहीं बनना है

आचार्य जी ने एक बहुत ही मार्मिक प्रसंग बताया जिसमें राधा जी कृष्ण जी में विलीन हो गईं थीं



गरुड़ जी और कागभुशुंडी जी का संवाद चल रहा है जिसमें ज्ञान और भक्ति का अद्भुत सम्मिश्रण हमें उत्थित उत्साहित प्रबोधित करने के लिए दिया गया है


गरुड़ गिरा सुनि हरषेउ कागा। बोलेउ उमा परम अनुरागा।।

धन्य धन्य तव मति उरगारी। प्रस्न तुम्हारि मोहि अति प्यारी।।

सुनि तव प्रस्न सप्रेम सुहाई। बहुत जनम कै सुधि मोहि आई।।


जिनका प्राण परिपोषित रहता है जो तत्त्व में जीते हैं उन्हें जन्म जन्मान्तर की स्मृति रहती है जितने क्षण जीते हैं उन्हें आत्मबोध रहता है

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया 

वरदान और अभिशाप एक ही सिक्के के दो पहलू कैसे हैं

रघुवीर का भजन अत्यधिक तात्विक कैसे है

आदि जानने के लिए सुनें

8.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 08 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 रामु अमित गुन सागर थाह कि पावइ कोइ।

संतन्ह सन जस किछु सुनेउँ तुम्हहि सुनायउँ सोइ॥92 क॥


श्री रामजी अपार गुणों के समुद्र हैं  उनकी कोई थाह  नहीं पा सकता है

जैसा संतों से मैंने  सुना था, वही आपको सुनाया



प्रस्तुत है श्रद्धा -सन्तार ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज

ज्येष्ठ मास  कृष्ण पक्ष  तृतीया विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 08 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  648 वां सार -संक्षेप

1=श्रद्धा- तीर्थ


सांसारिकता से मुक्त होकर राममय होकर भावों में बहते हुए भक्ति और प्रेम में गोता लगाने के लिए

आनन्द प्राप्ति के लिए आइये इस सदाचार वेला में प्रविष्ट हो जाएं


जागैं जोगी जंगम, जती जमाती ध्यान धरैं,

⁠⁠डरैं उर भारी लोभ मोह कोह काम के।

जागैं राजा राजकाज, सेवक समाज साज,

⁠⁠सोचैं सुनि समाचार बड़े बैरी बाम के॥

जागैं बुध विद्याहित पंडित चकित चित,

⁠⁠जागैं लोभी लालच धरनि धन धाम के।

जागैं भोगी भोगही बियोगी रोगी सोगबस,

⁠⁠सोवै सुख तुलसी भरोसे एक राम के॥

(कवितावली उत्तरकांड 109 वां छंद )

इस छंद में अलग अलग प्रकार से जागने के कारणों का वर्णन है 

योगी जन, शिव-उपासक और यति जो सदा ईश्वर का ध्यान करने वाले और लोभ, मोह, क्रोध, काम आदि षड्रिपु से डरने वाले हैं वे सदा जगते हैं। राजा  राज-काज के लिए और उनके सेवकगण शत्रु के समाचार सुनकर सोच में पड़कर जागा करते हैं। विद्या हेतु पण्डित लोग एकाग्रचित्त होकर जागते हैं और लोभी जन धन आदि के लालच में, भोगी भोग के लिए, वियोगी विरह में, रोगी रोग के कारण जागते हैं

लेकिन तुलसीदास प्रभु राम के भरोसे सुखपूर्वक सोता है।

राम के प्रेम की अनुभूति गहराने पर आनन्द का लाभ मिल जाता है 

समाधिस्थ होकर सोने की चर्चा है इसमें


भाव बस्य भगवान सुख निधान करुना भवन।

तजि ममता मद मान भजिअ सदा सीता रवन॥92 ख॥

 हम प्रवेश कर चुकें हैं उत्तर कांड में जहां गरुड़ जी और कागभुशुंडी जी का संवाद चल रहा है


पक्षीराज जी मस्त हो गए

उन्हें ज्ञान होने पर भान हो गया कि मैं कौन हूं

वे विष्णु के पार्षद हैं शिष्यत्व की अनुभूति हो गई

प्रेमातिरेक होने पर भेद बुद्धि समाप्त हो जाती है

भक्त भगवान् हो जाता है

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया मंडनमिश्र की चर्चा क्यों हुई आदि जानने के लिए सुनें

7.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 07 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 रामु काम सत कोटि सुभग तन। दुर्गा कोटि अमित अरि मर्दन॥

सक्र कोटि सत सरिस बिलासा। नभ सत कोटि अमित अवकासा॥4॥


प्रस्तुत है नदीष्ण ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  07 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  647 वां सार -संक्षेप

1=अनुभवी


ये सदाचार संप्रेषण हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी हैं

यदि हम अपने शिष्यत्व को पल्लवित कर लेते हैं तो ये हमें बहुत अच्छे लगेंगे 

यदि हम व्यवधान पर ध्यान देंगे तो जिस कार्य को करते समय व्यवधान उपस्थित हुआ है उस कार्य को पूर्ण नहीं कर पायेंगे

इसलिए हमें व्यवधानों को न देखकर अपने लक्ष्य को ही प्राप्त करने की चेष्टा करनी चाहिए


चिन्तन ध्यान  धारणा मनन पूजन भजन हमें बहुत सहारा देते हैं अपने पास बैठकर कुछ समय के लिए यह भाव अवश्य आना चाहिए कि मैं कौन हूं मनुष्य रूप में मेरे जन्म लेने का क्या कारण है

हमारे अन्दर यह भाव भी आना चाहिए कि अगली  पीढ़ी को हम कैसे सुसंस्कृत करें 

अगर ऐसा होता है तो यह परमात्मा की कृपा है

प्रेम आत्मीयता विश्वास के साथ अपने संगठन का विस्तार करें 


इष्टदेव की भी कृपा है जो हमारा मार्गदर्शन करते हैं वे हमारे गुरु हूं परमात्मा तक पहुंचने का माध्यम हैं


मां पिता गुरु देश कर्म आचार्य कोई भी इष्ट हो सकता है


हम परमात्मा के अंश हैं  हम एक हैं इस प्रकार की गहन अनुभूति ही महत्त्वपूर्ण अभिव्यक्ति का कारण बनती है

यही अभिव्यक्ति कागभुशुण्डी जी को भी हो गई


कवनिउ सिद्धि कि बिनु बिस्वासा। बिनु हरि भजन न भव भय नासा॥4॥


विश्वास के बिना कोई भी सिद्धि  नहीं हो सकती है

 इसी प्रकार हरि के भजन के बिना जन्म-मृत्यु के भय का नाश नहीं होता॥


बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु।

राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु॥90 क॥


विश्वास बहुत आवश्यक है अपने निजत्व का विकास अद्भुत है

भगवान् राम द्रवित तब होते हैं जब हमारा विश्वास दृढ़ हो जाता है

राम, रामत्व का बोध,

राम की कथा हमें आनन्द देती है

राम संपूर्ण समस्याओं का शमन करते हैं



इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जय श्री राम मात्र नारा न होकर किसके लिए आत्मा का उद्घोष था  आदि जानने के लिए सुनें

6.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 06 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है लब्धप्रत्यय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  06 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  646वां सार -संक्षेप

1=जिसने विश्वास जीत लिया हो

One who has won confidence



इस समय विश्वास अस्त व्यस्त है यह Crisis of faith का जमाना है आपस में विश्वास की कमी दिखती है

अपने पर ही विश्वास नहीं रहता

आत्मविश्वास के डिगने पर व्यक्ति उतना ही चिन्तित व्याकुल दुःखी रहता है उसमें अनेक दोष आ जाते हैं


प्रातःकाल ये सदाचार वेलाएं हमें उत्साह विश्वास आस्था प्रेम आदि से भर देती हैं

आत्मविश्वास से लबरेज कर देती हैं हम विवेचन में न जाकर आनन्द में डूबने का प्रयास करें 

 जिस भाव से जो भगवान् की भक्ति करता है उसी के अनुरूप उसे फल मिलता है और वह जो भी करता है वह मेरा अनुगमन है


ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।


मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।4.11।।


सामान्य जन इस लोक में कर्मों के फल को चाहते हुए देवताओं की पूजा करते हैं क्योंकि मनुष्य लोक में कर्मों के फल शीघ्र  प्राप्त होते हैं


फल प्राप्त होते हैं जल्दी प्राप्त होते हैं लेकिन जितनी जल्दी प्राप्त होते हैं उतने ही जल्दी नष्ट होते हैं



निज अनुभव अब कहउँ खगेसा। बिनु हरि भजन न जाहिं कलेसा॥

राम कृपा बिनु सुनु खगराई। जानि न जाइ राम प्रभुताई॥3॥

(कागभुशुंडी जी कह रहे हैं)


जब तक हम किसी को जानते नहीं हैं तब तक उससे प्रेम भी नहीं होता है

यह लगाव विश्वास में बदल जाता है और विश्वास अडिग हो जाता है वही भक्ति है उसी भक्ति में शक्ति है


जानें बिनु न होइ परतीती। बिनु परतीति होइ नहिं प्रीती॥

प्रीति बिना नहिं भगति दिढ़ाई। जिमि खगपति जल कै चिकनाई॥4॥


आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि भक्त कैसे मस्त है

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया कौन से दो  महत्त्वपूर्ण सोरठे आचार्य जी ने आज बताए जानने के लिए सुनें

5.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 05 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै


र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।


जो मान और मोह से रहित हो गये हैं, जिन्होंने आसक्ति से उत्पन्न  दोषों पर विजय प्राप्त कर ली है, जो नित्य  परमात्मा में रत हैं, जो  सम्पूर्ण कामनाओं से रहित हो गये हैं, जो सुख-दुःख वाले द्वन्द्वों से मुक्त हो गये हैं, ऐसे साधक भक्त उस अविनाशी परमपद को प्राप्त होते हैं।


प्रस्तुत है लब्धपरभाग ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  05 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  645 वां सार -संक्षेप

1=उत्तमता को प्राप्त



दिव्य स्वरूप को प्राप्त ये सदाचार संप्रेषण हम राष्ट्र भक्तों के लिए अत्यन्त  उपयुक्त प्रेरक प्रभावकारी कल्याणकारी और उचित हैं


क्रोध पर नियन्त्रण करने की विधि बताते हुए आचार्य जी ने गीता के अभ्यस्त पुरुष बैरिस्टर साहब के सात्विक क्रोध को उद्धृत किया

गीता के 15 वें अध्याय में

कहा गया है 

ज्ञानी  इस संसार वृक्ष को ऊर्ध्वमूल और अध:शाखा वाला अश्वत्थ व अव्यय कहते हैं; जिसके पत्ते वेद हैं

ऐसे वृक्ष को जानने वाला वेदवित् है

कर्मों का अनुसरण करने वाली इसकी शेष जड़ें नीचे फैली हुईं हैं


रामचरित मानस भक्ति ज्ञान विश्वास श्रद्धा ध्यान अनुरक्ति प्रेम की अद्भुत कथा है

आचार्य जी ने नवधा भक्ति, चौदह प्रकार की भक्ति, दशधा भक्ति, प्रेमाभक्ति पराभक्ति की ओर संकेत किया  

ज्ञान के भी इसी तरह बहुत से भेद हैं बारह प्रकार के चरित्र हैं

हम इनमें न उलझकर आइये प्रवेश करें मानस के उस भाग में


अब सुनु परम बिमल मम बानी। सत्य सुगम निगमादि बखानी॥

निज सिद्धांत सुनावउँ तोही। सुनु मन धरु सब तजि भजु मोही॥1॥

जहां भगवान् कहते हैं कि मनुष्य उनके सबसे प्रिय हैं

सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए॥2॥


और उनमें भी


भगतिवंत अति नीचउ प्रानी। मोहि प्रानप्रिय असि मम बानी॥5॥


(नीच अर्थात् सांसारिक व्यवहार से शून्य)

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया

विस्मृति भी कैसे एक वरदान है

आदि जानने के लिए सुनें

4.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 04 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है लब्धवर्ण ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  04 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  644 वां सार -संक्षेप

1=प्रसिद्ध


आचार्य जी ने कल बताया था कि हमें मनुष्य का जीवन मिला है उसे जीना है ढोना नहीं है

हमें नित्य कुछ समय भाव -जगत के लिए निकालना चाहिए  अन्यथा सांसारिक प्रपंचों में ज्यादातर समय व्यर्थ ही चला जाता है

भक्त को विश्वास रहता है कि भगवान् सब अच्छा ही करेगा

हमें दुविधा का त्याग करना चाहिए भगवान् पर पूर्ण विश्वास करना चाहिए

आचार्य जी ने अपने अध्यापक श्री माताजी प्रसाद का एक प्रसंग बताया

कि कैसे एक व्यक्ति रमखुदइया में पड़ गया

संसारी व्यक्ति के समझाने के ऐसे अनेक उदाहरण हैं


जिस कर्म में हम लगें उसमें इतने रम जाएं कि फिर और कुछ ध्यान न रहे


इसे भाव में बने रहना कहते हैं

कर्म करते हुए विरक्त रहना हमें सीखना चाहिए


उत्तरकांड में आजकल कागभुशुंडी जी और  गरुड़ जी का संवाद चल रहा है


संसारी स्वरूप से इतर अर्जुन ने जब श्रीकृष्ण का तात्विक स्वरूप देखा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा

इसी तरह यहां भी


मूदेउँ नयन त्रसित जब भयउँ। पुनि चितवत कोसलपुर गयऊँ॥

मोहि बिलोकि राम मुसुकाहीं। बिहँसत तुरत गयउँ मुख माहीं॥1॥


जो नहिं देखा नहिं सुना जो मनहूँ न समाइ।

सो सब अद्भुत देखेउँ बरनि कवनि बिधि जाइ॥80 क॥


श्री रामजी के पेट में मैंने बहुत तरह के जगत् देखे, जो देखते ही बनते थे, उनका वर्णन नहीं किए जा सकता वहाँ फिर मैंने  माया के स्वामी भगवान श्री राम को देखा


तुलसीदास ने कथा के रूप में जो ज्ञान दिया अद्भुत है

शरणागत होने और शान्त होकर शरणागत होने में अन्तर है

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

3.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 03 -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण https://sadachar.yugbharti.in/

 यह जीवन सुख दुख  शोक हर्ष उत्थान पतन की परिभाषा

क्षणभंगुर हो यह भले मगर

 अन्तर्मन में केवल आशा


जीवन विराग की करुण कथा

संघर्षों भरी जवानी है

जीवन मरुथल की अबुझ प्यास गंगा का शीतल पानी है


जीवन अलबेला रंगमंच अभिनय अभिनेता एक रूप

और कल्पना कथा संगीत वाद्य सब मिल बनते मोहक स्वरूप


पर वेश उतरते ही दुनिया फिर वैसी वैसा खांव खांव

सुरभित प्रसून भ्रमरावलियां विलुप्त फिर से वह कांव कांव



प्रस्तुत है लब्धनामन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  03 -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  643 वां सार -संक्षेप

1=जिसने नाम कमाया हो

वर्षों से भावनात्मक रूप से आचार्य जी हम लोगों से संयुत हैं हम आज भी आचार्य जी के सदाचारमय विचारों से लाभान्वित हो रहे हैं


शरीर शिथिल हो सकता है मन प्रायः शिथिल नहीं होता

और जब मन शिथिल हो जाता है तो शरीर भी अशक्त हो जाता है इसलिए प्रयासपूर्वक हमें मन को कभी शिथिल नहीं करना है


मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥



मन को सुदृढ़ करने के लिए हमारे ऋषियों ने अनेक उपाय बताएं हैं और  कोई व्यक्ति  इतनी संगति पाकर भी उन उपायों का सहारा नहीं लेता  तो हो सकता है पूर्व जन्म के उसके बोझिल कर्मों का उदय हो गया हो


जीवन को जीने और ढोने में अंतर है

हमें मनुष्य रूप में मिले जीवन को जीना सीखना चाहिए


हम भक्ति शक्ति सिद्धान्त के प्रति समर्पित रहें


अनन्त अन्तरिक्ष में विलीन होने के बाद भी  विश्व के केन्द्र विश्वगुरु भारत की ओर निहारते महापुरुष हमें निर्देश दे रहे हैं कि मानव जीवन पाकर हम उसे व्यर्थ न करें

अपने धर्म का पालन करें

हम चिन्तक विचारक संयमी हैं हम मनुष्य के मनुष्यत्व को समझने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं समझते भी हैं


यह जीवन सुख दुःख लाभ हानि उत्थान पतन वैभव अभाव संयोग वियोग प्रीति विग्रह धन यश के प्रति अद्भुत लगाव......

मानव जीवन सचमुच में अद्भुत विलक्षण है इसलिए मानव का जीवन पाकर भी कोई व्यक्ति सोचे कि उसके पास है ही क्या तो वास्तव में उसे अभागा ही कहा जाएगा

कायर कहा जाएगा



राकापति षोड़स उअहिं तारागन समुदाइ।

सकल गिरिन्ह दव लाइअ बिनु रबि राति न जाइ॥ 78 ख॥

कुछ भी कर लें सूर्य के बिना रात नहीं जा सकती


उसी सूर्य के हम उपासक हैं


हमारी बुद्धि प्रखर प्राञ्जल परिपुष्ट विवेक से आनन्दित बने

हम पिंजरबद्ध न रहें


ऐसेहिं हरि बिनु भजन खगेसा। मिटइ न जीवन्ह केर कलेसा॥

हरि सेवकहि न ब्याप अबिद्या। प्रभु प्रेरित ब्यापइ तेहि बिद्या॥1॥


अविद्या का आश्रय ले सकते हैं लेकिन लक्ष्य विद्या ही होना चाहिए



आचार्य जी ने इसका क्या विस्तार किया कि कागभुशुंडी जी  शूद्रतन पाकर भक्ति कर रहे हैं आदि जानने के लिए सुनें

2.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 02- -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।


स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्।



प्रस्तुत है लब्धकीर्ति¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  02- -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  642  वां सार -संक्षेप

1=विख्यात



अभी तक हम देखते आएं हैं कि आचार्य जी किसी भी परिस्थिति में इन सदाचार वेलाओं का क्रम टूटने नहीं देना चाहते इसी कारण प्रतिदिन सदाचारमय विचारों से हम लाभान्वित हो रहे हैं

आचार्य जी का परामर्श है कि हम अखंड आनन्द में रहने की चेष्टा अवश्य करें शरीर को उचित कार्य व्यवहार में लगाने की चेष्टा करें संतुष्ट रहने का प्रयास करें विश्वास से लबरेज रहें अनुभव करें कि हम सब इस युग के रत्न हैं 

हमारे यहां वैसे भी किसी भी परिस्थिति में भाव -यज्ञ विचार -यज्ञ वर्जित नहीं है मूर्तिपूजा वर्जित हो सकती है

लेकिन हमारे मन- मंदिर का द्वार सदैव खुला रहता है

इस मन -मंदिर में उपासना करने से सांसारिक धर्म को निभाते समय वर्जित कर्मों को करने से हम बच जाते हैं

परमात्मा स्वयं उसी के बनाए इस मंदिर में निवास करता है

उसका प्राणिक तत्व इसमें विद्यमान है

यह भाव का संसार सबको समझ में नहीं आता

कुछ लोग कुभाव ले आते हैं


भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥

सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥

कुभाव में भी श्री राम जय राम जय जय राम उच्च स्वर से करें तो कुभाव नष्ट हो जाता है

आत्महत्या भी कुभाव है कायरता है 

हमारे शास्त्रों में हरित वृक्ष का उच्छेदन वर्जित है जीवित पशु का वध वर्जित है

मन में प्रश्न चलें और मन में उनका  उत्तर खोजें तो ज्ञान के अभाव में हम अनर्थ कर बैठते हैं



ग्यान अखंड एक सीताबर। माया बस्य जीव सचराचर॥2॥


जौं सब कें रह ज्ञान एकरस। ईस्वर जीवहि भेद कहहु कस॥

माया बस्य जीव अभिमानी। ईस बस्य माया गुन खानी॥3॥



नकली कार्यों और ढोंगों से हमें अपने को बचाना चाहिए

सरकते हुए संसार को हम द्रष्टा रूप में देखते हैं तो हम स्थिर रहते हैं


विकृत रूप से खानपान से भी इसे विनष्ट न करें


स्वाभाविक रूप से शरीर का नष्ट होना अलग बात है हमें अपनी ओर से इसे सुरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए


प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।


आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।2.55।।


हमारे ऋषि यशः काय से आज भी जीवित हैं

भगवान की अभिव्यक्ति और अनुभूति में अंतर है भक्ति शुद्ध हो इसे आचार्य जी ने किस प्रकार स्पष्ट किया आदि जानने के लिए सुनें

1.5.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का 01- -05- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 मनुष्य का शरीर एक ईश्वरीय यंत्र है 

जगत्पिता-प्रदत्त नित्य सिद्ध शक्तिमंत्र है l 


प्रस्तुत है  कुलन्धर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  01- -05- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  641  वां सार -संक्षेप



कल रात्रि एक दुःखद सूचना मिली कि युगभारती के मानद सदस्य   भैया सुनील सिंह जी (संदाना) अब हमारे बीच नहीं रहे।


भइया सुनील जी  अपने गांव सरौंहां के सभी कार्यक्रमों में प्रमुख सहयोगी थे और उनके दोनों पुत्र अनिकेत ( बैच 2020)और  पुष्कर वर्तमान में विद्यालय के छात्रावास में अध्ययनरत हैं ।


ईश्वर उनके परिवार को इस दुःख से लड़ने की शक्ति प्रदान करे

ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः



वास्तव में यह घटना दुःखद है  कष्टदायक है

संसार है इसमें बहुत कुछ झेलना पड़ता है


राम की अद्भुत माया है



नाथ इहाँ कछु कारन आना। सुनहु सो सावधान हरिजाना॥

ग्यान अखंड एक सीताबर। माया बस्य जीव सचराचर॥2॥


परबस जीव स्वबस भगवंता। जीव अनेक एक श्रीकंता॥

मुधा भेद जद्यपि कृत माया। बिनु हरि जाइ न कोटि उपाया॥4॥


हरिशंकर शर्मा जी की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया कि  एक दिन वे (शर्मा जी )आकर कहने लगे ज्ञान काम नहीं दे रहा है

जब संसार में ज्ञान काम नहीं देता तो व्यक्ति छटपटाता है और वह उपद्रव कर लेता है

लेकिन भक्ति काम देती है भगवान् के भक्त भगवान् पर विश्वास रखते हैं वो जानते हैं कि भगवान् उनके संकट दूर करेंगे ही वो ऐसा जघन्य अपराध  कभी नहीं करेंगे कि आत्महत्या जैसा कदम उठा लें